शायनी ने शतांश को सुना पर वह उस के निर्णय से चकित नहीं हुई. वह पल उस के लिए बड़ा ही पीड़ादायक था. मन दरकदरक बिखरने लगा था. अपनेआप को संयत करते हुए वह बोली, ‘‘तुम पुरुष हो शतांश. कुछ भी कह सकते हो. मैं नारी हूं. मुझे तो सिर्फ सुनना है. गलत मैं ही थी जो तुम्हें समझ नहीं पाई. मैं तो यही समझती रही थी कि तुम भी मेरी तरह हमारे प्यार के लिए पजैसिव और प्रोटैक्टिव हो.’’ ठंडी सांस लेते हुए उस ने फिर कहा, ‘‘शतांश, मैं तुम से कुछ जवाब चाहती हूं. स्कूल में मुझे रिझाते समय, अपनी वैलेंटाइन बनाते समय, होटलों में मेरा शरीर भोगते समय और मुझ से विवाह करने का निर्णय लेते समय क्या तुम्हें यह पता नहीं था कि तुम पापाज बौय हो? उन की इच्छा के विरुद्ध कहीं नहीं जा पाओगे? यदि पता था तो मेरी जिंदगी से खिलवाड़ करने का अर्थ क्या था?
‘‘सच क्यों नहीं कहते कि तुम्हारे पापा को मेरे पापा से बड़े दहेज की उम्मीद नहीं है. यह क्यों नहीं कहते कि वे नहीं चाहते कि कोई मध्यवर्गीय युवती उन के खानदान की बहू बने. इस में तुम्हारी भी सहमति है. तुम्हारा मुझ से प्यार तो केवल एक नाटक था,’’ कहते हुए एक दर्द उभर आया था शायनी की आवाज में. उस की आंखें डबडबा उठी थीं. शतांश ने सिर्फ उस के दर्द भरे शब्द सुने. कहा कुछ नहीं. केवल शायनी की आंखों से निकल कर चेहरे पर फिसलते एकएक मोती को गौर से देखता रहा.
‘‘गो,’’ शतांश की चुप्पी पर शायनी लगभग चीख उठी. वह इन बोझिल पलों से शीघ्र ही उबर आना चाहती थी, ‘‘जाओ, शतांश जाओ. आई हेट यू,’’ वह फिर चीखी. पर जब शतांश कुरसी से नहीं उठा तो वह खुद उठ कर रेस्तरां से बाहर चली आई. शायनी शतांश के निर्णय से हताश हो कर घर तो चली आई पर रातभर सो न सकी. मन में तूफान उठ रहा था, जो उसे विचलित किए जा रहा था. वह सोचे जा रही थी कि प्यार तो जिंदगी का संगीत होता है. उस के बिना जीवन सूना हो जाता है इसीलिए उस ने अंत समय तक यह भरसक प्रयास किया था कि उस के प्यार की खुशबू शतांश में बनी रहे.
शतांश उस से कहीं दूर न हो जाए. इसी संशय में मैडिकल की कठिन पढ़ाई के उपरांत उस के लिए लगातार समय निकाला था. सदैव उस की शारीरिक इच्छाएं पूरी की थीं. अपनी तरफ से प्रेम के प्रति ईमानदार बनी रही थी. कभी उसे शिकायत का कोई मौका ही नहीं दिया था. इस से ज्यादा और वह क्या कर सकती थी. अचानक शतांश की बेवफाई को वह क्या समझे? उस के साथ नियति का कू्रर मजाक या फिर शतांश द्वारा दिया गया धोखा. सोचतेसोचते न जाने कब आंख लग गई. सवेरे शायनी को उस के पापा रविराय ने जगाया, ‘‘शायनी, आज कालेज नहीं जाएगी बेटा? देख सूरज सिर पर चढ़ आया है.’’
अलसाते हुए शायनी पलंग पर उठ बैठी. उस ने पापा को पास बैठाते हुए कहा, ‘‘आज कालेज जाने का मन नहीं है,’’ फिर उन की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘पापा, मैं ने फैसला किया है कि मैं शादी नहीं करूंगी.’’ रविराय उस की बात पर जरा भी नहीं चौंके. वे बात की गंभीरता को समझते हुए बोले, ‘‘साफ क्यों नहीं कहती कि शतांश अब तेरी जिंदगी से दूर जा चुका है. मैं कई दिन से महसूस कर रहा था कि अब न तो तेरे लिए उस के फोन आते हैं और न ही तू मुझ से उस के साथ देर रात तक रुकने के लिए अनुमति मांगती है. चल, जो भी हुआ, ठीक हुआ. शायद तुम दोनों एकदूसरे के लिए बने ही नहीं थे.
‘‘बेटे, लाइफ एक बंपी राइड है. यह सपाट और सरल कभी नहीं होती इसलिए संभलो और आगे बढ़ो. नैवर रिग्रैट फौर एनीथिंग,’’ कहते हुए रविराय ने उसे बांहों में बांध कर उस के माथे को चूम लिया.
खनक की कार जब होटल ड्रीमलैंड की पार्किंग में रुकी तो शतांश अपनी कार लौक कर के उस के आने का इंतजार करने लगा. खनक ने कार से उतरते ही शतांश से कहा, ‘‘मैं समझती हूं, हमें अंदर रेस्तरां में जाने की कोई आवश्यकता नहीं है. अपने विवाह के संबंध में हमें जो भी निर्णय लेना है, वह यहीं लिया जा सकता है. वैसे मैं तुम्हारे और शायनी के बारे में बहुतकुछ जानती हूं. मैं यह भी जानती हूं कि तुम ने मुझ से शादी करने के लिए उस से ब्रेकअप किया है.’’ थोड़ा रुक कर उस ने फिर कहा, ‘‘शतांश, तुम में और मुझ में एक बड़ा अंतर यह है कि यू आर पापाज बौय. तुम वही करते हो जो वे तुम्हें करने के लिए कहते हैं. यहां तुम उन के कहने पर ही मुझे प्रपोज करने आए हो.
‘‘जहां तक मेरा प्रश्न है, मैं अपने डैडी की इज्जत करती हूं. उन के कहने पर मैं यहां आई तो जरूर हूं, लेकिन अपनी जिंदगी के फैसले करने का अधिकार मैं किसी को नहीं देती, क्योंकि यह मेरी जिंदगी है, जो मुझे अपने ढंग से जीनी है, डैडी की इच्छा से नहीं.’’ अपनी बातों को समाप्त करते हुए वह बोली, ‘‘अब बेहतर यही है कि तुम लौट कर अपने पापा को यह बता दो कि खनक तुम्हें पसंद नहीं है, क्योंकि वह न तो हमारे घर में निभ पाएगी और न ही आप की सेवा कर पाएगी. मुझे अपने डैडी से क्या कहना है, यह मैं भलीभांति जानती हूं.’’
शतांश मूक रह गया. वह चेहरे पर उभर आई फीकी सी मुसकान के पीछे छिपे दर्द को ढकने का प्रयास करने लगा. वह समझ नहीं पाया कि कैसे वह खनक को अपने मन के भाव दिखाए. ‘‘चलें,’’ अचानक खनक के शब्द ने उसे चौंका दिया.
खनक उसे उसी अवस्था में छोड़ कर अपनी कार में बैठी और कार स्टार्ट कर पार्किंग से बाहर निकल गई. शतांश किंकर्तव्यविमूढ़ सा उसे देखता रह गया. समय किसी के लिए नहीं रुकता. शतांश के लिए भी नहीं रुका और न ही शायनी के लिए. 4 साल बाद नैनीताल में एक दिन शायनी जैसे ही अपने क्लीनिक
से बाहर निकली, उसे शतांश कार में सड़क से गुजरता हुआ दिखाई दिया. शायनी उसे नैनीताल में देख कर विस्मित हुए बिना नहीं रही. उसी पल शतांश को भी वह सड़क के किनारे चलती हुई नजर आ गई. उसे नैनीताल में देख कर वह भी चकित रह गया. वह कार से उतरा और शायनी के पास आ पहुंचा.
उसे रोकने का प्रयास करते हुए उस से पूछा, ‘‘तुम यहां?’’ शतांश को अपने सामने देख कर शायनी के मन से नफरत का लावा भरभरा कर बह निकला. उस के प्रश्न का उत्तर दिए बिना शायनी ने अपनी गति तेज
कर दी. शतांश ने भी उस का पीछा नहीं छोड़ा. बढ़ कर फिर उस के समीप आ गया. बोला, ‘‘शायनी, सुनो तो. हम इतने भी अजनबी नहीं हैं कि तुम मुझ से कतरा कर भागने लगो. मैं सिर्फ इतना जानना चाहता हूं कि तुम यहां कैसे?’’
अब शायनी रुक गई. वह अपने को संयमित करते हुए बोली, ‘‘मैं यहीं रहती हूं. यहां मेरा क्लीनिक है.’’ ‘‘सरप्राइजिंग, मेरी यहां एक फैक्टरी है. मैं भी यहीं रहता हूं,’’ फिर कुछ सोचते हुए उस ने शायनी से अनुरोध किया, ‘‘क्या
हम थोड़े समय के लिए एकसाथ कहीं बैठ सकते हैं?’’ ‘‘नहीं,’’ वह बोली.
‘‘शायनी तुम्हें मेरे और अपने उन पलों की कसम, जो कभी हम ने साथ जिए थे.’’
‘‘जो कहना है यहीं कहो,’’ बड़ी असहज स्थिति में उस का अनुरोध स्वीकार करते हुए शायनी ने कहा. शतांश वहीं एक लैंप पोस्ट के सहारे खड़ा हो गया. शायनी भी उस के पास खड़ी हो गई. अपने दिल के बोझ को हलका करने का प्रयास करते हुए शतांश बोला, ‘‘शायनी, मैं अब पापाज बौय नहीं रहा हूं. पापा से अलग हो कर मैं ने अपनी फैक्टरी यहां लगा ली है. फैक्टरी लगाने के बाद मैं ने तुम्हें हर जगह ढूंढ़ा.
’’तुम्हारे साथियों से भी पूछा कि तुम आजकल कहां हो, लेकिन जब कोई कुछ नहीं बता पाया तो मैं ने तुम्हारे पापा से बात की. उन्होंने मुझे तुम्हारे बारे में कुछ भी बताने से साफ इनकार कर दिया. हां, यह जरूर बताया कि तुम ने भविष्य में शादी करने से इनकार कर दिया है.’’ शायनी शतांश की बातें सुनती चली गई. उस की बातों पर उस ने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. बस, सड़क पर चलती हुई भीड़ और सामने से गुजरते वाहनों को देखती रही.
थोड़ी चुप्पी के बाद शतांश ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘शायनी, सच मानो, अपने बे्रकअप के बाद से मैं पश्चात्ताप की आग में जल रहा हूं. वह बे्रकअप मेरे जीवन की एक बड़ी भूल थी. मैं तुम से क्षमा मांग कर उस भूल को सुधारना चाहता हूं. मेरी बाहें तुम्हें आज भी उसी गर्मजोशी से बांधने को तैयार हैं. प्लीज शायनी, फौरगैट एवरी थिंग.’’ शायनी ने शतांश को सिर से ले कर पैर तक देखा मानो किसी गिरगिट को रंग बदलते हुए देख रही हो. क्षितिज पर डूबा सूरज पल भर के लिए आग बरसाता हुआ सा लगा.
अपने मन के कष्ट को दबाते हुए वह फट पड़ी, ‘‘मिस्टर शतांश, जो उलझन, उथलपुथल, तनाव और दुख इस दौर में मैं ने झेले हैं, उन्हें सिर्फ वही युवती समझ सकती है जिस ने बे्रकअप झेला हो. मैं एक स्वाभिमानी युवती हूं. रिश्तों में इतनी कड़वाहट आने के बाद तुम से फिर रिश्ता कायम कर लूंगी, यह तुम्हारी समझ का एक बड़ा दोष है. ‘‘जरा सोचो, जिस इंसान के साथ बिताए पलों की याद आते ही मेरे मन में नफरत का एक तूफान उठने लगता है, उस के चेहरे को जिंदगी भर मैं अपने सामने कैसे देख पाऊंगी? कभी नहीं, सौरी.’’
तभी एक औटोरिक्शा शायनी के पास से गुजरा. शायनी ने हाथ दे कर उसे रोका. उस में बैठी और चली गई. औटो से निकले काले धुएं ने शतांश के सपनों पर गहरी कालिख बिछा दी.