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नारी अब भी तेरी वही कहानी: भाग 3

राइटर- रमेश चंद्र सिंह

‘पापा के आने के बाद हम लखनऊ पहुंचे. दीदी व जीजाजी मु झे तयशुदा लेडी डाक्टर के पास ले कर गईं. लेडी डाक्टर ने मेरा एग्जामिनेशन किया तो बोली, ‘अब बहुत देर हो गई है. बच्चा अब 4 माह का हो गया है. अबौर्शन कराना काफी रिस्की है. आप लोग फिर विचार कर लें. अगर आप चाहेंगे तो आप के रिस्क पर और लिखित ले कर ही मैं कोशिश करूंगी, किंतु किसी तरह के नुकसान की कोई गांरटी न लूंगी. जरूरत पड़ने पर औपरेशन भी करना पड़ सकता है.’ जीजाजी ने कहा, ‘आजभर हमें फिर विचार कर लेना चाहिए.’

‘दीदी बोलीं, ‘क्या विचार करना है. बच्चे को तो हम जन्म दे नहीं सकते.’

‘दीदी, जब अबौर्शन इतना रिस्की है तो मैं बच्चे को जन्म दूंगी, किसी अनाथालय में डाल दूंगी. यह तो हत्या होगी न, दीदी.’

‘पागल हो गई हो क्या. बच्चे में जाने किस का खून है. जोरजबरदस्ती वाले बच्चे कभी सही न होंगे. बच्चे में गुंडे का ही तो संस्कार आएगा.’

‘किंतु हमें बच्चे को साथ कहां रखना है. अनाथालय को ही देना है. फिर दीदी, क्या आप भी इस धारणा को मानती हैं कि सहवास के समय आंखें बंद कर लेने से बच्चा अंधा पैदा होगा.’

‘यह समय तर्कवितर्क का नहीं है, शैली. किसी के जीवन का है. किंतु अभी घर चलते हैं. वहां इस समस्या के समाधान का कोई रास्ता तलाशते हैं.’

‘हम लोग घर आ गए.

‘जीजाजी दीदी से बोले, ‘एक उपाय है. क्यों न हम इस बच्चे को खुद अपना लें. अब इतने बड़े भ्रूण को मारना हत्या ही तो होगी.’

‘दीदी थोड़ी देर चुप रहीं, अब उन्हें भी लगने लगा था कि अबौर्शन अब काफी रिस्की है. गलती होने पर शैली की जान जाने का भी खतरा है.

‘पर हम शैली के बच्चे को पैदा होने तक उसे रखेंगे कहां?’

‘दीदी ने पूछा तो जीजाजी बोले, ‘यह समस्या नहीं है. तुम मां को सम झा देना कि शैली को एक कोर्स करना है, इसलिए वह मलयेशिया गई है. 6 महीने से पहले न लौटेगी. आजकल किसी को किसी के जीवन से कोई संबंध रह नहीं गया है. कोई पड़ोसी कुछ पूछेगा नहीं. अगर किसी ने पूछ लिया तो बता देंगे, ‘प्रैग्नैंसी के कारण शैली यहां आ गई है. उस के पति अमेरिका चले गए हैं.’

‘ झूठ बोलोगे?’

‘सच ही बोलना था तो मां से क्यों सचाई छिपाई, थाने में उसी दिन इतला क्यों न कर दी?’

‘दीदी कुछ न बोलीं.

‘ऐसा ही किया गया. अस्पताल में मेरी जगह दीदी ने अपना नाम लिखवाया. पिता की जगह जीजा ने अपना नाम दिया. तुम ने जन्म लिया. कुछ दिनों तक तुम्हारे साथ रह कर मैं वापस मां के पास चली गई.

‘फिर मेरी शादी हो गई. इस बीच तुम्हारी एक बहन और एक भाई ने जन्म लिया. अब दोनों अच्छे स्कूल में पढ़ते हैं. तुम्हारे मौसा बहुत प्यार करते हैं. किंतु मैं ने यह राज आज तक उन्हें नहीं बताया. दीदी और जीजा ने भी राज को राज ही रहने दिया.

‘बेटी, भले ही तुम्हें दीदी ने पाला किंतु मेरा दिल तुम से मिलने के लिए हमेशा ही बेचैन रहता था. जब कभी तुम बीमार होतीं, मैं तड़पने लगती. दीदी ने अपनी औलाद से ज्यादा तुम्हें प्यार दिया. मैं उन की ऋणी हूं. दीदी न होतीं तो तुम भी शायद न होतीं. दीदी ने भले ही तुम्हें जन्म न दिया हो, मां तो वही हैं. जीजाजी ही तुम्हारे पिता हैं.

‘बेटी, जीवन में सबकुछ नहीं मिलता. मैं तुम्हारे असली पिता को नहीं जानती. ऐसे वहशी को जेल की सलाखों में जगह होनी चाहिए थी, किंतु वह कई जिंदगियों को दुख और अवसाद में डाल कर आज तक छुट्टा घूम रहा है. वह कौन है, यह पता करने का अब कोई औचित्य नहीं.

‘मैं नहीं जानती ऐसे वहशी कब सम झेंगे कि उन का क्षणभर का यौनसुख कितनी सामाजिक विसंगतियां पैदा करता है. कितने घरों को उजाड़ता है. हम नारियां अब भी कितनी प्रताडि़त हैं.

‘यह तो मैं नहीं जानती कि हम ने उस पापी के विरुद्ध इत्तला न कर गलत किया था या सही. किंतु गलत भी किया था तो इस के पीछे कहीं न कहीं पुरुष मानसिकता ही दोषी है. अगर पुरुष की दृष्टि नारी के पक्ष में होती तो आज न वह हैवान खुला घूम रहा होता, न तुम्हें सारे समाज से छिपाने की जरूरत पड़ती.’

मां की दर्दभरी इस दास्तान ने मु झे पूरी तरह हिला दिया. मां ने न सिर्फ अपना दर्द बयान किया था, बल्कि पुरुष की उन शेखियों पर चोट पहुंचाई थी जो वह नारी की स्वतंत्रता के नाम पर बघारता है.

टुकड़ों में मिली अभिनेत्री की लाश

सौजन्य: मनोहर कहानियां

राइमा इसलाम शिमू बांग्लादेश की एक जानीमानी अभिनेत्री थीं. उन्होंने न सिर्फ 50 से ज्यादा फिल्मों में काम किया, बल्कि 2 दरजन से अधिक नाटकों में भी काम कर दर्शकों के दिलों में जगह बनाई. यह महज इत्तफाक की बात है कि जिन दिनों देश भर में अपने दौर की खूबसूरत और लोकप्रिय अभिनेत्री परवीन बाबी की जिंदगी पर बनी वेब सीरीज ‘रंजिश ही सही’ की चर्चा हो रही थी, उन्हीं दिनों बांग्लादेश की परवीन जितनी ही सैक्सी, लोकप्रिय और सुंदर एक्ट्रेस राइमा इसलाम शिमू की दुखद हत्या की चर्चा भी उतनी ही शिद्दत से हो रही थी.

फर्क सिर्फ इतना था कि परवीन बाबी की लाश उन के घर में मिली थी, जबकि राइमा की एक सड़क पर मिली थी. यह सड़क बांग्लादेश की राजधानी ढाका के केरानीगंज अलियापुर इलाके में हजरतपुर ब्रिज के नजदीक है, जो कालाबागान थाने के अंतर्गत आता है.

17 जनवरी, 2022 को राइमा की लाश मिली तो बांग्लादेश में सनाका खिंच गया क्योंकि वह कोई मामूली हस्ती नहीं थीं बल्कि घरघर में उन की पहुंच थी. अपनी अभिनय प्रतिभा के दम पर उन्होंने अपना एक बड़ा दर्शक और प्रशंसक वर्ग तैयार कर लिया था.

जिस हाल में राइमा की लाश मिली थी, उस से साफ जाहिर हो रहा था कि उन की बेरहमी से हत्या की गई है.

इस हादसे ने एक बार फिर साफ कर दिया कि रील और रियल लाइफ में जमीनआसमान का फर्क होता है और आमतौर पर फिल्म स्टार्स, फिर वे किसी भी देश के हों, की जिंदगी उतनी हसीन और खुशनुमा होती नहीं जितनी कि उन के जिए किरदारों में दिखती है.

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यही राइमा के साथ हुआ कि हत्यारा कोई और नहीं बल्कि उन का बेहद करीबी शख्स था और हत्या की वजह कोई अफेयर, पैसों का लेनदेन, कोई विवाद या नशे की लत या फिर कोई दिमागी बीमारी भी नहीं थी.

45 वर्षीय राइमा साल 1977 में ढाका के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी थीं, जिन्हें बचपन से ही अभिनय का शौक था. ढाका से स्कूल और कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक्टिंग का कोर्स भी किया था.

19 साल की उम्र में ही उन्हें ‘बर्तमान’ फिल्म में काम करने का मौका मिल गया था. निर्माता काजी हयात की इस कामयाब फिल्म से वह फिल्म इंडस्ट्री में पहचानी जाने लगीं.

फिल्म समीक्षकों ने तो उन की एक्टिंग को अव्वल नंबर दिए ही थे, दर्शकों ने भी उन्हें सराहा था. इस की वजह उन का ताजगी से भरा चेहरा और बेहतर एक्टिंग के अलावा उन की कमसिन अल्हड़पन और खूबसूरती भी थी.

पहली फिल्म कामयाब होने के बाद राइमा ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. देखते ही देखते उन्होंने बांग्लादेश के तमाम दिग्गज निर्देशकों के साथ काम किया. इन में इनायत करीम, शरीफुद्दीन खान, दीपू, देलवर जहां झंतु और चाशी नजरूल इसलाम प्रमुख हैं.

सभी छोटेबड़े निर्देशकों के साथ राइमा ने 50 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया और टीवी पर भी अपना जलवा बिखेरा.

लोगों के दिलों में बसी थीं राइमा

छोटे परदे पर आना उन की व्यावसायिक मजबूरी भी हो गई थी, क्योंकि बांग्लादेश के लोग भी टीवी धारावाहिकों को ज्यादा तरजीह देने लगे हैं. राइमा ने कोई 25 धारावाहिकों में एक्टिंग की, जिस से घरघर उन की पहुंच और स्वीकार्यता बढ़ती गई.

बांग्लादेश फिल्म इंडस्ट्री के लगभग सभी बड़े नायकों के साथ उन्होंने काम किया. खासतौर से अमित हसन, बप्पाराज रियाज, शाकिब खान, जाहिद हसन और मुशर्रफ करीम के साथ उन की जोड़ी खूब जमती थी.

राइमा आला कारोबारी दिमाग की मालकिन थीं, इसलिए उन्होंने खुद का प्रोडक्शन हाउस भी खोल लिया था. जिस के तहत कई टीवी सीरियल बने थे. अलावा इस के वह फिल्म पत्रकारिता भी ‘अर्थ कोथा द नैशनल बिजनैस मैगजीन’ के लिए करती थीं.

बहुमुखी प्रतिभा की धनी इस एक्ट्रेस को टीवी न्यूज चैनल एटीएन बांग्ला में सेल्स एंड मार्केटिंग में वाईस प्रेसिडेंट भी नियुक्त किया गया था. जल्द ही एक नामी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी टीएन इवेंट्स लिमिटेड के सीईओ की जिम्मेदारी भी उन्हें दी गई थी.

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इतना ही नहीं, उन्होंने बांग्लादेश में ही अपना ब्यूटी सैलून भी शुरू कर दिया था, जिस का नाम रोज ब्यूटी सैलून है. ढाका का ग्रीन रोड इलाका राइमा के घर की वजह से भी पहचाना जाने लगा, जो दर्शकों और प्रशंसकों की नजर में किसी मन्नत या जन्नत से कम नहीं था.

लेकिन कोई सोच भी नहीं सकता था कि लाखों लोगों का मनोरंजन करने वाली और दर्शकों के दिलों पर राज करने वाली इस एक्ट्रेस की निजी जिंदगी किसी नर्क से कम बदतर नहीं थी और इस की वजह था उन का पति शखावत अली नोबेल, जो कभी उन पर जान छिड़का करता था. इन दोनों ने 16 साल पहले लव मैरिज की थी.

शौहर ही निकला कातिल

आम दर्शक इस से ज्यादा कुछ नहीं सोच पाता कि उस की चहेती एक्ट्रेस अपने महल जैसे घर के अंदर सदस्यों के साथ हंसखेल रही होगी, रोमांस कर रही होगी या फिर डायनिंग टेबल पर बैठी लंच या डिनर कर रही होगी.

और कुछ नहीं तो पति और बच्चों के साथ आंचल हवा में लहराते लौन के झूले पर झूलती गाना गा रही होगी. उस के इर्दगिर्द रंगबिरंगे फूल और चहचहाते पक्षी होंगे. सर के ऊपर नीला खुला आसमान होगा. लेकिन ऐसा कुछ भी कम से कम राइमा की जिंदगी में तो नहीं था.

पिछले कुछ दिनों से वह बेहद घुटन भरी जिंदगी जी रही थीं. आलीशान घर के अंदर कलह स्थायी रूप से पसर चुकी थी जिस से उन के दोनों बच्चे सहमेसहमे से रहते थे.

राइमा और शखावत कहने और देखने को ही साथ रहते थे और मियांबीवी कहलाना भी उन की सामाजिक मजबूरी हो चली थी. लेकिन रोजरोज की मारकुटाई और कलह आम बात हो चुकी थी.

यह सब कितने खतरनाक मुकाम तक पहुंच चुका था, इस का खुलासा 17 जनवरी, 2022 को राइमा की लाश मिलने के बाद हुआ. अंदर से टूटी और थकी हुई यह एक्ट्रेस 16 जनवरी को मावा एक शूटिंग के लिए गई थी. लेकिन देर रात तक वापस घर नहीं लौटी तो घर वालों को चिंता हुई क्योंकि राइमा का फोन भी बंद जा रहा था.

कालाबागान थाने में उन की गुमशुदगी की सूचना दर्ज हुई. एक रिपोर्ट राइमा की बहन फातिमा निशा ने भी लिखाई थी. पुलिस ने राइमा की ढुंढाई शुरू की, लेकिन देर रात तक कोई कामयाबी नहीं मिली तो मामला सुबह तक के लिए टल गया.

इस दौरान उन का भाई शाहिदुल इसलाम खोकान लगातार पुलिस वालों से बहन को ढूंढने की गुजारिश करते खुद भी राइमा की तलाश में इस उम्मीद के साथ लगा रहा कि कहीं से कोई सुराग मिल जाए. लेकिन उस के हाथ भी मायूसी ही लगी.

17 जनवरी की सुबह कुछ राहगीरों ने हजरतपुर ब्रिज के पास एक लावारिस संदिग्ध बोरे को देख इस की खबर पुलिस को दी. पुलिस ने आ कर जैसे ही बोरे को खोला तो उस में से बरामद हुई राइमा की लाश, जो 2 टुकड़े कर बोरे में ठूंसी गई थी.

गले पर चोट के निशान भी साफसाफ दिख रहे थे, जिस से स्पष्ट हो गया कि राइमा की हत्या हुई है और लाश को यहां फेंक दिया गया है. लेकिन हत्यारा कौन हो सकता है, यह सवाल पुलिस को मथे जा रहा था.

राइमा की हत्या की खबर जंगल की आग की तरह फैली और फैंस जहांतहां इकट्ठा होने लगे. शव को पोस्टमार्टम के लिए सर सलीमुल्लाह मैडिकल कालेज भेज दिया गया.

पुलिस को शखावत पर शक तो था ही, लेकिन जैसे ही राइमा के भाई शाहिदुल इसलाम खोकान ने यह कहा कि शखावत एक ड्रग एडिक्ट है. वह अकसर मेरी बहन से कलह करता था. मैं ने उस की कार में खून देखा है. वह सुबह 8 से ले कर 10 बजे तक घर पर नहीं था. मुझे लगता है कि उसी दौरान उस ने राइमा की लाश फेंक दी.

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फिल्मों जैसा कत्ल

शाहिदुल की शिकायत पर पुलिस ने शखावत को घेरा तो बिना किसी ज्यादा मशक्कत के उस ने सच उगल दिया. अब तक राइमा के फैंस जगहजगह मोमबत्तियां ले कर उन की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने लगे थे.

सोशल मीडिया पर भी राइमा छाई हुई थीं. लोग श्रद्धांजलि देते राइमा के हत्यारे को गिरफ्तार करने की मांग और प्रदर्शन कर रहे थे.

हिरासत में लिए गए शखावत ने बगैर किसी खास चूंचपड़ के अपना गुनाह कुबूल लिया. उस के बयान की बिनाह पर 6 लोग और गिरफ्तार किए गए, जिन में उन का ड्राइवर और एक नजदीकी दोस्त अब्दुल्ला फरहाद भी था. फरहाद को शखावत ने फोन कर बुलाया था.

पूछताछ में पता चला कि शखावत और फरहाद ने राइमा की हत्या 16 जनवरी को ही कर दी थी. वक्त था सुबह 7 बजे का. इन दोनों ने राइमा की लाश बोरे में भर दी और उसे प्लास्टिक की डोरी से सिल दिया. यह काम इत्मीनान से बिना किसी अड़ंगे के हो सके, इस के लिए उन्होंने घर पर तैनात सिक्योरिटी गार्ड को नाश्ता लेने भेज दिया था.

घटनास्थल से बरामद डोरी शखावत के गले का फंदा बनेगी, यह भी तय दिख रहा है क्योंकि जब पुलिस टीम घर पहुंची थी तो इस डोरी का पूरा बंडल वहां से बरामद हुआ था. जिस से शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी.

ये दोनों लाश को ठिकाने लगाने के पहले उसे मीरपुर ले गए थे, लेकिन वहां कोई उपयुक्त सुनसान जगह नहीं मिली तो वापस घर आ गए थे.

राइमा की लाश उन लोगों के लिए बोझ बनती जा रही थी. मीरपुर से वापसी के बाद दोनों रात साढ़े 9 बजे के करीब हजरतपुर ब्रिज पहुंचे और लाश वाले बोरे को वहीं फेंक दिया, लेकिन हड़बड़ाहट और जल्दबाजी में गलती से डोरी वहीं छोड़ दी, जो उन के खिलाफ एक पुख्ता सबूत बन गई.

लाश फेंकने के बाद घर आ कर दोनों ने सबूत मिटाने की गरज से कार को धोया और बदबू दूर करने के लिए उस में ब्लीचिंग पाउडर भी छिड़का. लेकिन इस के बाद भी खून के धब्बे पूरी तरह नहीं मिट पाए थे.

यानी राइमा शूटिंग पर गई है, यह झूठ जानबूझ कर फैलाया गया था, जिस से कत्ल को किसी हादसे में तब्दील किया जा सके या उस का ठीकरा किसी और के सिर फूटे, नहीं तो उसे तो ये लोग 16 जनवरी, 2022 को ही ऊपर पहुंचा चुके थे.

गलत नहीं कहा जाता कि मुलजिम कितना भी चालाक हो, कोई न कोई सबूत छोड़ ही देता है फिर शखावत और फरहाद तो नौसिखिए थे, जो यह मान कर चल रहे थे कि उन्होंने बड़ी चालाकी से अपने गुनाह को अंजाम दिया है, इसलिए पकडे़ जाने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होगा. कुछ दिन हल्ला मचेगा और फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा.

पुलिस के सामने शखावत ने शरीफ बच्चों की तरह मान लिया कि राइमा से कलह के चलते उस ने उस का कत्ल किया, लेकिन हकीकत में वह अव्वल दरजे का शराबी और ड्रग एडिक्ट था, जो पत्नी को मार कर उस की सारी दौलत हड़प कर लेना चाहता था, जिस से ताउम्र मौज और अय्याशी की जिंदगी जी सके.

पर अब उसे जिंदगी भर जेल की चक्की पीसना तय दिख रहा है. हो सकता है अदालत कोई रहम न दिखाते हुए शखावत को फांसी की सजा ही दे दे, जिस का कि वह हकदार भी है.

हरियाणा में कस्टम हायरिंग सेंटर की शुरुआत

हरियाणा में कस्टम हायरिंंग सेंटर की शुरुआत 50 फीसदी सब्सिडी पर कृषि यंत्र स्ट्रा बेलर यूनिट, सुपर एसएमएस, हैप्पी सीडर, पेडी स्ट्रा चौपर, रोटरी स्लेशर,  रिवर्सिबल एमबी प्लाऊ, सुपर सीडर, जीरो टिल सीड ड्रिल, क्राप रीपर आदि पर सब्सिडी कृषि यंत्रों का उपयोग अगर  खेती में किया जाए, तो  खेती का काम आसान हो जाता है. तय दामों पर सभी किसान कृषि यंत्र नहीं खरीद पाते हैं, इसलिए केंद्र और राज्य सरकार की ओर से किसानों के लिए कृषि यंत्रों पर सब्सिडी का लाभ भी दिया जाता है. अलगअलग राज्यों में यह अनुदान रकम अलगअलग हो सकती है.

इसी क्रम में हरियाणा सरकार की ओर से किसानों को 50 फीसदी तक सब्सिडी पर कृषि यंत्र मुहैया कराने के लिए योजना बनाई गई है. इस के अलावा कस्टम हायरिंग सैंटर की स्थापना पर राज्य सरकार की ओर से 80 फीसदी तक सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जा रहा है.

धान की फसल के समय सब से अधिक पराली जलाने की खबरें हरियाणापंजाब से ही आती रही हैं, इसलिए हरियाणा कृषि विभाग द्वारा जिले में धान के अवशेषों में जीरो बर्निंग का लक्ष्य रखा गया है.

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फसल अवशेष प्रबंधन के लिए विभाग के द्वारा किसानों को कस्टम हायरिंग सैंटर पर 80 फीसदी व व्यक्तिगत श्रेणी में 50 फीसदी सब्सिडी पर कृषि यंत्र उपलब्ध करवाए जाते हैं.

किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन करने के प्रति उत्साह व जीरो बर्निंग के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हरियाणा सरकार द्वारा रबी सीजन 2022 में फसल अवशेष प्रबंधन योजना के तहत पराली की गांठ, बेल बनाने वाले किसानों को 1,000 रुपए प्रति एकड़ या 50 रुपए प्रति क्विंटल, जो भी न्यूनतम होगा, प्रोत्साहन राशि के रूप में दिया जाएगा. इस के लिए किसानों को विभाग की वैबसाइट के लिंक पर जा कर पराली की गांठ, बेल के उचित निष्पादन के लिए पंजीकरण करना होगा.

अधिक जानकारी के लिए किसान अपने खंड कृषि अधिकारी या कृषि विकास अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं.

आवेदन के लिए जरूरी दस्तावेज

कस्टम हायरिंग सैंटर के लिए ग्राम पंचायत व एफपीओ, पंजीकृत किसान समिति की पंजीकरण संख्या, प्रधान का पैनकार्ड, आधारकार्ड, ट्रैक्टर की आरसी का विवरण व बैंक खाता का विवरण आदि जरूरी हैं, वहीं व्यक्तिगत किसान के मामले में आवेदन के लिए ट्रैक्टर आरसी, पैनकार्ड, आधारकार्ड, बैंक खाता का विवरण, ‘मेरी फसल मेरा ब्योरा’ वाली रसीद व अनुसूचित जाति से संबंधित किसानों के लिए जाति प्रमाणपत्र लगाना अनिवार्य है.

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 कस्टम हायरिंग सैंटर के लिए कहां करें आवेदन

इस के तहत ‘पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर किसानों को सब्सिडी का लाभ दिया जाएगा. यह सब्सिडी फसल अवशेष के निस्तारण के लिए चलाई जाती है.

इस योजना के तहत किसानों को अवशेष प्रबंधन के लिए स्ट्रा बेलर यूनिट, सुपर एसएमएस, हैप्पी सीडर, पेडी स्ट्रा चौपर, रोटरी स्लेशर, रिवर्सिबल एमबी प्लाऊ, सुपर सीडर, जीरो टिल सीड ड्रिल, क्राप रीपर आदि पर सब्सिडी का लाभ दिया जाता है. इस तरह किसानों को ये यंत्र सस्ती दर पर उपलब्ध हो जाते हैं.

बनाए गए 6,755 कस्टम हायरिंग सैंटर

हरियाणा सरकार ने अब तक किसानों की मदद के लिए 6,755 कस्टम हायरिंग सैंटर बना लिए हैं, जिन से किसान सस्ते दर पर कृषि यंत्र ले कर खेती कर सकते हैं. खास बात यह है कि इन में से 31,000 से अधिक मशीनें पराली मैनेजमैंट करने वाली हैं.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री जेपी दलाल ने कहा कि केंद्र व राज्य सरकार द्वारा समयसमय पर किसानों को विभिन्न प्रकार की सुविधाएं दी जा रही हैं, जिन की वजह से प्रदेश में न केवल खाद्यान्नों का रिकौर्ड उत्पादन हो रहा है, बल्कि पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में भी किसान आगे आ रहे हैं. किसान फसल अवशेष प्रबंधन योजना के तहत निरंतर सब्सिडी का लाभ ले कर कृषि उपकरण खरीद रहे हैं.

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इत्ती सी हंसी, ढेर सारी खुशी

दांत चमका तो लिए पर दिखाए नहीं, तो क्या फायदा? यहां दांत दिखाने से मतलब दिल खोल कर ठहाके लगा कर हंसने से है. रोजमर्रा की भागदौड़भरी स्ट्रैसफुल लाइफ में जहां लोगों पर तनाव व डिप्रैशन का साया है वहां लोग खुल कर हंसनाखिलखिलाना शायद भूल ही गए हैं. जिधर देखिए हैरानपरेशान, मायूस चेहरे दिखाई देते हैं. लेकिन आप शायद नहीं जानते सौ दर्दों की एक दवा है हंसना और खुल कर हंसना. जिस तरह चाय चीनी के बिना और समोसा आलू के बिना अधूरा है, उसी तरह हंसी के बिना जीवन अधूरा है. शायर जफर गोरखपुरी ने भी यह सही कहा है :

हद से अधिक संजीदगी सच पूछो तो रोग आगापीछा सोचते बूढ़े हो गए लोग. यही कारण है कि आज 40 की उम्र के लोग भी 60 के दिखते हैं क्योंकि उन्होंने चेहरे पर तनाव व मायूसी ओढ़ी हुई है. यह बात तो शोधों में भी साबित हुई है कि हंसतामुसकराता चेहरा सदा जवां व खूबसूरत दिखता है. मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जब कोई हंसता है तो मस्तिष्क के न्यूरोकैमिकल्स सक्रिय हो कर शरीर को बेहतर एहसास कराते हैं. हंसने से इम्यून सिस्टम मजबूत होता है व निराशा उत्पन्न करने वाले हार्मोन के स्तर में कमी आती है.

इम्यून सिस्टम हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. जब हम नकारात्मक भाव या नैगेटिव थौट से भरे होते हैं तो हम डिप्रैशन, तनाव व गुस्से का शिकार होते हैं. इस से हमारा इम्यून सिस्टम कमजोर होता है. लेकिन इस के विपरीत हंसने व खुश रहने से शरीर के प्राकृतिक किलर सैल्स यानी ऐंटीबौडीज मजबूत होती हैं. 

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हंसने के फायदे :

हंसना न सिर्फ शारीरिक व मानसिक रूप से फायदेमंद होता है बल्कि वह सामाजिक जीवन में भी आप को सफल व लोकप्रिय बनाता है. हंसतामुसकराता चेहरा सदा सब को अपनी ओर आकर्षित करता है.

हंसनेहंसाने की बात यानी लाफ्टर थैरेपी बरसों पुरानी है, जिस में विदूषक यह काम करता था. भारतीय नाटकों में विदूषक हंसाने वाला पात्र होता था. मंच पर उस के आने मात्र से माहौल हंसने वाला हो जाता था. वह अपना व अपने परिवेश का मजाक बना कर दर्शकों का मनोरंजन करता था. इस के अलावा कोई भी राजदरबार विदूषक के बिना पूरा नहीं होता था. बादशाह अकबर के साथ बीरबल और राजा कृष्णदेव राय के साथ तेनालीराम उन के दरबार के विदूषक थे. बीरबल के चुटकुले आज भी सराहे जाते हैं. तो फिर हम हास्य को जीवन से कैसे दूर कर सकते हैं या फिर उस के महत्त्व को कैसे नकार सकते हैं? आज हास्य कवि सम्मेलनों और टैलीविजन पर प्रसारित होने वाले कौमेडी शोज ने लोगों को हंसाने का जिम्मा लिया है. यह सच है कि अगर हास्य को जीवन में पूरी तरह रचाबसा लिया जाए तो जिंदगी खुशनुमा हो सकती है.

तनाव भगाने का अचूक तरीका :

अगर आप सुबहसुबह अपने आसपास के पार्कों में नजर दौड़ाएंगे तो वहां आप को बहुत से लोग जोरजोर से ठहाके लगाते दिखेंगे. दरअसल, ये ठहाके कई बीमारियों से नजात दिलाने के साथसाथ रचनात्मकता बढ़ाने का भी काम करते हैं.

फ्रैंच न्यूरोलौजिस्ट हेनरी रुबेनस्टेन का मानना है कि एक मिनट की हंसी शरीर को जितना सहज और सामान्य बनाती है, उतना सहज होने के लिए अन्य कोशिशों में 45 मिनट से अधिक समय लग जाता है. खुल कर हंसने से शरीर की रक्त धमनियों में फैलाव आता है जिस से खून तेजी से शरीर के अन्य हिस्सों में पहुंचता है. साथ ही एंडोर्फिन व कौर्टिसोल जैसे रसायनों का रिसाव होता है, जिस से आप तनावरहित हो कर एनर्जी से भर जाते हैं. लाफ्टर थैरेपी के फायदों को जनजन तक पहुंचाने के लिए हर वर्ष मई के प्रथम रविवार को ‘वर्ल्ड लाफ्टर डे’ मनाया जाता है. भारत में लाफ्टर थैरेपी का आगाज 1995 के करीब हुआ और आज देश में 7 हजार से ज्यादा लाफ्टर क्लब और 10 हजार से ज्यादा लोग इस के सदस्य हैं. वे लाफ्टर थैरेपी का लाभ उठा रहे हैं.

अनकंडीशनल हंसी :

लाफ्टर थैरेपी और लाफ्टर क्लब के बारे में जब हम ने दिल्ली लाफ्टर क्लब के प्रैसिडैंट डा. उमेश सहगल, जो पेशे से डैंटिस्ट हैं यानी लोगों की मुसकराहट को संवारते हैं और निजी जीवन में भी लोगों को लाफ्टर थैरेपी के जरिए खुशहाल बनाने का मिशन चला रहे हैं, से बात की. उन का कहना था कि लाफ्टर क्लब की 20-25 मिनट की अनकंडीशनल हंसी लोगों को दिनभर के लिए रिफ्रैश कर देती है.

2002 में मुंबई के लाफ्टर सैशन का हिस्सा बनने के बाद डा. सहगल ने दिल्ली में डेरावल नगर से 2002 में ही दिल्ली लाफ्टर क्लब की शुरुआत की. पिछले 12 सालों से चल रहे इस लाफ्टर क्लब की शाखाएं दिल्ली व एनसीआर में फैल चुकी हैं. डा. सहगल कहते हैं कि हमारा फंडा है ‘डोंट लाफ एट अदर्स, लाफ विद अदर्स.’ इमोशनल अलगाव की स्थिति में जिस की शिकार आजकल घरेलू महिलाएं व बुजुर्ग अधिक हैं, लाफ्टर थैरेपी जिंदगी को तनावरहित करती है व जीने का नया नजरिया देती है. हमारे वौलंटियर्स ओल्ड एज होम्स, मैंटली रिटार्डेड पीपल होम्स, कौर्पोरेट हाउसेज और कैंसर हौस्पिटल्स में भी जाते हैं जहां लाफ्टर सैशन के बाद वहां के लोग अपने तनाव व परेशानी को भूल जाते हैं.

वर्ल्ड लाफ्टर डे पर आयोजित एक कार्यक्रम में लाफ्टर थैरेपी के फायदों को देखते हुए भारत के प्रसिद्ध कार्डियोलौजिस्ट डा. के के अग्रवाल ने तो हर अस्पताल में एक ह्यूमर रूम बनाने की सलाह भी दी थी. उन का मानना है कि हंसने से आप की सेहत अच्छी रहेगी. हंसने से ब्लड प्रैशर कम रहता है. दिल के मरीजों के लिए हंसना बेहद जरूरी है. इस के कई सामाजिक फायदे भी होते हैं. हंसी रिश्तों को मजबूत बनाती है, दूसरों को आकर्षित करती है, जीवन में आनंद व उत्साह भरती है और दर्द को कम करने में मदद करती है. इसलिए हंसते रहिए और दवा से दूर रहिए यानी लाख दुखों की एक दवा है हंसी. लेकिन एक बात का ख?याल जरूर रखें कि जब किसी का इगो हर्ट हो तो उस वक्त न हंसें.

डा. उमेश सहगल बताते हैं कि अभी कुछ दिनों पहले हम ने तिहाड़ जेल, सैशन कोर्ट व आईबीएन-7 के औफिस में भी अपने लाफ्टर सैशन का आयोजन किया था, जहां भागदौड़भरी जिंदगी से तनावग्रस्त लोगों व अपराध जगत से जुड़े कैदियों के जीवन में नया संचार हुआ और वहां के लोगों ने इस प्रयास को दोबारा व रोजाना करने का निश्चय किया. उन के अनुसार, जब आप समूह में हंसते हैं तो आनंदित करने वाली हंसी इंटरनल जौगिंग के बराबर होती है, जो ब्लडप्रैशर को कम कर के इंसान तनावरहित बनाती है. सांझी हंसी का यह तरीका तनाव दूर करने का सब से बेहतर माध्यम है.

‘स्काई लाफ’, ‘बोट रोइंग लाफ’, ‘बलून लाफ’, ‘गिगलिंग लाफ’, ‘जोकर लाफ’, ‘लायन लाफ’ और ‘ग्रीटिंग लाफ’ की झूठी हंसी कब सच्ची खिलखिलाहट में तबदील हो जाती है, पता ही नहीं चलता. देती ढेर सारी खुशियां : क्या आप जानते हैं कि हंसने से शरीर की मांसपेशियों में कंपन पैदा होता है जिस से शरीर की अकड़न व खिंचाव कम होता है. मांसपेशियों से ब्लड औक्सीजन का सर्कुलेशन भी स्मूथ होता है, साथ ही शरीर में जमा अतिरिक्त फैट पिघल कर बाहर निकलता है. यानी रूप निखरने के साथसाथ फिटनैस भी एक के साथ एक फ्री जैसा मिलता है. हंसने के लिए कुछ खर्च नहीं करना पड़ता, हंसी पर कोई टैक्स नहीं लगता. हंसना इम्यून सिस्टम को सक्रिय करता है, हंसने से ऐंटी बौडी इम्यूनोग्लोबिन-ए की मात्रा बढ़ती है जो श्वसन नली में होने वाले इन्फैक्शन से बचाव करती है.

हंसी एक पेनकिलर का काम करती है. फ्लोरिडा के एक अस्पताल में सर्जरी के बाद कुछ रोगियों पर किए गए प्रयोगों ने यह साबित किया है. हंसी की क्लास ने बिना पेनकिलर्स के रोगियों को दर्द से राहत दिलाई और कुछ देर के लिए वे अपनी तकलीफ भूल गए. अब तो आप समझ ही गए होंगे इत्ती सी हंसी में छिपा है ढेर सारी खुशियों का राज.

पापाज बौय: भाग 3

शायनी ने शतांश को सुना पर वह उस के निर्णय से चकित नहीं हुई. वह पल उस के लिए बड़ा ही पीड़ादायक था. मन दरकदरक बिखरने लगा था. अपनेआप को संयत करते हुए वह बोली, ‘‘तुम पुरुष हो शतांश. कुछ भी कह सकते हो. मैं नारी हूं. मुझे तो सिर्फ सुनना है. गलत मैं ही थी जो तुम्हें समझ नहीं पाई. मैं तो यही समझती रही थी कि तुम भी मेरी तरह हमारे प्यार के लिए पजैसिव और प्रोटैक्टिव हो.’’ ठंडी सांस लेते हुए उस ने फिर कहा, ‘‘शतांश, मैं तुम से कुछ जवाब चाहती हूं. स्कूल में मुझे रिझाते समय, अपनी वैलेंटाइन बनाते समय, होटलों में मेरा शरीर भोगते समय और मुझ से विवाह करने का निर्णय लेते समय क्या तुम्हें यह पता नहीं था कि तुम पापाज बौय हो? उन की इच्छा के विरुद्ध कहीं नहीं जा पाओगे? यदि पता था तो मेरी जिंदगी से खिलवाड़ करने का अर्थ क्या था?

‘‘सच क्यों नहीं कहते कि तुम्हारे पापा को मेरे पापा से बड़े दहेज की उम्मीद नहीं है. यह क्यों नहीं कहते कि वे नहीं चाहते कि कोई मध्यवर्गीय युवती उन के खानदान की बहू बने. इस में तुम्हारी भी सहमति है. तुम्हारा मुझ से प्यार तो केवल एक नाटक था,’’ कहते हुए एक दर्द उभर आया था शायनी की आवाज में. उस की आंखें डबडबा उठी थीं. शतांश ने सिर्फ उस के दर्द भरे शब्द सुने. कहा कुछ नहीं. केवल शायनी की आंखों से निकल कर चेहरे पर फिसलते एकएक मोती को गौर से देखता रहा.

‘‘गो,’’ शतांश की चुप्पी पर शायनी लगभग चीख उठी. वह इन बोझिल पलों से शीघ्र ही उबर आना चाहती थी, ‘‘जाओ, शतांश जाओ. आई हेट यू,’’ वह फिर चीखी. पर जब शतांश कुरसी से नहीं उठा तो वह खुद उठ कर रेस्तरां से बाहर चली आई. शायनी शतांश के निर्णय से हताश हो कर घर तो चली आई पर रातभर सो न सकी. मन में तूफान उठ रहा था, जो उसे विचलित किए जा रहा था. वह सोचे जा रही थी कि प्यार तो जिंदगी का संगीत होता है. उस के बिना जीवन सूना हो जाता है इसीलिए उस ने अंत समय तक यह भरसक प्रयास किया था कि उस के प्यार की खुशबू शतांश में बनी रहे.

शतांश उस से कहीं दूर न हो जाए. इसी संशय में मैडिकल की कठिन पढ़ाई के उपरांत उस के लिए लगातार समय निकाला था. सदैव उस की शारीरिक इच्छाएं पूरी की थीं. अपनी तरफ से प्रेम के प्रति ईमानदार बनी रही थी. कभी उसे शिकायत का कोई मौका ही नहीं दिया था. इस से ज्यादा और वह क्या कर सकती थी. अचानक शतांश की बेवफाई को वह क्या समझे? उस के साथ नियति का कू्रर मजाक या फिर शतांश द्वारा दिया गया धोखा. सोचतेसोचते न जाने कब आंख लग गई. सवेरे शायनी को उस के पापा रविराय ने जगाया, ‘‘शायनी, आज कालेज नहीं जाएगी बेटा? देख सूरज सिर पर चढ़ आया है.’’

अलसाते हुए शायनी पलंग पर उठ बैठी. उस ने पापा को पास बैठाते हुए कहा, ‘‘आज कालेज जाने का मन नहीं है,’’ फिर उन की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘पापा, मैं ने फैसला किया है कि मैं शादी नहीं करूंगी.’’ रविराय उस की बात पर जरा भी नहीं चौंके. वे बात की गंभीरता को समझते हुए बोले, ‘‘साफ क्यों नहीं कहती कि शतांश अब तेरी जिंदगी से दूर जा चुका है. मैं कई दिन से महसूस कर रहा था कि अब न तो तेरे लिए उस के फोन आते हैं और न ही तू मुझ से उस के साथ देर रात तक रुकने के लिए अनुमति मांगती है. चल, जो भी हुआ, ठीक हुआ. शायद तुम दोनों एकदूसरे के लिए बने ही नहीं थे.

‘‘बेटे, लाइफ एक बंपी राइड है. यह सपाट और सरल कभी नहीं होती इसलिए संभलो और आगे बढ़ो. नैवर रिग्रैट फौर एनीथिंग,’’ कहते हुए रविराय ने उसे बांहों में बांध कर उस के माथे को चूम लिया.

खनक की कार जब होटल ड्रीमलैंड की पार्किंग में रुकी तो शतांश अपनी कार लौक कर के उस के आने का इंतजार करने लगा. खनक ने कार से उतरते ही शतांश से कहा, ‘‘मैं समझती हूं, हमें अंदर रेस्तरां में जाने की कोई आवश्यकता नहीं है. अपने विवाह के संबंध में हमें जो भी निर्णय लेना है, वह यहीं लिया जा सकता है. वैसे मैं तुम्हारे और शायनी के बारे में बहुतकुछ जानती हूं. मैं यह भी जानती हूं कि तुम ने मुझ से शादी करने के लिए उस से ब्रेकअप किया है.’’ थोड़ा रुक कर उस ने फिर कहा, ‘‘शतांश, तुम में और मुझ में एक बड़ा अंतर यह है कि यू आर पापाज बौय. तुम वही करते हो जो वे तुम्हें करने के लिए कहते हैं. यहां तुम उन के कहने पर ही मुझे प्रपोज करने आए हो.

‘‘जहां तक मेरा प्रश्न है, मैं अपने डैडी की इज्जत करती हूं. उन के कहने पर मैं यहां आई तो जरूर हूं, लेकिन अपनी जिंदगी के फैसले करने का अधिकार मैं किसी को नहीं देती, क्योंकि यह मेरी जिंदगी है, जो मुझे अपने ढंग से जीनी है, डैडी की इच्छा से नहीं.’’ अपनी बातों को समाप्त करते हुए वह बोली, ‘‘अब बेहतर यही है कि तुम लौट कर अपने पापा को यह बता दो कि खनक तुम्हें पसंद नहीं है, क्योंकि वह न तो हमारे घर में निभ पाएगी और न ही आप की सेवा कर पाएगी. मुझे अपने डैडी से क्या कहना है, यह मैं भलीभांति जानती हूं.’’

शतांश मूक रह गया. वह चेहरे पर उभर आई फीकी सी मुसकान के पीछे छिपे दर्द को ढकने का प्रयास करने लगा. वह समझ नहीं पाया कि कैसे वह खनक को अपने मन के भाव दिखाए. ‘‘चलें,’’ अचानक खनक के शब्द ने उसे चौंका दिया.

खनक उसे उसी अवस्था में छोड़ कर अपनी कार में बैठी और कार स्टार्ट कर पार्किंग से बाहर निकल गई. शतांश किंकर्तव्यविमूढ़ सा उसे देखता रह गया. समय किसी के लिए नहीं रुकता. शतांश के लिए भी नहीं रुका और न ही शायनी के लिए. 4 साल बाद नैनीताल में एक दिन शायनी जैसे ही अपने क्लीनिक

से बाहर निकली, उसे शतांश कार में सड़क से गुजरता हुआ दिखाई दिया. शायनी उसे नैनीताल में देख कर विस्मित हुए बिना नहीं रही. उसी पल शतांश को भी वह सड़क के किनारे चलती हुई नजर आ गई. उसे नैनीताल में देख कर वह भी चकित रह गया. वह कार से उतरा और शायनी के पास आ पहुंचा.

उसे रोकने का प्रयास करते हुए उस से पूछा, ‘‘तुम यहां?’’ शतांश को अपने सामने देख कर शायनी के मन से नफरत का लावा भरभरा कर बह निकला. उस के प्रश्न का उत्तर दिए बिना शायनी ने अपनी गति तेज

कर दी. शतांश ने भी उस का पीछा नहीं छोड़ा. बढ़ कर फिर उस के समीप आ गया. बोला, ‘‘शायनी, सुनो तो. हम इतने भी अजनबी नहीं हैं कि तुम मुझ से कतरा कर भागने लगो. मैं सिर्फ इतना जानना चाहता हूं कि तुम यहां कैसे?’’

अब शायनी रुक गई. वह अपने को संयमित करते हुए बोली, ‘‘मैं यहीं रहती हूं. यहां मेरा क्लीनिक है.’’ ‘‘सरप्राइजिंग, मेरी यहां एक फैक्टरी है. मैं भी यहीं रहता हूं,’’ फिर कुछ सोचते हुए उस ने शायनी से अनुरोध किया, ‘‘क्या

हम थोड़े समय के लिए एकसाथ कहीं बैठ सकते हैं?’’ ‘‘नहीं,’’ वह बोली.

‘‘शायनी तुम्हें मेरे और अपने उन पलों की कसम, जो कभी हम ने साथ जिए थे.’’

‘‘जो कहना है यहीं कहो,’’ बड़ी असहज स्थिति में उस का अनुरोध स्वीकार करते हुए शायनी ने कहा. शतांश वहीं एक लैंप पोस्ट के सहारे खड़ा हो गया. शायनी भी उस के पास खड़ी हो गई. अपने दिल के बोझ को हलका करने का प्रयास करते हुए शतांश बोला, ‘‘शायनी, मैं अब पापाज बौय नहीं रहा हूं. पापा से अलग हो कर मैं ने अपनी फैक्टरी यहां लगा ली है. फैक्टरी लगाने के बाद मैं ने तुम्हें हर जगह ढूंढ़ा.

’’तुम्हारे साथियों से भी पूछा कि तुम आजकल कहां हो, लेकिन जब कोई कुछ नहीं बता पाया तो मैं ने तुम्हारे पापा से बात की. उन्होंने मुझे तुम्हारे बारे में कुछ भी बताने से साफ इनकार कर दिया. हां, यह जरूर बताया कि तुम ने भविष्य में शादी करने से इनकार कर दिया है.’’ शायनी शतांश की बातें सुनती चली गई. उस की बातों पर उस ने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. बस, सड़क पर चलती हुई भीड़ और सामने से गुजरते वाहनों को देखती रही.

थोड़ी चुप्पी के बाद शतांश ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘शायनी, सच मानो, अपने बे्रकअप के बाद से मैं पश्चात्ताप की आग में जल रहा हूं. वह बे्रकअप मेरे जीवन की एक बड़ी भूल थी. मैं तुम से क्षमा मांग कर उस भूल को सुधारना चाहता हूं. मेरी बाहें तुम्हें आज भी उसी गर्मजोशी से बांधने को तैयार हैं. प्लीज शायनी, फौरगैट एवरी थिंग.’’ शायनी ने शतांश को सिर से ले कर पैर तक देखा मानो किसी गिरगिट को रंग बदलते हुए देख रही हो. क्षितिज पर डूबा सूरज पल भर के लिए आग बरसाता हुआ सा लगा.

अपने मन के कष्ट को दबाते हुए वह फट पड़ी, ‘‘मिस्टर शतांश, जो उलझन, उथलपुथल, तनाव और दुख इस दौर में मैं ने झेले हैं, उन्हें सिर्फ वही युवती समझ सकती है जिस ने बे्रकअप झेला हो. मैं एक स्वाभिमानी युवती हूं. रिश्तों में इतनी कड़वाहट आने के बाद तुम से फिर रिश्ता कायम कर लूंगी, यह तुम्हारी समझ का एक बड़ा दोष है. ‘‘जरा सोचो, जिस इंसान के साथ बिताए पलों की याद आते ही मेरे मन में नफरत का एक तूफान उठने लगता है, उस के चेहरे को जिंदगी भर मैं अपने सामने कैसे देख पाऊंगी? कभी नहीं, सौरी.’’

तभी एक औटोरिक्शा शायनी के पास से गुजरा. शायनी ने हाथ दे कर उसे रोका. उस में बैठी और चली गई. औटो से निकले काले धुएं ने शतांश के सपनों पर गहरी कालिख बिछा दी.

टैक्नोलौजी चलाने वाली हजारों की टीम

जो पहले छोटे दुकानदार बन सकते थे. कैमिस्ट की दुकान खोल सकते थे. अपनी टैक्सी खरीद कर चला सकते थे. सडक़ के किनारे खोखा लगा कर किराने का सामान बेच सकते थे. जो मोबाइल बेचने के लिए 5 फुट बाई 5 फुट का काउंटर लगा सकते थे. कृषि मंडी में आढ़ती का काम कर सकते थे. स्टेनोग्राफर बन सकते थे. टाइङ्क्षपग की दुकान खोल सकते थे. एक छोटा सी पीसीओ चला सकते थे. रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशतर का सच्चाझूठा सॢटफिकेट बना कर किसी बस्ती में डाक्टर की दुकान खोल सकते थे. आज टैक्नोलौजी, बड़े पैसे, टैक्नोंक्रेटों, सरकारों के कानूनों, औन लाइन बाजार के आगे गुलाम बन रहे हैं.

आज किराने की दुकान के मालिक का बैग पीठ पर बड़ा सा बैग लाद कर बाइक पर घरघर औन लाइन बुक किया सामान पहुंचाने वाला बन गया है. छोटे हलवाई के मालिक का बेटा अब स्वीगी का खाना दरवाजों पर पहुंचा रहा है. टैक्सी मालिक उबर के साथ की गुलामी कर रहा है.

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मोटा पैसा ये कंपनियां बना रही हैं जिन्होंने एप बनाए, मोटा पैसा लगा कर लोगों को बहका कर छोटे व्यापार बंद कराए, घर पर सेवा की सुविधा देने के नाम पर छोटे दुकानदारों का काम चौपट किया.

आज उन युवाओं की भीड़ बढ़ रही है जो किसी बड़ी कंपनी के सिर्फ डिलिवरी बौय हैं, ठेके पर, हर पैकेट की डिलिवरी पर पैसे मिलने वाले. वे कब तक काम कर सकते हैं, जब तक टै्रफिक नियमों को दरकिनार करते हुए जोखिम लेते हुए 40 मिनट की दूरी 30 मिनट में पूरी कर सकें. आज मैकेनिक वे हैं जिन्हें किसी एप से बुक करा गया और जो मनचाहा दाम नहीं पा सकते, केवल कमीशन पाते हैं और अच्छे रिव्यू के लिए ग्राहक से गिड़गिड़ाते हैं.

टैक्नोलौजी और पैसे ने आज जिस तरह नई गुलामी दुनिया भर में चालू ही है. उस का इतिहास में उदाहरण नहीं है. आज धीरेधीरे छोटे कारखाने, दुकान, खेत, सेवाएं सब बंद हो रही हैं. सब तरह के व्यवसायों को बड़े धन्या सेठों की टैक्नोलौजी चलाने वाली हजारों की टीम के सहारे निगला जा रहा है. हर बड़ी कंपनी रूस की तरह है जो यूक्रेन को हड़पना चाहता है और यूक्रेन के पास और कोई चारा नहीं सिवाए उस के कि वह या तो झुक जाए या दूसरी कंपनी अमेरिका के हाथों बिक जाए.

देश भर के व्यापारियों के बच्चे अब बड़ी कंपनियों के कम ज्यादा वेतन वाले मुलाजिम बन रहे हैं. पिछली पीढ़ी में जिन्होंने अपने अच्छे व्यवसाय जमाए थे उन के बच्चे भी अब बड़ी टैक्नोलौजी की मालिक कंपनियों में काम कर रहे हैं. जो कल पढ़ेलिखे हैं, जिन के मांबाप मेहनत का आजाद रह कर काम करते थे, वे उन के लिए सामान ढो रहे हैं.

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यही नहीं जो कल सिर्फ सामान ढ़ोते थे, गड्डे खोदते थे. सिलाई मशीन पर कपड़े सीते थे उन्हें भूखा रहने को मजबूर होना पड़ रहा है क्योंकि वे उन का काम मशीनों से हो रहा. जो खुद चलती  हैं या दूर कहीं एयरकंडीशन कमरों में बैठे सफेद ……द्वारा चलाई जा रही हैं. आज की टैक्नोलौजी और उन के मालिक पुराने जमींदार, जागीरदारों, तानाशाहों से भी ज्यादा क्रूर हो गए हैं. लाखों कराड़ों भूखे मरे या गुलाम रहें, उन्हें फर्क नहीं पड़ता.

Top 10 Holi Special Story: टॉप 10 होली स्पेशल स्टोरी हिंदी में

होली के मौके पर आपके लिए लेकर आये है सरिता की Top 10 Holi Special Story हिंदी में. इस खास मौके पर पढ़िए सरिता की दिलचस्प कहानियां. जिसे पढ़कर आपको नयी सीख मिलेगी. तो अगर आप भी अपनी होली को शानदार बनाना चाहते हैं तो पढ़िए सरिता की Top 10 Holi Special Story.

  1. जीजाजी का पत्र

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घर में सालों बाद सफेदी होने जा रही थी. मां और भाभी की मदद के लिए मैं ने 2 दिन के लिए कालेज से छुट्टी कर ली. दीदी के जाने के बाद उन का कमरा मैं ने हथिया लिया था. किताबों की अलमारी के ऊपरी हिस्से में दीदी की किताबें थीं. मैं कुरसी पर चढ़ कर किताबें उतार रही थी कि अचानक हाथ से 3-4 किताबें गिर पड़ीं.

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2. जाएं तो जाएं कहां

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हमारे एक बुजुर्ग थे. वे अकसर हमें समझाया करते थे कि जीवन में किसी न किसी नियम का पालन इंसान को अवश्य करना चाहिए. कोई भी नियम, कोई भी उसूल, जैसे कि मैं झूठ नहीं बोलता, मैं हर किसी से हिलमिल नहीं सकता या मैं हर किसी से हिलमिल जाता हूं, हर चीज का हिसाबकिताब रखना चाहिए या हर चीज का हिसाबकिताब नहीं रखना चाहिए.

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3. Holi Special: बुरा तो मानो होली है

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फगुआ में देशज बबुआ सब्सिडी की गलीसड़ी भंग के अधकचरे नशे में इधर से उधर, उधर से इधर बिन पेंदे के नेता सा चुनावी दिनों के धक्के खा रहा था. टिकट न मिलने पर कभी इस दल को तो कभी उस दल को कोसे जा रहा था. पता ही न चल रहा था कि यह नशा भंग का है या कमबख्त वसंत का.

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4. कबाड़ क्या यादों को कभी भुलाया जा सकता है?

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‘‘सुनिए, पुताई वाले को कब बुला रहे हो? जल्दी कर लो, वरना सारे काम एकसाथ सिर पर आ जाएंगे.’’

‘‘करता हूं. आज निमंत्रणपत्र छपने के लिए दे कर आया हूं, रंग वाले के पास जाना नहीं हो पाया.’’

‘‘देखिए, शादी के लिए सिर्फ 1 महीना बचा है. एक बार घर की पुताई हो जाए और घर के सामान सही जगह व्यवस्थित हो जाए तो बहुत सहूलियत होगी.’’

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5. सर्वस्व- क्या मां के जीवन में खुशियां ला पाई शिखा ?

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बैठक में बैठी शिखा राहुल के खयालों में खोई थी. वह नहा कर तैयार हो कर सीधे यहीं आ कर बैठ गई थी. उस का रूप उगते सूर्य की तरह था. सुनहरे गोटे की किनारी वाली लाल साड़ी, हाथों में ढेर सारी लाल चूडि़यां, माथे पर बड़ी बिंदी, मांग में चमकता सिंदूर मानो सीधेसीधे सूर्य की लाली को चुनौती दे रहे थे. घर के सब लोग सो रहे थे, मगर शिखा को रात भर नींद नहीं आई. शादी के बाद वह पहली बार मायके आई थी पैर फेरने और आज राहुल यानी उस का पति उसे वापस ले जाने आने वाला था. वह बहुत खुश थी.

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6. अब वैसी होली कहां

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दरवाजे पर पहुंचते ही मैं ने जोर से आवाज लगाई, ‘‘फूफाजी?’’

बाहर दरवाजे पर खड़ी बूआजी ने माथे पर बल डाल कर कहा, ‘‘अंदर आंगन में बैठे हैं. जाओ, जा कर आरती उतार लो.’’

फूफाजी ने सुबह से ही टेलीफोन पर ‘जल्दी पहुंचो’, ‘फौरन पहुंचो’ की रट लगा रखी थी. जाने क्या आफत आन पड़ी है, यही सोच कर मैं आटो पकड़ उन के घर पहुंचा था.

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7. पुरानी महबूबा शन्नो के साथ राधेश्याम जी की होली

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इस बार राधेश्यामजी होली में खुद को रोक न पाए. भई महबूबा संग बाथटब में होली मनाने का मौका कोई छोड़ता है भला. उन के दबे अरमान फिर से जाग उठे और फिर निकल पड़े वे सफेद कुरतापाजामा पहने… इधर राधेश्यामजी ने कई सालों से होली नहीं खेली थी. होली पर वे हमेशा घर में ही कैद हो कर रहते थे. एक दिन रविवार को सुबहसुबह राधेश्यामजी का मोबाइल बजा, तो उन्होंने तुरंत हरा बटन दबा कर फोन को कान पर लगाया. उधर से आवाज आई, ‘‘धौलीपुरा वाले राधू बोल रहे हो?’’ राधेश्यामजी ने कहा, ‘‘हां भई हां, बोल रहा हूं. मगर अब मैं धौलीपुरा महल्ले को छोड़ कर ‘रामभरोसे लाल’ सोसाइटी में रह रहा हूं. गंदी नाली और गलीकूचे वाला महल्ला छोड़ गगन चूमते अपार्टमैंट में रहने का मजा ही अलग है और यहां मु झे अब कोई राधू नहीं कहता.

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8. जीजाजी से होली: कैसी खेली सोनू-मोनू ने होली?

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होली पर सोनू व मोनू के जीजाजी पहली बार अपनी ससुराल आ रहे थे. सोनूमोनू थे तो करीब 13 और 14 साल के ही, पर शैतानियों में बड़ेबड़ोें के कान काटते थे. दोनों ने निश्चय किया कि जीजाजी से ऐसी होली खेलनी है कि वे इसे जिंदगी भर न भूल पाएं. इस बारे में दोनों भाई रोज तरहतरह की योजनाएं बनाते रहते.

आखिर होली के 4 दिन पहले  ही जीजाजी आ गए. जीजाजी ने आते ही सब को बता दिया कि उन्हें रंगों से सख्त नफरत है. वे केवल धुलेंडी के दिन ही होली खेलेंगे और वह भी केवल सूखे रंगों से.

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9. Holi Special: हक ही नहीं कुछ फर्ज भी

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बेटा बेटी को बराबर मानने वाले सुकांत और निधि दंपती ने अपने तीनों बच्चों उन्नति, काव्या और सुरम्य में कभी कोई फर्क नहीं रखा. एकसमान परवरिश की. यही कारण था जब बड़ी बेटी उन्नति ने डैंटल कालेज में प्रवेश लेने की इच्छा जाहिर की तो…

‘‘पापा ऐश्वर्या डैंटल कोर्स करने के लिए चीन जा रही है. मैं भी जाना चाहती हूं. मुझे भी डैंटिस्ट ही बनना है.’’

‘‘तो बाहर जाने की क्या जरूरत है? डैंटल कोर्स भारत में भी तो होते हैं.’’

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10. खुशी के आंसू

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 आनंद आजकल छाया के बदले ब्यवहार से बहुत परेशान था. छाया आजकल उस से दूरी बना रही थी, जो आनंद के लिए असह्य हो रहा था. दोनों की प्रगाढ़ता के बारे में स्कूल के सभी लोगों को भी मालूम था. वे दोनों 5 वर्षों से साथ थे. छाया और आनंद एक ही स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्यरत थे. वहीं जानपहचान हुई और दोनों ने एकदूसरे को अपना जीवनसाथी बनाने का फैसला कर लिया था.

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Anupamaa: अनुज के प्यार के रंग में रंगी अनुपमा, देखें Video

अनुपमा सीरियल के अनुज और अनुपमा यानी रुपाली गांगुली अक्सर सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं. दोनों की केमिस्ट्री को फैंस काफी पसंदे करते हैं. हाल ही में दोनों ने होली स्पेशल गाने पर धमाकेदार डांस किया था.जिसका वीडियो खूब वायरल हुआ था. अब एक वीडियो सामने आया है, जिसमें अनुज-अनुपमा होली मनाते हुए नजर आ रहे हैं.

शो में दिखाया जाएगा कि दोनों इस बार पहली बार साथ में होली मनाते नजर आएंगे. इससे जुड़ा उनका एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है, जिसमें अनुज प्यार से अनुपमा के गालों पर गुलाल लगाता नजर आ रहा है तो वहीं अनुपमा भी उसके इस अंदाज से शर्म से लाल हो जाती है.

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अनुज और अनुपमा के इस वीडियो ने दर्शकों की एक्साइटमेंट और भी बढ़ा दी है. दर्शक इस वीडियो को काफी पसंद कर रहे हैं.

 

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शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज अनुज के घर जाएगा और दोनों की बहस होगी. वनराज अनुज से कहेगा कि वो अनुपमा को शाह हाउस से लौटने नहीं देगा. अनुज का ये बुरा सपना होगा, जिसे देखकर वो डर जाएगा.

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तो दूसरी तरफ अनुपमा भी होली खेलने के लिए तैयार होगी. दूसरी तरफ वनराज अनुपमा के कमरे के बाहर रंग लेकर खड़ा होगा. अनुपमा के कमरे के दरवाजा वनराज खड़काएगा लेकिन अनुपमा समझ जाएगी कि बाहर वनराज है और वो वनराज को खरी-खोटी सुनाने लगेगी. शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या अनुज अनुपमा को पहले रंग लगाता है या नहीं?

 

छुटकारा- भाग 2: पैंतरा पत्नी का

‘‘तोमैं क्या करूं?’’

‘‘मुझे बहुत घबराहट हो रही है… डर लग रहा है.’’

‘‘तुम अपने घर जाओरितु. मेरे पास इतना वक्त नहीं है कि मैं तुम्हे बारबार समझाती रहूं.’’

‘‘प्लीजमैडम. मैं कुछ देर आप के साथ बैठ लूंगीतो मेरी तबीयत संभल जाएगी.’’

‘‘सौरी. तुम अकेले हीया मयंक के साथ मिल कर इस मसले को सुलझाओ. मुझे तंग करने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं है,’’ ममता दरवाजा बंद करना चाहती थीपर रितु ने अचानक रोना शुरू कर दिया तो वह बहुत परेशान हो उठी.

ममता अपने पड़ोसियों की दिलचस्पी का केंद्र बन कर उन के उलटेसीधे सवालों का जवाब नहीं देना चाहती थी. उस ने मजबूरन जल्दी से रितु का हाथ पकड़ा और उसे ले कर ड्राइंगरूम में आ गई.

‘‘मैं मयंक को अपनी जान से भी ज्यादा चाहती हूंमैडम. अगर हमारे रिश्ते में कभी कोई दरार पैदा हो गईतो मैं आत्महत्या कर लूंगी. आप मेरी इस डायरी को पढ़ेंगीतो आप को फौरन पता लग जाएगा कि मैं उन्हें कितना ज्यादा चाहती हूं,’’ सुबक रही रितु ने अपने पर्स में से निकाल कर एक डायरी ममता को पकड़ा दी.

ममता उस डायरी को नहीं पढ़ना चाहती थीपर रितु ने हाथ जोड़ कर गुजारिश कीतो उस ने डायरी को बीचबीच में से पढ़ना शुरू कर दिया.

रितु ने अधिकतर पन्नों पर मयंक के प्रति अपने प्यार का इजहार किया था. उस के लिखे शब्दों को पढ़ कर कोई भी समझ सकता था कि वह मयंक के प्यार में पागल थी.

उस ने जो 2 दिन पहले लिखा थाउसे पढ़ कर ममता परेशान हो उठी. अगर मयंक ने उसे धोखा दियातो वह आत्महत्या कर लेगीइस वाक्य को रितु ने कई बार लिखा था.

उस दिन दोपहर को रितु ने लिखा था, ‘आज फोन करने वाली औरत ने अपने बेटे की कसम खा कर ममता और मयंक के बीच गलत संबंध होने की बात कही है. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं. मयंक का किसी दूसरे विभाग में तबादला हो जाए तो अच्छा हो. मेरे मन ने उलटीसीधी कल्पना करना नहीं छोड़ातो मैं ना जाने क्या कर बैठूं.

डायरी के इस पन्ने से नजरें उठा कर ममता ने सिर झुका कर बैठी रितु की तरफ देखातो वो उन्हें सचमुच पागल सी नजर आई. उन्हें लगा कि ये अत्यधिक भावुक लड़की कैसा भी कदम उठाने में सक्षम थी.

उन्होंने गहरी सांस खींच कर रितु को फिर से समझाना शुरू किया. वह उन की बातों को बड़े ध्यान से सुन रही थी.

‘‘तुम ने इस मामले में ज्यादा समझदारी नहीं दिखाईतो तुम्हारे साथसाथ मयंक भी परेशान हो जाएगा. उस फोन करने वाली औरत की आवाज पहचानते ही तुम फोन काट दिया करो. परेशान करने वाली झूठी बातों को दिमाग में घुसाने का कोई फायदा नहीं है रितु,’’ अंत में ममता ने उस से ऐसा कहा और उठ खड़ी हुई.

वह चाहती थी कि रितु अब अपने घर चली जाएपर ऐसा हो नहीं सका.

‘‘मैं मयंक को कितना तंग कर रही हूं… वो आज फिर मुझे बहुत डांटेंगे,’’ रितु अचानक रोने लगीतो ममता का दिल किया कि वह उस का सिर फोड़ डाले.

रितु को शांत करने में ममता को घंटाभर लगा. उसे विदा करने के बाद वो देर तक अपनी कनपटियां मसलती रहीक्योंकि उस का सिर दर्द से फट रहा था.

अगले दिन मयंक को अपने कक्ष में बुला कर ममता ने उस से बहुत झगड़ा किया.

‘‘रितु का जब दिल करता हैवो मुझे परेशान करने मेरे घर चली आती है. क्या तुम्हारा बिलकुल भी कंट्रोल नहीं है अपनी पत्नी पर?’’ ममता गुस्से से फट पड़ी.

‘‘मैं आज जा कर उस की अच्छी तरह खबर लेता हूं,’’ ममता की नाराजगी दूर करने के लिए मयंक ने तेज गुस्से का प्रदर्शन किया.

‘‘उस के साथ मारपीट मत करनाप्लीज. वो पागलपन की हद तक भावुक है. उस ने कोई उलटासीधा कदम उठा लियातो हम दोनों के लिए ही समस्या खड़ी हो जाएगी.’’

‘‘कुछ ना कुछ सख्त कदम तो मुझे उठाना ही पड़ेगा.’’

‘‘गुस्से से कम और समझदारी से ज्यादा काम लेनाप्लीज,’’ ममता ने ऐसी हिदायत दे कर उसे कक्ष से बाहर भेज दिया.

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