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USA : फिर अफगानिस्तान में अमेरिका

USA : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस पर अमेरिकी सेना को वापस भेजने का इरादा जताया है. एक तरफ तो खपती ट्रंप कहते हैं कि वे दूसरे देशों में अमेरिका को उलझाएंगे नहीं और दूसरी तरफ गाजा में अमेरिकी टूरिस्ट स्पौट बनाएंगे का सपना दिखा रहे हैं और अब कह रहे हैं कि अफगानिस्तान का पूर्व अमेरिकी बेस बगराम का नियंत्रण जो चीन के हाथ आ गया है वापस लेंगे. यह अमेरिका के लिए परेशानी पैदा कर सकता है. अमेरिका न सिर्फ बगराम पर अपना कब्जा चाहता है बल्कि उस ने अब तक अफगानिस्तान में जो खतरनाक हथियार भेजे अब उन्हें भी वापस पाने के लिए मांग कर रहा है. अमेरिका करीब 7 अरब डौलर के अमेरिकी सैन्‍य हथियार तालिबानी सेना के पास भागते हुए छोड़ गया था. इस में करीब 8 लाख राइफलें और 70 हजार आर्मर्ड ट्रक शामिल हैं.

बगराम बेस अफगानिस्तान के परवान प्रांत में स्थित है जो करीब 2 दशक तक अमेरिकी सेना का सब से बड़ा सैन्य अड्डा था. इस बेस को साल 1950 के दशक में शीतयुद्ध के दौरान सोवियत संघ ने बनाया था. अफगानिस्तान में साल 1979 में हमले के बाद यह बेस रूसी सेना का मुख्य ठिकाना बन गया था. सोवियत संघ के जाने के बाद अमेरिका ने साल 2001 में बगराम बेस पर कब्‍जा कर लिया था. बगराम में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अलकायदा के आतंकवादियों से पूछताछ की जाती थी. इस विशाल बेस में 10,000 अमेरिकी सैनिकों के रहने की क्षमता थी, जिस में स्विमिंग पूल, सिनेमा, स्पा और बर्गर किंग जैसे रेस्तरां भी शामिल थे.

चीन की नजर भी अफगानिस्तान के अरबों डौलर के लिथियम भंडार और तेल तथा खनिजों पर है.

BJP : किस काम की इतनी कट्टरता ?

BJP : उत्तर प्रदेश की सरकार ने बलिया जिले में मैडिकल कालेज बनाने का फैसला लिया है. भाजपा विधायक केतकी सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बधाई देते मांग की है कि मैडिकल कालेज में मुसलिमों के इलाज के लिए अलग विंग बने. केतकी सिंह ने 2022 में पहली बार बलिया के बांसडीह विधानसभा से चुनाव लड़ा था. समाजवादी पार्टी के दिग्गज रामगोविंद चौधरी को हराया था.

केतकी सिंह ने कहा, ‘मुसलमानों को होली, रामनवमी और दुर्गा पूजा में दिक्कत होती है, तो उन्हें इलाज करने में भी परेशानी हो सकती है. मैं महाराज जी से मांग करती हूं कि जब इतना खर्च हो ही रहा है, तो एक अलग बिल्डिंग या एक अलग विंग बना दी जाए जहां वे अपना इलाज कराएं.

‘इस तरह की व्यवस्था की जाए ताकि हिंदू समुदाय के लोग सुरक्षित महसूस कर सकें, क्योंकि न जाने किस पर क्या थूक-थूका कर हमें मिल जाए, तो इन सब से हम बच जाएं’. केतकी सिंह के इस बयान से राजनीतिक गलियारों में विवाद बढ़ गया. इस की तरहतरह से आलोचना होने लगी.

आमतौर पर महिलाओं के बारे में यह कहा जाता है कि वे कट्टरपन से दूर रहती हैं. धार्मिक कट्टरपन का सब से अधिक प्रभाव महिलाओं पर ही पडता है. खासतौर पर सवर्ण बिरादरी की महिलाओं को धर्म ने बेडियां पहना दी हैं. महिलाएं जब राजनीति में आती हैं तो उन को महिलाओं के हित में आवाज उठानी चाहिए. समाज में महिलाओं की हालत दलितों से बेहतर नहीं है.

इन महिलाओं को माहवारी के दिनों में अछूत बना कर रखा जाता है. राजनीति में ये केवल शोपीस बनी रहती हैं. उत्तर प्रदेश में भाजपा ने किसी महिला विधायक को कोई महत्त्वपूर्ण विभाग नहीं दिया है. पार्टी संगठन में कोई प्रभावी पद उन के पास नहीं है. प्रदेश में भाजपा ने कोई महिला मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया है.

बलिया का यह मैडिकल कालेज चित्तू पांडेय के नाम पर बन रहा है. विधायक केतकी सिंह ने सरकार के इस प्रयास को अपने बयान से धूमिल कर दिया है. चित्तू पांडे को ‘शेर ए बलिया’ के नाम से जाना जाता है. वे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और बलिया में एक समानांतर सरकार बना ली थी.

चित्तू पांडे ने 1942 में बलिया को अंगरेजों की सत्ता से मुक्त कराने का प्रयास किया था. वे गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित थे. उन के नाम मैडिकल कालेज बनने से होने वाली खुशी से कहीं अधिक दुख उन को विधायक केतकी सिंह के बयान को सुन कर हो रहा होगा.

Health Update : आयोडीन की कमी सेंधा नमक कितना जिम्मेदार ?

Health Update : व्रत रहने वाले लोग सेंधा नमक का बहुत प्रयोग करते है. कम लोगों को पता है कि सेंधा नमक में आयोडीन नहीं होता है. जो लोग सेंधा नमक का प्रयोग ज्यादा करते है उन में आयोडीन की कमी हो सकती है. जिस सेंधा नमक को सही माना जाता है वह सेहत के लिए उतना उपयोगी नहीं होता. आयोडीन की कमी बहुत पहले से चल रही है. इस के कारण ही देश में खुले नमक की बिक्री पर रोक लगा दी गई थी.

आज कई तरह के पैकेट वाले नमक बाजार में बिक रहे हैं. जो कीमत में सौ रुपए तक हैं. ये सभी शरीर में आयोडीन की मात्रा को पूरा करने का दावा करते हैं. नमक का बड़ा बाजार बन गया है. पैकेटबंद नमक के बाद भी लोगों को आयोडीन की कमी होने लगी है. भारत के सौल्ट कमिश्नर औफिस के अनुसार, देश के लगभग 20 करोड़ से ज्यादा लोगों को आयोडीन डैफिशिएंसी डिसऔर्डर का खतरा है.

7 करोड़ से ज्यादा लोग घेंघा से और आयोडीन की कमी से होने वाले अन्य डिसऔर्डर से जूझ रहे हैं. आयोडीन एक ऐसा मिनरल जो शरीर को बहुत कम मात्रा में चाहिए. इस के बावजूद, यह शरीर को स्वस्थ रखने में अहम भूमिका निभाता है. आयोडीन की कमी होने पर घेंघा रोग के पनपने का जोखिम बढ़ सकता है. ऐसा होने पर शरीर मूड स्विंग्स और चिड़चिड़ाहट जैसे इशारे करता है.

जानकार लोग 5 ग्राम नमक ही खाने की सलाह देते हैं. विश्व स्तर पर सब से अधिक 17 ग्राम नमक चीन के लोग खाते हैं. भारत के लोग 15 ग्राम, दक्षिण कोरिया के लोग 12 ग्राम, सिंगापुर 11 ग्राम, श्रीलंका, मलेशिया और जापान के लोग 10 ग्राम नमक का ही प्रयोग करते हैं. ज्यादा नमक का सेवन ब्लडप्रैशर को भी बढाता है. नमक शरीर के लिए जरूरी है पर इस की मात्रा का खयाल रखना चाहिए.

Online Hindi Story : जिंदगी की कश्मकश

Online Hindi Story : आज बेला सोच रही थी कि जिंदगी में कितनी कश्मकश है…एक प्रदीप है जो उससे बात नहीं करता है रिलेशन में होने के बावजूद और बेला को भी लगने लगा था कि शायद अब उसको अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि इस रिश्ते में कुछ भी नहीं रह गया है और प्रदीप उससे शादी भी नहीं करेगा….शायद इसलिए जब उसके औफिस में काम करने वाले राजेश ने बेला को प्रपोज किया और कहा कि वो उससे शादी करना चाहता है तो कुछ दिन सोचने के बाद बेला ने शादी के लिए हां कर दी थी. बेला ने अपनी दोस्त को सबकुछ बताया और उससे पूछा कि मैं क्या करूं बेला को उसकी दोस्त ने यही कहा कि बेला तुम अब इन सब प्यार- व्यार के झंझट से बाहर निकलो और लाइफ में आगे बढ़ो और अगर कमाने वाला एक ….वो इंग्लिश में कहते हैं न कि वेल सेटल्ड लड़का मिल रहा है तो उसे हां कर दो. ऐसे लड़के या रिश्ते बार-बार नहीं मिलते लेकिन…..बेला के मन  में  एक बात थी वो राजेश को जानती ही कितना थी जबकि प्रदीप के साथ उसका रिश्ता 4 सालों का था…

लेकिन बेला ने राजेश को हां करते वक्त कहा था कि वो शादी के लिए तैयार है लेकिन अब रिलेशन का झाम नहीं चाहिए जो होगा शादी के बाद होगा और इससे पहले वो नार्मल ही बात करेगी. अपनी जिंदगी में इन सारी कश्मकश से जूझ रही बेला बहुत तनाव में हो गई थी क्योंकि 4-5 दिन में प्रदीप भी कौल कर ही लेता था बेला को. बेला से प्रदीप की रोज बात न हो पाने के कारण जब राजेश जब बेला को फोन करता था तो बेला उससे बातें कर लेती थी और उसे अच्छा लगने लगा था.. लेकिन अपने पहले रिलेशन से निकलना बेला के लिए इतना आसान नहीं था. बेला नार्मल बातें करना चाहती थी राजेश से लेकिन राजेश उससे इतना प्यार करने लगा था कि प्यार भरी बातें ही करता था और बेला अभी उससे ऐसी बातें नहीं करना चाहती थी. ऐसा नहीं था कि राजेश को बेला के पहले रिलेशनशिप के बारे में पता नहीं था उसे सब पता था, लेकिन जब भी बेला उससे कहती की यार मैं अभी आपके साथ इतना नहीं खुल सकती तो राजेश कहता की उसे बुरा लगता है और उसकी फिलिंग हर्ट होती हैं. वो अपनी फिलिंग बता देता लेकिन जब भी बेला अपनी बातें बताती तो राजेश को लगता कि वो उसके सामने रिश्ते में शर्त रख रही है.

राजेश शायद नहीं समझ पा रहा था बेला स्थिति को उसने खुद भी कुछ शर्त रखी थी लेकिन उसे बस पता नहीं था कि उसने भी शर्त रखी है. हालांकि उसकी शर्त छोटी थी जो उसको सिर्फ बातें लग रही थीं…और इधर प्रदीप बेला को बिल्कुल भी समय नहीं दे रहा था इसलिए बेला उससे बिल्कुल दूर हो चुकी थी. बेला अब ये सोचने लगी थी कि जिंदगी में कितनी उलझनें हैं और कितनी कश्मकश है. वो सोचने लगी थी कि शायद अब वो किसी रिश्ते में नहीं रह पाएगी क्योंकि राजेश जब भी कुछ प्यार की बातें करता तो बेला कहती कि जो भी होगा शादी के बाद होगा और ये चीजें राजेश को बुरी लगती. राजेश बेला से कहता कि पता नहीं जिंदगी में आगे जिंदा रहूं ना रहूं, पता नहीं फ्यूचर में हालात कैसे होंगे? अभी जो जिंदगी है उसको जी लो….

बेला को फिर एक बार वही बात सुनने को मिली जो प्रदीप ने कह-कह कर उसके साथ चार साल बिता लिए थे और बेला तो शादी के सपने ही देखती रही. राजेश से तो बेला ने शादी के लिए हां कहा था ये सोचकर कि राजेश शादी करेगा क्योंकि राजेश ने कहा था की मैं तुम्हारे पापा से बात करूंगा,लेकिन एक बार फिर बेला उसी रिलेशनशिप के झाम में फसती हुई खुद को महसूस कर रही थी….और इस कश्मकश में फस चुकी थी…

Hindi Kahani : देवर – मंजू के सामने कैसे आई उस के देवर की असलियत

Hindi Kahani : प्रदीप को पति के रूप में पा कर मंजू के सारे सपने चूरचूर हो गए. प्रदीप का रंग सांवला और कद नाटा था. वह मंजू से उम्र में भी काफी बड़ा था. मंजू ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थी, मगर थी बहुत खूबसूरत. उस ने खूबसूरत फिल्मी हीरो जैसे पति की कल्पना की थी.

प्रदीप सीधासादा और नेक इनसान था. वह मंजू से बहुत प्यार करता था और उसे खुश करने के लिए अच्छेअच्छे तोहफे लाता था. मगर मंजू मुंह बिचका कर तोहफे एक ओर रख देती. वह हमेशा तनाव में रहती. उसे पति के साथ घूमनेफिरने में भी शर्म महसूस होती. मंजू तो अपने देवर संदीप पर फिदा थी. पहली नजर में ही वह उस की दीवानी हो गई थी.

संदीप मंजू का हमउम्र भी था और खूबसूरत भी. मंजू को लगा कि उस के सपनों का राजकुमार तो संदीप ही है. प्रदीप की नईनई नौकरी थी. उसे बहुत कम फुरसत मिलती थी. अकसर वह घर से बाहर ही रहता. ऐसे में मंजू को देवर का साथ बेहद भाता. वह उस के साथ खूब हंसीमजाक करती.

संदीप को रिझाने के लिए मंजू उस के इर्दगिर्द मंडराती रहती. जानबूझ कर वह साड़ी का पल्लू सरका कर रखती. उस के गोरे खूबसूरत बदन को संदीप जब चोर निगाहों से घूरता तो मंजू के दिल में शहनाइयां बज उठतीं. वह चाहती कि संदीप उस के साथ छेड़छाड़ करे मगर लोकलाज के डर और घबराहट के चलते संदीप ऐसा कुछ नहीं कर पाता था.

संदीप की तरफ से कोई पहल न होते देख मंजू उस के और भी करीब आने लगी. वह उस का खूब खयाल रखती. बातोंबातों में वह संदीप को छेड़ने लगती. कभी उस के बालों में हाथ फिराती तो कभी उस के बदन को सहलाती. कभी चिकोटी काट कर वह खिलखिलाने लगती तो कभी उस के हाथों को अपने सीने पर रख कर कहती, ‘‘देवरजी, देखो मेरा दिल कैसे धकधक कर रहा है…’’ जवान औैर खूबसूरत भाभी की मोहक अदाओं से संदीप के मन के तार झनझना उठते. उस के तनबदन में आग सी लग जाती. वह भला कब तक खुद को रोके रखता. धीरेधीरे वह भी खुलने लगा.

देवरभाभी एकदूसरे से चिपके रहने लगे. दोनों खूब हंसीठिठोली करते व एकदूसरे की चुहलबाजियों से खूब खुश होते. अपने हाथों से एकदूसरे को खाना खिलाते. साथसाथ घूमने जाते. कभी पार्क में समय बिताते तो कभी सिनेमा देखने चले जाते. एकदूसरे का साथ उन्हें अपार सुख से भर देता. दोनों की नजदीकियां बढ़ने लगीं. संदीप के प्यार से मंजू को बेहद खुशी मिलती. हंसतीखिलखिलाती मंजू को संदीप बांहों में भर कर चूम लेता तो कभी गोद में उठा लेता. कभी उस के सीने पर सिर रख कर संदीप कहता, ‘‘इस दिल में अपने लिए जगह ढूंढ़ रहा हूं. मिलेगी क्या?’’

‘‘चलो देवरजी, फिल्म देखने चलते हैं,’’ एक दिन मंजू बोली. ‘‘हां भाभी, चलो. अजंता टौकीज में नई फिल्म लगी है,’’ संदीप खुश हो कर बोला और कपड़े बदलने के लिए अपने कमरे में चला गया.

मंजू कपड़े बदलने के बाद आईने के सामने खड़ी हो कर बाल संवारने लगी. अपना चेहरा देख कर वह खुद से ही शरमा गई. बनठन कर जब वह निकली तो संदीप उसे देखता ही रह गया. ‘‘तुम इस तरह क्या देख रहे हो देवरजी?’’ तभी मंजू इठलाते हुए हंस कर बोली.

अचानक संदीप ने मंजू को पीछे से बांहों में भर लिया और उस के कंधे को चूम कर बोला, ‘‘बहुत खूबसूरत लग रही हो, भाभी. काश, हमारे बीच यह रिश्ता न होता तो कितना अच्छा होता?’’ ‘‘अच्छा, तो तुम क्या करते?’’ मंजू शरारत से बोली.

‘‘मैं झटपट शादी कर लेता,’’ संदीप ने कहा. ‘‘धत…’’ मंजू शरमा गई. लेकिन उस के होंठों पर मादक मुसकान बिखर गई. देवर का प्यार जताना उसे बेहद अच्छा लगा.

खैर, वे दोनों फिल्म देखने चल पड़े. फिल्म देख कर जब वे बाहर निकले तो अंधेरा हो चुका था. वे अपनी ही धुन में बातें करते हुए घर लौट पड़े. उन्हें क्या पता था कि 2 बदमाश उन का पीछा कर रहे हैं.

रास्ता सुनसान होते ही बदमाशों ने उन्हें घेर लिया और बदतमीजी करने लगे. यह देख कर संदीप डर के मारे कांपने लगा. ‘‘जान प्यारी है तो तू भाग जा यहां से वरना यह चाकू पेट में उतार दूंगा,’’

एक बदमाश दांत पीसता हुआ संदीप के आगे गुर्राया. ‘‘मुझे मत मारो. मैं मरना नहीं चाहता,’’ संदीप गिड़गिड़ाने लगा.

‘‘जा, तुझे छोड़ दिया. अब फूट ले यहां से वरना…’’ ‘‘मुझे छोड़ कर मत जाओ संदीप. मुझे बचा लो…’’ तभी मंजू घबराए लहजे में बोली.

लेकिन संदीप ने जैसे कुछ सुना ही नहीं. वह वहां से भाग खड़ा हुआ. सारे बदमाश हो… हो… कर हंसने लगे. मंजू उन की कैद से छूटने के लिए छटपटा रही थी पर उस का विरोध काम नहीं आ रहा था.

बदमाश मंजू को अपने चंगुल में देख उसे छेड़ते हुए जबरदस्ती खींचने लगे. वे उस के कपड़े उतारने की फिराक में थे. ‘‘बचाओ…बचाओ…’’ मंजू चीखने लगी.

‘‘चीखो मत मेरी रानी, गला खराब हो जाएगा. तुम्हें बचाने वाला यहां कोई नहीं है. तुम्हें हमारी प्यास बुझानी होगी,’’ एक बदमाश बोला. ‘‘हाय, कितनी सुंदर हो? मजा आ जाएगा. तुम्हें पाने के लिए हम कब से तड़प रहे थे?’’ दूसरे बदमाश ने हंसते हुए कहा.

बदमाशों ने मंजू का मुंह दबोच लिया और उसे घसीटते हुए ले जाने लगे. मंजू की घुटीघुटी चीख निकल रही

थी. वह बेबस हो गई थी. इत्तिफाक से प्रदीप अपने दोस्त अजय के साथ उसी रास्ते से गुजर रहा था. चीख सुन कर उस के कान खड़़े हो गए.

‘‘यह तो मंजू की आवाज लगती है. जल्दी चलो,’’ प्रदीप अपने दोस्त अजय से बोला. दोनों तेजी से घटनास्थल पर पहुंचे. अजय ने टौर्च जलाई तो बदमाश रोशनी में नहा गए. बदमाश मंजू के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहे थे. मंजू लाचार हिरनी सी छटपटा रही थी.

प्रदीप और अजय फौरन बदमाशों पर टूट पड़े. उन दोनों ने हिम्मत दिखाते हुए उन की पिटाई करनी शुरू कर दी. मामला बिगड़ता देख बदमाश भाग खडे़ हुए, लेकिन जातेजाते उन्होंने प्रदीप को जख्मी कर दिया. मंजू ने देखा कि प्रदीप घायल हो गया है. वह जैसेतैसे खड़ी हुई और सीने से लग कर फूटफूट कर रो पड़ी. उस ने अपने आंसुओं से प्रदीप के सीने को तर कर दिया.

‘‘चलो, घर चलें,’’ प्रदीप ने मंजू को सहारा दिया. उन्हें घर पहुंचा कर अजय वापस चला गया. मंजू अभी भी घबराई हुई थी. पर धीरेधीरे वह ठीक हुई.

‘‘यह क्या… आप के हाथ से तो खून बह रहा है. मैं पट्टी बांध देती हूं,’’ प्रदीप का जख्म देख कर मंजू ने कहा. ‘‘मामूली सा जख्म है, जल्दी ठीक हो जाएगा,’’ प्रदीप प्यार से मंजू को देखते हुए बोला.

मंजू के दिल में पति का प्यार बस चुका था. प्रदीप से नजर मिलते ही वह शरमा गई. वह मासूम लग रही थी. उस का प्यार देख कर प्रदीप की आंखें छलछला आईं. बीवी का सच्चा प्यार पा कर प्रदीप के वीरान दिल में हरियाली छा गई. वह मंजू को अपनी बांहों में भरने के लिए मचल उठा.

इतने में मंजू का देवर संदीप सामने आ गया. वह अभी भी घबराया हुआ था. बड़े भाई के वहां से जाने के बाद संदीप ने अपनी भाभी का हालचाल पूछना चाहा तो मंजू ने उसे दूर रहने का इशारा किया. ‘‘तुम ने तो मुझे बदमाशों के हवाले कर ही दिया था. अगर मेरे पति समय पर न पहुंचते तो मैं लुट ही गई थी. कैसे देवर हो तुम?’’ जब मंजू ने कहा तो संदीप का सिर शर्म से झुक गया.

इस एक घटना ने मंजू की आंखें खोल दी थीं. अब उसे अपना पति ही सच्चा हमदर्द लग रहा था. वह अपने कमरे में चली गई और दरवाजा बंद कर लिया.

Best Hindi Story : लाइकेन – काम वाली गीता की अनोखी कहानी

Best Hindi Story : पटना से दिल्ली की द्वारका कालोनी के इस घर में शिफ्ट हुए 8 दिन हो गए थे. घर पूरी तरह सैट हो कर चमक रहा था. लेकिन मैं अस्तव्यस्त, बेरौनक हुई जा रही थी. वजह वही जो हर तबादले के बाद झेलती आई हूं. अच्छी कामवाली मिल नहीं पा रही थी. कुछ मुझे पसंद नहीं आ रही थीं, कुछ को मेरा ‘एक घर एक बाई’ वाला फार्मूला रास नहीं आ रहा था.

‘‘नहीं जी, एक घर से कैसे पेट भरेगा? 5 जगह काम करती हूं तो

5 जगह चायनाश्ता, तीजत्योहार में कपड़े, गिफ्ट वगैरह मिलते हैं.’’

‘हुंह, एक घर के काम का समय तो इन्हें एक घर से दूसरे घर जाने में ही निकल जाता है, यह उन्हें नहीं दिखता. ऊपर से 5 जगह दौड़ने में पैर घिसते हैं, थकान होती है, 5 जगह बातें सुननी पड़ती हैं, वह नहीं,’ कुढ़ती हुई मैं बुदबुदाई.

शादी के बाद जब मैं आई थी तो इन बाइयों ने उस वक्त भी मेरी नाक में दम कर रखा था. एक तो उम्र कम, फिर साफसफाई की बीमारी. वे हम से हैंडल ही नहीं हो पातीं.

‘‘आज वहां जल्दी जाना है. कल आप के यहां देर से आऊंगी. उन के यहां सामान ज्यादा है. बस, सामनेसामने पोंछा लगाना पड़ता है. आप के खाली घर में तो सफाई करने में ही थक जाती हूं. आप बरतन देखदेख कर जमवाती हैं. अरोड़ा मैम तो सोई रहती हैं, मैं सारा काम निबटा आती हूं.’’

सुनसुन कर मैं परेशान हो जाती. मैं तो अरोड़ा मैडम नहीं बन सकती. उस दिन उन के यहां गई थी. किचन का सिंक सड़ांध मार रहा था. जिस कप में चाय लाई, वह भी चिपचिपा था. मुझ से तो चाय पी ही नहीं गई.

फिर उन का भेदिये जैसा सवाल, ‘जमुना आप के यहां बरतन जमाती है? कपड़े मशीन में डालती है? शाम को किचन व हौल में पोंछा लगाती है?’ ‘हां’ बोलने पर जमुना शाम को मुंह फुलाए घुसती, ‘आप ने अरोड़ा मैडम को क्या बतलाया, अब वे भी सब काम करवाएंगी. अगर गलती से ना बोलो तब वे मैडम नाराज, ‘आप पैसा ज्यादा दे कर यहां का रेट बिगाड़ रही हैं.’

थक कर मैं ने एक अलग कामवाली रखने का निर्णय लिया. इस के लिए भले ही मुझे दोगुना या तीनगुना पैसे देने पड़े. अपने दूसरे खर्चों में मैं कटौती कर लूंगी.

इतवार की सुबह थी. सब अलसाए से सो रहे थे. मैं झाड़ू लगा रही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी.

‘‘बिट्टू, दरवाजा खोलो, दूध वाला होगा.’’

साहबजादे कुनमुनाते हुए उठे और दिन होता तो मजाल था वह उठ जाए. वह तो अभी काम के ओवरलोड की वजह से मैं फुलचार्ज रहती थी. कभी भी किसी पर फट सकती थी, इसी कारण सब डरे रहते.

‘‘मम्मा, अनूप अंकल आए हैं.’’

अनूप, इन का ड्राइवर. आज इस वक्त, कहीं इन्हें आज भी तो नहीं जाना है. मेरा नाश्ता भी नहीं बना. इसी उधेड़बुन में बाहर आई.

‘‘नमस्ते मैडम, यह गीता है. काम ढूंढ़ रही है. बिहार की ही है, पास की ही बस्ती में रहती है.’’

अनूप ने ‘बिहार की ही है’ पर जोर देते हुए कहा. जैसे बिहार का नाम सुनते ही मैं किसी को भी सिरआंखों पर बैठा लूंगी.

‘‘नमस्ते आंटी,’’ आवाज सुन कर मैं ने उस की तरफ देखा, लंबी, छरहरी, सांवली सी, बड़ीबड़ी आंखों में हलका काजल, संवरी भौंहें, करीने से कढ़े बाल, सुंदर व कीमती सूट पहने 25-26 साल की लड़की मुसकराती हुई खड़ी थी.

‘यह कामवाली है,’ मैं ने मन ही मन सोचा और तब मुझे ध्यान आया कि मैं एक फटीचर नाइटी में अब तक हाथ में झाड़ू लिए खड़ी थी.

हड़बड़ा कर मैं ने झाड़ू नीचे पटकी. शुक्र है कि अनूप ने मुझ से पहले बात कर ली, नहीं तो ये तो मुझे बाई ही समझ बैठती.

अनूप को विदा कर गीता को भीतर बुलाया. रसोई में चाय उबल रही थी. उस के लिए भी थोड़ा पानी डाला. एक कप इन्हें कमरे में दे आई, 2 कप चाय उसे लाने को कह मैं सोफे पर बैठ गई.

‘‘एक ही घर में काम करना होगा,’’ मैं ने अपनी शर्त सुनाई.

‘‘हां जी, मैं तो एक घर से ज्यादा कर भी नहीं सकती. अपने घर का भी तो काम रहता है. वो तो क्या है कि  बाहर निकलने से थोड़ा मन भी बदल जाता है और थोड़ी कमाई भी हो जाती है,’’ बिलकुल दिल्ली वाले अंदाज में उस ने जवाब दिया.

‘‘शादी हो गई?’’

‘‘और क्या, 3 बच्चे हैं.’’

‘‘क्या, 3 बच्चे! कब हुई शादी, कितनी उम्र है तुम्हारी?’’

‘‘आंटी, हमारे यहां बेटी को 16 साल से ज्यादा कोई नहीं रखता. बहुत शिकायत होती है. मेरी शादी 15 वर्ष में हुई. 17 में गौना. 18 में बेटी. 2-2 साल के अंदर

2 और बेटे. 10 साल की बेटी है मेरी. यहां शहरों में 30-30 साल तक सब लड़की को घर में बैठाए रखते हैं,’’ कहती हुई उस ने ऐसा मुंह बनाया जैसे किसी ने उस के मुंह में पूरा नीबू निचोड़ दिया हो.

संयोग से उसी वक्त मेरी 17 वर्षीय बेटी धीगड़ी सी कानों में ईयर फोन लगाए गुनगुनाती हुई बाथरूम से बाहर निकली. उसे अभी इस वक्त गीता के सामने हाफपैंट और टौप में देख कर मैं ही बुरी तरह सकपका गई. शीघ्रता से बात खत्म कर के मैं ने उसे काम समझाया और बाथरूम में जा घुसी. इस लड़की की सजधज ने तो हमारे अंदर भी एक हीनभावना भर दी. पता नहीं काम कैसे करवाऊंगी.

जितनी उत्कृष्ट थी उस की साजसज्जा उतना ही उत्कृष्ट था उस का पहनावा. गजब की पसंद थी उस की. साड़ी हो या सलवारकमीज, एक बार नजर ठहर ही जाती थी. घर का पूरा काम करने के बाद भी मजाल है कि उस की साड़ी की एक भी मांग इधरउधर हो जाए. उस के कारण मुझे अपनेआप को बहुत बदलना पड़ा.

बच्चे मजाक भी करते, ‘‘पापा 26 साल में मां की आदत नहीं सुधार पाए लेकिन गीता ने 36 दिनों में ही उन्हें सुधार दिया, जय हो गीता की.’’

गीता को काम करते हुए 2 महीने ही हुए थे. देवरदेवरानी बच्चों के साथ आए. सुबहसुबह हौल में पूरा परिवार इकट्ठा धमाचौकड़ी मचा रहा था, तभी गीता दाखिल हुई. देवर सोफे पर लेटे थे, हड़बड़ा कर उठ बैठे. मैं आंखों से उन्हें मना कर रही थी तब तक उन्होंने हाथ जोड़ कर उसे नमस्ते कर दिया. सब अपनी हंसी दबाए बैठे रहे. बाद में तो बच्चों ने जम कर उन की खिंचाई की.

ऐसे तो गीता पर दोनों वक्त खाना बनाने के साथसाथ सुबह नाश्ते की भी जिम्मेदारी थी, लेकिन इन्हें साढ़े 8 बजे निकलना होता और दीपू की स्कूल बस तो 8 बजे ही आ जाती थी. इसी कारण सुबह मुझे रसोई में घुसना पड़ता. गीता ने सब्जी काट कर मुझे पकड़ाई और आटा निकालने गई तब तक मैं ने एकतरफ सब्जी छौंकी, दूसरी तरफ चाय चढ़ा दी.

‘‘आज फिर उस ने मारपीट की,’’ गीता बोली.

‘‘बच्चों ने?’’ मैं ने सहजता से पूछा.

‘‘नहीं, मेरे आदमी ने, पुलिस पकड़ कर ले गई.’’

‘‘क्या, अब क्या होगा?’’ मेरे स्वर में चिेंता थी.

‘‘होगा क्या, मालिक जाएंगे छुड़ाने. साल में 3 बार का यही धंधा है.’’ गूंधे आटे को मुट्ठी से और चोट दे कर मुलायम करती हुई उस ने बेफिक्री से कहा.

‘‘मालिक कौन?’’

‘‘वही, जिन के यहां रहती हूं.’’

‘‘किराए में रहती हो?’’

‘‘हां, यही समझ लीजिए. उन के दोनों बच्चों की देखभाल, घर का काम, खानाकपड़ा सब करती हूं.’’

‘‘तब उन की बीवी क्या करती है?’’ मैं ने चिढ़ते हुए पूछा.

‘‘नहीं है. 5 साल पहले मर गई. शुरूशुरू में गांव से बूढ़ी मां आई थी, मन नहीं लगा. तब से मैं ही संभाल रही हूं.’’

हमें दिल्ली आए 2 साल हो गए थे. बेटे का नामांकन एनआईटी वारंगल में हो गया था. बेटी यहीं एमकौम कर रही थी. हम लोगों को गीता की आदत सी हो गई थी, धीरेधीरे उस ने घर की पूरी जिम्मेदारी जो संभाल ली थी. उस की बेटी बड़ी हो गई थी, वह अपने घर का काम कर लेती थी.

जीवन में पहली बार कामवाली का ऐसा सुख मिला था. मैं अपने एनजीओ को पूरा समय दे पा रही थी.

रात का खाना निबटा कर किचन समेटा और सोने ही जा रही थी कि फोन आया, ‘‘आंटी, 20-30 हजार रुपए चाहिए.’’

‘‘30 हजार रुपए?’’ मैं ने चौंकते हुए पूछा. कम से कम 20 हजार रुपए तो देना ही होगा. प्लीज आंटी, बहुत जरूरी हैं. मालिक को दिल का दौरा पड़ा है. उन को अस्पताल में भरती करवा कर आ रही हूं. एक सप्ताह के  अंदर औपरेशन होगा.

‘‘ठीक है, देखती हूं,’’ कह कर मैं ने फोन काटा. राकेश से बिना पूछे मैं उसे आश्वस्त नहीं कर सकती थी. हालांकि 5 हजार के हिसाब से 3-4 महीने में ही पैसा चुकता कर देगी. पहले भी एकदो बार वह 4-5 हजार रुपए ले गई थी. कभी बच्चे के ऐडमिशन के लिए या किसी शादीब्याह में जाने के लिए. लेकिन 4-5 दिनों के अंदर ही लौटा जाती थी. राकेश पहले तो 20 हजार रुपए पर थोड़ा झिझके, मेरे समझाने पर 10 हजार रुपए देने को तैयार हुए. अपने पैसों में से छिपा कर 10 हजार रुपए मिला कर मैं ने दूसरे दिन उसे बुलवा कर पूरे 20 हजार रुपए दे दिए.

गीता तो आज पहचान में ही नहीं आ रही थी. शृंगारविहीन, कुम्हलाया चेहरा, पपड़ी पड़े होंठ, बिना कंघी किए बाल, सूजी आंखें. लगता था रातभर सोई नहीं थी. उस का ऐसा रूप पहली बार देख रही थी मैं. थोड़ा आश्चर्य भी हुआ, माना कि मकानमालिक अच्छा है, इन लोगों का खयाल भी रखता है, फिर भी है तो पराया ही. उस के लिए इतनी चिंता. उस दिन जब पति जेल गया तो यह बिलकुल सामान्य थी मानो कुछ हुआ ही न हो.

बहरहाल, 15 दिनों के लिए उस ने ही एक बाई ढूंढ़ कर लगा दी थी. मैं ने गीता को एक महीने की छुट्टी दे दी. महीनेभर बाद पुरानी गीता लौट आई. वही मुसकराता चेहरा, वही साजशृंगार.

‘‘कैसे हैं तुम्हारे मकानमालिक?’’

‘‘हां आंटी, अब ठीक हैं. कल से काम पर जाने लगे हैं. शुक्र है, सबकुछ समय रहते हो गया. मालिक के दोस्त का मैडिकल कालेज में कोई रिश्तेदार है, उस ने बहुत सहायता की वरना इतनी जल्दी औपरेशन कहां हो पाता.’’

‘‘तुम ने तो बहुत किया उस के लिए. पैसे से ले कर देखभाल, सेवासुश्रूषा तक. इतना तो अपने भी नहीं करते. उस के घर से कोई आया था?’’ न चाहते हुए भी मेरे स्वर में थोड़ा व्यंग्य आ गया था.

अचानक उस का हंसता चेहरा मुरझा गया. वह चुपचाप उठ कर अपने काम में लग गई. पोंछा लगातेलगाते मेरे पास आ कर बैठ गई, ‘‘आंटी, अब आप से क्या छिपाऊं. मैं मालिक के ही साथ रहती हूं.’’ इस बात को कहने के लिए इतनी देर में उस ने अपने को मानसिकरूप से तैयार किया था.

इन 3 सालों में इस सच का अंदाजा कुछकुछ मुझे हो ही गया था.

‘‘शादी कर ली है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘फिर तुम्हारा पति?’’

‘‘वो भी वहीं रहता है. मालिक की मां जब गांव चली गई, मैं ने उन का काम करना शुरू किया. पहले चौकाबरतन, फिर खाना बनाना. मैं बहुत कष्ट में थी. अच्छे खातेपीते घर की लड़की हूं. मायके में जमीनजायदाद है. पिताजी की गांव में किराने की दुकान है.

‘‘लड़का दिल्ली में नौकरी करता है. इसी बात पर शादी हो गई. 3 बच्चे हो गए. यहां आने पर असलियत पता चली. तीन कमाता तेरह पी जाता है. घर में एक पैसा भी नहीं देता. ऊपर से रात में पिटाई करता. बच्चे भूख से बिलबिलाते थे. अंत में घर के पास में ही बन रही सोसायटी में ठेकेदारी में काम करने लगी. वहां भी स्थिति अच्छी नहीं थी. पूरे 8 घंटे काम, ठेकेदार की गंदी हरकतें, भद्दी गालियां. मिस्त्री का घिनौना स्पर्श, फिर भी पैसे मिल रहे थे, बच्चे पल रहे थे.

‘‘एक दिन मेरी बेटी किसी काम से हमारे पास आई. एक मजदूर उस का हाथ पकड़ने लगा. मैं ने गुस्से में पास रखे डंडे से उस के हाथ पर जोर से मारा. हंगामा हो गया. उसी वक्त मालिक वहां से गुजर रहे थे. उन्होंने सब को डांटडपट कर भगाया. मैं लगातार रोए जा रही थी.

‘‘यहां क्यों काम करती हो?’’

‘‘क्या करूं? बच्चे खाएंगे क्या?’’

‘‘खाना बनाना आता है?’’

‘‘बचपन से तो वही करती आई हूं. करम फूट गए थे जो यहां आई.’’

‘‘कल सुबह स्कूल के बगल वाले मकान में आना, चावला मैनेजर का नाम पूछोगी, कोई भी बता देगा.’’

‘‘दूसरे दिन सुबह जो गई, तो वहीं की रह गई. पूरे दिन काम कर के रात का खाना बना कर लौट आती थी. बच्चे बगल वाले सरकारी स्कूल में जाते थे. उन्हें दिन का खाना वहां मिल जाता था. शाम को मालिक कहते कि बच्चों को यहीं बुला कर खिला दिया करो.

‘‘उस रोज खाना बना कर मैं बरतन मांज रही थी कि बेटी दौड़ती हुई आई, ‘अम्मा, बाबू को पुलिस पकड़ कर ले गई. बिलावल के साथ मारपीट कर रहा था.’

2 दिनों तक मैं दौड़ती रही. पुलिस कुछ नहीं सुन रही थी. अंत में मालिक ही छुड़वा कर लाए. उसे भी बगीचे की सफाई, घर की रखवाली के लिए रख लिया. जो मनुष्य अपनी बीवीबच्चों का, खुद अपना भी ध्यान नहीं रख सकता तो घर की क्या रखवाली करता. आंगन की तरफ पिछवाड़े में एक कमरा था, वहीं पड़ा रहता. बाद में हम लोग भी थोड़ीबहुत गृहस्थी के सामान के साथ वहीं रहने लगे.

‘‘दोपहर में बच्चे स्कूल गए हुए थे. सब काम निबटा कर सोचा कि थोड़ा सुस्ता लूं. कमरे में घुसी तो देखती हूं कि मेरा आदमी मेरी एकमात्र अमानत मेरे बक्से का ताला तोड़ कर सारा सामान इधरउधर कर के कुछ ढूंढ़ रहा है. बेटी कितने दिनों से पायल के लिए जिद कर रही थी, मैं ने जोड़जाड़ कर 1 हजार रुपए जमा किए थे, उसे रूमाल में बांध कर बक्से में रखते हुए उस ने शायद देख लिया था.

‘‘बेटी के शौक पर पानी फिरते देख मैं जोर से चिल्लाई, क्या खोज रहे हो? वह बोला, ‘तुम से मतलब?’

‘‘‘मेरा बक्सा है, सामान मेरा है, तब मतलब किस को होगा,’ मैं ने कहा.

‘‘‘ठहर, अभी बतलाता हूं किस का सामान है, हक जताती है,’ एक भद्दी गाली देते हुए वह मुझ पर झपटा.

‘‘मैं पलट कर भागने के लिए मुड़ी ही थी कि मेरे कान की बाली उस की उंगलियों में फंस गई. उस ने जोर से खींचा. बाली उस के हाथों में चली गई और मेरे कान से खून बहने लगा.

‘‘शोर सुन कर मालिक आ गए थे. उन्होंने उसे धक्का दे कर अलग किया. मेरी हालत देख कर उन्होंने कहा, ‘इस आदमी के साथ कैसे रह लेती हो.’ बक्से से रुपए और मेरी सोने की एक बाली ले कर वह भाग गया.

‘‘20 दिनों के बाद वह लौटा. कुछ दिनों तक तो गेट पर बैठा रहता था, बाद में मालिक के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगा. रहने की अनुमति तो उन्होंने दे दी लेकिन एक शर्त रखी कि मेरे ऊपर कभी हाथ उस ने उठाया तो वे उसे पुलिस को सौंप देंगे. वह तैयार हो गया लेकिन उस दिन के बाद से मैं ने अपने कमरे में जाना छोड़ दिया. फिर कब और कैसे मालिक के कमरे में मैं रहने लगी, पता ही नहीं चला.

‘‘दोनों को सहारे की जरूरत थी. पति से मैं ऊब चुकी थी. उस ने मार, तिरस्कार, दुख के सिवा मुझे दिया ही क्या था. आंटी, पतिपत्नी का संबंध तो समाज बनाता है. यह कोई खून का संबंध तो होता नहीं. अगर पति सातों वचनों में से एक भी नहीं निभाए तो क्या केवल पत्नी की ही जिम्मेदारी है कि उस के दिए सिंदूर को लगाए जीवनभर मरती रहे. पत्नी अगर कुल्टा होती है, बांझ होती है, लंगड़ी या लूली हो जाए, तो पति उसे तुरंत छोड़ देता है. फिर क्यों एक पत्नी उस की सारी यातनाओं को सहतेसहते मर जाए. औरत को भी तो जीने का हक है.

‘‘मालिक तो सच में बहुत अच्छे इंसान हैं. बच्चों के कारण ही उन्होंने शादी नहीं की. जिस ने मुझे जीवन दिया, मेरे बच्चों के मुंह में निवाला दिया, मेरे भविष्य की चिंता की, उस के प्रति मैं पूरी वफादार हूं. अब मेरा अपने आदमी के साथ कोई संबंध नहीं है.’’

‘‘आदमी कुछ नहीं कहता है?’’ मैं ने आश्चर्य से जानना चाहा.

‘‘शुरूशुरू में उस ने होहल्ला किया. अड़ोसपड़ोस वालों को जुटा लाया. लेकिन मैं शेरनी जैसी तन कर खड़ी हो गई, ‘खबरदार, मालिक को कोई कुछ बोला तो. यह मेरा पति जब पूरी रात मुझे मारता था, घर से निकाल देता था तब तुम लोग कहां थे? मेरे बच्चे भूख से छटपटाते थे, तब किसी ने उन का पेट क्यों नहीं भरा? जब मेरे साथ दुनिया वाले बदसुलूकी करते क्यों नहीं कोई मेरी रक्षा करने को आगे आया? उस वक्त तो मेरी मजबूरी का सब मजा लेते थे, खुद भी मुझे गिराने और नोचने की ताक में रहते थे. अब मुझे किसी की चिंता नहीं है. न अपने पति की, न समाज की. जिस को जो करना है, मैं निबट लूंगी सब से. मगर मालिक को बीच में मत घसीटना.’ पता नहीं कहां से मुझ में इतनी हिम्मत आ गई थी.

‘‘असल में अब मुझे मालिक का सहारा था, लगता था कुछ होगा तो वे संभाल लेंगे. पहले किस के भरोसे पर हिम्मत करती. आदमी ने भी बाद में समझौता कर लिया. कपड़ा वगैरह उसे मालिक दे देते हैं. कोई जिम्मेदारी नहीं, बैठेबिठाए खानाकपड़ा मिल रहा है स्वार्थी को. उसे यह सौदा अच्छा ही लगा.’’

बहुत ही सहजता से गीता ने अपनेआप को एक पत्नी, एक मां और रक्षिता में बांट लिया था. उस की बातें प्र्रवाहित थीं, ‘‘आंटी, औरत शादी ही इसलिए करती है कि उसे एक सुरक्षित छत, मजबूत सहारा और निश्चित भविष्य मिले. मुझे भी यही चाहिए था और कोई लालच मुझे नहीं था.

‘‘एक दिन तो मालिक ने अपनी पत्नी की सारी साडि़यां, गहने वगैरह भी मुझे थमा दिए थे. उन की साडि़यां तो मैं पहनती हूं, लेकिन गहने मैं ने जिद कर के बैंक के लौकर में रखवा दिए. इन पर उन की बेटी और बहू का ही हक है. उन्होंने मुझे सहारा दिया. मुझे और कुछ नहीं चाहिए.

‘‘औरत भले ही अपनी आजादी के लिए आंदोलन करती हो, आदमी पर आरोप लगाती हो कि उस को घर में बांध कर कैद कर के रखा है लेकिन आंटी, अगर हमें एकदम खुला भी छोड़ दिया जाए तो कुछ दिन तो यह आजादी हमें अच्छी लगेगी, आकाश में उड़ने का गुमान भी होगा लेकिन बाद में थक कर हमारे पंख टूट जाएंगे, बिखर जाएंगे. औरत को एक आधार, एक सहारा चाहिए ही. उसे बंधन पसंद है, उस की आदत है, उस का स्वभाव है यह.’’

मैं अवाक नारी सशक्तीकरण की धज्जियां उड़ाती उस की बातें सुन रही थी. अगर ईमानदारी से हर स्त्री अपने मन को टटोले तो क्या गीता गलत कह रही थी? यह एक महिला के सहज उदगार की व्याख्या थी. शायद हर स्त्री के भीतर दिल एकसा ही धड़कता है, उस की भावनाएं एकजैसी होती हैं. शिक्षा से भले ही उन के विचार बदल जाएं, भावनाएं नहीं बदलतीं. समाज के खोखले मापदंड के हिसाब से गीता की सोच, उस का चरित्र भले ही गलत हो, लेकिन मुझे तो वह किसी दृष्टिकोण से गलत नहीं लगी.

वनस्पति विज्ञान में एक पौधा होता है लाइकेन. कवक और शैवाल का मिला सत्य. उस पौधे में मौजूद कवक बाहरी आघातों से पौधे की रक्षा करता है जबकि शैवाल अपने हरे रंग के कारण प्रकाश संश्लेषण कर के पौधे को भोजन प्रदान करता है. दोनों एकदूसरे पर आश्रित, एकदूसरे से लाभान्वित. इस संबंध को सिम बायोसिस कहते हैं. गीता और मालिक का संबंध भी तो सिम बायोसिस ही है लाइकेन की तरह.

Love Story : फैसला – कैसा था शादीशुदा रवि और तलाकशुदा सविता का प्यार

Love Story : मैं अपने सहयोगियों के साथ औफिस की कैंटीन में बैठा था कि अचानक सविता दरवाजे पर नजर आई. खूबसूरती के साथसाथ उस में गजब की सैक्स अपील भी है. जिस की भी नजर उस पर पड़ी, उस की जबान को झटके से ताला लग गया.

‘‘रवि, लंच के बाद मुझ से मिल लेना,’’ यह मुझ से दूर से ही कह कर वह अपने रूम की तरफ चली गई.

मेरे सहयोगियों को मुझे छेड़ने का मसाला मिल गया. ‘तेरी तो लौटरी निकल आई है, रवि… भाभी तो मायके में हैं. उन्हें क्या पता कि पतिदेव किस खूबसूरत बला के चक्कर में फंसने जा रहे हैं… ऐश कर ले सविता के साथ. हम अंजू भाभी को कुछ नहीं बताएंगे…’ उन सब के ऐसे हंसीमजाक का निशाना मैं देर तक बना रहा.हमारे औफिस में तलाकशुदा सविता की रैपुटेशन बड़ी अजीब सी है. कुछ लोग उसे जबरदस्त फ्लर्ट स्त्री मानते हैं और उन की इस बात में मैं ने उस का नाम 5-6 ऐसे पुरुषों से जुड़ते देखा है, जिन्हें सीमित समय के लिए ही उस के प्रेमियों की श्रेणी में रखा  जा सकता है. उन में से 2 उस के आज भी अच्छे दोस्त हैं. बाकियों से अब उस की साधारण दुआसलाम ही है.

सविता के करीब आने की इच्छा रखने वालों की सूची तो बहुत लंबी होगी, पर वह इन दिलफेंक आशिकों को बिलकुल घास नहीं डालती. उस ने सदा अपने प्रेमियों को खुद चुना है और वे हमेशा विवाहित ही रहे हैं. मैं तो पिछले 2 महीनों से अपनी विवाहित जिंदगी में आई टैंशन व परेशानियों का शिकार बना हुआ था. अंजू 2 महीने से नाराज हो कर मायके में जमी हुई थी. अपने गुस्से के चलते मैं ने न उसे आने को कहा और न ही लेने गया. समस्या ऐसी उलझी थी कि उसे सुलझाने का कोई सिरा नजर नहीं आ रहा था. मेरा अंदाजा था कि सविता ने मुझे पिछले दिनों जरूरत से ज्यादा छुट्टियां लेने की सफाई देने को बुलाया है. तनाव के कारण ज्यादा शराब पी लेने से सुबह टाइम से औफिस आने की स्थिति में मैं कई बार नहीं रहा था. लंच के बाद मैं ने सविता के कक्ष में कदम रखा, तो उस ने बड़ी प्यारी, दिलकश मुसकान होंठों पर ला कर मेरा स्वागत किया.

‘‘हैलो, रवि, कैसे हो?’’ कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए उस ने दोस्ताना लहजे में वार्त्तालाप आरंभ किया.

‘‘अच्छा हूं, तुम सुनाओ,’’ आगे झूठ बोलने के लिए खुद को तैयार करने के चक्कर में मैं कुछ बेचैन हो गया था.

‘‘तुम से एक सहायता चाहिए.’’

अपनी हैरानी को काबू में रखते हुए मैं ने पूछा, ‘‘मैं क्या कर सकता हूं तुम्हारे लिए?’’

‘‘कुछ दिन पहले एक पार्टी में मैं तुम्हारे एक अच्छे दोस्त अरुण से मिली थी. वह तुम्हारे साथ कालेज में पढ़ता था.’’

‘‘वह जो बैंक में सर्विस करता है?’’

‘‘हां, वही. उस ने बताया कि तुम बहुत अच्छा गिटार बजाते हो.’’

‘‘अब उतना अच्छा अभ्यास नहीं रहा है,’’ अपने इकलौते शौक की चर्चा छिड़ जाने पर मैं मुसकरा पड़ा.

‘‘मेरे दिल में भी गिटार सीखने की तीव्र इच्छा पैदा हुई है, रवि. प्लीज कल शनिवार को मुझे एक अच्छा सा गिटार खरीदवा दो.’’

बड़े अपनेपन से किए गए सविता के आग्रह को टालने का सवाल ही नहीं उठता था. मैं ने उस के साथ बाजार जाना स्वीकार किया, तो वह किसी बच्चे की तरह खुश हो गई.

‘‘अंजू मायके गई हुई है न?’’

‘‘हां,’’ अपनी पत्नी के बारे में सवाल पूछे जाने पर मेरे होंठों से मुसकराहट गायब हो गई.

‘‘तब तो तुम कल सुबह नाश्ता भी मेरे साथ करोगे. मैं तुम्हें गोभी के परांठे खिलाऊंगी.’’

‘‘अरे, वाह. तुम्हें कैसे मालूम कि मैं उन का बड़ा शौकीन हूं?’’

‘‘तुम्हारे दोस्त अरुण ने बताया था.’’

‘‘मैं कल सुबह 9 बजे तक पहुंचूं?’’

‘‘हां, चलेगा.’’

सविता ने दोस्ताना अंदाज में मुसकराते हुए मुझे विदा किया. मेरे आए दिन छुट्टी लेने के विषय पर चर्चा ही नहीं छिड़ी थी, लेकिन अपने सहयोगियों को मैं सच्ची बात बता देता, तो वे मेरा जीना मुश्किल कर देते. इसलिए उन से बोला, ‘‘ज्यादा छुट्टियां न लेने के लिए लैक्चर सुन कर आ रहा हूं.’’ यह झूठ बोल कर मैं अपने काम में व्यस्त हो गया. पिछले 2 महीनों में वह पहली शुक्रवार की रात थी जब मैं शराब पी कर नहीं सोया. कारण यही था कि मैं सोते रह जाने का खतरा नहीं उठाना चाहता था. सविता के साथ पूरा दिन गुजारने का कार्यक्रम मुझे एकाएक जोश और उत्साह से भर गया था. पिछले 2 महीनों से दिलोदिमाग पर छाए तनाव और गुस्से के बादल फट गए थे. कालेज के दिनों में जब मैं अपनी गर्लफ्रैंड से मिलने जाता था, तब बड़े सलीके से तैयार होता था. अगले दिन सुबह भी मैं ढंग से तैयार हुआ. ऐसा उत्साह और खुशी दिलोदिमाग पर छाई थी, मानो पहली डेट पर जा रहा हूं. सविता पर पहली नजर पड़ी तो उस के रंगरूप ने मेरी आंखें ही चौंधिया दीं. नीली जींस और काले टौप में वह बहुत आकर्षक लग रही थी. उस पल से ही उस जादूगरनी का जादू मेरे सिर चढ़ कर बोलने लगा. दिल की धड़कनें बेकाबू हो चलीं. मैं उस के इशारे पर नाचने को एकदम तैयार था. फिर हंसीखुशी के साथ बीतते समय को जैसे पंख लग गए. कब सुबह से रात हुई, पता ही नहीं चला.

सविता जैसी फैशनेबल, आधुनिक स्त्री से खाना बनाने की कला में पारंगत होने की उम्मीद कम होती है, लेकिन उस सुबह उस के बनाए गोभी के परांठे खा कर मन पूरी तरह तृप्त हो गया. प्यारी और मीठीमीठी बातें करना उसे खूब आता था. कई बार तो मैं उस का चेहरा मंत्रमुग्ध सा देखता रह जाता और उस की बात बिलकुल भी समझ में नहीं आती.

‘‘कहां हो, रवि? मेरी बात सुन नहीं रहे हो न?’’ वह नकली नाराजगी दर्शाते हुए शिकायत करती और मैं बुरी तरह झेंप उठता.

मैं ने उसे स्वादिष्ठ परांठे खिलाने के लिए धन्यवाद दिया तो उस ने सहजता से मुसकराते हुए कहा, ‘‘किसी अच्छे दोस्त के लिए कुकिंग करना मुझे पसंद है. मुझे भी बड़ा मजा आया है.’’

‘‘मुझे तुम अपना अच्छा दोस्त मानती हो?’’

‘‘बिलकुल,’’ उस ने तुरंत जवाब दिया.

‘‘कब से?’’

‘‘इस सवाल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण एक दूसरा सवाल है, रवि.’’

‘‘कौन सा?’’

‘‘क्या तुम आगे भी मेरे अच्छे दोस्त बने रहना चाहोगे?’’ उस ने मेरी आंखों में गहराई से झांका.

‘‘बिलकुल बना रहना चाहूंगा, पर क्या मुझे कुछ खास करना पड़ेगा तुम्हारी दोस्ती पाने के लिए?’’

‘‘शायद… लेकिन इस विषय पर हम बाद में बातें करेंगे. अब गिटार खरीदने चलें?’’ सवाल का जवाब देना टाल कर सविता ने मेरी उत्सुकता को बढ़ावा ही दिया.

हमारे बीच बातचीत बड़ी सहजता से हो रही थी. हमें एकदूसरे का साथ इतना भा रहा था कि कहीं भी असहज खामोशी का सामना नहीं करना पड़ा. हमारे बीच औफिस से जुड़ी बातें बिलकुल नहीं हुईं. टीवी सीरियल, फिल्म, खेल, राजनीति, फैशन, खानपान जैसे विषयों पर हमारे बीच दिलचस्प चर्चा खूब चली. उस ने अंजू से जुड़ा कोई सवाल मुझ से पूछ कर बड़ी कृपा की. हां, उस ने अपने भूतपूर्व पति संजीव से अपने संबंधों के बारे में, मेरे बिना पूछे ही जानकारी दे दी.

‘‘संजीव से मेरा तलाक उस की जिंदगी में आई एक दूसरी औरतके कारण हुआ था, रवि. वह औरत मेरी भी अच्छी सहेली थी,’’ अपने बारे में बताते हुए सविता दुखी या परेशान बिलकुल नजर नहीं आ रही थी.

‘‘तो पति ने तुम्हारी सहेली के साथ मिल कर तुम्हें धोखा दिया था?’’ मैं ने सहानुभूतिपूर्ण लहजे में टिप्पणी की.

‘‘हां, पर एक कमाल की बात बताऊं?’’

‘‘हांहां.’’

‘‘मुझे पति से खूब नाराजगी व शिकायत रही. पर वंदना नाम की उस दूसरी औरत के प्रति मेरे दिल में कभी वैरभाव नहीं रहा.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘वंदना का दिल सोने का था, रवि. उस के साथ मैं ने बहुत सारा समय हंसतेमुसकराते गुजारा था. यदि उस ने वह गलत कदम न उठाया होता तो वह मेरी सब से अच्छी दोस्त होती.’’

‘‘लगता है तुम्हें पति से ज्यादा अपनी जिंदगी में वंदना की कमी खलती है?’’

‘‘अच्छे दोस्त बड़ी मुश्किल से मिलते हैं, रवि. शादी कर के एक पति या पत्नी तो हर कोई पा लेता है.’’

‘‘यह तो बड़े पते की बात कही है तुम ने.’’

‘‘कोई बात पते की तभी होती है जब उस का सही महत्त्व भी इंसान समझ ले. बोलबोल कर मेरा गला सूख गया है. अब कुछ पिलवा तो दो, जनाब,’’ बड़ी कुशलता से उस ने बातचीत का विषय बदला और मेरी बांह पकड़ कर एक रेस्तरां की दिशा में बढ़ चली.

उस के स्पर्श का एहसास देर तक मेरी नसों में सनसनाहट पैदा करता रहा. सविता की फरमाइश पर हम ने एक फिल्म भी देख डाली. हौल में उस ने मेरा हाथ भी पकड़े रखा. मैं ने एक बार हिम्मत कर उस के बदन के साथ शरारत करनी चाही, तो उस ने मुझे प्यार से घूर कर रोक दिया. ‘‘शांति से बैठो और मूवी का मजा लो रवि,’’ उस की फुसफुसाहट में कुछ ऐसी अदा थी कि मेरा मन जरा भी मायूसी और चिढ़ का शिकार नहीं बना.

लंच हम ने एक बढि़या होटल में किया. फिर अच्छी देखपरख के बाद गिटार खरीदने में मैं ने उस की मदद की. उस के दिल में अपनी छवि बेहतर बनाने के लिए वह गिटार मैं उसे अपनी तरफ से उपहार में देना चाहता था, पर वह राजी नहीं हुई.

‘‘तुम चाहो तो मुझे गिटार सिखाने की जिम्मेदारी ले सकते हो,’’ वह बोली तो उस के इस प्रस्ताव को सुन कर मैं फिर से खुश हो गया.

जब हम सविता के घर वापस लौटे, तो रात के 8 बजने वाले थे. उस ने कौफी पिलाने की बात कह कर मेरी और ज्यादा समय उस के साथ गुजारने की इच्छा पूरी कर दी. वह कौफी बनाने किचन में गई तो मैं भी उस के पीछेपीछे किचन में पहुंच गया. उस के नजदीक खड़ा हो कर मैं ऊपर से हलकीफुलकी बातें करने लगा, पर मेरे मन में अजीब सी उत्तेजना लगातार बढ़ती जा रही थी. अंजू के प्यार से लंबे समय तक वंचित रहा मेरा मन सविता के सामीप्य की गरमाहट को महसूस करते हुए दोस्ती की सीमा को तोड़ने के लिए लगभग तैयार हो चुका था. तभी सविता ने मेरी तरफ घूम कर मुझे देखा. उस ने जरूर मेरी प्यासी नजरों को पढ़ लिया होगा, क्योंकि अचानक मेरा हाथ पकड़ कर वह मुझे ड्राइंगरूम की तरफ ले चली.

मैं ने रास्ते में उसे बांहों में भरने की कोशिश की, तो उस ने बिना घबराए मुझ से कहा, ‘‘रवि, मैं तुम से कुछ खास बातें करना चाहती हूं. उन बातों को किए बिना तुम को मैं दोस्त से प्रेमी नहीं बना सकती हूं.’’ उसे नाराज कर के कुछ करने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता था. मैं अपनी भावनाओं को नियंत्रण में कर के ड्राइंगरूम में आ बैठा और सविता बेहिचक मेरी बगल में बैठ गई.

मेरा हाथ पकड़ कर उस ने हलकेफुलके अंदाज में पूछा, ‘‘मेरे साथ आज का दिन कैसा गुजरा है, रवि?’’

‘‘मेरी जिंदगी के सब से खूबसूरत दिनों में से एक होगा आज का दिन,’’ मैं ने सचाई बता दी.

‘‘तुम आगे भी मुझ से जुड़े रहना चाहोगे?’’

‘‘हां… और तुम?’’ मैं ने उस की आंखों में गहराई तक झांका.

‘‘मैं भी,’’ उस ने नजरें हटाए बिना जवाब दिया, ‘‘लेकिन अंजू के विषय में सोचे बिना हम अपने संबंधों को मजबूत आधार नहीं दे सकते.’’

‘‘अंजू को बीच में लाना जरूरी है क्या?’’ मेरा स्वर बेचैनी से भर उठा.

‘‘तुम उसे दूर रखना चाहोगे?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वह तुम्हें मेरी प्रेमिका के रूप में स्वीकार नहीं करेगी.’’

‘‘और तुम मुझे अपनी प्रेमिका बनाना चाहते हो?’’

‘‘क्या तुम ऐसा नहीं चाहती हो?’’ मेरी चिढ़ बढ़ रही थी.

कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने गंभीर लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘रवि, लोग मुझे फ्लर्ट मानते हैं और तुम्हें भी जरूर लगा होगा कि मैं तुम्हें अपने नजदीक आने का खुला निमंत्रण दे रही हूं. इस बात में सचाई है क्योंकि मैं चाहती थी कि तुम मेरा आकर्षण गहराई से महसूस करो. ऐसा करने के पीछे मेरी क्या मंशा है, मैं तुम्हें बताऊंगी. पर पहले तुम मेरे एक सवाल का जवाब दो, प्लीज.’’

‘‘पूछो,’’ उस को भावुक होता देख मैं भी संजीदा हो उठा.

‘‘क्या तुम अंजू को तलाक देने का फैसला कर चुके हो?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ मैं ने चौंकते हुए जवाब दिया.

‘‘मुझे तुम्हारे दोस्त अरुण से मालूम पड़ा कि अंजू तुम से नाराज हो कर पिछले 2 महीने से मायके में रह रही है. तुम उसे वापस क्यों नहीं ला रहे हो?’’

‘‘हमारे बीच गंभीर मनमुटाव चल रहा है. उस को अपनी जबान…’’

‘‘मुझे पूरा ब्योरा बाद में बताना रवि, पर क्या तुम्हें उस की याद नहीं आती है?’’ सविता ने मुझे कोमल लहजे में टोक कर सवाल पूछा.

‘‘आती है… जरूर आती है, पर ताली एक हाथ से तो नहीं बज सकती है, सविता.’’

‘‘तुम्हारी बात ठीक है, पर मिल कर साथ रहने का आनंद तो तुम दोनों ही खो रहे हो न?’’

‘‘हां, पर…’’

‘‘देखो, कुसूरवार तो तुम दोनों ही होंगे… कम या ज्यादा की बात महत्त्वपूर्ण नहीं है, रवि. इस मनमुटाव के चलते जिंदगी के कीमती पल तो तुम दोनों ही बेकार गवां रहे हो या नहीं?’’

‘‘तुम मुझे क्या समझाना चाह रही हो?’’ मेरा मूड खराब होता जा रहा था.

‘‘रवि, मेरी बात ध्यान से सुनो,’’ सविता का स्वर अपनेपन से भर उठा, ‘‘आज तुम्हारे साथ सारा दिन मौजमस्ती के साथ गुजार कर मैं ने तुम्हें अंजू की याद दिलाने की कोशिश की है. उस से दूर रह कर तुम उन सब सुखसुविधाओं से खुद को वंचित रख रहे हो जिन्हें एक अपना समझने वाली स्त्री ही तुम्हें दे सकती है.

‘‘मेरा आए दिन ऐसे पुरुषों से सामना होता है, जो अपनी अच्छीखासी पत्नी से नहीं, बल्कि मुझ से संबंध बनाने को उतावले नजर आते हैं

‘‘मेरे साथ उन का जैसा रोमांटिक और हंसीखुशी भरा व्यवहार होता है, अगर वैसा ही अच्छा व्यवहार वे अपनी पत्नियों के साथ करें, तो वे भी उन्हें किसी प्रेमिका सी प्रिय और आकर्षक लगने लगेंगी.

‘‘तुम मुझे बहुत पसंद हो, पर मैं तुम्हें और अंजू दोनों को ही अपना अच्छा दोस्त बनाना चाहूंगी. हमारे बीच इसी तरह का संबंध हम तीनों के लिए हितकारी होगा.

‘‘तुम चाहो तो मेरे प्रेमी बन कर सिर्फ आज रात मेरे साथ सो सकते हो. लेकिन तुम ने ऐसा किया, तो वह मेरी हार होगी. कल से हम सिर्फ सहयोगी रह जाएंगे.

‘‘तुम ने दोस्त बनने का निर्णय लिया, तो मेरी जीत होगी. यह दोस्ती का रिश्ता हम तीनों के बीच आजीवन चलेगा, मुझे इस का पक्का विश्वास है.’’

‘‘बोलो, क्या फैसला करते हो, रवि? अंजू और अपने लिए मेरी आजीवन दोस्ती चाहोगे या सिर्फ 1 रात के लिए मेरी देह का सुख?’’

मुझे फैसला करने में जरा भी वक्त नहीं लगा. सविता के समझाने ने मेरी आंखें खोल दी थीं. मुझे अंजू एकदम से बहुत याद आई और मन उस से मिलने को तड़प उठा.

‘‘मैं अभी अंजू से मिलने और उसे वापस लाने को जा रहा हूं, मेरी अच्छी दोस्त.’’ मेरा फैसला सुन कर सविता का चेहरा फूल सा खिल उठा और मैं मुसकराता हुआ विदा लेने को उठ खड़ा हुआ.

Romantic Story : नया सवेरा – गरिमा और शिशिर के प्यार के बीच में कौन आ रहा था

Romantic Story : “अरे वाह, शिशिर, फ्लैट तो बहुत खूबसूरत है. और देखो न, यहां खिड़की से बाहर का दृश्य कितना सुंदर दिख रहा है,” गरिमा फ्लैट के अंदर दाखिल होते ही चहकती हुई बोलती है.

शिशिर और गरिमा दोनों एकदूसरे को चाहते थे. अभी ज्यादा समय नहीं गुजरा था जब दोनों के मन में प्रेम की कोंपले फूटी थीं. दोनों एक ही कंपनी में कार्यरत थे. शिशिर कंपनी का पुराना एंप्लौय था जबकि गरिमा ने कुछ महीने पहले ही जौइन किया था. 24 वर्षीया गरिमा में अल्हड़पन और शोखियां भरी थीं. उस में खूबसूरती के साथ टैलेंट भी था लेकिन वह कुछ ज्यादा ही भावुक थी, शायद, स्त्री होना उस का कारण हो क्योंकि लोग कहते हैं न, महिलाएं बहुत भावुक होती हैं.

दूसरी तरफ शिशिर 30 वर्ष की उम्र पार कर चुका था. वह काम तथा जीवन दोनों में काफी प्रोफैशनल सा व्यक्तित्व रखता था. वह दिल की सुनता मगर कभीकभी उस का दिमाग दिल पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखता था. दोनों साथ काम करते हुए कब प्यार की जंजीर में उलझे, उन्हें पता न चला.

शिशिर लुधियाना के एक छोटे से गांव से आया था. दिल्ली में रहते हुए उस ने कालेज की पढ़ाई पूरी की और फिर एक कंपनी में अच्छी पोस्ट पर नौकरी करने लगा. वह अपने दोस्तों के साथ किराए के कमरे में रहता था. लेकिन अब उस ने कुछ पैसे जमा कर लिए थे तो एक छोटा सा फ्लैट खरीदने की तमन्ना ने जोर पकड़ा और आज वह गरिमा के साथ फ्लैट देखने आया था.

गरिमा रांची की रहने वाली थी. वह पढ़ने में बहुत तेज थी, इसीलिए सकौलरशिप के माध्यम से दिल्ली में कालेज की पढ़ाई पूरी करने आई थी. बीकौम पूरा होते ही उस ने अपना खर्च निकालने के खयाल से कंपनी में एक छोटी सी नौकरी करना शुरू किया था. दिल्ली जैसे शहर में रहने पर खर्चे थोड़े अधिक थे और उस के क्लर्क पिता जो रुपए भेजते उस में गरिमा का पूरा महीना नहीं चल पाता था.

शिशिर गरिमा को बहुत भोली समझता था लेकिन गरिमा अपने इमोशनल के कारण भोली दिख रही थी.

“गरिमा, अब हम दोनों इस फ्लैट में साथ रहेंगे. तुम अपना गर्ल्स होस्टल छोड़ देना.”

“साथ, अभी से? पहले तुम्हारे व्यक्तित्व को थोड़ा अच्छे से जान लूं, फिर शादी के बंधन में बंध जाऊं, तब. फिलहाल तो जनाब इस फ्लैट को खरीदने का काम कर लीजिए,” गरिमा ने मुसकराते हुए कहा.

“क्या यार, तुम भी न, देश की राजधानी में रह कर आज की लाइफ से दूर हो. यहां के कल्चर में नहीं देख रही हो, लोग एकदूसरे के साथ रहने के लिए शादी का इंतजार नहीं करते?”

“लेकिन मैं इस सोच को सही नहीं मानती.”

“अच्छा देखो, तुम ने भी तो कहा न कि तुम मुझे और अधिक जानना चाहती हो. तो फिर मुझे बेहतर जानने के लिए मेरे साथ रहना और जरूरी हो जाता है,” शिशिर ने गरिमा को कन्विंस करने के खयाल से कहा.

“अच्छा, जब समय आएगा तब देखा जाएगा. अब चलो,” गरिमा ने कहा.

फ्लैट देख कर दोनों वहां से चले गए. कुछ दिनों बाद शिशिर को फ्लैट की चाबी मिल गई. उस के फ्लैट में थोड़ा सा रिनोवेशन का काम था, जिसे शिशिर ने करवाना शुरू कर दिया था. कभीकभी गरिमा भी फ्लैट पर काम देखने चली जाया करती थी.

औफिस में लंचब्रेक हो गया. गरिमा कैंटीन की तरफ बढ़ रही थी कि शिशिर ने रोका, “चलो, किसी होटल में लंच लेते हैं.”

“नहीं, फिर कभी. पास की कैंटीन में ही ठीक है. होटल गई तो औफिस लौटने में देर हो जाएगी.”

“अच्छा, शाम में चलते हैं. शौपिंग के साथ रात का खाना बाहर,” शिशिर ने कहा.

“शौपिंग, बात क्या है? आज तो मेरा जन्मदिन भी नहीं है,” गरिमा ने शरारती अंदाज में कहा.

“फ्लैट पूरी तरह तैयार है. उस में कुछ नए फर्नीचर रखवाने हैं. वहां सब तुम्हारी पसंद का होगा, इसलिए शौपिंग करने चलना है,” कहते हुए शिशिर गरिमा को पास खींच लेता है.

दोनों खुश थे. शिशिर नए फ्लैट में शिफ्ट हो गया था. गरिमा ने शुरुआत में साथ रहने को मना कर दिया था लेकिन शिशिर के प्यार की आगे उसे झुकना पड़ा. अब वे दोनों अपने नए आशियाने में एकसाथ रहने लगे. गरिमा का एमकौम में एडमिशन हो गया था. साथ ही, उस ने पार्टटाइम जौब को करना जारी रखा.

इधर, शिशिर और गरिमा को साथ रहते 6 महीने से ऊपर हो गए. शुरुआत के दिन तितलियों के पंख से भी अधिक खूबसूरत और हलके थे. उन हलके रंगीन दिनों में दोनों स्वयं को बेहद खुशहाल जोड़ी मानने लगे थे. गरिमा को भी लगने लगा कि शायद शिशिर ही वह व्यक्ति है जिस के साथ वह आजीवन खुश रह सकती है. लेकिन बाद के दिनों में उस के भ्रमजाल के धागे एकएक कर टूटने लगे.

शनिवार का दिन था. शिशिर जगा तो देखा कि सुबह के 9 बज गए हैं. देररात तक वह लैपटौप पर जमा हुआ था, इस कारण सुबह इतनी देर से उस की आंख खुली. लेकिन पर्याप्त नींद न लेने के कारण अभी भी सिर भारी लग रहा था.

“यार, जरा एक कप हौट कौफी पिला दो, सिर कुछ हलका हो,” शिशिर ने गरिमा को आवाज लगाई.

बैडरूम से निकलते हुए गरिमा सामने दिख गई, “अरे, सुबह कहां के लिए तैयार हो गईं, आज तो कालेज की छुट्टी है?”

“कालेज की छुट्टी है मगर काम की नहीं. आज एक स्पैशल काम मिला है. यदि मैं इस में सफल हो गई तो एक बड़ी कंपनी में मुझे बड़ी पोस्ट मिल जाएगी. फिर तो अपनी अच्छीखासी सैलरी होगी,” गरिमा चहकती हुई बोली.

“अच्छा, ठीक है. जरा कौफी पिला दो और मेरा नाश्ता भी रेडी रखो.”

“सौरी शिशिर, जल्दी में हूं. औफिस समय से पहुंचना जरूरी है. तुम मैनेज कर लो और हां, लौटने में देर होगी. मैं डिनर कर के आऊंगी, मेरा इंतजार मत करना. ओके बाय…,” कहती हुई गरिमा तेज कदमों से बाहर निकल गई.

शिशिर मन ही मन खीझ कर रह गया. इन 6 महीनों में वह युवक से गृहस्थ पुरुष की भूमिका में आ गया था. गृहस्थ पुरुष जो घर के काम और जिम्मेदारियों को स्त्री का केंद्र मानता था. पुरुष की दुनिया बाहर थी और घर की जवाबदेही स्त्री के जिम्मे. हालांकि शिशिर के इस परिवर्तन में कुछ हद तक गरिमा की भी भूमिका थी. चंचल चहकती रहने वाली गरिमा मध्यवर्गीय परिवार से थी जहां छोटीछोटी बात या काम को ले कर तनाव करना उस ने नहीं सीखा था. इसलिए सामान्य नारीत्व को जीते हुए वह घर के कामों को निबटा दिया कर देती थी. लेकिन शिशिर पर इस का बुरा प्रभाव पड़ा. वह अपने दायित्व को कम करने लगा तथा पुरुषत्व के अहंकार को मन पर हावी करने लगा.

गरिमा ने अपनी स्किल और टैलेंट की बदौलत कंपनी में अच्छी पोस्ट प्राप्त कर ली थी. अब उस का पार्टटाइम जौब अच्छी फिक्स्ड नौकरी बन गई. गरिमा की व्यस्तता बढ़ गई थी. उसे एमकौम भी कंप्लीट करना था और अपनी नौकरी पर भी पूरा फोकस करना था. ऐसे में वह शिशिर या दैनिक कार्य में पहले की तरह समय नहीं दे पा रही थी. वह शिशिर को आज के समय की सोच का युवक समझती थी. मगर शायद यह उस का भ्रम था. क्योंकि शिशिर के व्यवहार में कुछ हद तक परिवर्तन आने लगा था. गरिमा अपनी व्यस्तता के कारण थोड़ी सी कम जिम्मेदार हो गई थी. उसे लगता, शिशिर उस की परिस्थिति समझेगा और उसे सहयोग व स्नेह देगा लेकिन यहां बात इस के उलट थी.

शिशिर बातबात पर गरिमा पर खीझ जाता. तेज आवाज में बोल देता. उस के कपड़ेजूते इधरउधर होते तो इस के लिए भी वह गरिमा पर ही गुस्सा होता- “देख रहा हूं, किसी भी चीज का तुम्हें खयाल नहीं रहा. मेरे प्रति तुम्हारा प्यार कम होता जा रहा है,” शिशिर उबल रहा था.

“यह क्या कह रहे हो, सुशील. भला काम के आधार पर तुम मेरे प्यार को कैसे माप सकते हो? तुम देख रहे हो न कि मैं कितनी मेहनत कर रही हूं. मेरे खुद के भी खानेसोने का सही रूटीन नहीं है. मेरी पढ़ाई पूरी हो जाए, उस के बाद सिर्फ मेरा जौब ही रहेगा न. फिर तुम्हें शिकायत नहीं होगी. पूरा समय दूंगी.”

“अच्छा, तुम लड़कियां भी न कुछ ज्यादा ही महत्त्वाकांक्षी होती हो. अरे जौब कर रही हो तो पढ़ाई छोड़ो और यदि पढ़ाई जारी रखना है तो जौब बाद में कर लेना. जब संभल नहीं रहा तो चारचार जगह पैरहाथ क्यों चलाती हो?”

“संभल नहीं रहा… सुनो, मैं तो अपनी लाइफ, पढ़ाई, नौकरी सबकुछ संभाल रही हूं. तुम अपनी देखो, खुद को ही संभाल नहीं पा रहे हो. मैं तुम्हारे व्यवहार से घबरा कर अपनी अभिलाषा और सपनों को नहीं छोड़ सकती,” कहती हुई गरिमा गुस्से में कमरे में चली जाती है.

शिशिर गुस्से में हौल में ही पड़ा रहा. सुबह गरिमा उठ कर अपने रूटीन वर्क में लग गई. रविवार का दिन था तो उस ने सोचा, आज थोड़ा सा रिलैक्स टाइम बिता लूंगी. लेकिन शिशिर की बात उसे अब भी चुभ रही थी. शिशिर ने रात का खाना भी नहीं खाया था. सुबह उठा तो पेट भूख का एहसास करा रहा था. उस ने गरिमा को सौरी बोला. ‘सौरी’ शब्द सुन कर गरिमा ने भी लंबी सांस खींची.‌ उस ने समझा, शिशिर को रात वाले बातव्यवहार पर शर्मिंदगी है. बात सही थी, शिशिर को एहसास हुआ कि वह कुछ ज्यादा बोला. लेकिन यह एहसास थोड़े समय के लिए ही था. शिशिर यदाकदा गरिमा को तल्ख बात बोल ही देता था. एक रोवाबदार पति की भांति उस पर अपना शिकंजा कसता. गरिमा कुछ हद तक न चाहते हुए भी आपसी तालमेल को बरकरार रखने की चेष्टा कर रही थी.

प्रेम व खिंचाव के मिश्रणभरे माहौल में साथ रहते हुए एक साल बीत गया. गरिमा को कंपनी की तरफ से प्रोफैशनल टूर के लिए जाना था. वह तैयारियां करने लगी. शिशिर को उस का जाना खल रहा था. वह गरिमा के लिए कुछ ज्यादा हीं पजैसिव होने लगा था. अब उसे गरिमा का ज्यादा स्वच्छंद रहना चुभता था. वह बोल पड़ा, “मैं अच्छाखासा कमा लेता हूं, फिर तुम्हें यों काम के पीछे भागने की क्या जरूरत है, छोड़ो यह सब?”

“शिशिर, यह तुम बोल रहे हो? तुम तो देश की राजधानी में रहने वाले आज के युवा हो?”

“हां, मगर मुझे तुम्हारा यों बाहर लोगों के साथ रहना अच्छा नहीं लगता. मैं तो, बस, तुम्हें अपने दिल में ही कैद कर के रखना चाहता हूं,” कहते हुए शिशिर ने गरिमा को बांहों में भरना चाहा लेकिन गरिमा ने उस की बांहें झटक दीं.

“इसे दिल में नहीं, घर में कैद करना कहते हैं, शिशिर. तुम दकियानूसी सोच की तरफ बढ़ रहे हो.”

“तुम जो समझो मगर मुझे तुम्हारा टूर पर जाना अच्छा नहीं लग रहा. छोड़ो न…”

“नहीं,” गरिमा बीच में ही बोल पड़ी, “मैं ने तुम्हारे साथ कितना एडजस्ट किया है. छोटीछोटी बातों को इग्नोर कर के तुम्हारे साथ खुशीखुशी रहने का प्रयास करती रही. लेकिन अब नहीं. मैं औफिस टूर पर अवश्य जाऊंगी और मेरे आने का इंतजार न करना.”

“मतलब?” शिशिर समझ न सका.

“मतलब यही कि अब मैं समझ चुकी हूं कि जिंदगी सिर्फ भावनाओं पर टिकी नहीं होती. उसे समझदाररूपी दृढ़ स्तंभ की भी आवश्यकता होती है और अब मेरी समझदारी कह रही है कि मुझे तुम से दूर हो जाना चाहिए.”

“गरिमा, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. तुम मेरे प्यार को यों छोड़ नहीं सकतीं. शीघ्र ही हम दोनों वैवाहिक बंधन में बंध जाएंगे.”

“वैवाहिक बंधन? मैं ने ठीक ही कहा था कि शादी से पहले एकदूसरे को अच्छी तरह जान लेना चाहिए. कुछ महीनों के साथ में ही मैं तुम्हें जान चुकी हूं. मैं भावुक हूं, बेवकूफ नहीं. लिवइन में रहना मेरे जीवन का एक गलत फैसला रहा.”

“मैं ने तुम्हें खुशियों के उजाले दिए,” शिशिर ने कहा.

“तुम्हारे साथ बिताए गए समय में चंद खुशी जबकि स्याह घनी रात अधिक मिली. लेकिन मैं अपने अस्तित्व को इस रात के अंधेरे में खोने नहीं दूंगी. मैं जा रही हूं अपने जीवन को नए सिरे से जीने के लिए. मुझे एहसास हो रहा है कि नया सवेरा मेरा इंतजार कर रहा है,” कहती हुई गरिमा अपना सामान पैक करती है और शिशिर का साथ छोड़ कर निकल पड़ती है अपनी मेहनत और अपने सपनों को नूतन सुखद दिन से मिलवाने के लिए.

लेखिका- रेखा भारती 

Hindi Story : तुम डरना मत राहुल – क्या राहुल को मिल सके अपने जवाब

Hindi Story : सारा ने कालेज जाने के लिए तैयार अपने बेटे राहुल को प्यारभरी नजरों से निहारते हुए कहा, ‘‘नर्वस क्यों हो बेटा. मेहनत तो की है न, एग्जाम अच्छा होगा, डोंट वरी.’’ राहुल ने मां से मायूसी से कहा, ‘‘पता नहीं मां, देखते हैं.’’

औफिस के लिए निकलते जय ने राहुल से कहा, ‘‘आओ बेटा, आज मैं तुम्हें कालेज छोड़ देता हूं.’’ ‘‘नहीं पापा, रहने दीजिए, मुझे अजय को भी उस के घर से लेना है, उस की स्कूटी खराब है, मैं अपनी स्कूटी ले जाऊंगा तो आने में भी हमें आसानी रहेगी.’’

‘‘ठीक है, औल द बैस्ट,’’ कह कर जय औफिस के लिए निकल गए. सारा ने भी स्नेहपूर्वक बेटे को विदा किया और उस के बाद वह घरेलू कामों में लग गई. वह घर के काम तो कर रही थी पर उस का मन राहुल में अटका था. सारा और जय के अंतर्जातीय प्रेमविवाह को 25 साल हो गए थे. दोनों के बीच न तो धर्म कभी मुद्दा बना, न ही दोनों ने कभी लोगों की परवा की. दोनों का मानना था कि प्रेम से अनजान लोग इंसान के दिलोदिमाग को धर्म के बंधन में बांधते रहते हैं. धर्म को एक किनारे रख दोनों ने कोर्टमैरिज कर वैवाहिक जीवन की मजबूत नींव रख ली थी. लेकिन 21 वर्षीय राहुल कुछ समय से धर्म के बारे में भ्रमित था, उस के सवाल कुछ ऐसे होते थे, ‘मां, कौन सी सुप्रीम पावर सच है? हर धर्म अपने को बड़ा मानता है, पर वास्तव में बड़ा कौन सा है?’

सारा और जय अभी तक तो हलकेफुलके ढंग उसे जवाब दे देते थे लेकिन अब सारा को बात कुछ गंभीर लग रही थी, राहुल इस विषय पर बहुत सोचने लगा था. धर्म से जुड़ी हर बात पर उस का एक तर्क होता था. न कभी सारा ने इसलाम धर्म की बात की थी और न ही जय ने कभी वेदपुराण व पंडितों की. दोनों, बस, जीवन की राह पर एकदूसरे के साथ प्यार से आगे बढ़ रहे थे. जय उच्च पद पर कार्यरत था जबकि सारा एक अच्छी हाउसवाइफ थी.

राहुल के बारे में यों ही सोचतेसोचते सारा का पूरा दिन निकल गया और राहुल शाम को परीक्षा दे कर घर भी आ गया. वह खुश था, उस का एग्जाम बहुत अच्छा हुआ था. दोनों मांबेटे ने साथ खाना खाया और राहुल फिर सारा के पास ही लेट गया. राहुल को गंभीर देख सारा ने पूछा, ‘‘क्या सोच रहे हो बेटे?’’ ‘‘वही सब मां.’’

सारा सचेत हुई, ‘‘क्या?’’ ‘‘बस, यही कि मैं जब अजय को लेने गया तो वह पूजा कर रहा था. उस की मम्मी ने उसे तिलक लगाया, उस का मीठा मुंह करवाया और उसे शुभकामनाएं दीं. लेकिन इतना कुछ करने के बाद भी अजय के अधिकांश सवाल तो छूट ही गए और काफी कुछ उसे आया भी नहीं. वह काफी उदास था, कह रहा था कि इतना पूजापाठ किया, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. पर आप ने तो यह सब नहीं किया, फिर भी मेरा एग्जाम अच्छा हुआ. मां, आखिर उस का इतना पूजापाठ करने का क्या फायदा हुआ. क्यों नहीं सुनी गई उस की. वैसे, मैं मन ही मन काफी डरा हुआ था, हमेशा की तरह आप मुझे ऐसे ही भेज रही थीं पर मेरा एग्जाम बहुत अच्छा हुआ, मां.’’

सारा आज बेटे के मन की सारी दुविधा दूर करने के लिए तैयार थी, ‘‘वह इसलिए बेटा, तुम ने बहुत मेहनत की और सफलता हमेशा मेहनत से ही मिलती है, इन सब ढोंगों

से नहीं.’’ ‘‘पर मां, हम लोग तो कभी कोई पूजापाठ नहीं करते, मेरे अन्य दोस्तों के यहां तो अलग ही माहौल होता है. आरिफ तो रातरात भर जाग कर इबादत करता है और कैरेन हर संडे चर्च जरूर जाती है चाहे कुछ हो जाए. अजय का हाल तो मैं ने अभी आप को बता ही दिया है. मां, आप को डर नहीं लगता कि हम लोगों के साथ कुछ बुरा न हो जाए? कहीं जो एक सुप्रीम पावर है, वह हम से नाराज न हो जाए.’’

‘‘कौन सी सुप्रीम पावर की बात कर रहे हो बेटा? यह सब, बस, धर्म का डर है जो पीढि़यों से हमारे परिवार वाले हमारे अंदर बिठाते चले गए. राहुल, यह हमारे अंदर बैठा धर्म का बस एक डर है जो हमें इन अंधविश्वासों को मानने के लिए मजबूर करता है. तुम कभी डरना मत. बस, सचाई और मेहनत से आगे बढ़ते चलो.’’ ‘‘पर मां, धर्म भी तो सच बोलने के लिए कहता है.’’

‘‘सचाई धर्म की नहीं, समाज की मांग है कि हम सच बोलें, अच्छे रास्ते पर चलें. बस, हमारा यही कर्तव्य है. धर्म के नाम पर नहीं, बल्कि समाज की बेहतरी के लिए सचाई, मेहनत और ईमानदारी के रास्ते पर चलना है?’’ ‘‘पर मां, डर नहीं लगता कि हमारे साथ कुछ बुरा न हो जाए, हमारे सामने कोई परेशानी आएगी तो फिर हम किस से मदद मांगेंगे, कौन सुनेगा हमारी?’’

‘‘कोई परेशानी आएगी तो हिम्मत रख कर उस का सामना कर लेना. जो लोग धार्मिक अंधविश्वासों में अपना समय बरबाद कर रहे हैं, क्या उन के साथ कुछ बुरा नहीं होता? उन्हें कभी कोई दुख नहीं होता? धर्म इंसान को कायर, डरपोक बना रहा है, उसे आगे बढ़ने के बजाय पीछे ढकेलता है. ‘‘तुम्हें याद है न, 5 साल पहले तुम्हारे पापा की तबीयत बहुत खराब हो गई थी. उन्हें हमें अस्पताल में ऐडमिट करना पड़ा था. मैं तो कहीं पूजा करने नहीं भागी. यही सोचा था कि जय शहर के एक अच्छे अस्पताल में भरती हैं और अच्छे डाक्टर्स उन का इलाज कर रहे हैं, वे जल्दी ठीक हो जाएंगे. और ठीक हुए भी. उस समय उन को अच्छे इलाज की ही जरूरत थी और वह उन्हें मिला तो जय कितनी जल्दी ठीक हो गए थे, याद है न तुम्हें राहुल?’’

‘‘हां मां, आप की फ्रैंड्स घर आ कर कहती थीं कि आप के ग्रह खराब हैं, आप को कुछ पूजा वगैरह करवानी चाहिए, लेकिन तब आप कितने आराम से कहती थीं, सब ठीक हो जाएगा, तुम लोग परेशान न हो.’’ और राहुल हंस पड़ा तो सारा भी मुसकरा दी. राहुल आगे बोला, ‘‘पता है मां, मेरे सारे दोस्त मुझ से पूछते रहते हैं कि तुम लोग किस धर्म को मानते हो, लेकिन मैं उन्हें हंस कर टाल देता हूं, बता ही नहीं पाता किसी धर्म के बारे में.’’

‘‘बेटा, बता देना अपने दोस्तों को कि हम लोग आधुनिक विचारधारा वाले हैं. हमारा एक ही धर्म है इंसानियत का. कर्म करते रहने का. मेरे मातापिता व्यावहारिक हैं और बिना किसी धर्म को माने भी हमें जीवन में सबकुछ मिल रहा है. हमारे जीवन में भी वही सुखदुख लगे रहते हैं जो आप लोगों के जीवन में आते हैं. उन्हें बता देना कि हम ने ऐसा कुछ नहीं खोया है जोकि किसी धर्म के अंधविश्वासों के बंधन में बंध कर उन्हें मिल गया या हमारा कोई भारी नुकसान हो गया.’’ सारा ने अब हंसते हुए राहुल से कहा, ‘‘उन के बच्चे धर्म के विश्वास का सहारा ले कर भी फेल होते हैं और तुम ने इन बेकार बातों पर आंख मूंद कर विश्वास किए बिना पिछले साल कालेज में टौप किया है. तुम्हें पता ही है, हमारे सारे रिश्तेदार भी हमें नास्तिक, बेकार कह कर ताने मारते हैं, पर हमारे किसी भी सवाल का जवाब उन के पास नहीं होता.’’

राहुल ने हंसते हुए मां के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘पर मेरी मां के पास हर सवाल का जवाब है. आई प्रौमिस, मां, मेरे मन में अब कोई डर नहीं रहेगा.’’

‘‘वैरी गुड, दैट्स लाइक आवर सन.’’ राहुल का मन हलका हो गया था. वह अगले एग्जाम की तैयारी के बारे में सोचने लगा था. सारा खुश थी कि उस ने अपने बेटे को वही सीधा, उचित रास्ता दिखाया है जिस पर वह और जय 25 सालोें से चल रहे हैं. अब उन का बेटा भी बिना किसी दुविधा के, बिना किसी शंका के उस रास्ते पर उन के साथ था, यह उन के लिए काफी खुशी की बात थी.

Social Issue : भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता

Social Issue : किसी भी देश  की प्रगति उस की आर्थिक समानता से लगाई जाती है. भारत में एक तरफ अमीरों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी ओर गरीबों की संख्या बढ़ रही है. भारत में 5 साल में अमीरों की संख्या 26 गुना बढ़ गई है. दूसरी तरफ 80 लाख से अधिक परिवारों को मुफ्त भोजन देना पड़ रहा है. नाइट फ्रैंक की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में 1 करोड़ डौलर से अधिक संपत्ति वालों की संख्या 85,698 पहुंच गई. देश में अब 191 अरबपति हैं. इस से देश में अमीरी और गरीबी की बढ़ती खाई को समझा जा सकता है.

रियल एस्टेट परामर्श कंपनी नाइट फ्रैंक द्वारा जारी ‘द वैल्थ रिपोर्ट-2025’ के अनुसार, एक करोड़ डौलर (लगभग 87 करोड़ रुपए) से अधिक संपत्ति रखने वाले भारतीयों की संख्या 2024 में 85,698 तक पहुंच गई है. यह आंकड़ा पिछले वर्ष की तुलना में 6 फीसदी अधिक है. इस के अलावा भारत में अरबपतियों की संख्या बढ़ कर 191 हो गई है. यह पिछले वर्ष की तुलना में 26 फीसदी अधिक है.

देश में महंगे मकानों, गाड़ियों में चलने वालों की संख्या बढ़ रही है, दूसरी तरफ अभी भी बहुत सारे लोगों के पास रहने के लिए मकान नहीं है. उन को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान देने पड़ रहे हैं. किसानों को 5 सौ रुपए प्रतिमाह किसान सम्मान निधि के मिल रहे हैं. जहां का किसान 5 सौ रुपए प्रतिमाह सम्मान निधि पा कर खुश हो, उस देश की तरक्की को समझा जा सकता है. देश में बढ़ रही आर्थिक असमानता आने वाले दिनों में खतरनाक हो जाएगी.

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