छत्तीसगढ़ की सुनीता ने शायद ही कभी सोचा हो कि उस के जीवन में ऐसा कोई मोड़ आएगा जब वह अपने ही हाथों से अपने उसी प्रेमी का कत्ल करेगी जिस के साथ वह घर से भाग रही है. 13 साल की सुनीता ने प्रेमी राकेश के साथ घर छोड़ भागने का फैसला तो कर लिया था मगर उसे यह नहीं मालूम था कि यह कोई परियों की कहानी नहीं है जहां उस का राजकुमार उसे ढेरों खुशियां देगा और उस का जीवन सालों खुशी से बीतेगा.

15 वर्षों पहले घर से भागी सुनीता दिल्ली में 55 वर्षीय राकेश के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रह रही थी. सुनीता और राकेश का एक 8 वर्षीय बेटा है. दोनों ने शादी नहीं की, परंतु जीवन एक विवाहित जोड़े की ही तरह बसर कर रहे थे. दोनों को स्वरूपनगर में रहते हुए 6 वर्ष हो गए थे. पड़ोसियों के अनुसार, दोनों का रिश्ता कुछ अच्छा नहीं था. राकेश अकसर ही सुनीता से मारपीट करता, गालियां देता, उसे घर से बाहर निकलने से रोकता, यहां तक कि उसे सलवार सूट पहनने तक की इजाजत नहीं थी.

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फरवरी से ही पड़ोसियों ने सुनीता के व्यवहार में बदलाव देखा. वह अब खुश रहने लगी थी, सलवार सूट पहनती, शादीपार्टियों में जाती दिखाई देती. राकेश किसी को दिखाई नहीं देता था और सुनीता से पूछने पर वह यही कहती कि वह कहीं गया हुआ है.

20 मार्च के दिन जब घर के मालिक किराया लेने आए तो घर के पीछे बरामदे में ईंटे और सीमेंट की पक्की जमीन नजर आई. पूछने पर सुनीता झूठ बोलने लगी. मामले का पता लगाने के लिए पुलिस आई और खुदाई में सिरकटी लाश निकली.

दरअसल, 11 फरवरी को राकेश जब घर आया तो सुनीता ने उसे लगभग 2 दर्जन नींद की गोलियां दे दीं. उस ने अपने बेटे को घर से बाहर खेलने के लिए भेज दिया. पहले उस ने राकेश का गला काटा और फिर उस के हाथों व पैरों के टुकड़े कर थैलियों में भर दिए. उस ने राकेश के सिरकटे धड़ को घर के पीछे सुबह होने से पहले दफना दिया.

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सुनीता उन में से थी जो घर से भाग जाते हैं. भारत में हर वर्ष हजारों बच्चे घर छोड़ कर भागते हैं. कुछ परीक्षा में आए कम नंबरों के कारण मातापिता की डांट से बचने के लिए, कुछ घर में होने वाले मानसिक व शारीरिक शोषण की वजह से, कुछ प्रेमी संग अच्छे जीवन की तलाश में तो कुछ अपने सपने पूरे करने के लिए घर छोड़ कर चले जाते हैं. बच्चों की मंजिल, उन का मकसद उन के लिए बहुत साफ होता है. परंतु क्या उन्हें उन की मंजिल मिल पाती है?

घर से भागे बच्चे अपने भविष्य को साकार करने निकलते हैं परंतु उन में से ज्यादातर अपने भविष्य से खिलवाड़ कर बैठते हैं. ऐसे बच्चों में ज्यादातर 11 से 17 साल के किशोर होते हैं, जो न तो इतने सक्षम होते हैं कि जीवन का बोझ उठा सकें और न इतने समझदार कि अपने लिए सही राह चुन सकें. ऐसे बच्चों में से ज्यादातर या तो किसी तरह के अपराध का शिकार हो जाते हैं या फिर खुद अपराधी बन बैठते हैं.

माता पिता का कठोर व्यवहार

भारत में भागे हुए बच्चों में 70 फीसदी वे होते हैं जो मातापिता से कम नंबर लाने पर डांट के डर से घर छोड़ देते हैं. मातापिता द्वारा बच्चों से कई कारणों से कठोर व्यवहार किया जाता है. कभी बच्चे के भविष्य को साकार करने के लिए, तो कभी बच्चों के बिगड़ने के डर से. कारण जो भी हो, बच्चों के मन में घर को जेल समझने जैसे खयाल आने लगते हैं. ऐसे में जेलरूपी घर से निकलना ही उन की मंजिल होती है.

12 साल के इबरार को सड़कों की धूल अपनी मां की मार खाने से ज्यादा बेहतर लगी. वह अपनी मां की मार से इतना परेशान हो चुका था कि उस ने छोटी सी उम्र में इतना बड़ा फैसला लिया. उस की मां अकसर ही उसे पीटा करती थी, कभी पढ़ाई न करने पर तो कभी उधम मचाने पर. पापा सब देखते रहते, पर कुछ करते नहीं. बड़े बहनभाई तो उस से ऐसा व्यवहार करते कि जैसे वह पराया हो.

एक दिन तंग आ कर इबरार घर से भाग गया. तकरीबन 60 लोग उसे ढूंढ़ने में लगे रहे और तब जा कर इबरार को वापस घर लाया गया. बिना पैसों और किसी बड़े के सहारे इबरार का भविष्य कैसा होता, इस की कल्पना करना मुश्किल नहीं है.

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झगड़ा और गुस्सा

अकसर किशोर मातापिता से झगड़े के बाद इतने गुस्से में आ जाते हैं कि वे घर से बेहद दूर चले जाने के लिए उत्तेजित हो उठते हैं. और जरूरी नहीं कि झगड़ा मातापिता से ही हो, झगड़ा भाईबहन

से होने पर जब मातापिता की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं होती, तब भी वे आगबबूला हो कर ऐसे कदम उठा लेते हैं.

घटना महाराष्ट्र के पनवेल की है जहां 60 वर्षीय गणेश कृष्णा शेट्टी ने एक अकेली 16 वर्षीय लड़की को देख उसे अपने जाल में फंसा लिया. लड़की घर देरी से पहुंची तो बड़ी बहन ने उसे एक थप्पड़ जड़ दिया. क्रोध और आक्रोश में वह घर से भाग पनवेल रेलवे स्टेशन पर जा कर बैठ गई. उसे वहां अकेला देख शेट्टी उस के पास जा कर बैठ गया और सांत्वना देने लगा.

शेट्टी ने लड़की से कहा कि वह उसे एक क्लिनिक में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी दिला देगा और रहने का बंदोबस्त भी करा देगा. लड़की उस की बात मान कर उस के साथ चली गई. वह उसे एक लौंज में ले गया और वहां उस का बलात्कार किया. बलात्कार के बाद वह उसे वापस पनवेल ले गया और उसे एक बैंच पर बैठा कर वहां से तब तक उठ कर न जाने को कहा जब तक वह वापस नहीं आ जाता. लड़की को अकेला देख एक पुलिस कर्मचारी ने उस से पूछताछ की और तब पूरा मामला सामने आया.

प्रेम के चलते

किशोरों का प्रेम के चलते घर छोड़ कर भागना नई बात नहीं है. किशोरों के प्रेम के चलते घर से भागने का सब से बड़ा कारण तो यही है कि उन्हें उन के प्रेम संबंधों के लिए न तो घर से मंजूरी मिलती है और न ही यह संबंध किसी दृष्टि से ठीक ही होते हैं. आखिर मातापिता ऐसे संबंधों के लिए हामी भी क्यों भरेंगे जिन में उन के बच्चे छोटी उम्र में बंधना चाहते हों.

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22 वर्षीय दीपक कुमार और 17 वर्षीया सुनीता घर से भागने के एक महीने बाद ही आत्महत्या करने को मजबूर हो गए. मुजफ्फरनगर के रहने वाले इन दोनों प्रेमियों के संबंधों पर मातापिता ने हामी नहीं भरी, इसलिए ये भाग कर मेरठ आ गए. एक महीने यहां से वहां भटकने और बचेकुचे पैसे खत्म हो जाने पर दोनों जमीनी हकीकत से वाकिफ हुए. दोनों ने कोई रास्ता न देखते हुए जहर खा कर आत्महत्या कर ली.

अपने मनपसंद सितारों से मिलने, हीरोहीरोइन बनने और अपने सपनों को पूरा करने के लिए बच्चे अकसर घर से भागने का फैसला ले लेते हैं. दिल्ली के सुलतानपुरी में रहने वाले अमन, सत्यम और मुरारी भी घर से इसी चाह में भाग निकले कि मुंबई पहुंच कर बड़े हीरो बनेंगे. तीनों बच्चों की उम्र 14 वर्ष से कम थी. तीनों के सपनों पर तब पानी फिर गया जब मुंबई की जगह वे जिंद पहुंच गए. वहां पुलिस ने तीनों बच्चों को हिरासत में लिया और पूछने पर तीनों ने बताया कि उन का पढ़ाई में मन नहीं लगता और यही वजह है कि वे मुंबई जा कर ऐक्टर बनना चाहते थे. पुलिस ने बच्चों के घर का पता लगा उन के मातापिता को उन्हें सौंप दिया.

जरूरी है समझना

इन सभी कारणों को देख कर साफ है कि किस तरह किशोर अपने जीवन को हाथों पर रख कर घर से भागने का फैसला कर लेते हैं और खुद को ऐसे दलदल में फंसा लेते हैं जहां से निकलना लगभग नामुमकिन हो जाता है. मातापिता सख्त हैं तो उन्हें समझना चाहिए कि जिस बच्चे के लिए वे यह सब कर रहे हैं, यदि वह ही उन के पास नहीं रहेगा तो उन की चिंता और कठोर व्यवहार किस काम का.

बच्चों को अपने मातापिता को समझाना जरूरी है और उस से भी ज्यादा जरूरी है मातापिता का इस बात को समझना. जहां बात सपने पूरे करने की आती है तो बच्चों को यह बात पता होनी चाहिए कि सपने पूरे करने के चक्कर में घर से भागना उन्हें ज्यादा महंगा पड़ सकता है. घर से भागे हुए बच्चे जिस्मफरोशों और शोषण करने वालों के लिए चलताफिरता शिकार होते हैं. वे बच्चों को बेचने, कोठे पर बैठाने या उन के हाथपैर काटने से पहले एक बार भी नहीं सोचेंगे.

हकीकत और ही है

प्रेम संबंधों के विषय में केवल यही कहा जा सकता है कि यदि लड़का व लड़की बालिग नहीं हैं तो घर से भागना पूरी तरह गलत है. वे कहीं भी जाएं, उन्हें परेशानियों का सामना तो करना ही पड़ेगा और इस में पुलिस भी उन्हें ही गुनाहगार ठहराएगी. यदि लड़का बालिग हो और लड़की नाबालिग तो सीधेतौर पर लड़के को अपहरण या बलात्कार के जुर्म में जेल भेजा जा सकता है.

यदि दोनों बालिग हैं और परिवार प्रेम की मंजूरी नहीं देता तो घर से भागना उपाय हो सकता है परंतु तब, जब वे पुलिस की सहायता लें. बौलीवुड की फिल्में देख कर यह समझ लेना कि घर से भागने पर दोनों मेहनतमजदूरी कर लेंगे और सुनहरा जीवन व्यतीत कर लेंगे, पूरी तरह गलत है.

बच्चों को यह समझने की जरूरत है कि फिल्म और जीवन में बहुत फर्क होता है. असल जीवन के विलेन बड़ीबड़ी मूंछों और भयावह रूप में नहीं आते, वे साधारण व्यक्ति होते हैं जो आप से मीठे बोल कहेंगे और आप की बोलती हमेशा के लिए बंद कर देंगे.

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