दुनिया भर में तहलका मचा था .कोरोना नाम की महामारी की वजह  से दुनिया का हर शहर, हर गली , हर घर लौक डाउन हो रहा था .

टीवी लगातार चल रहा था, मासूम निकहत की मां लगातार न्यूज पर नजर गड़ाए थी .जैसे कि न्यूज देखने से उनकी मुसीबत कुछ कम हो जाय .

निकहत पांचवीं में थी. स्कूल बंद था. अब्बा पुलिस में थे तो 'वर्क फ्रॉम होम ' का सवाल ही नहीं था , जैसा कि अन्य विभागों में सरकार की ओर से लागू किया गया था . आसपास के सारे माहौल पर बंद का सन्नाटा छाया था. निकहत की मां बीच बीच में अपना फोन चेक कर रही थी , और कुछेक घंटों में कहीं कौल कर रही थी.

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एक क़ौल आया , निकहत की मां ने दौड़कर फोन उठाया. शायद वह इस फोन के इन्तजार में थी.

"क्या हुआ भैया ? कुछ इंतजाम हुआ ?चार दिन से लगातार कोशिश कर रही हूं कि कहीं से ब्लड मिल जाय ,लेकिन कहीं कोई राह नहीं .ब्लड कहीं उपलब्ध ही नहीं है ,कोई डोनर नहीं मिला क्या भैया ?"अनिश्चित आशंका से आखरी शब्द गले में ही लड़खड़ा गए थे निकहत की अम्मी के.

"दीदी हमने भी बहुतों से पूछने की कोशिश की , कई परिचितों से तो संपर्क ही नहीं हो पा रहा है. अपने ही शहर में अकेले ऐसे बच्चों के ही केस डेढ़ सौ से ऊपर हैं ,और आप तो जानती हैं उन्हें कितनी खून की जरूरत पड़ती है."

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'भैया पिछली ही बार मैंने अपने पति को अपना ब्लड दिया था जब वे सरकारी काम में भीड़ के साथ मुठभेड़ में जख्मी हुए थे. मुझमे अभी प्लेटलेट्स और हीमोग्लोबिन की कमी है ,मेरा खून अभी काम न आ सकेगा ,कोई उपाय देखो भैया ." उसके करुण स्वर ने उस तरफ के व्यक्ति को भी आद्र कर दिया.

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