मगर, बीच-बीच में कुछ ऐसी घटनाएं घट जाती है जो कुछ सवाल खड़े कर देती हैं जिनका प्रति उत्तर न  तो संविधान के पास होता है और नहीं विधायिका अथवा कार्यपालिका के पास. न्यायपालिका भी मौन रह जाती है.

आज ऐसा ही एक बड़ा प्रश्न देश के सामने एक यक्ष प्रश्न बन कर खड़ा है. पंजाब में. विधानसभा चुनाव अपने शबाब पर है इस दरमियान डेरा सच्चा सौदा के बाबा राम रहीम की औचक जमानत, देश में एक बड़ा सुलगता प्रश्न खड़ा कर रही है जिसका समाधान आवश्यक है.

आमतौर पर राम रहीम जैसे कथित  अपराधियों को परिवारिक दुख सुख के दरमियां ही न्यायालय से कुछ समय के लिए फरलो आदि जमानत राहत मिलती है.

मगर अब सवाल यह खड़ा हो गया है कि पंजाब में अत्यंत महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव चल रहे हैं और एक अपराधी को जिसकी जगह जेल में होनी चाहिए वह लोगों से अपील करने जा रही है है कि आप किस "राजनीतिक दल" को वोट दें.

इसका सीधा सा मतलब यह है कि बाबा राम रहीम जैसे अपराधी सिर्फ और सिर्फ अपने समर्थकों को चुनावी दिशा देने के लिए बाहर निकाले गए हैं जो एक तरह संविधान पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है.

क्या यह शर्मनाक नहीं है कि डेरा सच्चा सौदा जिसके प्रमुख रहे कथित राम रहीम पर कानून का शिकंजा कसा हुआ है इस बार भी 2022 के विधानसभा चुनाव में किस पार्टी या फिर किस उम्मीदवार को समर्थन देगा, इस विषय को लेकर भी डेरा में मंथन चल रहा है.

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राम रहीम के बाहर आते ही यह चर्चा का दौर चल पड़ा  कि हरियाणा सरकार द्वारा राम रहीम की जमानत, चुनाव के मद्देनजर हुई है. यह सच भी होता दिखाई दे रहा है क्योंकि इस बारे में डेरा सच्चा सौदा 17 - 18 फरवरी को ही पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर अपना फैसला देगा.

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