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#lockdown: कहां से लाएं सैनिट्री पैड्स जब खाने तक को पैसे नहीं

दिल्ली के बुराङी में अलगअलग सरकारी स्कूलों में बङी संख्या में प्रवासी मजदूरों को रखा गया है.ये वही मजदूर हैं जो पिछले दिनों एक अफवाह के बाद दिल्ली के आनंद विहार में अपने गांव लौट जाने की आस लिए बङी संख्या में इकट्ठे हो गए थे तो हड़कंप मच गया था.

यहां बङी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी हैं जिन्हें सरकार भोजन तो करा रही है पर महिलाओं की जरूरी चीज सैनिट्री पैड्स की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं जा रहा.
बुराङी में ही पहचान संस्था के संयोजक देव कुमार ने बताया,”जब से इन मजदूरों को यहां लाया गया है तब से इन्हें बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा है.इस से खासकर महिलाओं को बङी मुश्किलों का सामना करना पङ रहा है.हालांकि मैडिकल स्टोर खुले हैं पर इन के पास न तो पैसा है और न बाहर निकलने की छूट.ऐसे में साथ रह रहीं महिलाएं सैनिट्री पैड्स की जगह कपङे का इस्तेमाल कर रही हैं. इस से दूसरी तरह का संक्रमण फैलने का खतरा है.”

परेशान हैं स्कूल की लङकियां

बिहार के कटिहार जिले के एक गांव की रहने वाली पिंकी 11वीं की छात्रा है. उस के साथ गांव की ही लगभग 17-18 लङकियां भी साथ ही पढ़ती हैं.पहले इन्हें सैनिट्री पैड्स स्कूल से ही मिल जाते थे पर लौकडाउन में स्कूल बंद होने और गांव से 3-4 किलोमीटर दूर मैडिकल स्टोर होने की वजह से ये सैनिट्री पैड्स नहीं खरीद पा रहीं. इन्होंने कोई 3-4 साल में पहली बार सैनिट्री पैड्स की जगह कपड़ों का इस्तेमाल किया है. यों भी जब देश की राजधानी दिल्ली में जब इस तरह की दिक्कतें हैं तो सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि बिहार, झारखंड, राजस्थान जैसे राज्यों की स्थिति क्या होगी.

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दिल्ली प्रैस के शैलेंद्र सिंह ने लखनऊ से फोन पर बताया,”लखनऊ के आसपास के गांवों की भी यही स्थिति है.लौकडाउन की वजह से दूरदराज के गांवों की रहने वाली लङकियोंमहिलाओं को भारी परेशानियों का सामना करना पङ रहा है.लौकडाउन में आवश्यक चीजों की आपूर्ति के लिए मैडिकल स्टोर्स और किराने की दुकानें जरूर खुली हुई हैं पर दूरदराज के गांवों में यह सुविधा नहीं पहुंच पा रही है.इस से उन के सामने सैनिट्री पैड्स की समस्या पैदा हो गई है. उत्तर प्रदेश में आंगनवाड़ी केंद्रों से भी सैनिट्री पैड्स मिल जाया करता था पर अब ये भी बंद हैं.

विकट स्थिति

बिहार के ही एक गांव की रहने वाली कविता भी इस समस्या से जूझ रही है. पिता मजदूर है और घर में पहले ही खानेपीने की समस्या आ खङी हुई है. मां नयना भी पहले दूसरे के घरों में काम कर कुछ पैसा कमा लेती थी. पर कोरोना वायरस के कहर के बीच घर के लोगों ने बाहरी व्यक्ति को आने से मना कर रखा है.इस से इन के पास जरूरी पैसे भी नहीं हैं कि सैनिट्री पैड्स जैसी जरूरत की चीजें खरीद सकें.
यों बिहार के सरकारी स्कूलों में छठी से 12वीं तक की लङकियों को साल में 300 रूपए सैनिट्री पैड्स के लिए सरकार देती है यानी प्रत्येक महीना सिर्फ 25 रूपए जो बेहद कम हैं.
वैसे भी सैनिट्री पैड्स को ले कर लङकियों में जागरूकता का भी अभाव है और वे इस मुद्दे पर मां अथवा बङी बहन से भी खुल कर बात नहीं करतीं। ऐसे में घर के किसी पुरूष सदस्य से इस के बारे में बताना तो सोच भी नहीं सकतीं.

घरघर पहुंचाए सरकार

आम आदमी पार्टी की दिल्ली प्रदेश महिला उपाध्यक्ष यस भाटिया बताती हैं,”कोरोना वायरस को ले कर हालांकि मोदी सरकार की लौकडाउन के फैसले का हमारी पार्टी ने समर्थन किया है पर मुझे लगता है कि इस कठिन समय में देश की महिलाओं के लिए मोदी सरकार को और राहत देनी चाहिए थी. जनधन खातों में सरकार ने जो 3 महीने 500-500 रूपए देने की घोषणा की है वह अधिक होना चाहिए था. साथ ही बेहतर होता कि सैनिट्री पैड्स घरों तक पहुंचाए जाते.”

काम नहीं आ रही वैंडिंग मशीनें

वहीं देश के कई जगहों के स्कूलों में सैनिट्री पैड्स के लिए वैंडिंग मशीनें तो लगी हैं पर अभी स्कूल बंद होने की वजह से लङकियां पैड्स नहीं ले पा रहीं.आंगनबाड़ी में काम करने वाली शशि ने बताया,”अभी तो आंगनबाड़ी भी बंद हैं.पहले हम पैड्स को जरूरतमंद महिलाओं के बीच बांटते थे पर कुछ दिनों से यह बंद है. कई महिलाओं के फोन आते हैं पर हम कर भी क्या सकते हैं.”

महिलाओं की मदद कर रही है सरकार

बिहार जनता दल यू (जदयू) की प्रदेश महिला अध्यक्ष श्वेता विश्वास बताती हैं,”देखिए यह सही है कि आम लोगों के साथसाथ लङकियोंमहिलाओं को दिक्कतें आ रही हैं पर नीतीश सरकार ने इन जरूरतों को समझते हुए प्रदेश के संबंधित विभागों को निर्देश दिया है कि वे किसी भी परिस्थिति में इन की हर तरह से मदद करें.”
उन्होंने बताया,”सैनिट्री पैड्स एक जरूरी चीज है पर अभी के हालात में पूरे देश में लौकडाउन है तो जाहिर है कुछ दिक्कतें हमारी बहनों को हो रही होंगी पर हमारी सरकार प्रयासरत है कि राज्य की महिलाओं की जरूरतों का ध्यान रखा जाए.”

सरकार से सवाल

इन जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ महिलाएं स्वयं सेवी संस्थाओं से भी मदद मांग रही हैं पर पहले से ही तंगहाली के दौर से गुजर रही महिलाओं के लिए यह भी एक विकट समस्या है. समस्या यह भी है कि पहले वे पेट की भूख शांत करें, घर में जरूरी राशन जुटाएं या सैनिट्री पैड्स खरीदें?
समस्या वाकई गंभीर है और केंद्र की मोदी सरकार द्वारा 500-500 रूपए देना कतई पर्याप्त नहीं. ऐसे में क्या सरकार को गरीब महिलाओं की सुध नहीं आनी चाहिए?

 

19 दिन 19 कहानियां: घुटन भाग 2

इंदु की भाभी ने भी तो यही प्रयास किया था. एक सुबह भाभी ने बरामदे और आंगन झाड़बुहार दिए  थे और चाय का काम संभाल लिया था. लेकिन निर्मल यह देख कर सन्न रह गया था कि इंदु को भाभी की लगाई झाड़ू पसंद नहीं आई थी और एक बार फिर उस ने सफाई की थी.

निर्मल भाभी के सामने बेहद शर्मिंदा हुआ था. न कहीं घुमाफिरा पाया, न घर में ही उचित वातावरण था. जातेजाते भाभी की बिटिया ने कह ही दिया, ‘बूआ, मैं ने आप का नाम रोबोट बूआ रख दिया है. आप का बस चले तो रात को भी न सोएं, चादरें ही धोती रहें.’

निर्मल बच्चों की बातें सुन मुसकरा दिया था, पर मन में बड़ा परेशान था इंदु के इस आचारव्यवहार से. एक भी मेहमान, पड़ोसी, खुद निर्मल का कोई दोस्त या फिर बच्चों के ही दोस्त, कोईर् भी नहीं घुस सकता था इंदु के घर में. वह इतनी व्यस्त रहती कि कभी कोई भूलेभटके आया भी तो उस के रूखे बरताव से आहत हो दोबारा कभी लौट कर नहीं आया. वह तो सामाजिक संबंधों के नाम पर शून्य थी. सुबह उठते ही उसे हर काम जल्दीजल्दी निबटाने की हड़बड़ाहट रहती. शाम को निर्मल थोड़ा सा प्रेम, जरा सी शांति पा लेने की उम्मीद में घर लौटता तो इंदु अपनी व्यस्तता के बीच या तो एक कप चाय दे जाती या फिर बाजार से कोई सामान लाने की फरमाइश कर देती और निर्मल का मन खीझ जाता.

निर्मल को एक शाम याद हो आई. उस की वह शाम हर शाम से अलहदा थी. रोमांटिक तो नहीं, मगर निर्मल को पुरसुकून लगी थी. उस शाम निर्मल स्कूटर निकाल कर जा ही रहा था कि बगल के क्वार्टर वाले अस्थानाजी ने उसे अचानक ही चाय का आमंत्रण दे डाला था.

निर्मल खिल उठा था. फौरन स्कूटर गेट पर खड़ा कर अस्थानाजी के बगीचे में लगी बैंच पर पहुंच गया.

बहुत भाता है निर्मल को अस्थानाजी का परिवार. 5 लोगों को सुखीसंतुष्ट परिवार. पतिपत्नी, 2 बेटियां और वृद्ध मां. अस्थानाजी से मिलना यानी दुनियाभर की खबरों को जानना, 5वें वेतन आयोग की रिपोर्ट से ले कर शिमलामिर्च के भाव तक. अगर इस बीच उन की पत्नी या मां भी आ जाएं तो और ज्यादा आनंद आ जाता.

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उस शाम निर्मल बेहद उत्साहित हो कर उन सब के बीच बैठा बातें कर रहा था कि इंदु भी बाहर निकल आई. निर्मल को अस्थाना परिवार से बातचीत करते देख एकदम विचलित हो गईर् और तुरंत अंदर जा कर एक बालटी पानी और सींक की झाड़ू लिए बाहर आई और जहां स्कूटर खड़ा था, वहां का फर्श धोने लगी व बगैर औपचारिकता का ध्यान रखे निर्मल से बोली, ‘यह गाड़ी यहां से हटा दो. सफाई करनी है.’

निर्मल लज्जित सा उठ आया था. अस्थानाजी के यहां से सीधा ही बाजार की तरफ निकल गया. बाजार से लौट कर उस ने पाया कि एक भी सामान ऐसा जरूरी नहीं था कि जिस के बगैर इंदु का काम रुकता. निश्चित ही उसे निर्मल को अस्थानाजी के परिवार के साथ बैठना और बातचीत करना नागवार गुजरा था.

उस रात निर्मल बेहद परेशान हो गया था. उसे एक ही एहसास हो रहा था कि अब जिंदगी में रखा ही क्या है.

दूसरे दिन सुबह इंदु ने ज्यों ही हड़बड़ी मचाई, निर्मल और भी पसर कर पलंग पर पड़ गया. उस दिन दफ्तर भी नहीं गया.

सारा दिन उसे लगता रहा, कहीं न कहीं उस का शरीर इस तनाव की जिंदगी से प्रभावित हो रहा है. तभी तो वह इंदु को लुभा नहीं पाता है. पूरा दिन पलंग पर पड़पड़े ही निकल गया. उसे ऐसे लग रहा था जैसे महीनों का बीमार हो. निर्मल दिनभर इंदु के साथ अकेला रहा. इंदु उस के पास 2-3 बार आईर् थी, मगर सिर्फ  आदेशनिर्देश देते हुए, ‘चलो, उठ कर नहा लो’ या ‘नाश्ता कर लो’ या ‘बाजार जाओगे क्या?’

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आखिर वह भी इंसान है. इस तरह अकेलापन कब तक भोगना होगा? इंदु ने तो घर को कैदखाना बना रखा है. कोई एक भी परिचित या मित्र से व्यवहार नहीं, न कहीं जाना, न किसी को बुलाना. बस, सुबह उठते ही हायहाय. निर्मल को लगा कि अब इस घुटनभरे माहौल में जीना दूभर है. और इंदु, उसे देखो तो ऐसा लगता है कि वह अपनी सारी जिंदगी जी चुकी है. न बनना, न संवरना, न कोई शौक. निर्मल ने कई बार कहा भी, ‘इंदु, महिलाओं के लिए कितनी अच्छीअच्छी पत्रिकाएं आ रही हैं, कुछ देर पढ़ लिया करो. घूमनेफिरने का समय नहीं है तो पुस्तकों के जरिए ही जानो कि दुनिया में कहां, क्या घटित हो रहा है.’

निर्मल की बातें सुन कर इंदु हंस दी थी. उस ने मोतीचूर के लड्डू जैसा कस कर जूड़ा बनाया और कमर में पल्ला खोंस कर काम में लग गई थी.

उस दिन निर्मल अपमान से छटपटा गया था और उस को अपना शहर, अपना गांव व अपना मकान तथा वहां रहने वाले दोस्त व रिश्तेदार बहुत याद आए थे. नौकरी की वजह से और अपने परिवार को बेहतर सुखसुविधाएं देने के लिए उसे सैकड़ों मील दूर लखनऊ आना पड़ा था.

क्यों न कुछ दिनों के लिए घर चला जाए? यह विचार आते ही निर्मल ने तुरंत इंदु को बुला कर अपनी इच्छा व्यक्त की, मगर उस का वही जवाब, ‘घर चलें? किसलिए? वहां जाना यानी खर्च ही खर्च. और घर जा कर तुम छुट्टियां क्यों बराबर करना चाहते हो. जमा करो छुट्टियां ताकि रिटायरमैंट पर कैश करवाई जा सकें. 4 दिनों के लिए भी जाते हैं तो मेरा घर का बजट गड़बड़ा जाता है.’

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उसी दिन निर्मल ने बगावत का पहला बिगुल फूंका था. वह अकेला ही 2 दिनों की छुट्टी ले कर घर हो आया था. वहां रुका तो था कुछ ही घंटे, मगर सब से मिल कर जैसे वह एक नया जीवन पा गया था.

अगले भाग में पढ़ें-  ‘‘क्या बात है, तुम सोए नहीं?’’

घुटन : भाग 3

घर से आ कर निर्मल बहुत खोयाखोया रहने लगा. दफ्तर से लौटते ही सीधा बैडरूम में जा कर लेट जाता. चुपचाप सोचता ही रहता. अब जिंदगी में कोई आकर्षण नहीं रहा. इंदु से मन की बात कहने का कोई सवाल ही नहीं उठता. उस के पास इन फालतू बातों के लिए समय ही कहां है? छोटेछोटे बच्चों की मासूमियत देख और ज्यादा चिंता होती है कि इन्हें सही सामाजिक जीवन कैसे मिल पाएगा. एक तरह से निर्मल सिर्फ पैसा कमाने की मशीन बन कर रह गया तो किसी न किसी रूप में बगावत तो होनी ही थी.

धीरेधीरे निर्मल को हर बात से, हर काम से चिढ़ होने लगी. उस का मन चुपचाप पड़े रहने को होता. वह अकसर छुट्टी लेने लगा और गुमसुम सा पड़ा रहता जबकि इंदु अपने काम में व्यस्त रहती.

इंदु को निर्मल का यों चाहे जब छुट्टी ले लेना बड़ा अखर जाता. आखिर एक दिन वह तुनक ही गई, ‘क्या बात है, आजकल आप दफ्तर के नाम से कतराते हैं.’

‘हां इंदु, अब किसी काम में दिल नहीं लगता है. घबराहट होती रहती है. शांति सी महसूस नहीं होती,’ निर्मल का जवाब सुन कर इंदु उस का मुंह देखती रह गई.

‘इंदु, मैं ने नौकरी से इस्तीफा देने का फैसला कर लिया है. अब नौकरी छोड़ कर गांव चलते हैं और अपनों के बीच रहेंगे.’

इस्तीफा देने की बात सुनते ही इंदु को लगा सारा कमरा घूम रहा है. वह सन्न रह गई.

उस रात वह पलभर भी सो नहीं पाई. अभी से नौकरी छोड़ कर निर्मल करेंगे क्या? यह सही है कि इंदु ने अपनी सारी पकड़ पैसे पर लगा कर काफी पूंजी जमा कर रखी है, पर अभी तो सारे काम सामने पड़े हैं. चारों बच्चों की शिक्षादीक्षा, उन का शादीब्याह, जोड़े हुए पैसों से पेट भरेंगे या फर्ज निभाएंगे. चारों बच्चों के मासूम चेहरों को याद करतेकरते कब सुबह हो गई थी, पता ही नहीं चला.

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उस सुबह निर्मल घर के सन्नाटे से घबरा कर उठ बैठा था. 7 बज रहे थे और इंदु अंशु को छाती से चिपकाए लेटी थी. वह इंदु के करीब गया. उस का माथा छू कर देखा तो उस ने आंखें खोल दीं, ‘तबीयत ठीक है? अभी तक सोई पड़ी हो.’

‘नहीं, मैं ठीक हूं. मगर आप ने इस्तीफे का निर्णय क्यों ले लिया. नौकरी छोड़ कर करोगे क्या?’

‘कुछ नहीं. अब पैंशन से गुजारा करेंगे. असल में मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती है.’

इंदु पति की बात सुन कर भौचक्की रह गई, ‘तबीयत को हुआ क्या है? अच्छेखासे नजर आ रहे हैं.’

‘अरे, बीमारी है तो किसी अच्छे डाक्टर को दिखाते हैं. जरूरत पड़ी तो सभी शारीरिक जांच करवा लेंगे. अगर कोई बीमारी हुई तो उस का इलाज भी होगा. पर यह तो कोई बात नहीं हुई कि सामने 4 मासूम बच्चों के भविष्य को अनदेखा कर हम बढि़या नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाएं.’

कुछ घंटों की माथापच्ची के बाद निर्मल इस बात पर तैयार हुआ कि इस्तीफा देने का उस का निर्णय तो पक्का है, किंतु फिलहाल 3 माह पश्चात ही वह अपना इस्तीफा संस्थान को सौंपेगा. उन के इस्तीफे की टाइप की हुई प्रति जब इंदु की बड़ी बेटी ने पढ़ी तो भोलेपन से पूछने लगी, ‘मम्मी, फिर हम लोग कौन से स्कूल में पढ़ेंगे?’

बेटी के प्रश्न ने इंदु का चैन, नींद सब लूट ली. वह निर्मल के साथ डाक्टर के पास गई. निर्मल का पूरा चैकअप व सारे टैस्ट करवाए. मामूली ब्लडप्रैशर के अलावा सब ठीकठाक था.

इंदु को भाभी की बातें याद आने लगीं. भाभी एक दफा उस से बोली भी थीं, ‘इंदु, क्षमता से ज्यादा काम क्यों करती हो? 4 बच्चों की गृहस्थी अकेले समेटने की कोशिश में सब बिखरने की नौबत न आ जाए. जब तक बच्चे छोटे हैं, मदद के लिए कामवाली लगा लो. कुछ सालों बाद बच्चे बड़े हो जाएंगे तो खुद ही अपने अधिकांश काम कर लेंगे. लेकिन तुम्हारे ये दिन वापस नहीं आएंगे. काम करो मगर अपने दांपत्य जीवन को भी महत्त्व दो. पैसा जोड़ने की धुन में पैसा कमाने वाले को ही उपेक्षित कर रही हो.’

पूरे घटनाक्रम को सोच कर इंदु समझ गई कि निर्मल को एकमात्र बीमारी बोरियत से उपजी घुटन ही है. असंतुष्टि ने ही निर्मल को इतना हताश कर दिया है. इस कमजोरी का एकमात्र कारण अवचेतन में इंदु की दिनचर्या, व्यवहार और आत्मकेंद्रित स्वभाव के कारण गहरी झुंझलाहट ही है. घिसीपिटी, घुटनभरी जिंदगी ने ही निर्मल को ऊबा दिया है.

और फिर इंदु अपना अपराधबोध निर्मल से छिपा भी नहीं पाईर् थी. एक दिन उस की गोद में सिर रख कर बिलख पड़ी थी, ‘आप को कुछ नहीं हुआ है. मन से बीमारी का भ्रम बिलकुल निकाल दो. सारी गलती मेरी है.’

निर्मल इंदु को सहला रहा था, पर मानो तसल्ली उसे मिल रही थी. देर से ही सही इंदु उस के करीब फिर आई तो.

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घर में मानो त्योहार आ गया था. निर्मल स्वयं को बेहद स्वस्थ महसूस करने लगा और इंदु की तो जिंदगी ही बदल गई थी. निर्मल के इस्तीफे देने की योजना का झटका इंदु के लिए करारा साबित हुआ था. वह पति की खुशी के लिए अब हर प्रयत्न कर रही थी.

निर्मल इतने खुशीभरे दिनों की छुट्टियां घर में कैद हो कर गुजारना नहीं चाहता था, पर इंदु को घूमनेफिरने से चिढ़ होने की वजह से वह चुप ही रहा. मगर जब इंदु ने स्वयं ही भैयाभाभी से मिलने चलने का प्रस्ताव रखा, तो निर्मल को मजा आ गया.

सब बातें सोच कर निर्मल कुछ जोर से हंस दिया, तभी इंदु की नींद खुल गई. निर्मल को यों जागते और जम कर हंसते देख वह चौंक गई, ‘‘क्या बात है, तुम सोए नहीं?’’

‘‘तुम जाग गईं. यह अच्छा हुआ. सुबह हो ही चली है. अगले स्टेशन पर चाय पिएंगे.’’

दोनों एकदूसरे को देख मुसकरा दिए. बातचीत का सिलसिला चल पड़ा. दोनों को ही ऐसा लग रहा था, मानो दोनों बरसों बाद मिल रहे हों. दोनों को एकदूसरे से कितनी सारी बातें कहनीसुननी हैं.

निर्मल मुग्धभाव से बारबार इंदु को निहार रहा था. ऐसी ही पत्नी की तो उस ने कल्पना की थी. निर्मल का मन हुआ वह गाड़ी में सोए सभी लोगों को जगा दे और ढिंढोरा पीटपीट कर कहे कि मुझे मेरी कल्पना की रानी मिल गई है.

‘‘क्यों बारबार इस तरह मुसकरा रहे हो?’’

‘‘तुम्हें अपने साथ पा कर मैं अपनी खुशी जज्ब नहीं कर पा रहा हूं. ये छोटीछोटी खुशियां, सामीप्य और परस्पर सामंजस्य ही तो जिंदगी की व्यस्तता, एकरसता या घुटन को दूर कर के मुसकराना सिखाती हैं. कितनी प्यारी लगती हो तुम यों मुसकराते हुए.’’

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निर्मल की बात सुन कर इंदु मुसकरा दी तो निर्मल को लगा कि पूरी दुनिया खुशी से खिलखिला पड़ी है.

उस का अंदाज: भाग 1

फोन की घंटी सुनते ही नेहल ने फोन कान से लगाया था, ‘‘हैलो.’’

‘‘कहिए, ‘थ्री इडियट्स’ फिल्म कैसी लगी? फिल्म पुरानी हो गई है, पर आप का उस के प्रति आकर्षण खत्म नहीं हुआ. कितनी बार देख चुकी हैं?’’ हलकी हंसी के साथ दूसरी ओर से आवाज आई थी.

‘‘हैलो, आप कौन?’’ नेहल को आवाज अपरिचित लगी थी.

‘‘समझ लीजिए एक इडियट ही पूछ रहा है,’’ फिर वही हंसी.

‘‘देखिए, या तो अपना नाम बताइए वरना इस दुनिया में इडियट्स की कमी नहीं है, उन में से आप को पहचान पाना कैसे संभव होगा. मैं फोन रखती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा गजब मत कीजिएगा. वैसे मेरे सवाल का जवाब नहीं मिला.’’

‘‘तुम्हारे सवाल का जवाब देने को मेरे पास फालतू टाइम नहीं है, इडियट कहीं का.’’

नेहल फोन पटकने ही वाली थी कि उधर से आवाज आई, ‘‘सौरी, गलती कर रही हैं, जीनियस इडियट कहिए. देखिए, किस आसानी से आप का मोबाइल नंबर मालूम कर लिया.’’

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‘‘इस में कौन सी खास बात है, तुम जैसे बेकार लड़कों का काम ही क्या होता है. दोस्तों पर रोब जमाने के लिए लड़कियों के नामपते जान कर उन्हें फोन कर के परेशान करते हो. पर एक बात जान लो, अगर फिर फोन किया तो पुलिस ऐक्शन लेगी, सारी मस्ती धरी रह जाएगी,’’ गुस्से से नेहल ने फोन लगभग पटक सा दिया.

एमए फाइनल की छात्रा, नेहल सौंदर्य और मेधा दोनों की धनी थी. ऐसा नहीं कि उसे देख लड़कों ने फब्तियां न कसी हों या उस के घर तक उस का पीछा न किया हो, पर नेहल की गंभीरता का कवच उन्हें आगे बढ़ने से रोक देता. उसे पाने और उस के साथ समय बिताने की आकांक्षा लिए न जाने कितने युवक आहें भरते थे. लेकिन आज तक किसी ने उसे इस तरह का फोन नहीं किया था.

मांबाप की इकलौती लाड़ली बेटी नेहल, अपने मन की बातें बस अपनी प्रिय सहेली पूजा के साथ ही शेयर करती थी. आज भी तमतमाए चेहरे के साथ जब वह यूनिवर्सिटी पहुंची तो पूजा देखते ही समझ गई कि नेहल का पारा हाई है. उस ने हंसते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है नेहल, आज तेरा गुलाबी चेहरा तमतमा क्यों रहा है?’’

‘‘मैं उसे ठीक कर दूंगी. अपने को हीरो समझता है. कहता है वह ‘जीनियस इडियट’ है. सामने आ जाए तो दिमाग ठिकाने न लगा दूं तो मेरा नाम नेहल नहीं.’’

‘‘किस की बात कर रही है, किसे ठीक करेगी?’’ पूजा कुछ समझी नहीं थी.

‘‘था कोई, नाम बताने के लिए हिम्मत चाहिए. न जाने उसे कैसे पता लग गया, हम ‘थ्री इडियट्स’ देखने गए थे. पूछ रहा था, फिल्म हमें कैसी लगी.’’

‘‘बस, इतनी सी बात पर इतना गुस्सा? अरे, बता देती तुझे फिल्म अच्छी लगी. रही बात उसे कैसे पता लगा, तो भई होगा कोई तेरा चाहने वाला. तुझे पिक्चर हौल में देखा होगा. इतना गुस्सा तेरी सेहत के लिए अच्छा नहीं, मेरी सखी. काश, कोई मुझे भी फोन करता, पर क्या करें कुदरत ने सारी सुंदरता तुझे ही दे डाली,’’ पूजा के चेहरे पर शरारतभरी मुसकराहट थी.

‘‘अच्छी बात है, अगली बार कोई फोन आया तो तेरा नंबर दे दूंगी. अब क्लास में चलना है या आज भी कौफी के लिए क्लास बंक करेगी?’’

‘‘मेरा ऐसा समय कहां, तू भला उस नेक काम में साथ देगी, नेहल? फिर उसी बोरिंग लैक्चर को सहन करना होगा. यार, यह हिस्ट्री सब्जैक्ट क्यों लिया हम ने. रोज गड़े मुर्दे उखाड़ते रहो.’’

पूजा के चेहरे के भाव देख नेहल हंस पड़ी.

‘‘तेरी सोच ही गलत है, पूजा. अगर रुचि ले तो इस विषय में न जाने कितना रोमांच और थ्रिल है. चल, वरना हम लेट हो जाएंगे.’’

बेमन से पूजा नेहल के साथ चल दी.

रात में मोबाइल की घंटी ने नेहल की नींद तोड़ दी. दिल में घबराहट सी हुई, कहीं  घर से तो फोन नहीं आया है. जब से नेहल पढ़ने के लिए इस शहर में आई थी, उस का मन घर के लिए चिंतित रहता था. शुरूशुरू में होस्टल में रहना उसे अच्छा नहीं लगा था. पूजा से मित्रता के बाद उसे घर की उतनी याद नहीं आती थी.

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‘‘हैलो.’’

‘‘जरा अपनी खिड़की का परदा उठा कर देखिए, मान जाएंगी क्या नजारा है. प्लीज इसे मिस मत कीजिए, मेरी रिक्वैस्ट है,’’ फिर वही परिचित आवाज.

‘‘दिमाग खराब है क्या मेरा जो रात के 2 बजे बाहर का नजारा देखूं? रात में जागना तुम जैसे उल्लू के लिए ही संभव है. लगता है तुम अपनी हरकतों से बाज नहीं आओगे, अब कोई ऐक्शन लेना ही होगा.’’

फोन तो नेहल ने बंद कर दिया, पर सोच में पड़ गई, आखिर वह उसे ऐसा क्या दिखाना चाहता है जिस के लिए आधी रात को उसे जगाया है. बिस्तर से सिर उठा कर जाली वाले झीने परदे से बाहर के नजारे को देखने का लोभ, वह संवरण नहीं कर सकी. बाहर पूर्णिमा का चांद अपने पूरे वैभव में साकार था. सारे पेड़पौधे चांदनी में नहाए खड़े थे. नेहल मुग्ध हो उठी. बिस्तर से उठ खिड़की के पास आ खड़ी हुई. उस के अंतर की कवयित्री जाग उठी. कविता की कुछ पंक्तियां मन में आई ही थीं कि मोबाइल फिर बजा.

‘‘मान गईं, क्या तिलिस्मी नजारा है. जरूर कोई कविता लिख डालेंगी, पर उस का क्रैडिट तो मुझे मिलेगा न?’’ फिर वही हंसी.

‘‘अब तक कितनों की नींद खराब कर चुके हो? तुम्हारा नंबर मेरे मोबाइल पर आ गया है, अब अपनी खैर मनाओ.’’

‘‘कमाल करती हैं, मैं ने बताया है न मैं जीनियस हूं. अगर मुझे पकड़ सकीं तो जो सजा देंगी, मंजूर है. वैसे कल आसमानी सलवारसूट में आप का चेहरा देख कर ऐसा लगा, नीले आकाश में चांद चमक रहा है. बाई द वे, आप का पसंदीदा रंग कौन सा है? नहीं बताएंगी तो भी मैं पता कर लूंगा. इतनी देर बरदाश्त करने के लिए थैंक्स ऐंड गुडनाइट.’’

फोन काट दिया गया.

प्यार नहीं वासना के अंधे : भाग 2

प्यार नहीं वासना के अंधे : भाग 1

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रुखसार के साथ तीसरी वजह भी जुड़ गई थी जो शादी के वक्त से उस के मन में सादिक की कमजोरी को ले कर थी. लिहाजा उस का मुंह शौहर के सामने खुलने लगा. सादिक ने इस से ज्यादा कुछ नहीं सोचासमझा कि यह सब उस की पैर की कमजोरी के चलते रुखसार जानबूझ कर उसे जलील करने के लिए करती है.

लिहाजा दोनों में रोज रोज कलह होने लगी और एक दिन तो इतनी हुई कि सादिक ने गुस्से में आ कर 3 बार ‘तलाक तलाक तलाक’ कह कर रुखसार की मुराद पूरी कर दी. वह आम औरतों की तरह पति के सामने रोई गिड़गिड़ाई नहीं बल्कि अपना सामान समेट कर उस का घर ही छोड़ दिया.

घर छोड़ने के बाद वह मायके इंदौर नहीं गई बल्कि महू में ही अलग किराए का मकान लेकर रहने लगी. ये कुछ दिन उस ने सुकून से गुजारे जहां सादिक की जोर जबरदस्ती और कलह नहीं थी, थी तो एक आजाद जिंदगी जिसे वह अपनी मरजी से जी रही थी.

रुखसार को तलाक दे कर सादिक को अहसास हुआ कि उस के बिना जिंदगी में काफी कुछ अधूरा है. दोनों अब अलगअलग अपने नशे की दुकान चला रहे थे और खुद भी नशा कर रहे थे.

रुखसार को भी मर्द की तलब लगने लगी थी. इसी दरम्यान उस की जानपहचान हरदीप नाम के नौजवान से हुई जो रंगीनमिजाज और आवारा होने के साथ बेरोजगार भी था. उसे भी नशे की लत थी, जिस के चलते उस की जानपहचान रुखसार से हुई थी और उस के हुस्न में फंसने से खुद को रोक नहीं पाया था.

इस हवसनुमा प्यार का नया अहसास रुखसार को उस जिंदगी में ले गया जिस के सपने वह शादी के पहले देखा करती थी. अब दोनों बिस्तर साझा करने लगे. प्यार की झोंक में ही रुखसार ने अपने दाहिने हाथ पर हरप्रीत के नाम का टैटू गुदवा लिया.

लेकिन हरदीप चालूपुर्जा निकला. कुछ महीनों में ही उस का रुखसार से जी भर गया तो वह उस से कन्नी काटने लगा. रुखसार अब दुनियादारी का ककहरा समझने लगी थी लिहाजा उस ने पैसों के लिए छोटीमोटी लूटपाट का भी धंधा शुरु कर दिया. इसी के चलते एक बार वह गिरफ्तार भी हुई और पीथमपुरा थाने में भी रही जिस का जिक्र पहले किया गया है.

हरदीप भी एक आपराधिक मामले में फंस कर जेल जा चुका था, लेकिन वह लौट कर दोबारा रुखसार के पास नहीं आया. उस के यूं मुंह मोड़ लेने से रुखसार की जिस्मानी जरूरतें सर उठाने लगी थीं लेकिन इन्हें पूरा करना उसे जोखिम भरा काम लग रहा था.

यही हालत सादिक की भी थी, लिहाजा हिम्मत कर एक दिन वह रुखसार के पास जा पहुंचा और उस से सुलह की बात कही लेकिन रुखसार अब मुड़ कर देखना नहीं चाहती थी, इसलिए उस ने उस की दोबारा शादी की पेशकश ठुकरा दी.

इस से सादिक का दिल दोबारा तो टूटा लेकिन एक अच्छी बात यह रही कि रुखसार इस बात पर राजी हो गई कि कभी कभार वह उसे शरीर सुख दे देगी. ऐसा होने भी लगा. जब सादिक को जरूरत पड़ती थी तो वह रुखसार के घर जा कर सैक्स की अपनी भूख प्यास मिटा लेता था और जब यही जरूरत रुखसार को महसूस होती थी तो वह सादिक के घर चली जाती थी.

दोनों अब एक समझौते के तहत जिंदगी जी रहे थे, जिस में किसी की कोई जोरजबरदस्ती नहीं थी. सौदा मरजी का था, जिस से दोनों खुश थे. सादिक का खून हालांकि यह जान कर खौला जरूर था कि तलाक के बाद रुखसार ने हरदीप से संबंध बनाए थे. लेकिन चूंकि अब वह उस की बीवी नहीं रही थी, इसलिए वह कोई ऐतराज नहीं जता पाया. वैसे भी जो सुख उसे रुखसार से चाहिए था वह मिल रहा था इसलिए खामोश रहने में ही उस ने भलाई समझी.

आजकल के डिजिटल युग में महू के पत्तीपुरा में ठेला लगा कर देवी देवताओं और फिल्मी नायिकाओं के पोस्टर बेचने वाले अधेड़ अनूप माहेश्वरी की दोस्ती सादिक से थी. अनूप भी नशेड़ी था और दिल फेक भी, इसी के चलते पत्नी उसे छोड़ कर चली गई थी.

3 साल पहले एक बार वह अपने ही घर में एक कालगर्ल के साथ मौजमस्ती करते गिरफ्तार भी हुआ था, जिस से समाज में उस की खासी बदनामी हुई थी और वह एक तरह से बहिष्कृत जिंदगी जी रहा था.

सादिक अकसर उसे नशीले पदार्थ मुहैया कराता था. कभीकभार जरूरत पड़ने पर नशीले पदार्थ लेने अनूप रुखसार के घर भी जाता था और जब भी जाता था, तब उस का दिल रुखसार को देख कर बेकाबू होने लगता था, एक तो अधेड़, ऊपर से मामूली शक्लसूरत वाले अनूप को रुखसार पसंद नहीं करती थी इसलिए अनूप की दाल उस के सामने कभी नहीं गली.

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सादिक और अनूप की मेल मुलाकातें बढ़ने लगीं और दोनों अकसर साथ बैठ कर नशा भी करने लगे. ऐसे में ही एक दिन जज्बाती हो कर सादिक ने उसे सब कुछ बता दिया कि तलाक के बाद भी वह रुखसार के पास जाता है और सेक्स सुख लेता है.

यह सुनते ही अनूप के खुराफाती दिमाग में यह खयाल आया कि अगर सादिक को शीशे में उतार लिया जाए तो रुखसार के संगमरमरी जिस्म पर फिसलने का मौका मिल सकता है. इतना सोचना था कि वह एकाएक अपने इस नशेड़ी दोस्त पर जरूरत से ज्यादा मेहरबान हो उठा और उस पर दिल खोल कर पैसा खर्च करने लगा. दोनों साथसाथ पार्टी करने लगे.

अनूप का पैसा सादिक के लिए सहूलियत वाली बात थी, इसलिए वह उससे दबने लगा और यही अनूप की मंशा भी थी. फिर एक दिन अनूप ने अपनी दिली ख्वाहिश भी सादिक पर जाहिर कर दी कि उसे भी एक बार रुखसार का सुख चाहिए.

इस पर सादिक तुरंत तैयार हो गया और उसे एक बार रुखसार से हमबिस्तर कराने का वादा भी कर डाला. सादिक का डर यह था कि अगर वह न कहेगा तो अनूप पैसे लुटाना बंद कर देगा और वैसे भी रुखसार अब उस की बीवी नहीं थी.

सादिक ने जब रूख्सार को अनूप की मंशा पूरी करने को कहा तो वह नागिन की तरह फुफकार उठी कि वह उसे कतई पंसद नहीं, चाहे कुछ भी हो जाए वह उस के सामने कभी नहीं बिछेगी. इस पर सादिक को खेल बिगड़ता नजर आया जो यह मान कर चल रहा था कि पैसों की खातिर रुखसार इस पेशकश पर इनकार नहीं करेगी.

अकसर अनूप उससे पूछता रहा कि कब मौज करवा रहे हो और हर बार सादिक उसे हिम्मत बंधाता रहता था कि जल्द ही करवा दूंगा, कोशिश कर रहा हूं तुम सब्र रखो. रुखसार कोई ऐसी वैसी औरत नहीं है, इसलिए मनाने में कुछ वक्त तो लगेगा.

लेकिन वह वक्त कभी नहीं आया जब भी सादिक रुखसार से अनूप को खुश करने की बात कहता तो उस का मूड खराब हो जाता था और वह उसे बुरी तरह दुत्कार देती थी. इसी तरह लंबा वक्त गुजर गया तो अनूप को लगा कि रुखसार के साथ सैक्स करने की उस की ख्वाहिश ख्वाब ही रहेगी.

इसलिए एक दिन उस ने थोड़ी कड़ाई से सादिक से बात की तो दोनों ने एक योजना बना डाली कि जब सीधी अंगुली से घी न निकले तो उसे टेढ़ी कर के घी निकाल लेना चाहिए.

इस योजना में तय हुआ कि सादिक रुखसार को नशे में इतना धुत कर देगा कि उसे होश ही न रहे, फिर अनूप अपनी ख्वाहिश पूरी कर लेगा. अनूप पर रुखसार को पाने की जिद सवार थी इसलिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार बैठा था.

योजना के मुताबिक पहली अक्तूबर सादिक रुखसार को नशा पार्टी की बात कह कर उसे अनूप के पत्तीपुरा वाले मकान में ले गया, जहां तीनों ने जम कर नशा किया और जानबूझ कर रुखसार को ज्यादा डोज दी. रुखसार को नशे में डूबते देख सादिक ने उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश शुरू कर दी. नशे में धुत रुखसार भी उत्तेजित हो गई और यह भूल गई कि अनूप भी घर में ही है.

जल्द ही दोनों निर्वस्त्र हो कर एकदूसरे में समाने लगे. यह दृश्य देख कर अनूप की कनपटियां गर्म हो उठीं, गला खुश्क होने लगा और नसों में खून 240 की स्पीड से दौड़ने लगा. रुखसार निर्वस्त्र हो कर बिना किसी शर्मोहया के सादिक से संबंध बना रही थी.

हल्की रोशनी में उस का दूधिया बदन अनूप की आंखों के सामने था. यह सोच कर उस का दिल धाड़धाड़ करता सीने के बाहर आने को बेताब हुआ जा रहा था कि सादिक के फारिग होने के बाद उस का नंबर है.

थोड़ी देर बाद सादिक और रुखसार अलग हुए तो वासना की आग में जलता अनूप रुखसार के नजदीक पहुंच गया और उस से संबंध बनाने की कोशिश करने लगा. रुखसार नशे में तो थी लेकिन इतनी भी नहीं कि यह न समझ पाती कि अनूप क्या करने की कोशिश कर रहा है.

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रुखसार को अनूप की यह हरकत बेहद नागवार गुजरी तो वह गुस्से से भर उठी और नशे में ही एक जोरदार लात अनूप को मार दी. लड़खड़ाए अनूप ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और वह फिर उस पर छा जाने की कोशिश करने लगा, लेकिन हाथपैर मारती रुखसार ने उसे कामयाब नहीं होने दिया.

अब तक चुपचाप तमाशा देख रहे सादिक को भी गुस्सा आ गया और वह अनूप की मदद के लिए आगे गया. उस ने सख्ती से रुखसार के दोनों पैर पकड़ लिए लेकिन रुखसार में जाने कहां से इतनी हिम्मत और ताकत आ गई थी कि उस ने फिर विरोध किया, जिस से अनूप की मंशा अधूरी रह गई.

वासना में डूबे आदमी की हालत क्या हो जाती है, यह उस वक्त अनूप की हालत देख कर समझी जा सकती थी, जो कभी ताकत से रुखसार को हासिल करने की कोशिश कर रहा था और कामयाब न होने पर उस के सामने गिड़गिड़ा भी रहा था कि बस एक बार…

लेकिन जब उसे समझ आ गया कि रुखसार कैसे भी नहीं मानने वाली तो गुस्से में आ कर उस ने रुखसार का गला दबाना शुरू कर दिया, जिस से कुछ ही देर में वह लाश में तब्दील हो गई.

रुखसार के दम तोड़ते ही अनूप ने सादिक की तरफ देखा तो वह बोला, ‘‘तू चिंता मत कर मैं इस की लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर दूंगा, तू बस इन्हें ठिकाने लगा देना.’’

ऐसा हुआ भी सादिक ने अपनी बीवी के लाश के टुकड़ेटुकड़े कर डाले, जिन्हें थैलों में भर कर अनूप नाले के पास फेंक आया. चूंकि एक दिन में यह काम मुमकिन नहीं था इसलिए टुकड़ों को ठिकाने लगाने में 2 दिन लग गए.

पुलिस की जांच में यह सब कुछ उस वक्त उजागर हो गया जब एक सीसीटीवी फुटेज में अनूप थैला ले जाते तो दिखा लेकिन वापस लौटते वक्त उस के हाथ खाली थे. दोनों एक एक कर गिरफ्तार हुए तो पुलिस की सख्ती के सामने उन्होंने सारी कहानी सुना डाली.

इस तरह रुखसार की कहानी और जिंदगी दोनों खत्म हो गए. अपने अंजाम की एक हद तक वह खुद भी जिम्मेदार थी. शादी के बाद वह पति की कमजोरी से समझौता कर उसे कामधंधा करने को तैयार कर लेती तो शायद इस तरह मरने से बच जाती.

सादिक भी कम गुनहगार नहीं जो अपने निकम्मेपन के चलते नशे के कारोबार और लत में अच्छाबुरा सब कुछ भुला कर अपनी ही तलाकशुदा बीवी को दूसरे के हवाले करने को न केवल तैयार हो गया, बल्कि इस के लिए उस ने अनूप की पूरी मदद भी की.

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पुलिस ने घटनास्थल से वह धारदार चाकू और सुपारी काटने का सरौता भी बरामद कर लिया, जिस से सादिक ने रुखसार के जिस्म के टुकड़े किए थे. रुखसार की कान की बालियां भी बरामद हो गईं. घटनास्थल पर उस का खून भी फोरैंसिक जांच के लिए भेजा गया. अब दोनों जेल में हैं और तय है उन्हें सजा होगी, क्योंकि जुर्म वे स्वीकार कर चुके हैं और सिलसिलेवार उस की कहानी भी सुना चुके हैं.

अनूप शायद ही कभी समझ पाए कि त्रियाचरित्र को त्रियाचरित्र क्यों कहा जाता है. जो रुखसार उस की मंशा पूरी करने को राजी नहीं हुई तो नहीं हुई. उसे मरना गवारा था, लेकिन अपनी मरजी के खिलाफ उस के साथ हमबिस्तर होना नहीं. नशे की लत आदमी से क्या कुछ नहीं करवा देती, यह भी इस वारदात से समझ आता है.

19 दिन 19टिप्स: पीसीओडी की समस्या और निदान

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में महिलाएं अपने स्वास्थ्य की अनदेखी कर देती हैं, जिस का खमियाजा उन्हें विवाह के बाद भुगतना पड़ता है. लड़कियों को पीरियड्स शुरू होने के बाद अपने स्वास्थ्य पर खासतौर से ध्यान देने की आवश्यकता होती है. महिलाओं के चेहरे पर बाल उग आना, बारबार मुहांसे होना, पिगमैंटेशन, अनियमित रूप से पीरियड्स का होना और गर्भधारण में मुश्किल होना महिलाओं के लिए खतरे की घंटी है.

चिकित्सकीय भाषा में महिलाओं की इस समस्या को पोलीसिस्टिक ओवरी डिजीज यानी पीसीओडी के नाम से जाना जाता है. इस समस्या के होेने पर महिलाओं, खासकर कुंआरी लड़कियों को समय रहते चिकित्सकीय जांच करानी चाहिए. ऐसा नहीं करने पर महिलाओं की ओवरी और प्रजनन क्षमता पर असर तो पड़ता ही है साथ ही, आगे चल कर उच्च रक्तचाप, डायबिटीज और हृदय से जुड़े रोगों के होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

आज करीब 30 प्रतिशत महिलाएं इस बीमारी से ग्रस्त हैं जबकि चिकित्सकों का मानना है कि इस बीमारी की शिकार महिलाओं की संख्या इस से कई गुना अधिक है. उचित ज्ञान न होने व पूर्ण चिकित्सकीय जांच न होने की वजह से महिलाएं इस समस्या से जूझ रही हैं.

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पीसीओडी बीमारी के बारे में गाइनीकोलौजिस्ट डा. शिखा सिंह का कहना है कि यह एक हार्मोनल डिसऔर्डर है. पीरियड्स के पहले और बाद में महिलाओं के शरीर में बहुत तेजी से हार्मोन में बदलाव आते हैं जो कई बार इस बीमारी का रूप ले लेते हैं.

डा. शिखा की मानें तो हर महीने महिलाओं की दाईं और बाईं ओवरी में पीरियड्स के बाद दूसरे दिन से अंडे बनने शुरू हो जाते हैं. ये अंडे 14-15 दिनों में पूरी तरह से बन कर 18-19 मिलीमीटर साइज के हो जाते हैं. इस के बाद अंडे फूट कर खुद फेलोपियन ट्यूब्स में चले जाते हैं और अंडे फूटने के 14वें दिन महिला को पीरियड शुरू हो जाता है लेकिन कुछ महिलाओं, जिन्हें पीसीओडी की समस्या है, में अंडे तो बनते हैं पर फूट नहीं पाते जिस की वजह से उन्हें पीरियड नहीं आता.

आगे उन का कहना है कि ऐसी महिलाओं को 2 से 3 महीनों तक पीरियड नहीं आने की शिकायत रहती है, जिस की सब से बड़ी वजह है कि फूटे अंडे ओवरी में ही रहते हैं और एक के बाद एक उन से सिस्ट बनती चली जाती हैं. लगातार सिस्ट बनते रहने से ओवरी भारी लगनी शुरू हो जाती है. इसी ओवरी को पोलीसिस्टिक ओवरी कहते हैं.

इतना ही नहीं, इस के कारण ओवरी के बाहर की कवरिंग कुछ समय बाद सख्त होनी शुरू हो जाती है. सिस्ट के ओवरी के अंदर होने के कारण ओवरी का साइज धीरेधीरे बढ़ना शुरू हो जाता है. ये सिस्ट ट्यूमर तो नहीं होतीं पर इन से ओवरी सिस्टिक हो चुकी होती है, जिस से अल्ट्रासाउंड कराने पर कभी ये सिस्ट दिखाई देती हैं तो कभी नहीं. दरअसल, अंडों के ओवरी में लगातार फूटने के चलते ओवरी में जाल बनना शुरू हो जाता है. धीरेधीरे ओवरी के अंदर जालों का गुच्छा बन जाता है. इसलिए सिस्ट का पूरी तरह से पता नहीं चल पाता है.

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डा. शिखा के मुताबिक पीसीओडी होने के कारणों का पूरी तरह से पता नहीं चल पाया है लेकिन चिकित्सकों की राय में लाइफस्टाइल में बदलाव, आनुवंशिकी व जैनेटिक फैक्टर का होना मुख्य वजहें हैं.

क्या हैं सिस्ट के लक्षण

ओवरी में बिना अंडों के न फूटने की वजह से जो सिस्ट बनती हैं उन में एक तरल पदार्थ भरा होता है. यह तरल पदार्थ पुरुषों में पाया जाने वाला हार्मोन एंड्रोजन होता है, क्योंकि लगातार सिस्ट बनती रहती हैं तो महिलाओं में इस हार्मोन की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है, जिस की वजह से युवतियों के शरीर पर पुरुषों की तरह बाल उगने लगते हैं. इसे हरस्यूटिज्म कहते हैं. इस तरह महिलाओं के चेहरे, पेट और जांघों पर बाल उगने लगते हैं.

एंड्रोजन की अधिकता के कारण शरीर की शुगर इस्तेमाल करने की क्षमता भी दिनप्रतिदिन कम होती जाती है, जिस की वजह से शुगर का स्तर भी बढ़ता चला जाता है, जिस से खून में वसा की मात्रा बढ़नी शुरू हो जाती है और यही वसा महिलाओं में मोटापे का कारण बनती है.

मोटापा अधिक होने के कारण महिलाओं में इस्ट्रोजन नामक हार्मोन ज्यादा बनने की संभावना बढ़ जाती है. इस स्थिति में लिपिड लेवल भी बढ़ा हुआ होता है जिस की वजह से ब्लड वैसल्स में फैट सैल्स बढ़ जाते हैं और ब्लड की नलियों में चिपक कर उन्हें संकीर्ण बना देते हैं. ये सैल्स ब्लड सप्लाई करने वाली नलियों को ब्लौक भी कर देते हैं.

महिलाओं में इस्ट्रोजन अधिक मात्रा में बनता है तो ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन भी ज्यादा बनता है, जिस की वजह से माहवारी में अनियमितता पाई जाती है. साथ ही, काफी दिनों तक इस्ट्रोजन ही बनता जाता है और उसे बैलेंस करने वाला प्रोजैस्ट्रोन बन नहीं पाता. यदि गर्भाशय में इस्ट्रोजन बहुत दिनों तक काम करता है, तो महिलाओं को यूटेराइन कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है.

अगर किसी महिला में पीसीओडी के लक्षण हैं तो उसे इस बीमारी की जांच के लिए पैल्विक अल्ट्रासाउंड कराना चाहिए. इस के अलावा हार्मोनल और लिपिड टैस्ट होते हैं. हार्मोन के सीरम स्तर पर ग्लूकोज टौलरैंस आदि की जांच की जाती है. इस से बौडी में ग्लूकोज की सही मात्रा की जानकारी मिल जाती है.

16 से 18 साल की लड़की के पीरियड अनियमित होने पर उस का इतना ही इलाज किया जाता है कि पीरियड्स नौर्मल हो जाएं. जिस तरह से हर महीने कौंट्रासैप्टिव दिए जाते हैं उसी तरह से उसे कौंबिनैशन हार्मोन की दवाएं दी जाती हैं. डा. शिखा ने बताया कि सामान्य रूप से एक लड़की को 11 साल की उम्र में पीरियड्स होने लगते हैं. पीरियड शुरू होने के 4-5 साल बाद यदि वह अनियमित होने लगे तो डाक्टरी सलाह और जांच करा लेनी चाहिए.

पीसीओडी से पीडि़त युवती की शादी हो जाने पर उसे पीरियड की अनियमितता और गर्भधारण जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. इस स्थिति में उस की माहवारी को नियमित करने और अंडा समय पर पक सके, इस का इलाज किया जाता है.

इस के अलावा इन महिलाओं की गर्भधारण के दौरान अन्य गर्भवती महिलाओं की तुलना में ज्यादा देखभाल करनी पड़ती है क्योंकि इन में गर्भपात की आशंका बहुत ज्यादा बनी रहती है. इसलिए गर्भधारण करने के 3 महीने तक यदि गर्भ ठहरा रहता है तो फिर वे एक सामान्य महिला की तरह रह सकती हैं. इस के बाद डिलीवरी में किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं आती है.

पीसीओडी की शिकार महिलाओं में बारबार गर्भपात के आसार ज्यादा होते हैं. इसलिए यदि कोई बड़ी उम्र की महिला गर्भवती होती है तो हो सकता है वह प्रीडायबिटिक हो. ऐसी स्थिति में महिलाओं को चाहिए कि समयसमय पर डायबिटीज की जांच कराती रहें और यदि किसी महिला का वजन अधिक है तो उसे व्यायाम और अन्य शारीरिक कसरत से अपना वजन घटाना चाहिए ताकि गर्भधारण के दौरान महिला और उस के गर्भ में पल रहे शिशु को किसी भी प्रकार की शारीरिक समस्याओं से दोचार न होना पड़े.

इन महिलाओं को दिन में एक बार में ज्यादा खाना खाने से बचना चाहिए. ज्यादा खाना खाने के बजाय उन्हें बारबार थोड़ीथोड़ी मात्रा में खाना खाना चाहिए. वे कम कार्बोहाइड्रेट और वसायुक्त भोजन लें, मीठी चीजों से परहेज करें ताकि शरीर में इंसुलिन का स्तर अधिक न हो. ऐसी तमाम बातों का ध्यान रख कर पीसीओडी से ग्रस्त महिला गर्भवती हो कर मां बनने का सुख प्राप्त कर सकती है.

#lockdown: एक ही देश में अलग अलग कानून क्यों?

कोटा, राजस्थान का जानामाना जिला. इसे कौन नहीं जानता. चम्बल नदी के किनारे राज्य की राजधानी से 240 किलोमीटर दूर यह शहर. वैसे तो कोटा मशहूर है किलों, महलों, संग्रालयों, बगीचों और मंदिरों के लिए, लेकिन अब यह जाना जाता है कोचिंग सेंटरों के चलते. इस शहर की भीड़भाड़ में आपको घुमने वालों से ज्यादा जीवन की राहें बनाने वाले युवाओं की दिख जाएगी. यह एक ऐसी जगह है जहां पैसों में सपने बुने जाते हैं सुनहरे भविष्य के. जहां से देश के मेडिकल, इंजीनियरिंग, सीए, बिसनेस मनेजमेंट के लिए दरवाजे खुलते हैं.

कोटा में क्या हुआ?

14 अप्रैल को जब प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी ने लाकडाउन को 3 मई के लिए बढाया तो “#ब्रिंगबैकअसहोम” और “#हेल्पकोटा_स्टूडेंट्स” के नाम से हैशटेग बड़ी तेजी से ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा. यह इतनी तेजी से ट्रेंड हुआ कि दिन होते होते इस हैशटेग से 80000 ट्वीट किये जा चुके थे. यह हैशटेग टॉप ट्रेंडिंग में दिखने लगा, पता चला कि ये कोटा के कोचिंग सेंटरों में पढने वाले छात्रों के द्वारा किया जा रहा है जो अलग अलग राज्यों से आईआईटी, जेईई, सीए, आईआईएम के एंट्रेंस पास करने की तैयारी के लिए यहां आए हुए हैं. इस हैशटेग की इतनी ताकत थी की इसने पुरे देश का ध्यान अपनी और खींच दिया. राजस्थान की सरकार में हलचल होने के बाद यह हैशटेग सीधा दिल्ली जा पंहुचा, और फिर वंहा से होते हुए उत्तर प्रदेश में इसने कार्यवाही को अंजाम दिया. छात्रों की समस्या को देखते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने स्पेशल पास से राज्य के छात्रों को वापस लाने के लिए शुक्रवार देर रात रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया. जिसमें ख़बरों की माने तो लगभग 8000 छात्रों को वापस अपने गृह राज्य लाने के लिए 300 बसों को कोटा रवाना किया गया.

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पक्षपात करती सरकार

जाहिर है यह कदम नैतिक तौर पर किसी को भी सरकार के लिए सराहनीय योग्य लगेगा. लेकिन सरकारों द्वारा किये जा रहे इस तरह के रेस्क्यू ऑपरेशन को देखेंगे तो साफ़ समझ आ जाएगा कि सरकार यह एकतरफ़ा वर्ग के लिए ही यह कार्यवाहियां कर रही है. इन कार्यवाहियों ने सरकारों का असली चेहरा सामने ला कर रख दिया है.

लाकडाउन जब शुरू हुआ था तब उस से पहले विदेश में पढ़ रहे कई छात्रों और लोगों को प्राइवेट और सरकारी जेट भिजवा कर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया. जाहिर सी बात थी इनका संबंध देश के बड़ेबड़े नेताओं, कॉर्पोरेट और ऊपर के नौकरशाहों से था तो यह तो होना ही था. यही लोग थे जो विदेश से कोरोना की पुड़िया साथ में ले कर आए थे और देश में बांटते चले गए. इन लोगों के भारत में दाखिल होने के बाद इन पर सरकार द्वारा किसी भी तरह की नकेल नहीं कसी गई.

इसके बाद बिना तैयारी के पहले फेज के लाकडाउन से यह समझ आ चुका था कि इस लाकडाउन से देश की करोड़ों निम्न तबके की मजदूर आबादी भुखमरी से बेहाल हो जाएगी. उसके बावजूद भी असंख्य गरीब आबादी के परिस्थिति को सुधारने की जगह सरकार उन पर लाठियां डंडे भांजती नजर आई. वहीँ नेता अपने बच्चों की भव्य शादियाँ और बर्थडे पार्टी कराने में खूब सामाजिक होते पाए गए. फिर सवाल वही घूम फिर के सामने आता है कि अगर आप बाहर देश से लोगों को वापस देश में ला सकते हैं या आप किसी इलाके के छात्रों को अपने गृह राज्य में वापस ला सकते हैं तो किस आधार पर माइग्रेंट मजदूरों को वहीँ रुकने को कह सकते हैं?

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ऐसे तो हमारे देश के संविधान ने लोगों को समानता का अधिकार दिया है. लेकिन जब बात आती है इसे अमल में लाने की तो जेब की मोटाई पर ध्यान दिया जाता है. आज पुरे देश में सम्पूर्ण तौर पर लाकडाउन चल रहा है. संविधान कहता है कि कानूनी प्रक्रिया सबके लिए बराबर होंगी. लेकिन विभाजित समाज में संवेधानिक समानता की कानूनी प्रक्रिया को ही देखा जाए तो भी निम्न तबके का आदमी ही हमेशा कष्ट झेलता रहा है.

छात्रो के बीच में भी पक्षपात 

यह हकीकत है कि आज लाकडाउन के आह्वान के बाद जो जहां था वह वही फंस गया है. जाहिर है इसमें लाखों की संख्या में माइग्रेंट स्टूडेंट्स अपने घरों से दूर दराज राज्यों में फंस गए हैं. यह सिर्फ कोटा में नही बल्कि देश के अलग अलग शहरी राज्यों में फंसे हुए हैं. बात अगर दिल्ली की हो तो यहां भी हर साल लाखों की संख्या में स्टूडेंट्स कम्पटीशन (एसएससी, बैंक पीओ) के लिए और यूनिवर्सिटी में दाखिले के बाद यहां आते हैं. लक्ष्मी नगर, निर्माण विहार, मुखर्जी नगर, करोल बाग इत्यादि जगहों में कोचिंग सेंटर और पीजीहोस्टल की संख्या इस बात की गवाह है कि किस तरह से स्टूडेंट्स यहां फंस चुके हैं. इसके इतर कई ऐसे राज्य है जहा छात्र पढने के लिए पलायन करते हैं. कोटा ऑपरेशन में यूपी सरकार के द्वारा की कार्यवाही यहां के छात्रों को हताश कर रही है. इन छात्रों को खानपान के उचित साधन होने के बाद भी कोटा प्रकरण को देख कर रहने का नैतिक आधार अब नहीं बचा है. जाहिर है यह स्टूडेंट्स भी अपनी अपनी सरकारों से वापस घर जाने की काफी समय से मांग कर रहें थे. लेकिन योगी सरकार द्वारा छात्रों के लिए एक तरफ़ा कार्यवाही निसंदेह दुखदायी है.

कोटा के बहाने कॉर्पोरेट लॉबी पर शिकंजा

एक बात यह भी है  कि कोटा में गरीब-गुरबो के बच्चे पढ़ने के लिए नहीं आते है. और यदि आते भी है तो उनकी संख्या बेहद ही कम होती है. क्योंकि कोचिंग के लिए दी जाने वाली मोटी फ़ीस का हिसाब लगाया जाए तो सालाना एक स्टूडेंट पर यह 1.5 लाख से 2 लाख का खर्चा बैठता है. उसके बाद रहने के लिए कमरा,  खाना पीना, और अन्य तरह के ख़र्चों के लिए पैसा बेहद ज़रूरी होता है जो एक समृद्ध परिवार के लिए ही संभव है. यहां पर पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता अच्छे खासे, खाए पिए घरों से ताल्लुक रखते है. इन्ही के बच्चे होते हैं जो यही छात्र जो आगे जाकर आईआईटी, आईआईएम, और बड़ेबड़े मेडिकल संस्थानों में दाखिला ले पाते हैं और लाखों की फीस बुझा पाते हैं.

मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग से आने वाले यह छात्र जो कोम्पटीशन की तैयारी करने के लिए अपने घरों से दूर दराज दुसरे शहरों में गए हैं, यह बड़ेबड़े संस्थानों में जाकर, वहां से निकलने के बाद ऊँचे पदों पर विराजमान होते हैं. कोई अपने मातापिता की तरह नौकरशाह बनते है तो कोई कॉर्पोरेट में घुसते है. इसके अलावा यह सरकार का मध्यम वर्ग को अपने शिकंजे में कसने का एक रास्ता है. साथ ही सरकार के लिए यह छात्र आज का इन्वेस्टमेंट है. जो बाद में जाकर इनके लिए कॉर्पोरेट लॉबी का काम करते हैं. इसलिए इनके मेंटल स्ट्रेस तक का ध्यान रखा जाता है. यही कारण है कि सरकार इनकी जरूरतों का ख़याल आम लोगों की तुलना में जल्दी करती है. आम लोगों का क्या, वह तो बस चुनाव में वोट देने के लिए 5 साल में एक बार याद किये जाते हैं. उसके बाद उन्हें भूखे मरने को छोड़ दिया जाता है.

ट्विटर के ट्रेंड को तरजीह देती सरकारें

जाहिर है जिस ट्विटर हैशटेग का कोटा के कोचिंग सेंटरों के स्टूडेंट्स द्वारा उपयोग किया गया उस पर भारत की महज 3 प्रतिशत आबादी ही उपलब्ध है. यानी जिस मुहीम के तहत सरकारों के कानों में अपनी व्यथा की बात इन छात्रों के द्वारा पहुंचाई गई वह गरीब आबादी के लिए बहुत दूर की बात है. यह तो और भी दुख की बात है कि ट्विटर पर ट्रेंड करवाना ही अगर अपनी व्यथा बताने का रास्ता है और सरकार इसी के माध्यम से लोगों की दिक्कतों को समझ और जान रही है तो अधिकतर भारतीय इस पर ट्रेंड नहीं करवा सकते. यानी उनकी समस्या सरकार के सामने रखने में असमर्थ हैं.

अब चूंकि यह छात्र अपने अपने घर पहुंच चुके होंगे तो एक उम्मीद इनसे उस ताकत के लिए है जिसका इस्तेमाल इन्होने लाकडाउन के दौरान बढ़ रहे अपने मेंटल स्ट्रेस को ख़त्म करने के लिए किया, जिसे सरकार सर्वोपरी माने हुए है. वह है ट्विटर ट्रेंड की ताकत, भारत के उन माइग्रेंट भूखे गरीब मजदूरों की इनसे इतनी उम्मीद तो जरुर होगी कि इस अनोखी ताकत से उनका भी कुछ उद्धार हो जाए. और पढ़ा लिखा यह सभ्य तबका जो उम्मीद है बिना केमिकल के छिडकाव के अपने घर पहुंचे होंगे वों घर में बैठ कर इन मजदूरों के लिए भी ऐसी ही कुछ मुहीम चलाए.

घुटन : भाग 1

निर्मल ने एक बार फिर से सामने की बर्थ पर सोई इंदु पर नजर डाली. इंदु अपनी बांह पर सिर रखे बेखबर नींद में जाने क्या सपना देख कर कभी मुसकरा पड़ती, तो कभी सिसक पड़ती.

निर्मल ने उठ कर पहले पानी पिया, फिर इंदु व उस से चिपके अंशु को ठीक से चादर ओढ़ा दी और फिर अपनी बर्थ पर जा कर लेट गया. पर उसे आज नींद नहीं आ रही थी. उस ने एक बार कूपे में, जहां तक नजर जाती थी दौड़ाई, सभी यात्री लगभग सो चुके थे.

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निर्मल को सचमुच सबकुछ सपने की ही तरह लग रहा है. जिंदगी कभी इतनी खूबसूरत हो सकती है, उस ने तो सपने में भी नहीं सोचा था. वह अपने जीवन से एकदम निराश हो चुका था. ऐसा लगता था जैसे एक जीताजागता आदमी नहीं, बल्कि एक मशीन हो. बस, सुबह से शाम और शाम से रात तक लगे रहो रोबोट की तरह.

निर्मल इंदु को देख मुसकरा दिया. कितने सालों बाद इस नादान को समझ में आया कि वैवाहिक जीवन और वह भी संतुष्ट वैवाहिक जीवन क्या होता है.

पिछले साल की ही बात है, इसी अंशु बेटे की पहली सालगिरह पर खासा आयोजन किया था. इंदु की बेटे की चाह जोे पूरी हुईर् थी. पुत्र की आस में एक के बाद एक 3 बेटियां पैदा हो चुकी थीं. फिर भी निर्मल को कोई मलाल नहीं था. क्योंकि उस के पास बढि़या नौकरी तो थी ही, साथ ही, वह भरपूर मेहनत भी कर रहा था ताकि पदोन्नति का कोई मौका चूकने न पाए.

दिनभर जीतोड़ मेहनत करने के बाद आदमी क्या चाहेगा? अपने घर में जा कर चैन, आराम और प्रेम.

और यही निर्मल को नसीब न था. निर्मल ने चाहा था इंदु उस की भावनाओं को कुछ तो समझे. पर उस में तो इतनी समझ ही नहीं थी. अंशु की सालगिरह पर इंदु के भाईभाभी भी सपरिवार पहुंचे थे. एक तो खुशी का मौका, दूसरे अपनी भतीजियों पर इंदु का विशेष स्नेह, उस ने जिद कर के रोक लिया भाभी व बच्चियों को. भाईसाहब को अपने व्यवसाय की वजह से जाना पड़ा था.

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निर्मल चाहता था कि शाम को इंदु भाभीजी व बच्चों को ले कर घूमने जाए. लखनऊ में तो शाम को घूमने में ही मजा आता है. किसी दिन भूलभुलैया या चिडि़याघर देख आने का प्रोग्राम बना ले.

इंदु के सामने अपना प्रस्ताव रखा भी. तो वह फौरन बोल पड़ी, ‘अरे, कितनी बार तो देख चुके हैं भूलभुलैया व चिडि़याघर. भाभी व बच्चों का भी देखा हुआ है सबकुछ. भाभी मेरे पास हैं तो उन को आराम ही करने दो, वरना जा कर तो फिर वही ड्यूटी, औफिस और घर की देखभाल करनी है. जीभर कर बातें करनी हैं मुझे भाभी से.’’

निर्मल को चुप रह जाना पड़ा था. मन तो हुआ था कि इंदु से स्पष्ट पूछ ले कि तुम्हारे पास बातें हैं ही कौन सी जो भाभी से करनी हैं. बातें होंगी तो यही, ‘भाभी, इस साल कच्चे आम काफी महंगे रहे या फिर भाभी तुम्हारे कंगन 4 तोले के तो होंगे ही.’

सचमुच निर्मल इंदु की बातों से और उस की दिनचर्या से बुरी तरह ऊब गया था. उस ने ऐसी पत्नी की तो कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी. इंदु की सुकोमलता पर मोहित हो कर वह विवाह के लिए राजी हो गया था. तब सोचा भी नहीं था कि इतनी नाजुक सी युवती घर में ऐसा कठोर अनुशासन स्थापित करेगी कि घर नाम से मन घबराने लगेगा.

निर्मल को उन दिनों इंदु पर बेहद गुस्सा आता था, मगर वह अपनी बेटियों के सामने घर में कोई विवाद खड़ा नहीं करना चाहता था. इसीलिए उस ने इंदु को उस के हाल पर छोड़ना ही बेहतर समझा था और इंदु इतना अच्छा पति पा कर भी उस की तरफ से बेफिक्र अपने में ही मगन थी.

अंधेरे में उठ कर ही ड्राइंगरूम झाड़नेफटकारने लगती और पिछले दिन के कपड़े पीटपीट कर धोने लगती. लोहे की बालटियों और तसलों को इतनी जोर से उठा कर रखती कि घर वाले ही नहीं, पड़ोसी भी जाग जाते.

जैसे ही निर्मल और बच्चे जागते कि इंदु के आदेशनिर्देश शुरू हो जाते. सुबह होते ही घर में जैसे भूचाल आ जाता. स्कूल और दफ्तर के दिन हड़बड़ाहट में काम निबटाया जाना तो समझ में आता है, पर इंदु ने तो सारे दिन बराबर कर रखे थे. छुट्टी के दिन भी न तो वह खुद चैन से बैठती, न बच्चों और निर्मल को बैठते देती.

निर्मल को समझ में नहीं आता था कि इंदु को आखिर किस बात की जल्दी है. इसीलिए जब कभी सीरियल के बीच में इंदु खाने के लिए बुलाने लगती तो निर्मल को कहना पड़ता, ‘इंदु, आओ तुम भी घड़ीभर बैठ जाओ. खाना सभी संग में खा लेंगे. आज इतवार है, छुट्टी के दिन तो बैठो कम से कम मेरे पास.’

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और जब यही बात इंदु की भाभी ने कही तो निर्मल अंदर तक चटख गया था. अपनी तड़प वह जज्ब नहीं कर पाया था और उस का दर्द व्यंग्य बन कर बाहर उफन पड़ा था, ‘क्या बात कह रही हैं, भाभी. सब के साथ बैठने, खेलने, घूमनेफिरने या मिलनेजुलने में जितना समय बरबाद होगा उतने समय में इस का कितना काम हो जाएगा. कपड़े धुल जाएंगे, घरगृहस्थी के काम व्यवस्थित हो जाएंगे. इस बात की इन्हें परवा नहीं कि इन के इस व्यवहार से हम सब के मन कितने अव्यवस्थित हो जाते हैं.’

ऐसा भी नहीं कि निर्मल ने इंदु को अपने पास दो पल फुरसत से बैठने के लिए कोई प्रयास न किया हो. निर्मल ने कई बार अपनी ही इच्छा से इंदु की कभी रसोई में या ड्राइंगरूम की सफाई में मदद करनी चाही थी मगर उस को वह उस का हस्तक्षेप लगा था.

अगले भाग में पढ़ें- क्यों उस रात निर्मल बेहद परेशान हो गया था ?

19 दिन 19 कहानियां : प्यार नहीं वासना के अंधे- भाग 1

औरत का दिल अगर किसी ऐरे गैरे नत्थू खैरे मर्द पर भी आ जाए तो वह अपना सब कुछ यहां तक कि शरीर भी उसे सौंप देने में लिहाज नहीं करती. लेकिन उलट इस के यह बात भी सौ फीसदी सच है कि अगर वह जिद पर उतारू हो आए तो कोई मर्द लाख मिन्नतों और जबरदस्ती के बाद भी उस का जिस्म हासिल नहीं कर सकता, भले ही उसे अपनी जान क्यों न देनी पड़ जाए.

यही रुखसार के साथ हुआ था लेकिन उसे नशे की झोंक में आखिरी सांस तक इस बात पर हैरत कम अफसोस ज्यादा रहा होगा कि कभी उस के शौहर रहे सादिक ने ही अपने पेशे कसाईगिरी के मुताबिक उस के उस जिस्म जिस के लिए तलाक के बाद भी वह उस के इर्द गिर्द मंडराता रहा था की बेरहमी से बोटी बोटी कर डाली.

हादसा मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के नजदीक महू नाम के कस्बे का है जो सैन्य छावनी और संविधान निर्माता व देश के पहले कानून मंत्री डा. भीमराव अंबेडकर की जन्मस्थली होने के चलते देश भर में मशहूर है.

बीती 2 अक्तूबर को पूरे देश की तरह महू में भी समारोह कर के जगहजगह गांधी जयंती मनाई गई थी. उस दिन छुट्टी के चलते इस कस्बे के बच्चे खेलकूद में व्यस्त थे. महू का एक मोहल्ला है पत्तीपुरा जहां खेल रहे कुछ बच्चों की नजर नजदीक की गली के पास से बहते सुरखी नाले पर पड़ी तो वे हैरान हो उठे.

नाले में किसी मानव के बहते कटे पैर पड़े थे. उन्होंने यह बात दौड़ कर बड़ों को बताई तो थोड़ी देर में नाले के पास खासी भीड़ जमा हो गई. जल्द ही पूरे महू में यह बात जंगल की आग की तरह फैली और मौजूद भीड़ में से किसी ने पुलिस को भी इस की खबर कर दी.

खबर पाते ही टीआई योगेश तोमर टीम सहित मौके पर पहुंचे तो उन्होंने नाले से एक जोड़ी कटे पैर बरामद किए जो घुटनों के नीचे का हिस्सा था. पैर बरामद करने के बाद पुलिस ने इस उम्मीद के साथ आसपास के इलाके में खोजबीन की कि शायद दूसरे अंग भी मिल जाएं, जिस से पता चले कि माजरा क्या है, हालांकि यह पहली ही नजर में सभी को समझ आ गया था कि किसी की हत्या कर लाश के टुकड़े कर उसे बहाया गया है, लेकिन केस के लिए जरूरी था कि शरीर के बाकी हिस्से भी मिले.

देर रात तक पुलिस आसपास खाक छानती रही. जब कोई और अंग बरामद नहीं हुआ तो मामला उलझता हुआ नजर आया. कस्बे में फैली सनसनी, आशंकाओं और अफवाहों, चर्चाओं के दौरान इंचार्ज एसपी कृष्णा वेणी देसावत और एएसपी धर्मराज मीणा भी घटना स्थल पर पहुंच गए चूंकि कटे पैरों के नाखून पर नेल पालिश लगा था इसलिए स्वभाविक अंदाजा यह लगाया गया कि पैर किसी महिला के होने चाहिए.

उस दिन तो पुलिस के हाथ कोई सुराग नहीं लगा लेकिन दूसरे दिन की खोजबीन रंग लाई और शरीर के कुछ और हिस्से बरामद हुए. महू की मीटर गेज लाइन कस्बे का बाहरी इलाका है जहां की खान कालोनी में लाश का सिर और एक कटा हाथ मिला. थोड़ी और मशक्कत के बाद दूसरा कीचड़ से सना हाथ भी बरामद हो गया.

इस नृशंस हत्याकांड की चर्चा अब तक प्रदेश भर में होने लगी थी, लिहाजा पुलिस के लिए यह जरूरी हो चला था कि वह जल्द से जल्द इस हत्याकांड से परदा उठाए. इस बाबत एसएसपी रुचिवर्धन मिश्रा खुद इंदौर से महू आईं. उन्होंने मामले की जांच के लिए 5 पुलिस टीमें बनाईं.

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3 जगहों से बरामद अंगों के मिलने के बाद भी पुलिस के लिए लाश की पहचान करना कोई आसान काम नहीं था लेकिन लाश के दाएं हाथ पर एक टैटू बना मिला, जिस में अंग्रेजी के कैपिटल अक्षरों से हरदीप लिखा हुआ था. इस से अंदाजा लगाया गया कि मृतका सिख समुदाय की हो सकती है क्योंकि हरदीप नाम आमतौर पर सिखों में ही होता है.

इस बाबत पुलिस ने सिख समाज के लोगों से पूछताछ की, लेकिन ऐसी कोई जानकारी पुलिस के हाथ नहीं लगी जो टुकड़ेटुकड़े लाश की शिनाख्त में कोई मदद कर पाती. अब तक यह जरूर पूरी तरह स्पष्ट हो गया था कि लाश महिला की ही है और उसे बेहद नृशंस तरीके से मारा गया है.

इस दौरान पुलिस ने कई संदिग्धों को उठा कर पूछताछ भी की लेकिन काम की कोई जानकारी नहीं मिली. इस से एक ही बात उसे समझ आई कि वारदात में किसी आदतन या पेशेवर अपराधी का हाथ नहीं है, फिर भी टुकड़ेटुकड़े मिली यह लाश पहेली बन कर के सामने आई थी.

जल्द ही मुखबिरों के जरिए पुलिस को पता चला कि कोई 2 साल पहले पीथमपुरा थाने में एक मामला दर्ज हुआ था जिस में एक महिला पकड़ी गई थी, जिस के हाथ पर अंग्रेजी में हरदीप गुदा हुआ था. तुरंत ही पुलिस की एक टीम पीथमपुरा थाने रवाना हो गई. पुरानी फाइलें खंगालने पर 2017 के एक मामले से पता चला कि पकड़ी गई महिला का असली नाम रुखसार था.

पुलिस के लिए इतना काफी था. जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि 29 वर्षीय रुखसार के और भी कई नाम हैं मसलन जेबा, पूजा और सोनू, इतनी कामयाबी मिलते ही पुलिस ने इंदौर से रुखसार की बहनों और मां को बुला भेजा, जिन्होंने लाश देखते ही उस की शिनाख्त रुखसार के रूप में कर दी.

इसी पूछताछ में पता चला कि मूलत: इंदौर के चंदू वाला रोड के चंदन नगर इलाके में रहने वाली रुखसार की शादी कोई 8 साल पहले महू के सादिक से हुई थी. उस के पिता का नाम मोहम्मद आमीन है.

भरेपूरे बदन की रुखसार बेइंतहा खूबसूरत थी, उस के तीखे नैननक्श और मासूमियत की चर्चा उस के जवान होते ही शुरु हो गई थी. खूबसूरत बेटी किसी गरीब के घर पैदा हो तो किसी मुसीबत से कम नहीं होती. यही मोहम्मद आमीन के साथ हो रहा था जिन की आमदनी से खींचतान कर घरबार चल पाता था.

पिता को उम्मीद थी कि खूबसूरत रुखसार को किसी खाते पीते घरपरिवार का लडक़ा ब्याह ले जाएगा. लेकिन रुखसार जितनी खूबसूरत थी उस की तकदीर उतनी ही बदसूरत निकली. जब किसी मनपसंद और अच्छी जगह उस का रिश्ता तय नहीं हो पाया तो अब्बा ने बेटी का हाथ सादिक के हाथों में सौंप दिया जो पेशे से कसाई था.

सादिक का एक पैर खराब था, जिस की वजह से वह लंगड़ाकर चलता था लिहाजा लोग उसे सादिक लंगड़ा के नाम से पुकारते थे. रुखसार जब उस की शरीक ए हयात बनकर आई तो वह अपनी इस कमजोरी को भूलने लगा.

इतनी खूबसूरत बीवी पा कर किसी का भी इतराना कुदरती बात होती है लेकिन शायद पैर की कमजोरी के चलते रुखसार उसे मन से नहीं अपना पाई. हालांकि सादिक शारीरिक तौर पर किसी सामान्य पुरुष से उन्नीस नहीं था.

रुखसार की जवानी के समंदर में सादिक ऐसा डूबा कि उस ने अपने काम धाम पर ध्यान देना छोड़ दिया और दिन रात बीवी के साथ बिस्तर में पड़ा जवानी और जिंदगी का लुत्फ उठाते भूल गया कि घर चलाने के लिए पैसा भी उतना ही जरूरी है जितना कि सेक्स.

जब जवानी की खुमारी पर भूख और जरूरतें भारी पड़ने लगीं तो सादिक जल्द और ज्यादा पैसे कमाने की गरज से गलत राह पर चल पड़ा. वह नशे का कारोबार करने लगा. जो लोग नशे के आइटम यानि ड्रग्स का धंधा और स्मगलिंग करते हैं आमतौर पर उन्हें भी इस की लत लग जाती है यही सादिक के साथ हुआ. वह ड्रग्स बेचतेबेचते उस का नशा भी करने लगा था.

पति की हरकतों से परेशान रुखसार को भी नशे की लत लग गई. वह खुद तो नशा करने ही लगी शौहर के साथ नशे का कारोबार भी मिल कर करने लगी. उस के दिल में एक कसक हमेशा बनी रही कि उसे वैसा शौहर नहीं मिला, जैसा मिलना चाहिए था.

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यह कसक कुंठा में बदलने लगी जिस का अहसास कम पढ़ीलिखी रुखसार को था या नहीं, यह तो वही जाने पर बाहर की हवा लग जाने से उसे महसूस हुआ कि सादिक और घर के अलावा भी एक जिंदगी और है, जिस में कुछ और हो न हो लेकिन पैसा ठीकठाक है.

सादिक को भी इस बात का अहसास था कि वह अपनी बीवी की दिली पसंद और चाहत नहीं बल्कि मजबूरी है इसलिए धीरेधीरे वह आक्रामक होने लगा. इस दौरान दोनों का एक बेटा भी हुआ.

अब पैसा तो ठीकठाक आ रहा था लेकिन रुखसार की सादिक के लंगड़ेपन को ले कर असंतुष्टि सर उठाने लगी थी. वह सीधे तो सादिक से कुछ नहीं कहती थी लेकिन जब भी सादिक नशे में बिस्तर पर आता तो उसे उस की हरकतें नागवार गुजरने लगी. एक पुरानी कहावत है जिस का सार यह है कि औरत पति से 2 चीजें ही चाहती है पहली यह कि वह खाने पीने की कमी न होने दे और दूसरी यह कि सैक्स में संतुष्टि देता रहे.

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