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भूलकर भी एक साथ न खाएं ये चीजें

बचपन में दादी के मुख से सुनते थे कि मछली खा कर कभी दूध नहीं पीना चाहिए. कभी फल खाने के बाद पानी पी लो तो दादी की डांट पड़ती थी. कई भारतीय व्यंजन हैं जिनके साथ खाने पर पाबंदी है. कहते हैं इससे विभिन्न रोग शरीर को लग जाते हैं. हम स्वादिष्ट खाना खाते हैं और कोशिश करते हैं कि उसमें सभी पोषक तत्व भी मौजूद हों, लेकिन कई बार हम जाने-अनजाने में ऐसी चीजें एकसाथ खा लेते हैं जो कि हमारी सेहत के लिए अच्छा नहीं होता और जिसके कारण हम अनेकों बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. जिन खाद्य पदार्थों के साथ खाने पर पाबंदी है वे ‘विरुद्ध आहार’ कहलाते हैं. यानी दो ऐसी खाने की चीजें जिनकी प्रकृति अलग-अलग होती है, उन्हें विरुद्ध आहार की श्रेणी में रखा गया है. होटलों में ऐसी बहुत सी चीजें खाने को मिलती हैं जो विरुद्ध आहार के अंतर्गत आती हैं, मगर जानकारी के अभाव में हम उन्हें खाते हैं और रोगों का शिकार होते हैं.

आइए जानते हैं कि कौन-कौन सी वे चीजें हैं जो विरुद्ध आहार के अंतर्गत आती हैं

  • दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे कि दही, छाछ इत्यादि को अगर हम नींबू, कटहल या खट्टे पदार्थों के साथ खाते हैं तो यह विरुद्ध आहार होता है. आमधारणा यह है कि दुबलेपन से छुटकारा पाने के लिए केला-दूध खाओ, लेकिन यह जानकारी कम ही लोगों को है कि केला और दूध विरुद्ध आहार हैं. इन्हें कभी भी साथ नहीं खाना चाहिए. प्याज, कटहल, खट्टे पदार्थ, मीट-मछली और जूस जैसी चीजें दूध के साथ लेना विरुद्ध आहार के अंतर्गत आता हैं.

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  • हमें दही के साथ भी केला और अन्य फल नहीं खाने चाहिए. इनका आपस में मेल नहीं होता और हम पेट की कई बीमारियों के शिकार बन जाते हैं. इससे एसिडिटी, कब्ज, जलन, गैस, चक्कर आना जैसे रोग शरीर को घेर लेते हैं. दही और फल विरुद्ध आहार हैं. दही और फलों में अलग-अलग एंजाइम होते हैं. इस कारण वे पच नहीं पाते, इसलिए दोनों को साथ लेने की सलाह नहीं दी जाती है. दही के साथ खजूर खाना भी हानिकारक होता है. दही की तासीर ठंडी है. उसे किसी भी गर्म चीज के साथ नहीं लेना चाहिए. मछली की तासीर काफी गर्म होती है, इसलिए उसे दही के साथ नहीं खाना चाहिए. परांठे या पूरी जैसी तली-भुनी चीजों के साथ भी दही नहीं खाना चाहिए क्योंकि दही फैट के डाइजेशन में रुकावट पैदा करता है.
  • अधिकतर लोग शराब, बीयर और कोल्ड ड्रिंक के साथ नमकीन पदार्थों का सेवन करते हैं. लेकिन यह भी सेहत के लिए ठीक नहीं होता और इससे लूज मोशन, पेट खराब होना, चक्कर आना जैसी बीमारियां होती हैं.
  • खीरा और टमाटर भी हम सलाद में एक साथ खा लेते हैं. लेकिन आपने महसूस किया होगा कि इससे हमारा पेट भारी-भारी सा हो जाता है. इसलिए इन दोनों को हमें अलग-अलग ही खाना चाहिए. इसी तरह से गाजर के साथ नींबू का प्रयोग वर्जित है. इससे पेशाब सम्बन्धी बीमारियां हो जाती हैं.
  • शहद को कभी गर्म करके नहीं खाना चाहिए. चढ़ते हुए बुखार में भी शहद का सेवन नहीं करना चाहिए. इससे शरीर में पित्त बढ़ता है. शहद और मक्खन एक साथ नहीं खाना चाहिए. घी और शहद कभी साथ में नहीं खाना चाहिए. यहां तक कि पानी में मिलाकर भी शहद और घी का सेवन नुकसानदेह हो सकता है.शहद के साथ कभी भी मूली या घी, मक्खन, तेल जैसी चीजें जिन्हें हम गर्म करते हैं, नहीं खानी चाहिए.

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  • तरबूज, खरबूजे को खाने के बाद भूल कर भी पानी नहीं पीना चाहिए. इससे हैजा, अपच, लूज मोशन हो सकते हैं. फलों के सेवन के तुरंत बाद पानी पीना वर्जित है. अमरूद, खीरा, जामुन और मूंगफली के बाद तो भूल कर पानी न पियें.
  • कुछ ऐसे फल हैं जो साथ खाए जाएं तो नुकसान पहुंचाते हैं. जैसे संतरा और केला एक साथ नहीं खाना चाहिए क्योंकि खट्टे फल मीठे फलों से निकलने वाली शुगर के पाचन में रुकावट पैदा करते हैं, जिससे अपच की शिकायत पैदा हो जाती है. इन फलों को साथ खाने से फलों की पौष्टिकता भी कम हो जाती है.
  • मछली और अंडे के साथ दूध, दही कभी नहीं खानी चाहिए. मांस को तिल के तेल में कभी नहीं पकाना चाहिए. इसके अलावा मांसाहारी चीजों के साथ हमें मैदे वाली चीजें भी नहीं खानी चाहिए. इससे मोटापा, डायबिटीज, गैस इत्यादि बीमारियां हमारे शरीर में उत्पन्न हो जाती हैं. मछली के साथ काली मिर्च नहीं खानी चाहिए. मछली खाने के बाद काली मिर्च खाने से नुकसान हो सकता है.
  • हमें गर्म और ठंडी चीजें भी एक साथ नहीं खानी चाहिए. जिस तरह से चाय के तुरंत बाद आइसक्रीम का खाना, कोल्ड ड्रिंक का पीना विरुद्ध आहार कहलाता है.
  • तिल के साथ पालक का सेवन नहीं करना चाहिए. यही नहीं तिल के तेल में कभी भूलकर भी पालक न बनाएं. ऐसा करने से डायरिया हो सकता है.
  • 10 दिन तक कांसे के बर्तन में रखे घी को नहीं खाना चाहिए.
  • पीली छतरी वाले मशरूम सरसों के तेल में नहीं पकाने चाहिए.
  • दूध की बनी खीर के साथ सत्तू, शराब, खटाई और कठहल नहीं खाना चाहिए.
  • चावल के साथ सिरका नहीं खाना चाहिए.

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विरुद्ध आहार को हमेशा ध्यान में रखें. हम जो भी खाएं संतुलित और स्वादिष्ट खाएं और अपने शरीर की प्रकृति के अनुसार ही खाएं तभी हम अपने आप को दीघार्यु तक निरोगी और स्वस्थ बनाए रख सकते हैं.

मसालों की कटाई व प्रोसैसिंग

पुराने समय से मसालों का हमारे जीवन में खास स्थान रहा है. मसालों का अपने रूप, रस, सुगंध, स्वाद, रंग, आकार वगैरह के कारण अलग ही महत्त्व है. भारत के मसालों की मांग विदेशों में तेजी से बढ़ रही है. मसाले हमारे खाने को जायकेदार बनाने के साथ दवा का भी काम करते हैं.

कटाई के बाद मसालों की सफाई, ग्रेडिंग, पैकिंग वगैरह काम किए जाते हैं. कटाई के समय मसालों में नमी 55-85 फीसदी होती है. इन को महफूज रखने के लिए इन की नमी को घटा कर 8-10 फीसदी तक करना पड़ता है.

मसालों के कारोबार के लिए उन की सही तरीके से कटाई के बाद मड़ाई, सफाई, ग्रेडिंग और पैकिंग पर खास ध्यान दें. यहां हम मसालों की कटाई के बाद के कामों की चर्चा कर रहे हैं.

धुलाई : जिन मसालों को जमीन के पास से या जमीन में से खोद कर निकाला जाता है, उन की धुलाई करना जरूरी होता है, ताकि उन में लगी धूल और संक्रमण पैदा करने वाले पदार्थ साफ हो जाएं. धुलाई बहते पानी से करनी चाहिए. इलायची, हलदी, अदरक वगैरह मसालों की धुलाई की जाती है.

छाल निकालना : कुछ मसाले जैसे अदरक, लहसुन के सूखने में इन की छाल ही रुकावट होती है. इन को सुखाने के लिए इन की छाल निकालना जरूरी होता है. छाल निकालने के लिए खास तरह के चाकुओं का इस्तेमाल किया जाता है. सफेद अदरक लेने के लिए अदरक की छाल निकाल कर उसे नीबू पानी से धो लिया जाता है. इस के लिए 600 मिलीलिटर नीबू के रस को 30 लिटर पानी में मिलाया जाता है.

गोदना : सभी तरह की मिर्च को सुखाने के लिए गोदने की विधि इस्तेमाल की जाती है. मिर्च को लंबाई में दबा कर चपटा कर के सुखाने में कम समय लगता है. इस से क्वालिटी व रंग भी बना रहता है.

रासायनिक उपचार : इस से मसालों को उन के असली रंगरूप में रख कर सुंदर बनाया जाता है, जिस से उन की अच्छी कीमत मिलती है.

छोटी इलायची के बाहर का हरा चमकदार रंग उस की छाल में मौजूद क्लोरोफिल के कारण होता है. इस की चमक को बनाए रखने के लिए इलायची को 2 फीसदी सोडियम कार्बोनेट के घोल में 10 मिनट तक रखा जाता है. मिर्च को सोडियम बाई कार्बोनेट व जैतून के तेल के मिश्रण से उपचारित करने के बाद सुखाने से उस का रंग बना रहता है.

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अदरक को धोने के बाद साफ पानी में एक दिन के लिए रखा जाता है. इस के बाद 2 फीसदी बुझे चूने के घोल में 6 घंटे के लिए रखा जाता है.

बुझे चूने के पानी के घोल से उपचारित अदरक को सल्फर डाई औक्साइड के धुएं से (लगभग 3.5 किलोग्राम गंधक धुआं प्रति टन अदरक की दर से) 12 घंटों के लिए उपचारित किया जाता है.

इलायची की फली का रंग हरा चमक लिए हुए होना चाहिए. सभी फलियों का एक जैसा रंग नहीं होने के कारण इलायची की कीमत कम या ज्यादा होती है. एकसमान रंग लाने के लिए इलायची की फलियों को घुलनशील गंधक से उपचारित किया जाता है.

मसालों में हलदी के पीले रंग व इस की खास महक को बनाए रखने के लिए विशेष सावधानी रखनी पड़ती है. खुदाई के 3-4 दिन बाद मुख्य कंद से छोटेछोटे कंदों को अलग कर लिया जाता?है. कंदों को धो कर बुझे चूने के पानी, सोडियम कार्बोनेट या सोडियम बाई कार्बोनेट के घोल में उबाला जाता है.

मसालों को सुखाना

मसालों को सुखाने के दौरान इन में नमी की मात्रा को कम कर के 5 से 8 फीसदी तक बनाए रखें. सही ढंग से सूखने पर मसालों का मूल रंग व स्वाद बना रहता है. मसालों को सुखाने के लिए इन तकनीकों को अपनाएं:

धूप में सुखाना : मसालों को धूप में सुखाने के लिए खास सावधानी रखनी पड़ती है, ताकि धूल व बारिश से उन्हें नुकसान न हो. इलायची को 2 फीसदी सोडियम कार्बोनेट से उपचारित कर के और अदरक, हलदी को बुझे चूने के पानी से उपचारित कर के धूप में 8-10 दिन तक सुखाया जाता?है.

मसालों में 5 से 8 फीसदी नमी रह जाने तक ही उन्हें धूप में सुखाया जाता है. आईसीएआर ने मिर्च के लिए मिर्च छेदन मशीन तैयार की है. इस मशीन द्वारा 10 किलोग्राम प्रति घंटे की दर से मिर्च छेदन किया जाता है.

मशीन द्वारा सुखाना : मसालों को धूप में सुखाने पर मौसमी बाधाओं के अलावा उन में सूक्ष्म जीवों, धूल, चिडि़यों की गंदगी वगैरह मिलने का डर रहता है, जिस से मसाले की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ता?है. इस से बचने के लिए मशीन से मसालों को 60 से 70 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर 6 से 8 घंटों के लिए सुखाया जाता है.

बिजली की मशीन से सुखाना : गरम हवा के लिए बिजली से चलने वाली शोषक मशीन का इस्तेमाल किया जाता है. इस में तापमान, समय वगैरह का नियंत्रण रहता है, जिस से आसानी से हर तरह के मसालों को सुखाया जा सकता है.

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भारतीय मसालों की राष्ट्रीय कानून के तहत हर अवस्था में ग्रेडिंग की जाती है. मसालों के लिए ग्रेडिंग करना कृषि उपज अधिनियम (1987) श्रेणीकरण विपणन के अधीन होता है. इन श्रेणियों को एगमार्क कहा जाता है. इस में भौतिक गुण जैसे रंग, आकार, घनत्व वगैरह का खासतौर पर ध्यान रखा जाता है.

किसानों को अपने उत्पादों की अच्छी कीमत पाने के लिए ग्रेडिंग की जानकारी होना जरूरी है.

कारोबार की कुशलता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक ग्रेडिंग एक अहम अंग?है.

मसालों की गुणवत्ता मान

साबुत बड़ी इलायची : साबुत बड़ी इलायची के सूखे व लगभग पके हुए फल संपुटों के रूप में होते हैं. दलपुंजों के टुकड़ों, डंठलों व अन्य चीजों का भार अनुपात में 5 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. कीटों द्वारा नुकसान किए पदार्थ की मात्रा भार में 5 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.

बड़ी इलायची का चूर्ण : बीजों के चूर्ण में बीज अच्छी तरह पिसे होने चाहिए. नमी भार में 14 फीसदी से कम व कुल खनिज भार में 8 फीसदी से कम और वाष्पीय तेल एक फीसदी से कम होना चाहिए.

साबुत लाल मिर्च: कैप्सिकम फ्रुटेसैंस के सूखे पके फल या फलियां शामिल होती हैं. इस में अन्य पदार्थ बाहरी दलपुंज के टुकड़े, धूल, मिट्टी के ढेले, पत्थर वगैरह  शामिल हैं.

ये चीजें भार में 5 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. कीटों द्वारा खराब पदार्थों की मात्रा भार में 5 फीसदी से कम हो.

लाल मिर्च चूर्ण : सूखी साफ फलियों का चूर्ण होना चाहिए. मिर्च के चूर्ण में धूल, कवक, कीट द्वारा नुकसान व सुगंधित पदार्थ नहीं होने चाहिए. मिर्च के चूर्ण की नमी 12 फीसदी से कम, कुल खनिज भार 8 फीसदी से कम होना चाहिए.

साबुत धनिया : कोरिएंडम सेटाइवम के सूखे बीज, जिस में धूल, कचरा, कंकड़, मिट्टी के ढेले, भूसी, डंठल के अलावा अन्य

खाद्य पदार्थ के बीज व कीटों द्वारा खाए बीज शामिल न हों, का अनुपात 0.8 फीसदी से ज्यादा न हो.

धनिया चूर्ण : इस में नमी भार में 12 फीसदी से ज्यादा नहीं व कुल खनिज भार 7 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए.

मेथी: सूखे पके बीज में फालतू पदार्थ, धूल, कचरा, कंकड़, मिट्टी के ढेले वगैरह का अनुपात भार में 5 फीसदी से कम होना चाहिए. कीटों द्वारा खाए पदार्थ की मात्रा भार में  5 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.

मेथी चूर्ण : इस में मेथी के सूखे पके फलों का पिसा चूर्ण, जिस में नमी भार में 10 फीसदी से कम व कुल खनिज भार में 7 फीसदी से कम होनी चाहिए.

साबुत हलदी : पौधे से सूखे कंद या कंदीय जड़ में लैड क्रोमेट व अन्य रंजक पदार्थों की मिलावट नहीं होनी चाहिए. कीटों द्वारा नुकसान किए पदार्थों की मात्रा भार में 5 फीसदी से कम होनी चाहिए.

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हलदी चूर्ण : चूर्ण में बाहरी रंग की मिलावट नहीं होनी चाहिए. चूर्ण में नमी भार में 13 फीसदी से कम व कुल खनिज भार में

9 फीसदी से कम होनी चाहिए. लैड क्रोमेट जांच नेगेटिव होनी चाहिए.

स्टोरेज : मसाले व इन के उत्पाद नमी के मामले में ज्यादा संवेदनशील होते हैं, क्योंकि इन में नमी लेने की कूवत ज्यादा होती है. इस वजह से नमी से बचाने के लिए इन का भंडारण व पैकिंग अच्छी होनी चाहिए. नमी के आने पर इन में दरार पड़ने, रंग फीका पड़ने के अलावा कीट व बीमारियों का हमला हो जाता है.

दूरी : भाग 3

बस चल पड़ी थी, वह दूर तक हाथ हिलाती रही. मन में एक कसक लिए, क्या वह फिर कभी इन परोपकारियों से मिल पाएगी? नाम, पता, कुछ भी तो न मालूम था. और न ही उन दोनों ने उस का नामपता जोर दे कर पूछा था. शायद जोर देने पर वह बता भी देती. बस, राह के दोकदम के साथी उस की यात्रा को सुरक्षित कर ओझल हो रहे थे.

बस खड़खड़ाती मंथर गति से चलती रही. वह 2 सीट वाली तरफ बैठी थी और उस के साथ एक वृद्धा बैठी थी. वह वृद्धा बस में बैठते ही ऊंघने लगी थी, बीचबीच में उस की गरदन एक ओर लुढ़क जाती. वह अधखुली आंखों से बस का जायजा ले, फिर ऊंघने लगती. और वह यह राहत पा कर सुकून से बैठी थी कि सहयात्री उस से कोई प्रश्न नहीं कर रहा. स्कूल के कपड़ों में उस का वहां होना ही किसी की उत्सुकता का कारण हो सकता था.

वह खिड़की से बाहर देखने लगी थी. किनारे के पेड़ों की कतारें, उन के परे फैले खेत और खेतों के परे के पेड़ों को लगातार देखने पर आभास होता था जैसे कि उस पार और इस पार के पेड़ों का एक बड़ा घेरा हो जो बारबार घूम कर आगे आ रहा हो. उसे सदा से यह घेरा बहुत आकर्षक लगता था. मानो वही पेड़ फिर घूम कर सड़क किनारे आ जाते हैं.

खेतों के इस पार और उस पार पेड़ों की कतारें चलती बस से यों लगतीं मानो धरती पर वृक्षों का एक घेरा हो जो गोल घूमता जा रहा हो. उसे यह घेरा देखते रहना बहुत अच्छा लगता था. वह जब भी बस में बैठती, बस, शहर निकल जाने का बेसब्री से इंतजार करती ताकि उन गोल घूमते पेड़ों में खो सके. पेड़ों और खयालों में उलझे, अपने ही झंझावातों से थके मस्तिष्क को बस की मंथर गति ने जाने कब नींद की गोद में सरका दिया.

आंख खुली तो बस मथुरा पहुंच चुकी थी. बिना किसी घबराहट के उस ने अपनेआप को समेट कर बस से नीचे उतारा. एक पुलकभर आई थी मन में कि नानीमामी उसे अचानक आया देख क्या कहेंगी, नाराज होंगी या गले से लगा लेंगी, वह सोच ही न पा रही थी. रिकशेवाले को देने के पैसे नहीं थे उस के पास, पर नाना का नाम ही काफी था.

इस शहर में कदम रखने भर से एक यकीन था शंकर विहार, पानी की टंकी के नजदीक, नानी के पास पहुंचते ही सब ठीक हो जाएगा. नानीनाना ने बहुत लाड़ से पाला थाउसे. बचपन में इस शहर की गलियों में खूब रोब से घूमा करती थी वह. नानाजी कद्दावर, जानापहचाना व बहुत इज्जतदार नाम थे. शहरभर में नाम था उन का. तभी आज बरसों बाद भी उन का नाम लेते ही रिकशेवाले ने बड़े अदब से उसे उस के गंतव्य पर पहुंचा दिया था.

रिकशेवाले से बाद में पैसे ले जाने को कह कर वह गली के मोड़ पर ही उतर गई थी और चुपचाप चलती हमेशा की भांति खुले दरवाजे से अंदर आंगन में दाखिल हो गई थी. शाम के 4 बज रहे थे शायद, मामी आंगन में बंधी रस्सी पर से सूखे कपड़े उतार रही थीं. उसे देखते ही कपड़े वहीं पर छोड़ कर उस की ओर बढ़ीं और उसे अपनी बांहों में कस कर भींच लिया और रोतेरोते हिचकियों के बीच बोलीं, ‘‘शुक्र है, तू सहीसलामत है.’’ वे क्यों रो रही हैं, उस की समझ में न आया था.

वह बरामदे की ओर बढ़ी तो मामी उस का हाथ पकड़ कर दूसरे कमरे में ले जाते हुए बोलीं, ‘‘जरा ठहर, वहां कुछ लोग बैठे हैं.’’ नानी को इशारे से बुलाया. उन्होंने भी उसे देखते ही गले लगा लिया, ‘‘तू ठीक तो है? रात कहां रही? स्कूल के कपड़ों में यों क्यों चली आई?’’ न जाने वो कितने सवाल पूछ रही थीं.

उसे बस सुनाई दे रहा था, समझ नहीं आ रहा था. शायद एकएक कर के पूछतीं तो वह कुछ कह भी पाती. आखिरकार मामा ने सब को शांत किया और उस से कपड़े बदलने को कहा. वह नहाधो कर ताजा महसूस कर रही थी. लेकिन एक अजीब सी घबराहट ने उसे घेर लिया था. घर में कुछ बदलाबदला था. कुछ था जो उसे संशय के घेरे में रखे था.

आज वह यहां एक अजनबी सा महसूस कर रही थी, मानो यह उस का घर नहीं था. ऐसा माहौल होगा, उस ने सोचा नहीं था. सब के सब कुछ घबरा भी रहे थे. वह नानी के कमरे में चली गई. पीछेपीछे मामी चाय और नाश्ता ले कर आ गईं. तीनों ने वहीं चाय पी. मामी और नानी शायद उस के कुछ कहने का इंतजार कर रहे थे और वह उन के कुछ पूछने का. कहा किसी ने कुछ भी नहीं.

मामी बरतन वापस रखने गईं तो वह नानी की गोद में सिर टिका कर लेट गई. सुकून और सुरक्षा के अनुभव से न जाने कब वह सो गई. आंख खुली तो बहुत सी आवाजें आ रही थीं. और उन के बीच से मां की आवाज, रुलाईभरी आवाज सुनाई दे रही थी. वह हड़बड़ा कर उठ बैठी, लगता था उस की सारी शक्ति किसी ने खींच ली हो. काश, वह यहां न आ कर किसी कब्रिस्तान में चली गई होती.

मां और मामा उस के व्यवहार और चले आने के कारणों का विश्लेषण कर रहे थे. उसे उठा देख मां जोरजोर से रोने लगी थी और उसे उठा कर भींच लिया था. तेल के लैंप की रोशनी के रहस्यमय वातावरण में सब उसे समझाने लगे थे, वापस जाने की मनुहार करने लगे थे. वह चीख कर कहना चाहती थी कि वापस नहीं जाएगी लेकिन उस के गले से आवाज नहीं निकल रही थी.

कस कर आंखें मींचे वह मन ही मन से मना रही थी कि काश, यह सपना हो. काश, तेल का लैंप बुझ जाए और वे सब घुप अंधेरे में विलीन हो जाएं. उस की आंख खुले तो कोई न हो. लेकिन वह जड़ हो गई थी और सब उसे समझा रहे थे. हां, सब उसे ही समझा रहे थे. वह तो वैसे भी अपनी बात समझा ही नहीं पाती थी किसी को. सब ने उस से कहा, उसे समझाया कि मां उस से बहुत प्यार करती है.

सब कहते रहे तो उस ने मान ही लिया. उस के पास विकल्प भी तो न था. वह मातापिता के साथ लौट आई. अब मां शब्दों में ज्यादा कुछ न कहती. बस, एक बार ही कहा था, हम तो डर गए हैं तुम से, तुम ने हमारा नाम खराब किया, सब कोई जान गए हैं. वह घर में कैद हो गई. कम से कम स्कूल में कोई नहीं जानता. प्रिंसिपल जानती थी, उसे एक दिन अपने कमरे में बुलाया था.

अपने को दोस्त समझने को कहा था. वह न समझ सकी. दिन गुजरते रहे. बरस बीतते रहे. जिंदगी चलती रही. पढ़ाई पूरी हुई. नौकरी लगी. विवाह हुआ. पदोन्नति हुई. और आज जब उस के दफ्तर में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी ने छुट्टी मांगते हुए बताया कि वह अपनी एक वर्ष की बिटिया को नानी के घर में छोड़ना चाहती है तो ये बरसों पुरानी बातें उस के मस्तिष्क को यों झिंझोड़ गईं जैसे कल की ही बातें हों.

आज एक बड़े ओहदे पर हो कर, बेहद संजीदा और संतुलित व्यवहार की छवि रखने वाली, वह अपना नियंत्रण खोती हुई उस पर बरस पड़ी थी, ‘‘तुम ऐसा नहीं कर सकती, सुवर्णा. यदि तुम्हारे पास बच्चे की देखभाल का समय नहीं था तो तुम्हें एक नन्हीं सी जान को इस दुनिया में लाने का अधिकार भी नहीं था. और जब तुम ने उसे जन्म दिया है तो तुम अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकती.

‘‘नानी, मामी, दादी, बूआ सब प्यार कर सकती हैं, बेइंतहा प्यार कर सकती हैं पर वे मां नहीं हो सकतीं. आज तुम उसे छोड़ कर आओगी, वह शायद न समझ पाए. वह धीरेधीरे अपनी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठा लेगी. खुश भी रहेगी और सुखी भी. तुम भी आराम से रह सकोगी. लेकिन तुम दोनों के बीच जो दूरी होगी उस का न आज तुम अंदाजा लगा सकती हो और न कभी उसे कम कर सकोगी. ‘‘जिंदगी बहुत जटिल है, सुवर्णा, वह तुम्हें और तुम्हारी बच्ची को अपने पेंचों में बेइंतहा उलझा देगी. उसे अपने से अलग न करो.’’ वह बिना रुके बोलती जा रही थी और सुवर्णा हतप्रभ उसे देखती रह गई.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ : क्या नायरा लाएगी औनलाइन पापा?

दर्शकों का पसंदीदा शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में लगातार धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. दर्शक इस शो को काफी पसंद कर रहे हैं. इस शो के ट्विस्ट एंड टर्न से दर्शक खुब एंटरटेन कर रहे हैं.

हाल ही में आपने देखा कि बास्केट बौल गेम में नायरा और कैरव जीत जाते हैं. पहले तो कायरव बहुत खुश होता है लेकिन बाद में वो नायरा और कार्तिक की बातें सुनकर गलतफहमी का शिकार हो जाता है एक बार फिर से वो पापा से और ज्यादा नाराज हो जाता है.

इधर वंश कहता है कि वो पिज्जा खाना चाहता है,  नायरा उसके लिए और्डर कर रही होती है. और फिर वो कहती है, किसी को और कुछ चाहिए तो बता दें. तभी कायरव वहां आ जाता है और कहता है कि उसे औनलाइन न्यू पापा चाहिए और अच्छे वाले करना ये वाले मुझे अच्छे नहीं लगते हैं. ये सुनकर सभी घरवाले चौंक जाते हैं. नायरा उसपर गुस्सा करती है लेकिन वो वहां से चला जाता है.

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हाल ही में आपने देखा कि कायरव अपने पापा से नफरत करने लगा है. कायरव को लगता है कि कार्तिक उसकी मम्मी से नफरत करता है.

इसी कारण वह कार्तिक से दूर जाने लगता है. तो उधर कार्तिक अपने बेटे के जन्मदिन के लिए एक शानदार पार्टी का आयोजन करता है. बर्थपार्टी के दौरान ही कैरव घर से भाग जाता है और सड़क पर चला जाता है. इसके बाद पूरे सिंघानिया परिवार में हाहाकार मच जाता है. इस शो के अपकमिंग एपिसोड में देखना दिलचस्प होगा कि कायरव की गलतफहमी को कैसे दूर करेगी नायरा.

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फिल्म रिव्यू: “बायपास रोड”

 रेटिंग: दो स्टार

निर्देशकः नमन नितिन मुकेश

कलाकारः नील नितिन मुकेश, अदा शर्मा, शमा सिकंदर, गुल पनाग, सुधांशु पांडे, रजित कपूर, मनीश चैधरी, ताहिर शब्बीर

अवधिः दो घंटे 17 मिनट

धन दौलत के लोभ में इंसान किस कदर गिर गया है, उसी के इर्द गिर्द घूमती कहानी पर नमन नितिन मुकेश के रहस्यप्रधान रोमांचक फिल्म ‘‘बाय पास रोड’’ लेकर आए हैं, जो कि प्रभावित नही करती.

कहानीः

अलीबाग में रह रहे मशहूर फैशन डिजाइनर विक्रम कपूर (नील नितिन मुकेश) जिस दिन घातक दुर्घटना का शिकार होते है, उसी दिन उनकी कंपनी की सेक्सी और नंबर वन मौडल सारा ब्रिगेंजा (शमा सिकंदर) की अपने घर में रहस्यमयी मौत होती है. मीडिया को लगता है कि इन दोनों हादसों का आपस में कोई न कोई गहरा रिश्ता जरूर है. सारा की मौत पहली नजर में आत्महत्या लगती है. जबकि इस हादसे में विक्रम को कुचल कर मारने की कोशिश की जाती है.

फिर कहानी अतीत में जाती है, जहां विक्रम और सारा के अतिनजदीकी रिश्तों का सच सामने आता है. हालांकि विक्रम अपनी ही कंपनी में इंटर्नशिप करने वाली डिजाइनर राधिका (अदा शर्मा) से प्यार करते है और सारा ब्रिगेंजा भी जिम्मी (ताहिर शब्बीर) की मंगेतर हैं.

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अस्पताल में पता चलता है कि विक्रम के दोनों पैर बेकार हो चुके हैं और अब उन्हें सिर्फ व्हील चेअर का ही सहारा हैं. जब विक्रम अस्पताल से अपने पिता प्रताप कपूर (रजित कपूर) के साथ अपने घर पहुंचता है, तो घर पर उनकी सौतेली मां रोमिला (गुल पनाग), सात आठ वर्षीय सौतेली बहन नंदिनी (पहल मांगे) और नौकर की मौजूदगी के बावजूद हादसे का शिकार होते-होते बचते हैं.

उधर पुलिस अफसर हिमांशु रौय (मनीष चैधरी) सारा की मौत का सच जानने उजागर करने पर आमादा है. हिमांशु रौय को सारा के मंगेतर जिम्मी के अलावा विक्रम के व्यावसायिक प्रतिद्वंदी नारंग (सुधांशु पांडे) पर शक है. पुलिस की जांच अलग चल रही है, तो वहीं व्हील चेअर पर रहेन वाले विक्रम को मारने की कई बार कोशिश होती है. इसी बीच कुछ अन्य हत्याएं भी हो जाती हैं. अंततः सच सामने आता ही है.

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लेखनः

अभिनय करने के साथ फिल्म की पटकथा व संवाद नील नितिन मुकेश ने ही लिखी है. उन्होंने पूरी कहानी को अपनी तरफ से जलेबी की तरह घुमाते हुए रहस्य का जामा पहनाने का भरसक प्रयास किया है. पर वह पूरी तरह से इसमें सफल नहीं हुए.

कहानी पुरानी ही है. इस तरह की कहानी तमाम सीरियल व अतीत में कुछ फिल्मों में आ चुकी है. फिल्म का क्लायमेक्स तो लगभग हर रहस्यप्रधान सीरियल से मिलता जुलता है. वर्तमान से बार बार अतीत में जाने वाली कहानी काफी कन्फ्यूजन पैदा करती है. कहानी में कई कमियां हैं. एक दृष्य में सारा का प्रेमी जिम्मी पुलिस से भगते हुए कदई मंजिल उपर से नीचे गिरता है. पुलिस उसके पास पहुंच जाती है. और उसे देखकर वह मृत समझती है, पर इंटरवल के बाद जिम्मी पुनः कहानी में नजर आने लगते हैं. कुछ चरित्र ठीक से विकसित नही किए गए. फिल्म के कुछ संवाद बहुत सतही है. कुल मिलाकर फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी नील नितिन मुकेश का लेखन है.

निर्देशनः

अपने समय के मशहूर गायक स्व.मुकेश के पोते, गायक नितिन के बेटे व नील नितिन मुकेश के छोटे भाई नमन नितिन मुकेश ने ‘‘बायपास रोड’’ से पहली बार निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा है. तकनीकी दृष्टिकोण से देखें, तो वह पूरी तरह से सफल रहे हैं. मगर कथा व पटकथा की मदद न मिलने के कारण उनका सारा प्रयास विफल हो गया.

अभिनयः

विक्रम के किरदार को नील नितिन मुकेश ने इमानदारी व शानदार अभिनय के साथ निभाया है. अदा शर्मा ने भी ठीक ठाक अभिनय किया है. रजित कपूर, शमा सिकंदर और मनीश चैधरी अपनी छाप छोड़ जाते हैं. इसके अलावा अन्य कलाकारों के चरित्र लेखक की कमजोरी की भेंट चढ़ गए.

‘छोटी सरदारनी’ : क्या सरबजीत परम की कस्टडी केस देने के लिए तैयार होगा ?

कलर्स टीवी का शो ‘छोटी सरदारनी’ टीआरपी चार्ट में  टौप पर है. यह शो नंबर वन हो गया है. वैसे पिछले हफ्ते यह शो छठे नंबर पर था. यह शो दर्शकों का फेवरेट शो बना हुआ है.

इस शो में दर्शकों को लगातार महाट्विस्ट देखने को मिल रहे है. जी हां इस शो के ट्विस्ट एंड टर्न को दर्शक काफी पसंद कर रहे हैं. तो आइए इस शो के ट्विस्ट एंड टर्न के बारे में जानते हैं.

इस शो के पिछले एपिसोड में आपने देखा कि नीरजा यानी परम की नानी कहती है, परम पुत्र आज नानी मम्मा के पास सोएगा. परम उसे मना कर देता है और कहता है कि मैं मेहर मम्मा के पास सोऊंगा. परम के इस जवाब से नीरजा दुखी हो जाती है और वहां से जाने लगती है. तभी मेहर उसे रोक कर कहती है कि आपसे रिक्वेस्ट थी आज आप यही परम के पास सो जाओ. नीरजा वहां सोने के लिए तैयार हो जाती है और परम को कविता सुनाने के लिए कहती है.

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इस शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि नीरजा परम की  कस्टडी के लिए कोर्ट में केस करना चाहती है. इसी सीलसीले में नीरजा सरब के पास जाती है और कहती है कि हमें परम की कस्टडी के बारे में बात करनी है, जिसे सुनकर सभी चौंक जाते हैं.  अब देखना ये काफी दिलचस्प होगा कि क्या सरबजीत नीरजा को परम की कस्टडी केस देने के लिए तैयार होगा ?

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दूरी : भाग 2

वह समझ नहीं पाती थी कि मां उस से इतनी नफरत क्यों करती है. वह जो भी करती है, मां के सामने गलत क्यों हो जाता है. उस ने तो सोचा था मां को आश्चर्यचकित करेगी. दरअसल, उस के स्कूल में दौड़ प्रतियोगिता हुई थी और वह प्रथम आई थी. अगले दिन एक जलसे में प्रमाणपत्र और मैडल मिलने वाले थे. बड़ी मुश्किल से यह बात अपने तक रखी थी.

सोचा था कि प्रमाणपत्र और मैडल ला कर मां के हाथों में रखेगी तो मां बहुत खुश हो जाएगी. उसे सीने से लगा लेगी. लेकिन ऐसा हो न पाया था. मां की पड़ोस की सहेली नीरा आंटी की बेटी ऋतु उसी की कक्षा में पढ़ती थी. वह भूल गई थी कि उस रोज वीरवार था. हर वीरवार को उन की कालोनी के बाहर वीर बाजार लगता था और मां नीरा आंटी के साथ वीर बाजार जाया करती थीं.

शाम को जब मां नीरा आंटी को बुलाने उन के घर गई तो ऋतु ने उन्हें सब बता दिया था. मां तमतमाई हुई वापस आई थीं और आते ही उस के चेहरे पर एक तमाचा रसीद किया था, ‘अब हमें तुम्हारी बातें बाहर से पता चलेंगी?’

‘मां, मैं कल बताने वाली थी मैडल ला कर.’

‘क्यों, आज क्यों नहीं बताया, जाने क्याक्या छिपा कर रखती है,’ बड़ी हिकारत से मां ने कहा था.

वह अपनी बात तो मां को न समझा सकी थी लेकिन 13 बरस के किशोर मन में एक प्रश्न बारबार उठ रहा था- मां मेरे प्रथम आने पर खुश क्यों नहीं हुई, क्या सरप्राइज देना कोई बुरी बात है? छोटा रवि तो सांत्वना पुरस्कार लाया था तब भी मां ने उसे बहुत प्यार किया था. फिर अगले दिन तो मैडल ला कर भी उस ने कुछ नहीं कहा था. और कल तो हद ही हो गई थी.

स्कूल में रसायन विज्ञान की कक्षा में छात्रछात्राएं प्रैक्टिकल पूरा नहीं कर सके थे तो अध्यापिका ने कहा था, ‘अपनाअपना लवण (सौल्ट) संभाल कर रख लेना, कल यही प्रयोग दोबारा दोहराएंगे.’ सफेद पाउडर की वह पुडि़या बस्ते के आगे की जेब में संभाल कर रख ली थी उस ने. कल फिर अलगअलग द्रव्यों में मिला कर प्रतिक्रिया के अनुसार उस लवण का नाम खोजना था और विभिन्न द्रव्यों के साथ उस की प्रतिक्रिया को विस्तार से लिखना था. विज्ञान के ये प्रयोग उसे बड़े रोचक लगते थे.

स्कूल में वापस पहुंच कर, खाना खा कर, होमवर्क किया था और रोजाना की तरह, ऋतु के बुलाने पर दीदी के साथ शाम को पार्क की सैर करने चली गई थी. वापस लौटी तो मां क्रोध से तमतमाई उस के बस्ते के पास खड़ी थी. दोनों छोटे भाई उसे अजीब से देख रहे थे. मां को देख कर और मां के हाथ में लवण की पुडि़या देख कर वह जड़ हो गई थी, और उस के शब्द सुन कर पत्थर- ‘यह जहर कहां से लाई हो? खा कर हम सब को जेल भेजना चाहती हो?’ ‘मां, वह…वह कैमिस्ट्री प्रैक्टिकल का सौल्ट है.’ वह नहीं समझ पाई कि मां को क्यों लगा कि वह जहर है, और है भी तो वह उसे क्यों खाएगी. उस ने कभी मरने की सोची न थी. उसे समझ न आया कि सच के अलावा और क्या कहे जिस से मां को उस पर विश्वास हो जाए. ‘मां…’ उस ने कुछ कहना चाहा था लेकिन मां चिल्लाए जा रही थी, ‘घर पर क्यों लाई हो?’ मां की फुफकार के आगे उस की बोलती फिर बंद हो गई थी.

वह फिर नहीं समझा सकी थी, वह कभी भी अपना पक्ष सामने नहीं रख पाती. मां उस की बात सुनती क्यों नहीं, फिर एक प्रश्न परेशान करने लगा था- मां उस के बस्ते की तलाशी क्यों ले रही थी, क्या रोज ऐसा करती हैं. उसे लगा छोटे भाइयों के आगे उसे निर्वस्त्र कर दिया गया हो. मां उस पर बिलकुल विश्वास नहीं करती. वह बचपन से नानी के घर रही, तो उस की क्या गलती है, अपने मन से तो नहीं गई थी.

13 बरस की होने पर उसे यह तो समझ आता है कि घरेलू परिस्थितियों के कारण मां का नौकरी करना जरूरी रहा होगा लेकिन वह यह नहीं समझ पाती कि 4 भाईबहनों में से नानी के घर में सिर्फ उसे भेजना ही जरूरी क्यों हो गया था. जिस तरह मां ने परिवार को आर्थिक संबल प्रदान किया, वह उस पर गर्व करती है.

पुराने स्कूल में वह सब को बड़े गर्व से बताती थी कि उस की मां एक कामकाजी महिला है. लेकिन सिर्फ उस की बारी में उसे अलग करना नौकरी की कौन सी जरूरत थी, वह नहीं समझ पाती थी और यदि उस के लालनपालन का इतना बड़ा प्रश्न था तो मां इतनी जल्दी एक और बेबी क्यों लाई थी और लाई भी तो उसे भी नानी के पास क्यों नहीं छोड़ा. काश, मां उसे अपने साथ ले जाती और बेबी को नानी के पास छोड़ जाती. शायद नानी का कहना सही था, बेबी तो लड़का था, मां उसे ही अपने पास रखेगी, भोला मन नहीं जान पाता था कि लड़का होने में क्या खास बात है.

वह चाहती थी नानी कहें कि इसे ले जा, अब यह अपना सब काम कर लेती है, बेबी को यहां छोड़ दे, पर न नानी ने कहा और न मां ने सोचा. छोटा बेबी मां के पास रहा और वह नानी के पास जब तक कि नानी के गांव में आगे की पढ़ाई का साधन न रहा. पिता हमेशा से उसे अच्छे स्कूल में भेजना चाहते थे और भेजा भी था.

वह 5 बरस की थी, जब पापा ने उसे दिल्ली लाने की बात कही थी. किंतु नानानानी का कहना था कि वह उन के घर की रौनक है, उस के बिना उन का दिल न लगेगा. मामामामी भी उसे बहुत लाड़ करते थे. मामी के तब तक कोई संतान न थी. उन के विवाह को कई वर्ष हो गए थे. मामी की ममता का वास्ता दे कर नानी ने उसे वहीं रोक लिया था. पापा उसे वहां नए खुले कौन्वैंट स्कूल में दाखिल करा आए थे. उसे कोई तकलीफ न थी. लाड़प्यार की तो इफरात थी. उसे किसी चीज के लिए मुंह खोलना न पड़ता था. लेकिन फिर भी वह दिन पर दिन संजीदा होती जा रही थी. एक अजीब सा खिंचाव मां और मामी के बीच अनुभव करती थी.

ज्योंज्यों बड़ी हो रही थी, मां से दूर होती जा रही थी. मां के आने या उस के दिल्ली जाने पर भी वह अपने दूसरे भाईबहनों के समान मां की गोद में सिर नहीं रख पाती थी, हठ नहीं कर पाती थी. मां तक हर राह नानी से गुजर कर जाती थी. गरमी की छुट्टियों में मांपापा उसे दिल्ली आने को कहते थे. वह नानी से साथ चलने की जिद करती. नानी कुछ दिन रह कर लौट आती और फिर सबकुछ असहज हो जाता. उस ने ‘दो कलियां’ फिल्म देखी थी. उस का गीत, ‘मैं ने मां को देखा है, मां का प्यार नहीं देखा…’ उस के जेहन में गूंजता रहता था. नानी के जाने के बाद वह बालकनी के कोने में खड़ी हो कर गुनगुनाती, ‘चाहे मेरी जान जाए चाहे मेरा दिल जाए नानी मुझे मिल जाए.’

…न जाने कब आंख लग गई थी, भोर की किरण फूटते ही पूनम ने उसे जगा दिया था. शायद, अजनबी से जल्दी से जल्दी छुटकारा पाना चाहती थी. ब्रैड को तवे पर सेंक, उस पर मक्खन लगा कर चाय के साथ परोस दिया था और 4 स्लाइस ब्रैड साथ ले जाने के लिए ब्रैड के कागज में लपेट कर, उसे पकड़ा दिए थे. ‘‘न जाने कब घर पहुंचेगी, रास्ते में खा लेना.’’ पूनम ने एक छोटा सा थैला और पानी की बोतल भी उस के लिए सहेज दी थी. उस की कृतज्ञतापूर्ण दृष्टि नम हो आई थी, अजनबी कितने दयालु हो जाते हैं और अपने कितने निष्ठुर.

जागते हुए कसबे में सड़क बुहारने की आवाजों और दिन की तैयारी के छिटपुट संकेतों के बीच एक रिकशा फिर उन्हें बसअड्डे तक ले आया था. उस अजनबी, जिस का वह अभी तक नाम भी नहीं जानती थी, ने मथुरा की टिकट ले, उसे बस में बिठा दिया था. कृतज्ञ व नम आंखों से उसे देखती वह बोली थी, ‘‘शुक्रिया, क्या आप का नाम जान सकती हूं?’’ मुसकान के साथ उत्तर मिला था, ‘‘भाई ही कह लो.’’

‘‘आप के पैसे?’’

‘‘लौटाने की जरूरत नहीं है, कभी किसी की मदद कर देना.’’

पीएफ घोटाला एक जिम्मेदार दो 

यूपी पावर कारपोरेशन लिमिटेड में पीएफ यानी भविष्य निधि में 22 सौ करोड़ के घोटाले के लिये योगी सरकार समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार को मास्टर मांइड बता रही है. यूपी पावर कारपोरेशन लिमिटेड में पीएफ घोटाले के दो पहलू है पहला पहलू यह है कि इस घोटाले की नींव अखिलेश सरकार के समय 16 मार्च 2017 को रखी गई थी. 17 मार्च को 18 करोड़ रूपये डीएचएफएल के खाते में जमा करा दी गई थी. सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि मात्र 2 दिन के बाद 19 मार्च को उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने कार्यभार संभाल लिया. इसके बाद योगी सरकार के गौरवशाली 30 माह बीत गये सरकार को अपने नाक के नीचे चल रहे इस घाटाले का आभास तक नहीं हुआ.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अशोक मार्ग स्थित शक्ति भवन की जिस आलीशान इमारत से यह सारा गोरखधंधा चल रहा था वहां उत्तर प्रदेश सरकार के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा बैठते थे. इस बात पर कैसे यकीन कर लिया जाये की मंत्री की नाक के नीचे करोड़ो के पीएफ घोटाले की नदी बहती रही और श्रीकांत शर्मा को पता नहीं चला. उत्तर प्रदेश सरकार ने घोटाले को रोकने अपनी तरफ से कोई प्रयास नहीं किया. पीएफ घोटाले का पता तो तब चला जब बाम्बे हाई कोर्ट ने डीएचएफएल के द्वारा भुगतान पर रोक लगा दी. कानून किसी भी सरकार को कर्मचारियों की भविष्य निधि यानी पीएफ के पैसे को प्राइवेट सेक्टर में निवेश करने का हक नहीं है. अगर बाम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला नहीं आता तो पीएफ के पैसे आगे भी बराबर डीएचएफएल के खातें में जमा होते रहते.

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अखिलेश सरकार ने कर्मचारियों के पीएफ का पैसा डीएचएफएल यानी दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड में जमा कराने का गुनाह किया. योगी सरकार को 30 माह तक इस फैसले का पता क्यों नही चला? क्या कारण थे जिनकी वजह से योगी सरकार मौन धारण किये रही ? अगर बाम्बे हाईकोर्ट ने डीएचएफएल के खातों पर रोक नहीं लगाई होती तो क्या योगी सरकार कोई एक्शन लेती ? यह घोटाले की नदी ऐसे ही बहती रहती ? बाम्बे हाई कोर्ट के फैसले के बाद जागी योगी सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से बचने और खुद को पाकसाफ साबित करने के लिये पूरा ठीकरा अखिलेश सरकार पर डाल दिया. वह यह बातने को तैयार नहीं है कि 30 माह पहले इसको रोका क्यों नहीं गया. अगर योगी सरकार ने अपनी सरकार बनते ही इस फैसले पर रोक लगा दी होती तो केवल 18 करोड़ का ही नुकसान होता. 22 सौ करोड़ का नुकसान बच जाता.

अब पूरी तरह से यह मुददा राजनीतिक हो गया है. योगी सरकार इस घोटाले में अखिलेश सरकार के करीबी अफसर एपी मिश्रा को गिरफ्तार कर घोटाले से अखिलेश यादव को जोड़ रही है. अखिलेश यादव इस घोटाले के लिये योगी सरकार के उर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा को जिम्मेदार मान रहे है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू  2 कदम आगे निकलते हुये श्रीकांत शर्मा की विदेश यात्रा को घोटाले से जोड़ है. श्रीकांत शर्मा इन आरोपों को नकारते हुए कहते है कि वह कभी विदेश यात्रा पर गये ही नहीं. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पर मानहानि के मुकदमें की धमकी भी देते है. अखिलेश यादव पूरी जांच वर्तमान न्यायाधीशों के पैनल से कराने की मांग कर रहे है. ऐसे में सच तभी सामने आयेगा जब सही तरह से जांच होगी. केवल कुछ अफसरों को जेल भेजने से काम नहीं चलेगा. ऐसे फैसले सरकार के स्तर पर होते है. ऐसे में सरकारी तंत्र पर इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए. चाहे वह अखिलेश सरकार के समय की हो या योगी सरकार के समय.

ग्रैंड फैस्टिवल स्पैशल : मंदी में फीका रहा सीजन

फैस्टिव सीजन में कई सैक्टर फलफूल रहे हैं जबकि औटो कंपनियों पर मंदी का असर बना हुआ है. मांग में कमी की वजह से मारुति, टाटा और अशोक लीलैंड जैसी औटो कंपनियों को अपने उत्पादन में कटौती करनी पड़ी है. बिक्री में बीते एक साल से लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. डीलरशिप और कारखानों में बड़े पैमाने पर जमा वाहनों की वजह से औटो कंपनियों को कारखाना उत्पादन बंद करने को मजबूर होना पड़ा है.

कार कंपनियों में अगुआ मारुति सुजुकी ने स्टौक एक्सचेंजों को बताया है कि सितंबर में उस ने अपने उत्पादन में 17.5 फीसदी की कटौती की है. कमजोर मांग के चलते लगातार 8वें महीने मारुति को अपने उत्पादन में कटौती करनी पड़ी है. कंपनी ने सितंबर में 1,32,199 वाहनों का उत्पादन किया, जबकि पिछले साल इसी महीने में कंपनी ने 1,60,219 वाहनों का उत्पादन किया था.

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आल्टो, वैगनआर, स्विफ्ट, बलेनो और डिजायर जैसी छोटी और मिनी कारों का उत्पादन सितंबर के दौरान घट कर 98,337 रह गया है, जबकि पिछले महीने इसी दौरान ऐसी कारों की 1,15,576 यूनिट का उत्पादन हुआ था. यानी इस उत्पादन में 14.9 फीसदी की गिरावट आई है.

इसी तरह, मारुति के ब्रेजा, अर्टिगा और एस-क्रौस यूटिलिटी वाहनों का उत्पादन भी 17 फीसदी गिर कर 18,435 यूनिट रह गया. मध्यम आकार की सेडान कार सियाज की बिक्री में 50 फीसदी के करीब गिरावट आई और पिछले साल के 4,739 यूनिट के मुकाबले इस सितंबर में सिर्फ 2,350 यूनिट बिक्री हुई है.

सितंबर महीने में मारुति सुजुकी, हुंडई, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा, टाटा मोटर्स, टोयोटा और होंडा जैसी बड़ी औटो कंपनियों की बिक्री में 2 अंकों की गिरावट देखी गई. त्योहारी सीजन शुरू हो चुका है और दीवाली पर औटो कंपनियों की बिक्री में कोई बहुत अच्छे संकेत नहीं दिख रहे हैं.

टाटा-अशोक लीलैंड ने भी अपना प्रोडक्शन कम किया है. कंपनी ने घोषणा की है कि वह अक्तूबर में अपने कई कारखानों में 15 दिन तक उत्पादन बंद रखेगी. टाटा मोटर्स की भी सितंबर महीने की बिक्री में 63 फीसदी की गिरावट आई है. कंपनी ने सितंबर 2019 में सिर्फ 6,976 वाहन बेचे हैं, जबकि सितंबर 2018 में कंपनी ने 18,855 वाहन बेचे थे. टाटा मोटर्स ने भी बिना किसी पूर्व योजना के उत्पादन में कटौती की है. जरमन औटो कंपोनैंट कंपनी बौश इंडिया ने भी इस साल अक्तूबर से दिसंबर में अपना उत्पादन 10 दिन तक बंद रखने का ऐलान किया है.

औटो सैक्टर में इस मंदी को देखते हुए सरकार अब खास कदम उठा रही है. सरकार औटो सैक्टर पर लगी जीएसटी की दरों को कुछ कम कर रही है, साथ ही राज्य सरकारें भी अपनेअपने स्तर पर तमाम प्रयास कर रही हैं.

गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा है कि 31 दिसंबर तक नए वाहनों की खरीद पर सड़क कर 50 प्रतिशत तक घटाने को मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है. हालांकि 2 पहिया वाहनों की खरीद में कुछ तेजी देखी जा रही है. बजाज औटो और टीवीएस मोटर्स ने खास औफर्स की पेशकश की है. बजाज औटो दीवाली पर पल्सर और एवैंजर रेंज की मोटरसाइकिलों पर 0 फीसदी फाइनैंस की स्कीम पेश कर रही है. वहीं, टीवीएस नए औफर्स के तहत अपने स्कूटर पर दीवाली औफर्स की बौछार कर रही है और 6,999 रुपए के न्यूनतम डाउन पेमैंट के साथ बिक्री कर रही है.

दोपहिया वाहनों पर औफर्स की बौछार

बजाज औटो ने अपने ग्राहकों को डिस्काउंट के साथसाथ कैशबैक का तोहफा दिया है. इस त्योहारी मौसम में कंपनी ने अपनी चुनिंदा बाइक्स पर डिस्काउंट और अन्य औफर्स की पेशकश की है. कंपनी अपनी एंट्री लैवल बाइक सीटी 100 से ले कर प्रीमियम बाइक डोमिनर पर 6,000 रुपए तक का डिस्काउंट औफर दे रही है.

इस के अलावा इन बाइक्स पर 6,000 रुपए तक के डिस्काउंट के साथ 5 फ्री सर्विसेज और 5 साल की वारंटी भी मिल रही है. साथ ही कंपनी ने इन बाइक्स पर लो डाउन पेमैंट का औफर भी दिया है जोकि 3,499 रुपए से शुरू होता है. कंपनी अपनी कुछ बाइक्स पर 2,100 रुपए और प्रीमियम बाइक्स पर 6,400 रुपए का डिस्काउंट भी दे रही है. वी 15 बाइक की कीमत पहले 63,080 रुपए थी जो अब 2,100 रुपए के डिस्काउंट के बाद 61,580 रुपए हो गई है. वहीं पल्सर सीरीज की बाइक्स पर 4,600 रुपए से ले कर 6,400 रुपए तक का कैश डिस्काउंट दिया जा रहा है. प्लेटिना पर 1,500 रुपए जबकि बजाज सीटी 100 (सैल्फ स्टार्ट) पर 1,000 रुपए का फायदा मिल रहा है. मंदी के इस दौर में यह पहली बार है जब बजाज औटो कंपनी इतने अच्छे औफर्स और डिस्काउंट अपने ग्राहकों के लिए ले कर आई है. ऐसे में बजाज लवर्स के लिए अपनी पसंदीदा बाइक खरीदने का यह एक शानदार मौका है.

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हीरो मोटोकौर्प भी अपने ग्राहकों के लिए विशेष औफर्स ले कर आई है. औटो इंडस्ट्री के लिए फैस्टिव सीजन का समय काफी अहम होता है क्योंकि भारत में लोग इस दौरान नया और कीमती सामान खरीदते हैं. ऐसे में कंपनी स्कूटर पर 3,000 रुपए का डिस्काउंट और सरकारी कर्मचारियों को 1,500 रुपए के अतिरिक्त डिस्काउंट का औफर दे रही है. यह डिस्काउंट सभी स्कूटर्स पर दिया जा रहा है.

इस के अलावा 6.99 फीसदी की ब्याज दर, रुपए 3,999 डाउन पेमैंट औफर और 10 हजार का पेटीएम का लाभ भी मिल रहा है.

टीवीएस भी धमाकेदार औफर के साथ बाजार में उतरा है. इस त्योहार सीजन में टीवीएस मोटर ने अपने वाहनों पर 5 साल की वारंटी का औफर पेश किया है, और इस के लिए ग्राहकों को ऐक्स्ट्रा पैसे देने की जरूरत नहीं है. साथ ही डाउन पेमैंट 5,999 रुपए, जीरो फीसदी प्रोसेसिंग फीस, जीरो फीसदी डौक्यूमैंटेशन चार्ज के साथ 8,500 रुपए की बचत का मौका भी दिया जा रहा है.

प्रमुख दोपहिया वाहन निर्माता कंपनी हीरो मोटोकौर्प इस त्योहारी मौसम में अपने ग्राहकों के लिए शानदार मौका ले कर आई है. कंपनी ने नई स्कीम ‘करोड़ों का त्योहार’ की शुरुआत की है. इस औफर के तहत आप महज 3,999 रुपए दे कर हीरो के शानदार स्कूटर और महज 4,999 रुपए दे कर कंपनी की कंप्यूटर सेग्मैंट की बाइक को घर ला सकते हैं.

हीरो अपने ग्रहकों के लिए बाइक रेंज पर इस त्योहारी मौसम में 1,500 रुपए का फैस्टिव कैश डिस्काउंट भी दे रही है. इस समय कंपनी के कंप्यूटर सेग्मैंट में हीरो प्लेजर, डैस्टिनी और ड्यूएट जैसी गाडि़यां हैं. अगर आप इन में से किसी एक बाइक को फाइनैंस कराते हैं तो आप को महज 4,999 रुपए बतौर डाउन पेमैंट देने होंगे. इस पर महज 6.99 प्रतिशतकी दर से ब्याज लगाया जाएगा. इस की शुरुआती मासिक ईएमआई महज 1,750 रुपए है.

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बहू हो या बेटी : भाग 1

शारदा ने बहू हिना की बेटी की तरह सेवा की. यह उस की सेवा का ही फल था कि मानसिक रूप से अस्वस्थ हिना धीरेधीरे ठीक होने लगी और शारदा के करीब आने लगी. यहां तक कि उस ने अपने अतीत के काले पन्नों को भी उन के सामने खोल कर रख दिया था.

रूबी ताई ने जैसे ही बताया कि हिना छत पर रेलिंग पकड़े खड़ी है तो घर में हलचल सी मच गई.

‘‘अरे, वह छत पर कैसे चली गई, उसे तीसरे माले पर किस ने जाने दिया,’’ शारदा घबरा उठी थीं, ‘‘उसे बच्चा होने वाला है, ऐसी हालत में उसे छत पर नहीं जाना चाहिए.’’

आदित्य चाय का कप छोड़ कर तुरंत सीढि़यों की तरफ दौड़ा और हिना को सहारा दे कर नीचे ले आया. फिर कमरे में ले जा कर उसे बिस्तर पर लिटा दिया.

हिना अब भी न जाने कहां खोई थी, न जाने किस सोच में डूबी हुई थी.

हिना का जीवन एक सपना जैसा ही बना हुआ था. खाना बनाती तो परांठा तवे पर जलता रहता, सब्जी छौंकती तो उसे ढकना भूल जाती, कपड़े प्रेस करती तो उन्हें जला देती.

हिना जब बहू के रूप में घर में आई थी तो परिवार व बाहर के लोग उस की खूबसूरती देख कर मुग्ध हो उठे थे. उस के गोरे चेहरे पर जो लावण्य था, किसी की नजरों को हटने ही नहीं देता था. कोई उस की नासिका को देखता तो कोई उस की बड़ीबड़ी आंखों को, किसी को उस की दांतों की पंक्ति आकर्षित करती तो किसी को उस का लंबा कद और सुडौल काया.

सांवला, साधारण शक्लसूरत का आदित्य हिना के सामने बौना नजर आता.

शारदा गर्व से कहतीं, ‘‘वर्षों खोजने पर यह हूर की परी मिल पाई है. दहेज न मिला तो न सही पर बहू तो ऐसी मिली, जिस के आगे इंद्र की अप्सरा भी पानी भरने लगे.’’

धीरेधीरे घर के लोगों के सामने हिना के जीवन का दूसरा पहलू भी उजागर होने लगा था. उस का न किसी से बोलना न हंसना, न कहीं जाने का उत्साह दिखाना और न ही किसी प्रकार की कोई इच्छा या अनिच्छा.

‘‘बहू, तुम ने आज स्नान क्यों नहीं किया, उलटे कपडे़ पहन लिए, बिस्तर की चादर की सलवटें भी ठीक नहीं कीं, जूठे गिलास मेज पर पडे़ हैं,’’ शारदा को टोकना पड़ता.

फिर हिना की उलटीसीधी विचित्र हरकतें देख कर घर के सभी लोग टोकने लगे, पर हिना न जाने कहां खोई रहती, न सुनती न समझती, न किसी के टोकने का बुरा मानती.

एक दिन हिना ने प्रेस करते समय आदित्य की नई शर्ट जला डाली तो वह क्रोध से भड़क उठा, ‘‘मां, यह पगली तुम ने मेरे गले से बांध दी है. इसे न कुछ समझ है न कुछ करना आता है.’’

उस दिन सभी ने हिना को खूब डांटा पर वह पत्थर बनी रही.

शारदा दुखी हो कर बोलीं, ‘‘हिना, तुम कुछ बोलती क्यों नहीं, घर का काम करना नहीं आता तो सीखने का प्रयास करो, रूबी से पूछो, मुझ से पूछो, पर जब तुम बोलोगी नहीं तो हम तुम्हें कैसे समझा पाएंगे.’’

एक दिन हिना ने अपनी साड़ी के आंचल में आग लगा ली तो घर के लोग उस के रसोई में जाने से भी डरने लगे.

‘‘हिना, आग कैसे लगी थी?’’

‘‘मांजी, मैं आंचल से पकड़ कर कड़ाही उतार रही थी.’’

‘‘कड़ाही उतारने के लिए संडासी थी, तौलिया था, उन का इस्तेमाल क्यों नहीं किया था?’’ शारदा क्रोध से भर उठी थीं, ‘‘जानती हो, तुम कितनी बड़ी गलती कर रही थीं…इस का दुष्परिणाम सोचा है क्या? तुम्हारी साड़ी आग पकड़ लेती तब तुम जल जातीं और तुम्हारी इस गलती की सजा हम सब को भोगनी पड़ती.’’

आदित्य हिना को मनोचिकित्सक को दिखाने ले गया तो पता लगा कि हिना डिप्रेशन की शिकार थी. उसे यह बीमारी कई साल पुरानी थी.

‘‘डिपे्रशन, यह क्या बला है,’’ शारदा के गले से यह बात नहीं उतर पा रही थी कि अगर हिना मानसिक रोगी है तो उस ने एम.ए. तक की पढ़ाई कैसे कर ली, ब्यूटीशियन का कोर्स कैसे कर लिया.

‘‘हो सकता है हिना पढ़ाई पूरी करने के बाद डिप्रेशन की शिकार बनी हो.’’

आदित्य ने फोन कर के अपने सासससुर से जानकारी हासिल करनी चाही तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर कर दी.

शारदा परेशान हो उठीं. लड़की वाले साफसाफ तो कुछ बताते नहीं कि उन की बेटी को कौन सी बीमारी है, और कुछ हो जाए तो सारा दोष लड़के वालों के सिर मढ़ कर अपनेआप को साफ बचा लेते हैं.

‘‘मां, इस पागल के साथ जीवन गुजारने से तो अच्छा है कि मैं इसे तलाक दे दूं,’’ आदित्य ने अपने मन की बात जाहिर कर दी.

घर के दूसरे लोगोें ने आदित्य का समर्थन किया.

घर में हिना को हमेशा के लिए मायके भेजने की बातें अभी चल ही रही थीं कि एक दिन उसे जोरों से उलटियां शुरू हो गईं.

डाक्टर के यहां ले जाने पर पता चला कि वह मां बनने वाली है.

‘‘यह पागल हमेशा को गले से बंध जाए इस से तो अच्छा है कि इस का एबौर्शन करा दिया जाए,’’ आदित्य आक्रोश से उबल रहा था.

शारदा का विरोध घर के लोगों की तेज आवाज में दब कर रह गया.

आदित्य, हिना को डाक्टर के यहां ले गया,  पर एबौर्शन नहीं हो पाया क्योंकि समय अधिक गुजर चुका था.

घर में सिर्फ शारदा ही खुश थीं, सब से कह रही थीं, ‘‘बच्चा हो जाने के बाद हिना का डिप्रेशन अपनेआप दूर हो जाएगा. मैं अपनी बहू को बेटी के समान प्यार दूंगी. हिना ने मेरी बेटी की कमी दूर कर दी, बहू के रूप में मुझे बेटी मिली है.’’

अब शारदा सभी प्रकार से हिना का ध्यान रख रही थीं, हिना की सभी प्रकार की चिकित्सा भी चल रही थी.

लेकिन हिना वैसी की वैसी ही थी. नींद की गोलियों के प्रभाव से वह घंटों तक सोई रहती, परंतु उस के क्रियाकलाप पहले जैसे ही थे.

‘‘अगर बच्चे पर भी मां का असर पड़ गया तो क्या होगा,’’ आदित्य का मन संशय से भर उठता.

‘‘तू क्यों उलटीसीधी बातें बोलता रहता है,’’ शारदा बेटे को समझातीं, ‘‘क्या तुझे अपने खून पर विश्वास नहीं है? क्या तेरा बेटा पागल हो सकता है?’’

‘‘मां, मैं कैसे भूल जाऊं कि हिना मानसिक रोगी है.’’

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