सड़कों पर धूधू कर जलती और खाक होती गाडि़यां, ट्रक और बसें, सरकारी इमारतों से उठता धुआं, भय से घरों व तहखानों में छिपे लोग, हर चेहरे पर खौफ, सड़कों पर फैला सन्नाटा, हवा में घुलती सड़ांध और बारूद की गंध व सड़कों पर बंदूकें लिए फिरते सुरक्षाकर्मी नए साल का आगाज कजाखिस्तान के सब से बड़े शहर अलमाती में हिंसक उपद्रव से हुआ.
कजाख सरकार के खिलाफ आग दिसंबर के मध्य से ही सुलग रही थी. मगर 5 जनवरी को सड़कों पर भयानक हिंसा और तोड़फोड़ शुरू हो गई जिस में बड़ी संख्या में आम लोग मारे गए और कानून लागू करने वाली सुरक्षा एजेंसियों एवं सेना के जवानों को भी जानमाल का भारी नुकसान उठाना पड़ा. सरकारी इमारतों, शहर के एयरपोर्ट, मीडिया प्रतिष्ठानों और कारोबारी संगठनों के दफ्तरों में तोड़फोड़ और आगजनी हुई.
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में खबरें आने के बाद कजाख सरकार की तरफ से ऊपरी तौर पर यह बताने की कोशिश हुई कि देश में बढ़ती महंगाई और गैस की कीमतों को ले कर जनता नाराज है और उसी के कारण यह विरोध प्रदर्शन है. लेकिन जिस तरह एक सुनियोजित तरीके से हिंसा और प्रदर्शन हुआ है उस से कजाख राष्ट्रपति कासिम जोमार्ट तोकायेव का यह कहना बहुत बचकानी बात लगती है.
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कजाखिस्तान में जारी हिंसा के पीछे वजहें काफी गहरी हैं. दरअसल, इस के पीछे तख्तापलट की कोशिशें, तेल भंडारों पर रूस व चीन की गिद्ध नजरें और कब्जे की बढ़ती आकांक्षा जिम्मेदार हैं. कजाखिस्तान की सीमाएं उत्तर में रूस और पूर्व में चीन से लगती हैं और दोनों ही इस पर काबू पाने की चाह में दिख रहे हैं.