‘2 मई, दीदी गई’ का नारा देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई बयान नहीं आया पर उन में छटपटाहट और हताशा अवश्य होगी. दरअसल, पश्चिम बंगाल के शहरी निकायों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का ‘जयश्रीराम’ का छद्म नारा एक भी शहर में नहीं चला. 107 शहरी निकायों में से 102 पर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने कब्जा कर लिया. धर्म को राष्ट्र का नाम दे व पूजापाठ को विकास का नारा दे कर जो ख्वाब पौराणिक सोच वाली, हेडगेवार, सावरकर व गोलवालकर की अनुयायी, भारतीय जनता पार्टी ने देखा था वह चूर होता प्रतीत हो रहा है क्योंकि वह एकएक कर चुनाव हारती जा रही है.

दक्षिण में तमिलनाडू में भी यही हुआ जब नगर पंचायतों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी समर्थक अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम को न के बराबर सीटें मिलीं और कांग्रेस व द्रविड़ मुनेत्र कषगम के सहयोग वाले गठबंधन ने लगभग सारे जिले जीत लिए. 21 कौर्पोरेशनों, 138 म्युनिसिपैलिटीज और 489 शहरी पंचायतों की 12,500 सीटें में से दोतिहाई से ज्यादा एम के स्टालिन की झोली में जा गिरीं.

ओडिशा के स्थानीय चुनावों की 829 सीटों में से 74 सीटों पर नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल को जीत मिली, दूसरे नंबर पर 42 सीटें भारतीय जनता पार्टी को मिलीं. भाजपा ने 5 वर्षों पहले 297 सीटों पर कब्जा किया था.

नरेंद्र मोदी और अमित शाह की अहंकारी व हर समय लडऩे के मूड वाली राजनीति उत्तर प्रदेश और 4 अन्य विधानसभाओं में ही नहीं पिट रही है, उन राज्यों में भी मार खा रही है जहां भारतीय जनता पार्टी मेहनत से पैर जमा रही थी.

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