कोविड का आपदा ने एक सबक हरेक को सिखाया है कि आफत कभी नोटिस देकर नहीं आती और जब आफत बहुतों को एक साथ आए तो छीनाछपटी की जगह समस्या का सब से आसान हल ढूंढऩा होना चाहिए.
कोरोना के मामले एकदम इतनी तेजी से देशभर में बढ़ेंगे इस की कल्पना किसी ने नहीं की थी. हम तो वैसे ही भविष्य की योजनाएं बनाने में कमजोर हैं क्योंकि हमारी सरकारी मशीनरी का मूलमंत्र बड़े काम का है कि आफत आए तो कागज बना कर टांग दो. बहुत से परेशान पढ़ कर चाहे मर जाएं, घर लुट जाएं, शोर नहीं मंचाएंगे.
जब कोविड के मामले बढऩे लगे और न आईसीयू बैड बचे, न औक्सीजन सिलेंडर न रेमडिसिवर जैलि दवाएं, न शमशानों में जगह तो आपाधापी मचने लगी. लोग भूल गए कि समस्या का हल ब्लैक में खरीदना नहीं है, नए बनाने हैं. पर क्या कोई इतना बड़ा काम दिनों में कर सकता है?
हां, यह संभव है. देश में पक्के मकानों की कमी नहीं है सारे देश में एयरकंडीशंड हाल भी बिखरे हुए हैं. सिलेंडर भी उपलब्ध हैं क्योंकि औक्सीजन सिलेंडर इंडस्ट्रीयल उपयोग में आती है. औक्सीजन बनाने के प्लांट भी उपलब्ध है.
देश के होटलों में लाखों की गिनती में बैड बने बनाए खाली पड़े थे. 2-4 दवाओं को छोड़ कर बाकि सब मौजूद था. फिर भी जाने गईं. रोते देखे लोग दिखे, जो बचे उन के परिवारों के पलपल मुश्किल से काटा.
यह सब इसलिए हुआ कि सरकार मंत्रा में विश्वास करने वाली है और जनता मंत्रा के उच्चारणों के अंधविश्वास में फंसी है और ये मंंत्र ग्रंथों में उसी तरह रहते हैं जैसे जो फाइलों से निकलते हैं और उन्हीं में समा जाते हैं.
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