सरकारें खेती और खेती से जुड़े दूसरे कामों को भले ही उद्योगों का दर्जा दे पाने में नाकाम रही हों, लेकिन जिन किसानों ने खेती को उद्योग के नजरिए से अपनी आजीविका का साधन बनाने की कोशिश की है, उस में उन्होंने निश्चित ही कामयाबी पाई है. उस कामयाबी के पीछे कड़ी मेहनत, खेती के प्रति उन का समर्पण रहा है.

ऐसे किसान उन्नत खाद, बीज व उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल कर के दूसरे किसानों के लिए नजीर पेश करते हैं. ऐसे ही एक युवा किसान हैं, अशोक कुमार त्रिपाठी, जो बस्ती जनपद हर्रैया नगर पंचायत के अंबेडकर नगर वार्ड के रहने वाले?हैं. उन के 20 बीघा खेत में केले की उन्नत प्रजातियां लहलहा रही हैं. यह सब है, खेती में किए गए उन के द्वारा उन्नत प्रयोगों के चलते संभव हुआ.

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अनुपजाऊ जमीन पर खेती

अशोक कुमार त्रिपाठी द्वारा केले की खेती को नकदी फसल लिए जाने के पीछे की वजह उन की अनुपजाऊ जमीन रही है, क्योंकि उन के 20 बीघा खेत, जो पूरी तरह से बलुई मिट्टी से युक्त हैं, पर खरीफ की फसल लेना संभव नहीं रहता था. ऐसी दशा में वे सालभर में बड़ी मुश्किल से महज एक बार ही पारंपरिक फसलें ले पाते थे, जबकि बाकी समय खेत खाली पड़ा रहता था.

चूंकि अशोक कुमार त्रिपाठी के इन खेतों की मिट्टी पूरी तरह से बलुई थी, इसलिए फसल में लागत भी ज्यादा आती थी. वे अपने खेतों से कम लागत में सालभर की फसल लेने के प्रयास में लगे रहते?थे. इस के लिए वे अकसर तमाम कृषि संस्थानों व कृषि विशेषज्ञों से संपर्क कर फसलों की जानकारी लेते रहते थे. इसी दौरान उन्हें किसी ने बताया कि अगर इस जमीन पर केले की उन्नतशील प्रजातियों की खेती की जाए तो कम लागत में भारी मुनाफा लिया जा सकता है.

किसान अशोक कुमार त्रिपाठी के मन में यह बात बैठ गई और बलुई मिट्टी वाले 20 बीघा खेत में केले की खेती शुरू किए जाने का पक्का मन बना लिया. इस के लिए उन्होंने जरूरी जानकारी हासिल कर 20 बीघा खेत में महाराष्ट्र के जलगांव से केले की जी 9 प्रजाति के 6,200 पौधों को रोपने के लिए मंगाया.

अपने खेत की अच्छी तरह जुताई करा कर उन्होंने उस में सड़ी हुई गोबर की खाद व फसल में कीटों और दीमक से पौधों को बचाव के लिए कीटनाशक को मिट्टी में मिला कर खेत की तैयारी की.

संतुलित खादउर्वरक का इस्तेमाल

किसान अशोक कुमार त्रिपाठी ने केले की खेती में मिट्टी जांच के आधार पर संस्तुत मात्रा में खादउर्वरक का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. नतीजा यह रहा कि उन की फसल का विकास सही ढंग से हुआ. साथ ही, खाद के अंधाधुंध प्रयोग में कमी आने से खाद व उर्वरक के ऊपर आने वाले खर्च से भी नजात मिल गई.

अशोक कुमार त्रिपाठी का कहना है कि वे अपनी फसल में उतनी ही खादउर्वरक का प्रयोग करते हैं, जितनी फसल को जरूरत होती है. इस के लिए वे तकनीकी प्रबंधन पर खासा ध्यान देते हैं. फसल में डीएपी, यूरिया, पोटाश, सिंगल सुपर फास्फेट, माइक्रोन्यूट्रिएंस व सागरिका का प्रयोग करते हैं. वे एक पौधे में एक बार में 250 ग्राम खादउर्वरक का इस्तेमाल करते हैं.

अशोक कुमार त्रिपाठी बताते हैं कि पूरी फसल के दौरान कुल 6 बार उर्वरक व खाद देने की जरूरत होती है. फल में खादबीज के संतुलित प्रयोग से उन के केले की खेती में भरपूर फसल आई है.

लाइलाज बीमारी पर नियंत्रण

किसान अशोक कुमार त्रिपाठी एक समय बहुत घबरा गए?थे?क्योंकि उन के द्वारा ली गई केले की फसल में एक ऐसी बीमारी लग गई थी जिस से सिर्फ वही नहीं, बल्कि जिले के बाकी किसान भी परेशान थे, क्योंकि इन के केले की फसल सही देखभाल के चलते बड़ी तेजी से विकास कर रही?थी.

बीते ठंड के मौसम में अशोक कुमार त्रिपाठी के केले की पौधों की पत्तियां गल कर नष्ट होने लगीं, जिस से उन्हें लगा कि कहीं उन की पूरी फसल इस रोग से खराब न हो जाए. इस के लिए उन्होंने कई दवाओं का प्रयोग किया, लेकिन उन की फसल लगातार खराब होती जा रही थी. ऐसे में उन्हें लाखों रुपए डूबने का डर भी सता रहा था.

फिर भी अशोक कुमार त्रिपाठी ने हार नहीं मानी और तमाम संस्थानों और कृषि विशेषज्ञों के बताए अनुसार केले की फसल में कौपर औक्सीक्लोराइड नामक दवा का प्रयोग शुरू किया. इस का असर यह रहा कि उन की फसल में लगे रोग का प्रभाव धीरेधीरे कम होना शुरू हो गया. उन की सक्रियता और फसल में समय से दवाओं के चलते केले में आई बीमारी से जो पौधे खराब होने लगे थे, वह सही होने लगे और फिर धीरेधीरे उन की फसल को पूरी तरह से बीमारी से नजात मिल गई.

सही प्रबंधन से आई लागत में कमी

किसान अशोक कुमार त्रिपाठी ने केले की फसल को पूरी तरह से आधुनिक मौडल को आधार बना कर उगाया. नतीजा यह रहा है कि दूसरे किसानों की अपेक्षा उन के उत्पादन के हिसाब से लागत में काफी कमी आई है.

उन्होंने बताया कि अगर छोटे किसान केले की खेती को उन्नत तरीकों के आधार पर करें तो उन्हें दूसरी पारंपरिक खेती की अपेक्षा ज्यादा मुनाफा हासिल होगा. इस के आधार पर किसान कम समय में अपनी माली हालत को न केवल सुधार सकते हैं, बल्कि अपनी शोहरत में भी काफी इजाफा कर सकते?हैं.

उन के मुताबिक, एक बीघा खेत में 25,000 से 30,000 रुपए की लागत आती है. फसल अच्छी  होने पर 1 लाख रुपए की खालिस आमदनी होने की संभावना रहती है. उन्होंने बताया कि अगर फसल की बढ़वार अच्छी है, तो केले की घार का औसत वजन 25 किलोग्राम से 40 किलोग्राम के बीच होता है.

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जंगली जानवरों से बचाएं फसल

किसान अशोक कुमार त्रिपाठी द्वारा लगाए गए केले की फसल को जंगली सूअर, साही और नीलगाय ने नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया तो उन्होंने फसल की सुरक्षा को ले कर तमाम उपाय अपनाए लेकिन इन जानवरों के चलते उन की फसल को नुकसान पहुंच रहा था. उन्होंने इस से बचाव के लिए अपने खेतों के चारों तरफ सुरक्षा बाड़ लगाने का निश्चय किया और आरसीसी के खंभे व कंटीले तार वाली जाली से उन्होंने खेतों की फैंसिंग कराई जिस से उन के केले की फसल पूरी तरह से महफूज है.

अशोक कुमार त्रिपाठी से सीख ले कर अगर दूसरे किसान भी ऐसी ही नकदी फसलों की खेती वैज्ञानिक तरीके से कृषि विशेषज्ञों द्वारा सुझाए अनुसार करें तो न केवल उन की खेती की लागत में कमी आएगी, बल्कि उन्हें मार्केटिंग व कीमतें तय करने की समस्या से नजात मिलेगी, क्योंकि नकदी फसलों की खरीदारी अकसर आढ़ती और लोकल दुकानदार खेतों से ही करते हैं.

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