जसबीर कौर और दलजीत कौर आपस में पक्की सहेलियां ही नहीं थीं, बल्कि उन दोनों के बीच दिलों का गहरा संबंध भी था. जसबीर गांव ढडीके, अजीतवाला, मोगा में रहती थी, जबकि दलजीत कौर पड़ोस के गांव की रहने वाली थी.

दोनों ने स्कूल से कालेज तक की पढ़ाई साथसाथ की थी. दोनों के बीच दोस्ती तो शुरू से ही थी, पर युवा होते ही उन के बीच अजीब से पे्रम का रिश्ता बन गया था. दोनों की दोस्ती एक ऐसे रिश्ते में तब्दील हो गई, जैसी एक युवा और युवती के प्रेम संबंधों के बीच होती है.

धीरेधीरे दोनों ऐसे प्रेम की डोर में बंध गए, जिसे हमारा समाज स्वीकार नहीं करता. ऐसे रिश्ते का विरोध होना लाजिमी था. हुआ भी, लेकिन वे दोनों तो एकदूसरे की दीवानी थीं. यह बात ऐसी नहीं थी जो छिप पाती. उन के संबंधों की जानकारी दोनों के परिजनों तक पहुंची तो जैसे भूचाल सा आ गया.

दोनों के घर वालों ने उन्हें समझाया, गांव के बड़ेबूढ़ों से ले कर पंचायत तक ने भी सामाजिक मानमर्यादा का उन्हें पाठ पढ़ाया, पर उन्होंने किसी की बात नहीं मानी. जसबीर और दलजीत एक साथ रहने और साथसाथ जीनेमरने की कसमें खा चुकी थीं. फिर वे किसी की क्या परवाह क्यों करतीं.

इस बीच दोनों की नौकरियां भी लग गईं. जसबीर कौर को मोगा स्थित आईटीआई में बतौर क्लर्क की नौकरी मिल गई थी जबकि दलजीत कौर गांव चूहड़चक के आईटीआई कालेज में बतौर टीचर नियुक्त हो गई थी. दोनों जब अपने पैरों पर खड़ी हो गईं तो उन्होंने अपना घर बसाने के लिए आगे की योजना बनाई.

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