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25000 करोड़ के मालिक ने की हत्या: भाग 2

25000 करोड़ के मालिक ने की हत्या: भाग 1

आखिरी भाग

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25 नौकाओं के जरिए 200 से अधिक पुलिसकर्मी और 3 गोताखोर उन की तलाश में लग गए. हेलीकौप्टर और खोजी कुत्तों को भी मदद ली जा रही थी. लापता सिद्धार्थ ने आखिरी बार फोन पर किस से बात की थी, इस की भी छानबीन की जा रही थी.

60 वर्षीय वीजी सिद्धार्थ का जन्म कर्नाटक के चिकमंगलुरु में हुआ. उन का परिवार लंबे समय से कौफी उत्पादन से जुड़ा था. सिद्धार्थ ने मंगलुरु यूनिवर्सिटी से इकोनौमिक्स में मास्टर की डिग्री ली थी. वह अपने दम पर कुछ करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने विरासत में मिली खेती से आराम की जिंदगी न गुजार कर अपने सपने पूरा करने की ठानी.

21 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को बताया कि वह मुंबई जाना चाहते हैं. इस पर उन के पिता ने उन्हें 5 लाख रुपए दे कर कहा कि अगर वह असफल हो जाएं तो वापस आ कर परिवार का कारोबार संभाल सकते हैं. 5 लाख रुपए में से सिद्धार्थ ने 3 लाख रुपए की जमीन खरीदी और 2 लाख रुपए बैंक में जमा कर दिए.

इस के बाद मुंबई आ कर उन्होंने जेएम फाइनेंशियल सर्विसेज (अब जेएम मौर्गन स्टैनली) में मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में काम करना शुरू कर दिया. यहां उन्होंने 2 साल तक काम किया. 2 साल की ट्रेनिंंग के बाद सिद्धार्थ ने अपना कारोबार शुरू करने की सोची. नौकरी छोड़ कर वे बंगलुरु वापस आ गए.

उन के पास 2 लाख रुपए बचे थे. उस पैसे से उन्होंने वित्तीय कंपनी खोलने का फैसला किया. सोचविचार कर उन्होंने सिवन सिक्योरिटीज के साथ अपने सपने को साकार किया. यह कंपनी इंटर मार्केटिंग टे्रनिंग के लिए थी. उस दौर में इंटर मार्केटिंग से पैसे बनाना आसान था. इस के लिए वे अपने मुंबई (तब बंबई) के दोस्तों के शुक्रगुजार थे. इसी दौर में उन्होंने स्टौक मार्केट से खूब कमाई की.

बहरहाल, सन 1985 में सिद्धार्थ ने कौफी की फसल खरीदनी शुरू कर दी. धीरेधीरे सिद्धार्थ का यह कारोबार 3 हजार एकड़ में फैल गया. उन के परिवार में कौफी का यह कारोबार 140 वर्षों से चलता आ रहा था. इस के बाद सिद्धार्थ ने कारोबार का विस्तार किया. यहीं से सीसीडी की बुनियाद भी रखी जाने लगी.

वह कर्नाटक के ऐसे पहले इंटरप्रेन्योर थे,  जिन्होंने सन् 1996 में सीसीडी की स्थापना की थी. इस काम में उन्हें बहुत बड़ी सफलता मिली.

कैफे कौफी डे कंपनी के भारत के 250 शहरों में 1751 आउटलेट हैं. इस के अलावा आस्ट्रिया, मलेशिया, मिस्र, नेपाल, कराची और दुबई आदि में भी कंपनी के आउटलेट हैं.

वीजी सिद्धार्थ के सितारे बुलंदियों पर थे. उन के लिए यह ऐसा समय था कि अगर वे मिटटी को भी छू देते तो सोना बन जाती थी. 5 लाख से बिजनेस आरंभ करने वाले सिद्धार्थ 25000 करोड़ के मालिक बन गए थे. वे फर्श से उठ कर अर्श तक पहुंचे थे. उद्योगजगत में सिद्धार्थ का नाम बड़े उद्योगपतियों के रूप में लिया जाता था. सफलता की बुलंदियों पर पहुंचते ही कैफे कौफी डे का सीधा मुकाबला टाटा ग्रुप की स्टारबक्स से हुआ.

मुकाबला टाटा ग्रुप के स्टारबक्स से ही नहीं, बल्कि बरिस्ता और कोस्टा जैसी कंपनियों से भी था. इस के अलावा कंपनी को चायोस से भी चुनौती मिल रही थी.

सिद्धार्थ अमीरी की जिंदगी जरूर जी रहे थे, लेकिन ऐसा नहीं था कि सामान्य लोगों की तरह उन के जीवन में तनाव नहीं था. सच तो यह है कि उन की जिंदगी कांटों की सेज पर बनी हुई थी. वह करवट बदलते थे तो उन्हें तनाव भरे कांटें चुभते थे.

दरअसल, कैफे कौफी डे का परिचालन करने वाली सीसीडी इंटरप्राइजेज में कारपोरेट संचालन का मुद्दा रहरह कर उठता रहा.

सन 2018 में कंपनी में उस समय भूचाल आ गया जब आयकर विभाग ने वीजी सिद्धार्थ की परिसंपत्तियों पर छापे मारे. आयकर विभाग को पता चला था कि सीसीडी कंपनी ने बड़े पैमाने पर टैक्स की चोरी की है. इसी सिलसिले में विभाग ने छापे डाले थे.

सिद्धार्थ ने स्वीकार किया कि उन के पास 365 करोड़ की अघोषित संपत्ति है. इसी दौरान कंपनी माइंडट्री में हिस्सेदारी बेचने और इस्तेमाल को ले कर भी सवाल उठे. इस पर कई विभागों की नजर जमी थी.

दरअसल, सिद्धार्थ ने माइंडट्री में भी निवेश कर रखा था. माइंडट्री में सिद्धार्थ की करीब 21 फीसदी हिस्सेदारी थी. हालांकि पिछले दिनों उन्होंने अपने शेयर एलएंडटी को बेच दिए थे. इस सौदे से उन्हें करीब 2856 करोड़ रुपए का फायदा हुआ था. वह करीब एक दशक से इस कंपनी में निवेश कर रहे थे और 18 मार्च, 2019 को उन्होंने एलएंडटी से 3269 करोड़ रुपए का सौदा किया था.

बहरहाल, पिछले 2 सालों में सीसीडी के विस्तार की रफ्तार घटी और कंपनी कर्ज में डूबती चली गई. सीएमआईई के डाटा के अनुसार, कंपनी पर मार्च 2019 तक 6547.38 करोड़ रुपए का कर्ज चढ़ चुका था. जबकि कंपनी (सीसीडी) ने मार्च 2019 में खत्म हुई तिमाही में 76.9 करोड़ रुपए की स्टैंडअलोन नेट सेल्स दर्ज की थी.

मार्च तिमाही में कंपनी को 22.28 करोड़ रुपए का लौस भी हुआ था. इस से साल भर पहले की इसी तिमाही में लौस का यह आंकड़ा 16.52 करोड़ रुपए था. कंपनी में लगातार हो रहे लौस से वीजी सिद्धार्थ परेशान थे, लेकिन वे इस बात से और भी ज्यादा परेशान थे कि आखिर कंपनी में यह लौस कैसे और क्यों हो रहा है. यह बात उन की समझ से परे थी.

कंपनी में लगातार हो रहे लौस और कर्ज के संकट से उबरने के लिए उन्होंने अपनी रियल एस्टेट प्रौपर्टी को बेचने का फैसला कर लिया था.

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इस के लिए कोका कोला कंपनी से 8 से 10 हजार  करोड़ में बेचने की बात भी चल रही थी. लेकिन इस  में सफलता नहीं मिल पा रही थी. ऐसा नहीं था कि अगर 10 हजार करोड़ में संपत्ति बिक जाती तो वे आर्थिक संकट से निबट जाते. हां, आर्थिक मुश्किलें कुछ कम जरूर हो जातीं.

जब वे इस में सफल नहीं हुए तो 29 जुलाई, 2019 से देश के एक बड़े बैंक से 1600 करोड़ रुपए का कर्ज लेने की कोशिश कर रहे थे, यहां पर भी बात बनती नजर नहीं आ रही थी, जिस से वे तनाव में आ गए और जिंदगी से हार मान बैठे. 29 जुलाई, 2019 को उन्होंने उफनती नेत्रवती नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली.

बहरहाल, लापता होने के तीसरे दिन यानी 31 जुलाई, 2019 की दोपहर में पुल से करीब एक किमी दूर सिद्धार्थ की लाश बरामद हुई. सिद्धार्थ के बेटों और दोस्तों ने उन के शव की पहचान की. शव मिलने के बाद मंगलुरु के सरकारी हौपिस्टल में उस का पोस्टमार्टम कराया गया.

पोस्टमार्टम के बाद शव को उन के बेटों को सौंप दिया गया. उन का अंतिम संस्कार सीसीडी कंपनी के परिसर में किया गया. सिद्धार्थ के इस आत्मघाती फैसले से उद्योग जगत में शोक की लहर दौड़ गई थी, आखिरकार इस असामयिक मौत के लिए जिम्मेदारी कौन है? यह सवाल मुंह बाए खड़ा है.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

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सम्मान : भाग 2

संस्था के अध्यक्ष ने तमाम साहित्यिक संस्थाओं को जीभर कर कोसा. सब को उन्होंने फर्जी, झूठा और ठग करार दिया. भारत सरकार, राज्य सरकार और तमाम बड़े संगठनों को कोसा जिन्होंने उन की संस्था को आर्थिक सहायता देना मंजूर नहीं किया था. उन के आमंत्रण पर जो लोग नहीं आए थे और सहायता देने में असमर्थता जाहिर की थी, उन्हें भी मंच से आड़ेहाथों लिया. तमाम वरिष्ठ, गरिष्ठ और कनिष्ठ लेखकों, संपादकों, प्रकाशकों को भरभर कर कोसा. क्योंकि मंच संचालक उर्फ संस्था अध्यक्ष स्वयं को अंतर्राष्ट्रीय लेखक कह चुके थे और उन की रचनाओं को सभी बड़ीछोटी पत्रिकाएं अस्वीकृत कर चुकी थीं. उन्होंने उन सब को साहित्यविरोधी, राष्ट्रविरोधी कहा.

हम सभी दर्शक दीर्घा में बैठे जब तालियां बजाने में सुस्ती दिखाते तो वे जोर से कहते, ‘‘जोरदार तालियां होनी चाहिए?’’ फिर भी करतल ध्वनि उन के हिसाब से नहीं बजती तो वे कह उठते, ‘भारत माता की’  सब को ‘जय’ कहना ही पड़ता.

अंत में उन्होंने लेखकों की निरंतर बढ़ती जनसंख्या पर हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि वे सौ सम्मान और बढ़ाएंगे जो हिंदी व इंग्लिश के लेखकों, देश के तमाम प्रधानमंत्रियों के नाम पर दिए जाएंगे. हां, बढ़ती महंगाई के कारण उन्होंने प्रविष्टि शुल्क बढ़ाने पर जोर दिया और इसे संस्था की मजबूरी बताया. उन्होंने लेखकों से सहयोग शुल्क, चंदा, आर्थिक सहयोग भेजते रहने की अपील की ताकि पुरस्कार पाने के इच्छुक (लालची) लेखकों की यह संस्था अनवरत चलती रहे.

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उन्होंने पूरी बेशर्मी के साथ यह भी कहा कि पुरस्कार पाने के लिए संस्था पर दबाव न डालें. हम निष्पक्ष हो कर श्रेष्ठता के आधार पर चयन करते हैं. आर्थिक सहयोग दे कर अपनी उदारता दिखाएं.

मैं बैठा सोच रहा था कि पैसा कमाने की कला हो, तो लोग साहित्यकारों की जेब से भी पैसा निकाल कर कमा लेते हैं. सम्मान की भूख ने कितनी सारी दुकानें खुलवा दीं. दुकानदारों को तो शर्म आने से रही. हम लेखक हो कर इतने बेशर्म कैसे हो सकते हैं? अंत में उन्होंने यही कहा कि पढ़ने वालों की कमी है. यह चिंता का विषय है. कुछ सरकार को कोसते रहे. कुछ सिनेमा और टीवी को दोष देते रहे. इस तरह प्रत्येक मुख्य अतिथि कम से कम 45 मिनट बोलता रहा और दर्शक दीर्घा में बैठे लेखक ताली बजाबजा कर थक चुके थे, जिन में एक मैं भी था.

अब शहर के व शहर के बाहर के एकदो लेखकों, जोकि नए थे और जिन की पुस्तक का प्रकाशन इसी संस्था ने किया था, की पुस्तकों के विमोचन का कार्य आरंभ हुआ. 2 नवोदित लेखिकाएं मंच पर आईं. उन की पुस्तकों के विमोचन के साथ संस्था के सभी सदस्य फोटो खिंचवाते रहे काफी देर तक. फिर संस्था के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, उपसचिव, कोषाध्यक्ष और संस्था के अन्य लोगों ने अपने विचार रखे या कहें कि हम पर थोपे. वे बोलते रहे. हम सब सुनते रहे. वे जानते थे कि हम कहीं नहीं जाएंगे क्योंकि हम सब सम्मान लेने के लिए बैठे थे.

अब हम लेखकों को संबोधित करते हुए कहा गया कि यदि आप सम्मान लेते हुए अपना फोटो चाहें तो कोषाध्यक्ष जोकि मंच पर एक कोने में बैठे हैं प्रति फोटो उन के पास सौ रुपए जमा कर दें. फोटो आप के पते पर भेज दी जाएगी.

समय अधिक होने के कारण मुख्य अतिथि एकएक कर के बहाना बना कर निकलने लगे थे. और फिर हम सब के नाम पुकारे जाने लगे. एक लेखक सम्मानित होने के लिए मंच पर पहुंच नहीं पाता कि दूसरे का नाम ले लिया जाता. लग रहा था कि संस्था ने जितने समय के लिए स्कूल का सभागृह किराए पर लिया था, वह पूर्ण होने वाला था या हो चुका था. एक वयोवृद्ध लेखक को यह कह कर रोक लिया गया था कि आप सम्मान करने में सहयोग करें, फिर आप का सम्मान भी होगा.

करीब 15 मिनट में ही दर्शक दीर्घा में बैठे 50 लेखकों का सम्मान निबटा दिया गया. शौल, फूलमाला स्मृतिचिह्न हाथ में थमा दिया गया और दूसरे हाथ में प्रमाणपत्र दे कर तीव्र गति से कैमरामैन फोटो खींचता व इतने में दूसरेतीसरे लेखक मंच पर खड़े हो कर अपनी प्रतीक्षा करते. फिर हम सब को बैठने को कहा गया…भागने के लिए जगह नहीं थी वरना तो कब का निकल कर भाग चुके होते.

हमें बधाई देते हुए आगे भी सहयोग बनाए रखने की अपील की गई. इस के बाद वयोवृद्ध लेखक का सम्मान किया गया. कार्यक्रम तेजी से समाप्त हो गया. बैनर, पोस्टर, कुरसियां तेजी से उठाई जाने लगीं.

मैं अंत में बाहर निकला. मुझे संस्था अध्यक्ष और सचिव की बातें सुनाई दीं. उन्हें मैं दिखाई नहीं दिया.

‘‘कितना बचा? आपस में बांटने पर सब को कितना मिलेगा.’’

‘‘2-2 हजार रुपए सब के हिस्से आएंगे. 20 हजार रुपए बचे हैं. आज रात को जबरदस्त पार्टी होगी. है न बढि़या धंधा. नाम का नाम, पैसे के पैसे. उस पर साहित्यिक संस्था चलाने से शहर के बड़ेबड़े लोगों से परिचय. उन में अपनी धाक.’’

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‘‘यार, अगली बार सम्मानित करने वालों से रजिस्ट्रेशन शुल्क ज्यादा लो.’’

‘‘जैसेजैसे सम्मान के इच्छुक बढ़ेंगे, राशि भी बढ़ा देंगे.’’

‘‘लेखक लोग देंगे बड़ी राशि? इतने में ही तो बहस करते हैं वे.’’

‘‘लेखकों की कोई कमी थोड़े ही है. ढेर मिलते हैं. सम्मान किसे नहीं चाहिए होता है?’’

‘‘और जिन्हें मंच पर बोलने का शौक है वे भी दान, चंदा देते हैं. अपने दुश्मनों के विरुद्ध बोलते हैं. अपने व्यवसाय, व्यक्तित्व का बढ़चढ़ कर ब्योरा देते हैं. उन्हें ऐसा मंच कहां मिलेगा?’’

मैं इतना ही सुन पाया. थकाहारा होटल पहुंचा. वहां से स्टेशन पहुंचा. ट्रेन में धक्के खाते घर पहुंचा. घर में, दोस्तों में, सम्मान मिलने पर तारीफ हुई. मुझे समझ नहीं आया कि मेरा सम्मान हुआ था या अपमान.

सम्मान की भूख से कलम चलाने वालों के सम्मान के नाम पर कितने सारे लोग अपनी साहित्यिक दुकानें चला रहे हैं. जहां भूख होती है वहां ढाबे अपनेआप खुल जाते हैं. सेवा की आड़ ले कर व्यापार किया जा सकता है. जब तक हम जैसे सम्मान के भूखे लेखक जिंदा हैं, व्यापारियों की साहित्य सेवा की दुकानें चलती रहेंगी. अच्छा होगा कि लेखक, खासकर नए लिखने वाले, सम्मान लेने, सम्मानपत्रों की संख्या बढ़ाने के बजाय अपने लेखन पर ध्यान दें ताकि सच्चा लेखन हो सके.

अपने अपमान के और लोगों के साहित्यिक ढाबे चलाने के जिम्मेदार हम खुद हैं. आनेजाने का खर्चा, लौज में रुकने का खर्चा, भोजन, प्रविष्टि शुल्क मिला कर 5 हजार रुपए खर्च हो गए और हाथ आया एक व्यापारी द्वारा दिया हुआ सम्मानपत्र, वह भी हमारे ही पैसों से. कई दिन मन खराब रहा और बहुत विचार के बाद मैं ने अपनी आत्मग्लानि दूर करने के लिए सम्मानपत्र उठा कर पास की नदी में फेंक दिया.

अब जब भी ऐसे लुभावने सम्मान के पत्र, एसएमएस, फोन आते हैं तो गालियां देने को मन करता है. जी तो करता है कि सामने मिल जाएं तो कूट दूं सालों को. लेकिन मैं चुप रह कर आए पत्रों को तुरंत फाड़ कर फेंकता हूं. इस के बाद भी कोई मुझे जानवर समझ कर, कसाई बन कर पकड़ लेता है तो फिर मैं आवाज बदल कर कहता हूं कि जिन को आप पूछ रहे हैं, पिछले हफ्ते ही मर चुके हैं वे. उस तरफ से बिना शोक व्यक्त किए कहा जाता है कि आप चाहें तो अपने पिता की स्मृति में सम्मान दे सकते हैं. आप स्वयं सम्मान चाहें तो भी हम दे सकते हैं. ऐसे में मैं गुस्से से मोबाइल पटक देता हूं जोर से.

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जगमग दीप जले : भाग 2

ज्योंज्यों दीवाली निकट आती जा रही थी, अंजलि का हृदय अब की बार बाहरी चमकदमक देख कर भी न जाने क्यों खुश नहीं हो रहा था. यद्यपि घर के लोगों ने उस का दीवाली पर भरपूर स्वागत किया था, पर जब भी कोई उस से पूछता कि विवेक क्यों नहीं आया तो उस का मन बु झ जाता. उस ने  झूठ बोल कर कि अत्यधिक व्यस्तता के कारण वे नहीं आ पाएंगे, सब को आश्वस्त तो कर दिया पर उस के चेहरे की उदासी से सभी ने स्पष्ट भांप लिया था कि वह कुछ छिपा रही है, दोनों में कुछ अनबन है.

उसे स्वयं ही अपने ऊपर लज्जा आती. उसे लगता कि अब उस घर में उसे पहले वाली खुशी कभी नहीं मिल पाएगी. इसलिए कि यह घर उस के लिए पराया सा है. बाहरी जगमगाहट उस के लिए निरर्थक है.

बहुत प्रयत्न कर के वह अपनी आंतरिक वेदना को छिपाती रहती और हर प्रकार से खुश दिखने का प्रयत्न करती. दीवाली के निकट आने के साथ ही घर की रौनक बढ़ती जा रही थी. रात को कारों की पंक्तियां उस के पापा के घर के बाहर उन की शान का बखान करती दिखाई देतीं. वह भागभाग कर मेहमानों की अगवानी करती. उसे देखते ही लोग उस की खाली बगल में विवेक को ढूंढ़ते और सब की जिह्वा पर वही प्रश्न तैर जाता कि ‘विवेक कहां है?’ उस का अंतर्मन रो उठता. ऊपर से वह कितनी ही खुश दिखाई देने का प्रयत्न करती पर उसे लगता उस के दिल का एक कोना टूट कर कहीं अलग छिटक गया है विवेक के पास ही.

फिर आ पहुंची दीवाली की रात, चारों ओर धूमधड़ाका होता रहा, आतिशबाजी व पटाखे छूटते रहे. उस की मां ने उसे कीमती साड़ी उपहार में दी. पर उसे पहनने को उस का मन नहीं हुआ. अनमने मन से पहन कर जब वह शीशे के सम्मुख खड़ी हुई तो उसे लगा उस ने स्वयं विवेक का अपमान किया है. विवेक से विवाह कर के उस की पत्नी बनने के बाद मातापिता के पैसे पर उस का कोई अधिकार नहीं रह जाता है. विवेक से रूठ कर इस घर में आने का उसे कोई हक नहीं था.

रहीसही कसर भी तब पूरी हो गई जब उस साड़ी में देख कर शराब व जुए के नशे में  झूमते हुए विक्रांत ने उस पर कटाक्ष किया, ‘‘वह डाक्टर तो सारी उम्र भी ऐसी साड़ी कभी नहीं पहना पाएगा तुम्हें, अंजू. यह तो तुम्हारी मम्मी की ही मेहरबानी दिखाईर् देती है.’’

अंजलि अपमान से तड़प उठी थी. उस ने कमरे में जा कर साड़ी को उतार दिया और अपनी लाई हुई साड़ी पहन कर पलंग पर लेट कर सिसकने लगी. उस समय लोग जुए में व्यस्त थे. शराब के नशे में  झूम रहे थे. उसे पूछने वाला था ही कौन? न जाने कब उस की आंख लग गई. स्वप्न में भी वह विवेक के आगे रोती रही. उस से क्षमायाचना करती रही.

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करीब 3 बजे पूरी कोठी में भागदौड़ और हंगामा सुन कर उस की आंखें खुलीं. सब लोग इधरउधर भाग रहे थे. पकड़ो… पकड़ो…चोर सब माल ले कर भाग रहे हैं.’’ ऊपर की खिड़कियों के सभी शीशे तोड़ कर तिजोरी व गोदरेज की अलमारियों में से सारी रकम, गहने व कीमती वस्त्र ले कर चोर न जाने कहां भाग गए थे. लगता था चोरों के किसी बड़े गिरोह ने पहले से ही योजना बना रखी थी. नीचे हौल में जुआ चलता रहा और ऊपर चोर बेफिक्री से अपना काम करते रहे. माल का कहीं पता न चला तो अंजलि के पापा को भारी सदमा पहुंचा. उन्हें हार्टअटैक हो गया और उसी समय अस्पताल पहुंचाया गया.

इमरजैंसी में विवेक की ड्यूटी थी. उस ने अथक परिश्रम कर के रात भर जाग कर अपने ससुर के प्राणों की रक्षा की. अंजलि भी रातभर वहीं रही. विवेक अपने कार्य में व्यस्त था और अंजलि मन ही मन उस के कदमों पर  झुकती जा रही थी. दोनों ही कुछ भी बोल नहीं पाए.

एकांत पा कर अंजलि ने विवेक से कहा, ‘‘तुम ने पापा की जिंदगी तो बचा ली, लेकिन उन की आयु भर की कमाई चली गई. दिनेश भैया की अभी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई है. उसे अभी कहीं सर्विस में जाने से पहले तीन साल का खर्च चाहिए. कैसे चलेगा?’’

‘‘ओह, तुम भी अब इतना सम झने लगी हो? अरे, चिंता क्यों करती हो. अभी तो तुम्हारे पापा की मेहनत की बहुत सी कमाई बैंक में होगी, उस से तुम्हारे भैया की पढ़ाई मजे से हो जाएगी और तुम्हारा मनचाहा खर्च भी चल जाएगा.’’ विवेक ने व्यंग्य किया.

अंजलि ने आंखों में आंसू भर कर कहा, ‘‘यह समय ऐसी बातें करने का नहीं है. सच तो यह है कि पापा ने कभी बचाने की सोची ही नहीं. जो कमाया वह सब फूंक दिया या उस का कुछ खरीद लिया. घर भरा हुआ था आभूषणों व कीमती वस्त्रों से. अब कुछ भी नहीं रहा.’’

‘‘तभी तो मैं तुम से कहता रहा हूं कि जितना कमाओ उस में से बचाओ भी. पैर इतने पसारो जितनी चादर हो.’’

‘‘तुम वास्तव में ठीक कहते थे. इंसान थोड़ा कमा कर भी उस में से यदि थोड़ाथोड़ा बचाए तो बहुत हो जाता है. दूसरी ओर अंधाधुंध कमा कर अंधाधुंध खर्च करने से तो कुछ भी हाथ में नहीं रहता.’’

‘‘अब तुम सम झदार हो गई हो, अंजलि. तुम्हें एक बात और सम झा दूं, मु झे अंधाधुंध कमाई में भी विश्वास नहीं है, क्योंकि अनुचित तरीके से कमाए गए पैसे को इंसान उचित तरीके से संभाल नहीं पाता. उसे चोर या डाकू ही ले जाते हैं.’’ विजयभरी मुसकान से विवेक अंजलि को पैसे का महत्त्व बता रहा था.

इतने में अंजलि की मां भी वहीं आ गईं. उन की आंखों की उदासीनता को देख कर विवेक बोला, ‘‘मांजी, आप चिंतित न हों. पापा शीघ्र ही ठीक हो कर काम संभालेंगे. यह तो अच्छा हुआ कि उन्हें उचित समय पर उपचार मिल गया और जान बच गई. यदि मैं भी उस समय शराब में डूबा होता तो अनर्थ हो जाता. दिनेश की पढ़ाई का खर्च जब तक पापा ठीक नहीं होते, मैं उठाने को तैयार हूं. आखिर हम बचा कर किस दिन के लिए रख रहे हैं.’’ विवेक ने अंजलि की ओर देख कर कटाक्ष किया.

अंजलि को लगा कि उस का कंजूस पति ही सब से अधिक धनवान है और वह सब से अधिक सुखी है. उसे अपने हाथ में खुशियों के रंगबिरंगे दीए जगमगजगमग करते हुए महसूस हुए. विवेक के कान में जा कर उस ने धीरे से कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो, विवेक. मु झे जल्दी ही लेने के लिए आ जाना ताकि कोई यह न जान पाए कि मैं तुम से रूठ कर आई थी. बोलो, आओगे न? नाराज तो नहीं हो मुझसे?’’

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विवेक ने शरारतभरी आंखों के साथ कहा, ‘‘अब की बार लेने आ जाऊंगा. पर फिर कभी ऐसी गलती की तो…’’ उस ने गाल पर एक चपत जड़ते हुए आगे कहा, ‘‘तो तुम सोच भी नहीं सकतीं मैं क्या कर जाऊंगा, सम झीं?’’

‘‘नहीं, बाबा, अब ऐसा नहीं होगा. बारबार माफी तो मांग रही हूं.’’ अब अंजलि अनुभव करने लगी थी कि वास्तविक दीवाली तो मनुष्य की आंतरिक खुशी है. दिल में प्यार की रोशनी है तो घर भी रोशन है. बिना प्यार के ऊपरी जगमगाहट व्यर्थ है, दिखावा है.

नमामि गंदे

लेखक: अशोक गौतम

मैं ने उन की फाइल निकालने के सौ सगर्व ले माया के कीटाणुओं से तुरंत छुटकारा पाने के लिए सेनिटाइजर से हाथ धोते उन से पूछा, ‘‘बरखुरदार, तुम ने अपने मोबाइल से वीडियो वगैरह तो नहीं बनाई न?’’ तो वे सहजता से बिना किसी हड़बड़ाहट के दोनों हाथ जोड़ बोले, ‘‘साहब, वीडियो बना कर अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारनी है क्या? मैं ने भोलाराम की जीवनी पढ़ी है. बेचारे को आज तक पैंशन की दमड़ी नहीं मिली है. और जो चालीस में आप ये बाल देख रहे हो न, ये ऐसे ही सफेद नहीं हुए हैं. दफ्तरदफ्तर में रिश्वत बांट कर ही सफेद हुए हैं. उन के बहकावे में आ सदियों से चली आ रही परंपरा को मैं खत्म करने वालों में से नहीं हूं.’’ यह कह वे सादर बाहर निकले ही थे कि एकाएक वे आ धमके और आते ही मुझ से पूछा, ‘‘यार, यह क्या कर रहे हो?’’

‘‘रिश्वत लेने के बाद हाथ के जर्म्स साफ कर रहा हूं. कहते हैं कि हाथ न धोने से जर्म्स पेट में चले जाते हैं, और फिर पेट से दिमाग में. और जो एक बार ये जर्म्स दिमाग में चले गए तो समझो… सरकार कितना ही डराधमका ले, क्या मजाल जो ये मर जाएं. और…मैं नहीं चाहता कि रिश्वत लेते हुए मैं बीमार हो जाऊं.’’

मैं ने यह कहा तो वे मेरे हाथ से सेनिटाइजर छुड़ाते बोले, ‘‘तू रह जाएगा यहां हाथ साफ करता. चल, जल्दी कर, बहती गंगा में हम भी लगेहाथ हाथ साफ कर लेते हैं.’’

‘‘पर हमारे वैज्ञानिक तो वैज्ञानिक, चारचार पढ़ेलिखे भी सीना ठोंकठोंक कर चेतावनी दे रहे हैं कि गंगा इत्ती मैली है कि वहां नहाने के बाद जो घर में न नहाए, तो भक्त बीमार हो जाए. इतनी चेतावनियों के बाद भी गंगा में हाथ कम से कम मुझ जैसा समझदार तो नहीं धोएगा. और बहती गंगा में तो बिलकुल भी नहीं. मुझे तो ठहरे हुए पानी और इस कुरसी से बेहद लगाव है. यह कुरसी मुझे कितना कुछ देती है. सच कहूं, बहते हुए पानी और बहती जिंदगी से बहुत डर लगता है,’’ मैं ने यह कहा तो उन्होंने अपना सिर धुन लिया. शुक्र है, मेरा नहीं धुना. वरना बड़े लाड़प्यार से संभाल कर सहेजे सिर के चार बाल भी आज उखड़ जाते.

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‘‘पता नहीं यार, तुम कैसे इस पद पर चुन लिए गए हो? कई बार तो तुम्हारी अक्ल देख कर लगता है कि तुम…’’

पर मैं ने आज तक उन की इस बात का बुरा नहीं माना तो नहीं माना. क्योंकि मेरे बारे में जो सच कहता है मैं उसे सहज स्वीकार कर लेता हूं. मैं छल में जीना नहीं चाहता, मेरी सब से बड़ी कमी यही है.

‘‘मैं असली गंगा में हाथ धोने को थोड़े ही कह रहा हूं, मैं तो मुहावरा कह रहा हूं.’’

‘‘मतलब?’’ अब मैं ठहरा सीधासपाट सा आदमी. मेरे लिए सौ का सीधा सा मतलब है पूरे सौ, बस. न एक कम, न एक ज्यादा. मुझे मुहावरेसुहावरे समझ में नहीं आते, तो नहीं आते. असल में मैं जो सीट डील करता हूं वहां मुहावरे न कहने का वक्त होता है न सुनने का.

‘‘मतलब यह कि सरकार ने गंगा की शुद्धि के लिए 20 हजार करोड़ रुपयों का और इंतजाम कर दिया है, मेरे बाप.’’

‘‘तो?’’

‘‘तो क्या, देखना अब जिन के हाथ साफ हैं वे भी अब गंगा में हाथ धोने को नंगेपांव उतरेंगे.’’

‘‘पर जिन के हाथ साफ हैं उन्हें हाथ धोने की जरूरत ही क्या? और वह भी गंगा में?’’

‘‘सच कहूं यार, यह गंगा है सच्ची की मोक्षदायिनी. सभी का कल्याण करती है, मरने से पहले भी और मरने के बाद भी…’’ उन्होंने यह कहा तो पहले तो मैं ने सोचा कि वे कहीं जेल से बाहर तो नहीं आ गए. अखबार में तो मैं ने खबर पढ़ी नहीं. पर जब ध्यान से उन को देखा तो वे अपने औफिस के ही लगे, तो मैं ने पूछा, ‘‘यार, क्या किसी मठ से बाबा का प्रोफैशनल कोर्स कर रहे हो? कहीं रिटायरमैंट के बाद यह धंधा शुरू करने की तो नहीं सोची है?’’

‘‘नहीं यार, इस नौकरी में ही जनता को काफी उल्लू बना लिया. अब तो बस रिटायरमैंट के बाद ही आगा सुधारूंगा. पर, फिलहाल मन बहती गंगा में हाथ धोने को बेचैन है. खैर, नहाने तो हमें वहां कौन देगा. वहां तो जिधर देखो, घाटों पर एक से बढ़ कर एक नहाते मिलेंगे, मालपुए खाते मिलेंगे,’’ यह कह वे अपलक गंगा की ओर निहारते रहे.

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ब्रोकली बनाए सेहत और पैसा

ब्रोकली का खाने वाला भाग छोटीछोटी अनेक पुष्प कलिकाओं का गुच्छा होता है जो फूल खिलने से पहले काट लिया जाता है. फूलगोभी में जहां एक पौधे से एक फूल मिलता है, वहीं ब्रोकली के पौधे से एक मुख्य गुच्छा काटने के बाद भी कुछ शाखाएं निकलती?हैं और इन शाखाओं से बाद में ब्रोकली के छोटे गुच्छे बेचने या खाने के लिए मिल जाते?हैं. इस का वर्ण हरा होता?है इसलिए इसे हरी गोभी भी कहा जाता है.

उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में सर्दियों में इस की खेती सुगमता से की जा सकती है, जबकि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मूकश्मीर में इस के बीज भी बनाए जा सकते हैं.

जलवायु : ब्रोकली की अच्छी क्वालिटी की ज्यादा उपज लेने के लिए ठंडी व आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है. अगर दिन अपेक्षाकृत?छोटे हों तो फूल की बढ़वार अधिक होती है.

फूल तैयार होने के समय तापमान अधिक होने पर फूल छितरे, पत्तेदार और पीले हो जाते हैं. इस वजह से उपज पर बुरा असर पड़ता?है और उन की पौष्टिकता भी कम हो जाती है.

जमीन : ब्रोकली को विभिन्न प्रकार की जमीनों में उगाया जा सकता है, पर इस की सफल खेती के लिए सही जल निकास वाली रेतीली दोमट, जिस में सही मात्रा में जैविक पदार्थ हो, अच्छी मानी गई है. हलकी जमीन में पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद डाल कर इस की खेती सुगमता से की जा सकती है.

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किस्में: ब्रोकली की 3 प्रकार की किस्में हैं जैसे श्वेत, हरी व बैगनी, लेकिन हरी ब्रोकली की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है.

हरी किस्में : नाइन स्टार, पेरिनियल, इटेलियन ग्रीन स्प्राउटिंग, केलेब्रस, बाथम 29 और ग्रीन हेड खास हैं.

हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र कटराईन, हिमाचल प्रदेश द्वारा ब्रोकली की केटीएस 9 किस्म विकसित की गई है. इस के पौधे मध्यम ऊंचाई के, पत्तियां गहरी हरी, शीर्ष कठोर और छोटे तने वाले होते हैं.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने पूसा ब्रोकली 1 किस्म खेती के लिए जारी की है.

नोट : इस किस्म के बीज थोड़ी मात्रा में पूसा संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र, कटराईन, हिमाचल प्रदेश से हासिल किए जा सकते हैं.

संकर किस्में : पाईरेट पेकमे प्रिमिय क्राप, क्लीपर, क्रुसेर, स्टिक व ग्रीन सर्फ खास हैं.

उगाने का उचित समय : उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में ब्रोकली उगाने का सही समय ठंड का मौसम होता है. इस के बीज के अंकुरण व पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए 20-25 डिगरी सैल्सियस तापमान होना चाहिए.

इस की नर्सरी तैयार करने का सही समय अक्तूबर माह का दूसरा पखवाड़ा होता है, जबकि पर्वतीय इलाकों में कम ऊंचाई वाले इलाकों में सितंबरअक्तूबर, मध्यम ऊंचाई वाले इलाकों में अगस्तसितंबर और ज्याद ऊंचाई

वाले इलाकों में मार्चअप्रैल में नर्सरी तैयार की जाती है.

बीज दर : फूलगोभी की तरह ब्रोकली के बीज भी बहुत छोटे होते हैं. एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पौध तैयार करने के लिए तकरीबन 375-400 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं.

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पौध तैयार करना : बंदगोभी की तरह ब्रोकली की पहले नर्सरी में पौध तैयार की जाती है और बाद में रोपाई की जाती है. कम संख्या में पौधे उगाने के लिए 3 फुट लंबी और 1 फुट चौड़ी जमीन की सतह से 1.5 सैंटीमीटर ऊंची क्यारी में बीज की बोआई की जाती?है. क्यारी को अच्छी तरह तैयार कर के और उस में गोबर की सड़ी खाद मिला कर बीजों को पंक्तियों में 4-5 सैंटीमीटर की दूरी पर तकरीबन 2.5 सैंटीमीटर की गहराई पर बो देते हैं.

बीज बोने के बाद क्यारी को घासफूस की पतली परत से ढक देते हैं और समयसमय पर सिंचाई करते रहते हैं. जैसे ही बीज अंकुरित होने लगें, ऊपर से घासफूस हटा दी जाती है.

नर्सरी में पौधों को कीटों से बचाने के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र का छिड़काव करें. नर्सरी में जब पौध 4 हफ्ते के हो जाएं, तब उन की रोपाई कर दें.

रोपाई : तैयार पौध को खेत में लाइन से लाइन में 15-60 सैंटीमीटर का अंतर रख कर और पौधे से पौधे में 45 सैंटीमीटर के अंतर पर रोपाई कर देते हैं. रोपाई करते समय जमीन में सही नमी होनी चाहिए और रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए.

खाद और उर्वरक : आखिरी बार रोपाई की तैयारी करते समय प्रति 10 वर्गमीटर क्षेत्रफल में 50 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट खाद, 1 किलोग्राम नीम की खली और

1 किलोग्राम अरंडी की खली. इन सब खादों को अच्छी तरह मिला कर रोपाई से पहले समान मात्रा में बिखेर दें. इस के बाद खुदाई कर के रोपाई कर दें. प्रति हेक्टेयर 50-60 टन गोबर की खाद डालनी चाहिए. उर्वरकों का उपयोग मिट्टी की जांच के बाद करना चाहिए. यदि किसी वजह से मिट्टी की जांच न हो सके तो निम्न मात्रा में प्रति हेक्टेयर उर्वरक डालना चाहिए:

नाइट्रोजन : 100-120 किलोग्राम.

फास्फोरस : 45-50 किलोग्राम.

गोबर की खाद और फास्फोरस वाले उर्वरक की मात्रा को खेत की तैयारी से पहले मिट्टी में भलीभांति मिला देना चाहिए. नाइट्रोजन की मात्रा को 3 भागों में बांट कर रोपाई के क्रमश: 25, 45 व 60 दिन बाद डालना चाहिए. नाइट्रोजन की दूसरी मात्रा डालने के बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए.

पौध संरक्षण उपाय

खरपतवार नियंत्रण : ब्रोकली की जड़ और पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए खेत में उगे खरपतवारों को निकालना बहुत ही जरूरी काम है. ऐसा करने से पौधों का विकास व बढ़ोतरी तेजी से होती है. निराई के बाद पौधों के पास मिट्टी चढ़ाने से पानी देने पर पौधे नहीं गिरते हैं. निराईगुड़ाई करने से मिट्टी में वायु संचार तेजी से होता है, जिस से जड़ों का विकास अच्छा होता है.

कीट नियंत्रण

तेला : यह कीट हरे रंग का होता है, जो पौधे के कोमल अंगों का रस चूसता?है. इस वजह से पौधे की प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर बुरा असर पड़ता?है. इस कीट की रोकथाम के लिए मैलाथियान की 2 ग्राम दवा प्रति लिटर पानी में?घोल कर छिड़काव करना चाहिए.

रोग नियंत्रण

काला विगलन : यह रोग जैंथोमोनास कैंपस्ट्रिस नामक फफूंदी के चलते होता है. पत्तियों के किनारों पर कीटों द्वारा घाव बना दिए जाते हैं. इस वजह से वे मुरझा कर अंगरेजी के ‘वी’ आकार की तरह हो जाते?हैं जो आधार से मध्य शिरा की ओर बढ़ते हैं. बाद में वे काले रंग के हो जाते हैं और अंत में सड़ जाते हैं. इस की रोकथाम के लिए निम्न उपाय अपनाने चाहिए:

* बीज बोने से पहले 30 मिनट तक उसे पानी में भिगोना चाहिए. उस के बाद 5 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान वाले गरम पानी में 30 मिनट तक रखना चाहिए और बाद में ‘स्ट्रेप्टोमाइसिन’ की 1 ग्राम दवा प्रति लिटर पानी के घोल में

30 मिनट तक उपचारित करना चाहिए, फिर उन्हें छाया में सुखाना चाहिए.

* जब फूलों का बनना शुरू हो जाए, तब ‘स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के?घोल (10 ग्राम प्रति 100 लिटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए.

तना विगलन : यह रोग ‘स्केलोरोटिया स्क्लेराटिओरस’ नामक फफूंदी के चलते होता है. रोगी पौधे मटमैले सफेद रंग के हो जाते हैं और अंत में पीले रंग के हो जाते?हैं. तनों पर गहरे भूरे से काले रंग के धब्बे बन जाते हैं, जो बड़े हो कर तने को जमीनी स्तर तक ढक लेते हैं. इस वजह से तना सड़ जाता है. फूल अपनी सघनता छोड़ देते हैं. इस के बाद सफेद विगलन के लक्षण दिखाई देते हैं.

इस रोग की रोकथाम के लिए ये उपाय अपनाने चाहिए:

* प्रभावित भागों को अलग कर के उन्हें जला देना चाहिए.

* फूल निर्माण से फूल बनने तक

10-15 दिन के अंतराल पर ‘कार्बंडाजिम’ (0.03 फीसदी) और मैंकोजेब (0.25 फीसदी) के घोल का छिड़काव करना चाहिए.

डाउनी मिल्ड्यू : यह रोग ‘परनोस्पोरा एरोसिटिका’ नामक फफूंदी के कारण होता है. इस रोग के कारण तने पर गहरे भूरे रंग के दबे हुए चकत्ते बन जाते हैं, जिस में बाद में मृदु रोमिल की बढ़वार हो जाती है. पत्तियों की निचली सतह पर बैगनी भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. इस रोग के कारण फूलों को अधिक नुकसान होता है और बुरा असर पड़ता है.

इस रोग पर नियंत्रण पाने के लिए निम्न उपचार करना चाहिए:

* बीजों को बोने से पहले गरम पानी से उपचारित करना चाहिए.

* फिर बीजों को 0.3 फीसदी थायरम से उपचारित करना चाहिए.

* प्रभावित फूलों को निकाल दें और 0.3 फीसदी कौपर औक्सीक्लोराइड का छिड़काव करना चाहिए.

* फसल पर 10-15 दिन के अंतराल पर 0.2 फीसदी मैंकोजेब के घोल का छिड़काव करना चाहिए. पहला छिड़काव रोग का प्रकोप होते ही करें.

* खेत को खरपतवारों से मुक्त रखें.

* सही फसल चक्र अपनाएं.

सिंचाई : मिट्टी, मौसम और पौधों की बढ़वार को ध्यान में रख कर फसल को 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए ताकि अच्छी उपज मिल सके.

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फसल की कटाई

ब्रोकली की समय पर कटाई करें. कटाई तब करें, जब फसल में हरे रंग की कलियों का मुख्य गुच्छा बन कर तैयार हो जाए.

आमतौर पर रोपने के 65-70 दिन बाद शीर्ष तैयार हो जाते?हैं तो इस को तेज चाकू या दरांती से कटाई कर लें.

ध्यान रखें कि कटाई के साथ गुच्छा खूब गुंथा हुआ हो और उस में कोई कली खिलने न पाए.

ब्रोकली की यदि तैयार होने के बाद देर से कटाई की जाएगी तो वह ढीली हो कर बिखर जाएगी और उस की कली खिल कर पीला रंग दिखाने लगेगी. ऐसी अवस्था में कटाई किए गए गुच्छे बाजार में बहुत कम कीमत पर बिकते?हैं. मुख्य गुच्छा काटने के बाद ब्रोकली के छोटे गुच्छे बेचने के लिए सही होंगे.

उपज

ब्रोकली की उपज कई बातों पर निर्भर करती?है, जिन में जमीन की उर्वराशक्ति, उगाई जाने वाली किस्म और फसल

की देखभाल प्रमुख है. ब्रोकली की अच्छी खेती से प्रति हेक्टेयर 12-15 टन तक उपज मिल जाती है.

भारत का सब से गहरा सीढ़ीदार कुआं 

चांद बाओरी चांद बावड़ी

राजस्थान की एक जगह बांलीकुल में 800 ई.पू. में एक ऐसा सीढ़ीदार कुंआ तैयार किया गया था, जिसे बनाने वाले स्थानीय कारीगर थे. यहां के राजा चंदा के नाम पर ही इस बावड़ी को नाम दिया गया चंदा या चांद बावड़ी.

इस बावड़ी का सब से पुराना भाग आठवीं शताब्दी में तैयार किया गया था. कमाल यह है कि ये सीढ़ीदार कुंआ 18वीं शताब्दी तक तैयार होता रहा और यह हिस्सा कुएं के सब से ऊपरी भाग में आज भी देखा जा सकता है.

चांद बावड़ी में कुल 2500 संकरी सीढि़यां हैं और ये सीढि़यां नीचे से ऊपर तक 13 मंजिलों तक फैली हैं.चूंकि राजस्थान में पानी की बेहद कमी है, इसलिए ज्यादा से ज्यादा पानी बचाने के लिए ही इस बावड़ी को तैयार किया गया था. अगर हम बावड़ी के सब से नीचे बनी सीढि़यों पर पहुंच जाएं तो यहां का तापमान ऊपर के हिस्से के तापमान से करीब 5 डिग्री कम होता है.

जब इस इलाके में भीषण गरमी पड़ती है तो आसपास के लोग इसी बावड़ी में इकट्ठा हो जाते. इस बावड़ी में एक ऐसा स्थान भी है जहां पर शाही लोग जमा होते थे. इस बावड़ी को आज भी यहां के दौसा इलाके में देखा जा सकता है. जिस गांव में ये बावड़ी बनी है, वह है आभानेरी.

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आज इस बावड़ी को लोग कौतूहल से सिर्फ देखने आते हैं. बावड़ी के ज्यामितीय आकार की नकल करना भी आज मुश्किल है. सीढि़यों की वजह से यहां धूप और छांव से जो आकार उभरते हैं, वे पर्यटकों को रोमांच से भर देते हैं. चांद बावड़ी के एक तरफ मंदिर भी तैयार किया गया था. इस सीढ़ीदार कुएं की कुल गहराई 100 फुट के करीब है.

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फैसला इक नई सुबह का : भाग 2

लेकिन उस के सासससुर बहुत अच्छे थे. उन्होंने उसे बहुत प्यार व अपनापन दिया. सास तो स्वयं ही उसे पसंद कर के लाई थीं, लिहाजा वे मानसी पर बहुत स्नेह रखती थीं. उन से मानसी का अकेलापन व उदासी छिपी नहीं थी. उन्होंने उसे हौसला दे कर अपनी पढ़ाई जारी रखने को कहा, जोकि शादी के चलते अधूरी ही छूट गई थी. मानसी ने कालेज जाना शुरू कर दिया. हालांकि राजन को उस का घर से बाहर निकलना बिलकुल पसंद नहीं था परंतु अपनी मां के सामने राजन की एक न चली. मानसी के जीवन में इस से बहुत बड़ा बदलाव आया. उस ने नर्सिंग की ट्रेनिंग पूरी की. पढ़ाई पूरी होने से उस का आत्मविश्वास भी बढ़ गया था. पर राजन के लिए मानसी आज भी अस्तित्वहीन थी.

मानसी का मन भावनात्मक प्रेम को तरसता रहता. वह अपने दिल की सारी बातें राजन से शेयर करना चाहती थी, परंतु अपने बिजनैस और उस से बचे वक्त में अपनी रंगीन जिंदगी जीते राजन को कभी मानसी की इस घुटन का एहसास तक नहीं हुआ. इस मशीनी जिंदगी को जीतेजीते मानसी 2 प्यारे बच्चों की मां बन चुकी थी.

बेटे सार्थक व बेटी नित्या के आने से उस के जीवन को एक दिशा मिल चुकी थी. पर राजन की जिंदगी अभी भी पुराने ढर्रे पर थी. मानसी के बच्चों में व्यस्त रहने से उसे और आजादी मिल गई थी. हां, मानसी की जिंदगी ने जरूर रफ्तार पकड़ ली थी, कि तभी हृदयाघात से ससुर की मौत होने से मानसी पर मानो पहाड़ टूट पड़ा. आर्थिक रूप से मानसी उन्हीं पर निर्भर थी. राजन को घरगृहस्थी में पहले ही कोई विशेष रुचि नहीं थी. पिता के जाते ही वह अपनेआप को सर्वेसर्वा समझने लगा. दिनोंदिन बदमिजाज होता रहा राजन कईकई दिनों तक घर की सुध नहीं लेता था. मानसी बच्चों की परवरिश व पढ़ाईलिखाई के लिए भी आर्थिक रूप से बहुत परेशान रहने लगी. यह देख कर उस की सास ने बच्चों व उस के भविष्य को ध्यान में रखते हुए अपनी आधी जायदाद मानसी के नाम करने का निर्णय लिया.

यह पता लगते ही राजन ने घर आ कर मानसी को आड़े हाथों लिया. परंतु उस की मां ने मानसी का पक्ष लेते हुए उसे लताड़ लगाई, लेकिन वह जातेजाते भी मानसी को देख लेने की धमकी दे गया. मानसी का मन बहुत आहत हुआ, जिस रिश्ते को उस ने हमेशा ईमानदारी से निभाने की कोशिश की, आज वह पूरी तरह दरक गया. उस का मन चाहा कि वह अपनी चुप्पी तोड़ कर जायदाद के पेपर राजन के मुंह पर मार उसे यह समझा दे कि वह दौलत की भूखी नहीं है, लेकिन अपने बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उस ने चुप्पी साध ली.

समय की रफ्तार के साथ एक बार फिर मानसी के कदम चल पड़े. बच्चों की परवरिश व बुजुर्ग सास की देखभाल में व्यस्त मानसी अपनेआप को जैसे भूल ही चुकी थी. अपने दर्द व तकलीफों के बारे में सोचने का न ही उस के पास वक्त था और न ही ताकत. समय कैसे गुजर जाता था, मानसी को पता ही नहीं चलता था. उस के बच्चे अब कुछ समझदार हो चले थे. ऐसे में एक रात मानसी की सास की तबीयत अचानक ही बहुत बिगड़ गई. उस के फैमिली डाक्टर भी आउट औफ स्टेशन थे. कोई दूसरी मदद न होने से उस ने मजबूरी में राजन को फोन लगाया.

‘मां ने जब तुम्हें आधी जायदाद दी है तो अब उन की जिम्मेदारी भी तुम निभाओ. मैं तो वैसे भी नालायक औलाद हूं उन की,’ दोटूक बात कह कर राजन ने फोन काट दिया. हैरानपरेशान मानसी ने फिर भी हिम्मत न हारते हुए अपनी सास का इलाज अपनी काबिलीयत के बल पर किया. उस ने उन्हें न सिर्फ बचाया बल्कि स्वस्थ होने तक सही देखभाल भी की. इतने कठिन समय में उस का धैर्य और कार्यकुशलता देख कर डाक्टर प्रकाश, जोकि उन के फैमिली डाक्टर थे, ने उसे अपने अस्पताल में सर्विस का औफर दिया. मानसी बड़े ही असमंजस में पड़ गई, क्योंकि अभी उस के बड़े होते बच्चों को उस की जरूरत कहीं ज्यादा थी. पर सास के यह समझाने पर कि बच्चों की देखभाल में वे उस की थोड़ी सहायता कर दिया करेंगी, वह मान गई. उस के जौब करने की दूसरी वजह निसंदेह पैसा भी था जिस की मानसी को अभी बहुत जरूरत थी.

अब मानसी का ज्यादातर वक्त अस्पताल में बीतने लगा. घर पर सास ने भी बच्चों को बड़ी जिम्मेदारी से संभाल रखा था. जल्द ही अपनी मेहनत व योग्यता के बल पर वह पदोन्नत हो गई. अब उसे अच्छी तनख्वाह मिलने लगी थी. पर बीचबीच में राजन का उसे घर आ कर फटकारना जारी रहा. इसी के चलते अपनी सास के बहुत समझाने पर उस ने तलाक के लिए आवेदन कर दिया. राजन के बारे में सभी भलीभांति जानते थे. सो, उसे सास व अन्य सभी के सहयोग से जल्द ही तलाक मिल गया.

कुछ साल बीततेबीतते उस की सास भी चल बसीं. पर उन्होंने जाने से पहले उसे बहुत आत्मनिर्भर बना दिया था. उन की कमी तो उसे खलती थी लेकिन अब उस के व्यक्तित्व में निखार आ गया था. अपने बेटे को उच्चशिक्षा के लिए उस ने कनाडा भेजा तथा बेटी का उस के मनचाहे क्षेत्र फैशन डिजाइनिंग में दाखिला करवा दिया. अब राजन का उस से सामना न के बराबर ही होता था. पर समय की करवट अभी उस के कुछऔर इम्तिहान लेने को आतुर थी. कुछ ही वर्षों में उस के सारे त्याग व तपस्या को भुलाते हुए सार्थक ने कनाडा में ही शादी कर वहां की नागरिकता ग्रहण कर ली. इतने वर्षों में वह इंडिया भी बस 2 बार ही आया था. मानसी को बहुत मानसिक आघात पहुंचा. पर वह कर भी क्या सकती थी. इधर बेटी भी पढ़ाई के दौरान ही रजनीश के इश्क मेें गिरफ्तार हो चुकी थी. जमाने की परवा न करते हुए उस ने बेटी की शादी रजनीश से ही करने का निर्णय ले लिया.

मुंह पर प्यार से मांमां करने वाला रजनीश बेगैरत होगा, यह उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. परंतु जब अपना सिक्का ही खोटा हो तो किसे दोष देना. अभी कुछ वक्त पहले ही उस ने यह फ्लैट खरीदने के लिए 20 लाख रुपयों से दामाद की मदद की थी, परंतु वह तो…सोचतेसोचते उस की आंखों में पानी आ गया.

‘मैं हर सीरियल या फिल्म के सेट पर पहले दो दिन नर्वस रहती हूं’: मौनी राय

पूरे नौ वर्षों तक लगातर टीवी काम करते हुए मौनी रौय ने ‘कसम से’, ‘देवो के महादेव’ और ‘नागिन’ जैसे कई सीरियलों में अभिनय कर जबरदस्त शोहरत बटोरी. उसके बाद अक्षय कुमार के साथ फिल्म ‘गोल्ड’ में अभिनय कर फिल्मों में कदम रखा. ‘गोल्ड’ को अच्छी, खासी सफलता मिली, जिसके चलते वह जौन अब्राहम के संग फिल्म ‘रा’ में नजर आयीं. अब वह राज कुमार राव के साथ मिखिल मुसाले निर्देशित ‘मेड इन चाइना’ में नजर आने वाली हैं. जो कि 25 अक्टूबर को प्रदर्शित होगी. इसके अलावा मौनी रौय इन दिनों आलिया भट्ट, रणबीर कपूर व अमिताभ बच्चन के साथ ‘ब्रम्हास्त्र’ के अलावा दूसरी फिल्में भी कर रही हैं.

प्रस्तुत है मौनी रौय के संग हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश…

पिछली फिल्म ‘‘रा’’ को कैसा रिस्पांस मिला?

बहुत अच्छा रिस्पांस मिला. लोगों ने मेरे किरदार को काफी सराहा. पहली बार लोगों ने मुझे एकदम अलग किरदार में देखा, पहली बार लोगों ने मुझे अंडरस्टेटेड किरदार में देखा, जहां मै चुलबुली नहीं थी. यह एकदम साफ और फोकस्ड किरदार रहा. जिस तरह से एक भारतीय डिप्लोमेट को होना चाहिए. इसी तरह के भारतीय डिप्लोमेट सत्तर के दशक में हुआ करते थे. मैं काफी यात्राएं करती रहती हूं. यात्रा के दौरान भी लोगों से अच्छे रिस्पांस मिले. दुबई मे एक प्रशंसक ने कहा कि मेरा किरदार इम्पावरिंग और एकदम सटीक था. लोगों ने मुझे इस तरह के किरदार में देखने की उम्मीद नहीं की थी. उन्हें लगा था कि मैं नाचते गाते या चुलबुली लड़की के ही किरदार में नजर आउंगी.

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आपको नहीं लगता कि ‘‘रा’’ से आपकी ईमेज में बदलाव आया?

मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूं. टीवी पर भी मुझे विविधतापूर्ण किरदार निभाने का मौका मिले. टीवी पर मैं नौ वर्ष से काम करती आयी हूं. मैंने देवों के देव महादेव, नागिन, झलक दिखला जा जैसे कई सीरियल किए. इसीलिए मैं लगातार काम कर रही हूं. अब मैं ‘मेड इन चाइना’ को लेकर अति उत्साहित हूं.

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फिल्म ‘‘मेड इन चाइना’’ से जुड़ने की कोई खास वजह?

फिल्म की कहानी, स्क्रिप्ट और निर्देशक बहुत खास हैं. इसके अलावा इस फिल्म का निर्माण कर रही कंपनी ‘मैडाक फिल्मस’ ने अब तक अमेजिंग विषयों पर अमेजिंग फिल्मों का निर्माण किया है. जब उन्होंने मुझे यह कहानी सुनायी तो मै एक्साइटेड हो गयी. मैं मूलतः बंगाली हूं और मुझे इसमें गुजराती हाउस वाइफ का किरदार निभाना था, यह सुनकर मैंने कहा कि मुझे यह फिल्म करनी है. मेरे लिए यह किरदार काफी चुनौतीपूर्ण लगा.

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अपने किरदार के लिए आपने किस तरह का होमवर्क किया?

बहुत कुछ करना पड़ा.सबसे हम सभी के लिए किरदार के सही लुक को पकड़ना आवश्यक था. जब किरदार के अनुरूप लुक सही हो जाए, तो आधा काम हो जाता है. लुक को अंतिम रूप देने में स्टाइलिश शीतल के अलावा निर्देशक सहित पूरी टीम ने काफी योगदान दिया. शीतल ने मुझे एकदम गुजराती बना दिया. उसके बाद लेखकों ने बैठकर मुझे संवाद का एक एक वाक्य समझाया.

गुजरातियों की अपनी एक अलग भाषा के साथ बौडी लैंग्वेज भी अलग है. उसे आपने कैसे पकड़ा?

मैंने अहमदाबाद जाकर कई गुजराती घरेलू महिलाओं से मुलाकात की. इसके अलावा सेट पर भी हमेषा एक गुजराती लड़की हमारे साथ होती थी,जो कि मुझे मैनेरिजम की बारीकियों से अवगत कराती थी.दूसरी बात निर्देषक नहीं चाहते थे कि मेरा किरदार पूरी तरह से गुजरातियों का कैरीकेचर नजर आए.इसके अलावा मेरा किरदार काफी अलग है.रूक्मणी गुजराती होते हुए भी मुंबई या दिल्ली जैसे महानगर में रही है और उसकी अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं, वह अपनी जिंदगी में काफी कुछ करना चाहती है. फिर जब उसे रघु से प्यार हो जाता है,  तो वह किस तरह सब कुछ छोड़कर रघु के साथ अहमदाबाद में रहती है. इसलिए वह गुजराती एसेंट मे कम सामान्य हिंदी में ही ज्यादा बात करती है.

दर्शक फिल्म क्यों देखना चाहेगा?

यह फिल्म एक मध्यमवर्गीय दंपति की यात्रा है. यह कहानी उस इंसान की है जो कि लूजर है, पर हर बार वह नई नई आइडिया लेकर आता है और व्यापार में सफल होना चाहता है. अंततः एक मोड़ पर उसे सफलता मिलती है. इसके साथ ही काफी फन एलीमेंट है. अंडररेटेड जोक्स हैं. यह पूरी तरह से एक पारिवारिक फिल्म है. इसमें राज कुमार राव, बोमन ईरानी, गजराज राव,सुमित व्यास व परेश रावल जैसे दिग्गज कलाकार हैं.

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राजकुमार राव, बोमन ईरानी व परेश रावल के साथ आपकी यह पहली फिल्म है. क्या अनुभव रहे?

परेश रावल के साथ मेरे सीन नही है. बोमन ईरानी के साथ सिर्फ गाने में हूं. राज कुमार राव साथ काम करके काफी कुछ सीखा. वह ब्रीलिएंट कलाकार हैं. जबकि शुरूआत में मैं थोड़ा सा हिचक रही थी कि मैं राज कुमार राव के साथ कैसे काम करुंगी. क्योंकि जब आप किसी बेहतरीन कलाकार के साथ काम करते हैं, तो आपके सीन को भी वह बेहतर बना देते हैं. आपको उसके साथ काम करके काफी कुछ सीखने को मिलता है. राज कुमार राव से मैने बहुत कुछ सीखा.

पर आप डरी हुई क्यों थी?

बात डर की नहीं, बल्कि आपको अंदर से लगता है कि आप एक ऐसे क्लेबर के कलाकार के साथ काम करने जा रहे है, तो आप क्या कर पाएगी. फिर नर्वसनेस होना अच्छी बात होती है. मैं हर सीरियल या फिल्म के सेट पर पहले दो दिन नर्वस रहती हूं क्योंकि तब हमारे दिमाग में किरदार को लेकर कई चीजे चल रही होती हैं. जब किरदार का टोन तय हो जाता है, तब सब कुछ ठीक हो जाता है. नर्वसनेस का होने का मतलब है कि आप अपने काम को गंभीरता से लेते हैं.

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मेकअप/लुक सही हो तो उसका फायदा अभिनय में मिलता है?

बिलकुल..लेकिन आपको उतनी ही इमानदारी के संग काम भी करना पड़ता है. मसलन,  जब हमें राजस्थानी किरदार निभाना है और हमने राजस्थानी घाघरा व चोली पहनी है, पूरी तरह से राजस्थानी लग रही हूं, तो वह अभिनय में मददगर साबित होता है. ऐसा ही रूक्मणी के किरदार के साथ हुआ. मैं लुक वाइज गुजराती लग रही थी.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: कायरव को पता चल गया नायरा कार्तिक के रिश्ते की सच्चाई

टीवी का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  दर्शकों को लगातार एक से बढ़कर एक ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं.  हाल ही में आपने देखा कि नशे की हालत में नायरा और कार्तिक अपनी पुरानी बातों को याद करने लगे और फिर इमोशनल हो गए थे और एक दूसरे के साथ रोमांटिक पल भी गुजारे. नशे के हालत में ही दोनों ने  फिर से शादी कर ली.

आपको रीसेंट एपिसोड के बारे में बताते हैं. नायरा की बड़ी दादी रोते हुए कार्तिक के बारे में कहती हैं कि कार्तिक ने नायरा को बेवजह कोर्ट कचहरी में खींचा. तो वहीं कायरव दादी के पीछे खड़ा होकर सारी बाते सुन लेता है. और वो सोचता है कि पापा उसकी मम्मा को क्यों परेशान कर रहे हैं? वो नीचे आता है और वहां सुनता है कि नायरा भी अपने भाई नक्ष से कस्टडी केस के बारे में बात कर रही होती है, कायरव ये सब सुनकर बहुत अपसेट होता है.

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दूसरी तरफ वेदिका, कार्तिक को परेशान देखकर वो भी परेशान  हो जाती है. वेदिका ये सोचकर बहुत उदास है कि नायरा उसकी वजह से और उसकी-कार्तिक की शादी बचाने के लिए इस शहर में नहीं रहना चाहती है.

जल्द ही इस शो में वेदिका का खुलासा होने वाला है. जी हां, उसके एक्स-हसबैंड की एंट्री होने वाली है. वेदिका ने अपने  बीते हुए कल के बारे में सबसे छुपाया है. लेकिन जल्द ही उसका सच सबके सामने आने वाला है.

इस शो के अपकमिंग एपिसोड में देखना दिलचस्प होगा कि  कार्तिक की वकील दामिनी मिश्रा कस्टडी केस जीतने के लिए नायरा पर किस तरह का आरोप लगाती है और कार्तिक का क्या रिएक्शन होता है.

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अब नहीं मिलेगा खाने पर डिस्काउंट

बढ़ती टेक्नोलौजी और इंटरनेट की दुनिया ने सच में बहुत कुछ बदल दिया है. आज लोग पहनने से लेकर खाने तक के लिए औनलाइन ऐप्लीकेशन्स का सहारा लेते हैं. ऐसे ही एप्लिकेशन्स है जोमेटो और स्वीगी. यह दोनों ही फूड डिलीवरी प्लेटफौर्म हैं जिनके माध्यम से कोई भी घर बैठेबैठे गर्मा-गर्म खाना मंगवा सकता है. इन के तार सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेश तक फैले हुए हैं. वैसे ऐसे और भी फूड एप्लीकेशन्स हैं जैसे फूडपांडा, उबरइट्स इत्यादि.

इन एप्लीकेशन्स के साथ कई रेस्टोरेंट जुड़े हुए होते हैं. शुरुआत में इन एप्लीकेशन्स ने रेस्टोरंट के मालिकों से उपयोग करने को कहा. कुछ समय बाद इन कंपनी ने लौजिस्टिक्स कंपनी की मदद से एक बड़ा डिलीवरी नेटवर्क खड़ा कर लिया. इससे लोगों को उन के मनपसंद रेस्टोरंट से गर्मागर्म खाना उनके दरवाजे पर मिलने लगा साथ ही रेस्टोरेंट के चक्कर काटने से उन्हें मुक्ति मिल गई.

अब तो हालत यह है कि घर परिवार के बीच, दोस्तों के बीच, औफिस में कहीं भी, कहीं भी भूख लगती है हम झट से अपना मोबाइल फोन निकाल कर फूड एप्लीकेशन्स की मदद से खाना और्डर कर देते है और सबसे बढ़िया बात तो तब होती है जब फूड के साथ स्पेशल डिस्काउंट मिल जाता है. यानी रेस्टोरेंट से कम पैसे में घर बैठे खाना. लेकिन शायद अब यह डिस्काउंट न मिले.

दरअसल, जोमैटो और स्वीगी जैसी फूड डिलीवरी कंपनियां ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को अपनी तरफ लुभाने के लिए तरह तरह की स्कीम चलाती हैं, डिस्काउंट देती हैं. हाल में ही जोमैटो ने भी जोमेैटो गोल्ड जैसी स्कीम चला रखी है. जिससे ग्राहक को तो फायदा होता है लेकिन रेस्टोरेंट को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है.

क्या है गोल्ड मेम्बरशिप

जोमैटो गोल्ड की वर्षिक सदस्यता 2000 रुपये से शुरू होती है और 3 महीने की सदस्यता 800 रूपय से. 10 लाख से ज्यादा लोगों ने गोल्ड मेम्बरशिप ली हुई है. जोमैटो का गोल्ड मेम्बरशिप में जो ग्राहक जुड़े होते है, उन्हें जोमैटों फूड और ड्रिंक्स पर  50 प्रतिशत तक का डिस्काउंट देता है. यह डिस्काउंट के साथ अपने कस्टमर को कौम्पलीमेंटरी मिल की सुविधा भी देता है. जैसे इस स्कीम में आप जो भी और्डर करेंगे उसके साथ आपको एक डिश फ्री मिलेगी. अगर आप दो ड्रिंक्स और्डर करते हैं तो आपको दो और ड्रिंक्स मुफ्त मे मिलेंगी. इनके ऐसे कई और भी तरीके होते हैं. एक तो यह कि रेस्टोरेंट में फूड कि जो कीमतें होती हैं, उनसे कम कीमतों पर ये फूड एग्रीगेटर आपको खाना दे देते हैं. दूसरे, वे आपको कौम्पलीमेंटरी डिश देते हैं, यानी आपने एक डिश और्डर की तो दूसरा डिश आपको उसके साथ मुफ़्त में देते हैं. इसके अलावा उनकी कैश बैक स्कीम भी होती है, यानी आपने जितने का खाना लिया, उसका एक हिस्सा आपको बाद में वापस कर देते हैं, मतलब आप उतने पैसे का कोई दूसरा खाना और्डर कर सकते हैं.

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कैसे होता है कस्टमर को फायदा

जोमैटो गोल्ड मेम्बरशिप के द्वारा कस्टमर एक डिश और्डर नहीं कर सकता. अगर कोई कस्टमर 3 डिश और्डर करता है तो उस डिश में जो सबसे ज्यादा महंगा डिश है वो उन्हें कौम्पलीमेंटरी मिल जाता है. यदि कोई व्यक्ति 200 रूपय की पनीर की सब्जी, 400 रूपय की बिरयानी और 300 रूपय का नान या कोई अन्य डिश मंगवाता है तो उसका कुल मिलाकर 900 रुपये का बिल आता है. लेकिन जोमैटो गोल्ड के मेम्बर होने के कारण उस व्यक्ति को मात्र 500 रूपय देने होंगे यानी 400 रूपय का फायदा. इसके साथ कस्टमर को 10 से 20 प्रतिशत डिस्काउंट अलग से मिलता है.

जोमैटो गोल्ड में ड्रिंक्स पर 2+2 का स्कीम है. इसमें कस्टमर को 2 ड्रिंक्स के साथ 2 ड्रिंक्स मुफ्त मिलती है. जिससे कस्टमर को डबल फायदा होता है. इसके अलावा यदि कोई कस्टमर रेस्टोरेंट में खाना खाने की सोच रहा है और अगर वो रेस्टोरेंट जोमैटो का गोल्ड पार्टनर है तो कस्टमर को वहां भी कुछ प्रतिशत डिस्काउंट मिलता है. रेस्टोरेंट में डिस्काउंट के लिए कस्टमर को पहले से टेबल बुक करनी पड़ती है. लेकिन शायद अब इतना डिस्काउंट न मिले.

क्यों हुआ डिस्काउंट देना बंद

इस स्कीम से जोमटो-स्वीगी के साथ ग्राहक को फायदा तो हो रहा था लेकिन रेस्टोरेंट वालों को इस स्कीम से घाटा होने लगा. लोगों को उनके मनपसंद रेस्टोरेंट से घर बैठे खाना मिल रहा था साथ में समय कि बचत भी. ऐसे में भला कोई रेस्टोरेंट क्यों जाएगा? इससे परेशान रेस्टोरेंट वालों ने जोमटो और स्वीगी के खिलाफ आंदोलन चला दिया है. इस में फेडरेशन औफ होटल्स एंड रेस्टोरेंट एसोशिएसन औफ इंडिया (एफएचआरएआई) ने भी सपोर्ट किया. एएचआरआई ने फूड एग्रीगेटर्स यानी जो कंपनियांरेस्टोरेंट से घर-घर खाना पहुंचाने का काम करती हैं, उन्हें कहा है कि वे तुरन्त हर तरह का डिस्काउंट और स्कीम बंद कर दें. एफएचआरएआई ने जोमैटो, स्विगी के साथ साथनियरबाई, डाइनआउट प्रायस हाइट्स, इजडाइनर, मैजिकपिन को भी यह चेतावनी दी है.

रेस्टोरेंट ने किया बौयकाट

स्वीगी और जोमटो 1500 से अधिक रेस्टोरेंट ने बौयकाट कर लिया है. दरअसल, डिस्काउंट और फ्री फूड के स्कीम को देखते हुए रेस्टोरेंट वालों का कहना है कि इससे उनके काम को काफी नुकसान पहुंच रहा है. जंगपुरा में छोटा सा कैफे चलाने वाले सुमित का कहना है “यह लोग औनलाइन तो डिस्काउंट देते है जिससे ग्राहक को काफी सस्ता पड़ता है और सस्ते में जब कुछ अच्छा मिल रहा हो तो कोई भी उसका लुत्फ उठाना चाहेगा. लेकिन सोचिए कभी लोग सीधा रेस्टोरेंट में खाना खाने आते है तो उनको यहां फूड रेस्टोरेंट के अनुसार तय की गई कीमत पर ही मिलेगा. जो उनको महंगा लगने लगेगा. ऐसे में वह लोग रेस्टोरेंट आने के बजाय घर पर ही औनलाइन और्डर कर के खाना खाना पसंद करेंगे. इससे नुकसान तो रेस्टोरेंट वालों को ही होगा.”

रेस्टोरेंट वालों को घाटा होने का मुख्य वजह यह है कि जोमटो और स्वीगी जो भी डिस्काउंट देती है वह अपनी जेब से नहीं बल्कि रेस्टोरेंट वालों को जेब से देती है. ऐसे में रेस्टोरेंट वालों का कहना है कि “अगर आपको डिस्काउंट देना है तो अपनी तरफ से दें.”

इस पर एफ़एचआरएआई के उपाध्यक्ष गुरबक्शीस सिंह कोहली ने कहा, ‘फ़ूड एग्रीगेटर के ख़िलाफ़ शिकायत यह है कि उनके क़रार एकतरफा होता हैं, ये पूरे उद्योग में एक समान नहीं होते और

स्टार्ट अप के खिलाफ अनफेयर ट्रेंड प्रैक्टिस होता हैं.’ उन्होंने कहा है कि इस तरह का व्यापार होना चाहिए जिससे सबको लाभ हो. उन्होनें जोमटो पर निशाना साधते हुए कहा उस पर यहअव्यावहारिक डिस्काउंट देता है, जो कभी किसी रूप में उचित नहीं है.

इसके बाद जोमटो के ख़िलाफ ट्विटर पर #LogOutCampaign चला दिया गया देखते ही देखते 1,200 से अधिक रेस्टोरेंट ने ज़ोमैटो का बौयकौट कर दिया.

जोमैटो के संस्थापक दीपेंदर गोयल ने इसके बाद मामला संभालने की कोशिश की और कहा कि वह हर तरह का डिस्काउंट बंद करने पर राजी हैं.

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कैसा होगा बदलाव

  • जोमैटो ने कहा है कि वह अपने गोल्ड मेंबरशिप प्रोग्राम में बदलाव करने पर विचार करेगा.
  • जोमैटो इंफिनिटी “जितना चाहो उतना खाओ’ वाली स्कीम पर रोक लगा सकता है.
  • स्वीगी पर हर रेस्टोरेंट पर डिस्काउंट की स्कीम को भी हटाया जा सकता है.
  • जोमैटो का यह भी कहना है कि वह और्डर लेने में देरी होने और डिलीवरी टाइम मिस होने पर लेट फाइन वसूल किए जाने का प्रस्ताव भी वापस ले लेगा.
  • अन्य रेस्टोरेंट को भी ऐसी स्कीम हटाने कि बात कही गई है.

जोमैटो पर पहले भी हुआ है विवाद

फूड डिलीवरी एप जोमटो पर 31 जुलाई को एक युवक ने डिलिवरी बौय न बदलने पर ट्वीट किया था, जो सोशल मीडिया पर हाईलाइट हो गया था. दरअसल, इस पूरे मामले की शुरुआत एक और्डर कैंसल करने पर हुई. जबलपुर के अमित शुक्ला नामक एक शख्स ने अपना और्डर सिर्फ इसलिए कैंसिल कर दिया क्योंकि उसे कोई गैर हिंदू डिलीवर करने वाला था. जिस पर अमित शुक्ला ने ट्वीट किया था ‘जोमटोपर खाने का ऑर्डर कैंसिल कर दिया. क्योंकि उन्होंने एक गैर हिंदू को ओर्डर देने के लिए भेजा था. कंपनी ने कहा कि वह डिलिवरी करने वाले शख्स को बदल नहीं सकती साथ ही ऑर्डर कैंसिल करने पर मुझे रिफंड भी वापस नहीं दिया जा सकता.

तभी जोमैटो ने भी इस पर एक ट्वीट करते हुए लिखा “खाने का कोई धर्म नहीं होता. यह अपने आप में एक धर्म है.” इस ट्वीट को लोगों ने बहुत पसंद किया.

इस पूरे मामले पर लोगों ने अपनी अलग अलग राय दी. कोई जोमैटो के सहयोग में था तो कोई  अमित शुक्ला द्वारा किए गए बेमतलब के ट्वीट को सही ठहराता नजर आ रहा था.

इस पर जोमैटो के फाउंडर दीपक गोयल ने भी ट्वीट किया, ‘हमें आइडिया औफ इंडिया और हमारे ग्राहकों एवं साझेदारों की विविधता पर गर्व है’.

कई लोगों ने अमित शुक्ला के ट्वीट पर यह भी लिखा की “ आप ड्राइविंग भी न करें क्योंकि पेट्रोल पंप पर जरूरी नहीं सभी हिंदू या पंडित हों.

धर्म के नाम पर यह अलग ही मसला बन गया. जोमैटो पर यह भी इल्जाम लगा है कि उस के डिलिवरी बौय खाना जूठा कर के डिलीवर करते हैं.

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