Allu Arjun : एक तरह के हादसे पर कानून दो तरह से कैसे काम कर सकता है? क्या यह न्याय और संविधान दोनों का अपमान नहीं?
तिरुपति बालाजी मंदिर में टोकन लेने के दौरान हुई भगदड में 6 लोगों की मौत हो गई और दूसरे 25 लोग घायल हो गए. टोकन लेने के लिए 4 हजार से अधिक लोग यहां जुटे थे. तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) द्वारा 10 जनवरी से 19 जनवरी तक वैकुंठ एकादशी और वैकुंठ द्वार दर्शनम कार्यक्रम चलता है. 10 दिन तक चलने वाले इस विशेष दर्शन में लोगों को टोकन लेना पड़ता है. दर्शन करने के लिए हजारों की संख्या में लोग जाते हैं. इस को व्यवस्थित करने के लिए टोकन सिस्टम शुरू किया गया.
टोकन काउंटर सुबह 5 बजे से खुलता है. उसी दिन के दर्शन के लिए टोकन जारी किया जाता है. इस के जरिए कोई भी व्यक्ति 50 रुपए का टोकन ले कर दर्शन करने जा सकता है. टोकन सिस्टम में एक वीआईपी कैटेगरी सिस्टम भी है. जिस में 300 रुपए का टोकन लेना पड़ता है. इस से जल्दी दर्शन करने की संभावना भी बढ़ जाती है. टोकन के लिए कांउटर विश्नु निवासम तिरुपति रेलवे स्टेशन के सामने, श्रीनिवासम कौम्प्लेक्स तिरुपति मुख्य बस स्टेशन के सामने, गोविंदराज सतराम तिरुपति रेलवे स्टेशन के पीछे बने हैं.
दर्शन के लिए टोकन लेने के लिए आधार कार्ड आवश्यक है. एक बार टोकन लेने के बाद, अगला टाइम स्लौट दर्शन 30 दिनों के बाद ही लिया जा सकता है. 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए टोकन जारी नहीं किया जाता उन के लिए प्रवेश निशुल्क है. टोकन जारी करते समय भक्त की फोटो ली जाती है. जारी किए गए दर्शन टोकन दूसरों परिवार के सदस्यों सहित किसी को भी नहीं दे सकते. बुजुर्गों और विकलांगों के लिए स्पैशल दर्शन की व्यवस्था भी की गई है. मंदिर के पास एक अलग प्रवेश द्वार से रोज दो अलगअलग स्लौट में सुबह करीबन 9 बजे और दूसरे स्लौट में दोपहर 3 बजे एंट्री मिलती है.
घटना के दिन क्या हुआ ?
10 जनवरी से 19 जनवरी 2025 में दर्शन के लिए टोकन बांटने का काम 9 जनवरी से शुरू होना था. 8 जनवरी की शाम को ही टोकन लेने वालों की भीड़ लग गई. भीड़ बढ़ने से भभगदड़ मच गई. जिस में 6 की मौत और 25 घायल हो गए. रोज 40 हजार टोकन बांटने की व्यवस्था के अनुसार पहले 3 दिन में सवा लाख लोगों को टोकन बांटने थे. इस के लिए 9 केंद्रों पर 94 सेंटर बनाए गए थे. इन में श्रीनिवासम, विष्णु निवासम, रामचन्द्र पुष्करणी, अलीपीरी भूदेवी कौम्पलैक्स, एमार पल्ली जेडपी हाईस्कूल, बैरागी पटेठा रामनायडू हाई स्कूल, सत्यनारायण पुरम जेडपी हाईस्कूल और इंदिरा मैदान में टोकन जारी करने की व्यवस्था थी.
तिरुपति मंदिर के खास वैकुंठ द्वार दर्शनम के लिए टोकन लेने के बाद ही अंदर जा सकते हैं. वैकुंठ द्वार दर्शनम के लिए मंदिर परिसर में कुल 8 जगहों पर टोकन बांटे जाने थे. एक दिन पहले से ही टोकन के लिए श्रद्धालुओं की लंबी लाइन थी. दर्शन के लिए टोकन मिल जाए इस के लिए खूब चढ़ाऊपरी लगी थी. जैसे ही गेट खुला भक्त अपना धैर्य खो बैठे. पहले टोकन पाने के लिए वे आगे बढ़े और देखते ही देखते स्थिति बिगड़ गई. अचानक भगदड़ मची और देखते ही देखते लाशें बिछ गईं.
भगदड़ एमचीएम स्कूल के काउंटर पर पर मची. भगदड़ तब मची जब टोकन बांटना शुरू भी नहीं हुआ था. पुलिस उपाधीक्षक ने जैसे ही गेट खोले तुरंत ही सभी लोग आगे बढ़ने लगे. इस से भगदड़ मच गई. सोशल मीडिया पर दिखाई पड़ रहे वीडियो में भीड़ एकदूसरे पर धक्का मुक्की करती दिखाई दे रही थी. इस के बाद पुलिस, मंदिर प्रबंधन और नेताओं का आना जारी हो गया.
भगवान जिम्मेदार नहीं ?
तिरुपति में हुई घटना में सब से अलग बात यह दिखी कि पुलिस द्वारा किसी को दोषी नहीं ठहराया गया. घटना की वजह जिन भगवान की मूर्ति थी उन को जिम्मेदार क्यों नहीं माना गया ? सामान्य तौर पर इस तरह के हादसों के लिए पुलिस किसी न किसी को जिम्मेदार ठहरा कर जेल भेज देती है, भले ही वह इंसान वहां मौजूद भी न रहा हो. ताजा मामला फिल्म अभिनेता अल्लू अर्जुन का था.
हैदराबाद में 4 दिसंबर को संध्या थिएटर में ‘पुष्पा 2‘ की स्क्रीनिंग थी. फिल्म देखने के लिए पहले से ही वहां भारी भीड़ इकट्ठा हुई थी. इस बीच अभिनेता अल्लू अर्जुन भी वहां पहुंच गए थे. उन को देखने के लिए वहां भगदड़ मच गई. अल्लू अर्जुन की एक झलक पाने को दर्शक अंदर घुसने की कोशिश करने लगे. इस से लोगों को सांस लेने में परेशानी होने लगी. वहां भगदड़ मच गई. पुलिस ने भीड़ को काबू करने के लिए लाठीचार्ज भी किया.
इस में रेवती नाम की महिला की मौत हो गई, जिस की उम्र 39 साल थी. वह पति और दो बच्चों बेटी सान्विका और बेटे श्रीतेज के साथ ‘पुष्पा 2‘ देखने गई थी. अचानक हुई दर्शकों की धक्कामुक्की में रेवती और उन का बेटा दब गए. पुलिस ले अल्लू अर्जुन, उन की सिक्योरिटी एजेंसी और थिएटर के मालिक के खिलाफ धारा-105 (गैर-इरादतन हत्या) और 118(1) (जानबूझकर चोट पहुंचाना) के तहत मुकदमा कायम कर जेल भेज दिया.
हैदराबाद पुलिस ने अल्लू अर्जुन को महिला की मौत का आरोपी बनाया. उन के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का भी केस दर्ज किया. 13 दिसंबर को चिक्कड़पल्ली पुलिस ने अल्लू अर्जुन को उन के घर से हिरासत में लिया. इस के बाद उन्हें चिक्कड़पल्ली पुलिस स्टेशन ले गई. जहां उन से पूछताछ के बाद बयान दर्ज कर मेडिकल चेकअप के लिए उस्मानिया अस्पताल ले जाया गया. इस के बाद उन को 14 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था.
अल्लू अर्जुन ने इस हादसे पर गहरा दुख जताया था और परिवार को 25 लाख रुपए की मदद का ऐलान किया था. अल्लू अर्जुन ने कहा था कि वह महिला की मौत से आहत हैं और उन के परिवार की मदद के लिए हमेशा खड़े हैं. इस के बाद भी पुलिस ने अल्लू अर्जुन सहित थिएटर के मालिक संदीप, थिएटर के मैनेजर नागराजू और बालकनी के सुपरवाइजर को भी हिरासत में लिया था. अल्लू अर्जुन को पुलिस ने जिस तरह से गिरफ्तार किया वह पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया था. गिरफ्तारी के समय वह घर में चाय पर रहे थे. उन को चाय खत्म नहीं करने दिया गया. पत्नी स्नेहा रेड्डी रोने लगीं.
बच जाते हैं नेता और भगवान
मंदिरों में भगवान के नाम पर दर्शकों की भीड़ को बुलाया जाता है. फिल्म देखने के लिए दर्शक अपने मन से टिकट लेकर आते हैं. जब अल्लू अर्जुन पर मुकदमा कायम हो सकता है तो तिरूपति में भगवान पर मुकदमा कायम क्यो नहीं हो सकता ? नेता और भगवान तो इस तरह के मामले मे बच जाते हैं. दूसरी तरफ ऐक्टर, सिनेमाघर का मालिक और मकान मालिक को जेल भेज दिया जाता है. नेता और भगवान बच जाते हैं.
13 जून 1997 को सन्नी देओल, सुनील शेट्टी की फिल्म बौर्डर रिलीज हुई थी. भारतपाकिस्तान युद्ध पर बनी इस फिल्म को देखने के लिए देशभर में थिएटर्स के दर्शकों की भीड़ जुट गई थी. साउथ दिल्ली के उपहार सिनेमाघर में 160 लोगों की क्षमता वाला हौल खचाखच भरा था. 3 बजे वाला शो था. कोई 4 बजे सिनेमाघर की पार्किंग में आग लगी, जिस का धुआं हौल में भर गया. लोगों के निकलने के लिए एक ही दरवाजा था, जो गेटकीपर बंद कर के कहीं निकल गया था क्योंकि शो छूटने में पूरे 2 घंटे बाकी थे. हौल में धुआं भरता गया, लोगों का दम घुटता गया. लोग निकलने की पुरजोर कोशिश करते रहे लेकिन बाहर नहीं जा पाए. एक के बाद एक 59 लोगों ने दम तोड़ दिया.
सिनेमा घर चलाने वाले सुशील अंसल और प्रणव अंसल पर गैर इरातन हत्या का मामला तो दर्ज हुआ कि सिनेमा घर को भी सीज कर दिया गया. कई सालों तक केस चला. जांचें हुईं. पूरा परिवार तबाह हो गया. देखें तो उन की कोई गलती नहीं थी. कोई भी मालिक अपनी संपत्ति जला कर किसी की हत्या करना चाहेगा क्या ? इस तरह की बहुत सारी घटनाओं में उन लोगों को जिम्मेदार माना जाता है जो उस के मालिक होते हैं. इस के विपरीत लखनऊ में साड़ी कांड हुआ था. जिस में 22 महिलाओं की भगदड़ में मौत हो गई. 12 अप्रैल को भाजपा नेता लालजी टंडन के जन्मदिन पर महानगर के चन्द्रशेखर आजाद पार्क में साड़ी वितरण कार्यक्रम रखा गया था. इस में भगदड मची. जिस में 22 औरतों की मौत हो गई कई अन्य घायल हो गई.
नेता के खिलाफ कोई मुकदमा कायम नहीं हुआ था. इसी तरह से 2013 में इलाहाबाद में आयोजित महाकुंभ में रेलवे स्टेषन पर रेलगाडी का प्लेटफौर्म बदले जाने के बाद इधर से उधर पहुंचने में भगदड़ मच गई. रेलवे के फुटबिज पर ही लोगों के गिरने से बड़ा हादसा हो गया था. जिस में 35 लोगों की मौत हो गई थी. इस के बाद भी उस समय के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और नगर मंत्री आजम खान पर कोई मुकदमा कायम नहीं हुआ. नेता और भगवान को बचा लिया जाता है. 2025 के कुंभ के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निमंत्रण तो बांट रहे हैं पर क्या वह सुरक्षा की जिम्मेदारी भी ले रहे हैं ?
मंदिरों और मेले में हादसे कोई नई बात नहीं है. लोग मंदिर और मेले में अपनी खुशी के लिए प्रार्थना करने जाते हैं. यहां उन को जब मौत मिलती है तो इस के लिए मंदिर के भगवान और नेता को जिम्मदार नहीं माना जाता है. जबकि किसी कारखाने, सिनेमा, घर निर्माण के समय कोई हादसा हो जाता है तो उस के मालिक को जिम्मेदार मान लिया जाता है. सिनेमा घर में फिल्म देखने आई महिला के लिए अल्लू अर्जुन को जिम्मेदार मान लिया गया लेकिन तिरूपति में भगवान की मूर्ति को जिम्मेदार क्यों नहीं माना जा सकता ? उस जगह के वही तो मालिक हैं.
दरअसल, सुबह से ही हजारों श्रद्धालु वैकुंठद्वार दर्शन टोकन के लिए तिरुपति के विभिन्न टिकट केंद्रों पर कतार में खड़े थे. तभी श्रद्धालुओं को बैरागी पट्टीडा पार्क में कतार में लगने की अनुमति दी गई. वैकुंठद्वार दर्शन दस दिन के लिए खोले गए हैं, जिस के चलते टोकन के लिए हजारों की संख्या में लोग जुट रहे हैं. भगदड़ मचने से वहां अफरातफरी मच गई, जिस में 6 लोगों की मौत हो गई.
इस में मल्लिका नाम की एक महिला भी शामिल है. घटना के पश्चात हालात बिगड़ता देख स्थानीय पुलिस ने मोर्चा संभाला और स्थिति को नियंत्रित किया. बताया जा रहा है कि दर्शन के लिए टोकन की लाइन वैकुंठद्वार दर्शन के लिए 4000 लोग लाइन में खड़े थे. स्थिति को ले कर मंदिर समिति के चेयरमैन बीआर नायडू ने आपातकालीन बैठक की मगर बात वही ढाक के तीन पात है.
मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भगदड़ में छह श्रद्धालुओं की मौत पर औपचारिक गहरा दुख जताया है. मुख्यमंत्री ने कहा- “वे इस घटना से बहुत दुखी हैं.” यह घटना उस समय हुई जब बड़ी संख्या में श्रद्धालु टोकन लेने के लिए एकत्र हुए थे. मुख्यमंत्री ने घटना में घायलों को दिए जा रहे उपचार के बारे में अधिकारियों से फोन पर बात की.
मुख्यमंत्री समयसमय पर जिला और टीटीडी अधिकारियों से बात कर के मौजूदा स्थिति से अवगत हैं. मुख्यमंत्री ने उच्च अधिकारियों को घटना स्थल पर जा कर राहत उपाय करने का आदेश दिया है, ताकि घायलों को बेहतर उपचार मिल सके. आप को बताते चलें कि तिरुपति बालाजी मंदिर में पहले भी कई भगदड़ की घटनाएं हुई हैं. यहां कुछ प्रमुख घटनाओं की जानकारी दी जा रही है:
1. 2013: तिरुपति बालाजी मंदिर में भगदड़ की घटना में 8 लोगों की मौत हुई थी और कई घायल हुए थे.
2. 2008: तिरुपति बालाजी मंदिर में भगदड़ की घटना में 2 लोगों की मौत हुई थी और कई घायल हुए थे.
3. 2005: तिरुपति बालाजी मंदिर में भगदड़ की घटना में 4 लोगों की मौत हुई थी और कई घायल हुए थे.
4. 1997: तिरुपति बालाजी मंदिर में भगदड़ की घटना में 10 लोगों की मौत हुई थी और कई घायल हुए थे.
इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि तिरुपति बालाजी मंदिर और अन्य मंदिरों में भगदड़ की घटनाएं पहले भी हुई हैं और अब इन्हें रोकने के लिए मंदिर प्रशासन और पुलिस को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए.
मंदिरों, सभागृह में भगदड़ की घटनाएं कई कारणों से होती हैं
दरअसल कुछ प्रमुख तीर्थस्थल हैं, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं. भारी भीड़ के कारण भगदड़ की घटनाएं हो जाती हैं. मंदिर प्रशासन और पुलिस को सुरक्षा इंतजामों को बढ़ाना चाहिए, लेकिन कई बार यह इंतजाम पर्याप्त नहीं होते हैं.
कई श्रद्धालु भगदड़ की घटनाओं के लिए खुद जिम्मेदार होते हैं. वे भीड़ में शामिल होने के लिए जल्दबाजी करते हैं और सुरक्षा नियमों का पालन नहीं करते हैं. मंदिर की व्यवस्था में कमी के कारण भगदड़ की घटनाएं हो सकती हैं. मंदिर प्रशासन को भी व्यवस्था में सुधार के लिए सतर्क होना चाहिए.
इन कारणों को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि भगदड़ की घटनाओं के लिए एक ही व्यक्ति या संस्था जिम्मेदार नहीं है. इस के लिए मंदिर प्रशासन, पुलिस, श्रद्धालु और सरकार सभी जिम्मेदार हैं. इस समस्या का समाधान करने के लिए, मंदिर प्रशासन और पुलिस को सुरक्षा इंतजामों को बढ़ाना चाहिए, श्रद्धालुओं को सुरक्षा नियमों का पालन करना चाहिए और सरकार को मंदिर की व्यवस्था में सुधार करना चाहिए.
स्मरण रहे कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग रहते हैं. लेकिन यहां धर्म, धार्मिकता और आस्था के बीच में अंधविश्वास भी बहुत ज्यादा है. यह अंधविश्वास कई बार लोगों को गलत दिशा में ले जाता है और समाज में कई समस्याएं पैदा करता है.
धर्म और धार्मिकता की बात करें तो भारत में बहुत सारे धर्म हैं और हर धर्म के अपने अनुयायी हैं. लेकिन यहां धर्म के नाम पर कई बार लोगों को गलत जानकारी दी जाती है और उन्हें अंधविश्वास की ओर धकेला जाता है.
आस्था की बात करें तो यह एक अच्छी चीज है, लेकिन जब आस्था अंधविश्वास में बदल जाती है तो यह समाज के लिए हानिकारक हो जाती है. भारत में बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो अंधविश्वास के कारण अपने जीवन को बर्बाद कर लेते हैं.
अंधविश्वास के कारण भारत में कई समस्याएं हैं जैसे कि:
– लोगों को गलत जानकारी दी जाती है और उन्हें अंधविश्वास की ओर धकेला जाता है.
– लोग अपने जीवन को बर्बाद कर लेते हैं और अपने परिवार को भी बर्बाद कर लेते हैं.
– समाज में कई समस्याएं पैदा होती हैं जैसे कि गरीबी, बेरोजगारी और शिक्षा की कमी.
– लोगों को अपने अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं होती है और वे अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पाते हैं.
इस समस्या का समाधान करने के लिए, हमें अपने समाज में जागरूकता फैलानी चाहिए. हमें लोगों को अंधविश्वास के बारे में जानकारी देनी चाहिए और उन्हें अपने अधिकारों के बारे में जानकारी देनी चाहिए. हमें अपने समाज में शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए ताकि लोगों को अपने अधिकारों के बारे में जानकारी हो और वे अपने जीवन को बेहतर बना सकें.
मंदिरों में जमघट भीड़ लगने की अपेक्षा अपनेअपने गांव, शहर या घर में ही पूजा पाठ कर के भी ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है. यह एक अच्छा विकल्प हो सकता है क्योंकि मंदिरों में भीड़ के कारण कई बार लोगों को परेशानी होती है और वे अपनी पूजापाठ को शांति से नहीं कर पाते हैं.
लेखक : शैलेन्द्र सिंह, सुरेशचंद्र रोहरा