कारवां ए मोहब्बत नामक मुहिम के जरिए रिटायर्ड आईएएस हर्ष मंदर ने नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों के ऊपर की गई पुलसिया बर्बरता की रिपोर्ट तैयार की है. आइए, उन्हीं से जानते हैं कि इस में है क्या...

पूर्व आईएएस अधिकारी हर्ष मंदर  सोशल ऐक्टिविस्ट के रूप में लंबे समय से काम कर रहे हैं. राइट टू फूड और भूमि सुधार कानून को बनवाने में हर्ष मंदर की प्रमुख भूमिका रही है. 1955 में गुजरात में पैदा हुए हर्ष मंदर को ‘राजीव गांधी नैशनल सद्भावना सम्मान’ जैसे कई बडे़ सम्मान मिल चुके हैं. मौब लिंचिंग और नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों पर पुलिस की बर्बरतापूर्ण कार्रवाई को ले कर इन्होंने ‘कारवां ए मोहब्बत’ नाम से एक मुहिम शुरू की. ‘कारवां ए मोहब्बत’ में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वाले मुसलिमों व दूसरे विरोधियों के ऊपर की गई पुलसिया बर्बरता की एक रिपोर्ट तैयार की गई. 48 पन्नों की इस किताब में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शन शुरू किए जाने के बाद होने वाली घटनाओं का सिलसिलेवार विवेचन किया गया है. ‘कारवां ए मोहब्बत’ को मीडिया के लिए जारी करने के इस कार्यक्रम में रिटायर्ड आईएएस हर्ष मंदर, समाजसेवी दीपक कबीर, रिटायर्ड आईपीएस एस आर दारापुरी, मैगसेसे अवार्डी संदीप पांडेय, महिला नेता सदफ फातिमा और मोहम्मद शोएब मौजूद थे.
नागरिकता संशोधन कानून को ले कर विरोध प्रदर्शन की वजहें क्या हैं?

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नागरिकता संशोधन कानून संविधान की मूल भावना के खिलाफ  है. मजहब के आधार पर नागरिकता देने का कानून हमारे देश की धर्मनिरपेक्ष छवि के खिलाफ  है. यह आपस में बांटने वाला कानून है. इस कानून से अल्पसंख्यक समुदाय खासतौर से मुसलिम समुदाय के मन में एक डर आ गया है. उन्हें लगता है कि वे सुरक्षित नहीं हैं. पहले दंगे होते थे, तो एक इलाका ही प्रभावित होता था. अब कहीं भी कोई भी ऐसे माहौल में हिंसा फैलाने लगता है. इस नफरत का जवाब देना जरूरी है. ‘कारवां ए मोहब्बत’ का मकसद यह बताना भी है कि हम अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य नहीं होते हुए भी उन के साथ खड़े हैं. बहुसंख्यक समुदाय में एक बेहद खतरनाक चुप्पी है. बहुसंख्यक समुदाय मूकदर्शक बना हुआ है. इस चुप्पी को तोड़ने की जरूरत है.
‘कारवां ए मोहब्बत’ में आप ने जो अध्ययन पेश किया है, वह क्या है?
उत्तर प्रदेश के मेरठ, सहारनपुर से ले कर राजधानी लखनऊ तक की घटनाओं को इस में लिया गया है. वैसे तो नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन पूरे देश में हुए, हर जगह पुलिस और प्रशासन ने अपने तरह से इस को संभाला पर उत्तर प्रदेश के मामले में एक अलग ही मंजर देखने को मिला. जो पूरे देश में कहीं और नहीं दिखा. यह मंजर देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कि उत्तर प्रदेश की पुलिस किसी दुश्मन से जंग लड़ रही हो. विरोधप्रदर्शन कोई नई बात नहीं है. हर सरकार के दौर में यह होता रहा है. पुलिस भी लाठीचार्ज करती रही है. इस मामले में पुलिस ने बर्बरता की सारी सीमाएं तोड़ दीं. केवल शारीरिक बर्बरता ही नहीं की गई, मानसिक यातनाएं भी दी गईं जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि पुलिस का सांप्रदायिक चेहरा सामने आया.
क्या पूरे उत्तर प्रदेश में ऐसे हालात दिखे?

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