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फेस्टिवल स्पेशल 2019: घर पर बनाएं इडली मंचूरियन

फेस्टिव सीजन का  चल रहा है. इस सीजन में आप कोई ऐसा डिश बनना चाहती होगी. जो आसानी से बन भी जाए और खाने में टेस्टी भी हो. तो आइए झट से बताते हैं आपको इडली मंचूरियन की रेसिपी.

सामग्री

इडली- 10 पीस

कार्नफ्लोर- आधा कप

मैदा- आधा कप

सोया सौस- 1 चम्मच

अदरक लहसून पेस्ट- आधा चम्मच

तेल

ग्रेवी के लिएः प्याज, हरी मिर्च, छोटा पीस अदरक, शिमला मिर्च, सोया सौस, तेल, कौर्नफ्लोर, एक कप स्प्रिंग औनियन.

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बनाने की विधि

सबसे पहले इडली को छोटे पीस में काट लें.

दूसरी ओर सभी सामग्रियों को मिक्स कर के पेस्ट तैयार करें. जैसे- मैदा, कार्नफ्लोर, अदरक लहसुन पेस्ट, हल्का सा नमक और पानी. अब इडली के पीस को इस घोल में डुबो कर डीप फ्राई करें.

इडली फ्राई कर के किनारे रखें.

अब प्याज, हरी मिर्च, अदरक और शिमला मिर्च को बारीक काट लें. एक कढ़ाही में 1 चम्मच तेल डालें और उसमें इन सामग्रियों को हल्का भून लें.

उसके बाद इसमें आधा चम्मच सोया सौस मिला कर ऊपर से फ्राइड इडली डाल दें. अब इसमें कार्नफ्लोर को 2 कप पानी के साथ मिक्स करें.

इसे उबाल कर आंच से हटा दें. ऊपर से हरी पत्तेदार प्याज को छिड़के और इडली मंयूरियन गरमागरम सर्व करें.

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डीआईवाई विधि: ऐसे बचाएं अपनी त्वचा को प्रदूषण से

डा. रिंकी कपूर

वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण एवं शरीर व त्वचा पर अंदर से बाहर तक इसके नुकसान वास्तविक हैं और इनसे बचने का कोई तरीका नहीं. हर बीतते दिन के साथ वायु प्रदूषण के व्यापक प्रभाव चिंता का विषय बनते जा रहे हैं. वायु प्रदूषण के कारण त्वचा को सांस लेना मुश्किल हो गया है और त्वचा रूखी होती जा रही हैं एवं इसमें जरूरी पोषक तत्व खत्म होते जा रहे हैं.

हमारी त्वचा बाहरी तत्वों से हमारी रक्षा करती है. इस त्वचा पर पराबैंगनी किरणें, सिगरेट का धुआँ तथा विभिन्न मशीनों से निकलने वाला धुआं पड़ता है, जिसमें घुलनशील कार्बनिक कंपाउंड एवं एरोमैटिक हाईड्रोकार्बन और ओजोन होते हैं. हमारी त्वचा इस केमिकल्स एवं प्रदूषक तत्वों से हमारी रक्षा करती है. हालांकि यदि आप अपनी त्वचा को वायु प्रदूषण से नहीं बचाएंगे, तो हवा में मौजूद प्रदूषक तत्व विभिन्न समस्याएं पैदा कर सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:

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समयपूर्व बुढ़ापा

भूरे धब्बे

स्किन का असमान टोन

डिहाईड्रेशन

मुहांसे

एटोपिक डर्मेटिटिस

सोरियासिस

एक्जेमा

रोसाकिया

त्वचा का कैंसर

विविध वायु प्रदूषकों के कारण त्वचा अलग अलग तरह से प्रभावित होती है. उदाहरण के लिए नाईट्रोजन डाई आक्साईड एवं सल्फर डाई आक्साईड जैसे वायु प्रदूषक यूवीआर एवं यूवी रेडिएशन को फैला देते हैं, लेकिन स्माग में भी ये एक्टिव अवयव होते हैं, जो त्वचा को नुकसान पहुंचाता है. वायु प्रदूषण का प्रभाव अनेक तत्वों पर निर्भर होता है, जैसे प्रदूषक तत्वों की प्रकृति क्या है और त्वचा वायु प्रदूषण के कितने संपर्क में है तथा उसकी इंटीग्रिटी क्या है. त्वचा की सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता असीमित नहीं तथा पर्यावरण के तत्वों में निरंतर रहने से त्वचा की आत्मरक्षा की प्रणाली कम हो जाती है. परिणामस्वरूप, त्वचा प्राकृतिक एंटीऔक्सीडैंट बनाने की अपनी क्षमता खो देती है.

अच्छी बात यह है कि त्वचा पर वायु प्रदूषण के प्रभाव के आंकलन के लिए ज्यादा से ज्यादा शोध हो रही है और त्वचा को वायु प्रदूषण से बचाने तथा इसको हुए नुकसान को रिपेयर करने के तरीके मौजूद हैं.

वायु प्रदूषण में मौजूद कण बड़े होते हैं, इसलिए वो त्वचा को बेधकर अंदर नहीं जा पाते, लेकिन प्रदूषक तत्वों से जुड़े कैमिकल्स त्वचा को बेधकर अंदर जा सकते हैं और कोशिकाओं की जेनेटिक संरचना बदल सकते हैं. आप कुछ सहज विधियों से अपनी त्वचा की रक्षा कर सकते हैं और इसे युवा एवं निखरा स्वरूप फिर से प्रदान कर सकते हैं.

हाईड्रेट: प्रतिदिन ढेर सारा पानी पिएं और त्वचा को अंदर से हाईड्रेटेड रखें. हाईड्रेशन से त्वचा का लचीलापन बढ़ता है और त्वचा की प्राकृतिक सुरक्षात्मक गुणवत्ता बढ़ती है. हाईड्रेशन से विषैले तत्व शरीर से बाहर निकल जाते हैं.

प्रतिदिन स्क्रब करें: यदि आपको प्रतिदिन लंबे समय तक घर से बाहर रहना पड़ता है, तो आपको अपना चेहरा एवं त्वचा के हवा से संपर्क में रहने वाले हिस्सों को प्रतिदिन स्क्रब करना चाहिए. रोज 10 सेकंड तक स्क्रब करें, इससे आपकी त्वचा प्रदूषक तत्वों से होने वाले नुकसान को ठीक कर लेगी.

त्वचा को क्लींस करें और दो बार क्लींस करें: अपनी त्वचा को क्लींस किए बिना सोएं नहीं. पहले क्लीनिंग वाईप या मेकअप रिमूवर से त्वचा को साफ कर मेकअप, धूल व मिट्टी हटा लें. इसके बाद अपने चेहरे को क्लीनसर से धोएं और त्वचा पर मौजूद प्रदूषक तत्वों को हटा दें. बेहतर क्लीनिंग के लिए आप क्लीनसिंग ब्रश का इस्तेमाल कर सकते हैं.

त्वचा पर प्रोटेक्टेंट्स की परत चढ़ा दें: घर से बाहर निकलने से पहले अपनी त्वचा पर टोनर, मौईस्चराईजर एवं सनस्क्रीन की लेयर लगा लें. टोनर, मौईस्चराईजर एवं सनस्क्रीन बाहर निकलने से कम से कम 40 मिनट पहले लगाने चाहिए. हर 2 से 3 घंटे में सनस्क्रीन दोबारा लगाएं.

फेस पैक्स का इस्तेमाल करें: ऐसे फेस पैक्स का इस्तेमाल करें, जिनमें अवयव के रूप में एंटीऔक्सीडेंट मिले हों. फेस पैक्स रेडिकल्स को हटाते हैं और त्वचा को पोषण देकर उसमें सेहतमंद निखार लाते हैं.

मसाज: अपनी त्वचा को सप्ताह में एक बार कोकोनट औईल से मसाज करें और मसाज के बाद गुनगुने पानी से नहाएं. कोकोनट औईल की मसाज से त्वचा को आराम मिलेगा व यह क्लींस होगी.

अपनी आंखों को ब्लू लाईट से बचाएं: हमारी डिजिटल डिवाईसेस ब्लू लाईट उत्सर्जित करती हैं, जो आंखों व त्वचा के लिए बहुत नुकसानदायक है. तनाव कम करने के लिए अपनी डिवाईसेस यलो लाईट पर सेट करें.

अपने आहार में विटामिन बी3 शामिल करें: विटामिन बी3 धूल, धुएं और सिगरेट के धुएं के नुकसानों से बचने के लिए सर्वश्रेष्ठ अवयव है. अपनी दिनचर्या में विटामिन बी3 की सही खुराक जानने के लिए अपने डर्मेटोलाजिस्ट से संपर्क करें. विटामिन बी3 त्वचा की कोशिकाओं को होने वाले नुकसान को कम करता है, स्किन बैरियर को मजबूत करता है तथा यूवी से होने वाली क्षति को रिपेयर करता है.

उद्योगों के आसपास के इलाकों, सार्वजनिक धूम्रपान कक्ष से बचें एवं यदि आपको प्रदूषित हवा में रहना पड़े तो अच्छी क्वालिटी का एयर मास्क लेकर अपनी त्वचा की रक्षा करें. घर में एयर प्योरिफायर एवं वेंटिलेटर्स का उपयोग करें.

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क्या खरीदें

आप सही स्किन केयर उत्पाद की मदद से अपनी त्वचा को हवा के प्रदूषक तत्वों व उनके प्रभावों से सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं. ऐसे एंटीपौल्यूशन अवयव चुनें, जिनमें एंटीऔक्सीडेंट हों. सूदिंग अवयव प्रदूषण से होने वाली क्षति को न्यूट्रलाईज करते हैं तथा त्वचा की सतह से खोए एसेंशियल एलीमेंट्स का नवीकरण करते हैं.

यदि आपकी त्वचा पर वातावरण से क्षति हो रही है और आपको इसकी चिंता है, तो आपको अपनी स्किन के प्रकार तथा प्रतिदिन आपकी त्वचा को प्रभावित करने वाले वातावरण के कारकों के अनुकूल सही इलाज के लिए अपने डर्मेटोलाजिस्ट से संपर्क करना चाहिए. डर्मेटोलाॅजिस्ट इलाज की विविध विधियों, जैसे माईक्रोडर्माब्रेज़न, केमिकल पील्स एवं मेसोथेरेपी द्वारा त्वचा पर प्रदूषण के नुकसान को कम कर सकते हैं.

डा. रिंकी कपूर एक प्रतिष्ठित कास्मेटिक डर्मेटोलौजिस्ट एवं मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद और कोलकाता में स्थित द एस्थेटिक्स क्लिनिक्स की को-फाउंडर हैं. वो द एस्थेटिक्स क्लिनिक्स एवं फोर्टिस हास्पिटल्स, मुंबई में कंसल्टैंट डर्मेटोलौजिस्ट, कौस्मेटिक डर्मेटोलौजिस्ट एवं डर्मेटो-सर्जन हैं. वो कास्मेटिक डर्मेटोलौजी एवं लेज़र्स, अपोलो हास्पिटल्स, हैदराबाद की एक्स-हेड हैं.

उन्होंने डर्मेटोलाजी, डर्मेटो-सर्जरी एवं लेजर्स, नेशनल स्किन सेंटर, सिंगापुर में अपनी फैलोशिप की है और वह स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल औफ मेडिसीन, सीए, यूएसए में विज़िटिंग फैलो हैं. वो ‘‘मार्किस हूज हू’’ का हिस्सा हैं और विविध एजेंसीज़ द्वारा ‘बेस्ट डर्मेटोलाजिस्ट इंडिया’ चुनी गई हैं.

रोमांच का नया नाम बोल्डरिंग  

बोल्डरिंग यानी चट्टानों पर चढ़ने का एकदम नया और पहले से कहीं ज्यादा रोमांचक तरीका. इस तरह से जिस चट्टान पर चढ़ाई की जाती है, वह छोटी होती है. ऐसी ही छोटी चट्टानों को कहते हैं बोल्डर. खास बात यह है कि इन चट्टानों पर सिर्फ हाथों व पैरों का प्रयोग कर चढ़ा जाता है. यानी किसी प्रकार की रस्सी या पहाड़ पर चढ़ने के काम आने वाले किसी भी साजोसामान का प्रयोग नहीं होता.

यह खेल काफी खतरनाक भी है. कई बार लोग अपना शौक पूरा करने के लिए किसी विशाल कमरे में बनी चट्टान जैसी संरचना पर चढ़ते हैं. वैसे ज्यादातर लोग विशेष प्रकार के जूते जरूर पहनते हैं. अपने हाथों को भी वे एकदम सूखा रखते हैं ताकि हाथ फिसले नहीं. कमरे के अंदर बनाई गई नकली चट्टान के नीचे मोटी दरी भी बिछा दी जाती है ताकि कोई गिरे तो दरी की वजह से उसे ज्यादा चोट न लगे.

कई बार चट्टान पर चढ़ने वाला क्षैतिज अवस्था यानी जमीन के समानांतर भी ऊपर की ओर चढ़ता है. इसे नाम दिया गया है ट्रेवरसेज. इस खेल की प्रतियोगिता अंदर यानी नकली चट्टानों और बाहर यानी प्राकृतिक चट्टानों पर भी होती है. ये खेल शारीरिक ताकत के अलावा अंगुलियों की ताकत बढ़ाने के लिए काफी अच्छा माना जाता है.

ऐसी चट्टानें ग्रेनाइट की होती हैं, जो दरारों से भरी होती हैं. इन पर चढ़ना आसान होता है.

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हर देश में चाहे वह अमेरिका हो या कनाडा या फिर भारत, इस खेल को खेलने वालों ने कई स्थान यानी चट्टानें चिह्नित की हैं, जो इस खेल के लिए सब से ज्यादा उपयुक्त चट्टानें हैं.

भारत में कर्नाटक के बादामी को बोल्डरिंग खेल के लिए अतिउत्तम माना जाता है. यहां की चट्टानें रेतीली मिट्टी की बनी हैं, जिस की वजह से चढ़ने वाले को अच्छी पकड़ मिलती है. इन चट्टानों के एक तरफ छांव रहती है इसीलिए इस पर चढ़ते समय व्यक्ति धूप से बचा रहता है.

कर्नाटक के हंपी में यानी बादामी से 3 घंटे की यात्रा कर के हंपी आया जा सकता है. ये स्थान भी बोल्डरिंग के लिए बेहद लोकप्रिय है. यहां तमाम तरह की चट्टानें हैं. यहां व्यक्ति अपनी मरजी से इन चट्टानों में से एक को चुन सकता है. यहां की चट्टानें ग्रेनाइट की हैं जो दरारों से भरी हैं और किसी भी चढ़ने वाले के लिए वरदान साबित होती हैं.

कर्नाटक में ही चित्रदुर्गा की चट्टानें बोल्डरिंग के लिए तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं. ये चट्टानें भी ग्रेनाइट की ही हैं और इन में  दरारें भी खूब हैं. अगर चढ़ने वाले का शौक है कि वह ऊंची चट्टान पर चढ़े तो इसे कहते हैं हाईबौल बोल्डरिंग. ज्यादातर 15 फुट से ऊंची चट्टान को हाईबौल कहते हैं. आज लोग इस से भी ज्यादा ऊंचाई पर चढ़ रहे हैं. यह खेल पूरी दुनिया में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है और खतरों के बावजूद इस के शौकीन बढ़ रहे हैं.

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आम पौधे की खास रोपाई तकनीक

डा. बालाजी विक्रम, पूर्णिमा सिंह सिकरवार

आम की खेती के लिए पौध रोपाई आमतौर पर 10-12 मीटर पर की जा रही है. इस में केवल 70-100 पेड़ एक हेक्टेयर क्षेत्र में लगाए जा सकते हैं. इस प्रणाली के तहत उपलब्ध क्षेत्र या जमीन का बहुत अधिक कुशलता से उपयोग नहीं किया जा सकता है. इस वजह से कम पैदावार मिलती है, वहीं पासपास पौध की रोपाई से बाग को 375-450 से अधिक पेड़ों को रोपा जा सकता है.

पासपास तय दूरी पर बाग लगाने के लिए जमीन के मुहैया होने में लगातार गिरावट, बागबानी ऊर्जा की बढ़ती मांग, ऊर्जा व जमीन की लागत में लगातार गिरावट के नतीजे हैं. पेड़ों की बढ़ी हुई तादाद प्रति हेक्टेयर के अलावा एक उच्च घनत्व वाला बाग, रोपने के बाद 2-3 सालों के भीतर असर में आना चाहिए.

जैसेजैसे पेड़ का घनत्व बढ़ेगा, पैदावार तकरीबन 2,500 टन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ जाएगी.

उच्च घनत्व वाले बागों में न केवल शुरुआती सालों में प्रति यूनिट क्षेत्र में अच्छी पैदावार मिलती है, वहीं खालिस मुनाफा भी होता है. अच्छे उर्वरक, खादपानी, पौधों की सुरक्षा के उपायों को अपना कर खरपतवार नियंत्रण पर काबू पाना आसान होता है. इसलिए यह तकनीक  ‘आम्रपाली’ आम के लिए विकसित की गई थी जो आनुवंशिक रूप से बौनी किस्म है. पेड़ों को त्रिकोणीय प्रणाली के साथ (2.5 मीटर × 2.5 मीटर) लगाने की सिफारिश की गई है. इस में प्रति हेक्टेयर 1,600 पेड़ हैं.

यदि मुमकिन हो, तो बाग को साफसुथरी जगह पर लगाया जाना चाहिए. इस प्रणाली में रूटस्टौक्स को सीधे बाग में लगाया जाना चाहिए, जो बाद में खेत में ही तैयार हो जाता है.

पेड़ को झाड़ी का रूप देने के लिए टर्मिनल की शाखाओं से 2 साल के लिए पौधों की छंटाई की जानी चाहिए. 3 साल बाद पौधे फल देना शुरू कर देते हैं.

‘आम्रपाली’ में मुनाफाखोरी है. यह फल के आकार को कम करती?है इसलिए फलों के आकार को बढ़ावा देने के लिए पतला होना जरूरी?है. 7-8 साल की उम्र के पेड़ से अच्छे फल की उम्मीद की जाती है.

12 साल बाद पेड़ घना हो जाता है जो बदले में फल की पैदावार को कम कर देता है. इसलिए पेड़ों को अच्छी धूप में रखने के लिए सालाना नियमित छंटाई की जरूरत होती है.

ज्यादा आमदनी हासिल करने के लिए पैदावार को बेहतर बनाए रखने के लिए बाग में पोषण प्रबंधन जरूरी है, इसलिए पौधे के विकास के 10 साल बाद पेड़ के प्रत्येक बेसिन में 20-25 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद, 2.17 किलोग्राम यूरिया, 3.12 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 2.10 किलोग्राम पोटैशियम सल्फेट डालें.

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शुरू के सालों में यानी 1 साल में 10 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद, 217 ग्राम यूरिया, 312 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 210 ग्राम पोटैशियम सल्फेट डालें.

फार्म यार्ड खाद और फास्फोरस अक्तूबर माह में ही डाल देना चाहिए. यूरिया और पोटैशियम सल्फेट की आधी खुराक अक्तूबर माह में और बाकी आधी मात्रा जूट की फसल की कटाई (जूनजुलाई माह) के बाद दी जाती?है.

जस्ता और मैंगनीज की कमी को पूरा करने के लिए मार्चअप्रैल, जून और सितंबर माह के दौरान 2 फीसदी जिंक सल्फेट और 1 फीसदी चूना डाला जाना चाहिए, वहीं पर्ण स्प्रे द्वारा 0.5 फीसदी मैंगनीज सल्फेट. बोरेक्स 250-500 ग्राम प्रति पेड़ का छिड़काव फलों की क्वालिटी में सुधार करने में मदद करता है.

अप्रैलमई माह में 10 दिनों के अंतराल पर बोरेक्स की 0.6 फीसदी घोल के साथ बोरोन की कमी होने पर छिड़कें. सिंचाई ठीक से होनी चाहिए. ड्रिप सिंचाई अत्यधिक कारगर है और फलों की क्वालिटी में भी सुधार करती है.

कुलतार का प्रयोग

आम के पेड़ में हर साल फल आने व पेड़ की बढ़वार के नियंत्रण के लिए कुलतार यानी पैक्लोब्यूटाजोल का इस्तेमाल किया जाता है. इस के लिए हर पेड़ को उस की सालाना उम्र पर 1 मिलीलिटर कुलतार को 5 लिटर पानी में मिला कर मुख्य तने के चारों ओर मिट्टी में मिला कर हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए.

उत्तर भारत में कुलतार के इस्तेमाल का सही समय 15 सितंबर से 15 नवंबर माह माना जाता है. इस के इस्तेमाल से जुलाईअगस्त माह में आई नई शाखाओं पर, फरवरीमार्च माह में फूलों का खिलना व फलना शुरू हो जाता है.

कीट व रोगों की रोकथाम

नाशकीट प्रबंधन : आम के पौधों को नर्सरी से ले कर फल लगने तक तकरीबन दर्जनभर कीटों की प्रजातियां नुकसान पहुंचाती हैं इसलिए इन की रोकथाम बेहद जरूरी है. इन में से मुख्य कीट जैसे भुनगा, गुजिया, डासी मक्खी वगैरह आम की फसल को अच्छाखासा नुकसान पहुंचाती हैं. इन की रोकथाम कुछ इस तरह करनी चाहिए.

भुनगा : इस कीट की सूंड़ी व वयस्क दोनों ही मुलायम प्ररोहों, प्रत्तियों व फलों का रस चूसते हैं. फूलों पर इस का बुरा असर पड़ता है. इस वजह से फूल सूख कर गिर जाते हैं.

यह कीट एक प्रकार का मीठा रस निकालता है जो पेड़ों की पत्तियों, प्ररोहों वगैरह पर लग जाता है. इस मीठे रस पर काली फफूंदी पनपती है. यह पत्तियों पर काली परत के रूप में फैल कर पेड़ों के प्रकाश संश्लेषण पर बुरा असर डालती है.

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रोकथाम : बाग से खरपतवार हटा कर उसे साफसुथरा रखें. घने बाग की कटाईछंटाई दिसंबर माह में करें. वहीं दूसरी ओर बौर फूटने के बाद बागों की बराबर देखभाल करें.

पुष्प गुच्छ की लंबाई 8-10 सैंटीमीटर होने पर भुनगा कीट का हमला होता है. इस की रोकथाम के लिए 0.005 फीसदी इमिडा क्लोप्रिड का पहली बार छिड़काव करें. 0.005 फीसदी थायोमेथोक्जाम या 0.05 फीसदी प्रोफेनोफास का दूसरा छिड़काव फल लगने के तुरंत बाद करें.

गुजिया : इस कीट के बच्चे व वयस्क मादा प्ररोहों, पत्तियों व फूलों का रस चूसते हैं. जब इन की तादाद बढ़ जाती?है तो इन के द्वारा रस चूसे जाने के चलते पेड़ों के प्ररोह, पत्तियों व बौर सूख जाते हैं और फल नहीं लगते?हैं.

यह कीट मीठा रस पैदा करता है, जिस के ऊपर काली फफूंदी पनपती है. इस कीट का प्रकोप दिसंबर से मई माह तक देखा जाता है.

रोकथाम : खरपतवार और दूसरी घास को नवंबर माह में जुताई कर के निकाल दें. बाग से निकालने से सुसुप्तावस्था में रहने वाले अंडे धूप, गरमी व चींटियों द्वारा खत्म हो जाते हैं.

दिसंबर माह के तीसरे सप्ताह में पेड़ के तने के आसपास 250 ग्राम क्लोरोपाइरीफास चूर्ण 1.5 फीसदी प्रति पेड़ की दर से मिट्टी में मिला देने से अंडों से निकलने वाले निम्फ मर जाते हैं. पौलीथिन की 30 सैंटीमीटर पट्टी पेड़ के तने के चारों ओर जमीन की सतह से 30 सैंटीमीटर ऊंचाई पर दिसंबर में गुजिया के निकलने से पहले लपेटने से निम्फ का पेड़ों पर ऊपर चढ़ना रुक जाता है.

पट्टी के दोनों सिरों को सुतली से बांधना चाहिए. इस के बाद थोड़ी ग्रीस पट्टी के निचले घेरे पर लगाने से गुजिया को पट्टी पर चढ़ने से रोका जा सकता?है. यह पट्टी बाग में स्थित सभी आम के पेड़ों व दूसरे पेड़ों पर भी बांधनी चाहिए.

यदि किसी कारणवश गुजिया पेड़ पर चढ़ गई है तो ऐसी अवस्था में 0.05 फीसदी कार्बोसल्फान 0.2 मिलीलिटर प्रति लिटर या 0.06 फीसदी डाईमिथोएट 2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर का छिड़काव करें.

पुष्प गुच्छ मिज :  आम के पौधों पर मिज के प्रकोप से 3 चरणों में नुकसान होता है. इस का पहला प्रकोप कली के खिलने की अवस्था में होता है. नए विकसित बौर में अंडे दिए जाने व लार्वा द्वारा बौर के मुलायम डंठल में घुसने से बौर पूरी तरह से खराब हो जाते हैं. पूरी तरह विकसित लार्वा बौर के डंठल से निकलने के लिए छेद बनाते हैं. इस का दूसरा प्रकोप फलों के बनने की अवस्था में होता है. फलों में अंडे देने और लार्वा के घुसने के फलस्वरूप फल पीले हो कर गिर जाते हैं और तीसरा प्रकोप बौर को घेरती हुई पत्तियों पर होता है.

रोकथाम : अक्तूबरनवंबर माह में बाग में की गई जुताई से मिज की सूंडि़यों के साथ सुसुप्तावस्था में पड़े प्यूपा खत्म हो जाते?हैं. जिन बागों में इस कीट का असर होता रहा है, वहां बौर फूटने पर 0.06 फीसदी डाईमिथोएट का छिड़काव करना चाहिए.

वहीं, अप्रैलमई माह में 250 ग्राम क्लोरोपाइरीफास चूर्ण प्रति पेड़ के हिसाब से छिड़काव करने पर पेड़ के नीचे सूंडि़यां नष्ट हो जाती?हैं. फरवरी माह में भुनगा कीट के लिए किए जाने वाले कीटनाशी छिड़काव से इस कीट का भी नियंत्रण हो जाता है.

डासी मक्खी : प्रौढ़ मक्खियां अप्रैल माह में जमीन से निकल कर पके फलों पर अंडे देती हैं. एक मक्खी 150 से 200 तक अंडे देती?है. 2-3 दिन के बाद सूंडि़यां अंड़ों से निकल कर गूदे को खाना शुरू कर देती हैं. इस कीट की सूंडि़यां आम के गूदे खा कर उसे एक सड़े अर्धतरल बदबूदार पदार्थ के?रूप में बदल देती हैं.

रोकथाम : इस कीट के प्रकोप के असर को कम करने के लिए सभी गिरे हुए फल और मक्खी के प्रकोप से ग्रसित फलों को इकट्ठा कर जला देना चाहिए.

पेड़ों के आसपास सर्दियों में जुताई करने से जमीन में मौजूद प्यूपा को खत्म किया जा सकता है, वहीं लकड़ी की बनी यौनगंध?टैंप को पेड़ पर लगाना काफी कारगर है.

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इस टैंप के लिए प्लाइवुड के 5×5×1 सैंटीमीटर आकार के गुटके को 48 घंटे तक 6:4:1 के अनुपात में अल्कोहल : मिथाइल यूजीनौल : मैलाथियान के घोल में भिगो कर लगाना चाहिए. यौनगंध टैंप को 2 माह के अंतराल पर बदलना चाहिए. 10 टैंप प्रति हेक्टेयर लटकाने चाहिए.

रोग की रोकथाम : आम के पेड़ों में नर्सरी से ले कर फल लगने तक तमाम रोग लगते हैं जो पौधे के तकरीबन हरेक भाग को प्रभावित कर नुकसान पहुंचाते हैं. फल भंडारण के दौरान भी तमाम रोगों का प्रकोप होता?है जो फलों में सड़न पैदा करते?हैं. इसलिए इस के लक्षण व रोकथाम की जानकारी होना बेहद जरूरी है.

पाउडरी मिल्ड्यू यानी खर्रा,

दहिया : इस रोग के लक्षण बौर, पुष्प गुच्छ की डंडियों, पत्तियों व नए फलों पर देखे जा सकते?हैं. इस रोग का खास लक्षण सफेद कवक या चूर्ण के?रूप में दिखाई देता है.

नई पत्तियों पर यह रोग आसानी से दिख जाता है, जब पत्तियों का रंग भूरे से हलके हरे रंग में बदलता?है. नई पत्तियों पर ऊपरी और निचली सतह पर छोटे सलेटी रंग के धब्बे दिखाई देते?हैं जो निचली सतह पर ज्यादा साफ दिखते हैं.

बौरों पर यह रोग सफेद चूर्ण की तरह दिखाई पड़ता है और बोरों में लगे फूलों के झड़ने की वजह बनता है. भीतरी दल के मुकाबले बाहरी दल इस से?ज्यादा प्रभावित होते हैं. ग्रसित होने पर फूल नहीं खिलते हैं और समय से पहले ही झड़ जाते हैं. नए फलों पर पूरी तरह सफेद चूर्ण फैल जाता?है और मटर के दाने के बराबर हो जाने के बाद फल पेड़ से झड़ जाते हैं.

रोकथाम : पहला छिड़काव 0.2 फीसदी घुलनशील गंधक का घोल बना कर उस समय करना चाहिए जब बोर 3-4 इंच का होता है. दूसरा छिड़काव 0.1 फीसदी डिनोकेप का होना चाहिए, जो पहले छिड़काव के

15-20 दिन बाद तीसरा छिड़काव 0.1 फीसदी टाइडीमार्फ का होना चाहिए.

एंथ्रेक्नोज : यह रोग पत्तियों, टहनियों, मंजरियों और फलों पर देखा जा सकता है. पत्तियों की सतह पर पहले गोल या अनियमित भूरे या गहरे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं. प्रभावित टहनियों पर पहले काले धब्बे बनते हैं और फिर पूरी टहनी या पर्णवृंत सलेटी काले रंग की हो जाती है. पत्तियां नीचे की ओर झुक कर सूखने लगती हैं और आखिर में गिर जाती हैं.

बौर पर सब से पहले पाए जाने वाले लक्षण हैं, गहरे भूरे रंग के धब्बे, जो कि फूलों और पुष्पवृंतों पर प्रकट होते हैं. बौर व खिले फूलों पर छोटे काले धब्बे उभरते?हैं जो धीरेधीरे फैलते हैं और आपस में जुड़ कर फूलों को सुखा देते हैं. अधिक नमी होने पर यह कवक तेजी फैलता है.

रोकथाम : सभी रोग से ग्रसित टहनियों की?छंटाई कर देनी चाहिए. बाग में गिरी हुई पत्तियों, टहनियों और फलों को इकट्ठा कर जला देना चाहिए. मंजरी संक्रमण को रोकने के लिए 0.1 फीसदी कार्बंडाजिम का 2 बार छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करने से इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है.

पर्णीय संक्रमण को रोकने के लिए 0.3 फीसदी कौपर औक्सीक्लोराइड का छिड़काव कारगर है. 0.1 फीसदी थायोफेनेट मिथाइल या 0.1 फीसदी कार्बंडाजिम का बाग में फल की तुड़ाई से पहले छिड़काव करने से अंदरूनी संक्रमण को कम किया जा सकता है.

उल्टा सूखा रोग : टहनियों का ऊपर से नीचे की ओर सूखना इस रोग का मुख्य लक्षण है. खासतौर पर पुराने पेड़ों में बाद के पत्ते सूख जाते हैं जो आगे से झुलसे हुए से मालूम पड़ते हैं. शुरू में नई हरी टहनियों पर गहरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं. जब ये धब्बे

बढ़ते हैं, तब नई टहनियां सूख जाती हैं. ऊपर की पत्तियां अपना हरा रंग खो देती हैं. इस रोग का साफसाफ असर अक्तूबरनवंबर माह में दिखाई पड़ता है.

रोकथाम : छंटाई के बाद गाय का गोबर व चिकनी मिट्टी मिला कर कटे भाग पर लगाना फायदेमंद होता?है. संक्रमित भाग से

3 इंच नीचे से छंटाई करने के बाद बोर्डो मिश्रण 5:5:50 या 0.3 फीसदी कौपर औक्सीक्लोराइड का छिड़काव अधिक प्रभावशाली है.

यह भी ध्यान रखें कि कलम के लिए इस्तेमाल में आने वाली सांकुर डाली रोग से ग्रसित न हो.

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आखिरी सेल्फी : भाग 1

भाग 1

कोई जहरीली चीज खा कर, फंदा लगा कर और हाथ की नस काट कर तो आत्महत्या के मामले सामने आते रहते हैं. लेकिन अंजू और शंकर ने जिस तरह एकदूसरे को गोली मार कर आत्महत्या की, ऐसा देखनेसुनने में नहीं आया. अलबत्ता फिल्म ‘इशकजादे’ और ‘रामलीला: गोलियों की रासलीला’ का अंत जरूर ऐसा था. आखिर अंजू और शंकर ने ऐसा क्यों किया…

सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफार्म है, जिस की लोकप्रियता तो बुलंदी पर है ही, इस का नशा भी सिर चढ़ कर बोल रहा है. महानगरों और बड़े शहरों की बात तो छोडि़ए, कस्बों से ले कर गांवों तक के लोग इस नशे के आदी हो गए हैं.

ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो सुबह को सो कर उठने के बाद सब से पहले अपनी फेसबुक और वाट्सऐप का स्टेटस चैक करते हैं. पेशे से ड्राइवर धरमाराम अपने भाई शंकर के वाट्सऐप ग्रुप से जुड़ा था. उस दिन सुबह उठ कर उस ने मोबाइल पर अपना स्टेटस देखा तो सन्न रह गया. उस ने जो देखा, वह दिल दहला देने वाला था.

धरमाराम ने देखा कि वाट्सऐप ग्रुप में सुबह 3.58 बजे 15 फोटो और एक वीडियो डाले गए थे. फोटो उस के भाई शंकर और उस की प्रेमिका अंजू के थे, जिन में से कुछ में दोनों एकदूसरे को किस कर रहे थे तो कुछ में एकदूसरे के कंधों पर हाथ रखे खड़े थे.

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सारे फोटो सेल्फी के थे, इन में से कुछ सेल्फी शंकर ने तो कुछ अंजू ने ली थीं, जो उन के हाथों के डायरेक्शन से पता चल रही थीं. फोटो के अलावा छोटेछोटे 6 वीडियो और 3 औडियो थे. औडियो में शंकर और अंजू की आवाज थी, जिस में दोनों एक ही बात कह रहे थे कि वे लोग जो कदम उठा रहे हैं, अपनी मरजी से उठा रहे हैं. इस के लिए किसी को परेशान न किया जाए.

इस के बाद का वीडियो देख कर धरमाराम दहल गया. क्योंकि एक वीडियो में शंकर और अंजू अपनीअपनी कनपटी पर पिस्तौल रखे हुए थे. देखतेदेखते 4 बज कर 15 मिनट पर एक साथ 2 गोलियां चलीं और दोनों जमीन पर गिरते नजर आए.

धरमाराम समझ गया कि शंकर और अंजू ने आत्महत्या कर ली है. वाट्सऐप ग्रुप पर फोटो, औडियो और वीडियो डालने का समय 3 बज कर 58 मिनट से 4 बज कर 15 मिनट के बीच था. उम्मीद तो नहीं थी, फिर भी धरमाराम ने यह सोच कर शंकर के मोबाइल पर काल की कि क्या पता भाई की जान बच जाए. लेकिन दूसरी ओर फोन नहीं उठाया गया.

धरमाराम समझ गया कि शंकर ने अपनी प्रेमिका अंजू के साथ सुसाइड कर लिया है. उस ने अपने वाट्सऐप ग्रुप के मेंबरों को यह बात बताई तो सभी ने अपनेअपने मोबाइलों पर मौत का भयावह दृश्य देखा. जरा सी देर में यह बात पूरे लालसर गांव में फैल गई.

लोग घर से निकल कर इस खोज में लग गए कि शंकर और अंजू ने आत्महत्या कहां की. थोड़ी खोजबीन के बाद दोनों की लाशें लालसर से थोड़ी दूर स्थित श्मशान के पास रेत में पड़ी मिलीं. दोनों के हाथों में पिस्तौल थीं.

किसी ने इस घटना की सूचना थाना चौहटन को दे दी थी. इंसपेक्टर राकेश ढाका पुलिस टीम के साथ लालसर पहुंच गए. उन्होंने घटना की सूचना उच्चाधिकारियों और फोरैंसिक टीम को दे दी.

पुलिस टीम ने घटनास्थल पर जा कर देखा तो युवक और युवती की लाशों के मुंह विपरीत दिशा में थे लेकिन दोनों की पीठ मिली हुई थीं. दोनों के हाथों में पिस्तौल थीं और चेहरे खून से तर.

घटनास्थल पर माचिस, सिगरेट का पैकेट, बीयर और पानी की बोतल पड़ी थीं. लाशों के पास एक मोबाइल भी पड़ा मिला. एसपी राशि डोगरा और फोरैंसिक टीम के आने के बाद इन सभी चीजों को काररवाई के बाद जाब्ते में ले लिया गया.

गांव वालों से यह बात पता चल गई थी कि आत्महत्या करने वाला युवक शंकर है और युवती अंजू. दोनों लालसर गांव के ही रहने वाले थे. एसपी राशि डोगरा मौकामुआयना कर के वापस चली गईं.

उन के जाने के बाद इंसपेक्टर राकेश ढाका ने दोनों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए चौहटन सीएचसी भेज कर गांव वालों से पूछताछ की. मृतक के पिता भंवराराम ने पुलिस को बताया कि उसे सुबह पता चला कि उस के बेटे शंकर की लाश श्मशान के पास रेत के टीले पर पड़ी है. उस के साथ अंजू की लाश भी वहीं पड़ी है.

गांव वालों के साथ वह मौके पर पहुंचा तो श्मशान के पास दोनों की लाशें पड़ी मिलीं. दोनों के हाथों में पिस्तौल थीं. भंवराराम ने यह भी बताया कि शंकर और अंजू एकदूसरे को प्यार करते थे.

उधर अंजू के पिता टीकूराम सुथार ने कुछ और ही कहानी बताई. उस के अनुसार, शंकर जाट और मूलाराम उन की बेटी का यौनशोषण करते थे. 12 जून की रात शंकर और मूलाराम मोटरसाइकिल से उस के घर आए. शंकर ने अंजू को फोन कर के धमकी दी और उसे घर के बाहर बुलाया. फिर अंजू को मोटरसाइकिल पर बैठा कर ले गए. रात में शंकर और उस के 2 साथियों ने शराब पार्टी की. उन्होंने उस की बेटी अंजू को भी जबरन शराब पिलाई और उस के साथ गैंगरेप किया. बाद में इन लोगों ने उसे गोली मार दी. पुलिस ने टीकूराम की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

एसपी राशि डोगरा ने उसी दिन प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि लालसर गांव के श्मशान के पास एक लड़की और लड़के की लाशें पड़ी मिलीं. युवती 18-19 साल की थी और लड़का 20-21 साल का. दोनों के हाथों में पिस्तौल थीं और उन्होंने अपनीअपनी कनपटी पर गोली मार कर आत्महत्या की थी.

पत्रकारों ने जब एसपी से पिस्तौलों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि राजस्थान का सीमावर्ती इलाका होने की वजह से वहां हथियारों की तस्करी होती है. पिस्तौलों की बात जांच का विषय है, हम जांच करेंगे. पुलिस जांच में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस तरह थी—

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21 वर्षीय शंकर जाति से जाट था और 18 वर्षीय अंजू जाति से सुथार (बढ़ई) थी. दोनों में करीब 2 साल पहले प्यार हो गया था. शंकर और अंजू बेखौफ साथसाथ बाहर आनेजाने लगे थे. शंकर चूंकि दबंग लड़का था, इसलिए अंजू के घर वाले भी उसे कुछ नहीं कह पाते थे. वह अंजू को बाइक पर बैठा कर शहर घुमाने ले जाता था. दोनों ने शादी करने और साथसाथ जीनेमरने की कसमें खा ली थीं.

कसम खाने से पहले अंजू ने शंकर से पूछा था, ‘‘हमारी जातियां अलगअलग हैं. ऐसे में समाज हमें शादी करने देगा?’’

शंकर ने एक मोटी सी गाली दे कर कहा, ‘‘शादी हम दोनों को करनी है, समाज को नहीं. कौन रोकेगा हमें?’’

इस बात से अंजू को काफी सकून मिला और वह भावुक हो कर शंकर के सीने से लग गई. शंकर जालौर में ठेकेदारी का काम करता था. वह सीमेंट, चिनाई, प्लास्टर वगैरह के ठेके लेता था. इस काम में उसे अच्छी आय थी.

दूसरी और सुथार समाज के लोग अंजू के पिता टीकूराम पर दबाव डाल रहे थे कि अंजू और शंकर के संबंधों की वजह से समाज की बदनामी हो रही है, इसलिए वह अपनी बेटी पर पाबंदी लगाए.

क्रमश:

सौजन्य : मनोहर कहानियां

लिप्सा : भाग 1

‘‘मां घर खंडहर हुआ जा रहा है. आप को नहीं लगता कि हम 5 लोगों के लिए यह घर थोड़ा बड़ा है, एकदो कमरे किराए पर क्यों नहीं दे देतीं?’’

‘‘बेटा, तुम तो जानती हो कि तुम्हारे पापा का स्वभाव कैसा है. उन के चिड़चिड़ेपन को देख कर भला कोई एक दिन भी यहां रह सकता है?’’

‘‘तो घर बेच क्यों नहीं देते? 250 गज का घर, वह भी दिल्ली के जनकपुरी जैसे पौश इलाके में. कम से कम 6 करोड़ रुपए मिल जाएंगे.’’

‘‘फालतू की बकवास मत करो, रीमा. यह घर तुम्हारे पापा की दिनरात की मेहनत का फल है. जीतेजी तो हम इसे बेचने के बारे में सोच भी नहीं सकते.’’

रीमा मातापिता की बड़ी बेटी थी. 23 साल बीत चुके थे उस की शादी हुए और 6 वर्ष हुए पति का देहांत हुए. मांबाप ने कभी बड़ी बेटी को अकेला महसूस नहीं होने दिया. रीमा के दोनों बच्चों को उस के मांबाप ने दिल्ली के बड़े कालेज में भेजा था. दोनों का पूरा खर्चा भी वही उठा रहे थे.

45 वर्षीया रीमा के लिए जीवन अब उस के बच्चों के आगेपीछे ही घूमता था. अपने मम्मीपापा के लिए तो वह एक आदर्श बेटी थी, उन्हीं की मरजी से शादी की. हमेशा उन के लिए श्रद्धावान रही. घर में बेटे की कमी भी अब वही पूरी कर रही थी.

दूसरी बेटी 41 वर्षीया सृष्टि थी, रीमा से बिलकुल अलग. प्रकाश से शादी भी उस ने मम्मीपापा के खिलाफ जा कर की थी. यही वजह थी कि मम्मीपापा उसे अपने बुढ़ापे की लाठी नहीं सम झते थे और उस से किनारा कर के रखते थे.

सृष्टि के पति के एक प्राइवेट कंपनी में एनिमेटर की नौकरी करते थे. सृष्टि भी उसी कंपनी में स्केच आर्टिस्ट थी. दोनों की महीने की तनख्वाह मिला कर 56 हजार रुपए थी. बेटे निखिल का दाखिला भी मैडिकल कालेज में हो गया था. जीवन में कोई कमी नहीं थी. उस के पास उस का पति था, नौजवान बेटा था, बहुत बड़ा न सही पर खुद का घर था. उस ने कभी मातापिता के आगे हाथ नहीं फैलाए थे. बड़ी बहन रीमा से भी उस के रिश्ते कुछ खास नहीं थे. हां, उस के पति नितिन की मौत पर सृष्टि को दुख तो हुआ था, बहन को कंधा देना भी चाहा था पर उस के पास इतने लोगों का सहारा था कि सृष्टि अपनेआप को पराया महसूस कर दूर ही रही.

अमरकांत और उन की पत्नी सुषमा ने क्या कुछ नहीं देखा था जीवन में. रीमा और सृष्टि को साथ मिल कर बड़ा किया था उन्होंने, बिलकुल वैसे ही जैसे पौधे को सींच कर बड़ा किया जाता है. बेटियों से अटूट प्रेम था. पर जब सृष्टि ने प्रकाश का हाथ थामा तो अमरकांत बेटी के सिर पर आशीर्वाद देने के लिए हाथ नहीं बढ़ा पाए. आखिर बढ़ाते भी कैसे? प्रकाश नीची जाति का जो था. उन्होंने सृष्टि को शादी के लिए मना किया तो अगले दिन ही वह कोर्ट में जा कर शादी कर आई.

वह पढ़ीलिखी थी, सो, कानूनी दांवपेंच अच्छी तरह सम झती थी. सृष्टि और प्रकाश के रिश्ते पर उन्होंने कभी हामी तो नहीं भरी लेकिन पत्नी के कहने पर उसे घर आनेजाने से नहीं रोका.

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‘‘मां, मैं मार्केट जा रही हूं,’’ रीमा ने अपना पर्स टेबल से उठाते हुए कहा.

‘‘ठीक है बेटा, आराम से जाना,’’ मां ने जवाब दिया.

रीमा मौडर्न बाजार में खरीदारी कर के निकल ही रही थी कि उसे मन्नू आंटी दिखीं.

‘‘नमस्ते मन्नू आंटी, बड़े दिनों बाद दिखीं,’’ रीमा ने मन्नू आंटी की ओर देखते हुए कहा.

‘‘अरे रीमा, कैसी हो बेटा,’’ मन्नू आंटी ने पूछा.

‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं, आप बताइए, कीर्ति कैसी है?’’

‘‘वह तो मुंबई में है. पति से तलाक हो गया था. बच्चों के साथ वहीं बस गई. अब कमा रही है और खा रही है.’’

‘‘अच्छा, यह तो बहुत अच्छा है.’’

‘‘हां, अब हर कोई तो अपने मांबाप के ऊपर बैठ कर खाएगा नहीं न,’’ मन्नू आंटी ने ताना कसते हुए जवाब दिया.

रीमा बात के कटाक्ष को सम झ गई थी, वह छोटा सा मुंह लिए रह गई.

कुछ देर बाद रीमा घर तो आ गई पर मनमस्तिष्क अभी भी मन्नू आंटी की बातों पर ही था. रातभर यहां से वहां करवटें बदलती रही. ‘अब हर कोई तो अपने मांबाप के ऊपर बैठ कर खाएगा नहीं.’ मन्नू आंटी की यह बात बारबार उस के दिमाग में दौड़ रही थी. उस की रक्तवाहिनियों में रक्त की जगह पीड़ा दौड़ रही थी. उस के सामने उस के 2 बच्चे थे. उसे उन के लिए कुछ करना था.

पापा अगले महीने रिटायर हो जाएंगे. उस के खुद के बैंक अकाउंट में भी 3-4 हजार रुपए से ज्यादा की रकम नहीं थी. लेकिन, पापा के अकाउंट में अभी 3 लाख रुपए थे. वो कुछ महीने ही चलेंगे. उस के बाद क्या? ससुराल में तो कोई ऐसा संबंधी भी नहीं जो उसे या उस के बच्चों को सहारा दे, मम्मी पापा की जिंदगी अब बची ही कितनी है. रीमा के सामने पूरा भविष्य था.

अगले दिन रीमा ने दोनों बच्चों को अपने पास बैठाया और अपने मन का हाल उन से कह डाला. तीनों घंटों तक इस विषय पर चर्चा करते रहे. उन्होंने कुछ योजना बनाई थी पर वह क्या थी और उस के क्या परिणाम होने वाले थे, इस की अमरकांत और उन की पत्नी ने कभी कल्पना भी नहीं की थी.

‘‘पापा, जरा इन कागजों पर दस्तखत तो कर दीजिए.’’

‘‘किस चीज के कागजात हैं बेटा? मेरा चश्मा तो ले आओ.’’

‘‘पापा, रिन्नी के कालेज में एफिडेविट जमा करना है, उसी के पेपर हैं. वह कालेज के लिए लेट हो रही है, आप थोड़ा जल्दी कर दें तो अच्छा होगा.’’

‘‘अच्छा, ठीक है, बताओ कहां करने हैं?’’

‘‘यहां,’’ रीमा ने रिक्त स्थान की तरफ इशारा करते हुए कहा.

पापा के दस्तखत करा कर रीमा अपने कमरे की तरफ लौटी.

‘‘काम हो गया मां?’’ दिनेश ने पूछा.

हां, हो गया. मैं आज ही डीलर से घर बेचने की बात कर आऊंगी. महीने के आखिर तक तो घर बिक ही जाएगा. इस के बाद प्लान के दूसरे भाग की बारी आएगी,’’ रीमा ने मुसकराते हुए कहा.

रीमा बिना संकोच किए पापा से एफिडेविट के नाम पर पावर औफ अटौर्नी के पेपर पर दस्तखत करा लाई थी. अब, बस उसे डीलर से मिल कर घर बेचने की बात करनी थी.

एक हफ्ता ही हुआ था कि डीलर ने एक बहुत अच्छी डील के बारे में रीमा को फोन किया.

‘‘हैलो,’’ रीमा ने फोन उठाते हुए कहा.

‘‘हैलो, रीमा जी, मैं बोल रहा हूं, वह आप के घर के लिए एक बहुत अच्छी पार्टी मिल गई है, कब लाऊं घर दिखाने?’’

‘‘जी, वो…म..आ…आप उन्हें कल आने के लिए कह दीजिए,’’ रीमा ने  िझ झकते हुए कहा.

‘‘अच्छाअच्छा, जैसा आप को ठीक लगे.’’

रीमा नीचे मां के कमरे में गई, ‘‘मां, जरा सुनो.’’

‘‘हां, कहो क्या हुआ?’’ मां ने जवाब दिया.

‘‘मां, वो मैं सोच रही थी कि प्रिया आंटी ने पोते के जन्मदिन के लिए बुलाया है, तो आप और पापा वहां क्यों नहीं हो आते. थोड़ा अच्छा भी महसूस होगा.’’

‘‘हां, मैं भी यही सोच रही थी. कल तुम्हारे पापा की छुट्टी भी है. बड़े दिन हो गए प्रिया के घर भी नहीं गए. इसी बहाने एकदो लोगों से मिलनामिलाना भी हो जाएगा.’’

अगले दिन घड़ी के 4 बजे तो 2 ही मिनट बाद दरवाजे की घंटी बजी. रीमा ने दरवाजा खोला. डीलर के साथ एक महिला और एक पुरुष थे.

‘‘जी नमस्ते, मैं रीमा हूं और ये मेरे 2 बच्चे हैं दिनेश और रिन्नी.’’

‘‘रीमाजी, ये मिस्टर राकेश और इन की पत्नी ललिता हैं. बड़े ही इज्जतदार लोग हैं. आप बिलकुल सही हाथों में अपना घर देने जा रही हैं.’’

‘‘अरे, पहले घर पसंद तो आने दीजिए,’’ दिनेश ने आगे बढ़ कर कहा.

‘‘भई, आएगा क्यों नहीं, इतनी बड़ी कोठी है. नजर रखो तो लगता है नजर न लग जाए,’’ रिन्नी  झट से बोल पड़ी.

‘‘हां,’’ लेकिन दीवारें पुरानी होती मालूम पड़ती हैं, रहने से पहले काफी काम की जरूरत है,’’ राजेश ने कहा.

‘‘हां, पर आप को कौन सा यहां अभी रहना है. अगले साल रहना शुरू करेंगे न आप अपना कीर्ति नगर का घर बेच कर. तो, तब तक करा लीजिएगा घर की रिपेयरिंग,’’ डीलर ने कहा.

राकेश और ललिता ने घर की अच्छी तरह जांचपड़ताल की. फिर सभी लोग हौल में आ कर बैठ गए और घर के विषय पर चर्चा करने लगे.

‘‘रीमा जी, घर तो आप के मातापिता का है. वे दोनों कहां हैं? वे यह घर बेचना क्यों चाहते हैं?’’ राकेश ने पूछा.

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‘‘जी, वे जरूरी काम से बाहर गए हैं. घर बेचना इसलिए चाहते हैं क्योंकि वे मेरे दोनों बच्चों को उन की आगे की पढ़ाई के लिए दूसरे शहर भेजना चाहते हैं. इन से बहुत प्यार है उन्हें. पापा वैसे भी अब रिटायर होने वाले हैं और मां की दिमागी हालत ठीक नहीं है. दोनों 4 महीने बाद मेरी दूर की मौसी के घर पटना रहने चले जाएंगे,’’ रीमा एक सांस में ऐसे बोल पड़ी जैसे रट्टू तोता बोलता है.

‘‘और आप?’’ ललिता ने पूछा.

‘‘मु झ विधवा का क्या है, मैं तो बस पड़ी रहूंगी एक कोने में,’’ रीमा ने उत्तर दिया.

बात 6 करोड़ रुपए में पक्की हो गई. घर खाली करने के लिए राकेश और ललिता की तरफ से कोई जल्दी नहीं थी. लेकिन घर की कीमत मिल जाने के बाद रीमा और उस के परिवार को उस घर में रहने के लिए किराया देना होगा, यह उन का प्रस्ताव था. किराए की रकम 24 हजार थी, जिस के लिए रीमा ने हामी भी भर दी. एक महीना बीत चुका था, पापा रिटायर भी हो चुके थे. सो, वे हर वक्त घर में ही रहने लगे थे.

एक दिन दिनेश कालेज से घर वापस लौटा तो उस के चेहरे पर जरूरत से ज्यादा खुशी थी. आखिर होती भी क्यों न, अभीअभी डीलर के यहां से 6 करोड़ का चैक जो ले कर आया है. अब रीमा के प्लान का दूसरा भाग शुरू होना था.

‘‘मम्मीपापा, मैं आप से कुछ बात करना चाहती हूं?’’

‘‘हां, कहो रीमा,’’ मां ने उत्तर दिया.

‘‘वो…वो दिनेश और रिन्नी का कालेज खत्म हो गया है तो उन की आगे की पढ़ाई के लिए मैं सोच रही थी कि इन दोनों को चंडीगढ़ भेज दूं और मैं भी कुछ दिन इन के साथ ही रह आऊं. आखिर आप को भी तो लगता होगा कैसी बो झ सी पड़ी रहती हूं घर में. हां, आप से इन की फीस के लिए थोड़े पैसे मिल जाते तो मुश्किल आसान हो जाती,’’ कहते हुए रीमा की आंखें भर आईं.

‘‘रीमा, हमारे लिए तुम बो झ नहीं हो, हमारी बेटी हो. तुम्हें जो चाहिए, जितने पैसे चाहिए, खुशी से लो. पर यों चंडीगढ़ चली जाओगी तो तुम्हारे इन बूढ़ेमांबाप का क्या होगा?’’ अमरकांत रीमा की ओर आश्चर्य से देखते हुए बोले.

‘‘पापा, कुछ महीने की ही बात है. बस, थोड़ा समय घर से दूर बिताना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है बेटा, अगर तुम्हारी यही मरजी है तो हमें एतराज नहीं,’’ अमरकांत ने रीमा के सिर पर हाथ रखते हुए कहा.

अगले हफ्ते रीमा बच्चों को ले कर चंडीगढ़ जाने के लिए रवाना हो गई. उस ने पापा से लिए 75 हजार रुपए घर के किराए के रूप में दे दिए. उस के इस षड्यंत्र के बारे में न उस के मातापिता को खबर थी और न ही सृष्टि को. रीमा ने फिर दोबारा घर की तरफ मुड़ कर नहीं देखा. हां, हफ्तेदस दिनों में फोन कर लिया करती थी, पर दोढाई महीना बीतने के बाद उस ने फोन करना भी बंद कर दिया.

डेटिंग टिप्स: भूलकर भी न पूछे ये 8 सवाल

डेटिंग पर जाना अब रूटीन बन गया है. आप एक क्यूट युवक से पार्टी में मिलीं और अगले ही दिन उस ने आप को डेट पर बुलाया तो आप मना करने से रहीं. हां, उस से मिलने जाने से पूर्व इतना जरूर सोचेंगी कि क्या पहनूं, मेकअप कैसा करूं और ऐक्सैसरीज में क्या अलग करूं. माना कि आप का आउटलुक महत्त्वपूर्ण है, आप के दिखने से आप का स्टेटस बनताबिगड़ता है, लेकिन इस से भी ज्यादा फर्क इस बात से पड़ेगा कि आप वहां क्या बातें करेंगी, किस अंदाज से बोलेंगी, बातचीत के टौपिक क्या होंगे.

अगर यह आप की पहली औफिशियल डेट है तो आप यह भी नहीं चाहेंगी कि आप की बातों से उसे कुछ गलत सिगनल मिले या बनतेबनते बात बिगड़ जाए और पहली डेट आखिरी बन कर रह जाए. तो जानिए, क्या बोलना है, कितना बोलना है? साथ ही यह भी कि कौनकौन सी बातें आप को कम से कम ‘फर्स्ट डेट’ पर कभी नहीं पूछनी चाहिए?

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1. क्या आप किसी और को भी डेट कर रहे हैं?

अगर आप सीरियस रिलेशनशिप चाहती है तो आप के लिए यह जानना बेहद जरूरी है, लेकिन निश्चित तौर पर यह पहली डेट पर पूछा जाने वाला सवाल नहीं है. अभी आप एकदूसरे के लिए अजनबी हैं. पहली डेट आप के लिए पहला कदम है, एकदूसरे के बारे में छोटीमोटी बातें जानने, पसंदनापसंद जानने तथा यह जानने के लिए कि ‘एज ए परसन’ वह कैसा है, लेकिन पहली डेट पर हद से ज्यादा पर्सनल होना लड़के को इरिटेट कर सकता है.

2. आप की सैलरी कितनी है?

यह बेहद पर्सनल और सैंसिटिव इश्यू है कि एक व्यक्ति कितना कमाता है, जिस तरह किसी युवती से उस की उम्र नहीं पूछनी चाहिए उसी तरह किसी युवक से उस की अर्निंग के बारे में सवाल करना ठीक नहीं. ऐसा ‘फर्स्ट डेट’ पर कतई न पूछें. कुछ ही युवक होते हैं जो इस सवाल का जवाब कूल हो कर देंगे. युवक कितना कमाते हैं, इस बात को ले कर बेहद ‘टची’ होते हैं. यह सवाल ईगो को ठेस पहुंचा सकता है.

3. मैं सीरियस रिलेशनशिप में यकीन रखती हूं क्या आप भी रखते हैं?

जिंदगी में सीरियस होना, रिश्तों को गंभीरता से निभाना बेहद जरूरी है और अपने लिए उस एक स्पैशल इंसान की तलाश करना जिस के साथ आप अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहें, भी कुछ गलत नहीं है. यह ठीक नहीं कि आप पहली ही डेट पर यह जानना चाहें कि वह भी उतना ही सीरियस है कि नहीं. डेटिंग को ले कर युवक ज्यादा सीरियस नहीं होते, लेकिन फिर भी पहली डेट पर ही आप सीरियस कमिटमैंट की चाह रखती हैं, तो गलत होगा. उसे धीरेधीरे समझें और परखें फिर आप को यह पूछने की जरूरत भी महसूस नहीं होगी.

4. क्या आप जल्दी शादी प्लान करने की सोच रहे हैं?

क्या होगा अगर आप के सीधे सवाल के जवाब में उस ने भी सीधेसीधे ‘नहीं’ कह दिया? तो क्या आप उसी पल उठ कर रैस्टोरैंट से बाहर चली जाएंगी, नहीं न? दरअसल, शादी एक लौंग लाइफ डिसीजन है. पहली डेट पर तो कोई इस बारे में सोचता ही नहीं. हां, अगर आप को युवक पसंद आ गया है और अपने लिए मिस्टरराइट लग रहा है या आप पहली डेट को शादी तक ले जाने की सोच रही हैं तो बात अलग है. फिर भी 4-5 डेट तो सिर्फ यह जानने में लग जाती हैं कि आप दोनों एकसाथ आगे वक्त बिता सकते हैं या नहीं.

5. मुझे बच्चे पसंद हैं और आप को?

कैरियर ओरिएंटेड युवतियां शादी की कल्पना करते ही बच्चे के बारे में प्लान कर बैठती हैं, लेकिन पहली डेट पर ही उस से बेबीज के बारे में बात करेंगी तो उस का दिल करेगा कि उसी पल वह आप को छोड़ कर भाग जाए.  पहली डेट पर हलकाफुलका फ्लर्ट, रोमांटिक बातें, आंखों ही आंखों में कहनेसुनने की उम्मीद ले कर युवक युवती से मिलने आता है और आप जानना चाहती हैं कि वह आप के मिजाज का है या नहीं. जिंदगी के बारे में बातें कीजिए, फिल्म, फैशन, मौसम, कैरियर की बातें कीजिए पर बच्चे जैसे टौपिक पर नहीं.

6. क्या आप किसी के साथ फिजिकली इन्वौल्व्ड थे?

बेशक आप बेहद मौडर्न, बोल्ड युवती हों, जिस के लिए लव, सैक्स कोई टैबू नहीं और जिसे आप डेट कर रही हों, वह युवक भी यूएस रिटर्न्ड हो, फिर भी पहली डेट पर इतना पर्सनल, अंतरंग सवाल न पूछें. अभी आप एकदूसरे के इतने करीब नहीं आए कि दूसरे के नितांत निजी पलों को जानने का हक रखें. वैसे भी ‘सैक्स टौक’ बेहद निजी सब्जैक्ट है, सोचिए अगर आप से वह ऐसा ही सवाल पूछ ले तो?

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7. हम दोबारा कब मिल रहे हैं?

अगर आप का पार्टनर आप से दोबारा मिलना चाहता है तो निश्चिंत रहिए, वह खुद आप को दोबारा कौल कर इन्वाइट करेगा, आप को बेकरार हो कर उसी वक्त उस से पूछने की जरूरत नहीं है. इस की जगह पहले अपनेआप से पूछिए कि क्या आप उस युवक के साथ दोबारा डेट पर जाना चाहेंगी. यदि आप की ओर से हां है तो भी पहली डेट का आकलन कर लें कि कैसा अनुभव रहा.

8. क्या मैं तुम्हें पसंद हूं?

अगर पहली डेट पर ही आप को ऐसा लग रहा है कि आप को जिस की तलाश थी वह यही है, आप को अपना ड्रीमबौय मिल गया है, तो भी सब्र रखिए और उस की ओर से क्या जवाब आता है यह जानिए. क्या उस के ख्वाबों की ताबीर आप हैं? क्या वह भी आप को अपनी मंजिल मान रहा है? इस बारे में जान कर ही आगे बढि़ए और पूछिए कि क्या वह आप को पसंद करता है?

पहली डेट पर ही मुहर लगाना और लगवाना दोनों ही गलत हैं. थोड़ा इंतजार कीजिए कुछ और मुलाकातों का. इंतजार का भी तो अपना मजा है. दरअसल, डेटिंग में आप को क्या, कैसे करना है इस का निर्णय तो आप को स्वयं ही लेना है और डेटिंग के लिए आप तभी आगे बढि़ए जब आप में इतनी परिपक्वता आ जाए.

फैसला इक नई सुबह का : भाग 3

आजकल रिश्ते वाकई मतलब के हो गए हैं. सब की छोड़ो, पर अपनी बेटी भी…उस का सबकुछ तो बच्चों का ही था. फिर भी उन का मन इतना मैला क्यों है. उस की आंखों से आंसू निकल कर उस के गालों पर ढुलकते चले गए. क्या बताएगी कल वह समीर को अपने अतीत के बारे में. क्या यही कि अपने अतीत में उस ने हर रिश्ते से सिर्फ धोखा खाया है. इस से अच्छा तो यह है कि वह कल समीर से मिलने ही न जाए. इतने बड़े शहर में समीर उसे कभी ढूंढ़ नहीं पाएगा. लेकिन बचपन के दोस्त से मिलने का मोह वह छोड़ नहीं पा रही थी क्योंकि यहां, इस स्थिति में इत्तफाक से समीर का मिल जाना उसे बहुत सुकून दे रहा था. समीर उस के मन के रेगिस्तान में एक ठंडी हवा का झोंका बन कर आया था, इस उम्र में ये हास्यास्पद बातें वह कैसे सोच सकती है? क्या उस की उम्र में इस तरह की सोच शोभा देती है. ऐसे तमाम प्रश्नों में उस का दिमाग उलझ कर रह गया था. वह अच्छी तरह जानती थी कि यह कोई वासनाजनित प्रेम नहीं, बल्कि किसी अपनेपन के एहसास से जुड़ा मात्र एक सदभाव ही है, जो अपना दुखदर्द एक सच्चे साथी के साथ बांटने को आतुर हो रहा है. वह साथी जो उसे भलीभांति समझता था और जिस पर वह आंख मूंद कर भरोसा कर सकती थी. यही सब सोचतेसोचते न जाने कब उस की आंख लग गई.

सुबह 7 बजे से ही बेटी ने मांमां कह कर उसे आवाज लगानी शुरू कर दी. सही भी है, वह एक नौकरानी ही तो थी इस घर में, वह भी बिना वेतन के, फिर भी वह मुसकरा कर उठी. उस का मन कुछ हलका हो चुका था. उसे देख बेटी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘क्यों मां, कितनी देर तक सोती हो? आप को तो मालूम है मैं सुबहसुबह आप के हाथ की ही चाय पीती हूं.’’

‘‘अभी बना देती हूं, नित्या,’’ कह कर उन्होंने उधर से निगाहें फेर लीं, बेटी की बनावटी हंसी ज्यादा देर तक देखने की इच्छा नहीं हुई उन की. घर का सब काम निबटा कर नियत 4 बजे मानसी घर से निकल गई. पार्क पहुंच कर देखा तो समीर उस का इंतजार करता दिखाई दिया. ‘‘आओ मानसी, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था,’’ समीर ने प्रसन्नता व अपनेपन के साथ कहा.

‘‘मुझे बहुत देर तो नहीं हो गई समीर, क्या तुम्हें काफी इंतजार करना पड़ा?’’ ‘‘हां, इंतजार तो करना पड़ा,’’ समीर रहस्यमय ढंग से मुसकराया.

थोड़ी ही देर में वे दोनों अपने बचपन को एक बार फिर से जीने लगे. पुरानी सभी बातें याद करतेकरते दोनों थक गए. हंसहंस कर दोनों का बुरा हाल था. तभी समीर ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘तुम अब कैसी हो, मानसी, मेरा मतलब तुम्हारे पति व बच्चे कैसे हैं, कहां हैं? कुछ अपने आज के बारे में बताओ?’’ ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं, बहुत अच्छे से,’’ कहते हुए मानसी ने मुंह दूसरी ओर कर लिया.

‘‘अच्छी बात है, यही बात जरा मुंह इधर कर के कहना,’’ समीर अब असली मुद्दे पर आ चुका था, ‘‘बचपन से तुम्हारी आंखों की भाषा समझता हूं, तुम मुझ से छिपा नहीं सकती अपनी बेचैनी व छटपटाहट. कुछ तो तुम्हारे भीतर चल रहा है. मैं ने कल ही नोटिस कर लिया था, जब तुम ने हमें देख कर भी नहीं देखा. तुम्हारा किसी खयाल में खोया रहना यह साफ दर्शा रहा था कि तुम कुछ परेशान हो. तुम पर मेरी नजर जैसे ही पड़ी, मैं तुम्हें पहचान गया था. अब मुझे साफसाफ बताओ किस हाल में हो तुम? अपने बारे में पूरा सच, और हां, यह जानने का मुझे पूरा हक भी है.’’ ‘‘समीर’’ कहती हुई मानसी फूटफूट कर रोने लगी. उस के सब्र का बांध टूट गया. अपनी शादी से ले कर, राजन की बेवफाई, अपनी घुटन, सासससुर, अपने बच्चों व उन की परवरिश के बारे में पूरा वृतांत एक कहानी की तरह उसे सुना डाला.

‘‘ओह, तुम जिंदगीभर इतना झेलती रही, एक बार तो अपने भैयाभाभी को यह बताया होता.’’ ‘‘क्या बताती समीर, मेरा सुख ही तो उन की जिंदगी का एकमात्र लक्ष्य था. उन के मुताबिक तो मैं बहुत बड़े परिवार में खुशियांभरी जिंदगी गुजार रही थी. उन्हें सचाई बता कर कैसे दुखी करती?’’

‘‘चलो, जो भी हुआ, जाने दो. आओ, मेरे घर चलते हैं,’’ समीर ने उस का हाथ पकड़ते हुए कहा. ‘‘नहीं समीर, आज तो बहुत देर हो चुकी है, नित्या परेशान हो रही होगी. फिर किसी दिन चलूंगी तुम्हारे घर.’’ समीर के अचानक से हाथ पकड़ने पर वह थोड़ी अचकचा गई.

‘‘तुम आज ही चलोगी. बहुत परेशान हुई आज तक, अब थोड़ा उन्हें भी परेशान होने दो. मेरे बच्चों से मिलो, तुम्हें सच में अच्छा लगेगा,’’ कहते हुए समीर उठ खड़ा हुआ.

समीर की जिद के आगे बेबस मानसी कुछ संकोच के साथ उस के संग चल पड़ी. बड़ी ही आत्मीयता के साथ समीर की बहू ने मानसी का स्वागत किया. कुछ देर के लिए मानसी जैसे अपनेआप को भूल ही गई. समीर के पोते के साथ खेलतेखेलते वह खुद भी छोटी सी बच्ची बन बैठी. वहीं बातोंबातों में समीर की बहू से ही उसे पता चला कि उस की सासूमां अर्थात समीर की पत्नी का देहांत 2 साल पहले एक रोड ऐक्सिडैंट में हो चुका है. उस दिन समीर का जन्मदिन था और वे समीर के जन्मदिन पर उन के लिए सरप्राइज पार्टी की तैयारियां करने ही बाहर गई थीं. यह सुन कर मानसी चौंक उठी. उसे समीर के लिए बहुत दुख हुआ.

अचानक उस की नजर घड़ी पर पड़ी और उस ने चलने का उपक्रम किया. समीर उसे छोड़ने पैदल ही उस के अपार्टमैंट के बाहर तक आया. ‘‘समीर तुम्हारे पोते और बहू से मिल कर मुझे बहुत अच्छा लगा. सच, बहुत खुश हो तुम.’’

‘‘अरे, अभी तुम हमारे रौशनचिराग से नहीं मिली हो, जनाब औफिस से बहुत लेट आते हैं,’’ समीर ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘चलो, फिर सही, कहते हुए मानसी लिफ्ट की ओर चल पड़ी.’’

‘‘अब कब मिलोगी,’’ समीर ने उसे पुकारा. ‘‘हां समीर, देखो अब कब मिलना होता है, मानसी ने कुछ बुझी सी आवाज में कहा.’’

‘‘अरे, इतने पास तो हमारे घर हैं और मिलने के लिए इतना सोचोगी. कल शाम को मिलते हैं न पार्क में,’’ समीर ने जोर दिया. ‘‘ठीक है समीर, मैं तुम्हें फोन करती हूं, जैसा भी संभव होगा,’’ कहते हुए लंबे डग भरते हुए वह लिफ्ट में दाखिल हो गई. जैसा कि उसे डर था, घर के अंदर घुसते ही उसे नित्या की घूरती आंखों का सामना करना पड़ा. बिना कुछ बोले वह जल्दी से अपने काम में लग गई.

बैकुंठ : भाग 2

राधे महाराज से पहले उन के पिता किशन महाराज, श्यामाचरण के पिता विद्याचरण के जमाने से घर के पुरोहित हुआ करते थे. जरा भी कहीं धर्म के कामों में ऊंचनीच न हो जाए, विवाह, बच्चे का जन्म, अन्नप्राशन, मुंडन कुछ भी हो, वे ही संपन्न करवाते, आशीष देते और थैले भरभर कर दक्षिणा ले जाते.

इधर, राधे महाराज ने शुभमुहूर्त और शुभघड़ी के चक्कर में श्यामाचरण को कुछ ज्यादा ही उलझा लिया था. कारण मालती को साफ पता था, बढ़ते खर्च के साथ बढ़ता उन का लालच, जिसे श्यामाचरण अंधभक्ति में देख नहीं पाते. कभी समझाने का प्रयत्न भी करती तो यही जवाब मिलता, ‘‘तुम तो निरी नास्तिक हो मालती, नरक में भी जगह नहीं मिलेगी तुम को, मैं कहे दे रहा हूं. पूजापाठ कुछ करना नहीं, न व्रतउपवास, न नियमधरम से मंदिरों में दर्शन करना. घर में जो मुसीबत आती है वह तुम्हारी वजह से. चार अक्षर ज्यादा पढ़लिख गई तो धर्मकर्म को कुछ समझना ही नहीं.

‘‘तुम्हारी देखादेखी बच्चे भी उलटापुलटा सीख गए. घबराओ मत, बैकुंठ कभी नहीं मिलेगा तुम्हें. घर की सेवा, समाजसेवा करने का स्वांग बेकार है. अपने से ईश्वर की सेवा करते मैं ने तुम्हें कभी देखा नहीं, कड़ाहे में तली जाओगी, तब पता चलेगा,’’ कहते हुए आधे दर्जन कलावे वाले हाथ से गुरुवार हुआ तो गुरुवार के पीले कपड़ों में सजेधजे श्यामाचरण, हलदीचंदन का टीका माथे पर सजा लेते. उन के हर दिन का नियम से पालन उन के कपड़ों और टीके के रंग में झलकता.

‘‘नरक भी नहीं मिलेगा, कभी कहते हो कड़ाहे में तली जाऊंगी, कभी बैकुंठ नहीं मिलेगा, फिर पाताल लोेक में जाऊंगी क्या? जहां सीता मैया समा गई थीं. अब मेरे लिए वही बचा रह गया…’’ उस की हंसी छूट जाती. मुंह में आंचल दबा कर वह हंसी रोकने की कोशिश करती. कभीकभी उसे गुस्सा भी आता कि दिमाग है तो तर्क के साथ क्यों नहीं मानते कुछ भी. कौआ कान ले गया, सब दौड़ पडे़, अपने कानों को किसी ने हाथ ही नहीं लगा कर देखना चाहा, वही वाली बात हो गई. अब कुछ तो करना चाहिए कि यह सब बंद हो सके. पर कैसे?

वह सोचने लगी कि क्षितिज का सीडीएस का इंटरव्यू भी तो उन के इसी शुभमुहूर्त के चक्कर में छूट गया था. उस की बरात ले कर ट्रेन से पटना के लिए निकलने वाले थे हम सब, तब भी घर से मुहूर्त के कारण इतनी देर से स्टेशन पहुंचे कि गाड़ी ही छूट गई. किस तरह फिर बस का इंतजाम किया गया था. सब उसी में लदेफंदे हाईस्पीड में समय से पटना पहुंचे थे, पर श्यामजी की तो लीला निराली है, तब भी यही समझ आया कि सही मुहूर्त में चले थे, इसलिए कोई हादसा होने से बच गया. फिर पूजा भी इस के लिए करवाई, कमाल है.

नया केस लेंगे तो पूजा, जीते तो सत्यनारायण कथा, हारे तो दोष निवारण, शांतिपाठ हवन. पता नहीं वह कौन सी आस्था है. या तो सब अपने उस देवता पर छोड़ दो या फिर सपोर्ट ही करना है उसे, तो धार्मिक कर्मकांडों की चमचागीरी से नहीं, बल्कि उसे ध्यान में रख कर अपने प्रयास से कर सकते हो. तो वही क्यों न करो. पर अब कौन समझाए इन्हें कितनी बार तो कह चुकी.

करवाचौथ की पूजा के लिए मेरी जगह वे उत्साहित रहते हैं. मांजी के कारण यह व्रत रखे जा रही हूं. पिछले वर्ष ही तो उन का निधन हो गया, पर श्यामजी को कैसे समझाऊं कि मुझे इस में भी विश्वास नहीं. कह दूं तो बहुत बुरा मान जाएंगे. औरत के व्रत से आदमी की उम्र का क्या संबंध? हां, स्वादिष्ठ, पौष्टिक व संतुलित भोजन खिलाने, साफसफाई रखने और घर को व्यवस्थित व खुशहाल रखने से अवश्य हो सकता है, जिस का मैं जीजान से खयाल रखती हूं. बस, अंधविश्वास में उन का साथ दे कर खुश नहीं कर पाती, न स्वयं खुश हो पाती.

‘‘चलो, कोई तो पूजा करती हो अपने से, साल में एक बार. घर की औरत के पूजाव्रत से पूरे घर को पुण्य मिलता है, सुहागन मरोगी तो सीधा बैकुंठ जाओगी.’’ दुनियाभर को जतातेफिरते श्यामाचरण के लिए आज मालती ने भी व्रत रखा है, उन की इज्जत बढ़ जाती. अपने से ढेर सारे फलफलाहारी, फेनीवेनी, पूजासामग्री, उपहार, साड़ी, चूड़ी, आल्ता, बिंदी सब ले आते. सरगई का इंतजाम करना जैसे उन्हीं की जिम्मेदारी हो, इस समझ का मैं क्या करूं? रात की पूजा करवाने के लिए राधे पंडित को खास निमंत्रण भी दे आए होंगे.

सरगई के लिए 3 बजे उठा दिया श्यामाचरण ने. ‘‘खापी लो अच्छी तरह से मालती, पूजा से पहले व्रत भंग नहीं होना चाहिए.’’ वह सोते से अनमनी सी घबरा कर उठ बैठी थी कि क्या हो गया. उस ने देखा श्यामजी उसे जगा कर, फिर चैन से खर्राटे भरने लगे. यह प्यार है या बैकुंठ का डर? पागलों की तरह इतनी सुबह तो मुझ से कभी खाया न गया, भूखा रहना है तो पूरे दिन का खाना मिस करो न.

हिंदुओं का करवा, मुसलमानों का रोजा सब यही कि दो समय का भोजन एकसाथ ही ठूंस लो कि फिर पूजा से पहले न भूख लगेगी न प्यास, यह भी क्या बात हुई अकलमंदी की. नींद तो उचट चुकी थी, वह सोचे जा रही थी. तभी फोन की घंटी बजी. इस समय कौन हो सकता है? श्यामजी की नाक अभी भी बज रही थी, सो, फोन उसी ने उठा लिया.

‘‘हैलो, कौन?’’

‘‘ओ मालती, मैं रैमचो, तुम्हारा डाक्टर भैया, अभी आस्ट्रेलिया से इंडिया पहुंचा हूं.’’

‘‘नमस्ते भैया, इतने सालों बाद, अचानक,’’ मालती खुशी से बोली, ससुराल में यही जेठ थे जिन से उन के विचार मेल खाते थे.

‘‘हां, कौन्फ्रैंस है यहां, सब से मिलना भी हो जाएगा और सब ठीक हैं न?

1 घंटे में घर पहुंच रहा हूं.’’

‘आज 5 सालों बाद डाक्टर भैया घर आ रहे हैं. अम्मा के निधन पर भी नहीं आ सके थे. भाभी का लास्ट स्टेज का कैंसर ट्रीटमैंट चल रहा था, उसी में वे चल भी बसीं. 3 लड़के ही हैं भैया के, तीनों शादीशुदा, वैल सैटल्ड. कोई चिंता नहीं अब, डाक्टरी और समाजसेवा में ही अपना जीवन समर्पित कर रखा है उन्होंने. वह बच्चों को प्रेरणा के लिए उन का अकसर उदाहरण देती है,’ यह सब सोचते हुए मालती फटाफट नहाधो कर आई. फिर श्यामजी को उठा कर भैया के आने के बारे में बताया.

‘‘रामचरण भैया, अचानक…’’

‘‘नहीं, रैमचो भैया. मैं उन की पसंद का नाश्ता तैयार करने जा रही हूं, आप भी जल्दी से तैयार हो जाओ,’’ उस ने हंसते हुए कहा और किचन की ओर बढ़ गई.

श्यामाचरण उठे तो सरगई को वैसे ही पड़ा देख कर बड़बड़ाए थे. खाया नहीं महारानी ने, बेहोश होंगी तो यही होगा, मैं ने ही जबरदस्ती व्रत रखवाया है. भैया तो मुझे छोड़ेंगे नहीं. जब तक यहां थे, मालती की  हिमायत, वकालत करते थे हमेशा. मांबाबूजी और दादी से कई बार बहस होती रहती धर्म संस्कारों, रीतिरिवाजों को ले कर कि आप लोग तो आगे बढ़ना ही नहीं चाहते. तभी तो एक दिन अपने परिवार को ले कर भाग लिए आस्टे्रलिया, वहीं बस गए और रामचरण से रैमचो बन गए. अपनी धरती, अपने परिवार को छोड़ कर, उन के बारे में सोचते हुए श्यामाचरण नहाधो कर जल्दीजल्दी नित्य पूजा समाप्त करने में जुट गए.

इशिता राज शर्मा का ब्यूटी एंड फिटनेस मंत्र

मिस एंड मिसेज इंडिया एशिया पैसिफिक 2019 का दिल्ली औडिशन होटल हौलीडे इन, एरोसिटी दिल्ली में  13 अक्टूबर को आयोजित किया गया, जिसमें बौलीवुड के फेमस एक्टर व एक्ट्रेस ने जूरी मेम्बर्स के रूप में अपनी खास भूमिका निभाई, जिनमें बौलीवुड अभिनेत्री इशिता राज शर्मा,  अभिलाषा जाखड, संतोष शुक्ला, अजय नागरथ  आदि मौजूद रहे.

इस मौके पर ‘यारम’ मूवी में लीड रोल निभाने वाली  बौलीवुड एक्ट्रेस इशिता राज शर्मा से  हुई मुलाकात के दौरान ब्यूटी और फिटनेस को लेकर हुई खास बातचीत.

आज के समय में सभी लड़कियां और महिलाएं खूबसूरत हैं. अपनी खूबसूरती को बढ़ाने के लिए आप अच्छा खाये, हल्का खाएं. अगर आप अच्छा और हल्का खाएंगे तो हल्का महसूस भी करेंगे इसके अलावा आप ज्यादा से ज्यादा पानी पीजिये, फाइबर वाली चीजें खाइये

फिटनेस बहुत ही व्यक्तिगत मामला है उसके लिए जरूरी नही की आप जिम ही जाएं. आप योग, जुम्बा, डांसिंग इस तरह की कोई पापुलर एक्सरसाइज कर अपने आप को फिट रख सकती हैं.

आपको बता दें, इशिता ने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 2011 में लव रंजन निर्देशित फिल्म प्यार का पंचनामा से की थी. इस फिल्म में उन्होंने चारु की भूमिका अदा की. इस फिल्म के बाद वह इसी फिल्म के अगले सीक्वल प्यार का पंचनामा 2 में कुसुम की भूमिका में अभिनय किया. इसके अलावा वर्ष 2015 में ईशिता ने फ़िल्म मेरठिया गैंगस्टर में भी अभिनय किया.

सोनू के टीटू की स्वीटी और प्यार का पंचनामा से फेमस हुई इंडियन फ़िल्म एक्ट्रेस इशिता राज शर्मा को अब तक आपने चारु और पीहू के किरदार में देखा. लेकिन अब इशिता को फ़िल्म याराम में मुख्य किरदार में जल्दी देखेंगे. इशिता बहुत फेमस मौडल भी है जो कई बड़े- बड़े ब्रांड्स के विज्ञापनों में नजर आती रही है. इशिता सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी काफी एक्टिव रहती है और लगातर सुर्खियों में बनी रहती है.

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