कृषि उत्पादों के निर्यात में अप्रैल, 2020 से फरवरी, 2021 के बीच 18.49 फीसदी की वृद्धि हुई. इस में गेहूं और चावल निर्यात में काफी उछाल आया. 2019-20 के दौरान भारत का कृषि निर्यात 2.52 लाख करोड़ रुपए और आयात 1.47 लाख करोड़ रुपए का था. यह 2020-21 में बीते फरवरी तक 2.74 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया. गेहूं, बासमती और गैरबासमती के साथ दूसरे अनाज, सोया मील, मसाले, चीनी, कपास, ताजी सब्जियां, प्रसंस्कृत सब्जियां आदि इस में शामिल हैं.

भारत सरकार ने साल 2022 तक कृषि क्षेत्र का निर्यात 60 अरब डौलर पर पहुंचाने का लक्ष्य रखा है. नई कृषि निर्यात नीति में जैविक उत्पादों पर खासा जोर है. हाल ही में संसद की वाणिज्य संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने कृषि और समुद्री उत्पाद, बागबानी फसलों, हलदी और कयर के निर्यात पर अपनी रिपोर्ट में तमाम मुद्दों को उठाया है. समिति के सामने वाणिज्य विभाग ने माना कि देश में फसल कटाई के बाद उन के लिए भंडार क्षमता की घोर कमी जैसी बहुत दिक्कतें हैं. घरेलू परिवहन की ऊंची लागत के कारण निर्यात अप्रतिस्पर्धी हो जाता है. अनेक कृषि उत्पादों की घरेलू कीमतें अंतर्राष्ट्रीय कीमतों से अधिक हैं. भारत का प्रसंस्कृत खाद्य का निर्यात 2018-19 में 31,111.90 करोड़ रुपए का था,

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जिस में प्रमुख रूप से सूखे और संरक्षित सब्जियां और आम का गूदा शामिल थे. एपीडा द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चला है कि जहां ताजे फल और सब्जियों का निर्यात घट रहा है, वहीं प्रसंस्कृत फल, रसों के साथसाथ प्रसंस्कृत सब्जियों की मांग बढ़ रही है. कृषि उत्पादों की बरबादी रोकना जरूरी आज भी यह बेहद चिंताजनक बात है कि फसल कटाई के बाद कृषि उत्पादों की बरबादी तकरीबन 92,651 करोड़ रुपए की हो रही है. मेघालय जैसे राज्य में कोल्ड स्टोरेज की सुविधाओं की कमी में 50 फीसदी तक केला, संतरा, लीची, कीवी जैसी मुख्य बागबानी फसलें खराब हो जाती हैं और किसानों को भारी नुकसान होता है. देश में हमारे अनाज की जितनी बरबादी होती है, उस से बिहार जैसे राज्य का पेट सालभर भरा जा सकता है.

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