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#coronavirus: अपने आप को बचाएं, अपने परिवार को बचाएं

  पूरा वसुधा इन दिनों एक नयी महामारी के जाल में उलझा पड़ा है, विश्व के कई देश इस परेशान  से जूझ रहे है, वही कई देश चौकना है.जिस देश ने जीतनी सावधानियां बरती, वह देश इस महामारी से उतना ही बचेगा. सर्वधर्म, सद्भाव और विविधता में एकता का प्रतीक अपना देश भारत कितना चौकन  है, इसका परिचय उसने कल प्रदान कर दिया है. प्रधानमंत्री के आवाहन पर आवाहन पर पूरे देश में सफलतापूर्वक जनता कर्फ्यू लगाया गया.उसके उपरांत कल ही केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को उन 75 जिलों को लॉकडाउन करने को कहा है जिनमें कोरोना से संक्रमण के पॉजिटिव केस आए हैं.

भारत में महाराष्ट्र और राजस्‍थान में सबसे पहले लॉक डाउन किया गया, उसके बाद पंजाब और उत्‍तराखंड में लॉक डाउन करने की घोषणा कर दी गई. उसके उपरांत दिल्‍ली में भी सोमवार सुबह छह बजे से  31 मार्च  के मध्य रात्रि तक  लॉकडाउन का ऐलान कर दिया गया है. यूपी के 15 जिलों में 23 से 25 मार्च तक लॉकडाउन घोषित किया गया है, जिसमें नोएडा, गाजियाबाद, प्रयागराज, कानपुर, सहारनपुर, लखीमपुर, आजमगढ़, वाराणसी, लखनऊ, बरेली, मुरादाबाद बाराबंकी शामिल हैं। बिहार सरकार ने सभी जिलों में लॉक डाउन का फैसला किया है.पटना समेत 118 शहरों को लॉक डाउन कर दिया गया है. जिला मुख्यालय, अनुमंडल, ब्लॉक तक को लॉक डाउन के अंतर्गत लाया गया है. इन सभी जगहों पर 31 मार्च तक लॉक डाउन किया गया है.

 लॉक डाउन क्या है ?

लॉकडाउन एक ऐसा आपातकालीन प्रोटोकॉल है जिसके तहत शहर या प्रदेश में रहने वाले लोगों को क्षेत्र छोड़कर जाने या घर से बाहर निकलने पर पूरी तरह से रोक लगाता है. आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर सभी सेवा पर रोक लगा दी जाती है.  सभी प्राइवेट और कॉन्ट्रेक्ट वाले दफ्तर बंद रहते हैं, सरकारी दफ्तर जो जरूरी श्रेणी में नहीं आते, वो भी बंद रहते हैं.आप अनावश्यक कार्य के लिए सड़कों पर ना निकलें.सीधे शब्दों में लॉकडाउन’ का अर्थ है तालाबंदी. जिस तरह किसी संस्थान या फैक्ट्री को बंद किया जाता है और वहां तालाबंदी हो जाती है उसी तरह लॉक डाउन का अर्थ है कि आप अनावश्यक कार्य के लिए सड़कों पर ना निकलें.अगर आपको लॉकडाउन की वजह से किसी तरह की परेशानी हो तो आप संबंधित पुलिस थाने, जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक अथवा अन्य उच्च अधिकारी को फोन कर सकते हैं.

* सरकार की तरफ से जारी किये गए निर्देश  केंद्र सरकार की तरफ से अब एक निर्देश जारी किया गया है, जिसके तहत अगर कोई लॉकडाउन का पालन नहीं करता है तो उसपर कानूनी एक्शन लिया जा सकता है. लॉकडाउन की स्थिति पर प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीट में लिखा, लॉकडाउन को अभी भी कई लोग गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. कृपया करके अपने आप को बचाएं, अपने परिवार को बचाएं, निर्देशों का गंभीरता से पालन करें। राज्य सरकारों से मेरा अनुरोध है कि वो नियमों और कानूनों का पालन करवाएं.

 

श्रीमती की नजर

जब तक हम अविवाहित थे यह बात हमारी समझ से परे थी कि पत्नियों की नजर अपने पतियों पर कम उन की पौकेट पर अधिक होती है. तब यह सुन कर ऐसा लगता था मानो पत्नी कोई सुलताना डाकू हो जो पति की जेब पर डाका डाल कर दरियादिली से अपने और अपने बच्चों के ऊपर पैसा लुटाती हो. जो भी हो, अविवाहित रहते हुए हम कभी भी इस बात से इत्तेफाक न रख सके कि पत्नी की नजर पति की पौकेट पर होती है. तब तो शादी के खयाल मात्र से ही मन में खुशी का बैंडबाजा बजने लगता था. ‘आह, वो ऐसी होगी, वो वैसी होगी’ यही सोचसोच कर मन में लड्डू फूटते रहते थे.

पत्नी का मतलब हमारी दृष्टि में एक सच्ची जीवनसाथी जो पति का खूब खयाल रखती है उस से अधिक कुछ और नहीं था. पत्नी का पौकेटमार होना हमारे लिए सोचना भी पाप था. वह उम्र ही ऐसी थी. यह सही है कि जब तक नदी में गोता न लगा ले तब तक उस की गहराई की केवल कल्पना की जा सकती है, वास्तविक गहराई नहीं जानी जा सकती. ऊंट को अपनी ऊंचाई का सही आभास तब तक नहीं होता जब तक वह पहाड़ के नीचे से न निकल जाए. हर मर्द शादी से पहले अपनेआप को बड़ा ऊंचा ऊंट समझता है और जब शादी के पहाड़ के नीचे से गुजरता है तब उसे अपने वास्तविक कद का पता चलता है. बड़ेबड़े हिटलर पत्नी के आगे पानी मांगते हैं जब वह टेढ़ी या तिरछी नजर से देखती है.

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हम भी बचपन से अपने को बड़ा पढ़ाकूपिस्सू और कलमघिस्सू समझते रहे. अपनेआप को बड़ा ज्ञानी, ध्यानी समझते रहे. हमें ऐसा लगता था जैसे सारी दुनिया का ज्ञान हम ने ही बटोर रखा है. कोई रचना प्रकाशित हुई नहीं कि बल्लियों उछलने लगते थे. शादी के बाद जब एक रचना छप कर आई तो श्रीमतीजी पर रोब गालिब करने और अपने लेखक होने की महानता को सत्यापित कराने के लिए उस रचना को महत्त्वपूर्ण सर्टिफिकेट की तरह उन के सम्मुख प्रस्तुत किया. श्रीमतीजी ने पहले तो उस रचना को बड़ी ही उपेक्षित नजर से देखा. इस से हमारा दिल दहल गया. लेकिन हमारा सम्मान रखते हुए 2-3 लाइनें पढ़ीं और फिर पूछा, ‘‘डार्लिंग, इस का कितना पैसा मिलेगा?’’

हम श्रीमती के प्रश्न और प्रश्नवाचक नजर से कुछ असहज हुए और फिर अचकचाते हुए बोले, ‘‘ये तो छापने वाले जानें.’’ यह सुनते ही श्रीमतीजी ने रचना को एक ओर रखते हुए कहा, ‘‘माल (रचना) तुम्हारा और कीमत जानें पत्रिका वाले, यह भी कोई बात हुई.’’

हम ने श्रीमतीजी को थोड़ा समझाते हुए कहा, ‘‘अभी हम इतने बड़े कालिदास नहीं हुए कि अपनी रचनाओं की कीमत स्वयं तय करें. वे छाप देते हैं, क्या यह कम बड़ी बात है.’’

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‘‘टाइमवेस्ट और कुछ नहीं,’’ श्रीमतीजी हमें बालक की तरह नसीहत देती हुई बोलीं. उस दिन हमें कुछकुछ लगा कि पत्नियां पौकेटमार भी होती हैं, पैसे पर नजर रखती हैं. उस दिन हमें सचमुच यह भी लगा कि अपुन की औकात क्या है? मन तो हुआ कि सब लिखनापढ़ना छोड़ दें और डिगरी कालेज की लेक्चररी में ही अपनी जिंदगी काट दें. पर लिखने का कीड़ा जिसे काटता है वही जानता है. इस के काटने के दर्द में कितना मजा होता है. जब भी श्रीमतीजी हमें लिखता हुआ देखतीं तो मुंह बिचका कर निकल जातीं, जैसे हम न जाने कितना घटिया और मनहूस काम कर रहे हों. उस समय श्रीमतीजी की नजर में हम स्वयं को कितना लज्जित महसूस करते, उस का वर्णन करना मुश्किल है. इस अपमान से बचने का हमारे पास एक ही रास्ता बचा था कि श्रीमतीजी की नजरों से बच कर चोरीछिपे लिखा जाए.

एक दिन ऐसा हुआ कि हम ने अपना सीना कुछ चौड़ा महसूस किया. हुआ यह कि 2 रचनाओं के चैक एकसाथ आ गए. इन चैकों की रकम इतनी थी कि श्रीमतीजी की पसंद की साड़ी आराम से आ सकती थी. हम ने श्रीमतीजी को मस्का लगाते हुए कहा, ‘‘लो महारानीजी, तुम्हारी साड़ी आ गई.’’

साड़ी का नाम सुनते ही श्रीमतीजी ऐसे दौड़ी चली आईं जैसे भूखी लोमड़ी को अंगूरों का गुच्छा लटका नजर आ गया हो. आते ही चहकीं, ‘‘कहां है साड़ी? लाओ, दिखाओ?’’

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हम ने दोनों चैक श्रीमतीजी को पकड़ा दिए. श्रीमतीजी ने दोनों चैकों की धनराशि देखी और थैंक्यू बोलते हुए हमारे गाल पर एक प्यारी चिकोटी काट ली. हम इस प्यारी चिकोटी से ऐसे निहाल हो गए जैसे हमें साहित्य अकादमी का साहित्यरत्न अवार्ड मिल गया हो. हमें एकबारगी यह ख्वाब आया कि श्रीमतीजी यह तो पूछेंगी ही कि किन रचनाओं से यह धनराशि प्राप्त हुई है. लेकिन उन्होंने यह पूछने की जहमत नहीं उठाई. बस, कसी हुई नजर से इतना कहा, ‘‘जहां से ये चैक आए हैं वहीं रचना भेजा करो. मुफ्त वालों के लिए लिखने की जरूरत नहीं है.’’

हम मान गए कि श्रीमतीजी को हमारी रचनाओं से मतलब नहीं, उन की नजर सिर्फ आने वाले चैकों पर है.

इस के बाद जब कभी भी पोस्टमैन आता तो हम से पहले श्रीमतीजी उस के दर्शन के लिए पहुंच जातीं. एक दिन पोस्टमैन की आवाज आते ही श्रीमतीजी रसोई से दौड़ती हुई दरवाजे पर पहुंचीं. हम भी चहलकदमी करते हुए श्रीमतीजी  के पीछेपीछे दरवाजे तक पहुंचे.

पोस्टमैन बोला, ‘‘बाबूजी, आप का मनीऔर्डर है.’’

श्रीमतीजी हमें बिना कोई अवसर दिए तुरंत बोलीं, ‘‘कितने का है?’’

‘‘मैडमजी, 50 रुपए का.’’

‘‘क्या? क्या कहा, 50 रुपए का?’’ श्रीमतीजी ऐसे मुंह बना कर बोलीं जैसे पोस्टमैन से बोलने में गलती हो गई हो.

हम ने स्थिति को संभालते हुए कहा, ‘‘अरे भाई, ठीक से देखो. आजकल 50 रुपए कोई नहीं भेजता, 500 रुपए का होगा.’’

हमारे कहने पर पोस्टमैन ने एक बार फिर से मनीऔर्डर को देखा. धनराशि अंकों में देखी, शब्दों में देखी. फिर आश्वस्त हो कर बोला, ‘‘बाबूजी, 50 रुपए का ही है.’’

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जैसे ही पोस्टमैन ने 50 रुपए का नोट निकाल कर श्रीमतीजी की ओर बढ़ाया तो वे खिन्न हो कर बोलीं, ‘‘यह दौलत इन्हीं को दे दो, बच्चे टौफी खा लेंगे.’’

पोस्टमैन ने व्यंग्यात्मक मुसकराहट के साथ वह 50 रुपए का नोट हमारी ओर बढ़ा दिया. मेरे लिए तो वह 50 रुपए का नोट भी किसी पुरस्कार से कम नहीं था. लेकिन श्रीमतीजी के खिन्नताभरे व्यंग्यबाण और पोस्टमैन की व्यंग्यात्मक हंसी ऐसी लग रही थी जैसे हिंदी का लेखक दीनहीन, गयागुजरा और फालतू का प्राणी हो जिस को कई प्रकार से अपमानित किया जा सकता हो और बड़ी आसानी से मखौल का पात्र बनाया जा सकता हो. उस दिन श्रीमतीजी की नजर में हम 50 रुपए के आदमी बन कर रह गए थे.

एक नन्ही परी: भाग 3

फौल का काम पूरा कर विनी हलदी की रस्म की तैयारी में लगी थी. बड़े से थाल में हलदी मंडप में रख रही थी. तभी काजल दीदी ने उसे आवाज दी. विनी उन के कमरे में पहुंची. दीदी के हाथों में बड़े सुंदर झुमके थे. दीदी ने झुमके दिखाते हुए पूछा, ‘ये कैसे हैं, विनी? मैं तेरे लिए लाई हूं. आज पहन लेना.’

‘मैं ये सब नहीं पहनती, दीदी,’ विनी झल्ला उठी. सभी को मालूम था कि विनी को गहनों से बिलकुल लगाव नहीं है. पर दीदी और काकी तो पीछे ही पड़ गईं. दीदी ने जबरदस्ती उस के हाथों में झुमके पकड़ा दिए. गुस्से में विनी ने झुमके ड्रैसिंग टेबल पर पटक दिए. फिसलता हुआ झुमका फर्श पर गिरा. दरवाजे पर खड़ा अतुल ये सारी बातें सुन रहा था. तेजी से बाहर निकलने की कोशिश में वह सीधे अतुल से जा टकराई. उस के दोनों हाथों में लगी हलदी के छाप अतुल की सफेद टीशर्ट पर उभर आए.

वह हलदी के दाग को हथेलियों से साफ करने की कोशिश करने लगी. पर हलदी के दाग और भी फैलने लगे. अतुल ने उस की दोनों कलाइयां पकड़ लीं और बोल पड़ा, ‘यह हलदी का रंग जाने वाला नहीं है. ऐसे तो यह और फैल जाएगा. आप रहने दीजिए.’ विनी झेंपती हुई हाथ धोने चली गई.

बड़ी धूमधाम से काजल की शादी हो गई. काजल की विदाई होते ही विनी को अम्मा के साथ दिल्ली जाना पड़ा. कुछ दिनों से अम्मा की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. डाक्टरों ने जल्दी से जल्दी दिल्ली ले जा कर हार्ट चैकअप का सुझाव दिया था. काजल की शादी के ठीक बाद दिल्ली जाने का प्लान बना था. काजल की विदाई वाली शाम का टिकट मिल पाया था.

एक शाम अचानक शरण काका ने आ कर खबर दी. विनी को देखने लड़के वाले अभी कुछ देर में आना चाहते हैं. घर में जैसे उत्साह की लहर दौड़ गई. पर विनी बड़ी परेशान थी. न जाने किस के गले बांध दिया जाएगा? उस के भविष्य के सारे अरमान धरे के धरे रह जाएंगे. अम्मा उस से तैयार होने को कह कर रसोई में चली गईं. तभी मालूम हुआ कि लड़का और उस के परिवार वाले आ गए हैं. बाबूजी, काका और काकी उन सब के साथ ड्राइंगरूम में बातें कर रहे थे.

अम्मा ने उसे तैयार न होते देख कर, आईने के सामने बैठा कर उस के बाल सांवरे. अपनी अलमारी से झुमके निकाल कर दिए. विनी झुंझलाई बैठी रही. अम्मा ने जबरदस्ती उस के हाथों में झुमके पकड़ा दिए. गुस्से में विनी ने झुमके पटक दिए.

एक झुमका फिसलता हुआ ड्राइंगरूम के दरवाजे तक चला गया. ड्राइंगरूम उस के कमरे से लगा हुआ था.

परेशान अम्मा उसे वैसे ही अपने साथ ले कर बाहर आ गईं. विनी अम्मा के साथ नजरें नीची किए हुए ड्राइंगरूम में जा पहुंची. वह सोच में डूबी थी कि कैसे इस शादी को टाला जाए. काकी ने उसे एक सोफे पर बैठा दिया. तभी बगल से किसी ने धीरे से कहा, ‘मैं ने कहा था न, हलदी का रंग जाने वाला नहीं है.’ सामने अतुल बैठा था.

अतुल और उस के मातापिता के  जाने के बाद काका ने उसे बुलाया. बड़े बेमन से कुछ सोचती हुई वह काका के साथ चलने लगी. गेट से बाहर निकलते ही काका ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘विनी, मैं तेरी उदासी समझ रहा हूं. बिटिया, अतुल बहुत समझदार लड़का है. मैं ने अतुल को तेरे सपने के बारे में बता दिया है. तू किसी तरह की चिंता मत कर. मुझ पर भरोसा कर, बेटी.’

काका ने ठीक कहा था. वह आज जहां पहुंची है वह सिर्फ अतुल के सहयोग से ही संभव हो पाया था. अतुल आज भी अकसर मजाक में कहते हैं, ‘मैं तो पहली भेंट में ही जज साहिबा की योग्यता पहचान गया था.’ उस की शादी में शरण काका ने सचमुच मामा होने का दायित्व पूरी ईमानदारी से निभाया था. पर वह उन्हें मामा नहीं, काका ही बुलाती थी.

कोर्ट का कोलाहल विनीता को अतीत से बाहर खींच लाया. पर वे अभी भी सोच रही थीं, इसे कहां देखा है. दोनों पक्षों के वकीलों की बहस समाप्त हो चुकी थी. राम नरेश के गुनाह साबित हो चुके थे. वह एक भयानक कातिल था. उस ने इकरारे जुर्म भी कर लिया था. उस ने बड़ी बेरहमी से हत्या की थी. एक सोचीसमझी साजिश के तहत उस ने अपने दामाद की हत्या कर शव का चेहरा बुरी तरह कुचल दिया था और शरीर के टुकड़ेटुकड़े कर जंगल में फेंक दिए थे. वकील ने बताया कि राम नरेश का आपराधिक इतिहास है. वह एक कू्रर कातिल है. पहले भी वह कत्ल का दोषी पाया गया था पर सुबूतों के अभाव में छूट गया था. इसलिए इस बार उसे कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए. वकील ने पुराने केस की फाइल उन की ओर बढ़ाई. फाइल खोलते ही उन की नजरों के सामने सबकुछ साफ हो गया. सारी बातें चलचित्र की तरह आंखों के सामने घूमने लगीं.

लगभग 22 वर्ष पहले राम नरेश को कोर्ट लाया गया था. उस ने अपनी दूधमुंही बेटी की हत्या कर दी थी. तब विनीता वकील हुआ करती थीं. ‘कन्या भ्रूण हत्या’ और ‘बालिका हत्या’ जैसे मामले उन्हें आक्रोश से भर देते थे. मातापिता और समाज द्वारा बेटेबेटियों में किए जा रहे भेदभाव उन्हें असह्य लगते थे. तब विनीता ने राम नरेश के जुर्म को साबित करने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा दिया था. उस गांव में अकसर बेटियों को जन्म लेते ही मार डाला जाता था. इसलिए किसी ने राम नरेश के खिलाफ गवाही नहीं दी. लंबे समय तक केस चलने के बाद भी जुर्म साबित नहीं हुआ. इसलिए कोर्ट ने राम नरेश को बरी कर दिया था. आज वही मुजरिम दूसरे खून के आरोप में लाया गया था. विनीता ने मन ही मन सोचा, ‘काश, तभी इसे सजा मिली होती. इतना सीधासरल दिखने वाला व्यक्ति 2-2 कत्ल कर सकता है? इस बार वे उसे कड़ी सजा देंगी.’

जज साहिबा ने राम नरेश से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें अपनी सफाई में कुछ कहना है?’’ राम नरेश के चेहरे पर व्यंग्यभरी मुसकान खेलने लगी. कुछ पल चुप रहने के बाद उस ने कहा, ‘‘हां हुजूर, मुझे आप से बहुत कुछ कहना है. मैं आप लोगों जैसा पढ़ालिखा और समझदार तो नहीं हूं, पता नहीं आप लोग मेरी बात समझेंगे या नहीं. आप मुझे यह बताइए कि अगर कोई मेरी परी बिटिया को जला कर मार डाले और कानून से भी अपने को बचा ले. तब क्या उसे मार डालना अपराध है?

‘‘मेरी बेटी को उस के पति ने दहेज के लिए जला दिया था. मरने से पहले मेरी बेटी ने आखिरी बयान दिया था कि कैसे मेरी फूल जैसी सुंदर बेटी को उस के पति ने जला दिया. पर वह शातिर पुलिस और कानून से बच निकला. इसलिए उसे मैं ने अपने हाथों से सजा दी. मेरे जैसा कमजोर पिता और कर ही क्या सकता है? मुझे अपने किए गुनाह पर कोई अफसोस नहीं है.’’

उस का चेहरा मासूम लग रहा था. उस की बूढ़ी आंखों में आंसू चमक रहे थे. लेकिन चेहरे पर संतोष झलक रहा था. वह जज साहिबा की ओर मुखातिब हुआ,  ‘‘हुजूर, आज से 22 वर्ष पहले जब मैं ने अपनी बड़ी बेटी को जन्म लेते ही मार डाला था, तब आप मुझे सजा दिलवाना चाहती थीं. आप ने तब मुझे बहुत भलाबुरा कहा था. आप ने कहा था, ‘बेटियां अनमोल होती हैं. मार कर आप ने जघन्य अपराध किया है.’

‘‘आप की बातों ने मेरी रातों की नींद और दिन का चैन खत्म कर दिया था. इसलिए जब मेरी दूसरी बेटी का जन्म हुआ तब मुझे लगा कि प्रकृति ने मुझे भूल सुधारने का मौका दिया है. मैं ने प्रायश्चित करना चाहा. उस का नाम मैं ने ‘परी’ रखा. बड़े जतन और लाड़ से मैं ने उसे पाला. अपनी हैसियत के अनुसार उसे पढ़ाया और लिखाया. वह मेरी जान थी.

‘‘मैं ने निश्चय किया कि उसे दुनिया की हर खुशी दूंगा. मैं हर दिन मन ही मन आप को आशीष देता कि आप ने मुझे ‘पुत्रीसुख’ से वंचित होने से बचा लिया. मेरी परी बड़ी प्यारी, सुंदर, होनहार और समझदार थी. मैं ने उस की शादी बड़े अरमानों से की. अपनी सारी जमापूंजी लगा दी. मित्रों और रिश्तेदारों से उधार लिया. किसी तरह की कमी नहीं की. पर दुनिया ने उस के साथ वही किया जो मैं ने 22 साल पहले अपनी बड़ी बेटी के साथ किया था. उसे मार डाला. तब सिर्फ मैं दोषी क्यों हूं? मुझे खुशी है कि मेरी बड़ी बेटी को इस कू्रर दुनिया के दुखों और भेदभाव को सहना नहीं पड़ा. छोटी बेटी को समाज ने हर वह दुख दिया जो एक कमजोर पिता की पुत्री को झेलना पड़ता है. ऐसे में सजा किसे मिलनी चाहिए? मुझे या इस समाज को?

‘‘अब आप बताइए कि बेटियों को पालपोस कर बड़ा करने से क्या फायदा है? पलपल तिलतिल कर मरने से अच्छा नहीं है कि वे जन्म लेते ही इस दुनिया को छोड़ दें. कम से कम वे जिंदगी की तमाम तकलीफों को झेलने से तो बच जाएंगी. मेरे जैसे कमजोर पिता की बेटियों का भविष्य ऐसा ही होता है. उन्हें जिंदगी के हर कदम पर दुखदर्द झेलने पड़ते हैं. काश, मैं ने अपनी छोटी बेटी को भी जन्म लेते ही मार दिया होता.

‘‘आप मुझे बताइए, क्या कहीं ऐसी दुनिया है जहां जन्म लेने वाली ये नन्ही परियां बिना भेदभाव के सुखद जीवन जी सकें? आप मुझे दोषी मानती हैं पर मैं इस समाज को दोषी मानता हूं. क्या कोई अपने बच्चे को इसलिए पालता है कि उसे यह नतीजा देखने को मिले या समाज हमें कमजोर होने की सजा दे रहा है? क्या सही क्या गलत, आप मुझे बताइए?’’

विनीता अवाक् थीं. मूक नजरों से राम नरेश के लाचार, कमजोर चेहरे को देख रही थीं. उन के पास जवाब नहीं था. आज एक नया नजरिया उन के सामने था. उन्होंने उस की फांसी की सजा को माफ करने की दया याचिका प्रैसिडैंट को भिजवा दी.

अगले दिन अखबार में विनीता के इस्तीफे की खबर छपी थी. उन्होंने वक्तव्य दिया था, ‘इस असमान सामाजिक व्यवस्था को सुधारने की जरूरत है. यह समाज लड़कियों को समान अधिकार नहीं देता है. जिस से न्याय, अन्याय बन जाता है, क्योंकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. गलत सामाजिक व्यवस्था न्याय को गुमराह करती है और लोगों का न्यायपालिका से भरोसा खत्म करती है. मैं इस गलत सामाजिक व्यवस्था के विरोध में न्यायाधीश पद से इस्तीफा देती हूं,’ उन्होंने अपने वक्तव्य में यह भी जोड़ा कि वे अब एक समाजसेवी संस्था के माध्यम से आमजन को कानूनी सलाह देंगी और साथ ही, गलत कानून को बदलवाएंगी भी.

एक नन्ही परी: भाग 2

शरण काका भी अजीब हैं. लोग बेटी के नाम से घबराते हैं और काका का दिल ऐसा है कि दूसरे की बेटी को भी अपना मानते हैं.

काजल दीदी की शादी के समय विनी अपनी परीक्षा में व्यस्त थी. काकी उस के परीक्षा विभाग को रोज कोसती रहतीं. हलदी की रस्म के एक दिन पहले तक उस की परीक्षा थी. काकी कहती रहती थीं, ‘विनी को फुरसत होती तो मेरा सारा काम संभाल लेती. ये कालेज वाले परीक्षा लेले कर लड़की की जान ले लेंगे,’ शांत और मृदुभाषी विनी उन की लाड़ली थी.’

आखिरी पेपर दे कर विनी जल्दीजल्दी काजल दीदी के पास जा पहुंची. उसे देखते काकी की तो जैसे जान में जान आ गई. काजल के सभी कामों की जिम्मेदारी उसे सौंप कर काकी को बड़ी राहत महसूस हो रही थी. उन्होंने विनी के घर फोन कर ऐलान कर दिया कि विनी अब काजल की विदाई के बाद ही घर वापस जाएगी.

शाम के वक्त काजल के साथ बैठ कर विनी उन का सूटकेस ठीक कर रही थी, तब उसे ध्यान आया कि दीदी ने शृंगार का सामान तो खरीदा ही नहीं है. मेहंदी की भी व्यवस्था नहीं है. वह काकी से बात कर भागीभागी बाजार से सारे सामान की खरीदारी कर लाई. विनी ने रात में देर तक बैठ कर काजल दीदी को मेहंदी लगाई. मेहंदी लगा कर जब हाथ धोने उठी तो उसे अपनी चप्पलें मिली ही नहीं. शायद किसी और ने पहन ली होंगी. शादी के घर में तो यह सब होता ही रहता है. घर मेहमानों से भरा था. बरामदे में उसे किसी की चप्पल नजर आई. वह उसे ही पहन कर बाथरूम की ओर बढ़ गई. रात में वह दीदी के बगल में रजाई में दुबक गई. न जाने कब बातें करतेकरते उसे नींद आ गई.

सुबह, जब वह गहरी नींद में थी, किसी ने उस की चोटी खींच कर झकझोर दिया. कोई तेज आवाज में बोल रहा था, ‘अच्छा, काजल दीदी, तुम ने मेरी चप्पलें गायब की थीं.’

हैरान विनी ने चेहरे पर से रजाई हटा कर अपरिचित चेहरे को देखा. उस की आखों में अभी भी नींद भरी थी. तभी काजल दीदी खिलखिलाती हुई पीछे से आ गईं, ‘अतुल, यह विनी है. श्रीकांत काका की बेटी और विनी, यह अतुल है. मेरे छोटे चाचा का बेटा. हर समय हवा के घोड़े पर सवार रहता है. छोटे चाचा की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए छोटे चाचा और चाची नहीं आ सके तो उन्होंने अतुल को भेज दिया.’

अतुल उसे निहारता रहा, फिर झेंपता हुआ बोला, ‘मुझे लगा, दीदी तुम सो रही हो. दरअसल, मैं रात से ही अपनी चप्पलें खोज रहा था.’

विनी को बड़ा गुस्सा आया. उस ने दीदी से कहा, ‘मेरी भी तो चप्पलें खो गई हैं. उस समय मुझे जो चप्पलें नजर आईं, मैं ने पहन लीं. मैं ने इन की चप्पलें पहनी हैं, किसी का खून तो नहीं किया. सुबहसुबह नींद खराब कर दी. इतने जोरों से झकझोरा है. सारी पीठ दुख रही है,’ गुस्से में वह मुंह तक रजाई खींच कर सो गई.

अतुल हैरानी से देखता रह गया. फिर धीरे से दीदी से कहा, ‘बाप रे, यह तो वकीलों की तरह जिरह करती है.’ तबतक काकी बड़ा पैकेट ले कर विनी के पास पहुंच गईं और रजाई हटा कर उस से पूछने लगीं, ‘बिटिया, देख मेरी साड़ी कैसी है?’

विनी हुलस कर बोल पड़ी, ‘बड़ी सुंदर साड़ी है. पर काकी, इस में फौल तो लगी ही नहीं है. हद करती हो काकी. सारी तैयारी कर ली और तुम्हारी ही साड़ी तैयार नहीं है. मुझे दो, मैं जल्दी से फौल लगा देती हूं.’

विनी पलंग पर बैठ कर फौल लगाने में मशगूल हो गई. काकी भी पलंग पर पैरों को ऊपर कर बैठ गईं और अपने हाथों से अपने पैरों को दबाने लगीं.

विनी ने पूछा, ‘काकी, तुम्हारे पैर दबा दूं क्या?’

वे बोलीं, ‘बिटिया, एकसाथ तू कितने काम करेगी. देख न पूरे घर का काम पड़ा है और अभी से मैं थक गई हूं.’

सांवलीसलोनी काकी के पैर उन की गोलमटोल काया को संभालते हुए थक जाएं, यह स्वाभाविक ही है. छोटे कद की काकी के ललाट पर बड़ी सी गोल लाल बिंदी विनी को बड़ी प्यारी लगती थी.

तभी काजल की चुनरी में गोटा और किरण लगा कर छोटी बूआ आ पहुंचीं, ‘देखो भाभी, बड़ी सुंदर बनी है चुनरी. फैला कर देखो न,’ छोटी बूआ कहने लगीं.

पूरे पलंग पर सामान बिखरा था. काकी ने विनी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘इस के ऊपर ही डाल कर दिखाओ, छोटी मइयां.’

सिर झुकाए, फौल लगाती विनी के ऊपर लाल चुनरी बूआ ने फैला दी.

चुनरी सचमुच बड़ी सुंदर बनी थी. काकी बोल पड़ीं, ‘देख तो, विनी पर कितना खिल रहा है यह रंग.’

विनी की नजरें अपनेआप ही सामने रखी ड्रैसिंग टेबल के शीशे में दिख रहे अपने चेहरे पर पड़ीं. उस का चेहरा गुलाबी पड़ गया. उसे अपना ही चेहरा बड़ा सलोना लगा. तभी अचानक किसी ने उस की पीठ पर मुक्के जड़ दिए.

‘तुम अभी से दुलहन बन कर बैठ गई हो, दीदी,’ अतुल की आवाज आई. वह सामने आ कर खड़ा हो गया. अपलक कुछ पल उसे देखता रह गया. विनी की आंखों में आंसू आ गए थे. अचानक हुए मुक्केबाजी के हमले से सूई उंगली में चुभ गई थी. उंगली के पोर पर खून की बूंद छलक आई थी. अतुल बुरी तरह हड़बड़ा गया.

‘बड़ी अम्मा, मैं पहचान नहीं पाया था. मुझे क्या मालूम था कि दीदी के बदले किसी और को दुलहन बनने की जल्दी है. पर मुझ से गलती हो गई.’ वह काकी से बोल पड़ा. फिर विनी की ओर देख कर न जाने कितनी बार ‘सौरीसौरी’ बोलता चला गया. तब तक काजल भी आ गई थी. विनी की आंखों में आंसू देख कर सारा माजरा समझ कर, उसे बहलाते हुए बोली, ‘अतुल, तुम्हें इस बार सजा दी जाएगी. बता विनी, इसे क्या सजा दी जाए?’

 

विनी बोली, ‘इन की नजरें कमजोर हैं क्या? अब इन से कहो सभी के पैर दबाएं.’ यह कह कर विनी साड़ी समेट कर, पैर पटकती हुई काकी के कमरे में जा कर फौल लगाने लगी.

अतुल सचमुच काकी के पैर दबाने लगा, बोला, ‘वाह, क्या बढि़या फैसला है जज साहिबा का. बड़ी अम्मा, देखो, मैं हुक्म का पालन कर रहा हूं.’

‘तू हर समय उसे क्यों परेशान करता रहता है, अतुल?

काजल दीदी की आवाज विनी को सुनाई दी.

‘दीदी, इस बार मेरी गलती नहीं थी,’ अतुल सफाई दे रहा था.

एक नन्ही परी: भाग 1

विनीता कठघरे में खड़े राम नरेश को गौर से देख रही थीं पर उन्हें याद नहीं आ रहा था कि इसे कहां देखा है. साफ रंग, बाल खिचड़ी और भोले चेहरे पर उम्र की थकान थी. साथ ही, चेहरे पर उदासी की लकीरें थीं. वह उन के चैंबर में अपराधी की हैसियत से खड़ा था. वह आत्मविश्वासविहीन था. लग रहा था जैसे उसे दुनिया से कोई मतलब ही नहीं. वह जैसे अपना बचाव करना ही नहीं चाहता था. कंधे झुके थे. शरीर कमजोर था. वह एक गरीब और निरीह व्यक्ति था. लगता था जैसे बिना सुने और समझे हर गुनाह कुबूल कर रहा था. ऐसा अपराधी उन्होंने आज तक नहीं देखा था. उस की पथराई आखों में अजीब सा सूनापन था, जैसे वे निर्जीव हों.

लगता था वह जानबूझ कर मौत की ओर कदम बढ़ा रहा था. जज साहिबा को लग रहा था, यह इंसान इतना निरीह है कि यह किसी का कातिल नहीं हो सकता. क्या इसे किसी ने झूठे केस में फंसा दिया है या पैसों के लालच में झूठी गवाही दे रहा है? नीचे के कोर्ट से उसे फांसी की सजा सुनाई गई थी. आखिरी अपील के समय अभियुक्त के शहर का नाम देख कर उन्होंने उसे बुलवा लिया था और चैंबर में बात कर जानना चाहा था कि वह है कौन.

विनीता ने जज बनने के समय मन ही मन निर्णय किया था कि कभी किसी निर्दोष या लाचार को सजा नहीं होने देंगी. झूठी गवाही से उन्हें सख्त नफरत थी. अगर राम नरेश का व्यवहार ऐसा न होता तो शायद जज साहिबा ने उस पर ध्यान भी न दिया होता. दिनभर में न जाने कितने केस निबटाने होते हैं. ढेरों जजों, अपराधियों, गवाहों और वकीलों की भीड़ में उन का समय कटता था. पर ऐसा दयनीय कातिल नहीं देखा था. कातिलों की आंखों में दिखने वाला पश्चाताप या आक्रोश कुछ भी तो नजर नहीं आ रहा था. विनीता अतीत को टटोलने लगीं. आखिर कौन है यह? कुछ याद नहीं आ रहा था.

विनीता शहर की जानीमानी सम्माननीय हस्ती थीं. गोरा रंग, छोटी पर सुडौल नासिका, ऊंचा कद, बड़ीबड़ी आंखें और आत्मविश्वास से भरे व्यक्तित्व वाली विनीता अपने सही और निर्भीक फैसलों के लिए जानी जाती थीं. उम्र के साथ सफेद होते बालों ने उन्हें और प्रभावशाली बना दिया था. उन की चमकदार आंखें एक नजर में ही अपराधी को पहचान जाती थीं. उन के न्यायप्रिय फैसलों की चर्चा होती रहती थी.

पुरुषों के एकछत्र कोर्ट में अपना कैरियर बनाने में उन्हें बहुत तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा था. सब से पहला युद्ध तो उन्हें अपने परिवार से लड़ना पड़ा था. विनीता के जेहन में बरसों पुरानी बातें याद आने लगीं…

घर में सभी प्यार से उसे विनी बुलाते थे. उस की वकालत करने की बात सुन कर घर में तो भूचाल आ गया. मां और बाबूजी से नाराजगी की उम्मीद थी, पर उसे अपने बड़े भाई की नाराजगी अजीब लगी. उन्हें पूरी आशा थी कि महिलाओं के हितों की बड़ीबड़ी बातें करने वाले भैया तो उस का साथ जरूर देंगे. पर उन्होंने ही सब से ज्यादा हंगामा मचाया था.

तब विनी को हैरानी हुई जब उम्र से लड़ती बूढ़ी दादी ने उस का साथ दिया. दादी उसे बड़े प्यार से ‘नन्ही परी’ बुलाती थीं. विनी रात में दादी के पास ही सोती थी. अकसर दादी कहानियां सुनाती थीं. उस रात दादी ने कहानी तो नहीं सुनाई पर गुरुमंत्र जरूर दिया. दादी ने रात के अंधेरे में विनी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘मेरी नन्ही परी, तू शिवाजी की तरह गरम भोजन बीच थाल से खाने की कोशिश कर रही है. जब भोजन बहुत गरम हो तो किनारे से फूंकफूंक कर खाना चाहिए. तू सभी को पहले अपनी एलएलबी की पढ़ाई के लिए राजी कर, न कि अपनी वकालत के लिए. मैं कामना करती हूं, तेरी इच्छा जरूर पूरी हो.’

विनी ने लाड़ से दादी के गले में बांहें डाल दीं. फिर उस ने दादी से पूछा, ‘दादी, तुम इतनी मौडर्न कैसे हो गईं?’

दादी रोज सोते समय अपने नकली दांतों को पानी के कटोरे में रख देती थीं. तब उन के गाल बिलकुल पिचक जाते थे और चेहरा झुर्रियों से भर जाता था. विनी ने देखा दादी की झुर्रियों भरे चेहरे पर विषाद की रेखाएं उभर आईं और वे बोल पड़ीं, ‘बिटिया, औरतों के साथ बड़ा अन्याय होता है. तू उन के साथ न्याय करेगी, यह मुझे पता है. जज बन कर तेरे हाथों में परियों वाली जादू की छड़ी भी तो आ जाएगी न.’

अपनी अनपढ़ दादी की ज्ञानभरी बातें सुन कर विनी हैरान थी. दादी के दिए गुरुमंत्र पर अमल करते हुए विनी ने वकालत की पढ़ाई पूरी कर ली. तब उसे लगा, अब तो मंजिल करीब है. पर तभी न जाने कहां से एक नई मुसीबत सामने आ गई. बाबूजी के पुराने मित्र शरण काका ने आ कर खबर दी. उन के किसी रिश्तेदार का पुत्र शहर में ऊंचे पद पर तबादला हो कर आया है. क्वार्टर मिलने तक उन के पास ही रह रहा है. होनहार लड़का है. परिवार भी अच्छा है. विनी के विवाह के लिए बड़ा उपयुक्त वर है. उस ने विनी को शरण काका के घर आतेजाते देखा है. बातों से लगता है कि विनी उसे पसंद है. उस के मातापिता भी कुछ दिनों के लिए आने वाले हैं.

शरण काका रोज सुबह एक हाथ में छड़ी और दूसरे हाथ में धोती थाम कर टहलने निकलते थे. अकसर टहलना पूरा कर उस के घर आ जाते थे. सुबह की चाय के समय उन का आना विनी को हमेशा बड़ा अच्छा लगता था. वे दुनियाभर की कहानियां सुनाते. बहुत सी समझदारी की बातें समझाते. पर आज विनी को उन का आना अखर गया. पढ़ाई पूरी हुई नहीं कि शादी की बात छेड़ दी. विनी की आंखें भर आईं. तभी शरण काका ने उसे पुकारा, ‘बिटिया, मेरे साथ मेरे घर तक चल. जरा यह तिलकुट का पैकेट घर तक पहुंचा दे. हाथों में बड़ा दर्द रहता है. तेरी मां का दिया यह पैकेट उठाना भी भारी लग रहा है.’

बरसों पहले भाईदूज के दिन मां को उदास देख कर उन्होंने बाबूजी से पूछा था. भाई न होने का गम मां को ही नहीं, बल्कि नानानानी को भी था. विनी अकसर सोचती थी कि क्या एक बेटा होना इतना जरूरी है? उस भाईदूज से ही शरण काका ने मां को मुंहबोली बहन बना लिया था. मां भी बहन के रिश्ते को निभातीं, हर तीजत्योहार में उन्हें कुछ न कुछ भेजती रहती थीं. आज का तिलकुट मकर संक्रांति का एडवांस उपहार था. अकसर काका कहते, ‘विनी की शादी में मामा का फर्ज तो मुझे ही निभाना है.’

शरण काका और काकी अपनी इकलौती काजल की शादी के बाद जब भी अकेलापन महसूस करते, तब उसे बुला लेते थे. अकसर वे अम्माबाबूजी से कहते, ‘काजल और विनी दोनों मेरी बेटियां हैं.’

#Corona Lockdown: ‘हनुमान सिंह’ से लेकर ‘माया’ के ‘रूद्र’ तक, खाली समय में ऐसे टाइम बिता रहे हैं TV सितारे

कोविड-19 की वजह से टीवी सीरियल की शूटिंग पूरी तरह से 31 मार्च तक बंद है, साथ ही जिम, मॉल और मार्केट प्लेस सभी बंद है. कम से कम 12 घंटे तक शूटिंग करने वाले कलाकार को अब पूरी तरह से छुट्टी मिल गयी है और वे घर से बाहर निकलकर कही ट्रेवल भी नहीं कर सकते, लेकिन वे इस समय को अपने परिवार, व्यायाम, हॉबी आदि को करने में व्यस्त है, जिसमें पेंटिंग करना, गिटार बजाना, खाना बनाना, डांस करना, किताबें पढ़ना,‘पेट’ के साथ खेलना आदि शामिल है.

कुछ कलाकार ऐसे भी है, जो अपनी जिम्मेदारी जानते है और घर में कैद होकर ही समय बिता रहे है,क्या कर रहे है ये छोटे पर्दे के सितारें, इन दिनों घर पर बैठकर,आइये जाने उन्हीं से,

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1 अर्जुन बिजलानी
अभी मैं कही भी शूटिंग नहीं कर रहा हूं. मेरे एक वेब सीरीज का प्रमोशन भी रुक गया है, ओवरसीज के दो शो भी टल गए है. ऐसे में मेरे पास बहुत समय है और मैं अपने बेटे आयानऔर पत्नी नेहा के साथ बोर्ड गेम खेल रहा हूं. इसके अलावा मैं अलग-अलग तरीके की व्यंजन बनाकर सबको खिला रहा हूं. मेरा बेटा मेरे खाने का सही आलोचक है जबकि पत्नी सब अच्छा कहती है. इतना ही नहीं, मैं उन फिल्मों को भी देख रहा हूं, जिसे अब तक मैं काम की व्यस्तता के कारण मिस किय

 

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Lots more to achieve. #jantacurfew

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2. अनिरुद्ध दवे
ये एक घातक बीमारी है, इसलिए जबतक इस पर काबू न पा लिया जाय, सबको साथ देने की जरुरत है. घर पर रहकर मैं अपने परिवार के साथ समय बिता रहा हूं, दोस्तों के साथ फ़ोन पर बात कर लेता हूं. ये समय मुझे अच्छा लग रहा है, क्योंकि पूरे समय काम की भाग दौड़ में कई चीजे छूट जाती है. आज इसे फिर से ताजा करने का मौका मिला है. इस मुश्किल घड़ी में सबको एक दूसरे का ख्याल रखने की जरुरत है, ताकि पूरे देश को इस बीमारी से मुक्ति मिले.

3. शिविन नारंग
मैंने इस तरह के हालातकभी नहीं देखे और चाहता हूं कि जल्दी से सब लोग इससे उबर जाएं. ये सही है कि अब न तो शूटिंग है और न ही कोई प्रतियोगिता. अभी केवल स्वस्थ रहना और सरवाईव करना ही बड़ी बात है. मैं इस समय को अपने परिवार के साथ बिता रहा हूं और हेल्दी फ़ूड खाने की कोशिश कर रहा हूं. शाम को कॉलोनी के आसपास वाक और व्यायाम कर लेता हूं, इससे काफी अच्छा महसूस करता हूं. इस मुश्किल घड़ी में पूरे देश के नागरिक को साथ मिलकर इस बीमारी से निजात पाने की जरुरत है.

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4. केतन सिंह
अभिनय के अलावा मैं और भी बहुत सारे काम करना पसंद करता हूं, जैसे रेडियो और पॉडकास्ट के लिए काम करना. मैं उसके लिए स्क्रिप्ट पढ़ रहा हूं. मैं जिम एडिक्ट हूं,पर अब जब जिम नहीं जा सकता तो ब्रिस्क वाक 45 मिनट तक अपने घर के आसपास कर लेता हूं जो मैं पहले भी करता था. इसके अलावा मैंने सालों तक अपने 3 गिटार की देखभाल नहीं की है. उसके तारों को बदलकर नयी धुन बनाने की कोशिश कर रहा हूं. इतना ही नहीं मैंने नए घर में शिफ्ट किया है, अभी मेरी पियानो बंद है, उसे खोलकर भी कुछ नया करने की कोशिश है. इसके साथ-साथ स्ट्रीमिंग सर्विस जिंदाबाद, मैंने सबको सबस्क्राइब किया है और उसपर व्यस्त हूं.

5. अमृता प्रकाश
मेरे हिसाब से ये कोई हॉलिडे या वेकेशन नहीं है, लोग इसे ऐसा समझना बंद करें, मैंने देखा है कि बहुत सारे कॉर्पोरेट के लोग जिन्हें वर्क फ्रॉम होम के लिए कहा गया है, वेपब्स और बार्स में अपने दोस्तों के साथ देखे जा रहे है. ये खतरनाक है और लोगों के जमावड़े को रोकने की दिशा में बाधक है. अभी सोशल डिस्टेंसिंग की जरुरत है और ऐसे में इस तरह के काम इस रोग को बढ़ाती है. आपको अगर अपनी चिंता नहीं है, तो कोई बात नहीं, लेकिन अपने परिवार, आसपास के लोग, साथीऔर एक जिम्मेदार नागरिक होने का एहसास सबको करायें और घर पर बैठकर बिना काम किये कंपनी से पैसे लेने की आदत से दूर रहे. आपको घर पर रहकर इस रोग को फैलने से रोकना है.मैंने 19 मार्च से जबसे शूटिंग बंद हुई है,अपने आपको घर में कैद कर लिया है. मैं अपने दूसरे काम को घर पर रहकर कर रही हूँ. हेल्दीभोजन खाना, हाईड्रेटेड रहना, कुछ शोज की बिंज वाच करना और कुछ स्टडी कर रही हूँ.

6. विकास सेठी
हाईजिन को बनाये रखना और सबको इससे अवगत कराना अभी सबसे जरुरी है. परिवार सही रहे इसलिए मैं तत्पर हूं. मैं जिम नहीं जा पा रहा हूं, लेकिन घर पर रहकर खाना बना रहा हूँ और ये मुझे अच्छा लग रहा है.

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7. हिमांशु मल्होत्रा
परिस्थिति गंभीर है, इसलिए सावधानियां भी अधिक करनी पड़ रही है. आज जब मैं जुहू बीच पर गया, तो देखा कि पूरा बीच खाली पड़ा है. ये सही है कि मुंबई में रहते हुए किसी को घर में कैद रहने की आदत नहीं है, पर मैं अपने आपको और परिवार को सम्हाल रहा हूं, ताकि कोई बीमार न पड़े. मेरी पत्नी अमृता खानविलकर नेटफ्लिक्स और अमेज़न पर वेब सीरीज देखकर समय बिता रही है और मैं भी अपनी पसंद के शोज देख रहा हूँ. अभी जिम बंद है ऐसे में सभी को अपने बिल्डिंग के पोडियम में चक्कर लगाना सही है. इससे आपकी फिटनेस भी सही रहती है.इसके अलावा हेल्दी फ़ूड और नियमित व्यायाम करें और सरकार के निर्देशों का सही-सही पालन करें.

hinamchu

8. श्वेता रोहिरा
मैं इस समय को मैडिटेशन, पेंटिंग, किताब पढकर और मानसिक रूप से रिलैक्स रहकर बिताना चाहती हूं. ये एक कठिन घड़ी है और पूरा विश्व इससे जूझ रहा है, ऐसे में हम सबका साथ देने की जरुरत है.

shweta

#coronavirus: प्रशासन की कवायद नाकाम,रोशनबाग में महिलाएं धरने पर डटी

प्रयागराज प्रधानमंत्री के जनता कर्फ्यू की अपील से ऐसा लग रहा था कि शहर के रोशनबाग मे शहर के रोशनबाग मे सीएए एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ चल रहा धरना समाप्त हो जायेगा या पुलिस दबाव डाल कर समाप्त करवा देगी.पुलिस आयी और दबाव भी डाला लेकिन धरना समाप्त करने की उसकी कवायद नाकाम हो गयी.

अलबत्ता पुलिस 71 दिनों से धरने मे चली आ रही एकता को तोड़ने मे जरूर कामयाब हो गयी।जनवरी मे मात्र दस लोगों को लेकर धरना शुरू करने वाली सायरा अहमद और उनकी टीम पर स्थानीय लोगों ने प्रशासन से मिलीभगत का आरोप लगा कर उनसे धरना संचालन का हक छीन लिया.यहां तक की उनकी टीम को मंसूर पार्क मे प्रवेश करने से भी रोक दिया.धरने के 70 वें दिन ही दोपहर मे एसपी सिटी व सिटी मजिस्ट्रेट भारी पुलिस फोर्स के साथ मंसूर अली पार्क पहुंच गये.दोनों अधिकारी करीब तीन घन्टे तक धरना दे रहे लोगों के बीच कोरोना वॉयरस और जनता कर्फ्यू को लेकर धरना समाप्त करने की कोशिश करते रहे.

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बात बनती भी नज़र आ रही थी कि इसी बीच एक इलेकट्रानिक चैनल के प्रतिनिधी के साथ आए युवक ने दूसरे इलाकट्रानिक चैनल के प्रतिनिधी को धक्का दे दिया बात हाँता पाई तक आ गई थोड़ी देर के लिए अफरा तफरी मच गई.इस बीच पुलिस प्रशासन गो बैक के नारे लगने लगे तो पुलिस बैक फुट पर आ गई.आला अधिकारी पार्क से बाहर आ गए और एक आवास मे पर बैठ कर धरनारत महिलाओं के प्रतिनिधी सायरा अहमद,अब्दुल्ला तेहामी,फराज़ उसमानी और इसरार नेयाज़ी के साथ धरना समाप्त करने को वार्ता होती रही इसमे पुलिस के अधिकारीयों दबाव बना कर धरना समाप्त करने को राज़ी कर लिया.सांय 5 बजे सायरा ने जैसे ही धरना समाप्त करने का एनाउन्समेन्ट किया धरना दे रही महिलाओं ने विरोध शुरु कर दिया.पुलिस ने बड़ी मुश्किल से इन पुराने लोगों को भीड़ से बाहर निकाला.

माहौल तनाव पूर्ण होने पर रोशनबाग और आसपास की दुकानें बंद हो गयी।शनिवार को दिन के दो बजे से रात एक बजे तक सारा पुलिस का अमला धरना समाप्त कराने को मंसूर पार्क के आस पास डटा रहा।लेकिन धरने मे शामिल महिलाओं ने धरने को किसी क़िमत पर स्थगित न करने की ज़िद ठान ली।धरना समाप्त करने की सुगबुगाहट और प्रशासनिक अमले के बढ़ते दबाव को देखते आस पास के मोहल्लों से हज़ारों लोग सड़को पर उतर आए और विरोध प्रदर्शन शुरु हो गया. इस बीच प्रशासन और पुलिस ने सूझ बूझ का परिचय देते रात एक बजे रौशन बाग़ से वापसी कर ली.

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पुलिस के वापस जाने पर लोगों ने जहाँ जोश के साथ हिन्दुस्तान ज़िन्दाबाद का नारा बचलन्द किया वही पुलिस प्रशासन ज़िन्दाबाद के नारे भी लगने लगे।जमा भीड़ पुलिस के बैक फुट होने पर पीछे पीछे शहर के खुलदाबाद तिराहे तक पुलिस प्रशासन की गाड़ियों को वापिस भेज कर ही लौटी.उधर-धरने की अगुवाई करने वालों के जाने के बाद संचालन की ज़िम्मेदारी इलाहाबाद विश्वविद्दालय की छात्रा नेहा यादव ने सम्भाल ली.बताया गया कि 22 मार्च की सुबह 4 बजे जनवरी मे धरना शुरू करने वाली सायरा आहमद दोबारा धरना सथ्ल पहुंची.लेकिन वहां मौजूद जनसमूह ने उनको मंसूर पार्क में प्रवेश करने से यह कह कर रोक दिया की अब आप का कोई काम नहीं अब आप वापिस जाईये.

वहीं इसके बाद दिन में सायरा के अन्य साथियों अब्दुल्ला तेहामी,फराज़ उसमानी भी मंसूर पार्क धरना स्थ्ल में प्रवेश करने लगे तो लोगो ने उनका भी विरोध किया और पार्क मे जाने से रोक दिया.उस समय हाँथा पाई की नौबत तक आ गई.लेकिन लोगों ने समझा बुझा कर दोनो पक्ष को अलग किया.वहीं दिन भर महिलाएँ धरना स्थल पर मौजूद रहीं लेकिन किसी प्रकार का भाषण या नारे बाज़ी नहीं हुई.धरने को संचालित करने को एक नई कमेटी का गठन कर दिया गया है जिसमे 7 महिलाएँ और 4 युवाओं की टीम बनाई गई है.सै०मो०अस्करी ने बताया की धरने में महिलाओं के खाने पीने की व्यवस्था देख रहे शुऐब अन्सारी ने टीम में कौन कौन शामिल है इसका अभी खुलासा नहीं किया है.वहीं धरना स्थल पर जहाँ महिलाएँ पार्क के अन्दर मौजूद रहीं वही राजनितिक दलों के साथ सामाजिक संगठनों के लोग सड़कों पर डटे रहे.उधर कोरोनावायरस के संक्रमण को देखते हुए मंसूर अली पार्क के मेन गेट को बन्द कर पुरुषों के प्रवेश पर रोक लगा दी गयी है.

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्दररअसल मंसूर पार्क धरने की नई कमेटी ने इस वायरस के तहत सावधानी दिखाते हुए पार्क के  मेन गेट पर बाँस बल्ली लगा कर उसे पुरुषों के प्रवेष के लिए बन्द कर दिया.जनता र्कफ्यू के बावजूद दिन भर महिलाएँ पार्क के अन्दर डटी रहीं लेकिन न कोई नारा लगा न ही भाषण बाज़ी हुई.पार्क के बाहर पुरुष कोरोना वॉयरस और रात की घटना को ले कर चर्चा करते रहे.बीच बीच मे लोगों को आगाह किया जाता रहा की कोई भी ऐसा कार्य न करे जिस से हमारा सीएए एनआरसी और एनपीआर को लेकर चल रहा आन्दोलन कमज़ोर हो.प्रवक्ता अस्करी ने बताया की युवाओं ने कोरोना वॉयरस से बचाव के लिए  पार्क के तीन तरफ के मुख्य रास्तों को बल्लियों और रस्सियों से बैरिकेड कर पुरी तरह से बन्द कर दिया ताकि लोगों को आने से रोका जा सके और संक्रमण भी न फैले.

#coronavirus से जंग: लोगों ने ऐसे किया ‘जनता कर्फ्यू’ को सपोर्ट, एकजुट हुआ पूरा देश

देश में बढ़ते कोरोना संक्रमण को लेकर पीएम मोदी के जनता कर्फ्यू के आह्वान को सोशल
मीडिया पर भी पूरा समर्थन मिला, कई ऐसे वीडियो वायरल हुए जिसमें बड़े तो बड़े छोटे-छोटे
बच्चे भी लोगों को घर पर रहकर सेफ रहने का मैसेज दे रहे थें. वीडियो माध्यम से लोगों को अपने घरों में रहकर,एक दूसरे से दूर रहकर और खुद को सुरक्षित रखकर.

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कोरोना के खिलाफ भारत की जंग जारी है,हर हिंदुस्तानी कोरोना को हराने के लिए तैयार बैठा है. पीएम मोदी की अपील पर जनता कर्फ्यू पूरी सफल दिखाई दिया. पीएम मोदी के साथ हर भारतवासी ने ठान लिया है,कि इस कोरोना की चेन को तोड़ कर रहेंगे.

सुबह सात बजे से रात नौ बजे देश में जनता कर्फ्यू था और सफल भी रहा.covidout.in वेबसाइट के मुताबिक महज 24 घंटे में 75 नए मामले सामने आने के बाद देशभर में मरीजों की संख्या 327 पहुंच गई है. स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक कोरोना पीड़ितों के संपर्क में आने वाले करीब 7000 से ज्यादा लोगों पर नजर रखी जा रही है.

देश के 22 राज्यों में कोरोना पीड़ित मरीज पाए गए हैं. इस वक्त हिंदुस्तान में सड़कें सुनसान हैं वीरान हैं दुकानों में ताले जड़े हैं,स्कूल,कॉलेज बंद हैं,सरकारी हो या फिर प्राइवेट दफ्तर सब बंद हैं,जनता कर्फ्यू की अपील के बाद से ही प्रशासन भी अलर्ट पर थी. दुनिया कोरोना से जंग लड़ रही है, देश की 130 करोड़ जनता कोरोना को हराने के लिए तैयार है.

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पीएम मोदी की एक अपील पर 22 मार्च को देश की जनता ने कर्फ्यू लगा दिया था.दिल्ली की सड़कें सुनसान थीं.मायानगरी मुंबई में लोग अपने-अपने घरों में थें, लखनऊ, पटना,चंडीगढ़, रांची, वाराणसी, भोपाल इन सभी जगहों की कुछ ऐसी तस्वीरें सामनें आईं कि आप भी सोचेंगे की पीएम की बात को लोग किस तरह से मानते हैं और हर एक अपील को फॉलो करते हैं. यूपी के पंद्रह जिलों को लॉकडाउन कर दिया है साथ ही दिल्ली में दिल्ली भी को लॉकडाउन कर दिया है.

31 मार्च तक सब कुछ बंद रहेगा केवल कुछ जरूरी चीजों की ही शॉप खुली रहेगी जैसे मेडिकल स्टोर,सब्जी की शॉप और किराने की शॉप.जनता कर्फ्यू के दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भी सन्नाटा पसरा हुआ था. कैंसिल ट्रेनों की लगातार जानकारी दी जा रही थी और अभी भी दी जा रही है. प्रधानमंत्री मोदी के जनता कर्फ्यू को लखनऊ की जनता ने भी दिल खोल कर स्वीकार किया लोग अपने-अपने घरों में रहकर कोरोना के संक्रमण से लड़ने की इस मुहीम में एक साथ नजर आएं.

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जनता कर्फ्यू के दिन एक और अलग ही तस्वीर देखने को मिली दिल्ली की सड़कों पर पुलिस हांथ में फूल लेकर खड़ी थी कि अगर पब्लिक सड़क पर आ रही थी वो उनको गुलाब का फूल दे रहे थें.राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल के जवानों ने भी वीडियो के जरिए जनता कर्फ्यू के दिन घर पर रहने और कोरोना से डरना नहीं बल्कि लड़ना का संदेश दिया.

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी जनता कर्फ्यू की अपील का असर दिखाई दिया,
भोपाल की सड़कों समेत नादरा बस स्टैंड पर भी सन्नाटा पसरा हुआ था. बिहार की राजधानी
पटना में सड़कें सुनसान थीं, कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए जम्मू की जनता भी
एक साथ थी. नोएडा में कुछ सोसाइटी में लोग सुबह ही ताली और थाली बजाकर इस पहल का
स्वागत करते नजर आए. देश के हर शहर में प्रधानमंत्री के जनता कर्फ्यू के आह्वान को पूरा
समर्थन मिला.

Work from home: कही बन ना जाये जी का जंजाल

सीमा पिछले कुछ माह से तनाव में चल रही थी. वजह थी उसके बेटे रुद्राक्ष की दसवीं की बोर्ड परीक्षा .सीमा खुद भी स्थानी यस्कूल में शिक्षिका थी.वहीं उसके पति सत्यानिजी बैंक में कार्यत थे.  सीमा को बेटे रुद्राक्ष को पढ़ाने के लिये छुट्टियां लेनी होती थी पर हर बार उसकी प्रिंसिपल ये बोलकर छुट्टियां देने से मना कर देती  थी “अगर तुम छुट्टी लोगी तो तुम्हारी कक्षा के बच्चो का क्या होगा?”

ये बात एक हद तक सही भी थी ,इस कारण सीमा चुप लगा जाती थी. परन्तु जब वो पास पड़ोस में रहने वाली महिलाओं को देखती थी तो सीमा के मन मे टीससी उठती थी. सब प्राइवेटफर्म में कार्यत थी और जब भी बच्चों की परीक्षा ये होती थी तो वो आराम से वर्कफ्रॉमहोम कर लेती थी.

मार्च की आहट होते ही कोरोना ने भी धीरे धीरे भारत पर अपने शिकंजा कसना शुरू क र दिया था .बच्चो की सेहत को मद्दे नजर रखते हुये स्कूल बंद हो गए और टीचर्स को घर पर रहकरही अब उनकी ऑनलाइनक्लासेस लेनी  थी. आखिरकार  अब सीमा को भी वर्कफ्रॉमहोम करने का मौका मिल गया था.

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सीमा ने राहत की सांस ली क्योंकि अब वो घर पर रहकर काम के साथ-साथ घर- परिवार की सेहत का ध्यान रख सकतीहैं.सुबह जल्दी उठने का तनाव नही था.बच्चो कीऑनलाइन  क्लास का समय सुबह 9 बजे था.सीमा के घर पर रहने के कारण परिवार भी थोड़ा रिलैक्स हो गया था.भागमभाग वाले  नाश्ते की जगह बच्चो ने आजपूरी ,आलू औ रहलवे की फरमाइश कर दी थी.सीमा को भी लगा इतना तो कर सकती हैं.

नाश्ता  खत्म करते करते   आठ बज गए थे. फिर से वो ही आपाधापी मच गई.कोरोना के कारण कामवाली भी नही आ रही थी किसी तरह से दौड़ते भागते बस झाड़ू ही लगा पाई थी कि देखा घड़ी की सूई नौके करीब पहुंच  गई थी    बासी मुँह से वर्चुअलक्लास नही ली  सकती थी.इस कारण मुँह हाथ धोक र बालो पर कंघी मारी और लेपटॉप ऑनकरके  , वर्चुअलक्लास के लिये बच्चो को मैसेज करना आरंभ किया परन्तु अचानक सेवाई -फाईबंद हो गया था.बहुत कोशिश करी फि रस्पीड धीमी हो गई. सीमा को लगा इतनी देर में बच्चो को नहाने के लिये बोल दे .वो अभी पतिदेव और बच्चो को नहाने का फरमान दे ही रही थी कि प्रिंसिपल महोदया का फोन आ गया.

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“सीमातुमअबतकक्याकररहीहो? वर्कफ्रॉमहोमकामतलबयेनहीहैंकितुमबच्चोकोऑनलाइनआनेकेलियेबोलकरखुदनदारदहोजाओ”

सीमाइससेपहलेकुछबोलती ,फोनकटहोगयाथा.

सीमाने  फिरसेकोशिशकरीऔरफिरउसनेअपनीकक्षाआरंभकरदी.परन्तुदोघण्टेकीक्लासखिंचतेखिंचतेतीनघण्टेकीहोगईक्योंकिकुछबच्चोनेबादमेंजॉइनकरीथी.

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