Rich and Poor : फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थौमस पिकेटी का गैरबराबरी के मामले में बहुत नाम है और वे लगातार अमीरगरीब देशों में बढ़ती गैरबराबरी का सवाल उठा रहे हैं. लगभग सभी अमीरगरीब देशों में पिछले 50 सालों में 1-2 फीसदी अमीर लोगों के पास जो धन है वह 60-70 फीसदी गरीब के कुल धन से भी ज्यादा है. 50-60 सालों में, जब से कम्युनिज्म का खात्मा हुआ है, हर देश में करों को पूंजी निर्माण के नाम पर घटाया गया है पर उस से रिच और सुपर रिच नहीं बल्कि सुपरडुपर रिच पैदा हो गए हैं.

अगर सुपर रिच और सुपरडुपर रिच अपनी पूंजी का इस्तेमाल आम जनता की भलाई में लगा रहे होते तो कोई बात नहीं थी. टोकन मामलों को छोड़ कर ये सुपरडुपर रिच अपनी संपत्ति को सरकारों को खरीदने, छोटी कंपनियों को दरवाजे बंद करने को मजबूर करने और ऐयाशी करने में लगा रहे हैं.

अमेरिका के एलन मस्क, जो 400 अरब डौलर के मालिक हैं, ने खुल्लमखुल्ला खब्ती, चातुर्य, कट्टरपंथी, स्वतंत्रताओं के विरोधी डोनाल्ड ट्रंप के लिए चुनाव में जम कर पैसा खर्च किया और उन के जीतने के बाद अब उन के मंत्रिमंडल में जा बैठे हैं. फेसबुक के मालिक जुकरबर्ग भी ऐसे ही हैं.

भारत में सुपरडुपर रिच गौतम अडानी और मुकेश अंबानी एक के बाद एक कंपनियां खरीद रहे हैं या छोटी कंपनियों को बंद करा रहे हैं, सरकारी मोटे ठेके हथिया रहे हैं जिन में खर्च का आकलन पहले किया ही नहीं जा सकता.

आज अमीरों के घर 500 करोड़ रुपए में बिक रहे हैं जबकि गरीबों को 100 फुट की कच्चीपक्की झोंपडि़यों और 6-6 मंजिले कमजोर व 2 छोटेछोटे कमरों वाले मकानों में रहना पड़ रहा है जिन में बहुत जगह सीवर भी नहीं है. भारत के गांवों को तो छोडि़ए, शहरों की सब से महंगी बस्तियों के एक किलोमीटर इलाके में झोंपडि़यों जैसे रिहाइश वाले मकान दिख जाएंगे.

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