पुरानी हिंदी फिल्मों में जब नायक या नायिका संकट काल से गुज़रते थे तो सीधे मंदिर में भगवान् की मूर्ति के आगे माथा रगड़ते, रोते-कलपते, विलाप करते और रो-रो कर भजनों के माध्यम से भगवान् से अपने ऊपर आये हुए संकट से उबारने की प्रार्थना करते नज़र आते थे. फिल्मों में ऐसे सीन भी होते थे जिसमे एक नमाज़ी आदमी अपने अल्लाह से दुआ मांगता और उसके सारे संकट पलक झपकते ही टल जाते, उसका दुश्मन उसके पैरों में आ गिरता. इस तरह के दृश्यों से महिलायें खूब गहरे जुड़ती थीं और आज भी जुड़ती हैं. इस तरह के धार्मिक और भावुक सीन थिएटर्स में दर्शकों की भीड़ जुटाते और डायरेक्टर, प्रोडूसर्स और एक्टर्स को खूब मालामाल करते थे। ऐसे सीन आज की फिल्मों में भी होते हैं मगर अब इनकी संख्या फिल्मों में कुछ कम हो गई है. परन्तु आजकल टीवी पर ऐसे धार्मिक धारावाहिकों की भरमार हो गई है.महिलाओं की धार्मिक प्रवृत्ति को इस तरह के दृश्यों से खूब बल मिलता था.धर्मांध पुरुष भी रंगीन परदे पर दिखाए जा रहे तमाम अतार्किक, अनोखी और अजूबी बातों के आगे नतमस्तक रहते हैं.
फिल्मों का मनुष्य के जीवन पर गहरा असर होता है. खासतौर पर कम पढ़े लिखे, धर्मभीरू और विज्ञान की जानकारी ना रखने वाले लोग जो कुछ भी फिल्मों में देखते हैं उस पर आँख मूँद कर भरोसा करते हैं. अगर ये फिल्मे मात्र दिल को बहलाने के लिए और समय बिताने के मकसद से होतीं तो इनसे कोई शिकायत नहीं थी, लेकिन इन फिल्मों का असर इंसान के दिल-दिमाग, रक्त-मज्जा में बहुत गहरे उतर चुका है.इंसान कभी इस असर से निकल पायेगा या नहीं, ये कहना मुश्किल ही है क्योंकि लम्बे समय से ऐसी धार्मिक फ़िल्में, धर्म गुरु, पंडित, मौलवी, पादरी और इनकी तरह धर्म का धंधा चलाने वाले लोग इंसानी दुनिया को एक भ्रमजाल में कस कर जकड़े हुए हैं और राजनीति अपना उल्लू सीधा करने के लिए इन सभी को शह देती है और इस भ्रमजाल को ताने रखना चाहती है। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में होता आया है और होता जा रहा है.
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इंसान पर जब-जब संकट आया है उसको हमेशा विज्ञान ने उस संकट से उबारा है, किसी भगवान्, अल्लाह या गॉड ने नहीं.आप प्रयोग कर लीजिये साधारण सा. आपका बच्चा बुखार से तप रहा है और आप अपने घर के मंदिर में भगवान् के आगे भजन गाइये कि वो आपके बच्चे को अच्छा कर दे, या आप मुस्लिम हैं तो नमाज़ पढ़ कर अल्लाह से दुआ मांगिये कि आपका बच्चा स्वस्थ हो जाए
मगर आप ऐसा हरगिज़ नहीं करेंगे क्योंकि आप जानते हैं कि उससे कुछ नहीं होगा, भगवान् या अल्लाह कुछ नहीं करेगा और आपके बच्चे का बुखार बढ़ता जाएगा, हो सकता है उसकी जान भी चली जाए.आप उस वक़्त मंदिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारे नहीं, बल्कि अपने बच्चे को ले कर सीधे अस्पताल भागेंगे, डॉक्टर को दिखाएँगे, दवा दिलाएंगे और उससे आपका बच्चा ठीक होगा.आप इस सच को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि संकट की घड़ी से साइंस ही निपटता है, ईश्वर के आगे सर पटकने से कुछ नहीं होता। या किसी पण्डे-पंडित, मुल्ला-मौलवी या पादरी के बस की बात नहीं है कि वह किसी रोग से इंसान की जान बचा ले. फिर भी डाक्टर चीखते रहे कि कोरोना जैसी महामारी से जान बचानी है तो अपने घर में रहो, मास्क पहनो, सामाजिक दूरी बना लो मगर धर्म के अंधे और इस अंधविश्वास में दुनिया को जकड़ कर रखने वालों ने विज्ञान की चेतावनियों पर लोगों को अमल नहीं करने दिया और कितने ही मासूमों को कोरोना के काल का ग्रास बना दिया.
इंसानी जान के ये दुश्मन कोरोना काल में आत्मघाती धार्मिक उत्सव कराते रहे, जगह-जगह धार्मिक जमावड़े करते रहे और लोगों को एक जगह जमा करके मौत का आह्वाहन करते रहे.
पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का संक्रमण काफी तेजी से बढ़ रहा है. इसके पीछे काफी हद तक उन धार्मिक जमावड़ों का हाथ है जो मनाही के बावजूद होते रहे. नियमों-निर्देशों को ताक पर रखकर धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन ने कोरोना को अपने पांव फैलाने के खुले रास्ते दिए.सोशल डिस्टेंसिंग को तार-तार करने की वजह से ही इस जानलेवा वायरस को फैलने में आसानी हुई.विश्व में जहां कहीं भी धार्मिक समागमों पर रोक लगाने में देरी हुई, वहां कोरोना वायरस तेजी से फैला है.
ईरान में मस्जिद में जमा होकर पढ़ी गई नमाज
ईरान में दो पवित्र स्थल ऐसे हैं, जहां शिया मुसलमान बड़ी श्रद्धा से जाते हैं. पहला है मशहद शहर और दूसरा कुम शहर में फातिमा मसुमेह का तीर्थ-स्थान। परंपरानुसार यहां श्रद्धालु पहले जमीन को चूमते हैं, फिर प्रवेश करते हैं. कोरोना वायरस का संक्रमण फैलते ही इन दोनों शहरों में घुसने पर ईरान सरकार ने 17 मार्च को पाबंदी लगा दी थी मगर ‘अल्लाह कोरोना से बचाएगा’ कहते हुए श्रद्धालु इन दोनों तीर्थ-स्थलों में घुस गए। ईरान की पुलिस ने बल प्रयोग करके उन्हें खदेड़ा.फिर भी नमाज़ी ना माने और खूब बवाल काटा हालांकि वहां के मौलवी ने भी लोगों से मस्जिद में ना घुसने की अपील की थी मगर भीड़ भड़क गई और उसने मौलवी को जान से मारने की धमकी दी. उस मौलवी को पद से हटा दिया गया और नए मौलवी ने आते ही अपनी जहालत का परिचय दिया और लोगों को वहां इकट्ठा होकर नमाज पढ़ने की इजाजत दे दी.1600 लोगों ने मस्जिद में एकत्र होकर नमाज अदा की. इसका असर यह हुआ कि ईरान में कोरोना पीड़ितों की संख्या बढ़ती गई और मिडल ईस्ट के मुल्कों में सबसे ज्यादा मौतें ईरान में ही हुईं. इजरायल में भी कोरोना संक्रमित यहूदियों में 35 प्रतिशत उनका है, जो सिनेगॉग (यहूदियों का पूजा-स्थल) खुद गए या उन लोगों से मिले जो वहां गए थे.देश के दकियानूसी और अंधविश्वासी लोग सरकार के निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं और लोगों से कह रहे हैं कि अब्राहम उन्हें बचाएगा.
तबलीगी जमात के कार्यक्रम कई देशों में हुए
मलयेशिया में फरवरी में तबलीगी जमात की एक अंतरराष्ट्रीय सभा हुई जिसमें 1600 लोगों ने शिरकत की. इसके बाद कई प्रचारक आसपास के देशों के अलावा भारत और पाकिस्तान आए.यह सभा इस तथ्य के बावजूद आयोजित हुई कि इससे पहले 30 जनवरी को ही विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना को लेकर हेल्थ इमर्जेंसी घोषित कर चुका था.दिल्ली के निजामुद्दीन में हुई तबलीगी जमात की बैठकों में शामिल हुए लोगों में से अधिकांश कोरोना से संक्रमित निकले.
जमात नेतृत्व की इस गैर-जिम्मेदाराना और आपराधिक हरकत का खामियाजा वे तमाम लोग भुगत रहे हैं जो बैठक के भागीदारों से मिले। साधारण मुसलमान भी जनता के रोष का शिकार हो रहे हैं, जिनका तबलीगी जमात से कोई लेना-देना नहीं है. यह समागम तब हुआ जब दिल्ली में दंगे हो चुके थे और कट्टर हिंदू संगठन मुस्लिम विरोधी प्रचार में जुटे थे. तबलीगी जमात ने इनका काम आसान कर दिया. यह भी समझ से परे है कि 20-21 मार्च को एक और समागम प्रशासन ने कैसे होने दिया, जबकि समागम-स्थल से दस कदम पर पुलिस स्टेशन मौजूद है.
जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से लड़ रही हो तो भारत की राजधानी के बीचोबीच हुआ यह धार्मिक सम्मेलन एक घोर लापरवाही को दिखाता है.इस जमावड़े में देश के अलग अलग हिस्सों से आये जमातियों के अलावा मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों से कुल 2000 से अधिक प्रतिनिधि शामिल हुए थे.कई दिनों तक साथ रहने के अलावा इन लोगों ने एक ही डाइनिंग हॉल में खाना खाया और साझा बाथरूम-टॉयलेट इस्तेमाल किये. ज़ाहिर है अब तक इनमें से दर्जनों लोग कोरोना पॉज़िटिव होंगे और दूसरे सैकड़ों लोगों को संक्रमण फैला रहे होंगे.
एक जगह पर इतने लोगों के इकट्ठा हो जाने पर जितने सवाल पुलिस और प्रशासन पर उठते हैं उससे अधिक सवाल आयोजकों पर हैं.यहां पहुंचे लोगों का संपर्क तेलंगाना, यूपी, महाराष्ट्र, असम, झारखंड, कर्नाटक और अंडमान समेत देश के कई हिस्सों तक दिख रहा है. जमात के लोगों के टेस्ट के बाद दिल्ली के संक्रमित लोगों का आंकड़ा उछल कर सौ के पास पहुंच गया था.
इससे पहले देश भर की मस्जिदों में भी बड़ी संख्या में नमाज़ होते रही.जब दिल्ली की जामा मस्जिद में इकट्ठा हुये लोगों से सवाल हुए तो ज़्यादातर का कहना था कि वह पांच वक़्त के नमाज़ी है इसलिये उन्हें कोराना वायरस से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है.कुछ ने यह तक कहा कि नमाज़ मस्जिद में ही पढ़ी जा सकती है, घर में नहीं और अल्लाह के होते किसी वायरस या दुश्मन से डरने की ज़रूरत नहीं है.यही हाल देश की दूसरी मस्जिदों में भी दिखा. निरी मूर्खता और कट्टरपन के कारण अब लोगों की जान ख़तरे में पड़ी हुई है. क्या अल्लाह आएगा जान बचाने? ‘अल्लाह हमें मस्जिदें न छोड़ने की सलाह दे रहा है’, ‘हम डॉक्टरों की सलाह नहीं मानेंगे’- इस तरह के ऑडियो क्लिप्स सोशल मीडिया पर भेज भेज कर मानवजाति के हत्यारों ने ना जाने कितने मासूमों को असमय ही मौत की मुँह में धकेल दिया.
तबलीगी जमात का इससे कहीं बड़ा आयोजन मार्च के पहले सप्ताह में लाहौर में होना तय था जिसे पाकिस्तान की सरकार ने रद्द कर दिया. गड़बड़ यह हुई कि जब तक निषेधाज्ञा की घोषित हुई, कई विदेशी तबलीगी लाहौर पहुंच गए और वहां भी संक्रमण बढ़ गया.
पंजाब ने मनाया होला मोहल्ला उत्सव
पंजाब के एक ग्रंथी बलदेव सिंह रागी अपनी कीर्तन मंडली लेकर इटली और जर्मनी गए और वहां से कोरोना लेकर आए. लेकिन यह बात उन्होंने प्रशासन से छुपा ली. आनंदपुर साहिब में होली के दिन एक बड़ा उत्सव ‘होला मोहल्ला’ मनाया जाता है, जिसमें हजारों लोग हिस्सा लेते हैं। बलदेव सिह की मंडली ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और श्रद्धालुओं को कोरोना के रूप में प्रसाद बांटा. नतीजा यह कि पंजाब में कोरोना के मामले बढ़ गए.
योगी आदित्यनाथ ने की रामनवमी पर पूजा
लॉकडाउन के बीच रामनवमी के अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या पधारे और सोशल डिस्टेंसिंग की परवाह न करते हुए वहां पूजा-अर्चना की वहां उपस्थित अयोध्या मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष आचार्य परमहंस ने कहा कि भगवान राम अपने भक्तों को कोरोना से बचाएंगे.केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे का भी बयान आया कि श्रीराम से लेकर भोलेनाथ तक सभी कोरोना वायरस से रक्षा करेंगे.
16-17 मार्च तक सिद्धि विनायक मंदिर, उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर, शिरडी का साईं मंदिर, तिरुपति का वेंकटेश्वर मंदिर और वैष्णो देवी मंदिर खुले रहे.बनारस का काशी विश्वनाथ मंदिर 20 मार्च तक खुला रहा और भक्त इकट्ठा होते रहे.
चितापुर के धार्मिक उत्सव में उमड़ी भीड़
पूरी दुनिया लॉकडाउन में आ चुकी थी। सड़कें, बाजार, शॉपिंग मॉल, ऑफिस, सब बंद हो चुके थे. लेकिन कर्नाटक के राज्यों में लॉकडाउन के दौरान इतनी सख्ती के बावजूद तालाबंदी के बीच 16 अप्रैल 2020 को बड़ी संख्या में लोगों ने कलापुर जिले के चितापुर में एक धार्मिक उत्सव में भाग लिया. पूरे देश में कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन लागू होने के बावजूद कर्नाटक के कलबुर्गी जिले के चितापुर में बड़ी संख्या में लोग इस धार्मिक उत्सव में शामिल हुए। यहां लोगों ने सिद्धलिंगेश्वर मंदिर के पास एकजुट होकर रथ को खींचने वाले जुलूस में भाग लिया और लोगो में कोरोना का प्रसार किया.
चर्चों में बड़ी संख्या में जुटे लोग
अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, स्पेन, दक्षिण कोरिया और कई अन्य देशों में हर संडे को चर्च में होने वाली मास प्रेयर ने कोरोना फैलाने में अहम भूमिका निभाई। मार्च के आखिरी रविवार को अमेरिकी राज्य लुइसियाना में 1600 लोग चर्च के समागम में शामिल हुए, जहां लोगों का आपस में गले मिलना, हाथ मिलाना और चूमना, सब कुछ देखा जा सकता था। भागीदारों का विश्वास था – गॉड हमें बचाएगा। साउथ कोरिया की राजधानी सियोल में 22 फरवरी को चर्च बंद करने के सरकारी आदेश के विरोध में एक रैली निकाली गई.
आज पूरी दुनिया में धर्म के ठेकेदारों की ताल पर नाच रहा मनुष्य सच को जानते हुए भी सच से आँखें मूंदे क्यों है, यह बाद समझ से परे है.मानवता आज एक ऐसे खतरे का सामना कर रही है जो यह नहीं देखता कि आप आस्तिक हैं या नास्तिक. हम जानते हैं कि हमारे रोग का इलाज डॉक्टर के पास ही है फिर क्यों नहीं धर्म के भोंपुओं की ओर से कान बंद कर हम डॉक्टर्स की चेतावनियों, उनकी राय और परामर्श पर विश्वास करते हैं? क्यों नहीं तार्किक ढंग से सोच पाते हैं? कोरोना ने जिस सच को उधाड़ कर सामने रक्खा है क्या वह सच जनता को अंधविश्वास और अंधश्रद्धा पर विजय प्राप्त करने में मदद करेगा? क्या मानवजाति एक तार्किक समाज की रचना करने में कभी सफल हो पाएगी?