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सब से बड़ा सुख: भाग 2

वे चिढ़ गई थीं. दहेज न हुआ, नुमाइश हुई. इन औरतों की छींटाकशी से बेखबर नहीं थीं वे जो इतनी बचकानी हरकत करतीं. आज तक अपना अपमान नहीं भूल पाई थीं वे, जो उन का दहेज देखने पर इनऔरतों ने किया था. बड़ी जीजी नाराज थीं कि बहू के हाथ का भोजन नहीं चखा था उन्होंने अब तक. वैसे यह भी कुछ बेकार का आरोप था.

वे तो मन ही मन डर रही थीं कि कालेज से निकली लड़की रसोई में जा कर दो पल खड़ी न हो सकी तो? खुद उन की बिटिया ही कितना कर पाती है? पूरी रसोई कभी संभाली हो, याद नहीं पड़ता उन्हें. इसी चखचख से बचने और बहू को बचाने के लिए उन्हें हनीमून पर भेज दिया था उन्होंने. वापस लौटे तो राजेश को बंबई जाना था.

मन में इच्छा हुई कि बहू को अपने पास रख लें कुछ दिन. पर फिर सोचा, नयानया ब्याह हुआ है उन का, खेलनेखाने के दिन हैं. एक बार जिम्मेदारी बढ़ी तो इंसान पिंजरे में कैद पक्षी के समान हो जाता है. अगर फड़फड़ाना भी चाहे तो पिंजरे की तारें उसे आहत करती हैं.

बहू और बेटे ने गंतव्य की ओर प्रस्थान किया तो फिर अकेलापन सालने लगा था. अगर यहीं होते मेरे पास तो कितना अच्छा होता. लेकिन फिर सोचतीं, अच्छा ही है कि दूर है, कम से कम प्यार तो है, अपनत्व तो है, वरना एक ही घर में रहते हुए भी लोगों के मुंह इधरउधर ही रहते हैं. किसी की बहू घर छोड़ कर चली गई, कहीं सास ने आत्महत्या कर ली, यही तो घरघर की कहानी है जिसे उन्हें दोहराने से डर लग रहा था.

उस दिन दफ्तर से रीतेश लौट कर आए तो चाय की चुस्की लेते हुए बोले,  ‘‘अल्पना, कल से सामान बांधना शुरू कर दो. और देखो, कुछ भारीभरकम ले जाने की जरूरत नहीं. राजेश के घर में किसी भी चीज की कमी नहीं है. जरूरत भर का सामान ले लेंगे. 3 साल बाद वापस दिल्ली लौटना ही है.’’

पति के आदेश पर वह जैसे यथार्थ में लौट आई थीं. तो क्या रीतेश ने निश्चय कर लिया है बेटे के साथ रहने का? कुछ असमंजस, कुछ ऊहापोह की स्थिति में वह चुपचाप बैठी रहीं. फिर साहस बटोर कर पति से पूछा,  ‘‘सुनो, कंपनी की तरफ से तुम्हें कार और फ्लैट तो मिलेगा? है न?’’

‘‘हांहां, हमारी कंपनी के कुछ फ्लैट कोलाबा में हैं.’’

‘‘तो क्यों न हम वही चल कर रहें?’’

‘‘कैसी बातें करती हो? राजेश के वहां रहते हुए हम अलग कैसे रह सकते हैं? लोग क्या कहेंगे?’’

‘‘तो इस में बुरा क्या है? वैसे भी एकाध साल में अलग रहने की नौबत तो आ ही जाती है. क्यों न पहले से सावधानी बरतें?’’

‘‘यह मां का दिल कह रहा है या स्वयं का अहं और स्वाभिमान?’’

‘‘तुम चाहे कुछ भी समझो, पर बात को नकारा नहीं जा सकता. आजकल सामंजस्य स्थापित कितने घरों में हो रहा है?’’ वे बोलीं.

रीतेश ने उन्हें समझाना चाहा, ‘‘देखो, जब सासबहू अनपढ़ हों तो बात अलग है किंतु जब तुम दोनों ही शिक्षित हो फिर यह समस्या क्यों आएगी ?’’

‘‘विचारों का विरोधाभास, पीढ़ी का अंतराल, व्यक्तिगत स्वतंत्रता में बाधा आदि कई ऐसे प्रश्न हैं जिन पर इन संबंधों की इमारत खड़ी है.’’

‘‘तुम स्वयं को सास नहीं, नेहा की मां समझना अल्पना, और बेटे से अपेक्षाएं कम रखना तो…’’

‘‘और अगर वह मेरी बेटी न बनना चाहे तो?’’  उन की बात बीच में काट कर अल्पना बोलीं तो रीतेश निरुत्तर हो गए थे. यों दुनिया के रंग को कोई बंद आंखों से नहीं देखते थे वे भी. फिर भी अपने बच्चों से दूर रहना उन्हें तर्कसंगत भी नहीं लग रहा था.

कुछ देर और भी वादविवाद चला पर सब अकारथ ही गया. रीतेश कंपनी के फ्लैट में रहने को तैयार हो गए थे. लेकिन अभी कुछ दिनों तक वहां नहीं रहा जा सकता था क्योंकि जो मुख्य प्रबंधक वहां रह रहे थे, बच्चों की परीक्षा के कारण उसे खाली कर पाने में असमर्थ थे. अत: उस समय तक अल्पना बहूबेटे के साथ रहने को सहर्ष तैयार हो गई थीं.

अल्पना ने अपनी गृहस्थी समेटनी शुरू कर दी थी. कुछ ही दिन रह गए बंबई जाने में. बाजार जा कर बेटी और बहू के लिए कांजीवरम की साडि़यां ले आई थीं. और भी कई प्रकार के उपहार व दुर्लभ वस्तुएं जो बंबई में नहीं मिलतीं, ले कर आई थीं वे. मन में असीम उत्साह था पर आशंकित भी थीं. बेटेबहू के साथ रह कर जिस रिश्ते को रेशमी धागे में पिरोए मोती की लडि़यों की तरह उन्होंने सहेज कर रखा था अब तक, कहीं उलझ न जाए. क्योंकि प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो उस में गांठ तो पड़ ही जाती है.

हवाईजहाज ने सांताक्रूज हवाई अड्डे को छुआ तो उन की व्याकुल नजरें अपने बच्चों को ढूंढ़ रही थीं. कुछ औपचारिकताएं निभाने के बाद वे बाहर आ गए थे. दूर से ही नटखट क्षितिजा का चेहरा दिखा तो पिता ने गले से लगा लिया था बिटिया को.

अल्पना राजेश और नेहा के पास आ गई थीं. लगा, बेटी की तरह गले लगने में कुछ हिचक सी महसूस कर रही थी नेहा पर उस हिचकिचाहट को उन्होंने समाप्त कर दिया. बहू को गले लगाकर स्नेहचुंबन माथे पर अंकित कर दिया उन्होंने.

घर पहुंच कर कितनी देर तक सब बतियाते रहे थे. कुछ यहांवहां की बातें कर के आखिर बात फिर मुख्य मुद्दे पर अटक गई. राजेश बारबार पिता को वहां रहने का आग्रह करता और वे मन ही मन डर जातीं कि कहीं पति कमजोर न पड़ जाएं. लेकिन रीतेश ने बड़ी ही समझदारी से बेटे की बात टाल दी थी. वे बोले, ‘‘बांद्रा से कोलाबा काफी दूर है बेटा. इतनी लंबी ड्राइविंग से थक जाऊंगा मैं.’’

अल्पना ने चैन की सांस ली और राजेश निरुत्तर हो गया था. काफी चहलपहल थी. सभी बातों में मशगूल थे. नेहा चाय बनाने गई तो उन्होंने क्षितिजा को बहू के पीछेपीछे भेज दिया था और खुद उठ कर थैले से उपहार निकाल लाई थीं. नेहा ने बहुत खुश हो कर साड़ी स्वीकार की थी. हां, क्षितिजा कभी रंग पर अटक जाती तो कभी पिं्रट पर. हमेशा से ही ऐसी है नकचढ़ी. क्या मजाल जो कुछ भा जाए उसे.

रीतेश को बच्चों ने घोड़ा बना दिया था और नेहा और क्षितिजा बंबई की समस्याओं के बारे में बता रही थीं. रात्रि का भोजन खा कर क्षितिजा और निखिल  जब चले गए तो रीतेश तो सोफे पर ही अधलेटे से हो गए थे. उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगा था. बहू साथ बैठने में कुछ कतरा रही थी. पति को कुरतापजामा पकड़ा कर खुद भी वे सोने की तैयारी करने लगी थीं.

#coronavirus: लंबी कवायद के बाद भी नही मिला सरकारी इलाज

लखनऊ, पूरा देश कॅरोना के भय में डूबा हुआ है.देश भर के लोग अपने घरों में कैद हो कर कॅरोना वायरस का मुकाबला कर रहे है. घरो में बंद लोगो को लग रहा कि अस्पतालों में बेहतर हालत है. सही बात यह है कि अस्पतालों में पहुचने वालो को इलाज नही मिल रहा और करोना को लेकर बनाई गई “हेल्पलाइन” जरूरतमंद लोगों को नया नम्बर दे रहे या यँहा से वँहा टरका रही है.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मशहूर कवि नरेश सक्सेना के साथ घटी घटना इसको बयान करती है. लखनऊ के गोमतीनगर में रहने वाले नरेश सक्सेना की बहू सोनी को आठ दिन से ज़ुकाम, बुख़ार, नाक बंद, गले और हड्डियों में दर्द, समेत सांस फूलने की शिकायत थी.

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नरेश सक्सेना और परिजन 22 मार्च को रात साढ़े दस बजे सोनी को लेकर किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज पहुंचे। डॉक्टर को बताया कि वह दिल्ली शादी में गए थे, जहां अमेरिकी रिश्तेदार आए थे. कोरोना का शक था इसलिए डॉक्टर से जांच करने की बात कही.डॉक्टर ने सब सुनने के बाद भी कहा कि आप इनको घर ले जाए और आइसोलेशन में रखे.

बहू सोनी की तबीयत ज्यादा खराब होने पर मदद के लिए 112 नंबर पर फोन किया.थोड़ी देर बाद दो कॉन्स्टेबल आए.उन्होंने पूरी बात सुनने के बाद प्रशासन के अधिकारी से बात की.कॉन्स्टेबलों ने कहा कि अधिकारियों से निर्देश मिलने के बाद एक घंटे बाद बताएंगे. एक घंटे बाद परिवार के लोगो ने फिर से कॉन्स्टेबलों से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि सुबह निर्णय होगा.

इसके बाद नरेश और परिजन सोनी को लेकर एक प्राइवेट अस्पताल पहुंचे.सौ मीटर पर स्थित अस्पताल ले जाने के लिए ऐंबुलेंस ने एक हजार रुपये लिए. अस्पताल में डॉक्टर ने पांच सौ रुपये लिए और यह कहकर वापस भेज दिया कि यहां उनका इलाज नहीं हो सकता. यहाँ भी डॉक्टर ने एक नंबर दिया और कहा कि यह नंबर कोरोना के नोडल अधिकारी का है उनसे बात करें.

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डॉक्टर से मिले नंबर पर जब नरेश ने कॉल की तो पता चला कि वह नंबर बंद था. इसके बाद वह डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल पहुंचे जहां उनसे कहा गया कि वहां कोरोना की जांच नहीं होगी.

हारकर नरेश ने घर आकर बहु को एक कमरे में आइसोलेट किया और उनका घर पर ही इलाज चल रहा है.

इसके बाद नरेश और उनके परिजनों के बारे में दूसरे लोगो को पता चला तो वो भी मदद करने के लिए आगे आये पर उनकी भी दिक्क्क्त यह कि पुलिस किसी को घर से बाहर नही निकलने दे रही. ऐसे में कुछ परिचित लोगो ने सरकार द्वारा दी गई हेल्पलाइन नम्बर पर कॉल करनी शुरू की.

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सामाजिक कार्यकर्ता नाइश हसन ने नरेश सक्सेना की मदद के लिए कोरोना हेल्पलाइन नंबर 18001805145 मिलाया, जवाब मिला यह नंबर मौजूद नहीं. सीएमओ कंट्रोल रूम 522-2622080 से जवाब मिला की यह नंबर अमान्य है. लखनऊ के डीएसओ डॉ. केपी त्रिपाठी का नंबर कॉल डायवर्ट पर था.सीएम हेल्पलाइन नंबर 1075 मिलाया तो काफी पूछताछ के बाद उन्हें 1123978046 नंबर दिया गया. नाइश ने यह नंबर मिलाया लेकिन यह भी अमान्य रहा. उन्हें एक दूसरा नंबर 1076 दिया गया.इस नंबर पर काफी देर तक पूछताछ की गई और फिर उन्हें 112 नंबर दे दिया गया. पुलिस से मदद न मिलने की बात कहने पर उन्हें पांच मिनट होल्ड कराया गया और फिर डिस्ट्रिक्ट सर्विलांस ऑफिसर डॉ. मनोज का नंबर 8423882903 मिला. इस नंबर पर फोन करने पर कोई उत्तर नहीं मिला.

जब किसी भी तरह से सरकारी सहायता नही मिली तो नरेश सक्सेना ने अपनी बहू को निजी अस्पताल ले गए जंहा किसी तरह से उनका इलाज शुरू हो सका.

 

जय गरीब की

बात घूमफिर कर फिर गरीबी पर आ गई है. जैसे बारह बरस में घूरे के दिन भी बहुरते हैं, वैसे ही गरीब और गरीबी के दिन बहुरे हैं. आज वे सभी पार्टियों के चहेते बन गए हैं, सत्ताधारी पार्टियों में भी और सत्ता से बेदखल कर दी गई पार्टियों के भी. गरीब आजकल सुर्खियों में हैं. उन की चहुंओर जयजयकार हो रही है. गरीब अपनी गरीबी पर इतराने लगे हैं. देश में गरीबी हटाओ नारे पर राजनीतिक पार्टियों का आधिपत्य सा रहा है. इन्हें गरीब जब भी याद आते हैं तो बहुत याद आते हैं, क्योंकि ये पार्टियां जानती हैं कि गरीबों की स्तुति करने से पार्टी की खुद की गरीबी अवश्य दूर हो सकती है.

बाजार में जिनजिन चीजों पर कभी अमीरों का एकाधिकार हुआ करता था आजकल वे चीजें गरीबों की प्राथमिकता में शामिल हैं. साबुन, मंजन, डिटरजैंट, क्रीमपाउडर, शैंपू, चाय, केशतेल वगैरह के जितने भी लोकप्रिय ब्रैंड हैं, सब 1-2 रुपए वाले गरीब पैक में उपलब्ध हैं, यहां तक कि सिगरेट जैसी चीज भी 5 रुपए के पैक में उपलब्ध है. अब कोई, गरीबी के कारण, उन चीजों से वंचित नहीं रह सकता जिन पर कभी अमीरों का कब्जा माना जाता था. सारे उद्यमी गरीबों पर मेहरबान हैं. गरीबों की हर जरूरत का खयाल रखा जा रहा है. ये सेठ लोग कितने धर्मात्मा, कितने दयालु और कितने परोपकारी हो गए हैं? तभी तो सारी व्यवस्था गरीब केंद्रित हो रही है. गरीबी का शेयर सूचकांक निरंतर उछाल मार रहा है.

राष्ट्र की राजधानी दिल्ली समेत झारखंड, जम्मूकश्मीर, बिहार, उत्तर प्रदेश में सत्ता के लिए जय गरीबदेवा की गूंज से सारा वातावरण गरीबमय हो गया है. सारे भक्तगणों को पार्टी के मुखिया ने फरमान जारी कर दिया है, ‘अरे मूर्खो, उठो, गरीबों की चरणवंदना का यही उपयुक्त समय है. इस कलियुग में गरीबों की भक्ति ही सारी भक्तियों में श्रेष्ठ है. गरीब नाम के सुमिरन से जनमजनम के पाप धुल जाते हैं. इस राजनीति के महासागर से यदि पार उतरना चाहते हो तो गरीब को गाय समझ कर उस की पूंछ पकड़ लो, वैतरणी पार हो जाओगे. गरीबों की स्तुति का सुफल तुम्हें चुनाव में अवश्य मिलेगा.’

क्या तुम्हें नहीं पता कि गरीब की झोंपड़ी में तथाकथित ईश्वर का वास होता है. रे अज्ञानियो, फिर तुम किस गफलत में सो रहे हो? देखो, जो सच्चे मन से गरीबों की आराधना करता है तो दरिद्रनारायण उस की भक्ति से प्रसन्न हो कर उस को ‘मंत्रीभव’ का वरदान दे देते हैं. फिर तो उस की जनमजनम की कालिख धुल जाती है. उस की गरीबी हमेशाहमेशा के लिए दूर हो जाती है. गरीबों पर मंडराते आसन्न संकट के मद्देनजर हम ने एक गरीब से पूछा, ‘‘बोलो गरीबजी, अब किधर जाओगे? भारत में तो अब तुम्हारा ठिकाना लगने का नहीं. हमारी जानकारी के मुताबिक, साल 2020 तक गरीब और गरीबी का नामोनिशान मिट जाएगा. इस तरह तुम्हारी हंसतीखेलती दुनिया चंद दिनों की ही मेहमान है.’’

इस पर गरीब ने सख्ती से कहा, ‘‘बाबूजी, अपनी जाति को कोई खतरा नहीं. गरीब तो इस धरती पर सदा से थे, हैं और आगे भी रहेंगे. महंगाई की मार से और भ्रष्टाचार के प्रहार से गरीबों की संख्या में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी हो रही है. ऊपर से इनकम टैक्स का हौवा अच्छेअच्छों को खुद को गरीब मानने पर मजबूर कर देता है.’’ उस गरीब के मुताबिक, ‘‘अब तो गरीबों की नित नई पौध तैयार हो रही है. गरीबी में इतनी भिन्नता पहले कभी नहीं देखी गई. आज गरीबों की बहुत सारी वैरायटीज हमारे देश में मौजूद हैं. पहले गरीब उसे समझा जाता था जिस के पास रोटी, कपड़ा और मकान का संकट होता था. लेकिन अब यह परिभाषा बड़ी अस्पष्ट नजर आती है. जब हम अपने सामने स्क्रीन टच मोबाइल मार्का गरीबों को देखते हैं, क्योंकि उन के पास मोबाइल तो होता है लेकिन बिलकुल सादा. गरीबी में स्मार्टफोन खरीदना मुश्किल होता है.’’

आज कपड़े देख कर तो गरीब व अमीर की पहचान एकदम असंभव है. यहां कार वाले गरीब, लैपटौप वाले गरीब, कोठी वाले गरीब आदि श्रेणियों के गरीब पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं. और कौन कहे कि जब करोड़ों के स्वामी चुनाव में अपना पर्चा भरने जाते हैं तो संपत्ति का ऐसा विवरण देते हैं कि देख कर हमें लगता है कि उन से तो हम ही अच्छे हैं. मौजूदा हालात को देख कर हम आश्वस्त हो सकते हैं कि ये दोनों, गरीब और गरीबी,? 20 साल क्या, 200 साल में भी भारत से नहीं जाने वाले

सब से बड़ा सुख: भाग 1

जब रीतेश ने बंबई में अपना तबादला होने का समाचार अल्पना को सुनाया, वे अनमनी सी हो उठीं. ऐसा नहीं कि तबादला कोई पहली बार हुआ हो. पति के 20 वर्ष के कार्यकाल में न जाने कितनी बार उन्होंने सामान बांधा था, नई गृहस्थी जमाई थी, दरवाजों के परदे खिड़की पर छोटे कर के टांगे थे और खिड़कियों के परदे जोड़ कर दरवाजों पर.

अब तो यह सब करने की भी आवश्यकता नहीं थी. रीतेश मुख्य निदेशक थे अपनी कंपनी के. सभी सुखसुविधाएं मुहैया कराना अब कंपनी के जिम्मे था. फिर तो कोई खास परेशानी ही नहीं थी. बस एक प्रकार का डर था जिस ने उन के मनमस्तिष्क को बुरी तरह घेर रखा था, वह था बेटे राजेश और वधू नेहा के साथ रहने का.

वैसे अपने बच्चों के साथ रहने की परिकल्पना अपनेआप में कितनी सुखदायक है, विशेषकर उन मातापिता के लिए जिन्होंने अपने जीवन का हर पल अपने बच्चों और परिवार के प्रति समर्पित किया हो. लेकिन नई दुनिया के नए अनुभवों ने उन्हें चिंताग्रस्त कर दिया था. आज के भौतिकवादी युग में उन के भावुक हृदय ने एक बात महसूस की थी कि रिश्तों की खुशबूभरी परंपरा लगभग समाप्त हो गई है.

दो ही बच्चे थे उन के. बेटी क्षितिजा, जिस के पति डाक्टर हैं और बेटा राजेश, जो एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंजीनियर है. कितना संघर्ष और परिश्रम किया था उन्होंने उसे पढ़ानेलिखाने और सुसंस्कृत बनाने में. सुबह 5 बजे से ले कर रात 11 बजे तक का मशीनी जीवन बच्चों के टिफिन तैयार करने, स्कूल की पोशाक पर इस्तिरी करने, सुबह बस स्टौप ले जाने और दोपहर बस स्टौप से वापस लिवा लाने में वक्त कब और कैसे सरक गया, कुछ पता ही न चला.

कभीकभी उन का मलिन मुख देख कर रीतेश उन्हें समझाते, ‘‘दो पल चैन से लेट जाया करो, कुछ देर सुस्ताने से थकावट कम हो जाती है.’’ पर वह समय भी वे बच्चों के बस्ते टटोलने और गृहकार्य देखने में बितातीं. फिर शाम को दूध के गिलास के साथ मधुर मुसकान बिखेर कर अपना पूरा ममत्व उन पर न्योछावर कर देतीं.

बचपन बीता. बच्चों ने कालेज में दाखिला लिया तो उन का शारीरिक श्रम भी कम हो गया. बच्चे अपनेआप पढ़ते थे, यानी आत्मनिर्भर हो गए थे. उधर रीतेश पदोन्नति के साथसाथ अपने कार्यक्षेत्र में व्यस्त होते चले गए थे. अब उन्हें खालीपन सा महसूस होता.

समय काटना जब मुश्किल हो गया तो उन्होंने बंगले में फल, तरकारी की क्यारियां बना ली थीं. पत्रिकाओं में लिखना शुरू कर दिया था. लेकिन एक आसरा तो था कि दिनभर एक सूनापन रात को खाने की मेज पर समाप्त हो जाएगा. सभी दिनभर के अपनेअपने अनुभव सुनाते, कुछ समय टीवी देखते.

राजेश शुरू से अल्पभाषी था, पर बिटिया क्षितिजा हवा के झोंके की तरह चंचल. कितनी बड़ी हो गई पर चुलबुलापन नहीं गया. कभी उस की नोंकझोंक से राजेश परेशान हो जाता तो चिढ़ कर कहता ‘मां,मेहरबानी कर के अपनी लाड़ली से कहो कि चुप हो जाए.’

तब वह उसे झिड़क देतीं, ‘दो दिन की मेहमान है यह. कल को ससुराल चली गई तो मुंह देखने को तरस जाओगे.’

‘मां, कब से सुन रहा हूं दो दिन. ये दो दिन कब खत्म होंगे?’ और क्षितिजा रूठ कर अपने कमरे में चली जाती. हारमनुहार, रूठमनौअल में कब वे सुनहरे दिन बीत गए, पता ही नहीं चला.

अब तो दोनों बंबई में अपनीअपनी गृहस्थी में सुखी हैं, राजेश के पास नन्हा मृदुल है और क्षितिजा के पास नन्ही गुडि़या. रह गई हैं वे अकेली, नितांत अकेली. इतना बड़ा घर काटता है उन्हें. पूरी दोपहरी करवटें बदलने में बीत जाती है. काम कुछ भी नहीं है, न खानेपकाने का, न सफाई का. कभीकभी तो ऐसा लगता है कि रसोई में जूसर, टोस्टर का ही साम्राज्य हो गया है.

वह कितनी बार रोती थीं बच्चों को याद कर के. कुछ भी बच्चों की पसंद का पकातीं तो खुद कहां खा पाती थीं. निवाला हलक में अटक जाता था. रीतेश को देखतीं, कभी भी आंखें नम नहीं होती थीं उन की, अल्पना की तरह. क्या बच्चों की याद इन्हें नहीं सताती होगी? मां और पिता की सोच में इतना फर्क क्यों होता है? क्या मां की भावुकता उसे अधिक चिंताएं बख्शती है? कभी उन का मन रखने के लिए इतना जरूर कहते थे वे, ‘कुछ दिन घूम आओ बच्चों के पास या उन्हें ही कुछ दिनों के लिए बुला लो यहां, मन लग जाएगा तुम्हारा.’

वे सोचतीं, वह बात तो नहीं बन पाएगी न जो हमेशा साथ रहने में होती और अब समय आया है साथ रहने का तो डर कैसा? उन के साथ कुछ घटा हो, ऐसा भी तो नहीं है. खुद ही तो अपनी पसंद की नेहा को अपनी बहू बनाया था उन्होंने. वैसे तो राजेशक्षितिजा को पूरी छूट दी थी जीवनसाथी का चयन करने की क्योंकि इस युग में जीवनसाथी के बीच ऐसी अदृश्य सी रेखा खिंची हुई पाती थीं तो मन कांप सा जाता था.

अब उन का समय तो रहा नहीं  जब ‘विवाह’ शब्द से जुड़ी भावनाओं का अर्थ होता था मात्र दो व्यक्तियों का नहीं दो कुटुंबों का सम्मिलन. जब अर्पणसमर्पण की सारी प्रतिज्ञाएं इस शब्द में सम्मिलित रहती थीं. एक नहीं दोदो कुलों की मर्यादा का संवहन हर बेटी, हर बहू करती थी. अब तो मियांबीवी का रिश्ता ही कच्ची डोर में बंधा दिखता है. कौन जाने कब अदालत का दरवाजा खटखटा दें.

पर दोनों बच्चों ने उन पर यह दायित्व छोड़ दिया था. काफी कठिन काम था यह. बेटी के लिए उन्होंने डाक्टर निखिल को चुना था. पर राजेश के लिए वधू का चयन काफी मुश्किल था. विदेश में उच्च शिक्षा के लिए गए उन के बेटे को न जाने पत्नी के लिए कैसी उम्मीदें थीं, यह भी तो नहीं जानती थीं वे. अल्पभाषी राजेश कुछ कहता भी तो नहीं था. पर मां होने के नाते इतना तो वे जानती थीं कि उच्च शिक्षित, सुसंस्कृत कन्या ही राजेश की परिणीता बनेगी जो समयअसमय उसे बौद्धिक व आर्थिक रूप से संबल प्रदान कर सके. इसी तलाशबीन के दौरान डा. अमरीश की बेटी नेहा उन्हें पसंद आई थी. दानदहेज तो अच्छा दिया था उन्होंने, पर सब से ज्यादा वे इस बात से भी खुश थीं कि उस ने कई ऐसे कोर्स भी किए थे जिन से घर बैठ कर कुछ आमदनी कर सके.

नेहा को पा कर राजेश के चेहरे पर संतोष की झलक देख वे भी संतुष्ट हुई थीं. भीड़भड़क्के, नातेरिश्तेदारों की भीड़ के नुकीले संवादों, आक्षेपों से उन्होंने बहू को बखूबी बचाया था. लखनऊ वाली ननद तो हमेशा तरकश से जहरीले बाण ही चलाती थीं. बोलीं, ‘‘दहेज तो दिखाओ भाभी, बहू का. हम कोई छीनझपट कर थोड़े ले जाएंगे.’’

#coronavirus: कोरोना के तनाव से किशोरावस्था के बच्चों को बचाये

“कोरोना वायरस” के बढ़ते प्रकोप के चलते स्कूलों में भी छुट्टियां हो गई है. बच्चे अपने घरों में कैद हो गए हैं. ना तो उनको अपने दोस्तों से मिलने दिया जा रहा ना ही वो घर से बाहर निकल कर खेलकूद पा रहे. छोटे बच्चे तो किसी भी तरह से अपने पैरेंट्स की बात मान भी ले रहे पर किशोरावस्था के बच्चे यह बात नही समझ पा रहे ऐसे में बच्चों में अनावश्यक रूप से तनाव फैल रहा.यह हालत गंभीर हो रही है ऐसे में पैरेंट्स को चाहियें की वो बच्चो के साथ समझदारी से पेश याए.साइको थेरेपिस्ट सुप्रीति बाली ने कुछ टिप्स दिए और कहा कि इस तरह से पैरेंट्स अपने किशोरावस्था के बच्चो को “करोना क्राइसेस” में अनावश्यक तनाव से बचा सकते है.

1. बच्चे अपने दोस्तों के साथ खेलने का अवसर नही पा रहे.उनको लगातर घर पर रहना पड़ रहा है. ऐसे में उनके अंदर फैलने वाली निराशा से बचाएं.पैरेंट्स उनकी निराशा को समझे और उनकी भावनाओं सुने बिना कोई निर्णय ना दे.

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2. बच्चो को तनाव से बचने के लिए जरूरी है कि बच्चो की नींद का एक तय समय रखें, समय पर सोने और जागने से बॉडी का सिस्टम ठीक रहता है बच्चो में अनावश्यक तनाव नही बढ़ता है.

3. बच्चो को बाहरी लोगों से बचा कर रखें. जिससे संक्रमित लोगो से उनको बचाया जा सके.

4 . करोना को लेकर अपने डर, तनाव और चिंता बच्चो पर थोपे.

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5 . कोरोना महामारी के बारे में स्पष्ट रूप से उनसे बात करना चाहिए.जानकारी कम होने की वजह से वो अधिक चिंता करते हैं.

6 . माता-पिता और भाई-बहनों के साथ मिलकर तनाव पूर्ण माहौल को आपस मे बांटना चाहिए. दिमाग की शांति के लिए माहौल प्रदान करे.

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7 . अनावश्यक समाचारों और ऐसे दोस्तो से उनको दूर रखें जिंसमे उनको तनाव होने का खतरा हो.

8 . बच्चे के साथ संपर्क में रहें.सोशल मीडिया और वीडियो कॉलिंग पर अपने रिश्तेदारों से जुड़ने के लिए कहें.

9 – एक माता-पिता के रूप में आप बच्चो से निरन्तर जुड़े रहे.उनके अंदर छोटी छोटी स्किल डेवलपमेंट के काम सिखाये.

10 – बच्चों के पुराने फोटो एल्बम देखें “चंपक” बच्चो की रूचिकर पत्रिकाओं की कहानियां उनको पढ़ाये.

 

#coronavirus: कनिका कपूर का दूसरा टेस्ट भी आया पॉजिटिव, चल रही है जांच

बॉलीवुड सिंगर कनिका कपूर के परिवार वालों ने दोबारा टेस्ट करवाने के लिए अनुरोध किया था. जिसके बाद दोबारा कोरोना वायरस टेस्ट में पॉजिटिव पाई गई हैं. कनिका कपूर के परिवार वालों को पहले टेस्ट में संशय था जिस वजह से उन्होंने यह टेस्ट दोबारा करवाया है.

बता दें उनका दूसरा टेस्ट संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट स्कूल ऑफ मेडिकल साइंस में करवाया गया. यहां पर कोविड-19 का शिकार होने की पुष्टि हो चुकी है. हालांकि अभी तक सिंगर के हालात सही है. डॉक्टर्स लगातार इनका जांच कर रहे हैं. वहीं इस खबर के आने के बाद कनिका कपूर कई तरह के विवादों में भी पड़ गई हैं.

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दूसरी तरह उत्तर प्रदेश पुलिस उन सभी लोगों की तलाश कर रही है जो पिछले दिनों कनिका कपूर के संपर्क में आएं थें. इनकी संख्या करीब 160 बताई जा रही है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लंदन से लौटने के बाद कनिका 3 बड़ी पार्टियों का हिस्सा बनी थीं.

 

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लोग कनिका पर आरोप लगा रहे है कि बढ़ते संक्रमण के बावजूद भी कनिका खुद को आइसोलेट नहीं रख पाई थीं. जिस वजह से लोगों को शक है कि यह वायरस औऱ भी लोगों में फैल चुका है.

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बता दें की यह बड़ी पार्टी 5 स्टार होटल में रखी गई थी. जहां राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे अपने बेटे के साथ मौजूद थीं. साथ ही और भी कई बड़ी हस्तियां उस पार्टी का हिस्सा बनी थी. जिनमें से कुछ लोगों को आइसोलेशन में रखा गया है.

 

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कनिका कपूर सोशल मीडिया पर इस खबर के बाद लगातार सुर्खियों में आई छाई हुई है. कई उल्टे सीधे कमेंट का सामना करना पड़ रहा है. यूजर्स के निशाने पर कनिका लगातार बनी हुई है. कुछ लोग इन्हें पढ़ें-लिखे गंवार भी कह रहे हैं.

#coronavirus: Lock Down के दौरान दिहाड़ी मजदूरों तक कैसे पहुंचेगा पैसा

एक तरफ योगी सरकार दिहाड़ी मजदूरों को पैसा देने की बात कर रही दूसरी तरफ बैंक कह रहे है कि करोना वायरस से बचने के नकद नोट को जगह पर इंटरनेट बैंकिंग का प्रयोग करे.दिहाड़ी मजदूर ही नही आर्थिक संकट की तरफ एक बड़ी आबादी बढ़ रही है.

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कॅरोना संकट के समय दिहाड़ी मजदूरों को आर्थिक सरकारी सहायता देने के लिए 35 लाख लोगों के बैंक खातों में एक- एक हजार रुपये भेजने का फैसला किया है.

देंखने में यह योजना बहुत वाहवाही लूटने वाली है. हर तरफ योगी सरकार की तारीफ हो रही है.अगर हकीकत देखेगे तो यह फैसला केवल वाहवाही लूटने वाला ही है.

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सबसे प्रमुख बात की असल मे जिन दिहाड़ी मजदूरों को यह सहायता दी गई उनके नाम रोजगार विभाग में लिस्ट ही नही है. रोजगार विभाग की लिस्ट में वो नाम लिखे है जिनको 2005 में मुलायम सरकार के समय 5 सौ रुपये का बेरोजगारी भत्ता दिया गया था.इसके बाद 2012 में अखिलेश सरकार के समय भी बड़ी तादाद में लोगो ने बेरोजगारी भत्ता लेने के लिए रोजगार कार्यालय में लंबी लंबी लाइन लगा कर अपने नाम लिखाये थे.

2012 के बाद सरकार या फिर खुद लोगो ने अपने नाम रोजगार कार्यालय में नही लिखाये क्योकि अखिलेश सरकार और बाद में योगी सरकार ने किसी को कोई बेरोजगार भत्ता नही दिया.

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2012 से 2020 के 8 सालों के दौरान बेरोजगार युवाओं की संख्या बढ़ी है. इन बेरोजगार युवाओं और दिहाड़ी मजदूरों में बहुत अंतर है.ऐसे में दिहाड़ी मजदूरों की जगह रोजगार कार्यालय में दर्ज लोगो को ही यह सहायता मिल पाएगी.

दिहाड़ी मजदूरों के जब सही नाम ही सरकार के पास नही है तो वो करोना से उपजी मंदी के दौर में जरूरतमंदों की मदद कैसे कर पायेगी ?

दूसरा बड़ा सवाल यह है कि बैंकों ने करोना संकट से निपटने के लिए बैंकों ने इंटरनेट बैंकिंग को बढ़ावा देने का काम शुरू किया है. बैंकों का मानना है कि नोट के जरिये करोना के वायरस लोगो तक पहुच सकते हैं.जिससे बैंक के कर्मचारियों और ग्रहको को करोना वायरस का खतरा बढ़ सकता है.

दिहाड़ी मजदूरों और बेरोजगार युवकों के पास इंटरनेट बैंकिंग की व्यवस्था नही है.बैंक जा कर वो पैसा निकाल नही सकता. ऐसे में संकट के इस दौर में उनकी मदद कैसे हो सकती है. यह लोग बड़ी संख्या में पैसा लेने बैंक जायेगे तो वँहा पुलिस के डंडे खाने पड़ेंगे.

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सरकार ने बन्द की आड़ में बहुत सारे बिजनेस को बंद कर दिया है.बन्द में व्यपार नही चलेगे तो बिजनेस मैन अपने कर्मचारियों को वेतन कँहा से देगी ? सरकार जिनको पैसा देने की बात कर रही है उनको भी पैसा नही पहुचा पा रही है. यही नही इस संकट के दौर में बैंकों के ब्याज का मीटर पहले की तरह चलता रहेगा उसको रोकने का कोई फैसला नही किया गया है. ऐसे में जिन लोगो ने बैंकों से लोन लिया है वो कैसे ब्याज दे सकेंगे. सरकार ने इसपर कोई विचार नही किया है.

#coronavirus: कोरोना कर्फ्यू और बॉलीवुड

लेखक-शामी एम् इरफ़ान

बॉलीवुड यानी मुम्बई चकाचौंध, चमक-दमक, चहल-पहल की मायावी नगरी ही नहीं, यह मुम्बई महाराष्ट्र की राजधानी भी है. यहाँ हर किस्म का कारोबार होता है और हर जाति-धर्म के लोग रहते हैं.कहते हैं कि, मुम्बई कभी सोती नहीं और आज आलम यह है कि सड़कें सुनसान हैं और लोग-बाग अपने घरों के अंदर शनिवार की रात से ही बंद हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर पूरे देश के शहरों में रविवार सुबह 7 बजे से जनता कर्फ्यू शुरू हो गया था और फिर सड़कों पर सन्नाटा पसरा गया। महाराष्ट्र की राजधानी महानगर मुम्बई में आमतौर पर व्यस्त रहने वाले चर्चगेट से विरार और वी टी यानी छत्रपति शिवाजी टर्मिनल से कर्जत-कसारा तक के जैसे इलाकों में दुकानें पूरी तरह बंद रहीं और सड़कों पर सिवाय पुलिस बलों के वाहनों के अन्य वाहन नजर नहीं आए.अत्यावश्यक कार्य से निकलने वाले इक्का-दुक्का लोगों को पुलिसकर्मी समझाते नजर आए कि वे घरों में ही बंद रहें और बाहर ना निकलें.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उधव ठाकरे का आदेश

रविवार को ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उधव ठाकरे का आदेश आ गया कि, अगले दिन भी शाम छह बजे तक कर्फ्यू जारी रहेगा और दूसरे दिन भी लोग अपने घरों में ही बंद रहे.सड़कों पर सन्नाटा पसरा रह.दुकानें और बाजार पूरी तरह बंद रहीं. सिनेमाघर, कैफे, रेस्तरां और बार जैसी जगहों को बंद करने के आदेश सरकार ने पहले ही दे दिए थे. लोकल बसें और मुम्बई की धड़कन कही जाने वाली लोकल ट्रेनों को भी पब्लिक के लिये बंद कर दिया गया है. सोमवार की सुबह ठहरा हुआ मुम्बई का जनजीवन रोजमर्रा की तरह अंगड़ाई लेना शुरू ही किया था कि, हर जगह तैनात पुलिस कर्मियों ने लोगों को समझाते नजर आये कि कोरोना वायरस से निपटना है तो एहतियात ही सबसे बड़ी सुरक्षा है और बाहर निकल चुके लोगों को वापस घरों में भेज दिया गया.कुछ जगहों पर लोगों की भीड़ को हटाने के लिए पुलिस ने लाठी भी चलाई है, ऐसी भी खबर मिली है.मुम्बई की धड़कन कही जाने वाली लोकल ट्रेन और बीईएसटी की बसें और हालिया शुरू की गई मिनी ए सी बसें सोमवार को सड़कों पर खाली दौड़ रही थीं. चिकित्सा विभाग से जुड़े और नगर महापालिका के कर्मचारी ही बस या ट्रेन का सफर किये. पुलिस और स्वास्थ्य विभाग (पता नहीं चिकित्सक हैं या चपरासी) के कर्मियों द्वारा कई जगहों पर नाकेबंदी जैसा करके जांच पड़ताल भी करते देखा गया है। रेलवे स्टेशनों पर कड़ी जांच के उपरांत हाथ सनीटाइजर से साफ करने पर रेलवे टिकट विंडो और अंदर प्लेटफार्म तक जाने की अनुमति है. यह नजारा सोमवार का है। आगामी दिनों में क्या होगा, कुछ भी कहना मुश्किल है.

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बहरहाल, कामकाज पहले से ही ठप्प है.आदेशानुसार सरकारी कार्यालयों में उपस्थित पांच प्रतिशत कर दी गई है. शटडाउन के चलते हर किसी का काम बंद है.धारा 144 भी पहले से ही 31 मार्च तक लागू है.रोजाना कमाने- खाने वालों का अभी से बुरा हाल है.कुछ रोज की दिहाड़ी करने वालों ने मुम्बई से बाहर अपने गांव जाने का इरादा लिये वी टी और कुर्ला टर्मिनल से मायूस लौटते भी मिले और बताया ‘सभी ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं, हम चाह कर भी अपने गांव नहीं जा सकते.’ सरकारी कार्यालयों में सवेतन छुट्टी दी गई है. सभी कल-कारखानों में ऐसा नहीं है.जो रोजाना अपना स्वतंत्र रोजगार करते हैं, अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं.अनुमानतः ऐसे लोग मुम्बई में तीस-चालीस प्रतिशत हैं. देखा जाये तो मुम्बई की आधी से ज्यादा आबादी किराये के घरों में रहती है.उनके समक्ष खाने-पीने के साथ किराये भरने की भी समस्या आने वाली है.

रोजाना कमाने- खाने वालों का अभी से बुरा हाल है

अब सवाल यह है कि, देश की ऐसी बहुसंख्यक जनता, जो “घर से काम” नहीं कर सकती और अपनी रोज की कमाई पर निर्भर है, के सामने आने वाले संकट को कम करने के लिए सरकार क्या कर रही है? कोरोना वायरस से पहले ही वे मौजूदा आर्थिक मंदी का खामियाजा भुगत रहे हैं.शटडाउन के कारण ऐसे गरीबों और हाशिए पर रहने वालों को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा हैै.बॉलीवुड इसी देेेश-समाज का हिस्सा है और हर संकट की घड़ी में सहयोग दिया है.सिनेमाघरों के साथ शूटिंग, रिकार्डिंग और डबिंग स्टूडियोज और इनसे जुड़े बहुत से कामकाज बंद हो चुके हैं. चालीस-पचास हजार मजदूरों की बात करने वाले स्वयंभू फिल्म जगत के तथाकथित नेेताओं को भी नहीं पता कि, गरीब मजदूरों की वास्तविक संख्या क्या है? ये यूनियन वाले नेतागीरी की ओट में दादागीरी ही तो करते आये हैं. इनके सदस्य हाथी के दांत के समान हैंं. बीस-पचीस संस्थानों में अगर मानलेें सिन्टा कलाकारों की मदद करने के लिये आगे आये तो, अपने सदस्यों के अलावा किसी वनडे टूडे आर्टिस्ट की मदद नहीं करेंगे. क्योंकि बहुत से स्ट्रगलर कलाकार उनके मेम्बर ही नहीं हैं. बॉलीवुड में कोरोना की सबसे बड़ी मार ऐसे लोगों पर पड़ रही है। यह रोज मजदूरी करके अपना पेट भरते हैं. कास्टिंग डायरेक्टर की ऑडिशन ऑफिस के बाहर खड़े होते हैं.उन लोगों के लिए भोजन का इंतजाम कहां से होगा?

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कुछ फिल्मकारों ने अपने स्टाफ को सवेतन छुट्टी दी है और कुछ दरिया दिल फिल्मकार अपने सम्पर्क में कार्यरत लोगों का ख्याल भी रख रहे हैं.लेकिन उन गरीबों और ज़रूरतमंदों का ख्याल कौन करेगा, जिनको बड़े लोगों ने काम नहीं दिया और उनके ऑफिस में घुसने या उनसे मिलने नहीं दिया गया.अमीर व्यक्ति के पास तो बहुत साधन है. वह अपने घर में हर तरह का सामान इकट्ठा कर लेगा. परंतु उस गरीब का क्या होगा, जो रोज कमाता है और रोज खाता है. उसके बीवी बच्चे कहां जाएंगे उसको रोटी कैसे मिलेगी, इसके बारे में किसी ने सोचा है क्या? याद रहे, देश के सारे गरीब हर सुरक्षा घेरे का पालन करते हैं, परंतु अमीरों पर अंकुश लगाना शायद किसी सरकार के बस की बात नहीं. तभी तो, कनिका कपूर लंदन से आती है और सिस्टम सो रहा होता है.फिर वह मजे से पार्टियां करती है. जिसमें वसुंधरा राजे और दुष्यंत सिंह, उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जैसे पावरफुल लोग शिरकत करते हैं. दूसरी तरफ प्रधानमंत्री जी होली मिलन भी स्थगित कर रहे हैं. एक तरफ तो धारा 144 लगा रखी है.हाथ धोने के प्रोग्राम चल रहे हैं.दूसरी तरफ स्वास्थ्य मंत्री ही पार्टी में मस्त है.आईएएस अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों का पार्टी में शामिल होना शर्मनाक है.

स्वास्थ्य मंत्री ही पार्टी में मस्त है.

हालांकि, बॉलीवुड के लोग कानून-कायदा का बखूबी पालन करते हैं.भजन सम्राट अनूप जलोटा एक मिसाल हैं. उनको विदेश से लौटने पर कोरोना जांच के लिए दो दिन आइसोलेशन में रखा गया और उन्होंने पूरा सहयोग दिया.ना कोई हाय-हाय ना कोई किट- किट.इस तरह से तमाम लोगों से बॉलीवुड भरा हुआ है.और भरा हुआ है गरीब स्टारगलर्स कलाकारों व मजदूरों से. जिनके पास रहने के लिए छत नहीं है और खाने के लिए अनाज नहीं है. इसमें से कई लोग किसी दरगाह के पास, मंदिर और गुरुद्वारों के पास कतार लगाये अक्सर मिले हैं.जो भंडारा, लंगर खाकर अपनी भूख शांत करते हैं.सरकारी आदेश से मंदिर, मस्जिद व गुरुद्वारों को बंद कर दिया गया है और लोगों को इस तरह से मिलने वाला भोजन मिलना बंद हो गया है. मुम्बई में कुछ व्यक्तियों ने ऐसी पहल की है कि गरीबों को खाना मिल जाये लेकिन वह ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है और उसमें भी पब्लिसिटी पाने के लिए किया जा रहा कार्य की बू आती है.

महामारी कोरोना वायरस ने अब देश की रेल और हवाई सेवा दोनों पर ब्रेक लगा दिया है

भारतीय रेलवे ने 31 मार्च तक सभी यात्री ट्रेनों का परिचालन बंद करने का फैसला किया है। सोमवार को रेलवे ने अधिकारिकतौर पर बताया है कि, सभी लंबी दूरी की ट्रेनें, एक्सप्रेस और इंटरसिटी ट्रेन (प्रीमियम ट्रेन भी शामिल) का परिचालन 31 मार्च की रात 12 बजे तक बंद रहेगा। रेलवे की ओर से जारी सूचना में बताया गया है कि, रद्द ट्रेनों की सूची में कोलकाता मेट्रो, कोंकण रेलवे, उपनगरीय ट्रेनें नहीं चलेंगी। कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे को देखते हुए घरेलू उड़ानों पर भी रोक लगा दी गई है.मंगलवार रात 12 बजे से उड़ानों पर रोक लगाई है.हालांकि, कार्गो फ्लाइट पर पाबंदी लागू नहीं होगी. एयरलाइंस को मंगलवार रात 12 बजे से पहले अपने गंतव्य पर उतरने के लिए योजना बनानी होगी. बता दें कि देश में हर रोज करीब 6500 घरेलू उड़ानें होती हैं और हर साल 144.17 मिलियन यात्री सफर करते हैं. देश में कोरोना वायरस का कहर से अब तक 9 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं, देश में कोरोना के मरीजों की संख्या 434 बतायी जा रही है. अकेले 24 घंटे में 50 से अधिक नए मरीज आए हैं और 4 मौतें हुई हैं.

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शायद भारत दुनिया का पहला देश है, जहां जज राजनीति कर रहे हैं.डॉक्टर कॉमेडी कर रहे हैं. पत्रकार दलाली कर रहे हैं और देश का चौकीदार बोल रहा है थाली बजा. किसके जन्म के उपलक्ष्य में? अपने देश में तो, बच्चे के जन्म पर ताली और थाली बजाने की परंपरा है.मोदी जी अपने एक मित्र के स्वागत के लिए 120 करोड रुपए और देश की गरीब जनता के लिए ताली और थाली? वाह क्या बात है. एक आह्वान पर देशवासियों ने मोदी जी की बात मानी. लेकिन मध्यप्रदेश में सरकार गिराने के उपलक्ष में हजारों भाजपाई लोगों की भीड़ इकठ्ठा होना क्या आदेश का उलंघन नहीं है? अब लॉक डाउन में हाशिये पर रहने वाले गरीब लोग रोटी का इंतजाम कैैसे करें? कुछ इस तरफ भी नजरें इनायत की जाये. कहीं ऐसा ना हो कि, कोरोना के कहर से ज्यादा भूख से मरने वालों की संख्या दर्ज हो जाये. क्योंकि, मौत ना जाति, ना धर्म, ना क्षेत्र, ना उम्र, ना राज्य, ना इलाका और ना लिंग और ना सूरत देखकर आती है. जिस दिन सिनेमाघरों में ताले लगे, उसी दिन से बॉलीवुड के गरीब हाशिये पर जीने वालों के बुरे दिन शुरू हो गये थे.

31 मार्च तक ट्रेड विशेषज्ञों की मानें तो, फिल्म जगत को करोड़ों हजार का नुकसान होगा

अल्लाह खैर करे! दिल्ली, राजस्थान, बिहार, पंजाब, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस की वजह से 31 मार्च तक लॉकडाउन है. उत्तर प्रदेश के 16 जिलों को विशेष रूप से लॉकडाउन किया गया है. महाराष्ट्र के स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक मात्र चौबीस घंटे में चौदह नये मरीज पाये गये और कोरोना से पीड़ितों की कुल संख्या 89 हो गई है. इस लिये महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे ने नागरिकों के हित को ध्यान में रखते हुए धारा 144 और कर्फ्यू को 31 मार्च तक जारी रखने का निर्णय लिया है. जब आम जनजीवन को जटिल मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है तो, बॉलीवुड वाले कौन से खास हैं। स्थिति- परिस्थिति से सबको दो-चार होना ही पड़ेगा.

#coronavirus: डॉक्टर की सुनो ना

लेखक- कुणाल पांडे

भारतीय अस्तापतालों में संक्रमणे ग्रसित  मरीजों के लिए, जिला अस्पताल में अलग से वार्ड बनाए गए है. जिसमें उन मरीजों को रखा जा रहा है.जो महामारी सेजूझ रहे हैं जो विदेशों से लोटकर आएं हैं., कल मुरादाबाद में भी ऐसे ही चार रिपोर्ट आएं हैं. एक मरीज का रिपोर्ट पॉजिटीव आने से तनाव बढ़ गया है. हॉस्पिटल के हाते में ही डॉक्टर्स क्वाटर है.

ग़नीमत रही कि तुरंत मलेरिया की दवा का छिड़काव करने वाली गाड़ी से, छिड़काव किया गया कि तुरंत राहत मिले. ओ पी डी को भी बंद कर दिया गया है.यहाँ के डॉक्काटर्स का कहना है कि यहाँ सबसे ज्यादा  भीड़, ओ पी डी में ही रहती है.एक मरीज़ के साथ, चार संग में टहलते रहते हैं. नेतागिरी और उनके चमचे के रेल मची रहती है. जो मरीज वाड में भरती है उसे तो सावधानी बरतनी चाहिए. मगर ओपीडी में बिना मतलब के लोग आकर वायरस फैलाए जा रहे हैं. ऐसे में इससे कोई बचेगा ही नहीं.यदि उन्हें समझाएं तो वह समझने के लिए तैयार नहीं है.

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झगड़ा करने लगते है जचा बचा वाडर मे भी यही हाल है. जिनका बचा पेट में पॉटी कर दे या मूवमेट कम हो जाए. ऐसे में उनका ऑप्रेशन करना पड़ता है.सामान प्रसव तो यहां हमेशा चलते रहते हैं. यहां सीमित संसाधन जिस वजह से डॉक्टर्स भी परेशान रहते हैं. हए ,साल भर ,दिन रात की अपनी सेवाएँ प्रदान करते है.उनकी छुिटयाँ के सिलसिले है. वे अपने मरीजों को नजर अंदाज करते हैं.

नज़रंदाज़ कर के वल मास और सेिनटाइज़र के भरोसे, रोज़ सैकड़ो लोगो के समकर मेआकर ,,अपनेजीवन को दावँ पे लगा कर, देश सेवा कर रहेहै।ऐसी पिरिसयो में भी कुछ साथी या देश दोही नक़ली सेैनेटाइज़र बना रहे है। सभी डाक्टर्स का कहना है कि बिना  किसी मक़सद से घर से बाहर न निकलें .अस्पतालों की भीड़ का हिंसा न बने.

हेल्प लाइन नंबर जारी किए गए है. उनसे अपनी समस्या कहे ,घर में रहे और हमें अस्पतालों को सुरक्षित रखने  में मदद करें. डॉक्टर्स सूयरकांत जी ( के जी एम सी )अपने जनिहत मेजारी विडीयो  में लोगों को संदेश दे रहेहैि कि छः साल से छोटे बच्चे, गभरवती मिहला,साठसाल से अधिक उम के लोगों का इमून सिस्कटम कमज़ोर होता है इसके अतिरिक्त.

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डायबिटीज ,उच रक्तचाप के मरीज़ो में, सामान विककी तुलना में रोगपितरोधक कमताकम होती है.ऐसे में अतिरिक्त सावधानी व देखभाल की ज़रुरत है.यदि हम भारतीयों की रोगपितरोधक कमता का मुक़ाबला अन देशों से करते हैतो हम यह कह सकते है कि हमारे देशवासी अभी भी धूल,धुआँ और दूषित वातावरण रहने के लिए  है इसिलिए किसी भी तरह के वायरस और बैक्टैरिया से लड़ने के लिए ,हमारा शरीर बेहतर ढंग से काम करता हैजबिक प्रदूषण मुक्त  देशों के निवासियों  में यह कमता कम हो गयी है.

डॉकर संजीव चौबेजी, जो शंघाई (चीन) मेकायररत हैअपनेएक, टी., वी चैनल को दिए गये में जानकारी देते हुए कह रहे है कि चाइना में बीमारी, अपनी पाँचवी स्थिति  में पहँच गयी है.नए रीज़ की संखा घटकर तीन चार में पहँच गयी है आठ एिपल से देश अधिकारिक से अपने पुराने सरप में लौटकर सामाना करेगा.

भारत के विषय में उनका कहना है कि अभी से  अपने हाथ को रगड़कर धूल लें. इससे आप अपनी सुरक्षा कर सकेंगे. ज्यादा से ज्यादा गर्म पानी का सेवन करें.

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