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धर्म और पाखंड: मोक्ष के लिए आत्महत्या और हत्याएं

मोक्ष का जिक्र हर धर्म में है. यह इसलिए ताकि मेहनत का फल मांगने वालों को उन के मेहनताने से दूर किया जा सके व उन्हें पंडेपुजारियों द्वारा समझाया जा सके कि असल फल या मुक्ति तो मोक्ष मिलने पर है. आज भी इस काल्पनिक मोक्ष के चक्कर में कई परिवार उजड़ रहे हैं.

लगभग 140 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में कोई एक आदमी भी मय सबूत के यह दावा पेश नहीं कर सकता कि वह धर्मग्रंथों में वर्णित 84 लाख योनियों में से पिछले जन्म में क्या था. मानव योनि में ही था या कोई शेर, चीता सरीखा हिंसक जंगली पशु था या उड़ने वाला कोई तोता, कौवा, चिडि़या था या कि मछली, मेढक, मगरमच्छ था.

यह सवाल मोक्ष के मद्देनजर बेहद मौजूं है जिस के बारे में आम धारणा यह है कि जीवनमृत्यु यानी जन्ममरण के चक्र से मुक्ति पा जाने को ही मोक्ष कहते हैं और यह मोक्ष हर किसी को यों ही नहीं मिल जाता.

मोक्ष के लिए बड़े धार्मिक जतन करने पड़ते हैं जिन में से पहला तो यह है कि आदमी कोई पाप न करे. बस, पुण्य ही पुण्य करता रहे. पाप क्या और पुण्य क्या, इस के लिए आप को अपने नजदीकी पंडित से संपर्क साधना चाहिए जो हजारदोहजार रुपए में बता देगा कि पाप और पुण्य इतनेउतने तरीके के और ऐसेवैसे होते हैं. लेकिन आप कितनी भी कोशिश कर लें पाप करने से नहीं बच सकते, इसलिए आप की मोक्ष की कामना पूरी नहीं होने वाली.

तो फिर हर किसी को काल्पनिक मोक्ष की हवस क्यों और वह कैसे पूरी हो, इस के लिए धर्म के दुकानदारों ने कई तरीके अर्थात विधिविधान फैला रखे हैं जिन पर अमल कर के आप मोक्ष को पा सकते हैं. इन में दान और एकादशी का व्रत प्रमुख हैं और शर्त यह कि दान भी सिर्फ ब्राह्मण को ही दिया जाए, तभी मनोकामना पूरी होती है.

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किसी और को दान दे दिया तो मोक्ष का आप का कन्फर्म टिकट कैंसिल हो जाएगा. दरअसल, मोक्ष क्या है (और कुछ है भी या नहीं), जिसे लोग हासिल करने के लिए कुछ भी करने को क्यों तैयार रहते हैं, इसे समझने के लिए पहले हरियाणा के एक शख्स का किया चिंतनीय और जानलेवा कृत्य समझना जरूरी है जो दिमागीतौर पर बीमार लोगों की कैटेगरी में आता है.

मोक्ष के लिए 4 हत्याएं

रमेश को राक्षस कहना कोई हर्ज की बात नहीं जो हरियाणा के हिसार जिले के नंगथला गांव में रहता था. प्रिंटिंग प्रैस और एडवरटाइजिंग के काम के जरिए उसे इतनी आमदनी हो जाती थी कि जिस से वह अपने परिवार का पेट सम्मानजनक तरीके से भर लेता था और इस दौर का सब से बड़ा सुख तो उसे मिला ही हुआ था कि पत्नी किसी बात पर कलह नहीं करती थी. तीनों बच्चे आज्ञाकारी थे और पढ़ाईलिखाई में होशियार थे. गांव के लोगों की नजर में यह एक सुखी व आदर्श परिवार था.

यह तो थी ऊपर से दिखने वाली बात लेकिन अंदर की बात धर्म की चाशनी में डूबी बड़ी कडवी व जहरीली है जिस ने 4 हत्याओं के लिए रमेश को उकसाया और मोक्ष के झांसे में आ कर उस ने एक नृशंस वारदात को अंजाम दे भी दिया.

जरूरत से ज्यादा धार्मिक प्रवृत्ति के रमेश की लाइफस्टाइल बड़ी अजीब थी. वह गांव के घरों से जहरीले जानवरों को पकड़ कर उन्हें जंगल में छोड़ देता था और इस बाबत कोई फीस नहीं लेता था, इसलिए लोग उसे पर्यावरणप्रेमी के खिताब से नवाज चुके थे.

रमेश की इच्छा संन्यासी बन जाने की थी जो घरगृहस्थी के बंधनों के चलते पूरी नहीं हो पा रही थी. मोक्ष का जबतब आने वाला खयाल 20 दिसंबर को रमेश के सिर ऐसा चढ़ा कि अक्ल, समझ, व्यावहारिकता और विवेक ने उस का साथ पूरी तरह छोड़ दिया.

सब से पहले उस ने अपनी 38 वर्षीया पत्नी को कुदाल जैसे नुकीले हथियार से मौत के घाट उतारा, फिर एकएक कर 2 बेटियों व इकलौते बेटे का भी बेरहमी से कत्ल कर दिया. ये चारों उस के मकसद में आड़े न आएं, इसलिए उस ने खीर में नशीली चीज मिला कर इन्हें खिला दी थी.

जब ये बाधाएं हमेशा के लिए दूर हो गईं तो उस ने बिजली के करंट के जरिए खुद को मारने यानी आत्महत्या करने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाया तो वह बरबाहा-अग्रोहा सड़क पर आ कर तेज गति से आ रही एक गाड़ी के सामने आ गया जिस से उस की भी मौत हो गई.

पुलिस वाले जब इस मौत की खबर देने उस के घर पहुंचे तो वहां खून से सनी 4 लाशें पहले से ही उन का इंतजार कर रही थीं. इंतजार क्या कर रहीं थीं बल्कि धर्म के अंधे एक सनकी का जनून बयां कर रही थीं.

रमेश के घर से बरामद एक डायरी से यह खुलासा हुआ कि उस ने मोक्ष की चाह में अपना हराभरा घर उजाड़ लिया. अपने सुसाइड नोट में रमेश ने लिखा था कि वह मोक्ष का अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए परिवारजनों की हत्याएं और खुद आत्महत्या कर रहा है. आसपास के इलाके में सनसनी मची. देशभर में मोक्ष चाहने वाले इस नृशंस हत्याकांड की चर्चा हुई.

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क्या है यह जानलेवा बीमारी

अपने 11 पृष्ठों के सुसाइड नोट में रमेश ने जो लिखा उस से यह बात तो साबित होती है कि उस के अंदर सांसारिकता और बाबाओं के उपदेश यानी तथाकथित आध्यात्मिकता का द्वंद्व चल रहा था जो उस के लिखे इन शब्दों से समझ भी आता है.

जिंदगी के आखिरी दिनों में बहुत मन लगाने की कोशिश की थी. मशीनें खरीदीं, दुकान भी खरीद ली थी. 2 लाख रुपए दे दिए थे और भी बहुत पैसा आ रहा था. चुनाव में बहुत पैसा आया. कई लाख आए थे लेकिन शरीर व दिमाग हार मान चुके थे.

मन अब आजाद होना चाहता था. कोई सुख कोई बात अब रोक नहीं सकता. रोज रात को यह सब सोचता हूं. 3 दिन से पूरी रात जागा हूं. आंखों में नींद नहीं.

मन को बहुत लालच दिया लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी. अब रुकना मुश्किल था आखिर दिमाग का बोझ उतर ही गया. कोई अफसोस कोई दुख नहीं. मुझे मोक्ष, शांति चाहिए थी. जो भी पढ़ रहा है मुझे अपराधी न समझे. मेरा मन पिछले 15 वर्षों से संन्यासी था.

अस्थियां हरिद्वार के बजाय श्मशान के पेड़पौधों में डाल दी जाएं. हम को इतनी शांति चाहिए. मेरे घर को हमेशा बंद रखा जाए. मेरी आत्मा यहीं शांति से रहेगी. मुझे संन्यासी की तरह विदा किया जाए. मैं मानसिक रोगी नहीं हूं. बस, शांति चाहता हूं.

धर्म से उपजा पागलपन

निश्चित रूप से रमेश विक्षिप्त हो चुका था और ऐसे पागलों की देश में कमी नहीं जिन के पागलपन और सनक का जिम्मेदार धर्म है जो मोक्ष की बातें प्रमुखता से करता है. तमाम धर्मग्रंथों में मोक्ष का इफरात से जिक्र है. इस के झांसे में जो एक बार आ जाए वह जिंदगीभर मेहनत की कमाई मोक्ष के नाम पर पंडेपुजारियों पर लुटाता रहता है और इस पर भी सुकून या गारंटी न मिले तो हत्याएं और आत्महत्या तक कर बैठता है.

यह पागलपन मनोविज्ञान का विषय है. जो लोग धर्मकर्म में दिनरात डूबे रहते हैं उन्हें शांति तो नहीं मिलती बल्कि इस शांति की चाह में वे इतने अशांत हो उठते हैं कि मौत ही इकलौता हल इस से छुटकारा पाने का उन्हें लगता है.

भोपाल के गांधीनगर इलाके की एमएससी की एक छात्रा 25 वर्षीय अन्नू दास ने बीती 16 नवंबर को इसी अशांति और बेचैनी के चलते आत्महत्या कर ली थी. मौत के एक रात पहले अन्नू सामान्य थी और उस ने घर वालों के साथ खाना भी खाया था. सुबह जब उस की लाश उस के कमरे में फंदे पर झूलती मिली तो मां और रिटायर्ड आर्मीमैन पिता अजय दास सकते में आ गए.

अपने सुसाइड नोट में अन्नू ने लिखा था, ‘‘भगवान मुझे बुला रहे हैं. सौरी, मम्मीपापा, मुझे माफ कर देना.’’ लगता नहीं कि दास दंपती न केवल बेटी को, बल्कि खुद को भी कभी माफ कर पाएंगे. भगवान से मिलने की इच्छा और मोक्ष में कोई खास फर्क नहीं है. हां, एक समानता जरूर है कि दोनों का ही कोई अस्तित्व नहीं. लेकिन कुछ लोग धर्म के भ्रमजाल में आ कर इन्हें सच मान लेते हैं और इस कथित रहस्य को जानने के लिए अपनों को रोताबिलखता छोड़ हसीन व खूबसूरत जिंदगी का खात्मा करने की मूर्खता कर बैठते हैं.

इस बारे में भोपाल के नामी और वरिष्ठ मनोचिकित्सक विनय मिश्रा कहते हैं, ‘‘यह मनोविकार और एक मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया है जिस में रोगी वास्तविक जीवन में रुचि लेना छोड़ देता है और दिनरात आध्यात्म की बातें सोचता रहता है. कई युवा रोगियों के पेरैंट्स भी गलती करते उन्हें अलौकिक शक्तियों का स्वामी मानने लगते हैं.’’

यानी हकीकत से कट जाना और खयालों में जीने लगना व उन्हें ही सच मान लेना आदमी को कहीं का नहीं छोड़ते. दिक्कत तो यह है कि यह खुराफात धर्म की देन है. अन्नू और राकेश जैसे लाखोंकरोड़ों लोग इस पागलपन के शिकार हो कर या तो पागलखानों में या फिर घरों में ही अपनों व गैरों के लिए सिरदर्द व बोझ बने हुए हैं क्योंकि उन का दिमागी संतुलन बिगड़ चुका है.

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बकवास की हद

दुनिया के सभी धर्मों सहित हिंदू धर्म की भी पूरी दुकानदारी पुनर्जन्म पर टिकी हुई है जिस के तहत बचपन से ही रटा दिया जाता है कि मरने के बाद अच्छे और बुरे कर्मों की बिना पर स्वर्ग और नर्क में जाना पड़ता है. महापुराण कहे जाने वाले गरुड़ पुराण में इस जन्ममरण के चक्र का बड़ा वीभत्स चित्रण है जिसे सुन कर अच्छेखासे लोगों के दिल और दिमाग दोनों हिल जाते हैं.

इस पूरे पुराण में बकवास भरी हुई है. मसलन, मरने के बाद शरीर से आत्मा निकलती है और ऊपरी लोकों की तरफ जाती है जहां स्वर्ग और नर्क स्थित हैं. जिन लोगों को कर्मों के अनुसार मोक्ष मिल जाता है वे स्वर्ग के सुख भोगते हैं. उन्हें वहां कुछ कामधाम नहीं करना पड़ता, मुफ्त के जायकेदार पकवान मिलते हैं, सुरा यानी शराब मिलती है, सुंदर अप्सराएं नाचगाने से जी बहलाती हैं और सब से खास बात, आदमी को दोबारा जन्म ले कर नीचे मृत्युलोक में नहीं आना पड़ता जहां दुख ही दुख हैं.

इस पुराण में नर्क का चित्रण दिल दहला देने वाला है कि वहां जो जाता है उसे तरहतरह की यातनाएं भोगनी पड़ती हैं. मसलन, मृतक को खौलते तेल के कड़ाहों में डाला जाता है, मलमूत्र के कुंडों में डुबोया जाता है, उस के शरीर में कीलें ठोकी जाती हैं.

कुम्भीपाक नाम के नर्क में गरम रेत और जलते अंगारों पर नंगे पांव चलाया जाता है. रौरव नाम के नर्क में पापियों को गन्ने की तरह पेरा जाता है. एक और नर्क जयंती में पापियों को भारीभरकम चट्टान के नीचे दबा दिया जाता है वगैरह.

अब इतना सुनने के बाद भला कौन नर्क जाना चाहेगा. इसलिए लोग आंख बंद कर दानपुण्य में लग जाते हैं. मोक्ष मिलने की विधियां और तरीके भी ये धर्मग्रंथ बताते हैं कि तुलसी और गाय का पूजन करो, निरंतर हरि को भजते रहो, धार्मिक शहरों की यात्रा कर वहां के मंदिरों में माथा टेको और सब से बड़ी बात, सद्कर्म करते रहो.

ऐसी सैकड़ों बातें मोक्ष के लिए बताई गई हैं और हर जगह पंडा स्वाभाविक तौर पर है क्योंकि ब्राह्मण होने के नाते वही ऊपर वाले का प्रतिनिधि है जिस के पास मोक्ष दिलाने का लाइसैंस है.

लेकिन प्रमाण कोई नहीं

मोक्ष का जिक्र हरेक धर्मग्रंथ में है और इसे आदमी के लिए जरूरी बतलाया गया है. 4 तरह के पुरुषार्थों में से मोक्ष एक है. बाकी 3 धर्म, अर्थ और काम यानी सैक्स हैं. इन में से मोक्ष दुकानदारी का बड़ा जरिया है जिस के लिए लोगों को पहले डराया जाता है, फिर दक्षिणा वसूली जाती है. पूजापाठ, भजनकीर्तन आदि के निर्देश देने का मतलब यही है कि लोग धार्मिक पाखंडों में किसी न किसी तरह उलझे रहें.

लेकिन धर्म जो कहता है उस के कोई प्रमाण नहीं हैं. चूंकि धार्मिक साहित्य में लिखा है इसलिए आंख मूंद कर मान लिया गया है कि मरने के बाद दोबारा जन्म लेना पड़ता है और तरहतरह की तकलीफें झेलनी पड़ती हैं. अब अगर इन से मुक्ति चाहिए तो मोक्ष प्राप्त करो.

हिसार के रमेश और भोपाल की अन्नू दास इसी चक्रव्यूह में फंस कर आत्महत्या कर बैठे जबकि उन के पास इज्जत, शान और सुख से जीने के विकल्प मौजूद थे. जिन्हें धर्म और मोक्ष ने उन से छीन लिया. ये दोनों मरने के बाद कहां गए, यह कोई नहीं बता सकता. हां, धर्म के ठेकेदार जरूर पूरी बेशर्मी से कहेंगे कि वे तो ऊपर स्वर्ग का सुख भोग रहे हैं.

अज्ञात और रहस्यों के प्रति जिज्ञासा बेहद कुदरती बात है और होना भी चाहिए क्योंकि यहीं से विज्ञान शुरू होता है लेकिन मरने के बाद भी कोई दुनिया या अस्तित्व है, यह मान लेने की कोई वजह नहीं और जो मान लेते हैं उन की जिंदगी जरूर जीतेजी नर्क हो जाती है और वे दुनिया के तमाम सुखों से वंचित और विक्षिप्त हो जाते हैं.

फरवरी महीने के खेती के खास काम

इस समय रबी की फसल का समय चल रहा है. इस की प्रमुख फसल गेहूं है. समय से बोई गई गेहूं की फसल में फरवरी में फूल लगने लगते हैं. इस दौरान खेत की सिंचाई हर हाल में कर देना जरूरी है. सिंचाई करते वक्त इस बात का खयाल रखें कि ज्यादा तेज हवाएं न चल रही हों, अगर हवा चल रही हो तो उस के थमने का इंतजार करें और मौसम ठीक होने पर ही खेत की सिंचाई करें. हवा के फर्राटे के बीच सिंचाई करने से पौधों के उखड़ने का पूरा खतरा रहता है.

15 फरवरी के बाद गन्ने की बोआई का सिलसिला शुरू किया जा सकता है. बोआई के लिए गन्ने की ज्यादा पैदावार देने वाली किस्मों का चुनाव करना चाहिए. किस्मों के चयन में अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से मदद ली जा सकती है.

गन्ने का जो बीज इस्तेमाल करें, वह  बीमारी से रहित होना चाहिए. बोआई से पहले बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए. बोआई के लिए 3 पोरी व 3 आंख वाले गन्ने के स्वस्थ टुकड़े बेहतर होते हैं.

मटर की फसल की देखभाल भी जरूरी है. मटर की फसल में चूर्णिल आसिता रोग के कारण पत्तियों और फलियों पर सफेद चूर्ण सा फैल जाता है. रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखाई देते ही उस का उचित निदान करें और कृषि माहिरों की राय ले कर दवा का छिड़काव करें.

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यह  महीना लोबिया, राजमा जैसी फसलों की बोआई के लिए मुफीद होता है. अगर इन चीजों की खेती का इरादा हो, तो इन की बोआई निबटा लेनी चाहिए.

भिंडी की खेती वर्ष में दो बार की जा सकती है. ग्रीष्मकालीन भिंडी की खेती के लिए बोआई का सही समय अभी है.

यह महीना बैगन की रोपाई के लिहाज से भी मुफीद होता है. लिहाजा, उम्दा नस्ल का चयन कर के बैगन की रोपाई निबटा लें.

बैगन की उम्दा फसल के लिए रोपाई से पहले खेत की जुताई कर के उस में खूब सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद भरपूर मात्रा में मिलाएं. इस के अलावा खेत में 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस और

80 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डाल कर अच्छी तरह मिला दें.

बैगन के पौधों की रोपाई भी सूरज ढलने के बाद यानी शाम के वक्त ही करें, क्योंकि सुबह या दोपहर में रोपाई करने से धूप की वजह से पौधों के मुर?ाने का डर रहता है. रोपाई करने के फौरन बाद पौधों की हलकी सिंचाई करें.

फरवरी महीने में ही मैंथा की बोआई भी निबटा लेनी चाहिए, वहीं मिर्च की खेती के लिए इस समय पौध रोपाई की जा सकती है. गरमी के मौसम की मिर्च की रोपाई फरवरीमार्च में करना अच्छा रहता है.

मिर्च की उन्नत किस्म काशी अनमोल, काशी विश्वनाथ, जवाहर मिर्च-283, जवाहर मिर्च-218, अर्का सुफल और संकर किस्म काशी अर्ली, काशी सुर्ख या काशी हरिता शामिल हैं, जो ज्यादा उपज देती हैं.

ग्रीष्मकालीन भिंडी की खेती के लिए बोआई का सही समय अभी है. ग्रीष्मकालीन भिंडी की बोआई फरवरीमार्च में की जा सकती है. भिंडी की उन्नत किस्मों में पूसा ए-4, परभनी क्रांति, पंजाब-7, अर्का अभय, अर्का अनामिका, वर्षा उपहार, हिसार उन्नत, वीआरओ-6 (इस किस्म को काशी प्रगति के नाम से भी जाना जाता है). हालांकि भिंडी की खेती वर्ष में 2 बार की जा सकती है.

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टमाटर की खेती भी वर्ष में 2 बार की जाती है. शीत ऋतु के लिए इस की बोआई जनवरीफरवरी माह में की जाती है. इस के एक हेक्टेयर क्षेत्र में फसल उगाने के लिए नर्सरी तैयार करने के लिए 350 से 400 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है. संकर किस्मों के लिए बीज की मात्रा 150-200 ग्राम प्रति हेक्टेयर ली जानी चाहिए है.

टमाटर की उन्नत किस्मों में देशी किस्म-पूसा रूबी, पूसा-120, पूसा शीतल, पूसा गौरव, अर्का सौरभ, अर्का विकास, सोनाली और संकर किस्मों में पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड -2, पूसा हाइब्रिड -4, अविनाश-2, रश्मि और निजी क्षेत्र से शक्तिमान, रैड गोल्ड, 501, 2535 उत्सव, अविनाश, चमत्कार, यूएस 440 आदि हैं.

सूरजमुखी की खेती भी अधिक मुनाफा देने वाली फसलों में आती है. सूरजमुखी की फसल 15 फरवरी तक लगाई जा सकती है. इस की फसल की बोआई करते समय इस के बीजों की पक्षियों से रक्षा करना बेहद जरूरी है.

इस की संकर किस्में बीएसएस-1, केबीएसएस-1, ज्वालामुखी, एमएसएफएच-19, सूर्या आदि शामिल हैं. इस की बोआई करने से पूर्व खेत में भरपूर नमी न होने पर पलेवा लगा कर जुताई करनी चाहिए. 2-3 बार जुताई कर के खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए या रोटावेटर का इस्तेमाल करना चाहिए.

इस की बोआई कतार में करें, तो अच्छा रहता है. निराईगुड़ाई भी यंत्रों द्वारा की जा सकती है. बोआई से पूर्व 7-8 टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद तैयारी के समय खेत में मिलाएं

अपने आम के बगीचे का मुआयना करें. इन दिनों आम में चूर्णिल आसिता रोग लगने का काफी अंदेशा रहता है. लिहाजा, कैराथेन दवा का छिड़काव करें. अनेक बीमारियों के साथसाथ इन दिनों आम के पेड़ों को कुछ कीटों का भी खतरा रहता है. अगर ऐसा हो, तो अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के बागबानी वैज्ञानिक की राय ले कर कीटों व बीमारी का निबटारा करें. ऐसा करने से आम के पेड़ महफूज रहेंगे.

आम के साथसाथ सदाबहार फल केले के बागों का खयाल रखना भी लाजिम है. बाग में फैली तमाम सूखी पत्तियां बटोर कर खाद के गढ्डे में डाल दें. बाग की बाकायदा सफाई के बाद 15 दिनों के फासले पर 2 दफे सिंचाई भी करें.

केले की उम्दा फसल हासिल करने के लिए बाग की निराईगुड़ाई करने के बाद पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन व पोटाश वाली खादें डालें. केले के पेड़ों पर अगर किसी बीमारी या कीटों का हमला नजर आए, तो तुरंत उस का इलाज फल वैज्ञानिक की राय के मुताबिक करें.

इस महीने नीबू नस्ल के पौधों के लिए बोआई करना मुनासिब रहता है. लिहाजा, नीबू, संतरा व मौसमी वगैरह के बीजों की बोआई पौधशाला में की जा सकती है. साथ ही, पौधशाला में कली बांधने का काम भी निबटाएं.

आमतौर पर फरवरी महीने तक ठंडक का मौसम काफी हद तक कम सा हो जाता है. लिहाजा, कई पशुपालक लापरवाह हो जाते हैं और अपने मवेशियों को सर्दी से बचाने के उपाय बंद कर देते हैं. मगर ऐसा करना अकसर काफी घातक साबित होता है. लिहाजा, सावधान रहें.

हकीकत तो यह है कि जाती हुई सर्दी इनसानों के साथसाथ जानवरों को भी बीमार करने वाली होती है, इसलिए सर्दी से बचाव के उपाय एकदम से बंद न कर के धीरेधीरे बंद करें.

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पशुपालक अपने पशुओं की देखभाल का भी ध्यान रखें. अपने मुरगेमुरगियों के मामले में भी चौकन्ने रहें, ताकि वे बीमार न होने पाएं.

गाय या भैंस हीट में आए, तो उसे पशु चिकित्सक के जरीए गाभिन कराने में लापरवाही न बरतें. समय पर टीकाकरण करवाएं. साथ ही, सरकार द्वारा समयसमय पर आने वाली लाभदायक योजनाओं का भी ध्यान रखें और उन का लाभ उठाएं.

विधानसभा चुनाव 2022: भगवा एजेंडे की परीक्षा

देश का भगवा गैंग चाहता है कि सरकार चलाने के लिए कुरसी पर चाहे जो बैठा हो पर सरकार ऋषिमुनियों के इशारे पर चले. इसलिए 5 राज्यों के चुनावों में उस की राजनीतिक इकाई भाजपा की जीत, खासकर योगी आदित्यनाथ की जीत, उस के सपनों की जीत साबित होगी.

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार उन के काल में राजा को राजकाज चलाने के लिए ऋषिमुनियों से सलाह लेना जरूरी माना जाता था. महाभारत, रामायण और अन्य पौराणिक कथाओं में इस के तमाम उदाहरण मिलते हैं. महाभारत काल में धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे. ऐसे में वे राजा नहीं बन सकते थे. ऋषिमुनियों के आदेश पर धृतराष्ट्र की जगह उन के छोटे भाई पांडु को राजा बनाया गया. पांडु शिकार के शौकीन थे. जब वे शिकार पर जाते थे, गुरुओं और ऋषिमुनियों के आदेश पर राजकाज चलता था. एक बार पांडु शिकार करने वन में गए थे. शिकार करते हुए उन्होंने एक हिरन के जोड़े को उस समय मार दिया जब वह हिरनी के साथ  क्रिया में था. कथा के अनुसार, वह मृग के रूप में कोई ऋषि कुमार था.

मृग रूपधारी निर्दोष ऋषि कुमार ने पांडु को श्राप दिया कि जब भी वे अपनी रानी कुंती और माद्री के साथ क्रिया की अवस्था में होंगे तो उन की मृत्यु होगी.

श्राप से दुखी पांडु ने ऋषि कुमार की बात को आधार बना कर फैसला किया कि वे राजपाट त्याग कर अपनी पत्नियों से अलग वन में ही रहेंगे. इस से वे अपनी पत्नियों के साथ क्रिया नहीं कर सकेंगे और जिंदा रह पाएंगे. पांडु की पत्नी कुंती और माद्री ने भी वन में रहने का फैसला कर लिया. वे उन के साथ ही रहने लगीं.

एक दिन पांडु ने ऋषिमुनियों को ब्रह्मा के दर्शन करते जाते देखा तो उन का भी मन हुआ कि वे भी जाएं. तब उन को यह बताया गया कि निसंतान पुरुष ब्रह्मलोक में जाने के अधिकारी नहीं होते.

इस के बाद पांडु चिंताग्रस्त रहने लगे. संतान के लिए पत्नी के साथ संबंध बनाते तो हिरनरूपी ऋषि कुमार को श्राप फलीभूत हो जाता, जिस से उन के मरने का डर था. पति को चिंता में देख कुंती ने बताया कि उस के पास ऐसा वर है जिस से वह किसी भी देवता का स्मरण कर उस के पुत्र की मां बन सकती है. पति पांडु की आज्ञा से कुंती सब से पहले धर्म के देवता का स्मरण कर उन के पुत्र युधिष्ठिर की मां बनी.

कुछ समय बाद पांडु ने गलतीवश एक दिन पत्नी के साथ संबंध स्थापित कर लिया. ऐसा करने से ऋषि कुमार का श्राप फलीभूत हो गया और उन की मृत्यु हो गई. पत्नी माद्री अपने पति पांडु के साथ सती हो गई.

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ऋषिमुनियों के कहने पर कुंती अपने बच्चों की देखभाल के लिए जीवित रही. सभी ने पांचों बच्चों को पांडु का पुत्र मान लिया. ऋषिमुनियों के कहने पर धृतराष्ट्र ने अपने भाई पांडु की जगह राजकाज संभाल लिया. यह तय हुआ कि जैसे ही पांडुपुत्र युधिष्ठिर राजा बनने के योग्य होंगे, यह राजपाट उन को दे दिया जाएगा. ऋषिमुनियों के कहने पर जब धृतराष्ट्र ने ऐसा नहीं किया तो महाभारत हुआ, जिस को धर्मयुद्ध कहा गया.

महाभारत की यह कहानी टीवी सीरियल के जरिए घरघर तक पहुंच चुकी है. घरों में रहने वाले सभी लोग कुंती और माद्री को जानते हैं. जनता को यह सम?ाया जाता है कि जो राजकाज ऋषिमुनियों के आदेश पर चलता है, बेहतर होता है. राजकाज चलाने में ऋषिमुनियों का प्रभाव किस तरह से था, यह बात महाभारत की इस कथा के जरिए सम?ा जा सकती है.

रामायण में ऋषिमुनियों के कहने पर ही अपने दोनों बेटों राम और लक्ष्मण को असुरों को मारने के लिए जंगल में भेजा गया था. जबकि कहा गया कि राजा दशरथ का राजकाज बहुत अच्छा था. जब सब अच्छा था तो असुर कहां से आए? इस की जिम्मेदारी राजा दशरथ की नहीं ठहराई गई. अगर राजकाज की व्यवस्था अच्छी होती तो असुर कैसे परेशान कर सकते थे? ऋषिमुनियों ने जो कह दिया, उस पर सवाल उठाने की परंपरा नहीं है. यही वजह है कि आज के दौर में जो लोग सरकार के खिलाफ आवाज उठाते हैं, उन को राष्ट्रद्रोही मान लिया जाता है.

आज ऋषिमुनि नहीं हैं, लेकिन उन की कहानियां सुना कर वर्तमान नेता अपना राजकाज करते हैं. गलतियों से बचाव के लिए पौराणिक कथाओं का ही सहारा लेते हैं. राजकाज से पहले भगवान (यदि कहीं है) को खुश करने के काम करते हैं, जिस से जनता को यह लगे कि नेता पौराणिक ग्रंथों में बताए गए धर्म के रास्ते पर ही चल रहा है. आज के दौर में बेरोजगारी, गरीबी और भुखमरी को खत्म करने से पहले राममंदिर और भव्य काशी बनाना जरूरी हो गया है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिस में वे बेरोजगारी के विरोध में धरना प्रदर्शन करने और सिर मुंड़वाने के लिए पिछले जन्म के कर्म को जिम्मेदार बता रहे हैं.

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, वे बिना किसी पौराणिक कथा के अपना भाषण पूरा नहीं करते. गुजरात में सोमनाथ मंदिर के पास बने सर्किट हाउस का उद्घाटन प्रधानमंत्री ने वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरिए किया. अपने भाषण की शुरुआत प्रधानमंत्री ने एक श्लोक से की, जिस का मतलब था, ‘भगवान सोमनाथ की कृपा अवतीर्ण होती है. कृपा से भंडार खुल जाते हैं.’

पौराणिक ग्रंथों में बारबार राजाओं की कहानियों के सहारे यह बताया गया है कि राजा का काम ऋषिमुनियों की सलाह पर सरकार चलाना होता है. जब भी राजा ऋषिमुनियों का कहना नहीं मानता तो धर्म की सत्ता को बनाए रखने के लिए युद्ध जरूरी हो जाता है. ऐसे युद्ध को धर्मयुद्ध माना जाता है. श्रीमद्भगवतगीता के अध्याय 4 के श्लोक 7 और 8 कहते हैं, ‘यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम’. इस का अर्थ है कि ‘जबजब वास्तव में धर्म की हानि होती है, तबतब अधर्म को रोकने के लिए मैं अर्थात भगवान लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं.’

इन पौराणिक कथाओं को सुन कर जनता मानती है कि उन के नेता अवतारी पुरुष हैं. ये ऋषिमुनियों की सलाह पर राजकाज चलाते हैं. आज ऋषिमुनियों की जगह आरएसएस जैसे संगठनों ने ले ली है. उन की सलाह पर धार्मिक कर्मकांड से राजकाज चलता है.

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एक छोटा सा उदाहरण उत्तर प्रदेश की राजधानी का है. पहले भी तमाम सरकारी गैस्टहाउस बनते रहे हैं. उन के धार्मिक नाम नहीं होते थे. एक नया सरकारी गैस्टहाउस लखनऊ के डौलीबाग इलाके में बना है जिस का नाम धार्मिक स्थल नैमिषारण्य के नाम पर रखा गया.

इस के अलावा इलाहाबाद का नाम बदल का ‘प्रयागराज’ और फैजाबाद का नाम बदल कर ‘अयोध्या’ जैसे रखने के उदाहरण इसी दौर में मौजूद हैं. इस की वजह केवल इतनी है कि जनता को यह लगे कि राजकाज ऋषिमुनियों और पौराणिक कथाओं के बताए रास्ते पर चल रहा है. धीरेधीरे जनता को यह बात सम?ा आ रही है.

कमजोर पड़ता हिंदुत्व का जोश

असल में राजा और ऋषिमुनि जनता को यह बहकाने की कोशिश करते हैं कि वे उस के लिए ही सत्ता को अपने पास रखना चाहते हैं. उन का अपना सत्ता से कोई मोह नहीं है. 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों को भी धर्म के मुद्दे पर लड़ने का प्रयत्न किया जा रहा है. इस को सोशल मीडिया पर धर्म की रक्षा के लिए युद्ध बताया जा रहा है और धर्म की रक्षा के लिए जरूरी है कि हिंदुत्व की रक्षा की जाए.

भारतीय जनता पार्टी ने खुद को धर्म का रक्षक मान लिया है. परेशानी की बात यह है कि पिछले 8 वर्षों के शासन में दलित और पिछड़ों के साथ सत्ता में हिस्सेदारी को ले कर जो अन्याय हुआ, उस के कारण दलित और पिछड़े हिंदुत्व की इस लड़ाई में अलग खड़े दिख रहे हैं. इस वजह से 8 सालों में जो हिंदुत्व का जोश पूरे देश में फैला, वह अब कमजोर पड़ने लगा है. पश्चिम बंगाल चुनाव के साथ भाजपा का विजयरथ रुक गया है. 5 राज्यों में जनता का फैसला इसी बात पर होगा.

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद देश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव आया. यह बदलाव आरएसएस के बदलते राजनीतिक रुख को दिखाता है. पौराणिक कथाओं में जिस तरह से राजा को ऋषिमुनियों के आदेश पर राजकाज करते सुना जाता है, आज की सरकार आरएसएस के इशारे पर राजकाज कर रही है.

केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद आरएसएस ने अपने हिंदुत्व के एजेंडे पर काम करना तेज किया. 2014 के बाद तमाम विश्वविद्यालयों और संस्थाओं में अपनी विचारधारा के लोगों को स्थापित करने की शुरुआत की गई, जिस का विरोध करने वालों को अवार्ड वापसी गैंग कह कर नकारने का काम किया गया.

2017 में उत्तर प्रदेश में जीत के बाद हिंदुत्व का चेहरा मान कर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया. जैसे ही भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल की, कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया गया. इसी के बाद अयोध्या में राममंदिर की लड़ाई भी हिंदुओं ने जीत ली.

इस के अलावा नागरिकता संशोधन कानून को ले कर भी पूरे देश में काम शुरू हुआ. आरएसएस पहले धैर्यपूर्वक अपनी विचारधारा को आगे बढ़ा रहा था, लेकिन अब उसे लक्ष्य पाने की जल्दी हो रही है. जिस के कारण ही भाजपा में उस का दखल बढ़ता जा रहा है.

ड्राइविंग सीट पर आरएसएस

2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद आरएसएस अपने एजेंडे को पूरा करने में लग गया. तमाम आपसी टकराव के बाद भी आरएसएस और भाजपा ऊपर से एकसाथ दिखने का प्रयास कर रहे थे. भाजपा बारबार आरएसएस को दरकिनार कर आगे निकलना चाह रही थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कद को कम करने का प्रयास शुरू किया गया. केंद्र सरकार ने पीएमओ में काम करने वाले आईएएस आर के शर्मा को उत्तर प्रदेश में एमएलसी (सदस्य, विधान परिषद) बना कर डिप्टी सीएम बनाने का प्रयास किया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ब्राह्मणविरोधी और ठाकुर समर्थक बता कर मुख्यमंत्री की कुरसी से उतारने की योजना पर काम शुरू हुआ.

योगी के बचाव में आरएसएस

उत्तर प्रदेश में भाजपा के अंदर ही सत्ता के लिए टकराव होने लगा. ‘मोदीशाह’ की टीम द्वारा आरएसएस को यह सम?ाया गया कि योगी आदित्यनाथ को अगर 2022 में मुख्यमंत्री चेहरा बना कर चुनाव में उतारा गया तो ब्राह्मण, पिछड़े और दलित भाजपा को वोट नहीं करेंगे.

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मोदीशाह को यह लगने लगा था कि आरएसएस के दबाव से छुटकारा पाने के लिए यही सही अवसर है. मोदीशाह की जोड़ी के दबाव में पूरी भाजपा योगी आदित्यनाथ के विरोध में एकतरफ

खड़ी हो गई. योगी आदित्यनाथ अलगथलग पड़ गए. यहां तक कि वे व्यथित हो कर कोपभवन में चले

गए. उन का सभी नेताओं से संपर्क टूट गया.

भाजपा के योगीविरोधी खेमे में जश्न का माहौल बन गया था. यह मान लिया गया कि कोरोना की नाकामी को मुद्दा बना कर योगी को मुख्यमंत्री की कुरसी से हटा दिया जाएगा. दिल्ली में योगी आदित्यनाथ ने आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व से बात कर चिंता जताई, तब आरएसएस की लखनऊ में मौजूद सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले से बात हुई.

अचानक पूरा घटनाक्रम बदला.

24 घंटे के अंदर आरएसएस पूरी ताकत के साथ योगी आदित्यनाथ के बचाव में आई है. भाजपा और आरएसएस के पदाधिकारियों के बीच समन्वय बैठक हुई. वहां यह तय किया गया कि आर के शर्मा को सरकार में कोई पद नहीं दिया जाएगा, न ही योगी सरकार का कोई मंत्रिमंडल विस्तार होगा. योगी ही मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे.

आरएसएस का यह संदेश मोदीशाह और उन की टीम को दे दिया गया. आरएसएस ने यह भी साफ कर दिया कि योगी के मुकाबले कोई चेहरा स्वीकार नहीं है. इस के पीछे वजह यह है कि योगी ने अपने कार्यकाल में आरएसएस के एजेंडे को प्रभावी तरह से लागू किया है. इस में धार्मिक स्थलों के विकास, कुंभ की व्यवस्था, गंगा का साफ होना, संघ की शाखाओं और उस से जुड़े संगठनों को मजबूत करना, मुसलिम बाहुबलियों पर शिकंजा कसना जैसे काम शामिल हैं.

नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने से आरएसएस योगी से खुश है. आरएसएस योगी को हिंदुत्व के राष्ट्रीय फेस के रूप में स्थापित करना चाहता है. यह बात मोदीशाह को पसंद नहीं आ रही.

चेहरे बदलने का डर

भारतीय जनता पार्टी के भगवा एजेंडे के साथ सब से बड़ी कठिनाई है कि सदियों की परंपराओं के कारण वह पिछड़ों और दलितों, जो हिंदुओं की आबादी में 80-85 प्रतिशत हैं, दलित और पिछड़े वर्ग 1947 में संवैधानिक और वर्ष 1878 के मंडल आयोग के कारण अब सत्ता व बराबरी के लिए छटपटा रहे हैं पर पिछले 7-8 सालों में वोट देने के बावजूद, उन्हें न सम्मान मिला न संतुष्टि. नौकरी और पैसा तो उन के लिए दूरदूर तक कहीं नहीं है. हां, शिक्षा अवश्य मिल गई. हालांकि, वह आधीअधूरी है. अब किसान आंदोलन और नौकरियों के लिए किए जा रहे धरनेप्रदर्शनों से यह बात सामने आ रही है और भगवा गुट के पास फिलहाल इस का कोई उत्तर नहीं है. 5 राज्यों के हो रहे चुनाव साबित करेंगे कि क्या पिछड़ों का नेतृत्व वास्तव में अपनी विशेष राजनीतिक जगह बना कर उपेक्षित  वर्गों के युवाओं की आशाओं और सपनों को पूरा करेगा.

5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में सब से बड़ी लड़ाई उत्तर प्रदेश में है. उत्तर प्रदेश को आरएसएस ने अपनी प्रयोगशाला के रूप में विकसित किया है. योगी आदित्यनाथ आरएसएस के लिए भविष्य का चेहरा हैं. आरएसएस और मोदीशाह के बीच टकराव की मूल वजह यही है.

आरएसएस के लिए भाजपा एक रास्ता है, वह आरएसएस का लक्ष्य नहीं है. आरएसएस का अपना सीधा निशाना लक्ष्य पर है. भाजपा की राजनीति और उस के नेता आरएसएस के लिए केवल राजनीतिक शतरंज के मोहरे भर हैं. 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी ने आरएसएस को नकार कर खुद अपना रास्ता बनाना तय किया.

अटल को अपने पर हद से अधिक गुमान था. उस ने ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा दिया. आत्मविश्वास के साथ उस ने सरकार का कार्यकाल पूरा होने के 6 माह पहले ही लोकसभा के चुनाव करा दिए. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अटल, आडवाणी और जोशी आरएसएस को अपने मुद्दे पूरे करते नहीं दिख रहे थे. इस वजह से आरएसएस ने अपने हाथ पीछे खींच लिए.

अटल, आडवाणी और जोशी जैसे न हो जाएं मोदी, शाह और योगी

अटल, आडवाणी और जोशी की तिकड़ी के हाशिए पर जाने के बाद आरएसएस ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना चेहरा बना कर भाजपा की राजनीति में आगे किया.

नरेंद्र मोदी के 2 कार्यकालों में आरएसएस के 3 प्रमुख मुद्दे अनुच्छेद 370ए, राममंदिर, समान नागरिकता कानून के मुद्दे हल होते दिख गए. अब वह हिंदुत्व को आगे ले जाना चाहता है जिस में सारा नियंत्रण ऋषिमुनि जैसे नीति निर्धारकों का हो, नेताओं और प्रशासकों का नहीं. मोदी, शाह और योगी की तिकड़ी इस का रास्ता हो सकती है, लक्ष्य नहीं. आरएसएस साफतौर पर मानता है कि वह अपने लक्ष्य के लिए इंतजार कर सकता है. ऐसे में उत्तर प्रदेश के चुनाव बड़ा संकेत दे देंगे.

आरएसएस वह हिंदुस्तान चाहता है जहां सरकार चलाने के लिए कुरसी पर चाहे जो बैठा हो, पर सरकार ऋषिमुनियों के इशारे पर चले. पौराणिक कहानियों में ऐसे तमाम राजाओं का जिक्र है. जहां राजा राजपाट चलाने के लिए ऋषिमुनियों से सलाह लेता है. उस के हर आदेश में धर्म का जिक्र होता है. पुनर्जन्म की बात होती है. अगर सफलता न मिले तो पिछले जन्म का पाप सम?ा कर खामोश रहा जाए. यही वजह है कि आरएसएस यह कहता है कि उस का राजनीति से कोई संबंध नहीं है. वह एक सांस्कृतिक संगठन है. पिछले 8 सालों में उस की यह भूमिका बदल चुकी है. अब भाजपा उस का मात्र संगठन नहीं, उस का ‘ड्राइवर’ है.

आरएसएस के दबाव में वापस हुआ किसान बिल

बात केवल उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं है. केंद्र सरकार के कृषि कानूनों को देखें तो वहां भी आरएसएस मोदी सरकार के इन कानूनों से सहमत नहीं था. उस की 2 वजहें थीं. एक तो इस में कौर्पोरेट ताकत बढ़ रही थी. दूसरे, कृषि कानूनों के खिलाफ जो विरोध शुरू हुआ उस ने सिख, पंजाबी और जाट को हिंदुत्व के खिलाफ करना शुरू किया.

भाजपा का बचाव करने वाली सोशल मीडिया और उस की आईटी सैल ने जिस तरह से किसान आंदोलन को सिख और पंजाबी से जोड़ा उस के बाद हिंदुओं से वे अलग दिखने लगे. आरएसएस इस बात को सही नहीं मान रहा था. केंद्र की मोदी सरकार कोई भी बात सुनने को तैयार नहीं थी. ऐसे में एक साल से अधिक समय आंदोलन चल गया.

आरएसएस का साफ मानना था कि ये कानून वापस हुए बिना 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में जाना आत्महत्या करने जैसा होगा. आरएसएस के अलग खड़े होने के खतरे को देखते हुए मोदी सरकार को ये कानून वापस लेने पड़े. आरएसएस केवल अपने 80 बनाम 20 के वोटबैंक पर मजबूती से कायम रहना चाहता है. इस के लिए कृषि कानूनों का वापस होना जरूरी था.

अगर ये कानून वापस न होते तो उत्तर प्रदेश में चुनाव एकदम भाजपा के खिलाफ होता. अब उत्तर प्रदेश के चुनाव वापस 80 बनाम 20 की लड़ाई में बदल रहे हैं. जीत और हार केवल उत्तर प्रदेश को ही नहीं बदलेगी, इस के बाद आरएसएस की रणनीति भी बदल सकती है और जो भाजपा की 2024 की लड़ाई के लिए चुनौतीभरी होगी.

डबल इंजन सरकारों की परीक्षा

2014 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के कुशासन और भ्रष्टाचार पर जनता का फैसला था. कांग्रेस को हराने वाली भारतीय जनता पार्टी ने ‘सब का साथ सब का विकास’ की बात की. विदेशों में जमा कालाधन ला कर देश में गरीबी मिटाने का वादा किया. सरकारी सिस्टम में रिश्वतखोरी को खत्म करने का भरोसा दिलाया. कृषि प्रधान देश के किसानों को 2022 तक उन की आय दोगुनी करने का भरोसा दिलाया. सरकार ने जनता को यह भरोसा दिलाया कि देश का विकास होगा. देश की सीमाएं सुरक्षित होंगी.

पिछले 8 सालों में सरकार अपने किसी वादे पर खरी नहीं उतरी है. 2024 में उस को जनता के बीच जाना है. अभी जिन 5 राज्यों में चुनाव हो रहे हैं वहां 4 में भाजपा की सरकार है. केवल पंजाब में कांग्रेस की सरकार है. ऐसे में जो जनादेश आएगा, वह प्रदेश सरकार के साथ ही साथ केंद्र सरकार के कामकाज पर भी होगा, क्योंकि भाजपा ने डबल इंजन को महत्त्व दिया है.

2024 के लोकसभा चुनाव के पहले 2022 में 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. इन चुनावों को 2024 के लोकसभा चुनाव का सैमीफाइनल माना जा रहा है. उत्तर प्रदेश, पंजाब उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा के विधानसभा चुनाव बड़ा महत्त्व रखते हैं. 5 राज्यों में 690 विधानसभा सीटों पर चुनाव हो रहे हैं. इन में उत्तर प्रदेश 403, उत्तराखंड 70, पंजाब 117, मणिपुर 60 और गोवा की 40 सीटें शामिल हैं. पंजाब को छोड़ कर बाकी 4 राज्यों में भाजपा की सरकार है.

2017 के चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में 312, उत्तराखंड में 56, मणिपुर में 24 और गोवा में 13 सीटें मिली थीं. कांग्रेस गोवा में 15 सीटें पा कर भी सरकार नहीं बना पाई थी. पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनी थी. वहां भाजपा तीसरे नंबर की पार्टी रही थी.

भाजपा ने डबल इंजन की सरकार का नारा दिया था. अब ये चुनाव तय करेंगे कि जनता को डबल इंजन की सरकार ने क्या दिया है? हालांकि विधानसभा के चुनाव राज्य सरकारों का रिपोर्ट कार्ड बनाते हैं लेकिन चूंकि भाजपा ने डबल इंजन की सरकार का दावा किया था, इस कारण ये चुनाव भाजपा की राज्य सरकारों के साथ ही साथ केंद्र की मोदी सरकार का रिपोर्ट कार्ड भी पेश करेंगे.

जनता कह रही है कि 5 साल हम ने सरकार के हर हुक्म को माना, चाहे वह नोटबंदी, जीएसटी, कोरोना में तालाबंदी, नागरिकता संशोधन कानून, कृषि कानून, अनुच्छेद 370 या तीन तलाक जैसा कुछ भी रहा हो. अब फैसला देने की बारी जनता की है.

गोवा में उभर रहा नया चेहरा

भारतीय जनता पार्टी इस बार गोवा विधानसभा का चुनाव सत्ताविरोधी लहर के बीच लड़ेगी. भाजपा के बड़े नेता मनोहर पर्रिकर नहीं हैं. गोवा दलबदल को ले कर हमेशा से चर्चा में रहा है. पार्टी बदलने वालों में सब से ज्यादा विधायक कांग्रेस से रहे हैं. तृणमूल कांग्रेस, गोवा फौरवर्ड पार्टी और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी भी ऐसी पार्टियां है जहां से कई विधायकों ने बीजेपी का रुख कर लिया. अलीना सलदान्हा ने बीजेपी में उपजे मतभेद के बाद पार्टी छोड़ दी. वे आम आदमी पार्टी में शामिल हो गईं. भाजपा के नेता मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर को भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय तौर पर चुनाव मैदान में उतर गए.

गोवा की राजनीति 5 साल से उथलपुथल से गुजर रही है. राज्य के 40 विधायकों में से 23 विधायकों ने अपनी उस पार्टी को छोड़ दिया है जिस पार्टी से उन्होंने 2017 का चुनाव लड़ा था.

साल 2017 में गोवा विधानसभा की 17 सीटों पर कांग्रेस और 13 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी. भाजपा ने सियासी उठापटक के बाद महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी, गोवा फौरवर्ड पार्टी और 2 निर्दलीय विधायकों का सहयोग ले कर 21 विधायकों के साथ अपनी सरकार बना ली. दलबदल का ऐसा जोर था कि बहुमत के बावजूद कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी. मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद प्रमोद सावंत गोवा के मुख्यमंत्री बने.

2022 के चुनाव में गोवा में आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभर रही हैं. तृणमूल कांग्रेस भी इस बार एक अच्छा विकल्प साबित हो सकती है. गोवा में तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा ने पार्टी के जनाधार को बढ़ाने के

लिए बहुत मेहनत की है. भाजपा के खिलाफ सत्ताविरोधी लहर के कारण वहां विपक्ष भाजपा के मुकाबले एकजुट हो रहा है.

तृणमूल कांग्रेस ने जब से महुआ मोइत्रा को गोवा विधानसभा चुनाव का प्रभारी बनाया है, वे वहां का सब से चर्चित चेहरा बन कर उभरी हैं. उन के स्टेटमैंट, स्टाइल और सुंदर सन ग्लासेस ने गोवा के लोगों को महुआ मोइत्रा के प्रति आकर्षित किया है. महुआ मोइत्रा विपक्ष को एकजुट कर के गोवा में नए समीकरण बना सकती हैं.

मणिपुर में मुश्किलभरा सफर

मणिपुर में कांग्रेस और भाजपा के अलावा कई क्षेत्रीय दल मैदान में हैं. 2017 में वहां के विधानसभा चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला था. कांग्रेस सब से बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी. इस के बाद भी सरकार बनाने में भाजपा सफल रही थी.

मणिपुर में विधानसभा की 60 सीटें हैं. 2017 में मणिपुर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 28 सीटें जीत कर सब से बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी, जबकि भाजपा ने 21 सीटों पर जीत दर्ज की थी. चुनाव में नैशनल पीपल्स पार्टी और नगा पीपल्स फ्रंट को 4-4 और एलजेपी, टीएमसी को एकएक सीट मिली थी. मणिपुर में बहुमत का आंकड़ा 31 है.

भाजपा ने एनपीपी, एलजेपी और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई. एन बीरेंद्र सिंह वहां के सीएम बने. अब भाजपा के लिए सत्ताविरोधी वोट मुश्किल खड़ी करने वाले हैं. भले ही मणिपुर छोटा प्रदेश हो पर वहां से निकला संदेश बड़ा होगा. भाजपा ने वहां भी डबल इंजन की सरकार के लाभ बताए और कहा कि भाजपा के राज में यहां कोई बंदी नहीं हुई.

देवभूमि में नाराज हैं वोटर देवता

धर्म की राजनीति को फोकस कर के चुनाव मैदान में उतरी भाजपा के लिए सब से मुश्किलभरा दौर देवभूमि, उत्तराखंड में है. मतदाताओं की नाराजगी को दूर करने के लिए भाजपा वहां लगातार मुख्यमंत्री बदलती रही.

युवा चेहरा पुष्कर सिंह धामी भी मुख्यमंत्री बनने के बाद कोई प्रभाव नहीं डाल सके. कांग्रेस के हरीश रावत के मुकाबले वे सब से कमजोर चेहरा हैं. भाजपा ने वहां पर अधिकांश पहले के ही विधायकों को टिकट दिया है. इस की वजह यह भी है कि वहां भाजपा के पास नेताओं का अभाव है. सब से अधिक नाराजगी भाजपा के ही खेमे में दिखाई दे रही है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह  धामी और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक भी चुनाव लड़ रहे हैं.

उत्तराखंड में ब्राह्मण और व्यापारी भाजपा के पारंपरिक समर्थक रहे हैं. उत्तराखंड की आबादी का 35 फीसदी ठाकुर और 25 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही इसी आधार पर टिकट देते हैं. सामान्यरूप से देखें तो वहां एक बार भाजपा दूसरी बार कांग्रेस की सरकार बनती है. इस आधार पर भी 2022 में कांग्रेस का पलड़ा भारी दिखता है. भाजपा नेता हरक सिंह रावत की बहू, पूर्व मिस इंडिया, अनुकृति भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं.

राजनीति के लिए अनुकृति ने ग्लैमर से भरी मौडलिंग की दुनिया को बीच में ही छोड़ दिया है. अनुकृति राजनीति को सामाजिक कार्यों को पूरा करने का एक बड़ा जरिया मानती हैं. अनुकृति 2018 से न सिर्फ लैंसडाउन बल्कि पूरे राज्य में सामाजिक कार्यों में लगी हुई हैं. हरक सिंह रावत की कांग्रेस वापसी से कोटद्वार सहित इन 5 विधानसभा सीटों पर असर पड़ेगा.

अनुकृति गोसाईं एक मौडल रही हैं. अनुकृति ने साल 2013 में मिस इंडिया दिल्ली का खिताब जीता था. मिस इंडिया प्रतियोगिता में वे 5वें स्थान पर रहीं. साल 2013 में उन्होंने ब्राइड औफ द वर्ल्ड इंडिया का खिताब अपने नाम किया. अनुकृति ने 2014 में मिस इंडिया पैसिफिक वर्ल्ड और साल 2017 में मिस इंडिया ग्रैंड इंटरनैशनल में भारत का प्रतिनिधित्व किया. अनुकृति महिला उत्थान एवं बाल कल्याण संस्थान नाम की संस्था चला रही हैं.

पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत और दीप्ति रावत के बेटे तुषित रावत के साथ 2018 में अनुकृति की शादी हुई. तुषित शंकरपुर स्थित दून इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस संभालते हैं. उन की राजनीति में दिलचस्पी नहीं है.

उत्तराखंड में कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल और सदन में नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह की तिकड़ी कांग्रेस की असली ताकत है. उन के बल पर कांग्रेस उत्तराखंड में सरकार बनाने की दिशा में आगे चल रही है.

इस का मतलब यह है कि डबल इंजन की सरकार वहां भी परीक्षा में पास नहीं हो रही. कर्नल अजय कोठियाल को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर चुनावी मैदान में उतरने वाली ‘आप’ भी चुनाव मैदान में है. कांग्रेस में गुटबाजी नहीं है. अनुभवी नेता हैं और भाजपा में गुटबाजी के साथ ही साथ कुरसी के दावेदारों की लाइन लगी है, जिस की वजह से दिक्कतें अधिक हैं.

पंजाब में आई किसानों की बारी

चुनाव वाले 5 राज्यों में पंजाब अकेला ऐसा राज्य है जहां भाजपा सत्ता में नहीं थी. पंजाब में भाजपा का कोई बड़ा आधार पहले भी नहीं था. इसी वजह से कृषि कानूनों को लागू करते समय भाजपा को चुनावी चिंता नहीं थी. कृषि कानूनों के विरोध में उठे किसान आंदोलन ने हिंदुओं को बांटने का काम किया, जिस की चिंता आरएसएस को हुई. उसे लगा कि ये कानून उस के एजेंडे को प्रभावित कर सकते हैं. इस वजह से उसे केंद्र सरकार पर दबाव बना कर इन कानूनों को वापस कराना पड़ा. किसान आंदोलन के खत्म होने के बाद भी भाजपा के पक्ष में पंजाब में कोई बदलाव नहीं होने वाला.

पंजाब में सत्ता चला रही कांग्रेस ने अपने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटा कर दलित चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया. कांग्रेस को उम्मीद है कि नया चेहरा 2022 के विधानसभा चुनाव जीतने में मदद कर सकता है. पंजाब में अकाली दल को यह उम्मीद है कि बहुजन समाज पार्टी गठबंधन के साथ वह सत्ता में वापसी कर लेगा.

पंजाब के चुनाव में एक बड़ा फैक्टर आम आदमी पार्टी भी है. सत्ता का सफर तय करने के लिए वह भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है. कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई राजनीतिक पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस भी है जो भारतीय जनता पार्टी और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींढसा की शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के साथ मिल कर चुनावी मैदान में है.

किसान आंदोलन में शामिल

22 किसान संगठनों ने मिल कर एक नई पार्टी बनाई है. वरिष्ठ किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल की अगुआई में वह चुनावी मैदान में है. ऐसे में पंजाब में किसी भी एक दल को बहुमत मिलता नहीं दिख रहा. यहां दलबदल के सहारे चुनाव के बाद ही मुख्यमंत्री का चेहरा तय हो सकेगा. भाजपा के लिए मजे की बात यह है कि वह खेल खेलने में नहीं, बनता खेल बिगाड़ने में रुचि रख रही है.

उत्तर प्रदेश में फंसी धर्म की राजनीति

उत्तर प्रदेश आरएसएस की प्रयोगशाला है. 2017 में हिंदुत्व का मौडल बनाने के लिए आरएसएस ने यहां योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया. भाजपा के बड़े विरोध के बाद 5 साल योगी सरकार चली. उत्तर प्रदेश में भाजपा की पहली सरकार है जिस ने अपना कार्यकाल पूरा किया. 2022 का चुनाव भी भाजपा योगी के चेहरे को आगे रख कर लड़ रही है.

5 सालों के कामकाज को देखें तो योगी सरकार की सब से बड़ी उपलब्धि बुल्डोजर संस्कृति रही है. यह ठीक वैसी ही छवि है जो पौराणिक कथाओं में उन ऋषिमुनियों की होती थी जो राजाओं के ऊपर राज करते थे. राजा उन के इशारे पर ही फैसले करते थे. आरएसएस चाहता है कि हिंदुत्व का ऐसा ही मौडल हर जगह विकसित हो.

उत्तर प्रदेश में अयोध्या है. अदालत के फैसले के बाद अयोध्या में राममंदिर बन रहा है. इस के बाद भी प्रदेश की जनता में उत्साह की कोई लहर नहीं है. यह बात भाजपा और आरएसएस दोनों को बेचैन कर रही है. यह पहला चुनाव है जिस में राममंदिर मुद्दे से बाहर है. राममंदिर से अधिक चर्चा वाराणसी के भव्य काशी और मथुरा के कृष्ण मंदिर की हो रही है.

इस के अलावा चुनावी प्रचार में योगी आदित्यनाथ की ‘बुल्डोजर संस्कृति’ की चर्चा भी हो रही है. अब योगी आदित्यनाथ की जीत आरएसएस के सपनों की जीत है. आरएसएस ने पूरी ताकत यहां पर ?ांक दी है. वह अपनी हिंदुत्व की प्रयोगशाला को सफल होते देखना चाहता है. अगर सफलता नहीं मिली तो मोदी, शाह और योगी की तिकड़ी को दरकिनार करने में आरएसएस देर नहीं लगाएगा.

योगी की छवि से अलग भाजपा संगठन अपनी तैयारी भी कर रहा है. इस के चलते ही दूसरे दलों के विधायकों और नेताओं को पार्टी में शामिल किया जा रहा है.

भाजपा के लिए सब से बड़ा खतरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश है जहां किसान आंदोलन से नाराज लोग उस के साथ खड़े होने को तैयार नहीं हो रहे. यही वजह है कि भाजपा को अब मथुरा की बात करनी पड़ रही है. इस के साथ ही साथ वह पिछड़ी जातियों के नेताओं और मुसलिमों को भी सम?ाने का प्रयास कर रही है कि उस के राज में दंगा नहीं हुआ.

नए आवरण में सपा

वैसे तो उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुकाबले समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी प्रमुख रूप से चुनाव लड़ रही हैं लेकिन असली लड़ाई सपा और भाजपा के बीच ही है. समाजवादी पार्टी भी अपने पुराने तौरतरीकों से अलग नए समीकरणों के साथ चुनाव मैदान में है. समाजवादी पार्टी ने अपने ‘एमवाई’ समीकरण को नई तरह से परिभाषित करना शुरू किया है.

अखिलेश यादव कहते हैं, ‘‘एमवाई का मतलब मुसलिम और यादव नहीं, ‘युवा और महिला’ हैं.’’ इस के साथसाथ अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के परिवारवा के दाग को धोना चाहते हैं. इसी वजह से अपने छोटे भाई प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव को विधानसभा चुनाव लड़ने का टिकट नहीं दिया, जिस की वजह से अपर्णा यादव भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं.

अखिलेश यादव 2022 के चुनाव में सपा को नए आवरण में पेश कर रहे हैं. वे खुद को जमीनी नेता साबित करने के लिए विधानसभा का चुनाव पहली बार लड़ रहे हैं. अखिलेश यादव एक बड़ा बदलाव कर रहे हैं कि सपा पर से यादव पार्टी का दाग हट जाए. यही वजह है कि वे ओमप्रकाश राजभर और स्वामी प्रसाद मौर्य को अपने साथ रख रहे हैं.

सावधानी के तौर पर पहली बार अखिलेश यादव सपा के मुसलिम नेताओं को अपने साथ मंच पर जगह नहीं दे रहे हैं. नए आवरण में सपा कितना कमाल दिखाएगी, यह चुनाव के बाद तय होगा. अखिलेश ने अपनी सू?ाबू?ा से उत्तर प्रदेश की लड़ाई को योगी बनाम अखिलेश बनाने में सफलता हासिल कर ली है. बड़ेबड़े चुनावी योद्धाओं, नएनए हथियारों से घिरे अखिलेश यादव महाभारतरूपी इस चुनावी युद्ध में अभिमन्यु की तरह रथ का पहिया ले कर अकेले ही युद्ध कर रहे हैं.

चुनाव के बाद भी होगा दलबदल

कांग्रेस और बसपा में तीसरे और चौथे नंबर के लिए लड़ाई होगी. कांग्रेस ने महिलाओं को 40 फीसदी टिकट दे कर क्रांतिकारी बदलाव की शुरुआत की है. इस का असर भविष्य की राजनीति पर जरूर पड़ेगा. प्रियंका गांधी के इस मुद्दे के सहारे कांग्रेस का वोटबैंक धीरेधीरे उस की तरफ वापस लौटना शुरू करेगा. राजनीति की एक नई फसल इस के सहारे तैयार होगी.

2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का लक्ष्य अपनी सरकार बनाने के लिए नहीं, बल्कि भाजपा को हराने के लिए है. कांग्रेस की तरफ जो भी वोटबैंक वापस आएगा, वह अपरकास्ट वोट ही होगा जो भाजपा को नुकसान करेगा. बसपा के पास जाटव वोट अभी भी है. उस की मुश्किल है कि वह चुनाव मैदान से पूरी तरह से बाहर है. इस का कुछ हिस्सा कांग्रेस को जा सकता है.

छोटेछोटे दलों के जो विधायक चुनाव जीत कर आएंगे उन को लाभ तभी मिलेगा जब किसी एक दल को बहुमत न मिले. तब सरकार बनाने के लिए दलबदल होगा. विधायक महंगे दामों पर खरीदे जाएंगे. उत्तर प्रदेश चुनाव के सर्वे भाजपा की सरकार बनते बता रहे हैं लेकिन जिस हिसाब से सीटों की संख्या 200 से 240 के करीब बता रहे हैं उस से अंदाजा यही लग रहा कि किसी एक दल को बहुमत मिलता नहीं दिख रहा. ऐसे में जिस तरह का दलबदल चुनाव के पहले दिख रहा है वैसा ही दलबदल चुनाव के बाद दिखेगा. एक तरह से देखें तो चौथे प्रदेश में भी डबल इंजन की सरकार परीक्षा में पास होती नहीं दिख रही है.

धर्म का प्रभाव केवल राजकाज ही नहीं बल्कि घरपरिवार, रोजीरोजगार और जीवनशैली के हर स्तर पर पहुंच गया है. नेताओं की ही तरह कथा और प्रवचन करने वाले लोग भी पौराणिक कथाओं से बात को शुरू करते हमारे घर की परेशानियों तक ले आते हैं, जिस से हम अपनी हर परेशानी का हल पौराणिक कथाओं में तलाश करने लगते हैं. यही वजह है कि विधानसभा चुनाव के दौरान आजकल बड़े स्तर पर धर्म की बातें और कथाएं नेता बारबार दोहरा रहे हैं.

असल में जनता को सम?ाना चाहिए कि उस की परेशानियों का हल धर्म में नहीं, कर्म में है. कर्म का मतलब हमारे पूर्वजन्म के कर्म नहीं, हमारे द्वारा किया जाने वाला काम है. अगर जनता अपने मुद्दों व जरूरतों पर सरकार चुनेगी तो ही देश व समाज का भला होगा.

ओए पुत्तर: कैसे अपनों के धोखे का शिकार हुए सरदारजी?

लेखक- डा. अजय सोडानी

सुबह के 10 बजे अपनी पूरी यूनिट के साथ राउंड के लिए वार्ड में था. वार्ड ठसाठस भरा था, जूनियर डाक्टर हिस्ट्री सुनाते जा रहे थे, मैं जल्दीजल्दी कुछ मुख्य बिंदुओं का मुआयना कर इलाज, जांचें बताता जा रहा था. अगले मरीज के पास पहुंच कर जूनियर डाक्टर ने बोलना शुरू किया, ‘‘सर, ही इज 65 इयर ओल्ड मैन, अ नोन केस औफ लेफ्ट साइडेड हेमिप्लेजिया.’’

तभी बगल वाले बैड पर लेटा एक वृद्ध मरीज (सरदारजी) बोल पड़ा, ‘‘ओए पुत्तर, तू मुझे भूल गया क्या?’’

बड़ा बुरा लगा मुझे. न जाने यह कौन है. नमस्कार वगैरह करने के बजाय, मुझ जैसे सीनियर व मशहूर चिकित्सक को पुत्तर कह कर पुकार रहा है. मेरे चेहरे के बदलते भाव देख कर जूनियर डाक्टर भी चुप हो गया था.

‘‘डोंट लुक एट मी लाइक ए फूल, यू कंटीन्यू विद योअर हिस्ट्री,’’ उस मरीज पर एक सरसरी निगाह डालते हुए मैं जूनियर डाक्टर से बोला.

‘‘क्या बात है बेटे, तुम भी बदल गए. तुम हो यहां, यह सोच कर मैं इस अस्पताल में आया और…’’

मुझे उस का बारबार ‘तुम’ कह कर बुलाना बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था. मेरे कान ‘आप’, ‘सर’, ‘ग्रेट’ सुनने के इतने आदी हो गए थे कि कोई इस अस्पताल में मुझे ‘तुम’ कह कर संबोधित करेगा यह मेरी कल्पना के बाहर था. वह भी भरे वार्ड में और लेटेलेटे. चलो मान लिया कि इसे लकवा है, एकदम बैठ नहीं सकता है लेकिन बैठने का उपक्रम तो कर सकता है. शहर ही क्या, आसपास के प्रदेशों से लोग आते हैं, चारचार दिन शहर में पड़े रहते हैं कि मैं एक बार उन से बात कर लूं, देख लूं.

मैं अस्पताल में जहां से गुजरता हूं, लोग गलियारे की दीवारों से चिपक कर खड़े हो जाते हैं मुझे रास्ता देने के लिए. बाजार में किसी दुकान में जाऊं तो दुकान वाला अपने को धन्य समझता है, और यह बुड्ढा…मेरे दांत भिंच रहे थे. मैं बहुत मुश्किल से अपने जज्बातों पर काबू रखने की कोशिश कर रहा था. कौन है यह बंदा?

न जाने आगे क्याक्या बोलने लगे, यह सोच कर मैं ने अपने जूनियर डाक्टर से कहा, ‘‘इसे साइड रूम में लाओ.’’

साइड रूम, वार्ड का वह कमरा था जहां मैं मैडिकल छात्रों की क्लीनिकल क्लास लेता हूं. मैं एक कुरसी पर बैठ गया. मेरे जूनियर्स मेरे पीछे खड़े हो गए. व्हीलचेयर पर बैठा कर उसे कमरे में लाया गया. उस की आंखें मुझ से मिलीं. इस बार वह कुछ नहीं बोला. उस ने अपनी आंखें फेर लीं लेकिन इस के पहले ही मैं उस की आंखें पढ़ चुका था. उन में डर था कि अगर कुछ गड़बड़ की तो मैं उसे देखे बगैर ही न चला जाऊं. मेरे मन की तपिश कुछ ठंडी हुई.

सामने वाले की आंखें आप के सामने आने से डर से फैल जाती हैं तो आप को अपनी फैलती सत्ता का एहसास होता है. आप के बड़े होने का, शक्तिमान होने का सब से बड़ा सबूत होता है आप को देख सामने वाले की आंखों में आने वाला डर. इस ने मेरी सत्ता स्वीकार कर ली. यह देख मेरे तेवर कुछ नरम पड़े होंगे शायद.

तभी तो उस ने फिर आंखें उठाईं, मेरी ओर एक दृष्टि डाली, एक विचित्र सी शून्यता थी उस में, मानो वह मुझे नहीं मुझ से परे कहीं देख रही हो और अचानक मैं उसे पहचान गया. वे तो मेरे एक सीनियर के पिता थे. लेकिन ऐसा कैसे हो गया? इतने सक्षम होते हुए भी यहां इस अस्पताल के जनरल वार्ड में.

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आज से 15 वर्ष पूर्व जब मैं इस शहर में आया था तो मेरे इस मित्र के परिवार ने मेरी बहुत सहायता की. यों कहें कि इन्होंने ही मेरे नाम का ढिंढोरा पीटपीट कर मेरी प्रैक्टिस शहर में जमाई थी. उस दौरान कई बार मैं इन के बंगले पर भी गया. बीतते समय के साथ मिलनाजुलना कम हो गया, लेकिन इन के पुत्र से, मेरे सीनियर से तो मुलाकात होती रहती है. उन की प्रैक्टिस तो बढि़या चल रही थी. फिर ये यहां इस फटेहाल में जनरल वार्ड में, अचानक मेरे अंदर कुछ भरभरा कर टूट गया. मैं बोला, ‘‘पापाजी, आप?’’

‘‘आहो.’’

‘‘माफ करना, मैं आप को पहचान नहीं पाया था.’’

‘‘ओए, कोई गल नहीं पुत्तर.’’

‘‘यह कब हुआ, पापाजी?’’ उन के लकवाग्रस्त अंग को इंगित करते हुए मैं बोला.

‘‘सर…’’ मेरा जूनियर मुझे उन की हिस्ट्री सुनाने लगा. मैं ने उसे रोका और पापाजी की ओर इशारा कर के फिर पूछा, ‘‘यह कब हुआ, पापाजी?’’

‘‘3 साल हो गए, पुत्तर.’’

‘‘आप ने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘कहा तो मैं ने कई बार, लेकिन कोई मुझे लाया ही नहीं. अब मैं आजाद हो गया तो खुद तुझे ढूंढ़ता हुआ आ गया यहां.’’

‘‘आजाद हो गया का क्या मतलब?’’ मेरा मन व्याकुल हो गया था. सफेद कोट के वजन से दबा आदमी बेचैन हो कर खड़ा होना चाहता था.

‘‘पुत्तर, तुम तो इतने सालों में कभी घर आ नहीं पाए. जब तक सरदारनी थी उस ने घर जोड़ रखा था. वह गई और सब बच्चों का असली चेहरा सामने आ गया. मेरे पास 6 ट्रक थे, एक स्पेयर पार्ट्स की दुकान, इतना बड़ा बंगला.

‘‘पुत्तर, तुम को मालूम है, मैं तो था ट्रक ड्राइवर. खुद ट्रक चलाचला कर दिनरात एक कर मैं ने अपना काम जमाया, पंजाब में जमीन भी खरीदी कि अपने बुढ़ापे में वापस अपनी जमीन पर चला जाऊंगा. मैं तो रहा अंगूठाछाप, पर मैं ने ठान लिया था कि बच्चों को अच्छा पढ़ाऊंगा. बड़े वाले ने तो जल्दी पढ़ना छोड़ कर दुकान पर बैठना शुरू कर दिया, मैं ने कहा कोई गल नहीं, दूजे को डाक्टर बनाऊंगा. वह पढ़ने में अच्छा था. बोलने में भी बहुत अच्छा. उस को ट्रक, दुकान से दूर, मैं ने अपनी हैसियत से ज्यादा खर्चा कर पढ़ाया.

‘‘हमारे पास खाने को नहीं होता था. उस समय मैं ने उसे पढ़ने बाहर भेजा. ट्रक का क्या है, उस के आगे की 5 साल की पढ़ाई में मैं ने 2 ट्रक बेच दिए. वह वापस आया, अच्छा काम भी करने लगा. लेकिन इन की मां गई कि जाने क्या हो गया, शायद मेरी पंजाब की जमीन के कारण.’’

‘‘पंजाब की जमीन के कारण, पापाजी?’’

‘‘हां पुत्तर, मैं ने सोचा कि अब सब यहीं रह रहे हैं तो पंजाब की जमीन पड़ी रहने का क्या फायदा, सो मैं ने वह दान कर दी.’’

‘‘आप ने जमीन दान कर दी?’’

‘‘हां, एक अस्पताल बनाने के लिए 10 एकड़ जमीन.’’

‘‘लेकिन आप के पास तो रुपयों की कमी थी, आप ट्रक बेच कर बच्चों को पढ़ा रहे थे. दान करने के बजाय बेच देते जमीन, तो ठीक नहीं रहता?’’

‘‘अरे, नहीं पुत्तर. मेरे लिए तो मेरे बच्चे ही मेरी जमीनजायदाद थे. वह जमीन गांव वालों के काम आए, ऐसी इच्छा थी मेरी. मैं ने तो कई बार डाक्टर बेटे से कहा भी कि चल, गांव चल, वहीं अपनी जमीन पर बने अस्पताल पर काम कर लेकिन…’’

आजकल की ऊंची पढ़ाई की यह खासीयत है कि जितना आप ज्यादा पढ़ते जाते हैं. उतना आप अपनी जमीन से दूर और विदेशी जमीन के पास होते जाते हैं. बाहर पढ़ कर इन का लड़का, मेरा सीनियर, वापस इंदौर लौट आया था यही बहुत आश्चर्य की बात थी. उस ने गांव जाने की बात पर क्या कहा होगा, मैं सुनना नहीं चाहता था, शायद मेरी कोई रग दुखने लगे, इसलिए मैं ने उन की बात काट दी.

‘‘क्या आप ने सब से पूछ कर, सलाह कर के जमीन दान करने का निर्णय लिया था?’’ मैं ने प्रश्न दागा.

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‘‘पूछना क्यों? मेरी कमाई की जमीन थी. उन की मां और मैं कई बार मुंबई, दिल्ली के अस्पतालों में गए, अपने इसी लड़के से मिलने. वहां हम ने देखा कि गांव से आए लोग किस कदर परेशान होते हैं. शहर के लोग उन्हें कितनी हीन निगाह से देखते हैं, मानो वे कोई पिस्सू हों जो गांव से आ गए शहरी अस्पतालों को चूसने. मजबूर गांव वाले, पूरा पैसा दे कर भी, कई बार ज्यादा पैसा दे कर भी भिखारियों की तरह बड़ेबड़े अस्पतालों के सामने फुटपाथों पर कईकई रात पड़े रहते हैं. तभी उन की मां ने कह दिया था, अपनी गांव की जमीन पर अस्पताल बनेगा. यह बात उस ने कई बार परिवार वालों के सामने भी कही थी. वह चली गई. लड़कों को लगा उस के साथ उस की बात भी चली गई. पर तू कह पुत्तर, मैं अपना कौल तोड़ देता तो क्या ठीक होता?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘मैं ने बोला भी डाक्टर बेटे को कि चल, गांव की जमीन पर अस्पताल बना कर वहीं रह, पर वह नहीं माना.’’

पापाजी की आंखों में तेज चमक आ गई थी. वे आगे बोले, ‘‘मुझे अपना कौल पूरा करना था पुत्तर, सो मैं ने जमीन दान कर दी, एक ट्रस्ट को और उस ने वहां एक अस्पताल भी बना दिया है.’’

इस दौरान पापाजी कुछ देर को अपना लकवा भी भूल गए थे, उत्तेजना में वे अपना लकवाग्रस्त हाथ भी उठाए जा रहे थे.

‘‘सर, हिज वीकनैस इस फेक,’’ उन को अपना हाथ उठाते देख एक जूनियर डाक्टर बोला.

‘‘ओ नो,’’ मैं बोला, ‘‘इस तरह की हरकत लकवाग्रस्त अंग में कई बार दिखती है. इसे असोसिएट मूवमैंट कहते हैं. ये रिफ्लेक्सली हो जाती है. ब्रेन में इस तरह की क्रिया को करने वाली तंत्रिकाएं लकवे में भी अक्षुण्ण रहती हैं.’’

‘‘हां, फिर क्या हुआ?’’ पापाजी को देखते हुए मैं ने पूछा.

‘‘होना क्या था पुत्तर, सब लोग मिल कर मुझे सताने लगे. जो बहुएं मेरी दिनरात सेवा करती थीं वे मुझे एक गिलास पानी देने में आनाकानी करने लगीं. परिवार वालों ने अफवाह फैला दी कि पापाजी तो पागल हो गए हैं, शराबी हो गए हैं.’’

‘‘सब भाई एक हो कर मेरे पीछे पड़ गए बंटवारे के वास्ते. परेशान हो कर मैं ने बंटवारा कर दिया. दुकान, ट्रक बड़े वाले को, घर की जायदाद बाकी लोगों को. बंटवारे के तुरंत बाद डाक्टर बेटा घर छोड़ कर अलग चला गया. इसी दौरान मुझे लकवा हो गया. डाक्टर बेटा एक दिन भी मुझे देखने नहीं आया. मेरी दवा ला कर देने में सब को मौत आती थी. मैं कसरत करने के लिए जिस जगह जाता था वहां मुझे एक वृद्धाश्रम का पता चला.’’

‘‘आप वृद्धाश्रम चले गए?’’ मैं लगभग चीखते हुए बोला.

‘‘हां पुत्तर, अब 1 साल से मैं आश्रम में रह रहा हूं. सरदारनी को शायद मालूम था, मां अपने बच्चों को अंदर से पहचानती है, एक ट्रक बेच कर उस के 3 लाख रुपए उस ने मुझ से ब्याज पर चढ़वा दिए थे कि बुढ़ापे में काम आएंगे. आज उसी ब्याज से साड्डा काम चल रहा है.’’

‘‘आप के बच्चे आप को लेने नहीं आए,’’ मैं उन का ‘आजाद हो गया’ का मतलब कुछकुछ समझ रहा था.

‘‘लेने तो दूर, हाल पूछने को फोन भी नहीं आता. उन से मेरा मोबाइल नंबर गुम हो गया होगा, यह सोच मैं चुप पड़ा रहता हूं.’’

जिस दिन पापाजी से बात हुई उसी शाम को मैं ने उन के लड़के से बात की. उन को पापाजी का हाल बताया और समझाया कि कुछ भी हो उन्हें पापाजी को वापस घर लाना चाहिए. एक ने तो इस बारे में बात करने से मना कर दिया जबकि दूसरा लड़का भड़क उठा. उस का कहना था, ‘‘पापाजी को हम हमेशा अपने साथ रखना चाहते थे, लेकिन वे ही पागल हो गए. आखिर आप ही बताओ डाक्टर साहब, इतने बड़े लड़के पर हाथ उठाएं या बुरीबुरी गालियां दें तो वह लड़का क्या करे?’’

दवाओं व उपचार से पापाजी कुछ ठीक हुए, थोड़ा चलने लगे. काफी समय तक हर 1-2 महीने में मुझे दिखाने आते रहे, फिर उन का आना बंद हो गया.

समय बीतता गया, पापाजी नहीं आए तो मैं समझा, सब ठीक हो गया. 1-2 बार फोन किया तो बहुत खुशी हुई यह जान कर कि वे अपने घर चले गए हैं.

कई माह बाद पापाजी वापस आए, इस बार उन का एक लड़का साथ था. पापाजी अपना बायां पैर घसीटते हुए अंदर घुसे. न तो उन्होंने चहक कर पुत्तर कहा और न ही मुझ से नजरें मिलाईं. वे चुपचाप कुरसी पर बैठ गए. एकदम शांत.

शांति के भी कई प्रकार होते हैं, कई बार शांति आसपास के वातावरण में कुछ ऐसी अशांति बिखेर देती है कि उस वातावरण से लिपटी प्राणवान ही क्या प्राणहीन चीजें भी बेचैनी महसूस करने लगती हैं. पापाजी को स्वयं के बूते पर चलता देखने की खुशी उस अशांत शांति में क्षणभर भी नहीं ठहर पाई.

‘पापाजी, चंगे हो गए अब तो,’’ वातावरण सहज करने की गरज से मैं हलका ठहाका लगाते हुए बोला.

‘‘आहो,’’ संक्षिप्त सा जवाब आया मुरझाए होंठों के बीच से.

गरदन पापाजी की तरफ झुकाते हुए मैं ने पूछा, ‘‘पापाजी, सब ठीक तो है?’’

पतझड़ के झड़े पत्ते हवा से हिलते तो खूब हैं पर हमेशा एक घुटीघुटी आवाज निकाल पाते हैं : खड़खड़. वैसे ही पापाजी के मुरझाए होंठ तेजी से हिले पर आवाज निकली सिर्फ, ‘‘आहो.’’

पापाजी लड़के के सामने बात नहीं कर रहे थे, सो मेरे कहने पर वह भारी पांव से बाहर चला गया.

‘‘चलो पापाजी, अच्छा हुआ, मेरे फोन करने से वह आप को घर तो ले आया. लेकिन आप पहले से ज्यादा परेशान दिख रहे हैं?’’

पापाजी कुछ बोले नहीं, उन की आंख में फिर एक डर था. पर इस डर को देख कर मैं पहली बार की तरह गौरवान्वित महसूस नहीं कर रहा था. एक अनजान भय से मेरी धड़कन रुकने लगी थी. पापाजी रो रहे थे, पानी की बूंदों से नम दो पत्ते अब हिल नहीं पा रहे थे. बोलना शायद पापाजी के लिए संभव न था. वे मुड़े और पीठ मेरी तरफ कर दी. कुरता उठा तो मैं एकदम सकपका गया. उन की खाल जगहजगह से उधड़ी हुई थी. कुछ निशान पुराने थे और कुछ एकदम ताजे, शायद यहां लाने के ठीक पहले लगे हों.

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‘‘यह क्या है, पापाजी?’’

‘पुत्तर, तू ने फोन किया, ठीक किया, लेकिन यह क्यों बता दिया कि मेरे पास 3 लाख रुपए हैं?’’

‘‘फिर आज आप को यहां कैसे लाया गया?’’

‘‘मैं ने कहा कि रुपए कहां हैं, यह मैं तुझे ही बताऊंगा… पुत्तर जी, पुत्तर मुझे बचा लो, ओए पुत्तर जी, मुझे…’’ पापाजी फूटफूट कर रो रहे थे.

दिल की आवाज: क्या शर्तों में बंधकर काम कर पाया अविनाश?

आज सुबह से ही अविनाश बेहद व्यस्त था. कभी ईमेल पर, कभी फोन पर, तो कभी फेसबुक पर.

‘‘अवि, नाश्ता ठंडा हो रहा है. कब से लगा कर रखा है. क्या कर रहे हो सुबह से?’’

‘‘कमिंग मम्मा, जस्ट गिव मी फाइव मिनट्स,’’ अविनाश अपने कमरे से ही चिल्लाया.

‘‘इतने बिजी तो तुम तब भी नहीं थे जब सीए की तैयारी कर रहे थे. हफ्ता हो गया है सीए कंप्लीट हुए, पर तब से तो तुम्हारे दर्शन ही दुर्लभ हो गए हैं या तो नैट से चिपके रहते हो या यारदोस्तों से, अपने मांबाप के लिए तो तुम्हारे पास समय ही नहीं बचा है,’’ अनुराधा लगातार बड़बड़ किए जा रही थी. उस की बड़बड़ तब बंद हुई जब अविनाश ने पीछे से आ कर उस के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘कैसी बात कर रही हो मम्मा, तुम्हारे लिए तो टाइम ही टाइम है. चलो, आज तुम्हें कहीं घुमा लाऊं,’’ अविनाश ने मस्ती की.

‘‘रहने दे, रहने दे. घुमाना अपनी गर्लफ्रैंड को, मुझे घुमाने को तो तेरे पापा ही बहुत हैं, देख न कब से घुमा रहे हैं. अब मेरे साथ 2-3 दिन के लिए भैया के पास चलेंगे. वे लोग कब से बुला रहे हैं, कह रहे थे पिताजी क्या गए कि तुम लोग तो हमें बिलकुल ही भूल बैठे हो. आनाजाना भी बिलकुल बंद कर दिया,’’ अनुराधा ने नाश्ता परोसते हुए शिकायती लहजे में कहा. उसे अच्छे से पता था कि पीछे खड़े पतिदेव मनोज सब सुन रहे हैं.

‘‘बेटे से क्या शिकायतें हो रही हैं मेरी. कहा तो है दिसंबर में जरूर वक्त निकाल लूंगा, मगर तुम्हें तो मेरी किसी बात का भरोसा ही नहीं होता,’’ मनोज मुंह में टोस्ट डालते हुए बोले. टोस्ट के साथ उन के वाक्य के आखिरी शब्द भी पिस गए.

‘‘तो अब आगे क्या प्लान है अवि?’’ डायनिंग टेबल पर मनोज ने अविनाश से पूछा.

‘‘इस के प्लान पूछने हों तो इसे ट्विट करो. यह अपने दोस्तों के संग न जाने क्याक्या खिचड़ी पकाता रहता है. हमें यों कहां कुछ बताएगा.’’ अनुराधा का व्यंग्य सुन कर अविनाश झल्ला गया. उसे झल्लाया देख मनोज ने बात संभाली.

‘‘तुम चुप भी करो जी, जब देखो, मेरे बेटे के पीछे पड़ी रहती हो. कितना होनहार बेटा है हमारा,’’ मनोज ने मस्का मारा तो अविनाश के चेहरे पर मुसकान दौड़ आई.

‘‘हां, तो बेटा मैं पूछ रहा था कि आगे क्या करोगे?’’

‘‘वो पापा… सीए कंप्लीट होने के बाद दोस्त लोग कब से पार्टी के लिए पीछे पड़े हैं, सोच रहा हूं आज उन्हें पार्टी…’’ अविनाश की सवालिया नजरें मनोज से पार्टी के लिए फंड की रिक्वैस्ट कर रही थीं. अविनाश की शौर्टटर्म फ्यूचर प्लानिंग सुन मनोज ने अपना सिर पीट लिया.

‘‘मेरा मतलब है आगे… पार्टी, मौजमस्ती से आगे… कुछ सोचा है… नौकरी के बारे में,’’ मनोज ने जोर दे कर पूछा.

‘‘अ…हां…सौरी…वो… पापा दरअसल… एक कंसलटेंसी फर्म में अप्लाई किया है.

2-3 दिन में इंटरव्यू के लिए काल करेंगे. होपफुली काम बन जाएगा.’’

‘‘गुड.’’

‘‘पापा, वह पार्टी…’’

‘‘ठीक है, प्लान बना लो.’’

‘‘प्लान क्या करना पापा… सब फिक्स्ड है,’’ अविनाश ने खुशी से उछलते हुए कहा तो अनुराधा और मनोज एकदूसरे का मुंह ताकने लगे.

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24 साल का स्मार्ट, चुलबुला अविनाश पढ़ाई में जितना तेज था शरारतों में भी उतना ही उस्ताद था. उस के दोस्तों का बड़ा ग्रुप था, जिस की वह जान था. अपने मातापिता की आंखों का इकलौता तारा जिसे उन्होंने बेहद लाडप्यार से पाला था. वह अपने भविष्य के प्रति अपनी जिम्मेदारियां बखूबी समझता था इसलिए अनुराधा और मनोज उस की मौजमस्ती में बेवजह रोकटोक नहीं करते थे. उस के 2 ही शौक थे, दोस्तों के साथ मौजमस्ती करना और तेज रफ्तार बाइक चलाना. कभीकभी तो वह बाइक पर स्टंट दिखा कर लड़कियों को प्रभावित करने की कोशिश भी करता था.

आज अविनाश के लिए बहुत बड़ा दिन था. उस ने एक प्रतिष्ठित एकाउंटेंसी फर्म में इंटरव्यू क्लीयर कर लिया था. कैरियर की शुरुआत के लिए यह उस की ड्रीम जौब थी. स्वागत कक्ष में बैठे अविनाश को अब एचआर की काल का इंतजार था.

‘‘मि. अविनाश, प्लीज एचआर राउंड के लिए जाइए.’’ काल आ गई थी. एचआर मैनेजर ने अविनाश को उस के जौब प्रोफाइल, सैलरी स्ट्रैक्चर, कंपनी की टर्म और पौलिसी के बारे में समझाया और एक स्पैशल बांड पढ़ने के लिए आगे बढ़ाया, जिसे कंपनी जौइन करने से पहले साइन करना जरूरी था.

‘‘यह कैसा अजीब सा बांड है सर, ऐसा तो किसी भी कंपनी में नहीं होता.’’ बांड पढ़ कर अविनाश सकते में आ गया.

‘‘मगर इस कंपनी में होता है,’’ एचआर मैनेजर ने मुसकराते हुए जवाब दिया. बांड वाकई अजीब था. कंपनी की पौलिसी के अनुसार कंपनी के प्रत्येक कर्मचारी को कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक था. मसलन, अगर कर्मचारी कार चलाता है तो उसे सेफ्टी बैल्ट लगानी अनिवार्य होगी, अगर कर्मचारी टू व्हीलर चलाता है तो उसे हेलमेट पहनना और नियमित स्पीड पर चलना अनिवार्य होगा. जो कर्मचारी इन नियमों का उल्लंघन करता पाया गया उसे न सिर्फ अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा, बल्कि जुर्माना भी भरना पड़ेगा.

अविनाश के भीतर उबल रहा गुस्सा उस के चेहरे और माथे की रेखाओं से स्पष्ट दिख रहा था. वह बेचैन हो उठा. यह क्या जबरदस्ती है. अव्वल दरजे की बदतमीजी है. सरासर तानाशाही है. क्यों पहनूं मैं हेलमेट? हेलमेट वे पहनते हैं जिन्हें अपनी ड्राइविंग पर भरोसा नहीं होता, जिन के विचार नकारात्मक होते हैं, जिन्हें सफर शुरू करने से पहले ही दुर्घटना के बारे में सोचने की आदत होती है.

मैं ऐसा नहीं हूं और मेरे बालों का क्या होगा, कितनी मुश्किल से मैं इन्हें सैट कर के रखता हूं, हेलमेट सारी की सारी सैटिंग बिगाड़ कर रख देगा. कितना कूल लगता हूं मैं बाइक राइडिंग करते हुए. हेलमेट तो सारी पर्सनैलिटी का ही कबाड़ा कर देता है और फिर मेरे इंपोर्टेड गौगल्स… उन्हें मैं कैसे पहनूंगा, क्या दिखता हूं मैं उन में.

‘‘कहां खो गए अविनाश साहब… ’’ मैनेजर के टोकने पर अविनाश दिमागी उधेड़बुन से बाहर निकला.

‘‘सर, मैं इस बांड से कनविंस नहीं हूं. ऐसे तो हमारे देश का ट्रैफिक सिस्टम भी हेलमेट पहनने को ऐनफोर्स नहीं करता, जैसे आप की कंपनी कर रही है.’’

‘‘तभी तो हमें करना पड़ रहा है. खैर, यह तो कंपनी के मालिक का निर्णय है, हम कुछ नहीं कर सकते. यह सरकारी कंपनी तो है नहीं, प्राइवेट कंपनी है सो मालिक की तो सुननी ही पड़ेगी. अगर जौब चाहिए तो इस पर साइन करना ही पड़ेगा.’’

अविनाश कुछ नहीं बोला तो उस का बिगड़ा मिजाज देख कर मैनेजर ने उसे फिर कनविंस करने की कोशिश की, ‘‘वैसे आप को इस में क्या समस्या है. यह तो मैं ने भी साइन किया था और यह आप की भलाई के लिए ही है.’’

‘‘मुझे फर्क पड़ता है सर, मैं एक पढ़ालिखा इंसान हूं. अपना बुराभला समझता हूं. भलाई के नाम पर ही सही, आप मुझे किसी चीज के लिए फोर्स नहीं कर सकते.’’

‘‘देखो भई, इस कंपनी में नौकरी करनी है तो बांड साइन करना ही पड़ेगा. आगे तुम्हारी मर्जी,’’ मैनेजर हाथ खड़े करते हुए बोला.

‘‘ठीक है सर, मैं सोच कर जवाब दूंगा,’’ कह कर अविनाश वहां से चला आया, मगर मन ही मन वह निश्चय कर चुका था कि अपनी आजादी की कीमत पर वह यहां नौकरी नहीं करेगा.

‘‘कैसा रहा इंटरव्यू, क्या हुआ,’’ अविनाश का उदास रुख देख कर मनोज ने धीमे से पूछा.

‘‘इंटरव्यू अच्छा हुआ था, एचआर राउंड भी हुआ मगर…’’

‘‘मगर क्या…’’ फिर अविनाश ने पूरी रामकहानी सुना डाली.

‘‘अरे, तो क्या हुआ, तुम्हें बांड साइन करना चाहिए था. इतनी सी बात पर तुम इतनी अच्छी नौकरी नहीं छोड़ सकते.’’

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‘‘पर पापा, मुझे नहीं जम रहा. मुझे हेलमेट पहनना बिलकुल पसंद नहीं है और बांड के अनुसार अगर मैं कभी भी बिदआउट हेलमेट टू व्हीलर ड्राइव करता पकड़ा गया तो न सिर्फ मेरी नौकरी जाएगी बल्कि मुझे भारी जुर्माना भी अदा करना पड़ेगा.’’

‘‘देखो, अवि, अब तुम बड़े हो गए, अत: बचपना छोड़ो. तुम्हारी मां और मैं पहले से ही तुम्हारी ड्राइविंग की लापरवाही से काफी परेशान हैं. इस नौकरी को जौइन करने से तुम्हारा कैरियर भी अच्छे से शुरू होगा और हमारी चिंताएं भी मिट जाएंगी,’’ पापा का सख्त सुर सुन कर अविनाश ने बात टालनी ही बेहतर समझी.

‘‘देखूंगा पापा.’’ वह उठ कर अपने कमरे में चला गया, मगर मन ही मन बांड  पर किसी भी कीमत पर साइन न करने की ही बात चल रही थी. विचारों में डूबे अविनाश को फोन की घंटी ने सजग किया.

‘‘हाय अवि, रितेश बोल रहा हूं, कैसा है,’’ उस के दोस्त रितेश का फोन था.

‘‘ठीक हूं, तू सुना क्या चल रहा है.’’

‘‘कल सुबह क्या कर रहा है.’’

‘‘तो सुन, कल नोएडा ऐक्सप्रैस हाईवे पर बाइक रेसिंग रखी है. पूरे ग्रुप को सूचित कर दिया है. तू भी जरूर आना. सुबह 6 बजे पहुंच जाना.’’

‘‘ठीक है.’’

बाइक रेसिंग की बात सुन कर अविनाश का बुझा दिल खिल उठा. यही तो उस का प्रिय शौक था. अकसर जिम जाने का बहाना कर वह और उस के कुछ दोस्त बाइक रेसिंग किया करते थे और अधिकतर वह ही जीतता था. हारने वाले जीतने वाले को मिल कर पार्टी देते, साथ ही कोई न कोई प्राइज आइटम भी रखा जाता. अपना नया टचस्क्रीन मोबाइल उस ने पिछली रेस में ही जीता था.

रात को अविनाश ने ठीकठाक सोचा, मगर रात को उसे बुखार ने जकड़ लिया. वह सुबह चाह कर भी नहीं उठ पाया. फलस्वरूप उस की रेस मिस हो गई. सुबह जब वह देर तक बिस्तर पर निढाल पड़ा रहा तो मनोज ने उसे क्रोसीन की गोली दे कर लिटा दिया. थोड़ी देर बाद जब बुखार कम हुआ तो वह थोड़ा फ्रेश फील कर रहा था, मगर सुबह का प्रोग्राम खराब होने की वजह से उस का मूड ठीक नहीं था.

‘‘अरे अवि, जरा इधर आओ, देखो तो अपने शहर की न्यूज आ रही है,’’ ड्राइंगरूम से पापा की तेज आवाज आई तो वह उठ कर ड्राइंगरूम में गया.

टीवी पर बारबार ब्रैकिंग न्यूज प्रसारित हो रही थी. आज सुबह नोएडा ऐक्सप्रैस हाईवे पर बाइक रेसिंग करते हुए कुछ नवयुवकों की एक ट्रक से भीषण टक्कर हो गई. उन में से 2 ने मौके पर ही दम तोड़ दिया तथा 3 गंभीर रूप से घायल हैं. उन की हालत भी नाजुक बताई जा रही थी. घटना की वजह बाइक सवारों की तेज रफ्तार और हेलमेट न पहनना बताई जा रही थी. टीवी पर नीचे नवयुवकों के नाम प्रसारित हो रहे थे. अनिल, रितेश, सुधांशु, एकएक नाम अविनाश के दिलोदिमाग पर गाज बन कर गिर रहा था. ये सब उसी के दोस्त थे. आज उसे अगर बुखार न आया होता तो इस लिस्ट में उस का नाम भी जुड़ा होता. अविनाश जड़ बना टीवी स्क्रीन ताक रहा था.

दिमाग कुछ सोचनेसमझने के दायरे से बाहर जा चुका था. मनोज आजकल की पीढ़ी के लापरवाह रवैए को कोस रहे थे. मां दुर्घटना के शिकार युवकों के मातापिता के हाल की दुहाई दे रही थी और अविनाश… वह तो जैसे शून्य में खोया था. उसे तो जैसे आज  एक नई जिंदगी मिली थी.

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‘‘अवि, तुम बांड साइन कर कब से नौकरी जौइन कर रहे हो,’’ मनोज ने अविनाश की तरफ घूरते हुए सख्ती से पूछा.

‘‘जी पापा, आज जाऊंगा,’’ नजरें नीची कर अविनाश अपने कमरे में चला गया. आवाज उस की स्वीकृति में जबरदस्ती नहीं, बल्कि उस के अपने दिल की आवाज थी.

शरीर के विषैले पदार्थों को बाहर करना है तो आज ही अपनाएं ये 6 चीजें

खराब खानपान, शराब का सेवन, अनियमित दिनचर्या और भी ना जाने कितने कारक हैं जिनसे हमारा स्वास्थ्य नकारात्मक ढंग से प्रभावित होता है. इस तरह की चीजों से हमारे शरीर में विषाक्त पदार्थ पैदा होने लगते हैं. ये हमारे अंगों का काफी नुकसान करते हैं. लीवर का काम होता है शरीर में पैदा होने वाली गंदगी को साफ करना. अगर इन विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर नहीं किया जाए तो वो हमारे अंगों को बाधा पहुंचाते हैं. दवाइयों से बेहतर है कि आप इन तरीकों से प्राकृतिक तरीकों से शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकाल लें. इस खबर में हम आपको कुछ प्राकृतिक उपायों के बारे में बताएंगे जिनकी मदद से आप इन विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल सकेंगे.

अदरक

अदरक का एंटी इन्फ्लैमेटरी गुण खास होता है. यह मेटाबौलिज्म दुरुस्त करने में मदद करता है और हमारे टौक्सिन्स फ्लश करने के साथ लिवर के काम करने की क्षमता भी बढ़ाता है.

लहसुन

एंटीऔक्सिडेंट का प्रमुख स्रोत होता है लहसुन. यह एक प्राकृतिक डिटौक्सिफाइंग एजेंट है. आपको बता दें कि लहसुन में पाए जाने वाले एलिसिन में एंटी वायरल, एंटी बैक्टीरियल, एंटी फंगल और एंटी औक्सिडेंट के गुण होते हैं.

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शहद, नींबू और गर्म पानी

शरीर से सारे टॉक्सिन्स को निकालने का सबसे बेहतर तरीका है कि आप सुबह-सुबह शहद और नींबू के साथ गर्म पानी पिएं. शरीर की एसिडिटी का संतुलन बनाने के लिए भी ये काफी कारगर है. इसके लिए एक ग्लास पानी में एक चम्मच शहद और नींबू निचोड़ लें. अच्छे से पानी में घोल लें. इसको नियमित तौर पर सेवन करना काफी असरदार होता है.

फाइबर वाले खाद्य पदार्थ

फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ शरीर से विषैले पदार्थों को शरीर से निकालने में अहम भूमिका निभाते हैं. अपने खाने में साबूत अनाज, सब्जियां और फलों को शामिल कर आप इन परेशानियों से निजात पा सकते हैं.

एलोवेरा जूस

एलोवेरा जूस का नियमित सेवन करने से आपके शरीर के जहरीले रसायन शरीर से बाहर हो जाते हैं. रोज सुबह एलोवेरा का जूस पीना बेहद फायदेमंद होता है.

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ग्रीन टी

ग्रीन टी में एंटीऔक्सिडेंट भरपूर मात्रा में पाया जाता है. शरीर की अनचाही गंदगी को साफ करने में ग्रीन टी काफी मददगार होता है. लिवर के फंक्शन को बेहतर करने में ये काफी असरदार होता है.

Valentine’s Special: हैप्पी मैरिड लाइफ के लिए आज से ही फौलो करें ये 10 टिप्स

शादीब्याह कोई भी करवाए पर निभाना तो पतिपत्नी को ही पड़ता है. विवाह न केवल दो परिवारों का मेल है बल्कि उन की जीवनदिशा बदलने वाला प्रमुख कारक भी है. सुखी दंपतियों का जीवन उन जोड़ों से निसंदेह अलग होता है जो प्रेमसुख नहीं भोग पाते.

प्यार का इजहार करें :

सफल दांपत्य चाहते हैं तो प्रेम को प्रकट करते रहें यानी उस का इजहार बेहद जरूरी है. प्यार के दो बोल बोलना स्पर्श सुख जैसा है. अभिव्यक्ति में कभी कंजूसी न करें. एकदूसरे के प्रति आत्मीयता प्रकट करते रहें. आतेजाते ‘आई लव यू’ या ‘तुम कितने अच्छे हो’ कहने से संबंधों में गरमाहट बनी रहती है.

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एकदूसरे को स्पर्श करें :

कभी अपने पार्टनर का हाथ पकड़ लीजिए तो कभी आलिंगन करिए. एक रोमांटिक किस या प्यारभरा बाय या वैलकम की एक मीठी चुटकी से आप का पार्टनर पूरा दिन तरोताजा महसूस करेगा. इस से न सिर्फ प्यार बढ़ता है बल्कि एकदूसरे के रिश्तों में मिठास भी घुलती है.

प्रेम को यौन अभिव्यक्ति दें :

जीवन के प्रारंभिक आवेगपूर्ण वर्ष बीत जाने पर भी काम संबंधों को जीवंत रखें. ऐसा नहीं कि सैक्स संबंध ही विवाह का आधार हैं पर ये हैं बहुत महत्त्वपूर्ण. पतिपत्नी के बीच आत्मीयता में ये अंतरंग भूमिका निभाते हैं.

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एकदूसरे की तारीफ करें :

एकदूसरे की अच्छाइयों को परखें और उन की सराहना करें. यदाकदा अपने जीवनसाथी को पाने का गौरव भी जताएं. सकारात्मक दृष्टिकोण से किसी को भी जीता जा सकता है.

संबंधों में पारदर्शिता बरतें :

एकदूसरे की अंतरंग बातों में साझेदार बनें. कुछ भी न छिपाएं. भावों, विचारों, आशाओं और आकांक्षाओं के उतने ही भागीदार बनें जितने हानि, क्रोध, तड़प, लज्जाजनक व दर्दभरी अनुभूतियों के. इस से संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी.

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सुखदुख में साथ रहें :

बीमारी व संकट के क्षणों में एकदूसरे का साथ निभाएं.  बुरे वक्त पर दिया एकदूसरे का साथ रिश्तों की नई परिभाषा गढ़ता है.

यदाकदा उपहार दें :

जन्मदिन, नववर्ष, शादी की वर्षगांठ, वैलेंटाइन डे या कोई भी अवसर हो, एकदूसरे को उपहार देते रहें. उपहारों का मूल्यवान होना आवश्यक नहीं है बल्कि साथी के चेहरे पर झलकता उल्लास व संतोष इस का पुरस्कार है.

कभीकभी सरप्राइज दें :

रुटीन लाइफ कभीकभी बोरिंग हो जाती है. बोरियत के लमहों से बचने के लिए अपने साथी को प्यारे सरप्राइज देते रहें. कभी उस का कोई काम, उस की अनुपस्थिति में कर के, कभी उस की पसंदीदा वस्तु भेंट कर के तो कभी फेवरिट डिश बना कर आप उसे चकित कर सकते हैं.

कमियां और खूबियां स्वीकारें :

एकदूसरे की कमियों और खूबियों को अंगीकार करें और एकदूसरे के प्रति गरिमा और उदारतापूर्ण आचरण रखें. ध्यान रखें कि पूर्ण तो कोई भी नहीं होता.

टोकाटाकी न करें :

एकदूसरे को रिलेशनशिप में पर्याप्त स्पेस देना भी जरूरी है. अगर पति अपने दोस्तों के साथ ऐंजौय करना चाहते हैं तो करने दें. अगर पत्नी सहेलियों के साथ शौपिंग के लिए जाना चाहती हैं तो रोकिए मत.

अकसर शादियां छोटेछोटे कारणों से असफल हो जाती हैं. जैसे एकदूसरे को न समझ पाना, कार्यस्थल के तनाव, धैर्य की कमी, साथ में क्वालिटी टाइम न बिता पाना, प्रोत्साहन की कमी या एकदूसरे पर अपनी इच्छाएं थोपना आदि. इन सभी कारकों को समझते हुए यदि थोड़ी सी सावधानी बरती जाए व मेहनत की जाए तो न केवल आप बन सकते हैं सफल दंपती बल्कि अपने निजी जीवन में भी सफलता के नए मानदंड छू सकते हैं.

Anupamaa: अनुपमा और अनुज की डेट नाइट होगी खराब, सामने आएगा बेटे के अफेयर का सच?

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में वैलेंटाइन स्पेशल एपिसोड दिखाया जा रहा है. इसमें अनुज-अनुपमा, काव्या-वनराज, किंजल-पारितोष, समर-नंदिनी ये जोड़ियां अपने पार्टनर से प्यार का इजहार करने वाले हैं, लेकिन वैलेंटाइन डे के दिन बड़ा ट्विस्ट दिखाया जाएगा. इससे किंजल की जिंदगी में तूफान आने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में.

एक रिपोर्ट के मुताबिक शो के अपकमिंग एपिसोड में वैलेंटाइन डे के सेलिब्रेशन के दौरान एक नई लड़की की एंट्री होगी. इस लड़की से पारितोष का अफेयर दिखाया जाएगा. दरअसल अनुपमा और अनुज के डेट नाइट के दौरान किंजल का फोन आएगा. किंजल अनुपमा को पारितोष के बारे में बताएगी. जिससे अनुपमा परेशान हो जाएगी और ऐसे में उसकी डेट नाइट खराब होगी.

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शो में आप ये भी देखेंगे कि अनुपमा वैलेंटाइन डे के दिन अनुज का फेवरेट खाना बनाती है. दोनों रोमांटिक मूड में होते हैं तभी बा का फोन आता है. बा कहती है कि अनुपमा अनुज को अपने घर में क्यों रखी है, जब समर वहां नहीं था.

 

बा आगे ये भी कहेगी कि समाज उसके और अनुज के चरित्र पर सवाल उठाएगा और वह सबका जीना मुश्किल कर रही हैं. बा बताती है कि पाखी पूरा दिन फोन पर बात करती है और किंजल- तोषू एक दूसरे से बात नहीं कर रहे हैं. तो दूसरी तरफ अनुज बा और अनुपमा की बातें सुन लेता है.

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शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि बापूजी घरवालों को बताते हैं कि अनुज और अनुपमा जल्द ही अपना बिजनेस शुरू करने वाले हैं. ये सुनते ही वनराज के होश उड़ जाते है. दूसरी तरफ वनराज तोषु से बताता है कि अनुज ने बिजनेस तो दे दिया, लेकिन अपने सारे पार्टनर्स साथ ले गया.

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Karan Kundra ने तेजस्वी प्रकाश से किया प्यार का इजहार, देखें Video

बिग बॉस 15 के फेमस कपल करण कुंद्रा (Karan Kundra) और तेजस्वी प्रकाश (Tejasswi Prakash) अपने रिलेशनशिप को लेकर सुर्खियों में छाये हुए हैं. दोनों आए दिन एक-दूसरे के साथ फोटोज और वीडियोज शेयर करते रहते हैं. करण ने वैलेंटाइन्स डे (Valentine’s Day) के मौके पर तेजस्वी को स्पेशल फील करवाने के लिए सोशल मीडिया पर एक बेहद प्यार वीडियो शेयर किया है. इसके साथ ही उन्होंने वीडियो को अपनी आवाज दी है.

करण कुंद्रा (Karan Kundrra) ने इंस्टाग्राम पर तेजस्वी प्रकाश (Tejasswi Prakash) के लिए एक बेहद ही खूबसूरत वीडियो शेयर करते हुए रोमांटिक कैप्शन लिखा है, ‘जब मैं दुआ करता हूं तब मैं तुझे भी उसमें दो बार याद करता हूं लड्डू’ उस लड़की को हेप्पी वैलेंटाइन्स डे, जिसने मेरे दिल को खुशनुमा बना दिया है.’

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इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि दोनों की बिग बॉस 15 के घर के अंदर की खट्टी-मीठी यादें हैं. इसमें करण कहते हैं, ‘तुम जैसी हो, मुझे पसंद हो, मैं इज्जत करता हूं, जो इंसान तू है. हम बहुत अलग टाइप के लोग हैं. हम रोज लड़ेंगे. कपल्स में तो लड़ाई होती है. मुझे फिर तुझे मनाना होता है. ये मेरा हक है.’

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खबरों के अनुसार, तेजस्वी ने बताया था कि उन्होंने वैलेन्टाइन डे के लिए कुछ प्लान नहीं बनाया है. उन्हें सेट पर बहुत सारा काम है. तो वहीं, करण ने कहा था कि ‘यह हमारा पहला वेलेंटाइन है इसलिए ये स्पेशल होगा. मुझे पता है कि उसे बहुत ज्यादा तामझाम पसंद नहीं है क्योंकि वह बहुत सिंपल है.

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Valentine’s Special: इन 10 टिप्स को अपनाएं और मैरिड लाइफ को बोरियत से बचाएं

नीलू अपनी शादी के दिनों को याद कर अभी भी शरमा जाती है. बच्चे बेशक बड़े हो गए हैं लेकिन नीलू आज भी खूबसूरत दिखती है. वह बात भी उतनी ही नजाकत से करती है. वह कहती है, ‘‘मेरी शादी 17 वर्ष में ही हो गई थी. सास व घर के अन्य सदस्य पुराने खयालात के थे. उस वक्त हनीमून कोई माने नहीं रखता था. मैं ने हनीमून पर चलने के लिए पति को कहा तो उन्होंने अपनी मम्मी से बात करने से इनकार कर दिया. हम ने अपना हनीमून घर पर ही मनाया.

‘‘सुबह की पहली किरण ने खिड़कियों से झांका तो पति ने मेरे कानों में हौले से फुसफुसा कर ‘आई लव यू’ बोला था. हम ने घर पर ही नए अंदाज में अपने रिश्ते को जोड़ा.

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‘‘विवाह के कुछ ही दिनों के बाद दीवाली का त्योहार था. वह दीवाली मैं कभी नहीं भूल सकती. तब से ले कर अब तक न जाने कितनी दीवाली आईं पर पति के साथ रोशनी में डूबी वह पहली दीवाली की रात यादगार है, जिस में था पति का प्यार, सामीप्य और रिश्तों की नजदीकियां.’’

रिश्तों में खिंचाव न लाएं

मनोवैज्ञानिक डा. मनोज कहते हैं, ‘‘शादी के कुछ समय बाद ही पतिपत्नी के रिश्ते में खिंचाव सा पैदा होने लगता है. दोनों एकदूसरे से बहुत सी आशाएं रख कर चलते हैं. एकल परिवार में रहते हुए, काम की अधिकता न होने के कारण पत्नी तो प्यार में सराबोर रहती है लेकिन पति व्यस्तता के चलते पत्नी के प्यार को समझते हुए भी उसे अपना समय नहीं दे पाता है. नतीजतन, दोनों एकदूसरे को ले कर तनाव, खिंचाव महसूस करने लगते हैं.’’ पति समय नहीं दे पा रहे, यह सोच कर दुखी व डिप्रैश्ड न हों. एकदूसरे को मैसेज कर के कनैक्टेड रहें व समय की कमी को भूल जाएं. पत्नी को पति के काम की अहमियत समझनी चाहिए. समय के हर पल में पत्नी को खुशी ढूंढ़ने की कोशिश करनी चाहिए.

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जोश बनाए रखें

पतिपत्नी का एकदूसरे को लुभाना, खुश रखना आदि बातें वैवाहिक जीवन की ऊर्जा हैं. इसे बुझने न दें. बच्चों के बड़े हो जाने पर भी पत्नी पति की तरफ ध्यान देना न छोड़े. यह भी सच है कि बच्चों के कारण जिम्मेदारी बढ़ती है लेकिन पतिपत्नी दोनों ही इस बात को समझते हुए एकदूसरे के प्रति अपने आकर्षण को कम न होने दें. दैनिक जिम्मेदारियों के बाद जब भी समय मिले एकदूसरे को समय दें व एकदूसरे का शुक्रिया अदा करें.

अनोखे अंदाज में करें स्वागत

एक ही ढर्रे की घर की सैटिंग में बदलाव लाने की कोशिश करें. बैडरूम को ताजे फूलों से सजाएं. बैड पर पति के पसंद का बैडकवर बिछाएं. कभीकभार अपने घर को, अपने बैडरूम को सजानेसंवारने का काम करें. सजे घर के हर कोने को रूमफ्रेशनर से महकाएं. काम से लौटते पति का संजसंवर कर इंतजार करें. पति को भरपूर लुत्फ देने का प्रयास करें. हर रोज घर लौटते पति को लगे कि आज कुछ अलग हो सकता है. जीवन के रोमांस को जीवंत रखें.

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पसंदीदा होटल में जाएं

छोटीछोटी प्यारभरी बातें भी नीरस जीवन में खुशी का पुट ला देती हैं. इसलिए जीवन के हर पल का मजा हंसीखुशी लें. मनीषा के पति विनोद को होटल में जाना तो पसंद है लेकिन वे सिजलर्स खाना पसंद करते हैं. मनीषा को सरप्राइज देने के लिए विनोद उसे उस के पसंदीदा होटल में ले गए लेकिन वहां सिजलर का और्डर दिया. मनीषा ने भी विनोद के साथसाथ सिजलर का भरपूर लुत्फ उठाया. यह देख विनोद बहुत खुश हुए. उन दोनों के लिए वह शाम बेहद खास रही. यानी एकदूसरे की रुचियों को पूरा सम्मान दें.

सरप्राइज उपहार दें

उपहारों का लेनदेन पतिपत्नी के रिश्ते में नई जान डालता है. उपहार पा कर पतिपत्नी को एकदूसरे के प्रति अपनेपन व नजदीकी का एहसास होता है. यह उपहार कभी किसी मनपसंद फिल्म का टिकट तो कभी रोमांटिक डिनर का भी हो सकता है. लेकिन ध्यान रखें कि उपहार लेते समय पार्टनर की भावनाएं देखें, न कि उस की कीमत. तभी रिश्तों में प्रगाढ़ता बढ़ेगी.

फिटनेस का रखें खयाल

अकसर शादी के बाद पती पत्नी अपनी देखभाल में कोताही बरतते हैं, वजन बढ़ जाता है. वे सोचने लगते हैं अब किस के लिए सजनासंवरना या फिट रहना. लेकिन इस सोच का विपरीत प्रभाव पड़ता है. दोनों सैक्स करने से कतराने लगते हैं. दूरी बनाने लगते हैं. किसी भी महिला या पुरुष को फिट पार्टनर ही ज्यादा पसंद आता हैं. उम्र के किसी भी पड़ाव पर वे अपने पार्टनर को हमेशा अटै्रक्टिव व ब्यूटीफुल देखना चाहते हैं. सो, अपने जिस्म को फिट रखें. अच्छी बौडी शेप से सैक्स अपील बढ़ती है.

नएनए एक्सपैरिमैंट करें

विवाह के कुछ सालों बाद आमतौर पर पतिपत्नी कुछ नया ट्राई करने में दिलचस्पी नहीं दिखाते. रिश्तों में नयापन लाने के लिए लाइफ को बोरिंग न बनाएं, बल्कि सैक्स में प्यार के नए रंग भरें. झिझक छोड़ कर सैक्स के लिए पहल कर के देखिए, जैसे कामोत्तेजना करने के तरीके में बदलाव, फोरप्ले में समय का बदलाव, क्लाइमैक्स का नया तरीका. ऐसा करने से आप की लाइफ में नयापन और ताजगी बनी रहेगी. आखिरकार यह मान कर चलिए कि जिंदगी जीना एक बात है, जिंदगी दिलचस्प अंदाज के साथ जीना दूसरी बात. और यह संभव है लाइफपार्टनर के साथ आप की ट्यूनिंग से. आज लाइफस्टाइल बदल रहा है तो आप क्यों पीछे रहें. लाइफ बिंदास जीएं, जैसे दीवाली के नन्हे दीए अमावस्या की काली रात को रोशन कर देते हैं वैसे ही प्यार की रोशनी से पतिपत्नी के जीवन में उजाला भरा रहता है.

सस्पैंस व एक्साइटमैंट

प्यार में एक्साइटमैंट भी जरूरी है इसलिए कुछ थ्रिल लाइफ में बना कर रखना चाहिए. यदि पतिपत्नी आपस में इजहार के मामले में अप्रत्याशित सरप्राइज करें तो उस का मजा ही कुछ और है. पति या पत्नी आपस में एकदूसरे को ऐसे कूपन्स गिफ्ट करें जो मसाज, स्पा, हौलीडे प्लान का हिस्सा हों.

सैक्स बनाएं दिलचस्प

अच्छा पार्टनर वही है जो सैक्सुअल फैंटेसी भी शेयर करे. इस से आपस में सैक्सलाइफ का भरपूर आनंद उठाया जा सकता है. सहवास की कल्पनाओं को हकीकत बना कर सैक्स क्रिया को दिलचस्प बनाया जा सकता है. बशर्ते अपनी इच्छा को जाहिर करें व अपने दिल की बात जरूर शेयर करें.

पसंद की जगह जाएं

आपसी रिश्तों में गरमाहट लाने के लिए आपस में बातचीत, हंसीमजाक, चुहलबाजी करें. शादी के शुरुआती दिनों में जिन जगहों पर आप जाते थे, वहां अपने पार्टनर को बहाने से ले जाएं, पुराने सुखद पलों को एक बार फिर से जीएं. घूमने जाएं तो एकदूसरे के हाथों में हाथ डालना न भूलें. अपनी व्यस्तता से कुछ पल निकाल कर दिलचस्प कार्ड का आदानप्रदान करें जिन पर ‘आई लव यू’ लिखा हो.

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