गानेबजाने की कला कुछ लोगों में जन्मजात होती है, वहीं जिन को गीतसंगीत का शौक होता है, वे इसे सीख भी लेते हैं, मगर अच्छा गानेबजाने वाला अब हर कोई तो अरिजीत सिंह या लता मंगेशकर बन नहीं सकता, पर इस हुनर से घर चलाने के लिए अच्छा पैसा कमाया जा सकता है. अगर अच्छा मौका मिलने लगा तो लोग लखपतिकरोड़पति बनते भी देखे जा रहे हैं.

लखनऊ, उत्तर प्रदेश के रहने वाले प्रमोद श्रीवास्तव की उंगलियां बचपन से ही बढ़िया ताल देती थीं यानी जो भी बरतन मिले, डब्बा मिले या स्कूल की बैंच ही क्यों न हो, प्रमोद की उंगलियां उस पर बिलकुल ऐसी बजतीं, जैसे कोई बड़ा उस्ताद तबला बजा रहा हो. उस का एक दोस्त गाना बहुत अच्छा गाता था, तो दोनों की जोड़ी स्कूल में काफी मशहूर थी.

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घर वालों को लगा कि प्रमोद की गीतसंगीत में दिलचस्पी है, तो उन्होंने उस का एडमिशन भातखंडे संगीत महाविद्यालय में करवा दिया, जहां शाम को वह एक घंटे की क्लास में तबला बजाने की प्रैक्टिस करने लगा.

जल्दी ही प्रमोद तबला बजाने में उस्ताद हो गया. उस ने अपने गायक दोस्त और भातखंडे महाविद्यालय के कुछ दूसरे कलाकारों के साथ मिल कर एक छोटी सी संगीत मंडली बना ली. पहले यह मंडली अपने महल्ले में होने वाले पूजा समारोहों में भजन संध्या करती थी, जिस के लिए वह 3,000 रुपए से 5,000 रुपए तक लेती थी बाकी वहां आए लोग ही काफी भेंट चढ़ा देते थे.

रातभर के कीर्तन के बाद सुबह प्रमोद के पास कोई 7,000-8,000 रुपए जमा हो जाते थे, जिन्हें वे आपस में बराबर बांट लेते थे.

धीरेधीरे जब कुछ पैसे जमा हो गए तो प्रमोद ने कीपैड और गिटार जैसे वाद्य यंत्र खरीद कर अपना छोटा सा आर्केस्ट्रा ग्रुप बना लिया. यह ग्रुप शादीब्याह में धमाकेदार फिल्मी गीत सुनाता और बीच बीच में चुटकुलेबाजी भी होती रहती. रातभर लोगों का जबरदस्त मनोरंजन होता.

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जल्दी ही प्रमोद को अच्छे औफर मिलने लगे. उस ने अपने आर्केस्ट्रा की कीमत भी बढ़ा दी. एक डांसर को भी साथ ले लिया. यह आर्केस्ट्रा ग्रुप अब बुकिंग पर शहर के बाहर के प्रोग्राम भी लेने लगा. पैसा अच्छा मिले तो आसपास के गांवदेहात में भी वे प्रोग्राम करने जाने लगे, जहां गांव वाले रातभर जमघट लगा कर जोश बढ़ाए रखते थे.

5 साल के अंदर ही प्रमोद की आर्केस्ट्रा पार्टी खूब पैसा कमाने लगी, हालांकि बीते 2 साल से कोरोना के चलते उन का काम ठप पड़ा है, मगर ग्रुप के सभी सदस्यों के अकाउंट में इतना पैसा तो जमा था कि कोरोना काल में उन्हें किसी से उधार नहीं लेना पड़ा.

दिल्ली के कीर्ति क्लब में करवाचौथ के दिन श्यामली मेहरा शाम से ही अपनी कीर्तन मंडली के साथ आ जाती है. पिछले 6 साल से उन्हीं की कीर्तन मंडली को यहां बुलाया जा रहा है. वे इस के लिए 30,000 रुपए लेती हैं. व्रत करने वाली सुहागिनों को करवा की कहानी सुनाने के बाद श्यामली की कीर्तन मंडली 4-5 घंटे भजन संध्या करती है. दूरदूर से औरतें यहां भजन सुनने के लिए आती हैं. वे मंडली के लिए तोहफे और चढ़ावे भी लाती हैं.

श्यामली मेहता माता की चौकी भी करती हैं. साईं बाबा के मंदिरों में भी भजन का प्रोग्राम करती हैं, जिस से काफी कमाई हो जाती है. बाकी दिनों में वे अपना बुटीक चलाती हैं.

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मनोज तिवारी के गीतों ने भोजपुरी संगीत को काफी लोकप्रिय किया है. आजकल भोजपुरी आर्केस्ट्रा में भी अच्छी कमाई हो रही है. पूर्वांचल में तो भोजपुरी आर्केस्ट्रा के बिना अब शादीब्याह अधूरा जान पड़ता है. आधी रात तक धमाकेदार गीतसंगीत पर नचनिया का नाच हुए बिना शादी समारोह पूरा नहीं होता है. भोजपुरी कलाकार आजकल आर्केस्ट्रा पार्टी बना कर धड़ल्ले से कमाई कर रहे हैं.

हरियाणवी कलाकार सपना चौधरी को देख लीजिए. 4-5 गानेबजाने वालों को ले कर कुछ बेहूदा ठुमकों से शुरू हुई यह कहानी आज सपना चौधरी को उस मुकाम पर ले आई है कि वे करोड़ों में खेल रही हैं.

सपना चौधरी आज एक बड़ा नाम हैं. उन्हें देखने के लिए तो भीड़ में गोलियां तक चल जाती हैं. सपना अत्रि (चौधरी ) का जन्म 1990 में दिल्ली के महिपालपुर में हुआ था. उन के पिता उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में छोटे से गांव स्यारोल में रहने वाले थे.

सपना के जन्म से कुछ दिन पहले ही उन का परिवार उन के बड़े भाई के पास महिपालपुर आ गया था. साल 2008 में सपना के पिता भूपेंद्र अत्रि की लंबी बीमारी से मौत हो गई थी, तब वे महज 18 साल की थीं.

पिता की मौत के बाद अपने परिवार की जिम्मेदारियों को संभाले लिए सपना चौधरी ने अपने शौक ‘डांस’ को अपना कारोबार बना लिया और इस के जरीए ही वे खूब पैसा और शोहरत कमा रही हैं.

थोड़ा गीतसंगीत आता हो, कुछ वाद्य यंत्रो जैसे हारमोनियम, तबला, कीपैड, गिटार बजाने वाले साथ हों, एक खूबसूरत कमसिन डांसर और एक चुटकुलेबाज साथ हो तो आर्केस्ट्रा ग्रुप बना कर बढ़िया कमाई की जा सकती है. शहरों में होने वाली शादी पार्टियों, लेडीज संगीत, बच्चों के बर्थडे पार्टी वगैरह में कुछ घंटों की पेशकश के लिए 15,000 रुपए से 50,000 रुपए तक आजकल आर्केस्ट्रा ग्रुप ले रहे हैं. वहीं गांवदेहात की शादियों में भी ठीकठाक कमाई तो हो ही जाती है.

आजकल जहां नौकरियों का टोटा पड़ा है, नौकरियां सुरक्षित नहीं हैं, एक बंधीबंधाई रकम के आगे कोई और कमाई नहीं है, ऐसे में 4-5 लोग मिल कर अगर आर्केस्ट्रा ग्रुप बना लें तो कमाई के मौके बढ़ते ही जाएंगे. फिर गीतसंगीत के कार्यक्रम शाम और रात में होते हैं, ऐसे में पूरा दिन किसी और काम में भी लगाया जा सकता है जिस से कमाई के कई स्रोत एकसाथ बन सकते हैं.

अगर अपना ग्रुप नहीं बना सकते, मगर गाने या बजाने का शौक है तो किसी दूसरे के आर्केस्ट्रा में शामिल हो कर कमाई की जा सकती है. इस से अपना शौक भी पूरा हो जाता है और पैसा भी मिलता है. वहीं अगर लोग आप को पसंद करने लगें और आप की बदौलत आर्केस्ट्रा ग्रुप की कमाई बढ़ने लगे, तो आप के रेट और धमक अपनेआप बढ़ जाएगी. तो सोच क्या रहे हैं… गानेबजाने का शौक है तो रियाज शुरू कीजिए.

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