‘पराली‘ किसानों के लिये मुसीबत बनती जा रही है. सरकार ‘पराली’ के प्रयोग को लेकर किसानों का उत्पीड़न करने लगी है. ‘पराली’ की मुसीबत से बचने के लिये किसान अब धान की फसल से दूर रहने की सोचने लगे हैं. अगर पराली ऐसे की किसानों के उत्पीड़न का जरिया बनी रही तो किसान धान की खेती से तौबा कर सकते हैं. तब देश में खाद्यन्न संकट पैदा हो सकता है. अक्टूबर-नवम्बर में प्रदूषण का लेवल पहले से ही बढ़ा हुआ होता है. ‘पराली’ को तो केवल बहाना बनाया जाता है. ‘पराली’ के खिलाफ टीवी चैनलों पर बैठ कर प्रदूषण पर चर्चा करने वाले अधिकांश लोगों को पराली का पता भी नहीं होता है. ‘पराली‘ पूरे देश में होती है. ऐसा क्या कारण है कि यह केवल दिल्ली में ही प्रदूषण का कारण बनती है. अफसरों से तो यह उम्मीद नहीं की जाती कि उनको पराली का कुछ पता होता पर गांव देहात से जीत कर आने वाले मंत्री, सांसद और विधायक जब पराली को प्रदूषण का कारण मानते है तो उनकी जानकारी पर बेहद अफसोस होता है.
अक्टूबर में दीवाली के बाद होने वाले प्रदूषण के लिये पराली को जिम्मेदार मानकर किसानों के खिलाफ अफसरों से लेकर कोर्ट तक गंभीर हो जाता है. प्रदूषण के लिये अगर पराली ही जिम्मेदार होती तो सामान्य दिनों में प्रदूषण अपने अधिकतम लेवल पर क्यों होता? बिना पराली के प्रदूषण का खतरनाक लेवल बताता है कि सामान्य दिनों में प्रदूषण पर ध्यान नहीं दिया जाता है. अक्टूबर-नवम्बर माह में मौसम बदल रहा होता है. ऐसे में वातावरण में अपने हिसाब से बदलाव होने से धुंध छाने लगती है. इसी मौसम में दीवाली के पटाखे और नदियों के किनारे दीपदान का आयोजन भी तेज हो जाता है. बढ़ती आबादी में यह छोटीछोटी घटनायें भी बड़ा असर डालती है.