बढ़वार हासिल करने के लिए पौधों को अनेक तत्त्वों की जरूरत होती है, जिन को वे मिट्टी, पानी व हवा से लेते हैं. लेकिन सभी तत्त्व पौधों की खुराक का हिस्सा नहीं होते. वे तत्त्व, जो पौधों की खुराक होते हैं, उन्हें पोषक तत्त्व कहते हैं.मशहूर कृषि वैज्ञानिक आरनोन पौधों के लिए पोषक तत्त्वों की जरूरत को कुछ इस तरह बताते हैं, वे पोषक तत्त्व, जिन की कमी होने पर पौधे अपना जीवन चक्र पूरा नहीं कर पाते हैं.
पौधों के लिए जरूरी
पोषक तत्त्व
खास पोषक तत्त्व : इस में नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटैशियम आते हैं. पौधों को इन्हीं 3 पोषक तत्त्वों की सब से ज्यादा मात्रा की जरूरत होती है. इसलिए इन्हें खास पोषक तत्त्व कहते हैं. खेती में सब से ज्यादा इन्हीं पोषक तत्त्वों वाली खाद का इस्तेमाल होता है.
गौण पोषक तत्त्व : इस में कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम व सल्फर तत्त्व आते हैं. इन्हें पौधों के लिए पर्याप्त मात्रा में मिलना चाहिए. लेकिन इन का काम खास पोषक तत्त्वों के मुकाबले कम होता है.
सूक्ष्म पोषक तत्त्व : इस में आयरन, जिंक, कौपर, मैंगनीज, बोरोन, मोलिब्डेनम, क्लोरीन व कोबाल्ट तत्त्व आते हैं. पौधों को इन पोषक तत्त्वों की बहुत ही कम मात्रा यानी
1 पीपीएम से भी कम की जरूरत होती है. इसलिए इन्हें सूक्ष्म पोषक तत्त्व कहते हैं.लेकिन खास पोषक तत्त्वों के साथसाथ सूक्ष्म पोषक तत्त्व भी पौधों के विकास व बढ़ोतरी के लिए जरूरी होते हैं.
सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी से न केवल पौधों की बढ़वार रुक जाती है, बल्कि वे अपना जीवन चक्र भी पूरा नहीं कर पाते हैं. सूक्ष्म पोषक तत्त्व पौधों के पोषण के लिए जरूरी एंजाइम को क्रियाशील बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं और पौधों को बीमारियों से बचने व उन से लड़ने की ताकत देते हैं.
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आइए जानें, सूक्ष्म पोषक तत्त्व पौधों में क्याक्या करने की कूवत रखते हैं:
जिंक : यह पौधों की जिंदगी में होने वाली जरूरी प्रतिक्रियाओं में उत्प्रेरक का काम करता है और औक्सीकरण की क्रिया को नियमितता प्रदान करता है. यह अनेक एंजाइम्स के उपचयन में भाग लेता है और प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होता है. पौधों में पाए जाने वाले हार्मोनों के लिए यह जैविक संश्लेषण में काम आता है और पौधों के द्वारा फास्फोरस के उपापचय में सहायक होता है. यह पौधों द्वारा कार्बोहाइड्रेट के उपयोग को भी प्रभावित करता है.
जिंक की कमी से पौधों में पानी की मात्रा कम हो जाती है. जिंक पौधों में प्रकाश संश्लेषण और नाइट्रोजन के उपचयन में मदद करता है. जिंक फूल व फलों के बनने और फसलों के जल्दी पकने में मददगार होता है. पौधों में जिंक की कमी के लक्षण ये होते हैं:
* पौधों की पत्तियां एकदम छोटी हो जाती हैं.
* फास्फोरस बढ़ने से जिंक की कमी बढ़ती है.
* धान में खैरा बीमारी इस की कमी का खास लक्षण है.
लोहा : पौधों को इस की कम मात्रा में जरूरत होती है, लेकिन पौधों के पोषण में इस का काफी महत्त्व है. यह पौधों में क्लोरोफिल, प्रोटीन व कोशिका विभाजन के लिए जरूरी और पौधों के विभिन्न एंजाइम्स के बनने का खास घटक है. इस की कमी के लक्षण ये होते हैं:
* लोहे की कमी से पौधों में हरेपन की कमी दिखाई देती है.
* इस की कमी के लक्षण पौधे की शिराओं के बीच के भागों में ही सीमित रहते हैं.
* पत्तियों पर पीले रंग की लंबी धारियां दिखाई देती हैं.
* पौधों की बढ़वार कम होती है.
* पौधा सफेद दिखाई देने लगता है.
* फल अधपके गिर जाते हैं.
मैंगनीज : पौधों के पोषण में जरूरी यह तत्त्व पौधों की बढ़वार और पौधों के उपापचय के लिए जरूरी है. यह नाइट्रेट और क्लोरोफिल के बनने में मददगार होता है. यह कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन उपापचय में जरूरी होता है. यह एंजाइम के उत्प्रेरक के रूप में भी काम करता है. पौधों में मैंगनीज की कमी के लक्षण ये होते हैं:
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* मैंगनीज की कमी के चलते नई व पुरानी पत्तियों में कई तरह के हरिमाहीन धब्बे देखे जा सकते हैं.
* इस की कमी से पत्तियों का रंग हलका हो जाता है. साथ ही, पौधों की पत्तियों और जड़ों में चीनी की मात्रा में कमी आ जाती है.
* धान्य फसलों की पत्तियां भूरी हो जाती हैं और उन में ऊतक गलन बीमारी पैदा हो जाती है.
* इस की कमी के लक्षण पहले पौधों की नई पत्तियों पर दिखाई देते हैं.
तांबा : यह प्रकाश संश्लेषण व श्वसन क्रिया में भाग लेता है. फफूंदी से पैदा होने
वाली बीमारियों की रोकथाम में इस का खास रोल होता है. यह औक्सीकरण अवकरण की क्रिया में अहम काम व पौधों में विटामिन ए के बनने में मदद करता है. पौधों में तांबे की कमी के लक्षण ये होते हैं:
* तांबे की कमी से पौधों की बढ़वार रुक जाती है.
* सरसों वर्ग के पौधों की शिराओं व बीच में धब्बे पड़ जाते हैं.
* नई पत्तियों में क्लोरोसिस रोग हो जाता है.
बोरोन : यह आरएनए व डीएनए के संश्लेषण में योगदान देता है और कोशिकाओं में पानी पर काबू करता है. साथ
ही, दलहनी फसलों में यह नाइट्रोजन स्थिरीकरण में काफी मददगार होता है. पौधों में बोरोन की कमी के लक्षण ये होते हैं:
* बोरोन की कमी से जहां दलहनी फसलों की जड़ों पर गांठों का पूरा विकास नहीं हो पाता, वहीं प्रजनन अंगों का विकास भी प्रभावित होता है.
* बोरोन की कमी होने पर पौधे नाइट्रोजन का उपयोग भी कम कर पाते हैं.
* पौधों के सिरे रंगहीन व मुडे़ हुए हो जाते हैं.
* पार्श्व कलिकाएं विकसित नहीं होतीं.
* इस की कमी से पत्तियों पर सफेद धब्बे व धारियां पाई जाती हैं.
* फूल व फल बनने की दर कम हो जाती है.
* इस की कमी से पत्तियों में झुर्रियां, कड़ापन व हरिमाहीनता वगैरह के लक्षण पैदा हो जाते हैं.
मोलिब्डेनम : यह चीनी और विटामिन सी बनाने में मददगार होता है और फास्फोरस के उपापचय में भाग लेता है. दलहनी फसलों की जड़ग्रंथियों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया द्वारा हवा में मौजूद नाइट्रोजन के स्थिरीकरण में मोलिब्डेनम का खास रोल रहता है. यह फूलों की बढ़वार में मददगार होता है. मोलिब्डेनम के पौधों में कमी के लक्षण ये होते हैं:
* इस की कमी से पौधों में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है.
* पत्तियों के किनारे झुलस जाते हैं.
* तने व पत्ती पीली व धब्बेदार हो जाती है.
* दलहनी फसलों की जड़ों में ग्रंथि कमजोर रह जाती है.
* फूल निकलने में कमी आ जाती है.
क्लोरीन : यह कोशिका रस के संतुलन में मददगार है व एंथोसाइनिंस का संघटक पदार्थ है. यह पौधों की प्रकाश अपघटन की क्रिया में भाग लेता है. क्लोरीन के पौधों में कमी के लक्षण ये होते हैं:
* इस की कमी होने पर फल नहीं बनते हैं.
* मक्के के पौधे सूख जाते हैं.
* बरसीम की पत्तियां कटने लगती हैं.
* पौधों में हरिमाहीनता पैदा हो जाती है.
सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को हम कैमिकल खादों का इस्तेमाल कर कम कर सकते हैं. विभिन्न प्रकार के कैमकल खादों का इस्तेमाल दिए गए बौक्स के अनुसार करें.