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Online Hindi Story : हिम्मत – जब माधुरी ने अपने पति को सब कुछ बता दिया

Online Hindi Story : काफी सोचने के बाद माधुरी ने अपने और अशोक के बारे में पति आकाश को सबकुछ बता देने का फैसला किया. अशोक के रास्ते पर चलने से उसे बरबाद होने से कोई नहीं बचा सकता था. पति को सचाई बता देने से शायद वह उस की गलती माफ कर उसे स्वीकार कर सकता था.

माधुरी अपने मातापिता की एकलौती औलाद थी. उस के पिता एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे और किराए के मकान में रहते थे. उस की मां घरेलू थी.

माधुरी के पिता के पास कोई जायदाद नहीं थी. उन का एक ही सपना था कि उन की बेटी पढ़लिख कर बहुत बड़ी अफसर बने. माघुरी भी अपने पिता का सपना पूरा करना चाहती थी. उस का सपना पूरा नहीं हुआ. जो कुछ भी हुआ, उस की कल्पना उस ने नहीं की थी.

स्कूल तक माधुरी ने खूब अच्छी तरह पढ़ाई की थी, मगर कालेज में जाते ही उस का मन पढ़ाई से हट गया था. इस की वजह यह थी कि कालेज में जाते ही अशोक से उस की आंखें लड़ गईं. वह बड़ा ही हैंडसम और स्मार्ट लड़का था. मौका देख कर एक दिन अशोक ने माधुरी को आई लव यू कह दिया, तो माधुरी भी अपनेआप को रोक न सकी. उस ने अपने दिल की बात कह दी, ‘‘मैं भी तुम्हें प्यार करती हूं.’’

इस के बाद वे दोनों बराबर अकेले में मिलनेजुलने लगे. 6 महीने बाद एक दिन अशोक माधुरी को अपने घर ले गया.

अशोक ने माधुरी को बताया था कि शहर में वह अकेले ही किराए के मकान में रहता है. उस का परिवार गांव में रहता है. उस के  पिता के पास धनदौलत की कोई कमी नहीं है. उस के पिता हर महीने उसे 20 हजार रुपए भेजते हैं.

माधुरी अशोक से बहुत प्रभावित थी. वह उस पर पूरा भरोसा भी करती थी, इसीलिए यह जानते हुए भी कि वह अकेला रहता है, वह उस के घर चली गई थी. बंद कमरे में प्यारमुहब्बत की बातें करतेकरते अचानक अशोक ने माधुरी को अपनी बांहों में भर लिया.

माधुरी ने विरोध किया, तो अशोक ने उसे यह कह कर यकीन दिला दिया कि पढ़ाई पूरी होते ही वह उस से शादी कर लेगा. फिर माधुरी ने अशोक का कोई विरोध नहीं किया और अपनेआप को उस के हवाले कर दिया, फिर तो यह सिलसिला चल निकला.

अशोक का वादा झूठा था, इस का पता माधुरी को तब चला, जब वह पेट से हो गई.

माधुरी ने शादी करने के लिए अशोक से कहा, तो वह अपने वादे से मुकर गया. उसे बच्चा गिरवा लेने की सलाह दी.

माधुरी किसी भी हाल में बच्चा नहीं गिराना चाहती थी. वह तो अशोक से शादी कर के बच्चे को जन्म देना चाहती थी.

माधुरी ने धमकी भरे लहजे में अशोक से कहा, ‘‘तुम मुझ से शादी नहीं करोगे, तो मैं पुलिस की मदद लूंगी. पुलिस को बताऊं गी कि शादी का झांसा दे कर तुम ने मेरी इज्जत से खिलवाड़ किया है.’’

‘‘अगर तुम ऐसा करोगी, तो मैं भी चुप नहीं रहूंगा. पुलिस को बताऊंगा कि तुम धंधेवाली हो. जिस्म बेच कर पैसा कमाना तुम्हारा पेशा है. मुझ से तुम ने 5 लाख रुपए मांगे थे. मैं ने रुपए देने से मना कर दिया, तो मुझे ब्लैकमेल करना चाहती हो.

‘‘मैं सबकुछ साबित भी कर दूंगा. तुम सुबूत देखना चाहती हो, तो देख लो,’’ कहने के बाद अशोक ने जेब से एक लिफाफा निकाला और माधुरी को दे दिया. धड़कते दिल से माधुरी ने लिफाफा खोला, तो वह सन्न रह गई. लिफाफे में 4 फोटो थे. पहले फोटो में वह अशोक के साथ हमबिस्तर थी और बाकी 3 फोटो में वह अलगअलग लड़कों के साथ थी.

माधुरी हैरान हो कर फोटो देख रही थी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अशोक उस के साथ ऐसा भी कर सकता है.  माधुरी को चुप देख कर अशोक ने ही कहा, ‘‘तुम यही सोच रही होगी कि फोटो में तुम मेरे अलावा दूसरे लड़कों के साथ कैसे हो, जबकि तुम मेरे सिवा कभी किसी मर्द के साथ सोई ही नहीं?

‘‘मैं जानता था कि दूसरी लड़कियों की तरह तुम भी आसानी से मेरी बात नहीं मानोगी, इसीलिए तुम्हें धंधेवाली साबित करना जरूरी था.

‘‘एक दिन मैं ने तुम्हारी चाय में बेहोशी की दवा मिला दी थी. तुम बेहोश हो गई, तो योजना के तहत बारीबारी से अपने 3 साथियों को सुलाया. उन के साथ फोटो खींचे और वीडियो फिल्म बनाई.

‘‘अब मेरी बात ध्यान से सुन लो. फोटो और सीडी पाना चाहती हो, तो तुम्हें 3 लाख रुपए देने होंगे, नहीं तो तुम्हारे फोटो इंटरनैट पर डाल दूंगा. फिर तुम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाओगी.’’

माधुरी हैरान हो कर अशोक की बातें सुन रही थी. अशोक बोले जा रहा था, ‘‘अगर तुम एकसाथ 3 लाख रुपए नहीं दे सकती, तो एक साल तक तुम्हें मेरे साथ धंधेवाली वाला काम करना होगा.

‘‘जिस मर्द को मैं तुम्हारे पास भेजा करूंगा, उसे तुम्हें खुश करना होगा. एक साल बाद फोटो और सीडी मैं तुम्हें लौटा दूंगा.’’

माधुरी समझ गई कि वह अशोक के जाल में बुरी तरह फंस चुकी है. उस ने रोरो कर के उस से गुजारिश की कि वह उसे धंधेवाली बनने पर मजबूर न करे, मगर अशोक ने उस की एक न सुनी.

आखिरकार माधुरी ने सोचनेसमझने के लिए उस से एक हफ्ते का समय मांगा. 5 दिन बाद भी माधुरी को अशोक से छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं सूझा, तो उस ने खुदकुशी करने का फैसला कर लिया.

वह खुदकुशी करती, उस से पहले ही एक दिन अखबार में उस ने पढ़ा कि एक लड़की को ब्लैकमेल करने के आरोप में पुलिस ने अशोक को गिरफ्तार कर लिया है.

माधुरी ने राहत की सांस ली. अब वह पढ़ाई छोड़ कर जल्दी से शादी कर शहर से दूर चली जाना चाहती थी. इस के लिए एक दिन उस ने मां को बताया, ‘‘अब मेरा मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है.’’

उस की मां समझदार थी. अपने पति से बात की और उस के लिए लड़के की तलाश शुरू हो गई. जल्दी ही माधुरी के लिए अच्छा लड़का मिल गया. फिर उस की शादी आकाश से हो गई.

आकाश कोलकाता का रहने वाला था. वह एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर था. उस के मातापिता नहीं थे.

प्यार करने वाला पति पा कर माधुरी बहुत जल्दी अशोक को भूल गई. वैसे भी अशोक को 3 साल की सजा हुई थी. उस लड़की ने अदालत में अपना आरोप साबित कर दिया था.

माधुरी को यकीन था कि अशोक उस की जिंदगी में अब कभी नहीं आएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ.

3 साल बाद एक दिन अशोक ने उसे फोन किया और यह कह कर होटल में बुलाया कि अगर वह नहीं आएगी, तो उस के पति आकाश को उस की फोटो और सीडी दे देगा.

होटल के बंद कमरे में अशोक ने माधुरी के साथ कोई बदतमीजी तो नहीं की, लेकिन सीडी और फोटो लौटाने की 3 साल पहले वाली शर्त उसे याद दिला दी. माधुरी रुपए देने में नाकाम थी. वह पति से रुपए मांगती, तो क्या कह कर मांगती.

माधुरी पति के साथ बेवफाई भी नहीं करना चाहती थी, इसलिए अंजाम की परवाह किए बिना उस ने अशोक को अपना फैसला सुना दिया, ‘‘न तो मैं तुम्हें रुपए दूंगी और न ही पति के साथ बेवफाई करूंगी. तुम्हें जो करना है कर लो.’’

अशोक जल्दबाजी में कोई गलत कदम नहीं उठाना चाहता था, इसलिए उस ने माधुरी को फिर से सोचने के लिए 2 दिन का समय दिया.

होटल से घर आ कर माधुरी तब से यह लगातार सोचने लगी. अब उसे कौन सा रास्ता चुनना चाहिए. सबकुछ पति को बता देना चाहिए या अशोक की बात मान कर धंधेवाली बन जाना चाहिए? आखिर में माधुरी ने पति को सचाई बता देने का फैसला किया.

आकाश शाम 7 अजे घर आया, तो वह अपनेआप को रोक न सकी. वह आकाश से जा कर लिपट गई और रोने लगी.

आकाश ने बड़ी मुश्किल से उसे चुप कराया और पूछा, ‘‘क्या बात है? तुम जानती हो कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं, इसलिए तुम्हें रोते हुए नहीं देख सकता.’’

माधुरी ने आकाश को अशोक के बारे में सब सचसच बता दिया. पति आकाश से माधुरी ने कुछ नहीं छिपाया.

आकाश बहुत समझदार था. वह रिश्ते को तोड़ने में नहीं जोड़ने में यकीन रखता था. किसी को उस की गलती की सजा देन में नहीं, बल्कि माफ कर उसे सुधारने में यकीन करता था.

आकाश ने माधुरी को माफ कर दिया और उसे बांहों में भर कर कहा, ‘‘जो हुआ, उसे दुखद सपना समझ कर भूल जाओ. पुलिस में कई बड़े अफसरों से मेरी जानपहचान है. वे लोग अशोक का सही इंतजाम करेंगे. कोई जान नहीं पाएगा कि वह कहां चला गया. अब तुम किसी बात की चिंता मत करो.’’

माधुरी की आंखों से निकलती आंसुओं की गरम बूंदों ने आकाश के सीने को नम कर दिया.

Hindi Kahani : तलाक के बाद – स्मिता के साथ जिंदगी ने कैसा खेल खेला

Hindi Kahani : आखिरकार 11 साल बाद कोर्ट का फैसला आ ही गया. वह जो चाहती थी, वही हुआ था. उसे अपने पति से तलाक मिल गया था. लेकिन 11 साल बाद अब इस तलाक का क्या औचित्य था. जब उस ने तलाक के लिए अदालत में मुकदमा दायर किया था, तब वह 25 वर्ष की यौवन के भार से लदी सुंदर युवती थी. अब वह 36 साल की प्रौढ़ा हो चुकी थी. चेहरे पर उम्र की परतों को दिखाने वाली मोटी चरबी चढ़ गई थी, जिस पर झुर्रियां पड़ने लगी थीं. बाल सफेद होने की यह कोई उम्र तो नहीं थी, लेकिन गमों के सायों ने उस पर सफेदी फेरनी शुरू कर दी थी.

यौवन पता नहीं कब चला गया था. हर सालज़्उसे वसंत का इंतजार रहता कि अब उस के जीवन में भी फूल खिलेंगे. न जाने कितने वसंत उस के जीवन में आए और गुजर गए, लेकिन उस के मन की बगिया में फूल नहीं खिले. हवा में खुशबू नहीं फैली. 36 वसंत देखने के बाद भी उसे लगता कि उस के जीवन में कोई वसंत नहीं आया था. दूरदूर तक, जहां तक नजर जाती थी, पतझड़ ही पतझड़ दिखता था और आंखों में रेगिस्तान था. उस के जीवन के गुजरे साल सूखे पत्तों की तरह हवा में उड़ते हुए उस के दिल में भयावह सन्नाटे का एहसास करा रहे थे.

इतने सालों बाद तलाक का आदेश पा कर वह गुम सी हो गई थी. आज वह यह सोचने पर मजबूर हो गई थी कि पति से तलाक तो मिल गया, लेकिन अब आगे क्या होगा?

वह बिलकुल अकेली है. मां कई साल पहले गुजर गई थीं. पिता उसी की चिंता में घुलते रहे और इसी कारण वे भी जल्दी मौत को गले लगा चले गए. मांबाप की मृत्यु के बाद बड़े भाई ने उस से किनारा कर लिया. भाभी से हमेशा 36 का आंकड़ा रहा. उस को ले कर भैयाभाभी में अकसर तनातनी चलती रहती. वह सब देखती थी, लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी. उस का भार, उस के मुकदमे का भार, कौन कब तक उठाता. वह एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी. उस से केवल उस के मुकदमे का ही खर्चज़्निकल पाता था. अब वह किराए के एक छोटे से कमरे में रहती थी.

बवंडर की तरह विचार उस के मस्तिष्क में उमड़घुमड़ रहे थे. विचारों में खोई वह अदालत की सीढि़यां उतर कर नीचे आई. चारों तरफ  लोगों की भीड़ और चीखपुकार मची थी. आज का शोर उस के कानों में बम के धमाकों की तरह गूंज रहा था. लग रहा था, शोर की अधिकता से उस के कान बहरे हो गए थे. किसी तरह वह कोर्टज़्परिसर से बाहर आई और बेमकसद एक तरफ चल दी.

जनवरी का महीना था और धूप में तीव्रता का एहसास होने लगा था. चलतेचलते वह एक छोटे से पार्कज़्के पास पहुंची, तो उस के अंदर चली गई. कुछ लड़केलड़कियां वहां बैठ कर चुहलबाजी कर रहे थे. उस ने उन की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और एक पेड़ के नीचे जा कर बैठ गई. वहां वह धूपछांव दोनों का आनंद ले सकती थी, लेकिन उस के जीवन में आनंद कहां था?

जिन प्रश्नों पर वह कई बार विचार कर चुकी थी, वही बारबार उस के दिमाग में आ रहे थे. आज से 11 साल पहलेज़् जब उस की शादी हुई थी, तब वह नहीं जानती थी कि एक दिन वह बिलकुल अकेली होगी, एक तलाकशुदा स्त्री, जिस के जीवन में पतझड़ की वीरानी के सिवा और कुछ नहीं होगा.

शादी से पहलेज़्उस की सहेलियां उस से कहती थीं कि वह घमंडी और अपनी खूबसूरती के मद में चूर लड़की है. वह नहीं जानती थी कि उस के स्वभाव में ये सारे अवगुण कैसे आए थे. ये जन्म से थे या हालात के तहत उस के स्वभाव में समा गए थे. तब वह जवानी और अपनी खूबसूरतीज़्के मद में चूर थी, इसलिए अपने इन अवगुणों की तरफ देखने, सोचने व उन में सुधार लाने की तरफ उस का ध्यान नहीं गया. मांबाप ने भी कभी उसे नहीं टोका कि उस में कोई ऐसा अवगुण है जो उस के जीवन को बरबाद कर देगा. भाई को उस से कोई मतलब नहीं था.

शादी के समय मां ने उसे सीख दी थी, ‘बेटी, अब तुम्हारे जीवन का दूसरा पक्ष शुरू होने जा रहा है. यह बहुत महत्त्वपूर्णज़् है और इस में यदि तुम ने सोचसमझ कर कदम नहीं रखा तो जीवनभर पछताने के अलावा और कुछ तुम्हारे हाथ में नहीं आएगा. पति को काबू में रखना, सासससुर को दबा कर रखना, उन के रिश्तेदारों को भाव न देना वरना सब आएदिन तुम्हारे ऊपर बोझ बन कर खड़े रहेंगे. कोशिश करना कि सासससुर से अलग रह कर अपना स्वतंत्र जीवन बिताओ. इस के लिए हर समय पति को टोकते रहना. एक न एक दिन वह तुम्हारी बात मान कर अलग रहने लगेगा.’

मां की बात उस ने गांठ बांध ली और शादी के एक हफ्ते बाद ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए. सब से पहले तो उस ने सास की बातों की तरफ ध्यान देना बंद किया. सास कुछ कहती तो वह न सुनने का बहाना बनाती. सास पास आ कर कहती, तो वह चिड़चिड़ा कर कहती, ‘आप नहीं कर सकतीं क्या इतना छोटा सा काम? जब देखो, तब मेरे सिर पर खड़ी रहती हैं. मैं जब इस घर में नहीं थी तो क्या ये काम आप नहीं करती थीं.’

वह जानबूझ कर कोई न कोई हंगामा खड़ा कर देती. फिर भी सास उस से तकरार न करती. कुछ ही दिनों बाद उस ने खाने को ले कर घर में हंगामा खड़ा कर दिया, ‘मुझे रोजरोज दालचावल अच्छे नहीं लगते. आप को खाने हों तो बनाइए. मैं अपना अलग खाना बना लिया करूंगी, नहीं तो होटल से मंगा लूंगी.’

पति राजीव ने उसे समझाते हुए कहा था, ‘तुम को जो पसंद हो, बना लिया करो. कोई मना करता है क्या?’

वह फास्टफूड की शौकीन थी. चाइनीज और कौंटिनैंटल खाना उसे पसंद था. वह जानती थी, ये चीजें घर में नहीं बनाई जा सकती थीं और अगर कोई बना भी ले, तो किचन की गरमीज़्में फुंकने से अच्छा है होटल से मंगा कर खा ले. इसीलिए उस ने इतना नाटक किया था कि घर में खाना बनाने का झंझट न करना पड़े. फिर भी उस ने साफसाफ कह दिया कि वह खाना नहीं बनाएगी.

वह फोन पर और्डर कर के बाहर से अपने लिए खाना मंगवाने लगी थी. इस सब का एक ही मकसद था कि वह राजीव को अपने मांबाप से अलग कर सके. यही नहीं, हर रविवार जिद कर के वह राजीव को बाहर भी ले जाती और महंगे रैस्तरां में खाना खा कर आती. जब भी दोनों बाहर से खाना खा कर आते, वह देखती कि राजीव का मूड उखड़ाउखड़ा सा रहता. लेकिन वह ध्यान नहीं देती.

एक दिन राजीव ने कह ही दिया, ‘स्मिता, अब ये महंगे शौक छोड़ दो. कुछ जिम्मेदारी भी समझो. मेरी पगार इतनी नहीं है कि मैं तुम्हारे लिए रोजाना बाहर से खाना मंगवा कर खिला सकूं. अपने हाथ से बनाना सीखो.’

‘मैं पूरे घर के लिए खाना नहीं बना सकती. मैं तुम्हारी पत्नी बन कर आई हूं, तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं. मांबाप से अलग रहो तो मैं घर में खाना बनाऊंगी वरना बाहर से ही मंगवा कर खिलाओ.’

राजीव तिलमिला कर रह गया था. फिर भी वह शांत भाव से बोला, ‘मांबाप हमारे ऊपर बोझ नहीं हैं. यह हमारा पुश्तैनी घर है. उन से अलग रह कर मेरा खर्च दोगुना हो जाएगा. यह बात तुम्हारी समझ में नहीं आती?’

‘तो क्या तुम मेरा और अपना खर्चज़्नहीं उठा सकते?’

‘उठा सकता हूं, मगर अलग रह कर नहीं,’ राजीव ने साफसाफ कहा.

‘तुम मेरा खर्च नहीं उठा सकते तो शादी क्यों की थी? समझ में नहीं आता, लोग कमाते एक धेला भी नहीं, लेकिन सुंदर पत्नी की कामना करते हैं. इस से अच्छा तो कुंआरे रहते?’

‘स्मिता, तुम बात का बतंगड़ क्यों बना रही हो. मेरे पापा को इतनी पैंशन मिलती है कि वे अपना खर्चज़्खुद उठा सकें. वे मेरी तनख्वाह का एक पैसा नहीं लेते, लेकिन जो शौक तुम ने पाल रखे हैं, उन में मेरी तनख्वाह 15 दिन भी नहीं चलती. बाक़ी महीने का खर्च कहां से आएगा. खाने के अलावा घर के और भी खर्चेज़्हैं.’

‘यह तुम जानो, यह तुम्हारा घर है. घर का खर्चज़्चलाना भी तुम्हारा काम है.’

‘सही है, लेकिन अनापशनाप खर्चों से घर नहीं चलता, बल्कि बरबादी आती है.’

‘तो मैं अनापशनाप खर्चज़्करती हूं, खाना ही तो खाती हूं, और क्या? मैं सब समझती हूं, पैसे बचा कर मांबाप को देते हो. अब ऐसा नहीं चलेगा. आइंदा से तनख्वाह मेरे हाथ में रखा करोगे, तब मैं देखती हूं, घरखर्चज़्कैसे नहीं चलता.’

राजीव मान गया. उस ने अगले महीने की पूरी तनख्वाह स्मिता के हाथ में रख दी, ‘यह लो, इस में 5 हजार रुपए निकाल देना. मैं ने एक पौलिसी ले रखी है. इस के अलावा मेरा स्कूल आनेजाने का खर्च 3 हजार रुपए है. बाकी तुम रख लो और घर चलाओ.’

राजीव को 8 हजार रुपए दे कर बाकी पैसे स्मिता ने रख लिए. पैसे हाथ में आते ही वह मनमानी पर उतर आई. बिना कुछ सोचेविचारे उस ने खानेपीने की चीजों और अपने लिए कपड़े खरीद कर एक हफ्ते में ही राजीव की पूरी तनख्वाह खत्म कर दी.

‘तुम्हें तनख्वाह इतनी कम मिलती है, मुझे पता नहीं था. वह तो एक हफ्ते भी नहीं चली,’ स्मिता ने जैसे राजीव पर एहसान करते हुए कहा, ‘बाकी महीना कैसे चलेगा?’

राजीव ने तब भरी निगाहों से उसे देखा था, ‘40 हजार रुपए कम नहीं होते. इतने में 10 आदमी बड़े आराम से एक महीना दालरोटी खा सकते हैं. लेकिन तुम्हारी बेवकूफी से 40 हजार रुपए एक हफ्ते में खर्च हो गए. अब घर में बैठ कर दालरोटी खाओ.’

राजीव की आवाज सख्त नहीं थी, लेकिन उस में थोड़ी तल्खी थी. उसे लगा कि राजीव उसे डांटेगा, इसलिए वह पहले ही लगभग चीख कर बोली, ‘पता नहीं कैसे भिखमंगों के घर में मांबाप ने मुझे ब्याह दिया. इतने अच्छेअच्छे रिश्ते मेरे लिए आए थे, लेकिन उन्हें यह टुटपुंजिया स्कूलमास्टर पसंद आया.’

‘स्मिता, तुम हालात को समझने की कोशिश करो. अमीर से अमीर आदमी भी होटल का खाना खाने से एक दिन कंगाल हो जाता है. तुम घर में खाना बना लिया करो.’

‘मैं इस घर के किचन में अपनी आंखें नहीं फोड़ूंगी. मुझे कहीं से भी पैसे ला कर दो, लेकिन मुझे पैसे चाहिए. मैं एक भिखारिन की तरह इस घर में नहीं रह सकती,’ और वह पैर पटकती हुई बैडरूम में चली गई.

रात में राजीव उसे मना रहा था, ‘स्मिता, मैं समझ सकता हूं कि शादी के पहले तुम्हारी अलग जिंदगी थी, लेकिन शादी के बाद हर लड़की को ससुराल की हालत के अनुसार खुद को ढालना पड़ता है.’

‘मुझे उपदेश देने की जरूरत नहीं है. अगर तुम मेरा खर्च नहीं उठा सकते तो मुझे तलाक दे दो. अभी भी मुझे अच्छा घरवर मिल जाएगा,’ स्मिता ने ऐंठ कर कहा.

राजीव तब सन्न रह गया था. इस मुद्दे पर उस ने स्मिता से कोई बहस नहीं की.

स्मिता रोज राजीव से पैसे की मांग करती, लेकिन वह मना कर देता.

एक दिन खीझ कर स्मिता ने कहा, ‘कंगाल आदमी, लो संभालो अपना घर, मैं जाती हूं.’ उस ने तैश में अपने कपड़ेलत्ते समेटे और जातेजाते फिर बोली, ‘जिस दिन मेरे खर्चज़्लायक कमाने लगो, मुझे विदा कराने आ जाना, लेकिन उस के पहले मांबाप से अलग रहने का इंतजाम कर लेना.’

राजीव और उस की मां ने उसे कितना मनाने की कोशिश की, यह याद आते ही स्मिता की आंखों में आंसू आ गए. सोचसोच कर वह दुखी होने लगी, लेकिन अब दुखी होने से क्या फायदा? आज जिस हालत में वह थी, उस की जिम्मेदार तो वह खुद थी.

पार्क की बैंचों पर और पेड़ों के नीचे अब लड़केलड़कियों की तादाद बढ़ने लगी थी. स्मिता ने अपने चारों तरफ  निगाह डाली. लड़के और लड़कियां खुले प्यार का आदानप्रदान कर रहे थे. उस ने एक लंबी सांस ली. उसे कुछ अजीब सा लगने लगा था और वह उठ कर पार्क के बाहर आ गई. शाम होने में अभी थोड़ी देर थी. उस ने अपने घर की तरफ का रुख किया.

रास्ते पर चलते हुए वह फिर उन्हीं विचारों में खो गई, जिन विचारों के दरिया से वह न जाने कितनी बार तैर कर बाहर आई थी.

पति का घर छोड़ कर अपने मायके आई तो मांबाप को बहुत हैरानी हुई. भाई भी परेशान हो गया. सब ने मिलबैठ कर उस से कारण पूछा, तो उस ने बस इतना कहा, ‘अब मैं उस कंगाल घर में नहीं जाऊंगी. आप लोगों ने अपने मन की कर ली, मुझे ब्याह कर आप लोग अपनी जिम्मेदारी से फ्री हो गए. लेकिन अब मुझे अपने ढंग से जीवन जीने दो. मैं राजीव से तलाक चाहती हूं.’

‘तलाक…’ सब के मुंह से एकसाथ निकला. कुछ देर सब मुंहबाए स्मिता का मुंह देखते रहे. फिर मां ने पूछा, ‘ऐसा क्या हो गया तुम्हारे साथ ससुराल में, जो 2 महीने बाद ही तुम तलाक लेने पर उतर आई?’

‘यह पूछो कि क्या नहीं हुआ? छोटे और गरीब लोगों के घर में मुझे ब्याहते हुए आप को शर्म नहीं आई? आप ने यह तक नहीं सोचा कि उस घर में आप की बेटी गुजारा कैसे करेगी? इतने प्यार से मुझे पालपोस कर बड़ा किया. मेरी हर जरूरत पूरी की, ऊंची शिक्षा दी. इस के बाद भी क्या मेरी जिंदगी में वही टुच्चा घर बचा था.’

‘बेटा, यह क्या कह रही हो? वे तुम्हारा खर्च क्यों नहीं उठा पा रहे हैं. तुम्हारे ऐसे कौन से खर्चे हैं, जो उन के बूते में नहीं हैं. अच्छाखासा खातापीता परिवार है,’ उस के पिता ने पूछा.

‘बेटी, ऐसी क्या बात हो गई जो तुम अपने पति से तलाक लेना चाहती हो? हमें कुछ बताओ तो हमें पता भी चले. मैं ने तुम्हें यह शिक्षा तो नहीं दी थी. बस, अलग रहने के लिए कहा था,’ उस के जवाब देने के पहले ही मां ने सवाल दाग दिया.

‘मैं ने कह दिया कि मुझे उस घर में अब लौट कर नहीं जाना, बस. मैं तलाक ले कर दूसरी जगह शादी करूंगी, इस बार खुद घरबार देख कर,’ उस ने अपना अंतिम फैसला सुना दिया. उस ने न किसी की सुनी, और न किसी की चलने दी. तब उस के पिता नौकरी करते थे, भाई भी नौकरी करने लगा था. मां गृहिणी थी. उस के खानेपीने की कोई परेशानी नहीं थी.

मायके लौटने के दूसरे महीने ही उस ने वकील से सलाह ले कर कोर्टज़्में तलाक का मुकदमा दायर कर दिया. नोटिस मिलने पर राजीव उस से मिलने आया था. वह उस से घर लौट कर चलने के लिए बहुत मिन्नत कर रहा था, लेकिन स्मिता ने उस से साफसाफ कह दिया था, ‘क्या आप ने अलग घर ले लिया है?’

‘नहीं स्मिता, मैं अपने मांबाप से अलग रहने के बारे में सोच भी नहीं सकता. बचकानी हरकत मत करो. इस से हम दोनों का जीवन बरबाद हो जाएगा.’

लेकिन उस ने समझने की कोशिश नहीं की. ऐंठ कर बोली, ‘तो फिर तलाक के लिए तैयार रहो.’

राजीव ने चलतेचलते कहा था, ‘हर बात में जिद अच्छी नहीं होती. इतना ध्यान रखना कि कोर्ट इतनी आसानी से किसी को तलाक नहीं देता, जब तक उस का कोई ठोस आधार न हो.’

स्मिता तब यह बात नहीं समझी थी. खुद को व्यस्त रखने के लिए उस ने एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका की नौकरी कर ली थी.

कोर्टज़्ने वादी स्मिता को 6 महीने का समय दिया, ताकि वह अपने फैसले पर दोबारा विचार कर सके. तब भी अगर उसे लगे कि वह अपने पति के साथ गुजारा नहीं कर सकती तो फिर से याचिका पर सुनवाई होगी. इस 6 महीने के दौरान राजीव ने फिर उस से मिलने की कोशिश की. लेकिन वह उस से बात तक करने को तैयार नहीं हुई. उसे पूरा यकीन था कि

6 महीने बाद उसे तलाक मिल जाएगा और तब वह अपनी मरजीज़्से किसी धनवान लड़के के साथ शादी कर लेगी. उस ने अखबारों, पत्रिकाओं और इंटरनैट पर अपने लिए योग्य वर की खोज भी करनी शुरू कर दी थी.

लेकिन उस की आशाओं पर पहली बार पानी तब फिरा, जब 6 महीने बाद सुनवाई शुरू हुई. हर सुनवाई पर तारीख पड़ जाती, कभी जज छुट्टी पर होते, कभी कोई वकील, कभी वकीलों की हड़ताल होती, कभी जज महोदय अन्य मामलों में बिजी होते. राजीव ने अपना जवाब दाखिल कर दिया था. वह स्मिता को तलाक नहीं देना चाहता था, जबकि तलाक की याचिका में स्मिता ने कहा था कि उस का पति उस का भरणपोषण करने में समर्थ नहीं था. राजीव की आय के प्रमाणपत्र मांगे गए थे.

यह सब करतेकरते 2-3 साल और निकल गए. फिर जज बदल गए. नए जज महोदय ने नए सिरे से सुनवाई शुरू की. हर पेशी पर केस की सुनवाई हुए बिना अगली तारीख पड़ जाती. बहुत दिनों बाद एक जज ने खुद स्मिता और राजीव से व्यक्तिगत तौर पर कुछ प्रश्न किए.

उस के बाद अगली तारीख पर फैसला सुनाया, ‘दोनों पक्षों को सुनने के बाद मैं इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि वादी के पास अपने पति से तलाक मांगने का कोई उचित कारण नहीं है. उन के बीच कलह का मात्र एक कारण है कि वादी अपने सासससुर से अलग रहना चाहती है, लेकिन पति ऐसा नहीं चाहता.

‘वादी ने दूसरा कारण यह बताया है कि प्रतिवादी उस का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं है. वादी का पति एक शिक्षक है और उस की आय का ब्योरा अदालत में मौजूद है, जिस से यह प्रमाणित होता है कि वह उस का भरणपोषण करने में सक्षम है. वादी के पास प्रतिवादी द्वारा प्रताडि़त करने का कोई प्रमाण भी नहीं है, सो वादी को निर्देश दिया जाता है कि वह पति के साथ रह कर अपना पारिवारिक दायित्य निभाते हुए रिश्तों में सामंजस्य बिठाए. मुझे विश्वास है कि दोनों सुखद दांपत्यजीवन व्यतीत करेंगे. याचिका खारिज की जाती है.’

कोर्ट का आदेश सुन कर स्मिता को गश आ गया था. लगभग 5 वर्षों बाद यह फैसला आया था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह किधर जाए. उसे कोर्टज़्के आदेश के ऊपर गुस्सा नहीं आ रहा था. उस का गुस्सा राजीव के ऊपर था. वह अगर सहमति दे देता तो उसे आसानी से तलाक मिल जाता.

पतिपत्नी साथसाथ रिश्तों में तालमेल बिठा कर रहने की कोशिश करेंगे. साथ रहेंगे तो मतभेद अपनेआप दूर हो जाएंगे, लेकिन स्मिता ऐसा नहीं सोचती थी. वह अपने पति के घर नहीं गई तो राजीव उसे मनाने आया था.

‘स्मिता, तुम अपनी जिद में हम दोनों का जीवन बरबाद कर रही हो,’ उस ने कहा था.

‘मेरा जीवन तो तुम बरबाद कर रहे हो. जब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती तो तुम मुझे तलाक क्यों नहीं दे देते.’

‘पता नहीं तुम कुछ समझने की कोशिश क्यों नहीं करती. शादीब्याह कोई हंसीमजाक नहीं है कि जब चाहा ब्याह कर लिया और जब चाहा तलाक ले लिया. हमारी अदालतें भी इन मामलों को गंभीरता से लेती हैं. वे दांपत्यजीवन को तोड़ने में नहीं, जोड़ने में विश्वास करती हैं. मुझे नहीं लगता, तुम्हें आसानी से तलाक मिल पाएगा.’

‘सबकुछ बहुत आसान है. तुम मुझे छोड़ दो, तो मैं आसानी से दूसरा ब्याह कर सकती हूं.’

‘तुम सुंदर हो, इसलिए तुम्हें लगता है कि तुम आसानी से दूसरा विवाह कर लोगी. हो सकता है, तुम्हें कोई राजकुमार मिल जाए, परंतु इस बात की क्या गारंटी है कि वह तुम्हें सुख से रखेगा,’ राजीव ने ताना मारते हुए कहा था.

‘मैं उसे खुश रखूंगी तो वह मुझे सुख से क्यों नहीं रखेगा?’

‘यही व्यवहार तुम मेरे साथ भी कर सकती हो. तुम अपनी बेवजह की जिद छोड़ दो, तो खुशियां पाने के बहुत सारे रास्ते खुल जाएंगे.’

‘मैं तुम्हारे साथ ऐडजस्ट नहीं कर सकती. तुम्हारे मांबाप मुझे अच्छे नहीं लगते. तुम मुझे छोड़ दो. मैं ने शादी डौटकौम पर अपना प्रोफाइल डाल रखा है, बहुत अच्छेअच्छे प्रपोजल आ रहे हैं.’ उस ने राजीव से इस तरह कहा, जैसे वह अपना अधिकार मांग रही थी. परंतु राजीव ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया. गुस्से से बोला, ‘तुम तो शादी कर लोगी, लेकिन मेरा क्या होगा? मैं दूसरी शादी नहीं कर सकता. पड़ोसी और रिश्तेदार क्या सोचेंगे कि मैं तुम्हारे साथ क्यों नहीं निभा पाया?’

‘किसी गरीब लड़की से शादी कर लो, सुखी रहोगे,’ स्मिता ने मजाक उड़ाते हुए कहा.

राजीव निराश लौट गया था.

अपने ही मांबाप के घर में उसे लगने लगा था कि वह पराई हो गई थी. बड़ा उपेक्षित सा जीवन जी रही थी वह अपने सगों के बीच में. धीरेधीरे उस की समझ में आ रहा था कि एक युवा स्त्री के लिए सही जगह उस की ससुराल ही होती है, मायका नहीं. यह समझने के बावजूद वह राजीव से कोई समझौता करने को तैयार नहीं थी. इंटरनैट पर आने वाले सुंदर प्रस्ताव उसे लुभा रहे थे. कई लड़कों से वह फोन पर बातें भी कर चुकी थी.

कुछ दिनों बाद जब उस के हाथ में कुछ पैसा आया तो उस के मंसूबों को फिर से पंख लग गए.

उस ने फिर वकील से बात की, ‘वकील साहब, आप किसी तरह मुझे मेरे पति से तलाक दिलवा दो.’

‘फिर से अर्जीज़्देनी होगी. इस बार केस में कोई ठोस वजह बतानी पड़ेगी. पहले वाले जज का तबादला हो गया है. अब नए जज आए हैं. कल तुम फीस के पैसे ले कर आ जाओ. परसों अर्जीज़् दाखिल कर देंगे.’

अर्जीज़्फिर से कोर्ट में दाखिल हो गई. कोर्टज़्ने फिर से विचार के लिए 6 महीने का समय दिया. कानून के तहत यह एक निर्धारित प्रक्रिया थी.

स्मिता नहीं जानती थी कि कानूनी प्रक्रिया इतनी लंबी खिंचती है. इस बार भी 3-4 महीने में एक तारीख पड़ती तो उस में सुनवाई न हो पाती. किसी न किसी कारण फिर से अगली तारीख पड़ जाती. अगली तारीख भी 3-4 महीने बाद की होती. पेशियों की तारीखें लंबी पड़ती थीं, लेकिन उम्र के हाशिए छोटे होते जा रहे थे.

एक मन कहता, अहं छोड़ कर वह राजीव के पास चली जाए, लेकिन तत्काल दूसरा मन उस की इस सोच को दबा देता. क्या वह अपनी हार को स्वीकार कर लेगी. लोग क्या कहेंगे, ससुराल पक्ष के लोग ताने मारमार कर उस का जीना हराम नहीं कर देंगे? क्या वह अपने स्वाभिमान को बचा पाएगी? उस के अंदर अहं का नाग फनफना कर अपना सिर उठा लेता और उसे आगे बढ़ने से रोक लेता. जब भी वह लंबे चलने वाले मुकदमे से हताश और निराश होती, तो उस के कदम पीछे हट कर पति से समझौता करने के लिए उकसाते, लेकिन अहं के पहाड़ की सब से ऊंची चोटी पर बैठी स्मिता नीचे उतरने से डर जाती.

एक बार उस ने अपने वकील से मुकदमा वापस लेने की बात की, तो उस ने कहा, ‘अब इतना आगे आ कर पीछे हटने का कोई मतलब नहीं है.’

वह अपनी सुंदर काया को जला कर राख किए दे रही थी. 36 की उम्र में वह 45 साल की लगने लगी थी. उस के सपने टूटटूट कर बिखरने लगे थे, सौंदर्यज़्के रंग फीके पड़ने लगे थे. उस के जीवन की बगिया में न तो भंवरों की गुनगुनाहट थी, न तितलियों के रंग. उस के चारों तरफ सूना आसमान पसर गया था और पैरों के नीचे तपता हुआ रेगिस्तान था, जिस का कोई ओरछोर नहीं था.

मुकदमा चलता रहा. इस बीच न जाने  कितने जज आए और चले गए,  लेकिन मुकदमा अपनी जगह से एक इंच भी नहीं हिला था. तलाक के प्रति अब उस का मोहभंग हो गया था.

कुछ और साल निकल गए. ढाक के वही तीन पात, कहीं कोई ओरछोर नजर नहीं आ रहा था.

जब उस का शरीर सूख गया, आंखों की चमक धूमिल हो गई, सौंदर्य ने साथ छोड़ दिया, बाल चांदी हो गए, तब एक दिन जज ने उस की तरफ देखते हुए पूछा, ‘क्या अभी भी आप तलाक चाहती हैं?’

उस की सूनी आंखें राजीव की तरफ मुड़ गई थीं. वह सिर झुकाए बैठा था. उस की तरफ कभी नहीं देखता था. स्मिता भी नहीं देखती थी. आज पहली बार देखा था. दोनों की आंखें चार होतीं तो बहुत सारे गिलेशिकवे दूर हो जाते. अब तक 10 साल बीत चुके थे और वह अच्छी तरह समझ गई थी कि अब उस के लिए तलाक के कोई माने नहीं थे. वह चुप रही तो उस के वकील ने कहा, ‘हुजूर, हम पहले ही कह चुके हैं कि वादी प्रतिवादी के साथ जीवन नहीं गुजार सकती.’

स्मिता का मन हुआ था कि वह चीखचीख कर कहे, ‘नहीं…नहीं… नहीं….’ लेकिन उस समय जैसे किसी ने उस का गला दबा दिया था. वह कुछ नहीं कह पाई थी और तब कोर्ट ने निर्देश दिया, ‘कुछ दिन और साथ रह कर देखो.’ लेकिन दोनों कभी साथ नहीं रहे. दोनों ही पक्ष इस बात को कोर्टज़्से छिपा रहे थे. वह इसलिए इस तथ्य को छिपा रही थी कि कोर्ट उस के आदेश की अवहेलना मान कर उस के खिलाफ कोई कार्यवाही न कर दे. राजीव पता नहीं क्यों इस तथ्य को छिपा रहा था. संभवतया वह स्मिता की भावनाओं के कारण इस बात को कोर्टज़्से छिपा रहा था.

सब के अपनेअपने अहं थे, अपनेअपने कारण थे. कोर्ट की अपनी रफ्तार थी. वह किसी की निजी जिंदगी से प्रभावित नहीं हो रही थी, लेकिन 2 जिंदगियां अदालती कार्यवाही में फंस कर पिस रही थीं.

सोचसोच कर उस ने अपने को जिंदा लाश बना लिया था. एक दिन वकील का उस के पास फोन आया कि अगली पेशी पर कोर्टज़्का आदेश आएगा. राजीव ने लिख कर दे दिया है कि वह उस को तलाक देना चाहता था. सुन कर स्मिता के दिल में एक बड़ा पहाड़ टूट कर गिर गया. वह अंदर से रो रही थी, परंतु बाहर उस के आंसू सूख गए थे. वह एक सूखी झील के समान थी, जिस में गहराई तो थी, लेकिन संवेदना और जीवन के जल की एक बूंद भी न थी.

राजीव के लिख कर देने के बाद ही शायद वर्तमान जज को यह भान हुआ होगा कि इतने सालों बाद भी अगर पतिपत्नी सामंजस्य नहीं बिठा पाए तो उन्हें तलाक दे देना ही बेहतर होगा. अगली पेशी पर वह कोर्ट गई, राजीव भी आया था. वह भी उस की तरह बूढ़ा हो गया था. दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा था. राजीव की आंखों में गहन पीड़ा का भाव था. वह आहत था, लेकिन अपनी पीड़ा किसी को बयान नहीं कर सकता था. वे दोनों विपरीत दिशा में खड़े हो कर फैसले का इंतजार करने लगे.

और आखिरकार कोर्टज़्का फैसला आ गया था. उसे तलाक मिल गया था, लेकिन वह खुश नहीं थी. 11 साल बहुत लंबा वक्त होता है. इतने सालों के बाद अब तलाक ले कर उस के मन में किस तरह के जीवन की अभिलाषा बची थी.

अब आगे क्या…एक बार फिर से वही प्रश्न उस के सामने था. अंधेरा घिर आया था. चारों तरफ बत्तियां जल गई थीं. लेकिन उस के अंदर असीम अंधेरा था. उस का दिल डूब रहा था, उस का सारा सौंदर्य खत्म हो गया था. सौंदर्यज़्के जाते ही उस का घमंड भी न जाने कहां गायब हो गया था. अब उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे? कोई भी तो उस का नहीं था इस दुनिया में? भाईभाभी पहले ही उस से विमुख हो गए थे. पति से तलाक मिल गया. अब उस का कौन था? आधी उम्र बीत जाने के बाद वह किस के सहारे जीवन बिताएगी. दूसरा विवाह कर सकती थी. बुढ़ापे तक लोग एकदूसरे का सहारा ढूंढ़ लेते हैं.

उस का मन बैचेन था और वह भाग कर कहीं चली जाना चाहती थी. आज उस का अहं चकनाचूर हो गया था.

मन में एक संकल्प लेने के बाद वह एक तय दिशा में चल पड़ी. गली बड़ी सुनसान थी. चारों ओर अंधेरा था. केवल घरों का प्रकाश खिड़कियों से छन कर गली में आ रहा था. ऐसे में गली में सबकुछ साफसाफ नहीं दिखाई दे रहा था, लेकिन स्मिता के मन के अंदर एक अनोखा प्रकाश व्याप्त हो गया था, जिस में वह सबकुछ साफसाफ देख रही थी. अब उस के मन में कोई दुविधा नहीं थी.

घर के अंदर भी सन्नाटा था. उस ने धीरे से घंटी दबाई, अंदर से घंटी की आवाज सुनाई दी. फिर 2 मिनट बाद दरवाजा खुला. उस के सामने मुदर्नी चेहरा लिए राजीव खड़ा था. मूक, अंदर का प्रकाश स्मिता के चेहरे पर पड़ रहा था. वह पहचान गया था, लेकिन तुरंत उस के मुंह से आवाज नहीं निकली. स्मिता का दिमाग स्थिर था, मन शांत था. दिल में बस एक गुबार था, जो बाहर निकलने के लिए बेताब हो रहा था.

‘‘राजीव,’’ उस ने भीगे स्वर में कहा. राजीव कुछ कहना चाहता था, लेकिन स्मिता ने उसे लगभग धकेलते हुए कहा, ‘‘मैं बहुत थक चुकी हूं, राजीव, कुछ देर बैठना चाहती हूं.’’ राजीव ने उसे अंदर आने का रास्ता दिया. वह अंदर आ कर धड़ाम से सोफे पर गिर गई और लंबीलंबी सांसें लेने लगी. राजीव दौड़ कर एक गिलास पानी ले आया और उस के हाथ में थमा कर बोला, ‘‘लो, पी लो.’’

राजीव ने सिर झुका कर कहा, ‘‘सबकुछ खत्म हो गया.’’

वह उठ कर सीधी बैठ गई, ‘‘नहीं राजीव, सबकुछ खत्म नहीं हुआ है. जीवन कभी खत्म नहीं होता, आशाएं कभी नहीं मरतीं. अगर कुछ खत्म हुआ है, तो मेरा अज्ञान, मूढ़ता और घमंड. मेरा सौंदर्यज़्भी खत्म हो गया है, लेकिन तुम्हारे लिए प्यार बढ़ गया है.’’

‘‘अब इस का कोई अर्थ नहीं है,’’ राजीव ने मरे स्वर में कहा.

‘‘क्या हम एकदूसरे के पास वापस नहीं आ सकते?’’ उस ने गिड़गिड़ाते स्वर में कहा और उस की बगल में आ कर बैठ गई, ‘‘मैं ने आप को बहुत कष्ट दिया, लेकिन सच मानिए, बहुत पहले ही मेरी समझ में आ गया था कि मैं जो कर रही थी, सही नहीं था.’’

‘‘फिर तभी लौट कर क्यों नहीं आई?’’ राजीव का स्वर थोड़ा खुल गया.

‘‘बस, अविवेक का परदा पूरी तरह से हटा नहीं था. अहं की दीवार तड़क गई थी, लेकिन टूटी नहीं थी. परंतु आप ने क्यों बयान दे दिया कि आप भी तलाक देना चाहते हो?’’

‘‘स्मिता, तुम्हें नहीं पता, अदालतों और वकीलों के चक्कर में न जाने कितने परिवार बरबाद हो गए. पहले मुझे लगता था, दोएक साल तक कोर्ट के चक्कर लगाने के बाद तुम्हारी अक्ल ठिकाने आ जाएगी और तुम तलाक का मुकदमा वापस ले लोगी. परंतु जब देखा 11 साल निकल गए, जवानी साथ छोड़ती जा रही है. तब मैं ने कोर्ट में अपनी सहमति दे दी, वरना यह कार्यवाही जीवन के अंत तक समाप्त नहीं होती.’’

स्मिता कुछ पल तक उस के चेहरे को देखती बैठी रही, फिर पूछा, ‘‘तो क्या अदालत का फैसला मानोगे या…’’ उस ने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

राजीव के दिल में एक कसक सी उठी. वह कराह उठा, ‘‘मेरे मन में कभी भी तुम्हें ठुकराने की बात नहीं आई, यह तो तुम्हारी जिद के आगे मैं मजबूर हो गया था, तभी…’’

‘‘तो क्या आप को मन का फैसला मंजूर है?’’

राजीव कुछ नहीं बोला, बस, भावपूर्ण आंखों से उस के मलिन चेहरे पर निगाह गड़ा दी. स्मिता समझ गई और धीरे से अपना सिर उस के कंधे पर रख दिया.

Best Hindi Story : नो प्रौब्लम – राघव रितिका से शादी क्यों नहीं करना चाहता था

Best Hindi Story : ‘‘प्लीज राघव, मैं अब सोने जा रही हूं. बाहर काफी ठंड है. बाद में बात करते हैं,’’ रितिका ने राघव को समझाया.

सचमुच रितिका को ठंड लग गई थी. पूरा दिन औफिस में खटने के बाद कमरे में मोबाइल पर बात करना तक संभव नहीं था. कारण, वह पीजी में रहती थी. एक कमरा 3 युवतियां शेयर करती थीं. वह तो पीजी की मालकिन अच्छी थीं जो ज्यादा परेशान नहीं करती थीं वरना रितिका इस से पहले 3 पीजी बदल चुकी थी. राघव को उस की परेशानी का भान था पर फिर भी वह उसे बिलकुल नहीं समझता था.

रितिका ने राघव को कई बार दबे स्वर में विवाह के लिए कहना शुरू कर दिया था परंतु वह बड़ी सफाई से बात घुमा देता था. रितिका डेढ़ साल पहले करनाल से दिल्ली नौकरी करने आई थी. रहने के लिए रितिका ने एक पीजी फाइनल किया. जहां उस की रूममेट रिंपी थी जो पंजाब से थी. कमरा भी ठीक था. नई नौकरी में रितिका ने खूब मेहनत की.

रितिका तो दिन भर औफिस में रहती थी, पर रिंपी के पास कोई काम नहीं था. सो वह दिन भर पीजी में ही रहती थी. कभीकभी बाहर जाती तो देर रात ही वापस आती. ऐसे में रितिका चुपके से उस के लिए दरवाजा खोल देती. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती गहरी होती जा रही थी. अब रिंपी ने अपने दोस्तों से रितिका को भी मिलवाना शुरू कर दिया था. राघव से भी रिंपी के जरिए ही मुलाकात हुई. तीनों शौपिंग करते, लेटनाइट डिनर और डिस्क में जाते.

पीजी मालकिन ने अचानक दोनों युवतियों को लेटनाइट आते देख लिया. उस ने कुछ कहा तो रितिका ने पीजी मालकिन से झगड़ा कर दिया. उस दिन उस ने शराब पी रखी थी. फिर क्या था, रितिका को पीजी छोड़ना पड़ा. उस के बाद रितिका ने 2 पीजी और बदले. रिंपी भी पंजाब वापस चली गई थी. उस के मातापिता ने उस का रिश्ता पक्का कर दिया था. आज शाम को रितिका को राघव के साथ बाहर जाना था. राघव ने फोन पर कई बार उस से कहा था कि अपनी फ्रैंड्स को भी साथ में लाए.

फ्री की शराब और डिनर के लिए शाइना तैयार हो गई. शाइना को देख कर राघव बहुत खुश हुआ. बेहद खूबसूरत शाइना को देख कर राघव रितिका को बिलकुल भूल ही गया. कार का दरवाजा भी शाइना के लिए राघव ने ही खोला. डिनर और शराब भी शाइना की पसंद की ही मंगवाई गई, लेकिन इस से रितिका को अपना तिरस्कार लगा और रितिका की आंखों में आंसू आ गए.

पीजी आ कर रितिका पूरी रात रोती रही. अगले दिन इतवार था. राघव ने रितिका को एक फोन भी नहीं किया. तभी रात को शाइना रितिका के पास आ कर कहने लगी, ‘‘प्लीज रितिका, तुम अपने बौयफ्रैंड को समझा लो. देखो, कितनी मिस्ड कौल पड़ी हैं. मैं अपनी लाइफ में तुम्हारे स्टुपिड राघव की वजह से कोई प्रौब्लम नहीं चाहती. मेरा बंदा वैसे ही बहुत पजैसिव है मेरे लिए.’’

रितिका को बहुत बुरा लग रहा था. उस ने शाइना को सुझाव दिया कि वह राघव को ब्लौक कर दे. अब राघव ने रितिका को फोन किया. पहले तो उस ने फोन नहीं उठाया, फिर राघव का मैसेज पढ़ा, ‘‘डार्लिंग, तैयार हो जाओ. मैं तुम्हें अपने मम्मीपापा से मिलवाना चाहता हूं.’’

बस, रितिका तुरंत पिघल गई. उस ने पीजी में सभी लड़कियों को सुनासुना कर आगे का मैसेज पढ़ा. ‘‘मैं तुम्हें जैलेस यानी जलाना चाहता था. तुम्हें छोड़ कर मैं किसी लड़की की तरफ नजर भी नहीं डालता. आई लव यू सो मच.’’ रितिका ने गुलाबी रंग का सूट और हलकी ज्वैलरी पहनी. हलके मेकअप में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. उसे देखते ही राघव बौखला गया, ‘‘यह क्या है. ये सब पहन कर चलोगी मेरे साथ. जाओ, चेंज कर के आओ.’’

‘‘पर तुम अपने पेरैंट्स से मिलवाने वाले थे न,’’ रितिका हैरानी से बोली.

‘‘ओह हां, मेरी मां मौडर्न हैं. आज अचानक मम्मीपापा किसी रिश्तेदार को देखने अस्पताल गए हैं,’’ राघव को गुस्सा आ रहा था. रितिका ने ड्रैस चेंज कर ली. राघव ने बहलाफुसला कर रितिका को समझा दिया था. फिर एक दिन रितिका के पापा ने उसे फोन कर के बताया कि उन्होंने रितिका के लिए लड़का पसंद कर लिया है. उस ने राघव को फौरन अपने मम्मीपापा से मिलवाने को कहा. राघव ने उसे फिर से फुसला कर चुप कराना चाहा, ‘‘मेरे मम्मीपापा यूरोप गए हैं. 2 महीने बाद ही लौटेंगे.’’ ‘‘ठीक है, तो मेरे पापा से मिल लो,’’ इस पर राघव बिना कोई जवाब दिए रितिका को कल मिलने की बात कह कर चला गया.

रितिका बेहद परेशान थी. राघव के साथ वह सारी हदें पार कर चुकी थी. पीजी में रहना तो उस की मजबूरी थी. राघव ने एक छोटे से फ्लैट का इंतजाम किया हुआ था. वहीं रितिका और राघव अपना समय बिताते थे. उस ने रिंपी को फोन किया. राघव के बरताव के बारे में सबकुछ बताया.

रिंपी भी दोस्त न हो कर ऐसे बात कर रही थी मानो अजनबी हो, ‘‘देखो रितिका, मुझे नहीं पता तुम क्या कह रही हो. राघव तो शादीशुदा है. वह तुम से कैसे शादी कर सकता है.’’ ‘‘तुम ने मुझे ऐसे लड़के के साथ क्यों फंसाया,’’ रितिका ने रोना शुरू कर दिया था. ‘‘उस के पैसे से तुम घूमीफिरी, ऐश किया और इलजाम मुझ पर. मुझे आगे से फोन मत करना,’’ रिंपी ने टका सा जवाब दे कर फोन काट दिया, ‘‘और हां, पापा की मरजी से शादी कर लो. अरेंज मैरिज सब से अच्छी होती है. पापा भी खुश और तुम भी खुश. नो प्रौब्लम एट औल.’’

रितिका भी दोचार दिन रोनेधोने के बाद संभल गई. फोन कर के मम्मीपापा को पूछने लगी कि घर कब आना है. इस जमाने में दिल्ली जैसे महानगर में भी पापा की मरजी से शादी करने वाली लड़की पा कर मातापिता निहाल हो गए थे. रितिका ने भी अपनी प्रौब्लम सुलझा ली थी.

Hindi Story : एक चुप, हजार सुख – सुधीर भैया हमेशा लड़ाई क्यों करते थे

Hindi Story : कुछ लोगों की टांगें जरूरत से ज्यादा लंबी होती हैं, इतनी कि वे खुद ही जा कर दूसरों के मामले में अड़ जाती हैं. ऐसे ही अप्राकृतिक टांगों वाले व्यक्ति हैं मेरे बड़े भाई सुधीर भैया. वैसे तो लड़ने या लड़ाई के बीच में पड़ने का उन्हें कोई शौक नहीं है पर किसी दलितशोषित, जबान रहते भी खामोश, मजबूर व्यक्ति पर कुछ अनुचित होते देख कर उन का क्षत्रिय खून उबाल मारने लगता है. फिर वे उस बेचारे के उद्धार में लग जाते हैं. उन के साथ ऐसा बचपन से है. जाहिर है कि स्कूल और महल्ले में वे अपने इस गुण के कारण नेताजी के नाम से प्रसिद्ध रहे हैं.

भैया उम्र में मुझ से 2 वर्ष बड़े हैं. हम दोनों बचपन से बहुत करीब रहे हैं और एक ही स्कूल में होने के कारण हम दोनों को एकदूसरे के पलपल की खबर रहती थी. कब कौन क्लास से बाहर निकाला गया, किस लड़के ने मुझे कब छेड़ा या किस शिक्षक को देखते ही भैया के पांव कांपने लगते थे आदिआदि. जाहिर है कि भैया की अड़ंगेबाजी की नित नई कहानियां मुझे फौरन मिल जाती थीं.

चौथी कक्षा की बात है. भैया को जानकारी मिली कि उन की क्लास के एक शांत सहपाठी का बड़ी क्लास के कुछ उद्दंड छात्रों ने जीना मुश्किल कर रखा था. फिर क्या था, पूरी तफ्तीश करने के बाद लंच के दौरान बाकायदा उन बड़े लड़कों को रास्ते में रोक कर, लंबाचौड़ा भाषण दे कर और बात न मानने की स्थिति में शारीरिक नुकसान पहुंचाने की धमकी दे कर दुरुस्त किया गया.

भैया अपने समाजसेवी कार्य अपने दोस्तों से छिपा कर करते थे. उन्होंने किस बल पर अकेले ही उन लड़कों से लोहा लेने की ठानी, यह मेरे लिए आज भी रहस्य है. उन लड़कों ने भैया के सहपाठी को बिलकुल ही छोड़ दिया, पर उस दिन के बाद से अकसर ही कभी भैया की साइकिल पंक्चर मिलती या होमवर्क कौपी स्याही से रंगी मिलती या कभी बैग में से मेढक निकलते. भैया का उन लड़कों से पीछा तभी छूटा जब हम दोनों का स्कूल बदला.

इस के बाद घटनाएं तो कई हुईं किंतु सब से नाटकीय प्रकरण तब हुआ जब भैया कक्षा 9 में थे. वे गली के मुहाने पर खड़े अपने किसी दोस्त से बतिया रहे थे. सामने सड़क पर इक्कादुक्का गाडि़यां निकल रही थीं. लैंपपोस्ट की रोशनी बहुत अधिक न हो कर भी पर्याप्त थी. एक बूढ़ी दादी डंडे के सहारे मंथर गति से सड़क पार करने लगीं. एक मारुति कार गलती से एफ वन ट्रैक से भटक कर फैजाबाद रोड पर आ गई थी.

दादीजी की गति तो ऐसी थी कि बैलगाड़ी भी उन को टक्कर मार सकती थी. उस कारचालक ने बड़े जोर का ब्रेक लगाया और दादीजी बालबाल बच गईं. वह रुकी हुई कार रुकी ही रही. भैया और उन के मित्र के एकदम सामने ही बीच सड़क पर खड़ी उस कार की अगली सीट की खिड़की का शीशा नीचे गिरा और तीखे स्त्रीकंठ में ‘बुढि़या’ के बाद कुछ अपशब्दों की बौछार बाहर आई. भाईसाहब को बुरा लगना लाजिमी था, टांग अड़ाने का कीड़ा जो था.

‘‘मैडम, वे बहुत बूढ़ी हैं. जाने दीजिए, कोई बात नहीं. वैसे आप लोग भी काफी तेज आ रहे थे.’’ भैया के ये मधुरवचन सुनते ही वह महिला, गोद में बैठे 3-4 साल के बच्चे को अपनी सीट पर पटक, ‘‘तुझे तो मैं अभी बताती हूं,’’ कहते हुए, क्रोध से फुंफकारती हुई भैया की तरफ बड़े आवेश में लपकी. और फिर जो हुआ वह बड़ा अनापेक्षित था. एक जोरदार हाथ भैया के ऊपर आया जिसे उन के कमाल के रिफ्लैक्स ने यदि समय पर रोक न लिया होता तो उन की कृशकाया पीछे बहती महल्ले की नाली में से निकालनी पड़ती और पुलिस को आराम से उन के गाल से अपराधी की उंगलियों के निशान मिल जाते.

बचतेबचते भी उक्त महिला की मैनिक्योर्ड उंगली का नाखून भैया के गाल को छू ही गया. यदि गांधीजी की उस महिला से कभी भेंट हुई होती तो दूसरा गाल आगे कर लेनेदेने की बात के आगे यह क्लौज अवश्य लगा देते कि अतिरिक्त खतरनाक व्यक्ति से सामना होने पर पहले थप्पड़ के बाद उलटेपांव भाग खड़ा होना श्रेयस्कर रहेगा.

असफल हमले की खिसियाहट और छोटीमोटी भीड़ के इकट्ठा हो जाने से वह दंभी महिला क्रोध से कांपती, भैया को अपशब्दों के साथ, ‘‘देख लूंगी’’ की धमकी देते हुए कार में बैठ कर चली गई. उधर, हमारी प्यारी बूढ़ी दादी इस सब कांड से बेखबर अपनी पूर्व धीमी गति से चलते हुए कब गायब हो गईं, किसी को पता भी नहीं चला.

उस दिन भैया और मेरी लड़ाई हुई थी और बोलचाल बंद थी. इस घटना के बाद भैया सीधे मेरे पास आए और पूरी बात बताई. वे घबराए हुए थे. 15 वर्ष की संवेदनशील उम्र में दर्शकगण के सम्मुख अपरिचित से थप्पड़, चेहरे पर भले न लगा हो, अहं पर खूब छपा था. पर क्या भैया सुधरने वालों में से थे.

भैया इंजीनियरिंग के प्रथम वर्ष में थे. घर से दूर जाने का प्रथम अनुभव, उस पर कालेज की नईनई हवा. उन की क्लास में हमारे ही शहर का एक अतिसरल छात्र था जिस पर कालेज के कुछ अतिविशिष्ट, अतिसीनियर और अतिउद्दंड लड़कों की एक टोली ने अपना निशाना साध लिया था. बेचारा दिनरात उन के असाइनमैंट पूरे करता रहता था. छुट्टी वाले दिन उन के कपड़े धोने से ले कर खाना बनाने का काम करता था. यह अगर कम था तो उस गरीब को टोली के ऊबे होने की स्थिति में अपनी नृत्यकला और संगीतकला से मनोरंजन भी करना पड़ता था.

दूरदूर तक किसी में भी उन सीनियर लड़कों को रोक सकने या डिपार्टमैंट हैड तक यह बात पहुंचा सकने की हिम्मत नहीं थी. स्थिति अजीब तो थी पर अकेले व्यक्ति के संभाले जा सकने वाली भी न थी. जान कर अपना सिर कौन शेर के मुंह में देता है? यह प्रश्न भले ही अलंकारिक है पर इस का उत्तर है ‘मेरे बड़े भैया.’ परिणाम निश्चित था. मिला भी. गनीमत यह थी कि इस कांड के तुरंत बाद ही दशहरे की छुट्टियां पड़ गईं.

किंतु भैया अब भी समझ गए होते तो यह कहानी आगे क्यों बढ़ती. जख्मों से वीभत्स बना चेहरा और प्लास्टर लगा पैर ले कर भैया, हमारे चचेरे बड़े भाईबहन, प्रियंका दीदी और आलोक भैया के साथ दिल्ली के अतिव्यस्त रेलवे स्टेशन पर लखनऊ की ट्रेन का इंतजार कर रहे थे. दीदी भैया की नासमझी (छोटी हूं इसलिए ‘मूर्खता’ कहने की धृष्टता नहीं कर सकती) से इतनी नाराज थीं कि उन से बात ही नहीं कर रही थीं. आलोक भैया भाईसाहब से पहले ही लंबीचौड़ी गुफ्तगू कर चुके थे.

स्टेशन पर इन तीनों के पास ही कुछ लड़कियों का समूह विराजमान था. वे सभी अपनी यूनिवर्सिटी की पेटभर बुराई करते हुए, स्टेशन से खरीदे अखबार व पौलिथीन में बंधे भोजन का लुत्फ उठा रही थीं. कहने की आवश्यकता नहीं कि भोज समापन पर कूड़े का क्या हुआ. मुझे रोड पर तिनका डालने के लिए भी डांटने वाले भैया का पारा चढ़ना स्वाभाविक था. अब आप सोचेंगे कि यहां कौन दलित या शोषित था. टौफी का छिलका हो या पिकनिक के बाद का थैलाभर कूड़ा, भैया या तो सबकुछ कूड़ेदान में डालते हैं या तब तक ढोते रहते हैं जब तक कोई कूड़ेदान न मिल जाए.

उन शिक्षित लड़कियों के कर्कट विसर्जन के समापन की देर थी कि भैया दनदनाते हुए (जितना प्लास्टर के साथ संभव था) गए, कूड़ा उठाया और लंगड़ाते हुए जा कर वहां रखे कूड़ेदान में डाल आए. वापस आ कर कोई वजनी बात कहना आवश्यक हो गया था. सो, उधर गए और बहुत आक्रामक मुद्रा में बोले, ‘‘बैठ कर यूनिवर्सिटी की बुराई करना आसान है पर अपनी बुराई देख पाना बहुत कठिन होता है.’’ इस डायलौग संचालन का उद्देश्य था उन युवतियों को ग्लानि से त्रस्त कर उन की बुद्धि जाग्रत करना पर हुआ इस का उलटा.

लड़कियों ने भैया की ओर ऐसे क्रोधाग्नि में जलते बाण लक्ष्य किए कि सब उन की ओर पीठ फेर कर बैठ गए भाईसाहब की कमीज में आग नहीं लगी, आश्चर्य है. उन में से एक के पिताजी, जो साथ ही थे, भैया के पास आए और ज्ञान देने की मुद्रा धारण कर बोले, ‘‘बेटा, प्यार से कहने से बात अधिक समझ आती है. स्वामी दयानंद सरस्वती ने यही बात समझाई है.’’ इस के आगे भी काफी कुछ था जो भैया अवश्य सुनते यदि वे सज्जन अपनी पुत्री और उस की समबुद्धि सहेलियों को भी कुछ समझाते.

सारे प्रकरण का सिर्फ इतना हल निकला कि अगले डेढ़दो घंटे भैया को उस दल ती तीखी नजरों के अलावा बड़ी बहन का अच्छाखासा प्रवचन (जिस का सारांश कुल इतना था, ‘‘अभी भी बुद्धि में बात आई नहीं है? नेता बनना छोड़ दो.’’) और बड़े भाई के मुसकराते हुए श्रीमुख से निकले अनगिनत कटाक्ष बरदाश्त करने पड़े.

घर पहुंच कर दोनों घटनाओं के व्याख्यान के बाद, भाईसाहब की परिवार के प्रत्येक बड़े सदस्य से जम कर फटकार लगवाने और अच्छाखासा लैक्चर दिलवाने के बाद ही दीदी को शांति मिली. भैया मेरे कमरे में आए तो ग्लानि और क्रोध दोनों से ही त्रस्त थे. इस का एक ही परिणाम निकला, पूरी छुट्टियोंभर मेरे सब से अप्रिय विषय की किताब से जम कर प्रश्न हल करवाए गए और स्वयं को मिली डांट का शतांश प्रतिदिन मुझ पर निकाल कर ही भाईसाहब कुछ सामान्य हुए.

ऐसे अनेकानेक प्रकरण हैं जहां मेरे भोलेभाले भैया ने गलत को सही दिशा देने हेतु या किसी मजबूर के हिस्से की आवाज उठाते हुए, कभी रौद्र रूप अपनाया है या कभी आवाज बुलंद की है. घर, कालेज, सड़क, मंदिर, बाजार कहीं भी जहां भाईसाहब को लगा है कि यह गलत है, वहां कभी कह कर, कभी झगड़ कर, कभी डांट कर या लड़भिड़ कर उन्होंने स्थिति सुधारने की बड़ी ईमानदारी से कोशिश है, किंतु हर बार बूमरैंग की भांति उन का सारा आवेश घूम कर आ उन्हें ही चित कर गया है.

नौकरी में आ कर, कई सारे कड़वे अनुभवों के बाद आखिरकार भैया के ज्ञानचक्षु खुले. उन्हें 3 बातों का ज्ञान हुआ. पहली, चुप रहना या बरदाश्त करते रहना हमेशा सीधेसरल या कमजोर व्यक्तियों की मजबूरी नहीं होती बल्कि अकसर ही घाघ, घुन्ने और कांइयां व्यक्तियों का गुण भी होता है. दूसरी, लोगों की जिह्वा और कान दोनों को ही मीठे का चस्का होता है. तीसरी और आखिरी, बेगानी शादी में दीवाने अब्दुल्ला साहब की रेड़ पिटनी तो पहले से ही निश्चित होती है.

मेरे भैया, यह आत्मज्ञान पा जाने के बाद से बहुत ही अधिक शांत हो गए हैं. सदा ही पांव समेट कर चलते हैं. पर मैं, जो उन्हें अच्छी तरह से जानती हूं, यह समझती हूं कि उन के लिए यह कितना भारी काम है. खैर, भैया शांत भले ही हो गए हों लेकिन स्कूल और कालेज के सभी दोस्तों के बीच उन का नाम अभी भी ‘नेताजी’ ही चलता है.

Romantic Story : दूसरा विवाह – विकास शादी क्यों नहीं करना चाहता था?

Romantic Story : अपने दूसरे विवाह के बाद, विकास पहली बार जब मेरे घर आया तो मैं उसे देखती रह गई थी. उस का व्यक्तित्व ही बदल गया था. उस के गालों के गड्ढे भर गए थे. आंखों पर मोटा चश्मा, जो किसी चश्मे वाले मास्टरजी के कार्टून वाले चेहरे पर लगा होता है वैसे ही उस की नाक पर टिका रहता था लेकिन अब वही चश्मा व्यवस्थित तरीके से लगा होने के कारण उस के चेहरे की शोभा बढ़ा रहा था. कपड़ों की तरफ भी जो उस का लापरवाही भरा दृष्टिकोण रहता था उस में भी बहुत परिवर्तन दिखा. पहले के विपरीत उस ने कपड़े और सलीके से पहने हुए थे. लग रहा था जैसे किसी के सधे हाथों ने उस के पूरे व्यक्तित्व को ही संवार दिया हो. उस के चेहरे से खुशी छलकी पड़ रही थी.

मैं उसे देखते ही अपने पास बैठाते हुए खुशी से बोली, ‘‘वाह, विकास, तुम तो बिलकुल बदल गए. बड़ा अच्छा लग रहा है तुम्हें देख कर. शादी कर के तुम ने बहुत अच्छा किया. तुम्हारा घर बस गया. आखिर कितने दिन तुम ममता का इंतजार करते. अच्छा हुआ तुम्हें उस से छुटकारा मिल गया.’’

उस के लिए चाय बनातेबनाते, मैं मन ही मन सोचने लगी कि इस लड़के ने कितना झेला है. पूरे 8 साल अपनी पहली पत्नी ममता का मायके से लौटने का इंतजार करता रहा. लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही कि वह नहीं आएगी. विकास को ही अपना परिवार, जिस में उस की मां और एक कुंआरी बहन थी, को छोड़ कर उस के साथ रहना होगा.

विकास के छोटे से घर में उन सब के साथ रहना उस को अच्छा नहीं लगता था. ममता की अपनी मां का घर बहुत बड़ा था. विकास ने उसे बहुत समझाया कि बहन का विवाह करने के बाद वह बड़ा घर ले लेगा. लेकिन ममता को अपने सुख के सामने कुछ भी दिखाई ही नहीं पड़ता था. उस के मायके वालों ने भी उसे कभी समझाने की कोशिश नहीं की. विकास ने ममता की अनुचित मांग को मानने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन ससुराल में जा कर ममता को समझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अंत में वही हुआ, दोनों का तलाक हो गया. उन 8 सालों में हम ने विकास को तिलतिल मरते देखा था. वह मेरे बेटे रवि का सहकर्मी था. अकसर वह हमारे घर आ जाता था. मैं ने उस को कई बार समझाया कि वह अब पत्नी ममता का इंतजार न करे और तलाक ले ले. लेकिन वह कहता कि वह ममता को तलाक नहीं देगा, ममता को पहल करनी है तो करे. ममता को जब यह विश्वास हो गया कि विकास उस की शर्त कदापि पूरी नहीं करेगा तो उस ने विकास से अलग होने का फैसला ले लिया.

चाय पीते हुए मैं ने विकास से उस की नई पत्नी के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘आंटी, मैं तो शादी करना ही नहीं चाहता था, लेकिन मां और बहन की जिद के आगे मुझे झुकना पड़ा. आप को पता है कि उमा जिस से मैं ने शादी की है, वह एक स्कूल में टीचर है. उस के 2 बच्चे, एक लड़का और एक लड़की हैं. लड़का 12 साल का और लड़की 16 साल की है. उमा भी शादी नहीं करना चाहती थी. उमा के मांबाप तो उसे समझा कर थक गए थे, लेकिन अपने बच्चों की जिद के आगे उस ने शादी करना स्वीकार किया. जब उन बच्चों ने मुझे अपने पापा के रूप में पसंद किया, तभी हमारा विवाह हुआ. ‘‘मेरी होने वाली बेटी ने विवाह से पहले, मुझ से कई सवाल किए, पहला कि मैं उस के पहले पापा की तरह उन से मारपीट तो नहीं करूंगा. दूसरा, मुझे शराब पीने की आदत तो नहीं है? जब उसे तसल्ली हो गई तब उस ने मुझे पापा के रूप में स्वीकार करने की घोषणा की. मैं ने भी उन को बताया कि मेरे ऊपर जिम्मेदारी है, मैं उन को उतनी सुखसुविधाएं तो नहीं दे पाऊंगा, जो वर्तमान समय में उन्हें अपने नाना के घर में मिल रही हैं. मैं ने अभी बात भी पूरी नहीं की कि मेरी बेटी बोली कि उसे कुछ नहीं चाहिए, बस, पापा चाहिए. मुझे पलेपलाए बच्चे मिल गए और उन्हें पापा मिल गए.

‘‘मेरा तो कोई बच्चा है नहीं, अब इस उम्र में ऐसा सुख मिल जाए तो और क्या चाहिए. उमा भी यह सोच कर धन्य है कि उस को एक जीवनसाथी मिल गया और उस के बच्चों को पापा मिल गए. अब घर, घर लगता है. बच्चे जब मुझे पापा कहते हैं तो मेरा सीना गर्व से फूल जाता है. एक बार मेरी बेटी ने मेरे जन्मदिन पर एक नोट लिख कर मेरे तकिए के नीचे रख दिया. उस में लिखा था, ‘दुनिया के बैस्ट पापा’. उसे पढ़ कर मुझे लगा कि मेरा जीवन ही सार्थक हो गया है.’’

उस ने एक ही सांस में अपने मन के उद्गार मेरे सामने व्यक्त कर दिए. ऐसा करते हुए उस के चेहरे की चमक देखने लायक थी. बातबात में जब वह बड़े आत्मविश्वास के साथ ‘मेरी बेटी’ शब्द इस्तेमाल कर रहा था, उस समय मैं सोच रही थी कि कितनी खुश होगी वह लड़की, लोग तो अपनी पैदा की हुई बेटी को भी इतना प्यार नहीं करते. मैं ने कहा, ‘‘सच में, तुम ने एक औरत और उस के बच्चों को अपना नाम दे कर उन का जीवन खुशियों से भर दिया. एक तरह से उन का नया जन्म हो गया है. तुम ने इतना बड़ा काम किया है कि जिस की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है. तुम्हें घर बसाने वाली पत्नी के साथ पापा कहने वाले बच्चे भी मिल गए. मुझे तुम पर गर्व है. कभी परिवार सहित जरूर आना.’’ उस ने मोबाइल पर सब की फोटो दिखाई और दिखाते समय उस के चेहरे के हावभाव से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह कोई नैशनल लैवल का मैडल जीत कर आया है और दिखा रहा है.

‘‘चलता हूं, आंटीजी, बेटी को स्कूल से लेने जाना है. वह मेरा इंतजार कर रही होगी. अगली बार सब को ले कर आऊंगा…’’ और झुकते हुए मेरे पांव छू कर दरवाजे की ओर वह चल दिया. मैं उसे विदा कर के सोच में पड़ गई कि समय के साथ लोगों की सोच में कितना सकारात्मक परिवर्तन आ गया है. पहले परित्यक्ता और विधवा औरतों को कितनी हेय दृष्टि से देखा जाता था, जैसे उन्होंने ही कोई अपराध किया हो. पहली बात तो उन के पुनर्विवाह के लिए समाज आज्ञा ही नहीं देता था और किसी तरह हो भी जाता तो, विवाह के बाद भी ससुराल वाले उन को मन से स्वीकार नहीं करते थे. अच्छी बात यह है कि अब बच्चे ही अपनी मां को उन के जीवन के खालीपन को भरने के लिए उन्हें दूसरे विवाह के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जैसा कि विकास के साथ घटित हुआ है. यह सब देख कर मुझे बहुत सुखद अनुभूति हुई और आज की युवा पीढ़ी की सोच को मैं ने मन ही मन नमन करते हुए आत्मसंतुष्टि का अनुभव किया.

Religion : जरूरत है हिंदू वक्फ बोर्ड की भी

Religion : हिंदू मंदिरों के पास भी पैसा, सोनाचांदी और तमाम जमीने हैं. जिस का उपयोग या तो मंदिर का पुजारी कर रहा है या फिर मंदिर चलाने वाला ट्रस्ट कर रहा है. आखिर मुसलिम वक्फ बोर्ड की ही तरह हिंदू वक्फ बोर्ड क्यों न बने?

वक्फ एक व्यवस्था है. जिस का उद्देश्यों धार्मिक संस्थाओं को दान में मिली संपत्ति का प्रबंधन करना होता है. केंद्र की सरकार ने इस कानून में संशोधन पारित किया है. जिस के जरिए वह बता रही है कि यह कानून कितना अहम है. जिस तरह से वक्फ संपत्ति के प्रबंधन के लिए कानूनी ढांचे की आवश्यकता होती है. उसी तरह से हिंदू मंदिरों की संपत्तियों के प्रबंधन के लिए भी वक्फ कानून की जरूरत है.

हिंदू मंदिरों के पास भी पैसा, सोनाचांदी और तमाम जमीने हैं. जिस का उपयोग या तो मंदिर का पुजारी कर रहा है या फिर मंदिर को चलाने वाला ट्रस्ट कर रहा है. जिस से देश का हित नहीं हो रहा है. मुसलिम वक्फ की ही तरह से हिंदू मंदिरों के लिए भी वक्फ कानून बनना चाहिए.

इस वक्फ बिल का उद्देश्य हिंदू धर्म के वक्फ ट्रस्टों के लिए एक समान कानूनी ढांचे का निर्माण करना होगा. ताकि उन की संपत्तियों का प्रबंधन सही ढंग से किया जा सके और उन्हें धार्मिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जा सके. कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को धार्मिक उद्देश्यों के लिए दान करता है. इस संपत्ति का उपयोग धार्मिक संस्थाओं को चलाने, धार्मिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने, या धार्मिक संस्थाओं के लिए शिक्षा और कल्याण के कार्यों में किया जाता है.

भारत में वक्फ मुख्य रूप से मुसलिम धर्म से जुड़ा हुआ है. हिंदू धर्म में वक्फ जैसी प्रथा नहीं है. हिंदू वक्फ बिल का उद्देश्य हिंदू धर्म के वक्फ ट्रस्टों के लिए एक समान कानूनी ढांचे का निर्माण करना होगा. हिंदू वक्फ बिल हिंदू धर्म के वक्फ ट्रस्टों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करेगा. जिस से उन की संपत्ति सुरक्षित रहेगी. उन का प्रबंधन सही ढंग से किया जा सकेगा. हिंदू वक्फ बिल वक्फ ट्रस्टों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाने का काम करेगा. जिस से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि संपत्ति का उपयोग धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है. कोई भी अनियमितता नहीं हो रही है.

हिंदू वक्फ बिल हिंदू वक्फ ट्रस्टों के प्रशासन में सुधार लाने का काम करेगा. जिस से उन की कार्यप्रणाली अधिक कुशल और प्रभावी हो जाएगी. मंदिरों की संपत्ति का प्रयोग कल्याणकारी कार्यों जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, और गरीब लोगों की मदद में किया जा सकेगा. अभी तक हिंदू मंदिरों की संपत्तियों के प्रबंधन की कोई राष्ट्रीय संस्था नहीं है. अलगअलग तरह से मंदिरों की संपत्तियों का प्रबंधन किया जा रहा है.

मंदिरों की संपत्तियों पर किस का अधिकार

मंदिरों की संपत्ति में मंदिर का ही अधिकार होता हैं क्योंकि वह यह दान हैं जो भगवान को एक जीवित इंसान मान कर भक्तों द्वारा चढ़ाया जाता हैं. सर्वोच्च अदालत के रामलला केस के इस आदेश से ले सकते है. जिस में भारत में हिंदुओं के देवीदेवताओं को जूरिस्टिक पर्सन यानी लीगल व्यक्ति माना जाता है. इन को आम लोगों की तरह सभी कानूनी अधिकार होते हैं. मंदिरों में देवीदेवताओं को संपत्ति अर्जित करने, बेचने, खरीदने, ट्रांसफर करने और न्यायालय केस लड़ने समेत सभी कानूनी अधिकार होते हैं. मंदिर की संपत्ति पर लोगों की नजर रहती है.

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा एमपी लौ रेवेन्यू कोड 1959 के तहत जारी किए गए दो परिपत्रों को रद्द कर दिया. इन परिपत्रों में पुजारी के नाम राजस्व रिकौर्ड से हटाने का आदेश दिया गया था, ताकि मंदिर की संपत्तियों को पुजारियों द्वारा अनधिकृत बिक्री से बचाया जा सके.

उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि ‘पुजारी को मंदिर की जमीन का मालिक नहीं माना जा सकता है, मंदिर से जुड़ी जमीन के मालिक देवता ही हैं. पुजारी केवल मंदिर की संपत्ति के प्रबंधन का काम कर सकता है. न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की एक पीठ ने कहा कि पुजारी केवल मंदिर की संपत्ति के प्रबंधन के उद्देश्य से भूमि से जुड़े काम कर सकता है.

अदातल ने कहा ‘स्वामित्व’ वाले स्तंभ में केवल देवता का नाम ही लिखा जाए. देवता एक न्यायिक व्यक्ति होने के कारण भूमि का स्वामी होता है. भूमि पर देवता का ही कब्जा होता है. जिस के काम देवता की ओर से सेवक या प्रबंधकों द्वारा किए जाते हैं. इसलिए, प्रबंधक या पुजारी के नाम का जिक्र स्वामित्व स्तंभ में करने की आवश्यकता नहीं है.

पीठ ने कहा कि इस मामले में कानून स्पष्ट है कि पुजारी काश्तकार मौरुशी, खेती में काश्तकार या सरकारी पट्टेदार या मौफी भूमि राजस्व के भुगतान से छूट वाली भूमि का एक साधारण किराएदार नहीं है, बल्कि उसे औकाफ विभाग देवस्थान से संबंधित की ओर से ऐसी भूमि के केवल प्रबंधन के उद्देश्य से रख जाता है. पीठ ने कहा पुजारी केवल देवता की संपत्ति का प्रबंधन करने की एक गारंटी है और यदि पुजारी अपने कार्य करने में जैसे प्रार्थना करने तथा भूमि का प्रबंधन करने संबंधी काम में विफल रहे तो इसे बदला भी जा सकता है. इस प्रकार उन्हें भूमिस्वामी नहीं माना जा सकता.

हिंदू मंदिरों पर हो हिंदुओं का अधिकार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने देश में कुछ मंदिरों की स्थिति पर कहा कि मंदिरों की संस्थाओं के संचालन के अधिकार हिंदुओं को सौंपे जाने चाहिए और इन की संपत्ति का उपयोग केवल हिंदू समुदाय के कल्याणार्थ किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत के मंदिरों पर पूरी तरह राज्य सरकार का नियंत्रण है जब कि देश में कुछ हिस्सों में मंदिरों का प्रबंधन सरकार व कुछ अन्य का श्रद्धालुओं के हाथ में है.

भागवत ने सरकार द्वारा संचालित माता वैष्णो देवी मंदिर जैसे मंदिरों का उदाहरण देते हुए कहा कि इसे बहुत कुशलता से चलाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इसी तरह महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के शेगांव में स्थित गजानन महाराज मंदिर, दिल्ली में झंडेवाला मंदिर, जो भक्तों द्वारा संचालित हैं, को भी बहुत कुशलता से चलाया जा रहा है.

भागवत ने कहा, ‘लेकिन उन मंदिरों में लूट है जहां उन का संचालन प्रभावी ढंग से नहीं हो रहा है. जहां ऐसी चीजें ठीक से काम नहीं कर रही हैं, वहां एक लूट मची हुई है. कुछ मंदिरों में शासन की कोई व्यवस्था नहीं है. मंदिरों की चल और अचल संपत्तियों के दुरुपयोग के उदाहरण सामने आए हैं.’

भागवत ने कहा ‘हिंदू मंदिरों की संपत्ति का उपयोग गैर हिंदुओं के लिए किया जाता है. जिन की हिंदू भगवानों में कोई आस्था नहीं है. हिंदुओं को भी इस की जरूरत है, लेकिन उन के लिए इस का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.’ मंदिरों के प्रबंधन को ले कर उच्चतम न्यायालय के कुछ आदेश हैं शीर्ष अदालत ने कहा कि ईश्वर के अलावा कोई भी मंदिर का स्वामी नहीं हो सकता. पुजारी केवल प्रबंधक है. इस ने यह भी कहा कि सरकार प्रबंधन उद्देश्यों से इस का नियंत्रण ले सकती है लेकिन कुछ समय के लिए. लेकिन उसे स्वामित्व लौटाना होगा. इसलिए इस पर उचित ढंग से निर्णय लिया जाना चाहिए.’

भागवत ने कहा ‘इस संबंध में भी फैसला लिया जाना चाहिए कि हिंदू समाज इन मंदिरों की देखरेख कैसे करेगा?’ भागवत ने कहा कि जाति और पंथ के बावजूद सभी भक्तों के लिए मंदिर में भगवान के दर्शन, उन की पूजा के लिए गैर भेदभावपूर्ण पहुंच और अवसर भी हर जगह अमल में नहीं लाए जाते, लेकिन इन्हें (गैर भेदभाव पूर्ण पहुंच और अवसर) सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

भागवत ने कहा कि यह सभी के लिए स्पष्ट है कि मंदिरों की धार्मिक आचार संहिता के संबंध में कई निर्णय विद्वानों और आध्यात्मिक शिक्षकों के परामर्श के बिना ‘मनमौजी ढंग से’ किए जाते हैं.

यह साफ है कि मंदिरों के संचालन की कोई एक व्यवस्था नहीं है. ऐसे में कई तरह के विवाद है. इन विवादों को हल करने के लिए जरूरत है कि मंदिरों के लिए भी वक्फ बोर्ड बने. अदालतों में सालोंसाल ऐसे विवाद लटकते रहते हैं. मुसलिम वक्फ बोर्ड की ही तरह से हिंदू वक्फ कानून बने और इस का अलग ट्रिब्यूनल कोर्ट बने जहां ऐसे विवाद जल्दी से जल्दी हल हो जाए.

इस बोर्ड में भी शामिल होने वालों के लिए चुनाव हो. जो लोग इस बोर्ड में शामिल हो उन का समयसमय पर चुनाव हो. जिस तरह से गुरूद्वारा प्रबंधन कमेटी का होता है.

पूजा स्थलों के प्रबंधन को ले कर क्या है कानून?

अधिकांश हिंदू मंदिरों का प्रबंधन राज्य के नियमों के तहत किया जाता है. कई राज्यों ने ऐसे कानून बनाए हैं जो मंदिर प्रशासन पर सरकार को अधिकार प्रदान करते हैं. तमिलनाडु का हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग मंदिर प्रबंधन की देखरेख करता है जिस में वित्त और मंदिर प्रमुखों की नियुक्तियां शामिल हैं. आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा तिरुपति मंदिर के प्रबंधन हेतु उत्तरदायी, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम के प्रमुख की नियुक्ति की जाती है.

राज्य को मंदिरों में हस्तक्षेप की ताकत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25(2) से प्राप्त होती है. 2011 की गणना के अनुसार भारत में लगभग 30 लाख पूजा स्थलों में से अधिकांश हिंदू मंदिर हैं. मुसलिम और ईसाई पूजा स्थलों की देखरेख आमतौर पर समुदाय आधारित बोर्डों या ट्रस्टों द्वारा की जाती है, जो सरकारी नियंत्रण से स्वतंत्र हो कर कार्य करते हैं.

सिख, जैन और बौद्ध मंदिरों का प्रबंधन राज्य स्तर सामुदायिक भागीदारी की इन के प्रशासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका है. धार्मिक बंदोबस्त और संस्थाओं को संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में सूचीबद्ध किया गया है जिस से केंद्र और राज्य दोनों को इस विषय पर कानून बनाने का अधिकार है.

जम्मू और कश्मीर ने श्री माता वैष्णो देवी श्राइन अधिनियम, 1988 के तहत व्यक्तिगत मंदिरों के लिए विशिष्ट कानून बनाए हैं, जो उन के प्रशासन एवं वित्तपोषण की रूपरेखा तैयार करते हैं. 1810 और 1817 के बीच ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल, मद्रास और बौम्बे में कानून बनाए, जिस से आय के दुरुपयोग को रोकने के लिए मंदिर प्रशासन में हस्तक्षेप की अनुमति मिल गई.

धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम 1863 के तहत ब्रिटिश सरकार के इस अधिनियम का उद्देश्य मंदिर के नियंत्रण को समितियों को हस्तांतरित कर के मंदिर प्रबंधन को धर्मनिरपेक्ष बनाना था लेकिन नागरिक प्रक्रिया संहिता और धर्मार्थ तथा धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम 1920 जैसे विधिक ढांचों के माध्यम से सरकारी प्रभाव को बनाए रखा गया.

मद्रास हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम 1925 के तहत हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती बोर्ड की स्थापना की गई, जो एक वैधानिक निकाय था. इस के साथ ही प्रांतीय सरकारों को मंदिर के मामलों पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया, जिस में आयुक्तों के एक बोर्ड को निरीक्षण की अनुमति दी गई. 1950 में भारतीय विधि आयोग ने मंदिर के धन के दुरुपयोग को रोकने के लिए कानून की सिफारिश की, जिस के परिणामस्वरूप तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1951 को बनाया गया.

इस में मंदिरों और उन की संपत्तियों के प्रशासन, सुरक्षा और संरक्षण के लिए हिंदू धार्मिक तथा धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के गठन का प्रावधान था. लगभग उसी समय धार्मिक संस्थाओं को विनियमित करने के लिए बिहार में बिहार हिंदू धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 पारित किया गया.

अनुच्छेद 25(1) लोगों को अपने धर्म का पालन, प्रचारप्रसार करने की स्वतंत्रता देता है जो लोक व्यवस्था, नैतिकता तथा स्वास्थ्य के अधीन है. यह राज्य को धार्मिक प्रथाओं से जुड़ी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों को विनियमित करने और सामाजिक कल्याण, सुधार के साथ हिंदू धार्मिक संस्थानों को हिंदुओं के सभी वर्गों के लिये खोलने के लिए कानून बनाने की अनुमति देता है.

शिरूर मठ बनाम आयुक्त, हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती, मद्रास मामला, 1954 के संबंध में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि धार्मिक संस्थाओं को अनुच्छेद 26 के तहत स्वतंत्र रूप से अपने मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार है जबतक कि वे लोक व्यवस्था, नैतिकता या स्वास्थ्य के विपरीत नहीं होते हैं. राज्य धार्मिक या धर्मार्थ संस्थाओं के प्रशासन को विनियमित कर सकता है. इस मामले से भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकारों की सुरक्षा के क्रम में महत्त्वपूर्ण मिसाल कायम हुई.

रतिलाल पानाचंद गांधी बनाम बौम्बे राज्य मामला, 1954 सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि धार्मिक प्रथाएं भी धार्मिक आस्था या सिद्धांतों की तरह ही धर्म का हिस्सा हैं लेकिन यह संरक्षण केवल धर्म के आवश्यक एवं अभिन्न अंगों तक ही सीमित है.

पन्नालाल बंसीलाल पित्ती बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामला, 1996 सर्वोच्च न्यायालय ने मंदिर प्रबंधन पर वंशानुगत अधिकारों को समाप्त करने वाले कानून को बरकरार रखा. इस तर्क को खारिज कर दिया कि ऐसे कानून सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होने चाहिए.

1959 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपना पहला प्रस्ताव पारित किया जिस में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग की गई. काशी विश्वनाथ मंदिर 1959 अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने उत्तर प्रदेश सरकार से काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रबंधन हिंदुओं को वापस करने का आग्रह किया. 2023 में मध्य प्रदेश सरकार ने मंदिरों पर राज्य की निगरानी में ढील देने के लिए कदम उठाए हैं. हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट एक्ट, 1991 में भी ऐसे मंदिर प्रशासन बोर्ड की स्थापना का प्रावधान है.

पूरे मसले को देखने के बाद यह साफ हो गया है कि हिंदू मंदिरों की देखरेख और संपत्ति प्रबंधन के अधिकार के लिए हिंदू वक्फ बोर्ड बनाना होगा तभी देश में फैले मंदिरों के अंदर फैली मनमानी को रोका जा सकता है.

Hindi Kahani : विद्रोह – सीमा की आंखों से नींद क्यों भाग गई थी?

Hindi Kahani : सीमा को अपने मातापिता के घर में रहते हुए करीब 15 दिन हो चुके थे. इस दौरान उस का अपने पति राकेश से किसी भी तरीके का कोई संपर्क नहीं रहा था. उस शाम राकेश को अचानक घर आया देख कर वह हैरान हो गई.

‘‘बेटी, आपसी मनमुटाव को ज्यादा लंबा खींचना खतरनाक साबित हो जाता है. राकेश के साथ समझदारी से बातें करना,’’ अपनी मां की इस सलाह पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर किए बिना सीमा ड्राइंगरूम में राकेश के सामने पहुंच गई.

‘‘तुम्हें मेरे साथ घर चलना पडे़गा, सीमा,’’ राकेश ने बिना कोई भूमिका बांधे सख्त लहजे में कहा.

‘‘तुम्हारा घर मैं छोड़ आई हूं,’’ सीमा ने भी रूखे अंदाज में अपना फैसला उसे सुना दिया.

‘‘क्या हमेशा के लिए?’’ राकेश ने उत्तेजित हो कर सवाल किया.

‘‘ऐसा ही समझ लो,’’ सीमा ने विद्रोही स्वर में जवाब दिया.

‘‘बेकार की बात मत करो. मेरी सहनशक्ति का तार टूट गया तो पछताओगी,’’ राकेश भड़क उठा.

‘‘मुझे डरानेधमकाने का अब कोई फायदा नहीं है,’’ सीमा ने निडर हो कर कहा, ‘‘अगर तुम्हें और कोई बात नहीं कहनी है तो मैं अपने कमरे में जा रही हूं.’’

राकेश ने अपनी पत्नी को अचरज भरी निगाहों से देखा.  उन की शादी को करीब 12 साल  हो चुके थे. इस दौरान उस ने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि सीमा ऐसे विद्रोही अंदाज में उस से पेश आएगी.

उठ कर खड़ी होने को तैयार सीमा को हाथ के इशारे से राकेश ने बैठने को कहा और फिर  बताया कि कल सुबह मयंक और शिक्षा होस्टल से 10 दिनों की छुट्टियां बिताने घर पहुंच रहे हैं.

कुछ देर सोच में डूबी रहने के बाद सीमा ने व्याकुल स्वर में कहा, ‘‘उन दोनों को यहां मेरे पास छोड़ जाना.’’

‘‘तुम्हें पता है कि तुम क्या बकवास कर रही हो. वह दोनों यहां नहीं आएंगे,’’ राकेश गुस्से से फट पड़ा.

‘‘फिर जैसी तुम्हारी मर्जी, मैं बच्चों से कहीं बाहर मिल लिया करूंगी,’’ सीमा ने थके से अंदाज में राकेश का फैसला स्वीकार कर लिया.

‘‘यह कैसी मूर्खता भरी बात मुंह से निकाल रही हो. तुम्हारे बच्चे 4 महीने बाद घर लौट रहे हैं और तुम उन के साथ घर रहने नहीं आओगी. तुम्हारा यह फैसला सुन कर मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा है.’’

‘‘अपने बच्चों के साथ कौन मां नहीं रहना चाहेगी,’’ सीमा का अचानक गला भर आया, ‘‘मैं अपने फैसले से मजबूर हूं. मुझे उस घर में लौटना ही नहीं है.’’

‘‘हम अपने झगडे़ बाद में निबटा लेंगे, सीमा. फिलहाल तो बच्चों के मन की सुखशांति के लिए घर चलो. तुम्हें घर में न पाने का सदमा वे दोनों कैसे बरदाश्त करेंगे? अब वे दोनों बहुत छोटे बच्चे नहीं रहे हैं. मयंक 10 साल का और शिखा 8 साल की हो रही है. उन दोनों को बेकार ही मानसिक कष्ट पहुंचाने का फायदा क्या होगा?’’ राकेश ने चिढे़ से अंदाज में उसे समझाने का प्रयास किया.

‘‘एक दिन तो बच्चों को यह पता लगेगा ही कि हम दोनों अलग हो रहे हैं. यह कड़वी सचाई उन्हें इस बार ही पता लग जाने दो,’’ उदास सीमा अपनी जिद पर अड़ी रही.

‘‘ऐसा हुआ ही क्या है हमारे बीच, जो तुम यों अलग होने की बकवास कर रही हो?’’ राकेश फिर गुस्से से भर गया.

‘‘मुझे इस बारे में तुम से अब कोई बहस नहीं करनी है.’’

‘‘इस वक्त सहयोग करो मेरे साथ, सीमा.’’

सीमा ने कोई जवाब नहीं दिया. वह सिर झुकाए सोच में डूबी रही.

राकेश ने अंदर जा कर अपने सासससुर को सारा मामला समझाया. मयंक और शिखा की खुशियों की खातिर वह अपनी नाराजगी व शिकायतें भुला कर राकेश की तरफ  हो गए.

सीमा पर ससुराल वापस लौटने के लिए अब अपने मातापिता का दबाव भी पड़ा. अपने बच्चों से मिलने के लिए उस का मन पहले ही तड़प रहा था. अंतत: उस ने एक शर्त के साथ राकेश की बात मान ली.

‘‘मैं तुम्हारे साथ बच्चों की मां के रूप में लौट रही हूं, पत्नी के रूप में नहीं. पतिपत्नी के टूटे रिश्ते को फिर से जोड़ने का कोई प्रयास न करने की तुम कसम खाओ, तो ही मैं वापस लौटूंगी,’’ बडे़ गंभीर हो कर सीमा ने अपनी शर्त राकेश को बता दी.

अपमान का घूंट पीते हुए राकेश को मजबूरन अपनी पत्नी की बात माननी पड़ी.

‘‘बच्चे कल आ रहे हैं, तो मैं भी कल सुबह घर पहुंच जाऊंगी,’’ अपना निर्णय सुना कर सीमा ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में चली आई.

सीमा के व्यक्तित्व में नजर आ रहे जबरदस्त बदलाव ने उस के मातापिता व पति को ही नहीं, बल्कि उसे खुद को भी अचंभित कर दिया था.

उस रात सीमा की आंखों से नींद दूर भाग गई थी. पलंग पर करवटें बदलते हुए वह अपनी विवाहित जिंदगी की यादों में खो गई. उसे वे घटनाएं व परिस्थितियां रहरह कर याद आ रही थीं जो अंतत: राकेश व उस के दिलों के बीच गहरी खाई पैदा करने का कारण बनी थीं.

उस शाम आफिस से देर से लौटे राकेश की कमीज के पिछले हिस्से में लिपस्टिक से बना होंठों का निशान सीमा ने देखा. अपने पति को उस ने कभी बेवफा और चरित्रहीन नहीं समझा था. सचाई जानने को वह उस के पीछे पड़ गई तो राकेश अचानक गुस्से से फट पड़ा था.

‘हां, मेरी जिंदगी में एक दूसरी लड़की है,’ सीमा के दिल को गहरा जख्म देते हुए उस ने चिल्ला कर कबूल किया, ‘उस की खूबसूरती, उस का यौवन और उस का साथ मुझे वह मस्ती भरा सुख देते हैं जो तुम से मुझे कभी नहीं मिला. मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं, उसे नहीं.’

‘मेरे सारे गुण…मेरी सेवा और समर्पण को नकार कर क्या तुम एक चरित्रहीन लड़की के लिए मुझे छोड़ने की धमकी दे रहे हो?’ राकेश के आखिरी वाक्य ने सीमा को जबरदस्त मानसिक आघात पहुंचाया था.

‘उस लड़की के लिए न कोई अपशब्द कभी मेरे सामने निकालना और न उसे छोड़ने की बात करना. तुम अपनी घरगृहस्थी और बच्चों में खुश रहो और मुझे भी खुशी से जीने दो,’ कहते हुए बड़ी बेरुखी दिखाता राकेश बाथरूम में घुस गया था.

वह रात सीमा ने ड्राइंगरूम में पडे़ दीवान पर आंसू बहाते हुए काटी थी. उस के दिलोदिमाग में विद्रोह के बीज को इन्हीं आंसुओं ने अंकुरित होने की ताकत दी थी.

उस रात सीमा ने अपने दब्बूपन व कायरता को याद कर के भी आंसू बहाए थे.

राकेश शादी के बाद से ही उसे अपमानित कर नीचा दिखाता आया था. घर व बाहर वालों के सामने बेइज्जत कर उस का मजाक उड़ाने का वह कोई मौका शायद ही चूकता था.

सीमा के सुंदर नैननक्श की तारीफ नहीं बल्कि उस के सांवले रंग का रोना वह अकसर जानपहचान वालों के सामने रोता.

घर की देखभाल में जरा सी कमी रह जाती तो उसे सीमा को डांटनेडपटने का मौका मिल जाता. उस का कोई काम मन मुताबिक न होता तो वह उसे बेइज्जत जरूर करता.

बच्चों के बडे़ होने के साथ सीमा की जिम्मेदारियां भी बढ़ी थीं. 2 साल पहले सास के निधन के बाद तो वह बिलकुल अकेली पड़ गई थी. उन के न रहने से सीमा का सब से बड़ा सहारा टूट गया था.

राकेश के गुस्से से बच्चे डरेसहमे से रहते. उस के गलत व्यवहार को देख सारे रिश्तेदार, परिचित और दोस्त उसे एक स्वार्थी, ईर्ष्यालु व गुस्सैल इनसान बताते.

सीमा मन ही मन कभीकभी बहुत दुखी व परेशान हो जाती पर कभी किसी बाहरी व्यक्ति के मुंह से राकेश की बुराई सुनना उसे स्वीकार न था.

‘वह दिल के बहुत अच्छे हैं…मुझे बहुत प्यार करते हैं और बच्चों में तो उन की जान बसती है. मैं बहुत खुश हूं उन के साथ,’ सीमा सब से यह कहती भी थी और अपने मन की गहराइयों में इस विश्वास की जड़ें खुद भी मजबूत करती रहती थी.

घर में डरेसहमे से रह रहे मयंक व शिखा के व्यक्तित्व के समुचित विकास को ध्यान में रखते हुए वह उन्हें पिछले साल होस्टल में डालने को तैयार हो गई थी.

उन की पढ़ाई व घर का ज्यादातर खर्चा वह अपनी तनख्वाह से चलाती थी. राकेश करीब 1 साल से घरखर्च के लिए ज्यादा रुपए नहीं देता था. यह सीमा को उस रात ही समझ में आया कि वह जरूर अपनी प्रेमिका पर जरूरत से ज्यादा खर्चा करने के कारण घर की जिम्मेदारियों से हाथ खींचने लगा है.

अगले दिन वह आफिस नहीं गई थी. घर छोड़ कर मायके जाने की सूचना उस ने राकेश को उस के आफिस जाने से पहले दे दी थी.

‘तुम जब चाहे लौट सकती हो. मैं तुम्हें कभी लेने नहीं आऊंगा, यह ध्यान रखना,’ उसे समझानेमनाने के बजाय उस ने उलटे धमकी दे डाली थी.

‘मैं इस घर में कभी नहीं लौटूंगी,’ सीमा ने अपना निर्णय उसे बताया तो राकेश मखौल उड़ाने वाले अंदाज में हंस कर घर से बाहर चला गया था.

राकेश चाहेगा तो वह उसे तलाक दे देगी, पर उस के पास अब कभी नहीं लौटेगी, सीमा की इस विद्रोही जिद को उस के मातापिता लाख कोशिश कर के  भी तोड़ नहीं पाए थे.

लेकिन एक मां अपने बच्चों के मन की सुखशांति व खुशियों की खातिर अपने बेवफा पति के घर लौटने को तैयार हो गई थी.

सीमा को अगले दिन उस के मातापिता राकेश के पास ले गए. उस ने वहां पहुंचते ही पहले घर की साफसफाई की और फिर रसोई संभाल ली. अपने बेटाबेटी के लिए वह उन की मनपसंद चीजें बडे़ जोश के साथ बनाने के काम में जल्दी ही व्यस्त हो गई थी.

राकेश और उस के बीच नाममात्र की बातें हुईं. दोनों बच्चों को स्टेशन से ले कर राकेश जब 11 बजे के करीब घर लौटा, तब घर भर में एकदम से रौनक आ गई. मयंक और शिखा के साथ खेलते, हंसतेबोलते और घूमतेफिरते सीमा के लिए समय पंख लगा कर उड़ चला. दोनों बच्चे अपने स्कूल व दोस्तों की बातें करते न थकते. उन के हंसतेमुसकराते चेहरों को देख कर सीमा फूली न समाती.

जब कभी सीमा अकेली होती तो उदास मन से यह जरूर सोचती कि अपने कलेजे के टुकड़ों को कैसे बताऊंगी कि मैं ने उन के पापा को छोड़ कर अलग रहने का फैसला कर लिया है. उन हालात को यह मासूम कैसे समझेंगे जिन के कारण मुझे इतना कठोर फैसला करना पड़ा है.

वह रात को बच्चों के साथ उन के कमरे में सोती. दिन भर की थकान इतनी होती कि लेटते ही गहरी नींद आ जाती और मन को परेशान या दुखी करने वाली बातें सोचने का समय ही नहीं मिलता.

राकेश इन तीनों की उपस्थिति में अधिकतर चुप रह कर इन की बातें सुनता. उस में आए बदलाव को सब से पहले मयंक ने पकड़ा.

‘‘मम्मी, पापा बहुत बदलेबदले लग रहे हैं इस बार,’’ मयंक ने घर आने के तीसरे दिन दोपहर में सीमा के सामने अपनी बात कही.

‘‘वह कैसे?’’ सीमा की आंखों में उत्सुकता के भाव जागे.

‘‘वह पहले की तरह हमें हर बात पर डांटतेधमकाते नहीं हैं.’’

‘‘और मम्मी आप से भी लड़ना बंद कर दिया है पापा ने,’’ शिखा ने भी अपनी राय बताई.

‘‘मुझे तो इस बार पापा बहुत अच्छे लग रहे हैं.’’

‘‘मुझे भी बहुत प्यारे लग रहे हैं,’’ शिखा ने भी भाई के सुर में सुर मिलाया.

अपने बच्चों की बातें सुन कर सीमा मुसकराई भी और उस की आंखों में आंसू भी छलक आए. राकेश की बेवफाई को याद कर उस के दिल में एक बार नाराजगी, दुख व अफसोस से मिश्रित पीड़ा की तेज लहर उठी. जल्दी ही मन को संयत कर वह बच्चों के साथ विषय बदल कर इधरउधर की बातें करने लगी.

उस दिन शाम को राकेश बैडमिंटन खेलने के 4 रैकिट और शटलकौक खरीद लाया. दोनों बच्चे खुशी से उछल पड़े. उन की जिद के आगे झुकते हुए सीमा को भी उन तीनों के साथ बैडमिंटन खेलना पड़ा. यह शायद पहला अवसर था जब राकेश के साथ उस ने किसी गतिविधि में सहज व सामान्य हो कर हिस्सा लिया था.

उस रात सीमा बच्चों के कमरे में सोने के लिए जाने लगी तो राकेश ने उसे रोकने के लिए उस का हाथ पकड़ लिया था.

‘‘नो,’’ गुस्से और नफरत से भरा सिर्फ यह एक शब्द सीमा ने मुंह से निकाला तो राकेश की इस मामले में कुछ और कहने या करने की हिम्मत ही नहीं हुई.

बच्चों का मन रखने के लिए सीमा राकेश के साथ उस के दोस्तों के घर चायनाश्ते व खाने पर गई.

राकेश के सभी दोस्तों व उन की पत्नियों ने सीमा के सामने उस के पति के अंदर आए बदलाव पर कोई न कोई अनुकूल टिप्पणी जरूर की थी. उन के हिसाब से राकेश अब ज्यादा शांत, हंसमुख व सज्जन इनसान हो गया है.

सीमा ने भी उस में ये सब परिवर्तन महसूस किए थे, पर उस से अलग रहने के निर्णय पर वह पूर्ववत कायम रही.

राकेश ने दोनों बच्चों को कपड़ों व अन्य जरूरी सामान की ढेर सारी खरीदारी खुशीखुशी करा कर उन का मन और ज्यादा जीत लिया.

बच्चों को उन के वापस होस्टल लौटने में जब 4 दिन रह गए तब सीमा ने राकेश से कहा, ‘‘मेरी सप्ताह भर की छुट्टियां अब खत्म हो जाएंगी. बाकी 4 दिन बच्चे नानानानी के पास रहें, तो बेहतर होगा.’’

‘‘बच्चे वहां जाएंगे, तो मैं उन से कम मिल पाऊंगा,’’ राकेश का स्वर एकाएक उदास हो गया.

‘‘बच्चों को कभी मुझ से और कभी तुम से दूर रहने की आदत पड़ ही जानी चाहिए,’’ सीमा ने भावहीन लहजे में जवाब दिया.

राकेश कुछ प्रतिक्रिया जाहिर करना चाहता था, पर अंतत: धीमी आवाज में उस ने इतना भर कहा, ‘‘तुम अपने घर बच्चों के साथ चली जाओ. उन का सामान भी ले जाना. वे वहीं से वापस चले जाएंगे.’’

नानानानी के घर मयंक और शिखा की खूब खातिर हुई. वे दोनों वहां बहुत खुश थे, पर अपने पापा को वे काफी याद करते रहे. राकेश उन के बहुत जोर देने पर भी रात को साथ में नहीं रुके, यह बात दोनों को अच्छी नहीं लगी थी.

अपने मातापिता के पूछने पर सीमा ने एक बार फिर राकेश से हमेशा के लिए अलग रहने का अपना फैसला दोहरा दिया.

‘‘राकेश ने अगर अपने बारे में तुम्हें सब बताने की मूर्खता नहीं की होती, तब भी तो तुम उस के साथ रह रही होंती. तुम्हें संबंध तोड़ने के बजाय उसे उस औरत से दूर करने का प्रयास करना चाहिए,’’ सीमा की मां ने उसे समझाना चाहा.

‘‘मां, मैं ने राकेश की कई गलतियों, कमियों व दुर्व्यवहार से हमेशा समझौता किया, पर वह सब मैं पत्नी के कर्तव्यों के अंतर्गत करती थी. उन की जिंदगी में दूसरी औरत आ जाने के बाद मुझ पर अच्छी बीवी के कर्तव्यों को निभाते रहने के लिए दबाव न डालें. मुझे राकेश के साथ नहीं रहना है,’’ सीमा ने कठोर लहजे में अपना फैसला सुना दिया था.

अगले दिन बच्चे अपने पापा का इंतजार करते रहे पर वह उन से मिलने नहीं आए. इस कारण वे दोनों बहुत परेशान और उदास से सोए थे. सीमा को राकेश की ऐसी बेरुखी व लापरवाही पर बहुत गुस्सा आया था.

उस ने अगले दिन आफिस से राकेश को फोन किया और क्रोधित स्वर में शिकायत की, ‘‘बच्चों को यों परेशान करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है. कल उन से मिलने क्यों नहीं आए?’’

‘‘एक जरूरी काम में व्यस्त था,’’ राकेश का गंभीर स्वर सीमा के कानों में पहुंचा.

‘‘मैं सब समझती हूं तुम्हारे जरूरी काम को. अपनी रखैलों से मिलने की खातिर अपने बच्चों का दिल दुखाना ठीक नहीं है. आज तो आओगे न?’’

‘‘अपनी रखैल से मिलने सचमुच आज मुझे नहीं जाना है, इसलिए बंदा तुम सब से मिलने जरूर हाजिर होगा,’’ राकेश की हंसी सीमा को बहुत बुरी लगी, तो उस ने जलभुन कर फोन काट दिया.

राकेश शाम को सब से मशहूर दुकान की रसमलाई ले कर आया. यह सीमा की सब से ज्यादा पसंदीदा मिठाई थी. वह नाराजगी की परवा न कर उस के साथ हंसीमजाक व छेड़छाड़ करने लगा. बच्चों की उपस्थिति के कारण वह उसे डांटडपट नहीं सकी.

राकेश दोनों बच्चों को बाजार घुमा कर लाया. फिर सब ने एकसाथ खाना खाया. सीमा को छोड़ कर सभी का मूड बहुत अच्छा बना रहा.

बच्चों को सोने के लिए भेजने के बाद वह राकेश से उलझने को तैयार थी पर उस ने पहले से हाथ जोड़ कर उस से मुसकराते हुए कहा, ‘‘अपने अंदर के ज्वालामुखी को कुछ देर और शांत रख कर जरा मेरी बात सुन लो, डियर.’’

‘‘डोंट काल मी डियर,’’ सीमा चिढ़ उठी.

‘‘यहां बैठो, प्लीज,’’ राकेश ने बडे़ अधिकार से सीमा को अपनी बगल में बिठा लिया तो वह ऐसी हैरान हुई कि गुस्सा करना ही भूल गई.

‘‘मैं ने कल पुरानी नौकरी छोड़ कर आज से नई नौकरी शुरू कर दी है. कल शाम मैं ने अपनी ‘रखैल’ से पूरी तरह से संबंध तोड़ लिया है और अपने अतीत के गलत व्यवहार के लिए मैं तुम से माफी मांगता हूं,’’ राकेश का स्वर भावुक था, उस ने एक बार फिर सीमा के सामने हाथ जोड़ दिए.

‘‘मुझे तुम्हारे ऊपर अब कभी विश्वास नहीं होगा. इसलिए इस विषय पर बातें कर के न खुद परेशान हो न मुझे तंग करो,’’ न चाहते हुए भी सीमा का गला भर आया.

‘‘अपने दिल की बात मुझे कह लेने दो, सीमा, सब तुम्हारी प्रशंसा करते हैं, पर मैं ने सदा तुम में कमियां ढूंढ़ कर तुम्हें गिराने व नीचा दिखाने की कोशिश की, क्योंकि शुरू से ही मैं हीनभावना का शिकार बन गया था. तुम हर काम में कुशल थीं और मुझ से ज्यादा कमाती भी थीं.

‘‘मैं सचमुच एक घमंडी, बददिमाग और स्वार्थी इनसान था जो तुम्हें डरा कर अपने को बेहतर दिखाने की कोशिश करता रहा.

‘‘फिर तुम ने मेरी चरित्रहीनता के कारण मुझ से दूर होने का फैसला किया. पहले मैं ने तुम्हारी धमकी को गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि तुम कभी मेरे खिलाफ विद्रोह करोगी, ऐसा मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.

‘‘पिछले दिनों मैं ने तुम्हारी आंखों में अपने लिए जो नाराजगी व नफरत देखी, उस ने मुझे जबरदस्त सदमा पहुंचाया. सीमा, मेरी घरगृहस्थी उजड़ने की कगार पर पहुंच चुकी है, इस सचाई को सामने देख कर मेरे पांव तले की जमीन खिसक गई.

‘‘मुझे तब एहसास हुआ कि मैं न अच्छा पति रहा हूं, न पिता. पर अब मैं बदल गया हूं. गलत राह पर मैं अब कभी नहीं चलूंगा, यह वादा दिल से कर रहा हूं. मुझे अकेला मत छोड़ो. एक अच्छा पति, पिता व इनसान बनने में मेरी मदद करो.

‘‘तुम मां होने के साथसाथ मुझ से कहीं ज्यादा समझदार व सुघड़ स्त्री हो. औरतें घर की रीढ़ होती हैं. मेरे पास लौट कर हमारी घरगृहस्थी को उजड़ने से बचा लो, प्लीज,’’ यों प्रार्थना करते हुए राकेश का गला भर आया.

‘‘मैं सोच कर जवाब दूंगी,’’ राकेश के आंसू न देखने व अपने आंसू उस की नजरों से छिपाने की खातिर सीमा ड्राइंगरूम से उठ कर बच्चों के पास चली गई.

अपने बच्चों के मायूस, सोते चेहरों को देख कर वह रो पड़ी. उस के आंसू खूब बहे और इन आंसुओं के साथ ही उस के दिल में राकेश के प्रति नाराजगी, शिकायत व गुस्से के सारे भाव बह गए.

कुछ देर बाद राकेश उस से कमरे में विदा लेने आया.

‘‘आप रात को यहीं रुक जाओ कल बच्चों को जाना है,’’ सीमा ने धीमे, कोमल स्वर में उसे निमंत्रण दिया.

राकेश ने सीमा की आंखों में झांका, उन में अपने लिए प्रेम के भाव पढ़ कर उस का चेहरा खिल उठा. उस ने बांहें फैलाईं तो लजाती सीमा उस की छाती से लग गई.

Hindi Story : उजाले की ओर – क्या हुआ नीरजा और नील के प्यार का अंजाम?

Hindi Story : राशी कनाट प्लेस में खरीदारी के दौरान एक आवाज सुन कर चौंक गई. उस ने पलट कर इधरउधर देखा, लेकिन कोई नजर नहीं आया. उसे लगा, शायद गलतफहमी हुई है. उस ने ज्योंही दुकानदार को पैसे दिए, दोबारा ‘राशी’ पुकारने की आवाज आई. इस बार वह घूमी तो देखा कि धानी रंग के सूट में लगभग दौड़ती हुई कोई लड़की उस की तरफ आ रही थी.

राशी ने दिमाग पर जोर डाला तो पहचान लिया उसे. चीखती हुई सी वह बोली, ‘‘नीरजा, तू यहां कैसे?’’

दरअसल, वह अपनी पुरानी सखी नीरजा को सामने देख हैरान थी. फिर तो दोनों सहेलियां यों गले मिलीं, मानो कब की बिछड़ी हों.

‘‘हमें बिछड़े पूरे 5 साल हो गए हैं, तू यहां कैसे?’’ नीरजा हैरानी से बोली.

‘‘बस एक सेमिनार अटैंड करने आई थी. कल वापस जाना है. तुझे यहां देख कर तो विश्वास ही नहीं हो रहा है. मैं ने तो सोचा भी न था कि हम दोनों इस तरह मिलेंगे,’’ राशी सुखद आश्चर्य से बोली, ‘‘अभी तो बहुत सी बातें करनी हैं. तुझे कोई जरूरी काम तो नहीं है? चल, किसी कौफीहाउस में चलते हैं.’’

‘‘नहीं राशी, तू मेरे घर चल. वहां आराम से गप्पें मारेंगे. अरसे बाद तो मिले हैं,’’ नीरजा ने कहा.

राशी नीरजा से गप्पें मारने का मोह छोड़ नहीं पाई. उस ने अपनी बूआ को फोन कर दिया कि वह शाम तक घर पहुंचेगी. तब तक नीरजा ने एक टैक्सी रोक ली. बातोंबातों में कब नीरजा का घर आ गया पता ही नहीं चला.

‘‘अरे वाह नीरजा, तू ने दिल्ली में फ्लैट ले लिया.’’

‘‘किराए का है यार,’’ नीरजा बोली.

तीसरी मंजिल पर नीरजा का छोटा सा फ्लैट देख कर राशी काफी प्रभावित हुई. फ्लैट को सलीके से सजाया गया था. बैठक गुजराती शैली में सजा था.

नीरजा शुरू से ही रिजर्व रहने वाली लड़की थी, पर राशी बिंदास व मस्तमौला थी. स्कूल से कालेज तक के सफर के दौरान दोनों सहेलियों की दोस्ती परवान चढ़ी थी. राशी का लखनऊ में ही मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया था और नीरजा दिल्ली चली गई थी. शुरूशुरू में तो दोनों सहेलियां फोन व पत्रों के माध्यम से एकदूसरे के संपर्क में रहीं. फिर धीरेधीरे दोनों ही अपनी दुनिया में ऐसी उलझीं कि सालों बाद आज मुलाकात हुई.

राशी ने उत्साह से घर आतेआते अपने कैरियर व शादी तय होने की जानकारी नीरजा को दे दी थी, परंतु नीरजा ऐसे सवालों के जवाबों से बच रही थी.

राशी ने सोफे पर बैठने के बाद उत्साह से पूछा, ‘‘नीरजा, शादी के बारे में तू ने अब तक कुछ सोचा या नहीं?’’

‘‘अभी कुछ नहीं सोचा,’’ नीरजा बोली, ‘‘तू बैठ, मैं कौफी ले कर आती हूं.’’

राशी उस के घर का अवलोकन करने लगी. बैठक ढंग से सजाया गया था. एक शैल्फ में किताबें ही किताबें थीं. नीरजा ने आते वक्त बताया था कि वह किसी पब्लिकेशन हाउस में काम कर रही थी. राशी बैठक में लगे सभी चित्रों को ध्यान से देखती रही. उस की नीरजा से जुड़ी बहुत सी पुरानी यादें धीरेधीरे ताजा हो रही थीं. उस ने सोचा भी नहीं था कि उस की नीरजा से अचानक मुलाकात हो जाएगी.

राशी बैठक से उस के दूसरे कमरे की तरफ चल पड़ी. छोटा सा बैडरूम था, जो सलीके से सजा हुआ था. राशी को वह सुकून भरा लगा. थकी हुई राशी आरामदायक बैड पर आराम से सैंडल उतार कर बैठ गई.

‘‘नीरजा यार, कुछ खाने को भी ले कर आना,’’ वह वहीं से चिल्लाई.

नीरजा हंस पड़ी. वह सैंडविच बना ही रही थी. किचन से ही वह बोली, ‘‘राशी, तू अभी कितने दिन है दिल्ली में?’’

‘‘मुझे तो आज रात ही 10 बजे की ट्रेन से लौटना है.’’

‘‘कुछ दिन और नहीं रुक सकती है क्या?’’

‘‘नीरजा… मां ने बहुत मुश्किल से सेमिनार अटैंड करने की इजाजत दी है. कल लड़के वाले आ रहे हैं मुझे देखने,’’ राशी चहकते हुए बोली.

‘‘राशी, तू अरेंज मैरिज करेगी, विश्वास नहीं होता,’’ नीरजा हंस पड़ी.

‘‘इंदर अच्छा लड़का है, हैंडसम भी है. फोटो देखेगी उस की?’’ राशी ने कहा उस से. फिर अचानक उस ने उत्सुकतावश नीरजा की एक डायरी उठा ली और बोली उस से, ‘‘ओह, तो मैडम को अभी भी डायरी लिखने का समय मिल जाता है.’’

तभी कुछ तसवीरें डायरी से नीचे गिरीं. राशी ने वे तसवीरें उठा लीं और ध्यानपूर्वक उन्हें देखने लगी. तसवीरों में नीरजा किसी पुरुष के साथ थी. वे अंतरंग तसवीरें साफ बयां कर रही थीं कि नीरजा का रिश्ता उस शख्स से बेहद गहरा था. राशी बारबार उन तसवीरों को देख रही थी. उस के चेहरे पर कई रंग आ जा रहे थे. उसे कमरे की दीवारें घूमती सी नजर आईं.

तभी नीरजा आ गई. उस ने जल्दी से ट्रे रख कर राशी के हाथ से वे तसवीरें लगभग छीन लीं.

राशी ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘नीरजा, बात क्या है?’’

नीरजा उस से आंखें चुरा कर विषय बदलने की कोशिश करने लगी, परंतु नाकामयाब रही. राशी ने कड़े शब्दों में पूछा तो नीरजा की आंखें भर आईं. फिर जो कुछ उस ने बताया, उसे सुन कर राशी के पांव तले जमीन खिसक गई.

नीरजा ने बताया कि 4 साल पहले जब वह दिल्ली आई, तो उस की मुलाकात नील से हुई. दोनों स्ट्रगल कर रहे थे. कालसैंटर की एक नौकरी के इंटरव्यू में दोनों की मुलाकात हुई थी. धीरेधीरे उन की मुलाकात दोस्ती में बदल गई. नीरजा को नौकरी की सख्त जरूरत थी, क्योंकि दिल्ली में रहने का खर्च उठाने में उस के मातापिता असमर्थ थे. नीरजा ने इस नौकरी का प्रस्ताव यह सोच कर स्वीकार कर लिया कि बाद में किसी अच्छे औफर के बाद यह नौकरी छोड़ देगी. औफिस की वैन उसे लेने आती थी, लेकिन उस के मकानमालिक को यह पसंद नहीं था कि वह रात में बाहर जाए.

इधर नील को भी एक मामूली सी नौकरी मिल गई थी. वह अपने रहने के लिए एक सुविधाजनक जगह ढूंढ़ रहा था. एक दिन कनाट प्लेस में घूमते हुए अचानक नील ने एक साझा फ्लैट किराए पर लेने का प्रस्ताव नीरजा के आगे रखा. नीरजा उस के इस प्रस्ताव पर सकपका गई.

नील ने उस के चेहरे के भावों को भांप कर कहा, ‘‘नीरजा, तुम रात के 8 बजे जाती हो और सुबह 8 बजे आती हो. मैं सुबह साढ़े 8 बजे निकला करूंगा तथा शाम को साढ़े 7 बजे आया करूंगा. सुबह का नाश्ता मेरी जिम्मेदारी व रात का खाना तुम बनाना. इस तरह हम साथ रह कर भी अलगअलग रहेंगे.’’

नीरजा सोच में पड़ गई थी. संस्कारी नीरजा का मन उसे इस ऐडजस्टमैंट से रोक रहा था, परंतु नील का निश्छल व्यवहार उसे मना पाने में सफल हो गया. दोनों पूरी ईमानदारी से एकदूसरे का साथ देने लगे. 1 घंटे का जो समय मिलता, उस में दोनों दिन भर क्या हुआ एकदूसरे को बताते. दोनों की दोस्ती एकदूसरे के सुखदुख में काम आने लगी थी. नीरजा ने उस 2 कमरे के फ्लैट को घर बना दिया था. उस ने नील की पसंद के परदे लगवाए, तो नील ने भी रसोई जमाने में उस की पूरी सहायता की थी.

इतवार की छुट्टी का रास्ता भी नील ने ईमानदारी से निकाला. दिन भर दोनों घूमते. शाम को नीरजा घर आ जाती तो नील अपने दोस्त के यहां चला जाता. इंसानी रिश्ते बड़े अजीब होते हैं. वे कब एकदूसरे की जरूरत बन जाते हैं, यह उन्हें स्वयं भी पता नहीं चलता. नीरजा और नील शायद यह समझ ही नहीं पाए कि जिसे वे दोस्ती समझ रहे हैं वह दोस्ती अब प्यार में बदल चुकी है.

नीरजा अचानक रुकी. उस ने अपनी सांसें संयत कर राशी को बताया कि उस दिन बरसात हो रही थी. जोरों का तूफान था. टैक्सी या कोई भी सवारी मिलना लगभग असंभव था. वे दोनों यह सोच कर बाहर नहीं निकले कि बरसात थमने पर नील अपने दोस्त के यहां चला जाएगा. पर बरसात थमने का नाम ही नहीं ले रही थी.

नील शायद उस तूफानी रात में निकल भी जाता, पर नीरजा ने उसे रोक लिया. वह तूफानी रात नीरजा की जिंदगी में तूफान ला देगी, इस का अंदेशा नीरजा को नहीं था. तेज सर्द हवाएं उन के बदन को सिहरा जातीं. नीरजा व नील दोनों अंधेरे में चुपचाप बैठे थे. बिजली गुल थी. नीरजा को डर लग रहा था. नील ने मजबूती से उस का हाथ थाम लिया.

तभी जोर की बिजली कड़की और नीरजा नील के करीब आ गई. दोनों अपनी बढ़ी हुई धड़कनों के सामने कुछ और न सुन सके. दिल में उठे तूफान की आवाज के सामने बाहर के तूफान की आवाज दब गई थी. नीरजा के अंतर्मन में दबा नील के प्रति प्रेम समर्पण में परिवर्तित हो गया. नील ने नीरजा को अपनी बांहों में भर लिया. नीरजा प्रतिकार नहीं कर पाई. दोनों अपनी सीमारेखा का उल्लंघन यों कर गए, मानो उफनती नदी आसानी से बांध तोड़ कर आगे निकल गई हो.

तूफान सुबह तक थम गया था, लेकिन इस तूफान ने नीरजा की जिंदगी बदल दी थी. नीरजा ने अपने इस प्रेम को स्वीकार कर लिया था. नीरजा का प्रेम अमरबेल सा चढ़ता गया. उस के बाद किसी भी रविवार को नील अपने दोस्त के यहां नहीं गया. नीरजा को नील के प्रेम का बंधन सुरक्षा का एहसास कराता था.

एक दिन नीरजा ने नील को प्यार करते हुए कहा, ‘‘हमें अब शीघ्र ही विवाह कर लेना चाहिए.’’

नील ने प्यार से नीरजा का हाथ थामते हुए कहा, ‘‘नीरजा, मेरे प्यार पर भरोसा रखो. मैं अभी शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हूं. ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हारी जिम्मेदारी उठाने से डरता हूं. लेकिन इस वक्त मुझे तुम्हारा साथ और सहयोग दोनों ही अपेक्षित हैं.’’

उन दोनों के सीधेसुलझे प्यार के तार उस वक्त उलझने लगे, जब नीरजा की बड़ी बहन रमा दीदी व जीजाजी अचानक दिल्ली आ पहुंचे. नीरजा बेहद घबरा गई थी. उस ने नील से जुड़ी हर चीज को छिपाने की काफी कोशिश की, लेकिन रमा दीदी ने भांप लिया था. उन्होंने नील को बुलाया. नील इस परिस्थिति के लिए तैयार नहीं था. रमा ने नील पर विवाह के लिए दबाव बनाया, जो नील को मंजूर नहीं था.

रमा दीदी को भी उन के रिश्ते का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था. उन्होंने अपने देवर विपुल के साथ नीरजा की शादी का मन बना लिया था. नील इसे बरदाश्त न कर पाया. बिना कुछ कहेसुने उस ने दिल्ली छोड़ दी. नीरजा के नाम एक लंबा खत छोड़ कर नील मुंबई चला गया.

नीरजा अंदर से टूट गई थी. उस ने रमा दीदी को सब सचसच बता दिया. उस दिन से नीरजा के रिश्ते अपने घर वालों से भी टूट गए. नीरजा फिर कभी कालसैंटर नहीं गई. वह इस का दोष नील को नहीं देना चाहती थी. उस ने नील के साथ बिताए लमहों को एक गुनाह की तरह नहीं, एक मीठी याद बना कर अपने दिल में बसा लिया.

कुछ दिनों बाद उसे एक पब्लिकेशन में नौकरी मिल गई. वह दिन भर किताबों में डूबी रहती, ताकि नील उसे याद न आए. उम्मीद का एक दीया उस ने अपने मन के आंगन में जलाए रखा कि कभी न कभी उस का नील लौट कर जरूर आएगा. उस का अवचेतन मन शायद आज भी नील का इंतजार कर रहा था. इसी कारण उस ने घर भी नहीं बदला. हर चीज वैसी ही थी, जैसी नील छोड़ कर गया था.

नीरजा का अतीत एक खुली किताब की तरह राशी के सामने आ चुका था. वह हतप्रभ बैठी थी. रात 10 बजे राशी की ट्रेन थी. नीरजा के अतीत पर कोई टिप्पणी किए बगैर राशी ने उस से विदा ली. सफर के दौरान राशी की आंखों में नींद नहीं थी. वह नीरजा की उलझी जिंदगी के बारे में सोचती रही.

अगले दिन शाम को इंदर अपनी मां व बहन के साथ आया. राशी ने ज्योंही बैठक में प्रवेश किया, सब से पहले लड़के की मां को शिष्टता के साथ नमस्ते किया. फिर वह लड़के की तरफ पलटी और अपना हाथ बढ़ा कर परिचय दिया, ‘‘हेलो, आई एम डा. राशी.’’

इंदर ने भी खड़े हो कर हाथ मिलाया, ‘‘हैलो, आई एम इंद्रनील.’’

कुछ औपचारिक बातों के बाद राशी ने इंदर की मां से कहा, ‘‘आंटी, आप बुरा न मानें तो मैं इंद्रनील से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं,’’ इंद्रनील की मां अचकचा कर बोलीं.

वे दोनों ऊपर टैरेस पर चले गए. कुछ चुप्पी के बाद राशी बोली, ‘‘मुंबई से पहले तुम कहां थे?’’

अचानक इस प्रश्न से इंद्रनील चौंक उठा, ‘‘दिल्ली.’’

‘‘इंद्रनील, मैं तुम्हें नील बुला सकती हूं? नीरजा भी तो इसी नाम से बुलाती थी तुम्हें,’’ राशी ने कुछ तल्ख आवाज में कहा.

इंद्रनील के चेहरे के भाव अचानक बदल गए. वह चौंक गया था, मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो.

राशी आगे बोली, ‘‘तुम ने नीरजा के साथ ऐसा क्यों किया? अच्छा हुआ कि तुम से शादी होने से पहले मेरी मुलाकात नीरजा से हो गई. तुम्हारी फोटो नीरजा के साथ न देखती तो पता ही न चलता कि तुम ही नीरजा के नील हो.’’

नील के पास कोई जवाब न था. वह हैरानी से राशी को देखे जा रहा था, जिस ने उस के जख्मों को कुरेद कर फिर हरा कर दिया था, ‘‘लेकिन तुम नीरजा को कैसे…’’ आधी बात नील के हलक में ही फंसी रह गई.

‘‘क्योंकि नीरजा मेरे बचपन की सहेली है,’’ राशी ने कहा.

नील मानो आकाश से नीचे गिरा हो, ‘‘लेकिन वह तो सिर्फ एक दोस्त की तरह…’’ उस की बात बीच में काट कर राशी बोली, ‘‘अगर तुम एक दोस्त के साथ ऐसा कर सकते हो, तो मैं तो तुम्हारी कुछ भी नहीं. नील, तुम्हें नीरजा का जरा भी खयाल नहीं आया. कहीं तुम्हारी यह मानसिकता तो नहीं कि नीरजा ने शादी से पहले तुम से संबंध बनाए. अगर तुम्हारी यह सोच है, तो तुम ने मुझ से शादी का प्रस्ताव मान कर मुझे धोखा देने की कैसे सोची. जो अनैतिक संबंध तुम्हारे लिए सही है, वह नीरजा के लिए गलत कैसे हो सकता है. तुम नीरजा को भुला कर किसी और से शादी के लिए कैसे राजी हुए? नीरजा आज तक तुम्हारा इंतजार कर रही है.’’

कुछ चुप्पी के बाद नील बोला, ‘‘मैं ने कई बार सोचा कि नीरजा के पास लौट जाऊं, लेकिन मेरे कदम आगे न बढ़ सके. उस के पास वापस जाने के सारे दरवाजे मैं ने खुद ही बंद कर दिए थे.’’

‘‘नीरजा आज भी तुम्हारा शिद्दत से इंतजार कर रही है. जानते हो नील, जब मुझे तुम्हारे और नीरजा के संबंध का पता चला, तो मुझे बहुत गुस्सा आया था. फिर सोचा कि मैं तो तुम्हारी जिंदगी में बहुत बाद में आई हूं, पर नीरजा और तुम्हारा रिश्ता कच्चे धागों की डोर से बहुत पहले ही बुन चुका था. अभी देर नहीं हुई है नील, नीरजा के पास वापस चले जाओ. मैं जानती हूं कि तुम्हारा दिल भी यही चाहता है. जिस रिश्ते को सालों पहले तुम तोड़ आए थे, उसे जोड़ने की पहल तो तुम्हें ही करनी होगी,’’ राशी ने नील को समझाते हुए कहा.

नील कुछ कहता इस से पहले ही राशी ने अपने मोबाइल से नीरजा का नंबर मिलाया. ‘‘हैलो राशी,’’ नीरजा बोली, तो जवाब में नील की भीगी सी आवाज आई, ‘‘कैसी हो नीरजा?’’

नील की आवाज सुन कर नीरजा चौंक गई.

‘‘नीरजा, क्या तुम मुझे कभी माफ कर पाओगी?’’ नील ने गुजारिश की तो नीरजा की रुलाई फूट पड़ी. उस की सिसकियों में नील के प्रति प्यार, उलाहना, गिलेशिकवे, दुख, अवसाद सब कुछ था.

‘‘बस, अब और नहीं नीरजा, मुझे माफ कर दो. मैं कल ही तुम्हें लेने आ रहा हूं. रोने से मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा. मैं चाहता हूं तुम्हारा सारा गम आंसू बन कर बह जाए, क्योंकि उन का सामना शायद मैं नहीं कर पाऊंगा.’’

फोन पर बात खत्म हुई तो नील की आंखें नम थीं. वह राशी के दोनों हाथ पकड़ कर कृतज्ञता से बोला, ‘‘थैंक्यू राशी, मुझे इस बात का एहसास कराने के लिए कि मैं क्या चाहता हूं, वरना नीरजा के बगैर मैं कैसे अपना जीवन निर्वाह करता.’’

नील व नीरजा की जिंदगियों ने अंधेरी गलियों को पार कर उजाले की ओर कदम रख दिया था.

Love Story : हाशिया – दो प्रेमियों की दिल को छूती कहानी

Love Story :  घंटी की आवाज सुन कर मनीषा ने दरवाजा खोला. सामने महेश और नीता को देख कर हैरान रह गई. मुंह से निकल पड़ा, ‘‘अरे, तुम लोग कब आए, कहां रुके हो. बहुत दिनों से कोई समाचार भी नहीं मिला.’’

‘‘दीदी, काफी दिनों से आप से मिली नहीं थी, इन्हें दिल्ली एक सेमिनार में जाना है, आप से मिलने की चाह लिए मैं भी इन के साथ चली आई. ब्रेक जर्नी की है. शाम को 6 बजे ट्रेन पकड़नी है. हालांकि समय कम है पर मिलने की इच्छा तो पूरी हो ही गई,’’ नीता ने मनीषा के पैर छूते हुए कहा.

‘‘अच्छा किया. सच में काफी दिनों से मिले नहीं थे पर कुछ और समय ले कर आते तो और भी अच्छा लगता,’’ मनीषा ने उसे गले लगाते हुए कहा और मन ही मन उस का अपने लिए प्रेम देख कर गद्गद हो उठी.

आवाज सुन कर सुरेंद्र भी बाहर निकल आए. पहचानते ही गर्मजोशी से स्वागत करते हुए बातों में मशगूल हो गए.

नीता तो जब तक रही उस के ही आगेपीछे घूमती रही, मानो उस की छोटी बहन हो. बारबार अपने सुखी जीवन के लिए उसे धन्यवाद देती हुई अनेक बार की तरह ही उस ने अब भी उस से यही कहा था, ‘‘इंसान अपना भविष्य खुद बनाताबिगाड़ता है, बाकी लोग तो सिर्फ जरिया ही होते हैं. यह तुम्हारा बड़प्पन है कि तुम अभी तक उस समय को नहीं भूली हो.’’

‘‘दीदी, बड़प्पन मेरा नहीं आप का है. आप उन लोगों में से हैं जो किसी के लिए बहुत कुछ करने के बाद भूल जाने में विश्वास रखते हैं. असल में आप ही थीं जिन्होंने मेरी टूटी नैया को पार लगाने में मदद की थी, जिन्होंने मुझे जीने की नई राह दिखाई. मेरी जिंदगी को नया आयाम दिया. वरना पता नहीं आज मैं कहां होती…’’

जातेजाते भी महेश और नीता बारबार यही कहते रहे, ‘‘कभी कोई आवश्यकता पड़े तो हमें जरूर याद कीजिएगा.’’ उन्हें इस बात का बहुत अफसोस था कि सुरेंद्र की बीमारी की सूचना उन्हें नहीं दी गई. वैसे सुनील और प्रिया के विवाह में वे आए थे और एक घर के सदस्य की तरह नीता ने पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी.

उन के जाने के बाद सुरेंद्र तो इंटरनैट खोल कर बैठ गए. शाम को उन की यही दिनचर्या बन गई थी. देशविदेश की खबरों को इंटरनैट के जरिए जानना या विदेश में बसे पुत्र सुनील और पुत्री प्रिया से चैटिंग करना. अगर वह भी नहीं तो कंप्यूटर पर ही घंटों बैठे चैस खेलना. उन्हें सासबहू वाले सीरियल्स में बिलकुल दिलचस्पी नहीं थी.

मनीषा ने टीवी खोला पर उस में भी उस का मन नहीं लगा. टीवी बंद कर के पास पड़ी मैगजीन उठाई. वह भी उस की पढ़ी हुई थी. आंखें बंद कर के सोफे पर ही रिलैक्स होना चाहा पर वह भी संभव नहीं हो पाया. उस के मन में 22 साल पहले की घटनाएं चलचित्र की भांति मंडराने लगीं.

उस समय वे बलिया में थे. पड़ोस में एक एसडीओ महेश रहते थे जो अकसर उन के घर आते रहते थे लेकिन जब भी वह उन से विवाह के लिए कहती तो मुसकरा कर रह जाते.

एक दिन उस ने देखा कि एक बुजुर्ग व्यक्ति एक बच्चे को ले कर घूम रहे हैं. नौकर से पता चला कि वे साहब के पिताजी हैं जो उन की पत्नी और बच्चे को ले कर आए हैं.

सुन कर अजीब लगा. महेश अकसर उन के घर आते थे लेकिन उन्होंने कभी उन से अपनी पत्नी और बच्चे का जिक्र ही नहीं किया. यहां तक कि उन्हें कुंआरा समझ कर जबजब भी उस ने उन से विवाह की बात की तो वे कुछ कहने के बजाय सिर्फ मुसकरा कर रह गए. यह तो उसे पता था कि वे गांव के हैं, हो सकता है बचपन में विवाह हो गया हो लेकिन अगर वे विवाहित थे तो वे बताना क्यों नहीं चाह रहे थे.

दूसरों के निजी मामलों में दखलंदाजी करना उस के स्वभाव में नहीं था. उन्होंने नहीं बताया तो हो सकता है उन की कोई मजबूरी रही हो, सोच कर दिमाग में चल रही उथलपुथल पर रोक लगाई.

जब तक महेश के पिताजी रहे तब तक तो सब ठीक चलता रहा पर उन के जाते ही दिलों में बंद चिनगारी भड़कने लगी. घरों के बीच की दीवार एक होने के कारण कभीकभी उन के असंतोष की आग का भभका हमारे घर भी आ जाता था. मन करता कि जा कर उन से बात करूंगी. आखिर इस असंतोष का कारण क्या है. हमारे भी बच्चे हैं, उन के झगड़े का असर हमारे ऊपर भी पड़ रहा है पर दूसरों के मामले में दखलंदाजी न करने के अपने स्वभाव के कारण चुप ही रही.

एक दिन महेश के औफिस जाने के बाद उन की पत्नी हमारे घर आई और अपना परिचय देती हुई बोली, ‘दीदी, आप हमें पहचानते नहीं हो, हमारा नाम नीता है. हम आप के पड़ोसी हैं. आप के अलावा हम किसी और को नहीं जानते हैं. इसीलिए आप के पास आए हैं. हम बहुत दुखी हैं, समझ में नहीं आ रहा क्या करब.’

‘क्यों, क्या बात है. हम से जितनी मदद होगी, करेंगे,’ उसे दिलासा देते हुए मैं ने कहा.

‘यह कहत हैं कि हम तोय से तलाक ले लेव, लड़का को तू ले जाना चाह तो ले जाव. तेरे साथ हमारा निबाह नहीं हो सकत. हम दूसर ब्याह करन चाहत हैं,’ कहते हुए उस की आंखों से बड़ेबड़े आंसू बहने लगे थे.

‘ऐसे कैसे दूसरा विवाह कर लेंगे. सरकारी नौकरी में एक पत्नी के होते हुए दूसरा विवाह करना संभव ही नहीं है. फिर तलाक लेना इतना आसान थोड़े ही है कि मुंह से निकला नहीं और तलाक मिल गया,’ पानी का गिलास पकड़ा कर उसे समझते हुए मैं ने कहा.

अनजान शहर में किसी के मीठे बोल सुन कर उस का रोना रुक गया. मेरे आग्रह करने पर उस ने पानी पिया. उस के सहज होने पर मैं ने उस से फिर पूछा, ‘लेकिन वे तलाक क्यों लेना चाहते हैं.’

मेरा सवाल सुन कर वह बोली, ‘कहत हैं, तू पढ़ीलिखी नहीं है, हमारी सोसाइटी के लायक नहीं है. दीदी, आज हम उन्हें अच्छा नाही लागत हैं लेकिन जब हम इन के मायबाप के साथ खेतन में काम करत रहे, गांव की गृहस्थी को संभालते रहे तब इन्हें यह सब नाहीं सूझत रहा. आज जब डिप्टी बन गए हैं तब कह रहे हैं कि हम इन के लायक नाहीं. 10 बरस के थे जब हमारा इन से ब्याह हुआ था. गांव के एक स्कूल से ही 4 जमात तक पढ़े हैं. यह तो हमें गांव से ला ही नहीं रहे थे, वह तो इन की आनाकानी देख कर एक दिन ससुरजी खुद ही हमें यहां छोड़ गए. लेकिन यह तो हम से ढंग से बात भी नहीं करत.’ कहते हुए फिर उस की आंखों से आंसू बहने लगे थे.

माथे पर बड़ी सी गोल बिंदी, गले में चांदी की मोटी हंसुली, बालों में रचरच कर लगाया तेल, मोटी गुंथी चोटी में चटक लाल रंग का रिबन तथा वैसी ही चटक रंग की साड़ी. गांव वाले ढीलेढीले ब्लाउज में वह ठेठ गंवार तो लग रही थी लेकिन सांवले रंग में भी एक कशिश थी. बड़ीबड़ी आंखें अनायास ही किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में समर्थ थीं. इस के अलावा गठीला बदन, ढीलेढाले ब्लाउज से झंकता यौवन किसी को मदहोश करने के लिए काफी था. अगर वह अपने पहननेओढ़ने के ढंग तथा बातचीत करने के तरीके में थोड़ा सुधार ले आए तो निश्चय ही कायाकल्प हो सकती थी.

यह सोच कर मैं ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘अगर तुम उन के दिल में अपनी जगह बनाना चाहती हो तो तुम्हें अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करनी होगी और अपने पहननेओढ़ने तथा बातचीत के लहजे में भी परिवर्तन लाना होगा.’

‘दीदी, आप जैसा कहेंगी हम वैसा करने को तैयार हैं. बस, हमारी जिंदगी संवर जाए,’ उस ने मेरे पैर छूते हुए कहा.

‘अरे, यह क्या कर रही हो. बड़ी हूं इसलिए बस, इतना चाहूंगी कि तुम्हारा जीवन सुखी रहे. मैं तुम्हें सहयोग तो दे सकती हूं पर कोशिश तुम्हें खुद ही करनी होगी. पहले तो यह कि वे चाहे कितना भी गुस्सा हों तुम चुप रहो. वे एक बच्चे के पिता हैं. वे खुद भी अपने बच्चे को अपने से दूर नहीं करना चाहेंगे. इसलिए अगर तुम अपनेआप में परिवर्तन ला पाओ तो कोई कारण नहीं कि वे तुम्हें स्वीकार न करें.’

‘आप ठीक कहत हैं, दीदी. वह अनूप को बेहद चाहत हैं. उन्होंने उस का एक अच्छे स्कूल में नाम भी लिखा दिया है. कल से वह स्कूल भी जाने लगा है. तभी आज हम समय निकाल कर आप के पास आए हैं.’

‘तुम्हें अक्षरज्ञान तो है ही, अब कुछ किताबें मैं तुम्हें दे रही हूं, उन्हें तुम पढ़ो. अगर कुछ समझ में न आए तो इस पैंसिल से वहां निशान बना देना. मैं समझ दूंगी, सुबह 11 से 1 बजे तक खाली रहती हूं. कल आ जाना,’ कुछ पारिवारिक पत्रिकाएं पकड़ाते हुए मैं ने नीता से कहा.

‘दीदी, अब हम चलें. अनूप स्कूल से आने वाला होव’ कहते हुए उस के चेहरे पर संतोष की छाया थी.

एक बार फिर उस ने मेरे पैर छू लिए थे. मेरे प्यारभरे वचन सुन कर वह काफी व्यवस्थित हो गई थी पर फिर भी मन में भविष्य के प्रति अनिश्चितता थी. वैसे भी उस के चेहरे पर छिपी व्यथा ने मेरा मन कसैला कर दिया. पहली मुलाकात में महेश हमें काफी भले, हाजिरजवाब और मिलनसार लगे थे पर पत्नी के साथ ऐसा बुरा व्यवहार, यहां तक कि दूसरे विवाह में कोई बाधा उत्पन्न न हो इसलिए अपने पुत्र से भी नजात पाना चाहते हैं. कैसे इंसान हैं वे. सच है, दुलहन वही जो पिया मन भाए पर विवाह कोई खेल तो नहीं. फिर इस में इस मासूम का क्या दोष. अपने छोटे मासूम बच्चे के साथ अकेले वह अपनी जिंदगी कैसे गुजारेगी. आखिर, एक पुरुष यह क्यों नहीं सोच पाता.

कहीं उन का किसी और के साथ चक्कर तो नहीं है, एक आशंका मेरे मन में उमड़ी. नहींनहीं, महेश ऐसे नहीं हो सकते. अगर ऐसा होता तो अनूप का दाखिला यहां नहीं करवाते. शायद अपनी अनपढ़, गंवार बीवी को देख कर वे हीनभावना के शिकार हो गए हैं और इस से उपजी कुंठा उन से वह सब कहलवा देती है जो शायद आमतौर से वे न कहते. लेकिन अगर ऐसा है तो वे खुद कुछ कोशिश कर उस में परिवर्तन ला सकते हैं, उसे पढ़ा सकते हैं. कई अनुत्तरित सवाल लिए मैं किचन में चली गई क्योंकि बच्चों का स्कूल से आने का समय हो रहा था.

दूसरे दिन नीता आई तो काफी उत्साहित थी. उस ने एक कहानी पढ़ी थी. हालांकि वह उसे पूरी तरह समझ नहीं पाई थी पर उस के लिए इतना ही काफी था कि उस ने पढ़ने का प्रयत्न किया. कुछ शब्द या भाव जो वह समझ नहीं पाई थी वहां उस ने मेरे कहे मुताबिक पैंसिल से निशान बना दिए थे. उन्हें मैं ने उसे समझया.

उस के सीखने का उत्साह देख मैं हैरान थी. कुछ ही दिनों में बातचीत में परिवर्तन स्पष्ट नजर आने लगा था. थोड़ा आत्मविश्वास भी उस में झलकने लगा था.

एक दिन उस को साथ ले कर मैं ब्यूटीपार्लर गई. फिर कुछ साडि़यां खरीदवा कर ब्लाउज सिलने दे आई. कुछ आर्टीफिशियल ज्वैलरी भी खरीदवाई. मेकअप का सामान खरीदवाने के साथ उन्हें उपयोग करना बताया. साड़ी बांधने का तरीका बताया. जूड़ा बांधने का तरीका बताते हुए तेल कम लगाने का सुझव दिया. खुशी तो इस बात की थी कि वह मेरे सारे सुझवों को ध्यान से सुनती और उन पर अमल करती. वैसे भी अगर शिष्य को सीखने की इच्छा होती है तो गुरु को भी उसे सिखाने में आनंद आता है.

एक दिन वह आई तो बेहद खुश थी. कारण पूछा तो बोली, ‘दीदी, कल हम आप की खरीदवाई साड़ी पहन कर इन का इंतजार कर रहे थे. अंदर घुसे तो पहली बार ये हमें देखते ही रह गए, फिर पूछा कि इतना परिवर्तन तुम्हारे अंदर कैसे आया. जब आप का नाम बताया तो गद्गद हो उठे. कल इन्होंने हमें प्यार भी किया,’ कहतेकहते वह शरमा उठी थी.

नैननक्श तो कंटीले थे ही, हलके मेकअप तथा सलीके से पहने कपड़ों में उस के व्यक्तित्व में निखार आता जा रहा था. महेश भी उस में आते परिवर्तन से खुश थे. अब वह हर रोज शाम को ढंग से सजसंवर कर उन का इंतजार करती. यही कारण था कि जहां पहले वे उस की ओर ध्यान ही नहीं देते थे, अब उन्होंने उस के लिए अनेक साडि़यां खरीदवा दी थीं. एक बार महेश स्वयं मेरे पास आ कर कृतज्ञता जाहिर करते हुए, मुझे धन्यवाद देते हुए बोले थे, ‘दीदी, मैं आप का एहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगा, मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि किसी इंसान में इतना परिवर्तन आ सकता है.’

‘महेश भाई, दरअसल मुझ से ज्यादा धन्यवाद की पात्र नीता है. उस ने यह सब तुम्हें पाने के लिए किया. वह तुम्हें बहुत चाहती है.’

इस के बाद दोनों के बीच की दूरी घटती गई. कभीकभी वे घूमने भी जाने लगे थे. मैं यह सब देख कर बहुत खुश थी.

एक दिन अपने पुत्र अनूप की अंगरेजी की पुस्तक ला कर वह बोली, ‘दीदी, इन से पूछने में शरम आती है. अगर आप ही थोड़ी देर पढ़ा दिया करें.’

मेरे ‘हां’ कहने पर वह प्रसन्नता से पागल हो उठी, बोली, ‘दीदी, आप ने मेरे जीवन में खुशियां ही खुशियां बिखेर दी हैं, न जाने आप की गुरुदक्षिणा कैसे चुका पाऊंगी.’

‘अरी पगली, अगर सचमुच मुझे अपना गुरु मानती है तो अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगा. एक गुरु के लिए यही काफी है कि उस का शिष्य जीवन में सफल रहे.’

सचमुच 6 महीने के अंदर ही उस ने सामान्य बोलचाल के शब्द लिखनापढ़ना सीख लिए थे. कहींकहीं अंगरेजी के शब्दों तथा वाक्यों का प्रयोग भी करने लगी थी. वैसे भी भाषा इस्तेमाल करने से ही सजतीसंवरती और निखरती है.

तभी सुरेंद्र का ट्रांसफर हो गया. पत्रों के माध्यम से संपर्क सदा बना रहा. वह बराबर लिखती रहती थी. अनूप के विवाह में हफ्तेभर पहले आने का आग्रह उस का सदा रहा था. बेटी रिया का कन्यादान भी वह मेरे हाथों से कराना चाहती थी. नीता के पत्रों में छिपी भावनाएं मुझे भी पत्र का उत्तर देने के लिए प्रेरित करती रही थीं. यही कारण था कि पिछले 10 वर्षों से न मिल पाने पर भी उस के परिवार की एकएक बात मुझे पता थी. आज के युग में लोग अपनों से भी इतनी आत्मीयता, विश्वास की कल्पना नहीं कर सकते, फिर हम तो पराए थे.

‘‘सुनो, कहां हो. सुनील का मैसेज आया है,’’ सुरेंद्र ने मनीषा को पुकारते हुए कहा तो उस की तंद्रा टूटी.

‘‘सुनील का मैसेज, क्या लिखा है. सब ठीक तो है न.’’ मनीषा ने अंदर जाते हुए पूछा. पिछले 15 दिनों से उस का कोई समाचार न आने के कारण वे चिंतित थे. 1-2 बार फोन किया पर किसी ने भी नहीं उठाया, आंसरिंग मशीन पर मैसेज छोड़ने के बाद भी हफ्तेभर से किसी ने कौंटैक्ट करने की कोशिश नहीं की.

‘‘लिखा है, हम कल ही स्विट्जरलैंड से आए हैं. प्रोग्राम अचानक बना, इसलिए सूचित नहीं कर पाए. इस बार भी शायद हमारा इंडिया आना न हो पाए. बारबार छुट्टी नहीं मिल पाएगी. अगर आप लोग आना चाहें तो टिकट भेज दिए जाएं.’’

इस के बाद उस से कुछ भी सुना नहीं गया. ‘सब बहाना है बाहर घूमने के लिए. छुट्टी तो मिल सकती है पर मातापिता से मिलने के लिए नहीं. दरअसल वे यहां आना ही नहीं चाहते हैं. मांबाप के प्यार की उन के लिए कोई कीमत ही नहीं रही है. पिछले 4 वर्षों से कोई न कोई बहाना बना कर आना टाल रहे हैं. उस पर भी एहसान दिखा रहे हैं. अगर आना चाहें तो टिकट भिजवा दूं, एक बार तो जा कर देख ही आए हैं,’ बड़बड़ा उठी थी मनीषा.

पर जल्दी ही उस ने अपने नकारात्मक विचारों को झटका. उस को यह क्या होता जा रहा है. वह पहले तो कभी ऐसी न थी. बच्चों के अवगुणों में गुण ढूंढ़ना ही तो बड़प्पन है. हो सकता है कि सच में उसे छुट्टी न मिल रही हो, वह स्वयं नहीं आ पा रहा तो उन्हें बुला तो रहा है, बात तो एक ही है, मिलजुल कर रहना. अब वहां का जीवन ही इतना व्यस्त है कि लोगों के पास अपने लिए ही समय नहीं है तो उस में उन का क्या दोष.

फिर भी उसे न जाने क्यों लगने लगा था कि सच में कभीकभी कुछ लोग अपने न होते हुए भी बेहद अपने बन जाते हैं और कुछ लोग अपनी व्यस्तता की आड़ में अपनों को ही हाशिए पर खिसका देते हैं, खिसकाने का प्रयास करते हैं. उस ने निश्चय किया, ‘उस ने कभी किसी की हाशिए पर खिसकती जिंदगी को नया आयाम दिया था. चाहे कुछ भी हो जाए वह अपनी जिंदगी को हाशिए पर खिसकने नहीं देगी.’ इस विचार ने उसे तनावमुक्त कर दिया. माथे पर लटक आई लट को झटका, पास पड़ा रिमोट उठाया और टीवी औन कर दिया.

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