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शूटिंग के दौरान Rubina Dilaik हुई जख्मी, देखें Photo

टीवी एक्ट्रेस और बिग बॉस 14 की विनर रुबीना दिलाइक (Rubina Dilaik) सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वह आए दिन फैंस के साथ अपनी फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं. अब उन्होंने एक ऐसी फोटो शेयर की है, जिसमें एक्ट्रेस के पीठ और कंधे पर बैंडेज लगा हुआ दिखाई दे रहा है. एक्ट्रेस की ये फोटो देखने के बाद फैंस भी हैरान गए हैं

रुबीना दिलाइक ने इसकी जानकारी सोशल मीडिया पर दी है. एक्ट्रेस ने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपनी तस्वीर शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है कि कुछ भी आपकी प्लानिंग की मुताबिक नहीं होता है.’ फैंस बार-बार कमेंट्स कर पूछ रहे हैं कि ये कैसे हुआ?

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एक्ट्रेस का कैप्शन  पढ़ने के बाद ये अंदाजा लगाया जा रहा है कि रुबीना दिलाइक के साथ शूटिंग के दौरान ये हादसा हुआ है. हालांकि उन्होंने केवल फोटो शेयर की है कि ये नहीं बताया कि चोट कैसे लगी?  एक्ट्रेस के इस फोटो पर एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा, ये क्या रुबीना आपको? ये चोट कैसे लगी सब ठीक तो है ना.’ तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा कि ‘आप अपना ध्यान रखो.’

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वर्कफ्रंट की बात करें तो बिग बॉस 14 की विनर बनने के बाद रुबीना दिलाइक ने बड़े कई शोज के लिए काम किया. खबरों के अनुसार रुबीना दिलाइक जल्द ही अपने पति अभिनव शुक्ला के साथ एमएक्स प्लेयर की एक सीरीज में दिखाई देंगी. एक्ट्रेस आने वाली दिनों में फिल्म ‘अर्ध’ में दिखाई देंगी. इस फिल्म की शूटिंग चल रही है.

 

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यूक्रेन संकट: टाटा एयर, निजी करण का दंश

प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के नेतृत्व में चल रही केंद्रीय सरकार ने एयर इंडिया को निजी हाथों में देकर अपनी पीठ थपथपाई थी. और टाटा के  जाने पहचाने नामचीन सर परस्तों ने एयर इंडिया को अधिग्रहित करने के बाद बड़ी बड़ी देश हित की बातें की थी.

मगर आज यूक्रेन संकट के समय में जब सैकड़ों  भारतीय  यूक्रेन में फंसे हुए थे. नरेंद्र मोदी के एयर इंडिया के निजी करण का सच उघड़ कर सामने आ गया.

टाटा एयर ने भी दिखा दिया कि देश के लोगों से, मानवता से और किसी दुनियावी संकट से उनका कोई लेना देना नहीं है. हम तो पैसे कमाने के लिए बैठे हैं कोई चाहे मरे चाहें जीएं.

यही कारण है कि यूक्रेन में फंसे लोगों से टाटा एयर ने टिकट फेयर से दुगनी से ज्यादा लंबी चौड़ी राशि की मांग की. और जब यह पैसा उन्हें मिला तभी यूक्रेन से टाटा एयर का विमान भारत की उड़ान भरता है.

आपको यह खबर किसी समाचार पत्र में टीवी चैनल में दिखाई नहीं देगी. मीडिया के मुंह पर ताला लगा हुआ है.क्योंकि निजी करण की पोल खोलना सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की नीतियों की धज्जियां उड़ाना होगा. और टाटा एयर जैसे स्वनामधन्य  पूंजीपति की पोल खोलना भला ऐसा साहस किसमें है… आइए! आज हम आपको यह सच बताते चलें और बताएं कि किस तरह यूक्रेन फंसे भारत माता के सपूतों के साथ केंद्र सरकार के संरक्षण में टाटा एयर ने आमनवीयता  की हद पार कर दी और उनके लिए रूपए पैसे ही सब कुछ था.सवाल है

तो क्या इसी कारण भारत सरकार ने एयर इंडिया को बेचा है क्या कोई ऐसे नियम कायदे नहीं बनाए गए युद्ध के समय टाटा एयर को भी एयर इंडिया की ताजा भारत के जन-जन की सेवा करनी होगी इसी सेवा से बचाव के कारण भारत सरकार ने एयर इंडिया को टाटा को बेच दिया है.

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दिखावा करती मोदी सरकार

टाटा इंडिया की दो निकासी उड़ानें यूक्रेन में फंसे 490 भारतीय नागरिकों को लेकर रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट और हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट से  दिल्ली हवाईअड्डे पर पहुंचीं. भारत ने यूक्रेन में रूसी सेना के आक्रमण के बीच वहां फंसे अपने नागरिकों को निकालने के लिए शनिवार को अभियान शुरू किया. पहली निकासी उड़ान एआई1944 से बुखारेस्ट से 219 लोगों को भारत लाया गया.

अधिकारियों ने बताया कि दूसरी निकासी उड़ान  बुखारेस्ट से करीब दो बजकर 45 मिनट पर 250 भारतीय नागरिकों को लेकर दिल्ली हवाईअड्डे पहुंची. उन्होंने बताया कि एअर इंडिया की तीसरी निकासी उड़ान एआई1940 हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट से रवाना हुई और रविवार सुबह नौ बजकर 20 मिनट पर 240 लोगों के साथ दिल्ली हवाईअड्डे पर पहुंची.

मजे की बात यह है कि शायद यह दृश्य लोगों ने पहली बार देखा होगा कि नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने यूक्रेन से लौटे भारतीयों को “गुलाब का फूल” देकर हवाईअड्डे पर उनका स्वागत किया. स्वदेश लौटे लोगों से सिंधिया ने कहा -” मैं जानता हूं कि आप सभी बहुत बहुत कठिन दौर से गुजरे हैं, बहुत कठिन समय रहा, लेकिन यह जान लीजिए कि प्रधानमंत्री

हर कदम पर आपके साथ हैं.”

यूक्रेन के अधिकारियों ने स्थितियां बिगड़ते ही यात्री विमानों के परिचालन के लिए अपने देश का हवाई क्षेत्र बंद कर दिया था, इसलिए भारतीयों को स्वदेश लाने के लिए ये उड़ानें बुखारेस्ट और बुडापेस्ट से परिचालित की जा रही हैं. अधिकारियों ने बताया कि जो भी भारतीय नागरिक सड़क मार्ग से यूक्रेन रोमानिया और यूक्रेन-हंगरी सीमा पर पहुंचे थे, उन्हें भारत सरकार के अधिकारियों की मदद से सड़क मार्ग से क्रमशः बुखारेस्ट और बुडापेस्ट ले जाया गया ताकि उन्हें एअर इंडिया की उड़ान के जरिए स्वदेश लाया जा सके.

मोदी कैबिनेट के नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुताबिक  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के संपर्क में हैं तथा सभी की सुरक्षित वापसी के लिए बातचीत चल रही है. उन्होंने बताया कि रूस की सरकार के साथ भी बातचीत चल रही है और भारत सरकार तभी चैन की सांस लेगी जब यूक्रेन से प्रत्येक भारतीय वापस आ जाएगा.

मंत्री ने कहा कि इसलिए कृपया यह संदेश अपने सभी मित्रों तथा सहकर्मियों तक पहुंचाएं कि हम उनके साथ हैं और हम उन्हें सुरक्षित वापस लाने की गारंटी देंगे. सिंधिया के मुताबिक मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से आपका स्वागत करता हूं. मैं एअर इंडिया की टीम को भी बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने आप सभी को वापस लाने के लिए इतना प्रयास किया.

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इस तरह देश ने देखा कि किस तरह टाटा इंडिया  का निजीकरण का दोनों हाथ से युद्ध की इस भीषण समझ में भी लाभ उठा रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी कि निजीकरण की नीति का सच भी अब उघड़ कर देश के सामने आ चुका है

त्यौहार 2022: खुशी के आंसू- भाग 2

“पापा ने मरते समय मुझ से वादा लिया था, मैं ज्योति का अच्छे से ध्यान रखूं,उस की हर इच्छा का खयाल रखूं. और उस की इच्छा तुम हो, आनंद.”

“पागल तो नहीं हो गई हो तुम, क्या बोल रही हो, जरा सोचो.”

“सही सोच रही हूं आनंद. तुम से अच्छा लड़का ज्योति के लिए कहां मिलेगा मुझे?”

“शटअप छाया, पागल मत बनो. ज्योति से मैं 8 साल बड़ा हूं.”

“मेरी मां, मेरे पापा से 9 साल छोटी थीं.”

“ओह माई गौड, क्या हो गया तुम्हें, आई लव यू ओनली.”

“बट, ज्योति लव्स यू.”

“उसे हमारे बारे में नहीं पता है, सब सच बता दो उसे. तुम्हारे पापा का आशीर्वाद भी मिल चुका है हमें. हम तो शादी करने वाले थे. जब वह यह सब सच जानेगी तब वह सब समझ जाएगी.”

“वह दिनभर, बस, तुम्हारी बातें किया करती है. तुम ने पढ़ाते समय उसे जो उदाहरण दिए हैं, उन्हें उस ने जीवन के सूत्र बना लिए हैं. वह बच्ची है आनंद, सच जान कर उस का दिल टूट जाएगा. वह बिखर जाएगी. वह तुम्हें बहुत चाहने लगी है आनंद.”

“इस का मतलब?”

“मतलब यह है, ज्योति तुम को चाहती है और मैं ज्योति को तुम्हें सौपना चाहती हूं.”

नहीं, छाया नहीं, मैं जीतेजी मर जाऊंगा. तुम इतनी कठोर कैसे हो सकती हो, क्या तुम्हारा प्यार झूठा था, नकली था? तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो?”  आनंद बिफर गया.

“तुम ने अभीअभी मेरी हर समस्या का हल निकालने की बात कही थी, और अब मुकरने लगे,” छाया ने बिलकुल शांत स्वर में कहा.

“मतलब, तुम मेरे बिना रह लोगी?” आनंद ने व्यंग्य करते हुए कहा.

“यह मेरे सवाल का जवाब नहीं है,” छाया ने फिर अपनी बात रखनी चाही.

“तुम मुझे प्यार नहीं करती न,” आनंद बात से हटना चाह रहा था.

“यही समझ लो, ज्योति तो करती है न.”

“मैं पागल हो जाऊंगा छाया, मुझ पर रहम करो.”

“तुम ज्योति को अपना लो. बस, मेरी इतनी बात मान लो आनंद. अगर कभी भी मुझे प्यार किया होगा, उसी का वास्ता देती हूं मैं तुम्हें.”

“मैं मां से क्या कहूंगा,” आनंद ने आखिरी दांव फेंका.

“कुछ भी कह देना, बदल गई छाया, बिगड़ गई छाया, जो चाहे सो कह देना.”

“तुम बहुत स्वर्थी हो गई हो छाया. तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं. तुम्हें बस अपनी बहन से प्यार है. तुम ने मुझे जीतेजी मार दिया. आज का दिन मैं कभी भी भूल नहीं पाऊंगा.”

“चलो, मुझे छोड़ दो.”

“मैं क्या छोडूंगा तुम्हें, तुम ने मुझे छोड़ दिया.”

आनंद ने बाइक स्टार्ट की. छाया चुपचाप पीछे बैठ गई. आनंद उसे घर से कुछ दूरी पर छोड़ छाया को बिना देखे तेजी से निकल गया. छाया रातभर सो न सकी. वह सारी रात बेचैन रही. उस का स्कूल जाने का मन नहीं था, पर आज जाना जरूरी था, इसलिए उसे जाना पडा. वह सीधे क्लासरूम में चली गई. क्लास लेने के बाद वह लाइब्रेरी में जा कर बैठ गई.

आज उस में आनंद की सामना करने की हिम्मत नहीं हो रही थी. उस ने पर्स से एक किताब निकाली और पढ़ने की बेकार कोशिश करने लगी. पढ़ने में बिलकुल मन नहीं लग रहा था. पर समय काटना था क्योंकि अभी आनंद स्टाफरूम में होगा. घंटी लगने के बाद वह उठी और क्लास लेने चली गई. उस दिन छाया दिनभर आनंद के सामने आने से बचती रही.

अब छाया ने सोच लिया, बस, पापा के साल होने में मात्र 3 महीने हैं. उसे अब ज्योति की विवाह की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. उसे आनंद पर विश्वास था, वह उसे धोखा नहीं देगा. अब उसे ज्योति को आनंद से विवाह की बात बता देनी चाहिए.

उस ने जब ज्योति को बताया, वह खुशी से झूम उठी. उस का चेहरा लज्जा से लाल हो गया. उस ने कहा कि शायद इसी कारण आनंद जी अब उसे पढ़ाने नहीं आ रहे हैं. छाया क्या कहती, वह चुप रही. अगले महीने से स्कूल में परीक्षा है. और  स्कूल के अंदर की परीक्षा का कार्यभार छाया के पास था. वह परीक्षा प्रभारी थी. इन दिनों छुट्टी लेना मुश्किल हो जाता है. उस ने सोचा, परीक्षा के बाद से वह विवाह की तैयारी में जुट जाएगी.

खुशियों के फूल: भाग 3

लिपि अपने अपार्टमैंट के गेट पर ही हमारा इंतजार करती मिली. मिताली के औफिस रवाना होते ही लिपि ने कहा, ‘‘आंटी, आप से ढेर सारी बातें करनी हैं. आइए, पहले इस पार्क में धूप में बैठते हैं. मैं जानती हूं कि आप तब से आज तक न जाने कितनी बार मेरे बारे में सोच कर परेशान हुई होंगी.’’

‘‘हां लिपि, चौधरी साहब के गुजरने के बाद तुम ग्वालियर से लखनऊ चली गई थीं, फिर तुम्हारे बारे में कुछ पता ही नहीं चला. चौधरी साहब की अचानक मृत्यु ने तो हमें अचंभित ही कर दिया था. प्रकृति की लीला बड़ी विचित्र है,’’ मैं ने अफसोस के साथ कहा.

‘‘आंटी जो कुछ बताया जाता है वह हमेशा सच नहीं होता. रौनक भैया उस दिन आप के यहां से आ कर चुप, पर बहुत आक्रोशित थे. पापा ने रात को शराब पी कर भैया से कहा कि अब तुम लिपि को समझाओ कि यह मां के गम में रोनाधोना भूल कर मेरा ध्यान रखे और अपनी पढ़ाई में मन लगाए.

‘‘सुन कर भैया भड़क गए थे. पापा के मेरे साथ ओछे व्यवहार पर उन्होंने पापा को बहुत खरीखोटी सुनाईं और कलियुगी पिता के रूप में उन्हें बेहद धिक्कारा. बेटे से लांछित पापा अपनी करतूतों से शर्मिंदा बैठे रह गए. उन्हें लगा कि ये सारी बातें मैं ने ही भैया को बताई हैं.

‘‘भैया की छुट्टियां बाकी थीं लेकिन वे मुझे झांसी दीदी के पास कुछ दिन भेज कर किसी अन्य शहर में मेरी शिक्षा और होस्टल का इंतजाम करना चाहते थे. वे मुझे झांसी के लिए स्टेशन पर ट्रेन में बिठा कर वापस घर पहुंचे तो दरवाजा अंदर से बंद था.

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‘‘बारबार घंटी बजाने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला तो भैया पीछे आंगन की दीवार फांद कर अंदर पहुंचे तो पापा कुरसी पर बैठे सामने मेज पर सिर के बल टिके हुए मिले. उन के सीधे हाथ में कलम था और बाएं हाथ की कलाई से खून बह रहा था. भैया ने उन्हें बिस्तर पर लिटाया. तब तक उन के प्राणपखेरू उड़ चुके थे. भैया ने डाक्टर अंकल और झांसी में दीदी को फोन कर दिया था. पापा ने शर्मिंदा हो कर आत्महत्या करने के लिए अपने बाएं हाथ की कलाई की नस काट ली थी और फिर मेरे और भैया के नाम एक खत लिखना शुरू किया था. ‘‘होश में रहने तक वे खत लिखते रहे, जिस में वे केवल हम से माफी मांगते रहे. उन्हें अपने किए व्यवहार का बहुत पछतावा था. वे अपनी गलतियों के साथ और जीना नहीं चाहते थे. पत्र में उन्होंने आत्महत्या को हृदयाघात से स्वाभाविक मौत के रूप में प्रचारित करने की विनती की थी.

‘‘भैया ने डाक्टर अंकल से भी आत्महत्या का राज उन तक ही सीमित रखने की प्रार्थना की और छिपा कर रखे उन के सुसाइड नोट को एक बार मुझे पढ़वा कर नष्ट कर दिया था.

‘‘हम दोनों अनाथ भाईबहन शीघ्र ही लखनऊ चले गए थे. मैं अवसादग्रस्त हो गई थी इसलिए आप से भी कोई संपर्क नहीं कर पाई. भैया ने मुझे बहुत हिम्मत दी और मनोचिकित्सक से परामर्श किया. लखनऊ में हम युवा भाईबहन को भी लोग शक की दृष्टि से देखते थे लेकिन तभी अंधेरे में आशा की किरण जागी. भैया के दोस्त केतन ने भैया से मेरा हाथ मांगा. सच कहूं, तो आंटी केतन का हाथ थामते ही मेरे जीवन में खुशियों का प्रवेश हो गया. केतन बहुत सुलझे हुए व्यक्ति हैं. मेरे दुख और एकाकीपन से उबरने में उन्होंने मुझे बहुत धैर्य से प्रेरित किया. मेरे दुख का स्वाभाविक कारण वे मम्मीपापा की असामयिक मृत्यु ही मानते हैं.

‘‘मैं ने अपनी शादी का कार्ड आप के पते पर भेजा था. लेकिन बाद में पता चला कि अंकल के रिटायरमैंट के बाद आप लोग वहां से चले गए थे. मैं और केतन

2 वर्ष पहले ही कनाडा आए हैं. अब मैं अपनी पिछली जिंदगी की सारी कड़ुवाहटें भूल कर केतन के साथ बहुत खुश हूं. बस, एक ख्वाहिश थी, आप से मिल कर अपनी खुशियां बांटने की. वह आज पूरी हो गई. आप के कंधे पर सिर रख कर रोई हूं आंटी. खुशी से गलबहियां डाल कर आप को भी आनंदित करने की चाह आज पूरी हो गई.’’

लिपि यह कह कर गले में बांहें डाल कर मुग्ध हो गई थी. मैं ने उस की बांहों को खींच लिया, उस की खुशियों को और करीब से महसूस करने के लिए.

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‘‘आंटी, मैं पिछली जिंदगी की ये कसैली यादें अपने घर की दरोदीवार में गूंजने से दूर रखना चाहती हूं, इसलिए आप को यहां पार्क में ले आई थी. आइए, आंटी, अब चलते हैं. मेरे प्यारे घर में केतन भी आज जल्दी आते होंगे, आप से मिलने के लिए,’’ लिपि ने उत्साह से कहा और मैं उठ कर मंत्रमुग्ध सी उस के पीछेपीछे चल दी उस की बगिया में महकते खुशियों के फूल चुनने के लिए.

जहर का पौधा: भाग 3

उसी वक्त मनीष के सहायक डाक्टर रामन ने कमरे में प्रवेश किया. ‘‘हैलो, सर, मीराजी अब खतरे से बाहर हैं,’’ रामन ने टेबललैंप की रोशनी करते हुए कहा.

‘‘थैंक्यू डाक्टर, आप ने बहुत अच्छी खबर सुनाई,’’ मनीष ने कहा, ‘‘लेकिन आगे भी मरीज की देखभाल बहुत सावधानी से होनी चाहिए.’’

‘‘ऐसा ही होगा, सर,’’ डाक्टर रामन ने कहा.

‘‘मीराजी के पास एक और नर्स की ड्यूटी लगा दी जाए,’’ मनीष ने आदेश दिया.

‘‘अच्छा, सर,’’  डाक्टर रामन बोला. एक सप्ताह में मनीष की भाभी का स्वास्थ्य ठीक हो गया. हालांकि अभी औपरेशन के टांके कच्चे थे लेकिन उन के शरीर में कुछ शक्ति आ गई थी. मनीष भाभी से मिलने के लिए रोज जाता था. वह उन्हें गुलाब का एक फूल रोज भेंट करता था.

एक महीने बाद भाभी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. मनीष भैया भाभी को टैक्सी तक छोड़ने गया. सारी राह भैया अस्पताल की चर्चा करते रहे. भाभी कुछ शर्माई सी चुपचुप रहीं.

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मनीष ने कहा, ‘‘भाभीजी, मेरी फीस नहीं दोगी.’’

‘‘क्या दूं तुम्हें?’’ भाभी के मुंह से निकल पड़ा.

‘‘सिर्फ गुलाब का एक फूल,’’ मनीष ने मुसकराते हुए कहा.

घर पहुंचने के कुछ दिनों बाद ही भाभी के स्वस्थ हो जाने की खुशी में महल्लेभर के लोगों को भोज दिया गया. भाभी सब से कह रही थीं, ‘‘मैं बच ही गई वरना इस खतरनाक रोग से बचने की उम्मीद कम ही होती है.’’

लेकिन भाभी का मन लगातार कह रहा था, ‘मनीष ने अस्पताल में मेरे लिए कितना बढि़या इंतजाम कराया. मैं ने उसे बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी किंतु उस ने मेरा औपरेशन कितने अच्छे ढंग से किया.’

भाभी बारबार मनीष को भुलाने का प्रयास करतीं किंतु उस की भोली सूरत और मुसकराता चेहरा सामने आ जाता. वे सोचतीं, ‘आखिर बेचारे ने मांगा भी क्या, सिर्फ एक गुलाब का फूल.’

आखिर भाभी से रहा नहीं गया. उन्होंने अपने बाग में से ढेर सारे गुलाब के फूल तोड़े और अपने पति के पास गईं.

‘‘जरा सुनिए, आज के भोज में सारे महल्ले के लोग शामिल हैं, यदि मनीष को भी अस्पताल से बुला लें तो कैसा रहेगा वरना लोग बाद में क्या कहेंगे?’’

‘‘हां, कहती तो सही हो,’’ भैया बोले, ‘‘अभी बुलवा लेता हूं उसे.’’

एक आदमी दौड़ादौड़ा अस्पताल गया मनीष को बुलाने, लेकिन मनीष नहीं आ सका. वह किसी दूसरे मरीज का जीवन बचाने में पिछली रात से ही उलझा हुआ था. मनीष ने संदेश भेज दिया कि वह एक घंटे बाद आ जाएगा.

किंतु मरीज की दशा में सुधार न हो पाने के कारण मनीष अपने वादे के मुताबिक भोज में नहीं पहुंच सका. भाभी द्वारा तोड़े गए गुलाब जब मुरझाने लगे तो भाभी ने खुद अस्पताल जाने का निश्चय कर लिया.

भोज में पधारे सारे मेहमान रवाना हो गए, तब भाभी ने मनीष के लिए टिफिन तैयार किया और गुलाब का फूल ले कर भैया के साथ अस्पताल की ओर रवाना हो गईं.

अस्पताल पहुंचने पर पता चला कि मनीष एक वार्ड में पलंग पर आराम कर रहा है. उस ने मरीज को अपना स्वयं का खून दिया था, क्योंकि तुरंत कोई व्यवस्था नहीं हो पाई थी और मरीज की जान बचाना अति आवश्यक था.

भाभी को जब यह जानकारी मिली कि मनीष ने एक गरीब रोगी को अपना खून दिया है तो उन के मन में अचानक ही मनीष के लिए बहुत प्यार उमड़ आया. भाभी के मन में वर्षों से नफरत की जो ऊंची दीवार अपना सिर उठाए खड़ी थी, एक झटके में ही भरभरा कर गिर पड़ी. उन के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘मनीष वास्तव में एक सच्चा इंसान है.’’

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भाभी के मुंह से निकली इस हलकी सी प्रेमवाणी को मनीष सुन नहीं सका. मनीष ने तो यही सुना, भाभी कह रही थीं, ‘‘मनीष, तुम्हारी भाभी ने तुम्हारे लिए कुछ भी अच्छा नहीं किया. लेकिन आश्चर्य है, तुम इस के बाद भी भाभी की इज्जत करते हो.’’

‘‘हां, भाभी, परिवाररूपी मकान का निर्माण करने के लिए प्यार की एकएक ईंट को बड़ी मजबूती से जोड़ना पड़ता है. डाक्टर होने के कारण मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी भाभी के मन में कहीं न कहीं स्नेह का स्रोत छिपा है.’’

‘‘मुझे माफ कर दो, मनीष,’’ कहते हुए भावावेश में भाभी ने मनीष का हाथ पकड़ लिया. उन की आंखों में आंसू छलक आए. वे बोलीं, ‘‘मैं ने तुम्हारा बहुत बुरा किया है, मनीष. मेरे कारण ही तुम्हें घर छोड़ना पड़ा.’’

‘‘अगर घर न छोड़ता तो कुछ करगुजरने की लगन भी न होती. मैं यहां का प्रसिद्ध डाक्टर आप के कारण ही तो बना हूं,’’ कहते हुए मनीष ने अपने रूमाल से भाभी के आंसू पोंछ दिए.

देवरभाभी का यह अपनापन देख कर भैया की आंखें भी खुशी से गीली हो उठीं.

#Tejran New Song: तेजस्वी प्रकाश और करण कुंद्रा के ‘रूला देती है’ गाने का पोस्टर हुआ रिलीज

तेजस्वी प्रकाश और करण कुंद्रा की जोड़ी टीवी की दुनिया की सबसे प्यारी जोड़ी में से एक है और अब यह कपल ‘देसी म्यूजिक फैक्ट्री’ के आगामी गीत ‘रूला देती है’ के साथ अपने फैंस का दिल जितने के लिए तैयार है. हाल ही में संगीत बैनर ने इस गाने का पोस्टर रिलीज किया है जिसमें तेजस्वी और करण एक-दूसरे की बांहों में खोए हुए नजर आ रहे हैं.

बिग बॉस 15 में बनी थी तेजरन की जोड़ी

बिग बॉस सीजन 15 के बाद ‘रूला देती है’ उनका पहला प्रोजेक्ट है जिसमें वे एक साथ नज़र आएंगे. इस जोड़ी ने बिग बॉस सीजन 15 के दौरान दर्शकों का दिल जीत लिया और अब उम्मीद है कि दर्शक इस गाने में भी उन्हें अपना भरपूर प्यार देंगे.

 

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रियलिटी शो के दौरान इस जोड़ी के बीच कई सारे उतार-चढ़ाव देखने को मिले और अब यह देखना दिलचस्प होगा कि गाने में वे किस तरह की केमिस्ट्री बिखेरते है.

फैंस का रिएक्शन जानने के लिए बेकरार हूं- तेजस्वी

इस गाने के पोस्टर रिलीज के बारे में तेजस्वी प्रकाश का कहना है कि  “करण और मैं एक-दूसरे के साथ काम करने के मौके का इंतजार कर रहे थे और जिन लोगों ने हमें इतना प्यार दिया है, वे भी इन्तजार कर रहे कि हम एक साथ कब काम करेंगे. मुझे बहुत खुशी है कि ‘रूला देती है’ के माध्यम से हम आ रहे है. यह एक दिल को छू लेने वाला गाना है जिसकी शूटिंग गोवा में हुई है. मुझे अपनी कंपनी और गाना दोनों ही बहुत पसंद आया. मैं यह जानने के लिए उत्सुक हूं कि फैंस इसे कितना प्यार देते है.”

 

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करण ने कही ये बात…

करण कुंद्रा कहते है कि  ” ‘रूला देती है’ कई मायने में एक विशेष गीत है. यह तेजस्वी के साथ मेरा पहला गीत है, जिसे रजत द्वारा बहुत ही खूबसूरती से संगीतबद्ध किया गया है और यासर ने अपनी मधुर आवाज़ से गाने में अपना दिल निकाल के रख दिया है. गोवा में गाने की शूटिंग करने का अनुभव कमाल का रहा और मुझे खुशी है कि इसका पोस्टर रिलीज हो गया है.”

 

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देसी म्यूजिक फैक्ट्री के फाउंडर और सीईओ अंशुल गर्ग कहते है कि “रूला देती है’ के लिए तेजस्वी प्रकाश और करण कुंद्रा के साथ काम करना अद्भुत रहा है. बिग बॉस सीजन 15 के बाद यह उनका एक साथ किया हुआ पहला प्रोजेक्ट है, जिसे अपने लेबल के तहत श्रोताओं के लिए पेश करते हुए हमें बेहद ख़ुशी हो रही है. श्रोताओं के लिए गाने का पोस्टर रिलीज करके बेहद खुश हूं.”

‘रुला देती है’ जल्द ही देसी म्यूजिक फैक्ट्री के यूट्यूब चैनल पर रिलीज होगी. इस गाने को राणा सोतल ने लिखा है और यासर देसाई ने गाया है तथा रजत नागपाल ने संगीत सजाया है. यह एक दर्द से भरा हुआ रोमांटिक गीत है, जिसकी शूटिंग गोवा में हुई है.

निर्णय: भाग 2- सुचित्रा और विकास क्यों दुविधा में पड़ गए

‘‘बेटा, अब क्या कहूं तुम से… मैं नहीं समझती कि उस लड़की ने तुम्हारे साथ छल किया होगा. स्वयं वह भी कदाचित अपने अतीत से अनजान है. समझ में नहीं आता और विश्वास करने को जी भी नहीं चाहता, पर तुम्हारे पिताजी ने भी पूरी तहकीकात कर के ही कहा है सबकुछ मुझ से, स्वयं वे भी दुखी हैं.’’

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‘‘पर बात क्या है, मां? स्पष्ट कहो.’’

सुचित्रा धीरेधीरे सबकुछ बताती चली गई. सुन कर जय हतप्रभ रह गया. कुछ पल चुप रह कर शांत स्वर में बोला, ‘‘जूही ने जानबूझ कर हम से कुछ छिपाया हो, यह तो मैं सोच भी नहीं सकता. रही बात उस की मां की, सो मुझे उस से कोई फर्क नहीं पड़ता. फिर भी मां, मैं सबकुछ तुम पर छोड़ता हूं. तुम्हें यदि जूही हमारे घर के अनुपयुक्त लगे तो तुम कह दोगी कि उस का खयाल छोड़ दो तो मैं तुम्हारी बात मान लूंगा. मगर मां, मुझे विश्वास है कि तुम किसी निरपराध के साथ अन्याय नहीं करोगी,’’ फिर वह बेफिक्री से चला गया.

रातभर चिंतन कर के सुचित्रा ने एक निर्णय लिया और सुबह पति से बोली, ‘‘मैं देहरादून जाना चाहती हूं.’’

‘‘सुचित्रा, तुम जाना ही चाहती हो तो जाओ, पर फायदा कुछ भी नहीं होगा.’’

‘‘सभी कार्य फायदे के लिए नहीं किए जाते, नुकसान न हो, इसलिए भी कुछ काम किए जाते हैं.’’

‘‘ठीक है, कल चली जाना.’’

‘‘मां, तुम देहरादून जा रही हो, मैं भी चलूं?’’ जय ने धीरे से पूछा.

‘‘नहीं, इस की कोई जरूरत नहीं. और हां, जूही को कुछ मत बताना.’’

पति के बताए पते पर गाड़ी जा कर खड़ी हुई. दिल्ली से देहरादून की लंबी यात्रा से सुचित्रा पूरी तरह थक चुकी थी.

छोटे से सुंदर बंगले के बाहर उतर कर सुचित्रा ने ड्राइवर को 2 घंटे के लिए बाहर खापी कर घूम आने को कहा और स्वयं अंदर चली गई.

2-3 मिनट में ही जो स्त्री बाहर आई, उसे देख कर सुचित्रा हड़बड़ा कर खड़ी हो गई. लगभग 40 वर्षीया उस अत्यंत रूपसी आकृति को देख कर वह ठगी सी रह गई.

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‘‘मैं दिल्ली से आई हूं. आप से पूर्व परिचय न होने पर भी मिलने चली आई. मेरा पुत्र जय…’’  लेकिन सुचित्रा की बात अधूरी ही रह गई.

‘‘मेरी पुत्री जूही को पसंद करता है. उस से ब्याह करना चाहता है. माफ कीजिएगा, मैं ने आप की बात काट दी… लेकिन जूही के अतीत की भनक पड़ते ही आप भागी चली आईं. मैं आप लोगों की तरफ से किसी के आने का इंतजार ही कर रही थी. पिछले सप्ताह मेरे भाई का फोन आया था सुलतानपुर से कि जूही की सगाई दिल्ली में कर दी है. खैर…हां, तो आप क्या पूछना चाहती हैं, कहिए?’’ बहुत ही ठहरे हुए दृढ़ शब्दों में वह बोली.

जूही की मां के सौंदर्य से सुचित्रा  अभिभूत जरूर हो गई थी और  उस के दृढ़ शब्दों की गूंज से अचंभित भी. लेकिन उस के जीवन को ले कर समूचा मन व्यथित हो रहा था.

‘‘जूही मेरे बेटे की ही नहीं, हम पतिपत्नी की भी पसंद है. उस ने हमें बताया था कि बचपन में उस के मातापिता चल बसे. मामा ने ही उस का पालनपोषण किया. मेरे पति सुलतानपुर जा कर रिश्ता भी तय कर आए थे, किंतु बाद में मालूम हुआ कि…’’

‘‘उस की मां जीवित है. आप ने जो कुछ भी सुना, सत्य है. मुझे इतना ही कहना है कि जूही को मेरे बारे में कुछ भी मालूम नहीं है. सो, इस सारी कहानी के साथ उसे मत जोड़ें. वह निरपराध है. वह आप के पुत्र की पत्नी बने, ऐसा अब शायद नहीं हो सकेगा. मांबाप के अच्छेबुरे कर्मों का फल संतान को भुगतना ही पड़ता है. और अधिक क्या कहूं?’’

उस का गौरवान्वित मुखमंडल व्यथा- मिश्रित निराशा से घिर गया. पर मेरे बेटे ने मुझे जिस चक्रव्यूह में फंसा दिया था, उस से मुझे निकलना भी तो था.

‘‘हम ने जूही को कभी दोषी नहीं माना है लेकिन आप ने ऐसा क्यों किया? माफ कीजिएगा, यह मेरे बेटे के जीवन का प्रश्न है, इसलिए आप की निजी जिंदगी के बारे  में पूछने की गुस्ताखी कर रही हूं?’’

‘‘मुझे कुछ भी बताने में कोई संकोच नहीं है किंतु इस से फायदा भी कुछ नहीं होगा. मेरे जीवन की भयानक त्रासदी सुन कर भी मेरे प्रति आप के मन में आए नफरत के भाव कभी दूर नहीं हो सकते. मेरी पुत्री का वरण आप का पुत्र कर सके, यह शायद अब संभव नहीं. फिर पुरानी बातें कुरेदने का अर्थ ही क्या रह जाता है?’’

‘‘न रहे कोई अर्थ, पर मुझे अपने इनकार के पीछे सही व ठोस कारण तो जय को बताना ही होगा. एक मां को उस की संतान गलत न समझे, मेरे प्रति उस के मन के विश्वास को ठेस न लगे, इस का वास्ता दे कर मैं आप से विनती करती हूं. कृपया आप हकीकत से परदा उठा दें. जूही को इस की भनक भी नहीं लगेगी. यह वादा रहा.’’

‘‘आप चाहती हैं तो सुनिए…

‘‘करीब 11-12 वर्ष पहले की बात है, आप को याद होगा, यह वह वक्त था जब आतंकवाद अपनी जड़ें जमा रहा था. एक दिन मैं अपने मायके सुलतानपुर से अपनी ससुराल भटिंडा जा रही थी, अपने पति के साथ. जूही उस समय 9-10 वर्ष की थी. मेरे भाई और उन के तीनों बेटों ने जबरन उसे सुलतानपुर में ही रख लिया था. इकलौती बहन की इकलौती पुत्री के प्रति भाई और भतीजों का विशेष स्नेह था.

‘‘उन के विशेष आग्रह पर मुझे कुछ दिनों के लिए जूही को वहीं छोड़ना पड़ा. बीच रास्ते में ही 8-10 आतंकवादियों ने बस रोक कर कहर बरपा दिया. हम 9-10 औरतों पर उस दिन जो जुल्म हुआ उसे देख कर न धरती धंसी, न आसमान फटा. बस में बैठे सभी मर्द, जिन्हें ‘मर्द’ कहना एक गाली ही है, थरथर कांपते हुए अपनी बहन, बेटी व पत्नी की आबरू लुटते देखते रहे. उन में से एक भी माई का लाल ऐसा न निकला जिस के सर्द लहू में उबाल आया हो. वरना क्या 40-45 पुरुष उन 8-10 सिरफिरों पर भारी न पड़ते? बेशक उन के पास बंदूकें थीं, वे गोलियों से भून देते, जैसा कि बाद में उन्होंने किया भी. पर वे प्रतिकार तो करते.

‘‘लेकिन नहीं, किसी ने भी अपनी जान दांव पर लगाने की जहमत नहीं उठाई. बाद में उन आतंकवादियों ने सभी यात्रियों को गोलियों से छलनी कर दिया. मुझे भी मरा समझ कर छोड़ गए थे. पर उस कुचले शरीर की सांस भी बड़ी बेशर्म थी, जो चल रही थी, बंद नहीं हुई थी.’’

रबड़ स्टैंप “महामहिम” नीतीश कुमार…!

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने की पहल बड़ी मजबूती से की गई है. यह पहल  उनके राजनीतिक सलाहकार रहे प्रशांत किशोर ने की है. एक तरफ अच्छा खासा समर्थन मिल रहा है वहीं दूसरी तरफ कुछ प्रश्न भी खड़े हो गए हैं.

आईए इस रिपोर्ट में हम आपको बताते चलें कि आगामी जुलाई 2022  में जब राष्ट्रपति पद का चयन होगा.

ऐसे में पहले पहल नीतीश कुमार जो कि भाजपा के साथ हैं मगर वर्तमान में बिहार के मुख्यमंत्री हैं अपनी राजनीतिक रस्साकशी में फंस कर के क्या राष्ट्रपति पर शोभायमान करेंगे. महामहिम राष्ट्रपति बन सकेंगे अथवा 2 वर्ष बाद 2025 में जब बिहार में विधानसभा का चुनाव होगा तो लालू प्रसाद यादव पुत्र तेजस्वी यादव की आंधी में हाशिए पर चले जाएंगे.

दरअसल,भारतीय राजनीति में कुछ अनोखे मजेदार खेल होते रहते हैं . कभी-कभी वे अपनी पूर्णता को भी प्राप्त कर लेते हैं, कभी उनकी भूण हत्या हो जाती है.

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ऐसा ही एक खेल है जो आज देश भर में चर्चा का बयास बना हुआ है वह है- नीतीश कुमार का महामहिम राष्ट्रपति बनना.

यह मजेदार खेल इसलिए है कि कभी नीतीश कुमार विपक्ष में प्रधानमंत्री का चेहरा हुआ करते थे. 2017 के लोकसभा चुनाव के पहले विपक्ष के प्रधानमंत्री के प्रमुख चेहरा बने नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने जा रहे नरेंद्र दामोदरदास मोदी के कट्टर विरोधी हुआ करते थे .और तो और मोदी के संप्रदायिक चेहरे के कारण उन्होंने उनके साथ मंच शेयर करना भी स्वीकार नहीं किया था.

ऐसे में राजनीति किस कदर बदलती है.यह मजेदार घटनाक्रम बड़े ही रोचक होते हैं. ऐसा ही एक प्रसंग नीतीश कुमार का महामहिम बनना भी हो सकता है. पाठकों को हमें बताते चलें कि नीतीश कुमार 2017 में भाजपा के नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद धीरे-धीरे अपना हृदय परिवर्तन करते हैं और लालू यादव को छोड़ कर के बिहार में भाजपा के साथ सरकार बना लेते हैं. यह हम सब ने देखा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और नीतीश कुमार का घात प्रतिघात खुली किताब की तरह है. केंद्रीय मंत्रिमंडल में कटौती के बाद नितीश कुमार का चेहरा दूसरी तरफ घुमा लेना और आगे चलकर के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को पटखनी मिलने के बाद नरेंद्र मोदी का उन्हें मुख्यमंत्री पद पर आसीन कराना यह सब हमारे सामने है. ऐसे संबंधों की गुत्थी के बीच सबसे लाख टके का सवाल यह है कि क्या नरेंद्र दामोदरदास मोदी नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद पर देखना पसंद करेंगे या फिर चाहेंगे कि कोई “स्टांप पैड”  पुनः राष्ट्रपति बने.

नीतीश, मोदी के लिए एक “दर्द”

कुल मिलाकर के विपक्ष द्वारा नीतीश कुमार को जिस तरह राष्ट्रपति पद के लिए प्रोजेक्ट किया जा रहा है और यह संदेश दिया जा रहा है कि सर्वसम्मति से नीतीश कुमार राष्ट्रपति बन सकते हैं . यह गूगली प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और भाजपा के लिए एक सर दर्द बन सकती है.

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क्यों और कैसे हम इस रिपोर्ट में खुलासा करने जा रहे हैं.

पहले यह जानते चलें कि

विपक्ष द्वारा साझा उम्मीदवार बनाने की संभावनाओं पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा -” इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है। ना ही ऐसा कोई आइडिया है.”

इसी तरह भाजपा गठबंधन में में शामिल “हम” सुप्रीमो जीतन राम मांझी ने नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाये जाने की पहल का समर्थन किया है.जदयू नेताओं ने कहा है कि यह बिहार के लिए गौरव की बात होगी.

राजनीतिक हलचल से आप यह कयास लगा सकते हैं कि आने वाला समय जब राष्ट्रपति चुनाव अपने उफान पर होगा क्या-क्या स्थितियां बन बिगड़ सकती हैं.

दरअसल, प्रशांत किशोर पहले चरण के गैर भाजपा और गैर कांग्रेस दलों को इस मुद्दे पर सहमत करने के प्रयास में हैं. इस सिलसिले में प्रशांत किशोर ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से सहमति ले ली है. आगे क्षेत्रीय दलों में सहमति बनने पर प्रशांत किशोर का अगला कदम कांग्रेस से सहमति लेने का होगा. इसमें वे सफल हुए तो भाजपा एक चक्रव्यूह में होगी.

अब हम आपको बताते चलें कि  नीतीश कुमार के नाम पर सर्वसम्मति बन सकती है .  तब क्या भाजपा‌ और उसके वर्तमान नेतृत्व को यह मंजूर होगा.

शायद कतई नहीं. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के मनोविज्ञान  या कहें प्रकृति को जानने वाले मानते हैं कि नीतीश कुमार का राष्ट्रपति बनना यह माना जाएगा कि भाजपा के भविष्य के लिए सरदर्द बन सकता है.

क्योंकि नीतीश कुमार को जानने वाले यह जानते हैं कि वे कुछ भी हों, मगर रबड़ स्टांप तो नहीं हो सकते.

Manohar Kahaniya: व्यापारी की हत्या कर साधे, एक तीर से दो निशाने

सीमेंट कारोबारी संदीप गुप्ता अपने 2 सुरक्षा गार्डां के साथ डीआईजी से मिल कर लौट रहे थे, तभी शहर के व्यस्ततम चौराहे पर अज्ञात लोगों ने उन्हें भून दिया.

बात 27 दिसंबर, 2021 की है. एटा जिले के अलीगंज निवासी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अल्ट्राटेक व श्री सीमेंट के सप्लायर व नामचीन लौजिस्टिक कारोबारी संदीप गुप्ता उर्फ संजीव लाला अपनी फौरच्युनर कार से सुबह के समय अलीगढ़ के लिए निकले थे.

राजनैतिक पहुंच रखने वाले संदीप गुप्ता एक बड़े व्यापारी थे, इसलिए उन्हें सुरक्षा के लिए सरकारी गनर हैडकांस्टेबल संदीप पाल मिला हुआ था. प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारियां चल रही थीं. चूंकि चुनावी सरगर्मियों के बीच सुरक्षा समितियां निर्णय लेती रहती हैं. इस कारण संदीप गुप्ता सुरक्षा गनर के मामले में डीआईजी से मिलने उन के कैंप कार्यालय आए थे. वह अपनी सुरक्षा के लिए भविष्य में भी सरकारी गनर को रखना चाहते थे.

शाम को लगभग साढ़े 7 बजे वह इस सिलसिले में डीआईजी रेंज दीपक कुमार से मिलने सरकारी गनर संदीप पाल और अपने निजी गनर श्रीनिवास मिश्रा के साथ गए थे. उन से मिलने के बाद वह महाजन होटल के सामने कावेरी एनक्लेव स्थित अपने औफिस पहुंचे. कुछ देर रुकने के बाद वहां मौजूद अल्ट्राटेक कंपनी के अधिकारी शशांक निगम को साथ ले कर उन के ग्रीन पार्क स्थित घर छोड़ने जा रहे थे. उस वक्त संदीप गुप्ता की सिक्योरिटी के लोग दूसरी कार में थे.

कारोबारी संदीप गुप्ता की फौरच्युनर कार अतिव्यस्त रामघाट स्थित गांधी तिराहा मोड़ पर एक पान की दुकान के पास पहुंची. संदीप ने अपनी कार के ड्राइवर रनवीर से कार रोक कर पान की दुकान से पान मसाला लाने को कहा.

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उस समय रात के सवा 8 बजे का समय था. ड्राइवर रनवीर कार से उतर कर पान की दुकान की ओर गया. इसी बीच एक नीले रंग की बलेनो कार संदीप की कार के बराबर में आ कर रुकी. उस कार से 2 युवक तेजी से उतरे. उन दोनों युवकों ने ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठे संदीप गुप्ता को निशाना बना कर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी.

पहली गोली चलते ही कार की पीछे की सीट पर बैठे कंपनी के अधिकारी जान बचाने को सीट के नीचे छिप गए. ड्राइवर की सीट की बगल में बैठे संदीप गुप्ता को फायरिंग में 3 गोलियां लगीं. वह कार में ही ढेर हो गए.

इस हत्याकांड को हमलावरों ने मात्र 30 सैकेंड में अंजाम दिया और अपनी बलेनो में ही सवार हो कर फरार हो गए. बलेनो को उन का तीसरा साथी चला रहा था.

आननफानन में कारोबारी के साथी व सुरक्षाकर्मियों द्वारा संदीप को क्वार्सी के ट्रामा सेंटर ले जाया गया. जहां डाक्टरों ने चैकअप के बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया.

अति व्यस्तम क्षेत्र में नामचीन कारोबारी की सनसनीखेज हत्या से वहां अफरातफरी मच गई. भयभीत दुकानदार और ठेले वाले अपनीअपनी दुकानें बंद कर भागने लगे.

घटना की जानकारी होते ही क्वार्सी व सिविललाइंस पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दी गई. डीआईजी दीपक कुमार, एसएसपी कलानिधि नैथानी, एसपी (सिटी) कुलदीप, सीओ (तृतीय) श्वेताभ भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

प्रत्यक्षदर्शियों व अन्य साथियों ने अधिकारियों को पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. घटना के समय सिक्योरिटी गनर वाली कार कारोबारी की कार से कुछ आगे निकल गई थी. संदीप अपनी लाइसैंसी माउजर को अपनी कमर में लगाए हुए थे, लेकिन उन्हें अपने बचाव का मौका ही नहीं मिला.

हत्यारे मास्क लगाए थे और एक के सिर पर कैप था. इस बीच पुलिस ने फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. मौके से साक्ष्य जुटाए गए. ट्रामा सेंटर में पहुंच कर पुलिस अधिकारियों ने ड्राइवर, कंपनी अधिकारी, सरकारी व निजी गनर के साथ ही परिवार के सदस्यों से बंद कमरे में पूछताछ कर क्लू तलाशने की कोशिश की.

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संदीप को 2015 से सरकारी गनर मिला हुआ है. पुलिस के सामने अब प्रश्न यह था कि सरकारी गनर कारोबारी संदीप गुप्ता के साथ न हो कर दूसरी कार में क्यों था? दूसरी कार भी संदीप की कार से आगे निकल गई थी.

घटना की जानकारी जैसे ही अलीगंज में संदीप के घर वालों को मिली, तो घर में कोहराम मच गया. घर वाले अलीगढ़ के लिए उसी समय रवाना हो गए. देर रात हत्या का मुकदमा थाना सिविललाइंस में मृतक के छोटे भाई सुजीत गुप्ता ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज कराया.

पुलिस ने हत्या व धमकी देने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. जरूरी काररवाई निपटा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया.

हत्या के बाद व्यापारियों में फैला आक्रोश

अलीगंज के प्रतिष्ठित सीमेंट कारोबारी और ट्रांसपोर्टर संदीप गुप्ता की अलीगढ़ में सनसनीखेज हत्या की खबर जंगल की आग की तरह फैली. पूरे मंडल में खलबली मच गई. एटा, अलीगंज, जैथरा, राजा का रामपुर के क्षेत्रीय लोगों और व्यापारियों में गम के साथ ही आक्रोश फैल गया.

घटना के बाद से ही पुलिस ने शहर में नाकाबंदी कर के हमलावरों की खोज शुरू कर दी थी. वाहनों की सघन चैकिंग शुरू कर दी गई. हत्यारों का पता लगाने के लिए पुलिस की 5 टीमें बनाई गईं.

घटनास्थल के आसपास के सीसीटीवी कैमरे चैक किए गए. एक सीसीटीवी कैमरे में कार व बदमाश कैद पाए गए. घटना के समय कार में ड्राइविंग सीट पर एक बदमाश बैठा रहा था, जबकि 2 ने घटना को अंजाम दिया था. पुलिस इसी आधार पर उसी दिशा में आगे बढ़ी.

कारोबारी की हत्या के बाद पुलिस अलीगंज से ले कर राजस्थान तक सुराग तलाशने में जुट गई.

उन की हत्या की खबर अलीगढ़ के साथ ही अलीगंज के व्यापारियों को भी मिल गई. इस से उन में आक्रोश फैल गया. हर कोई यह जानना चाहता था कि कारोबारी संदीप गुप्ता की हत्या किस ने और क्यों की?

आइए, संदीप गुप्ता के बारे में जानते हैं. संदीप के व्यापारिक साम्राज्य की बात करें तो उन का अलीगंज में पुश्तैनी संदीप साड़ी संसार के नाम से अपना व्यापार है. 4 भाइयों में दूसरे नंबर के थे संदीप.

उन के दादा बांकेलाल गुप्ता का कपड़े का व्यापार था, जिसे पिता रामप्रकाश गुप्ता ने भी आगे बढ़ाया. संदीप ने 1990 में स्थानीय तौर पर सीमेंट एजेंसी ली. एजेंसी से डीलर और स्टाकिस्ट बन कर अन्य लोगों को सीमेंट की सप्लाई करने लगे.

करीब 2 दशक पहले ट्रांसपोर्ट कारोबार में प्रवेश किया और उस ट्रांसपोर्ट कारोबार के जरिए वह क्ंिलकर व सीमेंट सप्लाई के किंग बनते चले गए. 80 से अधिक ट्रक उन के पास थे. करीबी व जानकार बताते हैं वे पश्चिमी यूपी की सभी सीमेंट फैक्ट्रियों को राजस्थान व अन्य जगहों से आने वाली मालगाड़ी रैक के जरिए क्ंिलकर की सप्लाई देते थे. इस के बाद उन सीमेंट फैक्ट्रियों से तैयार होने वाले सीमेंट के सप्लायर भी बन गए.

अलीगढ़ उन के व्यापार का बेस कैंप था, जबकि गाजियाबाद, मेरठ, बरेली में भी उन की फर्म के औफिस थे. व्यापार में उन के साथ उन का बेटा यश, भतीजा लवेश व परिवार के अन्य लोग हाथ बंटाते थे. वह बालू खनन, रीयल स्टेट, बिल्डिंग निर्माण, राजकीय ठेकेदारी से जुड़े कारोबारों में भी शामिल थे.

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पूर्व जिला पंचायत सदस्य महेंद्र प्रताप उर्फ पिंका ठाकुर से भी संदीप की करीबियां थीं. दोनों कारोबारी पार्टनर थे.

कुछ दिन पहले गोली कांड में घायल पिंका को देखने संदीप गुप्ता गुरुग्राम गए थे. जानकारी मिलते ही पिंका के घर वाले भी अस्पताल पहुंच गए. पिंका पर हमले के कुछ दिन बाद ही संदीप की हत्या किए जाने को ले कर भी तरहतरह के कयास लगाए जाने लगे.

22 दिसंबर, 2021 को भाजपा नेता लालजी वर्मा और पिंका के बीच हुए विवाद में फायरिंग हुई थी. इस में पिंका गोली लगने से घायल हो गया था. उस का दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था. लालजी वर्मा का एक बेटा भी पैर में छर्रा लगने से घायल हुआ था.

पुलिस इस मामले में लालजी वर्मा, उन के 3 बेटों और पिंका के 2 गार्डों को जेल भेज चुकी थी. खबर मिलने पर मारहरा से विधायक वीरेंद्र सिंह लोधी, भाजपा जिलाध्यक्ष एटा संदीप जैन भी यहां पहुंच गए थे.

भाड़े के शूटरों ने की हत्या

हरदुआगंज क्षेत्र में नहर के किनारे शूटरों की वह कार भी लावारिस हालत में मिल गई, जो घटना में प्रयोग की गई थी. देर रात ही पुलिस फोरैंसिक टीम को ले कर उस कार की जांच के लिए मौके पर पहुंच गई.

जांच में पता चला कि यह बलेनो कार आगरा के एक व्यक्ति के नाम से पंजीकृत है. अक्तूबर 2021 में आगरा के सिकदंरा क्षेत्र से उस व्यक्ति का कार सहित अपहरण कर लिया गया था. बदमाश उस व्यक्ति को मथुरा के फरह क्षेत्र में फेंक कर उस की कार लूट कर ले गए थे. इस संबंध में थाना फरह में मुकदमा भी दर्ज है. इस से इस बात को और बल मिल रहा था कि भाड़े के शूटरों को बाहर से हायर कर यहां भेजा गया था.

इस घटना का संज्ञान खुद मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा लिया गया. देर रात तक डीआईजी व एसएसपी से डीजीपी, प्रमुख सचिव गृह व मुख्यमंत्री कार्यालय से इस घटना को ले कर अपडेट लिया गया.

चूंकि बड़े कारोबारी और सियासी संपर्क रखने वाले व्यक्ति की हत्या हुई थी, इसलिए अधिकारियों ने हर कदम फूंकफूंक कर रखना शुरू कर दिया था.

पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की मदद से खोज शुरू की. इस दौरान जांच में सामने आया कि घटना से पहले शूटरों की कार ने खैर रोड से खेरेश्वर चौराहे के रास्ते शहर में प्रवेश किया था. इस के बाद कार घूमते हुए दुबे पड़ाव हो कर रामघाट रोड पर आई थी.

इसी बीच शूटरों को संदीप गुप्ता की कार दिखाई दे गई और उस में सवार शूटरों ने घटना को अंजाम दिया. घटना को अंजाम देने के बाद बदमाशों की यह कार अतरौली की ओर भागी. इस के बाद एक अन्य सीसीटीवी कैमरे में यह कार क्वार्सी चौराहे पर कैद पाई गई. फिर हरदुआगंज की ओर निकली.

मगर तब तक चूंकि पुलिस ने सूचना प्रसारित कर नाकाबंदी करा दी थी. इस के चलते कार में सवार शूटर बचने के चक्कर में रास्ता भटक गए और फंसने पर कार हरदुआगंज क्षेत्र में नहर के किनारे छोड़ कर भाग गए. जांच में पता चला कि इस पर लगी नंबर प्लेट फरजी थी.

कारोबारी संदीप की गाड़ी चलाने वाला ड्राइवर रनवीर घटना के बाद घबरा गया. उस के अनुसार वह 25 साल से संदीप की गाड़ी चला रहा है. जब वह उतर कर पान मसाला खरीदने गया उसी समय बदमाशों ने

गोली चलाई थी. वह बदमाशों को देख नहीं पाया था.

रनवीर ने बताया कि संदीप गुप्ता ने अपने व्यापार में अलीगढ़ के अलावा बरेली, मेरठ, गाजियाबाद आदि जगहों पर अलीगंज के रहने वाले कर्मचारी लगा रखे हैं. वे सभी बेहद विश्वासपात्र हैं.

परिजनों ने की हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग

इस दुस्साहसिक घटना सें एक सवाल पुलिस के सामने यह भी खड़ा हो रहा था कि कोई अपना ही भेदिया तो नहीं, जो संदीप गुप्ता की पलपल की खबर शूटरों को दे रहा हो? क्योंकि संदीप डीआईजी कार्यालय से निकलने के बाद सीधे अपने दफ्तर पहुंचे थे और वहां से ग्रीन पार्क के लिए निकले थे.

पूछताछ में पुलिस को पता चला कि अल्ट्राटेक कंपनी के अधिकारी को अपनी कार में बैठाने के साथ ही संदीप गुप्ता ने ही सुरक्षा में लगे दोनों गनरों को कंपनी अधिकारी की स्कौर्पियो में बैठा कर उन से ग्रीन पार्क पहुंचने को कहा था. इस पर सरकारी व निजी सिक्योरिटी स्टाफ स्कौर्पियो में सवार हो कर संदीप की कार के आगेआगे चलने लगे. इसी बीच हत्याकांड हो गया.

शूटरों के पास अत्याधुनिक पिस्टल थीं और उन के हाथ भी बेहद सधे हुए थे. एक गोली गाड़ी के कौर्नर की चादर को भेदते हुए संदीप के बगल में जा घुसी थी. दूसरी शीशे को चीरते हुए कनपटी में घुसी थी. एक गोली और चलाई जो संदीप की जैकेट में गरदन के पास फंसी थी. घटनास्थल पर पुलिस को 4 खोखे मिले जो .32 बोर की पिस्टल के बताए जा रहे थे. पुलिस ने उन्हें फोरैंसिकजांच के लिए भेज दिया.

संदीप की सामाजिक कामों में पकड़ भी मजबूत थी. उन की लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जैसे ही कारोबारी का शव एंबुलैंस से अलीगंज पहुंचा, जनसैलाब उमड़ पड़ा.

रास्ते के दोनों ओर खड़े लोग एंबुलैंस पर फूल बरसा रहे थे. 29 दिसंबर को दोपहर बाद भारी पुलिस फोर्स के बीच कस्बे के श्मशान घाट पर उन का अंतिम संस्कार किया गया.

पुलिस कई एंगल से करने लगी जांच

पुलिस संदीप की हत्या की वजह पुरानी या पारिवारिक रंजिश, सियासी, व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को मानते हुए जांच आगे की दिशा में बढ़ रही थी. पुलिस ने 6 अदावतों (दुश्मनी) पर काम किया. इन में डेढ़ दशक पुरानी अलीगंज से जुड़ी एक अदावत परिवार के स्तर से पुलिस जानकारी में आई. हालांकि वह इतनी ज्वलंत नहीं थी.

गभाना में एक सीमेंट कंपनी की फैक्टरी संदीप गुप्ता के सहयोग से स्थापित की जा रही थी. उस में जमीन पर कब्जे को ले कर कुछ विवाद था. तीसरी राजस्थान के करौली क्षेत्र से क्ंिलकर रैक के ठेके पर हुआ विवाद. चौथा परिवार की एक बेटी दीप्ति सारसौल इलाके के ट्रांसपोर्टर परिवार में ब्याही थी, उस का रिश्ता टूटने के दौरान हुआ विवाद.

पांचवा कासिमपुर पावर हाउस पर क्ंिलकर की रैक और पावर हाउस की फ्लाईऐश की सप्लाई को ले कर आसपास के जिलों के रसूखदार ग्रुप अकसर टकराते रहते हैं. इस में भी संदीप की कंपनी का कब्जा हो गया था.

इस के अलावा सीमेंट व क्लिंकर सप्लाई से जुड़े यूपी के अन्य जिलों की किसी अदावत पर भी पुलिस ने काम शुरू कर दिया.

इन 6 अदावतों में हत्या का सुराग तलाश रही पुलिस को एक में हत्या का राज छिपा मिला. पारिवारिक विवाद और व्यापार सरीखे 6 मुद्दों के इर्दगिर्द घूमी जांच में हत्या के दूसरे दिन 28 दिसंबर की देर रात पुलिस को महत्त्वपूर्ण सुराग हाथ लगे.

एसपी (सिटी) कुलदीप सिंह गुनावत के नेतृत्व में पुलिस की 5 टीमें इस सनसनीखेज हत्याकांड के खुलासे में लगाई गई थीं, जिन में श्वेताभ पांडेय सीओ (तृतीय) भी शामिल थे. पुलिस ने हत्याकांड के खुलासे के लिए शहर के लगभग 200 से अधिक सीसीटीवी कैमरे खंगाले.

जांच के दौरान पुलिस को बदमाशों की बलेनो कार के साथ एक सफेद रंग की क्रेटा कार भी ट्रेस हुई. यह कार हत्यारों की गाड़ी के संग आगेपीछे हो कर साथसाथ चल रही थी.

जब इस का नंबर ट्रेस किया गया, तो पता चला कि यह साईं विहार सारसौल,अलीगढ़ निवासी ट्रांसपोर्टर अंकुश अग्रवाल पुत्र राजीव अग्रवाल के नाम पर रजिस्टर्ड है. वह उस समय गाड़ी में मौजूद था.

बारीकी से की गई जांच में इस परिवार का सीमेंट कारोबारी संदीप गुप्ता से संबंध भी सामने आ गया. संदीप के परिजनों से पता चला कि मृतक संदीप और अंकुश के बीच व्यावसायिक साझेदारी भी थी. संदीप की लौजिस्टिक फर्म में अंकुश के कई ट्रोला सीमेंट की आपूर्ति के लिए लगे थे.

पुलिस ने इस क्रेटा कार को रामघाट रोड तालसपुर स्थित दुष्यंत चौधरी के गैराज से घटना वाली रात ही बरामद कर लिया. गैराज में अंकुश की कार खुली हुई स्थिति में मिली. ऐसा पुलिस को भ्रमित करने के लिए किया गया था.

पुलिस को जांच में पता चला कि अंकुश और कार गैराज मालिक दुष्यंत दोनों दोस्त हैं. इस समय अंकुश दुष्यंत के साथ ही रह रहा था.

सीमेंट कारोबारी संदीप गुप्ता की सनसनीखेज हत्या का पुलिस ने दिनरात एक कर 24 घंटे में ही परदाफाश कर दिया. एसपी सिटी कुलदीप सिंह गुनावत के अनुसार हत्या की पृष्ठभूमि अलीगढ़ में ही लिखी गई थी.

संदीप गुप्ता की हत्या अलीगढ़ के ट्रांसपोर्टर राजीव अग्रवाल और उस के बेटे अंकुश अग्रवाल ने ही सुपारी दे कर कराई थी. पुलिस ने हत्या की साजिश में शामिल अंकुश के पिता राजीव अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया.

इस सनसनीखेज ब्लाइंड मर्डर का खुलासा करने वाली पुलिस टीम में एसपी (सिटी) कुलदीप सिंह गुनावत, सीओ (तृतीय) श्वेताभ पांडेय, सीओ (प्रथम) राघवेंद्र सिंह, इंसपेक्टर (सिविल लाइंस) अरविंद राठी, इंसपेक्टर (क्वार्सी)

विजय सिंह, इंसपेक्टर (सासनी गेट) पंकज मिश्रा, एसओजी प्रभारी संजीव सिंह, नगर सर्विलांस प्रभारी संदीप सिंह व उन की टीम शामिल थी.

रिश्तेदारी से उपजी रंजिश में हुई हत्या

संदीप गुप्ता की हत्या उस बेटी की मदद और दामाद की बेइज्जती के बदले हुई, जिस शादी में वह बिचैलिया बने थे. संदीप की हत्या के बाद पुलिस ने इस सनसनीखेज ब्लाइंड मर्डर में कडि़यां जोड़ते हुए काम किया. इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर की टीम ने शहर के अलगअलग जगहों के सीसीटीवी खंगाले. इसी की मदद से क्रेटा कार को चिह्नित किया गया.

जैसे ही क्रेटा कार पकड़ी गई, बस यहीं से घटना खुलती चली गई. क्योंकि संदीप के परिवार ने घटना के बाद ही सारसौल निवासी ट्रांसपोर्टर राजीव अग्रवाल और उन के बेटे अंकुश से ताजा विवाद बता दिया था.

संदीप गुप्ता ने अलीगंज के ही दोस्त सुधीर गुप्ता, जिसे वे परिवार के सदस्य की तरह ही मानते थे, की बेटी दीप्ति की शादी खुद के साथ कासिमपुर सीमेंट फैक्टरी से जुड़े ट्रांसपोर्टर राजीव अग्रवाल के बेटे अंकुश अग्रवाल के साथ 17 फरवरी, 2016 में कराई थी. इस दौरान दीप्ति-अंकुश दंपति से एक बेटी भी पैदा हुई.

कोरोना में सुधीर गुप्ता दंपति की मौत के बाद दीप्ति को ससुराल में तंग किया जाने लगा. यह बात खुद दीप्ति ने संदीप को बताई कि उसे मारापीटा जाने लगा है. पानी जब सिर से ऊपर हो गया, तब 16 सितंबर, 2021 को संदीप दीप्ति और उस की बच्ची को अपने साथ अलीगंज ले आए.

21 सितंबर को दीप्ति की ओर से अलीगंज थाने में ससुरालीजनों अंकुश, राजीव, मीनाक्षी के अलावा अभिषेक अग्रवाल, चेतन खंडेलवाल और प्रीति को नामजद कर एक तहरीर दे कर रिपोर्ट दर्ज कराई.

इस में कहा गया था कि दीप्ति के मातापिता की कोरोना के दौरान मौत हो जाने के बाद ससुरालीजन उन से अर्जित संपत्ति का जबरन बैनामा कराना चाहते थे. विरोध करने पर दीप्ति के साथ मारपीट की जाने लगी.

रिपोर्ट में दहेज के लिए मारपीट करने के साथ ही दुष्कर्म का भी आरोप लगाया गया था. इस मामले में संदीप गवाह थे और दीप्ति की मजबूत पैरोकारी कर रहे थे.

राजीव व अंकुश अपने विरुद्ध मुकदमा दर्ज होने से परेशान हो गए थे. जब उन्हें पता चला कि संदीप और पिंका दोस्त होने के साथ ही कारोबार में भी सहयोगी हैं तो राजीव ने पिंका से मदद मांगी. इस पर पिंका ने हस्तक्षेप कर दोनों पक्षों में सुलह की बात शुरू की.

90 लाख रुपए में हुआ फैसला

इस संबंध में 11-12 नवंबर, 2021 को पूर्व जिला पंचायत सदस्य पिंका के अलीगढ़ स्थित घर सुलह बैठक हुई. बैठक के दौरान संदीप ने अंकुश की बेइज्जती कर दी थी.

इस सुलह बैठक में दीप्ति की ओर से डेढ़ करोड़ रुपए की मांग की गई. बाद में 90 लाख रुपए अंकुश की ओर से दीप्ति को देना तय हुआ और बतौर एडवांस 45 लाख रुपए का भुगतान कर दिया गया. जिस में राजीव ने संदीप को 20 लाख रुपए और शेष 25 लाख रुपए दीप्ति के बैंक खाते में ट्रांसफर किए गए. तय हुआ कि शेष 45 लाख रुपए अलीगंज में लिखा गया मुकदमा पुलिस स्तर से खत्म किए जाने और अदालत में अंतिम रिपोर्ट स्वीकार हो जाने के बाद दिया जाएगा.

इस के बाद राजीव व अंकुश जल्दी मुकदमा खत्म कराने का संदीप पर दबाव बनाने लगे. संदीप कह रहे थे कि परेशान होने की जरूरत नहीं है. कानूनी प्रक्रिया है, मामला खत्म करा दिया जाएगा.

उस समझौता बैठक में हुई बेइज्जती को अंकुश मन में पाले बैठा था. संदीप और अंकुश के बीच व्यवसायिक साझेदारी भी थी. संदीप ने लौजिस्टिक फर्म में अंकुश के कई ट्रोला सीमेंट की आपूर्ति के लिए लगे थे.

दीप्ति का पति से विवाद होने और मुकदमा दर्ज होने के बाद संदीप ने ये ट्रोला हटा दिए और अंकुश से संबंध भी खत्म कर लिए थे. इस के चलते अंकुश को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा था. इस के साथ ही वह शेष 45 लाख रुपए भी नहीं देना चाहता था. कई जगह राजीव ने भी इस बात का जिक्र किया था कि बेइज्जती का बदला संदीप से लिया जाएगा.

पुलिस ने अंकुश के पिता राजीव अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया. घटना के आरोपी दुष्यंत और अंकुश घर पर नहीं मिले. दोनों स्कौर्पियो कार से भागे थे. वे अपने मोबाइल घर पर ही छोड़ गए थे.

3 किशोरों ने संदीप की कार की रेकी की थी. सीसीटीवी कैमरों की जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि संदीप की कार की रेकी 3 किशोरों से कराई गई थी. संदीप के दोस्त सुधीर के दामाद अंकुश व उस के ट्रांसपोर्टर पिता राजीव ने साजिश रच कर ये हत्या कराई थी.

हत्या के समय रेकी व शूटरों की कार को गाइड करते समय अंकुश अपने दोस्त दुष्यंत, एटा चुंगी निवासी साहिल यादव व 3-4 अन्य लोगों के साथ मौजूद था. इसी तलाश में एक बाइक सीसीटीवी कैमरे में कैद पाई गई, जिस के सहारे धनीपुर इलाके के 3 किशोर पहली जनवरी, 2022 को पकड़े गए.

इन्होंने जानकारी दी कि उन्हें साहिल, जो एक दबंग व्यक्ति है, ने फोन कर कार की रेकी के लिए बुलाया था. रेकी के लिए कहते हुए गाड़ी नंबर व कलर बताया. इस के साथ ही 250 रुपए दिए, जिस में से 50 रुपए पैट्रोल के लिए और 200 रुपए नाश्तापानी के खर्च के लिए दिए थे. ये नहीं बताया कि हत्या होनी है. मगर हत्या के बाद वे लोग डर गए थे.

तीनों नाबालिग हैं, इसलिए पुलिस ने तीनों को रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेशी के बाद बाल सुधार गृह, आगरा भेज दिया.

अलीगंज के लौजिस्टिक व सीमेंट कारोबारी संदीप गुप्ता हत्याकांड के मुख्य आरोपी कथा लिखने तक पुलिस के हाथ नहीं लगे थे. मगर उन की तलाश में जुटी पुलिस को एक और सफलता मिल गई.

रेकी कराने में गांधीपार्क धनीपुर निवासी मनीष शर्मा को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई. यह बात सामने आई कि मनीष शर्मा व साहिल यादव अच्छे दोस्त हैं. मनीष से पूछताछ के बाद उसे गिरफ्तार कर 4 जनवरी को जेल भेज दिया गया.

4 आरोपियों की ईनाम की हुई घोषणा

एसएसपी कलानिधि नैथानी ने अंकुश व दुष्यंत के बाद अब साहिल यादव व उस के सहयोगी उत्कर्ष चौधरी पर भी 50-50 हजार रुपए के ईनाम घोषित कर दिए. मामले में आरोपियों पर गिरफ्तारी के साथ ही रासुका के तहत काररवाई की जाएगी. 4 आरोपियों के गैरजमानती वारंट पुलिस ने न्यायालय से प्राप्त कर लिए हैं. इस के साथ ही कुर्की की काररवाई के नोटिस भी उन के घरों पर चस्पा कर दिए.

फरार अंकुश, दुष्यंत, साहिल व उत्कर्ष के अलावा शूटरों व 2 अन्य साथियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीमें दूसरे राज्यों में डेरा डाल दिया. इस का नतीजा यह निकला कि पुलिस ने आरोपी दुष्यंत चौधरी को भलौला पुल के पास से और प्रमुख साजिशकर्ता उत्कर्ष को खैर रोड से फौरच्युनर कार सहित गिरफ्तार कर लिया. उत्कर्ष ने पुलिस को बताया कि शूटर साहिल की मदद से अंकुश ने उपलब्ध कराए थे.

वहीं साहिल यादव व अन्य की तलाश में लगी पुलिस ने गोवा से साहिल के एक भाई को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया.

प्लान एक महीने में हुआ तैयार

संदीप की हत्या एक सुनियोजित साजिश थी. एक महीना पहले यह प्लान तैयार हुआ था. पुलिस जांच के अनुसार अंकुश अग्रवाल अपने परिवार से अलग दोस्त दुष्यंत के साथ रह रहा था. एक दिन शराब पी कर दुख दर्द बयां करते समय दोनों दोस्तों के बीच संदीप को ले कर प्लानिंग पर चर्चा हुई तो उन्होंने अपने सोनीपत कनेक्शन के जरिए शूटरों से किसी जरिए संपर्क किया.

प्लानिंग के तहत नवंबर में शूटर अलीगढ़ आए. यहां आ कर उन के पास मौजूद मथुरा से लूटी गई नीली बलेनो कार पर दुष्यंत के मोटर गैराज में नंबर प्लेट बदली गई और फरजी नंबर प्लेट लगाई गई.

इस बात की पुष्टि मोटर गैराज में लगे सीसीटीवी से हुई. दुष्यंत और अंकुश के अलावा 3 अन्य लोग इस प्लान में शामिल किए गए. इन के चेहरे उजागर हो गए हैं.

इस बीच सिविललाइंस इंसपेक्टर अरविंद राठी को इस मामले में न्यायालय से मुख्य आरोपियों के अभी तक गैरजमानती वारंट न ले पाने के चलते हटा दिया गया है.

उधर मृतक व्यापारी संदीप गुप्ता के पिता, भाई, पत्नी और बेटी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लखनऊ में मुलाकात कर हत्यारोपियों के खिलाफ कड़ी काररवाई करने की मांग की. मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने परिजनों को हरसंभव मदद करने का भरोसा दिया.

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अपराधी किसी भी घटना को अंजाम देने से पहले खुद के बच निकलने का हर रास्ता अपनी समझ से तैयार करता है. मगर जानेअनजाने या जल्दबाजी में शातिर से शातिर अपराधी कोई न कोई ऐसा सबूत जरूर छोड़ जाता है, जिस के जरिए पुलिस उन तक पहुंच जाती है.

यानी अपने द्वारा छोड़े हुए मूक गवाह की चाल में फंस कर आरोपी कानून के शिकंजे में अपनी गरदन खुद ही फंसा लेता है.

अंकुश ने अपनी बेइज्जती को मूंछ का सवाल बना लिया था. उस ने अपने अपमान पर चुप्पी साध ली थी. लेकिन अंदर ही अंदर उस के बदले की आग दहक रही थी. बदले की आग उस ने संदीप के खून से बुझा तो ली, लेकिन अपना घर उजाड़ कर.

साजिश की बू

समाज के 2 वर्ग हमेशा से महलनुमा मकानों, घरों से निकले बिना मोटी कमाई करते रहे हैं. राजा और उस के दरबारी, पंडित व धर्म के सौदागर हमेशा ही बिना जमीनी मेहनत के सुख की जिंदगी जीते रहे हैं. राजा कहता रहा कि उस ने या उस के पुरखों ने कभी लड़ाई में भाग लिया था, इस के लिए उसे धूप, आंधी, बर्फ में मेहनत के काम से छूट मिली हुई है. कुछ ऐसी ही बात पंडितपादरीमौलवी कहते रहे कि उन्हें ‘ऊपरवाले’ ने नियुक्त किया है, वे समाज को ‘तथाकथित’ ऊपरवाले तक भलीभांति ले जाएंगे, इसलिए वे घर में बैठ कर खाने के हकदार हैं.

अब इस में एक नया वर्ग घुस गया है टैक सैवी मैनेजरों का, जो वर्क फ्रौम होम के बहाने टैक्नोलौजी का लाभ उठा कर घर बैठेबैठे ठाठ से कमा सकते हैं. जबकि, आमलोग, जिन की संख्या कहीं ज्यादा है, कीड़ेमकोड़ों की तरह जमीन पर, खेतों में, कारखानों में, फौज में, पुलिस में, सेवा क्षेत्रों में मेहनती काम करने को मजबूर हैं. आज पूरी चर्चा वर्क फ्रौम होम की हो रही है. इसी का गुणगान किया जा रहा है.

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यह उन खास लोगों के लिए किया जा रहा है जिन्हें टैक्नोलौजी के बावजूद फिजिकल मीटिंगों में पहुंचने के लिए घंटों ट्रैफिक में फंसना होता था, मैट्रो या बसों के जरिए दफ्तर पहुंचना होता था. दिन के 24 घंटों में से 6-7 घंटे आनेजाने या दफ्तर में इधर से उधर चलने को मजबूर होना पड़ता था. इस वर्ग के लिए कोविड-19 खास उपहार छोड़ गया है कि हर रोज दफ्तर आने की जरूरत क्या है, घर पर रहो, क्लब में एंजौय करो, रैस्तराओं में खाओपियो, घूमोफिरो और दफ्तर का काम भी करते रहो, कमाई करते रहो. यह ठीक है कि इन लोगों की उत्पादकता घटी नहीं है, उलटे हो सकता है बढ़ गई हो, पर जो भेद व्हाइटकौलर वर्कर और ब्लूकौलर वर्कर में पहले था, अब वह और बढ़ गया है, उन की दूरियां और बढ़ गई हैं.

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कोविड-19 ने तो कोई भेद नहीं रखा था पर आखिर ऐसा क्या हुआ कि दुनिया की सारी सरकारों ने लौकडाउन थोप दिए लेकिन कारखाने चलते रहने दिए, बिजली आती रही, खानेपीने व पहनने का सामान बनता रहा, मनोरंजन का क्षेत्र सिनेमा से हट कर घर की स्क्रीन पर आ गया, पर चालू रहा.

यह सब इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण हुआ जिसे गतिशील बनाए रखने के लिए कोविड-19 के संपर्क में आ सकने के अंदेशे के बावजूद वर्करों को घरों से निकलना पड़ा. अस्पताल चालू रहे, एंबुलैंस चलीं, एंबुलैंस बनीं, दवा कंपनियों ने वर्करों की सहायता से रातदिन काम किया, फौज ने अपनी ड्यूटी की, पुलिस वाले कदमकदम पर सक्रीय दिखे. फिर, वर्क फ्रौम होम का गुणगान करने वालों में कौन सी ऐसी छूत लगी थी कि वे दफ्तरों में जाते तो उन्हें भयंकर कोविड-19 हो जाता.

यह (वर्क फ्रौम होम) कोई साजिश सा लगने लगा है कि राजाओं और धर्म बेचने वालों की तरह आज के नए हथियार -कंप्यूटर टैक्नोलौजी- वालों ने अपने लिए खास जगह बना ली कि वे आलीशान मकानों में बने रहेंगे जबकि आम लोग सडक़ों की धूल खाते रहेंगे.

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इस प्रकार कहा जा सकता है कि आज परजीवी लोगों की एक नई किस्म वायरस की तरह फैल गई है जो वर्क फ्रौम होम का फायदा उठा रही है और हार्ड वर्क औन रोड्स एंड फ्रैक्ट्रीज को और ज्यादा चूस पा रही है. इतनी गुलामी कामगारों ने इतिहास में पहले कभी नहीं देखी होगी क्योंकि पहले मुखियाओं को मकान जरूर मिलते थे लेकिन प्रकृति की मार उन्हें भी बराबर सहनी पड़ती थी. अब उन की ईजाद, कंप्यूटर टैक्नोलौजी, को इस्तेमाल कर सकने लायक बनाए गए गुलामों की गिनती बढ़ गई है और उन पर काम का बोझ भी.

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