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धर्म का धंधा कोरोना ने किया मंदा 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल कहते हैं कि – ‘लॉकडाउन कोरोना वायरस का इलाज नहीं है, बस ये इसको फैलने से रोकता है. ऐसा कभी नहीं होगा कि कोरोना का एक भी केस भविष्य में फिर ना मिले.अगर हम सोचें कि किसी एरिया में लॉकडाउन कर दिया और वहां केस जीरो हो जाएंगे तो ऐसा पूरी दुनिया में नहीं हो रहा है. हमें कोरोना के साथ जीने की आदत डालनी होगी.’ कई डॉक्टर्स ने भी इस दौरान कहा है कि कोरोना से मुक्ति मिलने में अभी साल भर से ज़्यादा का वक़्त लगेगा और हो सकता है कि कोरोना भी हमारे बीच वैसे ही जम जाए जैसे डेंगू, चिकनगुनिया या अन्य वायरल जनित बुखार जमे हुए हैं.

कोरोना के साथ जीने की आदत डालने से मुख्यमंत्री केजरीवाल का साफ़ मतलब ये है कि अब तक हम लोग जिस तरह से जीते आये हैं, उनमे अब पूरी तरह बदलाव करने होंगे. हमें सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखते हुए अपने कामकाज करने होंगे, अपनी साफ़-सफाई का भरपूर ख़याल रखते हुए जीना सीखना होगा. कोरोना से बचना है तो अब हाथ मिलाने, गले मिलने जैसे कृत्यों से बचना होगा. कोरोना से दूर रहना है तो अब झुण्ड से दूर रहना होगा.

कोरोना ने इंसान के अंदर जान खोने का डर इसकदर तारी कर दिया है कि अब लोग झुण्ड बना कर कुछ भी करने से डरेंगे. झुण्ड जो सबसे ज़्यादा जुटता है धार्मिक स्थलों पर, धार्मिक आयोजनों में। मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, चर्च में. कोरोना के चलते अब लोग अपने ईश अपने आराध्य को याद करने के लिए पूजा स्थलों पर जाने से भी घबराएंगे. इकट्ठे होकर नमाज़ पढ़ने, इकट्ठे होकर पूजा-आरती करने, मेले, रथयात्राएं, मूर्ति विसर्जन कार्यक्रम जैसे बहुत से कामों पर ये कोरोना रोक लगा देगा. इंसान खुद इन कृत्यों से दूरी बना लेगा क्योंकि उसको अपनी जान का डर होगा.

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तब्लीगी जमात का नाम इस देश में पहली बार खूब चर्चा में आया. बहुतेरे लोग इसके बारे में नहीं जानते थे. यहाँ तक कि टीवी मेडिया से जुड़े लोगों को भी नहीं मालूम था, एक टीवी एंकर तो इसके बारे में बोलते हुए इसको ‘तालिबानी जमात’ तक कह गया और माफ़ी भी नहीं मांगी. कोरोना काल में चर्चा में आये तब्लीगी जमात को आने वाले वक़्त में कोरोना फैलाने वाली जमात भी कहा जाए तो आश्चर्य नहीं. इसके सदस्यों की देश भर में जैसी धरपकड़ हुई है, ऐसी किसी आतंकी संगठन के सदस्यों की नहीं हुई होगी. चैनलों पर इन की खूब लानत-मलामत हुई. पुलिस ने उन पर जुल्म ढाये। अस्पतालों में उनके साथ बुरा सुलूक हुआ. मुसलामानों में इसकदर डर बैठ गया है कि अब शायद तब्लीगी जमात तो क्या किसी भी धर्म संप्रदाय  के लोग जमात में इकट्ठा होकर इस कल्पित  ईश्वर अल्लाह को याद नहीं करेंगे. हां, इससे कई दिन तक शहरों से पैदल घर जाने वाले मजदूरों की तस्वीरें चैनलों से गायब हो गईं और सरकार और वर्ण व्यवस्था की वकालत करने वाले दलितों पिछड़ों को भुलवा सके.

तब्लीगी जमात के ही एक सदस्य अरशद अहमद अमरावती जिले के रहने वाले हैं. अरशद को हरियाणा के झज्जर में एम्स के डेडिकेटेड कोविड-19 सेंटर में क्वारैंटाइन किया गया था. अरशद अहमद कहते हैं कि – ‘सभी को सरकारी गाइडलाइन माननी चाहिए. हमें हर हाल में को-ऑपरेट करना चाहिए. लॉकडाउन के दौरान हम रमजान में मस्जिद नहीं जाएं.’ हालांकि अरशद का कोरोना टेस्ट अब नेगिटिव आ चुका है. वो दो बार दूसरे रोगियों को ठीक होने के लिए अपना प्लाज़्मा भी डोनेट कर चुके हैं और कहते हैं, ” लोगों की जान बचाने के लिए अगर दस बार भी ब्लड डोनेट करना पड़ा तो पीछे नहीं हटूंगा.” मगर अब शायद ही अरशद भविष्य में किसी जमात का हिस्सा बनना पसंद करें.

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कोई सोच सकता था कि रमज़ान में रोज़ेदार मस्जिद ना जाएगा? जो साल भर नमाज़ नहीं पढ़ते हैं वो भी रमजान के दिनों में मस्जिद में ही नज़र आते हैं. मगर अबकी बार कोरोना ने जान का ऐसा खौफ दे दिया कि दुनिया भर में मुसलमान मस्जिदों से दूर अपने-अपने घरों में रहे हैं. दरवाज़े बंद हैं. पडोसी भी नहीं झाँक सकता. कोई इफ्तार पार्टी का आयोजन अपने देश में नहीं कर रहा है.कोई पैसे की बर्बादी नहीं हो रही. इफ्तार पार्टियों की आड़ में कोई राजनीति नहीं हो रही. सब घर में बंद हैं.अब धर्म का कोई बिचौलिया नहीं है। अब वो दो खजूर से अपना रोज़ा खोल ले या बिरयानी बनवा ले, कोई देखने वाला नहीं. आगे ईद भी लोग अपने-अपने घरों में मनाएंगे. ‘अल्लाह से डरो’  ‘इस भगवान से डरो’ ‘फलां गौड से भय करो’ से  बदल कर ‘कोरोना से डरो’ हो गया है.

बनारस में जहां गंगा के घाटों से लेकर विश्वनाथ गली तक में पर्यटकों की भीड़ ठसाठस भरी रहती थी और धर्म की दुकाने चलाने वालों का रोजाना लाखों का वारा न्यारा होता था, वहां अब कोरोना के डर से विदेशी तो क्या, देशी पर्यटक और श्रद्धालु भी नदारत हैं. घाट और गलियां सूनी हैं. फूल-माला, दिया- अगरबत्ती, प्रसाद आदि दुकानों पर ताला पड़ गया है. घाटों पर पंडों की दुकानदारी चौपट हो चुकी है. धर्म का धंधा मंदा पड़ गया है. लेकिन गंगा का पानी साफ़ हो गया है. गंगा निर्मल हो गई है. वातावरण स्वतः शुद्ध हो गया है, बिना किसी आरती, हवन या यज्ञ के.

यही हाल नवरात्र के दौरान भी देखने को मिला. मंदिरों में ताले पड़े रहे. लोगों ने अपने-अपने घरों में ही जोत जलाई. मंदिरों के आगे मजमा लगाए भिखारियों को पूरी-सब्ज़ी बाँटते लोग भी कहीं नज़र नहीं आये. सड़कों पर खाली प्लास्टिक की खाली गन्दी प्लेटों-गिलासों का अम्बार भी नहीं लगा. नवरात्र बंगालियों का बड़ा त्यौहार है. बंगाली औरतें तो नवरात्र के नौ दिनों में ऐसी खरीदारी करती हैं जैसे घर में शादी का जश्न हो. देश भर में जगह-जगह बड़े-बड़े देवी पंडाल सजते हैं, लाखों-करोड़ों रूपए खर्च किये जाते हैं. रात दिन पूजा-आरती का कार्यक्रम होता है. भीड़ एक दूसरे पर उमड़ी पड़ती है. तिल धरने की जगह नहीं होती है, मगर अबकी बार कोरोना ने सब पर फुलस्टॉप लगा दिया. यहां तक कि अष्टमी और नौमी को जब कन्या पूजन का दिन था, उस दिन भी घरों में सन्नाटा पसरा रहा. अब जब कन्या ही नहीं बिठानी थी तो हलुवा, पूरी, छोले, आलू भी नहीं बने. कन्याओं पर चढ़ावे के लिए नए कपड़े, उपहार, फल, मिठाई भी नहीं खरीदा गया. जब मंदिर में प्रसाद चढाने ही नहीं जाना था तो पूजा सामग्री, फूल, अगरबत्ती, नारियल, देवी की चादर किसी भी चीज़ की खरीदारी नहीं हुई. अगर जोड़ने बैठें तो अबकी नवरात्र में देश भर की महिलाओं का करोड़ों रुपया कोरोना ने बचा दिया. और घर के मंदिर में ही नवरात्र की पूजा-अर्चना करने से भगवान् नाराज़ हुए हों, ऐसा कोई समाचार भी किसी कोने से नहीं आया.

कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रहे हरियाणा में महाराष्ट्र के नांदेड स्थित गुरुद्वारा हुजूर साहिब से लौटे श्रद्धालु मुसीबत बने. नांदेड से लौटे चार श्रद्धालुओं की रिपोर्ट पहले कोरोना पॉजिटिव आई थी, उसके बाद कई और लोगों की रिपोर्ट भी पॉजिटिव निकली.अब ये सभी क्वारेंटाइन किये गए हैं. लोग इनको कोस रहे हैं. यहाँ तक कि इनके परिवारवाले भी इनसे दूरी बनाये हुए हैं.

कोरोना का संकट ख़तम होने में अभी लंबा वक़्त लगेगा. इस दौरान बहुत सारी चीज़ों और आदतों में इंसान खुद बदलाव कर लेगा. धर्मगुरुओं की चालबाजियों के चलते जिन बातों को ले कर वह इस डर में जीता था कि उनके कहे अनुसार ना किया तो नरक प्राप्त होगा या कोई ना कोई अनिष्ट होगा, यह डर बहुत सारे लोगों के दिलों से निकल जाएगा. इसके लिए उन्हें कोरोना को धन्यवाद देना चाहिए.

एक छोटा सा उदाहरण कोरोना काल के बीते दो महीने में हुई सामान्य मौतों से लिया जा सकता है. हिन्दू धर्म में मान्यता है कि व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् उसकी अस्थियों को गंगा जी में प्रवाहित करना आवश्यक है. इसके साथ ही सात से ले कर इक्कीस पंडितों को भोज कराना भी ज़रूरी है. उनको भरपूर दान-दक्षिणा देना भी ज़रूरी है. घर में शुद्धिकरण के लिए हवन करवाना आवश्यक है. पूरे मोहल्ले और ब्राह्मणों की पांत को तिरहीं का भोज करवाना ज़रूरी है. इन सबके बगैर मरने वाले को मोक्ष नहीं मिलेगा, ऐसी मान्यता रही है. अब कोरोना काल में जितने लोगों को मृत्यु पश्चात अग्नि दी गयी, उनमे से ज़्यादातर की अस्थियों का प्रवाह गंगाजी में नहीं हुआ है, बल्कि अपने ही शहर की नदी में कर दिया गया है क्योंकि लॉक डाउन में हरिद्वार, ऋषिकेश जाने के मार्ग बंद हैं. बहुतेरों के अस्थि-कलश श्मशान में बने लॉकररूम में ही इस इंतज़ार में रख दिए गए हैं कि जब आवागमन का मार्ग खुलेगा, तब प्रवाहित किये जाएंगे. हालांकि मान्यता के अनुसार अस्थिकलश अधिक दिनों तक नहीं रखे जाते हैं. व्यक्ति की मृत्युपश्चात कोरोना काल में पंडितों को भोज भी नहीं दिया गया है, तिरहीं भी नहीं हुई क्योंकि लॉक डाउन था, लोग एक जगह इकट्ठा नहीं हो सकते थे. अब जिन परिवारों में उनका कोई अपना इस दौरान स्वर्गवासी हुआ है, उसका दाहसंस्कार साधारण तरीके से बहुत कम लोगों की उपस्थिति में किया गया है. कोरोना के डर से किसी पंडित ने भी इसमें कोई मीनमेख नहीं निकाली. कोरोना से मरने वाले लोगों को तो अंतिम संस्कार की सम्पूर्ण क्रियाविधि भी नसीब नहीं हुई. उनके शरीर को तो अस्पताल में ही प्लास्टिक में लपेट कर सीधे श्मशान में लाकर जला दिया गया. ये काम कहीं स्वास्थकर्मियों ने किया तो कहीं पुलिस ने किसी पंडित ने अंतिम क्रिया नहीं करवाई, यहाँ तक के बहुतेरों के तो परिजन तक कोरोना के डर से मृत शरीर के पास नहीं फटके.

कोरोना वायरस जिस स्‍पीड से भारत में फैल रहा है, उससे डर बढ़ने लगा है. स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के आधिकारिक आंकड़े कहते है कि बाद के 11 दिनों में 20 हजार केसेज बढ़े हैं. जबकि उससे पहले के 20 हजार मामले तक पहुंचने में हमें 12 सप्‍ताह लगे थे. यानी सिर्फ 11 दिन के भीतर मामले दोगुने हो गए. भारत ने 24 मार्च को लॉकडाउन किया था. उसके बाद से ४ मई तक 40 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आ चुके हैं. बीमारी बढ़ने की रफ़्तार यही रही तो लॉकडाउन खत्म होते-होते देश में कुल केस 1 लाख के करीब पहुंच सकते हैं. सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर लोग गंभीर नहीं हुए और झुण्ड में जमा हुए तो नतीजे और ज़्यादा खतरनाक हो सकते हैं.

जब शुरुआती दौर में कोरोना फैलने की ख़बरें आईं थीं तब धर्म के धंधेबाज़ों में अपने-अपने  दवा-दावे बताने शुरू कर दिए थे. मुल्लाओं ने कहा नमाज़ पढ़ो, अल्लाह में यकीन लाओ, कोरोना पास भी नहीं फटकेगा. झाड़-फूंक वाले भी दुकान सजाए बैठ गए. तमाम धर्मगुरुओं ने अपने मंत्र-जाप, पूजा-आराधना, गोबर, गौ मूत्र, आयत-नमाज, टोने-टोटके का प्रचार प्रसार किया. हवन पूजा पाठ कराए गए. मगर जल्दी ही सब अपनी दुकाने समेट कर रफूचक्कर हो गए क्योंकि सब जानते थे कि धार्मिक क्रियाकलापों से कोरोना को नहीं भगाया जा सकता है. ये सिर्फ इंसान को धोखे में रखने के और उन्हें लूटने के साधन मात्र हैं. इससे ज़्यादा डर उन्हें इस बात का रहा कि अगर लोग उनके पास आये तो कहीं उनको कोरोना ना हो जाए. उन्होंने खुद मंदिरों में ताले डाल दिए. भक्त भी समझ गए कि भगवान् या उनके एजेंटों से कोरोना डर कर भागने वाला नहीं है. लिहाज़ा जो डॉक्टर कहें वो मानने में ही भलाई है.

इसमें दो राय नहीं कि धर्म एक शुद्ध धंधा है. इतिहास गवाह है आजतक कभी धर्म के क्षेत्र में मंदी नहीं आई बल्कि विकट स्थिति में तो धर्म का धंधा बढ़ा ही है. लेकिन यह पहला अवसर है जब धर्म और धर्म के नाम पर फैले कारोबार तथा एकत्रित कारोबारियों की दुकानें बंद हो गयी हैं. मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारे, मज़ारों पर ताले लग गए हैं और सबसे खास बात यह कि इसमें किसी की भावनाएं भी आहत नहीं हो सकती अन्यथा जान के लाले पड़ जाएंगे. जो भी दावा फेंकने वाले फेंकू थे, सब बिलों में बैठ गए हैं क्योंकि जनता अब समझने लगी है कि पूजापाठ, नमाज-जकात, प्रसाद-चढ़ावे से कोरोना नहीं जाएगा. जनता ये भी समझ रही है कि धर्म के ठेकेदारों ने जो भी दावे किए वह कितने झूठे और पाखण्ड से भरे हुए थे.

अब्राहम लिंकन ने कहा था कि पीढ़ी दर पीढ़ी यदि आप किसी क्षेत्र में मनुष्य को बेवकूफ बना सकते हैं तो वह धर्म है. आज वही धर्म बंदी की कगार पर है और मनुष्य मरने की कगार पर खड़ा है. हमें अपने जीवन जीने के तरीके में बदलाव लाने होंगे ये निश्चित है. दो महीने इंसान घर में क्या बंद हुआ हवा, पानी, धरती ने अपना रूप सजा लिया है. यहां तक की धरती को कवर करने वाली और सूरज की खतरनाक अल्ट्रा वायलेट किरणों से बचाने वाली ओजोन लेयर जो कई जगह से बुरी तरह फट गयी थी उसने भी खुद को सी लिया है. इस रिपेयरिंग तकनीक से वैज्ञानिक हतप्रभ हैं। प्रकृति ने बता दिया है अगर इंसान खुद नहीं सुधरा तो वह उसे सुधार देगी. इसलिए भगवान् के नाम पर नदियों को गंदा करने से अब बचना होगा. भगवान् के नाम पर धर्म का धंधा करने वालों की कलई खुल चुकी है, इनके हाथो लुटने से बचना होगा. जिन बातों को अतिआवश्यक बता कर ये सारे कर्मकांड करवाते थे, उन बातों और चीज़ों के बिना भी दुनिया चल सकती है और किसी को नरक का भागिदार नहीं होना होगा ये बात कोरोना ने भलीभांति समझा दी है.

कोरोना काल दुनिया भर के लोगों के लिए पुनर्जागरण काल है अगर कोरोना का भय कुछ ज्यादा चला तो . वर्ना वैक्सीन बनते ही धर्म वाले कहना शुरू कर देंगें कि उन्होंने पूजा, इबादत या प्रेयर की तो वैज्ञानिकों को चेतना मिली, ज्ञान मिला जो ईश्वर प्रदत्त है. लाओ धारण पर पैसा चढ़ाओ, अपनी औरतों को धर्म के दुकानदारों की  सेवा के लिए भेजो.

#WhyWeLoveTheVenue: एयर प्यूरीफायर ने बढ़ाई वेन्यू की डिमांड 

वेन्यू सबसे अधिक फैसिलिटी वाली कार मानी जा रही है क्योंकि इसके फीचर्स खासतौर पर भारतीय सुविधा के हिसाब से शामिल किए गए हैं. नई वेन्यू एक तरफ अपने स्टाइलिश लुक्स के कारण काफी अट्रैक्टिव लगती है वहीं दूसरी तरफ इसमें लगा एयर प्यूरीफायर भी काफी सुर्खियां बटोर रहा है.

हमारे शहर में लोगों के बीमार पड़ने की एक प्रमुख वजह वायु प्रदूषण भी है और हुंडई का लक्ष्य इसे कम करना है. इसमें लगा बिल्ट-इन एयर प्यूरीफायर केबिन के अंदर के मौहौल को खुशनुमा बनाता है.

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कप-होल्डर के पास HEPA फिल्टर लगा है जो किसी भी तरह के कण को फिल्टर करने का काम करता है. जिससे केबिन में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) में कई गुना की कमी भी आई है. यानी इससे वायु प्रदूषण कम हुआ है.

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इसकी बनावट कुछ इस तरह की गई है कि, इको कोटिंग एयर कंडीशनिंग सिस्टम के साथ मिलकर कार के अंदर की हवा को फ्रेश और प्योर बनाता है. ताकि ट्रेवल करते समय आप ताजी हवा में आराम से सांस ले सकें… और यही वजह है #WhyWeLoveTheVenue

फायदेमंद भिंडी

हमारे देश में भिंडी सब से ज्यादा लोकप्रिय सब्जी मानी जाती है. इस की सब्जी को कई तरह से तैयार कर के पकवान के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. भिंडी की सब्जी के बारे में सभी लोग जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि इस की जड़ और तना भी बहुत ही काम का होता है. भिंडी की जड़ व तना गुड़ और शक्कर को साफ करने के भी काम आता है.

गुड़ बनाते समय भिंडी की जड़ और तना उस में डालने से गुड़ का रंग साफ हो जाता है. इस का असर गुड़ के स्वाद पर भी नहीं पड़ता. आमतौर पर गुड़ और शक्कर को साफ करने के लिए फिटकरी का इस्तेमाल किया जाता है. सही अनुपात में फिटकरी न पड़ने से गुड़, शक्कर का स्वाद कसैला हो जाता है.

भिंडी के तना, जड़ का इस्तेमाल करने से गुड़, शक्कर का स्वाद खराब नहीं होता. इतना ही नहीं, गुड़ में एक कुरकुरापन भी आता है.

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भिंडी की खेती
भिंडी की खेती करने के लिए सब से पहले खेत को सही से तैयार करना चाहिए. भिंडी के लिए उपजाऊ, साधारण हलकी और फालतू पानी निकल जाने वाली मिट्टी सही रहती है. बोआई में लाइन से लाइन की दूरी 45 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 25 सैंटीमीटर रखनी चाहिए. खेत की तैयारी के लिए 6 टन सड़ी हुई कंपोस्ट खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. कैमिकल खाद का इस्तेमाल जरूरत के हिसाब से करें.

पहली बार खाद को बीज उगने के 2-3 दिन बाद डालें. इस के बाद 30, 60 और 90 दिन पर खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. तुड़ाई शुरू होने के 20 दिन बाद मैग्नीशियम सल्फेट, जिंक, बोरोन का छिड़काव करने से भिंडी का फल सही आकार में रहता है.

भिंडी को सफेद मक्खी, मावा, चुरदा और फल छेदक कीट नुकसान पहुंचाते हैं. फफूंद भी इस को नुकसान पहुंचा सकती है. इन से भिंडी को बचाने के लिए कांफीडर 200, एक्टारा, एमालम्स एवौट बाईलेटन और थायोवीट जैसे कीटनाशकों का इस्तेमाल करना चाहिए. तुड़ाई के बाद भिंडी को खेत की मिट्टी में नहीं रखना चाहिए.

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भिंडी के फल को छायादार जगह पर किसी मुलायम चीज पर रखना चाहिए. अगर भिंडी को कुछ समय रोकना हो तो इस को इस तरह से रखें कि ताजा हवा मिलती रहे. इस से भिंडी के खराब होने का खतरा नहीं रहता है. मिट्टी लगने के बाद भिंडी के खराब होने का खतरा बढ़ जाता है. मंडी ले जाते समय इसे किसी दूसरी सब्जी के साथ नहीं रखना चाहिए. कुछ लोग भिंडी को ताजा रखने के लिए तुड़ाई के बाद उस पर पानी का छिड़काव करते हैं. पानी रुकने से भिंडी के खराब होने का खतरा बढ़ जाता है.

Short story: लॉकडाउन में बन गए खानसामा

हमारी पत्नी बहुत दिनों से घर जाने की जिद कर रही थीं, मगर हम हमेशा मना कर देते थे. फिर तो उन्होंने ताना देना शुरू कर दिया कि मैं जानती हूं कि मेरे बिना घर नहीं संभल सकता न, इसीलिए आप मुझे नहीं जाने देते. मेरे बिना भूखे मर जाओगे इसलिए मेरे पैरों में बेड़ियाँ डाल रखी हैं. हाँ हाँ मैं झाड़ू-चौका करने वाली मेहरी जो ठहरी, वगैरा, वगैरा. आखिरकार हमने तंग आकर उन्हें उनके घर जौनपुर भेज दिया और कह दिया कि तुम क्या समझती हो हम घर नहीं संभाल सकते? तुम्हारे बिना भूखे मर जाएंगे? ऐसा कोई ख़याल पाल रखा हो तो दिल से निकाल दो और जाओ मायके, जब तक तुम्हारा मन करे रहो, यहां होटल जिंदाबाद. हमने भी ताव में आकर उनको मायके जाने वाली ट्रेन में बिठा दिया. तय हुआ कि दस दिन रह कर वापस आ जाएंगी. छोटे को साथ ले गयीं. छोटा यानी मेरा आठ साल का लाडला बेटा.

अब तो हम पूरी तरह आज़ाद थे. जितनी देर मन करता रात में टीवी देखते. एक-आध पेग भी लगा लेते. पत्नी के जाने के बाद हम होटल पर खाना खाने लगे थे. जेब ज़रूर थोड़ी हल्की हो रही थी, लेकिन मौज ही मौज थी. कभी कढ़ाई पनीर, कभी रोगन जोश, कभी पिज़्ज़ा, कभी बिरयानी. जब जो दिल किया जाकर आर्डर किया और लुत्फ़ ले ले कर खाया. जब मैं किया फोन पर आर्डर भेज कर घर भी मंगवा लिया. पत्नी को गए अभी हफ्ता ही बीता था कि सर पर आ मरा कोरोना. लॉक डाउन ने सारा मज़ा ही किरकिरा कर दिया. दुकाने बंद, होटल बंद, दारू बंद, दोस्त बंद और हम भी बंद. अब क्या करें. हमने तो कभी इतने सालों में मैगी भी अपने हाथों बना कर नहीं खाई. यहाँ तो बस चाय बनानी आती है.

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लॉक डाउन में पत्नी जी भी अपने शहर में जा कर फंस गयीं. लौटने का कोई उपाय नहीं था. दो-चार दिन तो पड़ोस की मिसेज़ सेठी ने सुबह शाम खाना भिजवा दिया, मगर मुझे उनसे लज्जावश कहना पड़ा कि भाभीजी कष्ट ना करें मैं बना लूंगा.

भाभीजी ने भी मुस्कुरा कर मेरा अनुरोध तुरंत स्वीकार लिया, जैसे वो इंतज़ार ही कर रही थीं कि कब मैं मना करूँ और कब जंजाल छूटे. खैर, हमने घर में ही खाना बनाना तय किया. हमने पिछले कमरे में जाकर पुरानी अलमारी खोली. याद आया कि माँ के पास रेसिपीस की किताबें हुआ करती थी. आखिरकार थोड़ी ढुँढ़ाई के बाद ‘खाना बनाने की विधि’ नाम की एक किताब हाथ लग ही गई.हमने मेज पर किताब खोलकर रख ली और उसमें से पढ़कर एक गिलास आटा थाली में रख लिया. फिर किताब में लिखे अनुसार उसमें नमक मिला लिया. पानी डालकर गूंथ लिया और फिर स्टोव जलाकर उस पर तवा रख दिया. एक रोटी टेढ़ी-मेढ़ी बेलकर तवे पर डाल भी दी. इस तरह एक रोटी तैयार हो गई. अ%

अटूट बंधन- भाग 3

‘प्रवीण चाचा?’ मैं मन ही मन बुदबुदाई. फिर बोली ‘‘नहीं.’’

‘‘पर, मेमसाहब तो कह रही थीं कि वे तुम्हारे चाचा हैं.’’ मैं और नन्ही एकदूसरे को प्रश्नसूचक निगाहों से ताकती रह गईं. आया ने आगे बताया, ‘‘वे रोज यहां आते हैं, 1-2 घंटे रुकते हैं, फिर चले जाते हैं.’’

‘‘हमें नहीं पता, हम मां से पूछ कर आप को प्रवीण चाचा के बारे में बताएंगी,’’ नन्ही ने कहा.

‘‘न बिटिया न, मां से कुछ मत पूछना. न ही उन्हें यह बताना कि मैं ने आज आप से इस विषय में बात की है, वरना वे तो हमें नौकरी से ही निकाल देंगी.’’

‘‘क्यों निकाल देंगी?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘बिटिया, अभी आप छोटी हैं, इसलिए नहीं समझ आएगा. मैं सच कह रही हूं, आप इस बातचीत के बारे में किसी से कुछ न कहना, वरना मैं गरीब अपनी नौकरी से हाथ धो बैठूंगी.’’ मैं और नन्ही इस रहस्य की पीड़ा को सहने को विवश हो गईं. ‘प्रवीण चाचा कौन हैं? हमारे घर क्यों आते हैं? हमारे सामने क्यों नहीं आते? आखिर प्रवीण चाचा या उन के बारे में मां से कुछ भी पूछने से वे आया को नौकरी से क्यों निकाल देंगी?’ इन सब प्रश्नों के साथ प्रवीण चाचा हमारे लिए संदेहास्पद हो गए थे. आया से बात होने के बाद नन्ही प्रवीण चाचा का नाम ले कर मां से अपने संदेह की पुष्टि करना चाहती थी. पर नन्ही के प्रश्न पूछने का अंदेशा होते ही मैं उस के नन्हे होंठों पर अपनी हथेली धर देती.

जब भी मैं ऐसा करती, नन्ही की मासूम आंखों में मुझे एक खौफ नजर आने लगता. हम दोनों प्रवीण चाचा को देखे बगैर ही उन से डरने लगी थीं. शायद हमें इस बात का पूर्वाभास होने लगा था कि उन्हीं की वजह से हमारे घर में कोई तूफान आने वाला है. एक दिन हमारा डर सत्य सिद्ध हो गया जब पिताजी समय से पूर्व घर लौट आए. वे बेहद गंभीर और क्रोधित लग रहे थे. वे गुस्से से भरे पूरे घर में चहलकदमी कर रहे थे और बारबार घड़ी की तरफ देखते हुए अपनी बेचैनी को व्यक्त कर रहे थे. न तो उन्होंने कपड़े बदले, न ही कुछ खायापीया. आया 2 बार चाय के लिए पूछ गई थी, पर पिताजी ने मना कर दिया था. मुझ से और नन्ही से भी उन्होंने बात न की.

मां रोज की तरह देरी से ही घर लौटीं. पिताजी को घर में देख कर भी उन्हें मानो कोई अचरज न हुआ. वे तेजी से अपने कमरे की ओर बढ़ने लगीं, पर पिताजी ने लपक कर उन का हाथ पकड़ लिया, ‘‘कहां से आ रही हो?

‘‘अंजना, मुझ से छिपाने की कोशिश न करना. मैं जानता हूं कि आजकल तुम्हारे और प्रवीण के बीच क्या चल रहा है. हर तरफ यही चर्चा है. छि:, क्या तुम्हें इश्क लड़ाने को सिर्फ प्रवीण ही मिला था, क्या तुम जानती हो कि उस के कितनी औरतों के साथ नाजायज संबंध रहे हैं? अपनी पत्नी का कत्ल भी तो उसी ने…’’

‘‘नहीं, प्रवीण अच्छा आदमी है. तुम उस से जलते हो. वह तुम से ज्यादा कामयाब व्यापारी है. तुम्हें मुझ से सिर्फ इसीलिए ईर्ष्या है कि मैं ने तुम से कहीं ज्यादा अच्छा आदमी कैसे ढूंढ़ लिया. पर यह मत भूलना कि प्रवीण के आगोश में मुझे ढकेलने वाले तुम ही हो. तुम ने मेरी कभी परवा नहीं की, इसीलिए अब मुझ से यह उम्मीद न करना कि मैं कभी तुम्हारी परवा करूंगी.’’ पिताजी मां पर टूट पड़े थे, उन पर कई मुक्के बरसाए. शायद मां ने भी उन पर हाथ उठाया था, तभी तो उन का चश्मा टूट  गया था. मैं और नन्ही एकदूसरे से लिपट कर रोए जा रही थीं. आया ने उन की लड़ाई रोकने की कोशिश की तो पिताजी ने उसे ढकेल दिया और बोले, तुम बच्चों को ले कर छत पर जाओ. चलो, भागो यहां से, हमारे बीच में मत आना.’’

आया मुझे और नन्ही को ले कर छत पर चली गई. वहां हमें मां और पिताजी की अस्पष्ट आवाजें सुनाई पड़ रही थीं, जो कभी तेज हो जातीं तो कभी धीमी. कभी मां के चीत्कार की आवाज आती तो कभी किसी सामान के पटके जाने की. हम दोनों आया की गोद में दुबकी हुई कब सो गईं, पता ही न चला. सवेरे मां ने हमें अपने हाथों से दूध पिलाया, नाश्ता कराया. फिर सिसकसिसक कर रोती हुई बोलीं, ‘‘बच्चो, तुम्हारे पिताजी मुझे पसंद नहीं करते. जो आदमी हमें प्यार न करता हो उस के साथ घुटघुट कर नहीं जिया जा सकता. प्रवीण मुझे प्यार करते हैं, इसीलिए मैं उन के पास जा रही हूं. कुछ समय के लिए मैं और तुम्हारे पिताजी अलगअलग रहेंगे, फिर हमारा तलाक हो जाएगा.

‘‘तलाक के बाद शायद तुम्हारे पिताजी नम्रता से और मैं प्रवीण से शादी कर लूंगी. कल रात के झगड़े के बाद हम दोनों ने यही फैसला किया कि दोनों 1-1 बच्चे को अपने पास रखेंगे. मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं तुम में से किसे अपने से अलग करूं. जो भी पिताजी के साथ रहेगा, मैं उस से मिलने आती रहूंगी. तुम दोनों में से एक का चुनाव नहीं कर सकती, इसलिए तुम खुद निर्णय कर लो कि कौन मेरे साथ रहेगा?’’ मैं ने देखा, नन्ही ने धीरे से मां के हाथ को पकड़ लिया है. निश्चय ही ऐसा कर के वह जतलाना चाहती थी कि वह मां के बिना नहीं रह सकती. मां के बिना रहना मेरे लिए भी कठिन था, पर नन्ही में मेरी तरह सहनशक्ति नहीं थी, इसलिए मैं ने मन ही मन तय कर लिया था कि मैं ही पिताजी के पास रहूंगी.

‘‘मां, आप नन्ही को अपने साथ ले जाइए. आप कब जाएंगी?’’ मैं ने भर्राए स्वर में पूछा तो मां ने मुझे अपने अंक  में भर लिया. बारबार मेरे माथे को चूमते हुए बोलीं, ‘‘आज शाम को.’’

‘‘इतनी जल्दी?’’ मुझे उन के ये शब्द सुन कर धक्का लगा.

पिताजी उस रोज घर पर ही थे. उन के चेहरे पर पहली बार मैं ने चिंता देखी थी, जो कि मुझे ले कर थी या मां के लिए, पता नहीं. नन्ही को वे देर तक अपनी गोदी में बिठाए रहे थे और मां चुपचाप अपना सामान पैक करती रहीं. शाम, प्रवीण चाचा मां को लेने आए थे. कार का हौर्न सुनते ही मां सूटकेस ले कर नन्ही का हाथ थामे बाहर निकल गईं. जाने से पहले उन्होंने न मुझ से कोई बात की, न पिताजी की तरफ देखा. मैं विकल हो उठी कि मां के बगैर कैसे रहूंगी. फिर सोचने लगी कि पिताजी के पास बहुत पैसा है, पर पैसे से मां का प्यार तो नहीं खरीदा जा सकता. पर मां भी क्या कर सकती हैं, पिताजी उन्हें प्यार नहीं करते, वे पिताजी के पास सिर्फ अपमानित होने को क्यों रहें. मुझे एक बात समझ में नहीं आती थी, मां सिर्फ पिताजी के प्यार को ही क्यों महत्त्व देती हैं. क्या हमारा प्यार उन के लिए कोई अहमियत नहीं रखता? काश, मैं पिताजी से मां के लिए थोड़ा सा प्यार मांग पाती.

मां गेट तक पहुंच चुकी थीं. मैं ने धीरे से पिताजी की ओर देखा, उन के गाल आंसुओं से भरे हुए थे. मैं सोचने लगी, ‘तो क्या इन को मां के जाने का दुख है?’ मुझे लगा, अपनी बात कहने का इस से अच्छा मौका मुझे फिर नहीं मिलेगा. मैं ने चीख कर कहा, ‘‘पिताजी, मुझे मां की जरूरत है, उन्हें बुला लीजिए.’’

‘‘किस मुंह से बुलाऊं, बेटी? शायद अब काफी देर हो चुकी है,’’ पिताजी ने मुझे अपने सीने से लगा लिया और सहसा मां के कदम गेट के पास ही रुक गए. उन्होंने मुड़ कर देखा तो मुझे और पिताजी को लिपट कर रोते हुए पाया. जरूर हमारी वेदना ने उन्हें तड़पा दिया होगा. पिताजी की हालत देख कर शायद वे समझ गई थीं कि उन्हें अपनी करतूतों पर अब पछतावा हो रहा है. अचानक मां सूटकेस वहीं फेंक कर नन्ही को गोद में लिए दौड़ती हुई हमारे पास लौट आईं. हमारे बीच का बंधन इतना कमजोर नहीं था, जिसे नम्रता मौसी या प्रवीण चाचा जैसे लोग तोड़ पाते.

अटूट बंधन- भाग 2

और एक दिन हम ने मां में बदलाव पाया. मैं और नन्ही स्कूल से घर पहुंचे तो मां शृंगारमेज के सामने बैठी होंठों पर लिपस्टिक लगा रही थीं. उन्होंने गुलाबी साड़ी पहन रखी थी, सिर पर एक खूबसूरत जूड़ा बनाया था, जिस पर उन्होंने घुंघरू वाले कांटे लगाए थे. कानों में गुलाबी साड़ी से मैच करते सफेद और गुलाबी स्टोन वाले कर्णफूल थे और हाथों में गुलाबी चूडि़यां. हम दोनों खुशी से रोमांचित होती हुई मां के इस बदले हुए रूप को देख रही थीं. मैं सोचने लगी कि काश, मेरी सहेलियां यहां होतीं तो वे देख पातीं कि मेरी मां कितनी खूबसूरत हैं. शृंगार पूरा होते ही मां उठ खड़ी हुईं. आईने के सामने थोड़ी सी टेढ़ी होती हुई वे अपनी पीठ के भाग को देखने का प्रयास कर ही रही थीं कि उन की निगाह हम दोनों पर पड़ गई.

‘‘अरे, तुम दोनों कब आईं,’’ कहती हुई वे तेजी से हमारे पास आईं. पर उन्होंने हमें अपने आगोश में नहीं लिया, सिर्फ गालों को प्यार से थपथपाते हुए हमेशा की तरह मुसकरा कर बोलीं, ‘‘बेटी, मैं क्लब जा रही हूं, आज से तुम दोनों की देखभाल के लिए मैं ने एक आया रख ली है. मैं कोशिश करूंगी कि जल्दी लौट आऊं, पर यदि देरी हो गई तो तुम्हें खाना खिला कर, कहानी सुना कर आया सुला देगी. ठीक है न?’’

मां ने हम से यह नहीं पूछा कि हमें आया के साथ रहना अच्छा लगेगा या नहीं. पर मुझे उन से शिकायत नहीं थीं. मैं तो खुश थी कि आज मां ने मेरी इच्छा के अनुरूप शृंगार किया है. सच, वे बेहद सुंदर लग रही थीं. ‘‘सुगंधा,’’ मां ने जोर से आवाज दे कर आया को पुकारा, ‘‘देखो, बच्चे आ गए हैं, इन के आने का समय 5 बजे है. कल से इस बात का ध्यान रखना कि 5 बजे तक तुम्हारा काम पूरा हो जाए. इन्हें आते ही नाश्ता और दूध देना. रात का खाना भी 5 बजे के पहले तैयार कर के हौटकेस में रख

देना, ताकि बाद का तुम्हारा समय सिर्फ बच्चों के साथ बीते. अच्छा बच्चों, अब मैं चलती हूं,’’ कहती हुई मां तेजी से बाहर निकल गईं.

मैं और नन्ही प्रसन्न थीं कि सालों बाद हम ने मां के चेहरे पर मुसकराहट देखी है. हम आश्वस्त हो गई थीं कि अब हमारी कोई भी सहेली मां को ले कर संशय से भरा कोई प्रश्न नहीं करेगी. उस रात एक और अच्छी बात यह हुई कि मां और पिताजी में कोई बातचीत नहीं हुई. दोनों ने शांति से खाना खाया और मां रोज रात की तरह आ कर मेरे और नन्ही के बीच सो गईं.

‘‘मां, आप कहां गई थीं?’’ उन के हमारे पास आते ही नन्ही जाग गई थी.

‘‘क्लब गई थी, बेटा.’’

‘‘वहां क्या होता है?’’

‘‘क्लब में तरहतरह के खेल होते हैं. वहां मेरी कई लोगों से जानपहचान हुई. मुझे वहां बहुत अच्छा लगा. बेटे, आप लोग स्कूल चले जाते हो, तुम्हारे पिताजी दफ्तर और मैं सारे दिन अकेली रहती हूं. अब मैं बोर हो गई हूं, इसलिए कुछ दोस्त बनाना चाहती हूं, ताकि खुश रह सकूं.’’ नन्ही तो संतुष्ट हो गई थी, इसलिए वह मां से लिपट कर जल्दी ही सो गई. पर मुझे नींद नहीं आ रही थी. मुझे यह सोच कर अच्छा नहीं लग रहा था कि अब मां रोज देरी से आएंगी. मुझे लगता था कि यदि मैं मां से यह कहूं कि उन के बगैर हमें शाम को घर में अच्छा नहीं लगता तो वे क्लब जाना जरूर बंद कर देंगी, पर सालों तक मैं उन के चेहरे पर खुशी देखने के लिए तरसती रही थी, इसलिए इस भय से कि कहीं वे फिर से उदास न हो जाएं, मैं ने चुप रहने का निर्णय लिया.

उस के बाद मां और पिताजी में कभी भी बहस न होती थी. मां हमेशा बस मुसकराती रहती थीं. उन्होंने अब अपने बाल भी कटवा लिए थे, जिन्हें वे बारबार आईने के सामने खड़े हो कर सैट करती रहतीं. घर में भी अब वे प्यारेप्यारे गाऊन पहनती थीं. उन के कपड़ों से सदैव एक भीनीभीनी खुशबू आती थी. अकसर अब हमें वे अपनी बांहों में नहीं सुलाती थीं. पर मुझे यह सब सिर्फ यह सोच कर अच्छा लगता था कि मेरा सहेलियों के सामने सिर ऊंचा रहेगा. वैसे, अब मुझे लगने लगा था कि पहले की गंभीर, रोंआसी मां में जो स्नेह था, वह इस फैशनपरस्त मां में नहीं है. मां अब हमारे लिए वक्त नहीं निकाल पाती थीं. हमारा स्कूल 11 बजे से लगता था. हम 10 बजे घर से निकलतीं, फिर रात के 10 बजे ही हमें मां के दर्शन हो पाते. पर सुबह भी मां हमारी तरफ कोई ध्यान न देतीं. उन्होंने हमारी देखभाल का पूरा जिम्मा आया के सुपुर्द कर दिया था. कुछ दिनों बाद मां के फोन भी बहुत आने लगे थे. वे फोन पर बहुत धीरेधीरे बोलतीं, लगातार मुसकराती रहतीं, उन का चेहरा अकसर सुर्ख हो जाता. हमें यह नहीं पता था कि उन्हें किस के फोन आते हैं. एक बार मैं ने पूछा तो वे काफी देर तक सिर्फ मुसकराती रहीं. फिर बोलीं, मेरे दोस्त के  फोन आते हैं.

मेरे अंतर में कुछ अजीबोगरीब होने लगा था. समझ में नहीं आता था कि क्या करूं. मां के दोनों ही रूप मेरे लिए असहनीय हो गए थे. एक दिन शाम को आया ने पूछा था, ‘‘बिटिया, प्रवीण चाचा को जानती हो?’’

अटूट बंधन- भाग 1

छोटी थी मैं लेकिन इतनी भी नासमझ न थी कि मां के दुख को समझ न पाती. काश, मैं पिताजी से मां के लिए थोड़ा प्यार मांग पाती क्योंकि मां के लिए शायद पिताजी का प्यार ही हम बच्चियों से ज्यादा महत्त्व रखता था. मां का अधिकतर भूखे रहना और लगातार रोते रहना ही शायद वे कारण थे जिन के चलते वे समय से पहले ही अधेड़ हो गई थीं. मेरी सभी सहेलियों की मांएं अभी भी युवा लगती थीं.

‘मां के बगैर मैं कैसे रहूंगी,’ यह सोच कर ही मैं विकल हो उठी. बेशक पिताजी के पास बहुत पैसा है पर पैसे से मां का प्यार तो नहीं खरीदा जा सकता. मुझे मां से सदैव शिकायत ही रही. मेरी 6-7 प्रिय सहेलियों की माताओं को मैं ने करीब से देखापरखा था. मुझे कभी किसी ने कुछ विस्तार से बताया तो नहीं, पर अपनी 13 वर्षीय बुद्धि से मैं इतना तो समझ ही जाती थी कि उन तमाम मांओं के सीने में कोई न कोई दर्द अवश्य छिपा हुआ है.

‘दर्द खत्म हो जाए तो शायद जीवन को कोई भी रस रोमांचित नहीं कर पाएगा,’ इसी बात को बारबार एक नए अंदाज में मैं ने मां को समझाने की कोशिश की. पर वे सिर्फ मेरे समझाने मात्र से अपने चेहरे पर बनावटी खुशी नहीं ओढ़ पाती थीं. जब भी मां मेरी तर्कपूर्ण बात की अवहेलना करतीं तो मुझे लगता कि उन के लिए सिर्फ पति ही सर्वोपरि हैं, मैं और नन्ही कुछ भी नहीं. मैं कई बार मां को झकझोर कर उन्हें उन के गुमसुम खयालों से खींच लाती और पूछती कि ‘मैं और नन्ही उन की उपेक्षा का कारण क्यों हैं?’ तब मां हम दोनों को अपने आगोश में कस लेतीं. उन के आंसुओं की धार में गजब की तेजी आ जाती. वे निरीहभाव से हमें ताकतीं और उम्मीद करतीं कि हम उन के आंसुओं मेें से उन का स्नेह छांट लें. मेरे और नन्ही के लिए मां के पास शब्दों का अभाव था. पर पिताजी से वे लगातार बोलती रहतीं. देर रात जब नशे में धुत पिताजी घर लौटते और शराब की दुर्गंध से कमरा भर जाता, तब मां उन्हें उलाहने देतीं, कोसतीं. दूसरी ओर पिताजी दूर बैठ कर मां को धमकाते रहते. पर, मां चुप न होतीं और पिताजी के साथसाथ उन की सैके्रटरी नम्रता को भी लताड़तीं. तब पिताजी अपने वश में न रह पाते और मां के गालों पर तमाचा जड़ देते, ‘‘खबरदार अंजना, तुम ने अब एक भी अपशब्द नम्रता के लिए कहा, मैं तुम्हारी जबान खींच लूंगा.’’

पर पिताजी की चेतावनी से मां भयभीत न होतीं. वे चीख कर कहतीं, ‘‘छि:, अपनी प्रेयसी के लिए तुम्हारे मन में इतना दर्द है, सिर्फ इसलिए कि वह तुम्हारी रातों को रंगीन बनाती है. कभी सोचते हो कि तुम्हारे बच्चे कैसे पल रहे हैं? मैं रातदिन तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के लिए खटती रहूं और तुम मस्ती में डूबे रहो. नहीं, अब मैं और बरदाशत नहीं कर सकती.’’

‘‘नहीं बरदाशत कर सकती तो डूब मरो या अपने लिए कोई आशिक ढूंढ़ लो.’’

‘‘छि:…’’ चीखचीख कर मां रो पड़तीं, ‘‘कितने बेशर्म हो तुम. अपनी पत्नी को जबरदस्ती गलत राह पर ढकेलना चाहते हो. धिक्कार है तुम पर.’’

‘‘अंजना, तुम मेरे पीछे क्यों पड़ जाती हो? तुम जानती हो, मैं नम्रता को नहीं छोड़ सकता. अब तुम्हें क्या करना है, यह तुम सोचो. मेरा सिर मत खाओ,’’ कहते हुए पिताजी कमरे से निकल जाते. जाने क्यों पिताजी से लड़ने के बाद भी मां उन के प्रति चिंतित रहतीं. रोज लड़ने के बाद वे बेहद शांति से पिताजी से एक प्रश्न जरूर पूछतीं, ‘‘खाना नहीं खाओगे?’’ कभी पिताजी उठ कर मां के साथ खाना खा लेते और कभी बड़ी बेरुखी से कह देते, ‘मैं ने खा लिया है.’  जिस दिन वे खाने से इनकार करते, मां भी खाना न खातीं. मेरे और नन्ही के बीच आ कर सो जातीं और हम दोनों को बांहों में ले कर कभी सिसकतीं, तो कभी देर तक कुछ सोचती रहतीं.

मां का अधिकतर भूखे रहना और लगातार रोते रहना ही शायद वे कारण थे जिन के चलते वे समय से पहले ही अधेड़ हो गई थीं. मेरी सभी सहेलियों की मांएं अभी भी युवा लगती थीं. मां की खामोशी और उन के अस्तव्यस्त स्वभाव को ले कर मेरी सहेलियां कई बार मुझ से और नन्ही से प्रश्न पूछतीं. हम दोनों झेंप जाया करतीं. उन्हें कैसे बताती कि हमारे मातापिता में नहीं बनती.

पिताजी को हमारी मां अच्छी नहीं लगतीं, उन्हें नम्रता मौसी पसंद थीं, इसीलिए हमें पिताजी से बिलकुल प्यार नहीं था. जब कभी वे हम दोनों के साथ हंसतेखेलते, तब भी मां खोईखोई नजर आतीं. उन की गंभीरता के कारण सभी उन से भय खाते थे, ?जो मुझे पसंद नहीं था. हालांकि मैं उम्र में छोटी थी पर मां की पीड़ा को समझती थी. मैं उन से यह तो नहीं कह सकती थी कि वे अपना दुख भूल जाएं पर यह जरूर चाहती थी कि वे मेरी सहेलियों के सामने थोड़ा सा सजसंवर कर रहें, मुसकराएं, थोड़ाबहुत उन से बात करें, हंसीमजाक करें, ताकि हमारे घर की स्थिति किसी पर जाहिर न हो और कोई भी मेरी मां को गलत न समझे. पर मां को समझाना संभव नहीं था. मुझे लगता था कि अब वह दिन दूर नहीं जब लोग हमारे घर को चर्चा का एक विषय बना लेंगे. मैं आहत हो जाया करती थी. मुझे लगता कि मैं चीखचीख कर मां से कहूं कि वे थोड़ा सा अपने को बदलने का प्रयास करें, ताकि इस घर की खुशी सलामत रहे.

एयर सैल्यूट- डेपुटेशन वाले भगवानों को

ट्रांसफर , प्रमोशन और डीए जैसे सरकारी भाषा के रोज इस्तेमाल किए जाने बाले आम शब्दों की तरह ही एक और शब्द है डेपुटेशन यानि प्रतिनियुक्ति जिसमें मनचाहे मुलाज़िम को मनचाही पोस्ट पर विराजमान कर मनचाहे काम कराए जाते हैं . यह पोस्ट आमतौर पर रिक्त होती है या फिर रिक्त करबा ली जाती है यानि असल मुलाज़िम गायब हो जाता है और उसकी जगह छद्म  मुलाज़िम को पदासीन कर दिया जाता है .

इस डेपुटेशन का असर कोरोना के कहर और लाक डाउन के बाद बड़े पैमाने पाए देखने में आया . 22 मार्च को जनता कर्फ़्यू बाले दिन ही साफ हो गया था कि भगवान नहीं है .  भगवान का न होना ज्ञात इतिहास में पहली (दुर) घटना थी जिससे सरकार थर्रा उठी थी क्योंकि इससे जनता के थोक में नास्तिक हो जाने का खतरा मंडराने लगा था जो कोरोना से भी बड़ा खतरा साबित होता . ताली थाली बजबाने का एक बड़ा मकसद भगवान की रिक्त हो चली पोस्ट को भरना था इसलिए सरकार ने कहा ,हलफिलहाल  डाक्टर , स्वास्थकर्मी और पुलिस बाले ही भगवान हैं इसलिए इनके सम्मान में एक मेगा इवैंट आयोजित किया जा रहा है .

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डेपुटेशन टेम्परेरी पोस्ट होती है , जिसे उक्त दीन हीन मुलाजिमों से भर कर मेसेज दे दिया गया कि आजकल ये नर ही वैकल्पिक नारायण हैं लिहाजा इनका सरकार द्वारा बताए गए तरीके से पूजा पाठ करो . भक्तों में इन टेम्परेरी भगवानों को लेकर इतना जोश आया कि कइयों ने घर की थालियाँ ही फोड़ लीं . सरकार कुछ दिनों के लिए बेफिक्र हो गई कि इस अफीम का असर कुछ दिनों तक रहेगा . भक्तों को भगवान की कमी नहीं अखरेगी इसके बाद मुनासिब वक्त पर अफीम की दूसरी खुराक पोलियो ड्राप्स की तरह पिला दी जाएगी जिससे लोग फिर टुन्न हो जाएँ . तब तक किसी का ध्यान इस तरफ नहीं जाएगा कि हम कोरोना की कसोटी पर खरे नहीं उतर पा रहे .

इधर कोरोना की तो कोई दवा सरकार ईजाद नहीं कर पाई थी ऐसे में धर्म और पूजा पाठ की यह अफीम बड़ी कारगर साबित हुई . लोगों ने मान लिया कि असली भगवान जब तक वापस जॉइन नहीं करता तब तक इन्हें ही भगवान मान लेना घाटे का सौदा नहीं क्योंकि बिना भगवान के जीना बड़ा मुश्किल काम है .  इससे बेचनी और छटपटाहट होती है कि जो नहीं था हम क्यों अभी तक उसे पूजते और पूछते रहे और तो और कमाई का बड़ा हिस्सा उसके नाम पर पंडे पुजारियों को चढ़ाते रहे .  कहीं ऐसा तो नहीं कि वह सचमुच ही न हो और हमें उसके नाम पर ठगा जाता रहा हो .

पहले चरण की खुराक का असर कम होने लगा और उतरते नशे के चलते लोगों को फिर इन टेम्परेरी  भगवानों के वजूद पर शक होने लगा तो 5 अप्रेल को दूसरी खुराक दी गई . इस दिन खूब दिये और मोमबत्तियाँ जलवाई गईं . भगवान किसी और यानि डेपुटेशन के रूप में हैं सरकार की इस उद्घोषणा से लोग लाक डाउन के शिकवे शिकायत और पुलिस की बेवजह की मार कुटाई भूल कर यह मान बैठे कि वह भी तो आखिर दंड ही दे रही है जो भगवान का प्रिय कार्य है इसे दिल पर न लिया जाये . सोचा यह भी गया कि अगर पुलिस के रूप में भगवान दंडित कर रहा है तो अस्पतालों में डाक्टर के रूप में बचा भी तो रहा है .  दूसरी खुराक की भी खुमारी उतरने लगी तो सरकार ने तीसरे चरण में सेना का इस्तेमाल किया .

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एयर सेल्यूट का डोज़ –

3 मई को देशभर में वायुसेना ने कोरोना वारियर्स पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक पुष्प वर्षा की इसकी प्रेरणा लेने सरकार को कहीं दूर नहीं जाना पड़ा . दूरदर्शन पर दिखाये जा रहे रामायण सीरियल में पुष्प वर्षा का दृश्य बेहद आम है . राम , लक्ष्मण और सीता पर प्रजा भी बहारों फूल बरसाओ की तर्ज पर पुष्प वर्षा कर रही है और आसमान तरफ से देवता भी यही कर रहे हैं . सरकार के खुराफाती दिमाग ने सोचा यही कि सेना इन दिनों बेगार काट रही है उसके उड़नखटोले भी जंग खा रहे हैं लिहाजा क्यों न उसे ही इस काम पर लगा दिया जाए . करोड़ों के  फूल भी सड़ रहे हैं इनका भी सदुपयोग डेपुटेशन बाले भगवानों पर छिड़कवाकर उनकी  हौसलाफजाई के लिए किया जाए .

अब यह और बात है कि असली माना जाने बाला भगवान तो क्वारंटाइन में धकेल दिया गया  और ये नव भगवान बेचारे दुनिया भर के सुख छोडकर, अपनी जान जोखिम में डालकर , खुद संक्रमित होकर जी जान से सेवा में लगे थे और लगे हैं . ये कहीं घबराकर मैदान छोडकर भाग न जाएँ इसलिए तीसरी दफा इनका कार्यकाल बढ़ाया गया . यहाँ ध्यान देने बाली इकलौती और दिलचस्प बात यह है कि इनकी सेलरी नहीं बढ़ाई गई उल्टे तरह तरह से काट और ली गई .

एयर सेल्यूट पर सरकार ने एक दिन में करोड़ों रु फूँक दिये लेकिन इन बेचारों को कुछ नहीं दिया क्योंकि ये डेपुटेशन बाले हैं . इन्हें संदेश यह दिया गया कि सम्मान से ही पेट भर लो यह तुच्छ पैसों और सुविधाओं से बहुत बड़ी चीज है . पैसे का क्या है वह तो हाथ का मैल है आता जाता रहता है .  आज है कल नहीं होगा या आज नहीं है तो कल हो जाएगा न भी हो तो शोक मत करो आनंद मनाओ क्योंकि तुम्हें अस्थाई कल्कि अवतार घोषित कर दिया गया है . तुम्हें जो मान सम्मान समारोह पूर्वक दिया जा रहा है वह अनमोल है .

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सेना को भी खूब वाहवाही मिल गई .  एक तीर से कई शिकार करने की आदी हो चली सरकार अगले कुछ दिनों के लिए बेफिक्र हो गई है . चौथे चरण के लिए उसके मार्गदर्शक अगला टोटका क्या हो विषय पर सेमिनार में व्यस्त हो गए होंगे कि अब नया क्या किया जाये जिससे लोगों का ध्यान अपनी और गैरों की परेशानियों और सरकार की नाकामियों पर न जाये .

कुछ निकृष्ट और नास्तिक किस्म के लोगों ने एयर सेल्यूट पर एतराज जताया लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती जैसी साबित हुई . यह आवाज हालांकि साफ दिख रहा है कि अब दबाए से दबने बाली नहीं क्योंकि लोगों की विरोध करने की हिम्मत वापस आ रही है और  इनके अपने तर्क हैं जिनकी काट किसी के पास नहीं मसलन जिन डाक्टरों और स्वास्थकर्मियों को जबरिया एयर सेल्यूट किया गया उनमें से अधिकतर की हालत जंग में ढकेले निहत्थे सिपाहियों सरीखी हो गई है जिसे युद्ध नहीं लड़ना है बल्कि शहीद होने तैयार रहना है .

3 मई को ही राजधानी दिल्ली में 6 डाकटर्स कोरोना संक्रमित पाये गए थे . इनमे से तीन कस्तूरबा गांधी अस्पताल के और तीन हिन्दू राव अस्पताल के थे . दिल्ली के ही बाबू जगजीवन राम अस्पताल में कोई 60 स्वास्थकर्मी संक्रमित थे . दिल्ली के ही एम्स में 20 डाक्टर और स्वास्थ कर्मी संक्रमण की चपेट में थे . इसी एयर सेल्यूट बाले दिन एम्स की एक फोटो भी वायरल हुई थी जिसमें साफ दिखाई दे रहा है कि डेपुटेशन बाले भगवान सिर पर पन्नी लपेट कर भक्तों की जान बचाने के पुण्य कार्य में जुटे हुये हैं . कमोवेश यही हल पूरे देश का है कि इन कोरोना वारियर्स के पास न तो मास्क हैं न दास्ताने हैं और न ही पीपीटी किटस हैं .

चुकि ये ईमानदार टाइप के भगवान हैं , इनमें देवी देवताओं जैसा छलकपट नहीं है इसलिए ये अपने काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं . ऐसे में यह तय कर पाना मुश्किल काम नहीं कि एयर सेल्यूट का मकसद इनका मनोबल बढ़ाना नहीं बल्कि चढ़ जा बेटा सूली पर की तर्ज पर इन्हें उकसाना और बहकाना था . ये यह पूछना शुरू करें कि कोरोना पीड़ितों को ठीक करने हमें जरूरी उपकरण और सामान सहूलियतें क्यों नहीं दिये जा रहे इसके पहले ही इनका मुंह पुष्प वर्षा से बंद कर दिया गया . मुंह खुल जाता तो कल को ये लोग यह भी पूछते कि मिलने के नाम पर हमें दरअसल में मिला क्या है .

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बात कुछ कुछ एक पुराने चुट्कुले जैसी है . रामलाल नाम के नौकर की मेहनत और ईमानदारी से खुश होकर कंजूस और धूर्त सेठ ने उससे कहा , रामलाल हम तुम से खुश हैं और तुम्हें कुछ देना चाहते हैं . रामलाल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा उसे लगा कि आज सेठ जी पगार बढ़ा देंगे इसलिए वह सवालियाँ निगाहों से अपने शोषक सेठ का मुंह ताकने लगा . सेठ जी बोले अब आज से हम तुम्हें रामलाल नहीं बल्कि रामलाल जी कहा करेंगे , जाओ रामलाल जी काम पर लग जाओ .

यही हालत डेपुटेशन बाले भगवानों की है .

  भगवान रिटर्न्स-

पूरी संभावना है कि कोरोना का कोहरा छंटते ही असली यानि काल्पनिक भगवान की वापसी की जाएगी इन भगवानों को तो कोई पूछेगा ही नहीं . ठीक हुये पैसे बाले लोग ब्रांडेड मंदिरों तिरुपति , शिर्डी , वैष्णोदेवी , केदारनाथ , बद्रीधाम बगैरह जाएँगे और गरीब हमेशा की तरह नुक्कड़ बाले हनुमान , शंकर या काली जी की मढ़िया पर 11 रु चढ़ाकर ऊपर बाले का आभार व्यक्त कर लेगा . हर किसी को आर्थिक हैसियत और जाति के हिसाब से भगवान थमा दिया गया है जिससे कोई बेकार की चिल्लपों न करे और विष्णु अवतारों पर अपना अधिकार न जताए .

जो लोग यह अंदाजा लगा रहे हैं कि कोरोना के कहर के बाद भगवान की दुकाने बंद हो जाएंगी वे निश्चित रूप से अति उत्साह में हैं और पंडे पुजारियों की धूर्तता का कोई तजुरबा उन्हें नहीं है . यह तो दुकानदारों ने जनता कर्फ़्यू बाले दिन से ही कहना शुरू कर दिया था कि दरअसल में कोरोना दैवीय प्रकोप है जिसके जरिये पृकृति अपने आप को रिफ्रेश कर रही है . नीचे बाले बहुत उपभोगी हो चले थे इसलिए भगवान उन्हें टाइट कर रहा है .

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भगवा गेंग डेपुटेशन बाले भगवानों का सम्मान इसीलिए कर रही है कि ये लोग जुटे और जुते रहें इसके बाद इन्हें इनके मूल पदों पर भेज दिया जाएगा . सरकार के पास बेशुमार पैसा धार्मिक किस्म के आयोजनो पर फूंकने के लिए है जिससे भगवान की फीलिंग आती और बनी रहे . करोड़ों मजदूर कीड़े मकोड़ों की तरह देश भर में भूख प्यास से बिलबिलाते अपने कर्मों की सजा भुगत रहे हैं उन्हें देने सरकार के पास कुछ नहीं सिवाय दिखावटी घोषणाओं के और दिखावे को बहुत कुछ है कि देखो इतने करोड़ या अरबों की राहत दी . यह राहत भंडारे की प्रसादी की तरह कुछ लोगों को मिल भी रही है .

और जिनकी सरकार है या जिनके लिए सरकार है वे 8  – 10 करोड़ लोग घरों में पकवान फाँकते रामायण देख भावविभोर होने का स्वांग कर रहे हैं . यही वे लोग हैं जो ताली थाली भी बजाते हैं , दिये मोमबत्ती भी जलाते हैं और एयर सेल्यूट जैसी फिजूलखर्ची पर कोई सवाल नहीं करते .  इन्हें मालूम है कि सारे ड्रामे एक खास मकसद से किए जा रहे हैं . और यह मकसद है कि डाक्टर स्वास्थकर्मी और पुलिस बाले भी कोरोना से लड़ते रहें ठीक वैसे ही जैसे दलित पिछड़े और औरतें गुलामी ढोती रहती हैं और इस बाबत इन्हें रामलाल जी कहना घाटे का सौदा नहीं .

मैं 21 साल का हूं, मैं अपने क्लासमेंट के साथ रिलेशनशिप में हूं, मेरी गर्लफ्रेंड के साथ लड़ाई होती है क्या करूं?

सवाल

मैं 21 वर्ष का हूं और पिछले 7 महीनों से अपनी क्लासमेट के साथ रिलेशनशिप में हूं. मेरी गर्लफ्रैंड और मैं एकसाथ ज्यादा टाइम स्पैंड नहीं करते क्योंकि हमारे बीच में अब भी एक झिझक है जो जाने का नाम ही नहीं ले रही. हमारे इंटीमेट मोमैंट्स काफी रोमांटिक होते हैं जिन के बारे में हम दोनों बातें भी करते हैं. जब वीडियो कौल पर बात होती है तो वह बेहद खुश हो जाती है और हम एकदूसरे को देख कर बस मुसकराते ही रहते हैं. लेकिन कालेज में हम दोनों एकदूसरे से ज्यादा बात नहीं करतेन ही हाथ पकड़ते हैं और न रोमांटिक होते हैं. यह झिझक कैसे खत्म करें?

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जवाब

आप को अपनी गर्लफ्रैंड के साथ थोड़ा रिलैक्स्ड महसूस करने की जरूरत है. हर समय आप रोमांस के बारे में नहीं सोच सकते. एक ही क्लास में होने के कारण हो सकता है उसे अपने दोस्तों और बाकी क्लासमेट्स के सामने आप से बात करने में हिचक होती हो और वह सोचती हो कि पहले आप बात करें तब वह करेगी. इस तरह की चीजें अकसर हो जाती हैं, इन्हें बात कर आसानी से सुलझाया जा सकता है. आप क्लास ओवर होने के बाद उस के साथ कैंटीन में जा बैठ सकते हैं, ग्राउंड में घूम सकते हैं या लाइब्रेरी में जा साथ में कुछ पढ़ सकते हैं. रिलेशनशिप का मतलब सिर्फ सैक्स, इंटीमेसी और रोमांस ही नहीं है. इस झिझक का कारण यही है कि लव मेकिंग के समय तो आप दोनों के बीच स्पार्क है लेकिन नौर्मली नहीं है क्योंकि आप हमेशा ही गर्लफ्रैंड और बौयफ्रैंड की तरह बिहेव करना चाहते हैं जोकि संभव नहीं है क्योंकि हर समय रोमांस बोरिंग और इरिटेटिंग लगने लगता है. झिझक तभी जाएगी जब आप दोनों एकदूसरे के साथ नौर्मल क्लासमेट्स जैसी बातचीत करेंगे और हैंगआउट भी.

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कैंसर रोगियों के लिए ज़्यादा घातक है कोरोना

कोरोना वायरस का खतरा उन लोगों को ज्यादा है जिन्हें पहले से कोई ना कोई बीमारी है और इनमें से कोरोना सबसे ज़्यादा घातक साबित हो रहा है कैंसर रोगियों के लिए। कैंसर रोगियों को कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने का खतरा सबसे ज़्यादा है. वजह यह कि कैंसर रोगियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले ही कमजोर होती है.कीमो और अन्य थेरेपीज के चलते उनका शरीर काफी कमजोर होता है. ऐसे में कैंसर रोगियों में कोरोना वायरस का संक्रमण जानलेवा हो सकता है. कैंसर के जिन मरीजों की कीमोथैरेपी हो रही है या हो चुकी है, उन्हें उल्टी सहित अन्य समस्याएं भी रहती हैं. वे ठीक तरीके से भोजन नहीं ले पाते हैं. ज़्यादातर लिक्विड डाइट होते हैं. उनके अमाशय में भोजन पचने में वक़्त लगता है. ऐसे में भोजन से पर्याप्त ऊर्जा ना मिल पाने के कारण रोग से लड़ने में उनका शरीर शिथिल पड़ जाता है.

चीन के डाटा के अनुसार, कोरोना वायरस की वजह से जिन लोगों ने जान गंवाई हैं या गंभीर हालत में हैं, उनमें से ज़्यादातर पहले से ही किसी बीमारी से ग्रस्त थे, जिसकी वजह से उनका इम्यून सिस्टम काफी कमज़ोर था. गंभीर रूप से बीमार होने वाले 6% लोगों में, फेफड़े की सूजन इतनी गंभीर है कि शरीर को जीवित रहने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है.एक नई स्टडी के अनुसार कैंसर के वो मरीज जिनकी बीमारी का असर उनके खून और फेफड़े पर पड़ चुका हो या उनके पूरे शरीर में ट्यूमर फैल चुका हो, उनमें कैंसर ना होने वाले covid-19 के मरीजों की तुलना में मौत या अन्य गंभीर जटिलताओं का खतरा बहुत अधिक है.

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इस स्टडी में चीन के हुबेई प्रांत के 14 अस्पताल शामिल हैं, जहां यह महामारी फैली। इनमें 105 कैंसर के मरीज और उसी उम्र के 536 वो मरीज थे जिन्हें कैंसर नहीं था. ये सभी मरीज  Covid-19 से पीड़ित थे. चीन, सिंगापुर और अमेरिका के डॉक्टरों ने अपनी स्टडी में पाया कि सिर्फ कोरोना के मरीजों की तुलना में कोविड -19 के कैंसर मरीजों की मृत्यु दर लगभग तीन गुना अधिक थी.स्टडी में कहा गया है कि बिना कैंसर वाले कोरोना के मरीजों की तुलना में कोरोना वाले कैंसर के मरीजों को देखभाल की ज्यादा जरूरत है, जैसे आईसीयू में भर्ती करना और वेंटिलेशन पर रखना. कैंसर का यह खतरा सिर्फ उम्र के हिसाब से नहीं बल्कि इस पर भी निर्भर करता है कि यह कौन सा कैंसर है, किस चरण में है और इसका इलाज कैसे किया जा रहा है.

इस स्टडी के निष्कर्षों से पता चलता है कि कोविड -19 के प्रकोप में कैंसर वाले मरीज आसानी से आ सकते हैं क्योंकि इम्यून सिस्टम कमजोर होने की वजह से उनमें संक्रमण फैलने का खतरा ज्यादा होता है.इस स्टडी को अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च की वर्चुअल वार्षिक बैठक में जारी किया गया है और संगठन की समीक्षा पत्रिका के कैंसर डिस्कवरी अंक में इसका प्रकाशन हुआ है. इससे पहले की स्टडी में कैंसर और कोविड -19 के सिर्फ 18 मरीजों को शामिल किया गया था.विशेषज्ञों के अनुसार, कैंसर के मरीजों के अत्यधिक संवेदनशील होने के कई कारण हैं. कैंसर ना सिर्फ इम्यून सिस्टम पर दबाव डालता है बल्कि इसके मरीज जल्दीबूढ़े होने लगते हैं। यह दोनों लक्षण कोविड -19 के लिए खतरनाक हैं.
ब्लड कैंसर जैसे ल्यूकेमिया, लिम्फोमा और माइलोमा इम्यून सिस्टम पर हमला करते हैं, मरीजों के प्राकृतिक रूप से बीमारी से लड़ने की क्षमता को कमजोर करते हैं और उनमें खतरनाक संक्रमण होने की प्रवृत्ति को बढ़ाते हैं.

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स्टडी के अनुसार, खतरे की दूसरी श्रेणी में फेफड़े के कैंसर वाले मरीज आते हैं.फेफड़े की कार्यक्षमता कम होने की वजह से यह लोग जरूरत से ज्यादा संवेदनशील होते हैं. कीमोथेरेपी और सर्जरी भी इम्यून सिस्टम को दबा देते हैं. कैंसर का पूरा इलाज कराने के बाद भी इन मरीजों में कोरोना का खतरा उन मरीजों की तुलना में ज्यादा है जिन्हें कभी कैंसर नहीं हुआ.

डॉक्टर कहते हैं कि इस आपदा से घबराएं नहीं, बल्कि इसका हिम्मत और सावधानी से सामना करें. कैंसर मरीज अपने खानपान का विशेष ध्यान रखें। थोड़ी- थोड़ी देर बाद कुछ खाते रहें, तरल पदार्थ का सेवन अधिक से अधिक करें. जिससे कमजोरी न आए और रोग प्रतिरोधक क्षमता ठीक बनी रहे. इसके अलावा कैंसर रोगी अपनी साफ सफाई पर दूसरों के मुकाबले ज़्यादा ध्यान दें. अपने हाथ बार-बार धोते रहें, संभव हो तो घर पर खुद को आइसोलेट कर लें, अलग कमरे में रहें. घर के भीतर भी मास्क का इस्तेमाल कर सकते हैं, मास्क नहीं है तो रुमाल बांध सकते हैं, लेकिन इसे धोते रहें. सेनेटाइजर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. कैंसर रोगियों को फॉलोअप के लिए हॉस्पिटल जाना पड़ता है, डॉक्टर सलाह देते हैं कि अपने डॉक्टर से सलाह लेकर हो सके तो जब तक अति आवश्यक न हो अगले एक-दो माह तक अस्पतालों में ना जाएँ.अगर जाना बहुत ही ज़रूरी हो जाए तो मास्क लगाने के साथ ही अपने साथ सेनेटाइजर ले जाएं, इसका इस्तेमाल करते रहें. अस्पताल में किसी भी वस्तु को न छूएं, अपने हाथ को नाक, आंख और चेहरे से न लगाएं.

ये वायरस आपके शरीर में तब प्रवेश करता है जब आप संक्रमित बूंदों को सांस के द्वारा अंदर खींच लेते हैं या फिर आप किसी संक्रमित सतह को छू लेते हैं और फिर उन्हीं हाथों से अपनी आंखें, मुंह या नाक छूते हैं. इसके बाद वायरस के कण गले तक पहुंच जाते हैं और कोशिकाओं पर चिपक जाते हैं और अपनी आनुवंशिक सामग्री कोशिकाओं में ट्रांसफर कर देते हैं. जिससे मानव कोशिकाएं ऐसे कारखाने में तबदील हो जाती है जो और ज़्यादा वायरस कणों का उत्पादन करने लगती है.

जैसे-जैसे वायरस बढ़ने लगता है, यह गले के नीचे चला जाता है. जब वायरस फेफड़ों में पहुंचता है, तो यह सूजन यानी इंफ्लामेशन को पैदा करता है. जिससे फेफड़ों को रक्तप्रवाह में ऑक्सीजन भेजने में कठिनाई आती है.इस वजह से फेफड़ों में पानी भरना शुरू हो जाता है और सांस लेने में मुश्किल आने लगती है.कई मरीज़ों को सांस लेने में मदद के लिए वेंटीलेटर का सहारा लेना पड़ता है.ऐसे वक्त में ये बेहद ज़रूरी है कि कैंसर रोगी सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य सलाह का पालन करके अपनी रक्षा करें.जिसमें सामाजिक दूरी बनाना और स्वच्छता बनाए रखना अतिआवश्यक है.

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