सोने की चिड़िया
कोई कम उम्र का अपरिपक्व बच्चा कहता तो बात नजरअंदाज की जा सकती थी लेकिन मशवरा इस बार पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने दिया है, इसलिए इस पर बड़े पैमाने पर पुनर्विचार, सैमिनार, बहसें और संगोष्ठियां होनी चाहिए. बकौल चिदंबरम, साल 2020-21 पिछले 4 दशकों में अर्थव्यवस्था का सब से काला साल रहा है और सरकार को जरूरत पड़ने पर और रुपए छापना चाहिए. नोटबंदी वाली सरकार से नोट छापने की उम्मीद चिदंबरम ने कर डाली लेकिन अच्छा यह रहा कि उन्होंने सरकार को यह राय न दी कि वह हर घर में नोट छापने की पोर्टेबल मशीन रख दे जिस से लोग जरूरत के मुताबिक नोट छाप लें.
यहां मंशा हार्वर्ड और मद्रास विश्वविद्यालयों की पढ़ाई की गुणवत्ता पर उंगली न उठाना हो कर इस आइडिए की दाद देना है, जिसे सुबह बिस्कुट खाने होंगे वह 100 रुपए का नोट छाप कर दुकान पहुंचेगा, तो वह बंद मिलेगी क्योंकि दुकानदार भी घर बैठा नोट छाप रहा होगा, यानी नोटों के सिवा देश में कुछ न दिखेगा.धनखड़ का कुनबा
धनखड़ का कुनबा
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ कभी राजस्थान के जाटों के निर्विवाद नेता थे. लेकिन आज भाजपा की दुर्गति के बाद वे कहीं के नहीं रह गए हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कोसते रहने में उन का दिन अच्छे से कट जाता है.
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कई बार तो वाकई शक गहराने लगता है कि वे गवर्नर हैं या भाजपा के वर्कर. इधर टीएमसी की खूबसूरत सांसद महुआ मोइत्रा ने उन पर मय सुबूत के आरोप मढ़ा है कि राज्यपाल महोदय ने परिवारवाद को बढ़ाते राजभवन के कोई आधा दर्जन बड़े पद अपने करीबियों को सौंप रखे हैं. धनखड़ हर कभी पश्चिम बंगाल की हिंसा का जिम्मेदार ममता बनर्जी को ठहराते रहते हैं तो लगता है कि अभी भी नेपथ्य से नेताजी का भाषण गूंज रहा है कि 2 मई के बाद टीएमसी के गुंडों को अंदर कर देंगे. अब तनहाई बांटने के लिए धनखड़ अपने राजस्थान के झुं झुनू से कुछ रिश्तेदारों को ले आए हैं तो हायहाय क्यों?
हिंदुत्व का पाठ्यक्रम मुख्यमंत्री बनते ही हेमंत बिस्वा शर्मा ने असम में असली चेहरा दिखाना शुरू कर दिया है. बकौल हेमुंत, मुसलमानों को अपनी जनसंख्या कम करने के लिए सभ्य परिवार नियोजन नीति अपनानी चाहिए.
कई और नसीहतों के साथ उन्होंने सीधेतौर पर स्पष्ट कर दिया है कि वे कोई विकास या खुशहाली लाने के लिए मुख्यमंत्री नहीं बने हैं बल्कि उन का मकसद पूर्वोत्तर में हिंदुत्व का एजेंडा लागू करना है. इस एजेंडे में हिंदुओं का भला कहीं नहीं है ठीक वैसे ही जैसे 370 को बेअसर करने और तीन तलाक कानून रद्द करने में नहीं है. मुमकिन है 2024 के आम चुनाव के पहले सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू भी कर डाले पर हेमंत जैसे जोशीले नेताओं को बोलना इस बात पर भी चाहिए कि हिंदूवादी संगठन और धार्मिक नेता हिंदुओं से ज्यादा बच्चे पैदा करने की आएदिन अपील न करें.
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ब्रह्म हत्या का प्रायश्चित्त
पुश्तैनी कांग्रेसी रहे जितिन प्रसाद ऐसे वक्त में भाजपा में आए हैं जब उत्तर प्रदेश में चुनाव सिर पर हैं और भाजपा को एक अदद बड़े ब्राह्मण नेता के आयात की सख्त जरूरत थी. ऐसा नहीं है कि भाजपा में ब्राह्मण नेताओं का टोटा हो लेकिन विभीषणों की बात अलग होती है. यूपी के ब्राह्मण योगी आदित्यनाथ से नाराज हैं क्योंकि उन की 2017 से ही अनदेखी हो रही है और कोई 5 दर्जन ब्राह्मणों की हत्याएं भी हुई हैं. जिस राज्य में भगवान के रखवाले ही असुरक्षित हों तो भला ब्राह्मण भाजपा को वोट क्यों देगा.
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जितिन की आमद इस परेशानी का हल नहीं है. मुमकिन है भाजपा इस श्रेष्ठ जाति को खुश करने और भी जतन यह जताते करे कि अभी वक्त परशुराम बनने का नहीं है वरना तो छोटी जाति वाले और यवन फिर सत्ता छीन ले जाएंगे और तब सब घंटा बजाते रहना. क्षत्रिय व हठयोगी आदित्यनाथ तो झुकने से रहे. इसलिए ब्राह्मणों को ही झुक जाना चाहिए और अगले 5 वर्षों के लिए भी अपना स्वाभिमान व रोजीरोटी खूंटी पर टांग देना चाहिए.
हिंदुत्व का पाठ्यक्रम
मुख्यमंत्री बनते ही हेमंत विस्वा शर्मा ने असम में असली चेहरा दिखाना शुरू कर दिया है . . बकौल हेमंत मुसलमानों को अपनी जनसँख्या कम करने सभ्य परिवार नियोजन नीति अपनानी चाहिए .कई और नसीहतों के साथ उन्होंने सीधे तौर पर स्पष्ट कर दिया है कि वे कोई विकास या खुशहाली लाने मुख्यमंत्री नहीं बने हैं बल्कि उनका मकसद पूर्वोत्तर में हिंदुत्व का एजेंडा लागू करना है .
इस एजेंडे में हिन्दुओं का भला कहीं नहीं है ठीक वैसे ही जैसे 370 को बेअसर करने और तीन तलाक कानून रद्द करने में नहीं है . मुमकिन है 2024 के आम चुनाव के पहले सरकार जनसँख्या नियंत्रण कानून लागू भी कर डाले पर हेमंत जैसे जोशीले नेताओं को बोलना इस बात पर भी चाहिए कि हिंदूवादी संगठन और धार्मिक नेता हिन्दुओं से ज्यादा बच्चे पैदा करने की आए दिन अपील न करें .