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Lifestyle : घर को न बनाएं कैमिस्ट शौप

Lifestyle : ‘बेटा मुझे डाक्टर के पास ले चलो, मेरा ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ गया है.’ सुदर्शन लाल ने बेटे के ऑफिस से लौटते ही फरमान सुनाया.

‘कितना है ब्लड प्रेशर?’ अमित ने पिता से पूछा.

‘160/100’ सुदर्शन लाल ने जवाब दिया.

‘कब चेक किया था?’

‘दोपहर में.’

‘चलिए मैं एक बार फिर चेक कर लेता हूं.’ अमित ने पिता की अलमारी से ब्लड प्रेशर नापने वाला इंस्ट्रूमेंट निकालते हुए कहा.
सुदर्शन लाल का ब्लड प्रेशर 120/80 निकला. अमित बोला, “पापा, आप का बीपी तो बिलकुल ठीक है.”

“पर दोपहर में तो 160/100 था. यानी बीपी फ्लकचुएट कर रहा है. बेटा डाक्टर को दिखा ही लेते हैं.”

“पापा, बीपी बिलकुल ठीक है. बेकार में डाक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है. 800 रुपये फीस ले लेगा कर 800 की दवाई लिख देगा, जबकि आप बिलकुल ठीक हैं.”

पर सुदर्शन लाल को लगा कि बेटा पैसे बचाने के लिए ऐसा कह रहा है. दूसरे दिन खुद ही डाक्टर के पास चले गए और दवा लिखवा लाए.

ऐसे बहुतेरे बुजुर्ग हैं, और युवा भी हैं जो इस भय से ग्रस्त रहते हैं कि उन के शरीर में कुछ गड़बड़ है. ये भय कोरोना महामारी के बाद बहुत ज्यादा बढ़ गया है. जरा सी खांसी आई तो लोग समझने लगते हैं कि कंजेशन हो गया और फेफड़े संक्रमित हो गए हैं. फिर वे खुद को नेबुलाइज करने में लग जाते हैं. सुबह शाम नेबुलाइजर में दवा डाल डाल कर सांस के साथ खींचने लगते हैं.

पहले खांसी जुकाम होने पर मां किचन में रखे गरम मसालों का काढ़ा बना कर पिला देती थी. सारा जुकाम बह जाता था. या सरसों के तेल में अजवाइन जला कर छाती और पीठ की मालिश कर देती थी और खांसी छूमंतर हो जाती थी. साथ खेलने-पढ़ने वाले कुछ लड़कों की नाक तो बारहों महीने बहती थी, मगर कोई चिंता नहीं. तब कहां थे नेबुलाइजर? न इस बात का डर कि फेफड़े जाम हो जाएंगे. यह डर तो कोरोना ने पैदा किया और लोगों में नेबुलाइजर और स्टीमर खरीद कर घर में भर लिए. बड़े बुजुर्ग कहते थे मौसम बदलने पर सर्दी खांसी तो हो ही जाती है. चार पांच दिन में अपनेआप ठीक भी हो जाती है. मगर हम छींक आते ही घबरा उठते हैं.

जिन्हें शुगर की बीमारी है, या नहीं भी है, वे भी हर दिन अपना शुगर चेक करते दिखाई देते हैं. बाजार में शुगर चेक करने की अनेकों कंपनियों की मशीने धड़ाधड़ बिक रही हैं. किसी की शुगर थोड़ी हाई क्या हुई बस केमिस्ट शौप से शुगर चेक करने की मशीन और स्ट्रिप्स खरीद लाए और लगे उस पर खून के कतरे गिराने.

अमित के पिता पहले महीने में एक बार अपने फैमिली डाक्टर के पास जाते थे और वो उन का बीपी शुगर सब चेक कर देता था. उन्हें कभी इस के लिए दवा खाने की जरूरत नहीं पड़ी. डाक्टर का कहना था कि यह दोनों चीजें कुछ काम ज्यादा होती रहती हैं. खाने पीने से इसे कंट्रोल कर सकते हैं. आप चिंता में हैं, कहीं से लम्बी दूरी चल कर आ रहे हैं या मौसम गरम हो तो बीपी थोड़ा ऊपर हो जाता है. तनाव ख़त्म होने पर और मन शांत होने पर वह अपनेआप सामान्य हो जाता हो जाता है. यह बिलकुल वैसा ही है जैसे दौड़ लगा कर आने पर हार्ट बीट बढ़ जाती है और आराम करने पर सामान्य हो जाती है. इसी तरह खाना खाने के बाद या अधिक मीठी चीज खाने के बाद ब्लड शुगर थोड़ा बढ़ जाता है. मगर इसका मतलब यह नहीं कि आप डाक्टर के पास भागे चले जाएं या सुबह शाम बीपी शुगर चेक करते रहें.

पहले घरों में बमुश्किल एक थर्मामीटर हुआ करता था. कभी किसी को बुखार आ गया तो नाप लिया ताकि डाक्टर को बता सकें. मगर आज बीपी की मशीन, शुगर की मशीन, नेबुलाइजर, औक्सीजन नापने की मशीन, वजन तोलने की मशीन, स्टीमर, इलैक्ट्रिक हौट वाटर बैग्स, मसाज इंस्ट्रूमेंट, डिजिटल थर्मामीटर, ग्लूकोमीटर और ना जाने किन किन मैडिकल उपकरणों से हम ने अपने घर की अलमारियों को भर लिया है. जैसे घर न हुआ कैमिस्ट की दुकान हो गई. अब खरीदा है तो इन का प्रयोग भी करते हैं और तनाव पाल कर सचमुच बीमार पड़ जाते हैं.

अभिषेक के पिताजी कैमिस्ट हैं. अभिषेक कभीकभी उन के साथ दुकान पर बैठता था. उस के पास फार्मा की कोई डिग्री नहीं है फिर भी उस ने बाप को बढ़िया कमाई कर के दी. दरअसल अभिषेक के पिता तो बस दवाएं बेचते थे मगर अभिषेक ने कोरोना के टाइम पर अनेकों तरह के मेडिकल इंस्ट्रूमेंट्स से अपनी केमिस्ट की दुकान भर ली और दोगुने दामों पर बेच कर खूब कमाई की. कोरोना के टाइम पर लोगों का डाक्टर्स और पैथलैब्स तक जाना मुश्किल था तो अभिषेक ने अपने ग्राहकों के बीच नएनए मैडिकल उपकरणों का बखान कर आपदा में अवसर खोज लिया. सोशल मीडिया पर खूब एक्टिव रहने वाले अभिषेक ने औनलाइन ग्राहक भी खूब बना लिए. हर बीमारी की जांच के लिए उस के पास कोई ना कोई इंस्ट्रूमेंट मौजूद था. उस के पिता तो उसका बिज़नेस कौशल देख कर हतप्रभ थे. कोरोना काल के बाद अभिषेक ने मैडिकल इंस्ट्रूमेंट्स के होलसेल का काम शुरू कर दिया है.

अभिषेक जैसों के चक्कर में ही अमित के पिता जैसे लोग फंसते हैं और अपना पैसा और मन की शांति दोनों खोते हैं. अमित के पिता जी शारीरिक रूप से बिलकुल फिट हैं. मगर सारा दिन यूट्यूब पर विभिन्न इन्फ्लुएंसर्स के द्वारा प्रचारित की जा रही स्वास्थ्य सम्बन्धी बातें देख सुन कर खुद को बीमार समझने लगे हैं. दुनियाभर के मैडिकल उपकरण खरीद कर उन्होंने अपने बेडरूम की अलमारी में भर लिए हैं और आएदिन अपना शुगर, बीपी, औक्सीजन, वजन आदि नापते रहते हैं. सैर कर के आएंगे और बीपी चेक करने बैठ जाएंगे. ऐसे में बीपी तो बढ़ा हुआ दिखना ही है. इस से वे तनावग्रस्त हो जाते हैं और खुद को बीमार समझने लगते हैं.

होम मैडिकल उपकरणों का बाजार लगातार बढ़ रहा है. इस की एक वजह यह है कि अब लोगों की औसत उम्र बढ़ गई है. पहले जहां 60 – 65 साल तक लोग जीते थे वहीं अब 80 – 85 साल जीवन प्रत्याशा हो गई है. यानी समाज में बुजुर्गों की संख्या में इजाफा हो रहा है. पहले की अपेक्षा अब लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसा भी ज्यादा है. इस के अलावा अनेक लोग बुढ़ापे में अकेला जीवन जी रहे हैं. फिर यूट्यूब और फेसबुक ने लोगों की सोच समझ को बुरी तरह प्रभावित किया है. खासकर बूढ़े लोगों की. सोशल मीडिया पर इन्फ्लुएंसर्स की बातों को वे बिलकुल सत्य समझने लगते हैं. सोशल मीडिया पर आने वाले विज्ञापनों के जरिए उन्हें नएनए उत्पादों के बारे में जानकारियां हासिल हो रही हैं. ऐसे में वे सोचते हैं कि डाक्टर के पास जा कर बारबार शरीर का चेकअप कराने से बेहतर है उपकरण खरीद कर घर में ही सारे टेस्ट कर लो. बहुतेरे लोग तो टेस्ट करने के बाद सोशल मीडिया पर ही दवाएं भी खोज लेते हैं. यह स्थिति काफी खतरनाक है.

Love Story : यही प्यार है – अखिलेश और रीमा की बेइंतहा मोहब्बत की कहानी

Love Story : दिसंबर का पहला पखवाड़ा चल रहा था. शीतऋतु दस्तक दे चुकी थी. सूरज भी धीरेधीरे अस्ताचल की ओर प्रस्थान कर रहा था और उस की किरणें आसमान में लालिमा फैलाए हुए थीं. ऐसा लग रहा था मानो ठंड के कारण सभी घर जा कर रजाई में घुस कर सोना चाहते हों. पार्क लगभग खाली हो चुका था, लेकिन हम दोनों अभी तक उसी बैंच पर बैठे बातें कर रहे थे. हम एकदूसरे की बातों में इतने खो गए थे कि हमें रात्रि की आहट का भी पता नहीं चला. मैं तो बस, एकाग्रचित्त हो अखिलेश की दीवानगी भरी बातें सुन रही थी.

‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं रीमा, मुझे कभी तनहा मत छोड़ना. मैं तुम्हारे बगैर बिलकुल नहीं जी पाऊंगा,’’ अखिलेश ने मेरी उंगलियों को सहलाते हुए कहा.

‘‘कैसी बातें कर रहे हो अखिलेश, मैं तो हमेशा तुम्हारी बांहों में ही रहूंगी, जिऊंगी भी तुम्हारी बांहों में और मरूंगी भी तुम्हारी ही गोद में सिर रख कर.’’

मेरी बातें सुनते ही अखिलेश बौखला गया, ‘‘यह कैसा प्यार है रीमा, एक तरफ तो तुम मेरे साथ जीने की कसमें खाती हो और अब मेरी गोद में सिर रख कर मरना चाहती हो? तुम ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि मैं तुम्हारे बिना जी कर क्या करूंगा? बोलो रीमा, बोलो न.’’ अखिलेश बच्चों की तरह बिलखने लगा.

‘‘और तुम… क्या तुम उस दूसरी दुनिया में मेरे बगैर रह पाओगी? जानती हो रीमा, अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो क्या कहता,’’ अखिलेश ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘यदि तुम इस दुनिया से पहले चली जाओगी तो मैं तुम्हारे पास आने में बिलकुल भी देर नहीं करूंगा और यदि मैं पहले चला गया तो फिर तुम्हें अपने पास बुलाने में देर नहीं करूंगा, क्योंकि मैं तुम्हारे बिना कहीं भी नहीं रह सकता.’’

अखिलेश का यह रूप देख कर पहले तो मैं सहम गई, लेकिन अपने प्रति अखिलेश का यह पागलपन मुझे अच्छा लगा. हमारे प्यार की कलियां अब खिलने लगी थीं. किसी को भी हमारे प्यार से कोई एतराज नहीं था. दोनों ही घरों में हमारे रिश्ते की बातें होने लगी थीं. मारे खुशी के मेरे कदम जमीन पर ही नहीं पड़ते थे, लेकिन अखिलेश को न जाने आजकल क्या हो गया था. हर वक्त वह खोयाखोया सा रहता था. उस का चेहरा पीला पड़ता जा रहा था. शरीर भी काफी कमजोर हो गया था.

मैं ने कई बार उस से पूछा, लेकिन हर बार वह टाल जाता था. मुझे न जाने क्यों ऐसा लगता था, जैसे वह मुझ से कुछ छिपा रहा है. इधर कुछ दिनों से वह जल्दी शादी करने की जिद कर रहा था. उस की जिद में छिपे प्यार को मैं तो समझ रही थी, मगर मेरे पापा मेरी शादी अगले साल करना चाहते थे ताकि मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर लूं. इसलिए चाह कर भी मैं अखिलेश की जिद न मान सकी.

अखिलेश मुझे दीवानों की तरह प्यार करता था और मुझे पाने के लिए वह कुछ भी कर सकता था. यह बात मुझे उस दिन समझ में आ गई जब शाम को अखिलेश ने फोन कर के मुझे अपने घर बुलाया. जब मैं वहां पहुंची तो घर में कोई भी नहीं था. अखिलेश अकेला था. उस के मम्मीपापा कहीं गए हुए थे. अखिलेश ने मुझे बताया कि उसे घबराहट हो रही थी और उस की तबीयत भी ठीक नहीं थी इसलिए उस ने मुझे बुलाया है.

थोड़ी देर बाद जब मैं उस के लिए कौफी बनाने रसोई में गई, तभी अखिलेश ने पीछे से आ कर मुझे आलिंगनबद्ध कर लिया, मैं ने घबरा कर पीछे हटना चाहा, लेकिन उस की बांहों की जंजीर न तोड़ सकी. वह बेतहाशा मुझे चूमने लगा, ‘‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता रीमा, जीना तो दूर तुम्हारे बिना तो मैं मर भी नहीं पाऊंगा. आज मुझे मत रोको रीमा, मैं अकेला नहीं रह पाऊंगा.’’

मेरे मुंह से तो आवाज तक नहीं निकल सकी और एक बेजान लता की तरह मैं उस से लिपटती चली गई. उस की आंखों में बिछुड़ने का भय साफ झलक रहा था और मैं उन आंखों में समा कर इस भय को समाप्त कर देना चाहती थी तभी तो बंद पलकों से मैं ने अपनी सहमति जाहिर कर दी. फिर हम दोनों प्यार के उफनते सागर में डूबते चले गए और जब हमें होश आया तब तक सारी सीमाएं टूट चुकी थीं. मैं अखिलेश से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी और उस के लाख रोकने के बावजूद बिना कुछ कहे वापस आ गई.

इन 15 दिन में न जाने कितनी बार वह फोन और एसएमएस कर चुका था. मगर न तो मैं ने उस के एसएमएस का कोई जवाब दिया और न ही उस का फोन रिसीव किया. 16वें दिन अखिलेश की मम्मी ने ही फोन कर के मुझे बताया कि अखिलेश पिछले 15 दिन से अस्पताल में भरती है और उस की अंतिम सांसें चल रही हैं. अखिलेश ने उसे बताने से मना किया था, इसलिए वे अब तक उसे नहीं बता पा रही थीं.

इतना सुनते ही मैं एकपल भी न रुक सकी. अस्पताल पहुंचने पर मुझे पता चला कि अब उस की जिंदगी के बस कुछ ही क्षण बाकी हैं. परिवार के सभी लोग आंसुओं के सैलाब को रोके हुए थे. मैं बदहवास सी दौड़ती हुई अखिलेश के पास चली गई. आहट पा कर उस ने अपनी आंखें खोलीं. उस की आंखों में खुशी की चमक आ गई थी. मैं दौड़ कर उस के कृशकाय शरीर से लिपट गई.

‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं अखिलेश, सिर्फ ‘कौल मी’ लिख कर सैकड़ों बार मैसेज करते थे. क्या एक बार भी तुम अपनी बीमारी के बारे में मुझे नहीं बता सकते थे? क्या मैं इस काबिल भी नहीं कि तुम्हारा गम बांट सकूं?‘‘

‘‘मैं हर दिन तुम्हें फोन करता था रीमा, पर तुम ने एक बार भी क्या मुझ से बात की?’’

‘‘नहीं अखिलेश, ऐसी कोई बात नहीं थी, लेकिन उस दिन की घटना की वजह से मैं तुम से नजरें नहीं मिला पा रही थी.’’

‘‘लेकिन गलती तो मेरी भी थी न रीमा, फिर तुम क्यों नजरें चुरा रही थीं. वह तो मेरा प्यार था रीमा ताकि तुम जब तक जीवित रहोगी मेरे प्यार को याद रख सकोगी.’’

‘‘नहीं अखिलेश, हम ने साथ जीनेमरने का वादा किया था. आज तुम मुझे मंझधार में अकेला छोड़ कर नहीं जा सकते,’’ उस के मौत के एहसास से मैं कांप उठी.

‘‘अभी नहीं रीमा, अभी तो मैं अकेला ही जा रहा हूं, मगर तुम मेरे पास जरूर आओगी रीमा, तुम्हें आना ही पड़ेगा. बोलो रीमा, आओगी न अपने अखिलेश के पास’’,

अभी अखिलेश और कुछ कहता कि उस की सांसें उखड़ने लगीं और डाक्टर ने मुझे बाहर जाने के लिए कह दिया.

डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद अखिलेश को नहीं बचाया जा सका. मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई थी. मेरा तो सुहागन बनने का रंगीन ख्वाब ही चकनाचूर हो गया. सब से बड़ा धक्का तो मुझे उस समय लगा जब पापा ने एक भयानक सच उजागर किया. यह कालेज के दिनों की कुछ गलतियों का नतीजा था, जो पिछले एक साल से वह एड्स जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहा था. उस ने यह बात अपने परिवार में किसी से नहीं बताई थी. यहां तक कि डाक्टर से भी किसी को न बताने की गुजारिश की थी.

मेरे कदमों तले जमीन खिसक गई. मुझे अपने पागलपन की वह रात याद आ गई जब मैं ने अपना सर्वस्व अखिलेश को समर्पित कर दिया था.

आज उस की 5वीं बरसी है और मैं मौत के कगार पर खड़ी अपनी बारी का इंतजार कर रही हूं. मुझे अखिलेश से कोई शिकायत नहीं है और न ही अपने मरने का कोई गम है, क्योंकि मैं जानती हूं कि जिंदगी के उस पार मौत नहीं, बल्कि अखिलेश मेरा बेसब्री से इंतजार कर रहा होगा.

मैं ने अखिलेश का साथ देने का वादा किया था, इसलिए मेरा जाना तो निश्चित है परंतु आज तक मैं यह नहीं समझ पाई कि मैं ने और अखिलेश ने जो किया वह सही था या गलत?

अखिलेश का वादा पक्का था, मेरे समर्पण में प्यार था या हम दोनों को प्यार की मंजिल के रूप में मौत मिली, यह प्यार था. क्या यही प्यार है? क्या पता मेरी डायरी में लिखा यह वाक्य मेरा अंतिम वाक्य हो. कल का सूरज मैं देख भी पाऊंगी या नहीं, मुझे पता नहीं.

Romantic Story : टीसता जख्म – उमा के व्यक्तित्व पर अनवर ने कैसा दाग लगाया

Romantic Story : अचानक उमा की आंखें खुलती हैं. ऊपर छत की तरफ देखती हुई वह गहरी सांस लेती है. वह आहिस्ता से उठती है. सिरहाने रखी पानी की बोतल से कुछ घूंट अपने सूखे गले में डालती है. आंखें बंद कर वह पानी को गले से ऐसे नीचे उतारती है जैसे उन सब बातों को अपने अंदर समा लेना चाहती है. पर, यह हो नहीं पा रहा. हर बार वह दिन उबकाई की तरह उस के पेट से निकल कर उस के मुंह में भर आता है जिस की दुर्गंध से उस की सारी ज्ञानेंद्रियां कांप उठती हैं.

पानी अपने हलक से नीचे उतार कर वह अपना मोबाइल देखती है. रात के डेढ़ बजे हैं. वह तकिए को बिस्तर के ऊंचे उठे सिराहने से टिका कर उस पर सिर रख लेट जाती है.

एक चंदन का सूखा वृक्ष खड़ा है. उस के आसपास मद्धिम रोशनी है. मोटे तने से होते हुए 2 सूखी शाखाएं ऊपर की ओर जा रही हैं, जैसे कि कोई दोनों हाथ ऊपर उठाए खड़ा हो. बीच में एक शाखा चेहरे सी उठी हुई है और तना तन लग रहा है. धीरेधीरे वह सूखा चंदन का पेड़ साफ दिखने लगता है. रोशनी उस पर तेज हो गई है. बहुत करीब है अब… वह एक स्त्री की आकृति है. यह बहुत ही सुंदर किसी अप्सरा सी, नर्तकी सी भावभंगिमाएं नाक, आंख, होंठ, गरदन, कमर की लचक, लहराते सुंदर बाजू सब साफ दिख रहे हैं.

चंदन की खुशबू से वहां खुशनुमा माहौल बन रहा है कि तभी उस सूखे पेड़ पर उस उकेरी हुई अप्सरा पर एक विशाल सांप लिपटा हुआ दिखने लगता है. बेहद विशाल, गहरा चमकीला नीला, हरा, काला रंग उस के ऊपर चमक रहा है. सारे रंग किसी लहर की तरह लहरा रहे हैं. आंखों के चारों ओर सफेद चमकीला रंग है. और सफेद चमकीले उस रंग से घिरी गोल आंख उस अप्सरा की पूरी काया को अपने में समा लेने की हवस लिए हुए है. रक्त सा लाल, किसी कौंधती बिजली से कटे उस के अंग उस काया पर लपलपा रहे हैं.

वह विशाल सांप अपनी जकड़ को घूमघूम कर इतना ज्यादा कस रहा है कि वह उस पेड़ को मसल कर धूल ही बना देना चाह रहा है. तभी वह काया जीवित हो जाती है. सांप उस से दूर गिर पड़ता है. वह एक सुंदर सी अप्सरा बन खड़ी हो जाती है और सांप की तरफ अपनी दृष्टि में ठहराव, शांति, आत्मविश्वास और आत्मशक्ति से ज्यों ही नजर डालती है वह सांप गायब हो जाता है और उमा जाग जाती है. सपने को दोबारा सोच कर उमा फिर बोतल से पानी की घूंट अपने हलक से उतारती है. अब उसे नींद नहीं आ रही.

भारतीय वन सेवा के बड़े ओहदे पर है उमा. उमा को मिला यह बड़ा सा घर और रहने के लिए वह अकेली. 3 तो सोने के ही कमरे हैं जो लगभग बंद ही रहते हैं. एक में वह सोती है. उमा उठ कर बाहर के कमरे में आ जाती है. बड़ी सी पूरे शीशे की खिड़की पर से परदा सरका देती है. दूरदूर तक अंधेरा. आईजीएनएफए, देहरादून के अहाते में रोशनी करते बल्ब से बाहर दृश्य धुंधला सा दिख रहा था. अभीअभी बारिश रुकी थी. चिनार के ढलाव से नुकीले पत्तों पर लटकती बूंदों पर नजर गड़ाए वह उस बीते एक दिन में चली जाती है…

उन दिनों वह अपनी पीएचडी के अध्ययन के सिलसिले में अपने शहर रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (कांके) आई हुई थी. पूरा बचपन तो यहीं बीता उस का. झारखंड के जंगलों में अवैध खनन व अवैध जंगल के पेड़ काटने पर रोक व अध्ययन के लिए जिला स्तर की कमेटी थी. आज उमा ने उस कमेटी के लोगों को बातचीत के लिए बुलाया था. उसे जरा भी पता नहीं था, उस के जीवन में कौन सा सवाल उठ खड़ा होने वाला है.

मीटिंग खत्म हुई. सारे लोग चाय के लिए उठ गए. उमा अपने लैपटौप पर जरूरी टिप्पणियां लिखने लग गई. तभी उसे लगा कोई उस के पास खड़ा है. उस ने नजर ऊपर की. एक नजर उस के चेहरे पर गड़ी हुई थी. आप ने मुझे पहचाना नहीं?

उमा ने कहा, ‘सौरी, नहीं पहचान पाई.’ ‘हम स्कूल में साथ थे,’ उस शख्स ने कहा.

‘क्षमा करें मेरी याददाश्त कमजोर हो गई है. स्कूल की बातें याद नहीं हैं,’ उमा ने जवाब दिया.

‘मैं अनवर हूं. याद आ रहा है?’

अनवर नाम तो सुनासुना सा लग रहा है. एक लड़का था दुबलापतला, शैतान. शैतान नहीं था मैं, बेहद चंचल था,’ वह बोला था.

उमा गौर से देखती है. कुछ याद करने की कोशिश करती है…और अनवर स्कूल के अन्य दोस्तों के नाम व कई घटनाएं बनाता जाता है. उमा को लगा जैसे उस का बचपन कहीं खोया झांकने लगा है. पता नहीं कब वह अनवर के साथ सहज हो गई, हंसने लगी, स्कूल की यादों में डूबने लगी.

अनवर की हिम्मत बढ़ी, उस ने कह डाला, ‘मैं तुम्हें नहीं भूल पाया. मैं साइलेंट लवर हूं तुम्हारा. मैं तुम से अब भी बेहद प्यार करता हूं.’

‘यह क्या बकवास है? पागल हो गए हो क्या? स्कूल में ही रुक गए हो क्या?’ उमा अक्रोशित हो गई.

‘हां, कहो पागल मुझे. मैं उस समय तुम्हें अपने प्यार के बारे में न बता सका, पर आज मैं इस मिले मौके को नहीं गंवाना चाहता. आइ लव यू उमा. तुम पहले भी सुंदर थीं, अब बला की खूबसूरत हो गई हो.’

उमा झट वहां से उठ जाती है और अपनी गाड़ी से अपने आवास की ओर निकल लेती है. आई लव यू उस के कानों में, मस्तिष्क में रहरह गूंज रहा था. कभी यह एहसास अच्छा लगता तो कभी वह इसे परे झटक देती.

फोन की घंटी से उस की नींद खुलती है. अनवर का फोन है. वह उस पर ध्यान नहीं देती. फिर घड़ी की तरफ देखती है, सुबह के 6 बज गए हैं. इतनी सुबह अनवर ने रिंग किया? उमा उठ कर बैठ जाती है. चेहरा धो कर चाय बनाती है. अपने फोन पर जरूरी मैसेज, कौल, ईमेल देखने में लग जाती है. तभी फिर फोन की घंटी बज उठती है. फिर अनवर का फोन है.

‘हैलो, हां, हैलो उठ गई क्या? गुडमौर्निंग,’ अनवर की आवाज थी.

‘इतने सवेरे रिंग कर दिया,’ उमा बोली.

‘हां, क्या करूं, रात को मुझे नींद ही नहीं आई. तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा,’ अनवर बोला.

‘मुझे अभी बहुत काम है, बाद में बात करती हूं,’ उमा ने फोन काट दिया.

आधे घंटे बाद फिर अनवर का फोन आया.

‘अरे, मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’

‘नहींनहीं, मुझे नहीं मिलना है. मुझे बहुत काम है,’ और उस ने फोन जल्दी से रख दिया.

आधे घंटे बाद फिर अनवर का फोन आया और वह बोला, ‘सुनो, फोन काटना मत. बस, एक बार मिलना चाहता हूं, फिर मैं कभी नहीं मिलूंगा.’

‘ठीक है, लंच के बाद आ जाओ,’ उमा ने अनवर से कहा.

लंच के समय कमरे की घंटी बजती है. उमा दरवाजा खोलती है. सामने अनवर खड़ा है. अनवर बेखौफ दरवाजे के अंदर घुस जाता है.

‘ओह, आज बला की खूबसूरत लग रही हो, उमा. मेरे इंतजार में थी न? तुम ने अपनेआप को मेरे लिए तैयार किया है न?’

उमा बोली, ‘ऐसी कोई बात नहीं है? मैं अपने साधारण लिबास में हूं. मैं ने कुछ भी खास नहीं पहना.’

अनवर डाइनिंग रूम में लगी कुरसी पर ढीठ की तरह बैठ गया. उमा के अंदर बेहद हलचल मची हुई है पर वह अपनेआप को सहज रखने की भरपूर कोशिश में है. वह भी दूसरे कोने में पड़ी कुरसी पर बैठ गई. अनवर 2 बार राष्ट्रीय स्तर की मुख्य राजनीतिक पार्टी से चुनाव लड़ चुका था, लेकिन दोनों बार चुनाव हार गया था. अब वह अपने नेता होने व दिल्ली तक पहुंच होने को छोटेमोटे कार्यों के  लिए भुनाता है. उस के पास कई ठेके के काम हैं. बातचीत व हुलिया देख कर लग रहा था कि वह अमीरी की जिंदगी जी रहा है. अनवर की पूरी शख्सियत से उमा डरी हुई थी.

‘उमा, मैं तुम से बहुत सी बातें करना चाहता हूं. मैं तुम से अपने दिल की सारी बातें बताना चाहता हूं. आओ न, थोड़ा करीब तो बैठो प्लीज,’ अनवर अपनी कुरसी उस के करीब सरका कर कहता है, ‘तुम भरपूर औरत हो.’

अचानक उमा का बदन जैसे सिहर उठा. अनवर ने उस का हाथ दबा लिया था. अनवर की आंखें गिद्ध की तरह उमा के चेहरे को टटोलने की कोशिश कर रही थीं. उमा ने झटके से अपना हाथ खींच लिया.

‘मैं चाय बना कर लाती हूं,’ कह कर उमा उठने को हुई तो अनवर बोल उठा.

‘नहींनहीं, तुम यहीं बैठो न.’

उमा पास रखी इलैक्ट्रिक केतली में चाय तैयार करने लगी. तभी उमा को अपने गले पर गरम सांसों का एहसास हुआ. वह थोड़ी दूर जा कर खड़ी हो गई.

‘क्या हुआ? तुम ने शादी नहीं की पर तुम्हें चाहत तो होती होगी न,’ अनवर ने जानना चाहा.

‘कैसी बकवास कर रहे हो तुम,’ उमा खीझ कर बोली.

‘हम कोई बच्चे थोड़े हैं अब. बकवास तो तुम कर रही हो,’ अनवर भी चुप नहीं हुआ और उस के होंठ उमा के अंगों को छूने लगे. उमा फिर दूर चली गई.

‘अनवर, बहुत हुआ, बस करो. मुझे यह सब पसंद नहीं है,’ उमा ने संजीगदी से कहा.

‘एक मौका दो मुझे उमा, क्या हो गया तुम्हें, अच्छा नहीं लगा क्या?  मैं तुम से प्यार करता हूं. सुनो तो, तुम खुल कर मेरे साथ आओ,’ उस ने उमा को गोद में उठा लिया. अनवर की गोद में कुछ पल के लिए उस की आंखें बंद हो गईं. अनवर ने उसे बिस्तर पर लिटा दिया और उस पर हावी होने लगा. तभी बिजली के झटके की तरह उमा उसे छिटक कर दूर खड़ी हो गई.

‘अभी निकलो यहां से,’ उमा बोल उठी.

अनवर हारे हुए शिकारी सा उसे देखता रह गया.

उमा बोली, ‘मैं कह रही हूं, तुम अभी जाओ यहां से.’

अनवर न कुछ बोला और न वहां से गया तो उमा ने कहा, ‘मैं यहां किसी तरह का हंगामा नहीं करना चाहती. तुम बस, यहां से चले जाओ.’

अनवर ने अपना रुमाल निकाला और चेहरे पर आए पसीने को पोंछता हुआ कुछ कहे बिना वहां से निकल गया. उमा दरवाजा बंद कर डर से कांप उठी. सारे आंसू गले में अटक कर रह गए. अपने अंदर छिपी इस कमजोरी को उस ने पहली बार इस तरह सामने आते देखा. उसे बहुत मुश्किल से उस रात नींद आई.

फोन की घंटी से उस की नींद खुली. फोन अनवर का था.

‘मैं बहुत बेचैन हूं. मुझे माफ कर दो.’

उमा ने फोन काट कर उस का नंबर ब्लौक कर दिया. फिर दोबारा एक अनजान नंबर से फोन आया. यह भी अनवर की ही आवाज थी.

‘मुझे माफ कर दो उमा. मैं तुम्हारी दोस्ती नहीं खोना चाहता.’

उमा ने फिर फोन काट दिया. वह बहुत डर गई थी. उमा ने सोचा कि उस के वापस जाने में 2 दिन बाकी हैं. वह बेचैन हो गई. किसी तरह वह खुद को संयत कर पाई.

कई महीने बीत गए. वह अपने कामों में इतनी व्यस्त रही कि एक बार भी उसे कुछ याद नहीं आया. हलकी याद भी आई तो यही कि वह जंग जीत गई है.

‘जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग

चंदन विष व्याप्त नहीं, लपटे रहत भुजंग.’

एक दिन अचानक एक फोन आया. उस तरफ अनवर था, ‘सुनो, मेरा फोन मत काटना और न ही ब्लौक करना. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पा रहा है. बताओ न तुम कहां हो? मैं तुम से मिलना चाहता हूं. मैं मर रहा हूं, मुझे बचा लो.’

‘यह किस तरह का पागलपन है. मैं तुम से न तो बात करना चाहती हूं और न ही मिलना चाहती हूं,’ उमा ने साफ कहा.

‘अरे, जाने दो, भाव दिखा रही है. अकेली औरत. शादी क्यों नहीं की, मुझे नहीं पता क्या? नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली चली हज को. मजे लेले कर अब मेरे सामने सतीसावित्री बनती हो. तुम्हें क्या चाहिए मैं सब देने को तैयार हूं,’ अनवर अपनी औकात पर उतर आया था.

ऐसा लगा जैसे किसी ने खौलता लावा उमा के कानों में उडे़ल दिया हो. उस ने फोन काट दिया और इस नंबर को भी ब्लौक कर दिया. यह परिणाम बस उस एक पल का था जब वह पहली बार में ही कड़ा कदम न उठा सकी थी.

इस बात को बीते 4 साल हो गए हैं. अनवर का फोन फिर कभी नहीं आया. उमा ने अपना नंबर बदल लिया था. पर आज भी यह सपना कहीं न कहीं घाव रिसता है. दर्द होता है. कहते हैं समय हर घाव भर देता है पर उमा देख रही है कि उस के जख्म रहरह कर टीस उठते हैं.

Relatioship Problem : शादीशुदा हूं मगर मेरी एक्स मेरे करीब आना चाहती है.

Relatioship Problem : हम सब कालेज फ्रैंड्स का व्हाट्सऐप ग्रुप बना है. उस में हाल ही में मेरी एक्स गर्लफ्रैंड भी ऐड हो गई है. ग्रुप में सब बातें करते रहते हैं. मेरी एक्स गर्लफ्रैंड की भी शादी हो गई है और मेरी भी. मैं तो उस से कोई बात नहीं करता लेकिन उस ने मेरे मोबाइल पर पर्सनल मैसेज भेजने शुरू कर दिए हैं. मैं उस से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता लेकिन उस की बातों से लग रहा है कि वह अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुश नहीं है और फिर से मेरे करीब आना चाहती है. मैं अपने विवाहित जीवन में बहुत खुश हूं, पत्नी मुझ पर जान छिड़कती है. मैं भी उस से हर तरह से संतुष्ट हूं. आप ही बताएं मैं क्या करूं?

आप ने अपने प्रश्न का जवाब खुद ही दे दिया है. आप खुद कह रहे हैं कि आप खुशहाल शादीशुदा जिंदगी जी रहे हैं, फिर दोबारा से एक्स गर्लफ्रैंड से कौंटैक्ट रखना मूर्खता होगी.

आप दोनों कालेज के दिनों में एकदूसरे से प्यार करते थे. लेकिन शादी नहीं की, इस की कोई वजह तो रही होगी जो आप ने नहीं लिखी. खैर, कारण जो भी रहा होगा, लेकिन अब सब बदल गया है, आप दोनों शादीशुदा हैं.

वह आप के अनुसार अपने विवाहित जीवन में खुश नहीं लेकिन आप तो हैं, पुराने रिश्ते जब पीछे छूट जाते हैं तो उन्हें दोबारा जिंदा करने का कोई फायदा नहीं.

आप के साथ अब आप की पत्नी की जिंदगी जुड़ी है. आप की पत्नी आप की प्राथमिकता है. गर्लफ्रैंड के बारे में अब कुछ भी सोचना बेईमानी होगी. उस का नंबर अपने मोबाइल में ब्लौक कर दें. गर्लफ्रैंड की अब अपनी जिंदगी है और उसे जो देखना है वह खुद देखे, आप उस से दूर रहें, यही सब के लिए अच्छा है.

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख कर भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

Relationship : मंगेतर के साथ सैक्सुअल इंटीमेसी को कैसे बनाऊं?

Relationship : मेरी उम्र 32 वर्ष है और जल्दी ही मेरी अरेंज मैरिज होने वाली है. लड़की लखनऊ की है. अभी तक सिर्फ 2 बार मिला हूं. हम दोनों के बीच कुछ खुल कर बात नहीं हुई. फोन पर भी कभीकभी बात होती है. वह थोड़ी शर्मीली टाइप की लड़की है, मुझे लग रहा है कि सैक्स को ले कर वह शर्म न करे. मैं नहीं चाहता कि उस की शर्म हमारी सैक्सलाइफ पर इफैक्ट डाले. आप ही बताइए उस के साथ सैक्सुअल इंटीमेसी कैसे बनाऊं?

आप बेवजह की बातें सोच रहे हैं, आप की मंगेतर शर्मीले स्वभाव की है तो क्या हुआ. शादी से पहले वह आप से शरमा रही है, खुल कर बात नहीं कर पा रही तो क्या हुआ, शादी के बाद सब शर्म, सब झिझक खुल जाती है.

पतिपत्नी का रिश्ता ही ऐसा होता है कि बीच में शर्म करने की बात रहती ही नहीं. रही बात पत्नी के साथ हैल्दी सैक्सुअल इंटीमेसी बनाए रखने की, तो हर कपल को इस की सब से ज्यादा जरूरत होती है.

जब आप सैक्स करते हैं तो आप को पता होना चाहिए कि आप का पार्टनर बैड पर आप से क्या एक्सपैक्ट करता है. आप दोनों आपस में क्लीयर करें कि आप को बेड पर क्या उत्तेजित करता है. अपनी सैक्स फैंटेसी, एक्सपैक्टेशन को आपस में एकदूसरे के साथ शेयर करिए, इस से आप की सैक्सलाइफ अपनेआप बेहतर बन जाएगी.

सैक्स में जल्दबाजी कभी नहीं करें. गो स्लो. फोरप्ले का प्रयास करें, क्योंकि यह बहुत कामुक और उत्तेजित करने वाला हो सकता है. आप का साथी इसे पसंद करेगा. यदि आप पार्टनर के शरीर के संवेदनशील हिस्सों पर ज्यादा ध्यान देते हैं, उस को ज्यादा उत्तेजित करते हैं तो यह सैक्स को और बेहतर बनाएगा.

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Oily Food : फैमिली फंक्शन में औयली फूड कैसे अवौयड करूं?

Oily Food : मैं 55 साल का हूं और हैल्थ कौंशियस हूं. डेली की डाइट बहुत सोचसमझ कर और डाक्टर्स के निर्देशानुसार लेता हूं. दिक्कत तब आती है जब किसी के घर जाना पड़ जाए या कोई पार्टी, फैमिली फंक्शन हो, तब न चाहते हुए भी औयली फूड खाना पड़ जाता है. लोग मजाक न बनाएं, इस से बचने के चक्कर में बाहर का औयली फूड खा लेता हूं. बहुत दिक्कत महसूस करता है लेकिन समझ नहीं आता क्या करूं?

अच्छी बात है कि आप अपनी सेहत का ध्यान रखते हैं. लेकिन कभीकभार मजबूरीवश ही सही, औयली फूड का सेवन करना पड़ जाता है तो कोई दिक्कत नहीं. कुछ तरीके अपना कर आप औयली फूड खाने के बाद भी आराम महसूस कर सकते हैं. यदि औयली फूड खा लिया है तो गुनगुना पानी पीने से पाचनतंत्र शांत और सक्रिय हो जाता है. अगले दिन फल और सब्जियों का सेवन आप को फ्रैश फील करवाएगा.

कुछ भी औयली खाने के बाद डिटौक्स ड्रिंक लेने से सिस्टम में जमा होने वाले विषाक्त पदार्थ तुरंत बाहर निकल जाते हैं. औयली फूड खाने के बाद एक कप दही खाने से बहुत आराम मिलता है.

तैलीय भोजन हमेशा भारीपन महसूस कराता है, इसलिए इस के सेवन के बाद कोशिश करें कि वाक के लिए चले जाएं. कम से कम 30 मिनट की वाक के बाद आप पाचन में काफी सुधार देखेंगे.

अच्छी नींद आप के मूड को बूस्ट कर सकती है, हैंगओवर से छुटकारा मिलता है, साथ ही शरीर को भी आराम मिल जाता है. इसलिए जितना संभव हो औयली फूड खाने के बाद आराम करें. एक बात और, बहुत ज्यादा तला हुआ भोजन खाने के बाद ठंडी चीज से परहेज करना चाहिए क्योंकि तैलीय भोजन के बाद ठंडी चीज पचाना ज्यादा मुश्किल हो जाता है.

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख कर भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

Online Hindi Story : आस्था के आयाम : आखिर वह महिला कौन थी ?

Online Hindi Story : जून का अंतिम सप्ताह और आकाश में कहीं बादल नहीं. अभय को आज हर हाल में रामपुर पहुंचना है वरना ऐसी गरमी में वह क्यों यात्रा करता? वह तो स्टेशन पहुंचने से ले कर रिजर्वेशन चार्ट में अपना नाम ढूंढ़ने तक में ही पसीनापसीना हो गया. पर अपने फर्स्ट क्लास एसी डब्बे में पहुंचते ही उस ने राहत की सांस ली. सामने की सीट पर एक सुंदर महिला बैठी थी. यात्रा में ऐसे सहयात्री का सान्निध्य अच्छा लगता है.

‘‘सामान सीट के नीचे लगा दो,’’ अभय ने पानी की बोतल को खिड़की के पास की खूंटी से टांगते हुए कुली से कहा.

अभय ने महिला को कनखियों से देखा. वह एक बार उन लोगों को उचटती नजर से देख कुछ पढ़ने में व्यस्त हो गई है. इस बीच कुली ने सामान सीट के नीचे रख दिया. जेब से पर्स निकाल कर कुली को मुंहमांगी मजदूरी के साथसाथ अभय ने 10 रुपए बख्शिश भी दी. कुली के डब्बे से उतरते ही गाड़ी ने रेंगना शुरू कर दिया. गाड़ी स्टेशन, शहर पीछे छोड़ती जा रही थी. अब बेफिक्र हो कर अभय ने पूरे डब्बे में नजर दौड़ाई. पूरे डब्बे में सिर्फ वे दोनों ही थे. ऐसा सुखद संयोग पा कर अभय खुश हो उठा. थोड़ी देर बाद अपने जूते उतार कर, बाल संवार कर वह बर्थ पर इस प्रकार टेक लगा कर बैठा कि उस महिला को भलीभांति निहार सके. महिला वास्तव में सुंदर थी. वह लगभग 34-35 वर्ष की तो रही होगी पर देखने से काफी कम आयु की लग रही थी.

अभय उस महिला से संवाद स्थापित करने हेतु व्यग्र हो उठा. पर महिला अपने आसपास के वातावरण से बेखबर पढ़ने में व्यस्त थी. उस की बर्थ पर एक ओर कई समाचारपत्र और पत्रिकाएं रखी हुई थीं और वह एक पुस्तक खोले उस से अपनी नोटबुक में कुछ नोट करती जा रही थी.

अभय के बैग में भी 2-3 पत्रिकाएं रखी थीं. पर उन्हें निकालने के बजाय महिला से संवाद करने के उद्देश्य से उस ने शालीनता से पूछा, ‘‘ऐक्सक्यूज मी मैडम, क्या मैं यह मैगजीन देख सकता हूं?’’

महिला ने एक बार सपाट नजर से उसे देखा. 36-37 वर्ष का स्वस्थ, ऊंचे कद का व्यक्ति, गेहुआं रंग और उन्नत मस्तक. कुल मिला कर आकारप्रकार से संभ्रांत और सुशिक्षित दिखाई देता व्यक्ति. महिला ने बिना कुछ कहे मैगजीन उस की ओर बढ़ा दी. तभी अचानक उसे लगा कि इस व्यक्ति को उस ने कहीं देखा है? पर कब और कहां?

दिमाग पर जोर देने पर भी उसे कुछ याद नहीं आया. थक कर उस ने यह विचार मन से झटक दिया और पुन: अपने काम में मशगूल हो गई.

गाड़ी लखनऊ स्टेशन पर रुक रही थी. महिला को अपना सामान समेटते देख कर अभय इस आशंका से भयभीत हो उठा कि कहीं यह सुखद सान्निध्य यहीं तक का तो नहीं? अभी तो कोई बात भी नहीं हो पाई है.

तभी महिला ने दूसरी नोटबुक और किताब निकाल ली और पुन: कुछ लिखने में व्यस्त हो गई. अभय ने यह देख राहत की सांस ली.

अचानक डब्बे का दरवाजा खुला. टीटी ने अंदर झांका और फिर सौरी कह कर दरवाजा बंद कर दिया. दरवाजा फिर खुला और सफेद वरदी में एक व्यक्ति, जो उस महिला का अरदली था और द्वितीय श्रेणी में यात्रा कर रहा था, ने आ कर उस महिला से सम्मान से पूछा, ‘‘मेम साहब, चाय, कौफी या फिर ठंडा लाऊं?’’

‘‘हां, स्ट्रौंग कौफी ले आओ,’’ महिला ने बिना नजरें उठाए कहा.

जब अरदली जाने लगा तो अभय ने उसे आवाज दे कर बुलाया, ‘‘सुनो, 1 कप कौफी मेरे लिए भी ले आना.’’

अरदली ने ठिठक कर महिला की ओर देखा और उस की मौन स्वीकृति पा कर चला गया.

महिला अब अभय के बारे में सोचने लगी कि पुरुष मानसिकता की कितनी स्पष्ट छाप है इस की हर गतिविधि में.

थोड़ी ही देर में अरदली 2 कप कौफी दे कर लौट गया.

अभय ने कौफी का सिप लेते ही कहा, ‘‘कौफी अच्छी बनी है.’’

मगर महिला बिना कुछ बोले कौफी पीती रही. अभय समझ नहीं पा रहा था कि अब वह महिला से कैसे संवाद स्थापित करे. वह कुछ बोलने ही जा रहा था कि तभी बैरा अंदर आ गया. उस ने पूछा, ‘‘साहब, लंच कहां सर्व किया जाए?’’

‘‘लखनऊ में तो दूसरा बैरा आया था, अब तुम कहां से आ गए?’’ अभय ने पूछा.

‘‘नहीं तो साहब… लखनऊ में भी मैं ही इस डब्बे के साथ था.’’

दोनों के वार्त्तालाप के मध्य हस्तक्षेप कर महिला ने कहा, ‘‘वह बैरा नहीं, मेरा अरदली था.’’

यह सुन कर अभय लज्जित हो उठा. उस ने बैरे को फौरन लंच के लिए और्डर दे कर विदा कर दिया. महिला ने पहले ही अपने लिए कुछ भी लाने को मना कर दिया था. वह मन ही मन सोच रहा था कि उच्चपदासीन होने के बावजूद उस के जीवन में अब तक ऐसी कोई महिला नहीं आई, जिस से संवाद स्थापित करने की ऐसी प्रबल इच्छा होती. कार और सुंदर बंगला मिलने के प्रलोभन में ऐसी पत्नी मिली, जिस से उस का मानसिक स्तर पर कभी अनुकूलन न हो सका. ‘काश, ऐसी महिला आज से कुछ वर्ष पहले मेरे जीवन में आई होती.’

अभय ने पुन: वार्त्ता का सूत्र जोड़ने का प्रयास किया, ‘‘मैडम, आप ने लंच और्डर नहीं किया. क्या आप हरदोई या शाहजहांपुर तक ही जा रही हैं?’’

महिला ने उसे ध्यान से देखा. उसे खीज हुई कि यह व्यक्ति उस की रुखाई के बावजूद निरंतर उस से बात करने का प्रयास किए जा रहा है. ‘इसे पहले कहीं देखा है’ एक बार फिर इस प्रश्न के कुतूहल ने सिर उठाया, पर व्यर्थ. उसे कुछ याद नहीं आ रहा था. फिर अपने दिमाग पर अनावश्यक जोर देने के बजाय उस ने संक्षिप्त उत्तर दिया, ‘‘नहीं, मैं बरेली तक जा रही हूं.’’

‘‘क्या वहां आप का मायका है?’’

‘‘नहीं, मेरा मायका तो फैजाबाद में है. दरअसल, मैं बरेली में एडीशनल मजिस्ट्रेट के पद पर तैनात हूं.’’

यह सुनते ही अभय के मन में एक हूक सी उठी. फिर उस ने लुभावने अंदाज में कहा, ‘‘आप जैसी शख्सीयत से मिलने पर बहुत खुशी हो रही है.’’

फिर अभय सहसा अपने बारे में बताने के लिए बेचैन हो उठा. बोला, ‘‘मैडम, मैं भी जनपद फैजाबाद का रहने वाला हूं. इस समय मैं हरिद्वार में पीडब्लूडी में अधीक्षण अभियंता के पद पर हूं. अभय प्रताप सिंह नाम है मेरा. मेरे पिता ठाकुर विक्रम प्रताप सिंह भी अपने क्षेत्र के नामी ठेकेदार हैं.

‘‘मेरा विवाह सुलतानपुर के एक संभ्रांत ठाकुर घराने में हुआ है. मेरे ससुर भी हाइडिल विभाग में उच्चाधिकारी हैं,’’ अभय नौनस्टौप बोले जा रहा था.

पर ठाकुर विक्रम प्रताप सिंह का नाम सुनते ही महिला को कुछ और सुनाई देना बंद हो गया. एक झटके से विस्मृति के सारे द्वार खुल गए. उसे अपने जीवन की घनघोर पीड़ा का वह अध्याय याद हो आया, जिसे वह अब तक भूल न सकी थी. फिर एक गहरी सांस छोड़ कर महिला ने सोचा कि कुदरत जो करती है, अच्छा ही करती है. एक दिन इसी अभय से उस की सगाई हुई थी. वह तो मन ही मन उसे अपना पति मान चुकी थी, पर धनसंपदा के प्रलोभन में अभय के पिता ने यह सगाई तोड़ दी थी. बड़ा अपमान हुआ था उस के सीधेसादे बाबूजी का. मगर उसी अपमान के तीखे दंश उसे निरंतर आगे बढ़ने को प्रेरित करते रहे. अपने बाबूजी के खोए सम्मान को वापस पाने हेतु उस ने कड़ी मेहनत की. आज उस के पास सब कुछ है फिर भी उस में एक अजब सा वैराग्य आ गया है, जो शायद इसी व्यक्ति के प्रति कभी रहे उस के गहन अनुराग को ठुकराए जाने का परिणाम है. पर आज अभय की आंखों में अपने प्रति सम्मान और प्रशंसा देख कर उस की सारी गांठें जैसे अपनेआप खुलती चली गईं.

गाड़ी बरेली स्टेशन पर रुकी. अरदली ने महिला का सामान उठाया. महिला डब्बे से बाहर जाने के लिए बढ़ी, फिर अनायास अभय की ओर मुड़ी और बोली, ‘‘पहचानते हैं मुझे? मैं उन्हीं ठाकुर विजय सिंह की बेटी निकिता हूं, जिस से कभी आप की सगाई हुई थी,’’ और फिर अभय को अवाक छोड़ डब्बे से उतर गई. बाहर उस के पति और बच्चे उसे रिसीव करने आए थे.

Hindi Story : फरेब – जिस्म के लिए क्या मालिक और पति दोनों ने दिया था धोखा ?

Hindi Story : जब प्रोग्राम खत्म होने को होता, तो उसे फूलों का एक खूबसूरत गुलदस्ता भेंट कर चुपचाप लौट जाता.

शुरूशुरू में तो मुसकान ने उस की ओर ध्यान नहीं दिया, पर जब वह उस के हर प्रोग्राम में आने लगा, तो उस के मन में उस नौजवान के लिए एक जिज्ञासा जाग उठी कि आखिर वह कौन है? वह उस के हर प्रोग्राम में क्यों होता है? उसे उस के हर अगले प्रोग्राम की तारीख और जगह की जानकारी कैसे हो जाती है? वगैरह.

नट जाति से ताल्लुक रखने वाली मुसकान एक कुशल नाचने वाली थी. अपने बौस के आरकैस्ट्रा ग्रुप के साथ वह आएदिन नएनए शहरों में अपना प्रोग्राम देने जाती रहती थी.

लंबा कद, गोरा रंग और खूबसूरत चेहरे वाली मुसकान जब स्टेज पर नाचती थी, तो लोग दिल थाम लेते थे. उस के बदन की लोच, कातिल अदाएं और होंठों पर छाई रहने वाली मुसकान ने हजारों लोगों को अपना दीवाना बना रखा था, पर उस की दीवानगी में आहें भरने वालों में शायद ही कोई यह जानता था कि उस की मुसकान के पीछे उस के दिल में कितना दर्द छिपा हुआ है.

मुसकान महज 15 साल की थी, तब उस के मांबाप ने उसे इसी आरकैस्ट्रा ग्रुप के मालिक के हाथों बेच दिया था. तब उस का नाच में माहिर होना ही उस का शाप बन गया था. वैसे भी उन दलित परिवारों में बेटियों का बिकना आम था. बहुत सी तो खुद ही भाग जाती थीं.

मुसकान से कहा गया था कि गु्रप का मालिक उस के नाच से प्रभावित हो कर उसे अपने ग्रुप में शामिल कर रहा है और इस के लिए उस ने उस के मांबाप को एक मोटी रकम दी है. तब उसे उस की यह शर्त थोड़ी अटपटी जरूर लगी थी कि उसे उस के साथ ही रहना होगा.

जब मुसकान ने इस बात पर एतराज जताया था, तो ग्रुप के मालिक महेश ने उसे यह कह कर भरोसा दिलाया था कि वह जब चाहे अपने मांबाप से मिलने जा सकती है.

मुसकान को आरकैस्ट्रा ग्रुप में शामिल हुए सालभर बीतने को आया था. इस बीच वह कई जगह अपने प्रोग्राम दे चुकी थी. उसे इज्जत के साथ पैसे भी मिलते थे.

इस के बाद तो मुसकान को बारबार बेचा गया. कभी उस की भावनाओं का सौदा हुआ, तो कभी उस के जिस्म का. बीतते दिनों के साथ यह हकीकत उस के सामने आई कि महेश न सिर्फ अपने ग्रुप में शामिल लड़कियों की देह बेचता है, बल्कि उन के जिस्म का भी सौदा करता है. अगर कोई लड़की उस की इस बात की खिलाफत करती है, तो उसे बुरी तरह सताया जाता है. पर मुसकान इस की शिकायत किस से करती. वह भी उन हालात में, जब उस के मांबाप ने ही उसे इस जलालतभरी जिंदगी में धकेल दिया था. उसे कुछ दिनों में ग्राहकों से भी शिकायत नहीं रही.

मुसकान दलदल में फंसी एक बेबस और बेजान जिंदगी जी रही थी कि वह नौजवान उस की जिंदगी में आया. उस ने मुसकान की जिंदगी में एक हलचल सी मचा दी थी.

मुसकान ने तय किया था कि वह उस से अकेले में मिलेगी. वह पूछेगी कि आखिर वह उस के पीछे क्यों पड़ा है?

कल फिर मुसकान का प्रोग्राम था. उसे इस बात का पक्का यकीन था कि वह नौजवान कल भी आएगा.

देखा जाए, तो मुसकान अकसर लोगों से मिलती रहती थी. इन में अच्छे लोग भी होते थे और बुरे लोग भी. पर सच कहा जाए, तो बुरे लोगों की तादाद ज्यादा होती थी. वे लोग उस के रंगरूप और जवानी के दीवाने होते थे. उन के लिए वह एक खूबसूरत जिस्म थी, जिस वे भोगना चाहते थे.

मुसकान ने एक आदमी भेज कर उसे बुला लिया था. वह उस के सामने चुपचाप बैठा था.

मुसकान कुछ देर तक उस के बोलने का इंतजार करती रही, फिर बोली, ‘‘मैं देख रही हूं कि पिछले तकरीबन एक साल से तुम मेरे हर प्रोग्राम में रहते हो, मुझे गुलदस्ता भेंट करते हो और लौट जाते हो. मैं जान सकती हूं कि क्यों?’’

‘‘क्योंकि मुझे आप पसंद हैं…’’ वह गंभीर आवाज में बोला, ‘‘मैं आप को चाहने लगा हूं.’’

‘‘ऐसा ही होता है. कई बार लोग हमारी जैसी नाचने वाली किसी लड़की की किसी खास अदा पर फिदा हो कर उसे चाहने लगते हैं. पर उन की यह चाहत थोड़ी देर की होती है, जो बीतते समय के साथ खत्म हो जाती है.’’

‘‘परंतु, मेरी चाहत ऐसी नहीं है. सच तो यह है कि आप को अपनी जिंदगी में शामिल करना चाहता हूं.’’

‘‘यह मुमकिन नहीं है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि जिन लोगों के साथ मैं काम करती हूं, वे यह हरगिज पसंद नहीं करेंगे कि मैं उन का साथ छोड़ कर जाऊं.’’

‘‘सवाल यह नहीं कि लोग क्या चाहते हैं. सवाल यह है कि आप क्या चाहती हैं?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘बतलाऊंगा, पर इस के पहले आप यह बताइए कि क्या आप अपनी इस मौजूदा जिंदगी से खुश हैं?’’

मुसकान उस के इस सवाल का जवाब न दे सकी. वह कुछ देर तक चुपचाप उसे देखती रही, फिर बोली, ‘‘अगर मैं कहूं कि नहीं तो…?’’

‘‘तो मैं कहूंगा कि आप इस जिंदगी को ठोकर मार दीजिए.’’

‘‘और…?’’

‘‘और मेरी चाहत को कबूल कर मेरी जिंदगी में शामिल हो जाइए.’’

‘‘मैं फिर कहूंगी कि तुम्हारा यह प्रस्ताव भावुकता में दिया गया प्रस्ताव है, जिसे मैं स्वीकार नहीं कर सकती.’’

‘‘ऐसा नहीं है…’’ वह बोला, ‘‘और मैं समीर इसे आप के सामने साबित कर के रहूंगा,’’ कहने के बाद वह उठ खड़ा हुआ और चला गया.

इस के बाद भी समीर मुसकान से मिलता रहा. वह जब भी उस से मिलता, अपना प्रस्ताव उस के सामने जरूर दोहराता.

सच तो यह था कि मुसकान भी उस के प्रस्ताव को स्वीकार कर अपनी इस जलालत भरी जिंदगी से आजाद होना चाहती थी, पर यह बात भी वह अच्छी तरह जानती थी कि महेश इतनी आसानी से उसे अपने चंगुल से आजाद नहीं होने देगा. वह उस के लिए सोने का अंडा देने वाली मुरगी जो थी. पर समीर की चाहत और लगाव देख कर मुसकान ने फैसला कर लिया कि वह समीर का प्रस्ताव स्वीकार करेगी.

जब मुसकान ने अपने इस फैसले की जानकारी समीर को दी, तो खुशी से उस की आंखें चमक उठीं. मुसकान पलभर तक खुशी से चमकते उस के चेहरे को देखती रही, फिर गंभीर आवाज में बोली, ‘‘पर समीर, महेश इतनी आसानी से मुझे छोड़ने वाला नहीं.’’

‘‘मैं उसे मुंहमांगी कीमत दूंगा और तुम्हें उस से खरीद लूंगा.’’

‘‘ठीक है, बात कर के देखो. शायद वह तुम्हारी बात मान जाए.’’

समीर ने मुसकान को साथ ले कर महेश से बात की और उसे बताया कि वह हर कीमत पर मुसकान को हासिल करना चाहता है.

‘‘हर कीमत पर…’’ महेश ‘कीमत’ शब्द पर जोर देता हुआ बोला.

‘‘हां…’’ समीर बोला, ‘‘तुम कीमत बोलो?’’

‘‘10 लाख…’’ महेश ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘मंजूर है,’’ समीर बिना एक पल गंवाए बोला.

समीर महेश को मुंहमांगी कीमत दे कर मुसकान को अपने आलीशान घर में ले आया. घर की सजावट देख मुसकान हैरान हो कर बोली, ‘‘यह घर तुम्हारा है?’’

‘‘हां…’’ समीर उस के खूबसूरत चेहरे को प्यार से देखता हुआ बोला, ‘‘और अब तुम्हारा भी.’’

‘‘मेरा कैसे?’’

‘‘वह ऐसे कि तुम मेरी पत्नी बनने वाली हो.’’

‘‘सच?’’

‘‘बिलकुल सच…’’ समीर उसे अपनी बांहों में भरता हुआ बोला, ‘‘हम कल ही शादी कर लेंगे.’’

समीर ने मुसकान से शादी कर ली. मुसकान को लगा था कि समीर को पा कर उस ने दुनियाजहान की खुशियां पा ली हों. वह दिलोजान से उस पर न्योछावर हो गई थी. समीर भी उसे दिल की गहराइयों से चाहता था.

कुछ दिनों तक तो मुसकान को अपनी यह दुनिया बेहद भली और खुशगवार लगी थी, परंतु फिर वह इस से ऊबने लगी थी. उसे ऐसा लगने लगा था, जैसे उस की जिंदगी एक ढर्रे में बंध गई हो. ऐसे में उसे अपनी स्टेज की दुनिया याद आने लगी थी. उस की उस दुनिया में कितना रोमांच, कितना ग्लैमर था.

एक दिन अचानक मुसकान के आरकैस्ट्रा ग्रुप के मालिक महेश ने उस के सामने अपने ग्रुप की ओर से एक जगह प्रोग्राम देने का प्रस्ताव रखा और उस के बदले उसे एक मोटी रकम देने का वादा किया, तो वह इनकार न कर सकी.

‘‘प्रोग्राम कब है?’’ मुसकान ने पूछा.

‘‘कल.’’

‘‘कल…?’’ मुसकान के चेहरे पर निराशा के भाव फैले, ‘‘पर, समीर तो यहां नहीं हैं. वे कारोबार के सिलसिले में 4 दिनों के लिए शहर से बाहर गए हुए हैं. मुझे इस प्रोग्राम के लिए उन से इजाजत लेनी होगी.’’

‘‘अरे, डांस का प्रोग्राम ही तो देना है…’’ महेश बोला, ‘‘किसी अमीरजादे का बिस्तर तो नहीं गरम करना. भला इस में समीर को क्या एतराज हो सकता है?’’

‘‘फिर भी…’’

‘‘मान भी जाओ मुसकान.’’

‘‘ठीक है,’’ मुसकान ने हामी भर दी.

मुसकान ने डरे हुए मन से यह प्रोग्राम कर लिया. उसे उम्मीद थी कि वह समीर को इस के लिए मना लेगी, परंतु उस का ऐसा सोचना, उस की कितनी बड़ी भूल थी. इस का अहसास उसे समीर के लौटने पर छुआ.

‘‘यह मैं क्या सुन रहा हूं,’’ समीर मुसकान को गुस्से से घूरता हुआ बोला.

‘‘क्या…?’’

‘‘तुम ने फिर से डांस का प्रोग्राम किया.’’

‘‘आप को किस ने बताया?’’

‘‘मेरे एक दोस्त ने, जो तुम्हें अच्छी तरह से जानता है.’’

मुसकान को जिस बात का डर था, वही हुआ.

‘‘इस में खराबी क्या है…’’ मुसकान समीर का गुस्सा कम करने की कोशिश करते हुए बोली, ‘‘आजकल तो अच्छे घरानों की लड़कियां भी ऐसे प्रोग्राम करती हैं. फिर महेश ने इस के लिए मुझे एक मोटी रकम भी दी है.’’

‘‘मतलब, तुम ने पैसों के लिए प्रोग्राम किया है?’’

‘‘हां समीर…’’

‘‘आखिर तुम ने अपनी औकात दिखा ही दी और तुम ने यह भी साबित कर दिया कि तुम निचली जाति से ताल्लुक रखती हो.’’

‘‘समीर, अब तुम मेरी बेइज्जती कर रहे हो…’’ मुसकान तल्ख आवाज में बोली, ‘‘मैं नहीं समझती कि मैं ने यह प्रोग्राम दे कर कोई गलती की है. सच तो यह है कि डांस मेरा जुनून है और इस जुनून से मैं अपनेआप को ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रख सकती.’’

समीर पलभर तक उसे गुस्से में घूरता रहा, फिर पैर पटकता हुआ कमरे से बाहर चला गया.

‘‘समीर, आखिर तुम मेरी इस छोटी सी गलती के लिए मुझ से कब तक नाराज रहोगे?’’ तीसरे दिन रात की तनहाई में मुसकान समीर की ओर करवट लेते हुए बोली.

‘‘तुम्हारे लिए यह छोटी सी गलती है, पर तुम्हारी यही छोटी सी गलती मेरी बदनामी का सबब बन गई है. लोग

यह कह कर मेरा मजाक उड़ाते हैं कि देखो समीर की पत्नी स्टेज पर नाचती फिरती है.’’

‘‘लोगों का क्या है, उन का तो काम ही कुछ न कुछ कहना है. अगर हम उन के कहे मुताबिक चलने लगे, तो हमारी जिंदगी मुश्किल हो जाएगी.’’

‘‘इस का मतलब यह कि तुम दिल से चाहती हो कि तुम डांस प्रोग्राम करती रहो.’’

‘‘हां, बशर्ते तुम इस की इजाजत दो,’’ मुसकान बोली.

समीर कुछ देर तक चुपचाप मुसकान के खूबसूरत चेहरे और भरेभरे बदन को देखता रहा, फिर बोला, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हें इस की इजाजत दूंगा, पर इस के लिए मेरे काम भी कर देना.’’

‘‘कैसे काम?’’

‘‘तुम कभीकभी मेरे कारोबार से संबंधित अमीर लोगों से मिल लेना.’’

‘‘क्या कह रहे हो तुम?’’ यह सुन कर मुसकान हैरान रह गई.

‘‘तुम मेरी पत्नी हो, तभी तो मैं तुम से ऐसी बातें कह रहा हूं…’’ समीर अपनी आवाज में मिठास घोलता हुआ बोला, ‘‘देखो मुसकान, अगर तुम ऐसा करती हो, तो हमें उन लोगों से अपनी कंपनी के लिए बड़े और्डर मिलेंगे, जिस से हमारा लाखों का मुनाफा होगा.

‘‘एक पत्नी होने के नाते क्या तुम्हारा यह फर्ज नहीं कि तुम अपने पति का कारोबार बढ़ाने में उस की मदद करो और फिर तुम ऐसा पहली बार तो नहीं कर रही हो?

‘‘तुम्हारी जाति में तो ऐसा होता ही रहता है. तुम ही तो कह रही थीं कि कितनी ही लड़कियों को ऊंची जाति वाले उठा कर ले जाते थे और सुबह पटक जाते थे.’’

समीर ने मुसकान की दुखती नस पर हाथ रख दिया था और ऐसे में वह चाह भी इस से इनकार नहीं कर सकी.

‘‘ठीक है,’’ मुसकान बुझे मन से बोली.

समीर एक दबदबे वाले शख्स को अपने घर लाया और न चाहते हुए भी मुसकान को उस की बात माननी पड़ी. फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा. समीर हर दिन किसी अमीर शख्स को अपने साथ लाता और मुसकान को उसे खुश करना पड़ता.

यह बात तो मुसकान को बाद में मालूम हुई कि असल में समीर, जिन्हें अपने कारोबार से संबंधित लोग बतलाता था, वे उस के हुस्न और जवानी के खरीदार थे और समीर उन को अपनी पत्नी का खूबसूरत जिस्म सौंपने के लिए उन से एक मोटी रकम वसूलता था.

मुसकान ने जिसे भी अपना समझा, उसी ने उसे बेचा. पहले उस के मांबाप ने उसे बेचा और अब उस का पति उसे बेच रहा था. लेकिन दोनों अब पैसे में जो खेल रहे थे.

Romantic Story : डेट के बाद – विपिन ने क्यों तोड़ा जया का दिल ?

Romantic Story : विपिन के औफिस और अपने युवा बच्चों रिया और यश के कालेज जाने के बाद 47 साला जया ने कामवाली से जल्दीजल्दी काम करवाया. वह जीवन में पहली बार डेट पर जा रही थी. उत्साह से भरा तनमन जैसे 20-22 साल का हो गया था. 11 बजे अलमारी खोल कर खड़ी हो गई,’क्या पहनूं, किस में ज्यादा सुंदर और यंग लगूंगी… साड़ी न न… सूटसलवार न… यह तो बहुत कौमन ड्रैस है. फिर क्या पहनूं जो संजीव देखता रह जाए और उस की नजरें हट ही न पाएं मुझ से…पहली बार आमनेसामने बैठ कर संजीव के साथ लंच करूंगी. इतना तो फोन पर पता चल ही गया है कि वह खानेपीने का शौकीन है.

‘हां, तो यह ठीक रहेगा, ब्लू कलर का टौप और क्रीम पैंट, इस के साथ मेरे पास मैचिंग ऐक्सेसरीज भी है, रिया हमेशा यही कहती है कि इस में आप बहुत अच्छी लगती हो. तो बस, यही पहनती हूं…’ यह सोचतेसोचते जया नहाने चली गई. खयालों में आज बस संजीव ही था.

5 साल पहले पता नहीं कैसे जिम से बाहर निकलते समय संजीव टकरा गया था, “सौरी…” कहते हुए हंस पड़ा था वह. जया को अपने से तकरीबन 10 साल छोटे संजीव की मुसकराती आंखों में थोड़े कुछ अलग से भाव बहुत भाए थे. उस के बाद जिम में तो कम, हां, सोसाइटी के गार्डन, शौपिंग कौंप्लैक्स में वह अकसर मिलने लगा था. दोनों ने शायद एकदूसरे के लिए आकर्षण महसूस किया था. 2 साल इसी तरह गुजर गए थे. पहले कभीकभी, फिर अकसर सुबह की सैर पर दोनों अब संयोग नहीं, इरादतन टकराने लगे थे और आज से 6 महीने पहले का वह रोमांटिक और खूबसूरत दिन जया के जीवन में हलचल मचा गया था जब संजीव ने उस के पास आ कर उसे अपना विजिटिंग कार्ड दिया था, “फोन करना, प्लीज,” जल्दी से कह कर फौरन वहां से चला गया था क्योंकि वह नहीं चाहता था कि लोगों की नजरों में जरा सी भी यह बात आए कि उन दोनों के बीच कुछ चल रहा है.

वह नहीं चाहता था कि उन दोनों के वैवाहिक जीवन पर जरा सी भी आंच आए, यह बात उस ने बाद में जया को फोन पर कही थी. जया ने उसे उस दिन घर जाते ही फोन किया था, कई बार उस के कार्ड को निहारा था. संजीव महाराष्ट्रीयन है, इवैंट मैनेजर है. कांपते हाथों, धङकते दिल से जब जया ने घर आ कर उसे फोन मिलाया, तो संजीव की आवाज के जादू में घिरी वह न जाने कितनी देर उस से बातें करती रही थी.

कितना कुछ अपने बारे में, अपने परिवार के बारे में दोनों ने शेयर कर लिया था. उस दिन फोन रखने के बाद जया को लगा था कि उस ने बहुत दिनों के बाद इतनी बातें की हैं. वह बहुत दिनों के बाद इतना हंसी है, उस के मन में एक नया उत्साह भर आया था. इस उम्र में उस के जीवन में एक बोरियत भरती जा रही थी. संजीव से परिचय जया को नवजीवन सा दे गया था. विपिन और बच्चों के साथ उस का जीवन वैसे तो सुचारु रूप से चल रहा है पर उस के अंदर बड़ा खालीपन सा भरता जा रहा था.

घड़ी से बंधी हुई दिनचर्या से वह थक सी चुकी है. विपिन से भी कितनी बात करे, एक समय बाद कितनी बात कर सकते हैं बैठ कर, उस पर विपिन को टीवी और सोशल मीडिया से फुरसत ही मुश्किल से मिलती है.

रिया और यश की अपनी लाइफ है, अलग रूटीन है, उन के साथ बैठ कर भी जया को अकेलापन घेरे ही रहता है, दोस्त भी गिनेचुने हैं. विपिन अंतर्मुखी है, पत्नी और बच्चों में खुश रहने वाले इंसान, घर पर वे कभी बोर नहीं होते, मस्त रहते हैं, खुश रहते हैं. बस, पता नहीं क्यों जया आजकल बहुत बोर होती है, उस का मन नहीं लगता, उसे लाइफ में कुछ ऐक्साइटमैंट चाहिए.

जया विपिन से प्यार बहुत करती है, उसे कभी धोखा देना नहीं चाहती. वह उस से बहुत संतुष्ट व सुखी है पर कुछ कमी तो है न उस के जीवन में जो संजीव की उपस्थिति से उस का मन चहकता है. अब तो जिस दिन फोन पर संजीव से बात न हो, किसी काम में मन नहीं लगता, मूड खराब रहता है जिसे विपिन और बच्चे उम्र का तकाजा बता कर हंस दिया करते हैं. वह मन ही मन और झुंझला जाती है. संजीव मूडी है, कभीकभी दिन में 2 बार, कभीकभी 4-5 दिनों में भी फोन नहीं करता, फिर कहेगा कि बहुत बिजी था.

इन 6 महीनों में जया संजीव के बारे में काफी कुछ जान चुकी है. संजीव भी उस के बारे में जान चुका होगा. जया इतना महसूस कर चुकी है कि वह अपनी पत्नी रूपा और बेटी प्राजक्ता को बहुत प्यार करता है. रूपा वर्किंग है और संजीव उस की हर चीज में हैल्प करता है, पर संजीव बहुत प्रैक्टिकल है, जया इमोशनल, दोनों समझ चुके हैं, पर दोनों के पास बातों के जो टौपिक्स रहते हैं, जया हैरान हो जाती है.

विपिन तो इतना कम बोलते हैं कि वह कभीकभी चिढ़ जाती है कि तुम्हारे पास बात करने के लिए क्या कुछ नहीं होता. विपिन हंस देते हैं, “तुम जो हो, इतने सालों से तुम्हारी ही तो सुनता आया हूं, अब कैसे बदलूं.’’

जया नाराजगी दिखाती है, कभीकभी चेतावनी भी देती है, ‘‘तुम्हारी वजह से बोर हो कर मेरा मन न भटक जाए कहीं.’’

‘‘अरे, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, डराओ मत मुझे, आई ट्रस्ट यू,’’ फिर विपिन हमेशा हंस कर उसे गले लगा लेता है, वह भी फिर उन की बांहों में अपना सिर टिका लेती है, कभीकभी ऐसे पलों में जब संजीव उस की आंखों के आगे आ जाता है तो वह घबरा भी उठती है.

6 महीने से फोन पर बात तो बहुत हो गई थी, 2 दिन पहले विपिन जब टूर पर गए तो जया ने हमेशा की तरह यह बात संजीव को बताई कि विपिन टूर पर गए हैं, बच्चों के ऐग्जाम हैं तो संजीव ने कहा, ‘‘फोन पर बातचीत तो बहुत कर ली, इस बार टूर का फायदा उठाएं? लंच पर चलोगी?’’

जया ने फौरन कहा, ‘‘नहींनहीं…’’

‘‘अरे, क्यों, क्या हम फोन पर ही हमेशा बात करते रहेंगे. चलो न, एक डेट हो जाए.’’

जया हंस पड़ी, ‘‘कोई देख लेगा.’’

‘‘कोई नहीं देखेगा, थोड़ा दूर चलेंगे. वीकेंड में कहां कोई जल्दी मिलेगा. तुम्हे बौंबे कैंटीन पसंद है न, वहीं चलते हैं, यहां पवई से बौंबे कैंटीन जाने में कोई नहीं मिलेगा.’’ जया कुछ देर सोची फिर हां बोल दी और आज वह डेट पर जा रही थी, संजीव के साथ 47 की उम्र में.

सजधज कर जया तय जगह पर पहुंची तो संजीव वहां पहुंचा नहीं था, वह जा कर कौर्नर की एक टेबल पर बैठ गई. उस के मन में एक पर पुरुष से अकेले में मिलने पर कोई अपराधबोध नहीं था. संजीव से बातें करना उसे अच्छा लगता था, बस, उसे और कुछ नहीं चाहिए था. वह अपने मन की खुशी के लिए इतना तो कर ही सकती है. उस की भी एक लाइफ है. वह अपनेआप को ही कई तरह से जैसे दलीलें दिए जा रही थी. इतने में संजीव आ गया. टीशर्ट, जींस में 35 साला संजीव जया को बहुत स्मार्ट लगा.

उसे देखते ही उस का मन पुलकित हो उठा. संजीव ने “सौरी” कहते हुए जया को ध्यान से देखा, मुसकराया और कहा, “आज आप बहुत अच्छी लग रही हैं, जया.’’

जया का चेहरा इस उम्र में भी गुलाबी आभा से चमक उठा, शरमाते हुए “थैंक्स” कहा तो संजीव ने कहा, “सोचा नहीं था कि सोसाइटी में यों ही इधर से उधर संयोग से मिलते हुए ऐसे आज यहां डेट पर आमनेसामने होंगे.’’

‘‘हां, सही कह रहे हो,’’ जया ने मुसकराते हुए कहा.

वेटर और्डर लेने आया तो संजीव ने और्डर दे दिया, जया से उस की पसंद पूछी ही नहीं तो जया को अजीब सा लगा. खैर, उत्साह में याद ही नहीं रहा होगा, जया ने इस बात को इग्नोर किया. दोनों आम बातें करते रहे, टौपिक्स बहुत होते थे दोनों के पास. जया को अच्छा लग रहा था, इस उम्र की डेट उसे अलग ही उत्साह से भर रही थी, जया खुश थी. उसे ऐसा ही दोस्त चाहिए था, बस, साफसुथरी अच्छी दोस्ती, बहुत सी बातें बस.

संजीव ने कहा, “आप अपनी फिटनैस में बहुत रैगुलर हैं न. कितने सालों से आप को गार्डन में सैर करते हुए देख रहा हूं.”

जया ने, हां मैं सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘हां, फिट रहना मेरा शौक है, तेजतेज चलते हुए तो कभी मन करता है कि दौड़ भी पङूं.’’

“अरे नहीं, दौङना तो इस उम्र में ठीक नहीं रहेगा, हां तेज सैर ठीक है.’’

जया के अंदर कुछ दरक सा गया, उस की यह बात संजीव के मुंह से सुन कर कुछ निराशा सी हुई, पर सच तो था ही. कोल्ड कौफी के बाद संजीव ने कहा, “बताओ जया, क्या और्डर करें. आप तो वैजीटेरियन हैं न…’’

‘‘हां, यहां की पनीर पसंदा, दालमखनी अच्छी है, खाना चाहोगे?’’

‘‘भाई, आप अपना देख लो, वैज मुझ से खाया नहीं जाता, बाहर तो बिलकुल नहीं, यहां का नौनवेज काफी फेमस है, वही खाऊंगा. चिकन लौलीपौप, मटन करी, लच्छा परांठा,’’ कह कर उस ने वेटर को और्डर दे दिया.

जया को बड़ा अजीब सा लगा. अचानक विपिन याद आ गया. विपिन भी नौनवेज खाता है, जया शाकाहारी है तो घर पर न के बराबर ही बनता है. विपिन और बच्चों का कहना है कि हम बाहर ही खा लेंगे, हमारे लिए परेशान न हो, नौनवेज इतना जरूरी भी नहीं कि इस के बिना रहा न जा सके, जब तुम नहीं खातीं.

जया को लगा कि वह पहली बार संजीव के साथ लंच कर रही है, इस के घर पर तो रोज नौनवेज बनता है, यह एक दिन भी मेरी पसंद में मेरा साथ नहीं दे पाया.

सामने बैठा संजीव चिकन, मटन पर टूट सा पड़ा था. जया अपना खाना तो खा रही थी पर आंखों के आगे विपिन ही आता रहा, क्यों बैठी है वह आज यहां, यह क्या हो गया उसे, पता नहीं क्यों वह आज अनमनी सी हो उठी थी. संजीव की एकएक बात पर हमेशा फिदा होता मन जैसे बुझा सा था. अचानक संजीव ने कहा, ‘‘अरे, सुनो जया, आप के पति तो अच्छी कंपनी में हैं, उन से कह कर मुझे बिजनैस दिलवाओ यार, अपने दोस्तों से भी कहो, आप ने बताया था कि आप के हसबैंड की कंपनी में कोई न कोई इवैंट्स होते ही रहते हैं.’’

‘‘हां, ठीक है, उन से बात करूंगी.’’

‘‘हां, प्लीज, बात करना. भई, पैसे कमाने हैं. ये कुछ कार्ड्स रख लो आप, उन्हें भी देना, औरों को भी देना.’’

‘‘हां, ठीक है.’’

सामने बैठे संजीव के व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर जिस तरह वह महीनों से अपने होशोहवास खो कर दीवानी सी घूमती रही थी, आज जैसे उसे अपनी चेतना वापस आती सी लगी. अब संजीव बिजनैस, पैसे की बातें कर रहा था. जया जिस उत्साह से इस डेट पर आई थी, वह तो कब का खत्म हो गया था. सामने बैठा हुआ इंसान उसे बहुत ज्यादा प्रैक्टिकल लगा, वैसा ही लगा जिस तरह के इंसानों से वह दूरी रखती है. जया ने स्वयं को बहुत संयत रखा हुआ था. उस ने अपने चेहरे, भाव से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

अचानक संजीव ने अपना फोन जेब से निकाला और चेक करने लगा, न कोई सौरी, न कोई सफाई, न कोई शिष्टाचार… और ऐसा एक बार नहीं, जया ने नोट किया कि संजीव को तो हर 5 मिनट में अपना फोन देखने की आदत है. जया ने स्वयं को अपमानित महसूस किया.

मोबाइल चेक करने के बाद उस ने कहा, ‘‘मैं अपना मेल चेक करता रहता हूं, बहुत बिजी रहता हूं.’’

जया को अब संजीव कुछ फैंकू टाइप का लगा तो पता नहीं क्यों उस का जोर से हंसने का मन भी किया, मन में खुद से ही कहा, ‘क्यों, बच्चू, मजा आ रहा है न डेट पर, थ्रिल मिला न. यंग फील हो रहा है न…’ और सचमुच जया को यह सोचते हुए हंसी आ ही गई तो संजीव ने पूछा, ‘‘क्या हुआ. आप को भी फोन चेक करना है?’’

जया मुसकराते हुए न में गरदन हिला दी, ‘‘नहीं, यही सोच रही थी कि फोन पर बात कर के इंसान की सही पर्सनैलिटी पता नहीं चल पाती.’’

संजीव सकपकाया, ‘‘क्या हुआ, मुझ से मिल कर आप निराश हुईं क्या?’’

‘‘नहींनहीं, मिलने पर ही तो पता चला आप काफी इंटरैस्टिंग हैं.’’ संजीव खुद पर इतराया.

अचानक संजीव ने पूछा, ‘‘आप को अपनी लाइफ में किस चीज की कमी है, जया जो आप मुझ से जुड़ीं?’’

‘‘नहीं, संजीव, मेरी लाइफ में तो कोई कमी नहीं. एक बेहद केयरिंग पति है, 2 प्यारे बच्चे हैं, व्यस्त रहती हूं, कमी तो कुछ भी नहीं.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’

‘‘पता नहीं, संजीव, मैं भी अकसर यही सोचती हूं.’’

‘‘मुझे लगता है, एक समय बाद मैरिड लाइफ में जो बोरियत आ जाती है, यह वही है, पर एक बात बताओ, जैसे आप सबकुछ मुझ से शेयर कर लेती हैं, वैसी किसी और से तो नहीं करतीं?’’

जया चौंकी, ‘‘मतलब है, बी स्ट्रौंग, कई बार मुझे लगता है जैसे आप मेरे साथ फ्री हो गईं, ऐसे किसी और के साथ हो गईं तो कोई आप का फायदा भी उठा सकता है, किसी पर जल्दी विश्वास नहीं करना चाहिए. लोग कई बार जैसे दिखते हैं, वैसे होते नहीं. मेरी बात और है.’’

अब तक जया के होश काफी ठिकाने आ चुके थे, डेट का नशा उतर चुका था. लंच खत्म होने पर जया ने ही वेटर को बिल लाने का इशारा कर दिया. बिल आया तो जया अपना पर्स खोलने लगी. उसे लगा संजीव शिष्टाचारवश पेमेंट करने की जिद करेगा, पर संजीव ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हां, जानता हूं, आप मुझे पेमेंट नहीं करने देंगी, आप बड़ी हैं न मुझ से.’’ जया का दिमाग घूम गया, उस ने भी मुसकराते हुए पेमेंट कर दिया.

बाहर निकल कर संजीव ने कहा,”बहुत अच्छा टाइमपास हुआ, जया, फोन पर तो बातें करते ही रहेंगे, हां, अपने हसबैंड को भी मेरा कार्ड देना और ये और कुछ कार्ड्स रख लो, और परिचितों को भी देना, बिजनैस आगे बढ़ना चाहिए, बस.’’

‘‘हां, जरूर, मैं टैक्सी बुक कर लेती हूं.’’

संजीव अपनी कार से आया था, कोई साथ न देख ले इसलिए दोनों अलगअलग गए. टैक्सी में बैठ कर जया ने गहरी सांस लेते हुए कई बार खुद को बेवकूफ कहा, फोन पर तो संजीव अलग ही व्यक्तित्व का मालिक लगता था, पर इस डेट के बाद हुंह, डेट…यह डेट थी. जया को मन ही मन हंसी भी आ गई, क्याक्या होता है जीवन में. फिर उस ने अब तक के अपराधबोध और खिन्नता को मन से निकाल फेंका. हां, हो जाती है गलती, सुधारी भी तो जा सकती है और मुसकराते हुए विपिन को व्हाट्सऐप पर मैसेज भेज दिया, ‘लव यू, विपिन, जल्दी आना घर…’

Love Story : हम दिल दे चुके सनम – क्यों शिखा शादी करने से इनकार कर रही थी ?

Love Story : शिखा को नीचे से ऊपर तक प्रशंसा भरी नजरों से देखने के बाद रवि ऊंचे स्वर में सविता से बोला, ‘‘भाभी, आप की बहन सुंदर तो है, पर आप से ज्यादा नहीं.’’

‘‘गलत बोल रहा है मेरा भाई,’’ राकेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘अरे, यह तो सविता से कहीं ज्यादा खूबसूरत है.’’

‘‘लगता है शिखा को देख कर देवरजी की आंखें चौंधिया गई हैं,’’ सविता ने रवि को छेड़ा.

‘‘भाभी, उलटे मेरी स्मार्टनैस ने शिखा को जबरदस्त ‘शाक’ लगाया है. देखो, कैसे आंखें फाड़फाड़ कर मुझे देखे जा रही है,’’ रवि ने बड़ी अकड़ के साथ अपनी कमीज का कालर ऊपर किया.

जवाब में शिखा पहले मुसकराई और फिर बोली, ‘‘जनाब, आप अपने बारे में काफी गलतफहमियां पाले हुए हैं. चिडि़याघर में लोग आंखें फाड़फाड़ कर अजीबोगरीब जानवरों को उन की स्मार्टनैस के कारण थोड़े ही देखते हैं.’’

‘‘वैरीगुड, साली साहिबा. बिलकुल सही जवाब दिया तुम ने,’’ राकेश तालियां बजाने लगा.

‘‘शिखा, गलत बात मुंह से न निकाल,’’ अपनी मुसकराहट को काबू में रखने की कोशिश करते हुए सावित्री ने अपनी छोटी बेटी को हलका सा डांटा.

‘‘आंटी, डांटिए मत अपनी भोली बेटी को. मैं ने जरा कम तारीफ की, इसलिए नाराज हो गई है.’’

‘‘गलतफहमियां पालने में माहिर लगते हैं आप तो,’’ शिखा ने रवि का मजाक उड़ाया.

‘‘आई लाइक इट, भाभी,’’ रवि सविता की तरफ मुड़ कर बोला, ‘‘हंसीमजाक करना जानती है आप की मिर्च सी तीखी यह बहन.’’

‘‘तुम्हें पसंद आई है शिखा?’’ सविता ने हलकेफुलके अंदाज में सब से महत्त्वपूर्ण सवाल पूछा.

‘‘चलेगी,’’ रवि लापरवाही से बोला, ‘‘आप लोग चाहें तो घोड़ी और बैंडबाजे वालों को ऐडवांस दे सकते हैं.’’

‘‘एक और गलतफहमी पैदा कर ली आप ने. कमाल के इंसान हैं आप भी,’’ शिखा ने मुंह बिगाड़ कर जवाब दिया और फिर हंस पड़ी.

‘‘भाभी, आप की बहन शरमा कर ऐसी बातें कर रही है. वैसे तो अपने सपनों के राजकुमार को सामने देख कर मन में लड्डू फूट रहे होंगे,’’ रवि ने फिर कालर खड़ा किया.

‘‘इन का रोग लाइलाज लगता है, जीजू. इन्हें शीशे के सामने ज्यादा खड़ा नहीं होना चाहिए. मेरी सलाह तो किसी दिमाग के डाक्टर को इन्हें दिखाने की भी है. आप सब मेरी सलाह पर विचार करें, तब तक मैं सब के लिए चाय बना कर लाती हूं,’’ ड्राइंगरूम से हटने के इरादे से शिखा रसोई की तरफ चल पड़ी.

‘‘शर्मोहया के चलते ‘हां’ कहने से चूक गईं तो मैं हाथ से निकल जाऊंगा, शिखा,’’  रवि ने उसे फिर छेड़ा.

जवाब में शिखा ने जीभ दिखाई, तो ठहाकों से कमरा गूंज उठा.

रवि अपनी सविता भाभी का लाड़ला देवर था. उस की अपनी बहन शिखा के सामने प्रशंसा करते सविता की जबान न थकती थी.

अपनी बड़ी बहन सविता की शादी की तीसरी सालगिरह के समारोह में शामिल होने के लिए शिखा अपनी मां सावित्री के साथ दिल्ली आई थी.

सविता का इकलौता इंजीनियर देवर रवि मुंबई में नौकरी कर रहा था. वह भी सप्ताह भर की छुट्टी ले कर दिल्ली पहुंचा था.

सविता और उस के पति राकेश के विशेष आग्रह पर रवि और शिखा दोनों इस समारोह में शामिल हो रहे थे. जब वे पहली बार एकदूसरे के सामने आए, तब सविता, राकेश और सावित्री की नजरें उन्हीं पर जम गईं.

राकेश अपनी साली का बहुत बड़ा प्रशंसक था. वह चाहता था कि शिखा भी उन के घर की बहू बन जाए.

अपने दामाद की इस इच्छा से सावित्री पूरी तरह सहमत थीं. देखेभाले इज्जतदार घर में दूसरी बेटी के पहुंच जाने पर वह पूरी तरह से चिंतामुक्त हो जातीं.

सावित्रीजी, राकेश और सविता को उम्मीद थी कि लड़कालड़की यानी रवि और शिखा इस बार की मुलाकात में उन की पसंद पर अपनी रजामंदी की मुहर जरूर लगा देंगे.

क्या शिखा उसे पसंद आ गई है ?

रवि ने अपनी बातों व हावभाव से साफ कर दिया कि शिखा उसे पसंद आ गई है. उस का दीवानापन उस की आंखों से साफ झलक रहा था. उस के हावभाव से साफ जाहिर हो रहा था कि शिखा की ‘हां’ के प्रति उस के मन में कोई शक नहीं है.

अपने भैयाभाभी का लाड़ला रवि शिखा को छेड़ने का कोई मौका नहीं चूक रहा था.

उस दिन शाम को शिखा अपनी बहन का खाना तैयार कराने में हाथ बंटा रही थी, तो रवि भी वहां आ पहुंचा.

‘‘शिखा, मेरी रुचियां भाभी को अच्छी तरह मालूम हैं. वे जो बताएं, उसे ध्यान से सुनना,’’ रवि ने आते ही शिखा को छेड़ना शुरू कर दिया.

‘‘आप को मेरी एक तमन्ना का शायद पता नहीं है,’’ शिखा का स्वर भी फौरन शरारती हो उठा.

‘‘तुम इसी वक्त अपनी तमन्ना बयान करो, शिखा. बंदा उसे जरूरपूरी करेगा.’’

‘‘मैं दुनिया की सब से घटिया कुक बनना चाहती हूं और इसीलिए अपनी मां या दीदी से पाक कला के बारे में कुछ भी सीखने का मेरा कोई इरादा नहीं है.’’

‘‘लेकिन यह तो टैंशन वाली बात है. मैं तो अच्छा खानेपीने का बहुत शौकीन हूं.’’

‘‘मैं कब कह रही हूं कि आप इस तरह का शौक न पालिए.’’

‘‘पर तुम अच्छा खाना बनाना सीखोगी नहीं, तो हमारी शादी के बाद मेरा यह शौक पूरा कैसे होगा?’’

‘‘रवि साहब, बातबात पर गलतफहमियां पाल लेने में समझदारी नहीं.’’

‘‘अब शरमाना छोड़ भी दो, शिखा. तुम्हारी मम्मी, भैया, भाभी और मैं इस रिश्ते के लिए तैयार हैं, तो तुम क्यों जबरदस्ती की ‘न’ पर अड़ी हो?’’

‘‘जब लड़की नहीं राजी, तो क्या करेगा लड़का और क्या करेंगे काजी?’’ अपनी इस अदाकारी पर शिखा जोर से हंस पड़ी.

रवि उस से हार मानने को तैयार नहीं था. उस ने और ज्यादा जोरशोर से शिखा को छेड़ना जारी रखा.

अगले दिन सुबह सब ने सविता और राकेश को उन के सुखी वैवाहिक जीवन के लिए शुभकामनाएं दीं. इस दौरान भी रवि और शिखा में मीठी नोकझोंक चलती रही.

अपने असली मनोभावों को शिखा ने उस दिन दोपहर को अपनी मां और दीदी के सामने साफसाफ प्रकट कर दिया.

‘‘देखो, रवि वैसा लड़का नहीं है, जैसा मैं अपने जीवनसाथी के रूप में देखती आई हूं. उस से शादी करने का मेरा कोई इरादा नहीं है,’’ शिखा ने दृढ़ लहजे में उन्हें अपना फैसला सुना दिया.

‘‘क्या कमी नजर आई है तुझे रवि में?’’ सावित्री ने चिढ़ कर पूछा.

‘‘मां, रवि जैसे दिलफेंक आशिक मैं ने हजारों देखे हैं. सुंदर लड़कियों पर लाइन मारने में कुशल युवकों को मैं अच्छा जीवनसाथी नहीं मानती.’’

‘‘शिखा, रवि के अच्छे चरित्र की गारंटी मैं लेती हूं,’’ सविता ने अपनी बहन को समझाने का प्रयास किया.

‘‘दीदी, आप के सामने वह रहता ही कितने दिन है? पहले बेंगलुरु में पढ़ रहा था और अब मुंबई में नौकरी कर रहा है. उस की असलियत तुम कैसे जान सकती हो?’’

‘‘तुम से तो ज्यादा ही मैं उसे जानती हूं. बिना किसी सुबूत उसे कमजोर चरित्र का मान कर तुम भारी भूल कर रही हो, शिखा.’’

‘‘दीदी मैं उसे कमजोर चरित्र का नहीं मान रही हूं. मैं सिर्फ इतना कह रही हूं कि उस जैसे दिलफेंक व्यक्तित्व वाले लड़के आमतौर पर भरोसेमंद और निभाने वाले नहीं निकलते. फिर जब मैं उसे ज्यादा अच्छी तरह जानतीसमझती नहीं हूं, तो उस से शादी करने को ‘हां’ कैसे कह दूं? आप लोगों ने अगर मुझ पर और दबाव डाला, तो मैं कल ही घर लौट जाऊंगी,’’ शिखा की इस धमकी के बाद उन दोनों ने नाराजगी भरी चुप्पी साध ली.

सविता ने शिखा का फैसला राकेश को बताया, तो राकेश ने कहा, ‘‘उसे इनकार करने का हक है, सविता. इस विषय पर हम बाद में सोचविचार करेंगे. मैं रवि से बात करता हूं. तुम शिखा पर किसी तरह का दबाव डाल कर उस का मूड खराब मत करना.’’

पति के समझाने पर फिर सविता ने इस रिश्ते के बारे में शिखा से एक शब्द भी नहीं बोला.

राकेश ने अकेले में रवि से कहा, ‘‘भाई, शिखा को तुम्हारी छेड़छाड़ अच्छी नहीं लग रही है. उस से अपनी शादी को ले कर हंसीमजाक करना बंद कर दो.’’

‘‘लेकिन भैया, उस से तो मेरी शादी होने ही जा रही है,’’ रवि की आंखों में उलझन और उदासी के मिलेजुले भाव उभरे.

‘‘सोच तो हम भी यही रहे थे, लेकिन अंतिम फैसला तो शिखा का ही माना जाएगा न?’’

‘‘तो क्या उस ने इनकार कर दिया है?’’

‘‘हां, पर तुम दिल छोटा न करना. ऐसे मामलों में जबरदस्ती दबाव बनाना उचित नहीं होता है.’’

‘‘मैं समझता हूं, भैया. शिखा को शिकायत का मौका मैं अब नहीं दूंगा,’’ रवि उदास आवाज में बोला.

शाम को शादी की सालगिरह के समारोह में राकेश के कुछ बहुत करीबी दोस्त सपरिवार आमंत्रित थे. घर के सदस्यों ने उन की आवभगत में कोई कमी नहीं रखी, पर कोई भी खुल कर हंसबोल नहीं पा रहा था.

रवि ने एकांत में शिखा से सिर्फ इतना कहा, ‘‘मैं सचमुच बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार था. मेरी जिन बातों से आप के दिल में दुख और नाराजगी के भाव पैदा हुए, उन सब के लिए मैं माफी मांगता हूं.’’

‘‘मैं आप की किसी बात से दुखी या नाराज नहीं हूं. आप के व मेरे अपनों के अति उत्साह के कारण जो गलतफहमी पैदा हुई, उस का मुझे अफसोस है,’’ शिखा ने मुसकरा कर रवि को सहज करने का प्रयास किया, पर असफल रही, क्योंकि रवि और कुछ बोले बिना उस के पास से हट कर घर आए मेहमानों की देखभाल करने में व्यस्त हो गया. उस के हावभाव देख कर कोई भी समझ सकता था कि वह जबरदस्ती मुसकरा रहा है.

‘इन जनाब की लटकी सूरत सारा दिन देखना मुझ से बरदाश्त नहीं होगा. मां को समझा कर मैं कल की ट्रेन से घर लौटने का इंतजाम करती हूं,’ मन ही मन यह फैसला करने में शिखा को ज्यादा वक्त नहीं लगा, मगर उसे अपनी मां से इस विषय पर बातें करने का मौका ही नहीं मिला और इसी दौरान एक दुर्घटना घटी और सारा माहौल तनावग्रस्त हो गया.

आखिरी मेहमानों को विदा कर के जब सविता लौट रही थी, तो रास्ते में पड़ी ईंट से ठोकर खा कर धड़ाम से गिर गई.

सविता के गर्भ में 6 महीने का शिशु था. काफी इलाज के बाद वह गर्भवती हो पाई थी. गिरने से उस के पेट में तेज चोट लगी थी. चोट से पेट के निचले हिस्से में दर्द शुरू हो गया. कुछ ही देर बाद हलका सा रक्तस्राव हुआ, तो गर्भपात हो जाने का भय सब के होश उड़ा गया.

राकेश और रवि सविता को फौरन नर्सिंगहोम ले गए. सावित्रीजी और शिखा घर पर ही रहीं और कामना कर रही थीं कि कोई और अनहोनी न घटे.

सविता की हालत ठीक नहीं है, गर्भपात हो जाने की संभावना है, यह खबर राकेश ने टेलीफोन द्वारा सावित्रीजी और शिखा को दे दी.

मांबेटी दोनों की आंखों से नींद छूमंतर हो गई. दोनों की आंखें रहरह कर आंसुओं से भीग जातीं.

सुबह 7 बजे के करीब रवि अकेला लौटा. उस की सूजी आंखें साफ दर्शा रही थीं कि वह रात भर जागा भी है और रोया भी.

‘‘सविता की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है,’’ यह खबर इन दोनों को सुनाते हुए उस का गला भर आया था.

फिर रवि जल्दी से नहाया और सिर्फ चाय पी कर नर्सिंगहोम लौट गया.

उस के जाने के आधे घंटे बाद राकेश आया तो उस का उदास, थका चेहरा देख कर सावित्रीजी रो पड़ीं.

राकेश बहुत थका हुआ था. वह कुछ देर आराम करने के इरादे से लेटा था, पर गहरी नींद में चला गया. 3-4 घंटों के बाद सावित्रीजी ने उसे उठाया.

नाश्ता करने के बाद सावित्री और राकेश नर्सिंगहोम चले गए. शिखा ने सब के लिए खाना तैयार किया, पर शाम के 5 बजे तक रवि, राकेश या सावित्रीजी में से कोई नहीं लौटा. चिंता के मारे अकेली शिखा का बुरा हाल हो रहा था.

करीब 7 बजे राकेश और सावित्रीजी लौटे. उन्होंने बताया कि रवि 1 मिनट को भी वहां से हटने को तैयार नहीं था.

सुबह से भूखे रवि के लिए राकेश खाना ले गया. फोन पर जब शिखा को अपने जीजा से यह खबर मिली कि रवि ने अभी तक खाना नहीं खाया है और न ही वह आराम करने के लिए रात को घर आएगा, तो उस का मन दुखी भी हुआ और उसे रवि पर तेज गुस्सा भी आया.

खबर इस नजरिए से अच्छी थी कि सविता की हालत और नहीं बिगड़ी थी. उस रात भी रवि और राकेश दोनों नर्सिंगहोम में रुके. शिखा और सावित्रीजी ने सारी रात करवटें बदलते हुए काटी. सुबह सावित्रीजी पहले उठीं. शिखा करीब घंटे भर बाद. उस ने खिड़की से बाहर झांका, तो बरामदे के फर्श पर रवि को अपनी तरफ पीठ किए बैठा पाया.

अचानक रवि के दोनों कंधे अजीब से अंदाज में हिलने लगे. उस ने अपने हाथों से चेहरा ढांप लिया. हलकी सी जो आवाजें शिखा के कानों तक पहुंची, उन्हें सुन कर उसे यह फौरन पता लग गया कि रवि रो रहा है.

बेहद घबराई शिखा दरवाजा खोल कर रवि के पास पहुंची. उस के आने की आहट सुन कर रवि ने पहले आंसू पोंछे और फिर गरदन घुमा कर उस की तरफ देखा.

रवि का थका, मुरझाया चेहरा देख कर शिखा का दिल डर के मारे जोरजोर से धड़कने लगा.

‘‘दीदी की तबीयत…’’ शिखा रोंआसी हो अपना सवाल पूरा न कर पाई.

‘‘भाभी अब ठीक हैं. खतरा टल गया है,’’ रवि ने मुसकराते हुए उसे अच्छी खबर सुनाई.

‘‘तो तुम रो क्यों रहे हो?’’ आंसू बहा रही शिखा का गुस्सा करने का प्रयास रवि को हंसा गया.

‘‘मेरी आंखों में खुशी के आंसू हैं, शिखाजी,’’ रवि ने अचानक फिर आंखों में छलक आए आंसुओं को पोंछा.

‘‘मैं शिखा हूं, ‘शिखाजी’ नहीं,’’  मन में गहरी राहत महसूस करती शिखा उस के बगल में बैठ गई.

‘‘मेरे लिए ‘शिखाजी’ कहना ही उचित है,’’ रवि ने धीमे स्वर में जवाब दिया.

‘‘जी नहीं. आप मुझे शिखा ही बुलाएं,’’ शिखा का स्वर अचानक शरारत से भर उठा, ‘‘और मुझ से नजरें चुराते हुए न बोलें और न ही मैं आप को ठंडी सांसें भरते हुए देखना चाहती हूं.’’

‘‘वह सब मैं जानबूझ कर नहीं कर रहा हूं. तुम्हें दिल से दूर करने में कष्ट तो होगा ही,’’ रवि ने एक और ठंडी सांस भरी.

‘‘वह कोशिश भी छोडि़ए जनाब, क्योंकि मैं अब जान गई हूं कि इस दिलफेंक आशिक का स्वभाव रखने वाले इनसान का दिल बड़ा संवेदनशील है,’’ कह शिखा ने अचानक रवि का हाथ उठा कर चूम लिया.

रवि मारे खुशी के फूला नहीं समाया. फिर अचानक गंभीर दिखने का नाटक करते हुए बोला, ‘‘मेरे मन में अजीब सी बेचैनी पैदा हो गई है, शिखा. सोच रहा हूं कि जो लड़की जरा सी भावुकता के प्रभाव में आ कर लड़के का हाथ फट से चूम ले, उसे जीवनसंगिनी बनाना क्या ठीक होगा?’’

‘‘मुझ पर इन व्यंग्यों का अब कोई असर नहीं होगा, जनाब,’’ शिखा ने एक बार फिर उस का हाथ चूम लिया, ‘‘क्योंकि आप की इस सोच में कोई सचाई नहीं है और…’’

‘‘और क्या?’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए पूछा.

‘‘अब तो तुम्हें हम दिल दे ही चुके सनम,’’ शिखा ने अपने दिल की बात कही और फिर शरमा कर रवि के सीने से लग गई.

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