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गरबा स्पेशल 2019: रात में ऐसा हो डांडिया लुक

त्यौहारों के आगमन के साथ ही महिलाए कहीं डांडिया की धुन पर थिरकती नजर आती  हैं तो कहीं गरबा की ताल पर झूमती नजर आती हैं. मस्ती के इस रंगारंग कार्यक्रम में आपका लुक भी खूबसूरत नज़र आए , इसके लिए जानिए कुछ मेकअप टिप्स डायरेक्टर औफ एल्पस ब्यूटी क्लिनिक एंड एकेडमिक की  डायरेक्टर भारती तनेजा से.

  • त्वचा सामान्य या रूखी है तो मेकअप से पहले फेशियल औयल से मसाज कर सकती हैं. इससे चेहरा अच्छी तरह से मौइश्चराइज्ड हो जाएगा और मेकअप भी उठकर दिखेगा. तैलीय त्वचा है तो मसाज नहीं करें. फाउंडेशन में फेशियल औयल की कुछ बूंदें मिला लें.
  • प्राइमर, फाउंडेशन या बीबी क्रीम्स का इस्तेमाल किसी भी मेकअप का बेस तैयार करने के लिए किया जाता है. ये मेकअप में सिलवटे पड़ने से बचाता है. प्राइमर लगाने के बाद बीबी क्रीम लगाएं. आप चाहे तो सिलिकन बेस का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. इसमें मौजूद छोटे-छोटे क्रिस्टल पार्टिकल्स, स्किन को शाइन देने के साथ-साथ उसे एक समान फिनिश भी देते हैं. इससे तेज रोशनी में भी आपके चेहरे की चमक कम नहीं होगी. और हां, आपकी फोटो भी बेहद शानदार आएगी. बस अपने साथ हमेशा टिश्यू रखें ताकि गरबा के समय पसीना आने पर आप अपने चेहरे को इससे पोछ सकें.
  • मस्ती के इस रंग में हर कोई अपनी-अपनी फेवरेट धुन पर जम के नाचता व गाता है. जिसके चलते सभी को पसीना आने लग जाता है. ऐसे में अपने चेहरे पर वॉटर प्रूफ बेस का ही इस्तेमाल कीजिए साथ ही कौम्पैक्ट को अपने साथ भी रखें ताकि पसीना आने पर आप टच-अप कर सके.
  • परिधान से मेल खाता आईशैडो लगाने का चलन अब पुराना हो गया है. इसके बजाय हैवी मस्कारा और लैशेज का इस्तेमाल करें. लाइनर पसंद के अनुसार लगा सकती हैं. सिंगल लाइन लाइनर के अलावा विंग लाइनर भी लगा सकती हैं.

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  • ब्लैक मस्कारा के 2-3 कोट्स भी ऐसा करने के लिए काफी है. आर्टीफिशियल आईलैशिज़ से पलकों को लंबा दिखाना इन दिनों फैशन में है, ऐसे में आप भी अपनी पलकों पर इनका इस्तेमाल कर सकती हैं. पलकों को आईलैश कर्लर से कर्ल कर लें और फिर मसकारा का कोट लगाएं. आई-मेकअप के लिए केवल वाटरप्रूफ प्रोडक्ट्स का ही इस्तेमाल करें. आंखों के अंदर यानि वाटर लाइन पर जैल काजल लगाएं.
  • अपने गालों पर पीच ब्लश या पीच शिमर ब्लश लगाएं. होठों के लिए आप चाहे तो कोरल जैसे हल्के रंगों का इस्तेमाल कर सकती हैं. लेकिन अगर आप लोगों का ध्यान अपनी ओर और ज़्यादा खीचना चाहती हैं तो औरेंज और डीप रेड जैसे शेड्स का इस्तेमाल करें. इससे आपको ट्रेडिशनल और मौर्डन, दोनों लुक मिलेंगे.
  • गरबे का माहौल है तो रंगों का भी ख्याल रखना होगा. आंखों पर आईशैडो नहीं होगा, तो लिपस्टिक का गहरे रंग का होना ज़रूरी है. इसमें चटख लाल, गहरी गुलाबी, मैरून, नारंगी और वाइन कलर पसंद किए जाते हैं. ध्यान रखें कि लिपस्टिक मैट ही लगाएं, ताकि ये सैट रहे और पसीना आने पर न निकले.

 हेयर स्टाइल हो खास

  • आमतौर पर गर्ल्स आजकल खुले बाल ज्यादा पसंद करती हैं पर गरबा लुक के लिए अपनी हेयर स्टाइल के साथ बदलाव जरूर करें. बालों के आगे भाग की कई चोटियां गूंथ लें और पीछे से प्लेन चोटी या जूड़ा बनाएं. यह गरबा के दौरान सबसे बेस्ट हेयर स्टाइल होता है. इससे बाल भी बंधे होते हैं और ड्रेस के साथ मैच भी करता है. या फिर आगे के बालों को कर्ल कराकर निकाल लें और पीछे चोटी रखें. चाहें तो चोटियों में मोती या पिन क्लच करें. डांडिया नाइट पर यकीनन यह लुक खूबसूरत लगेगा.
  • पोनीटेल की तमाम स्टाइलों में कर्ली साइड पोनीटेल काफी फेमस है. कर्ली साइड पोनीटेल हर तरह के आउटफिट के साथ अच्छा लुक देती है. लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसके लिए बाल कर्ल किए हों. कर्ली साइड पोनीटेल के बनाने के लिए बालों को साइड में लेते हुए ऊपर की ओर से रबर बैंड से बांध दें. लेकिन बालों में जेल लगाना या हेयर स्प्रे करना ना भूलें, क्योंकि यह पोनीटेल स्लीक लुक में ज्यादा अच्छी लगती है.

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हाथों पर भी दें ध्यान

  • डांडिया खेलते समय सबका ध्यान आपके हाथों पर होता है इसलिए उन पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है. गोल्डन व सिल्वर बीड्स, स्टोन व बेशकीमती कढ़ाई से सुसज्जित पहनावा इस दिन की जान होता है. अपने पहनावे से मैच करते इन खूबसूरत नगीनों को आप अपने नेल्स पर भी सजा सकती हैं. इसके अलावा इस आर्ट में नाखूनों को सजाने के लिए उन पर फूल, पत्तियां, रंगीन पंख, मोती, फर आदि का प्रयोग भी किया जाता है. यदि आपके नाखून छोटे हैं या बढ़ते ही टूट जाते हैं तो ऐसे में आप नेल कल्चर तकनीक का सहारा ले सकती हैं. इस तकनीक के तहत टूटे हुए नाखून को फिर से नैचुरल शेप में लाया जा सकता है. नेल कल्चर किए गए नाखून दिखने में और काम करने में बिल्कुल नैचुरल नाखून की ही तरह नज़र आते हैं. इन नाखूनों को एक्रिलिक पाउडर और कुछ तरल पदार्थों से बनाया जाता है. इससे आपके नेल्स को मनचाहा आकार व लंबाई मिल जाती है. नेल कल्चर किए गए नाखूनों पर आप परमानेंट नेल आर्ट करवा सकती हैं. इसमें नाखूनों पर फूल-पत्तियॉं, डॉलफिन, तितली आदि डिज़ाइन बनाएं जाते हैं और ऊपर से स्टड्स लगाकर इसे और भी आकर्षक बनाया जाता है. परमानेंट नेलआर्ट में 2-3 घंटे का समय लगता है. किसी खास फिंगर को स्पेशल लुक देने के लिए आप नेल पियर्सिंग भी करवा सकती हैं. इसमें नेल्स में छेद करके बाली या घुंघरू से सजाया जाता है जिससे नाखून बेहद अट्रैक्टिव नज़र आते हैं.
  • इस दिन आप अपने हाथों पर अपनी पसंदीदा चित्रकारी बनवा सकती हैं. हथेलियों पर पारंपरिक मेंहदी से अपने हाथों को सजा सकती हैं .
  • साथ ही बौडी के खुले अंगों पर रंग-बिरंगी चित्रकारी भी करवा सकती हैं जिसे हम फैंटेसी मेकअप कहते हैं. इस मेकअप में विशेष प्रकार के क्रीमी या पाउडर रंगों का इस्तेमाल होता है और इसे स्प्रे गन या ब्रश की सहायता से किया जाता है .
  • गहनों और ड्रेस बिना गरबा शृंगार बिल्कुल अधूरा है तो गरबे में लहंगा-ओढ़नी ही मुख्य ड्रेस होते हैं. अब आप अपनी गरबा ड्रेस के अनुसार ज्वेलरी पहन सकती हैं, जिसमें करधनी और बाजूबंद पहनना न भूलें. बिंदी, टीका, बड़े झुमके और कंठी हार ड्रेस के अनुसार चुनें. अगर लहंगे की लंबाई छोटी है तो पैर में मोटी पायजेब पहनें.

प्रेमी प्रेमिका के चक्कर में दुलहन का हश्र: भाग 2

प्रेमी प्रेमिका के चक्कर में दुल्हन का हश्र: भाग 1

अब आगे पढ़ें-

इधर नेहा कुंवरपाल के शादी के फैसले से बौखला उठी. उस का प्रेमी कायर निकला, यह सोचसोच कर वह उबल रही थी. पर चाह कर भी वह कुछ नहीं कर सकती थी. नेहा ने तय कर लिया कि बेशक कुंवरपाल ने शादी कर ली है लेकिन वह उसे कभी भी छोड़ेगी नहीं. वह उस की दुनिया नहीं बसने नहीं देगी. जिस व्यक्ति ने उस की भावनाओं से खिलवाड़ किया, वह उसे भी चैन से नहीं जीने देगी.

कुंवरपाल की शादी के बाद रामकिशोर और उस के रिश्तेदारों ने सुख की सांस ली कि अब सब कुछ ठीक हो गया है. पर नेहा अपने आशिक दिल का क्या करती, जो मान ही नहीं रहा था.

शादी के 4 दिन बाद नेहा की मुलाकात कुंवरपाल से हुई तो उस ने कहा, ‘‘तुम ने तो अपनी दुनिया बसा ली, अब मेरा क्या होगा?’’

‘‘तुम भी शादी कर लो. नेहा, लगता है कि होनी को यही मंजूर था.’’ कह कर कुंवरपाल ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन नेहा को कुंवरपाल की यह दलील पसंद नहीं आई. उस ने साफ कह दिया कि चाहे जो हो, वह उसे नहीं छोड़ सकती.

कुंवरपाल की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. अगर उस की पत्नी पूनम को उस के संबंधों के बारे में पता चला तो वह परेशान हो जाएगी.

पूनम को पति की आशिकी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. वह तो अपने मांबाप की दी हुई शिक्षा के अनुसार अपनी ससुराल में आदर्श बहू बनने की कोशिश कर रही थी.

घर में सब पूनम से खुश थे. संतोष अपनी बेटी की शादी के बाद निश्चिंत हो गया था, पर उसे नहीं मालूम था कि उस के जीवन में कितना बड़ा तूफान आने वाला है.

पहली जुलाई, 2019 को सोरों थाना क्षेत्र के फरीदनगर स्थित एक खेत में सुबहसुबह कुछ लोगों ने एक लड़की और एक लड़के का शव देखा तो तुरंत पुलिस को सूचित किया.

कुछ ही देर में कोतवाली इंचार्ज रिपुदमन सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने देखा कि मृत युवक की पैंट और बेल्ट एक ओर पड़ी थी. वहां सल्फास के कुछ पाउच और पानी की बोतल भी पड़ी थी. लड़के की तलाशी में उस की जेब से भी सल्फास का एक पैकेट मिला.

पुलिस को पहली जांच में मामला प्रेमी युगल की खुदकुशी का लगा. सूचना मिलते ही सीओ गवेंद्रपाल गौतम भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

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धीरेधीरे भीड़ बढ़ने लगी. भीड़ में से कुछ लोगों ने दोनों मृतकों को पहचान लिया. दोनों होडलपुर गांव के थे. लड़के की पहचान कुंवरपाल पुत्र डालचंद के रूप में हुई. जबकि लड़की नेहा रामकिशोर की बेटी थी. मौके पर पुलिस को शराब की बोतल और नमकीन का पैकेट भी मिला.

खबर मिलने पर कुछ देर बाद दोनों के घर वाले भी वहां पहुंच गए. वे एकदूसरे पर हत्या का आरोप लगाने लगे. लेकिन पुलिस को अभी तक मामला आत्महत्या का ही लग रहा था. यानी असफल प्रेमियों द्वारा अपनी जिंदगी खत्म कर देना.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई करने के बाद लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने पूछताछ करने के लिए दोनों पक्षों को थाने बुलाया तो थाने में भी दोनों पक्ष एकदूसरे पर आरोप लगाने लगे.

नवविवाहिता पूनम को जब पता चला कि उस का सुहाग उजड़ गया है तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस का रोरो कर बुरा हाल हो गया. 50 दिन पहले ही उस की शादी हुई थी. पति ने उसे जरा भी भनक नहीं लगने दी थी कि वह किसी और से प्यार करता है.

वह तो पति को भरसक प्यार देने की कोशिश कर रही थी, फिर ऐसा क्या हुआ कि बीती रात जब कुछ लोग उसे बुलाने आए तो वह उसे बिना कुछ बताए उन के साथ चला गया और अगले दिन उस की लाश मिली.

अगले दिन दोनों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि दोनों मृतकों के शरीर पर चोट के निशान थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से केस का रुख ही बदल गया. यह आत्महत्या का नहीं, बल्कि हत्या का मामला निकला.

इस के बाद कुंवरपाल के पिता डालचंद ने डा. कृष्णकुमार, उस के भाई राजेश, रामकिशोर, रमेश आदि के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.

चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस ने आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उन के घर दबिश दी, जिस में रामकिशोर और उस का छोटा भाई रमेश पुलिस के हत्थे चढ़ गए जबकि अन्य आरोपी फरार हो गए थे.

थाने ला कर जब उन दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने दोनों हत्याएं करने की बात स्वीकार कर ली. इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

कुंवरपाल की शादी के बाद नेहा के घर वालों ने सोचा था कि अब नेहा संभल जाएगी और वह उस के लिए कोई अच्छा सा घरवर खोज कर उस के हाथ पीले कर देंगे. पर नेहा का आक्रामक रुख उन्हें परेशान कर रहा था.

वह बागी हो गई थी. उस ने पिता से साफ कह दिया था, ‘‘आप परेशान न हो, मैं कुंवरपाल को अपनापति मान चुकी हूं. उस के अलावा अब किसी के साथ अपनी दुनिया नहीं बसा सकती. भले ही उस ने शादी कर ली है लेकिन वह उसे उस की बेवफाई महसूस जरूर कराएगी.’’

लड़की पागल हो गई है, जब इस की शादी हो जाएगी, तब सब ठीक हो जाएगा. यह सोच कर पिता ने उस के लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी. पर बागी बन चुकी नेहा को घरपरिवार वाले सब दुश्मन नजर आ रहे थे.

नेहा के तेवर परेशान करने वाले थे, इसलिए घर वालों ने मान लिया कि कुंवरपाल की वजह से ही उन के घर की बदनामी हो रही है. इसलिए उन्होंने कुंवरपाल को ही ठिकाने लगाने का फैसला ले लिया.

पूरी योजना के बाद 30 जून, 2019 की रात 11 बजे कुछ बात करने के बहाने रामकिशोर ने कुंवरपाल को अपने घर बुलाया. कुंवरपाल जब रामकिशोर के घर पहुंचा तो वहां कई लोग मौजूद थे.

कुंवरपाल के पहुंचते ही उन लोगों ने उसे पीटना शुरू कर दिया. तब नेहा अपने प्रेमी को बचाने के लिए आ गई. लेकिन घर वालों ने नेहा को एक तरफ धकेल कर कुंवरपाल की जम कर पिटाई की. मारपीट के दौरान कुंवरपाल को गंभीर चोटें आईं, जिस से उस की वहीं मौत हो गई.

कुंवरपाल की मौत नेहा की आंखों के सामने हुई थी. उस के परिवार वालों ने उस के सामने ही उस के प्यार को मार डाला था. नेहा की रहीसही उम्मीद भी अब खत्म हो गई थी. उस ने तमक कर कहा, ‘‘तुम ने कुंवरपाल को मार डाला. क्या सोचते हो कि तुम लोग बच जाओगे. मैं पुलिस को सब कुछ बता दूंगी. हत्यारे हो तुम लोग.’’

नेहा के तेवर देख कर सब घबरा गए. उसे सभी ने समझाने की बहुत कोशिश की पर नेहा ने साफ कह दिया कि उस की दुनिया उजाड़ने वालों को वह कतई माफ नहीं कर सकती.

नेहा के तेवरों के सामने सब को फांसी का फंदा दिखाई देने लगा.  अत: उन्होंने नेहा को एक कमरे में बंद कर दिया और सोचने लगे कि अब क्या करें.

इस के बाद घर वालों ने फैसला किया कि नेहा को भी खत्म करना ठीक रहेगा वरना यह जिद्दी लड़की सभी को फंसा देगी. यह भी नहीं रहेगी तो सारी कहानी खत्म हो जाएगी. फिर कमरे से नेहा को निकाला गया और उसे भी पीटपीट कर मार डाला गया. इस के बाद योजना बनाई गई कि कुछ ऐसा किया जाए कि 2 हत्याओं का यह मामला आत्महत्या लगे.

योजना दोनों के शव फरीदनगर रेलवे लाइन के पास ले जा कर रेलवे ट्रैक पर फेंकने की थी, पर तब तक सुबह हो गई थी और लोगों का उधर आनाजाना शुरू हो गया था. सल्फास के पाउच और शराब की बोतल का इंतजाम किया गया और पुलिस को भ्रमित करने की कोशिश की गई. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने सारी पोल खोल दी.

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रामकिशोर और रमेश से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

पूनम के हिस्से में 50 दिन का वैवाहिक जीवन आया था. उस की खुशियां, उस के सपने सब नाकाम आशिकी की भेंट चढ़ गए, जो उस के पति और नेहा के बीच थे.

पूनम को सब से ज्यादा अफसोस इस बात का था कि पति ने उस का विश्वास तोड़ा था. यदि वह बता देता कि उस की आशिकी के कारण गांव में दुश्मनी हो गई है तो वह पति के साथ कहीं और चली जाती. पर अब विधवा होने का जो दाग उस के जीवन पर लग गया, उस का वह क्या करे.

पूनम के सामने अभी तो पहाड़ सी सारी उम्र पड़ी है. उस की समझ में नहीं आ रहा कि यह उम्र कैसे कटेगी.

पूनम के ससुराल वाले कुंवरपाल के छोटे भाई रामनरेश के साथ पूनम को चादर ओढ़ाने को तैयार हैं यानी वह रामनरेश के साथ पूनम की शादी करने को राजी हो गए हैं. पर ये निर्णय लेना अभी पूनम के लिए आसान नहीं है. अभी तो जख्म ताजा है, जब वह संभलेगी तब सोचेगी कि क्या करना है.

कहानी सौजन्य: मनोहर कहानी

सातवें आसमान की जमीन : भाग 2

उस दिन उस के प्रिय अभिनेता ने भी यही शब्द कहा था और उस समय सुप्रिया को जो सुख प्राप्त हुआ था, वह उसे अभी अमित तक पहुंचा नहीं सकी थी. अमित उस स्वप्नलोक जैसा कहां था. यह तो देखने की बात है, वर्णन करने की नहीं. नंदा तो जैसे मौका ही खोज रही थी. अन्य दोस्त भी कहां पीछे रहते.

सभी ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘यार अमित, यू रियली मिस्ड समथिंग. क्या ठसक थी सुप्रिया की. वह जैसे सचमुच प्रेम कर रहा हो और प्रपोज कर रहा हो… इस तरह घुटने के बल बैठ कर… मान गए यार.’’

‘‘अरे इन एक्टरों के लिए तो यह रोज का खेल है. दिन में दस बार प्रपोज करते हैं ये. यही अभिनय करना तो उन का काम है. यह उन के लिए बहुत आसान है.’’

‘‘सुप्रिया की आंखों में आंखें डाल कर अपलक ताक रहा था और बैकग्राउंड में वह गाना बज रहा था… कि तुम बन गए हो मेरे खुदा…ही वाज सो इंटेंस, सो इमोशनल, माई गौड. अमित, तुम देखते तो पता चलता. उस सब को शब्दों में नहीं व्यक्त किया जा सकता.’’

‘‘इस का मतलब अमित ने उस  प्रोग्राम की डीवीडी नहीं देखी. इसे जलन हो रही होगी.’’ रौल ने कहा.

‘‘नो यंगमैन, जलन किस बात की. मुझे इन नाटकों में जरा भी रुचि नहीं है. यह सब दिखावा है. इस सब के लिए मेरे पास जरा भी समय नहीं है.’’

अमित की इन बातों पर सुप्रिया एकदम से उदास हो गई. उस का चेहरा एकदम से उतर गया.

‘‘अमित, तुम जिसे पल भर का नाटक कह रहे हो, उसी पल भर के नाटक में सुप्रिया किस तरह आनंद समाधि में समा गई थी, इस से पूछो. इस का हाथ पकड़ कर जब उस ने अपने होंठों से लगाया तो यह सहम सी गई. सच है न सुप्रिया?’’ सुप्रिया ने हां में सिर हिलाया.

नंदा ने उस के सिर पर ठपकी मार कर कहा, ‘‘चिंता में क्यों पड़ गई, अमित तुझे खा नहीं जाएगा. यह कोई 18वीं सदी का मेलपिग नहीं है.’’

अमित ने नंदा के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘थैंक्यू.’’

सुप्रिया उस समय बड़ी दी को याद कर रही थी. उन्होंने कहा, ‘‘लड़की के व्यवस्थित होने तक तमाम चीजों का ध्यान रखना पड़ता है. हर चीज बतानी पड़ती है. कांटेस्ट में भाग लिया है, इस में क्या बताना. भूल हो गई, कह देना. पर यह झूठ है. कांटेस्ट में हिस्सा लेने के लिए किसी ने जबरदस्ती तो नहीं की थी. अपनी मरजी से हिस्सा लिया था और जीतने की इच्छा के साथ. यह भी सच है कि जीतने की तीव्र इच्छा थी जीत का नशा भी चढ़ा था, इस में कोई झूठ भी नहीं, अब बचाव में कुछ कहना भी नहीं. जो अच्छा लगा, व किया. कोई अपराध तो नहीं किया. साथ रहना है तो यह स्पष्टता होनी ही चाहिए.’’

मन नहीं था, फिर भी सुप्रिया अमित के साथ इंडिया गेट आ गई थी. अब आ ही गई तो इस बारे में क्या सोचना, आने से पहले ही उस ने काफी सोचविचार कर तय कर लिया था कि उसे अपनी बात किस तरह कहनी है. इस के बावजूद काफी गुणाभाग और सुधार कर उस ने कहा, ‘‘अमित, तुम्हें मेरा यह निर्णय खराब तो नहीं लगा?’’

‘‘खराब, किस बारे में?’’

‘‘वही टीवी और कांटेस्ट वाली बात.’’

‘‘छोड़ो न, डोंट टाक रबिश, तुम्हें यह पूछना पड़े, इस का मतलब तुम ने मुझे अभी जानापहचाना नहीं.’’

‘‘ऐसा नहीं है अमित, तुम मुझे मूडलेस लगते हो. तुम ने मुझ से कांटेस्ट की कोई बात तक नहीं की. घर में किसी ने प्रोग्राम देखा हो और किसी को कुछ न अच्छा लगा हो.’’

‘‘तुम्हें पता है मेरे यहां कोई रुढि़वादी या पुरानी सोच वाला नहीं है.’’

‘‘भले ही पुराने विचारों वाला नहीं है. पर कुछ न अच्छा लगा हो.’’

‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं है.’’

अमित ने दोनों हाथ ऊपर की ओर कर के सूरज की ओर देखते हुए कहा, ‘‘सूर्यास्त देख कर चलना है न?’’

सुप्रिया थोड़ा खीझ कर बोली, ‘‘सूर्यास्त को छोड़ो, तुम अपनी बात करो. चेन्नै से आने के बाद तुम काफी गंभीर हो गए हो. ऐसा क्यों?’’

‘‘नथिंग पार्टिक्युलर. तुम्हें ऐसे ही लग रहा है. तुम्हें इस चिंतित अनुभव के बाद तुम्हें सब कुछ डल और लाइफलेस लग रहा है.’’

‘‘अब आए न लाइन पर. सो यू डिड नाट लाइक इट. सही कहा जा सकता है.’’

‘‘तुम्हें जो अच्छा लगा. तुम ने वह किया. इस में मुझे अच्छा या खराब लगने का कोई सवाल ही नहीं उठता. हमारे संबंधों के बीच अब ये बातें नहीं आनी चाहिए.’’

‘‘सवाल है न. कुछ दिनों बाद हमें साथ जीना है. इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है.’’

‘‘तुम बेकार में पीछे पड़ी हो, फारगेट इट. कोई दूसरी बात करते हैं. कुछ खाते हैं.’’

‘‘अमित, तुम बात बदलने की कोशिश मत करो. मैं आज तुम्हारा पीछा छोड़ने वाली नहीं. चलो, दूसरी तरह से बात करती हूं. तुम ने डीवीडी क्यों नहीं देखी? वैसे तो तुम मुझ में बहुत रुचि लेते हो, भले ही इस बात को तुम चीप इंटरटेनमेंट मानते हो, इस के बाद भी तुम्हें मेरा प्रोग्राम देखना चाहिए था. मेरा प्रोग्राम देखने का तुम्हारा मन क्यों नहीं हुआ? मेरी खातिर तुम्हारे पास इतना समय भी नहीं है?’’

‘‘इस में समय की बात नहीं है. तुम्हें पता है, मुझे ऐसावैसा देखना पसंद नहीं है.’’

‘‘ऐसावैसा मतलब? अमित ऊपर देख कर चलने की जरूरत नहीं है और जिसे तुम चीप कह रहे हो, उसी तरह के अन्य प्रोग्राम तुम देखते हो. यह जो तुम क्रिकेट देखते हो, वह क्या है.’’

‘‘जाने दो न सुप्रिया, बेकार की बहस कर के क्यों शाम खराब कर रही हो.’’

‘‘शाम खराब हो रही है, भले हो खराब. आज मैं यह जान कर रहूंगी कि आखिर तुम्हारे मन में मेरे प्रति क्या है. सचसच बता दो. बात खत्म.’’

अमित ने एक लंबी सांस ली. शाम को पंक्षी अपने बसेरे की ओर जाने लगे थे. उस ने सुप्रिया की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम ने कांटेस्ट में हिस्सा लिया, तुम्हारी मरजी. ठीक है न?’’

‘‘एकदम ठीक.’’

‘‘तुम्हें जीतना था, जिस की मुख्य वजह यह थी कि जीतने पर तुम्हारा फेवरिट हीरो तुम्हारे साथ परफोर्म करता. सच है न?’’

‘‘एकदम सच.’’

‘‘तुम जीतीं और तुम्हारा सपना पूरा हुआ, जिस से तुम्हें खुशी हुई. यह स्वाभाविक भी है. आई एम राइट?’’

‘‘एकदम सही, पर यह क्या मुझे गोलगोल घुमा रहे हो. मुद्दे की बात करो न. शाम हो रही है, मुझे घर भी जाना है. दीदी की तबीयत ठीक नहीं है. उन्हें आराम की जरूरत है.’’

‘‘चलो मुद्दे की बात करते हैं. वह अभिनेता, जो इस जीवन में कभी नहीं मिलने वाला तुम से झूठमूठ में प्रपोज किया, तुम से मिलने को आतुर हो इस तरह का नाटक किया, मात्र नाटक, इस झूठमूठ के नाटक में तुम मारे खुशी के रो पड़ीं. सचमुच में रो पड़ीं. तुम्हारी खुशी कोई एक्टिंग नहीं थी. सच कह रहा हूं न?’’

‘‘हां, मैं एकदम भावविभोर हो गई थी. वह खुशी… इट वाज जस्ट टू मच. अकल्पनीय आनंद की अनुभूति हुई थी मुझे.’’

‘‘तुम ने जो कहा, यह सब… अब याद करो, मैं ने तुम्हें प्रपोज किया, अंगूठी पहनाई, गुलाब दिया, हाथ में हाथ लिया, मेरे लिए तुम्हारी आंखें कभी भी एक बार भी प्यार में नहीं छलकीं. सो आई वाज जस्ट थिंकिंग कि यह सब क्या है? सचमुच, मैं यही सोचते हुए यहां आया था. तब से यही सोचे जा रहा हूं. खैर, चलो अब चलते हैं.’’

गरमी में पशुओं को खिलाएं हरा चारा

भारत कृषि प्रधान देश है. इस में पशुपालन कृषि उत्पादन प्रक्रिया में सहभागी है. हमारा देश दुनियाभर में दूध उत्पादन के मामले में अव्वल है. यह वैज्ञानिकों और किसानों की कड़ी मेहनत का ही नतीजा है.

पशुओं के रखरखाव में अकसर 60-65 फीसदी खर्च पालनेपोसने पर ही आता है. देश में साल में 2 बार हरे चारे की तंगी या कमी के मौके आते हैं, अप्रैल जून और नवंबर दिसंबर.

पशुपालक गरमी में मक्का, लोबिया ज्वार, बाजरा वगैरह वैज्ञानिक विधि से उगा कर कम लागत में ज्यादा पैदावार ले सकते हैं.

दलहनी चारे अधिक पौष्टिक होते?हैं, पर उन्हें ज्यादा नहीं खिलाना चाहिए क्योंकि इस से पशुओं में पेट फूलना या अफरा रोग हो जाता है.

पशुपालक एक दलहनी व गैरदलहनी वाली फसलों को मिला कर के अपने खेतों पर लगाएं. इस प्रकार के हरे चारे को पशुओं को खिलाने से पशुओं को कार्बोहाइड्रेट के साथसाथ प्रोटीन की आपूर्ति भी होती है. साथ ही, पशुओं की अच्छी बढ़ोतरी होने के साथसाथ दूध भी बढ़ जाता है.

जलवायु : ज्यादा हरा चारा हासिल करने के लिए पानी, हवा, सूरज की रोशनी और माकूल जलवायु की जरूरत होती है. सफल उत्पादन मौसम की अनुकूल व प्रतिकूल दोनों ही दशाओं पर निर्भर करता है. आमतौर पर 25-30 डिगरी सैल्सियस तापमान मक्का, ज्वार, बाजरा, लोबिया वगैरह के लिए उपयुक्त रहता है.

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जमीन की तैयारी : सही जल निकास वाली दोमट या रेतीली मिट्टी इस की पैदावार के लिए सही रहती है. साथ ही, जमीन समतल होनी चाहिए. एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें व 2-3 गहरी जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से करने के बाद जमीन को समतल कर लें.

बीज बोने का समय : चारे की फसल लाइन में करें. छोटे आकार के बीज जैसे बाजरा वगैरह की बोआई छिटकवां विधि से भी कर सकते हैं. चारा फसलों की बोआई मार्च से जुलाई माह तक कर सकते?हैं.

फसल मिश्रण : चारे की फसल बोने पर साधारण बीज दर प्रति हेक्टेयर आधी कर देनी चाहिए. दलहनी व गैरदलहनी फसलों का ही मिश्रण बना कर पशुपालक उगाएं. इस से ज्यादा पैदावार होने के साथसाथ जमीन की उर्वराशक्ति भी बढ़ जाती है जैसे मक्का लोबिया, ज्वार, ग्वार वगैरह.

सिंचाई : गरमी में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहने से चारे की बढ़वार अच्छी होती है. बारिश में जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करें.

खाद व उर्वरक डालने की विधि : आमतौर पर मिट्टी जांच के आधार पर ही खाद और उर्वरक डालें. 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद जुताई के समय खेत में?ठीक से मिलाएं. फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा खड़ी फसल में डालें.

कटाई: एक काट वाली फसलों की कटाई 55-60 दिनों के बाद करें यानी फूल बनते समय कटाई करें जिस से अधिकतम पोषक तत्त्वों का फायदा मिल सके.

कई काट वाली फसलें जैसे ज्वार की पहली कटाई 35-40 दिन के बाद करें और बाद की कटाइयां 20-22 दिन बाद करें. काट वाली फसलों की कटाई जमीन से 5-7 सैंटीमीटर ऊपर से करनी चाहिए, जिस से जल्दी बढ़वार हो सके.

मुख्य चारा फसलों की जानकारी : गैरदलहनी फसलों में मक्का, ज्वार, बाजरा हैं व दलहनी फसलों में लोबिया, ग्वार का हरा चारा मिला कर खिलाने से पशु का दूध उत्पादन गरमी में कम नहीं होगा. साथ ही, पशु की प्रजनन क्षमता में भी सुधार होगा. इस तरह पशुपालक कम खर्च कर के ज्यादा आमदनी हासिल कर सकेंगे.

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डा. मनोज कुमार भारती

प्रकृति के नियमों पर कैसे चढ़ा धार्मिक रंग

क्या आप ने कभी देखा की चींटियों ने अपने ईष्ट देव के मंदिर बनाए, मूर्तियां गढ़ीं और पूजा की या मसजिद बनाईर् और नमाज पढ़ी? चींटियों, दीमक की बांबियों में, मधुमक्खियों के छत्तों में क्या कोई कमरा ईश्वर के लिए भी होता है? क्या आप ने कभी देखा कि बंदरों ने व्रत रखा या त्योहार मनाया. पक्षी अपने अंडे देने के लिए कितनी कुशलता और तत्परता से सुंदरसुंदर घोंसले बनाते हैं, मगर इन घोंसलों में वे ईश्वर जैसी किसी चीज के लिए कोई पूजास्थल नहीं बनाते? ईश्वर जैसी चीज का डर मानव के सिवा धरती के अन्य किसी भी जीव में नहीं है. ईश्वर का डर मानवजाति के दिल में हजारों सालों से निरंतर बैठाया जा रहा है.

इस धरती पर करीब 87 लाख जीवों की विभिन्न प्रजातियां रहती हैं. इन लाखों जीवों में से एक मनुष्य भी है. ये लाखों जीव एकदूसरे से भिन्न आकारव्यवहार के हैं, मगर इन में एक चीज समान है कि इन में से प्रत्येक में 2 जातियां हैं, एक नर और एक मादा. प्रकृति ने इन 2 जातियों को एक ही काम सौंपा है कि वे एकदूसरे से प्रेम और सहवास के जरिए अपनी प्रजाति को आगे बढ़ाए और धरती पर जीवन को चलाते रहें.

जीव विज्ञानियों ने धरती पर पाए जाने वाले लाखों जीवों के जीवनचक्र को जानने के लिए तमाम खोजें, अनुसंधान और प्रयोग किए हैं. मगर आज तक किसी वैज्ञानिक ने अपनी रिसर्च में यह नहीं पाया कि मनुष्य को छोड़ कर इस धरती का कोई भी अन्य जीव ईश्वर जैसी किसी सत्ता पर विश्वास करता हो.

ईश्वर की सत्ता को साकार करने के लिए उस के नाम पर धर्म गढ़े गए. धर्म के नाम पर मंदिर, मसजिद, शिवाले, गुरुद्वारे, चर्च ईजाद हुए. इन में शुरु हुए पूजा, भक्ति, नमाज, प्रार्थना जैसे कृत्य. इन कृत्यों को करवाने के लिए यहां महंत, पुजारी, मौलवी, पादरी, पोप बैठाए गए और उस के बाद यही लोग पूरी मानवजाति को धर्म और ईश्वर का डर दिखा कर अपने इशारों पर नचाने लगे. अल्लाह कहता है 5 वक्त नमाज पढ़ो वरना दोजख में जाओगे. ईश्वर कहता है रोज सुबह स्नान कर के पूजा करो वरना नरक प्राप्त होगा जैसी हजारों अतार्किक बातें मानवजगत में फैलाई गईं. हिंसा के जरीए उन का डर बैठाया गया. स्वयंभू धर्म के ठेकेदार इतने शक्तिशाली हो गए कि कोई उन से यह प्रश्न पूछने की हिम्मत ही नहीं कर पाया कि ईश्वर कब आया? कैसे आया? कहां से आया? दिखता कैसा है? सिर्फ तुम से ही क्यों कह गया सारी बातें, सब के सामने आ कर क्यों नहीं कहीं?

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मानवजगत ने बस स्वयंभू धर्माचार्यों की बातों पर आंख मूंद कर विश्वास किया, उन्होंने जैसा कहा वैसा किया. धर्माचार्यों ने तमाम नियम गढ़ दिए. ऐसे जियो, ऐसे मत जीयो. यह खाओ, वह न खाओ. यह पहनो, वह मत पहनो. यहां जाओ, वहां मत जाओ. इस से प्यार करो, उस से मत करो. यह अपना है, वह पराया है. अपने से प्यार करो, दूसरे से घृणा करो. इस में कोई संदेह नहीं है कि धर्माचार्यों ने इस धरती पर मानवजाति को भयंकर लड़ाइयों में झोंका है. किसी भी धर्म की जड़ों को तलाश लें, उस धर्म का उदय लड़ाई से ही हुआ है. हजारों सालों से धर्म के नाम पर भयंकर जंग जारी है. आज भी धरती के विभिन्न हिस्सों पर ऐसी लड़ाइयां चल रही हैं. यहूदी, मुसलमानों, ईसाइयों, हिंदुओं को हजारों सालों से धर्म और ईश्वर के नाम पर लड़ाया जा रहा है.

क्या इस धरती पर रह रहे किसी अन्य जीव को देखा है धर्म और ईश्वर के नाम पर लड़ते? वे नहीं लड़ते, क्योंकि उन के लिए इन 2 शब्दों (ईश्वर और धर्म) का कोई वजूद ही नहीं है. वे जी रहे हैं खुशी से, प्रेम से, जीवन को आगे बढ़ाते हुए, प्रकृति और सृष्टि के नियमों पर.

धर्म ने सब से ज्यादा प्रताडि़त और दमित किया है औरत को, जो शारीरिक रूप से पुरुष से कमजोर है. अगर उस ने अपने ऊपर लादे जा रहे नियमों को मानने से इनकार किया तो उस के पुरुष को उस पर जुल्म करने के लिए उत्तेजित किया गया. उस से कहा गया अपनी औरत से यह करवाओ वरना ईश्वर तुम्हें दंड देगा. तुम नर्क में जाओगे, तुम जहन्नुम में जाओगे. और पुरुष लग गया अपने प्यार को प्रताडि़त करने में. उस स्त्री को प्रताडि़त करने में जो उस की मदद से इस धरती पर मानवजीवन को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी निभाती है.

धर्म की देन है वेश्यावृत्ति

प्रकृति ने पुरुष और स्त्री को यह स्वतंत्रता दी थी कि युवा होने पर वे अपनी पसंद के अनुरूप साथी का चयन कर के उस के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करें और सृष्टि को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दें. धर्म ने मानवजाति को अलगअलग दायरों में बांध दिया. हिंदू दायरा, मुसलिम दायरा, क्रिश्चियन दायरा, पारसी, जैनी वगैरहवगैरह. इन दायरों के अंदर भी अनेक दायरे बन गए हैं. इंसान विभाजित होता चला गया.

हर दायरे को नियंत्रित करने वाले धर्माचार्यों ने नायकों या राजाओं का चयन किया और उन्हें तमाम अधिकारों से सुसज्जित किया. इन्हीं अधिकारों में से एक था स्त्री का भोग. धर्माचार्यों ने स्त्रीपुरुष समानता के प्राकृतिक नियम को खारिज कर के पुरुष को स्त्री के ऊपर बैठा दिया.

धर्माचार्यों ने राजाओंनायकों को समझाया कि स्त्री मात्र भोग की वस्तु है. रंगमहलों में, हरम में भोग की इस वस्तु को जबरन इकट्ठा किया जाने लगा. 1-1 राजा के पास सैकड़ों रानियां होने लगीं. नवाबों के हरम में दासियां इकट्ठा हो गई. इसी बहाने से धर्माचार्यों ने अपनी ऐय्याशियों के सामान भी जुटाए.

देवदासी प्रथा की शुरुआत हुई. स्त्री नगरवधू बन गई. मरजी के बगैर सब के सामने नचाई जाने लगी. सब ने उस के साथ जबरन संभोग किया. देवदासियों का उत्पीड़न एक रिवाज बन गया. कालांतर में औरत तवायफ, रंडी, वेश्या के रूप में कोठों पर कैद हो गई और आज प्रौस्टीट्यूट या बार डांसर्स के रूप में होटलों में दिखती है. स्त्री की इस दशा का जिम्मेदार कौन है? सिर्फ धर्म.

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धर्म की देन है वैधव्य

पुरुष साथी की मृत्यु के बाद स्त्री द्वारा दूसरे साथी का चुनाव करने पर धर्म और ईश्वर का डर दिखा कर धर्माचार्यों ने प्रतिबंध लगा दिया. पुरुष की मृत्यु किसी भी कारण से क्यों न हुई हो, इस का दोषी स्त्री को ठहराया गया. सजा उसे दी गई. उस से वस्त्र छीन लिए गए. बाल उतरवा लिए गए. शृंगार पर प्रतिबंध लगा दिया.

उसे उसी के घर में जेल जैसा जीवन जीने के लिए बाध्य किया गया. उसे नंगी जमीन पर सोने के लिए मजबूर किया गया. जिस ने चाहा उस के साथ बलात्कार किया. उसे रूखासूखा भोजन दिया गया. स्त्री की इच्छा के विरुद्ध ये सारे हिंसात्मक कृत्य धर्माचार्यों ने ईश्वर का डर दिखा कर पुरुष समाज से करवाए. विधवा को वेश्या बनाने में भी वे पीछे नहीं रहे.

इस धरती पर किसी अन्य जीव के जीवनचक्र में क्या ऐसा होते देखा गया है? किसी कारणवश नर की मृत्यु के बाद मादा दूसरे नर के साथ रतिक्रिया करती हुई सृष्टि के नियम को गतिमान बनाए रखती हैं. मादा की मृत्यु के बाद ऐसा ही नर भी करता है. वहां प्रताड़ना का सवाल ही पैदा नहीं होता, वहां सिर्फ प्रेम होता है.

धर्म की देन है सती और जौहर प्रथा

धर्माचार्यों ने अपने धर्म के प्रसार के लिए पहले लड़ाइयां करवाईं. उन में लाखों पुरुषों को मरवाया. लूटपाट मचाई, जीते हुए राजाओं और उन के सैनिकों ने हारने वाले राजाओं और उन के कबीले की औरतों पर जुल्म ढाए. सैनिकों ने उन से सामूहिक बलात्कार किए, उन की हत्याएं कीं, उन्हें दासियां बना कर ले गए. धर्माचार्यों ने इस कृत्य की सराहना की. इसे योग्य कृत्य बताया. कभी किसी धर्माचार्य ने इस कृत्य पर उंगली नहीं उठाई.

औरतों ने इस प्रताड़ना, शोषण, उत्पीड़न और बंदी बनाए जाने के डर से अपने राजा की सेना के हारने के बाद सती और जौहर का रास्ता इख्तियार कर लिया. धर्माचार्यों ने इस कृत्य को भी उचित ठहरा दिया. औरतें अपने पुरुष सैनिकों की लाशों के साथ खुद को जला कर खत्म करने लगीं. सामूहिक रूप से इकट्ठा हो कर आग में जिंदा कूद कर जौहर करने लगीं.

जरा सोचिए, कितना दर्द सहती होंगी वे. आप की उंगली जल जाए, फफोला पड़ जाए तो कितना दर्द होता है. और वे समूची आग में जलती रहीं, किसी धर्माचार्य ने उन के दर्द को महसूस नहीं किया, यह उस वक्त का सब से पुनीत धार्मिक कृत्य बताया जाता था.

बाल विवाह भी धर्म की देन

धर्म के ठेकेदारों ने अपनेअपने धर्म के दायरे खींचे और स्त्रीपुरुष की इच्छाअनिच्छा को अपने कंट्रोल में कर लिया. पुरुष और स्त्री अपने धर्म के दायरे से निकल कर कहीं दूसरे के धर्म में प्रवेश न कर जाएं, किसी अन्य के धर्म के व्यक्ति को अपना जीवनसाथी न बना लें, इस पर नियंत्रण करने के लिए बाल विवाह की प्रथा शुरू की गई. नवजात बच्चों तक की शादियां करवाई जाने लगीं ताकि जवान होने के बाद वे अपनी पसंद या रुचि के अनुसार अपना प्रेम न चुन सकें.

परदा प्रथा की जड़ में धर्म

क्या आप ने कभी शेरनी को मुंह छिपा कर भ्रमण करते देखा है या कबूतरी को परदा करते पाया है? अगर प्रकृति की मंशा यह होती कि मादा जाति पुरुष से अपना मुंह छिपा कर रखे तो वह इस के लिए सभी जीवों में कुछ न कुछ इंतजाम जरूर करती. चाहे पत्तों का आंचल क्यों न होता, पंखों का मुखौटा क्यों न होता, मादा पक्षी उसी से अपना मुंह छिपा कर रखतीं. मगर ऐसा तो कहीं नजर नहीं आता. ऐसा सिर्फ इंसानी दुनिया में ही दिखता है कि औरत परदा करने को बाध्य है. मुंह और शरीर को छिपाए रखने के लिए मजबूर की जाती है. क्यों? क्योंकि धर्माचार्यों ने कहा कि अगर औरत पुरुष से परदा नहीं करती तो यह पाप है, वह जहन्नुम में जाएगी.

हाल ही में एक घटना भारत के केंद्र शासित राज्य अंडमान में घटी. अंडमान के सैंटिनल द्वीप में 60 हजार साल पुरानी एक आदिम जाति निवास करती है. प्रकृति के नियमों को मानते हुए वहां स्त्रीपुरुष आज भी वैसा ही जीवन जीते हैं जैसा कि इस धरती के अन्य जीव जीते हैं. वहां धर्म, ईश्वर, धर्मांधता, वस्त्र, आभूषण जैसी चीजों का कोई स्थान नहीं है. वहां स्त्रीपुरुष समान रूप से बिना वस्त्रों के जंगलों में विचरण करते हैं. शिकार कर के अपना भोजन पाते हैं और स्वच्छंद रूप से समागम कर के अपने जीवन को आगे बढ़ाते हैं.

वहां स्त्री और पुरुष समान हैं. कोई बड़ा या कोईर् छोटा नहीं है. इस द्वीप पर टूरिस्टों के प्रवेश पर प्रतिबंध है. मगर ईसाई धर्म के एक अनुयायी ने उन के जीवन में घुसपैठ करने की कोशिश की. उस का मकसद था कि वह ईसाई धर्म का प्रचारप्रसार उन के बीच कर सके. उन्हें अपनी तर्कहीन बातों में उलझा कर उन के भीतर ईश्वर और धर्म का डर बैठा सके.

उन्हें ललचाने के लिए वह अपने साथ फुटबौल, मैडिकल किट वगैरह भी ले गया, जैसा कि आमतौर पर ईसाई मिशनरियां अपने धर्म को फैलाने के लिए किया करती हैं. जौन ऐलन चाऊ नामक इस अमेरिकी नागरिक ने इस द्वीप पर पहुंच कर आदिवासी लोगों से संपर्क साधा, उन्हें अपनी बातों को समझाने की कोशिश की, मगर वह आदिम प्रजाति उस की घिनौनी मंशा को भांप गई. जौन ऐलन चाऊ को घेर कर तीरों से छलनी कर दिया गया.

इस एक घटना से स्पष्ट है कि प्रकृति के नियमों को समझने वाले आज भी उन नियमों में फेरबदल नहीं चाहते हैं, मगर धर्म और ईश्वर जैसी अतार्किक चीजों को गढ़ने वाले प्रकृति के नियमों की धज्जियां उड़ा चुके हैं, उन का मूल स्वरूप इस कदर बिगाड़ चुका है कि फिर से दुरुस्त होने के लिए किसी प्रलय का इंतजार ही करना होगा.

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मनुष्य में बुद्धि का विकास धरती के अन्य जीवों की तुलना में काफी अधिक है, परंतु इस का इस्तेमाल उस ने विध्वंसकारी गतिविधियों में अधिक किया गया है. इस के विपरीत अगर स्त्रीपुरुष संबंध के विषय में प्रकृति के नियमों को और गहराई से समझने की कोशिश की जाती तो परिणाम ज्यादा बेहतर होते.

ये शहर फ्रीजर से भी ठंडा है!

आज आपको देश के सबसे ठंडा शहर के बारे में बताते हैं. जो फ्रीजर से भी ठडा है.  जी हां ये शहर रूस  के साइबेरिया में एक शहर है नौरिल्स्क इसे दुनिया का सबसे ठंडा शहर कहा जाता है. खबरों  के मुताबिक यहां के रहने वालों को साल के आखिरी और पहले दो महीने यानि दिसंबर-जनवरी में सूरज का नजारा नहीं होता.

उन दिनों  कई लोग डिप्रेशन जैसी बीमारियों के शिकार भी हो जाते हैं जिसे  पोलर नाइट सिंड्रोम के नाम से जाना जाता है. यहां पर 365 में से 270 दिन बर्फ जमी रहती है और कड़कती ठंड के साथ तापमान माइनस 55 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. वैसे सामान्य दिनों में भी इस शहर का औसत तापमान माइनस 10 डिग्री सेल्सियस के आसपास ही रहता है. नौरिल्स्क की आबादी करीब 1 लाख 75 हजार है.

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हांलाकि कुछ लोगों का दावा है कि साइबेरिया में ही स्थित याकुत्स शहर ज्यादा ठंडा है, पर इस स्थान पर ठंड के दिनों में तापमान माइनस 41 डिग्री सेल्सियस तक ही रिकाौर्ड किया गया है और गर्मियों में भी नौरिल्स्क की तुलना में यहां का तापमान ज्यादा दर्ज किया गया है. कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार नौरिल्स्क में ना सिर्फ 270 दिन में बर्फ जमी रहती है बल्कि हर तीसरे दिन यहां लोगों को बर्फीले तूफान का सामना भी करना पड़ता है.

ये शहर राजधानी मौस्को से लगभग 2900 किमी दूर स्थित है. ये स्थान बाकी देश से इस कदर कटा हुआ है कि आने के लिए सड़क भी नहीं है, केवल विमान या नाव से ही यहां पहुंचा जा सकता है. यही वजह है यहां के रहने वाले लोग अपने ही देश के बाकी क्षेत्र को मेनलैंड कहकर बुलाते हैं.

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अपने ब्वायफ्रेंड की 5 बातें कभी नहीं भूलती लड़कियां

आपने अक्सर कई लड़कियों को देखा होगा कि वे अकेले में कुछ सोचते हुए मुस्कुराती रहती हैं, लेकिन क्या आप इसके पीछे का कारण जानते हैं. इसका कारण होता है उनका ब्वॉयफ्रेंड, जिसकी यादों में वे खोई हुई रहती हैं और उनकी बातें याद आते ही लड़कियों के चहरे पर मुस्कुराहट आ जाती हैं.

आज हम आपको ब्वायफ्रेंड की उन बातों और हरकतों के बारे में बताने जा रहे हैं जो लड़कियों को श्रम से लाल कर देती हैं और उनके चहरे पर मुस्कुराहट ले आती हैं. तो आइये जानते हैं उन बातों के बारे में.

हग

लड़कियां अक्सर अपनी पार्टनर से मिली पहली हग या किस को कभी नहीं भूल पाती. यह एक ऐसा पल होती है जिसे लड़कियां जिंदगीभर याद रखती हैं. जब वह उस समय को याद करती है तो उनका चेहरे पर एक अलग ही खुशी और लाली होती है.

प्रपोज

लड़कियां उस पल को भी कभी भूला नहीं पाती जब उसका पार्टनर उसे अपनी जिंदगी में आने के लिए प्रपोज करता है. शादी के बाद जब भी कोई लड़की अकेले में इस बारे में सोचती हैं तो वह शर्म से लाल हो जाती है. पहली बार ‘आई लव यू’ कहना ऐसा लगता है मानो कल की ही बात हो.

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हाथ पकड़ना

सड़क पर चलते या अचनाक जब ब्वॉयफ्रेंड अपनी गर्लफ्रेंड के हाथ को पकड़ लेता है तो उस समय ऐसा लगता है कि आप भी किसी के बहुत महत्वपूर्ण हैं. अपने पार्टनर को पहली बार स्पर्श करने का वह अहसास आज भी आपके चेहरे को शर्म से लाल और दिल को फिर से बच्चा बना देगा.

जब कोई ब्वायफ्रेंड के बारे में पूछे

जब भी लड़की से उसके पार्टनर के बारे में पूछा जाता है तो वह शर्म से लाल हो जाती है. वह कभी भी शर्माएं बिना अपने ब्वायफ्रेंड के बारे में नहीं बता पाती. क्योंकि उसको समझ ही नहीं आता की उसको क्या बोलना चाहिए.

शादी के लिए प्रपोज करना

हर लड़की का यह सपना होता है कि उसके सपनों का राजकुमार उसको शादी के लिए प्रपोज करें. जब वह समय आता है तो शर्म के मारे लाल हो जाती है. पार्टनर द्वारा शादी के लिए प्रपोज किए जाने वाले पल को लड़कियां कभी भूल नहीं पाती. इन पल की यादें उनके दिमाग में हमेशा ताजी रहती है माने जैसे कल की ही बात हो.

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मैं अपने दोस्त की पत्नी के साथ फिजिकल रिलेशन में हूं और हमारा एक बेटा भी है. मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 22 साल का हूं. मेरा 25 साल की दोस्त की बीवी से 9 सालों से पति पत्नी जैसा ही संबंध है. मैं उस से शादी करना चाहता हूं, पर वह अपने परिवार को धोखा नहीं देना चाहती. हमारा एक बेटा भी है. मैं क्या करूं?

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जवाब

दोस्त की पत्नी को पत्नी की तरह इस्तेमाल कर के आप ने खूब दोस्ती निभाई है. वह औरत आप से शादी कर के पति को धोखा नहीं देना चाहती, तो आप के साथ सो कर वह क्या कर रही है? बेटा आप का ही है, यह आप कैसे कह सकते हैं? अब शादी का नाटक करने की क्या जरूरत है? जिस दिन पकड़े गए, तो शामत आ जाएगी.

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फिल्म ‘‘मरजावां’’ का ट्रेलर लौंच

मोहित सूरी की फिल्म ‘‘एक विलेन’’ के पांच साल बाद अब मिलाप झवेरी निर्देशित फिल्म ‘‘मरजावां’’में रितेश देशमुख और सिद्धार्थ मल्होत्रा एक साथ आमने सामने हैं. फिल्म‘‘मरजावां’’ का ट्रेलर गुरुवार, 26 सितंबर को मुंबई के ‘‘पीवीआर ईएक्स’’ मल्टीप्लैक्स में लौंच किया गया. ट्रेलर पूर्ण रूपेण एक्शन ड्रामा और भारी भरकम संवादों वाली फिल्म होने का अहसास दिलाता है.

तीन मिनट 15 सेकंड का ट्रेलर एक्शन दृश्यों और कुछ उत्तेजक संवादों से पूर्ण है. फिल्म में अपने प्यार जोया (तारा सुतारिया) के लिए लड़ने के लिए रघु को हिंसक अवतार लेना पड़ता है. और उसकी लड़ाई अपने पूर्व बौस विष्णु से है. ‘‘मारजावां’ में  सिद्धार्थ मल्होत्रा, रघु के किरदार में सख्त और देहाती लुक में नजर आएंगे. जबकि विष्णु के किरदार में रितेश देशमुख बौने कद के खलनायक का किरदार में नजर आएंगे.

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फिल्म की कहानी की ओर संकेत करते हुए रितेश देशमुख कहते  है, ‘‘एक तीन फीट के कद के बौने विष्णु का एक मुस्लिम महिला जोया (तारा सुतारिया) के प्यार में पड़ने और अपने गिरोह से बाहर निकलने के बाद रघु अपने बौस से दूर चला जाता है. पर विष्णु, रघु को बख्शने के मूड़ में नही है.’’

‘मरजावां’ के साथ पहली बार सिल्वर स्क्रीन पर सिद्धार्थ मल्होत्रा और तारा सुतारिया की जोड़ी नजर आएगी. ट्रेलर में इनके बीच की केमिस्ट्री लाजवाब है. ट्रेलर में रकुल प्रीत तो क्षणभंगुर हैं. ट्रेलर के अंत में जोया को रघु की बंदूक से गोली मारते हुए देख सकते हैं. ट्रेलर में रावण के पौराणिक संदर्भ हैं. जिससे यह बात उभरती है कि फिल्म की कहानी रघु की अच्छाई  और विष्णु की बुराई के बीच लड़ाई है.

फिल्म ‘मरजावां’ में बौने कद के खतरनाक विेलेन का चुनौती पूर्ण किरदार निभाने वाले अभिनेता  रितेश देखमुख ने इस अवसर पर कहा कि वह हर तरह की भूमिकाओं के साथ प्रयोग करने के लिए तैयार हैं. रितेश देशमुख ने कहा- “फिल्म के लेखक व निर्देशक मिलाप झवेरी के संग मेरा लंबा संबंध है. उनके लेखन के ही चलते मेरे करियर में बदलाव होते रहे हैं. ‘मस्ती’, ‘एक विलेन’ और अब ‘मारजावां’. बहुत कम लोगों को ऐसा मौका मिलता है. इसलिए मैं मिलाप को धन्यवाद देना चाहता हूं.”

जब उनसे एक पत्रकार ने सवाल किया कि,‘क्या वह कमल हासन के ‘अप्पू राजा’से प्रेरित थे. क्या ‘अप्पू राजा’’ से कोई संदर्भ लेकर किरदार को निभाया है? तो रितेश ने कहा- ‘‘कमल हासन साहब का प्रदर्शन, महानता किसी भी तकनीक से परे है. जब हम ‘मरजांवां’ कर रहे थे, तो निश्चित रूप से, मैं अन्य अभिनेताओं को देख कर आश्चर्य चकित था कि उन्होंने यह कैसे किया? ’लेकिन सौभाग्य से, तकनीकी हमारी खामियां (दोश) दूर करने में मदद करती है. मैंने सिर्फ पांच बार एक शौट किया. यह मुश्किल नहीं था.”

‘‘मस्ती’’ फेम अभिनेता से एक पत्रकार ने पूछा था कि जब हिंदी फिल्मों में बौने कलाकार मौजूद हैं, तो वह ऐसे चुनौतीपूर्ण किरदार करने को कैसे तैयार हुए? इस पर रितेश देशमुख ने कहा, “मैं आपके दृष्टिकोण का सम्मान करता हूं. एक अभिनेता के रूप में जब किसी ने मुझसे इस भूमिका के साथ संपर्क किया है, तो मेरा काम केवल यह देखना है कि क्या मैं इसे परदे पर साकार कर पाऊंगा या नहीं. और यदि निर्देशकों और निर्माताओं को यह विश्वास है कि मैं उसे निभा सकता हूं, तो एक अभिनेता के रूप में, मैं कुछ भी खेलने के लिए तैयार हूं, यह एक खड़ी चुनौती वाला व्यक्ति, बूढ़ा व्यक्ति,युवा व्यक्ति या एक महिला भी है. मैंने सब कुछ निभाया है. एक अभिनेता के रूप में, मैं कुछ भी करने के लिए खुला हूं.”

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निर्देशक मिलाप झवेरी ने इस पर आगे कहा- ‘‘मेरी राय में आपका सवाल वाजिब है. अगर श्री अनुपम खेर, जो इतने महान अभिनेता हैं, ने ‘सारांश’’ में खुद की उम्र से  बड़े किरदार को नहीं निभाया होता,  तो शायद आज हम अनुपम खेर से परिचित न होते. इसी तरह बहुत सारे महान अभिनेता विभिन्न भूमिकाएं निभाते हैं. ड्रीम गर्ल में आयुष्मान ने एक ऐसे व्यक्ति का किरदार निभाया, जिसे वह सभी लड़की समझते हैं. मुझे लगता है कि आखिरकार सभी को अभिनय करने और प्रदर्शन करने का अवसर मिलना चाहिए, यह भी उतना ही उचित है कि अभिनेताओं को प्रयोग करने का मौका मिले.’’

34 वर्षीय अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा ने इस अवसर पर कहा- “जब मैंने निर्देशक मिलाप जवेरी से पटकथा सुना, तो उनके संवाद पहली चीज थे, जिसने मुझे उत्साहित किया. मुझे लगा कि मुझे यह फिल्म करना चाहिए. मुझे बड़े एक्शन हीरो को डायलौग बोलते हुए देख हीरो बनने की प्रेरणा मिली. मेरे करियर में यह पहली बार है जब मैं एक नायक की भूमिका निभा रहा हूं और जिस तरह प्रस्तुत किया जा रहा हूं, सभी मिलाप और पूरी टीम को धन्यवाद देता हूं.”

उन्होंने आगे कहा, ‘‘मिलाप का मानना है कि सिनेमा हम सब देखते हुए बड़े हुए हैं.एक नायक एक नायक की तरह प्रवेश करेगा, एक्शन और संवाद-बाजी करेगा. मैं इस सिनेमा की तरफ बढ़ा. कई सालों में पहली बार मुझे इस तरह से नायक की भूमिका निभाने का मौका मिला.’’

ट्रेलर लौन्च में, सिद्धार्थ मल्होत्रा से यह भी पूछा गया कि क्या यह अफवाहें सच हैं कि वह अपने करियर का विश्लेशण करने के लिए एक ब्रेक लेने की योजना बना रहे हैं, क्योंकि उनकी पिछली कुछ फिल्में बौक्स औफिस पर बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई हैं?  इस पर अभिनेता ने कहा,“यह बिल्कुल सच नहीं है. मैंने बिना कुछ भी विश्लेशण किए इस फिल्म में कूद गया. हर अभिनेता फिल्म साइन करने से पहले सोचता है.’’

ट्रेलर लौन्च के अवसर पर रितेश देशमुख ने कहा- ‘‘सबसे कठिन हिस्सा सिद्धार्थ के साथ बातचीत करने का रहा, क्योंकि मेरी दृष्टि उसकी कमर से नीचे थी.‘‘

लेखक व निर्देशक मिलाप झवेरी की फिल्म‘‘मरजावां’’ का निर्माण मोनिशा आडवाणी, मधु भोजवानी और निखिल आडवाणी के साथ भूशण कुमार, दिव्या खोसला कुमार, और कृष्ण कुमार द्वारा किया गया है. यह 8 नवंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होगी.

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नृत्य निर्देशक बास्को मार्टिस की बतौर निर्देशक पहली फिल्म में होंगे आदित्य सील

मशहूर नृत्य निर्देशक और टीवी के कई नृत्य प्रधान रियालिटी शो के जज बास्को लेस्ली मार्टिस अब ‘जी स्टूडियो’’ के साथ मिलकर एक हौरर और नृत्य प्रधान कौमेडी फिल्म का निर्माण व निर्देशन करने जा रहे हैं. बतौर फीचर फिल्म निर्देशक यह उनकी पहली फिल्म होगी. जिसमें मुख्य भूमिका निभाने के लिए उन्होंने आदित्य सील को अनुबंधित किया है. फिल्म का नाम अभी तक तय नही है. फिल्म ‘‘स्टूडेंट औफ द ईयर 2 ’’ अभिनय कर प्रशंसा बटोर चुके आदित्य सील इस फिल्म में एक नए अवतार में नजर आएंगे.

खुद निर्देशक बौस्को लेस्ली मार्टिस कहते हैं- ‘‘मैं एक नृत्य-आधारित हौरर-कौमेडी फिल्म लेकर आने जा रहा हूं. यह कुछ जादुई बनाने के लिए मंच निर्धारित करती है. हमने नायक के चरित्र के लिए आदित्य सील को चुना है. आदित्य सील एक बहुमुखी प्रतिभाशाली कलाकार हैं, जो कुशल नर्तक, अभिनेता और एक्शन में माहिर हैं.उनकी अभिनय क्षमता का अब तक फिल्मों में पूरी तरह से नहीं किया गया है. वह हमारी फिल्म के नायक के चरित्र में पूरी तरह से फिट बैठते हैं. इस चरित्र के साथ उनका व्यक्तित्व अच्छी तरह से मिश्रित होगा. फिलहाल हम पटकथा को अंतिम रूप दे रहे हैं और अक्टूबर तक प्रि-प्रोडक्शन का काम शुरू कर देंगे. हम इसका फिल्मांकन 2020 की शुरूआत में करने की सोच रहे हैं.’’

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जी स्टूडियोज के सीईओ, शारिक पटेल इस गंठजोड़ की चर्चा करते हुए कहते हैं- ‘‘हम बौस्को के साथ साझेदारी करने को लेकर भी खुश हैं, वह इस फिल्म का निर्देशन करेंगे. वैसे वह हमारे जी टीवी के प्रतिष्ठित शो ‘डांस इंडिया डांस’ के जज भी हैं. हम आदित्य जैसे युवा, प्रतिभाशाली कलाकार के साथ काम करने को लेकर खुश हैं. हम दावा करते हैं कि इससे पहले इस शैली की फिल्म नही बनी है, जिसे हम भारतीय दर्शकों के लिए ला रहे हैं. यह फिल्म विशेष रूप से बच्चों, पूर्व-किशोरों और किशोरावस्था से गुजर रहे लोगों को ध्यान में रखकर लिखी गयी है. फिल्म को बड़े पैमाने पर एक दिलचस्प कलाकारों की टुकड़ी के साथ रखा जाएगा.”

फिल्म के अन्य कलाकारों के नाम की घोषणा बौस्को जल्द करने वाले हैं.वह कहते हैं-‘‘हमें रियालिटी शो में कुछ प्रतिभाएं मिली है,जिनके कौशल ने हमें प्रभावित किया है.’’

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