बात घूमफिर कर फिर गरीबी पर आ गई है. जैसे बारह बरस में घूरे के दिन भी बहुरते हैं, वैसे ही गरीब और गरीबी के दिन बहुरे हैं. आज वे सभी पार्टियों के चहेते बन गए हैं, सत्ताधारी पार्टियों में भी और सत्ता से बेदखल कर दी गई पार्टियों के भी. गरीब आजकल सुर्खियों में हैं. उन की चहुंओर जयजयकार हो रही है. गरीब अपनी गरीबी पर इतराने लगे हैं. देश में गरीबी हटाओ नारे पर राजनीतिक पार्टियों का आधिपत्य सा रहा है. इन्हें गरीब जब भी याद आते हैं तो बहुत याद आते हैं, क्योंकि ये पार्टियां जानती हैं कि गरीबों की स्तुति करने से पार्टी की खुद की गरीबी अवश्य दूर हो सकती है.

बाजार में जिनजिन चीजों पर कभी अमीरों का एकाधिकार हुआ करता था आजकल वे चीजें गरीबों की प्राथमिकता में शामिल हैं. साबुन, मंजन, डिटरजैंट, क्रीमपाउडर, शैंपू, चाय, केशतेल वगैरह के जितने भी लोकप्रिय ब्रैंड हैं, सब 1-2 रुपए वाले गरीब पैक में उपलब्ध हैं, यहां तक कि सिगरेट जैसी चीज भी 5 रुपए के पैक में उपलब्ध है. अब कोई, गरीबी के कारण, उन चीजों से वंचित नहीं रह सकता जिन पर कभी अमीरों का कब्जा माना जाता था. सारे उद्यमी गरीबों पर मेहरबान हैं. गरीबों की हर जरूरत का खयाल रखा जा रहा है. ये सेठ लोग कितने धर्मात्मा, कितने दयालु और कितने परोपकारी हो गए हैं? तभी तो सारी व्यवस्था गरीब केंद्रित हो रही है. गरीबी का शेयर सूचकांक निरंतर उछाल मार रहा है.

राष्ट्र की राजधानी दिल्ली समेत झारखंड, जम्मूकश्मीर, बिहार, उत्तर प्रदेश में सत्ता के लिए जय गरीबदेवा की गूंज से सारा वातावरण गरीबमय हो गया है. सारे भक्तगणों को पार्टी के मुखिया ने फरमान जारी कर दिया है, ‘अरे मूर्खो, उठो, गरीबों की चरणवंदना का यही उपयुक्त समय है. इस कलियुग में गरीबों की भक्ति ही सारी भक्तियों में श्रेष्ठ है. गरीब नाम के सुमिरन से जनमजनम के पाप धुल जाते हैं. इस राजनीति के महासागर से यदि पार उतरना चाहते हो तो गरीब को गाय समझ कर उस की पूंछ पकड़ लो, वैतरणी पार हो जाओगे. गरीबों की स्तुति का सुफल तुम्हें चुनाव में अवश्य मिलेगा.’

क्या तुम्हें नहीं पता कि गरीब की झोंपड़ी में तथाकथित ईश्वर का वास होता है. रे अज्ञानियो, फिर तुम किस गफलत में सो रहे हो? देखो, जो सच्चे मन से गरीबों की आराधना करता है तो दरिद्रनारायण उस की भक्ति से प्रसन्न हो कर उस को ‘मंत्रीभव’ का वरदान दे देते हैं. फिर तो उस की जनमजनम की कालिख धुल जाती है. उस की गरीबी हमेशाहमेशा के लिए दूर हो जाती है. गरीबों पर मंडराते आसन्न संकट के मद्देनजर हम ने एक गरीब से पूछा, ‘‘बोलो गरीबजी, अब किधर जाओगे? भारत में तो अब तुम्हारा ठिकाना लगने का नहीं. हमारी जानकारी के मुताबिक, साल 2020 तक गरीब और गरीबी का नामोनिशान मिट जाएगा. इस तरह तुम्हारी हंसतीखेलती दुनिया चंद दिनों की ही मेहमान है.’’

इस पर गरीब ने सख्ती से कहा, ‘‘बाबूजी, अपनी जाति को कोई खतरा नहीं. गरीब तो इस धरती पर सदा से थे, हैं और आगे भी रहेंगे. महंगाई की मार से और भ्रष्टाचार के प्रहार से गरीबों की संख्या में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी हो रही है. ऊपर से इनकम टैक्स का हौवा अच्छेअच्छों को खुद को गरीब मानने पर मजबूर कर देता है.’’ उस गरीब के मुताबिक, ‘‘अब तो गरीबों की नित नई पौध तैयार हो रही है. गरीबी में इतनी भिन्नता पहले कभी नहीं देखी गई. आज गरीबों की बहुत सारी वैरायटीज हमारे देश में मौजूद हैं. पहले गरीब उसे समझा जाता था जिस के पास रोटी, कपड़ा और मकान का संकट होता था. लेकिन अब यह परिभाषा बड़ी अस्पष्ट नजर आती है. जब हम अपने सामने स्क्रीन टच मोबाइल मार्का गरीबों को देखते हैं, क्योंकि उन के पास मोबाइल तो होता है लेकिन बिलकुल सादा. गरीबी में स्मार्टफोन खरीदना मुश्किल होता है.’’

आज कपड़े देख कर तो गरीब व अमीर की पहचान एकदम असंभव है. यहां कार वाले गरीब, लैपटौप वाले गरीब, कोठी वाले गरीब आदि श्रेणियों के गरीब पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं. और कौन कहे कि जब करोड़ों के स्वामी चुनाव में अपना पर्चा भरने जाते हैं तो संपत्ति का ऐसा विवरण देते हैं कि देख कर हमें लगता है कि उन से तो हम ही अच्छे हैं. मौजूदा हालात को देख कर हम आश्वस्त हो सकते हैं कि ये दोनों, गरीब और गरीबी,? 20 साल क्या, 200 साल में भी भारत से नहीं जाने वाले

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