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Smart Jodi के सेट पर Arjun Bijlani ने दबाए पत्नी के पैर, वायरल हुआ Video

टीवी रिएलिटी शो ‘स्मार्ट जोड़ी’ (Smart Jodi)’ जल्द ही शुरू होने वाला है. शो की शूटिंग जोरो-शोरो पर चल रही है. ऐसे में ‘स्मार्ट जोड़ी’ के सेट की कई वीडियोज और फोटोज सामने आ रही है. जिससे फैंस खूब पसंद कर रहे हैं. इसी बीच टीवी एक्टर अर्जुन बिजलानी ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो फैंस के साथ शेयर किया है. जिसमें वह अपनी पत्नी के पैर दबाते हुए नजर आ रहे हैं.

इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि अर्जुन बिजलानी दुल्हा बनकर अपनी पत्नी नेहा गोस्वामी (Neha Goswami) के पैर दबाते नजर आ रहे हैं. तो वहीं नेहा बैठकर पानी पीती दिखाई दे रही हैं.  यह वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है.

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फैंस इस वीडियो पर लगातार कमेंट्स करते दिखाई दे रहे हैं. फैंस मजेदार कमेंट्स कर रहे हैं. किसी ने अर्जुन बिजलानी को ‘जोरू का गुलाम’ बताया है. हाल ही में शो का प्रोमो वायरल हुआ था. इस प्रोमो में अंकिता लोखंडे और विक्की जैन की जोड़ी नजर आयी थी.

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इस वीडियो में अंकिता लोखंडे अपने पति विक्की जैन की तारीफों के पुल बांधते दिखाई दे रही थी. इस प्रोमो में विक्की जैन की तारीफ करते हुए अंकिता लोखंडे ने कहा, ‘ये जैसे मुझसे प्यार करता है इससे पहले आज तक किसी ने ऐसा नहीं किया.’

 

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आपको बता दें कि ये टीवी शो स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला है. इस शो में अर्जुन बिजलानी, नेहा गोस्वामी, अंकिता लोखंडे, विक्की जैन के अलावा, भाग्यश्री, हिमालय दसानी और ऐश्वर्या शर्मा-नील भट्ट भी हिस्सा लेने वाले हैं. इन सभी सितारों के प्रोमोज सामने आ चुके हैं. फैंस को इस शो को बेसब्री से इंतजार है.

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रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) और सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey) स्टारर सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) में लगातार ट्विस्ट एंड टर्न देखने को मिल रहा है.  ‘अनुपमा’ में अब तक आपने देखा कि अनुज अनुपमा को शादी के लिए प्रपोज कर चुका है. लेकिन अनुज ने ये भी कहा है कि अगर अनुपमा चाहेगी तभी वो दोनों शादी करेंगे. शादी के बाद भी अनुपमा का पहचान खुद से होगी. वह ‘अनुपमा’ ही रहेगी. अनुज ने आगे ये भी कहा कि वह ‘अनुज अनुपमा जोशी’ बन जाएगा. इस बात पर अनुपमा हैरान हो जाती है और हंसने लगती है. शो के अपकमिंग एपिसोड में महाट्विस्ट देखने को मिलेगा. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा के बर्थडे को लेकर समर और बापूजी एक ग्रैंड पार्टी करने वाले हैं. बापूजी इस पार्टी का ऐलान करेंगे. इसके साथ ही बापू जी यह भी कहेंगे कि जो इस पार्टी में खुशी से आना चाहते हों वही आएं, मुंह लटकाकर आने वालों के लिए पार्टी नहीं है.

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तो दूसरी तरफ ये बात सुनकर वनराज भड़का जाएगा और कहेगा कि अनुज के पास अब इतनी हैसियत नहीं कि वह होटल में पार्टी कर सके. अनुपमा बापूजी से अनुज के शादी वाले प्रपोजल की बात शेयर करेगी. वह केहगी कि उसके पुराने अनुभव इस शादी को खराब कर सकते हैं. इस बात पर बापूजी उसे समझांगे कि उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि अनुज और वनराज काफी अलग हैं.

 

शो में आप ये भी देखेंगे कि न्यूजपेपर में यह खबर होगी कि अनुज को कपाड़िया एंपायर से निकाल दिया गया है. ये खबर पढ़कर अनुज को झटका लगेगा. अनुपमा समझ जाएगी कि यह काम सिर्फ वनराज ही कर सकता है, मालविका कभी नहीं कर सकती.

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इस खबर को पढ़कर मालविका को भी झटका लगेगा. वह वनराज से पूछेगी कि यह कैसे हुआ? जिसके जवाब में वनराज फिर मालिवका के कान भरेगा. वह कहेगा कि अनुज पूरी दुनिया के सामने मालविका को विलेन साबित करना चाहता है इसलिए उसने ये काम किया है.

तो दूसरी और अनुपमा गुस्से में ऑफिस पहुंचेगी और तालियां बजाएगी. वह वनराज को फटकार लगाएगी. वह इस बार सिर्फ वनराज कहकर खूब खरी खोटी सुनाएगी. शो में अब ये देखना होगा कि कैसे वह वनराज का असली चेहरा मालविका के सामने लाती है.

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नौकरियों के लिए सवा करोड़ आवेदन आखिर हुए क्यों?

पंजाब ने आज से नहीं. जब से कृषि क्रांति हुई है बिहार और उत्तर प्रदेश के बेरोजगारों को अपने यहां भरपूर काम दिया है. इस बार इन मजदूरों का नाम लेकर मुख्यमंत्री के एक बयान को ले कर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और पूरी भाजपा उत्तर प्रदेश व बिहार के पंजाब में बसे मजदूरों को बहकाने में जुट गई. इन्हीं मजदूरों को वोटों पर अरङ्क्षवद केजरीवाल की नजर है और चरणजीत ङ्क्षसह चन्नी ने भैय्यों को पंजाब न आनें दें का जो कसा था वह केजरीवाल और योगी जैसों को पंजाब पर राज करने की कोशिश से रोकने का था.

बड़ा सवाल तो यह है कि पंजाब दिल्ली या देश व दूसरे हिस्सों में उत्तर प्रदेश व बिहार के लोग भरभर कर जाते क्यों हैं? इसलिए रामचरित मानस से प्रभावित इन इलाकों को पिछड़ी जातियों की जनता को धर्म के नाम पर जान कर लूटा है. यहां आज भी एक तरह की छिपी हुई जमींदारी चल रही है जिस में हर ओहदेदार अपने को छोटामोटा राजा या महा पुरोहित मानता है जिस का आदेश पिछड़ी जातियों के लोगों को मानना ही होगा चाहे वे पढ़लिख भी गए हों.

इस इलाके में, जिसे गौपट्टी कहां जाता है मंदिर बनाए जा रहे है, कारखाने नहीं. यहां से गुजर कर चले जाने लायक सडक़ें बनी हैं, यहां के रहने वालों की बस्तियों में नहीं. यहां स्कूल खुले हैं पर हर जाति, उपजाति के लिए अलग. यहां मंदिर बेशुमार हैं पर हर जाति के लिए अलग, पिछड़ों को ऊंचों के देवीदेवता छूने तक नहीं दिया जाता. इन पिछड़ी जातियों को तो ऊंचों के  धर्म के नाम पर दूसरों का सिर फोडऩे के लिए इस्तेमाल किया गया है.

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अब भी इस सवाल का जवाब नहीं दिया जा रहा कि आखिर उत्तर प्रदेश बिहार के भय्ये पंजाब आ क्यों रहे हैं. महान भगवाधारी या तिलकधारी पूजापाठ से बिहार व उत्तर प्रदेश में चमत्कार कहा पर पंजाब जैसी खुशहाली क्यों नहीं पैदा कर पा रहे. इस पूजापाठ का लाभ क्या जब लाखों बेकार हों. जहां 36,000 नौकरियों के लिए सवा करोड़ आवेदन आखिर हुए क्यों?

उस की बड़ी वजह है कि इन पिछड़ों को आज भी ढंग से पढ़ाया नहीं जा रहा. गांवगांव में स्कूल खोले गए हैं पर इन पर तिलकधारी शिक्षकों का कब्जा है जो मानते हैं कि पौराणिक आदेश है कि पिछड़े और दलित पढ़ नहीं पाएं चाहे वह वेद महाभारत हो या इतिहास और विज्ञान. यहां जो ङ्क्षहदी पढ़ाई जाती उस में संस्कृत शब्द ठूंस दिए गए हैं. ऊंचों के लिए इग्लिश मीडियम वाले कहे जाने वाहे स्कूल खोल दिए गए हैं जहां तिलकधारियों के बच्चे पढऩे जाते हैं, ताकि बस उतना पढ़ें कि कमाने दिल्ली मुंबई और पंजाब जा कर छोटामोटा हुनर  का काम कर सकें और जानवरों की तरह गंदी बस्तियों में रह सकें.

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चुनावी दिन हैं इसलिए भैय्यों की बात भी हो गई. वर्ना देश के आकाओं, यहां तक कि उसी जमात से आने वाले नीतिश कुमार तक पास पिछड़ों का सामाजिक, शैक्षिक पारिवारिक स्तर उठाने की फुरसत नहीं है.

क्रश के बिना कोई जिंदगी नहीं

Writer- शाहनवाज

किसी व्यक्ति के प्रति आकर्षित होना आम बात है. यह एहसास, खासकर, टीनऐजर्स में बहुत जल्दी पैदा होने लगता है. अपनी बिल्ंिडग में, गलीमहल्ले में, सोसाइटी में, स्कूलकालेज या ट्यूशन में लड़का हो फिर चाहे लड़की, उन का किसी को मन ही मन पसंद कर लेना बहुत ही आम होता है.

लोग एकदूसरे को उन की किसी भी खूबी के लिए पसंद करने लगते हैं. फिर चाहे वह उन की खूबसूरती हो, उन की आवाज हो, उन की फिगर हो या फिर उन का एटीट्यूड. यह भावना किसी भी उम्र के लोगों में आ सकती है, सिर्फ टीनऐजर्स में ही नहीं.

अकसर लोग दिल ही दिल में एकदूसरे को पसंद करने लगते हैं, लेकिन बताने से घबराते हैं. सो, वे एकदूसरे की भावना से अनजान ही रह जाते हैं और 2 लोगों के बीच एक प्रेमभरा रिश्ता बनने से पहले ही खत्म हो जाता है.

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यकीन मानिए, जब तक जीवन में क्रश होता है तब तक जिंदगी सुहानी, रोमांटिक और रोमांचक बन जाती है और इस का एहसास सिर्फ उन्हें ही होता है जिन के जीवन में कोई न कोई क्रश होता है.

बेवजह अपने क्रश के साथ बात करने की वजह ढूंढ़ना. अगर अपने क्रश के साथ कभी बात नहीं की तो बातचीत शुरू करने के बहाने तलाशना. अपने क्रश के पास से गुजरने से दिल की धड़कनों का तेज हो जाना. अपने क्रश के पीजे (पुअर जोक्स) पर भी पेट फाड़ कर हंसने का ड्रामा करना.

बातों ही बातों में बारबार यह पूछना कि वह सिंगल है या नहीं. जब उसे देख कर आंखों को सुकून और दिल को चैन आ जाए. जब उसे न देख सके तो उस की आवाज सुन कर दिल को तसल्ली मिल जाए. उस की हर बात को प्रोएक्टिवली (पूरी सक्रियता से) सुन कर रिस्पौंस देना.

उन की हां में हां मिलाना. अपनी जेब में भले ही कैश का अकाल पड़ा हो लेकिन अपने क्रश को छोटेछोटे गिफ्ट्स दे कर खुश कर उस के दिल में जगह बनाने का प्रयास करना.

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सोशल मीडिया के जमाने में फेसबुक, इंस्टाग्राम इत्यादि पर उन की फोटोज पर लाइक करना. उन्हें इंप्रैस करने के लिए उन के पोस्ट पर अच्छे कमैंट्स करना. अपने क्रश के सामने आते ही नर्वस हो जाना. अपने क्रश को कोई बात बुरी न लग जाए, इसलिए उन के सामने काफी संभल कर व डरते हुए बात करना इत्यादि.

ये सभी ऐसी हरकतें होती हैं जो हर इंसान, जिस के जीवन में कोई न कोई क्रश है, जरूर करता है या फिर महसूस करता है. यदि आप की लाइफ में अभी तक कोई क्रश नहीं है तो एक बार इस का अनुभव जरूर कीजिए. यकीन मानिए, मजा बहुत आएगा और वैसे भी, क्रश के बिना भी कोई जिंदगी है क्या.

पूर्वांचल में ड्रैगन फ्रूट की खेती

प्रो. रवि प्रकाश मौर्य

9वीं जमात तक की तालीम हासिल करने वाले गया प्रसाद ढाई एकड़ खेत में गेहूं, धान और सब्जियों के साथसाथ देशी गुलाब के फूल की खेती करते हैं, जो देवाशरीफ में नियमित रूप में देशी गुलाब सालभर 50 रुपए प्रति किलोग्राम की दर में घर से ही बिकता है. वे गुलाब जल भी बनाते हैं. सुगंधित गुलाब जल के लिए रानीसाहिबा और नूरजहां प्रजाति उपयुक्त हैं.

उन्होंने बताया कि 4 साल पहले सीमैप लखनऊ किसान मेले से एक पौधा ड्रैगनफ्रूट का लाए थे. उस में 6 फल लगे, जो देखने में आकर्षक, खाने में स्वादिष्ठ और पौष्टिक थे. इस की खेती में न तो अधिक उर्वरक, बीज व कृषि रसायनों की जरूरत होती है और न ही जानवरों द्वारा नुकसान होता है.

नागफनी कुल का पौधा होने के कारण इस में कम पानी की जरूरत होती है. महज एक हेक्टेयर जमीन होने के कारण वे अपने परिवार की आवश्यकता भर खाद्यान्न फसलों की और व्यावसायिक रूप में गुलाब, ग्लेडिओलस गेंदा फूलों, सभी सब्जियों व सहजन की खेती करते हैं. वे काला गेहूं व काला चावल भी उगाते हैं.

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ड्रैगनफ्रूट के बारे में उन्होंने बताया कि पौधे 10×10 फुट पर लगाने के कारण काफी स्थान मिल जाता है. बीच में धनिया, पालक व प्याज के लिए पर्याप्त स्थान मिल जाता है. बायोडीकंपोजर से फसल अवशेषों को सड़ाने, वर्मी कंपोस्ट, जैव उर्वरकों के साथ कंपोस्ट का इस्तेमाल करते हैं. जीवामृत, घन जीवामृत तैयार करते हैं, जो उर्वरकों के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

ड्रैगनफ्रूट की खेती में समस्त जल विलेय उर्वरकों सागरिका अमीनो एसिड का ही उपयोग होता है. बीमारी के रूप में फंगस लगता है. समयसमय पर फंगस की दवाओं का प्रयोग किया जाता है.

ड्रैगनफ्रूट के पौधे 25 सालों तक जीवित रहते हुए फल दे सकते हैं. नतीजतन, हर साल फसल की लागत में कमी होती जाती है और लाभ बढ़ता जाता है.

वर्तमान समय में 1,600 पौधों में फल आ रहे हैं. तकरीबन 300 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से फल लखनऊ में बिक जाते हैं. नवंबर महीने तक 40 क्विंटल फल प्राप्त होने की उम्मीद है.

बाराबंकी जनपद में ड्रैगनफ्रूट की खेती की शुरुआत गया प्रसाद ने की. उन्होंने बताया कि प्रदेश के वाराणसी, कुशीनगर, गोरखपुर, बलरामपुर, अयोध्या, लखनऊ, रायबरेली, सीतापुर, जालौन आदि जिलों से किसान इन की खेती देखने, सीखने व इस के बारे में जानकारी लेने आते हैं.

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अब तक एक फल का वजन तकरीबन 800 ग्राम अभिलेखों में बताया गया है. मेरे यहां के फलों का वजन तकरीबन 750 ग्राम तक है. किसानों को मेरी सलाह है कि ड्रैगनफ्रूट की खेती करें. यह अत्यंत लाभकारी नकदी खेती है. पौधों की व्यवस्था मेरे यहां भी है. आप बाहर से भी इस का पौधा मंगा सकते हैं. प्रति पौधे की कीमत तकरीबन 60-75 रुपए है.

अधिक जानकारी व उचित सलाह लेने के लिए उन के मोबाइल नंबर 9919257513, 9119974955 पर संपर्क कर सकते हैं.

किसान गया प्रसाद ने एक आगंतुक भ्रमण पंजिका बनाई है, जिस में उन के प्रक्षेत्र पर आने वालों अधिकारियों और किसानों के नामपता और मोबाइल नंबर के साथसाथ उन का प्रक्षेत्र अवलोकन के बाद कैसा लगा लिखा जाता है, जो सराहनीय काम है.

मुद्दा: गृहयुद्ध के मुहाने पर कजाखिस्तान

सड़कों पर धूधू कर जलती और खाक होती गाडि़यां, ट्रक और बसें, सरकारी इमारतों से उठता धुआं, भय से घरों व तहखानों में छिपे लोग, हर चेहरे पर खौफ, सड़कों पर फैला सन्नाटा, हवा में घुलती सड़ांध और बारूद की गंध व सड़कों पर बंदूकें लिए फिरते सुरक्षाकर्मी नए साल का आगाज कजाखिस्तान के सब से बड़े शहर अलमाती में हिंसक उपद्रव से हुआ.

कजाख सरकार के खिलाफ आग दिसंबर के मध्य से ही सुलग रही थी. मगर 5 जनवरी को सड़कों पर भयानक हिंसा और तोड़फोड़ शुरू हो गई जिस में बड़ी संख्या में आम लोग मारे गए और कानून लागू करने वाली सुरक्षा एजेंसियों एवं सेना के जवानों को भी जानमाल का भारी नुकसान उठाना पड़ा. सरकारी इमारतों, शहर के एयरपोर्ट, मीडिया प्रतिष्ठानों और कारोबारी संगठनों के दफ्तरों में तोड़फोड़ और आगजनी हुई.

अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में खबरें आने के बाद कजाख सरकार की तरफ से ऊपरी तौर पर यह बताने की कोशिश हुई कि देश में बढ़ती महंगाई और गैस की कीमतों को ले कर जनता नाराज है और उसी के कारण यह विरोध प्रदर्शन है. लेकिन जिस तरह एक सुनियोजित तरीके से हिंसा और प्रदर्शन हुआ है उस से कजाख राष्ट्रपति कासिम जोमार्ट तोकायेव का यह कहना बहुत बचकानी बात लगती है.

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कजाखिस्तान में जारी हिंसा के पीछे वजहें काफी गहरी हैं. दरअसल, इस के पीछे तख्तापलट की कोशिशें, तेल भंडारों पर रूस व चीन की गिद्ध नजरें और कब्जे की बढ़ती आकांक्षा जिम्मेदार हैं. कजाखिस्तान की सीमाएं उत्तर में रूस और पूर्व में चीन से लगती हैं और दोनों ही इस पर काबू पाने की चाह में दिख रहे हैं.

फिलहाल कजाख राष्ट्रपति कासिम जोमार्ट तोकायेव ने देश में आपातकाल लागू कर दिया है और शांति बहाली के लिए रूस के नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन ‘कलैक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी और्गेनाइजेशन’ (सीएसटीओ) से मदद ली है.

गौरतलब है कि कजाखिस्तान दुनिया का 9वां सब से बड़ा देश है. कभी यह देश सोवियत संघ का हिस्सा था. वर्ष 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद जिन 5 देशों को स्वतंत्रता मिली थी उन में कजाखिस्तान भी था. इस का आकार पश्चिमी यूरोप जितना है और यहां प्राकृतिक संपदा भरी पड़ी है. इस के पास व्यापक तेल भंडार है जो इसे राजनीतिक और आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण बनाता है. तेल के भंडार और खनिज संपदा के बावजूद देश के कुछ हिस्सों में लोग खराब हालत में रहने को मजबूर हैं जिस के कारण लोगों में असंतोष है.

कजाखिस्तान में न सिर्फ तेल, बल्कि प्राकृतिक गैस, यूरेनियम और कई प्रमुख धातुएं प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं. इन सब के बावजूद देश में प्रतिव्यक्ति औसत आय 600 डौलर से भी कम है. कर्ज न चुकाने के चलते देश के बैंक गहरे आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं और सरकारी विभागों में फैला भ्रष्टाचार उन्हें इस से उबरने नहीं दे रहा है.

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इसी वजह से देश एक चरमराई हुई अर्थव्यवस्था के दौर से गुजर रहा है. वर्ष 1991 में सोवियत संघ से अलग होने के बाद कजाखिस्तान में एक ही पार्टी का शासन रहा है और इस की वजह से भी लोगों में असंतोष है, खासतौर पर यहां बसे रूसी लोगों में.

कजाखिस्तान की जनसंख्या 2019 में 18.5 मिलियन थी. यहां के मुख्य निवासी कजाख हैं जो तुर्क मूल के हैं. कजाख सब से बड़ा जातीय समूह है, जो आबादी का 63.1 फीसदी हैं. इस के बाद 23.7 फीसदी रूसी आबादी है. अल्पसंख्यकों में उज्बेक (2.8 फीसदी), यूके्रनियन (2.1 फीसदी), उइगर (1.4 फीसदी), तातार (1.3 फीसदी), जरमन (1.1 फीसदी) और बेलारुसियन, एजेरिस, पोल्स, लिथुआनियाई, कोरियाई, कुर्द, चेचनसंद तुर्क की छोटी आबादी है.

कजाखिस्तान की 70 प्रतिशत आबादी मुसलिम है, जिस में ज्यादातर सुन्नी हैं. ईसाई आबादी 26.6 फीसदी है. यहां ज्यादातर रूसी रूढि़वादी कैथोलिक हैं. ईसाई प्रोटैस्टैंट के साथ यहां छोटी तादाद बौद्धों, यहूदियों, हिंदुओं, मौर्मन और बहाई की भी है.

कजाखिस्तान लंबे समय तक रूस के प्रभाव में रहा. रूसी शासन के दौरान यहां खूब तरक्की हुई. कई बड़ी परियोजनाएं शुरू हुईं और पूरी हुईं. विज्ञान और तकनीक की दिशा में भी खूब विकास हुआ, जिस में कई रौकेटों के सफल प्रक्षेपण से ले कर ख्रुश्चेव की ‘वर्जनि भूमि परियोजना’ भी शामिल है. यह निकिता ख्रुश्चेव की 1953 की योजना थी जो सोवियत संघ के कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए थी ताकि सोवियत आबादी में भोजन की कमी को कम किया जा सके.

बढ़ती महंगाई से बढ़ता रोष

करीब 3 दशकों पहले आजाद हुआ तेल संपन्न देश कजाखिस्तान राष्ट्रपति कासिम जोमार्ट तोकायेव के शासनकाल में बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है. वे न तो व्यवस्था को संभाल पा रहे हैं और न ही लोगों के आर्थिक स्तर में सुधार कर पा रहे हैं. ऊपर से बढ़ती महंगाई ने आग में घी डालने का काम किया है.

लोगों में बढ़ते रोष को रूस हवा देने का काम कर रहा है ताकि तख्तापलट की स्थिति में वह मदद के बहाने व्यवस्था को अपने हाथों में ले सके. इस चाल से अमेरिका के कान भी खड़े हुए हैं और वह लगातार स्थिति पर नजर बनाए हुए है. कजाखिस्तान में तेल के दामों के खिलाफ शुरू हुआ प्रदर्शन अब गृहयुद्ध की शक्ल ले चुका है.

गौरतलब है कि कजाखिस्तान रूस का अहम रणनीतिक साझेदार है और चीन का सब से बड़ा तेल निर्यातक. कजाखिस्तान अतीत में दोनों ही देशों का हिस्सा रहा है और अब वे इसे फिर से अपना हिस्सा बनाना चाहते हैं. रूसी संसद के 2 सदस्य उवीचे स्लाव निकानिफ और यावगनी फेदोरफ ने दिसंबर में देश की मीडिया पर आ कर एक बयान दिया था.  उन्होंने कहा था, ‘पूर्व में कजाखिस्तान का कोई अस्तित्व नहीं था और इसे रूस में मिला लेना चाहिए.’ रूस ने अतीत में कई सैन्य अभियानों को सही ठहराने के लिए रूसी सीमा के पड़ोसी देशों में रह रहे रूसी भाषी अल्पसंख्यकों के संरक्षण का बहाना बनाया है.

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वहीं, चीनी वैबसाइट पर प्रकाशित लेखों में कहा जा रहा है कि कजाखिस्तान एक समय में चीन का हिस्सा था और कजाखिस्तान के अधिकांश लोग फिर से चीन में शामिल होना चाहते हैं. हालांकि, कजाखिस्तान की सरकार चीन और रूस की सरकारों के साथ अपना विरोध दर्ज करवा चुकी है.

कजाखिस्तान की सरकार चीन और रूस के साथ अपने संबंधों को ले कर बहुत सतर्क रही है. वह इस क्षेत्र के दोनों बड़े देशों- चीन और रूस के साथ आर्थिक, रक्षा और व्यापार संबंधों की वजह से किसी भी राजनयिक विवाद में उलझने से बचती रही है.

चीन, जो एक बहुत बड़ी आर्थिक और रक्षा शक्ति के रूप में उभर रहा है, से कजाखिस्तान डरा हुआ है. चीन के बारे में कजाखिस्तान का यह मानना है कि चीन चुपचाप आर्थिक रूप से विस्तारवादी नीति अपना रहा है और वह उस के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करना चाहता है.

चीन और कजाखिस्तान के बीच आर्थिक समझौतों के बारे में भी जनता को संदेह है. लोगों का मानना है कि इन समझौतों के जरिए देश में बड़ी संख्या में चीनी नागरिकों के आने के लिए दरवाजे खुल जाएंगे और कजाखिस्तान की सुरक्षा और स्वतंत्रता पर खतरा बढ़ जाएगा.

कजाख सरकार का डर और कमजोरी जनता में घबराहट और असंतोष पैदा कर रही है, इस की परिणति दंगों के रूप में हो रही है और उसे और उभारने में परदे के पीछे रूस का हाथ होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.

ज्यादा ईयरफोन इस्तेमाल करने से होती हैं ये बीमारियां

म्यूजिक हमारी मानसिक सेहत के लिए बेहद जरूरी है. कितनी भी टेंशन हो, संगीत सुनने से लोगों का स्ट्रेस कम होता है, ब्रेन मसल्स रिलैक्स होते हैं. दिमाग की कई बीमारियों के लिए म्यूजिक थैरेपी का इस्तेमाल भी होता है. पर आज के युवाओं के लिए म्यूजिक का मातलब ईयरफोन हो गया है. बहुत से लोग दिनभर का एक बड़ा हिस्सा कान में ईयरफोन को लगाए बिताता है. इससे सुनने की क्षमता तो प्रभावित होती ही है इसके अलावा भी बहुत तरह की परेशानियां होती हैं. इस खबर में हम आपको ईयरफोन से होने वाली परेशानियों और उनसे कैसे बचा जा सकता है, के बारे में बताएंगे.

आपको बता दें कि विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार दुनिया भर में ऐसे 466 मिलियन लोग हैं जिन्होंने अपने सुनने की क्षमता खो दी है. उम्मीद की दजा रही है कि भविष्य में ये आंकड़ा 630 मिलियन के पार जा सकता है. जानकारों का मानना है कि लोगों का ईयरफोन की ओर बढ़ रहा झुकाव इस समस्या को और अधिक गंभीर बना रहा है.

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दिमाग पर होता है नकारात्मक असर

जरूरत से अधिक ईयरफोन का इस्तेमाल करने से दिमाग पर इसका नकारात्मक असर होता है. ईयरफोन्स से इल्क्ट्रोमौग्नेटिक वेव्स निकलती हैं जो हमारे कान के साथ साथ हमारे दिमाग की कार्यशैली पर भी नकारात्मक असर डालती हैं.

आइए जाने कि ईयरफोन के अधिक इस्तेमाल से आप किन परेशानियों के शिकार हो सकते हैं.

एयर पैसेज हो सकता है बंद

आजकल बहुसे से ईयरफोन ऐसे आ रहे हैं जिनसे बहुस बढ़िया आवाज में आप सब कुछ सुन सकते हैं. लेकिन इन ईयरफोन को आपको अपने ईयर कैनाल के पास में लगाना पढ़ता है, जिसके चलते हवा का प्रवाह कानों में रुक जाता है. इसके चलते आप काफी टाइप के कान के इन्फेक्शन से ग्रस्त हो सकते हैं.

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सुन्न हो सकते हैं कान

ज्यादा देर तक ईयरफोन का इस्तेमाल करने वाले लोग अक्सर कानों का सुन्न होना महसूस करते हैं. ज्यादा वक्त तक ईयरफोन लगाने से कान सुन्न पड़ जाते हैं. कुछ वक्त तक हमें सब साफ सुनाई नहीं देता है. शुरुआत में ये समस्या छोटी लगती है पर आगे चल कर इसका स्वरूप बड़ा हो जाता है.

‘इमली’ की ऑनस्क्रीन मां रीयल लाइफ में हैं काफी हॉट, देखें Photos

सुम्‍बुल तौकीर (Sumbul Touqueer), फहमान खान (Fahmaan Khan) और मयूरी देशमुख (Mayuri Deshmukh) स्टारर सीरियल ‘इमली’ में  इन दिनों लगातार नया ट्विस्ट एंड टर्न देखने को मिल रहा है. यह शो लगातार टीआरपी चार्ट में शामिल है. आज आपको इमली की मां का किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस किरण खोजे के बारे में कुछ दिलचस्प बातें बताएंगे. तो आइए जानते हैं किरण खोजे  के बारे में.

शो में किरण खोजे इमली की मां मीठी का किरदार निभाती हैं. शो में वह सिंपल महिला के लुक में नजर आती है लेकिन वह असल जिंदगी में काफी स्‍टाइलिश और हॉट नजर आती हैं. दरअसल किरण खोजे ने हाल ही में इंस्टाग्राम पर  हॉट फोटो शेयर की है जिसमें वह टॉप पहनकर नजर आ रही हैं.

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उनका ये कातलिना लुक फैंस की धड़कने बढ़ा रही है. फैंस किरण खोजे की तस्वीर को काफी पसंद कर रहे हैं. किरण खोजे मीठी के किरदार में फैंस के बीच पॉपुलर है. बता दें कि वह अपनी फिटनेस का पूरा ध्यान रखती है और अक्‍सर सोशल मीडिया पर फैंस के साथ फोटोज शेयर करती रहती हैं.

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किरण ने ऋतिक रोशन की फिल्म ‘सुपर 30’ में भी अहम भूमिका निभाई है. उन्होंने दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से एक्टिंग सीखी है. फिलहाल एक्ट्रेस सीरियल इमली में गांव की महिला के किरदार में नजर आ रही है. सीरियल में किरण खोजे इमली की मां मीठी का रोल निभा रही हैं.

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Anupamaa: अनुज-अनुपमा की होगी शादी? वनराज को लगेगा झटका

सुधांशु पांडे, रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) और गौरव खन्ना (Gaurav Khanna) स्टारर सीरियल दर्शकों का मोस्ट फेवरेट शो बन चुका है. शो की कहानी में लगातार नये-नये ट्विस्ट के कारण दर्शकों का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा है. शो में अनुज-अनुपमा के लव एंगल का काफी समय से दर्शकों को इंतजार था. अब वो इंतजार भी खत्म हो गया है. अनुपमा ने भी प्यार का इजहार कर दिया है. शो के आने वाले एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो के आने वाले एपिसोड में अनुज अनुपमा को शादी के लिए प्रपोज करने वाला है.  जी हां, शो में आप देखेंगे कि अनुज और अनुपमा साथ में बैठकर टीवी देख रहे होंगे. इसी बीच लाइट चली जाती है. तो वहीं अनुज के पत्ते से एक अंगूठी बनाकर अनुपमा के हाथ में रखता है और कहता है वह उससे शादी करना चाहता है.

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इसके बाद कहता है कि किसी खूबसूरत जगह पर या महंगे लोकेशन पर कीमती अंगूठी देते हुए प्रपोज करना उसे ठीक नहीं लगा. उसे यूं साथ में बैठकर मटर छीलते हुए ही हमसफर बनाना चाहता है. वह कहता है कि वह उसके साथ ऐसे ही आम लोगों की तरह एक जिंदगी जीना चाहता है. अनुपमा जवाब नहीं देती लेकिन शरमा के चुप हो जाती है.

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शो में आप ये भी देखेंगे कि समर अनुपमा की बर्थडे के लिए तैयारी करेगा. तभी वनराज पूछेगा कि आखिर ये सब क्या है. तब समर बताता है कि अनुपमा की बर्थडे पार्टी बापूजी दे रहे हैं. ये बात सुनकर वनराज को झटका लगेगा.

 

तो दूसरी तरफ पाखी छिपकर किसी से बात करती है लेकिन किंजल के आते ही वह फोन रख देती है. इसके बाद किंजल पाखी से कहती है कि वह उससे भी अपने सीक्रेट शेयर कर सकती है वह उसकी दोस्त बन सकती है. तो पाखी कहती है कि वह अपने दोस्तों के साथ स्लीपओवर के लिए जाना चाहती है लेकिन बा नहीं समझेगी.

जेलकटटू राम रहीम पर “भाजपा” मेहरबान है

देश की आम जनता अब चौक चौराहे पर यह चर्चा कर रही है कि गंभीर आरोपों में जेल में बंद एक डेरा प्रमुख राम रहीम को अखिर हरियाणा की भाजपा सरकार ने किस जुगत में फरलो के तहत 21 दिन के लिए जेल से बाहर लाने कारनामा कर दिखाया है .

बात यह है कि सत्ता उसके हाथ पैर – यानी पुलिस के नुमाइंदे और प्रशासन अब राम रहीम की सुरक्षा को खतरा है कह कर जेड प्लस सुरक्षा दे दी गई है.

एक जेल कट्टू को देश की सर्वाधिक महत्वपूर्ण जेड प्लस सुरक्षा को देना बहुत कुछ सच दिखा गया है. चुनाव के इस समय में जब शुचिता सबसे ज्यादा महत्व रखती है भाजपा के नेताओं ने सत्ता सुंदरी की खातिर सारे नियम कानून और नैतिकता को ताक पर रख दिया है.

यह बड़े ही शर्म की बात नहीं है क्या कि जो लोग  देश प्रेम, और राष्ट्रवाद की बात करते नहीं अघाते हैं और दूसरों को देशद्रोही साबित करने मे थोड़ा भी समय नहीं लगाते ऐसे लोग जिन्हें नैतिकता का पालन करना चाहिए. यह लोग राम रहीम के मामले में बीच चौराहे पर देश में नंगे हो चुके हैं.

आखिर भाजपा राम रहीम पर इतनी तबीयत से निछावर क्यों है सिर्फ चुनाव के कारण, पंजाब में चल रहे चुनाव को प्रभावित करने के लिए राम रहीम को तुरुप के पत्ते के रूप में भाजपा उपयोग करने में लगी है.

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राजनीति का यह पतन यह दिखाता है कि सत्ता के लिए राजनीतिक पार्टियां क्या-क्या नहीं कर गुजरती है और सबसे चिंता का सवाल यह है कि देश का संविधान जिसमें सारे नियम कायदे दर्ज हैं वह मौन रह जाता है. क्योंकि जिनके ऊपर संविधान का पालन कराने का दायित्व है वह भी इसमें शामिल हो जाते हैं.

खूंखार अपराधियों से खतरा

अर्थात जो ” जेड प्लस सुरक्षा ” देश के प्रथम श्रेणी के नेताओं को मिलती है, प्रधानमंत्री जैसी विभूतियों को मिलती है, यह जेड सुरक्षा अगर बाबा राम रहीम को दी जा रही है तो प्रश्न खड़ा होना स्वाभाविक है.

राम रहीम, जैसा सारे देश ने देखा है कि किस तरह कानून को अपने हाथ में लेकर न्यायालय पर, पुलिस पर दबाव बनाने का प्रयास किया गया कि राम रहीम तो निर्दोष है उसे फंसाया जा रहा है. मगर अपने गंभीर अपराधों के कारण आखिरकार राम रहीम को जेल जाना पड़ा और सजा भी घोषित हो चुकी है.

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ऐसे में अचानक जब पंजाब में और अन्य चार राज्यों में चुनाव चल रहा है तब राम रहीम को फरलो, 21 दिन की जमानत दे देना उसके बाद जेड प्लस सुरक्षा देना. यह दर्शाता है कि राम रहीम की पंजाब के चुनाव में इस्तेमाल करने की पूरी तैयारी है. अब पुलिस यह भी कह रही है कि राम  रहीम को तो खूंखार आतंकवादियों से खतरा है इसलिए जेड प्लस सुरक्षा दिया जाना अनिवार्य है. यह  चित्र देखकर शर्म आती है आज की राजनीति और सत्ता के खातिर बड़े-बड़े नेताओं के समर्पण को देख कर के ऐसा महसूस होता है कि आने वाले समय में क्या हमारे लोकतंत्र पर बाबा राम रहीम जैसे लोगों का वर्चस्व हो जाएगा.

देश की जनता जिस तरीके से इन सब मामलों को देखते हुए चर्चा कर रही है उसके आधार पर कहा जा सकता है कि अब तो सिर्फ न्यायालय पर ही भरोसा है.

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