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हिंसक प्रदर्शन के बीच राज्यसभा में भी नागरिकता संशोधन बिल पास

भले ही हर जगह विरोध हो रहें हों लेकिन राज्यसभा में भी नागरिकता संशोधन बिल पास हो गया. इसके पक्ष में 125 और विपक्ष में 105 वोट पड़े. पहले तो सेलेक्ट कमेटी को ये बिल जाएगा या नहीं इस पर वोटिंग हुई और फिर हुई फाइनल वोटिंग और बिल पास हो गया. राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद से ही नागरिकता संशोधन विधेयक कानून बन जाएगा.

कई शरणार्थियों ने खुशियां मनाई और एक-दूसरे को मिठाई खिलाई कि अब उन्हें नागरिकता मिल जाएगी. खुशियां भले ही हों लेकिन वहीं दूसरी ओर नागरिकता संशोधन बिल पर बवाल भी थमने का नाम नहीं ले रहा है. असम में ये विरोध और भी ज्यादा हिंसक होता जा रहा है. असम के मुख्यंत्री सर्बानंद सोनोवाल विरोध प्रदर्शन के चलते गुवाहाटी एयरपोर्ट पर तकरीबन 20 मिनट तक फंसे रह गए. प्रदर्शनकारियों ने उनके घर को भी घेर लिया था.

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हालांकि सुरक्षाकर्मियों ने काफी कड़ी मशक्कत के बाद सर्बानंद सोनोवाल को वहां से निकाल लिया और प्रदर्शनकारियों को भी हटाया. ये हिंसा इस कदर बढ़ रही है कि लोग जगहों पर आगजनी कर और तोड़ फोड़ कर रहे हैं. बस को आग के हवाले कर दिया और तो और पुलिस को लोगों पर आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े. यहां पर शाम 7 बजे से 10 बजे तक इंटरनेट सेवाओं को भी बंद करने का आदेश दे दिया गया था. क्योंकि असम में सीएबी के खिलाफ प्रोटेस्ट और भी उग्र रूप ले चुका है.

वहां पर सेनाओं की तैनाती बढ़ा दी गई है. कल 11 दिसंबर को राज्यसभा में नागरिकता संशोधन बिल पेश किया गया था और इस पर कई घंटों तक बहस चली. बहस के दौरान कपिल सिब्बल ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि मान लीजिए एक व्यक्ति 1972 में आया और अब उस व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके दो तीन बच्चे हैं, जो नागरिकता मांग रहे हैं तो आप किस आधार पर उनको नागरिकता प्रदान करेंगे. सिब्बल ने तो यहां तक कह दिया की आप संविधान की धज्जियां उड़ा रहें हैं. सिब्बल ने आगे कहा की हम 2 नेशन थ्योरी पर नहीं 1 नेशन थ्योरी पर विश्वास रखते हैं.

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कांग्रेस ने इस दिन को इतिहास का काला दिन कह डाला जबकि अमित शाह जब इस बिल को लेकर आए थें तब उन्होंने इस बिल को ऐतिहासिक बिल बताया था और कहा था कि वो लोग जो यातनाएं झेल रहें हैं उनके लिए ये बिल एक नई आशा है. हालांकि राज्यसभा में सांसदों के बीच तीखी बहस तो खूब हुई और पक्ष-विपक्ष सभी ने अपनी राय रखी और अब बिल पास भी हो गया. हालांकि सीएबी के खिलाफ प्रोटेस्ट अभी भी जारी है इसका क्या नतीजा होगा ये देखने वाली बात है.

छोटी सरदारनी : क्या अतीत को भूलकर नई जिंदगी की शुरुआत कर पाएगी मेहर?

कलर्स टीवी के पौपुलर शो “ छोटी सरदारनी” में सरब और मेहर का रिश्ता अब एक नया मोड़ ले रहा है. दोनों धीरे-धीरे एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं. दूसरी तरफ हरलीन ने मेहर को एक बड़ी जिम्मेदारी भी सौंपी. तो आइए जानते है, क्या होने वाला है आज के एपिसोड में.

सरब और परम के घर आने वाला है छोटा मेहमान

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पिछले एपिसोड में आपने देखा कि सरब और मेहर ने अपने आने वाले बच्चे के बारे में परम को बता दिया है लेकिन दोनों ने परम से वादा लिया है कि वो, ये बात घर में किसी को भी नहीं बताए कि उसका छोटा भाई या बहन इस दुनिया में आने वाला है.

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मेहर को मिली सबसे बड़ी जिम्मेदारी

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आज के एपिसोड में दर्शकों को काफी इमोशनल ड्रामा देखने को मिलेगा. क्योंकि हरलीन मेहर को घर की चाबी सौंप चुकी है. जिससे मेहर बहुत भावुक हो जाएगी और  अपने ससुराल के लिए पहले से ज्यादा जिम्मेदार महसूस करेगी. वो इस घर को अब पूरे मन से भी अपनाने का फैसला करेगी.

क्या ‘मानव’ की यादों को मिटा पाएगी ‘मेहर’?  

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मेहर के कोख में पल रहा बच्चा उसके पहले प्यार मानव का  है. मानव और मेहर एक दूसरे से बेइंतहा प्यार करते थे और लोहड़ी की अग्नि को साक्षी मानकर साथ जीने और मरने की कसम भी खा चुके थे. जब मेहर की मां को पता चलता है कि मेहर प्रेग्नेंट है, वो साजिश रचकर मानव को मरवा देती है. अपनी प्यार की आखिरी निशानी को बचाने के लिए, मेहर सरबजीत से शादी कर लेती है.

मेहर और सरब करीब तो आ रहे हैं. अब ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या मेहर मानव की यादों को मिटाकर ‘सरब’ के परिवार को  पूरे जिम्मेदारी से अपनाने के लिए तैयार है? क्या वो अब अपने नई जिंदगी को पूरे मन से अपनाएगी ? जानने के लिए देखते रहिए “छोटी सरदारनी” सोमवार से शनिवार, शाम 7:30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

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#bethebetterguy: ड्राइविंग के दौरान फोन का इस्तेमाल करने से बचें

अगर आप भी ड्राइविंग करते समय फोन का इस्तेमाल करते हैं तो सुधर जाइए. ये आपके लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकता है. कुछ समय पहले एक अध्ययन के मुताबिक भारत में हर 10 में से 3 व्यक्ति वाहन चलाते वक्त फोन का इस्तेमाल करते हैं.

गाने सुनते हैं या बात करते हैं जिसके कारण वो सड़क दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं. आजके समय में मोबाइल फोन यदि सबके लिए अच्छा है तो कुछ मामलों में खतरनाक भी है और यहां पर तो आपकी जिंदगी का सवाल है.

29 मई 2016 की बात है एक खबर आई थी कि मध्य प्रदेश में बिलासपुर के रेलवे स्टेशन पर एक व्यक्ति फोन पर बात करते हुए ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रहा था उसका पैर फिसल गया और गिर गया जिसके कारण तत्काल ही उसकी मौत हो गई थी.

एक खबर 25 जुलाई 2016 को आई थी कि उत्तर प्रदेश के भदोही मे एक व्यक्ति रेलवे फाटक को क्रॉस कर रहा था, उसने अपने कान में ईयरफोन लगा रखे थे और उसे ट्रेन आवाज सुनाई नहीं दी वो व्यक्ति बस चला रहा था ट्रेन की बस से टक्कर हो गई और बस में सवार आठ लोगों की जान चली गई.

ऐसी तमाम खबरें आई हैं कि ड्राइविंग के दौरान फोन का इस्तेमाल करने की वजह से दुर्घटना हुई है. अखबारों के पन्नों में ऐसी तमाम खबरें मिलेंगी. सबसे ज्यादा तो आजकल युवा इसके पीछे पागल हैं. उन्हें लगता हैं कि हेड फोन लगा कर चलने से मैं ज्याद कूल दिखुंगा.

उन्हें ये सब फैशन लगता है लेकिन वो ये नहीं जानते कि वो अपनी मौत को न्योता दे रहें हैं. तो आपके लिए ये जरूरी है कि यदि आपके पास फोन है तो उसका इस्तेमाल सही तरीके से करें ताकि कहीं वो आने वाले समय में आपके लिए वरदान की जगह अभिशाप ना बन जाए. इसलिए सावधान हो जाइए.


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मैं खुले विचारों की है, इसी वजह से मेरी ननदें व जेठानियां मुझे अजीब नजरों से भी देखती हैं. मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 29 वर्षीय विवाहिता हूं. हमारा संयुक्त परिवार है. शादी से पहले ही हमें यह बता दिया गया था कि मुझे संयुक्त परिवार में रहना है. वैसे तो यहां किसी चीज की दिक्कत नहीं है पर ससुराल के अधिकतर लोग खुले विचारों के नहीं हैं, जबकि मैं काफी खुले विचार रखती हूं. इस वजह से मुझे कभीकभी उन की नाराजगी भी सहनी पड़ती है और खुलेपन की वजह से मेरी ननदें व जेठानियां मुझे अजीब नजरों से भी देखती हैं. पति को कहीं और फ्लैट लेने को नहीं कह सकती. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

घरपरिवार में कभीकभी कलह, वादविवाद, झगड़ा आम बात है. मगर परिवार फेसबुक अथवा व्हाट्सऐप की तरह नहीं है जिस में आप ने सैकड़ों लोगों को जोड़ कर तो रखा है, मगर आप को कोई पसंद नहीं है तो आप उसे एक ही क्लिक में एक झटके में बाहर कर दें.

इस बात की कतई परवाह न करें कि परिवार के कुछ सदस्य आप को किन नजरों से देखते हैं और कैसा व्यवहार करते हैं. अच्छा यही होगा कि अपनेआप को इस तरीके से व्यवस्थित करें कि आप हमेशा खूबसूरत इंसान बनी रहें. कोई कैसे देखता है यह उस पर है.

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आजकल जहां ज्यादातर लोग एकल परिवारों में रहते हुए तमाम वर्जनाओं के दौर से गुजरते हैं,वहीं आज के समय में आप को संयुक्त परिवार में रहने का मौका मिला है, जिस में अगर थोड़ी सी सूझबूझ दिखाई जाए तो आगे चल कर यह आप के लिए फायदेमंद ही साबित होगा.

बेहतर यही होगा कि छोटीछोटी बातों को नजरअंदाज करें और सब को साथ ले कर चलने की कोशिश करें. धीरेधीरे ही सही पर वक्त पर घर के लोग आप को हर स्थिति में स्वीकार कर लेंगे और आप सभी की चहेती बन जाएंगी.

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दिल के टुकड़ों का रिसना : भाग 1

दोपहर का वक्त था. कुसुम रसोई में खाना बना रही थी. पति अर्जुन और ससुर दीपचंद खेतों पर थे, जबकि देवर अशोक उर्फ जग्गा कहीं घूमने निकल गया था. खाना बनाने के बाद कुसुम भोजन के लिए पति, देवर व ससुर का इंतजार करने लगी. तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी.

कुसुम ने अपने कपड़े दुरुस्त किए और यह सोच कर दरवाजे पर आई कि पति, ससुर भोजन के लिए घर आए होंगे. कुसुम ने दरवाजा खोला तो सामने 2 जवान युवतियां मुंह ढके खड़ी थीं. कुसुम ने उन से पूछा, ‘‘माफ कीजिए, मैं ने आप को पहचाना नहीं. कहां से आई हैं, किस से मिलना है?’’

दोनों युवतियों ने कुसुम के सवालों का जवाब नहीं दिया. इस के बजाय एक युवती ने अपना बैग खोला और उस में से एक फोटो निकाल कर कुसुम को दिखाते हुए पूछा, ‘‘आप इस फोटो को पहचानती हैं?’’

‘‘हां, पहचानती हूं. यह फोटो मेरे देवर अशोक उर्फ जग्गा का है.’’ कुसुम ने बताया.

‘‘कहां हैं वह, आप उन्हें बुलाइए. मैं जग्गा से ही मिलने आई हूं.’’ युवती ने कहा.

‘‘वह कहीं घूमने निकल गया है, आता ही होगा. आप अंदर आ कर बैठिए.’’

दोनों युवतियां घर के अंदर आ कर बैठ गईं. कुसुम ने शिष्टाचार के नाते उन्हें मानसम्मान भी दिया और नाश्तापानी भी कराया. इस बीच कुसुम ने बातोंबातों में उन के आने की वजह जानने की कोशिश की लेकिन उन दोनों ने कुछ नहीं बताया.

चायनाश्ते के बाद वे दोनों जाने लगीं. जाते वक्त फोटो दिखाने वाली युवती कुसुम से बोली, ‘‘जग्गा आए तो बता देना कि 2 लड़कियां आई थीं.’’

दोनों युवतियों को घर से गए अभी आधा घंटा भी नहीं बीता था कि जग्गा आ गया. कुसुम ने उसे बताया, ‘‘देवरजी, तुम से मिलने 2 लड़कियां आई थीं. मैं ने उन का नामपता और आने का मकसद पूछा, पर उन्होंने कुछ नहीं बताया. वे पैदल ही आई थीं और पैदल ही चली गईं.’’

अशोक समझ गया कि उस से मिलने उस की प्रेमिका अपनी किसी सहेली के साथ आई होगी. वह मोटरसाइकिल से उन्हें खोजने निकल गया. कुसुम खाना खाने के बहाने उसे रोकती रही, पर वह नहीं रुका. यह बात 27 अगस्त, 2019 की है. उस समय अपराह्न के 2 बजे थे.

जग्गा के जाने के बाद दीपचंद और अर्जुन भोजन के लिए घर आ गए. कुसुम ने पति व ससुर को भोजन परोस दिया. फिर खाना खाने के दौरान कुसुम ने पति को बताया कि अशोक की तलाश में 2 लड़कियां घर आई थीं. उस वक्त अशोक घर पर नहीं था, सो वे चली गईं. अशोक बाइक ले कर उन्हीं से मिलने गया है.

अर्जुन अभी भोजन कर ही रहा था कि कोई जोरजोर से दरवाजा पीटने लगा, ‘‘अर्जुन भैया, जल्दी दरवाजा खोलो.’’

अर्जुन समझ गया कि कुछ अनहोनी हो गई है. उस ने निवाला थाली में छोड़ा और लपक कर दरवाजे पर पहुंच गया. उस ने दरवाजा खोला तो सामने जग्गा का दोस्त लखन खड़ा था. उस के पीछे गांव के कुछ अन्य युवक भी थे.

अर्जुन को देखते ही लखन बोला, ‘‘अर्जुन भैया, जल्दी चलो, नहर की पटरी पर तुम्हारा भाई जग्गा खून से लथपथ पड़ा है. किसी ने उस के पेट में चाकू घोंप दिया है.’’

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लखन की बात सुन कर घर में कोहराम मच गया. अर्जुन अपने पिता दीपचंद व लखन के साथ मनौरी नहर की पटरी पर पहुंचा. वहां खून से लथपथ पड़ा जग्गा तड़प रहा था. लोगों की भीड़ जुट गई थी. वहां तरहतरह की बातें हो रही थीं.

अर्जुन ने बिना देर किए पिता दीपचंद और गांव के युवकों की मदद से जग्गा को टैंपो में लिटाया. वे लोग जग्गा को प्रकाश अस्पताल ले गए. अशोक की मोटरसाइकिल उस से थोड़ी दूरी पर खड़ी मिली थी, जिसे उस के घर भिजवा दिया गया था. लेकिन अशोक की नाजुक हालत देख कर डाक्टरों ने उसे जिला अस्पताल ले जाने की सलाह दी. लेकिन जिला अस्पताल पहुंचतेपहुंचते जग्गा ने दम तोड़ दिया.

डाक्टरों ने जग्गा को देखते ही मृत घोषित कर दिया. जग्गा की मौत की सूचना गांव पहुंची तो मरूखा मझौली गांव में कोहराम मच गया. कुसुम भी देवर की मौत की खबर से सन्न रह गई. वह रोतीपीटती अस्पताल पहुंची और देवर की लाश देख कर फफक पड़ी.

पति अर्जुन ने उसे धैर्य बंधाया. हालांकि वह भी सिसकते हुए अपने आंसुओं को रोकने का असफल प्रयास कर रहा था. दीपचंद भी बेटे की लाश को टुकुरटुकुर देख रहा था. उस की आंखों के आंसू सूख गए थे.

कुछ देर बाद जब दीपचंद सामान्य हुआ तो उस ने बेटे अशोक की हत्या की सूचना थाना हलधरपुर पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्रा पुलिस बल के साथ मऊ के जिला अस्पताल पहुंचे. उन्होंने घटना की सूचना बड़े पुलिस अधिकारियों को दे दी, फिर मृतक अशोक के शव का बारीकी से निरीक्षण किया.

अशोक उर्फ जग्गा के पेट में चाकू घोंपा गया था, जिस से उस की आंतें बाहर आ गई थीं. आंतों के बाहर आने और अधिक खून बहने की वजह से उस की मौत हो गई थी. जग्गा की उम्र 24 साल के आसपास थी, शरीर से वह हृष्टपुष्ट था.

थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्रा अभी शव का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अनुराग आर्य व एएसपी शैलेंद्र श्रीवास्तव जिला अस्पताल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया. फिर शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया.

इस के बाद पुलिस अधिकारी मनौरी नहर पटरी पर उस जगह पहुंचे, जहां अशोक को चाकू घोंपा गया था. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. आलाकत्ल चाकू बरामद करने के लिए पटरी के किनारे वाली झाडि़यों में खोजबीन कराई, लेकिन चाकू बरामद नहीं हुआ.

घटनास्थल पर पुलिस को आया देख लोगों की भीड़ जुट गई. एएसपी शैलेंद्र श्रीवास्तव ने कई लोगों से पूछताछ की. उन लोगों ने बताया कि वे खेतों पर काम कर रहे थे. यहीं खड़ा अशोक 2 लड़कियों से बातचीत कर रहा था. किसी बात को ले कर एक लड़की से उस की तकरार हो रही थी.

इसी बीच अशोक की चीख सुनाई दी. चीख सुन कर जब वे लोग वहां पहुंचे तो अशोक जमीन पर खून से लथपथ पड़ा तड़प रहा था. उस के पेट में चाकू घोंपा गया था. हम लोगों ने नजर दौड़ाई तो 2 लड़कियां पुराना पुल पार कर मोटरसाइकिल वाले एक युवक से लिफ्ट मांग रही थीं. उस ने दोनों लड़कियों को मोटरसाइकिल पर बिठाया, फिर तीनों मऊ शहर की ओर चले गए.

एसपी अनुराग आर्य ने मृतक के बड़े भाई अर्जुन से पूछताछ की तो उस ने बताया कि अशोक की तलाश में उस के घर 2 लड़कियां आई थीं. अशोक उस वक्त घर पर नहीं था. मेरी पत्नी कुसुम ने उन्हें नाश्तापानी कराया था. कुसुम ने उन से उन का नामपता और आने के बाबत पूछा भी था, लेकिन दोनों ने कुछ नहीं बताया और घर से चली गईं.

कुछ देर बाद अशोक घर आया तो कुसुम ने उसे उन लड़कियों के बारे में बताया. उस के बाद वह मोटरसाइकिल ले कर उन की खोज में निकल गया. अशोक को गए अभी पौन घंटा ही बीता था कि खबर मिली अशोक जख्मी हालत में नहर पटरी पर पड़ा है.

तब मैं, मेरे पिता व अन्य लोग वहां पहुंचे और अशोक को पहले प्राइवेट अस्पताल और फिर वहां से  जिला अस्पताल लाए, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

‘‘क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारे भाई की हत्या किस ने की है?’’ आर्य ने पूछा.

‘‘सर, मुझे उन 2 लड़कियों पर शक है, जो अशोक की तलाश में घर आई थीं.’’

‘‘क्या तुम उन लड़कियों को जानतेपहचानते हो?’’

‘‘नहीं सर, मैं उन के बारे में कुछ नहीं जानता.’’

‘‘क्या उन लड़कियों से अशोक की दोस्ती थी?’’

‘‘सर, मैं दोस्ती के संबंध में भी नहीं जानता, इस के पहले वे कभी घर नहीं आई थीं.’’

खेतों पर काम कर रहे लोगों ने अशोक को लड़कियों के साथ बतियाते देखा था. उन्होंने उन दोनों को भागते हुए भी देखा था. अशोक के भाई अर्जुन को भी शक था कि लड़कियों ने ही अशोक को मौत के घाट उतारा.

पुलिस अधिकारियों ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया. एसपी अनुराग आर्य ने हत्या के खुलासे के लिए एएसपी शैलेंद्र श्रीवास्तव के निर्देशन में पुलिस की 3 टीमें गठित कीं और खुद भी मौनिटरिंग में लग गए.

पुलिस टीमों ने जांच शुरू की तो पता चला मृतक अशोक उर्फ जग्गा एक पढ़ालिखा, मृदुभाषी और व्यवहारकुशल युवक था. मरूखा मझौली गांव में उस का कभी किसी से झगड़ा नहीं हुआ था. पढ़नेलिखने में भी वह तेज था. उस ने ग्रैजुएशन कर लिया था और उस का चयन बिहार प्रदेश के वन विभाग में हो गया था. लेकिन ट्रेनिंग पर जाने से पहले ही उस की हत्या हो गई थी.

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पुलिस टीम ने मृतक अशोक के भाई अर्जुन, उस की पत्नी कुसुम तथा पिता दीपचंद से पूछताछ की और उन का बयान दर्ज किया. पुलिस टीमों ने घटनास्थल का फिर से निरीक्षण किया. साथ ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट का भी अध्ययन किया गया.

इस के अलावा मृतक के कई दोस्तों से भी पूछताछ की गई. पर यह पता नहीं चल पाया कि अशोक उर्फ जग्गा के किस लड़की से प्रेम संबंध थे और वह लड़की कहां की रहने वाली थी.

2 दिन बीत जाने के बाद भी जब पुलिस हत्या का खुलासा नहीं कर पाई तो गांव के लोगों का गुस्सा फूट पड़ा. गांव वालों ने हलधरपुर थाने का घेराव किया और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी की. इस दौरान ग्रामीणों की पुलिस से झड़प भी हुई.

घेराव की सूचना मिलते ही एसपी अनुराग आर्य और एएसपी शैलेंद्र श्रीवास्तव थाना हलधर आ गए. उन्होंने उत्तेजित ग्रामीणों को समझाया, साथ ही आश्वासन भी दिया कि हत्या का परदाफाश जल्द हो जाएगा. एसपी अनुराग आर्य के आश्वासन पर ग्रीमाणों ने धरनाप्रदर्शन खत्म कर दिया.

परिवार व ग्रामीणों का बढ़ता आक्रोश देख कर एसपी अनुराग आर्य ने पुलिस टीमों को जल्द से जल्द केस के खुलासे का आदेश दिया. आदेश पाते ही थानाप्रभारी अखिलेश कुमार की टीम ने तेजी से जांच आगे बढ़ाई.

अखिलेश कुमार अभी तक मृतक अशोक का मोबाइल फोन बरामद नहीं कर पाए थे. इस संबंध में उन्होंने मृतक के भाई अर्जुन से बात की तो पता चला अशोक का मोबाइल फोन घर पर ही है. घटना वाले दिन जब वह घर से निकला था, मोबाइल घर पर ही भूल गया था.

अखिलेश कुमार मिश्रा ने अशोक का मोबाइल कब्जे में ले कर चैक किया तो पता चला, वह एक खास नंबर पर ज्यादा बातें करता था. वह नंबर स्वीटी के नाम से सेव था. मिश्रा ने स्वीटी के नंबर पर काल की तो पता चला उस का मोबाइल बंद है.

इस पर अखिलेश मिश्रा ने सेवा प्रदाता कंपनी से उस नंबर की डिटेल्स मांगी. कंपनी से पता चला कि वह नंबर प्रतिमा चौहान के नाम पर है. उस का पता अली नगर, चौहान बस्ती, थाना सराय लखंसी (मऊ) दर्ज था.

1 सितंबर, 2019 की सुबह 10 बजे थानाप्रभारी अखिलेश मिश्रा ने पुलिस टीम के साथ अली नगर, चौहान बस्ती में प्रतिमा के घर छापा मारा. प्रतिमा उस समय घर पर ही थी. अखिलेश कुमार के इशारे पर महिला कांस्टेबल अंजलि और सुमन ने प्रतिमा को हिरासत में ले लिया. पुलिस उसे थाना हलधरपुर ले आई. पुलिस गिरफ्त में आने के बावजूद प्रतिमा के चेहरे पर डर या भय नहीं था.

थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्रा ने महिला पुलिस कस्टडी में प्रतिमा को अपने कक्ष में बुलाया और पूछा, ‘‘प्रतिमा, स्वीटी कौन है? क्या तुम उसे जानती हो? वह तुम्हारी सहेली है या फिर कोई रिश्तेदार?’’

‘‘सर, स्वीटी न तो मेरी सहेली है और न ही कोई रिश्तेदार. स्वीटी मेरा ही नाम है. स्कूल कालेज के रिकौर्ड में मेरा नाम प्रतिमा चौहान है, लेकिन घर वाले मुझे स्वीटी कहते हैं.’’

‘‘क्या तुम अशोक उर्फ जग्गा को जानती हो?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘हां, जानती हूं.’’ स्वीटी ने जवाब दिया.

‘‘27 अगस्त की दोपहर बाद तुम अशोक के घर मरूखा मझौली गांव गई थी?’’

‘‘हां, मैं अपनी सहेली सोनम यादव के साथ उस के गांव गई थी?’’

‘‘सोनम यादव कहां रहती है?’’

‘‘सर, सोनम यादव मऊ के कुबेर  में रहती है. वह बीटीसी की छात्रा है. हम दोनों पहसा के कालेज में साथ पढ़ती हैं.’’

इस के बाद अखिलेश मिश्रा ने कुबेर में छापा मार कर सोनम यादव को भी हिरासत में ले लिया. थाना हलधरपुर में जब उस की मुलाकात स्वीटी उर्फ प्रतिमा से हुई तो वह सब कुछ समझ गई.

इस के बाद थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्रा ने जब स्वीटी से अशोक उर्फ जग्गा की हत्या के संबंध में पूछताछ की तो वह साफ मुकर गई. उस ने बताया कि जग्गा से उस की दोस्ती फेसबुक व मोबाइल के जरिए हुई थी.

कुछ महीने बाद दोस्ती प्यार में बदल गई और दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. लगभग एक हफ्ते पहले उस ने मुझे मऊ के होटल अवधपुरी में बुलाया था. वहां उस ने शारीरिक संबंध बनाए और कहा कि उस की नौकरी लग गई है, उसे ट्रेनिंग पर जाना है. इसलिए आज के बाद फोन मत करना. हमारीतुम्हारी दोस्ती खत्म. मैं ने भी गुस्से में कह दिया कि ठीक है, काल नहीं करूंगी.

लेकिन 2 दिन बाद मैं ने उसे काल कर के कहा कि जब तुम्हें बात ही नहीं करना है तो तुम ने जो गिफ्ट (घड़ी और फोटो) दिया है, उसे वापस ले लो. इस पर उस ने कहा कि ठीक है, मंगलवार को वापस कर देना. मैं पहसा आ कर तुम्हारे कालेज के बाहर से ले लूंगा.

लेकिन वह गिफ्ट वापस लेने नहीं आया. तब 27 अगस्त को मैं सोनम के साथ उस के गांव गई, लेकिन वह नहीं मिला. मैं वापस लौट रही थी तो जग्गा पीछे से आ गया और मुझे बुलाने लगा. लेकिन मैं रुकी नहीं और एक युवक से लिफ्ट ले कर मऊ आ गई थी. मुझे

नहीं मालूम कि जग्गा की हत्या किस ने की है.

‘‘अगर जग्गा की हत्या तुम ने नहीं की तो किस ने की?’’ अखिलेश कुमार ने स्वीटी को टेढ़ी नजरों से देखते हुए पूछा.

‘‘सर, जग्गा की हत्या किस ने की, यह पता लगाना पुलिस का काम है.’’

‘‘देखो स्वीटी, पुलिस ने सब पता कर लिया है. अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम सच्चाई कबूल कर लो. वरना सच उगलवाने के लिए ये दोनों सिपाही तुम्हारे लिए तैयार खड़ी हैं.’’ मिश्रा ने महिला कांस्टेबल अंजलि व सुमन की ओर इशारा किया.

स्वीटी उर्फ प्रतिमा चौहान समझ गई कि सच्चाई बतानी ही पड़ेगी. वह बोली, ‘‘सर, मुझ से गलती हो गई. प्यार में धोखा खाया तो जघन्य अपराध हो गया. मैं ने ही जग्गा के पेट में चाकू घोंपा था. मैं अपना जुर्म कबूल करती हूं.’’

हत्या की बात स्वीकार करने के बाद स्वीटी ने आलाकत्ल चाकू, स्कूल बैग और मृतक जग्गा की फोटो बरामद करा दी. स्वीटी ने जुर्म कबूला तो उस की सहेली सोनम यादव भी टूट गई. उस ने भी जुर्म कबूल लिया.

थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्र ने अशोक उर्फ जग्गा की हत्या का परदाफाश करने तथा कातिल युवतियों को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी.

यह खबर मिलते ही एएसपी शैलेंद्र श्रीवास्तव थाना हलधरपुर आ गए. उन्होंने कातिल युवतियों स्वीटी व सोनम से विस्तृत पूछताछ की. फिर प्रैसवार्ता कर दोनों युवतियों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

चूंकि स्वीटी उर्फ प्रतिमा चौहान और सोनम यादव ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए हलधरपुर थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्रा ने मृतक के पिता दीपचंद को वादी बना कर स्वीटी उर्फ प्रतिमा श्रीवास्तव व सोनम यादव के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

इस के साथ ही दोनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस जांच में पता चला कि प्यार में धोखा खाई एक युवती ने कैसे और क्यों इस सनसनीखेज घटना को अंजाम दिया.

तमसा नदी के किनारे बसा मऊ शहर पूर्वांचल के बाहुबलियों का गढ़ माना जाता है. मऊ पहले गोरखपुर जिले का एक संभाग था, लेकिन बाद में गोरखपुर और आजमगढ़ संभाग को जोड़ कर मऊ को जिला बनाया गया.

इसी मऊ जिले के हलधरपुर थाना क्षेत्र में एक यादव बाहुल्य गांव है मरूखा मझौली. दीपचंद यादव का परिवार इसी गांव में रह रहा था. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे अर्जुन और अशोक उर्फ जग्गा थे. दीपचंद के पास 5 एकड़ जमीन थी.

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इसी जमीन पर इस परिवार का भरणपोषण होता था. दीपचंद यादव की अपनी बिरादरी में अच्छी पैठ थी. बिरादरी के लोग उन का सम्मान करते थे.

दीपचंद यादव का बड़ा बेटा अर्जुन शरीर से हृष्टपुष्ट और मृदुभाषी था. अर्जुन पढ़लिख कर जब खेतीकिसानी में हाथ बंटाने लगा तो दीपचंद ने उस का विवाह कुसुम से कर दिया. कुसुम अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां बखूबी निभाती थी.

अर्जुन का छोटा भाई अशोक उर्फ जग्गा तेजतर्रार व स्मार्ट युवक था. वह अच्छे कपड़े पहनता था और बनसंवर कर रहता था. गांव के अन्य लड़कों की अपेक्षा अशोक पढ़नेलिखने में भी तेज था. इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद उस ने स्नातक की डिग्री हासिल कर ली थी.

अशोक की तमन्ना सरकारी नौकरी में जाने की थी, इसलिए वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगा रहता था. साथ ही नौकरी के लिए आवेदन भी करता रहता था.

अशोक की तमन्ना पूरी करने के लिए दीपचंद ने भी मुट्ठी खोल दी थी. वह उस की हर जरूरत पूरी करते थे. उन्होंने अशोक को यह तक कह दिया था कि सरकारी नौकरी मिलने में रुपया बाधक नहीं बनेगा. इस के लिए भले ही 2-4 बीघा जमीन ही क्यों न बेचनी पड़े. दरअसल, दीपचंद जानता था कि बिना घूस के नौकरी मिलना नामुमकिन है.

क्रमश:

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बिहाइंड द बार्स : भाग 2

मृणालिनी थोड़ी देर आराम करने की गरज से अपने बिछौने पर पड़ गयी. कुसुम बैरक की सलाखों से टेक लगाए बैठ गयी. वह टुकुर-टुकुर बच्चे और मां को ताक रही थी. पचपन बरस की कुसुम को चौबीस साल पहले की वह रात रह-रह कर याद आ रही थी, जब उसने अपने ननकू को जनम दिया था. उसकी हालत भी इस नोरा से कुछ अलग नहीं थी. गांव में गारे-मिट्टी के उस छोटे से कच्चे घर में जमीन पर पड़ी वह भी घंटों दर्द से छटपटाती रही थी. दर्द के कारण उस पर बार-बार बेहोशी छा रही थी. उसकी सास कभी उसे गरियाती, तो कभी उसके मुंह पर थप्पड़ मारती, ताकि वह जोर लगा कर बच्चे को बाहर आने में मदद करे. उस दिन गांव की एकमात्र दाई किसी दूसरे का बच्चा करवाने दूर गांव गयी हुई थी. रात का यही वक्त रहा होगा जब उसके ननकू ने जनम लिया था. उसका इकलौता बेटा ननकू, उसका लाडला बेटा… जिसको पालपोस कर बड़ा करने और पढ़ाने-लिखाने में उसने अपनी पूरी जवानी मजूर बन कर दूसरे के खेतों में कठोर श्रम करते गंवा दी थी. आज अपने उसी ननकू के कारण वह जेल की सलाखों में उम्रकैद की सजा काट रही है.

कुसुम के लाड-प्यार का नतीजा था कि उसका ननकू हाथ से निकल गया. वह जिद्दी और गुस्सैल लड़के के रूप में बड़ा हुआ. जो जिम्मेदारी का किसी भी अहसास से दूर, उलटा अगर उसकी कोई बात पूरी न हो तो बवाल मचा देता था. आये दिन गांव के लड़कों के साथ उसकी मारपीट, गाली-गलौच होती थी. कभी किसी के खेत से कुछ चुरा लाता, कभी किसी की लड़की छेड़ देता. कुसुम उसकी शिकायतें सुन-सुन कर भर गयी थी. बाप की तो परवाह ही नहीं करता था, कुसुम कभी कुछ समझाने की कोशिश करती तो उस पर भी चढ़ बैठता था. शादी के बाद भी उसके गुस्से में कोई कमी नहीं आयी. ननकू के इसी गुस्से ने कुसुम के पूरे परिवार को तबाह कर दिया.

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एक रात खाने में ननकू की मनपसंद सब्जी नहीं बनी तो वह अपनी घरवाली मालती से झगड़ बैठा. थाली उठा कर उसके मुंंह पर दे मारी. कुसुम ने बहू-बेटे को झगड़ते देखा तो चुपचाप उठ कर घर से बाहर चली गयी. ननकू का बाप मजूरी के लिए शहर गया हुआ था. वह देहाड़ी मजदूर था. ज्यादातर ठेकेदार के साथ ही रहता था. घर की हाय-हाय किचकिच-किचकिच से वह घर से दूर सुकून में रहता था. कुसुम को भी अब ननकू का गरजना-बरसना बर्दाश्त न होता था. उस रोज भी जब ननकू को अपनी बीवी पर चीखते देखा तो कुसुम चुपचाप निकल कर पटवारी के आंगन में जा बैठी थी. बड़ी देर तक वह दीवार से पीठ टिकाये वहीं बैठी रही. देर रात लौटी तो चारों तरफ शांति थी. उसने सोचा कि दोनों लड़-झगड़ कर सो गये होंगे. सुबह गांव भर में हंगामा मचा हुआ था. गांववालों को मालती की लाश पिछवाड़े के पोखरे में मिली. सब तरफ शोर हो गया. ननकू ने कब मालती का गला दबा कर लाश पोखरे में फेंकी, कुसुम को तो पता ही नहीं चला. वह तो सुबह जब गांव की कुछ औरतें नित्यक्रम निपटाने पोखरे की तरफ गयीं तो वहां मालती की लाश पड़ी देखी. ननकू गायब था. दिन चढ़ते-चढ़ते पूरा गांव पुलिस की छावनी बन गया.

कुसुम को पुलिस थाने उठा ले गयी. कुसुम के पति को किसी ने फोन करके खबर दी. वह कामधाम छोड़कर भागा आया. शाम को जब पत्नी को छुड़ाने थाने पहुंचा तो पुलिस ने उसको भी पकड़ कर जेल में डाल दिया गया. ननकू के बारे में पुलिस दो दिन तक दोनों से पूछती रही, मगर उन्हें पता होता तब बताते. इस बीच मालती के परिवार वालों ने ननकू और उसके पूरे परिवार पर दहेज-हत्या का मुकदमा दायर करवा दिया. मां-बाप तो पहले ही अंदर थे, ननकू को ढूंढना बाकी था. ननकू कई महीने फरार रहा, लेकिन पुलिस के हाथों से कोई कब तक बच सकता था. एक दिन पकड़ा गया. तीनों पर दहेज हत्या का मुकदमा कई साल चलता रहा और आखिर में तीनों को उम्रकैद हो गयी. इस कालकोठरी में कुसुम को चार साल हो गये हैं. उसकी उम्र और सहृदयता को देखते हुए जेल अधिकारियों का रवैया उसके साथ अच्छा है. सच पूछो तो कुसुम को यह जेल अपने घर से कहीं ज्यादा अच्छी लगती है.

सुबह होने तक कुसुम बैरक की सलाखों से पीठ टिकाये मन ही मन अपनी बीती जिन्दगी के पन्ने पलटती रही. कई बार उसकी आंखें भीगीं, कई बार सिसकियां उभरीं. कई दफा ननकू का बचपन याद आ जाता है, अपने पति का प्यार याद आ जाता है. चार साल हो गये उनके चेहरे देखे हुए. पता नहीं अब उनसे मिलना कुसुम के नसीब में है भी या नहीं.

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सुबह होने को थी. पूरब की ओर धुंधलका कम हो रहा था. नोरा का थकान के मारे बुरा हाल था. बच्चे को कंबल के भीतर सीने से चिपकाए वह सुबह होने का इंतजार कर रही थी, ताकि थोड़ी चाय मिल सके और शरीर में गर्मी आये. पौ फटते ही बैरकों के बाहर जेल अधीक्षक और कर्मचारियों की चहल-पहल शुरू हो गयी थी. ताले खुलने की आवाजें आ रही थीं. कुसुम ने नोरा को सहारा देकर बिठाया. वह दीवार से टेक लगाए बिस्तर पर बैठ गयी. बच्चा मां का दूध पीकर आराम से सो रहा था. मृणालिनी जल्दी से नोरा के लिए चाय लेकर आयी. दूसरी बैरकों की महिला कैदियों की भीड़ उसकी बैरक में जुटने लगी. नये प्राणी का चेहरा देखने के लिए सभी उतावली थीं.

नोरा के सुन्दर चेहरे पर अब मां बनने की खुशी झलकने लगी. वह अपने सीने से चिपके एडबर्ड को देखकर निहाल हो रही थी. कितना प्यारा बच्चा है – गोरा-गोरा, लाल-लाल. बिल्कुल अपने बाप फ्रेडरिक पर गया है. फ्रेडरिक की याद आते ही नोरा उदास हो गयी. पता नहीं कहां होगा फ्रेडरिक. पता नहीं वह कभी अपने बच्चे से मिल पाएगा या नहीं. पता नहीं नोरा कभी इन सलाखों से बाहर निकल पाएगी या नहीं. उसे अपने बच्चे के लिए जेल की सलाखें नहीं चाहिएं… वह सोच रही थी.

‘अरे देख तो कैसा चिपका हुआ है मां से…. दे जरा मेरी गोद में दे…’ बैरक नम्बर 3 की नाहिदा ने झपट कर नोरा की गोद से एडबर्ड को ले लिया. कुसुम ने उसे टोका, ‘अरे, अरे, ध्यान से… सो रहा है…. अभी बाहर मत ले जा… आंख नहीं खुली है अभी इसकी…. मां के पास ही रहने दे….’

मगर नाहिदा एडबर्ड को बड़े प्यार से अपने सीने से लगा कर हौले-हौले हिलाने लगी. बोली, ‘याद है अम्मा… जब शकुन को लड़की हुई थी तब हमारे पास नाड़ काटने का कोई सामान नहीं था, वह कितनी देर तक मां से जुड़ी बाहर ही पड़ी रही थी. घंटों बाद ब्लेड का छोटा सा टुकड़ा मिला था, जिससे मैंने नाड़ काटी थी. और देर हो जाती तो दोनों मर ही जातीं.’

‘हां, हां, याद है. आज भी तो कुछ नहीं था नाड़ काटने को. ये तो मृणालिनी का दिमाग चल गया जो इसने अपनी कंघी को घिस कर चाकू बना लिया, वरना रात में पता नहीं क्या होता. अब देखो डॉक्टर कितने बजे आती है.’ कुसुम बोली.

‘दस बजे से पहले न आएगी. और आकर करेगी भी क्या नासपीटी? जब उसकी जरूरत होती है तब तो यहां मिलती नहीं. चाहे कोई मर क्यों न जाए, दस बजे से पहले आती नहीं, और एक बजते ही भागती है.’ नाहिदा गुस्से से फुंफकारती हुई बोली.

‘अरे, मैंने कितनी बार जेलर से कहा कि एक फर्स्ट एड बॉक्स ही यहां रखवा दे, दर्द की दवाइयां रख दे, वो सुमन ताई को पैरों में कितना दर्द होता है, रात भर कराहती रहती है, मगर हमारी सुनता कौन है? साले चोर कहीं के…’ मृणालिनी ने एक मोटी सी गाली जेलर के लिए निकाली.

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नोरा का किस्सा इस जेल का कोई पहला नहीं था. इससे पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं. तीन साल पहले एक कैदी औरत को बच्चा हुआ था. तब मृणालिनी यहां नई-नई आयी थी. शाम सात बजे कैदियों को उनके बैरकों में डाल कर ताले लगा दिये जाते हैं, जो दूसरी सुबह सात बजे खुलते हैं. इसके बीच के समय को जेल की भाषा में तालाबंदी कहते हैं. तालाबंदी के दौरान उस औरत को बैरक में ही बच्चा हो गया था. रात भर वह दर्द से चीखती रही. मृणालिनी उसके बगल वाली बैरक में बंद थी. सुबह बैरक खुलने पर मृणालिनी ने उसे खून से लथपथ देखा. किसी ने उसके बच्चे को साफ भी नहीं किया था. तब उसने ही जच्चा-बच्चा दोनों को अच्छी तरह साफ किया. एक अन्य औरत ने, जो कभी किसी के काम नहीं आती थी, उसने उसे चाय लाकर दी थी. उसकी डोरमेट्री के अन्य कैदी उसे उसके हाल पर छोड़कर एक ओर हो गये थे. ऐसी घटनाएं जेल में होती रहती थीं, मगर जेल के अधिकारी और कर्मचारी कैदी औरतों को जानवर समान समझते हैं. समझते हैं जैसे कुत्ते-बिल्ली अपने बच्चे पैदा कर लेते हैं, वैसे ही ये औरतें भी कर लेंगी

तलाक समाधान नहीं

आप का मकान रहने लायक नहीं रह गया है, तो जांचपरख करने के बाद आप के पास 2 रास्ते होते हैं, पहला कि आप मकान ढहा दें और इसे फिर से बनवाएं या फिर आप इसी मकान की मरम्मत करवा लें. प्रत्यक्षतौर पर मकान ढहा कर फिर से बनवाना, मरम्मत करवाने से ज्यादा मुश्किल काम है. कुछ ऐसा ही होता है पतिपत्नी के रिश्ते में भी, जब लगता है कि रिश्ता बेहद खराब हो चुका है और आगे निभाना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में तलाक का खयाल बड़ी तेजी से जेहन में उभरता है. परिजन, पड़ोसी, दोस्त सभी यही सलाह देने लगते हैं कि नहीं निभ रही, तो तलाक ले लो. लगता है कि बस यही एक चारा है शांति पाने का कि रिश्ते को ही खत्म कर दिया जाए. प्यार का खूबसूरत मकां, जो इतने जतन से बनाया था, उसे ढहा दिया जाए. मगर सच पूछिए तो यह आसान नहीं है.

तलाक लेने का फैसला और उसे मानने तक का दौर बहुत मुश्किल होता है. हर किसी के लिए और खासतौर पर महिलाओं के लिए इसे संभालना आसान नहीं होता. तलाक का बुरा असर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर तो पड़ता ही है, आर्थिक और समाजिक रूप से भी इंसान बहुत टूट जाता है, बहुत कमजोर हो जाता है. तलाक लेने का फैसला आसान नहीं होता.

फिर भी आजकल जिस तेजी से छोटीछोटी सी बात पर तलाक हो रहे हैं, वह आश्चर्यजनक है. कमजोर पड़ते जा रहे रिश्तों पर ठंडे दिमाग से सोचनेविचारने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट तेजी से टूट रहे सामाजिक ढांचे पर कई बार चिंता जाहिर कर चुका है. जिस तरह 498 ए यानी दहेज प्रताड़ना कानून के दुरुपयोग पर कोर्ट की चिंता बनी हुई है, उसी तरह दिनबदिन अदालतों में बढ़ते तलाक के मामलों पर भी उस की कई टिप्पणियां मीडिया में आ चुकी हैं.

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किस घर में भाईबहनों से या मातापिता से झगड़ा नहीं होता? बचपन से बड़े होने तक के दौर में हम कितनी बार छोटीबड़ी बात पर अपने परिजनों से, भाईबहनों से, दोस्तों से लड़तेझगड़ते हैं, पर क्या हम उन्हें अपनी जिंदगी से काट कर अलग कर देते हैं? नहीं, हम ऐसा नहीं करते. फिर पतिपत्नी के बीच छोटीछोटी बहस या झगड़ा तलाक जैसे बड़े फैसले में क्यों बदल जाता है? सोचिए कि आप एक ऐसे इंसान से दूर होना चाहते हैं, जिसे आप पूरे प्यार, सम्मान, गाजेबाजे के साथ दुनियाभर के सामने ब्याह कर लाए थे. जिस ने आप के साथ तनमनधन शेयर किया है. भावनाएं बांटी हैं, शरीर बांटा है, सपने बांटे हैं, भविष्य की योजनाएं बनाई हैं, तो क्या ऐसे इंसान से दूर हो कर आप खुश रह सकेंगे?

बरबाद हो जाता है जीवन

तलाक मांगने से और मिलने के बीच का समय अकसर कड़वाहट से भर जाता है. इस दौरान एकदूसरे के ऊपर लगाए जाने वाले इलजाम दर्द को कड़वाहट में बदल देते हैं. दिल इतना दुख जाता है कि एकदूसरे से बदला लेने की भावना रखने लगते हैं. एकदूसरे को ज्यादा से ज्यादा दुख देने का तरीका ढूंढ़ने लगते हैं. आप का गुस्सा सिर्फ आप के रिश्तों को ही नहीं, आप को भी परेशान करता है. किसी भी रिश्ते के खत्म होने पर होने वाला दुख हमें अवसाद से भर देता है. हमें ही नहीं, बल्कि हमारे आसपास रहने वाले लोगों को भी चिंताग्रस्त कर देता है. बच्चों की शादियां टूटने पर सब से ज्यादा परेशान होते हैं उन के बूढ़े मातापिता. अगर तलाक लेने वाले कपल के पास बच्चे भी हैं तो वे भयानक मानसिक तनाव का शिकार हो जाते हैं.

तलाक का फैसला जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए. पहले इस बारे में अच्छी तरह सोचविचार कर लीजिए. यह जरूरी नहीं कि तलाक लेने से आप की जिंदगी में छाए परेशानी के काले बादल छंट ही जाएंगे. इस के उलट, अकसर यह देखा गया है कि तलाक से एक समस्या तो हल हो जाती है, लेकिन उस की जगह कई नई समस्याएं खड़ी हो जाती हैं. जो पतिपत्नी तलाक का फैसला करते हैं वे इस कदर अपने ख्वाबोंखयालों में खो जाते हैं कि वे सोचने लगते हैं कि इस से एकदम से सारी समस्याओं का हल हो जाएगा, रोजरोज की किटकिट से हमेशा के लिए छुट्टी मिल जाएगी, उन के रिश्ते से खटास चली जाएगी और जिंदगी में चैनसुकून आ जाएगा.

लेकिन यह उतना ही नामुमकिन है जितना नामुमकिन एक ऐसी शादीशुदा जिंदगी जीना जिस में खुशियां ही खुशियां हों. इसलिए यह जानना जरूरी है कि तलाक लेने के क्याक्या नतीजे हो सकते हैं और उन्हें ध्यान में रख कर फैसला लेना ही समझदारी होगी.

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रश्मि ने 10 साल पहले अपने पति अतुल से तलाक ले लिया. वजह कोई बहुत बड़ी नहीं थी. अगर बड़ेबुजुर्गों ने थोड़ी सी कोशिश कर ली होती तो शायद रिश्ता बना भी रहता और रश्मि की गोद में 2-3 बच्चे भी खेल रहे होते. मगर उस वक्त तो रश्मि की तेजतर्रार मां भी बेटी को तलाक के लिए उकसाने में पीछे नहीं थी. कारण बस इतना था, रश्मि अपने औफिस से देरशाम लौटती थी और औफिस का कोई न कोई लड़का उस को घर तक लिफ्ट देता था. रश्मि का मायका भले खुले विचारों वाला था, जिस के चलते वहां लोगों का ध्यान उस की ओर कभी नहीं गया, मगर इस ससुराल ऐसे महल्ले में थी, जहां लोग बहुत खुले विचारों के नहीं थे.

सास ने रश्मि से बस इतना कहा कि तुम औफिस आनेजाने के लिए औटो लगवा लो, औफिस के लड़कों के साथ मत आयाजाया करो. बस, यह बात रश्मि को खटक गई. उसे लगा कि सास ने

उस पर रोकटोक करनी शुरू कर दी है. रश्मि ने एक बार सास को जवाब दिया तो दिनबदिन छोटीछोटी बात पर झगड़ेलड़ाइयां बढ़ने लगीं.

रश्मि ने पति को मांबाप से अलग रहने को उकसाना शुरू किया जो अतुल को ठीक नहीं लगा. दोनों में लड़ाई होती तो रश्मि रूठ कर मायके जाने की बात कहती और एक दिन ऐसा आया जब उस ने तलाक की मांग कर डाली. 2 साल बाद दोनों में तलाक हो गया. रश्मि के मातापिता ने पूरे खानदान के आगे रश्मि को ससुराल वालों के दकियानूसी खयाल के होने का ढोल पीटा.

तलाक मिला तो रश्मि ने चैन की सांस ली, इसे जैसे कैदखाने से मुक्ति मिल गई. तलाक के साथ मेंटिनैंस के कई लाख रुपए भी हाथ लगे. मगर रुपए कितने दिन टिकते हैं? दिन, महीने, साल गुजर गए. मातापिता ने रश्मि की दोबारा शादी की बड़ी कोशिशें कीं, मगर जो भी लड़का उसे देखने आता, वह उस की तुलना अतुल से करने लगती. अतुल देखने में गोरा और स्मार्ट था, अच्छी पोस्ट पर था, एकलौता लड़का था, सलीकेदार था. ऐसा लड़का दोबारा मिलना रश्मि के मातापिता को बहुत मुश्किल लगने लगा. उन्होंने रश्मि को समझाया कि थोड़ाबहुत समझौता तो करना ही पड़ेगा, मगर रश्मि न मानी.

कई साल गुजर गए और तलाकशुदा रश्मि की शादी की बात कहीं बन नहीं पाई. धीरेधीरे मांबाप ने भी रिश्ते ढूंढ़ने बंद कर दिए. पिताजी रिटायर हो गए तो रश्मि के पैसे घरखर्च में इस्तेमाल होने लगे. ऐसे में सोने का अंडा देने वाली मुरगी को वे क्यों किसी दूसरे के घर भेजने लगे? रश्मि ढलने लगी. उदास और चिड़चिड़ी रहने लगी. वह बस सुबह उठती, अनमने मन से तैयार हो कर दफ्तर चली जाती और शाम को लौट कर अपने कमरे में बंद हो जाती.

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शादी एक ऐसा बंधन है जो 2 दिलों को एकदूसरे से जोड़ कर रखता है. लेकिन कई बार किसी छोटी सी वजह से भी शादी के इस बंधन में दरार पड़ जाती है और बात तलाक तक जा पहुंचती है. हालांकि कोई नहीं चाहता कि उन के वैवाहिक जीवन में तनाव आए और तलाक जैसी नौबत आए मगर धीरज की कमी, गुस्सा, आपस में एकदूसरे से विचारों का न मिलना, एकदूसरे की संस्कृति का अलग होना, ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर जैसे कई कारण हैं, जिन की वजह से तलाक होता है.

एकदूसरे पर विश्वास करें

पहले लड़कियां आर्थिक रूप से पति पर निर्भर होती थीं तो ऐसे कारण उस की आर्थिक जरूरत के आगे उभर नहीं पाते थे. लड़कियां बड़ों की बातें या पति की बातें सहन कर लेती थीं, मगर आज आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ी लड़की किसी की बात सुननेसमझने को तैयार नहीं है. ऐसे में परिजनों को भी समझदारी से काम लेना चाहिए और उन की जिंदगी में ज्यादा दखलंदाजी या ज्यादा टोकाटाकी करने से बचना चाहिए, ताकि उन के बच्चों का रिश्ता बना रहे.

आप के पार्टनर के साथ आप का प्यार बना रहे और शादी का रिश्ता आखिरी समय तक सही तरीके से चले, इस के लिए जरूरी है कि आप भी एकदूसरे को समझने की कोशिश करें और एक दूजे पर विश्वास करना सीखें. आप दोनों अलगअलग परिवेश से एकदूसरे के पास आए हैं. एकदूसरे में ढलने और एकदूसरे को पूरी तरह समझने में वक्त तो लगेगा. कई बार तो सालों साथ रहने के बावजूद हम एकदूसरे को पूरी तरह समझ नहीं पाते हैं. ऐसे में जरूरत है आपसी विश्वास बनाए रखने की.

तलाक ले लेना समस्या का समाधान कतई नहीं है. तलाक लेने के बाद लड़की और लड़की के परिवार वाले सामाजिक तौर पर बेइज्जती का शिकार ही होते हैं. प्रत्यक्षतौर पर भले पड़ोसी या दोस्त कुछ न कहें मगर पीठपीछे बदनाम ही करते हैं. यही कुछ तलाकशुदा लड़के के साथ भी होता है. उस के बारे में बातें बनाई जाती हैं. दूसरे विवाह के समय दुनियाभर की छानबीन होती है कि पहली वाली क्यों चली गई?

लड़की की दूसरी शादी आसानी से नहीं होती. तलाकशुदा लड़कियां लंबे समय तक एकाकी और तनावयुक्त जीवन बिताती हैं. आर्थिक रूप से मातापिता पर आश्रित होने वाली तलाकशुदा बेटियों से धीरेधीरे मातापिता भी विमुख होने लगते हैं. वे डिप्रैशन की शिकार हो जाती हैं. तलाक के सालों बाद भी तलाकशुदा लोग खुद को उलझन में, अपमानित और बेसहारा महसूस करते हैं. जो हसीन पल उन्होंने एकदूसरे के साथ बिताए होते हैं वे उन्हें रहरह कर याद आते हैं.

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समस्या तब और ज्यादा गंभीर हो जाती है जब दोनों के बीच बच्चे भी होते हैं. अगर बच्चे की कस्टडी मां के पास हो तो उस को पालने, शिक्षा देने, सैटेल करने की जिम्मेदारी के चलते मां दूसरी शादी भी नहीं कर पाती और पैसा कमाने के लिए उस की जिंदगी चकरघिन्नी सी घूमती रहती है. वहीं, बच्चा अगर पिता के पास रहता है तो उस की उस तरह से परवरिश नहीं हो पाती जैसी एक मां कर सकती है. ऊपर से उस का हर वक्त मां के लिए तड़पते रहना न तो उस के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए ठीक है और न ही पिता के लिए. तलाकशुदा कपल के बच्चे अकसर डिप्रैशन और भय के शिकार हो जाते हैं. इसलिए अपने लिए न सही, अपने बच्चों के भविष्य को ध्यान में रख कर तलाक का फैसला करने से पहले सौ बार सोचें.

6 टिप्स: एक्सपर्ट्स से जानें कैसे करें बालों की देखभाल

बालों को खूबसूरती का अहम हिस्सा माना जाता है. घने और खूबसूरत बालों की तमन्ना हर किसी की होती है, लेकिन यह भी एक सच है कि बालों को लंबा, चमकदार, खूबसूरत और घना बनाने के लिए उनकी अच्छी देखभाल करनी पड़ती है. आज के भागमभाग भरे जीवन में हमारे पास इतना समय नहीं होता की हम बालों की एक्सट्रा केयर कर सकें. बालों को हेल्दी रखने के लिए दिल्ली प्रैस भवन में हुई फेब मीटिंग के दौरान, हेयर स्टाइल आरिफ सलमानी ने कुछ खास स्टेप्स के साथ हेयर केयर के टिप्स की जानकारी दीं. लगातार बढ़ते प्रदूषण बालों को कमजोर और बेजान बना देती है. ऐसे में आरिफ सलमानी ने दिये कुछ ऐसे टिप्स, जिन्हें अपनाकर आप बना सकते हैं अपने बालों को सुंदर और घना…

1. बालों की मसाज है जरूरी

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बालों को मसाज जरूर दें. मसाज से बालों को पोषण मिलता है. इतना ही नहीं यह बालों में रूसी या कई तरह के इंफेक्शन से भी बचाता है.

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2. कोकोनट मिल्क या औयल का करें इस्तेमाल

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बालों को पोषण देने के लिए कोकोनट मिल्क का इस्‍तेमाल करें. कोकोनट मिल्क बालों को पोषण तो देता ही है, साथ ही यह बालों को लंबा और चमकदार भी बनाता है, यदि आपके बाल ज्यादा रूखे है तो आप कोकोनट मिल्क का इस्तेमाल जरूर करें. इससे आपके बाल सौफ्ट और सिल्की नजर आएंगे. साथ ही हफ्ते में दो बार बालों में बादाम, औलिव या नारियल के तेल से मसाज करने से बाल हेल्दी रहते हैं.

3. सिरका या बीयर भी करें ट्राई

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बालों को चमकदार बनाने के लिए सिरके या बीयर का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. सिरके में पोटेशियम और एंजाइम होते हैं, जो खुजली और रूसी से राहत दिलाता है. बीयर के इस्तेमाल से आपके बाल चमकदार और रेशमी हो जाते हैं.

4. बालों को अंडे से दें प्रोटीन ट्रीटमेंट

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बालों की देखभाल के लिए प्रोटीन ट्रीटमेंट जरूर लेना चाहिए. बालों को प्रोटीन ट्रीटमेंट देने के लिए एक अंडे को फेंट कर गीले बालों में लगाएं. और फिर इसे 15 मिनट तक लगे रहने दें और फिर हल्के गर्म पानी से धो लें.

5. होममेड चीजों का करें इस्तेमाल

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– बालों की जड़ों से रूसी को हटाने के लिए तीन चम्‍मच दही में काली मिर्च पाउडर मिलकार लगाएं. आधे घंटे बाद इसे धो लें. इसे हफ्ते में दो बार करें.

– सेब का सिरका बालों में नई जान दे सकता है. बालों में सेब का सिरका महज 5 मिनट लगाने से ही बालों में नई चमक आ जाती है.

– हफ्ते में दो बार एलोवेरा जैल से बालों की जड़ों की मसाज करें. ऐसा करने से बालों में चमक आएगी और बालों का झड़ना भी कम होगा.

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6. इन चीजों का भी रखें ध्यान

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– गीले बालों में कंघी न करें, इससे बाल कमजोर हो जाते है.

– हल्के गीले बालों में सीरम लगाएं, सीरम बालों को स्मूद करता है, इससे बाल उड़े-उड़े नहीं लगते. यदि आपके बाल ड्राई, फ्रीजी या घूंगराले है तो आप हेयर सीरम का इस्तेमाल जरूर करें. फर्क आपको दिख जाएगा.

– बाल धोने के लिए ज्यादा गरम पानी का इस्तेमाल न करें.

– महीने में 2 बार स्पा जरूर लें. यदि पार्लर नही जा सकती तो घर पर ही स्पा कर लें.

– बालों को स्टीम जरूर दें. अगर आपके पास स्टीमर नहीं है तो आप हौट टौवल से भी बालो को स्टीम दें सकती है.

ऐसे बनाएं चटपटा सौंफ आलू

अगर आप भी आलू की कोई चटपटी डिश बनना चाहते हैं तो  तो सौंफ आलू जरूर ट्राई करें. इसे बनाना भी बहुत आसान है  और टाइम भी कम लगता है. तो चलिए जानते हैं, सौफ आलू बनाने की रेसिपी.

सामग्री

दूध- 1/2 कप

नमक- स्वादानुसार

तेल- 2 चम्मच

बरीक कटी धनिया पत्ती- 4 चम्मच

आलू- 5

दरदरा सौंफ- 2 चम्मच

लाल मिर्च पाउडर- 2 चम्मच

हल्दी पाउडर- 1 चम्मच

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बनाने की विधि

सबसे पहले आलू को धोकर छिलके के साथ बीच से काट लें.

कुकर में तेल गर्म करें और उसमें दरदरा सौंफ डालें.

उसके साथ ही कुकर में हल्दी पाउडर, नमक और लाल मिर्च पाउडर डालें.

जब सौंफ का रंग सुनहरा हो जाए तो आलू के टुकड़ों को कुकर में डालकर अच्छी तरह से मिलाएं.

कुकर में आवश्यकतानुसार पानी डालें और ढक्कन बंद करें.

दो सीटी लगाएं लगवाएं.

कुकर का प्रेशर अपने-आप निकलने दें.,अब कुकर में दूध डालकर मिलाएं.

आलू के टुकड़ों को हल्का-सा मैश कर दें ताकि ग्रेवी गाढ़ी हो जाए.

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लाली : भाग 2

लाली को भी घर से निकलना पड़ा. उस के चाचा से अंधी लड़की का बोझ संभाला नहीं गया और अनाथ लड़की को अनाथ आश्रम में शरण लेनी पड़ी. शायद अच्छा ही हुआ था उस के साथ. आश्रम की पढ़ाई में उस का मन नहीं लगता था. पूरे दिन उसे बस, संगीत की कक्षा का इंतजार रहता और उस के बाद वह इंतजार करती रोशन का. रोज शाम को आधे घंटे के लिए बाहर वालों से मिलने की इजाजत होती थी. पर समय तो मुट्ठी में रखी रेत की तरह होता है, जितनी जोर से मुट्ठी बंद करो रेत उतनी ही जल्दी फिसल जाती है.

आज बेसब्री से लाली रोशन का इंतजार कर रही थी. जैसे ही रोशन के आने की आहट हुई उस की आंखों के बांध को तोड़ आंसू छलक पड़े.

‘मुझे यहां नहीं रहना रोशन, मुझे यहां से ले चलो.’

‘क्यों, क्या हुआ लाली?’ रोशन ने लड़खड़ाते स्वर में पूछा.

‘मुझे यहां सभी अंधी कोयल कह कर बुलाते हैं. मैं और यह सब नहीं सुन सकती.’

‘अरे, बस इतनी सी बात, शुक्र मना, वे तुझे काली कौवी कह कर नहीं बुलाते या काली लाली नहीं बोलते.’

‘क्या मतलब है तुम्हारा. मैं काली हूं और मेरी आवाज कौवे की तरह है?’

‘अरे, तू तो बुरा मान गई. मैं तो मजाक कर रहा था. तेरी आवाज कोयल की तरह है तभी तो सभी तुझे कोयल कह कर बुलाते हैं और रोशन के रहते तेरी आंखों को रोशनी की जरूरत ही नहीं है,’ रोशन ने खुद की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘पर मुझे यहां नहीं रहना, मुझे यहां से ले चलो.’

‘लाली, मैं ने तुझे पहले भी बोला है कि कुछ दिन सब्र कर, मुझे कुछ रुपए जमा कर लेने दे फिर मैं तुझे मुंबई ले चलूंगा और बहुत बड़ी गायिका बनाऊंगा,’ रोशन ने खांसते हुए कहा.

‘देख, रोशन, मुझे गायिका नहीं बनना. तू बारूद के कारखाने में काम करना बंद कर दे. बाबा भी नहीं चाहते थे कि तू वहां काम करे. मुझे तेरी जान की कीमत पर गायिका नहीं बनना. मैं देख नहीं सकती, इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं महसूस भी नहीं कर सकती. तेरी हालत खराब हो रही है,’ लाली ने परेशान होते हुए कहा.

लाली की परेशानी बेवजह नहीं थी. रोशन सचमुच बीमार रहने लगा था. दिन- रात बारूद का काम करने के कारण उस की छाती में जलन होने लगी थी, लेकिन लाली को गायिका बनाने का सपना उसे दिनरात काम करने की प्रेरणा देता था.

आज रोशन की खुशी का ठिकाना नहीं था. टे्रन सपनों की नगरी मुंबई पहुंचने ही वाली थी. उस के साथसाथ लाली का वर्षों का सपना पूरा होने वाला था. बारबार वह अपनी जेब में रखे 10 हजार रुपयों को देखता और सोचता क्या इन रुपयों से वह अपना सपना पूरा कर पाएगा. इन रुपयों के लिए ही तो उस ने जीवन के 4 साल कारखाने की अंधेरी कोठरी में गुजारे थे. लाली साथ वाली सीट पर बैठी थी. नाबालिग होने के कारण आश्रम ने उसे रोशन के साथ जाने की इजाजत नहीं दी लेकिन वह सब की नजरों से बच कर रोशन के पास आ गई थी.

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मुंबई की अट्टालिकाओं को देख कर रोशन को लगा कि लोगों के इस महासागर में वह एक कण मात्र ही तो है. उस ने अपने को इतना छोटा कभी नहीं पाया था. अब तो बस, एक ही सवाल उस के सामने था कि क्या वह अपने सपनों को सपनों की इस नगरी में यथार्थ रूप दे पाएगा.

काफी जद्दोजहद के बाद मुंबई की एक गंदी सी बस्ती में एक छोटा कमरा किराए पर मिल पाया. कमरे की खोज ने रोशन को एक सीख दी थी कि मुंबई में कोई काम करना आसान नहीं होगा. उस ने खुद को आने वाले दिनों के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था.

आज सुबह रोशन और लाली को अपने सपने को सच करने की शुरुआत करनी थी अत: दोनों निकल पड़े अपने उद्देश्य को पूरा करने. उन्होंने कई संगीतकारों के दफ्तर के चक्कर काटे पर कहीं भी अंदर जाने की इजाजत नहीं मिली. यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. लाली का धैर्य और आत्म- विश्वास खत्म होने लगा और खत्म होने लगी उन की पूंजी भी. लेकिन रोशन इतनी जल्दी हार मानने वाला कहां था. वह लाली को ले कर हर दिन उम्मीद क ी नई किरण अपनी आंखों में बसाए निकल पड़ता.

उस दिन रोशन को सफलता मिलने की पूरी उम्मीद थी, क्योंकि वह लाली को ले कर एक गायन प्रतियोगिता के चुनाव में जा रहा था, जिसे जीतने वाले को फिल्मों में गाने का मौका मिलने वाला था. रोशन को भरोसा था कि लाली इस प्रतियोगिता को आसानी से जीत जाएगी. हर दिन के रियाज और आश्रम में मिलने वाली संगीत की शिक्षा ने उस की आवाज को और भी अच्छा बना दिया था.

प्रतियोगिता भवन में हजारों लोगों की भीड़ अपना नामांकन करवाने के लिए आई हुई थी. करीब 3 घंटे के इंतजार के बाद एक चपरासी ने उन्हें एक कमरे में जाने को कहा. वहां एक बाबू प्रतियोगिता के लिए नामांकन करा रहे थे.

अंदर आते 2 किशोरों को देख उस व्यक्ति ने उन्हें बैठने का इशारा किया और अपने मोटे चश्मे को नीचे करते चुटकी लेते हुए कहा, ‘किस गांव से आ रहे हो तुम लोग और इस अंधी लड़की को कहां से भगा कर ला रहे हो?’

‘अरे, नहीं साहब, भगा कर नहीं लाया, मैं लाली को यहां गायिका बनाने लाया हूं,’ रोशन ने धीमे से कहा.

‘गायिका और यह…सुर की कितनी समझ है तुझे, गलीमहल्ले में गा कर खुद को गायिका समझने की भूल मत कर, यहां देश भर से कलाकार आ रहे हैं. मेरा समय बरबाद मत करो और निकलो यहां से,’ साहब ने गुर्राते हुए कहा.

‘अरे, नहीं साहब, लाली बहुत अच्छा गाती है. आप एक बार सुन कर तो देखिए,’ रोशन ने बात को संभालने के अंदाज से कहा.

‘देखो लड़के, यह कार्यक्रम सारे देश में टेलीविजन पर दिखाया जाएगा और मैं नहीं चाहता कि एक गंवार, अंधी लड़की इस का हिस्सा बने. तुम जाते हो या पुलिस को बुलाऊं,’ साहब ने चिल्लाते हुए कहा.

दोनों स्तब्ध, अवाक् खड़े रहे जैसे सांप सूंघ गया हो उन्हें. लाली खुद को ज्यादा देर रोक नहीं पाई और उस की आंखों से आंसू निकल आए और वह फौरन कमरे से बाहर निकल आई. अंदर रोशन अपने सपनों को टूट कर बिखरते हुए देख खुद टूट गया था.

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मुंबई नगरी अब उसे सपनों की नगरी नहीं शैतानों की नगरी लग रही थी. ये बिलकुल वैसे ही शैतान थे जिन्हें वह बचपन में सपनों में देखा करता था. बस, एक ही अंतर था, इन के सिर पर सींग नहीं थे. पर यह सब सोचने का समय नहीं था उस के पास, अभी तो उसे लाली को संभालना था.

दोनों समंदर के किनारे बैठे अपने दुख को भूलने की कोशिश कर रहे थे. रोशन डूबते सूरज के साथ अपने सपने को भी डूबता देख रहा था. उस ने लाली को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसे समझाना मुश्किल लग रहा था.

‘तुम्हें पता है लाली, डूबता सूरज बहुत खूबसूरत होता है,’ उस ने लाली को समझाने का अंतिम प्रयास किया, ‘और पता है यह खूबसूरत क्यों होता है, क्योंकि यह लाल रंग का होता है. और पता है तेरा नाम लाली क्यों है क्योंकि तू सब से सुंदर है. मेरा भरोसा कर लाली, तू मेरे लिए दुनिया की सब से खूबसूरत लड़की है.’

रोशन ने अनजाने में आज वह बात कह दी थी जिसे कहने की हिम्मत वह पहले कभी नहीं जुटा पाया था. डूबते सूरज की रोशनी में लाली का चेहरा पहले से ही लाल नजर आ रहा था, यह सुन कर उस का चेहरा और भी लाल हो गया और उस के होठों  पर मुसकान आ गई.

12 साल बाद की उस घटना को सोच कर रोशन के चेहरे पर हंसी आ गई जैसे सबकुछ अभी ही हुआ है. रात का तीसरा पहर भी बीत गया था. चारदीवारी के अंदर का कोलाहल शांत हो गया था. शायद लाली की शादी हो गई थी. उस के सीने की जलन बढ़ती जा रही थी. कारखाने में काम करने के कारण उस के फेफड़े जवाब दे चुके थे. डाक्टरों के लाख समझाने के बाद भी उस ने बारूद के कारखाने में काम करना नहीं छोड़ा था अब उसे मरने से डर नहीं लगता था वह जीना ही नहीं चाहता था. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं और फिर से उस के जेहन में अतीत की यादें सजीव होने लगीं.

अब लाली महल्ले के मंदिर के  सत्संग में गाने लगी थी और रोशन एक ढाबे में काम करने लगा था. शायद उन लोगों ने मुंबई की जिंदगी से समझौता कर लिया था. लाली के गाए भजनों की लोकप्रियता बढ़ने लगी थी, अब आसपास के लोग भी उसे सुनने आते थे. लाली इसी में खुश थी.

एक दिन सुबहसुबह दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. रोशन ने दरवाजा खोला तो देखा एक अधेड़ व्यक्ति साहब जैसे कपड़े पहने खड़ा था.

‘बेटे, लाली है क्या? मैं आकाश- वाणी में सितार बजाता हूं. हमारा भक्ति संगीत का कार्यक्रम हर दिन सुबह 6 बजे रेडियो पर प्रसारित होता है. जो गायिका हमारे लिए गाया करती थी वह बीमार है,’ उस व्यक्ति ने कमरे के अंदर बैठी लाली को देखते हुए कहा.

लाली यह सुन कर बाहर आ गई.

‘लाली, क्या तुम हमारे रेडियो कार्यक्रम के लिए गाओगी?’

यह सब किसी सपने से कम नहीं था, रोशन को अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था.

‘बेटे, मैं ने लाली को मंदिर में गाते हुए सुना है. मैं ने अपने संगीतकार को लाली के बारे में बताया है. वह लाली को एक बार सुनना चाहते हैं. अगर उन्हें लाली की आवाज पसंद आई तो लाली को रेडियो में गाने का काम मिल सकता है,’ उस व्यक्ति ने स्पष्ट करते हुए कहा.

उसी दिन शाम को दोनों रेडियो स्टेशन पहुंच गए. लाली को माइक्रो- फोन के आगे खड़ा कर दिया गया. साजिंदों ने साज बजाने शुरू किए और लाली ने गाना :

‘अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम…’

गाना खत्म हुआ और अचानक सभी बाहर आ गए. लाली के आसपास भीड़ जुटने लगी. स्वर के जादू ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया था, जैसे सभी उस आवाज को आत्मसात कर रहे हों. गाने के बाद तालियों की गूंज ने लाली को बता दिया था कि उस की नौकरी पक्की हो गई है. रोशन की खुशी का ठिकाना नहीं था.

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