पिछले साल कोरोना काल में प्रवासी मज़दूरों की जो तस्वीरें सामने आईं उसने देश दुनिया को पूरी तरह से हिला कर रख दिया था. इन मजदूरों ने बिना कुछ कहें हज़ारों किलोमीटर की दूरी नंगे पांव तय कर ली थी. क्या बच्चे, क्या बूढ़े और क्या जवान सब एक कतार से अपने देस पहुंचने को ऐसे निकले जैसे फिर कभी परदेश का रुख न किया जाएगा. लेकिन कहते हैं कि भूखे पेट तो भजन भी नहीं होता हैं. पिछले बरस लॉक डाउन खुला और जैसे-जैसे कोरोना का खतरा थोड़ा कम लगा, ये मज़दूर फिर महानगरों की तरफ निकल आएं. इसे पेट की मजबूरी ही कहा जा सकता है कि फिर हज़ारों किलोमीटर का सफर तय कर अपने घर पहुंचने के बाद भी इन्हें वापस महानगरों की तरफ़ लौटना पड़ा. महानगर जहां दो वक्त की रोटी तो नसीब हो जाती है. लेकिन अब जैसे जैसे कोरोना ने अपने पैर पसारे, ये प्रवासी मजदूर फिर से अपना बोरिया बिस्तर बांध कर पहुंचने लगे अपने गांव कस्बों में. इस डर से कि कहीं पिछले साल जैसी हालत ना हो जाए.

क्या दिल्ली, क्या महाराष्ट्र और क्या मध्यप्रदेश हर जगह रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर प्रवासी मजदूरों का तांता लगा हुआ है. सब के मन में वस एक ही बात है कि कहीं पिछले साल की तरह इस बार भी रातों रात लॉकडाउन ना लगा दिया जाए तो हम क्या करेगें. पिछला बरस तो जैसे तैसे ग़ुज़र बसर हो गई थी लेकिन इस बार नहीं हो पाएगी. लॉकडाउन के बाद पैदल जाने से अच्छा है कि हम पहले ही जो सवारी जैसे मिल रही है बस अपने घर पहुंच जाएं. साथ ही कुछ लोगों का कहना था कि हम पिछले साल वाला मंजर दुबारा देखने के हालात में नहीं हुं. कुछ मजदूरों से बात करने पर पता चला कि लॉकडाउन के दौरान रोटी देने वालों ने फोटो खींच-खींचकर जो जिल्लत इन लोगों को दी, वो आज भी उन कड़वी यादों से उबर नहीं सके हैं और वो जिल्लत अब वो फिर नहीं झेलना चाहते. कोरोना की इस दूसरी लहर ने तो जैसे इन मजदूरों को तोड़ कर रख दिया है.

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छतरपुर, हरपालपुर रेलवे स्टेशन पर दिल्ली से आने वाली ट्रेनों ने ठसाठस मज़दूर भरे हुए है. आलम यह है कि बिहार के लिए अगस्त तक की बुकिंग है. ट्रेनें फुल हैं. दिल्ली से आने वाली बसों ने एक बार फिर मज़दूर ही मज़दूर नज़र आ रहे हैं. हर लंबे रूट की बस ठसाठस भरी हुई हैं. वहीं, टिकट काउंटर पर मजदूरों की भीड़ लगातार उमड़ रही है. गंतव्य तक पहुंचने वाली ट्रेनें न मिलने पर वह छोटे रूट ट्रेनों की टिकट बुक कर किसी तरह यहां से निकलना चाहते हैं.

ऐसा लग रहा है जैसे एक बार फिर इनका आशियाना किसी तूफान में उड़ गया है. और ये फिर बेसहारा हो गए हैं. दिल्ली के आनंद विहार बस स्टैंड और कौशाम्बी बस स्टैंड पर आम दिन से ज़्यादा भीड़ देखी जा रही है. कुछ लोगो का कहना है कि दिल्ली में वीकेंड लॉक डाउन की वजह से घर जा रहे है तो कुछ अपने निजी काम से. लोग बसों के इंतजार में खड़े नजर आ रहे हैं. कुछ लोगों का कहना था कि दिल्ली में वीकेंड लॉक डाउन के चलते वह लोग अपने गांव या शहर जा रहे हैं. साथ ही कोरोना के केस बढ़ने से डर है. साथ ही अभी वीकेंड लॉकडाउन लगा है लेकिन आगे कितना और बढ़ जाए इसका कुछ पता नहीं, इसलिए पहले घर निकलना ज्यादा बेहतर है.

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देश के अधिकांश हिस्सों में बिहार के लोग काम की तलाश में जाते हैं. कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले के कारण कई राज्यों में कारखाने और काम बंद हो रहे हैं, जिस कारण लोग वापस लौट रहे हैं. हालांकि बिहार में भी कोरोना संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है. ऐसे में लौट रहे लोगों को बस इतना सुकून है कि कम से कम परदेश से भला अपने गांव तो पहुंच गए.

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