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New Year Special Story : पत्नी व देश का संविधान

New Year Special Story: इस समय देश का हर नागरिक संवैधानिक हो गया है. अवैधानिक काम करने वाला भी बातबात में संविधान की बात कर रहा है. एक कहता है कि भारतमाता की जय बोलना संविधान में कहां लिखा है, तो दूसरा कहता है कि कहां लिखा है कि नहीं बोल सकते.

अब छोटीछोटी बात में भी लोग संविधान की आड़ ले रहे हैं.  हमारा एक दोस्त मैसेजेस का जवाब नहीं देता था. एक दिन हम ने मैसेज किया कि भाई, थोड़ा सा सोशल हो जा सोशल मीडिया में, तो उस का मैसेज आ गया कि कहां लिखा है संविधान में कि हर मैसेज का जवाब देना आवश्यक है. मैं ने कहा कि यार, तूने तो मिलियन डौलर का प्रश्न खड़ा कर दिया. तू सही कह रहा है कि नहीं, यह मैं कैसे सही या गलत ठहराऊं.

अब यह संविधान की आड़ लेने वाली बात छूत के रोग की तरह हर तरफ फैलती जा रही है. उस दिन मैं सब्जी बाजार में था. मैं ने मोलभाव करना चाहा, तो सब्जी वाला बोला, ‘साहब पढ़ेलिखे हो कर भी एक दाम की तख्ती आप ने नहीं पढ़ी. संविधान में मोलभाव करने का उल्लेख नहीं है. कहां लिखा है, यदि लिखा हो तो हमें बताएं.’ मैं बहुत देर तक उस का थोबड़ा देखता रहा कि अब तो सब्जी मंडी में भी सब्जी वाला सब्जीभाजी की कम, संविधान की ज्यादा जानकारी रखने लगा है.

संविधान गलीकूचेबाजार से होते हुए घर के किचन में कब घर कर गया, हमें वैसे ही भान ही नहीं हुआ जैसे दिल्ली में भाजपाकांग्रेस का सफाया होने का नहीं हुआ था. पिछले रविवार को मैं ने पत्नी के सामने इच्छा प्रकट की कि आज रविवार है, कुछ खास डिश हो जाए? तो उस ने आंखें तरेर लीं कि पत्नी रविवार को पति के लिए खास डिश तैयार करेगी, यह संविधान में कहां लिखा है.

मैं भौचक था इस संविधान के घर के रसोई तक आ पहुंचने से. मैं ने सोचा, यह बाहर जो हवा बह रही है, शायद उसी का परिणाम है. वैसे, इस देश में आजकल किसी भी बात की हवा के चहुंओर पहुंचने में समय नहीं लगता है. मेड 2 दिन नहीं आई. वैसे यह कोई नई बात नहीं है. मेड इस तरह से मेड है कि वह आकस्मिक रूप से कभी भी गायब हो जाती है. पत्नी ने पूछ लिया कि 2 दिन कहां रही, बिना बताए छुट्टी मार ली, ऐसे नहीं चलेगा? तो वह हाथ नचा कर बोली कि संविधान में कहां लिखा है कि 2 दिन मेड बिना बताए नहीं आ सकती? और मैडमजी, आप की यह पड़ताल गैरसंवैधानिक ढंग की लग रही है? मैं मेड के संविधान के प्रति अचानक उपज आई सजगता से अचंभित था.

गांवों में नईनवेली आई पत्नियों के शौचालय के अभाव में ससुराल छोड़ने के तो आप ने कई किस्से पढ़े होंगे. अब नईनवेली बहू को किसी ने ज्ञान देने की कोशिश की कि सुबह उठ कर सासससुर के पैर छूना चाहिए. तो वह बोली कि फिर कहना कि रात को सास के पैर दबाना चाहिए. उस ने आंख मार कर आगे कहा कि संविधान में ऐसा कुछ नहीं लिखा है, इसलिए वह बाध्य नहीं है. उस के आराध्य न पति है और न सास. उस का कैरियर ही उस का आराध्य है, उस का संविधान है.

महिला मंडल की किटी पार्टियों का यह मौसम है. हम ने एक दिन हिम्मत बटोर कर, पत्नी से कहा कि अब किटी पार्टियां बंद कर दो क्योंकि बच्चों की परीक्षा नजदीक आ रही है. तो वह बोली कि संविधान का अध्ययन कर लो, उस में ऐसा कहीं लिखा नहीं है. मैं ने कहा कि बहुत जवाब देने लगी हो? तो वह तपाक से बोली कि संविधान में यह कहां लिखा है कि पत्नी केवल सुन सकती है, पलट कर जवाब नहीं दे सकती. आगे वह बोली, ‘‘जब मोदीजी कह रहे हैं कि उन का धर्म देश का संविधान है तो फिर हम कैसे इस का सम्मान करने में पीछे रह सकते हैं.’’

बौस के घर में एक कार्यक्रम था. हम ने पत्नी से गुजारिश की कि चलना है तो वह तपाक से बोली कि संविधान में कहां लिखा है कि पत्नी का बौस के यहां के हर बोरिंग फंक्शन में जाना जरूरी है. बौस आप का होगा, हमें तो उस दिन किटी पार्टी में जाना है.

ये दोटूक बातें आजकल संविधान की बैकिंग के कारण हमें हर जगह सुनने को मिल रही हैं. सरकार ने डाक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस करने से रोका क्या, कि उन की यूनियन खड़ी हो गई कि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है कि डाक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं कर सकता. उस ने तो शपथ ली हुई है मरीज का इलाज करने की. इस के बदले में यदि स्वेच्छा से कोई मरीज कुछ दे जाता है तो इस के लिए डाक्टर कहां जिम्मेदार है?

शाम को पत्नी घर पर नहीं थी. चाय खुद बनानी पड़ी. वह 8 बजे घर में आई. हम पूछ बैठे कि कहां चली गई थी, हमें चाय भी आज खुद ही बनानी पड़ी? हमारा इतना कहना था कि वह बिफर गई, नहीं, सही कर लेता हूं कि वह भड़क पड़ी. ध्यान रहे पत्नियां अकसर भड़कती हैं पति नामक जीव पर. और पति की बोलती बंद हो जाती है, ले बच्चू अब ऊंट पहाड़ के नीचे आया है. वह बोली कि देश के संविधान में कहां लिखा है कि मैं कहीं जाऊंगी तो पूछ कर जाऊं और आगे भी कि यह कहां लिखा है कि चाय रोज मैं ही बना कर दूंगी. और संवैधानिक जानकारी लो, काम आएगी कि, संविधान में पति द्वारा चाय बना कर पत्नी को पिलाने की कोई रोक नहीं है? सो, तुम्हें तो अपनी चाय के साथ ही एक अदद चाय मेरे लिए भी बना कर थर्मस में रख देनी थी.

मैं अब निरुत्तर था. आप के पास कोई उपाय हो तो बताएं संविधान के घेरे से निकलने का. वैसे, आप की भी स्थिति मेरे से कम बदतर नहीं होगी, यह मैं जानता हूं, फिर भी आप से पूछ रहा हूं.

Hindi Story 2025 : ताजी कलियों का गजरा

Hindi Story 2025 :  दफ्तर से छुट्टी होते ही अमित बाहर निकला. पर उसे घर जाने की जल्दी नहीं थी, क्योंकि घर का कसैला स्वाद हमेशा उस के मन को बेमजा करता रहता था.

अमित की घरेलू जिंदगी सुखद नहीं थी. बीवी बातबात पर लड़ती रहती थी. उसे लगता था कि जैसे वह लड़ने का बहाना ढूंढ़ती रहती है, इसीलिए वह देर रात को घर पहुंचता, जैसेतैसे खाना खाता और किसी अनजान की तरह अपने बिस्तर पर जा कर सो जाता.

वैसे, अमित की बीवी देखने में बेहद मासूम लगती थी और उस की इसी मासूमियत पर रीझ कर उस ने शादी के लिए हामी भरी थी. पर उसे क्या पता था कि उस की जबान की धार कैंची से भी ज्यादा तेज होगी.

केवल जबान की बात होती तो वह जैसेतैसे निभा भी लेता, पर वह शक्की भी थी. उस की इन्हीं दोनों आदतों से तंग हो कर अमित अब ज्यादा से ज्यादा समय घर से दूर रहना चाहता था.

सड़क पर चलते हुए अमित सोच रहा था, ‘आज तो यहां कोई भी दोस्त नहीं मिला, यह शाम कैसे कटेगी? अकेले घूमने से तो अकेलापन और भी बढ़ जाता है.’

धीरेधीरे चलता हुआ अमित चौराहे के एक ओर बने बैंच पर बैठ गया और हाथ में पकड़े अखबार को उलटपलट कर देखने लगा, तभी उस के कानों में आवाज आई. ‘‘गजरा लोगे बाबूजी. केवल 10 रुपए का एक है.’’ अमित ने बगैर देखे ही इनकार में सिर हिलाया. पर उसे लगा कि गजरे वाली हटी नहीं है.

अमित ने मुंह फेर कर देखा. एक लड़की हाथ में 8-10 गजरे लिए खड़ी थी और तरस भरे लहजे में गजरा खरीदने के लिए कह रही थी.

अमित ने फिर कहा, ‘‘नहीं चाहिए. और गजरा किस के लिए लूं?’’

लड़की को कुछ उम्मीद बंधी. वह बोली, ‘‘किसी के लिए भी सही, एक ले लो बाबूजी. अभी तक एक भी नहीं बिका है. आप के हाथ से ही बोहनी होगी.’’

अमित ने गजरे और गजरे वाली को ध्यान से देखा. मैलीकुचैली मासूम सी लड़की खड़ी थी, पर उस की आंखें चमकीली थीं.

‘‘लाओ, एक दे दो,’’ अमित ने गजरों की ओर देखते हुए कहा. लड़की ने एक गजरा अमित के आगे बढ़ाया और उस ने जेब से 20 रुपए का नोट निकाल कर उसे दे दिया.

‘‘खुले पैसे तो नहीं हैं. यह पहली ही बिक्री है.’’

अमित ने एक पल रुक कर उस से कहा, ‘‘लाओ, एक और गजरा दे दो. 20 रुपए पूरे हो जाएंगे.’’

लड़की ने खुश हो कर एक और गजरा उसे दे दिया.

जब वह जाने लगी, तो अमित ने कहा, ‘‘जरा ठहरो, मैं 2 गजरों का क्या करूंगा? एक तुम ले लो. अपने बालों में लगा लेना,’’ अमित ने धीरे से मुसकरा कर गजरा उस की ओर बढ़ाया.

लड़की का चेहरा शर्म से लाल हो उठा. अमित को उस की आंखें बहुत काली और पलकें बहुत लंबी लगीं. तभी वह संभला और मुसकरा कर बोला, ‘‘लो, रख लो. मैं ने तो यों ही कहा था. अगर बालों में नहीं लगाना, तो किसी को बेच देना या फुटकर पैसे मिल जाएं, तो 10 रुपए वापस कर जाना.’’

लड़की ने उस गजरे को ले लिया और धीरेधीरे कदम बढ़ाते हुए वहां से चली गई. अमित कुछ देर वहीं बैठा रहा, फिर उठ कर इधरउधर घूमता रहा. जब अकेले दिल नहीं लगा, तो घर की ओर चल दिया.

जब वह घर पहुंचा, तो देखा कि बीवी पतीले में जोरजोर से कलछी घुमा रही थी.

अमित चुपचाप अपने कमरे में चला गया. कपड़े उतारते समय उसे गजरे का खयाल आया, तो उस ने सोचा कि जेब में ही पड़ा रहने दे. पर नहीं, बीवी ने देख लिया तो सोचेगी कि पता नहीं किसे देने के लिए खरीदा है. उस ने सोचा कि क्यों न जेब से निकाल कर कहीं और रख दिया जाए.

अमित के कदमों की आहट सुनते ही बीवी उठ खड़ी हुई थी. वह शाम से ही गुस्से से भरी बैठी थी कि आज तो इस का फैसला हो कर ही रहेगा कि वह क्यों देर से घर आता है. क्या इसी तरह जीने के लिए वह उसे ब्याह कर लाया है.

जब वह रसोई से बाहर आई, तो अमित के हाथ में गजरा देख कर एक पल के लिए ठिठक कर खड़ी हो गई.

हड़बड़ी में अमित गजरे वाला हाथ आगे बढ़ा कर बोला, ‘‘यह गजरा… यों ही ले आया हूं.’’

बीवी ने आगे बढ़ कर गजरा ले लिया, उसे सूंघा और फिर आईने के सामने खड़ी हो कर अपने जूड़े पर बांधने लगी. अमित सबकुछ अचरज भरी नजरों से देखता रहा.

तभी बीवी ने कहा, ‘‘खूब महकता है. सारा कमरा खुशबू से भर गया है. ताजा कलियों का बना लगता है.’’

‘‘हां, बिलकुल ताजा कलियों का है. तभी तो सोचा कि लेता चलूं.’’

कई दिनों के बाद उस दिन अमित ने गरमगरम भोजन और बीवी की ठंडी बातों का स्वाद चखा. दूसरे दिन वह शाम को छुट्टी होने पर दफ्तर से निकला, तो उस के साथ एक दोस्त भी था. दफ्तर में काम करते समय अमित ने सोचा था कि आज सीधे घर चला जाएगा, पर दोस्त के मिलने पर घर जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता था.

दोनों दोस्तों ने पहले एक रैस्टोरैंट में चाय पी, फिर वे बाजार में घूमते रहे. आखिर में वे समुद्र के किनारे जा बैठे. शाम को सूरज के डूबने की लाली से सागर में कई रंग दिख रहे थे.

अमित का ध्यान टूटा. वही कल वाली लड़की उस के सामने खड़ी गजरा लेने के लिए कह रही थी. अमित ने लड़की से गजरा ले लिया.

दोस्त ने कुछ हैरान हो कर कहा, ‘‘लगता है, भाभी आजकल खुश हैं. खूब गजरे खरीद रहे हो.’’

अमित मुसकराया, ‘‘बस यों ही खरीद लिया है. अब चलें, काफी देर हो गई है.’’

अमित घर पहुंचा, तो उस की बीवी जैसे उस के ही इंतजार में बैठी थी. वह बोली, ‘‘आज तो बड़ी देर कर दी आप ने. सोच रही थी, जरा बाजार घूमने चलेंगे. आते हुए शीला के घर भी हो आएंगे.’’

अमित ने बगैर कुछ बोले ही जेब से गजरा निकाल कर उस की ओर बढ़ाया. बीवी ने बड़े चाव से गजरा लिया और सूंघा. फिर आईने के सामने खड़ी हो कर उसे जूड़े पर बांधने लगी.

अमित ने कपड़े उतारे, तो बीवी ने कपड़े ले कर सलीके से खूंटी पर टांग दिए. फिर तौलिया और पाजामा देते हुए वह बोली, ‘‘हाथमुंह धो लो. मैं रोटी बनाती हूं, गरमगरम खा लो, फिर बाजार चलेंगे.’’

अमित समझ नहीं पा रहा था कि बीवी में यह बदलाव कैसे आ गया. गजरा तो मामूली सी चीज है. कोई और ही बात होगी. दिन बीतने लगे. अब अमित शाम को जल्दी घर चला आता. बीवी उसे देख कर खुश होती. जिंदगी ने एक नया रुख ले लिया था. अमित को लग रहा था कि बीवी में हर रोज बदलाव आ रहा है. उसे अपने में भी कुछ बदलाव होता महसूस हो रहा था.

अमित दफ्तर से घर आते समय एक दिन भी बीवी के लिए गजरा लेना नहीं भूला था. अब तो यह उस की आदत ही बन गई थी. वैसे तो गजरे वाली और भी लड़कियां वहां होती थीं, पर अमित हमेशा उसी लड़की से गजरा खरीदता, जिस ने उसे पहले दिन गजरा दिया था.

एक दिन अमित चौक में बैठा सामने की इमारत को देख रहा था कि गजरे वाली लड़की आई. अमित ने रोज की तरह उस के हाथ से गजरा ले लिया. पैसे ले कर वह लड़की वहीं खड़ी रही.

अमित ने देखा, उस के चेहरे पर संकोच था, जैसे वह कुछ कहना चाहती है.

अमित ने उस की झिझक दूर करने के लिए पूछा, ‘‘कितने बिक गए अब तक?’’

‘‘4 बिक गए हैं. अभीअभी आई हूं. पर बाबूजी, आप के हाथ से बोहनी होने पर देखतेदेखते ही बिक जाते हैं.’’

‘‘फिर तो सब से पहले मुझे ही बेचा करो,’’ अमित ने कहा.

‘‘कभीकभी तो आप बहुत देर से आते हैं,’’ लड़की शिकायती लहजे में बोली.

अमित कुछ देर तक चुप रहा, फिर बोला, ‘‘कहां रहती हो?’’

लड़की ने बताया कि वह अपनी अंधी दादी के साथ एक झोंपड़ी में रहती है. झोंपड़ी के सामने 2 चमेली के पौधे हैं, जिन के फूलों से वह उस के लिए खास गजरा बनाती है.

‘‘अच्छा,’’ अमित बोला.

लड़की का चेहरा लाज से लाल हो गया. वह एक पल को चुप रही, फिर बोली, ‘‘तुम रोज गजरा खरीदते हो, इस का करते क्या हो?’’

अमित मुसकराया. फिर कुछ कहतेकहते वह चुप हो गया.

आखिर लड़की ने कहा, ‘‘अच्छा, मैं जाती हूं.’’ और अमित उसे तेज कदमों से जाते हुए देखता रहा.

अब अमित की अधिकतर शामें घर में ही बीतने लगी थीं. दोस्त शिकायत करते कि अब वह बहुत कम मिलता है, पर वह खुश भी था कि उस की घरेलू जिंदगी सुखद बन गई थी.

एक दिन अमित की बीवी ने उस के साथ सिनेमा देखने का मन बनाया. वह दोपहर को उस के दफ्तर पहुंची और दोनों सिनेमा देखने चल पड़े. सिनेमा से निकलने पर बीवी ने कहा, ‘‘चलो, आज सागर के किनारे चलते हैं. एक अरसा बीत गया इधर आए हुए.’’

वहां घूमते हुए अमित को गजरे वाली लड़की दिखाई दी. वह उस की तरफ ही आ रही थी. उस के हाथ में एक ही गजरा था, जो कलियों के बजाय फूलों का बना हुआ था. लड़की के पास आने पर अमित ने कहा, ‘‘मैं हमेशा इसी लड़की से गजरा लिया करता हूं, क्योंकि यह मेरे लिए खासतौर पर मोटीमोटी कलियों का गजरा बना कर लाती है.’’ बीवी ने तीखी नजरों से लड़की को देखा, तो लड़की उस के सामने आंखें न उठा सकी.

गजरा लेने के लिए अमित ने हाथ बढ़ाया, तो लड़की ने हाथ का गजरा देने के बजाय अपनी साड़ी के पल्लू में बंधा एक गजरा निकाला. मोटीमोटी कलियों का बहुत बढि़या गजरा, जैसा कि वह रोज अमित को देती थी. अमित का चेहरा खिल उठा, पर उस की बीवी तीखी नजरों से उस लड़की को देख रही थी.

अचानक अमित का ध्यान बीवी की ओर गया तो चौंका. उस ने फौरन लड़की के हाथ से गजरा ले लिया और जेब से पैसे निकाल कर उस की ओर बढ़ाए,

पर लड़की ने पैसे न लेते हुए उदास लहजे में कहा, ‘‘पिछली बार के बकाया पैसे मुझे आप को देने थे. हिसाब पूरा हो गया,’’ इतना कह कर वह एक तरफ को चली गई.

अमित की बीवी ने वहीं खड़ेखड़े जूड़े पर गजरा बांधा और अमित को दिखाते हुए पूछा, ‘‘देखो तो ठीक तरह से बंधा है न?’’

‘‘हां,’’ अमित ने पत्नी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘आज के जूड़े में तो तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो.’’

‘‘खूबसूरत चीज हर जगह ही खूबसूरत लगती है,’’ पत्नी ने शोखी से कहा और मुसकराई, पर अमित के होंठों पर मुसकराहट न थी.

Happy New Year 2025 : मिस्‍टर हैलमेटधारी

Happy New Year 2025 :अगर कोई आप से पूछे कि आप हैलमैट क्यों पहनते हैं? तो आप का सीधा सा जवाब होगा कि हादसे के समय सिर को बचाने के लिए हैलमैट पहनते हैं. मगर हैलमैट पहनने की केवल यही एक वजह नहीं है. इस की जानकारी मुझे अपने दोस्त गिरधारीजी से मिली.

एक दिन मैं यों ही गिरधारीजी के घर गया. वे घर पर नहीं थे. भाभीजी ने आदर से मुझे बैठाया. अभी हम चायपानी कर ही रहे थे, इतने में गिरधारीजी घर आ गए. स्कूटर बाहर खड़ा कर हैलमैट लगाए हुए ही वे अंदर चले आए. उन्होंने मुझे हैलमैट को उतार कर नमस्कार किया, यह सब मुझे बड़ा अटपटा लगा.

पूछने पर वे कहने लगे, ‘‘हैलमैट के बहुत फायदे हैं. जैसे अगर आप दफ्तर से देर से घर आए हैं. आप की बीवी खरीदारी पर जाने के लिए कब से आप का इंतजार करतेकरते थक गई है, तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर होगा ही. जैसे ही आप घर में दाखिल होंगे, बीवी की बेलनरूपी मिसाइल से केवल हैलमैट ही आप को बचा सकता है और कोई नहीं.

‘‘अगर दफ्तर जाने में देर हो जाए. घबराने की जरूरत नहीं है. आप आराम से हैलमैट लगाए हुए ही दफ्तर के अंदर जाएं. बौस पहले आप को देखेगा, फिर घड़ी को देख कर चीखेगा, मगर आप को हैलमैट के चलते कुछ सुनाई नहीं देगा.

‘‘फिर भी बौस का गुस्सा न उतरा हो, तो वह केबिन में बुलाएगा. फिर आप कहिएगा, ‘सर, हैलमैट पहने था, इसीलिए आप की बातें सुन न सका.’

‘‘अगर आप की बीवी दफ्तर जाते समय रोज कभी सब्जी, कभी राशन लाने को कहे, तो आप भी परेशान हो जाते होंगे. दिनभर दफ्तर के पकाऊ काम से थके होने के चलते खरीदारी करना बड़ा सिरदर्द होता है. इस दर्द का इलाज यह हैलमैट ही है.

‘‘बीवी जब टमाटर मंगाए, तो घर में आलू ले जाइए. मिर्च की जगह नीबू खरीदें. बीवी गुस्सा होगी. कहना कि हैलमैट पहने हुए था. सुनाई नहीं दिया होगा. दूसरे दिन से बीवी आप से सब्जी मंगाना बंद कर देगी.

‘‘अगर आप के दोस्त आप से उधार मांगने के लिए दफ्तर के बाहर खड़े हो कर आप को आवाज दें. आप देख कर भी उन्हें अनदेखा कर दें. जब कोई उलाहना दे, तो कहें कि दोस्त, हैलमैट पहने था. सुनाई नहीं दिया होगा. इस तरह हैलमैट आप के रुपयों को डूबने से बचा लेता है.

‘‘अगर आप बीवी के साथ सड़क पर घूम रहे हैं, तो अगलबगल ताकझांक करने पर बीवी का कंट्रोल होता है. इस का भी अचूक उपाय है. हैलमैट पहन कर आप मनचाही जगह ताकझांक करो, कोई आप को पकड़ नहीं पाएगा.’’

मैं गिरधारीजी की बातों से हैरान था. शायद इसीलिए कहा गया है, ‘हैलमैट में गुण बहुत हैं, सदा रखिए संग…’

Happy New Year 2025 : कभी अलविदा न कहना

Happy New Year 2025 :  डलास (टैक्सास) में लीना से रीवा की दोस्ती बड़ी अजीबोगरीब ढंग से हुई थी. मार्च महीने के शुरुआती दिन थे. ठंड की वापसी हो रही थी. प्रकृति ने इंद्रधनुषी फूलों की चुनरी ओढ़ ली थी. घर से थोड़ी दूर पर झील के किनारे बने लोहे की बैंच पर बैठ कर धूप तापने के साथ चारों ओर प्रकृति की फैली हुई अनुपम सुंदरता को रीवा अपलक निहारा करती थी. उस दिन धूप खिली हुई थी और उस का आनंद लेने को झील के किनारे के लिए दोपहर में ही निकल गई.

सड़क किनारे ही एक दक्षिण अफ्रीकी जोड़े को खुलेआम कसे आलिंगन में बंधे प्रेमालाप करते देख कर वह शरमाती, सकुचाती चौराहे की ओर तेजी से आगे बढ़ कर सड़क पार करने लगी थी कि न जाने कहां से आ कर दो बांहों ने उसे पीछे की ओर खींच लिया था.

तेजी से एक गाड़ी उस के पास से निकल गई. तब जा कर उसे एहसास हुआ कि सड़क पार करने की जल्दबाजी में नियमानुसार वह चारों दिशाओं की ओर देखना ही भूल गई थी. डर से आंखें ही मुंद गई थीं. आंखें खोलीं तो उस ने स्वयं को परी सी सुंदर, गोरीचिट्टी, कोमल सी महिला की बांहों में पाया, जो बड़े प्यार से उस के कंधों को थपथपा रही थी. अगर समय पर उस महिला ने उसे पीछे नहीं खींचा होता तो रक्त में डूबा उस का शरीर सड़क पर क्षतविक्षत हो कर पड़ा होता.

सोच कर ही वह कांप उठी और भावावेश में आ कर अपनी ही हमउम्र उस महिला से चिपक गई. अपनी दुबलीपतली बांहों में ही रीवा को लिए सड़क के किनारे बने बैंच पर ले जा कर उसे बैठाते हुए उस की कलाइयों को सहलाती रही.

‘‘ओके?’’ रीवा से उस ने बड़ी बेसब्री से पूछा तो उस ने अपने आंचल में अपना चेहरा छिपा लिया और रो पड़ी. मन का सारा डर आंसुओं में बह गया तो रीवा इंग्लिश में न जाने कितनी देर तक धन्यवाद देती रही लेकिन प्रत्युत्तर में वह मुसकराती ही रही. अपनी ओर इशारा करते हुए उस ने अपना परिचय दिया. ‘लीना, मैक्सिको.’ फिर अपने सिर को हिलाते हुए राज को बताया, ‘इंग्लिश नो’, अपनी 2 उंगलियों को उठा कर उस ने रीवा को कुछ बताने की कोशिश की, जिस का मतलब रीवा ने यही निकाला कि शायद वह 2 साल पहले ही मैक्सिको से टैक्सास आई थी. जो भी हो, इतने छोटे पल में ही रीवा लीना की हो गई थी.

लीना भी शायद बहुत खुश थी. अपनी भाषा में इशारों के साथ लगातार कुछ न कुछ बोले जा रही थी. कभी उसे अपनी दुबलीपतली बांहों में बांधती, तो कभी उस के उड़ते बालों को ठीक करती. उस शब्दहीन लाड़दुलार में रीवा को बड़ा ही आनंद आ रहा था. भाषा के अलग होने के बावजूद उन के हृदय प्यार की अनजानी सी डोर से बंध रहे थे. इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद रीवा के पैरों में चलने की शक्ति ही कहां थी, वह तो लीना के पैरों से ही चल रही थी.

कुछ दूर चलने के बाद लीना ने एक घर की ओर उंगली से इंगित करते हुए कहा, हाउस और रीवा का हाथ पकड़ कर उस घर की ओर बढ़ गई. फिर तो रीवा न कोई प्रतिरोध कर सकी और न कोई प्रतिवाद. उस के साथ चल पड़ी. अपने घर ले जा कर लीना ने स्नैक्स के साथ कौफी पिलाई और बड़ी देर तक खुश हो कर अपनी भाषा में कुछकुछ बताती रही.

मंत्रमुग्ध हुई रीवा भी उस की बातों को ऐसे सुन रही थी मानो वह कुछ समझ रही हो. बड़े प्यार से अपनी बेटियों, दामादों एवं 3 नातिनों की तसवीरें अश्रुपूरित नेत्रों से उसे दिखाती भी जा रही थी और धाराप्रवाह बोलती भी जा रही थी. बीचबीच में एकाध शब्द इंग्लिश के होते थे जो अनजान भाषा की अंधेरी गलियारों में बिजली की तरह चमक कर राज को धैर्य बंधा जाते थे.

बच्चों को याद कर लीना के तनमन से अपार खुशियों के सागर छलक रहे थे. कैसा अजीब इत्तफाक था कि एकदूसरे की भाषा से अनजान, कहीं 2 सुदूर देश की महिलाओं की एक सी कहानी थी, एकसमान दर्द थे तो ममता ए दास्तान भी एक सी थी. बस, अंतर इतना था कि वे अपनी बेटियों के देश में रहती थी और जब चाहा मिल लेती थी या बेटियां भी अपने परिवार के साथ हमेशा आतीजाती रहती थीं.

रीवा ने भी अमेरिका में रह रही अपनी तीनों बेटियों, दामादों एवं अपनी 2 नातिनों के बारे में इशारों से ही बताया तो वह खुशी के प्रवाह में बह कर उस के गले ही लग गई. लीना ने अपने पति से रीवा को मिलवाया. रीवा को ऐसा लगा कि लीना अपने पति से अब तक की सारी बातें कह चुकी थी. सुखदुख की सरिता में डूबतेउतरते कितना वक्त पलक झपकते ही बीत गया. इशारों में ही रीवा ने घर जाने की इच्छा जताई तो वह उसे साथ लिए निकल गई.

झील का चक्कर लगाते हुए लीना रीवा को उस के घर तक छोड़ आई. बेटी से इस घटना की चर्चा नहीं करने के लिए रास्ते में ही रीवा लीना को समझा चुकी थी. रीवा की बेटी स्मिता भी लीना से मिल कर बहुत खुश हुई. जहां पर हर उम्र को नाम से ही संबोधित किया जाता है वहीं पर लीना पलभर में स्मिता की आंटी बन गई. लीना भी इस नए रिश्ते से अभिभूत हो उठी.

समय के साथ रीवा और लीना की दोस्ती से झील ही नहीं, डलास का चप्पाचप्पा भर उठा. एकदूसरे का हाथ थामे इंग्लिश के एकआध शब्दों के सहारे वे दोनों दुनियाजहान की बातें घंटों किया करते थे.

घर में जो भी व्यंजन रीवा बनाती, लीना के लिए ले जाना नहीं भूलती. लीना भी उस के लिए ड्राईफू्रट लाना कभी नहीं भूली. दोनों हाथ में हाथ डाले झील की मछलियों एवं कछुओं को निहारा करती थीं. लीना उन्हें हमेशा ब्रैड के टुकड़े खिलाया करती थी. सफेद हंस और कबूतरों की तरह पंक्षियों के समूह का आनंद भी वे दोनों खूब उठाती थीं.

उसी झील के किनारे न जाने कितने भारतीय समुदाय के लोग आते थे जिन के पास हायहैलो कहने के सिवा कुछ नहीं रहता था.

किसीकिसी घर के बाहर केले और अमरूद से भरे पेड़ बड़े मनमोहक होते थे. हाथ बढ़ा कर रीवा उन्हें छूने की कोशिश करती तो हंस कर नोनो कहती हुई लीना उस की बांहों को थाम लेती थी.

लीना के साथ जा कर रीवा ग्रौसरी शौपिंग वगैरह कर लिया करती थी. फूड मार्ट में जा कर अपनी पसंद के फल और सब्जियां ले आती थी. लाइब्रेरी से भी किताबें लाने और लौटाने के लिए रीवा को अब सप्ताहांत की राह नहीं देखनी पड़ती थी. जब चाहा लीना के साथ निकल गई. हर रविवार को लीना रीवा को डलास के किसी न किसी दर्शनीय स्थल पर अवश्य ही ले जाती थी जहां पर वे दोनों खूब ही मस्ती किया करती थीं.

हाईलैंड पार्क में कभी वे दोनों मूर्तियों से सजे बड़ेबड़े महलों को निहारा करती थीं तो कभी दिन में ही बिजली की लडि़यों से सजे अरबपतियों के घरों को देख कर बच्चों की तरह किलकारियां भरती थीं. जीवंत मूर्तियों से लिपट कर न जाने उन्होंने एकदूसरे की कितनी तसवीरें ली होंगी.

पीले कमल से भरी हुई झील भी 10 साल की महिलाओं की बालसुलभ लीलाओं को देख कर बिहस रही होती थी. झील के किनारे बड़े से पार्क में जीवंत मूर्तियों पर रीवा मोहित हो उठी थी. लकड़ी का पुल पार कर के उस पार जाना, भूरे काले पत्थरों से बने छोटेबड़े भालुओं के साथ वे इस तरह खेलती थीं मानो दोनों का बचपन ही लौट आया हो.

स्विमिंग पूल एवं रंगबिरंगे फूलों से सजे कितने घरों के अंदर लीना रीवा को ले गई थी, जहां की सुघड़ सजावट देख कर रीवा मुग्ध हो गई थी. रीवा तो घर के लिए भी खाना पैक कर के ले जाती थी. इंडियन, अमेरिकन, मैक्सिकन, अफ्रीका आदि समुदाय के लोग बिना किसी भेदभाव के खाने का लुत्फ उठाते थे.

लीना के साथ रीवा ने ट्रेन में सैर कर के खूब आनंद उठाया था. भारी ट्रैफिक होने के बावजूद लीना रीवा को उस स्थान पर ले गई जहां अमेरिकन प्रैसिडैंट जौन कैनेडी की हत्या हुई थी. उस लाइब्रेरी में भी ले गई जहां पर उन की हत्या के षड्यंत्र रचे गए थे.

ऐेसे तो इन सारे स्थलों पर अनेक बार रीवा आ चुकी थी पर लीना के साथ आना उत्साह व उमंग से भर देता था. इंडियन स्टोर के पास ही लीना का मैक्सिकन रैस्तरां था. जहां खाने वालों की कतार शाम से पहले ही लग जाती थी. जब भी रीवा उधर आती, लीना चीपोटल पैक कर के देना नहीं भूलती थी.

मैक्सिकन रैस्तरां में रीवा ने जितना चीपोटल नहीं खाया होगा उतने चाट, पकौड़े, समोसे, जलेबी लीना ने इंडियन रैस्तरां में खाए थे. ऐसा कोई स्टारबक्स नहीं होगा जहां उन दोनों ने कौफी का आनंद नहीं उठाया. डलास का शायद ही ऐसा कोई दर्शनीय स्थल होगा जहां के नजारों का आनंद उन दोनों ने नहीं लिया था.

मौल्स में वे जीभर कर चहलकदमी किया करती थीं. नए साल के आगमन के उपलक्ष्य में मौल के अंदर ही टैक्सास का सब से बड़ा क्रिसमस ट्री सजाया गया था. जिस के चारों और बिछे हुए स्नो पर सभी स्कीइंग कर रहे थे. रीवा और लीना बच्चों की तरह किलस कर यह सब देख रही थीं.

कैसी अनोखी दास्तान थी कि कुछ शब्दों के सहारे लीना और रीवा ने दोस्ती का एक लंबा समय जी लिया. जहां भी शब्दों पर अटकती थीं, इशारों से काम चला लेती थीं.

समय का पखेरू पंख लगा कर उड़ गया. हफ्ताभर बाद ही रीवा को इंडिया लौटना था. लीना के दुख का ठिकाना नहीं था. उस की नाजुक कलाइयों को थाम कर रीवा ने जीभर कर आंसू बहाए, उस में अपनी बेटियों से बिछुड़ने की असहनीय वेदना भी थी. लौटने के एक दिन पहले रीवा और लीना उसी झील के किनारे हाथों में हाथ दिए घंटाभर बैठी रहीं. दोनों के बीच पसरा हुआ मौन तब कितना मुखर हो उठा था. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उस की अनंत प्रतिध्वनियां उन दोनों से टकरा कर चारों ओर बिखर रही हों.

दोनों के नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी. शब्द थे ही नहीं कि जिन्हें उच्चारित कर के दोस्ती के जलधार को बांध सकें. प्रेमप्रीत की शब्दहीन सरिता बहती रही. समय के इतने लंबे प्रवाह में उन्हें कभी भी एकदूसरे की भाषा नहीं जानने के कारण कोई असुविधा हुई हो, ऐसा कभी नहीं लगा. एकदूसरे की आंखों में झांक कर ही वे सबकुछ जान लिया करती थीं. दोस्ती की अजीब पर अतिसुंदर दास्तान थी. कभी रूठनेमनाने के अवसर ही नहीं आए. हंसी से खिले रहे.

एकदूसरे से विदा लेने का वक्त आ गया था. लीना ने अपने पर्स से सफेद धवल शौल निकाल कर रीवा को उठाते हुए गले में डाला, तो रीवा ने भी अपनी कलाइयों से रंगबिरंगी चूडि़यों को निकाल लीना की गोरी कलाइयों में पहना दिया जिसे पहन कर वह निहाल हो उठी थी. मूक मित्रता के बीच उपहारों के आदानप्रदान देख कर निश्चय ही डलास की वह मूक मगर चंचल झील रो पड़ी होगी.

भीगी पलकों एवं हृदय में एकदूसरे के लिए बेशुमार शुभकामनाओं को लिए हुए दोनों ने एकदूसरे से विदाई तो ली पर अलविदा नहीं कहा.

Sports : राइफल की रानी निशानेबाज सुमा शिरूर का इंटरव्‍यू

Sports : सुमा शिरूर भारतीय निशानेबाज हैं. वर्तमान में सुमा भारतीय जूनियर राइफल शूटिंग टीम की कोच हैं. सुमा शूटिंग में अबतक कई मैडल जीत चुकी हैं, वहीं उन्हें द्रोणाचार्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.

जिंदगी में अगर कुछ कर दिखाने की हिम्मत आप में हैं, तो कितनी भी मुश्किलें रास्ते में आए, उसे पार कर अपनी मंजिल पा लेते हैं. ऐसा ही कर दिखाया है, कर्नाटक राज्य के चिक्काबल्लापुर में जन्मीं पूर्व भारतीय निशानेबाज सुमा शिरुर. वे 30 साल से शूटिंग के क्षेत्र में एक प्लेयर और अब कोच के रूप में बिता रही हैं.

वर्ष 1993 में महाराष्ट्र स्टेट शूटिंग चैम्पियनशिप से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली सुमा शिरूर ने साल 2002 और साल 2006 एशियन गेम्स में रजत और कांस्य पदक जीता है. साथ ही कौमनवेल्थ गेम्स में एक गोल्ड मैडल समेत 3 पदक जीते. उन्होंने 10 मीटर एयर राइफल संयुक्त विश्व रिकौर्ड बनाया हैं, उन्होंने क्वालिफिकेशन राउंड में अधिकतम 400 अंक बनाए हैं, जो उन्होंने 2004 एशियाई शूटिंग चैंपियनशिप कुआलालंपुर में हासिल किया था. सोमा के लिए Sports एक पैशन है.

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अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित

वर्ष 2003 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. आज वह भारतीय जूनियर राइफल शूटिंग टीम की ‘हाई परफौरमेंस कोच’ हैं. वर्ष 2020 पैरालिंपिक महिलाओं की SH1 स्पर्धा, 10 मीटर राइफल में स्वर्ण और महिलाओं की SH1 स्पर्धा, 50 मीटर 3 पोजिशन राइफल कांस्य पदक विजेता अवनि लेखरा की कोच भी हैं. 30 नवंबर 2022 को उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
आप को बता दें कि विनम्र, हंसमुख, धैर्यवान सुमा शिरुर ने नवी मुंबई से अपनी शिक्षा पूरी की. उन्होंने रसायन विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है. अपने स्नातक पाठ्यक्रम के दौरान, वह राष्ट्रीय कैडेट कोर का हिस्सा थीं. उसी दौरान उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें शूटिंग में रुचि है और उन्होंने द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता संजय चक्रवर्ती और महाराष्ट्र राइफल एसोसिएशन के श्री बीपी बाम की निगरानी में इस खेल को सीखना शुरू किया और कामयाबी हासिल की.
वर्ष 2018 से 2024 तक सुमा ने एक कोच के रूप में काम किया है, जिस में इस वर्ष पेरिस ओलंपिक में मनु भाकर ने 10 मीटर और 25 मीटर पिस्टल निशानेबाजी स्पर्धाओं में दो कांस्य पदक जीते. पैरालिंपिक के दौरान, निशानेबाज अवनि लेखरा ने पेरिस में महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच1 स्पर्धा में अपना खिताब बरकरार रखा है और इस तरह वह पैरालिंपिक में दो स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं हैं.
अभी सुमा शूटिंग कोच से ब्रेक ले कर परिवार के साथ समय बिता रही है और खुद शूटिंग की प्रैक्टिस कर रही हैं, ताकि अपने खिलाड़ियों को खेल के नए तकनीक से परिचय करवा सकें.

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Sports में मिलती है खुशी

खिलाड़ियों का ओलंपिक में जीतने को ले कर सुमा कहती हैं, “शूटिंग में मैं ने ही ओलंपिक और पैरालिंपिक में बच्चों को गाइड किया है. मैं खिलाड़ी अवनी लेखरा की पर्सनल कोच हूं, उन्होंने टोकियो पैरालिंपिक में गोल्ड और ब्रौन्ज मैडल जीता है. पैरिस में भी गोल्ड जीता है.
“एक कोच के रूप में मेरे लिए ये बहुत ही संतोष और खुशी की बात है. sports के लिए खिलाड़ी जितना सैक्रिफाइस करता है, उतना कोच को भी करना पड़ता है. प्रैक्टिस के अलावा खिलाड़ियों के इमोशन भी ऊपरनीचे होते रहते हैं. लगातार गाइडेंस, जिम्मेदारी और एथलीट का ट्रस्ट कोच पर होता है, ऐसे मैं उन्हें उन के गोल तक पहुंचा सकूं. इसे मैँ शब्दों में बयां नहीं कर सकती.”

अधिक चुनौती

सुमा कहती हैं, “सीखने और सिखाने में बहुत अधिक अंतर होता है, जब हम एथलीट होते हैं तो सफलता और असफलता की जिम्मेदारी मेरी होती है, जबकि एक कोच बनने पर चुनौती अधिक होती है, क्योंकि ऐसे में मुझे एकदूसरे खिलाड़ी को समझना, सुनना और धैर्य रखना पड़ता है, ताकि सामने वाले खिलाड़ी का मूड और धैर्य को समझा जा सकें.
“कोच के तौर पर मैं ने खुद को बहुत बदला है, धीरज अपने अंदर लाई हूं. सब से अधिक चुनौती एक शूटर को कोच करना होता है, जिस में सही कौर्डिनेशन होना आवश्यक होता है. इस में समय लगता है, लेकिन अगर शूटर ने जल्दी कोई प्रतियोगिता खेली और हार गया, तो उस का मौरल टूट जाता है. खुद को दोषी मानने लगता है. उस फेज से उन्हें निकालने और खुद पर विश्वास बनाए रखना आसान नहीं होता. बहुत चुनौतीपूर्ण होता है.”

 

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स्वीकारें लर्निंग फेज को

इतनी बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद हमारे देश के खिलाड़ी अधिक ओलंपिक मैडल नहीं ला पाते, जबकि छोटेछोटे देश ओलंपिक में गोल्ड मैडल लाते हैं, इस की वजह के बारे में सुमा बताती हैं कि इस के लिए पूरे चक्र को देखना पड़ेगा. देखा जाए तो 4 साल के इस चक्र में पिछले वर्षों से शूटिंग में खिलाड़ियों ने अच्छा प्रदर्शन किया है. ऐसे में लगातार विकास होने की जरूरत है, बैठ कर इंतजार करना ठीक नहीं, सभी को कन्सटेंट ग्रोथ को बनाए रखना पड़ता है, हर दिन नई सीख मिलती है, जिस के लिए फ्लैक्सिबल होना जरूरी है और बदलाव को खुद में लाना पड़ता है, इसे ओपन माइंड के साथ अपनाना पड़ता है. कभीकभी उस बदलाव को खिलाड़ी स्वीकार नहीं कर पाते, जबकि एक खिलाड़ी को हमेशा लर्निंग फेस में रहना जरूरी है.
वह कहती हैं, “हमारा देश काफी इमोशनल है, जिस का प्रभाव खिलाड़ियों पर पड़ता है और वे मैडल के करीब पहुंच कर भी कामयाब नहीं हो पाते, जबकि छोटेछोटे देश मैडल ले आते हैं. इस की वजह उन देशों के बच्चों में बचपन से अधिक आत्मविश्वास का होना है, जिस की कमी हमारे देश में है. अभी थोड़ी माइंडसेट बदली है और आगे कुछ अच्छा अवश्य होगा.”

 

पेरैंट्स का सहयोग जरूरी

सुमा कहती हैं, “हमारे देश में कहीं भी उच्च दर्जे की ट्रैनिंग क्लासेस नहीं हैं और किसी बच्चे ने शुरुआत बचपन में किसी खेल को सीखा है, तो उसे वह माहौल आगे चल कर नहीं मिलता. इन ट्रेनिंग सेंटर्स को अच्छा होने की आवश्यकता है, साथ ही अलगअलग खेल में जाने और सीखने का मौका बच्चों को कम उम्र से मिलना चाहिए, तब जा कर स्पोर्टिंग कल्चर होगा, जो नहीं है. इसलिए मातापिता भी उस ओर ध्यान नहीं देते, जबकि उन का सहयोग बहुत जरूरी होता है.”
वह कहती हैं, “मेरे ट्रेनिंग सेंटर में असिस्टेंट कोच भी महिला है, लड़कों की संख्या से मेरे पास लड़कियां ही अधिक आती है. इस के अलावा मेरी एकेडमी के साथ एक प्राइवेट कंपनी ने शूटिंग रेंज का पार्टनरशिप किया है, जिसे ‘गर्ल्स फौर गोल्ड’ नाम दिया गया है. इस प्रोग्राम के तहत 15 से 19 साल की लड़कियों के लिए पूरी स्पौन्सरशिप उन्होंने दिया है, इस में 7 लड़कियों को चुना गया है. इन लड़कियों को इंडिया के लिए मैडल लाने के लिए ट्रेनिंग दी जा रही है.”

Sports में राजनीति ठीक नहीं

इस के आगे सुमा कहती हैं, “राजनीति आजकल हर जगह है, ऐसे में खेल में होना कोई नई बात नहीं है. खेल में राजनीति गलत है, लेकिन खिलाड़ी को उस तरफ ध्यान दिए बिना आगे बढ़ते रहना है, तभी वे कामयाब हो सकते हैं.”

ये भी सही है कि sports के कुछ इक्विप्मन्ट काफी महंगे होते हैं, मसलन तीरंदाजी या शूटिंग दोनों में आम परिवार के बच्चे उसे खरीद नहीं पाते, ऐसे में उन के हुनर को आगे लाना संभव नहीं होता. इस के जवाब में सुमा कहती हैं कि “शुरुआत के स्तर पर उन्हें किसी क्लब से वह इक्विपमेंट मिल जाता है, लेकिन आगे चल कर उन्हें खुद के राइफल की जरूरत पड़ती है, जिस में सरकार के साथसाथ एकेडमी का सहयोग जरूरी है, जिस में सरकार और प्राइवेट संस्था का एक अच्छा कौम्बीनेशन होना चाहिए.
“मेरी एकेडमी के सारे अरेंजमेंट मैं ने अपनी तरफ से किए हैं, ऐसे में अगर सरकार की तरफ से कुछ ग्रांट मिलता है, तो मैं आगे कुछ अधिक अच्छा कर सकती हूं.”

Sports में किससे मिली प्रेरणा

सुमा ने 18 साल की उम्र में राइफल पकड़ी और शूटिंग की शुरुआत की थी. वे कहती हैं, “जब मैं ने शूटिंग की शुरुआत की थी, तो शूटिंग एक ओलंपिक स्पोर्ट है, ये भी पता नहीं था, लेकिन स्पोर्ट्स में मेरी बहुत रुचि थी, स्कूल के हर स्पोर्ट में मैँ भाग लेती थी और बेस्ट स्पोर्ट्स का एवार्ड भी मिला. इस के बाद जब मैं ने कालेज ज्वाइन किया, तो एनसीसी था, उसे मैं ने जौइन किया और वहां मेरे हाथ में बंदूक मिली. मैँ शूटिंग में अच्छा करने लगी थी, तब मेरे सीनियर मुझे महाराष्ट्र स्टेट एसोसिएशन के शूटिंग सेंटर में ले गए. वहां मुझे पता चला कि ये एक ओलिंपिक स्पोर्ट है और इसे करने की प्रेरणा मिली. मेरे मेहनत को देख कर मेरे पेरैंट्स ने सहयोग दिया, जबकि मेरे परिवार के सारे लोग एकेडमिकली बहुत स्ट्रौंग हैं. शादी के बाद मेरे सासससुर और पति का भी पूरा सहयोग मिला है.

पहली कामयाबी और शादी

सुमा हंसती हुई कहती हैं, “मेरी पहली बड़ी अचीवमेंट वर्ष 1995 है, जिस में मुझे कोमनवैल्थ शूटिंग चैंम्पियनशिप में मुझे मैडल मिला और एशियन शूटिंग के लिए चुनी गई. इस तरह साल 1995 में मेरी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई.” सुमा आगे कहती हैं कि “शादी के बाद sports को लेकर  भी परिवार के साथ स्पर्धा में भाग लेना मुश्किल नहीं था, क्योंकि मैँ अपने पति सिद्धार्थ शिरुर को कालेज के समय से जानती थी और मेरी शादी भी साल 1999 में हुई जब मैं ने थोड़ी कामयाबी पा ली थी. पूरा सहयोग होने की वजह से मैँ आगे बढ़ सकी. साल 2001 में बड़ा बेटा हुआ. 2002 में एशियन गेम्स के दौरान बेटा बहुत छोटा था, लेकिन पति और सासससुर ने पूरा सहयोग दिया. 8 महीने के बेटे को ले कर मैँ कौमनवेल्थ गेम्स में गई और मैडल जीता. मेरे लिए यह बहुत बड़ी चुनौती और खुशी रही है.”

निशानेबाज के क्षेत्र में कब आए

sports woman सुमा कहती हैं कि बहुत छोटी उम्र में शूटिंग के क्षेत्र में आना सही नहीं होता, क्योंकि बच्चे का फिजिकल डेवलपमेंट इस खेल के लिए सही होना चाहिए, मिनमम उम्र 10 से 12 साल सही मानी जाती है, लेकिन बच्चे को छोटी उम्र से दूसरे खेलों में भाग लेने की जरूरत होती है, ताकि उन का शारीरिक ग्रोथ सही हो. इस के बाद शूटिंग शुरू कर सकते हैं. उस दौरान एक अच्छा एकेडमिक बैलेन्स होना चाहिए, ताकि पढ़ाई के साथसाथ खेल में भी पूरा मन बच्चा लगा सके, क्योंकि जिस भी खेल को वे चुनते हैं, उस में एक क्वालिटी टाइम और कमिटमेंट देना पड़ता है, जो उन के भविष्य में उन्हें उन के गोल तक पहुंचा सकता है.

रामभद्राचार्य और शंकराचार्य क्यों भड़के Mohan Bhagwat पर

Mohan Bhagwat : तंबाकू बनाने और बेचने वाले ही कैंसर की दवा बनाने लगें तो इसे आप क्या कहेंगे यह आरएसएस प्रमुख के हालिया बयानों से सहज समझा जा सकता है जिसे ले कर संत समाज उन पर भड़का हुआ है जो इशारा यह कर रहा है कि अब हज करने की तुक क्या?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने विगत दिनों एक ऐसा बयान दिया जो चर्चा का विषय बनने के बाद अब हिंदुओं के गले की हड्डी बनता जा रहा है. उन्होंने कहा, “धर्म के नाम पर होने वाले सभी उत्पीड़न और अत्याचार गलतफहमी और धर्म को समझ की कमी के कारण हुए हैं.”
महाराष्ट्र के अमरावती में महानुभाव आश्रम के शताब्दी समारोह में बोलते हुए मोहन भागवत ने कहा, “धर्म महत्वपूर्ण है और इस को उचित शिक्षा दी जानी चाहिए. धर्म का अनुचित और अधूरा ज्ञान अधर्म की ओर ले जाता है.” इस बयान की देशभर में चर्चा है इस के अलगअलग अर्थ निकाले जा रहे हैं लेकिन सब से बड़ा सवाल है कि मोहन भागवत को ऐसा क्यों कहना पड़ा है और इस के भीतर का अर्थ क्या है यह समझना आवश्यक है.
दरअसल, मोहन भागवत के अनुसार, धर्म हमेशा से अस्तित्व में रहा है और सब कुछ इस के अनुसार चलता है, इसीलिए इसे सनातन कहा जाता है.
उन्होंने यह भी कहा कि धर्म का आचरण ही धर्म की रक्षा है और अगर धर्म को सही तरीके से समझा जाए तो इस से समाज में शांति, सद्भाव और समृद्धि आ सकती है.
यह बयान एक महत्वपूर्ण समय पर आया है, जब देशभर में धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं. उत्तर प्रदेश हो या छत्तीसगढ़ अथवा जम्मूकश्मीर, मणिपुर, असम हर एक राज्य में माहौल विषाक्त होता चला जा रहा है. जो आने वाले समय में देश में अनेक संकट और विषमता है पैदा कर सकता है इस दिशा में सत्ता और समाज के अगुवा लोगों को सद्भावना का संदेश देना होगा.

भड़का संत समाज

मोहन भागवत की मंशा बहुत साफसुथरी या स्पष्ट थी इस में शक है लोग किसी नतीजे पर पहुंच पाते इस के पहले ही संत समाज ने धर्म के असल माने बता दिए कि धर्म का शांति, सद्भाव या भाईचारे से कोई लेनादेना नहीं है इस का असल मकसद लोगों के दिलोदिमाग और व्यक्तिगत सामाजिक जिंदगी पर शासन करना है जिस से वे पूजापाठी बने रह कर दानदक्षिणा के कारोबार के ग्राहक बने रहें और जो इस के आड़े आएगा उसे सबक सिखाने में धर्म के ठेकेदार हिचकिचाएंगे नहीं फिर भले ही वे धर्म का मतलब सिखाते रहने वाले मोहन भागवत ही क्यों न हों.

लोग भागवत से सहमत होने की वजह ढूंढ पाते इस से पहले ही साधुसंतों ने उन्हें अपने निशाने पर लेना शुरू कर दिया. ताजा बयान वैष्णव संत रामभद्राचार्य का है जिन्होंने भागवत से सहमत होने से इनकार करते हुए दो टूक कहा कि हम भागवत के अनुशासक हैं वे हमारे अनुशासक नहीं हैं जो भागवत की बात को हिंदू या हम मानें. इस के पहले एक शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने तो और भी तीखे अंदाज में कहा था कि जब उन्हें सत्ता हासिल करना थी तब वह मंदिरमंदिर करते थे अब सत्ता मिल गई तो मंदिर नहीं ढूंढने की सलाह दे रहे हैं.

देखा जाए तो ये संत गलत कुछ नहीं कह रहे हैं जिस का सार यह है कि अब हज करने क्यों जाया जा रहा है? आरएसएस ने अपने उद्भव से ही हिंदुओं को भड़काने का काम किया है और अब अहिंसा परमोधर्म जैसे आउटडेटेड उपदेश दे रहा है. अब बबूल बोकर गुलाब के फूल तो मिलने से रहे.

खास मकसद से दिए गए बयान के बाद भी मोहन भागवत की बातों का असर निम्नलिखित हो सकता है:

मोहन भागवत के बयान से लोगों को धर्म के प्रति नई सोच का आगाज हो सकता है. ऐसा सोचना भी बेईमानी है. वे धर्म को एक नए दृष्टिकोण से देख सकते हैं यह सोचने की भी कोई वजह नहीं और न ही वे इस के मूलसिद्धांतों को भूलने का प्रयास कर सकते हैं. ये बातें भी मन बहलाऊ ही हैं कि मोहन भागवत के बयान से सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा मिल सकता है. लोग धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार को रोकने के लिए एकजुट हो सकते हैं और समाज में शांति और सद्भाव को बढ़ावा दे सकते हैं. मोहन भागवत के बयान का राजनीतिक प्रभाव भी हो सकता है. यह बयान भारतीय जनता पार्टी को धर्म के प्रति अपनी नीतियों को बदलने के लिए प्रेरित कर सकता है और धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार को रोकने के लिए कदम उठा सकते हैं. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि लोग दोनों में से किस की बात पर ध्यान देते हैं.

मोहन भागवत के बयान से सामाजिक परिवर्तन की संभावना भी न के बराबर है क्योंकि उन की अब कोई सुनता नहीं और सुनता भी है तो उस पर अमल नहीं करता अगर अमल ही करना होता तो गांधी और नेहरू क्या बुरे थे. मोहन भागवत ने ऐसा बयान देने के पीछे कई कारण हो सकते हैं. यहां कुछ संभावित कारण हैं:

भागवत ने कहा है, ”धर्म की सही समझ और इस के मूलसिद्धांतों का पालन करना ही शांति और समृद्धि का मार्ग है”. यह बयान धर्म की सही समझ को बढ़ावा देने के लिए दिया गया हो सकता है. लेकिन यही धर्म की सही समझ होती तो देश का माहौल बिगड़ता ही क्यों?
भागवत ने कहा है कि धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार को रोकने के लिए एकजुट होना आवश्यक है. यह बयान सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए दिया गया हो सकता है.

भागवत का बयान राजनीतिक संदेश भी हो सकता है. यह बयान भाजपा की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक सद्भाव के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाने के लिए दिया गया हो सकता है. लेकिन भाजपा की तरफ से इस आशय का कोई वक्तव्य अभी तक न आना बताता है कि वह दो पाटों के बीच फंस चुकी है.
भागवत ने कहा है कि धर्म की सही समझ और इस के मूलसिद्धांतों का पालन करना ही विश्व शांति का मार्ग है. यह बयान विश्व शांति को बढ़ावा देने के लिए दिया गया हो सकता है.
भागवत का बयान हिंदू धर्म की रक्षा के लिए भी दिया गया हो सकता है. यह बयान हिंदू धर्म के मूल्यों और सिद्धांतों को बचाने और बढ़ावा देने के लिए दिया गया हो सकता है.

यह सवाल काफी संवेदनशील है, और इस का जवाब देना मुश्किल है क्योंकि हर धर्म की तरह हिंदू धर्म की बुनियाद भी हिंसा, बैर और झगड़ेफसाद जंग आदि पर ही रखी गई है.
हाल के वर्षों में भारत में धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार की घटनाएं अत्यंत बढ़ गई हैं. कई मामलों में, हिंदू धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार की घटनाएं हुई हैं.

ऐसे में मोहन भागवत का बयान एक प्रयास हो सकता है कि धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार को रोका जाए. यह बयान एक संदेश हो सकता है कि धर्म की सही समझ और इस के मूलसिद्धांतों का पालन करना ही शांति और समृद्धि का मार्ग है.
लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या यह बयान पर्याप्त है? क्या यह बयान धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार को रोकने के लिए पर्याप्त है? यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ हो या दुनिया की सब से बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा को धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार को रोकने के लिए और अधिक गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है.

दरअसल, असल लड़ाई दानदक्षिणा की हिस्साबांटी की है. संत समाज को लगता है कि सरकारी पैसे से संघ की इमारतें चमक रही हैं जबकि मोहन भागवत का सोचना यह हो सकता है कि मंदिर तो खूब चमक चुके हैं.

Anurag Basu : ब्‍लड कैंसर से जूझते हुए बनाई थी कंगना रनौट की ‘Gangster’

Anurag Basu :  शांत, धैर्यवान और हंसमुख अनुराग बासु ने फिल्म इंडस्ट्री में एक लंबा सफर तय किया है. इसमें उन्होंने एक स्टोरीटेलर के रूप में क्रीऐटिवटी, अडैप्टबिलटी और अथक परिश्रम से अपने आर्टिस्टिक हुनर को सबके सामने लाने की कोशिश की है. अनुराग एक अच्छे फ़िल्म, टीवी विज्ञापन, निर्माता, निर्देशक, अभिनेता और पटकथा लेखक के रूप में जाने जाते हैं उन्होंने कई बड़ी फिल्में और वेब सीरीज बनाई है.

अनुराग बसु का जन्म झारखंड के भिलाई क्षेत्र में एक आर्टिस्टिक बंगाली परिवार में हुआ है, जहां उनकी माँ दीपशखा बासु और पिता सुब्रतो बासु दोनों ही उच्च श्रेणी के थिएटर आर्टिस्ट रहे, जिसका प्रभाव अनुराग के जीवन पर पड़ा. अनुराग ने अपनी शुरुआती पढ़ाई भिलाई से पूरी की. उसके बाद उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से पूरा किया है. काम के दौरान उन्होंने तानी बसु से किया और दो बेटियों के पिता बने.

anurag basu burfi

Anurag Basu : कैरियर की शुरुआत

अनुराग का कैरियर टीवी धारावाहिकों से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने तारा, कोशिश.. एक आशा जैसी पोपुलर शोज बनाए. इसके बा उन्होंने सांस भी कभी बहू थी , कहानी घर – घर की, कसौटी जिंदगी की आदि कई धारावाहिकों के पायलट शो बनाए. इसके बाद उन्होंने खुद की कम्पनी शुरू की और कई धारावाहिकों का निर्माण किया, जिसमें मीत, मंजिले अपनी अपनी, एम आई आई टी, थ्रिलर एट 10, रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानियाँ आदि कई थे. टीवी की जर्नी को वे चुनौतीपूर्ण और रिवार्डिंग मानते है. Anurag Basu  कहना है कि टीवी में काम करना एक बवंडर में काम करने जैसा होता है, जिसमें लिमिटेड टाइम में हाई क्वालिटी कंटेन्ट का प्रेशर बना रहता है, इससे मुझे किसी भी बदलते परिस्थिति में मुझे कुछ अच्छा सोचने की सीख मिली. साथ ही दर्शकों की पसंद को जानने का मौका भी शो के जरिए मिलता रहा. टीवी में काम करना सभी कलाकारों के लिए भी बहुत जरूरी होता है, क्योंकि इससे कलाकार दर्शकों की पर्सनल लेवल से जुड़ जाता है और कलाकार के रोज – रोज की कोशिश उन्हे एक अच्छा कलाकार बनाती है.

anurag basu family

टीवी से फिल्मों का सफर

Anurag Basu  ने टीवी धारावाहिकों के हजारों एपिसोड शूट करने के साथ – साथ खुद को एक फिल्म मेकर के रूप में स्थापित किया है, जिसके लिए उन्हे काफी मेहनत करनी पड़ी, क्योंकि उनकी पहचान टीवी पर हो चुकी थी, लेकिन उनकी इच्छा थी कि वे एक बड़ी फिल्म का निर्देशन करें, ऐसे में छोटे पर्दे से बड़े पर्दे पर शिफ्ट करना उनके लिए एक बड़ा कदम था, जिसे उन्होंने सोच समझकर लिया, क्योंकि वे चाहते थे कि अब उन कहनियों को कही जाए, जिसे लोगों ने सालों से नहीं देखा है और ये कहनियाँ हमारे आसपास घट रही है, जिसमें जुनून, ईर्ष्या और व्यभिचार जैसे विषयों को लेना आवश्यक है. इसी शृंखला में उन्होंने मर्डर और बर्फ़ी जैसी फिल्में बनाकर एक चर्चित निर्देशक बने. उनका मानना है कि एक निर्देशक हर फिल्म से कुछ न कुछ सीखता है और मैंने भी सीखा है.

anurag basu with wife

20 सालों का साथ

Anurag Basu की कोर टीम पिछले 20 वर्षों से साथ काम कर रही है, प्रोडक्शन डिजाइन से लेकर सिनेमेटोग्राफर सभी आजतक साथ है. वे कहते है कि मेरी पहली फिल्म मेरे सारे ग्रुप की पहली फिल्म थी, सभी ने साथ मिलकर उस फिल्म को बनाई थी और आज भी साथ फिल्म्स बनाते है. उन्होंने फिल्म मेकिंग को खुद की उपलब्धि नहीं, बल्कि टीम की मेहनत को माना है, एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा है कि मैँ किसी स्क्रिप्ट को लिखने के बाद उसे शूट करते वक्त आर्टिस्ट को पूरी आजादी देता हूं ताकि वे उसे अपने तरीके से दृश्य को अच्छा बनाए, इसलिए कई बार स्क्रिप्ट मेरे पास होती है, लेकिन शूटिंग के दृश्य बदल जाते है और रिजल्ट अच्छा निकल कर आता है.

बासु ने हर तरह की कहानियों को कहने की कोशिश की है, जिसमें संगीत, रोमांस, थ्रिल आदि के सहारे उन्होंने दर्शकों को हमेशा कुछ नया दिया है. वे कहते है कि एक फिल्म मेकर होने के नाते मैँ हमेशा पूरे विश्व से प्रभावित रहता हूँ और किसी भी जोनर की संस्कृति और वहाँ के अनुभव को फिल्म की कहानी के जरिए लोगों तक पहुँचाने की कोशिश करता रहता हूँ. फिल्म जग्गा जासूस अधिक नहीं चली, लेकिन उसमें मैंने नए स्टाइल और एनिमेशन का प्रयोग किया है, क्योंकि आर्ट एक ईवोल्यूशन है, इसमें मैँ नए प्रयोग करता रहता हूँ, ताकि दर्शकों को कुछ नया देखने को मिले.

 

anurag basu gangster

Anurag Basu का संघर्ष  

अनुराग के टीवी से फिल्मों के कैरियर की शुरुआत आसान नहीं था, उन्हे बहुत संघर्ष करने पड़े, क्योंकि उन्हे प्रूव करना पड़ा कि वे एक अच्छे फिल्म मेकर है, लेकिन इसके लिए किसी बड़े फिल्म मेकर के अंदर उन्हे काम करने की जरूरत थी, जिसका मौका उन्हे भट्ट कैम्प से मिला. हालांकि उनके कैरियर की शुरुआत वर्ष 2003 में तुषार कपूर और एषा देओल स्टारर फिल्म कुछ तो है से हुआ और इस फिल्म का निर्माण एकता कपूर ने किया गया था,लेकिन यह फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा सकी. इसके बाद बासु ने महेश भट्ट के साथ मिलकर फिल्म साया का निर्देशन किया. इस फिल्म में जॉन अब्राहम और तारा शर्मा मुख्य भूमिका में नजर आये थे, लेकिन पहली फिल्म की तरह उनकी यह फिल्म भी दर्शकों को कुछ खास पसंद नहीं आई. अनुराग कहते है कि मुझे ये प्रूव करना मुश्किल हो रहा था कि मैँ एक अच्छा फिल्म मेकर हूं, लेकिन एक दिन मुकेश भट्ट ने मुझे बुलाया और 7 लाख का ऑफर निर्देशन के लिए दिया, लेकिन तुरंत उन्होंने इसे दो फिल्मों की फीस बता दी, मैँ राजी हो गया, क्योंकि कोई काम मिल नहीं रहा था और तब फिल्म मर्डर बनी. ढाई करोड़ की फिल्म ने 80 करोड़ की कमाई की और मेरा निर्देशन सफल रहा. यह मेरी पहली हिट फिल्म साबित हुई.

 

फिल्म हिट तो डायरेक्टर हिट   

इसके बाद Anurag Basu  ने फिल्म गैंगस्टर और लाइफ इन ए मेट्रो जैसी फ़िल्में निर्देशित की, जिसे दर्शकों ने कुछ पसंद किया, लेकिन तभी उनके मस्तिष्क में बर्फ़ी फिल्म की कहानी आई और बासु ने इसे रणवीर कपूर, प्रियंका चोपड़ा और इलियाना डिक्रूज के साथ बनाई, जो उनके कैरियर की सबसे बड़ी हिट फिल्म फिल्म साबित हुई, क्योंकि इस फिल्म में दार्जिलिंग के एक गूंगे और बहरे व्यक्ति मर्फी “बर्फी” जॉनसन के जीवन और उसके दो महिलाओं श्रुति और झिलमिल के साथ सम्बन्धों को दर्शाती है, यह फिल्म दर्शकों और आलोचकों द्वारा हर जगह सराही गयी. इस फिल्म को कई पुरस्कार भी मिले.

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Anurag Basu  को हुआ था ब्लड कैंसर

अनुराग बसु को वर्ष 2004 में प्रोमाइलोसाइटिक ल्यूकेमिया नामक  ब्लड कैंसर था. इस बीमारी में बोन मैरो में सफ़ेद रक्त कोशिकाओं का उत्पादन बढ़ जाता है. अनुराग बसु कीमोथेरेपी और लगातार इलाज के बाद इस बीमारी से उबर चुके है. अब वे खुद की नियमित देखभाल से ठीक है. उस घटना के बारें में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा है कि उन्हें इस बीमारी का पता तब चला, जब उनके मुंह में बड़े-बड़े छाले निकलने लगे थे.

वह डॉक्टर के पास तो गए, लेकिन वहां उनको कुछ मेडिकल टेस्ट के लिए एडमिट होने के लिए कहा गया था. अनुराग बिना टेस्ट कराए सेट पर वापस आ गए, लेकिन स्थिति ठीक न होने की वजह से उनको अस्पताल में भर्ती किया गया. इधर उनकी पत्नी दूसरी बार गर्भवती थी और डॉक्टर ने उन्हे कहा कि उनके पास जीने के लिए केवल 2 सप्ताह है. अनुराग घबराये नहीं और उस परिस्थिति से निकलने की कोशिश में लगे रहे.

उनके इलाज के दौरान, टीवी और फ़िल्म इंडस्ट्री के कई लोगों ने रक्तदान किया था. उन्होंने कीमोथेरेपी के दौरान मास्क पहनकर फ़िल्म ‘गैंगस्टर’ की शूटिंग की थी. उन्हें परिवार, दोस्तों, और चाहने वालों का पूरा समर्थन मिला, जिससे वे इस बीमारी से उबर पाए. वे आगे कहते है कि कैंसर से लड़ाई के बाद मेरा जीवन के प्रति नज़रिया ही बदल गया है.

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रियलिटी शोज में जज अब और नहीं

अनुराग हँसते हुए कहते है कि एक घटना ने मुझे रियलिटी शोज में काम करने से रोक दिया है. मैंने कई डांस शोज जज किये है, एक दिन एक मॉल में मैँ बच्चों सहित एक परिवार से मिला, बच्चों ने मेरे साथ पहले तो सेल्फ़ी ली, लेकिन तभी उन बच्चों की माँ ने मुझसे पूछा कि आपका डांस क्लास कहा है? उस दिन से मैंने सोच लिया है कि मैँ अब डांस रियलिटी शोज की जजिंग नहीं करूंगा.

 

इंडियन फिल्म्स है ग्लोबल फिल्म

अनुराग मानते है कि इंडियन फिल्म्स ग्लोबल ऑडियंस को ध्यान में रख कर बनाई जाती है, लेकिन आज किसी को अधिक सफलता नहीं मिल रही है. आशा है, जिस तरह चिकन टिक्का का टेस्ट विदेशों में लोगों ने डेवलप कर लिया है, वैसे ही हमारी फिल्मों को भी वे पसंद करने लगेंगे. देखा जाय तो कोरीयन फिल्म इंडस्ट्री हमारे से काफी बाद में शुरू हुई है, लेकिन उनकी फिल्में और वेब सीरीज को पूरे विश्व में लोग पसंद कर रहे है. वे अधिक फिल्म्स बनाते भी नहीं अच्छा कमाते है, जबकि बॉलीवुड काफी फिल्में बनाकर भी उतना कमा नहीं पा रही है.

इस प्रकार Anurag Basu की जर्नी डेली सोप ओपेरा से शुरू होकर सिनेमा और वेब सीरीज तक पहुँच चुकी है, जिसमें उनकी ग्रोथ, ऐडप्टैशन, आर्टिस्टिक और  समर्पण पूरी तरह से झलकता है. उन्होंने अलग – अलग कहानी के जरिए दर्शकों का मनोरंजन किया है और आगे भी कुछ नई कहानियों से दर्शकों का मनोरंजन करवाना चाहते है. वे कहते है कि मास्टरी एक जर्नी है, डेस्टिनेशन नहीं और आज भी मुझे एक नई कहानी कहने की उत्सुकता है.

 

 

 

 

 

Hindi Romantic Story : पश्चाताप

Hindi Romantic Story

गार्गी टैक्सी की खिड़की से बाहर झांक रही थी. उस के दिमाग में जीवन के पिछले वर्ष चलचित्र की भांति घूम रहे थे. उस की उंगलियां मोबाइल पर अनवरत चल रही थीं. आरव,  प्लीज, अब एक मौका दो. तुम ने मुझे प्यार, समर्पण, भरोसा, सुखसुविधा सबकुछ देने की कोशिश की, लेकिन मैं पैसे के पीछे भागती रही ऒर आज इस दुनिया में नितांत अकेली खड़ी हूं… “मैडम, कहां चलना है?” ड्राइवर की आवाज से उस की तंद्रा भंग हुई.

“मैरीन ड्राइव.”

मुंबई में गार्गी का प्रिय स्थान, मैरीन ड्राइव,  जहां समुद्र की उठती लहरें और लोगों का हुजूम देख कर उस का अकेलापन कुछ क्षणों के लिए दूर हो जाता है. आज वहां वह एक कालेज युगल को हाथ में हाथ डाले घूमते देख आरव की यादों में खो गई… गार्गी एक साधारण परिवार की महत्त्वाकांक्षी  लड़की थी.  उस ने अपने मन में सपना पाल रखा था कि वह किसी रईस लड़के से शादी करेगी. दूध सा गोरा रंग, गोल चेहरा, बड़ीबड़ी कजरारी आंखें, अनछुई सी चितवन, मीठी सी मुसकान के चलते वह किसी को भी अपनी ओर लुभा लेती थी.

आरव उस से सीनियर था. लेकिन पहली झलक में ही वह उसे देख मुसकरा पड़ी थी.  उस का कारण उस का बड़ी सी गाड़ी में कालेज आना था. 6 फुट लंबा, गोरा, आकर्षक  लड़का,  हाथ में आईफोन, आंखों पर मंहगा ब्रैंडेड गौगल्स देख गार्गी उस पर आकर्षित हो गई थी. सोशल साइट्स और व्हाट्सऐप पर चैटिंग शुरू होते ही बात कौफी तक पहुंची और जल्द ही दोनों ने एकदूसरे के हाथों को पकड़ प्यार का भी इजहार कर दिया था.

आरव ने एक दिन गार्गी को अपने मम्मीपापा से मिलवा दिया था.  उन लोगों ने मन ही मन दोनों के रिश्ते के लिए हामी दी थी. गार्गी कभी अपनी मां की तो सुनती ही नहीं थी, इसलिए उन की परमिशन वगैरह की उसे कोई फिक्र ही नहीं थी.

अब प्यार के दोनों पंछी आजाद थे. कालेज टूर, पिकनिक, डेटिंग, पिक्चर, वीकैंड में आउटिंग, वैलेन्टाइन डे  आदि पर बढ़ती मुलाकातों से दोनों के बीच की दूरियां कम होती गईं. दोनों के बीच प्यारमोहब्बत, कस्मेवादे, शादी की प्लैनिंग, शादी के बाद हनीमून कहां मनाएंगे, किस फाइवस्टार में बुकिंग करेंगे आदि बातें होती थीं.

गार्गी कुछ ज्यादा ही मौडर्न टाइप थी. नए फैशन के कपड़े, ड्रिंक, स्मोक, पब, डिस्को, ड्रग्स सबकुछ उसे पसंद  था. आरव उस के प्यार में डूबा हुआ उस का साथ देने के लिए नशा करने लगा और नशे में ही दिल का रिश्ता शरीर तक जा पहुंचा और उस दिन दोनों ने प्यार की सारी हदें पार कर दी थीं.

वैसे भी दोनों शीघ्र ही एकदूसरे के होने वाले थे ही.  आरव का प्लेसमेंट नहीं हुआ था, इसलिए वह परेशान रहता था. गार्गी उस से गोवा चलने की जिद कर रही थी. उस ने जोर से डांट कर कह दिया कि गोवा कहीं भाग जाएगा क्या?

गार्गी नाराज हो कर वहां से चली गई और बातचीत बंद कर दी. आरव अपनी चिंताओं में खोया हुआ था. दोनों ने छोटी सी बात को अपना अहं का प्रश्न बना लिया था. उस ने तो मोबाइल से उस का नंबर भी डिलीट कर दिया था.

कुछ ही दिन बीते थे. उस के जीवन में पुरू आ गया. वह आरव  से ज्यादा पैसे वाला था. और गार्गी बचपन से बड़े सपने देखने वाली लड़की थी. अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए मार्ग में आए अवरोधों को दूर करने के लिए साम, दाम, दंड, और भेद सबकुछ आजमा लेती थी. एक दिन वह पुरू के साथ शहर के एक कैफे में बैठी थी कि उस की निगाह  एक टेबल पर बैठे आरव और उस के दोस्तों पर पड़ी. तो, उस ने जानबूझ कर उन्हें अनदेखा कर दिया .

पुरू उस का बौस था. वह कंपनी में सीनियर मैनेजर की पोस्ट पर था. आकर्षक, सजीला, सांवला, सलोना पुरू की सीनियर मैनेजर की पोस्ट और उस का बड़ा पैकेज देख कर उस ने उस के साथ चट मंगनी पट ब्याह रचा लिया. उस ने अपनी सगाई की फोटो फेसबुक और दूसरी सोशल साइट्स पर शेयर की थी. वह हीरे की अंगूठी पा कर बहुत खुश थी.

आरव को उस की फोटोज देख कर सदमा सा लगा था. उस ने कमेंटबौक्स में लिखा भी था- …वे प्यारमोहब्बत की बातें,  कसमेवादे, जो सपने हम दोनों ने साथ बैठ कर देखे थे, सब झूठे हो चुके…

शौकीन पुरू की जीवनशैली दिखावे वाली थी. उस का लक्जीरियस फोरबेडरूम फुल्लीफर्निश्ड फ्लैट, बड़ी गाड़ी और ऐशोआराम का सारा सामान देख गार्गी अपने चयन पर खिलखिला उठी. पार्टीज में जाना, जाम पर जाम छलकाना रोज का शगल था. गार्गी के लिए तो सोने के दिन और चांदी की रातें थीं.  उस ने यही सब तो चाहा था.

कुछ दिन खूब मस्ती में कटे- सिंगापुर, मौरीशस, हौंगकौंग, कभी गोवा के बीच पर तो कभी रोमांटिक खजुराहो, तो कभी ऊटी की ठंडी वादियां तो कभी कोबलम का बीच. गार्गी बहुत खुश थी. बस, एक बात उस की समझ में न आती कि पुरु अपने फोन पर लंबी बातें करता और हमेशा उस से हट कर, अपना लैपटौप भी लौक रखता…

गार्गी को यह महसूस हुआ कि पुरु ने उस के साथ शादी किसी खास मकसद से की  थी. वह, दरअसल, स्मग्लिंग के धंधे में उस का इस्तेमाल करता था. लेकिन वह तो इंद्रधनुषी सपनों में डूबी हुई थी. हसीन ख्वाबों में खोई हुई गार्गी ने अपनी नौकरी भी छोड़ दी थी.

पुरु से मिलने लोग आते, कुछ खुसुरफुसुर बातें करते और रात के अंधेरे में ही चले जाते. पिछले कुछ दिनों से वह परेशान रहने लगा था. वह कहने लगा कि मेरी सैलरी अभी नहीं आई है, कंपनी घाटे में चल रही है आदिआदि.

एक दिन पुरु भागते हुए आया और गार्गी से बोला, “मुझे एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में इटली  जाना है. कुछ दिनों के बाद तुम्हें बुला लूंगा.” और वह जल्दीजल्दी अपना बैग पैक कर चला गया.

गार्गी बहुत खुश थी. वह कुछ दिनों बाद खुद भी इटली जाने की सोचने लगी. तभी कोरोना बम फट पड़ा और लौकडाउन होते ही सबकुछ ठहर सा गया. उसी के साथ उस के सपने धराशाई होते दिखाई पड़ने लगे. कुछ महीनों तक तो  पुरु से बात होती रही, फिर उस से संपर्क भी टूट गया.

 

अब गार्गी समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. कोरोना ने पैर पसार लिए थे. यहां भी लौकडाउन की आहट थी. वह परेशान हो कर पुरू को फोन करती, ‘’तुम ने पैसे ट्रांसफर नहीं किए, मेरा खर्च कैसे चले?  फ्लैट का किराया, गाड़ी वगैरह… जो फ्लैट बुक किया था, वहां से भी मेल आई है. वह डील कैंसिल कर देने की धमकी दे रहा है.“

“हां, मुझे सब मालूम है. मेरी कंपनी बंद हो गई है और यहां कोरोना फैल गया है. इसलिए लौकडाउन कर दिया गया है. मैं स्वयं बहुत बड़ी मुसीबत  में हूं.”

उस के इंतजार में 3-4 महीने बीत गए थे. गार्गी को समझ आ गया था कि वह ठगी गई है और फिर उस के बाद उस ने अपना सिम बदल कर उस से संबंध समाप्त कर लिया. वह फ्लैट किसी और का था, केवल कुछ महीनों के लिए ही लिया गया था. इसलिए अब मजबूर हो कर वह अपनी मां के पास आ गई और फिर से नौकरी करने लगी.

कुछ दिनों तक तो पुरू के दिए धोखे से वह बाहर नहीं आ पा रही थी. वह खोईखोई और उदास  रहती. मां ने पहले ही उसे जल्दबाजी में शादी करने से बहुत मना किया था. परंतु वह तो उस के बड़े पैकेज की दीवानी थी. गुस्से में गारगी ने अब तो पुरु का मोबाइल नंबर भी ब्लौक कर दिया था और अपनी शादी की यादों के  पन्ने को फाड़ कर अपने जीवन में आगे बढ़ चली थी.

कुछ दिनों तक तो वह रोबोट की तरह भावहीन चेहरा लिए घूमती रही.  फिर अपना पुराना औफिस जौइन कर लिया. वहीं पर एक पार्टी में  उस ने एक  सुदर्शन व्यक्तित्व के युवक को देखा. उस की उम्र लगभग 30 – 35  वर्ष  के आसपास, गेहुंआ रंग, इकहरा बदन, लंबा कद, कुल मिला कर सौम्य सा व्यक्तित्व. कनपटी पर एकदो सफेद बाल उस के चेहरे को गंभीर और प्रभावशाली बना रहे थे. कहा जाए तो लव ऐट फर्स्ट साइट जैसा ही कुछ था.  काला ट्राउजर और स्काईब्लू शर्ट  पर उस की नजरें ठहर गईं थीं.

शायद उस का भी यही हाल था, क्योंकि वह भी उसी जगह ठहर कर खड़ा उसी पर अपनी निगाहें लगाए हुए था.

“हैलो, मी विशेष.‘’

“माईसेल्फ गार्गी.‘’

विशेष को देखते ही गार्गी का तनमन खुशी से झूम उठा था. वह सोच रही थी कि खुशी तो उस के इतने करीब थी, लगभग उस के आंचल में थी, उसे पता ही नहीं था.  दोनों के बीच हैलोहाय का रिश्ता जल्दी ही बातों और मुलाकातों में बदल गया था. बातोंबातों में गार्गी को विश्वास में लेने के लिए विशेष ने अपने जीवन की सचाई को निसंकोच बता डाला था. पापा उस पर शादी के लिए दबाव डालते रहे लेकिन जिस को मैं ने चाहा, वे उस से राजी नहीं हुए. बस, मैं ने भी सोच लिया कि शादी ही नहीं करूंगा. एक दिन पापा का हार्टफेल हो गया. फिर दुख की मारी  अम्मा  भी अपनी बहू का मुंह देखने को तरसती रहीं और पापा के बिछोह को सहन नहीं कर पाईं, जल्दी ही इस दुनिया से विदा हो गईं.  अब उस की जिंदगी पूरी तरह से आजाद और सूनी हो गई थी.

विशेष ने आगे बताया, “मैं एक एमएनसी में अच्छी पोस्ट पर हूं.  अच्छाभला पैकेज है. परंतु अपने जीवन के एकाकीपन से तंग आ चुका हूं. शादी डाट काम जैसी साइट पर  अपने लिए लड़की ढूंढता रहता हूं. खोज अभी जारी है. आप को देख कर लगा कि शायद आप मेरे लिए परफेक्ट साथी हो सकती हैं.”

वह तो उसी के औफिस के दूसरे सेक्शन में था.

दोनों के मन में एक सी हिलोरें उठ रही थीं. कभी लिफ्ट तो कभी पार्किंग, तो कभी कैंटीन में मिलना जरूरी सा लगने लगा था दोनों को.

व्हाट्सऐप और फोन पर लंबी बातें देररात तक होने लगीं. दीवानगी अपने चरम पर थी. एक दिन गार्गी ने जानबूझ कर  अपना फोन बंद कर दिया और औफिस भी नहीं गई.  इस तरह 2 दिन बीत गए थे. उस के मन में अपराधबोध का झंझावात चल रहा था कि वह अपने पति पुरू के साथ अन्याय कर रही  है.

क्यों? उस का अंतर्मन बोला था कि विशेष उस का केवल अच्छा दोस्त है. वह उस के दिल की भावनाओं को समझता है, परंतु वह उस से सचाई  बताने में क्यों डर रही है. उस का मन उसे धिक्कारता  रहता,  लेकिन विशेष को देखते ही वह सबकुछ भूल जाती थी. इसी पसोपेश में वह घर में ही लेटी रही थी.

उस के घर की कौलबेल बजी तो वह चौंक पड़ी थी. दरवाजे पर विशेष को खड़ा देख गार्गी प्रफुल्लित हो उठी थी.

“अरे, आप  !‘’

“आप को 2 दिनों से देखा नहीं, इसलिए चिंतित हो उठा था.  आखिर आप का दोस्त जो ठहरा.’’

“बस, यों ही, सिर में दर्द था और सच कहूं तो मूड ठीक नहीं था.’’

“मेरे होते हुए मूड क्यों खराब है? आज मेरा औफिस नहीं है, वर्क फ्रौम होम ले रखा है. आज की मीटिंग पोस्टपोन कर देता हूं. चलिए, कहीं बाहर चलते हैं. वहीं कहीं लंच कर लेंगे.‘’

उस के मन में लड्डू फूट पड़े थे. वह तो कब से चाह रही थी कि वह उस की बांहों में बांह डाल कर कहीं बाहर घूमने जाए, किसी फाइवस्टार होटल में लंच और फिर शौपिंग करवाए.

उस के मन में पुलकभरी सिहरन थी. दिसंबर का महीना था.  बादल छाए हुए थे. हवा में ठंडापन होने से मौसम खुशनुमा था. वह मन से तैयार हुई थी. उस ने स्कर्ट और टॉप पहना  था. जब वह तैयार हो कर बाहर आई तो विशेष की निगाहें उस पर ठहर कर रह गईं थीं. वह उसे अपलक निहारता रह गया था .

मां ने उस दिन गार्गी को टोका भी था, “अब यह नया कौन आ गया तेरे जीवन में?”

“यह विशेष  है, मेरा अच्छा दोस्त. इस से ज्यादा कुछ भी नहीं. मेरे ही औफिस में काम करता है.”

जब विशेष ने शिष्टता के साथ उस के लिए कार का दरवाजा खोला तो उस के मन में पुरु की यादें ताजा हो उठीं.  उस ने तो इस तरह से उस के लिए कभी भी गाड़ी का गेट नहीं खोला, लेकिन उन यादों को झटकते हुए वह फ़ौरन वर्तमान में लौट आई थी.

‘’पहले कहां चलोगी,  आप ने लंच कर लिया?“

“नहीं,”  वह सकुचा उठी थी.

“फिर तो चलिए, पहले लंच करते हैं. मेरे पेट में भी चूहे बहुत जोरजोर से चहलकदमी कर रहे हैं.‘’ विशेष यह कह कर अपनी बात पर ही जोर से हंस पड़ा था.

उस ने एक बड़े रेस्ट्रां के सामने गाड़ी रोक दी थी. वहां एक वाचमैन ने तुरंत आ कर उस के हाथ से गाड़ी की चाबी ली और गाड़ी पार्क करने के लिए ले गया था. वहां पर विशेष एक कोने की टेबल पर सीधे पहुंच गया. शायद पहले से बुक कर रखा था.

एकबारगी फिर गार्गी का दिल धड़क उठा था. विशेष की आंखों में अपने प्रति प्यार वह स्पष्ट रूप से देख रही थी. उस का प्यारभरा आमंत्रण उस के मन में प्यार की कोंपलें खिला रहा था. परंतु मन ही मन  अपने कड़वे अतीत को ले कर डरी हुई थी. जब उसे उस के बारे में सबकुछ मालूम होगा तब भी क्या वह इसी तरह से उस के प्रति समर्पण भाव रखेगा? एक क्षण को उस का सर्वांग सिहर उठा था.

विशेष से अब तक गार्गी को प्यार हो गया था. उस के प्रति उस की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. उस दिन उस ने मौल से उस को शौपिंग भी करवाई थी. लेकिन, बारबार पुरू उस की स्मृतियों के द्वार पर आ कर खड़ा हो जाता था.

सिलसिला चल निकला था. दोनों ही मिलने का बहाना ढूंढते थे. मैरीन ड्राइव, कभी जूहू बीच के किनारे बैठ कर समुद्र की आतीजाती लहरों को निहारते हुए प्यार की बातें करना बहुत पसंद था उन्हें. शाम गहरा गई थी. समुद्रतट पर दोनों देर तक टहलते रहे थे. आज उस ने रेड कलर का स्लीवलेस टॉप और जींस पहनी हुई थी. वह जानती थी कि यह ड्रेस उस के ऊपर बहुत फबती है और वह पहले ही वौशरूम में अपने मेकअप को टचअप कर के आई थी.

अचानक ही विशेष ने उस की हथेलियों को थाम लिया था. इतने दिनों बाद किसी पुरुष के स्पर्श को पा कर वह रोमांचित हो उठी थी. वह कांप उठी थी. उसे फिर से पुरू याद आ गया था. वह भी तो ऐसे ही मजबूती से उस की हथेलियों को पकड़ लेता था. क्षणभर को वह भावुक हो उठी थी.  और उस ने एक हलके झटके से उस की हथेलियों को परे झटक दिया था.

‘सौरी’ कह कर विशेष उस से थोड़ा दूर हो कर चलने लगा था.

गार्गी न जाने क्यों विशेष के साथ नौर्मल नहीं हो पा रही थी, हालांकि उस से प्यार करने लगी थी. उस के साथ लंच पर जाना, शौपिंग पर जाना और अब शाम के अंधेरे में उस की हथेलियों पर उस का स्पर्श उस के अन्तर्मन में पुरू के प्रति अपराधबोध सा भर रहा था. पुरु के मेसेज तो आए थे, हालांकि, उस ने नाराजगी में उत्तर नहीं दिया था. गार्गी सोचती, आखिर वह पुरु के साथ बेवफाई करने पर क्यों आमादा है?  पुरु की नौकरी छूटी है तो दूसरी मिल जाती. वह बेचारा तो स्वयं ही मुसीबतों का मारा था.

परंतु, विशेष का आकर्षण  भी उस पर हावी था. उस की मनोदशा दोराहे पर थी. इधर जाऊं कि उधर, उस का लालची मन निर्णय नहीं ले पा रहा था.  एक शाम वे किसी गार्डन की झाड़ी में छिप कर बैठे थे. विशेष बिलकुल उस के करीब था, यहां तक कि उस की धौंकनी सी तेज सांसों  को भी वह महसूस कर रही थी. वह स्वयं भी तो कब से उस की बांहों में खो जाने का इंतजार कर रही थी.

विशेष ने भी उस के मन की भावनाओं को समझ लिया था और फिर जाने कब वह उस की बांहों में सिमटती चली गई थी. कुछ देर तक दोनों यों ही निशब्द एकदूसरे के आलिंगन  में थे. फिर धीरे से वह उस से अलग हो गई थी. विशेष के चेहरे पर उदासी की छाया मूर्त हो उठी थी.

अब विशेष का गार्गी के घर पर आना बढ़ गया था. कभी घर के खाने के स्वाद के लिए तो कभी घर का कोई सामान ले कर आ जाता तो कभी मम्मी से मिलने के बहाने आ जाता.

परंतु, गार्गी की तेज निगाहों से छिपा नहीं था कि विशेष मात्र उस से ही मिलने के लिए बहाना खोजता रहता है.

मम्मी ने बेटी गार्गी को कई बार समझाने की कोशिश की थी कि तू गलत रास्ते पर चल पड़ी है. यह पुरू के साथ अन्याय होगा.

परंतु वह तो विशेष के प्यार में डूबी हुई थी.  वह तो हर पल उस के सान्निध्य की कामना में खोई रहती. पुरुष की तीव्र नजरें स्त्री की भावनाओं को अतिशीघ्र पहचान लेती हैं और फिर उस के समर्पण  को कमजोरी समझ पुरुष उस का मनचाहा दोहन करता है. एक शाम वह गार्गी को अपने फ्लैट में ले गया था.

विशेष का फ्लैट देख उस की आंखें चौंधिया उठी थीं. पहले तो वह हिचकिचा रही थी, मन ही मन कसमसा रही थी, परंतु उस का प्यासा तन किसी मजबूत बांहों में खोने को बेचैन भी हो रहा था. जब उस ने प्यार से उस की दोनों कलाइयों को पकड़ा तो फिर से गार्गी को पुरू की कठोर पकड़ य़ाद आ गई थी. गार्गी यह सोचने को मजबूर हो उठी थी कि विशेष कितना सभ्य और शालीन है कि उसे ऐसे पकड़ता है कि मानो वह कोई कांच की गुड़िया हो.

परंतु, पुरू की अदृश्य परछाईं उन दोनों के बीच आ कर खड़ी हो गई और गार्गी ने आहिस्ता से पीछे हट कर उस की मजबूत कलाइयों को अपने से दूर कर दिया था. वह स्वयं भी नहीं समझ पा रही थी कि वह चाहती क्या है?  एक ओर तो वह विशेष के सपनों में खोई रहती है और जब वह मिलता है तो वह उसे अपने से दूर कर देती है, जबकि  वह उस की बांहों में पूरी तरह से डूब जाना चाहती थी.

गार्गी सोचती, क्यों विशेष के स्पर्श से पुरु के साथ बिताए मधुर पल उसे याद आने लगते हैं. उस की स्मृतियों में तो आरव भी बारबार अपनी दस्तक देने से बाज नहीं आता. क्या ऐसा है कि औरत अपना पहला प्यार कभी नहीं भूल पाती. शायद यही वजह होगी कि आरव आज भी उस के ख्वाबों में आ कर उस से अकसर पूछता है कि, ‘गार्गी, तुम खुश हो?’

पैसे की अंधीदौड़ में उस ने पुरू से प्यार किया, शादी की. उस ने वह सबकुछ देने की कोशिश की थी  जो उस ने चाहा था. पुरू ने उसे कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया था. क्या पता वह सचमुच किसी मुसीबत में हो.

एक शाम वह मौल में शौपिंग कर रही थी. तभी वहां पुरू पर उस की निगाह पड़ी थी. उस के साथ एक लड़की भी थी. दोनों  की निगाहें मिल गईं थीं, लेकिन पुरू तेजी से भीड़ का फायदा उठा कर उस से बच कर निकल गया था.

अब तो वह ईर्ष्या से जलभुन  गई और विशेष के साथ लिवइन में  रहने लगी थी. उस का लक्जीरियस अपार्टमेंट, बड़ी गाड़ी, मंहगे ड्रिंक, हाई सोसायटी के लोगों की पार्टियों में उस की बांहों में बांहें डाल कर डांस करना…वह तो मानो फिर से सपनों की दुनिया में खो गई थी.

उस का दिन तो औफिस में किसी तरह बीतता, लेकिन शामें तो विशेष की मजबूत बांहों के साए में  हंसतेखिलखिलाते बीत रही थीं. उस ने पुरू की यादों की परछाईं को अपने से परे धकेल कर अपने लिवइन का एनाउंसमेंट मां के सामने कर दिया था.

उन्होंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की थी कि स्त्री का यौवन सदा नहीं रहता है और पुरुष का भ्रमर मन यदि बहक कर दूसरे पुष्प पर अटक जाएगा तो ‍फिर से तुम एक बार लुटीपिटी सी अकेली रह जाओगी. परंतु उस के मन की धनलिप्सा और उस की लोलुपता ने सहीगलत कुछ भी सोचने ही नहीं दिया था और  वह इस अंधीदौड़ में चलती हुई एक के बाद दूसरा साथी बदलती रही.

लगभग 4 महीने बीत चुके थे. वह उस के साथ पत्नी जैसा व्यवहार करने लगी थी. कहां रह गए थे. बाहर खाना खा कर आना था, तो फोन कर सकते थे आदिआदि. परंतु उस की बांहों में खो कर वह आनंदित हो उठती थी.

लेकिन, कुछ दिनों से वह विशेष की निगाहों में अपने प्रति उपेक्षा महसूस कर रही थी. वह उस का इंतजार करती रह जाती और वह अपनी मनपसंद डियो की खुशबू फैलाता हुआ यह कह कर निकल जाता कि औफिस की जरूरी मीटिंग है.

अब वह उपेक्षित सी महसूस करने लगी थी.  उस का बर्थडे था, इसलिए बाहर डिनर की बात थी. उस ने छोटी सी पार्टी की भी बात कही थी, लेकिन उस का कहीं अतापता नहीं था.  उस ने जब फोन किया तो बैकग्राउंड से म्यूजिक की आवाज सुन कर उस का माथा ठनका था. लेकिन जब वह झिड़क कर बोला, ‘’परेशान मत करो, मैं जरूरी मीटिंग में हूं.“ तो उस दिन वह सिसक पड़ी थी. लेकिन मन को तसल्ली दे कर सो गई कि सच में ही वह मीटिंग में ही होगा.

अब वह बदलाबदला सा लगने लगा था. अकसर खाना बाहर खा कर आता. ड्रिंक भी कर के आता. कुछ कहने पर अपने नए प्रोजेक्ट में बिजी होने की बात कह कर घर से निकल जाता.

वह अकेले रहती तो अपने लैपटौप से सिर मारती रहती. तभी उस की निगाह एक मेल पर पड़ी थी. आज विशेष की बर्थडे पार्टी थी. उस में वह उसे क्यों नहीं ले कर गया. वह उसे सरप्राइज देने के लिए तैयार हो कर वहां पहुंच गई थी. उस ने कांच के दरवाजों से देखा कि विशेष किसी लड़की की बांहों को पकड़ कर डांस कर रहा था.

वह क्रोधित हो उठी थी. उस को अपने हक पर किसी का अनाधिकृत प्रवेश महसूस हुआ था. वह तेजी से अंदर पहुंच गई थी. अपने को संयत करते हुए बोली, ‘’हैप्पी बर्थडे, विशेष.‘’  वह जानबूझ कर उस के गले लग गई थी.

विशेष चौंक उठा था. जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. उस को अपने से परे करते हुए बोला, ‘’तुम, यहां कैसे?’’

उन दोनों की डांस की मदहोशी में खलल पड़ गया था. विशेष की डांसपार्टनर निया ने उसे घूर कर देखा और बोली, ‘’हू आर यू?’’

‘’आई एम गार्गी, विशेष की लिवइन पार्टनर.‘’

निया नाराज हो कर चीख पड़ी, ‘’यू रास्कल. यू चीटेड मी. यू टोल्ड मी दैट यू आर सिंगल.‘’

“यस डियर, आई एम सिंगल. शी इज माई लिवइन पार्टनर ओनली.‘’

उस के कानों में मानो किसी ने गरम पिघला सीसा उड़ेल दिया हो. भरी महफिल में वह बुरी तरह अपमानित की गई थी. विशेष उसे ऐसी अपरिचित और खा जाने वाली निगाहों से देख रहा था मानो वह उसे पहचानता भी न हो. उस के कानों में बारबार गूंज रहा था – ‘यस आई एम सिंगल. शी इज माई लिवइन पार्टनर ओनली.’ उस ने समझ लिया था कि अब विशेष से कुछ भी कहनासुनना व्यर्थ है.

वह एक बार फिर अपनी धनलिप्सा की अंधीदौड़ के कारण छली गई है, ठगी गई है. यह एहसास उस के दिल को घायल कर रहा था. उस की सारी खुशियां, जीवन का उल्लास,  पलपल संजोए हुए सारे सपने सबकुछ खोखले और झूठे दिखाई पड़ रहे थे मानो सारी दुनिया उसे मुंह चिढ़ा रही थी.

वह मन ही मन पछता रही थी कि काश, वह आरव के प्यार को न ठुकराती! अब उस की आंखों से पश्चात्ताप की अश्रुधारा निर्झर रूप से प्रवाहित हो रही थी.

 

Storytelling : यादों के अक्‍स

Storytelling : पहला प्यार तो सावन की उस पहली बारिश के समान होता है, जिस की पहली फुहार से ऐसा लगता है मानो मन की सारी तपिश दूर हो गई हो. मेरा पहला प्यार रवि जब मुझे अचानक मिला तो ऐसा लगा जैसे मैं ने उस क्षितिज को पा लिया, जहां धरती व आसमान के सिरे एक हो जाते हैं. वैसे मैं चाहती नहीं थी कि रवि और मेरे बीच शारीरिक संबंध स्थापित हों पर जब सारे हालात ही ऐसे बन जाएं कि आप अपने प्यार के लिए सब कुछ लुटाने के लिए तैयार हो जाएं तब यह सब हो ही जाता है.

सच, रवि से एकाकार होने के बाद ही मैं ने जाना कि सच्चा प्यार क्या होता है. रवि के स्पर्श मात्र से ही मेरा दिल इतनी जोरजोर से धड़कने लगा मानो निकल कर मेरे हाथ में आ जाएगा. रवि से मिलने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि अब तक की जितनी भी रातें मैं ने अपने पति समीर के साथ बिताई हैं वह मात्र एक शारीरिक उन्माद था या फिर हमारे वैवाहिक संबंध की मजबूरी. शादी से ले कर आज तक जबजब भी समीर मेरे नजदीक आया, तबतब मेरा शरीर ठंडी शिला की तरह हो गया. वह अपना हक जताता रहता, लेकिन मैं मन ही मन रवि को याद कर के तड़पती रहती. यह शायद रवि के प्यार का ही जादू था कि शादी के इतने साल बाद भी मैं उसे भुला नहीं पाई थी. तभी तो मेरे मन का एक कोना आज भी रवि की एक झलक पाने को तरसता था.

‘‘मैं शादी करूंगी तो सिर्फ रवि से वरना नहीं,’’ शादी से पहले मैं ने यह ऐलान कर दिया था.

‘‘हां, वह तो ठीक है, पर जनाब मिलने आएं तो पता चले कि वे भी यह चाहते हैं या नहीं,’’ भैया के स्वर में व्यंग्य था.

‘‘हांहां, मैं जानती हूं कि आप का इशारा किस तरफ है  वह हीरो बनना चाहता है, इसीलिए तो दिनरात स्टूडियो के चक्कर काटता है. बस एक ब्रेक मिला नहीं कि उस की निकल पड़ेगी. इसीलिए वह मुंबई चला गया है.’’

‘‘न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी,’’ भैया न हंसते हुए कहा और बाहर चले गए.

‘‘देखो मां, भैया कैसे रवि का मजाक उड़ाते रहते हैं. देख लेना वह एक दिन बहुत बड़ा आदमी बन कर दिखाएगा,’’ मैं यह कहतेकहते रो पड़ी थी.

‘‘बेटी, वह हीरो जब बनेगा तब बनेगा, असली बात तो यह है कि वह अभी कर क्या रहा है ’’ पापा ने चाय पीते हुए मुझ से पूछा.

अब उन से क्या कहती. मैं खुद नहीं जानती कि वह आजकल मुंबई में क्या कर रहा है. मुझे तो बस इतना मालूम था कि शायद अभी फिर से विज्ञापन की शूटिंग कर रहा है.

जब सब कुछ धुंधला सा था तब भला कोई सटीक निर्णय कैसे लिया जाता  फिर मैं ने हथियार डाल दिए यानी समीर से शादी के लिए हामी भर दी.

मेरे इस निर्णय से घर के सभी लोग बहुत खुश थे पर मेरे भीतर अवश्य कुछ दरक कर टूट गया था. मैं ने न जाने कितनी बार रवि को फोन किया पर वह शायद मुंबई से बाहर था. एक बार तो मैं ने भावावेश में मुंबई जाने का मन भी बना लिया पर तब मातापिता के रोते चेहरे मेरी आंखों के आगे घूम गए और तब मैं ने हथियार डाल दिया. वैसे भी रवि मुंबई में कहां है, यह पता तो मुझे नहीं था. समीर से शादी हुई तो मैं उस के जीवन की महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गई. समीर ने मुझे वह सब दिया, जिस पर मेरा हक था. पर शायद मैं समीर के साथ पूरी तरह न्याय न कर पाई.

जिस मन पर किसी और का अधिकार हो, उस मन पर किसी और के अरमानों का महल बनना मुश्किल ही था. मैं जब भी अकेली होती रवि को याद कर के रो पड़ती. मुझे उस की ज्यादा याद तब आती जब बारिश आती. मुझे आज भी याद है वह दिन जब बहुत ज्यादा उमस के बाद अचानक काले बादल घिर आए थे और देखते ही देखते मूसलाधार बारिश शुर हो गई थी. उस समय रवि और मैं पिक्चर देख कर मोटरसाइकिल पर लौट रहे थे. बारिश तेज होती देख कर रवि मोटरसाइकिल रोक कर सड़क की दूसरी ओर मैदान में जा कर बारिश का मजा लेने लगा. उसे ऐसा करते देख मुझे बहुत अजीब लगा. मैं एक पेड़ के नीचे खड़ी बारिश का मजा ले रही थी. तभी अचानक वह आया और मुझे खींच कर मैदान में ले गया.

‘‘नेहा, अपनी दोनों बांहें खोल कर इस रिमझिम का मजा लो. इन बूंदों में भीगने का मजा लोगी तभी तुम्हें लगेगा कि शरीर की तपिश कम हो रही है और तुम्हारा तनमन हवा की तरह हलका हो गया है.’’

पहले तो मुझे रवि का ऐसे भीगना अजीब लगा पर फिर मैं भी उस के रंग में रंग गई. जब मैं ने अपने दोनों हाथ फैला कर बारिश की ठंडी बूंदों को अपने में आत्मसात करने की कोशिश की तो ऐसा लगा मानो मैं किसी जन्नत में पहुंच गई हूं. बहुत देर तक बारिश में भीगने के बाद मुझे हलकी ठंड लगने लगी और मैं कांपने लगी. तब रवि मेरा हाथ पकड़ मुझे सड़क किनारे बने एक छोटे टीस्टाल में ले गया. रिमझिम बारिश के बीच गरमगरम चाय पीते हुए हम ने अपने कपड़े सुखाए और फिर अपनेअपने घर चले गए. उस के बाद न जाने कितनी बारिशों में मैं और रवि साथसाथ थे. भीगे बदन पर जबजब रवि के हाथों का स्पर्श हुआ तबतब मैं एक नवयौवना सी चहक उठी. समीर को भी रवि की तरह तेज बारिश में भीगना पसंद है. मुझे याद है जब हम लोग हनीमून के लिए मसूरी गए थे. मालरोड पर घूमते हुए अचानक बारिश शुरू हो गई. समीर तो वहीं खड़ा हो कर बारिश का मजा लेने लगा पर मैं एक पेड़ की ओट में खड़ी हो गई.

‘‘नेहा, आओ मेरे साथ इस बारिश में भीगो. देखो, कितना मजा आ रहा है.’’

‘‘न बाबा न, ठंड लग गई तो  तुम भी यहां आ जाओ,’’ मैं अपना छाता खोलते हुए बोली.

‘‘जानेमन, ठंड लगने के बाद मैं तुम्हें ऐसी गरमी दूंगा कि मेरे प्यार में पिघलपिघल जाओगी.’’

समीर की इस बात पर आसपास खड़े लोग हंस रहे थे पर मैं शर्म से लाल हुई जा रही थी. हिल स्टेशन की बारिशों में देर तक भीगने से समीर को ठंड लग गई थी और फिर वह 3 दिन तक बिस्तर से नहीं उठ पाया था. वह तो दवा ले कर गहरी नींद सो गया था पर मैं रवि की याद में तड़प कर रह गई थी. बारबार सोचती कि काश, आज समीर की जगह रवि होता तो इस हनीमून का, इस बारिश का मजा ही कुछ और होता. वैसे समीर ने हनीमून पर मुझे पूरा मजा दिया था, लेकिन मैं चाह कर भी पूरे मन से उस का साथ नहीं दे पाई थी. में जब भी समीर मेरे पास होता मुझे ऐसा लगता मानो मेरा शरीर तो समीर के पास है, लेकिन मन कहीं पीछे छूट गया है, रवि के पास. मुझे हमेशा ऐसा लगता कि हम दोनों के बीच रवि का वजूद आज भी बरकरार है, जो मुझ से रहरह कर अपना हक मांगता है.

यह शायद रवि के वजूद का ही असर था कि मैं चाह कर भी समीर से खुल नहीं पाई. मेरे मन का एक कोना अभी भी रवि की याद में तड़पता रहता था. जब भी बादल बरसते समीर बारिश में भीगते हुए उस का आनंद लेता, मगर मैं दरवाजे की ओट में खड़ी रवि को याद कर रोती. तब अचानक समीर का चेहरा रवि का रूप ले लेता और फिर मेरी यह बेचैनी तड़प में बदल जाती. तब मैं सोचने लगती कि काश, मेरी इस तड़प में रवि भी मेरा हिस्सेदार बन पाता तो कितना अच्छा होता. बारिश की ठंडी फुहारों के बीच अगर मैं अपनी इस तड़प से रवि को अपना दीवाना बना देती और टूट कर उसे प्यार करती तो शायद मेरा मन भी इस मौसमी ठंडक से सराबोर हो उठता.वैसे मैं ने अपने मन की सारी बातें अपने मन के किसी कोने में छिपा रखी थीं तो भी समीर की पारखी नजरों ने मेरे मन की बेचैनी को भांप लिया था.‘‘घर से बाहर निकलो, नएनए दोस्त बनाओ. घर की चारदीवारी में कैद हो कर क्यों बैठी रहती हो ’’ एक दिन समीर मुझे समझाते हुए बोला.

समीर की बात मुझे जंच गई और मैं अपनी सोसाइटी की किट्टी पार्टी की सदस्य बन गई. नएनए लोगों से मिलने से मेरा अकेलापन कम होने लगा, जिस कारण मन में छाई निराशा आशा में बदलने लगी. अपनी जिंदगी में आए इस बदलाव से मैं खुश थी. धीरेधीरे मुझे ऐसा लगने लगा शायद अब मेरी जिंदगी में एक ठहराव आ गया है. पर यह ठहराव ज्यादा समय तक नहीं टिक पाया, क्योंकि शांत नदी में अचानक रवि ने आ कर अपने प्यार का पत्थर जो फेंक दिया था, जिस कारण मेरी जिंदगी में फिर से तूफान आ गया. मैं उस दिन अकेली पिक्चर देखने गई थी. वैसे समीर भी मेरे साथ आने वाला था, लेकिन अचानक जरूरी काम आने से वह नहीं आ आ सका. अत: अकेली पिक्चर देखने आई थी. लेकिन पिक्चर शुरू होने से पहले ही अचानक रवि से मुलाकात हो गई.

जब हम एकदूसरे के सामने आए तब न जाने कितनी देर तक हम दोनों एकदूसरे को बिना कुछ बोले निहारते रहे. ‘‘मैं कोई सपना देख रही हूं क्या ’’ मैं ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा.

‘‘हां, शायद यह सपना ही है,’’ कहतेकहते रवि का गला भर आया.

फिर हम दोनों भीड़ से दूर एक तरफ ओट में जा कर खड़े हो गए.

‘‘कहां थे  न कोई फोन…जाओ, मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी,’’ मैं लगभग रो पड़ी थी.

‘‘नेहा, आज तक कोई पल ऐसा नहीं बीता होगा, जब मैं ने तुम्हें याद न किया हो. बस यह समझ लो कि मेरा तन मेरे पास था पर मन हमेशा तुम्हारे पास रहा है,’’ रवि भरे गले से बोला.

इस से पहले कि मैं कुछ और बोल पाती, रवि ही बोल पड़ा, ‘‘अच्छा, अब ये गिलेशिकवे छोड़ो और अंदर चलो, आज की पिक्चर में मेरा हीरो का रोल तो नहीं है नैगेटिव है पर हीरो के रोल से ज्यादा दमदार है,’’ कह कर उस ने मेरा हाथ पकड़ा और दोनों हौल के अंदर चले गए. वाकई रवि का अभिनय दमदार था. इतने सालों की उस की मेहनत नजर आ रही थी. जब वह हौल से बाहर निकला तो उस के प्रशंसकों की भीड़ ने उस का रास्ता रोक लिया. उस के बाद से तो रवि का जादू मेरे सिर चढ़ कर बोलने लगा. अब मुझे न दिन की सुध थी और न रात की.

मेरा अब ज्यादा समय रवि के साथ ही बीतने लगा था. कभीकभी तो मैं शूटिंग के समय भी उस के साथ होती. मैं ने कई बार उस से कहा कि वह चल कर समीर से मिल ले पर हर बार टाल जाता. जब भी मैं उस के सामने समीर का जिक्र करती, वह गमगीन हो उठता और तड़पते हुए कहता, ‘‘मेरे उस दुश्मन का नाम मेरे सामने ले कर मेरे जख्मों को हरा मत किया करो.

‘‘नेहा, बस यह समझ लो कि तुम से मेरी शादी न हो पाना मेरी सब से बड़ी हार है, जिसे मैं एक दिन जीत में बदल कर ही रहूंगा.’’ तब मेरा मन करता कि मैं उस से लिपट जाऊं और अपना सर्वस्व उसे सौंप दूं पर लोकलाज के भय से अपने बढ़े कदम रोक लेती.

कई बार मेरे मन में आया कि उस से पूछूं कि वह मेरी शादी के समय कहां था, पर यह सोच कर चुप रह जाती कि इस से रवि को दुख पहुंचेगा और मैं उसे दुखी नही करना चाहती. एक दिन शाम के 5 बजे थे जब मेरे पास रवि का फोन आया.

‘‘क्या कर रही हो जान ’’

‘‘कुछ भी तो नहीं.’’

‘‘तो चली आओ, आलीशान होटल में,’’

‘‘पर अचानक…’’

‘‘ज्यादा सवाल न पूछो एक सरप्राइज है.’’

रवि का इतना कहना था कि मैं उस के प्यार में खिंची होटल के लिए निकल पड़ी. उस दिन समीर टूअर पर था और मैं ने अपने बेटे बंटू को अपनी सहेली राधिका के यहां छोड़ दिया. जब रवि के पास पहुंची तो देखा वह एक सजे कमरे में मेरी प्रतीक्षा कर रहा है.

‘‘जान, बहुत देर कर दी आने में…’’

‘‘यह सब क्या है ’’ मैं अचकचाते हुए उस से पूछ बैठी.

‘‘आज मुझे एक बहुत बड़ा रोल मिला है. अगर यह पिक्चर हिट हुई तो समझो मैं रातोंरात स्टार बन जाऊंगा,’’ कहतेकहते उस ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘यह सही नहीं है, रवि,’’ मैं ने खुद को उस से छुड़ाते हुए कहा.

‘‘प्यार में कुछ भी सही या गलत नहीं होता. प्यार तो सिर्फ प्यार होता है जो कुरबानी मांगता है. वैसे भी तुम्हारा और मेरा प्यार तो सच्चा प्यार है जो न जाने कब से एकदूसरे का साथ पाने को तड़प रहा है,’’ यह कह उस ने मुझे पैकेट थमा दिया.

जब मैं ने पैकेट खोला तो हैरान रह गई, उस में एक गुलाबी रंग की झीनी नाइटी थी. इधर मैं कपड़े बदलने चली गई तो उधर रवि सारे बिस्तर पर लाल गुलाबों की बरसात करने लगा. इत्र की भीनीभीनी खुशबू और धीमाधीमा संगीत, बस, सब कुछ मुझे मदहोश करने के लिए काफी था. बस, फिर वह सब हो गया, जो शायद बहुत पहले हो जाना चाहिए था. जब वर्षों पुरानी चाहत पूरी हुई तो ऐसा लगा मानो आज बिन बादल बरसात हो गई, जिस में हम दोनों भीग कर उस चरम सुख को पा गए, जिस से अब तक हम अछूते रहे थे. उस रात होटल के उस कमरे में रवि से लिपटी मैं उस तृप्ति को महसूस कर रही थी जो मुझे अब तक नहीं मिली थी.

‘‘रवि, आज तो मजा आ गया,’’ मैं भावावेश में उस के होंठों पर किस करते हुए बोली.

‘‘अरे मैडम, यह तो कुछ भी नहीं. आगेआगे देखो, मैं तुम्हें कैसे जन्नत का मजा दिलाता हूं,’’ कह कर रवि फिर से मुझ से लिपट गया. ‘‘मुझे बहुत दुख है जो समय रहते मैं तुम्हें अपनी नहीं बना पाया,’’ रवि मेरे सीने पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘समीर बहुत खुशहाल इनसान है तभी तो यह हुस्न का प्याला उस की झोली में जा गिरा,’’ कह रवि मुझे पागलों की तरह चूमने लगा.

‘‘रवि इतना प्यार न करो, मुझे वरना…’’

‘‘वरना क्या ’’

‘‘अगर तुम मुझ से यों टूट कर प्यार करते रहोगे, तो तुम से अलग कैसे हो पाऊंगी ’’ और मैं अचानक रो पड़ी, ‘‘रवि, इस दिल पर तो तुम्हारा शुरू से अधिकार रहा है और आज तन पर भी हो गया,’’ मैं तड़पते हुए बोली.

मेरी तड़प देख कर रवि ने मुझे अपनी मजबूत बांहों के घेरे में कस लिया और मैं उस की पकड़ से खुद को छुड़ाने की नाकाम कोशिश करने लगी.

‘‘अच्छा, अब मैं चलती हूं,’’ सुबह की लौ देख मैं ने तुरंत कपड़े बदले और अपने घर आ गई. रवि से शारीरिक संपर्क के बाद मेरे अंदर एक सुखद सा परिवर्तन आया. अब मैं हर समय खिलीखिली सी रहती थी.

‘‘इतना खुश तो मैं ने पहले तुम्हें कभी नहीें देखा,’’ उस दिन मुझे एक फिल्मी गाना गुनगुनाते देख समीर ने मुझे टोका.

‘‘वह क्या है कि आजकल नए दोस्त बन रहे हैं न,’’ मैं ने बात बदलते हुए कहा.

‘‘अच्छा लगता है तुम्हें यों खुश देख कर,’’ कह समीर ने भावातिरेक में मेरा माथा चूम लिया.

सच, उस समय मुझे रवि की बहुत याद आई. आज रवि के कारण ही तो मेरे मन का सूनापन कम हो पाया था. उस के प्यार में पागल मैं आज दूसरी बार उस से मिलने उसी होटल में जाने वाली थी. पर उस समय बंटू स्कूल गया हुआ था, इसलिए दुविधा में थी कि कैसे जाऊं तब मेरी सास जो मेरे पास रहने आई हुई थीं, तुरंत बोलीं, ‘‘अरे बहू, परेशानी क्या है  अब जब मैं घर पर हूं तो बंटू को देख लूंगी, तुम अभी निकल जाओ वरना तुम्हें सामने देख कर ज्यादा परेशान होगा.’’

मांजी के इतना कहते ही मैं तुरंत निकल पड़ी. इधर मेरा औटोरिकशा होटल की तरफ बढ़ रहा था तो उधर मेरी बेचैनी. सब कुछ अपनी चरसीमा पर था…उस दिन का चरमसुख और आज फिर. फिर अचानक मेरे विचारों पर विराम लग गया, क्योंकि मेरा होटल जो आ गया था. तेज कदमों से लौबी का रास्ता पार कर मैं होटल के कमरे के पास पहुंच गई. कमरे का दरवाजा आधा खुला था और मैं जल्दी से उसे धकेल कर अंदर जाना चाहती थी कि अचानक रवि के मुंह से अपना नाम सुन कर मेरे बढ़ते कदम ठिठक गए.

जब मैं ने दरवाजे की ओट में खड़े हो कर अंदर झांका तो हैरान रह गई. रवि किसी और के साथ बैठा ड्रिंक कर रहा था. पूरे कमरे में सिगरेट का धुआं फैला हुआ था.

‘‘तेरी वह मुरगी कब तक आएगी, मेरा मन बेचैन हो रहा है ’’ रवि के सामने वह आदमी शराब का खाली गिलास रखते हुए बोला.

‘‘बस सर आने ही वाली होगी,’’ रवि उस के खाली गिलास में शराब डालते हुए बोला.

‘‘पर यार वह तो तेरी गर्लफ्रैंड है, ऐसे में वह मेरे साथ…’’

‘‘आप उस की फिक्र न करो, सरजी…अरे, वह तो मेरे प्यार में इतनी पागल है कि मेरे एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हो जाएगी,’’ रवि ठठा कर हंस पड़ा, ‘‘अरे मैं ने कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं, जो हाथ आया मौका यों जाने दूं,’’ नशे में धुत्त रवि बोला, ‘‘आप आज सिर्फ मेरे अभिनय का कमाल देखना…मैं आज उसे इतना बेचैन कर दूंगा कि वह मेरे साथसाथ आप को भी पूरा मजा देगी. बड़ी गरमी भरी पड़ी है उस के अंदर,’’ और फिर उस ने सिगरेट सुलगा ली.

‘‘अच्छा, मैं चलता हूं. बाहर लौबी में तुम्हारे फोन का इंतजार करता हूं. जब मामला पट जाए तब आ जाऊंगा,’’ कह कर वह आदमी पागलों की तरह हंसने लगा. ‘‘आप मजे की फिक्र न करो. वह तो मैं आप को पूरा दिलवाऊंगा पर मेरा आप की आने वाली फिल्म में हीरो का रोल तो पक्का है न ’’ कह रवि ने वही गुलाबी नाइटी बैड पर फैला दी.

‘‘अरे यार मैं जुबान का पक्का हूं. इधर वह लड़की गई तो उधर तेरा हीरो का रोल पक्का.’’ यह सब सुन कर मेरे तो होश उड़ गए. मेरी तो उस समय ऐसी स्थिति थी कि काटो तो खून नहीं. पहले तो मेरे मन में आया कि अंदर जा कर उन दोनों मुंह नोच लूं पर फिर मैं तुंरत संभल गई कि नीचता पर उतर आए ये दोनों मेरे साथ कुछ भी गलत कर सकते हैं. फिर मैं ने समय न गंवाते हुए बाहर का रुख किया ताकि उन की पकड़ से बाहर निकल जाऊं. वैसे भी वह आदमी कभी भी बाहर आ सकता था. उस समय मेरा तनमन गुस्से से उबल रहा था और मेरी आंखें लगातार बह रही थीं. रवि के प्यार का यह वीभत्स रूप देख कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे. मैं औटोरिकशा में अपने घर जा रही थी. रवि के कई फोन मेरे मोबाइल पर आए, मेरा मन उस समय इतना बेचैन था कि उस से बात करना तो दूर मैं उस की आवाज भी नहीं सुनना चाहती थी. इसलिए मैं ने अपना मोबाइल औफ कर दिया और बीती बातें भुला कर अपने घर चली गई.

‘‘अरे समीर, तुम कब आए ’’ समीर को बंटू के साथ खेलते देख कर मुझे सुकून सा मिला.

‘‘चलो, आज पिक्चर देखने चलते हैं, खाना भी बाहर ही खा लेंगे,’’ समीर ने अचानक मुझ से कहा तो मैं अचकचा सी गई, ‘‘पर बंटू का तो सुबह स्कूल है,’’ मैं ने बात बदलते हुए कहा. अब समीर से कैसे कहती कि मेरा मूड खराब है.

‘‘बंटू को तो मैं देख लूंगी. समय से खाना खिला कर सुला दूंगी,’’ सासूमां कमरे में प्रवेश करते हुए बोलीं.

‘‘क्यों बंटू, दादी के साथ खेलेगा न  और फिर वह दिन वाली स्टोरी भी तो पूरी करनी है न,’’ सासूमां के इतना कहते ही बंटू उन से लिपट गया.

‘‘चलो, अब तो तुम्हारी समस्या हल हो गई. अब जल्दी से तैयार हो जाओ,’’ समीर ने मेरा कंधा थपथपाते हुए कहा.

फिर हम तैयार हो कर मूवी देखने चले गए. जब पिक्चर देख कर बाहर निकले तो बाहर काले बादल घिर आए थे. देखते ही देखते तेज बारिश शुरू हो गई. समीर कार का दरवाजा खोल कर अंदर बैठने लगा तो मैं ने अचानक उस का हाथ पकड़ कर बाहर खींच लिया.

‘‘मैडम, बारिश शुरू हो गई है और तुम्हें बारिश में भीगने से ऐलर्जी है,’’ उस के स्वर में व्यंग्य था.

‘‘अब मुझे बारिश में भीगना अच्छा लगता है,’’ कह कर में ने समीर को हाथ से पकड़ बाहर खींच लिया और फिर दोनों देर तक बारिश में भीगने का मजा लेते रहे. जब बारिश की ठंडी फुहारें मेरे तनमन की तपिश निकालने में कामयाब हुईं तब मैं समीर के कंधे से जा लगी. मेरे अंदर आए अचानक इस बदलाव को देख कर समीर को इतना अच्छा लगा कि उस ने एक चुंबन मेरे होंठों पर अंकित कर दिया. जब समीर की मजबूत बांहों ने मेरे तन को कसा तो ऐसा लगा मानो अब मेरे मन पर सिर्फ और सिर्फ समीर का ही अधिकार है और तब ऐसा लगने लगा मानो रवि की यादों का अक्स धुंधला पड़ने लगा है.

Emotional Hindi Story : तनहाई का इश्‍क

Emotional Hindi Story :  शादीशुदा राजेश से प्रेम होने पर अकेलेपन का दंश  झेल रही निशा घर बसा कर उस के बच्चों की मां बनने का सपना देखने लगी. लेकिन राजेश की पत्नी सरोज से मिलने के बाद अपने सपनों को हकीकत में बदलना क्या निशा के लिए आसान था?

 

आज मेरा 32वां जन्मदिन था और मैं यह दिन राजेश के साथ गुजारना चाहती थी. उन के घर 10 बजे तक पहुंचने के लिए मैं ने सुबह 6 बजे ही कार से सफर शुरू कर दिया.

राजेश पिछले शनिवार को अपने घर गए थे लेकिन तेज बुखार के कारण वह सोमवार को वापस नहीं लौटे. आज का पूरा दिन उन्होंने मेरे साथ गुजारने का वादा किया था. अपने जन्मदिन पर उन से न मिल कर मेरा मन सचमुच बहुत दुखी होता.

राजेश को अपने प्रेमी के रूप में स्वीकार किए मुझे करीब 2 साल बीत चुके हैं. उन के दोनों बेटों सोनू और मोनू व पत्नी सरोज से आज मैं पहली बार मिलूंगी.

 

राजेश के घर जाने से एक दिन पहले हमारे बीच जो वार्तालाप हुआ था वह रास्ते भर मेरे जेहन में गूंजता रहा.

‘मैं शादी कर के घर बसाना चाहती हूं…मां बनना चाहती हूं,’ उन की बांहों के घेरे में कैद होने के बाद मैं ने भावुक स्वर में अपने दिल की इच्छा उन से जाहिर की थी.

‘कोई उपयुक्त साथी ढूंढ़ लिया है?’ उन्होंने मुझे शरारती अंदाज में मुसकराते हुए छेड़ा.

उन की छाती पर बनावटी गुस्से में कुछ घूंसे मारने के बाद मैं ने जवाब दिया, ‘मैं तुम्हारे साथ घर बसाने की बात कर रही हूं.’

‘धर्मेंद्र और हेमामालिनी वाली कहानी दोहराना चाहती हो?’

‘मेरी बात को मजाक में मत उड़ाओ, प्लीज.’

‘निशा, ऐसी इच्छा को मन में क्यों स्थान देती हो जो पूरी नहीं हो सकती,’ अब वह भी गंभीर हो गए.

‘देखिए, मैं सरोज को कोई तकलीफ नहीं होने दूंगी. अपनी पूरी तनख्वाह उसे दे दिया करूंगी. मैं अपना सारा बैंकबैलेंस बच्चों के नाम कर दूंगी… उन्हें पूर्ण आर्थिक सुरक्षा देने…’

उन्होंने मेरे मुंह पर हाथ रखा और उदास लहजे में बोले, ‘तुम समझती क्यों नहीं कि सरोज को तलाक नहीं दिया जा सकता. मैं चाहूं भी तो ऐसा करना मेरे लिए संभव नहीं.’

‘पर क्यों?’ मैं ने तड़प कर पूछा.

‘तुम सरोज को जानती होतीं तो यह सवाल न पूछतीं.’

‘मैं अपने अकेलेपन को जानने लगी हूं. पहले मैं ने सारी जिंदगी अकेले रहने का मन बना लिया था पर अब सब डांवांडोल हो गया है. तुम मुझे सरोज से ज्यादा चाहते हो?’

‘हां,’ उन्होंने बेझिझक जवाब दिया था.

‘तब उसे छोड़ कर तुम मेरे हो जाओ,’ उन की छाती से लिपट कर मैं ने अपनी इच्छा दोहरा दी.

‘निशा, तुम मेरे बच्चे की मां बनना चाहती हो तो बनो. अगर अकेली मां बन कर समाज में रहने का साहस तुम में है तो मैं हर कदम पर तुम्हारा साथ दूंगा. बस, तुम सरोज से तलाक लेने की जिद मत करो, प्लीज. मेरे लिए यह संभव नहीं होगा,’ उन की आंखों में आंसू झिलमिलाते देख मैं खामोश हो गई.

सरोज के बारे में राजेश ने मुझे थोड़ी सी जानकारी दे रखी थी. बचपन में मातापिता के गुजर जाने के कारण उसे उस के मामा ने पाला था. 8वीं तक शिक्षा पाई थी. रंग सांवला और चेहरामोहरा साधारण सा था. वह एक कुशल गृहिणी थी. अपने दोनों बेटों में उस की जान बसती थी. घरगृहस्थी के संचालन को ले कर राजेश ने उस के प्रति कभी कोई शिकायत मुंह से नहीं निकाली थी.

सरोज से मुलाकात करने का यह अवसर चूकना मुझे उचित नहीं लगा. इसलिए उन के घर जाने का निर्णय लेने में मुझे ज्यादा कठिनाई नहीं हुई.

राजेश इनकार न कर दें, इसलिए मैं ने उन्हें अपने आने की कोई खबर फोन से नहीं दी थी. उस कसबे में उन का घर ढूंढ़ने में मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई. उस एक- मंजिला साधारण से घर के बरामदे में बैठ कर मैं ने उन्हें अखबार पढ़ते पाया.

मुझे अचानक सामने देख कर वह पहले चौंके, फिर जो खुशी उन के होंठों पर उभरी, उस ने सफर की सारी थकावट दूर कर के मुझे एकदम से तरोताजा कर दिया.

‘‘बहुत कमजोर नजर आ रहे हो, अब तबीयत कैसी है?’’ मैं भावुक हो उठी.

‘‘पहले से बहुत बेहतर हूं. जन्मदिन की शुभकामनाएं. तुम्हें सामने देख कर दिल बहुत खुश हो रहा है,’’ राजेश ने मिलाने के लिए अपना दायां हाथ आगे बढ़ाया.

राजेश से जिस पल मैं ने हाथ मिलाया उसी पल सरोज ने घर के भीतरी भाग से दरवाजे पर कदम रखा.

आंखों से आंखें मिलते ही मेरे मन में तेज झटका लगा.

सरोज की आंखों में अजीब सा भोलापन था. छोटी सी मुसकान होंठों पर सजा कर वह दोस्ताना अंदाज में मेरी तरफ देख रही थी.

जाने क्यों मैं ने अचानक अपने को अपराधी सा महसूस किया. मुझे एहसास हुआ कि राजेश को उस से छीनने के मेरे इरादे को उस की आंखों ने मेरे मन की गहराइयों में झांक कर बड़ी आसानी से पढ़ लिया था.

‘‘सरोज, यह निशा हैं. मेरे साथ दिल्ली में काम करती हैं. आज इन का जन्मदिन भी है. इसलिए कुछ बढि़या सा खाना बना कर इन्हें जरूर खिलाना,’’ हमारा परिचय कराते समय राजेश जरा भी असहज नजर नहीं आ रहे थे.

‘‘सोनू और मोनू के लिए हलवा बनाया था. वह बिलकुल तैयार है और मैं अभी आप को खिलाती हूं,’’ सरोज की आवाज में भी किसी तरह का खिंचाव मैं ने महसूस नहीं किया.

‘‘थैंक यू,’’ अपने मन की बेचैनी के कारण मैं कुछ और ज्यादा नहीं कह पाई.

‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ ऐसा कह कर सरोज तेजी से मुड़ी और घर के अंदर चली गई.

राजेश के सामने बैठ कर मैं उन से उन की बीमारी का ब्योरा पूछने लगी. फिर उन्होंने आफिस के समाचार मुझ से पूछे. यों हलकेफुलके अंदाज में वार्तालाप करते हुए मैं सरोज की आंखों को भुला पाने में असमर्थ हो रही थी.

अचानक राजेश ने पूछा, ‘‘निशा, क्या तुम सरोज से अपने और मेरे प्रेम संबंध को ले कर बातें करने का निश्चय कर के यहां आई हो?’’

एकदम से जवाब न दे कर मैं ने सवाल किया, ‘‘क्या तुम ने कभी उसे मेरे बारे में बताया है?’’

‘‘कभी नहीं.’’

‘‘मुझे लगता है कि वह हमारे प्रेम के बारे में जानती है.’’

 

कुछ देर खामोश रहने के बाद मैं ने अपना फैसला राजेश को बता दिया, ‘‘तुम्हें एतराज नहीं हो तो मैं सरोज से खुल कर बातें करना चाहूंगी. आगे की जिंदगी तुम से दूर रह कर गुजारने को अब मेरा दिल तैयार नहीं है.’’

‘‘मैं इस मामले में कुछ नहीं कहूंगा. अब तुम हाथमुंह धो कर फ्रैश हो जाओ. सरोज चाय लाती ही होगी.’’

राजेश के पुकारने पर सोनू और मोनू दोनों भागते हुए बाहर आए. दोनों बच्चे मुझे स्मार्ट और शरारती लगे. मैं उन से उन की पढ़ाई व शौकों के बारे में बातें करते हुए घर के भीतर चली गई.

घर बहुत करीने से सजा हुआ था. सरोज के सुघड़ गृहिणी होने की छाप हर तरफ नजर आ रही थी.

मेरे मन में उथलपुथल न चल रही होती तो सरोज के प्रति मैं ज्यादा सहज व मैत्रीपूर्ण व्यवहार करती. वह मेरे साथ बड़े अपनेपन से पेश आ रही थी. उस ने मेरी देखभाल और खातिर में जरा भी कमी नहीं की.

उस की बातचीत का बड़ा भाग सोनू और मोनू से जुड़ा था. उन की शरारतों, खूबियों और कमियों की चर्चा करते हुए उस की जबान जरा नहीं थकी. वे दोनों बातचीत का विषय होते तो उस का चेहरा खुशी और उत्साह से दमकने लगता.

हलवा बहुत स्वादिष्ठ बना था. साथसाथ चाय पीने के बाद सरोज दोपहर के खाने की तैयारी करने रसोई में चली गई.

‘‘सरोज के व्यवहार से तो अब ऐसा नहीं लगता है कि उसे तुम्हारे और मेरे प्रेम संबंध की जानकारी नहीं है,’’ मैं ने अपनी राय राजेश को बता दी.

‘‘सरोज सभी से अपनत्व भरा व्यवहार करती है, निशा. उस के मन में क्या है, इस का अंदाजा उस के व्यवहार से लगाना आसान नहीं,’’ राजेश ने गंभीर लहजे में जवाब दिया.

‘‘अपनी 12 सालों की विवाहित जिंदगी में सरोज ने क्या कभी तुम्हें अपने दिल में झांकने दिया है?’’

‘‘कभी नहीं…और यह भी सच है कि मैं ने भी उसे समझने की कोशिश कभी नहीं की.’’

‘‘राजेश, मैं तुम्हें एक संवेदनशील इनसान के रूप में पहचानती हूं. सरोज के साथ तुम्हारे इस रूखे व्यवहार का क्या कारण है?’’

‘‘निशा, तुम मेरी पसंद, मेरा प्यार हो, जबकि सरोज के साथ मेरी शादी मेरे मातापिता की जिद के कारण हुई. उस के पिता मेरे पापा के पक्के दोस्त थे. आपस में दिए वचन के कारण सरोज, एक बेहद साधारण सी लड़की, मेरी इच्छा के खिलाफ मेरे साथ आ जुड़ी थी. वह मेरे बच्चों की मां है, मेरे घर को चला रही है, पर मेरे दिल में उस ने कभी जगह नहीं पाई,’’ राजेश के स्वर की उदासी मेरे दिल को छू गई.

‘‘उसे तलाक देते हुए तुम कहीं गहरे अपराधबोध का शिकार तो नहीं हो जाओगे?’’ मेरी आंखों में चिंता के भाव उभरे.

‘‘निशा, तुम्हारी खुशी की खातिर मैं वह कदम उठा सकता हूं पर तलाक की मांग सरोज के सामने रखना मेरे लिए संभव नहीं होगा.’’

‘‘मौका मिलते ही इस विषय पर मैं उस से चर्चा करूंगी.’’

‘‘तुम जैसा उचित समझो, करो. मैं कुछ देर आराम कर लेता हूं,’’ राजेश बैठक से उठ कर अपने कमरे में चले गए और मैं रसोई में सरोज के पास चली आई.

हमारे बीच बातचीत का विषय सोनू और मोनू ही बने रहे. एक बार को मुझे ऐसा भी लगा कि सरोज शायद जानबूझ कर उन के बारे में इसीलिए खूब बोल रही है कि मैं किसी दूसरे विषय पर कुछ कह ही न पाऊं.

घर और बाहर दोनों तरह की टेंशन से निबटना मुझे अच्छी तरह से आता है. अगर मुझे देख कर सरोज तनाव, नाराजगी, गुस्से या डर का शिकार बनी होती तो मुझे उस से मनचाहा वार्तालाप करने में कोई असुविधा न महसूस होती.

उस का साधारण सा व्यक्तित्व, उस की बड़ीबड़ी आंखों का भोलापन, अपने बच्चों की देखभाल व घरगृहस्थी की जिम्मेदारियों के प्रति उस का समर्पण मेरे रास्ते की रुकावट बन जाते.

 

मेरी मौजूदगी के कारण उस के दिलोदिमाग पर किसी तरह का दबाव मुझे नजर नहीं आया. हमारे बीच हो रहे वार्तालाप की बागडोर अधिकतर उसी के हाथों में रही. जो शब्द उस की जिंदगी में भारी उथलपुथल मचा सकते थे वे मेरी जबान तक आ कर लौट जाते.

दोपहर का खाना सरोज ने बहुत अच्छा बनाया था, पर मैं ने बड़े अनमने भाव से थोड़ा सा खाया. राजेश मेरे हावभाव को नोट कर रहे थे पर मुंह से कुछ नहीं बोले. अपने बेटों को प्यार से खाना खिलाने में व्यस्त सरोज हम दोनों के दिल में मची हलचल से शायद पूरी तरह अनजान थी.

कुछ देर आराम करने के बाद हम सब पास के पार्क में घूमने पहुंच गए. सोनू और मोनू झूलों में झूलने लगे. राजेश एक बैंच पर लेटे और धूप का आनंद आंखें मूंद कर लेने लगे.

‘‘आइए, हम दोनों पार्क में घूमें. आपस में खुल कर बातें करने का इस से बढि़या मौका शायद आगे न मिले,’’ सरोज के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन कर मैं मन ही मन चौंक पड़ी.

उस की भोली सी आंखों में झांक कर अपने को उलझन का शिकार बनने से मैं ने खुद को इस बार बचाया और गंभीर लहजे में बोली, ‘‘सरोज, मैं सचमुच तुम से कुछ जरूरी बातें खुल कर करने के लिए ही यहां आई हूं.’’

‘‘आप की ऐसी इच्छा का अंदाजा मुझे हो चुका है,’’ एक उदास सी मुसकान उस के होंठों पर उभर कर लुप्त हो गई.

‘‘क्या तुम जानती हो कि मैं राजेश से बहुत पे्रम करती हूं?’’

‘‘प्रेम को आंखों में पढ़ लेना ज्यादा कठिन काम नहीं है, निशाजी.’’

‘‘तुम मुझ से नाराज मत होना क्योंकि मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हूं.’’

‘‘मैं आप से नाराज नहीं हूं. सच तो यह है कि मैं ने इस बारे में सोचविचार किया ही नहीं है. मैं तो एक ही बात पूछना चाहूंगी,’’ सरोज ने इतना कह कर अपनी भोली आंखें मेरे चेहरे पर जमा दीं तो मैं मन में बेचैनी महसूस करने लगी.

‘‘पूछो,’’ मैं ने दबी सी आवाज में उस से कहा.

‘‘वह 14 में से 12 दिन आप के साथ रहते हैं, फिर भी आप खुश और संतुष्ट क्यों नहीं हैं? मेरे हिस्से के 2 दिन छीन कर आप को कौन सा खजाना मिल जाएगा?’’

‘‘तुम्हारे उन 2 दिनों के कारण मैं राजेश के साथ अपना घर  नहीं बसा सकती हूं, अपनी मांग में सिंदूर नहीं भर सकती हूं,’’ मैं ने चिढ़े से लहजे में जवाब दिया.

‘‘मांग के सिंदूर का महत्त्व और उस की ताकत मुझ से ज्यादा कौन समझेगा?’’ उस के होंठों पर उभरी व्यंग्य भरी मुसकान ने मेरे अपराधबोध को और भी बढ़ा दिया.

‘‘राजेश सिर्फ मुझे प्यार करते हैं, सरोज. हम तुम्हें कभी आर्थिक परेशानियों का सामना नहीं करने देंगे, पर तुम्हें, उन्हें तलाक देना ही होगा,’’ मैं ने कोशिश कर के अपनी आवाज मजबूत कर ली.

‘‘वह क्या कहते हैं तलाक लेने के बारे में?’’ कुछ देर खामोश रह कर सरोज ने पूछा.

‘‘तुम राजी हो तो उन्हें कोई एतराज नहीं है.’’

‘‘मुझे तलाक लेनेदेने की कोई जरूरत महसूस नहीं होती है, निशाजी. इस बारे में फैसला भी उन्हीं को करना होगा.’’

‘‘वह तलाक चाहेंगे तो तुम शोर तो नहीं मचाओगी?’’

मेरे इस सवाल का जवाब देने के लिए सरोज चलतेचलते रुक गई. उस ने मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए. इस पल उस से नजर मिलाना मुझे बड़ा कठिन महसूस हुआ.

‘‘निशाजी, अपने बारे में मैं सिर्फ एक बात आप को इसलिए बताना चाहती हूं ताकि आप कभी मुझे ले कर भविष्य में परेशान न हों. मेरे कारण कोई दुख या अपराधबोध का शिकार बने, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘सरोज, मैं तुम्हारी दुश्मन नहीं हूं, पर परिस्थितियां ही कुछ…’’

उस ने मुझे टोक कर अपनी बात कहना जारी रखा, ‘‘अकेलेपन से मेरा रिश्ता अब बहुत पुराना हो गया है. मातापिता का साया जल्दी मेरे सिर से उठ गया था. मामामामी ने नौकरानी की तरह पाला. जिंदगी में कभी ढंग के संगीसाथी नहीं मिले. खराब शक्लसूरत के कारण पति ने दिल में जगह नहीं दी और अब आप मेरे बच्चों के पिता को उन से छीन कर ले जाना चाहती हैं.

‘‘यह तो कुदरत की मेहरबानी है कि मैं ने अकेलेपन में भी सदा खुशियों को ढूंढ़ निकाला. मामा के यहां घर के कामों को खूब दिल लगा कर करती. दोस्त नहीं मिले तो मिट्टी के खिलौनों, गुडि़या और भेड़बकरियों को अपना साथी मान लिया. ससुराल में सासससुर की खूब सेवा कर उन के आशीर्वाद पाती रही. अब सोनूमोनू के साथ मैं बहुत सुखी और संतुष्ट हूं.

‘‘मेरे अपनों ने और समाज ने कभी मेरी खुशियों की फिक्र नहीं की. अपने अकेलेपन को स्वीकार कर के मैं ने खुद अपनी खुशियां पाई हैं और मैं उन्हें विश्वसनीय मानती हूं. उदासी, निराशा, दुख, तनाव और चिंताएं मेरे अकेलेपन से न कभी जुड़ी हैं और न जुड़ पाएंगी. मेरी जिंदगी में जो भी घटेगा उस का सामना करने को मैं तैयार हूं.’’

मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई. राजेश ठीक ही कहते थे कि सरोज से तलाक के बारे में चर्चा करना असंभव था. बिलकुल ऐसा ही अब मैं महसूस कर रही थी.

 

सरोज के लिए मेरे मन में इस समय सहानुभूति से कहीं ज्यादा गहरे भाव मौजूद थे. मेरा मन उसे गले लगा कर उस की पीठ थपथपाने का किया और ऐसा ही मैं ने किया भी.

उस का हाथ पकड़ कर मैं राजेश की तरफ चल पड़ी. मेरे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला, पर मन में बहुत कुछ चल रहा था.

सरोज से कुछ छीनना किसी भोले बच्चे को धोखा देने जैसा होगा. अपने अकेलेपन से जुड़ी ऊब, तनाव व उदासी को दूर करने के लिए मुझे सरोज से सीख लेनी चाहिए. उस की घरगृहस्थी का संतुलन नष्ट कर के अपनी घरगृहस्थी की नींव मैं नहीं डालूंगी. अपनी जिंदगी और राजेश से अपने प्रेम संबंध के बारे में मुझे नई दृष्टि से सोचना होगा, यही सबकुछ सोचते हुए मैं ने साफ महसूस किया कि मैं पूरी तरह से तनावमुक्त हो भविष्य के प्रति जोश, उत्साह और आशा प्रदान करने वाली नई तरह की ऊर्जा से भर गई हूं.द्य

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