आदित्य और प्रियंका की मंगनी हो गई थी. विवाह की तैयारी चल रही थी. आदित्य पंडित के कहेनुसार रात में धूमधाम से विवाह करना चाहता था, जबकि प्रियंका को यह फुजूलखर्ची लगती थी. पर आदित्य के अनुसार, जब तक जगमग न हो, तो विवाह में मजा ही नहीं आता है.
वहीं दूसरी ओर रोसा और जय दोनों ही विवाह के बाद अपना फ्लैट खरीदना चाहते थे. दोनों ने सम झदारी का परिचय देते हुए अपना विवाह दिन में करना निश्चित किया. दोनों के मातापिता उन के इस निर्णय से सहमत नहीं थे. पर जब उन्होंने अपने मातापिता को यह सम झाया कि वे जो रुपए उन के विवाह में खर्च करना चाहते हैं, उसी रुपए से वे बहुत धूमधाम से विवाह भी कर लेंगे और जो धन बचेगा उस से डाउन पेमैंट कर के अपना घर लेने का सपना भी पूरा कर सकते हैं, तो उन लोगों को उन की बात सही लगी.
चारु के पापा ने चारु की शादी दिन में आयोजित करनी चाही पर चारु को दिन में विवाह करना बहुत आउटडेटेड लगा और फिर रात्रि में विवाह का आयोजन हुआ. लाइट, आतिशबाजी, मेहमानों को ठहराने के लिए होटल का इंतजाम, रात्रि के हिसाब से दुलहन की पोशाक, मेकअप और बैंडबाजा, कुल मिला कर चारु के पापा की जेब पर रात्रि का विवाह बहुत भारी पड़ा. इतना कुछ करने के बावजूद रिश्तेदारों के मुंह फूले ही रहे, इंतजाम उन के मनमाफिक न थे.
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धन और वैभव का दिखावा
आजकल अधिकतर विवाहों का आयोजन रात में ही होता है क्योंकि विवाह महज अपने धन और वैभव का दिखावा बन कर रह गए हैं. प्राचीनकाल में विवाह एक रस्म, एक परंपरा थी मानव समाज को सभ्य बनाने के लिए, घरपरिवार को आगे बढ़ाने के लिए. पर जैसेजैसे समाज का आधुनिकीकरण हुआ और नएनए इलैक्ट्रौनिक उपकरणों का बाजार में आगमन हुआ वैसेवैसे लोगों में दिखावे की होड़ लगती गई. सो, रात्रि में विवाह की परंपरा कब और कैसे आरंभ हुई थी, एक नजर डालते हैं.
हिंदू धर्म में विवाह संस्कार की गोधूलि बेला में करने का महत्त्व बताया गया है. सीता और द्रौपदी के विवाह का भी उल्लेख दिन के समय को ले कर ही किया गया है. पर मुगलों के आगमन के बाद विवाह का आयोजन रात्रि में होना आरंभ हो गया था. इस के पीछे मुख्य उद्देश्य सुरक्षा थी. पर अगर हम ध्यान करें, आज से 50 वर्षों पहले तक अधिकतर विवाह दिन में ही होते थे.
दरअसल, जैसेजैसे समाज का आधुनिकीकरण हुआ है, धन के आधार पर समाज का वर्गीकरण हुआ है, उसी तरह शादी अब महज एक डिजाइनर रस्म सी बन कर रह गईर् है. एक अनकहा प्रैशर दोनों पक्षों पर बना रहता है. विवाह का अब पूरा बाजारीकरण हो चुका है और रात्रि में विवाह इसी बाजारीकरण का नतीजा है.
किसी भी धार्मिक ग्रंथ में कहीं भी रात्रि में विवाह का उल्लेख नहीं किया गया है. यह तो महज नए जमाने का नया चोंचला है. अन्य सभी धर्मों में विवाह दिन में होते हैं. रजिस्टर्ड विवाह भी दिन में ही होते हैं.
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समय का बहाना
आप उन लोगों से बात करें जो रात में विवाह करने के पक्षधर हैं, तो लोग बड़ी मासूमियत से जवाब देते हैं कि आजकल की भागदौड़भरी जिंदगी में किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह दिन के समय विवाह में सम्मिलित हो सके. इसलिए रात्रि में विवाह करना न केवल उन की इच्छा है बल्कि उन की मजबूरी भी है.
अगर गहन विचार करें, तो हम इस समस्या को बड़े आराम से सुल झा सकते हैं. रविवार या सरकारी छुट्टी वाले दिन हम लोग आराम से दिन में विवाह आयोजित कर सकते हैं. पर शुभ विवाह मुहूर्त आड़े आ जाता है. लेकिन, क्या हम ने कभी गौर किया है, विवाह की तिथि पर तो केवल जयमाला ही हो पाती है, पाणिग्रहण संस्कार तो रात्रि में 12 बजे के बाद ही होता है. तो रात्रि में होने वाले 95 प्रतिशत विवाह अगली तिथि में ही होते हैं, न कि शुभ मुहूर्त के ढकोसले और पाखंड में.
रात्रि में विवाह सुरक्षा की दृष्टि से भी ठीक नहीं है. महिलाएं विवाह में भारीभारी गहने पहनना पसंद करती हैं और रात में गहनों की इस तरह की प्रदर्शनी सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है.
आर्थिक दृष्टि से भी अगर आप सोचें, तो रात्रि के विवाह जेब पर भारी पड़ते हैं. पूरे पंडाल को रोशनी से नहलाना, आने वाले मेहमानों का रात में अच्छे होटल में ठहराने का इंतजाम करना जैसी बहुत सारी चीजें हैं जिन पर खर्चा अधिक आता है.
रात्रि में विवाह करने से समय की बचत नहीं, बल्कि बरबादी होती है. जिस दिन विवाह होता है, वह पूरा दिन और रात और रात्रिजागरण के बाद अगले दिन की भी बरबादी होती है. पूरी रात जागने के बाद अगले दिन के कार्यक्रमों के लिए मेहमानों में न कोई रोमांच रहता है और न ही ऊर्जा बचती है. विवाह हमारे जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत है, तो क्यों न इस का आरंभ हम दिखावे के बजाय रिश्तों और रस्मों की गरमाहट से करें.
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