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Hindi Kahani : रेतीला सच – अनंत की जिंदगी में प्यार की बूंदें क्या कभी बरसीं

Hindi Kahani : ‘‘तुम्हें वह पसंद तो है न?’’ मैं ने पूछा तो मेरे भाई अनंत के चेहरे पर लजीली सी मुसकान तैर गई. मैं ने देखा उस की आंखों में सपने उमड़ रहे थे. कौन कहता है कि सपने उम्र के मुहताज होते हैं. दिनरात सतरंगी बादलों पर पैर रख कर तैरते किसी किशोर की आंखों की सी उस की आंखें कहीं किसी और ही दुनिया की सैर कर रही थीं. मैं ने सुकून महसूस किया, क्योंकि शिखा के जाने के बाद पहली बार अनंत को इस तरह मुसकराते हुए देख रही थी. शिखा अनंत की पत्नी थी. दोनों की प्यारी सी गृहस्थी आराम से चल रही थी कि एक दर्दनाक एहसास दे कर यह साथ छूट गया. शिखा 5 साल पहले अनंत पर उदासी का ऐसा साया छोड़ गई कि उस के बाद से अनंत मानो मुसकराना ही भूल गया.

पेट में लगातार होने वाले हलकेहलके दर्द को शिखा ने कभी गंभीरता से नहीं लिया. जब दर्द ज्यादा बढ़ने लगा तो जांच के बाद पित्त की थैली में पत्थर पाया गया जो काफी लंबे समय से हलकाहलका दर्द देते रहने के बाद अब पैंक्रियाज को कैंसरग्रस्त कर चुका था. इलाज शुरू हुआ पर 3 महीने के अंदर ही शिखा पति अनंत और अपने चारों बच्चों को छोड़ कर चल बसी. शिखा के गुजरने के बाद मैं जब मायके गई तो कमरों की दीवारें हों या आंगन का खुला आसमान, अपनीअपनी भाषा में बस यही दोहराते हुए से लग रहे थे कि शिखा के साथ ही अब उस घर की रौनक भी हमेशा के लिए चली गई. अनंत और चारों बच्चों की आंखों से पलभर भी मायूसी जुदा नहीं होती थी. सभी एकदूसरे की ओर भीगी आंखों से मूक ताकते रहते. उन सब की हालत देख कर मन तड़प कर रह जाता.

6 महीने बाद रक्षाबंधन पर जब मैं दोबारा वहां गई तो घर का माहौल काफी अलग था. समय के साथ कितनाकुछ बदल जाता है. दोनों बहनें आकृति और सुकृति सुबहसुबह आईं और भाइयों को राखी बांध अपनाअपना नेग ले कर शाम को वापस चली गईं, क्योंकि उन के बच्चों के एग्जाम्स चल रहे थे. दोनों बेटे अनूप और मधूप तथा बहुएं झरना और नेहा भी अपनीअपनी दुनिया में बिजी नजर आईं. सुबह 8 बजे के बाद घर बिलकुल सूना हो जाता. शाम 5-6 बजे के बाद ही बेटेबहुएं वापस आतीं. रात का खाना एकदिन तो सब ने साथ में खाया शायद मेरी वजह से, पर उस के बाद 8 बजे ही खाने के लिए एकदो बार मुझ से पूछ कर दोनों बहुओं और बेटों ने यह कह कर कि सुबहसुबह स्कूल, औफिस के लिए निकलना पड़ता है, खाना खा लिया. 9 बजतेबजते दोनों बेटे अपनीअपनी बीवियों के साथ अपनेअपने कमरों में बंद हो जाते. इतवार के दिन दोनों बेटे अपनी पत्नियों के साथ घूमने निकल जाते.

अनंत के कहने पर मैं एक हफ्ते के लिए वहां रुक गई थी. इस एक ही हफ्ते में उन बच्चों की दिनचर्या से मेरे सामने यह साफ हो गया कि मौजमस्ती को ही वे अपना जीवनमंत्र मानते थे. अनंत ने औफिस से हफ्तेभर की छुट्टी ले रखी थी. एक दिन वह किसी काम से 2 घंटे के लिए घर से बाहर गया. मैं घर में अकेली रह गई, तो उतने बड़े घरआंगन का सूनापन भांयभांय कर चीखता अनंत के जीवन में अंधेरे एकाकीपन को मेरे सामने बयान करने लगा. पुराने ढंग के हमारे पुश्तैनी मकान को भैयाभाभी ने कितने पैसे और मेहनत से आलीशान बंगले का रूप दे दिया था पर हर तरह की सुखसुविधाओं वाले भरेपूरे घर में आज घर का मालिक ही अवांछित, तिरस्कृत सा हो गया था. अनंत को रात में देर से खाने की आदत थी. हम दोनों भाईबहन अकेले बैठे बातें करते रहते.

10 बजे मैं खाना निकालने किचन में जाती और वापस आ कर देखती कि अनंत सूनी आंखों से दीवारों को ताक रहा है. खुद से 11 साल छोटे अपने इकलौते भाई की ऐसी दशा देख कर मेरा मन तड़प उठता. मैं मन को समझाती कि शायद संसार का रिवाज ही यही है. हम सब में से ज्यादातर लोग जिन अपनों के लिए अपने जीवन की सारी ऊर्जा खर्च कर खुशियों के इंतजाम में लगे रहते हैं वही एक दिन इतने संवेदनहीन हो जाते हैं कि उन्हें हमारी वेदनाओं, भावनाओं का कोई एहसास तक नहीं होता.

बड़ा बेटा मोटरपार्ट्स की एक बड़ी फर्म में मैनेजर था और छोटा दुलारा बेटा सरकारी स्कूल में टीचर. दोनों बहुएं एक कंप्यूटर सैंटर में पढ़ाने जाती थीं. पर चारों में से कोई भी परिवार के लिए एक पैसा नहीं निकालता था. पूरे घर का खर्च अनंत ही चलाता था. भाईभाभियों के व्यवहार की वजह से ही शायद घर की दोनों बेटियां भी ज्यादा आनाजाना नहीं रखती थीं. सब अपनीअपनी दुनिया में मस्त थे. अगर कोई अलगथलग और अकेला पड़ गया था तो वह था अनंत. मैं ने मन में यह निर्णय कर लिया कि अनंत को इस तरह अकेले उपेक्षित जीवन नहीं जीने दूंगी जाते वक्त मैं ने उस से कहा कि शनिवाररविवार तो छुट्टी होती है, हमारे पास आ जाया करो. हम भी अकेले ही रहते हैं. तुम्हारा भी दिल लगा रहेगा और हमारा भी. वह पहले एकाध बार आया पर धीरेधीरे अब हर शनिवार को हमारे घर आ जाता, रविवार रुक कर सोम की सुबह यहीं से सीधा अपने औफिस चला जाता.

इधर कई सालों से बच्चों के विदेश में सैटल हो जाने के बाद हम दोनों भी अकेले हो गए थे. कभीकभार छुट्टी वाले दिन मंजरी कुछ देर के लिए चली आती तो थोड़े समय को घर मैं रौनक रहती. शनिवाररविवार मंजरी की छुट्टी होती थी. हम सब बातें करते, कभीकभार बाहर घूमने भी चले जाते. मंजरी मेरी बड़ी बेटी की सहेली है और यहीं एक कालेज में पढ़ाती है. हमारे लिए वह एक पारिवारिक सदस्य की तरह ही है. देखने में खूबसूरत होने के साथसाथ उस के विचार भी सुलझे हुए हैं. वह तलाकशुदा है और अपने छोटे से जीवन में उस ने बहुत संघर्ष झेले हैं. आज से 15 साल पहले उस की उम्र तब 35 साल की रही होगी जब वह इस कालोनी में रहने आई थी. तब उस का तलाक का केस चल रहा था. उस की अरैंज मैरिज हुई थी. उस का पति बेहद घटिया इंसान था. वह मंजरी को परेशान करने के लिए 2-3 बार यहां भी आ चुका था.

मैं हर सुबह अपनी बालकनी से उसे काम पर जाते हुए और शाम को फिर घर वापस आते हुए देखती रहती थी. तब मेरे घर से 2 बिल्ंिडग छोड़ कर तीसरी में वह रहती थी. पर अपनी मेहनत के बल पर अब इसी कालोनी में उस ने अपना खुद का छोटा सा फ्लैट खरीद लिया है. पहले पैदल या औटो से कालेज आतीजाती थी, अब अपनी गाड़ी से आतीजाती है. 13 साल के मासूम से बच्चे को साथ ले कर आई थी. बच्चा आज इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर बेंगलुरु में जौब कर रहा है

अपने देश की लचर कानून व्यवस्था की पीड़ा झेलते हुए 20 साल बाद आखिरकार उसे उस पति से तलाक मिल गया पर पति को छोड़ने की वजह से उस के पिता और परिजन आज भी उस से नाराज हैं. शुरुआती दिनों में ही एक बार जब मंजरी कालेज के लिए घर से निकली तो उस का पति रास्ता रोक कर उस से झगड़ने लगा था. उस ने मंजरी की कलाई को कस कर पकड़ रखा था. लोग तमाशा देख रहे थे. अनंत ने उधर से गुजरते हुए जब यह सब देखा तो उस ने मंजरी के पति का विरोध करते हुए पुलिस को फोन पर घटना की जानकारी दी. तब गुस्से से अनंत की ओर देख कर उस के पति ने घटिया लहजे में कहा था, ‘तू क्यों बीच में टपक रहा है, तू क्या इस का यार लगता है?’ लज्जा, पीड़ा और अपमान से मंजरी का चेहरा लाल हो गया था.

अनंत और मंजरी की यही पहली मुलाकात थी. उस के काफी समय बाद दोनों फेसबुक फ्रैंड बने, पर मुलाकातें नहीं होती थीं. अब जब मिलनाजुलना होने लगा तो मैं ने महसूस किया कि दोनों एकदूसरे का साथ काफी पसंद करते हैं. एक दिन माहौल देख कर मैं ने अनंत से कहा कि दुनिया का यही दस्तूर है जब तक अपना स्वार्थ सिद्ध होता रहे, आदमी आदमी को पहचानता है. स्वार्थ खत्म तो रिश्ते खत्म. मौत से पहले अपनों की अवहेलना ही मार डालती है. तुम्हारे सामने अभी लंबा जीवन पड़ा हुआ है, ऐसे कैसे गुजारोगे. उधर, मंजरी भी अकेली है और मुझे लगता है कि वह तुम्हें पसंद भी करती है. तुम दोनों शादी कर लो, दोनों के जीवन में चटख रंग खिल उठेंगे. एकदूसरे के सहारे बन कर जीवन का सफर हंसतेमुसकराते पूरा हो जाएगा…कहो तो मैं मंजरी से बात करूं. थोड़ा ठहर कर अनंत बोला. ‘बच्चों से एक बार बात कर लेना उचित रहेगा.’ मैं अनंत को जाते हुए देखती रही.

एक दिन सुबह के 6 भी नहीं बजे थे कि फोन की घंटी लगातार बजने लगी. उस तरफ अनंत की बड़ी बेटी आकृति थी. न दुआ न सलाम, बडे़ ही गुस्से में वह बोली, ‘‘बुड्ढा शादी कर रहा है, तुम्हें पता है न?’’ मैं ने पूछा, ‘‘कौन बुड्ढा?’’

‘‘तुम्हारा भाई और कौन, ऐसे बाप को और क्या कहा जाए जिस ने यह भी नहीं सोचा कि उन के इस कारनामे के बाद मेरे बच्चों, खासकर, मेरी बेटियों से कौन शादी करेगा.’’ वह आक्रोशित स्वर में बोल रही थी. मेरा मन गुस्से से सुलग उठा, बोली, ‘‘जो इंसान जीवनभर तुम सब के सुख की खातिर मेहनत की चक्की में पिसपिस कर मिट्टी होता रहा, तुम सब का जीवन संवारने के लिए क्याक्या जतन करता रहा, आज जब तुम सब सैटल हो गए तो वह तुम्हारे लिए पिता न हो कर बुड्ढा हो गया? अपने एकाकीपन में घुटघुट कर वह आज हर पल मर रहा है पर तुम सब को तो इस का एहसास तक नहीं? तुम सब के लिए सोचता रहे तो बहुत बढि़या, एक बार अपने लिए सोच लिया तो गुनाहगार हो गया? बुड्ढे होने से जीवन खत्म हो जाता है? आदमीआदमी न हो कर कुछ और हो जाता है? क्या तुम सब कभी बुड्ढे नहीं होगे?’’

इतना सुनते ही व्यंगभरी चुभती आवाज में वह बोली, ‘‘मुझे तो लगा था कि तुम अपने भाई को समझाओगी, पर बुरा न मानना बूआ, अब तो मुझे लग रहा कि यह सब तुम्हारा ही कियाधरा है.’’ और उधर से फोन पटकने की आवाज आई. अनंत आज सुबह ही औफिस के किसी काम से 2-3 दिनों के लिए मुंबई निकल गया था.

मंजरी अपने घर में लेटी हुई टीवी देख रही थी. शाम को लगभग 6 बज रहे थे. बाहर हलका झुटपुटा सा हो रहा था. दरवाजे पर खटखट की आवाज सुन कर अलसाई हुई मंजरी ने दरवाजा खोला, सामने एक नवयुवक हाथ में रिवौल्वर लिए खड़ा नजर आया. उस ने चेहरे पर मास्क पहन रखा था, केवल उस की लाललाल आंखें ही नजर आ रही थीं. मंजरी घबरा कर दो कदम पीछे हो गई.

चेतावनीभरी आवाज मंजरी के कानों में पड़ी, ‘‘सुना है तुम डाक्टर अनंत कुमार सिंह से शादी करने की सोच रही हो? अगर ऐसा है तो इस सोच को यहीं विराम दे दो, तुम्हारी सेहत के लिए यही अच्छा होगा.’’ रिवौल्वर वाले हाथ को एक हलकी सी जुंबिश दे कर वह वापस मुड़ा और पलट कर बोला, ‘‘याद रखना.’’

मैं ने अपनी बालकनी से मधूप और 3 अन्य युवकों को मंजरी के घर की तरफ से निकल कर कालोनी से बाहर की तरफ जाते हुए देखा. यह इधर क्या करने आया था, सोच ही रही थी कि इतने में मंजरी का फोन आया, ‘‘अनंत के बच्चे अपने स्वार्थ के लिए इस हद तक गिर जाएंगे, मैं ने कभी सोचा भी न था.’’ इस सब के बाद मुझे लगा था मंजरी अब इस शादी से पीछे हट जाएगी. लेकिन हुआ इस का उलटा. अनंत को फोन कर के मैं ने सबकुछ बता दिया था. मंजरी के साथ अपने बेटे की करतूत जान कर वह बेहद लज्जित था. तीसरे दिन आया तो मंजरी के सामने आंखें नहीं उठा पा रहा था, हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘तुम्हारी जिंदगी तो वैसे ही गमों से खाली न थी, मैं तुम्हारा दर्द और नहीं बढ़ा सकता. समय का मारा हूं जो ऐसे बच्चों का बाप हूं और क्या कहूं. तुम्हारे जीवन को बदरंग करने का मुझे कोई हक नहीं.’’

अनंत की आंखों में नमी थी, उठ कर जाने लगा. मंजरी खड़ी हो गई और उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘यह तुम ने अपनी बात कही. अब मेरी बात सुनो. मैं न तो तुम्हें रोकूंगी न टोकूंगी, न सामाजिक नियमों की जंजीरों में जकड़ूंगी. न तुम मुझे रोकना न टोकना, न किसी नकशे में जकड़ना. हम उड़ेंगे एकदूसरे के साथ और अपनेअपने विवेक के साथ. शुरू करेंगे एक सफर जो पूरा होगा प्रेम के स्वच्छंद आसमान में. लेकिन उस से पहले अपने पंखों को मजबूत करना होगा. जीवन में वीरानी आ जाए तो अपने लिए एक नए जीवन का चयन करना कहीं से भी गलत नहीं. इस से पहले कि हमारा यह जीवन अवेहलना व उदासियों का गुच्छा सा बन कर रह जाए, कुछ चटकीले रंगों को मुट्ठियों में भर लेने का हक और हौसला हम सब के पास होना चाहिए.’’ ४सारस का एक जोड़ा आसमान से गुजर रहा था, अपनी बालकनी में बैठी मैं सोच रही थी, क्यों हम ने अपने जीवन के चारों ओर नियमों, रूढि़यों, धर्मों, और आडंबरों के झाड़झंखाड़ों की चारदीवारियां उगा रखी हैं. ये सब इंसानों के लिए होने चाहिए या इंसान इन सब के लिए.

Hindi Story : नहले पे दहला – टोनी को देख क्यों चौंक गई साक्षी

Hindi Story : साक्षी ने जैसे ही दरवाजा खोला, वह चौंक कर दो कदम पीछे हट गई. सामने खड़ा टोनी बगैर कुछ कहे मुसकराता हुआ अंदर दाखिल हो गया.

‘‘तुम यहां पर…’’ साक्षी चौंकते हुए बोली.

‘‘क्या भूल गई अपने आशिक को?’’ टोनी ने बेशर्मी से कहा.

‘‘भूल जाओ उन बातों को. मेरी जिंदगी में जहर मत घोलो,’’ साक्षी रोंआसी हो कर बोली.

‘‘चिंता मत करो, मैं तुम्हें ज्यादा तंग नहीं करूंगा. लो यह देखो,’’ टोनी ने एक लिफाफा साक्षी को देते हुए कहा.

साक्षी ने लिफाफे से तसवीरें निकाल कर देखीं, तो उसे लगा मानो आसमान टूट पड़ा हो. उन तसवीरों में साक्षी और टोनी के सैक्सी पोज थे. यह अलग बात थी कि साक्षी ने टोनी के साथ कभी भी ऐसावैसा कुछ नहीं किया था.

‘‘यह सब क्या है?’’ साक्षी घबरा गई और डर कर बोली.

‘‘बस छोटा सा नजराना.’’

‘‘क्या चाहते हो तुम?’’ साक्षी ने कांपते हुए पूछा.

‘‘ज्यादा नहीं, बस एक लाख रुपए दे दो, फिर तुम्हारी छुट्टी,’’ टोनी बेशर्मी से बोला.

‘‘लेकिन ये फोटो तो झूठे हैं. ऐसा तो मैं ने कभी नहीं किया था.’’

‘‘जानेमन, ये फोटो देख कर कोई भी इन्हें झूठा नहीं बता सकता.’’

‘‘तुम इतने नीच होगे, यह मैं ने कभी नहीं सोचा था.’’

‘‘आजकल सिर्फ पैसे का जमाना है, जिस के लिए लोग अपना ईमान भी बेच देते हैं,’’ टोनी ने बेशर्मी से कहा.

साक्षी बुरी तरह घबरा गई. उसे यह भी डर था कि कहीं कोई आ न जाए. लेकिन वे दोनों यह नहीं जानते थे कि दो आंखें बराबर उन पर टिकी थीं.

साक्षी ने टोनी को भलाबुरा कह कर एक महीने का समय ले लिया. टोनी दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

एकाएक साक्षी की रुलाई फूट पड़ी. वह लिफाफा अब भी उस के हाथ में था.

सहसा उन दो आंखों का मालिक दीपक कमरे में दाखिल हुआ और चुपचाप साक्षी के सामने जा खड़ा हुआ. उस ने हाथ बढ़ा कर वह लिफाफा ले लिया.

‘‘देवरजी, तुम…’’ साक्षी एकाएक उछल पड़ी.

‘‘जी…’’

‘‘यह लिफाफा मुझे दे दो प्लीज,’’ साक्षी कांप कर बोली.

‘‘चिंता मत करो भाभी, मैं सबकुछ जान चुका हूं.’’

‘‘लेकिन, ये तसवीरें झूठी हैं.’’

दीपक ने वे फोटो बिना देखे ही टुकड़ेटुकड़े कर दिए.

‘‘मैं सच कह रही हूं, यह सब झूठ है,’’ साक्षी बोली.

‘‘कौन था वह कमीना, जिस ने हमारी भाभी पर कीचड़ उछालने की कोशिश की है?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘लेकिन…’’

‘‘चिंता मत कीजिए भाभी. अगर उस कुत्ते से लड़ना होता तो उसे यहीं पकड़ लेता. लेकिन मैं नहीं चाहता कि आप की जरा भी बदनामी हो.’’

दीपक का सहारा पा कर साक्षी ने उसे हिचकते हुए बताया, ‘‘उस का नाम टोनी है. वह मेरी क्लास में पढ़ता था. उस से थोड़ीबहुत बोलचाल थी, लेकिन प्यार कतई नहीं था.’’

‘‘उस का पता भी बता दीजिए.’’

‘‘लेकिन तुम करना क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं अपनी भाभी को बदनामी से बचाना चाहता हूं.’’

‘‘तुम उस का क्या करोगे?’’

‘‘उस का मुरब्बा तो बना नहीं सकता, लेकिन उस नीच का अचार जरूर बना डालूंगा.’’

‘‘तुम उस बदमाश के चक्कर में मत पड़ो. मुझे मेरे हाल पर ही छोड़ दो.’’

लेकिन दीपक के दबाव डालने पर साक्षी को टोनी का पता बताना ही पड़ा.

पता जानने के बाद दीपक तेज कदमों से बाहर निकल गया.

दीपक को टोनी का घर ढूंढ़ने में ज्यादा समय नहीं लगा. घर में ही टोनी की छोटी सी फोटोग्राफी की दुकान थी. दीपक ने पता किया कि टोनी की 3 बहनें हैं और मां विधवा हैं.

दीपक ने फोटो खिंचवाने के बहाने टोनी से दोस्ती कर ली और दिल खोल कर खर्च करने लगा. उस ने टोनी की एक बहन ज्योति को अपने प्यार के जाल में फंसा लिया.

एक दिन मौका पा कर दीपक और ज्योति पार्क में मिले और शाम तक मस्ती करते रहे.

उस दिन टोनी अपनी दुकान में अकेला बैठा था. तभी दीपक की मोटरसाइकिल वहां आ कर रुकी.

दीपक को देखते ही टोनी का चेहरा खिल उठा. उस ने खुश होते हुए कहा. ‘‘आओ दीपक, मैं तुम्हीं को याद कर रहा था.’’

‘‘तुम ने याद किया और हम हाजिर हैं. हुक्म करो,’’ दीपक ने स्टाइल से कहा.

‘‘बैठो यार, क्या कहूं शर्म आती है.’’

‘‘बेहिचक बोलो, क्या बात है?’’

‘‘क्या तुम मेरी कुछ मदद कर सकते हो?’’

‘‘बोलो तो सही, बात क्या है?’’

‘‘मुझे 5 हजार रुपए की जरूरत है. कुछ खास काम है,’’ टोनी हिचकते हुए बोला.

‘‘बस इतनी सी बात, अभी ले कर आता हूं,’’ दीपक बोला और एक घंटे में ही उस ने 5 हजार की गड्डी ला कर टोनी को थमा दिया. टोनी दीपक के एहसान तले दब गया.

कुछ दिनों बाद ज्योति की हालत खराब होने लगी. उसे उलटियां होने लगीं. जांच करने के बाद डाक्टर ने बताया कि वह मां बनने वाली है.

यह सुन कर सब हैरान रह गए. ज्योति की मां ने रोना शुरू कर दिया. लेकिन टोनी गुस्से में ज्योति को मारने दौड़ पड़ा.

ज्योति लपक कर बड़ी बहन के पीछे छिप गई.

‘‘बता कौन है वह कमीना, जिस के साथ तू ने मुंह काला किया?’’ टोनी ने सख्त लहजे में पूछा.

ज्योति सुबक रही थी. उस की मां और बहनें रोए जा रही थीं और टोनी गुस्से में न जाने क्याक्या बके जा रहा था.

काफी दबाव डालने पर ज्योति ने दीपक का नाम बता दिया. यह सुन कर सब हैरान रह गए. टोनी भी एकाएक ढीला पड़ गया.

दीपक को घर बुला कर बात की गई, लेकिन वह साफ मुकर गया और उस ने शादी करने से इनकार कर दिया.

एक पल के लिए टोनी को गुस्सा आ गया और वह गुर्रा कर बोला, ‘‘अगर मेरी बहन को बरबाद किया तो मैं तुम्हारा खून पी जाऊंगा.’’

‘‘तुम्हारा क्या खयाल है कि मैं ने चूडि़यां पहन रखी हैं?’’ दीपक सख्त लहजे में बोला.

‘‘तुम ने हम से किस जन्म का बदला लिया है,’’ टोनी की मां रोते हुए बोलीं.

‘‘आप जरा चुप रहिए मांजी, पहले इस खलीफा से निबट लूं,’’ दीपक ने कहा और टोनी को घूरने लगा.

टोनी ने पैतरा बदला और हाथ

जोड़ कर बोला, ‘‘मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं दीपक, मेरी बहन को बरबाद मत करो.’’

‘‘तुम किस गलतफहमी के शिकार हो रहे हो,’’ दीपक बोला.

‘‘देखो दीपक, मेरी बहन से शादी कर लो. तुम जो कहोगे, मैं करने के लिए तैयार हूं,’’ टोनी हार कर बोला.

‘‘तुम क्या कर सकते हो भला?’’

‘‘तुम जो कहोगे मैं वही करूंगा,’’ टोनी गिड़गिड़ा कर बोला.

‘‘अपनी इज्जत पर आंच आई तो कितना तड़प रहे हो. क्या दूसरों की इज्जत, इज्जत नहीं होती?’’ दीपक शांत हो कर बोला.

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ टोनी बुरी तरह चौंका.

‘‘अपने गरीबान में झांक कर देखो टोनी, सब मालूम हो जाएगा,’’ एकाएक दीपक का लहजा बदल गया.

टोनी सबकुछ समझ गया. उस ने मां और बहनों को बाहर भेजना चाहा, लेकिन दीपक उन्हें रोक कर बोला, ‘‘अब डर क्यों रहे हो, घर के सभी लोगों को बताओ कि तुम कितनी मासूमों का बसाबसाया घर तबाह करने पर तुले हो.’’

‘‘तुम कौन हो?’’ टोनी हैरत से बोला.

‘‘तुम मेरी बात का फटाफट जवाब दो, वरना मैं चला,’’ दीपक जाने के लिए लपका.

‘‘लेकिन मैं ने किसी की जिंदगी बरबाद तो नहीं की,’’ टोनी अटकते हुए बोला.

‘‘मगर करने पर तो तुले हो.’’

‘‘यह सच है, लेकिन तुम ने आज मेरी आंखें खोल दीं दोस्त. आज मुझे एहसास हुआ कि पैसे से कहीं ज्यादा इज्जत की अहमियत है,’’ टोनी बुझी आवाज में बोला.

दीपक के होंठों पर मुसकराहट नाच उठी. ज्योति भी मुसकराने लगी.

‘‘अब क्या इरादा है प्यारे?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘वह सब झूठ था. मैं कसम खाता हूं कि सारे फोटो और निगेटिव जला दूंगा,’’ टोनी ने कहा.

‘‘यह अच्छा काम अभी और सब के सामने करो,’’ दीपक ने कहा.

टोनी ने पैट्रोल डाल कर सारे गंदे फोटो और निगेटिव जला डाले और दीपक से बोला, ‘‘माफ करना दोस्त, मैं ने लालच में पड़ कर लखपति बनने का यह तरीका अपना लिया था.’’

‘‘माफी मुझ से नहीं पहले अपनी मां से मांगो, फिर मेरी मां से मांगना.’’

‘‘तुम्हारी मां…’’

‘‘हां, साक्षी यानी मेरी भाभी मां. वह माफ कर देंगी तो मैं भी तुम्हें माफ कर दूंगा,’’ दीपक बोला.

‘‘मंजूर है, लेकिन मेरी बहन?’’

‘‘इस का फैसला भी भाभी ही करेंगी.’’

साक्षी के पैर पकड़ कर माफी मांगते हुए टोनी बोला, ‘‘आज से आप मेरी बड़ी दीदी हैं. चला तो था चाल चलने, लेकिन आप के इस होशियार देवर ने ऐसी चाल चली कि नहले पे दहला मार कर मुझे चित कर दिया. क्या इस नालायक को माफ कर सकेंगी?’’

साक्षी ने गर्व से देवर की ओर देखा और टोनी से कहा, ‘‘फिर कभी ऐसी जलील हरकत मत करना.’’

माफी मिलने के बाद टोनी ने साक्षी को अपनी बहन व दीपक का मामला बताया तो साक्षी ने दीपक को घूरते हुए पूछा, ‘‘दीपक, यह सब क्या?है?’’

‘‘यह भी एक नाटक है भाभी. आप ज्योति से ही पूछिए,’’ दीपक हंस कर बोला.

‘‘ज्योति, आखिर किस्सा क्या है?’’ टोनी ने पूछा.

‘‘भैया, मैं भी सबकुछ जान गई थी. आप को सही रास्ते पर लाने के लिए ही मैं ने व दीपक ने नाटक किया था और उस में डाक्टर को भी शामिल कर लिया था,’’ ज्योति ने हंसते हुए बताया.

‘‘चल, तू ने छोटी हो कर भी मुझे राह दिखा कर अच्छा किया. मैं तेरी शादी दीपक जैसे भले लड़के से करने के लिए तैयार हूं.’’

दीपक ने इजाजत मांगने के अंदाज में भाभी की ओर देखा. साक्षी ने ज्योति को खींच कर अपने गले से लगा लिया. ज्योति की मां भी इस रिश्ते से बहुत खुश थीं.

Best Hindi Story : काला दरिंदा – काला ने श्वेता के साथ क्या किया?

Best Hindi Story : 19 साल की उम्र में वह माहिर ड्राइवर बन गया था. तभी से वह टैक्सी चला रहा था. अब उस की उम्र 35 साल के करीब थी. थोड़ी देर पहले एक ऐक्सप्रैस ट्रेन प्लेटफार्म पर आ कर रुकी थी. कुछ सवारियां गेट से बाहर निकलीं, तो काला मुस्तैदी से खड़ा हो गया. कुछ सवारियों से उस ने टैक्सी के लिए पूछा भी था लेकिन सवारियों ने मना कर दिया.

कुछ सवारियों को टैक्सी की जरूरत नहीं थी और जिन्हें जरूरत थी, वे अपने परिवार के साथ थे. उन्होंने शक्ल देखते ही काला को मना कर दिया था, क्योंकि शराब के नशे में डूबा काला शक्ल से ही बदमाश लगता था.

काला ने कलाई में बंधी घड़ी की तरफ देखा. रात के 10 बज रहे थे. समता ऐक्सप्रैस ट्रेन के आने का समय हो गया था. शायद उसे कोई सवारी मिल जाए, यह सोच कर काला ने बीड़ी सुलगा ली.

काला का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था. 3 भाइयों में वह अकेला जिंदा बचा था. उस ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा था. उस की मां तो उसे स्कूल भेजना चाहती थी, पर उस का बाप उसे स्कूल भेजने के सख्त खिलाफ था.

काला की उम्र जब 10 साल की थी, तभी उस की मां मर गई थी और उस के बाप ने उसे एक लुहार के यहां काम पर लगा दिया था. सारा दिन भट्ठी के आगे बैठ कर वह लोहे का पंखा चलाता था. महीने में उसे मेहनत के जो पैसे मिलते थे, उन पैसों को उस का बाप शराब में उड़ा देता था.

7 साल तक काला ने लुहार की दुकान पर काम किया था. तभी उस के शराबी बाप की मौत हो गई थी. बाप के मरने का उसे जरा भी दुख नहीं हुआ था, क्योंकि अब वह पूरी तरह आजाद हो गया था.

कुछ गलत लड़कों के साथ काला का उठनाबैठना हो गया था. 20 साल का होतेहोते वह पक्का शराबीजुआरी बन चुका था. एक करीबी रिश्तेदार को उस पर दया आ गई थी. उसी ने भागदौड़ कर के उस की शादी करा दी थी. उस की औरत ज्यादा खूबसूरत तो नहीं थी, पर उस से कई गुना अच्छी थी.

काला ने हमेशा से ही अपनी बीवी को इस्तेमाल की चीज समझा था. अब वह 4 बच्चों का बाप बन चुका था. फिर भी बच्चों के लिए एक बाप की क्या जिम्मेदारियां होती हैं, इस का उसे पता नहीं था.

काला जितना शौकीन था, उस से कहीं ज्यादा मेहनती भी था. वह सुबह 7 बजे टैक्सी ले कर घर से निकल जाता था और रात 12 बजे के बाद ही लौटता था.

वह 300 से 500 रुपए तक रोजाना कमा लेता था. इतना कमाने के बाद भी उस के घर की माली हालत ठीक नहीं थी, क्योंकि उसे शराब पीने के अलावा कोठे पर जाने का भी शौक था.

रात 11 बजे समता ऐक्सप्रैस ट्रेन प्लेटफार्म पर आई. ट्रेन पूरे एक घंटा लेट थी. सवारियां जल्दीजल्दी स्टेशन के गेट से बाहर निकल रही थीं. काला सवारियों पर नजरें दौड़ाने लगा. अचानक उस की नजर एक लड़की पर पड़ी तो उस की आंखों में एक अजीब सी चमक उभर आई.

काला तेजी से उस लड़की की तरफ लपका और उस से पूछा, ‘‘मैडम क्या आप को टैक्सी चाहिए?’’

‘‘हां चाहिए,’’ लड़की ने उस की तरफ बिना देखे ही जवाब दिया.

‘‘कहां जाना है आप को?’’

‘‘विजय नगर,’’ लड़की ने बताया.

‘‘चलिए,’’ कह कर काला ने लड़की के हाथ से बैग ले लिया.

कुछ ही दूर टैक्सी स्टैंड पर काला की टैक्सी खड़ी थी.

काला ने डिक्की खोल कर बैग उस में रखा और फिर अपनी सीट पर जा कर बैठ गया. तब तक लड़की पिछली सीट पर बैठ चुकी थी.

उस लड़की की उम्र 22-23 साल के आसपास थी. वह बेहद खूबसूरत थी. पहनावे से वह अमीर और हाई सोसायटी की लग रही थी. वह शायद किसी सोच में गुम थी, तभी तो उस ने काला के ऊपर ध्यान नहीं दिया था, वरना काला का चेहरा और शराब के नशे में डूबी उस की आंखें देख कर वह उस की टैक्सी में कभी न बैठती.

लड़की पिछली सीट पर अधलेटी सी आंखें बंद किए हुए थी. काला सामने लगे शीशे में से उसे बारबार देख रहा था.

रेलवे स्टेशन से विजय नगर का रास्ता महज आधे घंटे का था. काला धीमी रफ्तार से टैक्सी चला रहा था. उस लड़की ने काला के अंदर उथलपुथल मचा रखी थी.

काला का ध्यान टैक्सी चलाने में कम, उस लड़की पर ज्यादा था. वह जितना उस लड़की को देख रहा था, उस पर उतना ही एक नशा सा छा रहा था.

काला एक नंबर का आवारा था. जवान लड़कियों को देख कर उस के खून में गरमी पैदा हो जाती थी.

एक बार स्कूटर पर जा रही एक लड़की को घूरते हुए वह अपने होश खो बैठा था. नतीजतन, उस की टैक्सी एक बस के पिछले हिस्से से जा टकराई थी. इत्तिफाक से वह बच गया था, मगर टैक्सी को काफी नुकसान पहुंचा था. लेकिन इस के बाद भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया था.

काला का दिमाग और ध्यान कार में बैठी लड़की पर ही लगा था. अचानक

5 महीने पहले की एक घटना याद कर उस के अंदर धीरेधीरे वासना का शैतान जागने लगा.

हुआ यों था कि उस रात वह कुछ सवारियों को रेलवे स्टेशन छोड़ने आया था. रात के तकरीबन साढ़े 11 बज रहे थे. शायद कोई सवारी मिल जाए, इस उम्मीद के साथ वह सवारी मिलने का इंतजार करने लगा था.

कुछ ही देर में उसे एक सवारी मिल गई थी. वह एक लड़की थी और उसे अशोक नगर जाना था. उसे टैक्सी की जरूरत थी. उस ने कई टैक्सी वालों से बात की थी. रेलवे स्टेशन से अशोक नगर काफी दूर था, तकरीबन एक घंटे का रास्ता था.

ज्यादातर टैक्सी वालों ने रात को इतनी दूर जाने से मना कर दिया था. कुछ टैक्सी वाले वहां जाने के लिए तैयार हुए भी, मगर उन्होंने किराया बहुत ज्यादा मांगा.

आखिर में लड़की का सौदा काला से पट गया था. वह लड़की कम उम्र की व खूबसूरत थी. सफर में बोरियत से बचने के लिए लड़की टाइमपास करने की नीयत से काला को ‘अंकल’ पुकार कर बातें करने लगी थी.

काला उस के सवालों के जवाब देने के साथसाथ खुद भी उस के बारे में पूछताछ करने लगा था.

उस लड़की का नाम श्वेता था. वह एक अमीर घर की लड़की थी. श्वेता अपने घर से दूर एक शहर में पढ़ती थी. वहां वह होस्टल में रहती थी. कुछ दिनों की छुट्टियों में वह अपने घर चली आई थी. श्वेता ने अपने आने की खबर घर वालों को नहीं दी थी. अगर वह फोन कर देती, तो उसे स्टेशन पर लेने घर से कार आ जाती.

श्वेता ने जानबूझ नहीं बताया था, क्योंकि अगले दिन उस का जन्मदिन था और वह अचानक अपने घर पहुंच कर घर वालों को चौंका देना चाहती थी.

श्वेता अब तक अपने घर पहुंच भी चुकी होती, अगर ट्रेन 2 घंटे लेट नहीं हुई होती. रात का समय था. जाड़े का मौसम होने की वजह से सड़क पर दूरदूर तक सन्नाटा था.

श्वेता से बात करते हुए काला टैक्सी चला जरूर रहा था, मगर उस का मन कहीं और भटक रहा था. उस के साथ गोरी रंग की जवान और हसीन लड़की थी, जिस के जिस्म से भीनीभीनी मदहोश कर देने वाली खुशबू आ रही थी.

काला पर एक अजीब सा नशा हावी होता जा रहा था. काला ने एक बेहद घटिया और भयानक फैसला कर लिया.

उस रात काला ड्राइवर से दरिंदा बन गया था. उस ने टैक्सी एक सुनसान जगह पर रोक दी थी. इस से पहले कि श्वेता कुछ समझ पाती, काला कार के अंदर ही उस पर टूट पड़ा था. श्वेता तो जैसे एकदम से हैरान ही रह गई थी. उसे काला से ऐसी उम्मीद हरगिज नहीं थी.

श्वेता रोते हुए काला से छोड़ देने के लिए गिड़गिड़ाने लगी थी, पर उस के रोनेगिड़गिड़ाने का असर काला पर नहीं हुआ था. फिर श्वेता रोनागिड़गिड़ाना छोड़ काला का विरोध करने लगी थी.

अचानक काला ने सीट के नीचे रखा चाकू निकाल लिया और बोला था, ‘सुन लड़की, अगर ज्यादा फड़फड़ाएगी तो इसी चाकू से तेरी गरदन काट डालूंगा. इस सुनसान जगह पर कोई तुझे बचाने नहीं आएगा. जान प्यारी है तो जैसा मैं कहता हूं वैसा ही कर.’

श्वेता पर इस धमकी का असर फौरन हुआ था. वह मासूम लड़की मौत के डर से बुत सी बन गई थी.

अपनी इच्छा पूरी करने के बाद काला बेहोशी की हालत में श्वेता और उस के सामान को सड़क के किनारे छोड़ कर रफूचक्कर हो गया था.

आज बहुत दिनों बाद काला को सुनहरा मौका मिला था, जिसे वह हाथ से नहीं जाने देना चाहता था. उस लड़की को अपना शिकार बनाने से पहले काला उस के और उस के घरपरिवार के बारे में जानना चाहता था.

काला ने अपनी तरफ से बातचीत की शुरुआत की, पर लड़की ने उस के किसी भी सवाल का जवाब ‘हां’ या ‘न’ से ज्यादा शब्दों में नहीं दिया.

पहले वाली लड़की श्वेता हंसमुख, चंचल और मिलनसार थी, जबकि यह उस के बिलकुल उलट, गंभीर, मगरूर और नकचढ़ी थी.

काफी सोचनेसमझने के बाद काला ने फैसला किया कि लड़की का संबंध चाहे किसी भी घर से हो, वह उस के साथ मनमानी जरूर करेगा, बाद में चाहे जो कुछ भी होता रहे.

सड़क पर सन्नाटा था. काला मन ही मन लड़की की इज्जत से खेलने का तानाबाना बुनने लगा था. विजय नगर से एक किलोमीटर पहले एक दूसरे शहर को सड़क जाती थी. वह सड़क ज्यादातर सुनसान रहती थी. काला ने टैक्सी उसी सड़क पर मोड़ दी थी.

कार में बैठी लड़की को अपने रास्ते का पता था, इसलिए उस ने फौरन काला से गलत रास्ता होने की बात की, पर काला ने उस की बात अनसुनी कर दी.

खतरा महसूस कर के लड़की विरोध करने लगी, तो काला ने एक जगह टैक्सी रोक दी और सीट के नीचे से चाकू निकाल कर दहाड़ा, ‘‘सुन लड़की, अगर जरा सी भी आनाकानी की तो पेट फाड़ दूंगा.’’

काला की भयानक आंखों में वासना के लाललाल डोरे तैर रहे थे. लड़की को धमकी दे कर काला उस पर टूट पड़ा.

अगले दिन जब काला को होश आया तो अपनेआप को अस्पताल में देख कर वह चौंक पड़ा. दर्द से उस का पूरा बदन दुख रहा था. कल रात के सीन उस के जेहन में घूमे तो उस का पूरा जिस्म कांप उठा. वह 2 बार दरिंदा बना था, एक बार उस दिन जिस दिन उस ने मासूम श्वेता की इज्जत लूटी थी और दूसरी बार कल रात.

कल रात वह दरिंदा बना जरूर था, लेकिन कामयाब नहीं हो सका था, क्योंकि कल रात वाली लड़की पहले वाली लड़की की तरह कमजोर नहीं थी. वह लड़की मुक्केबाजी और कराटे में माहिर थी. उस लड़की ने काला को बहुत पीटा था.

लड़की ने एक जोरदार लात काला की दोनों टांगों के बीच मारी थी. इस

के बाद उसे कुछ होश नहीं था. वह अस्पताल कैसे पहुंचा? कब पहुंचा और किस ने पहुंचाया? इस का उसे कुछ पता नहीं था.

काला ने डाक्टरों से जब यह खबर सुनी तो मानो उस की जान ही निकल गई. डाक्टरों ने उसे बताया कि उन्होंने उस की जान तो बचा ली, मगर अब वह कभी दरिंदा नहीं बन सकता था, क्योंकि टांगों के बीच चोट लग जाने से वह हमेशा के लिए नामर्द बन चुका था.

Romantic Story : थोड़ी सी बेवफाई – प्रिया के घर सरोज ने ऐसा क्या देख लिया

Romantic Story : कपड़े सुखातेसुखाते सरोज ने एक नजर सामने वाले घर की छत पर भी डाली. उस घर में भी अकसर उसी वक्त कपड़े सुखाए जाते थे. हालांकि उस घर में रहने वाली महिला से सरोज की अधिक जानपहचान नहीं थी, फिर भी कपड़े सुखातेसुखाते रोजाना होने वाले वार्त्तालाप से ही आपसी दुखसुख की बातें हो जाती थीं.

बातों ही बातों में सरोज को पता चला कि उस महिला का नाम प्रिया है और उस के पति का नाम प्रकाश. प्रकाशजी एक बैंक औफिसर थे तथा घर के पास ही एक बैंक में कार्यरत थे. प्रकाश एवं प्रिया की एक छोटी बेटी थी- पाखी. छोटा सा खुशहाल परिवार था. छुट्टी के दिन वे अकसर घूमने जाते थे.

प्रकाशजी बहुत ही सुंदर एवं हंसमुख स्वभाव के थे, यह सरोज को भी नजर आता था पर प्रिया स्वयं भी सदा उन की तारीफों के पुल बांधा करती थी.

‘‘देखिए न भाभीजी, आज ये फिर मेरे लिए नई साड़ी ले आए. मैं ने तो मना किया था, पर माने ही नहीं. मेरा बहुत खयाल रखते हैं ये,’’ एक दिन प्रिया ने बड़े ही गर्व से बताया.

‘‘अच्छी बात है… सच में तुम्हें इतना हैंडसम, काबिल और प्यार करने वाला पति मिला है,’’ कह सरोज ने मन ही मन सोचा, काश दुनिया में सभी विवाहित जोड़े इसी प्रकार खुश रहते तो कितना अच्छा होता. एक आदर्श पतिपत्नी हैं दोनों.

सरोज और प्रिया की बातचीत का मुद्दा अकसर उन का घरपरिवार ही हुआ करता था, जिस में भी प्रिया की 80 फीसदी बातें प्रकाशजी की प्रशंसा और प्यार से जुड़ी होती थीं.

एक दिन प्रिया ने सरोज से कहा, ‘‘भाभीजी, मेरे पापा की तबीयत बहुत खराब है. अब मुझे कुछ दिन उन के पास जाना होगा. मन तो नहीं मानता कि प्रकाश को अकेले छोड़ कर जाऊं, पर क्या करूं मजबूरी है. प्लीज, आप थोड़ा इन का ध्यान रखिएगा. खानेपीने की व्यवस्था तो बैंक में ही हो जाएगी… उस की मुझे कोई चिंता नहीं है, पर हमारा घर सारा दिन सूना रहेगा… आप आतेजाते एक नजर इधर भी डाल लिया करना.’’

‘‘ठीक है, तुम बेफिक्र हो कर जाओ,’’ सरोज ने कहा और फिर प्रिया के जाने के बाद वह एक पड़ोसिन की जिम्मेदारी निभाते हुए आतेजाते एक नजर उन के घर पर भी डाल लेती थी.

इन दिनों प्रकाशजी को बैंक में वर्कलोड ज्यादा था, इसलिए वे काम में काफी व्यस्त रहते थे. सरोज से उन की मुलाकात नहीं हो पाती थी.

प्रिया को गए 15 दिन से ऊपर हो गए थे, परंतु वह अभी तक लौटी नहीं थी. प्रकाशजी भी दिखाई नहीं देते थे. सरोज को चिंता होने लगी थी कि कहीं उस के पिताजी की तबीयत ज्यादा खराब तो नहीं हो गई… पूछे तो किस से…

रात के 11 बजे थे. सरोज अपने घर के मेन गेट पर ताला लगाने के लिए बाहर आई तो सामने वाले घर के आगे प्रकाशजी की गाड़ी रुकती दिखी. गाड़ी का दरवाजा खुला और उस में से एक महिला भी प्रकाशजी के साथ उतरी.

‘‘अरे लगता है प्रिया आ गई,’’ सरोज चहकी और आवाज देने ही वाली थी कि उस महिला की वेशभूषा और शारीरिक गठन देख कर रुक गई.

‘नहींनहीं यह प्रिया नहीं लगती. प्रिया कभी जींसटौप नहीं पहनती और न ही वह इतनी दुबलीपतली है. बालों का स्टाइल भी प्रिया से बिलकुल अलग है.

यह प्रिया नहीं कोई और है,’ सोच कर सरोज दरवाजे की ओट में छिप कर खड़ी हो गई. उस ने देखा कि प्रकाशजी ने उस महिला को घर के अंदर चलने का इशारा किया और फिर दोनों घर के अंदर चले गए.

हो सकता है यह प्रकाशजी के बैंक की सहकर्मचारी हो. किसी काम की वजह से आई हो, सरोज ने सोचा, ‘पर रात के 11 बजे ऐसा क्या काम है. कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं,’ सरोज को बड़ा अटपटा सा लग रहा था. इसी सोच में उसे सारी रात नींद नहीं आई. सिर भारी होने के कारण वह अगले दिन सुबह जल्दी उठ गई ताकि चाय बना कर पी सके.

‘बाहर से अखबार ले आती हूं. 6 बजे तक आ ही जाता है,’ सोच कर सरोज बाहर बरामदे में निकली तो प्रकाशजी को उसी महिला के साथ घर से बाहर निकल गाड़ी की ओर बढ़ते देखा.

अचानक प्रकाशजी की नजरें सरोज की नजरों से मिली और तत्क्षण ही झुक भी गईं मानो उन की कोई चोरी पकड़ी गई हो. वे चुपचाप गाड़ी में बैठ गए, साथ में वह महिला भी. शायद वे उसे छोड़ने जा रहे थे. सरोज का भ्रम सही था.

‘बाप रे, कितना बहुरुपिया है यह आदमी… दिखाने को तो अपनी पत्नी से इतना प्रेम करता है और उस के पीछे से यह गुल खिला रहा है,’ सरोज मन ही मन बुदबुदाई.

सरोज मन ही मन सोचने लगी कि पूरी रात यह औरत प्रकाशजी के साथ घर में अकेली थी… सच इस दुनिया में किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता. अरे, इस से अच्छे तो वे पति हैं, जो भले ही अपनी बीवियों से रातदिन लड़ते रहते हों, पर दिल से प्रेम करते हैं.

ये सब सोचतेसोचते सरोज अंदर आ गई. अखबार ला कर मेज पर पटक दिया. अब न तो उस की रुचि अखबार पढ़ने में रही थी और न ही चाय पीने की इच्छा रही थी. वह चादर ओढ़ कर पलंग पर लेट गई और फिर प्रिया के बारे में सोचने लगी…

कितनी मासूम है प्रिया. बेचारी जातेजाते भी अपने पति की चिंता कर रही थी कि इतने दिन अकेले कैसे रहेंगे… पर यहां तो अलग ही मंजर है. लगता है प्रकाशजी तो इसी दिन का इंतजार कर रहे थे. आने दो प्रिया को… यदि इन बाबूजी की पोल न खोली तो मेरा नाम भी सरोज नहीं. जब प्रिया इन्हें आड़े हाथों लेगी तब पता चलेगा बच्चू को. सारी मौजमस्ती भूल जाएंगे जनाब.

ऐसे पतियों को तो सबक सिखाना ही चाहिए. पत्नियों की तो जरा सी भी गलती इन्हें बरदाश्त नहीं होती. स्वयं चाहे कुछ भी करें… अरे वाह, यह भी कोई बात हुई मर्द जात की… यह तो सरासर अन्याय है पत्नियों के साथ. यह विश्वासघात है. उन्हें इस का फल मिलना ही चाहिए, सोचतेसोचते सरोज को फिर नींद आ गई.

रविवार का दिन था. सरोज ने बालों में शैंपू किया था तथा साथ ही कुछ कपड़े भी धो लिए थे. वह बाल खुले छोड़ कर छत पर गई ताकि धूप में बाल भी सूख जाएं तथा कपड़े भी.

आदतन उस की नजर फिर सामने वाली छत पर पड़ी. आज वहां भी कपड़े सूख रहे थे, ‘यानी प्रिया आ गई है. मुझे उस से मिल कर आना चाहिए. जा कर उस के पिताजी का हालचाल भी पूछ लूं तथा उस के पीछे से उस के पति ने जो कारनामा किया है उस की भी जानकारी बातों ही बातों में उसे दे दूं ताकि वह आगे से सतर्क रहे,’ यह सोच कर सरोज प्रिया के घर चल दी.

सरोज को प्रिया बाहर ही मिल गई. नया सलवारकुरता पहन रखा था तथा हाथ में हैंडबैग था. लगता था कहीं जाने की तैयारी है.

‘‘प्रिया कब आई तुम?

कैसे हैं तुम्हारे पापा?’’ सरोज ने पूछा.

‘‘आज सुबह ही. पापा की तबीयत ठीक है, इसलिए चली आई. स्कूल भी तो मिस हो रहा था पाखी का. इधर इन के फोन पर फोन आ रहे थे कि जल्दी आओ… जल्दी आओ… तुम्हारे बिना मन नहीं लग रहा. सच भाभीजी, ये तो मेरे बिना रह ही नहीं सकते. इसीलिए तो cचली आई वरना कुछ दिन और रह लेती.’’

तभी प्रकाशजी भी आ गए. पाखी उन की गोद में थी और प्रकाशजी उसे बारबार चूम रहे थे. पाखी भी पापापापा कह कर उन से लिपट रही थी.

‘‘हैलो पाखी, कैसी हो? जानती हो मैं ने तुम्हें बहुत मिस किया,’’ सरोज ने प्रकाशजी की ओर देखते हुए पाखी से कहा तो प्रकाशजी ने नजरें झुका लीं और फिर संकोचवश नजरें उठा कर सरोज की ओर देखा मानो अपना अपराध स्वीकार कर रहे हों.

‘‘अरे प्रिया, तुम्हारे प्रकाशजी तो तुम्हारे दीवाने हैं… तुम्हारे बिना ऐसे हो गए थे जैसे प्राण बिना तन. एक दिन तो मुझ से कहने लगे ‘‘भाभीजी, जब बैंक से घर आता हूं तो सूनासूना घर काटने को दौड़ता है. सच, पत्नी, बच्चों के बिना घर घर नहीं लगता.’’

प्रिया के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ गई. उस ने शरमा कर प्रकाशजी की ओर देखा.

सरोज फिर बोली, ‘‘अरे, मैं ने भी बेवक्त तुम लोगों को किन बातों में उलझा दिया… शायद तुम लोग कहीं जा रहे हो… बहुत दिन हो गए प्रकाशजी को अकेले बोर होते हुए.’’

‘‘हां मूवी देखने जा रहे हैं… लौटते समय किसी रैस्टोरैंट में पिज्जा खाएंगे. प्रिया और पाखी को बहुत पसंद है,’’ प्रकाशजी ने गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए कहा. उन की आंखों में सरोज के प्रति कृतज्ञता झलक रही थी.

प्रिया और पाखी गाड़ी में बैठ गईं तथा प्रकाशजी ने गाड़ी स्टार्ट कर दी.

आज तो सरोज प्रिया को बिना कुछ कहे घर लौट आई थी, पर अब उस ने यह निर्णय भी ले लिया था कि वह प्रिया को उस दिन के बारे में कभी कुछ नहीं बताएगी, क्योंकि उस ने महसूस किया कि यदि वह ऐसा करेगी तो यह प्रकाशजी के लिए तो अपमानजनक होगा ही, प्रिया को भी उस से आघात ही पहुंचेगा.

सरोज को लगा कि यदि प्रकाशजी की इस तनिक सी बेवफाई पर परदा ही पड़ा रहने दिया जाए तो उचित होगा. इस तरह कम से कम पतिपत्नी में प्यार का भ्रम बना रहने से एक खुशहाल परिवार तो आबाद रहेगा और शायद भविष्य में प्रकाशजी को भी अपनी भूल व नादानी समझ आ जाए और वे फिर कभी ऐसा न करें, क्योंकि कई बार अपराधी को दंड देने के बजाय माफ करना ज्यादा लाभकारी सिद्ध होता है.

New Trend : दिखावे की हरियाली

New Trend : आजकल लोगों के घरों में फर्नीचर, परदे, तकिए, दीवार का रंग सबकुछ ग्रीन हो चला है. लोगों की सोच यह है कि ऐसा करना हमारे पर्यावरण के लिए फायदेमंद साबित होगा. इन सब से वातावरण, पर्यावरण का लाभ भले न हो लेकिन यह दिखावे के काम खूब आता है.

वर्ष 2025 के इंटीरियर ट्रैंड में ग्रीन टौप पर है. इस की सब से बड़ी वजह लगातार गरमी का बढ़ते जाना है. लोगों की सोच यह है कि छोटेछोटे पौधे, बोनसाई और ग्रीन कलर का ज्यादा प्रयोग करने से वातावरण में गरमी से बचा जा रहा है. ऐसे में ग्रीन दिखने वाली चाहे नैचुरल हों या फैक्ट्री में बनी चीजें, मंहगी होती जा रही हैं. इंटीरियर में पौधों और दीवार पर चढ़ने वाली बेल, फूल वाले पौधे, बोनसाई मंहगी हो गई हैं. जो पौधे और बीज नर्सरी जैसी दुकानों पर मिल जाते हैं वे अब औनलाइन भी बिक रहे हैं.

इंटीरियर में इस ग्रो ग्रीन से पर्यावरण पर फर्क नहीं पड़ता, यह दिखावा बन गया है. यह इंटीरियर दिखने में भले किफायती हो लेकिन रखरखाव और कीमत में यह महंगा होता है. हर किसी की चाहत होती है कि उस के घर का लुक पड़ोसी के घर से अलग दिखे. ऐसे में वह किसी न किसी प्रकार से खुद के घर, इंटीरियर और गाड़ी की किसी न किसी तरह से तारीफ करता रहता है. कम कीमती और गंवई सा दिखने वाला इंटीरियर मंहगा पड़ता है क्योंकि इस को जल्दीजल्दी बदलना पड़ता है, देखभाल भी इस की अधिक करनी होती है.

ग्रीन का ट्रैंड क्यों

इंटीरियर डिजाइन में हरे रंग का प्रभाव अधिक है. असल में यह रंग मानव मन और भावनाओं को अच्छा लगता है. हरा रंग प्रकृति और ताजगी से जुड़़ा हुआ है. इस से शांत वातावरण बनता है. यह रंग तनाव और चिंता को कम करता है. हरे रंग से घर की सजावट करने से इंटीरियर डिजाइन नैचुरल और खुशी का अनुभव कराता है. हरे रंग के अलगअलग शेड्स किसी इंटीरियर स्पेस के माहौल पर अलग प्रभाव डालते हैं. मिंट ग्रीन जैसे हलके शेड्स एक उज्ज्वल और हवादार एहसास पैदा करते हैं. फौरेस्ट ग्रीन जैसे गहरे शेड्स कमरे में गहराई का आभास कराते हैं.

हरा रंग एक बहुमुखी रंग है जिस में विभिन्न शेड्स होते हैं जो हर जगह पर अलग एहसास जगाते हैं. सीफोम ग्रीन जैसे हलके शेड शांति का एहसास कराते हैं. लाइम ग्रीन जैसे चमकीले शेड एनर्जी से जोड़ते हैं. इंटीरियर डिजाइन में हरे रंग के फर्नीचर को भी अब शामिल किया जा रहा है. हरे रंग के सोफे, कुरसियां या सजावटी सामान एक आकर्षक माहौल बनाते हैं. हरे रंग के तकिए, परदे या गलीचे भी देखने में काफी कूल लगते हैं. कूल लुक के लिए हरे रंग के अलगअलग शेड्स प्रयोग किये जा सकते हैं.

हरे रंग के फर्नीचर को शामिल करते समय, ऐसे टुकड़े चुनें जो मौजूदा रंग पैलेट को साथ दें. हरे रंग का सोफा या एक्सेंट कुरसी प्रयोग करें. रंग के साथ अलगअलग डिजाइन भी लुक को निखारते हैं. हरे रंग की सजावट लिविंग स्पेस को बड़ा दिखाती है. हरा रंग घर के अंदर नैचुरल माहौल रखता है. हरे रंग के तकिए, परदे, गलीचे या पौधे लगाने से कमरे में जीवंत माहौल बनता है. दीवार पर हरे रंग का पेंट लगाने से एक स्टेटमैंट वौल बन सकती है. इस से कमरे में एक नयापन आता है. हरे रंग के वौलपेपर भी बेहतर होते हैं.

अलगअलग कमरों में हरे रंग का अलग इस्तेमाल किया जा सकता है. लिविंगरूम में हरा रंग शांत और ताजगीभरा माहौल ला सकता है. बेडरूम में यह आराम और नींद को बढ़ावा देता है. रसोई में यह ताजगी दिखाता है. बाथरूम में शांत और तरोताजा माहौल बनाने में मदद करता है. तौलिए, शावर परदे या पौधे जैसे हरे रंग पंसद किए जा रहे हैं. हलका पुदीना हरा हो या पन्ना हरा जैसा गहरा शेड, सभी शरीर और मन दोनों को तरोताजा महसूस कराते हैं.

ग्रीन इंटीरियर में बढ़ता लकड़ी का प्रयोग

ग्रीन इंटीरियर में रंग के बाद दूसरे नंबर पर सब से ज्यादा लकड़ी का प्रयोग किया जा रहा है. ग्रो इंटीरियर में वुडन स्टाइल का प्रयोग अधिक हो रहा है. कई तरह की लकड़ियां प्रयोग में आने लगी हैं. वुडेन की दीवारें, सीढ़ियां और फर्श में इन का प्रयोग होता है. वुडन इंटीरियर में लकडी़ होने से यह मंहगा पड़ता है. लकड़ी कई तरह की होती हैं. नौर्मल दरवाजे की बात करें तो लोहे का छोटा दरवाजा 2,200 रुपए का बनाबनाया आता है. अगर वुडन का दरवाजा चाहिए तो पहले फ्रेम लगेगा. इस के बाद प्लाई या लकड़ी का दरवाजा लगेगा. जिस के फिट करने का खर्च अलग से होगा. लकड़ी का दरवाजा 10 से 12 हजार रुपए का पड़ता है.

ग्रीन इंटीरियर की तीसरी सब से बड़ी जरूरत सजावटी पौधे, लौन, गार्डन और ग्रीन केज बनाने वाले पौधे, बेल और झाड़ियां होती हैं. अब ये पौधे नर्सरी से ले कर औनलाइन बिकने लगे हैं. शहरों में तमाम नर्सरियां खुल गई हैं. एक पौधा 100 रुपए से ले कर 700 रुपए तक में मिलता है. सजावटी पौधे साइज के हिसाब से कीमती होते हैं. पाम के पौधे बहुत प्रयोग किए जा रहे हैं. पाम के पौधे अलगअलग किस्म के होते हैं.

अगर घर में बड़ा लौन नहीं बन पा रहा है तो लोग छोटा सा ही सही मगर लौन बनवा रहे हैं. इस में मखमली घास हर कोई चाहता है. अगर नैचुरल घास नहीं है तो आर्टिफिशियल घास को लोग लगवा लेते हैं. किचन गार्डन के बाद लौन ही ऐसी चीज है जिस का दिखावा खूब हो रहा है. गार्डन में फलदार वृक्ष है तो उस का एक भी फल ईनाम जैसा लगता है. इन सब को संभालने के लिए माली भी रखना होता है, बाकी खर्च भी होते हैं, जैसे मिट्टी, खाद, कीटनाशक, पानी और सिंचाई आदि. इन सब से वातावरण या पर्यावरण को कोई फायदा चाहे न हो लेकिन यह शोऔफ करने के लिए खूब है, लोगों को इस से संतुष्टि भी मिलती है.

Historical Distortion : इतिहास पर हमला

Historical Distortion : भारत के कट्टरपंथी कई दशकों से इतिहास को दोबारा से लिख रहे हैं. वे यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि किस्सेकहानियां असल में इतिहास हैं. रामायण, महाभारत, पुराणों, नाटकों, चाटुकारिता वाले काव्यग्रंथों को असली इतिहास कह कर देश को बहकाया जा रहा है कि हम कितने महान थे.

असलियत यह है कि हमारे यहां कभी भी इतिहास लिखने की परंपरा रही ही नहीं है. कहानियों को पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाया जाता रहा है और हर पीढ़ी उस में अपने अनुसार जोड़घटा देती रही है.

अंगरेजों के आने के बाद बौद्धग्रंथों में चीन, तिब्बत, अफगानिस्तान, ईरान और दूरदूर तक के देशों में कुछ पुराने ग्रंथ मिले जिन्हें जमा कर के इतिहास लिखा गया पर वह आज के शासकों को पसंद नहीं आया क्योंकि वह उन के एजेंडे के अनुसार नहीं है. सो, पुराने इतिहासकारों की जगह नए पौराणिकवादी इतिहासकारों को पैसा व पद दिए गए कि वे अनापशनाप इतिहास की शराब लोगों को पिला दें.

यह काम करने की मोनोपौली सिर्फ हमारे पास नहीं है. अब बंगलादेश में स्कूली टैक्स्ट बुक्स को बदला जा रहा है. 1971 में भारत की सेना के बल पर पश्चिमी पाकिस्तान के सैनिकों की तानाशाही से मुक्ति की कहानी बदली जा रही है. शेख मुजीबुर रहमान की मूर्तियां पूरे बंगलादेश से हटा दी गई हैं. अब उन्हें महज एक नेता के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है. जबकि, 1971 के मुक्ति संघर्ष का नेतृत्व, नई किताबों के अनुसार, जिया उर रहमान को दिया जा रहा है. शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद बंगलादेश का शासन जिया उर रहमान ने संभाला था. उन की हत्या के बाद खालिदा जिया ने वर्ष 1991 में प्रधानमंत्री के तौर पर शासन संभाला था. इतिहास से खिलवाड़ असल में जनता को गुमराह कर के अपना उल्लू सीधा करना होता है. यह कितने ही देशों में आजमाया गया है.

इतिहास को कभी भी राजनीति के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. यह इतिहासकारों की मरजी होती है कि वे ज्ञात तथ्यों को किस तरह से देखें. इतिहास को पढ़ने वाले आज उस में गलतियां न करने के सूत्र ढूंढ़ें, तो अच्छा है, अपने ढोल बजाने या अपने पड़ोसी को नीचा दिखाने के लिए नहीं.

अफसोस यह है कि देशों के विभाजन और वहां सत्तापलट के बाद इतिहासकारों को नए सिरे से काम पर लगा दिया जाता है. हर देश का शासक भूल जाता है कि जो कुछ लिखा गया है वह दुनियाभर में सब जगह पहले से ही पुस्तकालयों में पहुंच चुका है. अपने देश की किताबें आप नष्ट कर सकते हैं, दूसरे देशों की नहीं. बंगलादेश की नई सरकार वही गलती कर रही है जो पहले दूसरे देशों के शासक कर चुके हैं. इस का असर कुछ साल रहता है, कुछ लोगों तक रहता है सिनेमा की स्क्रीन की तरह.

Uniform Civil Code : कट्टरपंथी एजेंडा

Uniform Civil Code : हिंदू भक्तों को खुश करने के लिए यूनिफौर्म सिविल कोड को उत्तराखंड में लागू करवा कर केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी प्रयोग कर रही हैं कि यह कदम कितना वोटकैचर है और कितना कानूनी दांवपेंचों से निकल सकता है. असल में इस का उद्देश्य देश में एक कानून लागू करना कतई नहीं है. दरअसल, इस का उद्देश्य अल्पसंख्यकों को यह जताना है कि वे दूसरे दर्जे के नागरिक बन कर रहें. इसी में उन की भलाई है.

जरमनी में नाजी पार्टी ने एडौल्फ हिटलर के 1933 में जीत जाने पर यहूदियों को ले कर कई कानून बनाए थे ताकि यहूदियों को कमजोर किया जा सके जिस का अंत होलोकास्ट में हुआ जिस में 60-70 लाख यहूदियों को गोलियों से, गैस चैंबरों में या भूखा मारा गया. यह प्रयोग दुनिया के दूसरे देशों में बारबार दोहराया जाता है.

विवाह कानूनों में सुधारों की जरूरत होती है, इस पर किसी को आपत्ति नहीं होती. 1955-56 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हर तरह के विरोध के बावजूद हिंदू व्यक्तिगत कानूनों को अगर न बदला होता तो आज देश की औरतों की स्थिति वह न होती, जो है. मुसलिम औरतें तलाक, बहुपत्नी, हलाला, पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी के सदियों के घिसेपिटे कानूनों में पड़ी रहें, यह कोई नहीं चाहेगा पर जब किसी कानून में संशोधन गलत नीयत से किया जाता है तो उस की अच्छाइयां भी खराब लगने लगती हैं. उत्तराखंड के यूनिफौर्म सिविल कोड में क्या है, क्या नहीं, यह अभी तक चर्चा का विषय नहीं है क्योंकि इस की हर धारा पर अभी अदालती मोहर लगना बाकी है.

अदालतों के फैसले सरकारी रुख के अनुसार होंगे या नहीं, इस पर फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता पर जिस तरह राम मंदिर के मामले में अदालत ने कानून की मूल भावना के साथ खिलवाड़ किया था वही इस मामले में मुसलिम औरतों के उद्धार के नाम पर किया जा सकता है. फिर भी तब तक इस कानून पर ज्यादा बहस करना बेकार है क्योंकि असली बहस तो अब अदालतों के चैंबरों में होगी.

इतना अवश्य है कि इस कानून से हिंदू औरतों को कोई लाभ नहीं होना. दहेज, जाति, कुंडली, विधिविधान, रीतिरिवाज, घूंघट, मंगलसूत्र, तलाक में देरी, हिंसक पति जैसे मामलों में उन्हें कोई लाभ मिलेगा, ऐसा नजर नहीं आता. असल में यह यूनिफौर्म सिविल कोड न हो कर मुसलिम विवाह कोड और लिवइन कोड बन कर रह गया है. यह कट्टरपंथी हिंदुओं का अपना एजेंडा है, धार्मिक एजेंडा.

Artifical Intelligence : एआई और भारत

Artifical Intelligence : अमेरिका के आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस सौफ्टवेयर, जैसे चैट जीपीटी, ओपन एआई, जैमिनाई और चीन के डीपसीक से भारत को परेशान होने की जरूरत नहीं है. अमेरिका और चीन आजकल कंप्यूटिंग पावर में एकदूसरे के प्रबल प्रतिद्वंद्वी बन रहे हैं और उन के प्रोग्राम व सौफ्टवेयर लाखोंकरोड़ों की गिनतियां सैकंडों में करने के काबिल हैं.

अमेरिका को जो गरूर अपने सैम औल्टमैन के ओपन एआई पर हो रहा था उसे चीन के लियांग वानफेंग ने पंचर कर दिया है. उस ने बहुत सस्ते में एआई टूल बना कर निविदिया कंपनी के शेयर को भारी टक्कर मार दी है और 2 दिनों में अमेरिका की हाईटैक एआई कंपनियां स्टौक मार्केट में अरबों डौलर खो चुकी हैं.

भारत को चिंता नहीं है क्योंकि हम तो यह खोज में ही लगे हैं कि कौन सी मसजिद के नीचे मंदिर है और वहां पर भी सब से ऊंचा, मंदिर बनाया जाए. साथ ही, कुंभ स्नान को कैसे वर्ल्ड रिकौर्ड होल्डर बनाया जाए. ये सब काम हमारे लिए प्राथमिकता रखते हैं जो मानवता को मूर्ख बना कर चढ़ावे में नोट/वोट दोनों जमा कर रहे हैं. चीन और अमेरिका इन दोनों मामलों में फिसड्डी हैं हालांकि डोनाल्ड ट्रंप की सरकार के अब के कार्यकाल में मोदीनुमा कुछ कामों के होने की संभावना है जिन से गोरों की जिंदगी और उन के चर्च सुधरें.

एआई चाहे एक खतरनाक टूल हो जो अरबों की नौकरियां खा जाए पर यह भी संभव है कि वह रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य इतना सस्ता और सुलभ कर दे कि नौकरी से निकाले गए लोगों के पास भी भरपूर पैसा व सुविधाएं बनी रहें. चीन इस मामले में आगे निकल गया है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि वहां न चर्च है, न गोरोंकालों का भेद और न ही टैक कंपनियों के मालिक प्रैसिडैंट के तलवे चाटते नजर आते हैं.

एआई आज हर चीज में काम का है. इस में चाहे जो खराबी हो, यह स्टीम इंजन की तरह का आविष्कार है जिस ने कभी लाखों घोड़ों को नौकरी से निकाल दिया पर लोगों को एकदूसरे के पास कर दिया. आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस दुनियाभर की जानकारियों को मिनटों में समेट व उन्हें छांट कर आप के काम के लायक बना देगा. वह गहरी खानों में मशीनों को चला सकेगा, बिना पायलटों के हवाईजहाज उड़ा देगा, बिना किसानों के अनाज पैदा कर देगा.

इस में माहिरता वैसी ही होगी जैसी बंदूकों में थी जिन के सहारे गोरे यूरोपियों ने भारत, चीन, जापान, अफ्रीका, उत्तरदक्षिण अमेरिका पर कब्जा किया. आज यह आर्टिफिशियल इंटैलिलैंस की बंदूक चीन और अमेरिका के पास है. हम उन का मुकाबला करेंगे राम मंदिर के दर्शन कर के और कुंभ के गंदले पानी में डुबकी लगा कर.

Hindi satire : अमीरों के संरक्षण व संवर्धन की अभिनव योजना

Hindi satire : गरीबों के लिए तो सरकार कई योजनाएं बनाती है लेकिन गरीबों का उद्धार करने वाले अमीरों को क्यों वंचित किया जाए उन के लग्जरी जीवन को और बेहतर बनाने से. समानता का अधिकार तो भई सभी वर्गो के लिए होना चाहिए.

गरीबी उन्मूलन व कल्याण की अनेक योजनाएं स्वतंत्रता मिलने के बाद से ही सरकार द्वारा चलाई जाती रही हैं. यह अलग बात है कि इस से गरीब को क्या हासिल हुआ. एक प्रधानमंत्री तो बोल गए कि दिल्ली से चला एक रुपया गरीब तक पहुंचतेपहुंचते 15 पैसे ही रह जाते हैं.

अनुसूचित जाति/जनजाति, किसानों-मजदूरों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गों, दिव्यांगों, विद्यार्थियों सब के लिए खासी योजनाएं हैं. यदि किसी वर्ग के लिए योजना का अकाल है तो वह अमीर वर्ग है. यह हमारे संविधान की समानता की भावना के विपरीत है. जो समाज या देश अमीरी को नहीं पूजता उसे फिर गरीबी का महिमामंडन करना ही होता है.

इसलिए सरकार ने ‘सब का साथ सब का विकास व सब का विश्वास’ की मूल भावना के मद्देनजर देश के अमीरों व उन की अमीरी के संवहनीय संरक्षण व संवर्धन के लिए एक योजना का खाका तैयार किया है. जैसे कि परीक्षाओं के प्रश्नपत्र खोखा के दम पर लीक हो जाने की हमारे यहां पुनीत परंपरा है वैसे ही इस का प्रारूप आमजन के सु झाव आमंत्रित करने के पूर्व ही पुनीत रूप से लीक हो कर गंगाधर के व्हाटसऐप पर मौजूद है. प्रारूप के चंद महत्त्वपूर्ण अंश आप के अवलोकनार्थ हैं-

भूमिका

देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद से ही सरकार ने गरीबों व अन्य कमजोर वर्गों, किसानों, मजदूरों के लिए असंख्य योजनाओं को शुरू किया. देश में गरीबों की संख्या में काफी कमी आई लेकिन दूसरी ओर देश की अमानत अमीरों की तादाद उस अपेक्षित दर से नहीं बढ़ी. यदि फौर्ब्स की अमीरों की सूची में एक भी भारतीय का नाम न हो तो कितना बैड फील होगा. उपेक्षित अल्पसंख्यक अमीर वर्ग की अमीरी के संरक्षण व संवर्धन के लिए एक डैडिकेटेड योजना की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी.

उद्देश्य

इस का प्राथमिक उद्देश्य अमीर वर्ग और अमीर बनें, उन की अमीरी पर कोई आंच न आए रहेगा. तमाम तरह की कठिनाइयों, जैसे हैवी करारोपण, हवाला द्वारा फंड डायवर्जन आदि से उन की नैट वर्थ में आने वाली कमी को दूर करने पर योजना मुख्यतया फोकस करती हैं. योजना का द्वितीय उद्देश्य आगामी 5 वर्षों में अमीरों की नैटवर्थ दस गुनी करना व फौर्ब्स की विश्व के अमीरों की सूची में कम से कम एकतिहाई भारतीयों को लाना है. इस के विज्ञापन की पंचलाइन होगी- ‘अमीर व अमीरी का संरक्षण समय की मांग है.’

योजना के प्रमुख बिंदु

शेयर बाजार की उठापटक या अन्य दीगर कारणों जैसे कि रुपए के स्वभावगत डौलर को देखते ही नीचे को झुक दंडवत सलाम करने, औद्योगिक घपलों आदि कारणों से यदि किसी अमीर की नैटवर्थ में 20 प्रतिशत से अधिक की कमी आती है तो योजना की ‘कमी लिंक्ड भरपाई सब्सिडी उपयोजना’ इस के 50 प्रतिशत की भरपाई तुरंत ही कर देगी.

योजना सुनिश्चित करेगी कि कोई भी खरबपति कभी गिर कर अरबपति व अरबपति गिर कर करोड़पति न हो जाए. यदि ऐसा कहीं भी पाया जाता है तो सरकार अपने कदमों द्वारा उन के कदम उन के मूल क्षेत्र में ही वापस खींच देगी. इस के लिए यदि आम आदमी की घींच को करारोपण के माध्यम से और खींच उसे मरणासन्न करना पड़े तो सरकार बिलकुल नहीं हिचकिचाएगी.

जीएसटी का युक्तियुक्तकरण अमीर व अमीरेआजम श्रेणी के लोगों के लिए किया जाएगा. निजी जेट व लग्जरी याट तथा 5 करोड़ रुपए से अधिक की कारों की खरीदी दर पर मात्र 2 प्रतिशत रखी जाएगी ताकि अमीर व्यक्ति की लग्जरी याट व निजी जैट बरकरार रहें. ये सरकार के नुमाइंदों के भी काम आते ही हैं न, इसलिए यह कदम तो एक तरह से सरकार के हित में ही होगा. इस क्रांतिकारी कदम से राजस्व में जो कमी आएगी उस की पूर्ति साइकिल व दोपहिया वाहनों पर दर बढ़ाने के साथ कर ली जाएगी. अर्थात, बजटीय घाटे को सरकार दृढ़ता से नहीं बढ़ने देगी.

योजना यह भी सुनिश्चित करेगी कि किसी भी अमीर की छोटीमोटी हरकतों, जैसे बैंकों का हजारपांचसौ करोड़ रुपए हजम कर जाना, उद्योग खड़ा करने के लिए नाममात्र दर पर सरकारी भूमि के बड़े हिस्से का व्यवसायीकरण कर देना आदि पर एनफोर्समैंट एजेंसी द्वारा तुच्छतुच्छ तरीकों से पूछताछ, एफआईआर इत्यादि से तंग नहीं किया जाएगा.

सरकार इस दुष्प्रचार को बिलकुल बरदाश्त नहीं करेगी कि गरीब व अमीर के बीच विद्यमान चौड़ी खाई इस योजना से और चौड़ी हो जाएगी. आखिर अमीर ही गरीब को रोजगार देता है. अमीर के लिए छाता योजना होगी तो गरीब के लिए धूप खाने की योजना पर धूप से जब विटामिन डी बनेगा तो फिर यह अमीर के हिस्से में पहले जाएगा.

आलोचक हमेशा की तरह कहेंगे कि इस योजना से सामाजिक संतुलन बिगड़ेगा. लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि समानता तो सपनों में होती है, असमानता हकीकत है.

गरीबों को तो सरकार ने 3 करोड़ से अधिक मकान बना कर दे दिए हैं. सो संवैधानिक समानता की भावना की कद्र करते सरकार एक शाइनिंग आवास योजना देश की शान हाई नैटवर्थ व्यक्तियों के लिए भी लाएगी. एक रुपए की नाममात्र की दर पर सरकारी प्राइम लैंड इस के लिए चिह्नित की जाएगी. प्रत्येक बंगला कम से कम एक एकड़ का होगा. छत पर हैलिपैड होगा. हवाईपट्टी भी यहां पर होगी. प्रत्येक हवेली में 2 स्विमिंग पूल होंगे. यहां सातसितारा क्लबहाउस होगा. बिजली, इंटरनैट, पानी यहां बिलकुल मुफ्त होगा. अमीरेआजम यदि इस कदम से प्रसन्न हो गए तो सोचिए, वे नएनए उद्योग, बेशक सरकारी अनुदान के दम पर स्थापित करेंगे. इस टाउनशिप की खासीयत यहां के वह फुटपाथ होंगे जिन पर अमीरों के होनहार किशोर व युवा अपनी इम्पौर्टेड व महंगी एसयूवीज से भविष्य में गरीबों को कुचलने का अभ्यास सुकून से करेंगे.

सरकारी मिड्डे मील योजना की तर्ज पर अमीरों के दून जैसे स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के लिए ‘डिनर इन द स्काई’ योजना लौंच की जाएगी. गरीब को मुफ्त राशन की तरह अमीरों के लिए मुफ्त निवेश योजना लौंच की जाएगी. गरीब का भूखा रहना तो बरदाश्त किया जा सकता है पर अमीर को काजू व महंगी व्हिस्की रोज न मिले, यह देश के सम्मान के विपरीत होगा. जिन राज्यों में मद्यनिषेध लागू है वहां भी अमीर को पीने की इजाजत देना सरकार की इज्जत बढ़ाना होगा.

बैंकों पर लगाम लगाने का भी इस में प्रावधान होगा. यदि किसी अमीर उद्योगपति ने किसी बैंक के दोचार हजार करोड़ रुपए की रकम का डिफौल्ट कर दिया हो तो इस के लिए अमीर को इतना प्रताडि़त न किया जाए कि वह मातृभूमि छोड़ने को मजबूर हो जाए. एक विधेयक लाया जाएगा कि एक हजार करोड़ तक के डिफौल्ट पर कोई भी कानूनी कार्यवाही न कर मध्यस्थता द्वारा निबटारा किया जाए. जो बड़ी रकम जुगाड़ कर बड़े उद्योग लगाएगा उस से डिफौल्ट भी बड़े ही होंगे. जैसे कि साइकिल व बीएमडब्लयू से हुए ऐक्सिडैंट में खरोंच व जान जाने जैसा अंतर होता है. इसलिए सरकार यह निर्णय लेती है कि लाखों करोड़ में पंहुच गई एनपीए में सैकड़ोंहजारों करोड़ का डिफौल्ट करने वाले बड़े उद्योगपतियों के नाम डिस्क्लोज नहीं किए जाएंगे पर दोपांच या दस लाख रुपए का ऋण लेने वाले यदि डिफौल्ट करेंगे तो उन के नाम उजागर करने में देरी नहीं की जाएगी.

सरकार इरादा रखती है कि वह उच्च व सर्वोच्च न्यायालयों में एकदो न्यायाधीश नामित कर सके. यदि वह इस में कभी सफल हो गई तो कम से कम इन में से एक नामित अमीर व्यक्ति होगा. इस से यह लाभ होगा कि अमीरों के हित को संरक्षित करने का पुनीत कार्य वह कर सकेगा.

जितने भी आयोग व कमीशन हैं (वैसे यह सरकार को भी पता नहीं है, उन की गिनती के लिए शीघ्र ही एक आयोग बनाया जा रहा है), उन के विधान में परितर्वन कर प्रत्येक में अब एक अमीर, जिस की कि नैटवर्थ कम से कम 1,000 करोड़ रुपए हो, को नामित किया जा सकेगा.

रिजर्व बैंक औफ इंडिया को अमीरों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए इस के बोर्ड में भी एक ‘अपने वाले’ धनीधोरी को नामित किया जाएगा. संसद में 5 सीटें 5 सब से अमीरों के लिए आरक्षित करने के लिए अगले सत्र में विधेयक लाया जाएगा.

स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तरह अमीरों को गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस पर सम्मानित किया जाएगा. आखिर वे भी तो हमें आर्थिक गुलामी से आज नहीं तो कल आजाद करवाएंगे.

एक अमीर जन आयोग भी बनाया जाएगा. इस का चेयरमैन देश के सब से अमीर व्यक्ति को बनाया जाएगा. इस की अनुशंसाएं मानने को सरकार बाध्य होगी. इसे परिसीमन आयोग के निर्णयों की तरह किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी. योजना में वेटेड वोटिंग के बारे में भी जिक्र है. इस के अंतर्गत जो जितना अमीर, उस के वोटों की संख्या उतनी अधिक होगी, जैसे करोड़पति के 10 वोट, अरबपति के सौ वोट व खरबपति के 1,000 वोट. जो फौर्ब्स की सूची में आ कर देश को गौरवान्वित करने का कार्य करेगा उस के एक लाख वोट होंगे.

कुल मिला कर गिद्दों व अमीरों दोनों का संरक्षण सरकार करेगी. अमीरों की नजर सार्वजनिक संसाधनों पर गिद्द की तरह ही होती है तभी तो वे अमीर हैं. लोकतंत्र का 5वां सब से मजबूत खंबा अमीर ही हैं. लग्जरी वस्तुओं को करारोपण से मुक्त करने पर भी प्रावधान आगामी चुनाव में अमीरों के चंदे की मात्रा पर मुख्यतया आधारित होगा.

उपसंहार

आशा है लंबे समय से उपेक्षित अमीर वर्ग को कुछ राहत उक्त अभिनव योजना से मिलेगी तो वे सरकार व समाज के साथ कदमताल कर अपनी नैटवर्थ को अल्प समय में कई गुना कर सकेंगे.

फलस्वरूप, ट्रिकल डाउन थ्योरी के अनुसार कुछ लाभ नीचे वालों को भी अवश्यंभावी मिलेगा. नीचे वाले इतने में ही खुश होने के आदी पहले ही बना दिए गए हैं.

Online Hindi Story : यही है मंजिल – क्या यही थी नेहा की मंजिल

Online Hindi Story : कुछ पेचीदा काम में फंस गई थी नेहा. हो जाता है कभीकभी. जब से नौकरी में तरक्की हुई है तब से जिम्मेदारी के साथसाथ काम का बोझ भी बढ़ गया है. पहले की तरह 5 बजते ही हाथपैर झाड़, टेबल छोड़ उठना संभव नहीं होता. अब वेतन भी दोगुना हो गया है, काम तो करना ही पड़ेगा. इसलिए अब तो रोज ही शाम के 7 बज जाते हैं.

नवंबर के महीने में चारों ओर कोहरे की चादर बिछने लगती है और अंधेरा हो जाता है. इस से नेहा को अकेले घर जाने में थोड़ा डर सा लगने लगा था. आजकल रात के समय अकेली जवान लड़की के लिए दिल्ली की सड़कें बिलकुल भी सुरक्षित नहीं हैं, चाहे वह सुनसान इलाका हो या फिर भीड़भाड़ वाला, सभी एकजैसे हैं. इसलिए वह टैक्सी या औटोरिकशा लेने का साहस नहीं करती, बस ही पकड़ती है और बस उसे सोसाइटी के गेट पर ही छोड़ती है.

आज ताला खोल कर जब उस ने अपने फ्लैट में पैर रखा तब ठीक 8 बज रहे थे. फ्रैश हो कर एक कप चाय ले जब वह ड्राइंगरूम के सोफे पर बैठी तब साढ़े 8 बजे रहे थे.

आकाश में जाने कब बादल घिर आए थे. बिजली चमकने लगी थी. नेहा शंकित हुई. टीवी पर रात साढ़े 8 बजे के समाचार आ रहे थे. समाचार शुरू ही हुए थे कि एक के बाद एक दिलदहलाने वाली खबरों ने उसे अंदर तक हिला दिया.

पहली घटना में चोरों ने घर में अकेली रहने वाली एक 70 वर्षीय वृद्धा के फ्लैट में घुस कर लूटपाट करने के बाद उस की हत्या कर दी. दूसरी घटना में फ्लैट में रहने वाली अकेली युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई. तीसरी घटना में भी कुछ ऐसा ही किया गया था. छेड़छाड़ की घटना तूल पकड़ती कि इतने में लड़की का भाई आ गया, जिस से बदमाश भाग खड़े हुए. नेहा ने हड़बड़ा कर टीवी बंद कर दिया. आज 9 बजे का सीरियल देखने का भी उस का मन नहीं हुआ. तभी बादल गरजे और तेजी से बारिश शुरू हो गई. बारिश के साथ तेज हवा भी चल रही थी.

बचपन से ही आंधी से नेहा को बड़ा डर लगता है. जब भी आंधीतूफान आता था, वह मां से लिपट कर रोती थी. शादी के बाद 2 वर्षों तक पति दीपक के साथ ससुराल में रही. वैसे भी वह घर पूरी तरह कबाड़खाना है, उस घर में घुसेगा कौन? हर कदम पर कोई न कोई खड़ा मिलेगा. इतना बड़ा संयुक्त परिवार कि रोज 2 किलो आटे की रोटियां बनती हैं. महाराज भी रसोई संभालते परेशान हो जाते थे.

2 जेठ, उन के जवान 3-4 बेटाबेटी, जेठानियां, सास, विधवा बूआ, उन के 2 जवान बेटे और वे दोनों. बड़ी ननद का विवाह गांव में बहुत बड़े जमींदार परिवार में हुआ था. वे गाड़ी भरभर कर वहां से अनाज, घी, फल, सब्जी, खोया और सरसों का तेल भेजती रहती हैं. उन के दोनों बेटे कालेज में पढ़ते हैं, इसलिए वे नानी के पास ही रहते हैं.

उस घर में यदि भूल से भी कोई घुसा तो उस का उन लोगों के बीच से जीवित निकलना मुश्किल होगा. नेहा को संयुक्त परिवार में रहना बिलकुल भी पसंद नहीं था. विवाहित जीवन के नाम पर जो चित्र उस के मन में था वह था कि बस घर में वह और एक उसे चाहने वाला उस का पति हो. हां, आगे चल कर एकदो बच्चे, बस. पर मां को पता नहीं क्या सूझा.

पापा तो पहले ही गुजर गए थे. मां ने ही पाला था उस को. मां को पता था कि उसे संयुक्त परिवार पसंद नहीं, फिर भी इतने बड़े परिवार में उस की शादी कर दी. उस ने पूरी ताकत से इस का विरोध किया पर मां टस से मस नहीं हुईं. उन का बस एक ही तर्क था, ‘मैं आज हूं, कल नहीं.’ अकेले रहना खतरे से खाली नहीं, बड़े परिवार का मतलब बड़ी सुरक्षा भी है. नेहा के विरोध का कुछ फायदा नहीं हुआ. शादी हो गई, शादी के 3 महीने बाद ही मां चल बसीं. मां के फ्लैट में ताला लग गया. उस ने तब दीपक को फुसलाने की कोशिश की थी मां के फ्लैट में रहने के लिए, लेकिन दीपक ने दोटूक जवाब दिया था कि वह अपना घर छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा. वह जहां चाहे वहां रह सकती है.

नेहा गुस्से से पागल हो गई थी. इस परिवार में वही फालतू है क्या? इतना कमाती है, उस की तो बड़ी कद्र होनी चाहिए. पर नहीं, यहां तो सर्वेसर्वा सास हैं जो एक डंडे से सब को हांकती हैं. 3 भाइयों में दीपक सब से ज्यादा कमाता है. नेहा ठीक से नहीं जानती पर इतना जानती है कि मां के हाथ में वही सब से ज्यादा खर्चा देता है. कायदे से परिवार में उस के लिए खास व्यवस्था होनी चाहिए. पर नहीं, जो सब के लिए वही उस के लिए भी. बूआ तो एक तरह से आश्रित हैं बेटे के साथ, पर कौन कहेगा ये आश्रित हैं, उन के भी वही ठाटबाट जो सब के हैं.

इतना बड़ा परिवार नेहा को बिलकुल भी पसंद नहीं था पर मां के कहने पर कि ‘मेरा कोई भरोसा नहीं, पता नहीं कब चल दूं. तुझ में अक्ल नहीं. यह बड़ा परिवार है. जितना बड़ा परिवार उतनी बड़ी सुरक्षा.’ लेकिन उन का कुछ भी कहा नेहा को अच्छा नहीं लगता था. देखा जाए तो परिवार खुले विचारों का था, पुरानी परंपरा के साथसाथ आधुनिकता का भी तालमेल बना कर रखा जाता था.

अम्मा उस जमाने की ग्रेजुएट थीं लेकिन अब भी रोज समाचारपत्र पढ़तीं. हां, घर को बांध कर रखने के लिए कुछ नियम, बंधन, अनुशासन होता है, उन का पालन कठोरता से जरूर करना पड़ता है. उन की अनदेखी करने को माफ नहीं किया जा सकता. ऐसा ही कुछ अम्मा सोचती थीं. इसलिए नेहा अपनेआप को परिवार में फिट महसूस नहीं करती थी. उस का घर तो एकदम खुला था, एकल परिवार में भी उग्र, आधुनिक, एक अकेली संतान, सिरचढ़ी, जो मन में आता, करती. कभीकभी सहेली के साथ गपें मारतेमारते वहीं रुक जाती, घर पर एक फोन कर देती, बस.

अब नेहा की इन सब आदतों पर अंकुश लग गया था. औफिस में देर हुई तो भी जवाब दो. कहीं जाओ तो बता कर जाओ. शौपिंग करने जाओ तो कोई न कोई साथ लग जाता. परेशान हो उठी नेहा इस सब से. मां की मृत्यु के बाद उन का सजाधजा फ्लैट खाली पड़ा था, उस ने दीपक को फुसलाने की कोशिश की कि चलो, अपना घर अलग बसा लें, लेकिन वह तो टस से मस नहीं हुआ.

कुछ उपाय नहीं सूझा तो दोस्तों की सलाह पर नेहा ने घर में सब के साथ बुरा व्यवहार, कहासुनी करनी शुरू कर दी. परिवार के लोग थोड़ा विचलित तो हुए पर इस सब के बावजूद घर से अलग होने का रास्ता नहीं बना. तब एक दिन नेहा असभ्यों की तरह गंदी जबान से लड़ी. यह देख कर दीपक भी परेशान हो गया. दीपक खुद ही नेहा को उस की मां के फ्लैट में छोड़ आया. नेहा 2 महीने तक दीपक से बात करने का काफी प्रयास करती रही लेकिन उस ने फोन उठाना ही बंद कर दिया. नेहा के दोस्तों ने उसे तलाक के लिए उकसाया पर नेहा दीपक की तरफ से पहल की प्रतीक्षा करती रही. उस ने सोचा तलाक दीपक मांगे तो वह मोटी रकम वसूले. यह भी दोस्तों की सलाह थी.

टीवी औन किया. समाचार चल रहे थे. खबर थी कि एक फ्लैट में अकेली युवती पर हमला हो गया. यह सुन उस का दिल दहल गया. पर इस से भी भयानक समाचार था कि आज रात भयंकर तूफान के साथ मूसलाधार बारिश होने वाली है, सब को सावधान कर दिया गया था. नेहा ने बाहर झांका तो वास्तव में तेज हवा चल रही थी, आसमान में बिजली कौंध रही थी और घने बादल छाए हुए थे. ओह, यह मेरे लिए कितनी डरावनी रात होगी. कामवाली रात का खाना तैयार कर के रख गई थी. नेहा मेज पर आई और टिफिन खोल कर देखा तो पनीर व मखाने की सब्जी और परांठे रखे थे. लेकिन आज उस का खाने का मन नहीं हुआ. घड़ी देखी, 9 बज रहे थे. वहां ससुराल में इस समय सब लोग डिनर के लिए खाने की मेज पर आ गए होंगे. मेज क्या टेबल टैनिस का मैदान. इतने सारे लोग.

असल में दोपहर का खाना तो नाममात्र बनता था. सुबह सब अपनेअपने हिसाब से खा कर टाइम से निकल जाते. बड़ी जेठानी डाक्टर हैं. 8 बजे ही निकल जाती हैं. रात को ही सब लोग एकसाथ बैठ कर खाते, वही एक खुशी का समय होता. उस परिवार में फरमाइशी, मनपसंद खाना, छेड़छाड़, हंसीमजाक, कल रात के खाने की फरमाइश होती, यानी पूरा एकडेढ़ घंटा लगा देते खाना खाने में वे. और अच्छा व स्वादिष्ठ खाना तैयार करने में सास और बूआ दोनों पूरे दिन लगी रहतीं.

अचानक पूरा फ्लैट थरथरा उठा. बहुत पास ही कहीं बिजली गिरी. यह देख नेहा का तो दम ही निकल सा गया. यदि कोई खिड़की का शीशा तोड़ कर अंदर चला आया तो क्या होगा. उसे अपनी सहेली मधुरा की याद आई जो उसी के ब्लौक में छठी मंजिल पर रहती थी. साथ में उस की सास रहती है जिस से उस की बिलकुल भी नहीं बनती. दोनों में रोज झगड़ा होता है. आज नेहा काफी डर गई थी. पता नहीं क्यों उस का खून सूख रहा था. मन में न जाने कैसीकैसी बुरी घटनाएं उभर कर आ रही थीं.

झमाझम गरज के साथ बारिश हो रही थी. आखिरकार उस ने मधुरा को फोन किया.

‘‘नेहा, क्या बात है,’’ मधुरा ने कहा.

‘‘तू नीचे मेरे पास आजा मधुरा, मुझे आज बहुत डर लग रहा है. यहां सो जा आज,’’ नेहा बोली.

‘‘सौरी, आज तो मैं तेरे पास नहीं आ सकती. अगर ज्यादा परेशान है, तो तू ही ऊपर आ जा.’’

मधुरा से इस तरह के जवाब की आशा नहीं थी नेहा को, उसे यह जवाब सुन बड़ा धक्का लगा, ‘‘क्यों, क्यों नहीं आ सकती?’’

‘‘अरे यार, विनय चंडीगढ़ एक सैमिनार में गए हैं. मांजी को बुखार है. उन को छोड़ कर मैं कैसे आ सकती हूं.’’

गुस्सा आ गया नेहा को, कहां तो सास इसे फूटी आंख नहीं सुहाती,

रोज लड़ाई और आज उन को जरा बुखार क्या आया, छोड़ कर नहीं आएगी. ‘‘आज बड़ा दर्द आ रहा है सास पर,’’ नेहा थोड़ा तल्ख अंदाज में बोली.

‘‘नेहा, जबान संभाल कर बात कर. हम लड़ें या मरेकटें, लेकिन तेरी तरह रिश्ता तोड़ना नहीं सीखा हम ने. मुझे उन के पास रहना है देखभाल के लिए, बस.’’ उस ने फोन काट दिया.

फिर बिजली गिरी. अब तो नेहा कांपने लगी. हवा कम हो गई पर गरज के साथ बारिश और बिजली चमकी और वर्षा तेज हो गई.

एक मुसीबत और आ गई. अब बारबार बिजली जाने लगी. वैसे यहां सोसाइटी वालों ने जेनरेटर की व्यवस्था कर रखी है, पर आलसी गार्ड उसे चलाने में समय ले लेते हैं. उन्हीं 6-7 मिनटों में नेहा का दम निकल जाता है. नेहा 2 वर्षों से अकेली इस फ्लैट में रह रही है. ससुराल से उस ने एकदम नाता तोड़ लिया है. हजार कोशिशों के बाद भी वह दीपक को उस के परिवार से अलग कर अपने फ्लैट में नहीं ला पाई. ऐसे में उस परिवार पर उसे गुस्सा तो आएगा ही.

वह परिवार ही उस का एकमात्र दुश्मन है संसार में. उस से क्या रिश्ता रखना, पर आज इस डरावनी रात में उसे लगने लगा जिस घर को वह मछली बाजार कहती थी, वह कितना सुरक्षित गढ़ था. बड़ी जेठानी डाक्टर हैं. उस से दस गुना कमाती हैं. पर वे कितनी खुश थीं उस घर में. बस, उसे ही कभी अच्छा नहीं लगा, तो क्या उस के संस्कारों में कोई खोट है?

पास में ही फिर से बिजली गिरी और उसे लगा किसी ने उस के फ्लैट का दरवाजा ढकेला हो. होश उड़ गए उस के. घड़ी में मात्र सवा 9 बज रहे थे. जाड़े, वह भी इस महाप्रलय, की रात कैसे काटेगी वह. मधुरा भी आज दगा दे गई, सास की सेवा में लगी है, इसलिए उसे छोड़ कर नहीं आई. इतनी रात को भला कौन आएगा उस का साथ देने? अब तो बस एक ही सहारा है. जन्मजन्मांतर का रक्षक दीपक. लेकिन उसे फोन करेगी तो वह मोबाइल पर उस का नंबर देखते ही फोन काट देगा. उस ने ससुराल के लैंडलाइन पर फोन लगाया.

अम्मा ने फोन उठाया, बोलीं, ‘‘हैलो.’’

अचानक जाने क्यों अंदर से रुलाई फूटी, ‘‘अम्माजी.’’

‘‘अरे नेहा, क्या बात है बेटा?’’

इतना सुनते ही वह रो पड़ी. सोचने लगी कि कितना स्नेह है अम्मा के शब्दों में.

अम्मा ने आगे कहा, ‘‘अरे, नेहा, रो क्यों रही है? कोई परेशानी है? तू ठीक तो है न बेटा?’’

‘‘अम्माजी, मुझे डर लग रहा है.’’

‘‘हां, रात बड़ी भयानक है और तू अकेली…’’ अम्मा तसल्लीभरे शब्दों में बोलीं.

‘‘इन को भेज देंगी आप,’’ नेहा का गला रुंध गया था बोलते हुए.

‘‘बेटा, दीपू तो बेंगलुरु गया है काम से. तू चिंता मत कर, घर को अच्छे से बंद कर, बैग में कपड़े डाल कर तैयार हो ले. यहां चली आ, मैं संजू को गाड़ी ले कर भेज रही हूं. 10 मिनट में पहुंच जाएगा. घबरा मत बेटा. सब हैं तो घर में.’’

अब नेहा की जान में जान आई. संजू बड़ी ननद का बेटा है, एमबीए कर रहा है. नेहा को ससुराल में अपना कमरा याद आ गया, कितना सुरक्षित है वह. नेहा को खुद पर ग्लानि हुई कि वह उस परिवार की अपराधिन है जिस ने उस परिवार के बच्चे को परिवार वालों से अलग करना चाहा. उस परिवार के टुकड़े करने पर वह उतारू हो गई थी. दूसरी तरफ वे सब लोग हैं जो इस मुसीबत में उस को माफ कर उस के साथ खड़े हैं.

‘‘अम्माजी…’’

‘‘अरे, संजू 10 मिनट में पहुंचता है, तू घबरा मत बेटा, जल्दी तैयार हो जा…’’ अम्मा ने उसे तसल्ली दी.

नेहा को आज लग रहा था कि वह कितनी गलत थी. सुरक्षा, स्नेह और प्यारभरी अपनों की छांव को छोड़ कर दुनिया के झंझावातों के बीच चली आई थी. नहीं…नहीं…अब ऐसी गलती दोबारा नहीं करेगी वह. आज अपने घर जा, अपनों से माफी मांग, सब गलतियां सुधार लेगी.

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