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घर पर आसानी से ऐसे बनाएं वैक्स

अक्सर महिलाएं हर महीने पार्लर में काफी पैसे खर्च करती हैं. खासतौर पर वैक्सिंग पर काफी खर्च होतो हैं. ऐसे में अगर आपको अगर  इस खर्च से बचना है तो आप घर पर भी वैक्स बना सकती हैं. तो आइए जानते हैं, घर पर वैक्स बनाने का तरीका.

घर पर ऐसे बनाएं वैक्स

एक पैन में दो कप शुगर में एक चौथाई कप नींबू का रस और एक चौथाई कप पानी डालें.  खुशबू के लिए आप किसी भी औइल की दो-तीन बूंदे डाल सकती हैं.

पैन को गैस पर रखने के बाद उसमें डाली गई सामग्री को मध्यम आंच पर गर्म होने दें.

चीनी और नींबू के रस को लगातार चम्मच से हिलाते रहें, इससे लंप्स नहीं बनेंगे. चीनी जल्दी जल भी जाती है इसलिए भी मिक्स को हिलाना बंद न करें.

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मिक्स्चर जब चाश्नी जैसा हो जाए और उसका कलर हल्का भूरा हो तो गैस बंद कर दें.

आपका होममेड वैक्स तैयार है, इसे आप अपनी पसंद के एयरटाइट जार में डाल लें और जब चाहें तब गर्म कर इस्तेमाल करें.

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ऐसे करें इस्तेमाल

होममेड वैक्स को आप किसी आम वैक्स की तरह ही यूज कर सकते हैं. वैक्स को जार से निकालकर माइक्रोवेव या फिर पैन में गर्म कर लें फिर उसे स्किन पर लगाएं और कौटन या बाजार में उपलब्ध पेपर वैक्स स्ट्रिप को उस पर रखें. रब करें और फिर एक साइड से बालों की उल्टी दिशा में स्ट्रिप को खींच लें.

दिल के टुकड़ों का रिसना : भाग 2

अशोक यादव की हिंदी के अलावा अंगरेजी पर भी अच्छी पकड़ थी. वह फर्राटेदार अंगरेजी तो बोलता ही था, उसे कंप्यूटर का भी अच्छा ज्ञान था. फुरसत में वह सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर नए मित्र बनाता और उन से चैटिंग करता था. जो युवकयुवतियां मन को भाते, उन से वह मोबाइल फोन के नंबर दे ले कर बातें करता रहता था.

चैटिंग के दौरान ही फेसबुक पर अशोक उर्फ जग्गा का परिचय स्वीटी उर्फ प्रतिमा चौहान से हुआ. अशोक ने उस की प्रोफाइल देखी तो पता चला कि उस की उम्र 29 साल है और वह मऊ जिले के थाना सराय लखंसी के गांव अलीनगर की चौहान बस्ती की रहने वाली है.

उस के पिता रामप्यारे चौहान किसान थे. प्रतिमा पहसा स्थित कालेज में बीटीसी की छात्रा थी. स्वीटी पढ़ीलिखी युवती थी. प्रोफाइल देख कर अशोक का रुझान उस की ओर हो गया.

फेसबुक के माध्यम से स्वीटी अशोक के संपर्क में आ गई. दोनों अकसर चैटिंग कर लिया करते थे. दोनों ने आपस में मोबाइल नंबर भी शेयर कर लिए थे. धीरेधीरे दोनों दिल खोल कर बातें करने लगे. स्वीटी अशोक के परिवार के बारे में अधिक जानकारी जुटाने का प्रयत्न करती थी. जाहिर था कि वह अशोक से प्रभावित थी, इसीलिए उस के बारे में खोजबीन करती थी.

एक दिन बातचीत के दौरान स्वीटी ने पूछा, ‘‘अशोक, मैं ने तुम्हारे परिवार के बारे में बहुत कुछ जान लिया है लेकिन यह कभी नहीं पूछा कि तुम करते क्या हो?’’

अशोक फीकी हंसी हंसा, ‘‘मुझे झूठ बोलने की आदत नहीं है, इसलिए सच बताऊंगा. सच यह है कि मैं बेरोजगार हूं.’’

‘‘मैं सीरियस हूं यार.’’

‘‘मैं भी सीरियस हूं, मजाक नहीं कर रहा हूं. सच बता रहा हूं कि मैं बेरोजगार हूं. हां, इतना जरूर है कि मैं सरकारी नौकरी पाने के लिए प्रयास कर रहा हूं.’’

तब तक दोनों की दोस्ती गहरा गई थी. स्वीटी का मन अशोक को देखने, उस से मिलने और आमनेसामने बैठ कर बातें करने का था. एक दिन उस ने अशोक को पहसा आने को बोल दिया. दिन, तारीख और समय भी निश्चित कर दिया. स्वीटी के इस बुलावे को अशोक ने सहर्ष स्वीकार कर लिया.

नियत दिन और समय पर अशोक पहसा कस्बा पहुंच गया. स्वीटी उसे पहसा इटारा मोड़ पर स्थित दुर्गा मंदिर के पास मिली. दोनों को पता था कि कौन कैसे कपड़े पहन कर आएगा. इसलिए उन्हें एकदूसरे को पहचानने में दिक्कत नहीं हुई.

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अशोक का व्यक्तित्व आकर्षक था तो स्वीटी भी भरपूर जवान थी. अशोक से बातें करतेकरते स्वीटी सोचने लगी कि अगर अशोक जैसे सुंदर, सजीले युवक से उस की शादी हो जाए तो उस का जीवन सुखमय रहेगा.

स्वीटी सोच में डूबी हुई थी. तभी अशोक बोला, ‘‘तुम इतनी सुंदर होगी, मैं ने सोचा भी नहीं था. बुरा न मानो तो एक बात बोलूं?’’

स्वीटी की धड़कनें तेज हो गईं. उसे लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि जो मैं सोच रही हूं, अशोक भी वही सोच रहा हो. मन की बात मन में छिपा कर वह बोली, ‘‘जो कहना चाहते हो, बेहिचक कह सकते हो.’’

‘‘तुम्हें देखते ही दिल में प्यार का अहसास जाग उठा है.’’ अशोक ने उस के हाथ पर हाथ रख दिया, ‘‘आई लव यू स्वीटी.’’

प्रेम निवेदन सुनते ही स्वीटी मानो अपने आपे में नहीं रह सकी. उस ने अपना दूसरा हाथ उठा कर अशोक के हाथ पर रख दिया, ‘‘आई लव यू टू.’’

उसी समय दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई. स्वीटी घर वालों की आंखों में धूल झोंक कर जब तब अशोक से मिलने लगी. अशोक भी घर वालों को बिना कुछ बताए स्वीटी के प्यार में बंध गया.

जैसेजैसे दिन बीतते गए, दोनों का प्यार दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा. दोनों का प्यार परवान चढ़ा तो फिर शारीरिक मिलन भी होने लगा. मऊ में दरजनों ऐसे लौज और होटल थे, जहां इस प्रेमी युगल को आसानी से कमरा उपलब्ध हो जाता था.

लगभग एक साल तक स्वीटी और अशोक का मिलन निर्बाध चलता रहा. उस के बाद अशोक स्वीटी से कन्नी काटने लगा. उस ने स्वीटी से मोबाइल फोन पर बात करना कम कर दिया था. जब कभी बतियाता भी तो वह झुंझला उठता था. शारीरिक मिलन से भी वह कतराने लगा था.

अशोक में आए इस परिवर्तन से स्वीटी उर्फ प्रतिमा चिंतित हो उठी. उसे लगा कि जो सपना उस ने देखा था, वह अधूरा रह जाएगा. स्वीटी ने इस बारे में गुप्तरूप से जानकारी जुटाई तो उस के पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई. उसे पता चला कि अशोक का झुकाव गाजीपुर की एक युवती की ओर है और दोनों छिपछिप कर मिलते हैं.

प्यार का घरौंदा टूटता देख स्वीटी बौखला गई. उस ने युवती के बारे में अशोक से बात की तो उस ने झूठ बोल दिया. साथ ही उस ने झुंझला कर स्वीटी से कहा कि वह उसे फोन न किया करे. वह न तो उस से मिलना चाहता है और न बात करना. इस के बाद स्वीटी और अशोक के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. दोनों के प्यार में गहरी दरार आ गई.

इसी बीच अशोक का चयन बिहार वन विभाग में हो गया. चयन के बाद उस ने स्वीटी से और भी दूरियां बढ़ा लीं. दरअसल, अशोक को भय सताने लगा था कि अगर स्वीटी उस के पीछे पड़ी रही तो उस का भविष्य दांव पर लग सकता है. इसलिए वह उस से पीछा छुड़ाना चाहता था. दूसरी ओर उस का परिचय एक सजातीय युवती से भी हो गया था, जिस के कारण वह स्वीटी से दूरियां बनाने लगा था.

प्यार में धोखा खाने के बाद स्वीटी के दिल में अशोक के प्रति नफरत पनपने लगी थी. स्वीटी की एक करीबी सहेली सोनम यादव मऊ में रहती थी. वह भी पहसा स्थित कालेज में बीटीसी की छात्रा थी. प्यार में मात खाने के बाद वह हर बात सोनम से शेयर करती थी. एक रोज बातचीत में सोनम ने स्वीटी को उकसाया कि वह बेवफा प्रेमी को सबक सिखाए ताकि वह किसी अन्य के साथ धोखा न करे.

20 अगस्त को स्वीटी ने काल की तो अशोक ने उसे मऊ के अवधपुरी होटल में मिलने को कहा. होटल में दोनों की बातचीत हुई और शारीरिक मिलन भी हुआ. उसी दिन अशोक ने नौकरी लग जाने और ट्रेनिंग पर जाने की बात कह कर स्वीटी को फोन न करने की हिदायत दी.

इस पर स्वीटी ने कहा कि जब बात नहीं करनी है तो तुम ने जो घड़ी और अपना फोटो गिफ्ट में दिया था, वापस ले लो. इस पर अशोक ने कहा कि वह 2 दिन बाद आ कर ले जाएगा.

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लेकिन जब अशोक नहीं आया तो स्वीटी प्रतिशोध की आग में जल उठी. उस ने अपनी सहेली सोनम यादव से विचारविमर्श किया. दोनों ने बेवफा प्रेमी अशोक को सबक सिखाने की ठान ली. इस के लिए स्वीटी ने एक तेजधार वाला चाकू खरीदा और उसे अपने बैग में सुरक्षित रख लिया.

27 अगस्त, 2019 की दोपहर बाद स्वीटी अपनी सहेली सोनम यादव के साथ अशोक के घर मरूखा मझौली पहुंची. उस समय अशोक घर पर नहीं था. फलस्वरूप वे दोनों लौट गईं. जब दोनों गांव के बाहर पटरी पर पहुंचीं तभी अशोक मोटरसाइकिल से आ गया.

पहले उस की स्वीटी से झड़प हुई, फिर सोनम से. जब अशोक और सोनम में झड़प हो रही थी, तभी स्वीटी ने बैग से चाकू निकाला और अशोक के पेट में घोंप दिया. अशोक खून से लथपथ हो कर नहर की पटरी पर गिर पड़ा.

अशोक को चाकू घोंपने के बाद स्वीटी और सोनम ने तेज कदमों से नहर का पुराना पुल पार किया और मोटरसाइकिल पर मऊ की ओर जा रहे एक युवक से यह कह कर लिफ्ट मांगी कि उन दोनों को कोचिंग के लिए देर हो रही है. उस युवक ने दोनों को लिफ्ट दे दी और इस तरह वे मऊ चली गईं.

इधर पटरी पर तड़प रहे अशोक को राहगीर तथा खेतों पर काम कर रहे लोगों ने देखा तो यह खबर उस के घर वालों को दी. घर वाले उसे जिला अस्पताल ले गए, जहां उस की मौत हो गई.

घर वालों ने मौत की सूचना थाना हलधरपुर पुलिस को दी तो थानाप्रभारी अखिलेश कुमार अस्पताल पहुंचे. उन्होंने जांच शुरू की तो इश्क में फंसे अशोक की हत्या का परदाफाश हुआ.

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2 सितंबर, 2019 को थाना हलधरपुर पुलिस ने आरोपी स्वीटी उर्फ प्रतिमा चौहान व सोनम यादव को मऊ कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट शशिकुमार के सामने पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया. पुलिस उस व्यक्ति का पता नहीं लगा पाई, जो हत्यारोपियों को अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर मऊ तक लाया था.

भारत के नाम एक और कामयाबी, डिफेंस सैटेलाइट रीसैट-2बीआर(RiSAT-2BR1)लौन्च

11 दिसंबर दोपहर 3 बजकर  25 मिनट पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (INDIAN SPACE RESEARCH ORGANIZATION-ISRO) ने श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लौन्च पैड से रीसैट-2 बीआर 1 को लौन्च किया है और ये एक बहुत बड़ी कामयाबी है जो इसरो ने पायी है. इसके सभी 9 उपग्रह 21 मिनट के अंदर ही अपनी कक्षा में स्थापित हो गए हैं.

आपको बता दूं कि RiSaT-2BR1 का वजन 628 किलोग्राम है. देश की सेनाओं के लिए ये बहुत ही महत्वपुर्ण साबित होगा. ये उनकी मदद करेगा हर परिस्थिति में,चाहे बारिश, हो तूफान हो हर मौसम में ये काम करेगा. ये बादलों के पार भी तस्वीर ले पाएगा. चाहे कितना ही ज्यादा मौसम खराब क्यों ना हो लेकिन ये सीमाओं की साफ तस्वीर लेने में मददगार साबित होगा. इसकी सबसे खास बात ये है कि ये दिन और रात दोनों समय काम करेगा. इसरो ने इसे लौन्च करके एक नया रिकार्ड कायम किया है. इसका इस्तेमाल इमेंजिंग पृथ्वी निगरानी उपग्रह के रूप में किया जाएगा.

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वैसे तो भारत हमेशा ही कोई ना कोई रिकौर्ड कायम करता रहता है लेकिन इस बार इस लौन्चिंग के तहत देश के दुश्मनों पर भारत आसानी से नजर रख पाएगा. RiSaT-2BR1 अपने साथ 9 उपग्रह साथ लेकर गया है, जिसमें जापान, इजरायल इटली के एक-एक उपग्रह हैं और अमेरिका के अकेले 6 उपग्रह शामिल हैं और इन 9 उपग्रह को मिलाने के बाद इसरो ने अब तक 319 विदेशी सैटेलाइट अंतरिक्ष में स्थापित किए हैं, इसके कक्षा में स्थापित होने के बाद भारत की राडार इमेंजिंग ताकत कई गुना बढ़ गई है जो भारत के लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध होगा. विशेषशज्ञों ने कहा है कि ये सबसे ज्यादा देश की सीमाओं में हो रहे घुसपैठ को रोकने में मदद करेगा और इससे भारत की शक्ति में भी इजाफा होगा.

आपको बता दें की ये इसरो का 50वां लौन्च है और इससे भारत को नए तरीके से देश के दुश्मनों को खोज निकालना संभव हो गया है. इससे पहले भी इसको ने कई रिकार्ड कायम किए हैं और ये भारत के लिए बहुत ही गर्व की बात है और पूरे देश को इसरो पर गर्व करना चाहिए. इस लौन्चिंग को आज स्टेडियम से कई लोगों ने लाइव देखा. लोग इसकी तारीफ कर रहे हैं. जाहिर सी बात है कि हर भारतीय को अपने देश पर और इसरो पर गर्व का अनुभव होगा.

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मध्यांतर भी नहीं हुआ अभी : भाग 2

‘‘क्या मतलब?’’

अब चौंकने की बारी चंद्रा की थी. हंसने लगा मैं. तभी हमारे कुछ सहयोगी मुझे देखने चले आए. मुझे हंसते देखा तो आंखें तरेरने लगे.

‘‘वर्माजी, यह क्या तमाशा है. हमें दौड़ादौड़ा कर मार दिया और आप यहां तमाशा करने में लगे हैं.’’

‘‘इन के परिवार का पता है क्या आप के पास? कृपया मुझे दीजिए. मैं इन की पत्नी को बुला लेना चाहती हूं. ऐसी हालत में उन का यहां होना बहुत जरूरी है.’’

पलट कर चंद्रा ने उन आने वालों से सारी बात करना उचित समझा. कुछ पल को चुप हो गए सब के सब. बारीबारी से एकदूसरे का चेहरा देखा और सहसा सब सच सुना दिया.

‘‘इन की तो शादी ही नहीं हुई… पत्नी का पता कहां से लाएंगे…वर्माजी, आप ने इन्हें बताया नहीं है क्या?’’

‘‘अपनी सहपाठी से इतने सालों बाद मिले, कल रात देर तक पुरानी बातें भी करते रहे तो क्या आप ने अपने बारे में इतना सा भी नहीं बताया?’’

‘‘इन्होंने पूछा ही नहीं, मैं बताता कैसे?’’

‘‘श्रीमती गोयल, आप वर्माजी के साथ पढ़ती थीं. ऐसी कौन लड़की थी जिस की वजह से वर्माजी ने शादी ही नहीं की. क्या आप को जानकारी है?’’

‘‘नहीं तो, ऐसी तो कोई नहीं थी. मुझे तो याद नहीं है…क्यों सोम? कौन थी वह?’’

‘‘सब के सामने क्यों पूछती हो. कुछ तो मेरी उम्र का खयाल करो. तुम्हारी यह आदत मुझे आज भी अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘कौन थी वह, सोम? जिस का मुझे ही पता नहीं चला.’’

‘‘बस, हो गया न मजाक,’’ मैं जरा सा चिढ़ गया.

‘‘तुम जाओ चंद्रा. मैं अब ठीक हूं. यह लोग रहेंगे मेरे पास.’’

‘‘कोई बात नहीं. मैं भी रहूंगी यहां. कुछ मुझे भी तो पता चले, आखिर इस उच्च रक्तचाप का कारण क्या है. कोई चिंता नहीं, कोई तनाव नहीं, कल ठीक थे न तुम, आज सुबहसुबह ऐसा क्या हो गया कि सीधे यहीं आ पहुंचे.’’

मैं ने चंद्रा को बहुत समझाना चाहा लेकिन वह गई नहीं. सच यह भी है कि मन से मैं भी नहीं चाहता था कि वह चली जाए. उथलपुथल का सैलाब जितना मेरे अंदर था शायद उस से भी कुछ ज्यादा अब उस के मन में होगा.

सब चले गए तो हम दोनों रह गए. वार्ड ब्वाय मेरा खाना दे गया तो उसे चंद्रा ने मेरे सामने परोस दिया.

‘‘आज सुबह ही मुझे तुम्हारे बारे में पता चला कि श्रीमती गोयल तुम हो…तुम्हारे साथ इतना सब बीत गया. उसी से दम इतना घुटने लगा था कि समझ ही नहीं पाया, क्या करूं.’’

अवाक् सी चंद्रा मेरा चेहरा देखने लगी.

‘‘तुम्हारे सुखी भविष्य की कल्पना की थी मैं ने. तुम मेरी एक अच्छी मित्र रही हो. जब भी तुम्हें याद किया सदा हंसती मुद्रा में नजर आती रही हो. तुम्हारे साथ जो हो गया तुम उस लायक नहीं थीं.

‘‘मैं तुम्हारा सिर थपथपाया करता था और तुम मुझे ‘पापा’ कह कर चिढ़ाती थीं. आज ऐसा ही लगा मुझे जैसे मेरे किसी बच्चे का जीवन नर्क हो गया और मैं जान ही नहीं पाया.’’

‘‘वे सब पुरानी बातें हैं, सोम, लगभग 17-18 साल पुरानी. इतनी पुरानी कि अब उन का मुझ पर कोई असर नहीं होता तो तुम ने उन्हें अपने दिल पर क्यों ले लिया? वह इनसान मेरे लायक नहीं था. इसीलिए वहीं चला गया जहां उस की जगह थी.’’

उबला दलिया अपने हाथों से खिलातेखिलाते गरदन टेढ़ी कर चंद्रा हंस दी.

‘‘तुम छोटे बच्चे हो क्या सोम, जो इतनी सी बात पर इतने परेशान हो गए. जीवन में कई बार गलत लोग मिल जाते हैं, कुछ देर साथ रह कर पता चलता है हम तो ठीक दिशा में नहीं जा रहे… सो रास्ता बदल लेने में क्या बुराई है.’’

‘‘रास्ता ही खो जाए तो?’’

‘‘तो वहीं खडे़ रहो, कोई सही इनसान आएगा… सही रास्ता दिखा देगा.’’

‘‘दुखी नहीं होती हो, चंद्रा.’’

‘‘कम से कम अपने लिए तो कभी नहीं होती. खुशनसीब हूं…मेरे पास कुछ तो है. दालरोटी मिल रही है…समाज में मानसम्मान है…ढेरों पत्र आते हैं जो मुझे अपने बच्चों जैसे प्यारे लगते हैं. इतने साल कट गए हैं सोम, आगे भी कट ही जाएंगे. जो होगा देख लेंगे.’’

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‘‘बस चंद्रा, और खाया नहीं जाएगा,’’ पतला दलिया मेरे गले में सूखे कौर जैसा अटकने लगा था. उस का हाथ रोक लिया मैं ने.

‘‘शुगर के मरीज हो न, भूखे रहोगे तो शुगर कम हो जाएगी…अच्छा, एक और चीज है मेरे पास तुम्हारे लिए…सुबह होस्टल में ढोकला बना था तो मैं ने तुम्हारे लिए पैक करवा लिया था…सोचा, क्या पता आज फिर से सेमिनार लंबा ख्ंिच जाए और तुम भूख से परेशान हो कर कुछ खाने को बाहर भागो.’’

‘‘मेरी इतनी चिंता रही तुम्हें?’’

‘‘अब अपना है कौन जिस की चिंता करूं? कल बरसों बाद अपना नाम तुम्हारे होंठों से सुना तो ऐसा लगा जैसे कोई आज भी ऐसा है जो मुझे नाम से पुकार सकता है. कोई आज भी ऐसा है जो बिना किसी बनावट के बात शुरू भी कर सकता है और समाप्त भी. बहुत चैन मिला था कल तुम से मिल कर. सुबह नाश्ते में भी तुम्हारा खयाल आया.’’

चंद्रा रो पड़ी थी. मेरा प्याला तो पहले ही छलकने के कगार पर था. सच ही तो कह रही है चंद्रा…अब अपना है ही कौन जो चिंता करे. मेरी चिंता करने वाले मेरे मांबाप भी अब नहीं हैं और शायद चंद्रा के भी अब इस संसार में नहीं होंगे.

देर तक एकदूसरे के सामने बैठे हम अपने बीते कल और अकेले आज पर आंसू बहाते रहे, न उस ने मुझे चुप कराना चाहा और न मैं ने ही उसे रोका.

काफी समय बीत गया. जब लगा मन हलका हो गया तब हाथ उठा कर चंद्रा का सिर थपथपा दिया मैं ने.

‘‘बस करो, अब और कितना रोओगी?’’

रोतेरोते हंस पड़ी चंद्रा. आंखें पोंछ अपना पर्स खोला और मेरे लिए लाया ढोकला मुझे दिखाया.

‘‘जरा सा चखना चाहोगे, मुंह का स्वाद अच्छा हो जाएगा.’’

लगा, बरसों पीछे लौट गया हूं. आज भी हम जवान ही हैं…जब आंखों में हजारोंलाखों सपने थे. हर किसी की मुट्ठी बंद थी. कौन जाने हाथ की लकीरों में क्या होगा. अनजान थे हम अपने भविष्य को ले कर और अनजाने रहने में ही कितना सुख था. आज सबकुछ सामने है, कुछ भी ढकाछिपा नहीं. पीछे लौट जाना चाहते हैं हम.

‘‘मन नहीं हो रहा चंद्रा…भूख भी नहीं लग रही.’’

‘‘तो सो जाओ, रात के 9 बज गए हैं.’’

‘‘तुम होस्टल चली जातीं तो आराम से सो पातीं.’’

‘‘यहां क्या परेशानी है मुझे? पुराना साथी सामने है, पुरानी यादों का अपना ही मजा है, तुम क्या जानो.’’

‘‘मैं कैसे न जानूं, सारी समझदारी क्या आज भी तुम्हारी जेब में है?’’

मेरे शब्दों पर पुन: चौंक उठी चंद्रा. मुझे ठीक से लिटा कर मुझ पर लिहाफ ओढ़ातेओढ़ाते उस के हाथ रुक गए.

‘‘झगड़ा करना चाहते हो क्या?’’

‘‘इस में नया क्या है? बरसों पहले जब हम अलग हुए थे तब भी तो एक झगड़ा हुआ था न हमारे बीच.’’

‘‘याद है मुझे, तो क्या आज हारजीत का निर्णय करना चाहते हो?’’

‘‘हां, आखिर मैं एक पुरुष हूं. जाहिर सी बात है जीतना तो चाहूंगा ही.’’

‘‘मैं हार मानती हूं, तुम जीत गए.’’

‘‘चंद्रा, मेरी बात सुनो…’’ सामने बेंच की ओर बढ़ती चंद्रा का हाथ पकड़ लिया मैं ने. पहली बार ऐसा प्रयास किया है मैं ने और मेरा यह प्रयास एक अधिकार से ओतप्रोत है.

‘‘मेरे पास बैठो, यहां.’’

एक उलझन उभर आई है चंद्रा की आंखों में. शायद मेरा यह प्रयास मेरी अधिकार सीमा में नहीं आता.

‘‘सब के सामने तो तुम पूछती हो कि मेरा परिवार कहां है? मेरी पत्नी कहां है? अगर शादी नहीं की तो क्यों नहीं की? अकेले में क्यों नहीं पूछतीं? अभी हम अकेले हैं न. पूछो मुझ से कि मैं किस की चाह में अकेला रहा सारी उम्र?’’

मेरे हाथ से अपना हाथ नहीं छुड़ाया चंद्रा ने. मेरी बगल में चुपचाप बैठ गई.

‘‘बरसों पहले भी मैं तुम से हारना नहीं चाहता था. तब भी मेरे जीतने का मतलब अलग होता था और आज भी अलग है…

‘‘तुम्हें हरा कर जीतना मैं ने कभी नहीं चाहा. तब भी जब तुम सही प्रमाणित हो जाती थीं तो मुझे खुशी होती थी और आज भी तुम्हारी ही जीत में मेरी जीत है.

‘‘चंद्रा, तुम्हारे सुख की कामना में ही मेरा पूरा जीवन चला गया और आज पता चला मेरा चुप रह जाना किसी भी काम नहीं आया. मेरा तो जीनामरना सब बस, यों ही…

‘‘देखो चंद्रा, जो हो गया उस में तुम्हारा कोई दोष नहीं. वही हुआ जो होना था. स्वयं पर गुस्सा आ रहा है मुझे. जिस की चाह में अकेला रहा सारी उम्र, कम से कम कभी उस का हाल तो पूछ लेता. तुम जैसी किसी को खोजखोज कर थक गया. थक गया तो खोज समाप्त कर दी. तुम जैसी भला कोई और हो भी कैसे सकती थी. सच तो यह है कि तुम्हारी जगह कोई और न ले सकती थी और न ही मैं ने वह जगह किसी को दी.’’

डबडबाई आंखों से चंद्रा मुझे देखती रही.

‘‘मेरे दिल पर इसी सत्य ने प्रहार किया है कि मेरा चुप रह जाना आखिर किस के काम आया. न तुम्हारे न ही मेरे. एक घर जो कभी बस सकता था… बस ही नहीं पाया… किसी का भी भला नहीं हुआ. खाली हाथ तुम भी हो और मैं भी.’’

‘‘कल से तुम्हें महसूस कर रही हूं मैं सोम. 50 के आसपास तो मैं भी पहुंच चुकी हूं. तुम जानते हो न मेरी छटी इंद्री की सूचना कभी गलत नहीं होती…जिस इनसान से मेरी शादी हुई थी वह कभी मुझे अपना सा नहीं लगा था. और सच में वह मेरा कभी था भी नहीं…उस के बाद हिम्मत ही नहीं हुई किसी पर भरोसा कर पाऊं.’’

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‘‘क्या मुझ पर भी भरोसा नहीं कर पाओगी?’’

‘‘तुम तो सदा से अपने ही थे सोम, पराए कभी लगे ही नहीं थे. आज इतने सालों बाद भी लगता नहीं कि इतना समय बीत गया. तुम पर भरोसा है तभी तो पास बैठी हूं…अच्छा, मैं पूछती हूं तुम से…

‘‘सोम, तुम ने शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘मत पूछना, क्योंकि अपनी बरबादी का सारा जिम्मा मैं तुम्हीं पर डाल दूंगा जो शायद तुम्हें बुरा लगेगा. तुम्हारे बाद रास्ता ही खो गया. वहीं खड़ा रहा मैं…दाएंबाएं कभी नहीं देखा. तनमन से वैसा ही हूं जैसा तुम ने छोड़ा था.’’

‘‘तनमन से मैं तो वैसी नहीं हूं न. 2 संतानें मेरे गर्भ में आईं और चली गईं. पहले उन्हीं को याद कर के दुखी हो लेती थी फिर सोचा पागल हूं क्या मैं? जिंदा पति किसी बदनाम औरत का हाथ पकड़ गंदगी में समा गया. उसे नहीं बचा पाई तो उन बच्चों का क्या रोना जिन्हें कभी न देखा न सुना. कभीकभी तो लगता है पत्थर बन गई हूं जिस पर सुखदुख का कोई असर नहीं होता.’’

‘‘असर होता है. असर कैसे नहीं होता?’’ और इसी के साथ मैं ने चंद्रा को अपने पास खींच लिया. फिर सस्नेह उस का माथा सहला कर सिर थपथपा दिया.

‘‘असर होता है तुम पर चंद्रा. समय की मार से हम समझदार हो गए हैं, पत्थर तो नहीं बने. पत्थर बन जाते तो एकदूसरे के आरपार कभी नहीं देख पाते.’’

मेरे हाथों की ही सस्नेह ऊष्मा थी जिस ने दर्द की परतों को उघाड़ दिया.

‘‘यदि आज भी एकदूसरे का हम सहारा पा लें तो शायद 100 साल जी जाएं और उस हिसाब से तो अभी मध्यांतर भी नहीं हुआ.’’

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नन्ही बच्ची की तरह रो पड़ी चंद्र्रा. बांहों में छिपा कर माथा चूम लिया मैं ने. छाती में जो हलकाफुलका दर्द सुबह शुरू हुआ था सहसा कहीं खो सा गया.

वो जलता है मुझ से : भाग 2

‘‘तुम कहते हो एक दिन उस ने तुम्हारी गाड़ी में बैठने से मना कर दिया. उस का घर तुम्हारे घर से ज्यादा दूर नहीं है इसलिए वह पैदल ही सैर करते हुए वापस जाना चाहता था. तुम्हें यह भी बुरा लग गया. क्यों भई? क्या वह तुम्हारी इच्छा का गुलाम है? क्या सैर करता हुआ वापस नहीं जा सकता था. उस की जराजरा सी बात को तुम अपनी ही मरजी से घुमा रहे हो और दुखी हो रहे हो. क्या सदा दुखी ही रहने के बहाने ढूंढ़ते रहते हो?’’

आंखें भर आईं विजय की.

‘‘प्यार करते हो अपने दोस्त से तो उस के स्वाभिमान की भी इज्जत करो. बचपन था तब क्या आपस में मिट्टी और लकड़ी के खिलौने बांटते नहीं थे. बारिश में तुम रुके पानी में धमाचौकड़ी मचाना चाहते थे और वह तुम्हें समझाता था कि पानी की रुकावट खोल दो नहीं तो सारा पानी कमरों में भर जाएगा.

‘‘संसार का सस्तामहंगा कचरा इकट्ठा कर तुम उस में डूब गए हो और उस ने अपना हाथ खींच लिया है. वह जानता है रुकावट निकालना अब उस के बस में नहीं है. समझनेसमझाने की भी एक उम्र होती है मेरे भाई. 45 के आसपास हो तुम दोनों, अपनेअपने रास्तों पर बहुत दूर निकल चुके हो. न तुम उसे बदल सकते हो और न ही वह तुम्हें बदलना चाहता होगा क्योंकि बदलने की भी एक उम्र होती है. इस उम्र में पीछे देख कर बचपन में झांक कर बस, खुश ही हुआ जा सकता है. जो उस ने भी चाहा और तुम ने भी चाहा पर तुम्हारा आज तुम दोनों के मध्य चला आया है.

‘‘बचपन में खिलौने बांटा करते थे… आज तुम अपनी चकाचौंध दिखा कर अपना प्रभाव डालना चाहते हो. वह सिर्फ चाय का एक कप या शरबत का एक गिलास तुम्हारे साथ बांटना चाहता है क्योंकि वह यह भी जानता है, दोस्ती बराबर वालों में ही निभ सकती है. तुम उस के परिवार में बैठते हो तो वह बातें करते हो जो उन्हें पराई सी लगती हैं. तुम करोड़ों, लाखों से नीचे की बात नहीं करते और वह हजारों में ही मस्त रहता है. वह दोस्ती निभाएगा भी तो किस बूते पर. वह जानता है तुम्हारा उस का स्तर एक नहीं है.

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‘‘तुम्हें खुशी मिलती है अपना वैभव देखदेख कर और उसे सुख मिलता है अपनी ईमानदारी के यश में. खुशी नापने का सब का फीता अलगअलग होता है. वह तुम से जलता नहीं है, उस ने सिर्फ तुम से अपना पल्ला झाड़ लिया है. वह समझ गया है कि अब तुम बहुत दूर चले गए हो और वह तुम्हें पकड़ना भी नहीं चाहता. तुम दोनों के रास्ते बदल गए हैं और उन्हें बदलने का पूरापूरा श्रेय भी मैं तुम्हीं को दूंगा क्योंकि वह तो आज भी वहीं खड़ा है जहां 20 साल पहले खड़ा था. हाथ उस ने नहीं तुम ने खींचा है. जलता वह नहीं है तुम से, कहीं न कहीं तुम जलते हो उस से. तुम्हें अफसोस हो रहा है कि अब तुम उसे अपना वैभव दिखादिखा कर संतुष्ट नहीं हो पाओगे… और अगर मैं गलत कह रहा हूं तो जाओ न आज उस के घर पर. खाना खाओ, देर तक हंसीमजाक करो…बचपन की यादें ताजा करो, किस ने रोका है तुम्हें.’’

चुपचाप सुनता रहा विजय. जानता हूं उस के छोटे से घर में जा कर विजय का दम घुटेगा और कहीं भीतर ही भीतर वह वहां जाने से डरता भी है. सच तो यही है, विजय का दम अपने घर में भी घुटता है. करोड़ों का कर्ज है सिर पर, सारी धनसंपदा बैंकों के पास गिरवी है. एकएक सांस पर लाखों का कर्ज है. दिखावे में जीने वाला इनसान खुश कैसे रह सकता है और जब कोई और उसे थोड़े में भी खुश रह कर दिखाता है तो उसे समझ में ही नहीं आता कि वह क्या करे. अपनी हालत को सही दिखाने के बहाने बनाता है और उसी में जरा सा सुख ढूंढ़ना चाहता है जो उसे यहां भी नसीब नहीं हुआ.

‘‘मैं डरने लगा हूं अब उस से. उस का व्यवहार अब बहुत पराया सा हो गया है. पिछले दिनों उस ने यहां एक फ्लैट खरीदा है पर उस ने मुझे बताया तक नहीं. सादा सा समारोह किया और गृहप्रवेश भी कर लिया पर मुझे नहीं बुलाया.’’

‘‘अगर बुलाता तो क्या तुम जाते? तुम तो उस के उस छोटे से फ्लैट में भी दस नुक्स निकाल आते. उस की भी खुशी में सेंध लगाते…अच्छा किया उस ने जो तुम्हें नहीं बुलाया. जिस तरह तुम उसे अपना महल दिखा कर खुश हो रहे थे उसी तरह शायद वह भी तुम्हें अपना घर दिखा कर ही खुश होता पर वह समझ गया होगा कि उस की खुशी अब तुम्हारी खुशी हो ही नहीं सकती. तुम्हारी खुशी का मापदंड कुछ और है और उस की खुशी का कुछ और.’’

‘‘मन बेचैन क्यों रहता है यह जानने के लिए कल मैं पंडितजी के पास भी गया था. उन्होंने कुछ उपाय बताया है,’’ विजय बोला.

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‘‘पंडित क्या उपाय करेगा? खुशी तो मन के अंदर का सुख है जिसे तुम बाहर खोज रहे हो. उपाय पंडित को नहीं तुम्हें करना है. इतने बडे़ महल में तुम चैन की एक रात भी नहीं काट पाए क्योंकि इस की एकएक ईंट कर्ज से लदी है. 100 रुपए कमाते हो जिस में 80 रुपए तो कारों और घर की किस्तों में चला जाता है. 20 रुपए में तुम इस महल को संवारते हो. हाथ फिर से खाली. डरते भी हो कि अगर आज तुम्हें कुछ हो जाए तो परिवार सड़क पर न आ जाए.

‘‘तुम्हारे परिवार के शौक भी बड़े निराले हैं. 4 सदस्य हो 8 गाडि़यां हैं तुम्हारे पास. क्या गाडि़यां पेट्रोल की जगह पानी पीती हैं? शाही खर्च हैं. कुछ बचेगा क्या, तुम पर तो ढेरों कर्ज है. खुश कैसे रह सकते हो तुम. लाख मंत्रजाप करवा लो, कुछ नहीं होने वाला.

‘‘अपने उस मित्र पर आरोप लगाते हो कि वह तुम से जलता है. अरे, पागल आदमी…तुम्हारे पास है ही क्या जिस से वह जलेगा. उस के पास छोटा सा ही सही अपना घर है. किसी का कर्ज नहीं है उस पर. थोड़े में ही संतुष्ट है वह क्योंकि उसे दिखावा करना ही नहीं आता. सच पूछो तो दिखावे का यह भूत तकलीफ भी तो तुम्हें ही दे रहा है न. तुम्हारी पत्नी लाखों के हीरे पहन कर आराम से सोती है, जागते तो तुम हो न. क्यों परिवार से भी सचाई छिपाते हो तुम. अपना तौरतरीका बदलो, विजय. खर्च कम करो. अंकुश लगाओ इस शानशौकत पर. हवा में मत उड़ो, जमीन पर आ जाओ. इस ऊंचाई से अगर गिरे तो तकलीफ बहुत होगी.

‘‘मैं शहर का सब से अच्छा काउंसलर हूं. मैं अच्छी सुलह देता हूं इस में कोई शक नहीं. तुम्हें कड़वी बातें सुना रहा हूं सिर्फ इसलिए कि यही सच है. खुशी बस, जरा सी दूर है. आज ही वही पुराने विजय बन जाओ. मित्र के छोटे से प्यार भरे घर में जाओ. साथसाथ बैठो, बातें करो, सुखदुख बांटो. कुछ उस की सुनो कुछ अपनी सुनाओ. देखना कितना हलकाहलका लगेगा तुम्हें. वास्तव में तुम चाहते भी यही हो. तुम्हारा मर्ज भी वही है और तुम्हारी दवा भी.’’

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चला गया विजय. जबजब परेशान होता है आ जाता है. अति संवेदनशील है, प्यार पाना तो चाहता है लेकिन प्यार करना भूल गया है. संसार के मैल से मन का शीशा मैला सा हो गया है. उस मैल के साथ भी जिआ नहीं जा रहा और उस मैल के बिना भी गुजारा नहीं. मैल को ही जीवन मान बैठा है. प्यार और मैल के बीच एक संतुलन नहीं बना पा रहा इसीलिए एक प्यारा सा रिश्ता हाथ से छूटता जा रहा है. क्या हर दूसरे इनसान का आज यही हाल नहीं है? खुश रहना तो चाहता है लेकिन खुश रहना ही भूल गया है. किसी पर अपनी खीज निकालता है तो अकसर यही कहता है, ‘‘फलांफलां जलता है मुझ से…’’ क्या सच में यही सच है? क्या यह सच है कि हर संतोषी इनसान किसी के वैभव को देख कर सिर्फ जलता है?

क्यों बढ़ रहे लंग कैंसर के मरीज

स्वास्थ्य की नई से नई जानकारी पाने के लिए गृहशोभा पढि़ए.पिछले कुछ सालों से लंग कैंसर के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है. पहले इसे ‘स्मोकर्स डिजीज’ कहा जाता था, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है. अब युवा, महिलाएं और धूम्रपान न करने वाले भी तेजी से इस की चपेट में आ रहे हैं.

लंग केयर फाउंडेशन द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लंग कैंसर के शिकार 21% लोग 50 से कम उम्र के हैं. इन में से कुछ की उम्र तो 30 वर्ष से भी कम है. युवा पुरुषों के साथसाथ युवा महिलाएं भी अब इस की चपेट में अधिक आ रही हैं.

लंग कैंसर: फेफड़ों में असामान्य कोशिकाओं का अनियंत्रित विकास होने पर लंग कैंसर होता है. ये कोशिकाएं फेफड़ों के किसी भी भाग से हो सकती हैं या फिर वायुमार्ग में भी हो सकती हैं. लंग कैंसर की कोशिकाएं बहुत तेजी से विभाजित होती हैं और बड़ा ट्यूमर बना लेती हैं. इन के कारण फेफड़ों की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल विश्वभर में 76 लाख लोगों की मौत फेफड़ों के कैंसर के कारण होती है, जो विश्वभर में होने वाली मौतों का 13% है.

पहले 10 पुरुषों पर 1 महिला को लंग कैंसर होता था जो अब बढ़ कर 4 हो गया है. यह चिंता का विषय है. लंग कैंसर द्वारा महिलाओं की मृत्यु में हर साल बहुत तेजी से वृद्धि हो रही है. यूटराइन कैंसर और ओवेरियन कैंसर की तुलना में ब्रैस्ट कैंसर कहीं ज्यादा है.

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लंग कैंसर के कारण

द्य लंग कैंसर के 10 में से 5 मामलों में इस का सब से प्रमुख कारण तंबाकू का सेवन होता है, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल रही है, क्योंकि अब लंग कैंसर के मामले धूम्रपान न करने वालों में भी तेजी से बढ़ रहे हैं.

जो लोग धूम्रपान करने वालों के साथ रहते हैं. सैकंड हैंड स्मोकिंग के कारण उन में भी लंग कैंसर होने की आशंका 24% तक बढ़ जाती है.

सीओपीडी से पीडि़त लोगों में लंग कैंसर का खतरा 4 से 6 गुना बढ़ जाता है.

लंग कैंसर का एक कारण आनुवंशिक भी है.

वायुप्रदूषण के कारण भी लंग कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं.

लंग कैंसर के लक्षण

लगातार बहुत ज्यादा खांसी रहना.

बलगम में खून आना.

सांस लेने और कुछ निगलने में परेशानी होना.

आवाज कर्कश हो जाना.

सांस लेते समय तेज आवाज आना.

निमोनिया होना इत्यादि.

लगातार खांसी रहना और खांसी के साथ खून आना लंग कैंसर का प्रमुख लक्षण है, जो पुरुषों व महिलाओं दोनों में होता है. बाकी लक्षण ऐसे हैं जो दूसरी बीमारियों में भी हो सकते हैं. कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत उपचार कराना बेहद जरूरी है.

फेफड़ों के कैंसर का उपचार: कैंसर का उपचार इस पर निर्भर करता है कि कैंसर का प्रकार क्या है और यह किस चरण में है. लंग कैंसर के इलाज के कई तरीके हैं-सर्जरी, कीमोथेरैपी, टारगेट थेरैपी, रैडिएशन थेरैपी एवं इम्यूनोथेरैपी.

फेफड़ों के कैंसर की सर्जरी: पहले और दूसरे चरण में सर्जरी कारगर रहती है, क्योंकि तब तक बीमारी फेफड़ों तक ही सीमित होती है. सर्जरी थर्ड ए स्टेज में भी की जा सकती है, लेकिन जब कैंसर फेफड़ों के अलावा छाती की झिल्ली से बाहर निकल या दूसरे अंगों तक फैल जाता है तब सर्जरी से इस का उपचार नहीं किया जा सकता. ऐसी स्थिति में कीमोथेरैपी, टारगेट थेरैपी और रैडिएशन थेरैपी की मदद ली जाती है.

कीमोथेरैपी: कीमोथेरैपी में साइटोटौक्सिक दवा को नस में इंजैक्शन के द्वारा शरीर के अंदर पहुंचाया जाता है, जो कोशिकाओं के लिए घातक होती है. इस से अनियंत्रित रूप से बढ़ती कोशिकाएं तो नष्ट होती ही हैं, साथ ही यह कई स्वस्थ कोशिकाओं को भी प्रभावित करती है.

टारगेट थेरैपी: कीमोथेरैपी के दुष्प्रभावों को देखते हुए टारगेट थेरैपी का विकास किया गया. इस में सामान्य कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाए बिना कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है. इस के साइड इफैक्ट्स भी कम होते हैं.

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रैडिएशन थेरैपी: रैडिएशन थेरैपी में कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को मारने के लिए अत्यधिक शक्ति वाली ऊर्जा की किरणों का उपयोग किया जाता है. इन का उपयोग कई कारणों से किया जाता है. कई बार इन्हें सर्जरी के बाद बची हुई कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को क्लीनअप करने के लिए किया जाता है तो कई बार सर्जरी के पहले कीमोथेरैपी के साथ किया जाता है ताकि सर्जरी के द्वारा निकाले जाने वाले ट्यूमर के आकार को छोटा किया जा सके. उसे सर्जरी के द्वारा निकाला जा सके.

इम्यूनोथेरैपी: बायोलौजिकल उपचार के तहत कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को मारने के लिए इम्यून तंत्र को स्टिम्युलेट किया जाता है. पिछले 2-3 सालों से ही इस का इस्तेमाल लंग कैंसर के उपचार के लिए किया जा रहा है. कई रोगियों में इसे मूल इलाज के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

फेफड़ों के कैंसर से बचाव

धूम्रपान और तंबाकू का सेवन न करें.

प्रदूषित हवा में सांस लेने से बचें.

विषैले पदार्थों के संपर्क से बचें. कोयला व मार्बल की खदानों से दूर रहें.

अगर मातापिता या परिवार के अन्य सदस्य को लंग कैंसर है तो विस्तृत जांच कराएं.

घर में वायु साफ करने वाले पौधे जैसे कि एरिका पौम, ऐलोवेरा, स्नैक प्लांट इत्यादि लगाएं.

शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. नियमित ऐक्सरसाइज करें.

पारिवारिक सुगंध : भाग 2

‘मैं जब भी उस दिन अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को याद करता हूं, तो मन शर्म व आत्मग्लानि से भर जाता है. मैं आगे इज्जत से जीना चाहता हूं…बिलकुल आप की तरह, चाचाजी.’

अब मैं उस से क्या कहता? उस के मन को बदलने की मैं ने कोशिश नहीं की. चोपड़ा ने उसे काफी डराया- धमकाया, पर नवीन ने एम.बी.ए. में प्रवेश ले ही लिया.

इन बापबेटे के बीच टकराव की स्थिति आगे भी बनी रही. नवीन बिलकुल बदल गया था. अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने में उसे बिलकुल रुचि नहीं रही थी. किसी भी तरह से बस, दौलत कमाना उस के जीवन का लक्ष्य नहीं रहा था.

फिर उसे अपने साथ पढ़ने वाली शिखा से प्यार हो गया. वह शिखा से शादी करना चाहता है, यह बात सुन कर चोपड़ा बेहद नाराज हुआ था.

‘अगर इस लड़के ने मेरी इच्छा के खिलाफ जा कर शादी की तो मैं इस से कोई संबंध नहीं रखूंगा. फूटी कौड़ी नहीं मिलेगी इसे मेरी दौलत की,’ ऐसी धमकियां सुन कर मैं काफी चिंतित हो उठा था.

दूसरी तरफ नवीन शिखा का ही जीवनसाथी बनना चाहता था. उस ने प्रेमविवाह करने का फैसला किया और पिता की दौलत को ठुकरा दिया.

नवीन और शिखा ने कोर्ट मैरिज की तो मेरी पत्नी और मैं उन की शादी के गवाह बने थे. इस बात से चोपड़ा हम दोनों से नाराज हो गया पर मैं क्या करता? जिस नवीन को मैं ने गोद में खिलाया था, उसे कठिन समय में बिलकुल अकेला छोड़ देने को मेरा दिल राजी नहीं हुआ था.

नवीन और शिखा दोनों नौकरी कर रहे थे. शिखा एक सुघड़ गृहिणी निकली. अपनी गृहस्थी वह बड़े सुचारु ढंग से चलाने लगी. चोपड़ा ने अपनी नाराजगी छोड़ कर उसे अपना लिया होता तो यह लड़की उस की कोठी में हंसीखुशी की बहार निश्चित ले आती.

चोपड़ा ने मेरे घर आना बंद कर दिया. कभी किसी समारोह में हमारा आमनासामना हो जाता तो वह बड़ा खिंचाखिंचा सा हो जाता. मैं संबंधों को सामान्य व सहज बनाने का प्रयास शुरू करता, तो वह कोई भी बहाना बना कर मेरे पास से हट जाता.

अब उसे दिल का दौरा पड़ गया था. शराब, सिगरेट, मानसिक तनाव व बेटेबहू के साथ मनमुटाव के चलते ऐसा हो जाना आश्चर्य की बात नहीं थी.

उसे अपने व्यवहार व मानसिकता को बदलना चाहिए, कुछ ऐसा ही समझाने के लिए मैं अगले दिन दोपहर के वक्त उस से मिलने पहुंचा था.

उस दिन चोपड़ा मुझे थकाटूटा सा नजर आया, ‘‘यार अशोक, मुझे अपनी जिंदगी बेकार सी लगने लगी है. आज किसी चीज की कमी नहीं है मेरे पास, फिर भी जीने का उत्साह क्यों नहीं महसूस करता हूं मैं अपने अंदर?’’

उस का बोलने का अंदाज ऐसा था मानो मुझ से सहानुभूति प्राप्त करने का इच्छुक हो.

‘‘इस का कारण जानना चाहता है तो मेरी बात ध्यान से सुन, दोस्त. तेरी दौलत सुखसुविधाएं तो पैदा कर सकती है, पर उस से अकेलापन दूर नहीं हो सकता.

‘‘अपनों के साथ प्रेमपूर्वक रहने से अकेलापन दूर होता है, यार. अपने बहूबेटे के साथ प्रेमपूर्ण संबंध कायम कर लेगा तो जीने का उत्साह जरूर लौट आएगा. यही तेरी उदासी और अकेलेपन का टौनिक है,’’ मैं ने भावुक हो कर उसे समझाया.

कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘दिलों पर लगे कुछ जख्म आसानी से नहीं भरते हैं, डाक्टर. शिखा के साथ मेरे संबंध शुरू से ही बिगड़ गए. अपने बेटे की आंखों में झांकता हूं तो वहां अपने लिए आदर या प्यार नजर नहीं आता. अपने किए की माफी मांगने को मेरा मन तैयार नहीं. हम बापबेटे में से कोई झुकने को तैयार नहीं तो संबंध सुधरेंगे कैसे?’’

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उस रात उस के इस सवाल का जवाब मुझे सूझ गया था. वह समाधान मेरी पत्नी को भी पसंद आया था.

सप्ताह भर बाद चोपड़ा को नर्सिंग होम से छुट्टी मिली तो मैं उसे अपने घर ले आया. सविता भाभी भी साथ में थीं.

‘‘तेरे भतीजे विवेक की शादी हफ्ते भर बाद है. मेरे साथ रह कर हमारा मार्गदर्शन कर, यार,’’ ऐसी इच्छा जाहिर कर मैं उसे अपने घर लाया था.

‘‘अरे, अपने बेटे की शादी का मेरे पास कोई अनुभव होता तो मार्गदर्शन करने वाली बात समझ में आती. अपने घर में दम घुटेगा, यह सोच कर शादीब्याह वाले घर में चल रहा हूं,’’ उस का निराश, उदास सा स्वर मेरे दिल को चीरता चला गया था.

नवीन और शिखा रोज ही हमारे घर आते. मेरी सलाह पर शिखा अपने ससुर के साथ संबंध सुधारने का प्रयास करने लगी. वह उन्हें खाना खिलाती. उन के कमरे की साफसफाई कर देती. दवा देने की जिम्मेदारी भी उसी को दे दी गई थी.

चोपड़ा मुंह से तो कुछ नहीं कहता, पर अपनी बहू की ऐसी देखभाल से वह खुश था लेकिन नवीन और उस के बीच खिंचाव बरकरार रहा. दोनों औपचारिक बातों के अलावा कोई अन्य बात कर ही नहीं पाते थे.

शादी के दिन तक चोपड़ा का स्वास्थ्य काफी सुधर गया था. चेहरे पर चिंता, नाराजगी व बीमारी के बजाय खुशी और मुसकराहट के भाव झलकते.

वह बरात में भी शामिल हुआ. मेरे समधी ने उस के आराम के लिए अलग से एक कमरे में इंतजाम कर दिया था. फेरों के वक्त वह पंडाल में फिर आ गया था.

हम दोनों की नजरें जब भी मिलतीं, तो एक उदास सी मुसकान चोपड़ा के चेहरे पर उभर आती. मैं उस के मनोभावों को समझ रहा था. अपने बेटे की शादी को इन सब रीतिरिवाजों के साथ न कर पाने का अफसोस उस का दिल इस वक्त जरूर महसूस कर रहा होगा.

बहू को विदा करा कर जब हम चले, तब चोपड़ा और मैं साथसाथ अगली कार में बैठे हुए थे. सविता भाभी, मेरी पत्नी, शिखा और नवीन पहले ही चले गए थे नई बहू का स्वागत करने के लिए.

हमारी कार जब चोपड़ा की कोठी के सामने रुकी तो वह बहुत जोर से चौंका था.

सारी कोठी रंगबिरंगे बल्बों की रोशनी में जगमगा रही थी. जब चोपड़ा मेरी तरफ घूमा तो उस की आंखों में एक सवाल साफ चमक रहा था, ‘यह सब क्या है, डाक्टर?’

मैं ने उस का हाथ थाम कर उस के अनबुझे सवाल का जवाब मुसकराते हुए दिया, ‘‘तेरी कोठी में भी एक नई बहू का स्वागत होना चाहिए. अब उतर कर अपनी बहू का स्वागत कर और आशीर्वाद दे. रोनेधोने का काम हम दोनों यार बाद में अकेले में कर लेंगे.’’

चोपड़ा की आंखों में सचमुच आंसू झलक रहे थे. वह भरे गले से इतना ही कह सका, ‘‘डाक्टर, बहू को यहां ला कर तू ने मुझे हमेशा के लिए अपना कर्जदार बना लिया… थैंक यू… थैंक यू वेरी मच, मेरे भाई.’’

चोपड़ा में अचानक नई जान पड़ गई थी. उसे अपनी अधूरी इच्छाएं पूरी करने का मौका जो मिल गया था. बडे़ उत्साह से उस ने सारी काररवाई में हिस्सा लिया.

विवेक और नई दुलहन को आशीर्वाद देने के बाद अचानक ही चोपड़ा ने नवीन और शिखा को भी एक साथ अपनी छाती से लगाया और फिर किसी छोटे बच्चे की तरह बिलख कर रो पड़ा था.

ऐसे भावुक अवसर पर हर किसी की आंखों से आंसू बह निकले और इन के साथ हर तरह की शिकायतें, नाराजगी, दुख, तनाव और मनमुटाव का कूड़ा बह गया.

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‘‘तू ने सच कहा था डाक्टर कि रिश्तों के रंगबिरंगे फूल ही जिंदगी में हंसीखुशी और सुखशांति की सुगंध पैदा करते हैं, न कि रंगीन हीरों की जगमगाहट. आज मैं बहुत खुश हूं क्योंकि मुझे एकसाथ 2 बहुओं का ससुर बनने का सुअवसर मिला है. थैंक यू, भाई,’’ चोपड़ा ने हाथ फैलाए तो मैं आगे बढ़ कर उस के गले लग गया.

मेरे दोस्त के इस हृदय परिवर्तन का वहां उपस्थित हर व्यक्ति ने तालियां बजा कर स्वागत किया.

फार्मिंग टिप्स : दिसंबर महीने के जरूरी काम

अब तक उत्तर भारत में सर्दियां हद पर होती हैं. वहां के खेतों में गेहूं उगा दिए गए होते हैं. अगर गेहूं की बोआई किए हुए 20-25 दिन हो गए हैं, तो पहली सिंचाई कर दें. फसल के साथ उगे खरपतवारों को खत्म करें. चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को काबू में करने के लिए 2-4 डी सोडियम साल्ट और गेहूंसा खरपतवार को रोकने के लिए आईसोप्रोट्यूरोन खरपतवारनाशी का इस्तेमाल करें. इन कैमिकलों का बोआई के 30-35 दिन बाद इस्तेमाल करें.

अगर गेहूं की बोआई नहीं की गई है, तो बोआई का काम 15 दिसंबर तक पूरा कर लें.  इस समय बोआई के लिए पछेती किस्मों का चुनाव करें. बीज की मात्रा 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें. साथ ही, कूंड़ों के बीच का फासला कम करें यानी 15-18 सैंटीमीटर तक रखें.

* इस महीने में गन्ने की सभी किस्में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं. अपनी सुविधानुसार कटाई करें. शरदकालीन गन्ने में पिछले महीने सिंचाई नहीं की है, तो सिंचाई करें. गन्ने के साथ दूसरी फसलें यानी तोरिया, राई वगैरह की बोआई की गई है, तो निराईगुड़ाई करने से गन्ने की फसल के साथसाथ इन फसलों को भी बहुत फायदा पहुंचता है.

* वसंतकालीन गन्ने की बोआई के लिए खाली खेतों की अच्छी तरह तैयारी करें. अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद, केंचुआ खाद वगैरह जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल करें.

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दीमक का प्रकोप खेतों में है, तो दीमक के घरों को ढूंढ़ कर खत्म करें. साथ ही, पड़ोसी किसानों को भी ऐसा करने की सलाह दें.

* जौ की बोआई अगर अभी तक नहीं की है, तो फौरन बोआई करें. एक हेक्टेयर खेत की बोआई के लिए 100-110 किलोग्राम बीज डालें. पिछले महीने बोई गई फसल 30-35 दिन की हो गई है, तो सिंचाई करें. खरपतवार की रोकथाम करें.

* सरसों की फसल में जरूरत से ज्यादा पौधे हों, तो उन्हें उखाड़ कर चारे के तौर पर इस्तेमाल करें. खरपतवार की रोकथाम करें. कीटबीमारी का हमला दिखाई दे, तो फौरन कारगर दवाओं का इस्तेमाल करें.

* मटर की समय पर बोई गई फसल में फूल आने से पहले हलकी सिंचाई करें. मटर में तना छेदक कीट की रोकथाम के लिए डाईमिथोएट 30 ईसी दवा की एक लिटर मात्रा व फली छेदक कीट की रोकथाम के लिए इंडोसल्फान 35 ईसी दवा की एक लिटर

मात्रा या मोनोक्रोटोफास 36 ईसी कीटनाशी की 750 मिलीलिटर मात्रा 600 से 800 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. मटर की रतुआ बीमारी की रोकथाम के लिए मैंकोजेब दवा की 2 किलोग्राम मात्रा 600 से 800 लिटर पानी में घोल कर खड़ी फसल पर छिड़काव करें.

* आलू की फसल में हलकी सिंचाई करें और मिट्टी चढ़ाने का काम करें. साथ ही, खरपतवारों को खत्म करते रहें. फसल को अगेती  झुलसा बीमारी से बचाएं.

* बरसीम चारे की कटाई 30 से 35 दिन के अंतर पर करते रहें. कटाई करते वक्त इस बात का खयाल रखें कि कटाई 5-8 सैंटीमीटर की ऊंचाई पर हो. पाले से बचाने के लिए हर कटाई के बाद सिंचाई करें.

* पिछले महीने अगर मसूर की बोआई नहीं की है, तो बोआई इस महीने कर सकते हैं. अच्छी उन्नतशीत किस्मों का चुनाव करें. बीज को उपचारित कर के ही बोएं. एक हेक्टेयर खेत की बोआई के लिए 50-60 किलोग्राम बीज का इस्तेमाल करें.

* मिर्च की फसल पर डाईबैक बीमारी का प्रकोप दिखाई दे, तो इस पर डाइथेन एम-45 या डाइकोफाल 18 ईसी दवा के 0.25 फीसदी घोल का छिड़काव करें.

* धनिया की फसल को चूर्णिल आसिता बीमारी से बचाने के लिए 0.20 फीसदी सल्फैक्स दवा का छिड़काव करें.

* लहसुन की फसल में सिंचाई की जरूरत महसूस हो रही है, तो सिंचाई करें. खरपतवारों को काबू में करने के लिए निराईगुड़ाई करें.

* प्याज की पौध तैयार हो गई है, तो रोपाई इस महीने के आखिरी हफ्ते में शुरू करें.

* गाजर, शलजम, मूली व दूसरी जड़ वाली फसलों की हलकी सिंचाई करें. साथ ही, खरपतवार की रोकथाम के लिए निराईगुड़ाई करते रहें. जरूरत के मुताबिक नाइट्रोजनयुक्त खाद का इस्तेमाल करें.

* आम के बागों की साफसफाई करें. 10 साल या इस से ज्यादा उम्र के पेड़ों में प्रति पेड़ 750 ग्राम फास्फोरस, 1 किलोग्राम पोटाश से तने से एक मीटर की दूरी छोड़ कर पेड़ के थालों में दें. मिली बग कीड़े की रोकथाम के लिए तने के चारों तरफ 2 फुट की ऊंचाई पर 400 गेज वाली 30 सैंटीमीटर पौलीथिन की शीट की पट्टी बांधें. इस बांधी गई पट्टी के नीचे की तरफ वाले किनारे पर ग्रीस का लेप कर दें.

* अगर मिली बग तने पर दिखाई दे, तो पेड़ के थालों की मिट्टी में क्लोरोपाइरीफास पाउडर की 250 ग्राम मात्रा प्रति पेड़ के हिसाब से तने व उस के आसपास छिड़क दें व मिट्टी में मिला दें. नए लगाए बागों के छोटे पेड़ों को पाले से बचाने के लिए फूस के छप्पर का इंतजाम करें व सिंचाई करें.

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* लीची के छोटे पेड़ों को भी पाले से बचाने के लिए पौधों को छप्पर से तीनों तरफ से ढकें. उसे पूर्वदक्षिण दिशा में खुला रहने दें. बड़े पेड़ों यानी फलदार पेड़ों में प्रति पेड़ के हिसाब से 50 किलोग्राम अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद व 600 ग्राम फास्फोरस दें. बीमारी से ग्रसित टहनियों को काट कर जला दें.

‘‘मैं सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ रही हूं’’ : वेदिका कुमार

मूलतः कन्नड़ भाषी मगर मुंबई में पली बढ़ी वेदिका कुमार ने अपने अभिनय करियर की शुरूआत स्कूल दिनों में ही तमिल फिल्म से की थी. फिर ब्रेक लेकर लंदन जाकर एमबीए की पढ़ाई पूरी की. फिर अभिनय में व्यस्त हो गयी. अब तक वह दक्षिण भारत की चारों भाषाओं की ‘शिवलिंगा, ‘परदेसी’ व ‘कंचना 3’ सहित बाइस फिल्में कर अपनी एक अलग पहचान बना चुकी हैं. अब इमरान हाशमी और रिषि कपूर के साथ वह फिल्म‘द बौडी’ से बौलीवुड में कदम रख रही हैं. जीतू जोसफ निर्देशित फिल्म ‘द बौडी 13 दिसंबर को प्रदर्शित हो रही है.

प्रस्तुत है उनसे हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंशः   

दक्षिण की चारों भाषाओं की फिल्में की है. किस भाषा को आपने सीखा ?

लगभग चारो भाषाएं सीख ली. हिंदी में बात करती हूं. अंग्रेजी आती है. क्योंकि मेरी शिक्षा अंग्रेजी माध्यम में हुई. मराठी मुझे आती है. तमिल मैंने सीखी है. मैं आधी दक्षिण भारतीय यानी कि कन्नड़िया हूं, इसलिए मुझे कन्नड़ भाषा आती है. मलयालम और तेलगू में थोड़ी बातचीत कर लेती हूं.

दक्षिण भारत में आप लगभग बाइस फिल्में कर चुकी हैं. यह किस तरह की फिल्में रही ?

मैंने दक्षिण भारत में कमर्शियल फिल्मों से शुरूआत की. पर फिर मुझे कुछ अलग तरह की फिल्में करने का अवसर मिला, जिससे मेरी छवि एक परफौर्मेंस ओरिएंटेड किरदार करने वाली अभिनेत्री की बनी. उदाहरण के तौर पर मैने राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त निर्देशक बाला के साथ 2013 में मैंने पीरियड तमिल फिल्म ‘परदेसी’ की थी, इस फिल्म में मेरा किरदार 1930 की डार्क स्किन वाली तमेलियन व गांव की लड़की अंगम्मा का था. यह परफार्मेंस ओरिएंटेड और फुल ट्रांसफारमेशन वाला किरदार था. यह फिल्म मेरे कैरियर की टर्निंग प्वाइंट रही. उसके बाद मैंने कई पीरियड फिल्में की. हौरर फिल्में की हैं, जहां मैं पजेस्ड हो जाती हूं. इसके बाद मुझे ए आर रहमान सर की संगीत प्रधान फिल्म ‘‘काव्या थलाइवन” मिली, जो कि वसंत बाला निर्देशित एक बायोग्राफिकल तमिल फिल्म थी. 1940 की पृष्ठभूमि वाली फिल्म ‘’काव्या थलाइवन’’ एक ड्रामा आर्टिस्ट गनकोकिलम वदि वंबई की कहानी थी, जिसमें मैं कई रूप बदलती हूं. इसमें पृथ्वीराज और सिद्धार्थ मेरे सह कलाकार थे. मैंने ए आर रहमान के साथ यह मेरी दूसरी फिल्म थी. जबकि ए आर रहमान के साथ पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जाने से पहले 2008 में ‘सकरकट्टी’ की थी. फिर मैंने 2014 में ही कन्नड़ हौरर फिल्म ‘’शिवलिंगा’’ की. तो मुझे बेहतरीन व चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने के अवसर काफी मिले.

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आपने बौलीवुड में बहुत देर में कदम रखा?

मैंने स्कूल के दिनो में ही दक्षिण भारत की फिल्में करनी शुरू कर दी थी. उसके बाद से मुझे वहां लगातार परफार्मेंस ओरिएंटेड किरदार व फिल्में मिलती रही. तो मैं वहां काम करती रही. जबकि मैं सदैव बौलीवुड में हिंदी फिल्में करना चाहती थी. सही किरदार व सही मौके का इंतजार था, जो कि अब फिल्म ‘’द बौडी’’ से मिला है. वैसे इससे पहले भी मुझे कुछ हिंदी फिल्मों के प्रस्ताव मिले थे, पर उनकी पटकथा ने मुझे काम करने के लिए उत्साहित नहीं किया.

फिल्म  ’द बौडी’ क्या है?

यह फिल्म एक सफल स्पैनिश फिल्म का हिंदी रूपांतरण है. यह रोमांचक फिल्म है.

फिल्म ‘द बौडी’ में किस तरह का किरदार निभाया है?

मैंने अब तक इस तरह का किरदार किसी भी फिल्म में नहीं निभाया है. इस फिल्म में मैने इमरान हाशमी की प्रेमिका रितु का किरदार निभाया है.रितु कालेज में पढ़ने वाली लड़की है. इमरान हाशमी शादीशुदा है. तो एक शादीशुदा इंसान के साथ एक्स्ट्रा मार्टियल संबंधों की जटिलताओं से रितु को जूझना पड़ता है.

‘द बौडी’से क्या उम्मीदें हैं?

मैं सकारात्मक सोच लेकर चलती हूं. इस फिल्म के प्रदर्शन से पहे ही मेरे पास दो बेहतरीन हिंदी फिल्मों के आफर आए हैं, जिन पर मैं विचार कर रही हूं.

नृत्य के प्रशिक्षण का अभिनय में कब और कैसे फायदा मिलता है?

देखिए, हर भारतीय फिल्म में नृत्य तो होता ही है. भारत नाट्यम बहुत ही एक्सप्रेशन वाला नृत्य है. हर मुद्रा में एक्सप्रेशन होता है. जब हम बचपन से भारत नाट्यम करते रहते हैं, तो वह कहीं न कहीं आपके चेहरे के भावों को एक्टिव रखता है. यह बात हर बार अभिनय में हमारी मदद करता है. नृत्य के चलते अभिनय करते समय किरदार के अनुरूप भाव @एक्सप्रेशन देना आसान हो जाता है.

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सोशल मीडिया पर आप क्या लिखना पसंद करती हैं ?

इमानदारी से कहूं तो सोशल मीडिया पर हमें खुद को जोड़कर रखना पड़ता है, क्योकि हमारे शुभ चिंतक व हमारे फैंन्स चाहते हैं कि हम उन्हे पल पल की जानकारी देते रहे. मैं हर दूसरे दिन कुछ तस्वीरें पास्ट करती रहती हूं. अपनी फिल्म को भी प्रमोट करती हूं. पर यह ध्यान रखती हूं कि इसकी आदत नही पड़नी चाहिए. मैंने सोशल मीडिया पर पोलियो के प्रति जागरूकता लाने के लिए भी कुछ पोस्ट किया था. कावेरी नदी के मुद्दे का भी समर्थन किया था. कभी कभी अन्याय के खिलाफ अपनी राय रखती हूं.

क्या सोशल मीडिया के फैंस बाक्स आफिस पर असर डालते हैं ?

शायद होता है, मगर किस हद तक होता है,यह मुझे नहीं पता.

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