डा. आरएस सेंगर, कृशानु और वर्षा रानी

(सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ)

इस बार के बजट 2022-23 में ड्रोन के जरीए कृषि क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाएगा. इस से फसल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण, कीटनाशकों व पोषक तत्त्वों के छिड़काव में मदद मिलेगी. खाद्यान्न उत्पादन में निरंतर वृद्धि जारी है. आंकड़ों के अनुसार, साल 2020-21 के दौरान देश में खाद्यान्न उत्पादन बीते 5 साल में सब से ज्यादा रहा.

सोचने और सम?ाने की बात है कि देश में पिछले कई सालों से हमारी खेती का जो क्षेत्रफल है, वह सीमित है, लेकिन किसानों और वैज्ञानिकों की मदद से हाईटैक खेती को अपनाते हुए खाद्यान्न उत्पादन लगातार बढ़ रहा है, जिस के लिए देश के किसान और वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं.

क्या है ड्रोन?

ड्रोन एक ऐसा मानवरहित विमान है, जिसे दूर से ही नियंत्रित तरीके से उड़ाया जा सकता है. इस के खेती में इस्तेमाल की अपार संभावनाएं हैं. एक सामान्य ड्रोन की संरचना ‘4 विंग’ यानी यह 4 पंखों वाला होता है, इसलिए इसे ‘क्वाडकौप्टर’ भी कहा जाता है. असल में यह नाम इस के उड़ने के चलते इसे मिला.

यह बिलकुल एक मधुमक्खी की तरह उड़ता है और एक जगह पर स्थिर भी रह सकता है. ड्रोन को कई तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है. जैसे, उस के उड़ने की ऊंचाई के आधार पर, उस के आकार के आधार पर, उस के वजन उठाने की क्षमता के आधार पर, उस की पहुंच क्षमता के आधार पर आदि, परंतु मुख्य रूप से इस के वायु गतिकीय के आधार पर वर्गीकृत किया गया है.

किसानों के लिए

ड्रोन फायदेमंद

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ में पिछले दिनों ड्रोन के माध्यम से खेतों में कीटनाशकों व खरपतवारनाशक रसायनों का छिड़काव करने का प्रदर्शन किया गया. इस का उद्घाटन विश्वविद्यालय के कुलपति डा. आरके मित्तल ने किया. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि ड्रोन किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा.

ये भी पढ़ें- खीरे की करें उन्नत खेती

कुलपति डा. आरके मित्तल ने यह भी कहा कि ड्रोन एक तकनीक से भरापूरा होने के चलते युवा पीढ़ी को यकीनन आकर्षित करेगा और खेती की तरफ कदम बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेगा. इस की भविष्य में काफी जरूरत रहेगी. इस समय बहुआयामी क्षमताओं से भरापूरा ड्रोन कृषि उत्पादन में प्रबंधन के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होगा. इस पर भारत के साथसाथ कई दूसरे देशों में रिसर्च जारी है. इस को कृषि के विभिन्न कामों में दक्षता व आसानी से इस्तेमाल में लाया जा सकेगा.

उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भी इस को खरीद कर अपनी खेतीकिसानी में इस्तेमाल कर सकेंगे. अब वह दिन दूर नहीं, जब ड्रोन का रिमोट किसानों के हाथ में होगा. इस के लिए कृषि विश्वविद्यालय कोशिश कर रहा है. परिसर में पिछले दिनों इस का प्रदर्शन कर के इस की संभावनाएं और भी बढ़ा दी हैं.

कुलपति डा. आरके मित्तल ने बताया कि समय व जलवायु परिवर्तन के साथसाथ खेती में जहां समस्याओं का आकार व स्वरूप बदला है, वहीं किसानों पर लागत में कमी लाते हुए ज्यादा उत्पादन का दबाव भी बढ़ा है.

उन्होंने कहा कि जहां पर यह किसानों की सेहत के साथसाथ उन के समय को बचाएगा, वहीं उन के खर्च में भी कमी आएगी और नैनोफर्टिलाइजर आदि का समान रूप से छिड़काव अपने खेत में किसान बहुत ही कम समय में कर सकेंगे.

कृषि में ड्रोन की बढ़ सकेगी भूमिका

ड्रोन कृषि प्रबंधन के संचालन के लिए पारंपारिक हवाई वाहनों की अपेक्षा उच्च परिशुद्धता और कम ऊंचाई की उड़ान भर कर छोटे आकार के खेतों में काम करने की क्षमता रखता है.

ड्रोन खेतों के हालात जानने के लिए डाटा इकट्ठा करने और उन का विश्लेषण करने से कामों में विभिन्न अवयवों व घटकों के उचित और सटीक रूप से प्रबंधन में सहायक सिद्ध हो सकता है.

इस ड्रोन की कीमत तकरीबन 6,00,000 रुपए आती है. इस के टैंक की क्षमता 10 लिटर  है, जिस में दवा भर कर खेत में आसानी से छिड़काव किया जा सकता है. 15 मिनट में तकरीबन एक एकड़ क्षेत्रफल में यह अच्छी तरह छिड़काव करता है. छिड़काव करने पर समय की बचत के साथसाथ लेबर की भी बचत होती है.

ऐसे हालात जहां परंपरागत मशीनों का उपयोग करना चुनौती से भरा है, वहां पर इस का इस्तेमाल किया जा सकता है. जैसे जब किसानों के खेत गीले हों, उस में चलने में मुश्किल हो रही हो. इस के अलावा गीले धान का खेत हो, गन्ना हो, मक्का व कपास की फसल, नारियल और चाय बागान, लीची के बागान, आम के बागान आदि में विभिन्न ऊंचाइयों पर जा कर ड्रो की मदद से आसानी से छिड़काव किया जा सकता है.

सीड कौप्टर ड्रोन से बीजारोपण

देश में कई तरह के ड्रोन विकसित हो चुके हैं, जिस से पब्लिक मौनिटरिंग वार्निंग ड्रोन आदि के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.

आज ड्रोन के जरीए तेजी से बीजारोपण भी किया जा सकता है. अगर बोआई में ड्रोन का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है, तो निश्चित रूप से देश में एक ड्रोन क्रांति जरूर कुछ ही सालों में दिखाई देगी.

कंपनियों द्वारा कई ऐसे ड्रोन विकसित किए गए हैं, जिन से 20 से 25 एकड़ खेत की बोआई कम समय में आसानी से की जा सकती है. इन ड्रोन में एक बार में 25 से 30 किलोग्राम बीज रख कर आसानी से बोआई की जा सकती है. पूरी तरह से स्वचालित यह ड्रोन घंटेभर में तकरीबन 10 एकड़ खेत बो सकता है. ड्रोन से दवा के छिड़काव के लिए किसानों को खुद खेत में नहीं जाना पड़ेगा. इसे भारत में निर्मित सब से बड़ा ड्रोन माना जा रहा है. इसे भारत के किसानों की जरूरतों को ध्यान में रख कर डिजाइन किया गया है.

ये भी पढ़ें- गरमी में भिंडी की खेती

कृषि में देगा रोजगार

ड्रोन रोजगार का एक ऐसा क्षेत्र है, जिस में ड्रोन का परिचालन (पायलटिंग) सीख कर ऐसे नौजवान, जिन की उम्र 18 साल से ज्यादा है, तकरीबन 20,000 से 30,000 रुपए प्रति माह की कमाई आसानी से कर सकेंगे. इस के लिए पायलट के पास प्रशिक्षण प्रमाणपत्र होना जरूरी है.

देशभर में कई सरकारी व गैरसरकारी संस्थाओं ने ड्रोन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू कर दिए हैं. नौजवानों में ड्रोन के प्रति नया जोश देखने को मिल रहा है.

नागर विमानन महानिदेशालय के मुताबिक, ड्रोन को टेकऔफ वेट के अनुसार कुछ भागों में बांटा गया है :

* नैनो 250 ग्राम से कम या बराबर (सूक्ष्म).

* 250 ग्राम से बड़ा और 2 किलोग्राम से कम या बराबर (मिनी).

* 2 किलोग्राम से बड़ा और 25 किलोग्राम से कम या बराबर (बड़ा).

* 150 किलोग्राम से बड़ा.

व्यावसायिक क्षेत्र में इन को उड़ाने के लिए भारत सरकार द्वारा बनाए गए मापदंडों व नियमों का पालन करना अनिवार्य है.

ड्रोन कृषि प्रबंधन के संचालन के लिए पारंपरिक हवाई वाहनों की अपेक्षा उच्च परिशुद्धता और कम ऊंचाई की उड़ान भर कर छोटे आकार के खेतों में काम करने की क्षमता रखता है.

ड्रोन खेतों के हालात जानने के लिए डाटा जमा करने और उन का विश्लेषण करने व ऐसे कामों में विभिन्न आवेदन वाह घटकों के उचित और सटीक रूप से प्रबंधन में सहायक सिद्ध हो सकता है.

ऐसे हालात जहां परंपरागत मशीनों का इस्तेमाल करना चुनौती से भरा साबित हुआ है, वहां पर ड्रोन काफी कामयाब साबित हो सकते हैं. इन के उपयोग से खेती की उत्पादकता को आसानी से बढ़ाया जा सकता है.

उदाहरण के लिए, धान का खेत, गन्ना, मक्का व कपास की फसल, नारियल और चाय बागान, बागबानी के क्षेत्र में, आम के पेड़ों, लीची के पेड़ों, आड़ू आदि के पेड़ों में ड्रोन की उपयोगिता बहुत खास व उपयोगी है, क्योंकि इस टैक्नोलौजी से इन बड़ेबड़े पेड़ों

पर आसानी से समान रूप से दवाओं का छिड़काव कर के रोग नियंत्रण या कीट नियंत्रण में कामयाबी हासिल की जा सकती है.

टैक्नोलौजी के विकास के साथसाथ ड्रोन के कलपुरजे सस्ते और दक्षपूर्ण होंगे. इन से लंबे अंतराल के लिए हवा में सस्ती उड़ान भरी जा सकेगी. इन का उपयोग कृषि प्रबंधन में आर्थिक रूप से भी फायदेमंद साबित होगा. खेती के कामों में उपयोग कर के इसे कम आमदनी का जरीया मान कर युवा पीढ़ी का खेती से मोह भंग हो रहा था, लेकिन अब नई टैक्नोलौजी और ड्रोन जैसी टैक्नोलौजी के आ जाने से लोगों का आकर्षण इस ओर बढ़ेगा और युवा अब गांव में ही रह कर खेती की ओर आकर्षित होंगे और नई टैक्नोलौजी का समावेश कर उच्च गुणवत्तायुक्त फलफूलों का उत्पादन कर सकेंगे.

वह दिन दूर नहीं, जब ड्रोन का रिमोट किसानों के हाथ में होगा और मोबाइल फोन की तरह वे इसे अपने जीवन में तेजी से अपना कर इस से भरपूर फायदे के लिए खेतों पर चलते हुए नजर आएंगे.

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में ड्रोन टैक्नोलौजी का प्रदर्शन और इस की लौंचिंग की गई. इस दौरान देखा गया कि कृषि विश्वविद्यालय के कार्य क्षेत्र में आने वाले विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों के किसानों ने इस टैक्नोलौजी को बहुत नजदीक से इस के प्रदर्शनों को देखा और इस को किसानों के लिए काफी उपयोगी बताया.

कृषि विश्वविद्यालय में ड्रोन के द्वारा किए गए छिड़काव को देख कर किसानों ने खुशी जाहिर की और कहा कि यह तकनीक भविष्य में किसानों के लिए काफी फायदेमंद होगी.

इस अवसर पर प्रेमपाल सिंह, अखिल कुमार, प्रमोद आदि मौजूद रहे.

किसानों का मानना है कि यदि ड्रोन की कीमत कम हो जाती है या फिर सरकारी लैवल पर खरीद कर किसानों को न्यूनतम दर पर छिड़काव के लिए ड्रोन उपलब्ध होते हैं, तो निश्चित रूप से कृषि के क्षेत्र में ड्रोन एक बदलाव लाने में कामयाब साबित होंगे.

ये भी पढ़ें- पूर्वांचल में ड्रैगन फ्रूट की खेती

स बार के बजट 2022-23 में ड्रोन के जरीए कृषि क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाएगा. इस से फसल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण, कीटनाशकों व पोषक तत्त्वों के छिड़काव में मदद मिलेगी. खाद्यान्न उत्पादन में निरंतर वृद्धि जारी है. आंकड़ों के अनुसार, साल 2020-21 के दौरान देश में खाद्यान्न उत्पादन बीते 5 साल में सब से ज्यादा रहा.

सोचने और सम?ाने की बात है कि देश में पिछले कई सालों से हमारी खेती का जो क्षेत्रफल है, वह सीमित है, लेकिन किसानों और वैज्ञानिकों की मदद से हाईटैक खेती को अपनाते हुए खाद्यान्न उत्पादन लगातार बढ़ रहा है, जिस के लिए देश के किसान और वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं.

क्या है ड्रोन?

ड्रोन एक ऐसा मानवरहित विमान है, जिसे दूर से ही नियंत्रित तरीके से उड़ाया जा सकता है. इस के खेती में इस्तेमाल की अपार संभावनाएं हैं. एक सामान्य ड्रोन की संरचना ‘4 विंग’ यानी यह 4 पंखों वाला होता है, इसलिए इसे ‘क्वाडकौप्टर’ भी कहा जाता है. असल में यह नाम इस के उड़ने के चलते इसे मिला.

यह बिलकुल एक मधुमक्खी की तरह उड़ता है और एक जगह पर स्थिर भी रह सकता है. ड्रोन को कई तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है. जैसे, उस के उड़ने की ऊंचाई के आधार पर, उस के आकार के आधार पर, उस के वजन उठाने की क्षमता के आधार पर, उस की पहुंच क्षमता के आधार पर आदि, परंतु मुख्य रूप से इस के वायु गतिकीय के आधार पर वर्गीकृत किया गया है.

किसानों के लिए ड्रोन फायदेमंद

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ में पिछले दिनों ड्रोन के माध्यम से खेतों में कीटनाशकों व खरपतवारनाशक रसायनों का छिड़काव करने का प्रदर्शन किया गया. इस का उद्घाटन विश्वविद्यालय के कुलपति डा. आरके मित्तल ने किया. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि ड्रोन किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा.

कुलपति डा. आरके मित्तल ने यह भी कहा कि ड्रोन एक तकनीक से भरापूरा होने के चलते युवा पीढ़ी को यकीनन आकर्षित करेगा और खेती की तरफ कदम बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेगा. इस की भविष्य में काफी जरूरत रहेगी. इस समय बहुआयामी क्षमताओं से भरापूरा ड्रोन कृषि उत्पादन में प्रबंधन के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होगा. इस पर भारत के साथसाथ कई दूसरे देशों में रिसर्च जारी है. इस को कृषि के विभिन्न कामों में दक्षता व आसानी से इस्तेमाल में लाया जा सकेगा.

उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भी इस को खरीद कर अपनी खेतीकिसानी में इस्तेमाल कर सकेंगे. अब वह दिन दूर नहीं, जब ड्रोन का रिमोट किसानों के हाथ में होगा. इस के लिए कृषि विश्वविद्यालय कोशिश कर रहा है. परिसर में पिछले दिनों इस का प्रदर्शन कर के इस की संभावनाएं और भी बढ़ा दी हैं.

कुलपति डा. आरके मित्तल ने बताया कि समय व जलवायु परिवर्तन के साथसाथ खेती में जहां समस्याओं का आकार व स्वरूप बदला है, वहीं किसानों पर लागत में कमी लाते हुए ज्यादा उत्पादन का दबाव भी बढ़ा है.

उन्होंने कहा कि जहां पर यह किसानों की सेहत के साथसाथ उन के समय को बचाएगा, वहीं उन के खर्च में भी कमी आएगी और नैनोफर्टिलाइजर आदि का समान रूप से छिड़काव अपने खेत में किसान बहुत ही कम समय में कर सकेंगे.

कृषि में ड्रोन की बढ़ सकेगी भूमिका

ड्रोन कृषि प्रबंधन के संचालन के लिए पारंपारिक हवाई वाहनों की अपेक्षा उच्च परिशुद्धता और कम ऊंचाई की उड़ान भर कर छोटे आकार के खेतों में काम करने की क्षमता रखता है.

ड्रोन खेतों के हालात जानने के लिए डाटा इकट्ठा करने और उन का विश्लेषण करने से कामों में विभिन्न अवयवों व घटकों के उचित और सटीक रूप से प्रबंधन में सहायक सिद्ध हो सकता है.

इस ड्रोन की कीमत तकरीबन 6,00,000 रुपए आती है. इस के टैंक की क्षमता 10 लिटर  है, जिस में दवा भर कर खेत में आसानी से छिड़काव किया जा सकता है. 15 मिनट में तकरीबन एक एकड़ क्षेत्रफल में यह अच्छी तरह छिड़काव करता है. छिड़काव करने पर समय की बचत के साथसाथ लेबर की भी बचत होती है.

ऐसे हालात जहां परंपरागत मशीनों का उपयोग करना चुनौती से भरा है, वहां पर इस का इस्तेमाल किया जा सकता है. जैसे जब किसानों के खेत गीले हों, उस में चलने में मुश्किल हो रही हो. इस के अलावा गीले धान का खेत हो, गन्ना हो, मक्का व कपास की फसल, नारियल और चाय बागान, लीची के बागान, आम के बागान आदि में विभिन्न ऊंचाइयों पर जा कर ड्रो की मदद से आसानी से छिड़काव किया जा सकता है.

सीड कौप्टर ड्रोन से बीजारोपण

देश में कई तरह के ड्रोन विकसित हो चुके हैं, जिस से पब्लिक मौनिटरिंग वार्निंग ड्रोन आदि के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.

आज ड्रोन के जरीए तेजी से बीजारोपण भी किया जा सकता है. अगर बोआई में ड्रोन का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है, तो निश्चित रूप से देश में एक ड्रोन क्रांति जरूर कुछ ही सालों में दिखाई देगी.

कंपनियों द्वारा कई ऐसे ड्रोन विकसित किए गए हैं, जिन से 20 से 25 एकड़ खेत की बोआई कम समय में आसानी से की जा सकती है. इन ड्रोन में एक बार में 25 से 30 किलोग्राम बीज रख कर आसानी से बोआई की जा सकती है. पूरी तरह से स्वचालित यह ड्रोन घंटेभर में तकरीबन 10 एकड़ खेत बो सकता है. ड्रोन से दवा के छिड़काव के लिए किसानों को खुद खेत में नहीं जाना पड़ेगा. इसे भारत में निर्मित सब से बड़ा ड्रोन माना जा रहा है. इसे भारत के किसानों की जरूरतों को ध्यान में रख कर डिजाइन किया गया है.

कृषि में देगा रोजगार

ड्रोन रोजगार का एक ऐसा क्षेत्र है, जिस में ड्रोन का परिचालन (पायलटिंग) सीख कर ऐसे नौजवान, जिन की उम्र 18 साल से ज्यादा है, तकरीबन 20,000 से 30,000 रुपए प्रति माह की कमाई आसानी से कर सकेंगे. इस के लिए पायलट के पास प्रशिक्षण प्रमाणपत्र होना जरूरी है.

देशभर में कई सरकारी व गैरसरकारी संस्थाओं ने ड्रोन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू कर दिए हैं. नौजवानों में ड्रोन के प्रति नया जोश देखने को मिल रहा है.

नागर विमानन महानिदेशालय के मुताबिक, ड्रोन को टेकऔफ वेट के अनुसार कुछ भागों में बांटा गया है :

* नैनो 250 ग्राम से कम या बराबर (सूक्ष्म).

* 250 ग्राम से बड़ा और 2 किलोग्राम से कम या बराबर (मिनी).

* 2 किलोग्राम से बड़ा और 25 किलोग्राम से कम या बराबर (बड़ा).

* 150 किलोग्राम से बड़ा.

व्यावसायिक क्षेत्र में इन को उड़ाने के लिए भारत सरकार द्वारा बनाए गए मापदंडों व नियमों का पालन करना अनिवार्य है.

ड्रोन कृषि प्रबंधन के संचालन के लिए पारंपरिक हवाई वाहनों की अपेक्षा उच्च परिशुद्धता और कम ऊंचाई की उड़ान भर कर छोटे आकार के खेतों में काम करने की क्षमता रखता है.

ड्रोन खेतों के हालात जानने के लिए डाटा जमा करने और उन का विश्लेषण करने व ऐसे कामों में विभिन्न आवेदन वाह घटकों के उचित और सटीक रूप से प्रबंधन में सहायक सिद्ध हो सकता है.

ऐसे हालात जहां परंपरागत मशीनों का इस्तेमाल करना चुनौती से भरा साबित हुआ है, वहां पर ड्रोन काफी कामयाब साबित हो सकते हैं. इन के उपयोग से खेती की उत्पादकता को आसानी से बढ़ाया जा सकता है.

उदाहरण के लिए, धान का खेत, गन्ना, मक्का व कपास की फसल, नारियल और चाय बागान, बागबानी के क्षेत्र में, आम के पेड़ों, लीची के पेड़ों, आड़ू आदि के पेड़ों में ड्रोन की उपयोगिता बहुत खास व उपयोगी है, क्योंकि इस टैक्नोलौजी से इन बड़ेबड़े पेड़ों

पर आसानी से समान रूप से दवाओं का छिड़काव कर के रोग नियंत्रण या कीट नियंत्रण में कामयाबी हासिल की जा सकती है.

टैक्नोलौजी के विकास के साथसाथ ड्रोन के कलपुरजे सस्ते और दक्षपूर्ण होंगे. इन से लंबे अंतराल के लिए हवा में सस्ती उड़ान भरी जा सकेगी. इन का उपयोग कृषि प्रबंधन में आर्थिक रूप से भी फायदेमंद साबित होगा. खेती के कामों में उपयोग कर के इसे कम आमदनी का जरीया मान कर युवा पीढ़ी का खेती से मोह भंग हो रहा था, लेकिन अब नई टैक्नोलौजी और ड्रोन जैसी टैक्नोलौजी के आ जाने से लोगों का आकर्षण इस ओर बढ़ेगा और युवा अब गांव में ही रह कर खेती की ओर आकर्षित होंगे और नई टैक्नोलौजी का समावेश कर उच्च गुणवत्तायुक्त फलफूलों का उत्पादन कर सकेंगे.

वह दिन दूर नहीं, जब ड्रोन का रिमोट किसानों के हाथ में होगा और मोबाइल फोन की तरह वे इसे अपने जीवन में तेजी से अपना कर इस से भरपूर फायदे के लिए खेतों पर चलते हुए नजर आएंगे.

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में ड्रोन टैक्नोलौजी का प्रदर्शन और इस की लौंचिंग की गई. इस दौरान देखा गया कि कृषि विश्वविद्यालय के कार्य क्षेत्र में आने वाले विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों के किसानों ने इस टैक्नोलौजी को बहुत नजदीक से इस के प्रदर्शनों को देखा और इस को किसानों के लिए काफी उपयोगी बताया.

कृषि विश्वविद्यालय में ड्रोन के द्वारा किए गए छिड़काव को देख कर किसानों ने खुशी जाहिर की और कहा कि यह तकनीक भविष्य में किसानों के लिए काफी फायदेमंद होगी.

इस अवसर पर प्रेमपाल सिंह, अखिल कुमार, प्रमोद आदि मौजूद रहे.

किसानों का मानना है कि यदि ड्रोन की कीमत कम हो जाती है या फिर सरकारी लैवल पर खरीद कर किसानों को न्यूनतम दर पर छिड़काव के लिए ड्रोन उपलब्ध होते हैं, तो निश्चित रूप से कृषि के क्षेत्र में ड्रोन एक बदलाव लाने में कामयाब साबित होंगे.

 खेती में ड्रोन की उपयोगिता

* कीटनाशक व खरपतवारनाशक रसायनों के छिड़काव में.

* फसल में रोगों व कीटों के स्तर की जांच व उपचार में.

* खेतों की भौगोलिक हालत का आकलन करने में.

* तरल और ठोस उर्वरकों का छिड़काव करने में.

* फसल अवशेषों के अपघटन के लिए छिड़काव करने में.

* सिंचाई व हाइड्रोजैल का छिड़काव करने में.

* खेतों व जंगलों में बीजों का छिड़काव करने में.

* फसल को कीटों व टिड्डियों के आक्रमण से बचाने में.

* मवेशियों व जंगली जानवरों से फसल को बचाने में.

* मृदा के ३ष्ठ मानचित्र के विश्लेषण में.

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