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‘प्रवीण चाचा?’ मैं मन ही मन बुदबुदाई. फिर बोली ‘‘नहीं.’’

‘‘पर, मेमसाहब तो कह रही थीं कि वे तुम्हारे चाचा हैं.’’ मैं और नन्ही एकदूसरे को प्रश्नसूचक निगाहों से ताकती रह गईं. आया ने आगे बताया, ‘‘वे रोज यहां आते हैं, 1-2 घंटे रुकते हैं, फिर चले जाते हैं.’’

‘‘हमें नहीं पता, हम मां से पूछ कर आप को प्रवीण चाचा के बारे में बताएंगी,’’ नन्ही ने कहा.

‘‘न बिटिया न, मां से कुछ मत पूछना. न ही उन्हें यह बताना कि मैं ने आज आप से इस विषय में बात की है, वरना वे तो हमें नौकरी से ही निकाल देंगी.’’

‘‘क्यों निकाल देंगी?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘बिटिया, अभी आप छोटी हैं, इसलिए नहीं समझ आएगा. मैं सच कह रही हूं, आप इस बातचीत के बारे में किसी से कुछ न कहना, वरना मैं गरीब अपनी नौकरी से हाथ धो बैठूंगी.’’ मैं और नन्ही इस रहस्य की पीड़ा को सहने को विवश हो गईं. ‘प्रवीण चाचा कौन हैं? हमारे घर क्यों आते हैं? हमारे सामने क्यों नहीं आते? आखिर प्रवीण चाचा या उन के बारे में मां से कुछ भी पूछने से वे आया को नौकरी से क्यों निकाल देंगी?’ इन सब प्रश्नों के साथ प्रवीण चाचा हमारे लिए संदेहास्पद हो गए थे. आया से बात होने के बाद नन्ही प्रवीण चाचा का नाम ले कर मां से अपने संदेह की पुष्टि करना चाहती थी. पर नन्ही के प्रश्न पूछने का अंदेशा होते ही मैं उस के नन्हे होंठों पर अपनी हथेली धर देती.

जब भी मैं ऐसा करती, नन्ही की मासूम आंखों में मुझे एक खौफ नजर आने लगता. हम दोनों प्रवीण चाचा को देखे बगैर ही उन से डरने लगी थीं. शायद हमें इस बात का पूर्वाभास होने लगा था कि उन्हीं की वजह से हमारे घर में कोई तूफान आने वाला है. एक दिन हमारा डर सत्य सिद्ध हो गया जब पिताजी समय से पूर्व घर लौट आए. वे बेहद गंभीर और क्रोधित लग रहे थे. वे गुस्से से भरे पूरे घर में चहलकदमी कर रहे थे और बारबार घड़ी की तरफ देखते हुए अपनी बेचैनी को व्यक्त कर रहे थे. न तो उन्होंने कपड़े बदले, न ही कुछ खायापीया. आया 2 बार चाय के लिए पूछ गई थी, पर पिताजी ने मना कर दिया था. मुझ से और नन्ही से भी उन्होंने बात न की.

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