Download App

बिग बौस 13 : सिद्धार्थ शुक्ला के खिलाफ रश्मि देसाई ने घरवालों के भरे कान

कलर्स का पौपुलर शो ‘ बिग बौस’ के इस सीजन में कंटेस्टेंटस के बीच लड़ाइयां खत्म होने का नाम नहीं ले रही है, जी हां, सिद्धार्थ शुक्ला और रश्मि देसाई के बीच आए दिन लड़ाईयां होती रहती है.

लास्ट विक से रश्मि देसाई  और सिद्धार्थ शुक्ला की लड़ाई ने एक अलग मोड़ ले लिया है. इस हफ्ते वीकेंड का वार के दौरान  सलमान खान के सामने दोनों ने अपनी बात रखी.

ये भी पढ़ें- फिल्म ‘पंगा’ में कंगना का लुक हुआ वायरल

आपको बता दें, कल के एपिसोड में आपने देखा कि सिद्धार्थ घर में अरहान खान की हरकत को लेकर भड़के हुए नजर आए वहीं रश्मि देशाई ने उनके खिलाफ साजिश करती दिखी.

दरअसल पहले रश्मि ने अरहान और असीम रियाज से कहा  कि सिद्धार्थ को भड़काने का सिर्फ एक ही तरीका है कि उसे ट्रिगर करो. वहीं रश्मि की बातों की सुनकर असीम उनकी हां में हां मिलाते नजर आए. इसके अलावा रश्मि विशाल आदित्य सिंह के भी कान भरती है और उन्हें सिद्धार्थ शुक्ला से लड़ाई करने के लिए भड़काती है.

इस दौरान रश्मि और विशाल के बीच कहासुनी भी हो जाती है लेकिन अपनी बात सामने रखते हुए रश्मि कहती है कि इस बार मेन टू मेन फाइट होगी. अपकमिंग नौमिनेशन टास्क में शहनाज की टीम रश्मि को नौमिनेट करने की कोशिश करेंगी लेकिन वह अरहान और विशाल के दम पर खेल को जीतने की कोशिश में जुटी नजर आएंगी.

ये भी पढ़ें- जेनिफर विंगेट ने क्रिसमस डे से पहले ही उठाया क्रिसमस पार्टी का मजा

अगर आपकी भी त्वचा रूखी है तो अपनाएं ये खास फेसपैक

रूखी त्वचा को तेलिय त्वचा से ज्यादा देख भाल की जरुरत होती है. खुश्क होने की वजह से रूखी त्वचा पर झाइयां, बारीक लाइने और रेशेज जल्दी होते हैं. रूखी त्वचा में अपना कोई तेल नहीं होता है, इसलिए उसे बाहरी पोषण की जरुरत पड़ती है. अगर आप भी रूखी और खुश्क त्वचा से परेशान हैं तो आप इन फेस पैक का इस्तेमाल कर सकती हैं.

ड्राई स्‍किन को नम बनाने के लिये खाएं.

रूखी त्वचा से निजात पाने के लिए लोग बाजार में उपलब्ध कई तरह के प्रोडक्ट का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन स्वस्थ और निखरी त्वचा पाने के लिए घर के बने फेस पैक सबसे अच्छे रहते हैं. चलिए जानते हैं घर पर बनने वाले फेसपैक जो दिलाएंगे निजात रूखी और बेजान त्वचा से.

ये भी पढ़ें- CHRISTMAS 2019 : ऐसे पाएं दमकती त्वचा

अंडे, सूरजमुखी तेल और हनी फेस पैक

एक कटोरी में अंडे की सफेदी, दो चम्मच शहद, एक चम्मच सूरजमुखी का तेल मिला लें, इसका पेस्ट बना लें. फिर इसे अपने चहरे पर लगाये और 20 मिनट के लिए छोड़ दें. सूख जाने पर गर्म पानी से धो दें.

केला, दही और शहद का फेस पैक

एक पका हुआ केला, दही और थोड़ा शहद लें, इसका अच्छे से पेस्ट बना लें. इसे चहरे पर लगाये और 15 मिनट के लिए छोड़ दें. फिर गुनगुने पानी से धोए. इसे लगाने से आपकी त्वचा में नमी आएगी.

खीरे और एलोवेरा का फेस पैक

रूखी त्वचा के लिए सबसे अच्छा उपाए है एलोवेरा. खीरे को अच्छे से पीस लें और उसमें एलोवेरा जेल मिलाएं. इसे अपने चहेरे पर लगाये और 25 मिनट के लिए छोड़ दें. सूख जाने के बाद इसे ठंडे पानी से धो दें. इससे आपकी त्वचा की नमी बनी रहेगी.

ओट्मील, दही और ओलिव आयल का फेस पैक

दो चम्मच ओट्मील, दो चम्मच दही और एक चम्मच जैतून का तेल और थोड़ा शहद को मिला कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को अपने चहरे पर लगाएं और 15 मिनट के लिए छोड़ दें. यह आपकी त्वचा को नमी देगी और रूखी त्वचा से निज़ात दिला देंगी.

ये भी पढ़ें- घर पर ही करें पार्लर जैसा मेकअप

केला, शहद और ओट्मील का फेस पैक

पके हुए केले में थोड़ा शहद, और एक चम्मच ओट्मील मिला कर पेस्ट बना लें . फिर इसे अपने चहरे पर लगाएं और 15 मिनट के लिए छोड़ दें. फिर अपने हाथों से हल्के-हल्के रगड़ कर साफ़ करें, फिर पानी से धो दें.

चीनी और जैतून के तेल का फेस स्क्रब

एक चम्मच चीनी को, एक चम्मच जैतून के तेल में मिलाएं. अपने हाथों से धीरे रगड़ें फिर 15 मिनट के लिए छोड़ दें, फिर पानी से धो दें.

ये भी पढ़ें- चेहरा धोते समय भूलकर भी न करें ये 6 गलतियां

कच्चा दूध, शहद और एलोवेरा का फेस पैक

थोड़ा शहद कुछ बूंदें एलोवेरा जेल की और दो चम्मच मिल्क पाउडर इन सब का पेस्ट बना लें. अब इसे अपने चहरे पर लगाएं और 15 मिनट के लिए छोड़ दें. इससे आपकी त्वचा को नमी मिलेगी साथी ही त्वचा चमकदार हो जायेगी.

आयुर्वेदिक सुझाव : अस्थमा के मरीजों के बेहतर सांस लेने के लिए गए कुछ खास बदलाव

भारी आहार, सूखा भोजन, ठण्डे पानी का सेवन, नमक की अधिकता, ठण्डे में रहना, ठण्डे पानी से नहाना, धूल में रहना, धुंआ, ठण्डी हवा आदि सभी कारक अस्थमा की समस्या को बढ़ाने वाले माने जाते हैं. अगर आप इस समस्या से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आपको अपने जीवनशैली में कुछ बदलाव लाने की आवश्यकता है.

कफ को सन्तुलित करने वाले आहार का सेवन करें

ऐसा आहार जिसमें कि कफ को बढाने वाले तत्व मौजूद होते हैं वो शरीर मे म्यूकस के बनने में मदद करते हैं जो कि अस्थमा के अटैक को बढ़ावा देने के साथ ही इसकी स्थिति को और गम्भीर बना सकते हैं. कफ दोष को सन्तुलित करने के लिए दूध तथा इससे बने पदार्थों जिस की दही, पनीर, चीज़ आदि का सेवन ना करें. प्राकृतिक मसलों जैसे कि काली मिर्च, अदरख, सरसो के तेल आदि का भोजन पकाते समय उपयोग करें. वहीं मीठे पदार्थों जैसे कि शहद आदि का भी भोजन में प्रयोग करें. वहीं फलों में सेब तथा नाशपाती जैसे हल्के फलों का सेवन करें तथा केला, अनन्नास तथा तरबूज़ आदि फ़लों का सेवन ना करें.

ये भी पढ़ें-  छोटे-छोटे पत्तें बड़े काम के …

ऐसे भोजन से बचें जो कि अस्थमा के अटैक को बढ़ावा देते हैं

अस्थमा के मरीजों को खट्टे खाद्द पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए. अत्यधिक तले हुए तथा पैक किये हुए खाद्द पदार्थों के सेवन से भी बचना चाहिए क्योंकि ये आपके शरीर को भारीपन का अनुभव कराते है जिससे सांस लेने की तकलीफ़ बढ़ जाती है. इसके साथ ही आप अधिक भोजन ना लें. रात के समय मे हल्का भोजन लेना अस्थमा की समस्या को ख़त्म करने का प्रभावी नुस्खा माना गया है.

खाने के बाद तुरन्त ही ना सोयें

आपके रात के खाने और सोने के बीच मे कम से कम 2-3 घण्टे का अन्तर होना चाहिए. ये आपके शरीर को खाना पचाने के लिए पर्याप्त समय देता है जिससे कि आपको रात में भारी पेट नहीं सोना पड़ता है. यदि किसी कारणवश आप खाने के बाद 2-3 घण्टे नहीं रुक सकते तो कम से कम 1 घण्टे का अन्तराल जरूर रखें.

ये भी पढ़ें- थाइरौयड लाइलाज नहीं

अस्थमा को सन्तुलित करना वाक़ई में एक चालाकी वाला काम है. आप ये कभी नहीं जान पाएंगे कि कौन सी गलती इसके अटैक को बढ़ावा दे सकती है. जहाँ दवाईयाँ अस्थमा से लड़ने में मदद करती हैं वहीं जीवनशैली में बदलाव लाकर भी आप इसके अटैक से काफ़ी हद तक बचे रह सकते हैं. यहाँ पर बताये गए बदलाव को अगर आप एक बार अपना लेते हैं तो आप खुद इस बात का अनुभव करेंगे कि आपके जीवन मे काफ़ी बदलाव आया है.

डायरेक्टर जीवा आयुर्वेद, डौक्टर प्रताप चौहान

हिमानी का याराना : भाग 2

हिमानी का याराना : भाग 1

अब आगे पढ़ें

आखिरकार उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के और सागर उर्फ बलवा के बीच जिस्मानी रिश्ते हैं और उस ने सागर के साथ मिल कर 7-8 सितंबर के तड़के पति की हत्या की थी.

जुर्म स्वीकार कर लेने के बाद हिमानी को गिरफ्तार कर लिया गया. उसी शाम सागर के घर पर दबिश दे कर उसे भी दबोच लिया गया. पूछताछ के दौरान जब उसे बताया गया कि उस की माशूका हिमानी को गिरफ्तार कर लिया गया है, तो वह बुरी तरह चौंका. जब उसे उस की काल डिटेल्स दिखाई गई तो उस ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. बाद में दोनों की निशानदेही पर सोनू की हत्या में प्रयुक्त वह रस्सी भी बरामद कर ली, जिस से सोनू का गला घोंटा गया था. सोनू हत्याकांड के पीछे की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस तरह है.

बाहरी दिल्ली जिले में एक गांव है बादली. माधव सिंह अपने परिवार के साथ यहीं रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी अंजू (काल्पनिक नाम), 24 साल का बेटा सोनू, बेटी पिंकी थे. माधव सिंह की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी. वह एक होटल में काम करते थे. सोनू पेशे से ड्राइवर था, जबकि पिंकी एक बड़े अस्पताल में काम करती थी.

सोनू की शादी करीब 3 साल पहले हिमानी के साथ हुई थी. हिमानी गोरे रंग, आकर्षक नैननक्श की खूबसूरत युवती थी. हंसमुख और मिलनसार स्वभाव की हिमानी को पत्नी के रूप में पा कर सोनू बहुत खुश था. हिमानी भी इस घर में आ कर खुश थी. पिंकी भाभी का पूरा खयाल रखती थी.

सोनू और हिमानी अपनी दुनिया में खुश रहते थे. सोनू का काम ऐसा था कि वह सुबह घर से निकलता था. इस के बाद उसे खुद भी पता नहीं रहता था कि वह घर कब लौटेगा.

हिमानी अपनी सास के साथ घर का कामकाज निबटाती और दिन का बाकी समय टीवी देखती या सो कर गुजारती थी. जब कभी उसे सोनू की याद सताती तो वह उस के मोबाइल पर फोन कर के उस का हालचाल पूछ लिया करती थी. सोनू भी खाली वक्त में फोन करता था. बेटी के जन्म से घर में सभी खुश थे.

हिमानी का कमरा घर की पहली मंजिल पर था. जब कभी उसे बोरियत महसूस होती तो वह अपना मन बहलाने के लिए बालकनी में आ कर खड़ी हो जाती थी. इसी दौरान एक दिन उस की निगाहें पड़ोस में रहने वाले युवक सागर की निगाहों से टकराईं तो उस के तनबदन में सिहरन सी दौड़ गई.

पहले भी उस ने गौर किया था कि वह किसी न किसी बहाने उस के घर के सामने आ कर उसे एकटक निहारता है. उस दिन तो उसे सागर का यूं अपनी ओर बेशरमी से देखना अच्छा नहीं लगा, लेकिन बाद में उसे लगा कि पति के अलावा पड़ोस के लड़के भी उसे पसंद करते हैं तो उस के चेहरे पर मुसकराहट तैरने लगी.

हौलेहौले चाहत भरी नजरों के इस खेल में उसे भी मजा आने लगा. उस ने भी सागर की नजरों से नजरें मिलानी शुरू कर दीं. बात बढ़ती गई और मामला बातचीत से शुरू हो कर मोबाइल नंबर के आदानप्रदान तक पहुंच गया.

ये भी पढ़ें- एक थप्पड़ के बदले 2 हत्याएं : भाग 2

सागर हिमानी को फोन कर के उस से मिलने की जिद करने लगा तो एक दिन जब वह घर में अकेली थी तो उस ने मौका देख कर सागर को अपने कमरे में बुला लिया. सागर बहुत बातूनी युवक था. उस ने हिमानी को अपनी मीठीमीठी बातों में ऐसा फंसाया कि वह उस की बांहों में अपनी सुधबुध खो बैठी.

हिमानी के बदन से खेलने के बाद सागर वहां से चला गया, लेकिन उस दिन के बाद जब कभी हिमानी को मौका मिलता, वह सागर को मिलने के लिए अपने घर में बुला लेती थी. कभीकभी वह खुद भी किसी काम के बहाने घर से निकल कर सागर की बताई हुई जगह पर पहुंच जाती थी.

शुरुआत में हिमानी और सागर के अवैध रिश्तों की जानकारी किसी को नहीं हुई, लेकिन यह बात ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रह सकी. एक दिन सोनू को उस के किसी दोस्त ने उस की बीवी की बेवफाई की दास्तान बताई तो उसे उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. लेकिन जब लोगों ने सागर के साथ हिमानी का नाम जोड़ कर छेड़ना शुरू कर दिया तो उसे उन की बात पर विश्वास करना पड़ा.

सागर मोहल्ले का दबंग युवक था. लोग उस के सामने आने में कतराते थे. फिर भी सोनू ने उस से कहा कि वह हिमानी से मिलना छोड़ दे. सागर ने उस समय तो उस की बात मान ली लेकिन उस ने अपनी हरकतें जारी रखीं.

घटना के 4 दिन पहले सोनू और सागर के बीच बच्चों को ले कर जोरदार झगड़ा हुआ. इस दौरान सागर ने सोनू को 8 दिनों के अंदर जान से मारने की धमकी दी. हिमानी का दिल अपने पति सोनू से भर चुका था. उसे सोनू से सागर ज्यादा प्यारा था, इसलिए जब सागर ने सोनू की हत्या करने की बात उसे बताई तो वह उस का साथ देने के लिए तैयार हो गई.

योजना के अनुसार 8 सितंबर की रात हिमानी ने सोनू के खाने में नींद की गोलियां मिला दीं. आधी रात को जब वह हिमानी के साथ अपने बैडरूम में पहुंचा तो लेटते ही नींद की आगोश में चला गया. रात के करीब ढाईतीन बजे के बीच जब सारा मोहल्ला चैन की नींद सो रहा था, तभी हिमानी ने फोन कर सागर को अपने कमरे में आने के लिए कहा.

सागर को पहले से ही हिमानी के फोन का इंतजार था. जैसे ही हिमानी ने बुलाया, वह दबे पांव छत के रास्ते हिमानी के कमरे में पहुंचा और एक रस्सी से सोनू का गला घोंट दिया.

ये भी पढ़ें- एक लड़की ऐसी भी : भाग 2

रात भर हिमानी अपने पति की लाश के साथ सोई रही. सुबह 7 बजे उठ कर उस ने अपने ससुर माधव सिंह तथा सास अंजू को पति की हत्या होने की जानकारी दी. 12 सितंबर, 2019 को थानाप्रभारी अक्षय कुमार ने सोनू हत्याकांड के दोनों आरोपियों हिमानी और सागर उर्फ बलवा को रोहिणी कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

इस हत्याकांड में दूसरे नामजद आरोपी राहुल का कोई हाथ न होने के कारण उस के खिलाफ काररवाई नहीं की गई. मामले की जांच थानाप्रभारी अक्षय कुमार कर रहे थे.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रात्रि में ही विवाह क्यों ?

आदित्य और प्रियंका की मंगनी हो गई थी. विवाह की तैयारी चल रही थी. आदित्य पंडित के कहेनुसार रात में धूमधाम से विवाह करना चाहता था, जबकि प्रियंका को यह फुजूलखर्ची लगती थी. पर आदित्य के अनुसार, जब तक जगमग न हो, तो विवाह में मजा ही नहीं आता है.

वहीं दूसरी ओर रोसा और जय दोनों ही विवाह के बाद अपना फ्लैट खरीदना चाहते थे. दोनों ने सम झदारी का परिचय देते हुए अपना विवाह दिन में करना निश्चित किया. दोनों के मातापिता उन के इस निर्णय से सहमत नहीं थे. पर जब उन्होंने अपने मातापिता को यह सम झाया कि वे जो रुपए उन के विवाह में खर्च करना चाहते हैं, उसी रुपए से वे बहुत धूमधाम से विवाह भी कर लेंगे और जो धन बचेगा उस से डाउन पेमैंट कर के अपना घर लेने का सपना भी पूरा कर सकते हैं, तो उन लोगों को उन की बात सही लगी.

चारु के पापा ने चारु की शादी दिन में आयोजित करनी चाही पर चारु को दिन में विवाह करना बहुत आउटडेटेड लगा और फिर रात्रि में विवाह का आयोजन हुआ. लाइट, आतिशबाजी, मेहमानों को ठहराने के लिए होटल का इंतजाम, रात्रि के हिसाब से दुलहन की पोशाक, मेकअप और बैंडबाजा, कुल मिला कर चारु के पापा की जेब पर रात्रि का विवाह बहुत भारी पड़ा. इतना कुछ करने के बावजूद रिश्तेदारों के मुंह फूले ही रहे, इंतजाम उन के मनमाफिक न थे.

Ratri-mein-Vivah

ये भी पढ़ें- पुलिस या अदालत में जब बयान देने जाएं!

धन और वैभव का दिखावा

आजकल अधिकतर विवाहों का आयोजन रात में ही होता है क्योंकि विवाह महज अपने धन और वैभव का दिखावा बन कर रह गए हैं. प्राचीनकाल में विवाह एक रस्म, एक परंपरा थी मानव समाज को सभ्य बनाने के लिए, घरपरिवार को आगे बढ़ाने के लिए. पर जैसेजैसे समाज का आधुनिकीकरण हुआ और नएनए इलैक्ट्रौनिक उपकरणों का बाजार में आगमन हुआ वैसेवैसे लोगों में दिखावे की होड़ लगती गई. सो, रात्रि में विवाह की परंपरा कब और कैसे आरंभ हुई थी, एक नजर डालते हैं.

हिंदू धर्म में विवाह संस्कार की गोधूलि बेला में करने का महत्त्व बताया गया है. सीता और द्रौपदी के विवाह का भी उल्लेख दिन के समय को ले कर ही किया गया है. पर मुगलों के आगमन के बाद विवाह का आयोजन रात्रि में होना आरंभ हो गया था. इस के पीछे मुख्य उद्देश्य सुरक्षा थी. पर अगर हम ध्यान करें, आज से 50 वर्षों पहले तक अधिकतर विवाह दिन में ही होते थे.

दरअसल, जैसेजैसे समाज का आधुनिकीकरण हुआ है, धन के आधार पर समाज का वर्गीकरण हुआ है, उसी तरह शादी अब महज एक डिजाइनर रस्म सी बन कर रह गईर् है. एक अनकहा प्रैशर दोनों पक्षों पर बना रहता है. विवाह का अब पूरा बाजारीकरण हो चुका है और रात्रि में विवाह इसी बाजारीकरण का नतीजा है.

किसी भी धार्मिक ग्रंथ में कहीं भी रात्रि में विवाह का उल्लेख नहीं किया गया है. यह तो महज नए जमाने का नया चोंचला है. अन्य सभी धर्मों में विवाह दिन में होते हैं. रजिस्टर्ड विवाह भी दिन में ही होते हैं.

ये भी पढ़ें- समाज सेवा, सुनहरा भविष्य !

समय का बहाना

आप उन लोगों से बात करें जो रात में विवाह करने के पक्षधर हैं, तो लोग बड़ी मासूमियत से जवाब देते हैं कि आजकल की भागदौड़भरी जिंदगी में किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह दिन के समय विवाह में सम्मिलित हो सके. इसलिए रात्रि में विवाह करना न केवल उन की इच्छा है बल्कि उन की मजबूरी भी है.

अगर गहन विचार करें, तो हम इस समस्या को बड़े आराम से सुल झा सकते हैं. रविवार या सरकारी छुट्टी वाले दिन हम लोग आराम से दिन में विवाह आयोजित कर सकते हैं. पर शुभ विवाह मुहूर्त आड़े आ जाता है. लेकिन, क्या हम ने कभी गौर किया है, विवाह की तिथि पर तो केवल जयमाला ही हो पाती है, पाणिग्रहण संस्कार तो रात्रि में 12 बजे के बाद ही होता है. तो रात्रि में होने वाले 95 प्रतिशत विवाह अगली तिथि में ही होते हैं, न कि शुभ मुहूर्त के ढकोसले और पाखंड में.

रात्रि में विवाह सुरक्षा की दृष्टि से भी ठीक नहीं है. महिलाएं विवाह में भारीभारी गहने पहनना पसंद करती हैं और रात में गहनों की इस तरह की प्रदर्शनी सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है.

आर्थिक दृष्टि से भी अगर आप सोचें, तो रात्रि के विवाह जेब पर भारी पड़ते हैं. पूरे पंडाल को रोशनी से नहलाना, आने वाले मेहमानों का रात में अच्छे होटल में ठहराने का इंतजाम करना जैसी बहुत सारी चीजें हैं जिन पर खर्चा अधिक आता है.

रात्रि में विवाह करने से समय की बचत नहीं, बल्कि बरबादी होती है. जिस दिन विवाह होता है, वह पूरा दिन और रात और रात्रिजागरण के बाद अगले दिन की भी बरबादी होती है. पूरी रात जागने के बाद अगले दिन के कार्यक्रमों के लिए मेहमानों में न कोई रोमांच रहता है और न ही ऊर्जा बचती है. विवाह हमारे जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत है, तो क्यों न इस का आरंभ हम दिखावे के बजाय रिश्तों और रस्मों की गरमाहट से करें.

ये भी पढ़ें- स्कूलकालेजों में ड्रैसकोड : बच्चे और टीचर भी परेशान

बिहाइंड द बार्स : भाग 4

मृणालिनी स्नानागार से नहा-धोकर लौटी तो उसका संगमरमर सा तराशा जिस्म चमक मार रहा था. गुलाबी चेहरे पर गजब की आभा थी और बालों में पानी की बूंदे मोतियों की तरह चमक रही थीं. जेल की लाल पट्टी वाली सफेद साड़ी में भी उसकी जवानी नये ताजे गुलाब सी खिली नजर आती थी. उसके इस रूप-लावण्य पर जेल के कई अधिकारी मोहित थे. मृणालिनी को देखते ही उनकी लार टपकती थी. मगर उसकी ओर हाथ बढ़ाने की हिमाकत अभी तक कोई नहीं कर पाया था. कई तो उसकी दबंगई पर ही फिदा थे. उसकी गालियों को संत का प्रसाद समझते थे. लेकिन मृणालिनी को छेड़ दें, ऐसी हिम्मत किसी में नहीं थी. जेल में पहले ही दिन से मृणालिनी ने नाक पर मक्खी नहीं बैठने दी. उस पर क्या, उसकी बैरक के आसपास की किसी भी कैदी औरत पर अगर कोई अधिकारी बुरी नजर डालता था, तो वह खड़े-खड़े उसकी इज्जत की बखिया उधेड़ देती थी. मां-बहन की गालियों से ऐसा नवाजती थी कि फिर वह भागता ही नजर आता था. एक बार तो उसने पेशी के दौरान अदालत पहुंचने पर एक अधिकारी की शिकायत जज साहब से कर दी थी और उसकी शिकायत को जज ने गम्भीरता से लेते हुए अधिकारी पर कार्रवाई के आदेश दे डाले थे. मृणालिनी की शिकायत के चलते वह अधिकारी लंबे समय तक सस्पेंड रहा और विभागीय जांच का सामना करता रहा.

इस घटना से कैदियों के बीच मृणालिनी की इज्जत काफी बढ़ गयी थी. वह जेल की लेडी डॉन बन गयी थी. दरअसल देह की धंधे से लंबे समय तक जुड़ी रही मृणालिनी को पुरुषों की कामुक दृष्टि, उनकी लालसा, औरत को देखकर बदलने वाली उनकी गतिविधियां, हाव-भाव, बातें और इशारों की गहरी समझ थी. कोई पुरुष किसी स्त्री को किस दृष्टि से देख रहा है, वह उसके साथ किस हद तक फ्री होना चाहता है, वह हिम्मती है या डरपोक, अपनी इच्छा की पूर्ति कर पाएगा या नहीं, महिला उसकी ओर आकर्षित है या नहीं, यह तमाम बातें मृणालिनी पलक झपकते समझ जाती थी. जेल की किस महिला अधिकारी का टांका किस पुरुष अधिकारी से भिड़ा हुआ है, कौन सी कॉन्स्टेबल रात के अंधेरे में किस अधिकारी की अंकशायिनी बनती है, किस कैदी औरत की शारीरिक जरूरत संभाले नहीं संभल रही है, यह सब मृणालिनी की नजर से छिपता नहीं है.

ये भी पढ़ें- फैसले : क्या मीनी का यह फैसला सही था ?

मृणालिनी को एक-एक कैदी औरत की हिस्ट्री मालूम है. बातों-बातों में वह इन औरतों से ऐसी बातें भी निकलवा लेती है जो पुलिस के डंडे नहीं निकलवा पाते. इसलिए इस जेल में मृणालिनी की धाक भी है.

हां, नोरा के प्रति मृणालिनी की सोच अन्य कैदियों से बिल्कुल अलग है. औरतों के स्वभाव और हरकतों के बारे में मृणालिनी का अनुभव नोरा के बारे में कुछ और राय कायम करता है. वह नोरा को अपराधी नहीं मानती है. नोरा जिस दिन से इस जेल में आयी है, मृणालिनी उसको पढ़ रही है. अपराधी औरतों के हावभाव ऐसे नहीं होते जैसे नोरा के हैं. नोरा सभ्रांत परिवार की सीधी और डरपोक लड़की लगती है. चुपचुप रहने वाली, रातों में आंसू बहानेवाली और भविष्य के प्रति एक आशंकित लड़की.

मृणालिनी जब औरतों की खरीद-फरोख्त का धंधा चलाती थी, तब उसके पास बरगला कर लायी गयी लड़कियां, खुद अपनी मर्जी से आने वाली लड़कियां, किडनैप करके लायी गयी लड़कियां, गांव-देहात की लड़कियां, शहर की चंचल लड़कियां,  नाबालिग बच्चियां और नेपाल से पैसा कमाने की लालसा में आने वाली लड़कियों की अच्छी खासी फौज होती थी, जिन्हें वे आॅर्डर्स पर बड़े-बड़े होटलों, क्लबों, फार्म हाउस या नेताओं-अधिकारियों की ऐशगाह में भेजा करती थी. यह तमाम लड़कियां स्वभाव और रहन-सहन में एक दूसरे से भिन्न होती थीं. भिन्न परिवेश, भिन्न आर्थिक और सामाजिक हालातों से आयी हुई होती थीं. कुछ को डरा-धमका कर, जोर-जबरदस्ती से धंधे पर लगाना होता था, तो बहुतेरी अपनी मर्जी से यह काम करना चाहती थीं. कुछ ऐसी थीं जो मृणालिनी के जरिए से बड़े ग्रहकों के पास जाना चाहती थीं. इन तमाम औरतों का मनोविज्ञान मृणालिनी भलीभांति समझती थी, लेकिन नोरा का मनोविज्ञान उन सभी से भिन्न था. जेल की अन्य कैदी औरतों से अलग थी वह. सात महीने पहले जब वह यहां आयी थी, तो बहुत टूटी हुई थी. बैरक के कोने में सिमटी-सिकुड़ी बैठी रहती थी. ज्यादातर खामोश रहती थी. ऐसा लगता था जैसे उसे कोई बड़ा आघात लगा था. कोई गहरा छल हुआ था उसके साथ.

ये भी पढ़ें- एक रिक्त कोना

छल ही हुआ था. यह छल उसके अपने ने किया था. उसके फ्रेडरिक ने. जिसे उसने अपना सबकुछ समझा था. जिसे उसने अपनी आत्मा की गहराईयों से चाहा था, प्यार किया था. जिसके सिवा इस पूरी कायनात में नोरा को कोई भी नहीं था. उस फ्रेडरिक ने नोरा के साथ छल किया था.

हालांकि यह बात नोरा स्वीकार ही नहीं करना चाहती कि उसके फ्रेडरिक ने उससे छल किया है. लेकिन मृणालिनी ने जब से उसकी जिन्दगी की कहानी सुनी तब से वह एक बात कहती थी कि तुझे तेरे पति ने ही धोखा दिया है. अब तू माने या न माने, वह तुझे इस जेल से निकलवाने कभी नहीं आएगा. और नोरा इस इंतजार में थी कि एक दिन वह जरूर आएगा. हाय रे मोहब्बत….

ये भी पढ़ें- ऐसा तो होना ही था

अग्निपरीक्षा : भाग 1

स्मिता की जिंदगी में प्यार की कमी को पूरा किया था राज ने. यही वजह थी कि भुवन से विवाह के बाद राज का साथ पा कर जज्बातों में बह गई थी. लेकिन ऐसी गलती कर के स्मिता का मन बारबार उसे कचोट रहा था.

स्मिता आज बहुत उदास थी. उस की पड़ोसिन कम्मो ने आज फिर उसे टोका था, ‘‘स्मिता, यह जो राज बाबू तुम्हारे घर रोजरोज आते हैं और तुम्हारे पास बैठ कर रात के 12-1 बजे घर जाते हैं, पड़ोस में इस बात की बहुत चर्चा हो रही है. कल रात सामने वाले वालियाजी इन से पूछ रहे थे, ‘यह स्मिता के घर रोज रात को जो आदमी आता है, उस का स्मिता से क्या रिश्ता है? अकेली औरत के पास वह 2-3 घंटे क्यों आ कर बैठता है? स्मिता उसे अपने घर रात में क्यों आने देती है? क्या उसे इतनी भी समझ नहीं कि पति की गैरहाजिरी में अकेले मर्द के साथ रात के 12 बजे तक बैठना गलत है.’ ’’

कम्मो के मुंह से यह सब सुन कर स्मिता का चेहरा उतर गया था. उफ, यह पासपड़ोस वाले, किसी के घर में कौन आताजाता है, सारी खोजखबर रखते हैं. उन्हें क्या मतलब अगर कोई उस के घर में आता भी है तो. क्या ये पासपड़ोस वाले उस का अकेलापन बांट सकते हैं? वे क्या जानें कि बिना एक मर्द के एक अकेली औरत कैसे अपने दिन और रात काटती है? फिर राज क्या उस के लिए पराया है? एक वक्त था जब राज के बिना जिंदगी काटना उस के लिए कल्पना हुआ करती थी और यह सब सोचतेसोचते स्मिता कब बीते दिनों की भूलभुलैया में उतर आई, उसे एहसास तक नहीं हुआ था.

स्मिता की मां बचपन में ही चल बसी थी. उस के बड़े भाई उसे पिता के पास से अपने घर ले आए थे. तब वह 7 साल की थी और तभी से वह भाईभाभी के घर रह कर पली थी. भैयाभाभी के 2 बच्चे थे और वे अपने दोनों बच्चों को बहुत लाड़दुलार करते थे. उन के मुंह से निकली हर बात पूरी करते लेकिन स्मिता की हमेशा उपेक्षा करते. भाभी स्मिता के साथ दुर्व्यवहार तो नहीं करतीं, लेकिन कोई बहुत अच्छा व्यवहार भी नहीं करतीं. उन को यह एहसास न था कि स्मिता एक बिन मां की बच्ची है. इसलिए उसे भी लाड़प्यार की जरूरत है.

ये भी पढ़ें- शादी का जख्म

भाई भी स्मिता का कोई खास खयाल न रखते. भाई के बेटाबेटी स्मिता की ही उम्र के थे. अकसर कोई विवाद उठने पर भाईभाभी स्मिता की अवमानना कर अपने बच्चों का पक्ष ले बैठते. इस तरह निरंतर उपेक्षा और अवमानना भरा व्यवहार पा कर स्मिता बहुत अंतर्मुखी बन गई थी तथा उस में भावनात्मक असुरक्षा घर कर गई थी.

राज भाभी का भाई था जो अकसर बहन के घर आया करता. उसे शुरू से सांवलीसलोनी, अपनेआप में सिमटी, सकुचाई स्मिता बहुत अच्छी लगती थी और वह जितने दिन बहन के घर रहता, स्मिता के इर्दगिर्द बना रहता. उस की स्मिता से खूब पटती तथा अकसर वे दुनिया जहान की बातें किया करते.

स्मिता को जब भी कोई परेशानी होती वह राज के पास भागीभागी जाती और राज उसे उस की परेशानी का हल बताता. वक्त बीतने के साथ स्मिता व राज की मासूम दोस्ती प्यार में बदल गई थी तथा वे कब एकदूसरे को शिद्दत से चाहने लगे थे, वे खुद जान न पाए थे.

ये भी पढ़ें- उस के साहबजी : श्रीकांत की जिंदगी में शांति का शामिल होना

लगभग 3 साल तक तो उन के प्यार की खबर स्मिता के भैयाभाभी को नहीं लग पाई और वे गुपचुप प्यार की पेंग बढ़ाते रहे थे. अकसर वे अपने हसीन वैवाहिक जीवन की रूपरेखा बनाया करते. लेकिन न जाने कब और कैसे उन की गुपचुप मोहब्बत का खुलासा हो गया और भैयाभाभी ने राज के स्मिता से मिलने पर कड़ी पाबंदी लगा दी थी और स्मिता के लिए लड़का ढूंढ़ना शुरू कर दिया.

राज और स्मिता ने भैयाभाभी से लाख मिन्नतें कीं, उन की खुशामद की कि उन का साथ बहुत पुराना है, उन को एकदूसरे के साथ की आदत पड़ गई है और वे एकदूसरे के बिना जिंदगी काटने की कल्पना तक नहीं कर सकते, लेकिन इस का कोई अनुकूल असर भाई व भाभी पर नहीं पड़ा.

स्मिता की भाभी का परिवार शहर का जानामाना खानदानी रुतबे वाला अमीर परिवार था तथा भाभी सुरभि के मातापिता को राज के विवाह में अच्छे दानदहेज की उम्मीद थी. इसलिए उन्होंने सुरभि से साफ कह दिया था कि वे राज की शादी स्मिता से किसी हालत में नहीं करेंगे. इसलिए उन्हें स्मिता का विवाह जल्दी से जल्दी कोई सही लड़का ढूंढ़ कर कर देना चाहिए.

राज के मातापिता ने राज से साफ कह दिया था कि यदि उस ने स्मिता से अपनेआप शादी की तो वे उस को घर के कपड़े के पुराने व्यापार से बेदखल कर देंगे और उस से कोई संबंध भी नहीं रखेंगे. राज के परिवार की शहर के मुख्य बाजार में कपड़ों की 2 मशहूर दुकानें थीं. राज महज 12वीं पास युवक था और अगर वह मातापिता की इच्छा के विरुद्ध स्मिता से शादी करता तो कपड़ों की दुकान में हिस्सेदारी से बाहर हो जाता.

इधर स्मिता के भैयाभाभी ने उस से साफ कह दिया था कि अगर उस ने अपनेआप शादी की तो वह न तो उस की शादी में एक फूटी कौड़ी लगाएंगे, न ही शादी में शामिल होंगे. इस तरह राज और स्मिता ने देखा था कि यदि वे घर वालों की इच्छा के विरुद्ध शादी कर लेते हैं तो उन का भविष्य अंधकारमय होगा.

स्मिता के पास भी कोई ऐसी शैक्षणिक योग्यता नहीं थी जिस के सहारे वह अपने परिवार का खर्च उठा पाती. अत: बहुत सोचसमझ कर वह दोनों अंत में इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि उन्हें अपने प्यार का गला घोंटना पड़ेगा तथा अपने रास्ते जुदा करने पड़ेंगे. उन के सामने बस, यही एक रास्ता था.

सुरभि स्मिता के लिए जोरशोर से लड़का ढूंढ़ने में लगी हुई थी. आखिरकार सुरभि की मेहनत रंग लाई. उसे स्मिता के लिए एक योग्य लड़का मिल गया था. लड़के का अपना स्वतंत्र जूट का व्यवसाय था तथा वह अच्छा कमा खा रहा था. लड़के का नाम भुवन था तथा उस ने पहली ही बार में स्मिता को देख कर पसंद कर लिया था. उन की शादी की तारीख 1 माह बाद ही निश्चित हुई थी.

ये भी पढ़ें- ताज बोले तो

शादी तय होने के बाद जब स्मिता राज से मिली तो उस के कंधों पर सिर रख कर फूटफूट कर रोई थी. उस ने राज से कहा था, ‘राज, 15 तारीख को तुम्हारी स्मिता पराई हो जाएगी. किसी गैर को मैं अपनेआप को कैसे सौंपूंगी? नहीं राज नहीं, मैं यह शादी हर्गिज नहीं करूंगी.’

CHRISTMAS 2019 : अनूठा क्रिसमस केक

क्रिसमस की याद आते ही क्रिसमस केक की याद आती है. क्रिसमस केक का स्पेशल केक तीन माह पहले बनना शुरू हो जाता है. लखनऊ के होटल हयात रेजेंसी में ‘क्रिसमस केक मेकिंग सेरेमनी’ और ‘क्यूलिनेरी चैलेंज’ का आयोजन किया गया. इसमें स्वंयसेवी संस्था, एनजीओ में पढ़ाई कर रहे बच्चों और लखनऊ के कुछ समाजसेवियों को भी शामिल किया गया. हयात रेजेंसी होटल के डायरेक्टर फूड एंड वेज, वाल्टर परेरा ने कहा कि हयात होटल ने अपने क्रिसमस के अतिथियों को क्रिसमस के दिन स्पेशल केक खिलाने के लिये तैयारी शुरू कर दी है. यह केक रम, फलों के रस, गरम मसालों, मेवा, बादाम, चैरी, डायफ्रूटस, किशमिश को मिलाकर तैयार होता है.

how to prepare christmas cake

होटल हयात रेजेंसी के जनरल मेनेजर कुमार शोभन ने बताया कि हम लोगों की पंसद की डिश उनके सहयोग से ही तैयार करने में यकीन रखते हैं. इसके लिये ऐसे आयोजन होते हैं जिनसे यह पता चल सके कि लोग किस तरह के खाने में यकीन रखते हैं. खाने में अपनी पंसद का खाना हमारा अधिकार होता है.

ये भी पढ़ें- कश्‍मीरी दम आलू की रेसिपी

how to prepare christmas cake

हम अपने स्पेशल कार्यक्रमों के जरीये समाज के हर वर्ग को आपस में जोड़ना चाहते हैं. जिसकी वजह से एनजीओ के जरीये हमने गरीब वर्ग के बच्चों को इसमें शामिल किया.

how to prepare christmas cake

3 माह पहले से केक तैयार करने के लिये रम, फलों का रस, गरम मसाले, मेवा, बादाम, चैरी, डायफ्रूटस, किशमिश को मिलाकर रख दिया जाता है. इसके बाद क्रिसमस के समय इसको तैयार किया जायेगा. इतने समय मिक्स करके रखने से केक बहुत स्वादिष्ठ हो जाता है. प्लम केक की खासियत इसका अलग स्वाद ही होता है.

ये भी पढ़ें- राजस्थानी डिश : ऐसे बनाएं दाल बाटी

न करें रिश्ते में ये 4 गलतियां

जब आप अपने रिश्ते को लेकर सिरियस नहीं रहती हैं तो आप कुछ ऐसी गलतियां कर बैठती हैं जिसके कारण आपका रिश्ता टूट भी सकता है. लेकिन अगर आप अपने रिश्ते को लेकर गंभीर हैं तो अपने साथी की भावनाओं के बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है.

अगर आपका साथी आपको शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान कर रहा है तो आपको उस रिश्ते से बाहर आने की जरूरत है और ये भी समझने की जरूरत है कि आप एक गलत रिश्ते में फंसे हुए हैं.

  1. तरह तरह के सवाल करना

हर चीज में अगर आपका पार्टनर आपसे सवाल करता है तो इसका मतलब ये है कि उसे आप पर भरोसा नहीं है. किसी भी रिश्ते में प्यार के साथ-साथ भरोसे की भी जरूरत होती है. इसलिए अगर आपका पार्टनर आपके हर एक कदम पर सवाल उठाता है तो आपकी उस रिश्ते को खत्म कर देने में ही भलाई है क्योंकि ऐसे में वह आपके रिश्ते को खोखला कर देगा.

ये भी पढ़ें- लव-सेक्स और धोखे के दलदल में फंसता यंगिस्तान

2. भावनाओं की कद्र न करना

अगर आपका साथी हमेशा ये कहकर आपकी भावनाओं को अनदेखा कर देता है कि आप बहुत संवेदनशील हैं तो इसका मतलब साफ है कि उसे आपकी भावनाओं की कद्र नहीं है, और जिस रिश्ते में आपकी भावनाओं की कद्र नहीं है, वैसे रिश्ते में होने से अच्छा है कि उस रिश्ते को खत्म कर दें.

3. बातें छुपाना

अगर आपका पार्टनर आपसे बातें छुपाने लगा है तो आपको अपने रिश्ते को लेकर फिर से सोचने की जरूरत है, क्योंकि जहां झूठ होता है वहां प्यार नहीं होता है. अगर आप अपने पार्टनर को सच नहीं बता सकते हैं तो आपको अपने रिश्ते को खत्म कर देना चाहिए. ऐसा होना आपको ये संकेत दे रहा है कि आप एक गलत रिश्ते में फंसे हुए हैं जो आपके रिश्ते को भी धीरे-धीरे कमजोर कर रहा है.

ये भी पढ़ें- जानें बड़ी उम्र के लड़के के साथ डेटिंग करने के फायदे

4. हर काम में गलती निकालना

अगर आपका साथी आपकी हर समय आपकी निंदा करता रहता है और आपको नीचा दिखाते रहता है तो आप एक गलत रिश्ते में हैं, क्योंकि अगर वो आपकी इज्जत नहीं कर सकता है तो आपसे प्यार भी नहीं कर सकता है. जब भी आप दोनों के बीच कोई परेशानी हो तो हमेशा आपकी ही गलती गिनवाए तो आपको उस रिश्ते से बाहर निकलने की जरूरत है.

औरों से आगे : भाग 1

यों सिद्धांत रूप में तो अम्मां अंतर्जातीय विवाह के विरुद्ध नहीं थीं परंतु जब अपने घर में ऐसे विवाहों की बात उठी तो पूर्वाग्रहों से ग्रस्त वह सहर्ष अपनी स्वीकृति देने में हिचकिचा रही थीं.

‘‘अंतर्जातीय विवाहों से हमारे आचारविचार में छिपी संकीर्णता खत्म हो जाती है. अंधविश्वासों व दकियानूसीपन के अंधेरे से ऊपर उठ कर हम एक खुलेपन का अनुभव करते हैं. विभिन्न प्रांतों की संस्कृति तथा सभ्यता को अपनाकर भारतीय एकता को बढ़ावा देते हैं…’’ अम्मां किसी से कह रही थीं.

मैं और छोटी भाभी कमरे से निकल रहे थे. जैसे ही बाहर बरामदे में आए तो देखा कि अम्मां किसी महिला से बतिया रही हैं. सुन कर एकाएक विश्वास होना कठिन हो गया. कल रात ही तो अम्मां बड़े भैया पर किस कदर बरस रही थीं, ‘‘तुम लोगों ने तो हमारी नाक ही काट दी. सारी की सारी बेटियां विजातियों में ब्याह रहे हो. तुम्हारे बाबूजी जिंदा होते तो क्या कभी ऐसा होता. उन्होंने वैश्य समाज के लिए कितना कुछ किया, उन की हर परंपरा निभाई. सब बेटाबेटी कुलीन वैश्य परिवारों में ब्याहे गए. बस, तुम लोगों को जो अंगरेजी स्कूल में पढ़ाया, उसी का नतीजा आज सामने है.

‘‘अभी तक तो फिर भी गनीमत है. पर तुम्हारे बेटेबेटियों को तो वैश्य नाम से ही चिढ़ हो रही है. बेटियां तो परजाति में ब्याही ही गईं, अब बेटे भी जाति की बेटी नहीं लाएंगे, यह तो अभी से दिखाई दे रहा है.’’

बड़े भैया ने साहस कर बीच में ही पूछ लिया था, ‘‘तो क्या अम्मां, तुम्हें अपने दामाद पसंद नहीं हैं?’’

‘‘अरे, यह…यह मैं ने कब कहा. मेरे दामाद तो हीरा हैं. अम्मांअम्मां कहते नहीं थकते?हैं, मानो इसी घर के बेटे हों.’’

ये भी पढ़ें- प्यार की पहली किस्त

‘‘तो फिर शिकायत किस बात की. यही न कि वह वैश्य नहीं हैं?’’

2 मिनट चुप रह कर अम्मां बोलीं, ‘‘सो तो है. पर ब्राह्मण हैं, बस, इसी बात से सब्र है.’’

‘‘अगर ब्राह्मण की जगह कायस्थ होते तो?’’

‘‘न बाबा न, ऐसी बातें मत करो. कायस्थ तो मांसमछली खाते हैं.’’

धीरेधीरे घर के अन्य सदस्य भी वहां जमा होने लगे थे. ऐसी बहस में सब को अपनाअपना मत रखने का अवसर जो मिलता था.

‘‘क्या मांसमछली खाने वाले आदमी नहीं होते?’’ छोटे भैया के बेटे राकेश ने पूछा.

अम्मां जैसे उत्तर देतेदेते निरुत्तर होने लगीं. शायद इसीलिए उन का आखिरी अस्त्र चल गया, ‘‘मुझ से व्यर्थ की बहस मत किया करो. तुम लोगों को न बड़ों का अदब, न उन के विचारों का आदर. चार अक्षर अंगरेजी के क्या पढ़ लिए कि अपनी जाति ही भूलने लगे.’’

ऐसे अवसरों पर मझले भैया की बेटी स्मिता सब से ज्यादा कुछ कहने को उतावली दिखती थी, जो समाजशास्त्र की छात्रा थी. आखिर वह समाज के विभिन्न वर्गों को भिन्नभिन्न नजरिए से देखसमझ रही थी.

भैया भले ही कम डरते थे, पर भाभियां तो अपनेअपने बेटेबेटियों को आंखों के इशारों से तुरंत वहां से हटा कर दूसरे कामों में लगा देने को उतारू हो जाती थीं. जानती?थीं कि आखिर में उन्हें ही अम्मां की उस नाराजगी का सामना करना पड़ेगा. भाभियों के डर को भांपते हुए मैं ने सोचा, ‘आज मैं ही कुछ बोल कर देखूं.’

‘‘अम्मां, यह तो कोई बात न हुई कि उत्तर देते न बन पड़ा तो आप ने कह दिया, ‘व्यर्थ की बहस मत करो.’ राकेश ने तो सिर्फ यही जानना चाहा है कि क्या मांसमछली खाने वाले भले आदमी नहीं होते?’’

अम्मां हारने वाली नहीं थीं. उन्हें हर बात को अपने ही ढंग से प्रस्तुत करना आता था. हारी हुई लड़ाई जीतने की कला में माहिर अम्मां ने झट बात बदल दी, ‘‘अरे, दुनिया में कुछ भी हो, मुझे तो अपने घर से लेनादेना है. मेरे घर में यह अधर्म न हो, बस.’’

ये भी पढ़ें- तीन शब्द : राखी से वो तीन शब्द कहने की हिम्मत जुटा पाया परम

मेरा समर्थन पा कर राकेश फिर पूछ बैठा, ‘‘अम्मां, जो लोग मांसमछली खाते हैं, उन्हें आप वैश्य नहीं मानतीं. यदि कोई दूसरी जाति का आदमी वैश्य जैसा रहे तो आप उसे क्या वैश्य मान लेंगी?’’

‘‘फिर वही बहस. कह दिया, हम वैश्य हैं.’’

कमरे में बैठी अपने स्कूल का पाठ याद करती रीना दीदी की 6 वर्षीय बेटी बोल उठी, ‘‘नहीं, नानीजी, हम लोग हिंदुस्तानी हैं.’’

अम्मां ने उसे पास खींच कर पुचकारा. फिर बोलीं, ‘‘हां बेटा, हम हिंदुस्तानी हैं.’’

अम्मां को समझ पाना बहुत कठिन था. कभी तो लगता था कि अम्मां जमाने के साथ जिस रफ्तार से कदम मिला कर चल रही हैं वह उन की स्कूली शिक्षा न होने के बावजूद उन्हें अनपढ़ की श्रेणी में नहीं रखता. औरों से कहीं आगे, समय के साथ बदलतीं, नए विचारों को अपनातीं, नई परंपराओं को बढ़ावा देतीं, अगली पीढ़ी के साथ ऐसे घुलमिल जातीं मानो वह उन्हीं के बीच पलीबढ़ी हों.

लेकिन कभीकभी जब वह अपने जमाने की आस्थाओं की वकालत कर के उन्हें मान्यता देतीं, अतीत की सीढि़यां उतर कर 50 वर्ष पीछे की कोठरी का दरवाजा खोल देतीं और रूढि़वादिता व अंधविश्वास की चादर ओढ़ कर बैठ जातीं तो हम सब के लिए एक समस्या सी बन जाती. शायद हर मनुष्य दोहरे व्यक्तित्व का स्वामी होता है या संभवत: अंदर व बाहर का जीवन अलगअलग ढंग से जीता है.

पिताजी उत्तर प्रदेश के थे और इलाहाबाद शहर में जन्मे व पलेबढ़े थे. बाद में नौकरी के सिलसिले में उन्होंने अनेक बार देशविदेश के चक्कर लगाए थे. कई बार अम्मां को भी साथ ले गए. लिहाजा, अम्मां ने दुनिया देखी. बहुत कुछ सीखा, जाना और अपनी उम्र की अन्य महिलाओं से ज्ञानविज्ञान व आचारविचारों में कहीं आगे हो गईं.

पिताजी विदेशी कंपनी में काम करते थे. ऊंचा पद, मानमर्यादा और हर प्रकार से सुखीसंपन्न, उच्चविचारों व खुले संस्कारों के स्वामी थे. अम्मां उन की सच्ची जीवनसंगिनी थीं.

वर्षों पहले हमारे परिवार में परदा प्रथा समाप्त हो गई थी. स्त्रीपुरुष सब साथ बैठ कर भोजन करते थे. यह सामान्य सी बात थी, पर 35-40 वर्ष पूर्व यह हमारे परिवार की अपनी विशेषता थी, जिसे कहने में गर्व महसूस होता था. हमें लगता था कि हमारी मां औरों से आगे हैं, ज्यादा समझदार हैं. परदा नहीं था, पर इस का तात्पर्य यह नहीं था कि आदर व स्नेह में कमी आ जाए.

भाभियों को घूमनेफिरने की पूरी स्वतंत्रता थी. यहां तक कि उन का क्लब के नाटकों में भाग लेना भी मातापिता को स्वीकार था.

इतना सब होते हुए भी अपने समाज के प्रति पिताजी कुछ ज्यादा ही निष्ठावान थे. ऐसा नहीं था कि वह देश या अन्य जातियों के प्रति उदासीन थे, पर शादीब्याह के मामले में उन्हें अंतर्जातीय विवाह उचित नहीं लगे. हम सब को भी उन्हीं के विचारों के फलस्वरूप अपने समाज के प्रति आस्था जैसे विरासत में मिली थी. शायद अम्मां ने तो कभी अपना विचार या अपना मत जानने की कोशिश नहीं की.

समय के साथ सभी मान्यताएं बदल रही थीं. फिर भी मेरा मन मानता था, ‘यदि आज पिताजी जिंदा होते तो शायद उन की पोतियां स्वयं वर चुन कर गैरजाति में न ब्याही जातीं.’ लेकिन यह भी लगता?था, ‘यदि उन्हें दुख होता तो यह उन की संकीर्णता का द्योतक होता है,’ और हो सकता है, जिस रफ्तार से वह समय के साथसाथ चले और समय के साथसाथ बदलने की वकालत करते रहे थे, शायद ऐसे विवाहों को सहर्ष स्वीकर कर लेते. आज वह नहीं हैं. अम्मां का अपना मत क्या है, वह स्वयं नहीं जानतीं. जो हो रहा?है, उन्हें कहीं अनुचित नहीं लग रहा. परंतु पिताजी का खयाल आते ही इन विवाहों को ले कर उन का मन कहीं कड़वा सा हो जाता है.

ये भी पढ़ें- कसौटी

प्रतिक्रियास्वरूप उन के अंतर्मन का कहीं कोई कोना उन्हें कचोटने लगता है. शायद वह उन की अपनी प्रतिक्रिया भी नहीं है, बल्कि पिताजी के विचारों के समर्थन का भावनात्मक रूप है. 5-6 बरस पहले कनु का सादा सा ब्याह और अब रिंकू के ब्याह का उत्सव कैसा विपरीत दृश्य था. कनु ने जब कहा था, ‘‘मैं सहपाठी राघवन से ब्याह करूंगी और वह भी अदालत में जा कर.’’ अम्मां सन्न रह गई थीं. जब उन का मौन टूटा तो मुंह से पहला वाक्य यही निकला?था, ‘‘आज तुम्हारे पिताजी जिंदा होते तो क्या घर में ऐसा होता? उन्हें बहुत दुख होता. जमाने की हवा है. मैं तो तभी जान गई थी जब तुम ने इसे बाहर पढ़ने भेजा. लड़कियों की अधिक स्वतंत्रता अच्छी नहीं.’’ यह अम्मां की विशेषता थी कि उन्हें हर बात पहले से ही पता रहती थी. पर वह घटना घटने के बाद ही कहती थीं. अम्मां ही क्या, कई लोग इस में माहिर होते हैं. अम्मां के प्रतिकूल रवैए से बड़े भैया का मन भी अशांत हो उठा था. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि वैश्य परिवार की लाड़ली, भोलीभाली एवं प्रतिभाशाली कन्या ऐसा कदम उठाएगी, जबकि परिवार के लोग घरवर खोजने में लगे थे. वह तो एकाएक विस्फोट सा लगा. पर जब शुद्ध दक्षिण भारतीय राघवन से परिचय हुआ तो उस सौम्यसुदर्शन चेहरे के सम्मोहन ने कहीं सब के मन को छू लिया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें