Rahul Gandhi : कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने गुजरात प्रदेश की राजधानी अहमदाबाद में अपने निकाय स्तर से नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित की रहे थे. इस पूरे भाशण में राहुल गांधी ने खुलकर अपनी बात कही. राहुल के भाषण का एक हिस्सा निकाल कर एक नया नैरेटिक गढ़ने का काम विरोधियों ने शुरू कर दिया. भाषण के एक हिस्से के आधार पर ही राहुल गांधी की आलोचना शुरू कर दी.

असल में राहुल गांधी ने वह बात खुल कर कही है जो कांग्रेस का बड़ा नेता कभी नहीं कह पाया. चाहे वह जवाहर लाल नेहरू हो या इंदिरा गांधी या फिर राजीव गांधी ही क्यो न रहे हो. कांग्रेस का जब से गठन हुआ उस में पौराणिकवाद को मानने वालों की बड़ी संख्या रही है. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल और डाक्टर राजेन्द्र कुमार जैसे नेता पौराणिकवाद की सोच थे.

देश के आजाद होने के बाद जब जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बने तो कई ऐसे मसले आए जहां जवाहर लाल नेहरू के विचार इन कांग्रेस के नेताओं से नहीं मिलते थे. खासतौर पर धर्म को ले कर जैसे राममंदिर का मसला था. जब अयोध्या के राममंदिर में मूर्तियां प्रगट होने की घटना हुई तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द वल्लभ पंत ने प्रधानमंत्री नेहरू की बात मानने इनकार कर दिया. नेहरू चाहते थे कि मंदिर में रखी गई मूर्तियों को हटाया जाए. कांग्रेस के ही मुख्यमंत्री गोविन्द वल्लभ पंत ने इस बात से इंकार कर दिया.

सोमनाथ के मंदिर का जीर्णोधार को ले कर भी नेहरू के विचार अलग थे. वह इस बात से खुश नहीं थे कि राष्ट्रपति राजेन्द्र कुमार वहां गए थे. हिंदू विवाह अधिनियम जिस के आधार पर आज सवर्ण महिलाएं आजादी का अनुभव कर रही है उस को लागू करते समय नेहरू का विरोध हुआ था. कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को पौराणिकवाद की सोच रखने वाले नेताओं के दवाब में तमाम काम करने पड़े. नेहरू, इंदिरा और राजीव का राजनीतिक कद इतना बड़ा था कि पौराणिक सोच वाले नेता प्रभावी नहीं हो पाते थे.

राहुल गांधी ने जब से राजनीति में कदम रखा है कांग्रेस पहले जैसी ताकत में नहीं रही है. 2004 से 2014 तक यूपीए की सरकार थी. जिस की अगुवा कांग्रेस भले ही थी, लेकिन वह सहयोगी दलों के सहारे सरकार चला रही थी. 2014 से 2025 में कांग्रेस विपक्ष में है और उस की खराब हालत है. 2014 और 2019 के दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पास नेता विपक्ष बनने लायक भी सांसद नहीं थे. 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को थोड़ी सफलता मिली. राहुल गांधी नेता पतिपक्ष बन गए. इस के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ही हार ने पार्टी के मनोबल को तोड़ दिया है.

राहुल गांधी कितना भी कहें कि उन पर चुनावी हारजीत का प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन राजनीतिक दल होने के नाते कांग्रेस को हर चुनाव का सामना करना पड़ता है. ऐसे में राहुल गांधी चाहे या न चाहे उन के हर कदम हर फैसले को चुनावी कसौटी से गुजरना ही पड़ेगा. गुजरात में राहुल गांधी ने जो कहा वह अपनी पार्टी के बीच कहने में नेता संकोच करते हैं. राहुल गांधी यह कहने का साहस कर सके इस से पार्टी कार्यकर्ता बेहद खुश है. गुजरात में 2 साल के बाद विधानसभा के चुनाव है. ऐसे में कांग्रेस के कार्यकर्ता खुश है उन को लग रहा है कि अब पार्टी में बदलाव होगा.

कांग्रेस नेता अहमद पटेल की बेटी मुमताज पटेल ने कहा है कि “राहुल गांधी को ऐसे लोगों की पहचान करनी चाहिए. ऐसे बहुत लोग हैं जो अपने स्वार्थ के लिए, पार्टी में आरामदायक पोजिशन पर बैठे हैं वो लोग नहीं चाहते कि नए लोग, नए चेहरे आगे आएं. अंदर से भी महसूस होता है कि हमें रोका जा रहा है. राहुल गांधी पार्टी के भीतर ऐसे लोगों की पहचान करेंगे जो दूसरों को काम करने का मौका नहीं देते. मैं राहुल गांधी से आग्रह करती हूं तो वो पहचानिए कौन वो ऐसे लोग हैं जो सही लोगों को आप की पार्टी के साथ जुड़ने नहीं देते हैं, जो ईमानदार लोगों को जुड़ने नहीं देते हैं. मैं उम्मीद करती हूं कि ऐसे लोगों को पहचानेंगे और कांग्रेस से उन को बाहर करेंगे.”

क्या थी राहुल गांधी की पूरी बात ?

राहुल गांधी गुजरात के अहमदाबाद में पार्टी कार्यकर्ताओं और निकाय चुनाव के पूर्व उम्मीदवारों की एक सभा को संबोधित कर रहे थे. राहुल गांधी ने गुजरात में कहा ‘यहां कांग्रेस पार्टी के कुछ लोग बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं, उन्हें पार्टी से निकाल देना चाहिए. गुजरात में कांग्रेस का नेतृत्व बंटा हुआ है और वो गुजरात को रास्ता दिखा नहीं पा रहा. यहां के नेतृत्व में दो तरह के लोग हैं, कुछ वो हैं जो जनता के साथ खड़े हैं और जिन के दिल में कांग्रेस की विचारधारा है और दूसरे वो हैं जो जनता से कटे हुए हैं और इस में से आधे बीजेपी से मिले हुए हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘कांग्रेस रेस के घोड़े को बारात में भेज देती है और बारात के घोड़े को रेस में भेज देती है. पार्टी में नेताओं की कमी नहीं है लेकिन वे बंधे हुए हैं. अगर सख्त कार्रवाई करनी पड़े और 30 से 40 लोगों को निकालना पड़े तो, निकाल देना चाहिए. कांग्रेस के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को सीधे जनता से जुड़ना पड़ेगा, तभी जनता उन पर यकीन करेगी.’

वे अपनी बात जारी रखते हैं, ‘गुजरात में 30 साल से कांग्रेस की सरकार नहीं बन सकी है, इस बार उन का इरादा इस स्थिति को बदलने का है. यहां विपक्ष के पास 40 फीसदी वोट हैं यहां विपक्ष छोटा नहीं है. अगर गुजरात के किसी भी कोने में दो लोगों को आप खड़ा कर देंगे तो उस में से एक बीजेपी का और दूसरा कांग्रेस का निकलेगा. यानी दो में से एक हमारा, एक उन का होगा. लेकिन हमारे मन में है कि कांग्रेस के पास दम नहीं है. अगर गुजरात में हमारा वोट पांच फीसदी बढ़ जाएगा तो भाजपा वहीं खत्म हो जाएगी. तेलंगना में हम ने 22 फीसदी वोट बढ़ाया है, यहां तो सिर्फ 5 फीसदी की जरूरत है.‘

वे आगे कहते हैं, ‘गुजरात की जनता को पार्टी नेतृत्व नया विकल्प नहीं दे पा रही है. कांग्रेस को उस का ओरिजिनल नेतृत्व गुजरात ने दिया है और उस नेतृत्व ने हमें सोचने का तरीका, लड़ने का तरीका और जीने तरीका दिया. गुजरात नया विकल्प चाह रहा है, लेकिन कांग्रेस पार्टी उसे दिशा नहीं दिखा पा रही है. चाहे हमारे जनरल सेक्रेटरी हों, चाहे हमारे पीसीसी अधयक्ष हों, कांग्रेस पार्टी जनता को दिशा नहीं दिखा पा रही है. यह सच्चाई है, और इसे कहने में मुझे कोई शर्म या डर नहीं है. गुजरात के नेतृत्व में दो तरह के लोग हैं, इस में बंटवारा है. एक तरह के लोग हैं जो जनता के साथ खड़े हैं और जिन के दिल में कांग्रेस की विचारधारा है. और दूसरे वो हैं जो जनता से कटे हुए हैं, इन में से आधे भाजपा से मिले हुए हैं.

‘कांग्रेस पार्टी में नेताओं की कमी नहीं है. डिस्ट्रिक्ट लेवल, ब्लौक लेवल, सीनियर लेवल नेता हैं, बब्बर शेर हैं. मगर पीछे से चेन लगी हुई है और बब्बर शेर बंधे हुए हैं सब. एक बार मेरी मीटिंग हो रही थी. शायद मध्य प्रदेश का डेलिगेशन था एक. वहां पर एक कार्यकर्ता खड़ा हुआ और कहा कि राहुल जी आप एक काम कर दीजिए. उस ने कहा दो तरह के घोड़े होते हैं. एक होता है रेस का और एक होता है शादी का. कांग्रेस पार्टी रेस के घोड़े को बारात में डाल देती है और बारात के घोड़े को रेस में डाल देती है.

‘अब गुजरात की जनता देख रही है. कह रही है कि भैया कांग्रेस पार्टी ने रेस में बारात का घोड़ा डाल दिया. अगर हमें रिश्ता बनाना है तो हमें दो काम करने हैं. पहला काम, जो दो ग्रुप हैं हमें उन्हें अलग करना पड़ेगा. अगर हमें सख्त कार्रवाई करनी पड़े और 30 से 40 लोगों को निकालना पड़े, तो निकाल देना चाहिए. बीजेपी के लिए अंदर से ए लोग काम कर रहे हैं, बाहर से काम करने दीजिए.

‘जीतने हारने की बात छोड़ दीजिए, जो हमारे नेता हैं, अगर उन का हाथ कटे को उस में से कांग्रेस का खून निकलना चाहिए. ऐसे लोगों के हाथ में संगठन का कंट्रोल होना चाहिए. जैसे ही हम यह करेंगे जनता हम से जुड़ेगी और हमें उन के लिए दरवाजे खोलने होंगे. कांग्रेस की उसी विचारधारा पर लौटना होगा, जो गुजरात की विचारधारा है. वही विचारधारा जो गुजरात की जनता, महात्मा गांधी जी और सरदार पटेल जी ने कांग्रेस को सिखाई है.’

विरोधियों ने बनाया मुद्दा

भाजपा नैरेटिव गढ़ने में माहिर है. उस ने राहुल गांधी के पूरे बयान से एक लाइन निकाल कर उस पर बहस को केन्द्रित करने में सफल रही. आज राजनीति विचारधारा से दूर लाभहानि को देख कर की जाती है. पहले यह समाजसेवा होती थी अब यह कैरियर है. इस में पूंजी का निवेश किया जा रहा है. पैसे का प्रभाव तो बढ़ा ही है पैसे वालो का भी प्रभाव बढ़ गया है. यह पूरी दुनिया में हो रहा है. भारत में नरेन्द्र मोदी के पीछे ‘अडानी और अंबानी’की ताकत है तो अमेरिका में डोनल्ड ट्रंप के पीछे एलन मस्क जैसे पैसे वाले लोग हैं. नेताओं को अब सत्ता चाहिए. सत्ता के लिए वह पार्टी और विचारधारा को दरकिनार करने में नहीं चूकते हैं.

राहुल गांधी ऐसे नेता हैं जो चुनावी नफानुकसान नहीं देखते हैं. वह पार्टी की विचारधारा को सब से उपर मानते हैं. वह चाहते हैं कि कांग्रेस सही मायनों में भाजपा का विकल्प बनी रहे. वह खुद को भाजपा या उस के नेताओं की आलोचना तक सीमित नहीं रखते हैं. वह सावरकर बनाम गांधी और कांग्रेस बनाम संघ की बात करते हैं. विपक्ष के नेता अपनी सीमित सोच तक केवल भाजपा का विरोध ही कर पा रहे हैं. अब यह देखना है कि राहुल गांधी ने जो कहा उस हिसाब से वह कितना काम करते हैं. इस के लिए कांग्रेस कितनी तैयार है.

कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत कहती हैं, ‘भाजपा से लड़ना है तो बिना समझौते के लड़ना है. राहुल गांधी विचारधारा की लड़ाई लड़ रहे हैं. राहुल गांधी ने पूरी मुस्तैदी से कहा है कि अगर हमें भाजपा से लड़ना है तो बिना संशय के लड़ना है, बिना समझौते के लड़ना है, जिस निडरता से वो लड़ते हैं. मुझे लगता है कि अगर आप के मन में जरा सा भी संशय है या भय है तो आप इस लड़ाई में उन के सिपहसालार नहीं हो सकते. वो सही कह रहे हैं.’

कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र राजपूत कहते हैं कि ‘राहुल गांधी ने कभी सत्ता की राजनीति नहीं की. वह विचारधारा की राजनीति करते हैं. कट्टरवाद के खिलाफ जो काम वह कर रहे हैं उसे दूसरा नेता नहीं कर सकता. इस वजह से भाजपा ही नहीं संघ भी राहुल गांधी से डरता है. भाजपा को कोई सत्ता से हटा सकता है तो वह केवल कांग्रेस ही है. राहुल से डर कर ही भाजपा उन के खिलाफ नैरेटिव चलाती है.’

कहां चूक रहे हैं राहुल गांधी ?

राहुल गांधी सोचते तो बहुत अच्छा हैं. उस दिशा पर वह काम भी करते हैं. इस के बाद भी उन की दिशा में भटकाव है. कभी वह सनातनी बन मंदिरमंदिर भटकने लगते हैं. अपना जनेउ दिखाने और गोत्र बताने लगते हैं. कभी पूरी तरह से वामपंथी बन जाते हैं. इस के बाद वह महाकुंभ और राममंदिर भी नहीं जाते हैं. राहुल गांधी को एक रास्ता तय करना होगा. राजनीति दो धाराओं के बीच फंसी है एक तरफ धर्म ग्रंथ है तो दूसरी तरफ संविधान. 2024 के चुनाव में राहुल गांधी ने संविधान का हाथ पकड़ा तो उन को सफलता भी मिली. वह भाजपा को 400 पार से रोकने में सफल रहे. संसद भवन में फिर वह शंकर की फोटो लहराने लगे.

एससी, ओबीसी और महिलाएं राहुल गांधी के बेहद करीब खुद हो पाते हैं. वह लोग राहुल गांधी की सब से बड़ी ताकत है. राहुल गांधी के पास वोट है पर नेता नहीं हैं. 12-15 सालों में कांग्रेस के नेता पार्टी छोड़ कर चले गए. राहुल गांधी इन्ही के बारे में कह रहे थे. राहुल गांधी को एससी, ओबीसी और महिलाओं को समझाना पड़ेगा कि उन को जो मिल रहा है वह केवल संविधान के कारण ही मिल रहा है. राहुल इन के लिए कुछ करना चाहते हैं. भाजपा इन को आगे दिखा तो सकती है लेकिन असल ताकत वह अपने हाथ ही रखेंगे. पौराणिकवाद में फंस कर कांग्रेसियों का विचार भाजपाई होता जा रहा है. गुजरात कांग्रेस के नेता इस पर कितना खरे उतरते हैं यह देखने वाली बात है. राहुल गांधी ने जो कहा है उसे कर के दिखाना पड़ेगा.

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