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धर्म के अंधे इंसानी जान के दुश्मन

पुरानी हिंदी फिल्मों में जब नायक या नायिका संकट काल से गुज़रते थे तो सीधे मंदिर में भगवान् की मूर्ति के आगे माथा रगड़ते, रोते-कलपते, विलाप करते और रो-रो कर भजनों के माध्यम से भगवान् से अपने ऊपर आये हुए संकट से उबारने की प्रार्थना करते नज़र आते थे. फिल्मों में ऐसे सीन भी होते थे जिसमे एक नमाज़ी आदमी अपने अल्लाह से दुआ मांगता और उसके सारे संकट पलक झपकते ही टल जाते, उसका दुश्मन उसके पैरों में आ गिरता. इस तरह के दृश्यों से महिलायें खूब गहरे जुड़ती थीं और आज भी जुड़ती हैं. इस तरह के धार्मिक और भावुक सीन थिएटर्स में दर्शकों की भीड़ जुटाते और डायरेक्टर, प्रोडूसर्स और एक्टर्स को खूब मालामाल करते थे। ऐसे सीन आज की फिल्मों में भी होते हैं मगर अब इनकी संख्या फिल्मों में कुछ कम हो गई है. परन्तु आजकल टीवी पर ऐसे धार्मिक धारावाहिकों की भरमार  हो गई है.महिलाओं की धार्मिक प्रवृत्ति को इस तरह के दृश्यों से खूब बल मिलता था.धर्मांध पुरुष भी रंगीन परदे पर दिखाए जा रहे तमाम अतार्किक, अनोखी और अजूबी बातों के आगे नतमस्तक रहते हैं.

फिल्मों का मनुष्य के जीवन पर गहरा असर होता है. खासतौर पर कम पढ़े लिखे, धर्मभीरू और विज्ञान की जानकारी ना रखने वाले लोग जो कुछ भी फिल्मों में देखते हैं उस पर आँख मूँद कर भरोसा करते हैं. अगर ये फिल्मे मात्र दिल को बहलाने के लिए और समय बिताने के मकसद से होतीं तो इनसे कोई शिकायत नहीं थी, लेकिन इन फिल्मों का असर इंसान के दिल-दिमाग, रक्त-मज्जा में बहुत गहरे उतर चुका है.इंसान कभी इस असर से निकल पायेगा या नहीं, ये कहना मुश्किल ही है क्योंकि लम्बे समय से ऐसी धार्मिक फ़िल्में, धर्म गुरु, पंडित, मौलवी, पादरी और इनकी तरह धर्म का धंधा चलाने वाले लोग इंसानी दुनिया को एक भ्रमजाल में कस कर जकड़े हुए हैं और राजनीति अपना उल्लू सीधा करने के लिए इन सभी को शह देती है और इस भ्रमजाल को ताने रखना चाहती है। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में होता आया है और होता जा रहा है.

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इंसान पर जब-जब संकट आया है उसको हमेशा विज्ञान ने उस संकट से उबारा है, किसी भगवान्, अल्लाह या गॉड ने नहीं.आप प्रयोग कर लीजिये साधारण सा. आपका बच्चा बुखार से तप रहा है और आप अपने घर के मंदिर में भगवान् के आगे भजन गाइये कि वो आपके बच्चे को अच्छा कर दे, या आप मुस्लिम हैं तो नमाज़ पढ़ कर अल्लाह से दुआ मांगिये कि आपका बच्चा स्वस्थ हो जाए

मगर आप ऐसा हरगिज़ नहीं करेंगे क्योंकि आप जानते हैं कि उससे कुछ नहीं होगा, भगवान् या अल्लाह कुछ नहीं करेगा और आपके बच्चे का बुखार बढ़ता जाएगा, हो सकता है उसकी जान भी चली जाए.आप उस वक़्त मंदिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारे नहीं, बल्कि अपने बच्चे को ले कर सीधे अस्पताल भागेंगे, डॉक्टर को दिखाएँगे, दवा दिलाएंगे और उससे आपका बच्चा ठीक होगा.आप इस सच को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि संकट की घड़ी से साइंस ही निपटता है, ईश्वर के आगे सर पटकने से कुछ नहीं होता। या किसी पण्डे-पंडित, मुल्ला-मौलवी या पादरी के बस की बात नहीं है कि वह किसी रोग से इंसान की जान बचा ले. फिर भी डाक्टर चीखते रहे कि कोरोना जैसी महामारी से जान बचानी है तो अपने घर में रहो, मास्क पहनो, सामाजिक दूरी बना लो मगर धर्म के अंधे और इस अंधविश्वास में दुनिया को जकड़ कर रखने वालों ने विज्ञान की चेतावनियों पर लोगों को अमल नहीं करने दिया और कितने ही मासूमों को कोरोना के काल का ग्रास बना दिया.

इंसानी जान के ये दुश्मन कोरोना काल में आत्मघाती धार्मिक उत्सव कराते रहे, जगह-जगह धार्मिक जमावड़े करते रहे और लोगों को एक जगह जमा करके मौत का आह्वाहन करते रहे.

पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का संक्रमण काफी तेजी से बढ़ रहा है. इसके पीछे काफी हद तक उन धार्मिक जमावड़ों का हाथ है जो मनाही के बावजूद होते रहे. नियमों-निर्देशों को ताक पर रखकर धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन ने कोरोना को अपने पांव फैलाने के खुले रास्ते दिए.सोशल डिस्टेंसिंग को तार-तार करने की वजह से ही इस जानलेवा वायरस को फैलने में आसानी  हुई.विश्व में जहां कहीं भी धार्मिक समागमों पर रोक लगाने में देरी हुई, वहां कोरोना वायरस तेजी से फैला है.

ईरान में मस्जिद में जमा होकर पढ़ी गई नमाज

ईरान में दो पवित्र स्थल ऐसे हैं, जहां शिया मुसलमान बड़ी श्रद्धा से जाते हैं. पहला है मशहद शहर और दूसरा कुम शहर में फातिमा मसुमेह का तीर्थ-स्थान। परंपरानुसार यहां श्रद्धालु पहले जमीन को चूमते हैं, फिर प्रवेश करते हैं. कोरोना वायरस का संक्रमण फैलते ही इन दोनों शहरों में घुसने पर ईरान सरकार ने 17 मार्च को पाबंदी लगा दी थी मगर ‘अल्लाह कोरोना से बचाएगा’ कहते हुए श्रद्धालु इन दोनों तीर्थ-स्थलों में घुस गए। ईरान की पुलिस ने बल प्रयोग करके उन्हें खदेड़ा.फिर भी नमाज़ी ना माने और खूब बवाल काटा हालांकि वहां के मौलवी ने भी लोगों से मस्जिद में ना घुसने की अपील की थी मगर भीड़ भड़क गई और उसने मौलवी को जान से मारने की धमकी दी. उस मौलवी को पद से हटा दिया गया और नए मौलवी ने आते ही अपनी जहालत का परिचय दिया और लोगों को वहां इकट्ठा होकर नमाज पढ़ने की इजाजत दे दी.1600 लोगों ने मस्जिद में एकत्र होकर नमाज अदा की. इसका असर यह हुआ कि ईरान में कोरोना पीड़ितों की संख्या बढ़ती गई और मिडल ईस्ट के मुल्कों में सबसे ज्यादा मौतें ईरान में ही हुईं. इजरायल में भी कोरोना संक्रमित यहूदियों में 35 प्रतिशत उनका है, जो सिनेगॉग (यहूदियों का पूजा-स्थल) खुद गए या उन लोगों से मिले जो वहां गए थे.देश के दकियानूसी और अंधविश्वासी लोग सरकार के निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं और लोगों से कह रहे हैं कि अब्राहम उन्हें बचाएगा.

तबलीगी जमात के कार्यक्रम कई देशों में हुए

मलयेशिया में फरवरी में तबलीगी जमात की एक अंतरराष्ट्रीय सभा हुई जिसमें 1600 लोगों ने शिरकत की. इसके बाद कई प्रचारक आसपास के देशों के अलावा भारत और पाकिस्तान आए.यह सभा इस तथ्य के बावजूद आयोजित हुई कि इससे पहले 30 जनवरी को ही विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना को लेकर हेल्थ इमर्जेंसी घोषित कर चुका था.दिल्ली के निजामुद्दीन में हुई तबलीगी जमात की बैठकों में शामिल हुए लोगों में से अधिकांश कोरोना से संक्रमित निकले.

जमात नेतृत्व की इस गैर-जिम्मेदाराना और आपराधिक हरकत का खामियाजा वे तमाम लोग भुगत रहे हैं जो बैठक के भागीदारों से मिले। साधारण मुसलमान भी जनता के रोष का शिकार हो रहे हैं, जिनका तबलीगी जमात से कोई लेना-देना नहीं है. यह समागम तब हुआ जब दिल्ली में दंगे हो चुके थे और कट्टर हिंदू संगठन मुस्लिम विरोधी प्रचार में जुटे थे. तबलीगी जमात ने इनका काम आसान कर दिया. यह भी समझ से परे है कि 20-21 मार्च को एक और समागम प्रशासन ने कैसे होने दिया, जबकि समागम-स्थल से दस कदम पर पुलिस स्टेशन मौजूद है.

जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से लड़ रही हो तो भारत की राजधानी के बीचोबीच हुआ यह धार्मिक सम्मेलन एक घोर लापरवाही को दिखाता है.इस जमावड़े में देश के अलग अलग हिस्सों से आये जमातियों के अलावा मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों से कुल 2000 से अधिक प्रतिनिधि शामिल हुए थे.कई दिनों तक साथ रहने के अलावा इन लोगों ने एक ही डाइनिंग हॉल में खाना खाया और साझा बाथरूम-टॉयलेट इस्तेमाल किये. ज़ाहिर है अब तक इनमें से दर्जनों लोग कोरोना पॉज़िटिव होंगे और दूसरे सैकड़ों लोगों को संक्रमण फैला रहे होंगे.

एक जगह पर इतने लोगों के इकट्ठा हो जाने पर जितने सवाल पुलिस और प्रशासन पर उठते हैं उससे अधिक सवाल आयोजकों पर हैं.यहां पहुंचे लोगों का संपर्क तेलंगाना, यूपी, महाराष्ट्र, असम, झारखंड, कर्नाटक और अंडमान समेत देश के कई हिस्सों तक दिख रहा है. जमात के लोगों के टेस्ट के बाद दिल्ली के संक्रमित लोगों का आंकड़ा उछल कर सौ के पास पहुंच गया था.

इससे पहले देश भर की मस्जिदों में भी बड़ी संख्या में नमाज़ होते रही.जब दिल्ली की जामा मस्जिद में इकट्ठा हुये लोगों से सवाल हुए तो ज़्यादातर का कहना था कि वह पांच वक़्त के नमाज़ी है इसलिये उन्हें कोराना वायरस से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है.कुछ ने यह तक कहा कि नमाज़ मस्जिद में ही पढ़ी जा सकती है, घर में नहीं और अल्लाह के होते किसी वायरस या दुश्मन से डरने की ज़रूरत नहीं है.यही हाल देश की दूसरी मस्जिदों में भी दिखा. निरी मूर्खता और कट्टरपन के कारण अब लोगों की जान ख़तरे में पड़ी हुई है. क्या अल्लाह आएगा जान बचाने? ‘अल्लाह हमें मस्जिदें न छोड़ने की सलाह दे रहा है’, ‘हम डॉक्टरों की सलाह नहीं मानेंगे’- इस तरह के ऑडियो क्लिप्स सोशल मीडिया पर भेज भेज कर मानवजाति के हत्यारों ने ना जाने कितने मासूमों को असमय ही मौत की मुँह में धकेल दिया.

तबलीगी जमात का इससे कहीं बड़ा आयोजन मार्च के पहले सप्ताह में लाहौर में होना तय था जिसे पाकिस्तान की सरकार ने रद्द कर दिया. गड़बड़ यह हुई कि जब तक निषेधाज्ञा की घोषित हुई, कई विदेशी तबलीगी  लाहौर पहुंच गए और वहां भी संक्रमण बढ़ गया.

पंजाब ने मनाया  होला मोहल्ला उत्सव 

पंजाब के एक ग्रंथी बलदेव सिंह रागी अपनी कीर्तन मंडली लेकर इटली और जर्मनी गए और वहां से कोरोना लेकर आए. लेकिन यह बात उन्होंने प्रशासन से छुपा ली. आनंदपुर साहिब में होली के दिन एक बड़ा उत्सव ‘होला मोहल्ला’ मनाया जाता है, जिसमें हजारों लोग हिस्सा लेते हैं। बलदेव सिह की मंडली ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और श्रद्धालुओं को कोरोना के रूप में प्रसाद बांटा. नतीजा यह कि पंजाब में कोरोना के मामले बढ़ गए.

योगी आदित्यनाथ ने की रामनवमी पर पूजा

लॉकडाउन के बीच रामनवमी के अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या पधारे और सोशल डिस्टेंसिंग की परवाह न करते हुए वहां पूजा-अर्चना की वहां उपस्थित अयोध्या मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष आचार्य परमहंस ने कहा कि भगवान राम अपने भक्तों को कोरोना से बचाएंगे.केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे का भी बयान आया कि श्रीराम से लेकर भोलेनाथ तक सभी कोरोना वायरस से रक्षा करेंगे.

16-17 मार्च तक सिद्धि विनायक मंदिर, उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर, शिरडी का साईं मंदिर, तिरुपति का वेंकटेश्वर मंदिर और वैष्णो देवी मंदिर खुले रहे.बनारस का काशी विश्वनाथ मंदिर 20 मार्च तक खुला रहा और भक्त इकट्ठा होते रहे.

चितापुर के धार्मिक उत्सव में उमड़ी भीड़

पूरी दुनिया लॉकडाउन में आ चुकी थी। सड़कें, बाजार, शॉपिंग मॉल, ऑफिस, सब बंद हो चुके थे. लेकिन कर्नाटक के राज्यों में लॉकडाउन के दौरान इतनी सख्‍ती के बावजूद तालाबंदी के बीच 16 अप्रैल 2020 को बड़ी संख्या में लोगों ने कलापुर जिले के चितापुर में एक धार्मिक उत्सव में भाग लिया. पूरे देश में कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन लागू होने के बावजूद कर्नाटक के कलबुर्गी जिले के चितापुर में बड़ी संख्या में लोग इस धार्मिक उत्सव में शामिल हुए। यहां लोगों ने सिद्धलिंगेश्वर मंदिर के पास एकजुट होकर रथ को खींचने वाले जुलूस में भाग लिया और लोगो में कोरोना का प्रसार किया.

 

चर्चों में बड़ी संख्या में जुटे लोग

अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, स्पेन, दक्षिण कोरिया और कई अन्य देशों में हर संडे को चर्च में होने वाली मास प्रेयर ने कोरोना फैलाने में अहम भूमिका निभाई। मार्च के आखिरी रविवार को अमेरिकी राज्य लुइसियाना में 1600 लोग चर्च के समागम में शामिल हुए, जहां लोगों का आपस में गले मिलना, हाथ मिलाना और चूमना, सब कुछ देखा जा सकता था। भागीदारों का विश्वास था – गॉड हमें बचाएगा। साउथ कोरिया की राजधानी सियोल में 22 फरवरी को चर्च बंद करने के सरकारी आदेश के विरोध में एक रैली निकाली गई.

आज पूरी दुनिया में धर्म के ठेकेदारों की ताल पर नाच रहा मनुष्य सच को जानते हुए भी सच से आँखें मूंदे क्यों है, यह बाद समझ से परे है.मानवता आज एक ऐसे खतरे का सामना कर रही है जो यह नहीं देखता कि आप आस्तिक हैं या नास्तिक. हम जानते हैं कि हमारे रोग का इलाज डॉक्टर के पास ही है फिर क्यों नहीं धर्म के भोंपुओं की ओर से कान बंद कर हम डॉक्टर्स की चेतावनियों, उनकी राय और परामर्श पर विश्वास करते हैं? क्यों नहीं तार्किक ढंग से सोच पाते हैं? कोरोना ने जिस सच को उधाड़ कर सामने रक्खा है क्या वह सच जनता को अंधविश्वास और अंधश्रद्धा पर विजय प्राप्त करने में मदद करेगा? क्या मानवजाति एक तार्किक समाज की रचना करने में कभी सफल हो पाएगी?

#lockdown: कोरोनो मास्क और मशीन की चोरी

लेखक- राजेश चौरसिया

“OMG: मास्क और मास्क बनाने वाली मशीनें चोरी कर ले गये चोर”

महिलाओं ने कहा चोरों को कोरोना माफ नहीं करेगा..

एन.आर.एल.एम. के सामुदायिक प्रशिक्षण केंद्र से हुईं आधा दर्जन सिलाई मशीनें चोरी..

समूह की महिलाओं द्वारा तैयार किए जा रहे थे पी.पी.ई. किट और मास्क..

अज्ञात चोरों ने छत से चढ़कर दिया चोरी की वारदात को अंजाम..

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एंकर- देश भर में जहां कोरोना वायरस जैसी वैष्विक महामारी से जंग लड़ने में लोग हर स्तर पर लगे हुए हैं तो वहीं इस बीमारी से बचाव और निजात दिलाने वाले उपकरणों पर ही डाका डालने में लगे हुए हैं और चोरी कर रहे हैं। यहां मास्क बनाने वाली मशीनों और माश्क पर डाका डाला गया है और चोर सब चोरी कर ले गये हैं.

ताजा मामला मध्यप्रदेश के पन्ना जिले का एहैं जहां पन्ना के सिविल लाईन चैकी अंतर्गत पुराना पन्ना में एन.आर.एल.एम. के सामुदायिक प्रशिक्षण केन्द्र में कोरोना योद्वाओं के लिये अजीविका मिशन के तहत पी.पी.ई. किट और मास्क बना रही स्वा सहायता समूहों की महिलाओं की आधा दर्जन मशीनें और उनके द्वारा बनाये हुए मास्क/किट को को चोर चुरा ले गए हैं.

सबीना बानो (कार्यकर्ता) स्वपनिल शर्मा (प्रभारी अजीविका मिशन) की मानें तो ज़ब पी.पी.ई. किट और मास्क बनाने वाली महिलायें जब सुबह केन्द्र में आईं तो मशीनों सहित तैयार और  रॉ-मटेरियल गायब था.यानि अज्ञात चोर चोरी के सारा माल और सामान ले उड़े। ऐसी मुश्किल घड़ी में चोर अपनी हरकतों/चोरी से बाज़ नहीं आ रहे तो वहीं महिलाओं ने उन्हें अप्रत्यक्ष बद्दुआएं तक दे डालीं कि उन्हें कोरोना भी माफ न करे.

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घाटना के बाद केन्द्र प्रभारी ने 100 डायल को मामले की सूचना/जानकारी दी जहां तत्काल पुलिस मौके पर पहुंची और अभिषेक पाण्डेय (चैकी प्रभारी सिविल लाईन) अज्ञात चोरों के खिलाफ़ विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया हैं और मामले की जांच और चोरों की तलाश में जुट गई है.

19 दिन 19 कहानियां: टूटा जाल शिकारी का – भाग 2

विनय शर्मा ने अपने मोबाइल से बायोडाटा में लगी फोटो ले कर अपने एसएचओ समरजीत सिंह को भेजी और उन्हें पूरी बात बताई.

कुछ देर में इंसपेक्टर समरजीत सिंह ने विनय शर्मा को जो कुछ बताया, उस से उन के दिमाग की नसें हिल गईं. समरजीत सिंह ने बताया कि नितिन नाम का शख्स चंद्रमोहन शर्मा ही है और वह उस के मर्डर केस की जांच कर रहे हैं. समरजीत सिंह ने विनय शर्मा को बिना वक्त गंवाए नितिन को पकड़ने की हिदायत दी.

मामले की तसवीर अब काफी हद तक साफ हो चुकी थी. विनय शर्मा के कहने पर नितिन शर्मा उर्फ चंद्रमोहन को एचआर मैनेजर ने फैक्ट्री से बुलवा लिया. पुलिस को सादे लिबास में देख कर कथित नितिन शर्मा घबरा गया. विनय शर्मा को वह पहले से ही जानता था. विनय शर्मा ने उसे यह नहीं बताया कि उन्हें उस की मौत के ड्रामे के बारे में कोई जानकारी है.

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उन्होंने उस से सब से पहले प्रीति के बारे पूछताछ शुरू की. चंद्रमोहन को पता नहीं था कि विनय शर्मा को उस के बारे में सब पता चल चुका है. उस ने बताया कि प्रीति से उस ने शादी कर ली है. वह अपनी इच्छा से अपना घर छोड़ कर उस के साथ आई है.

चंद्रमोहन विनय कुमार को काउंटी कट्टा इलाके में अपने किराए के घर पर भी ले गया, जहां वह प्रीति के साथ रहता था. विनय शर्मा ने घर में घुसते ही प्रीति को पहचान लिया, क्योंकि नोएडा से इतनी दूर वह उसी तलाश में आए थे.

विनय शर्मा ने 27 अगस्त, 2014 को स्थानीय पुलिस के सहयोग से प्रीति व चंद्रमोहन को हिरासत में ले लिया. दोनों को स्थानीय अदालत में पेश कर के उन्होंने उन्हें ट्रांजिट रिमांड पर लिया और उन्हें ग्रेटर नोएडा के कासना थाने ले आए.

विनय शर्मा ग्रेटर नोएडा से बंगलुरु जिस प्रीति की तलाश में गए थे, वह मकसद पूरा हो चुका था. लेकिन इसी के साथ खुद को मुर्दा साबित कर के प्रीति के साथ मौज कर रहा वह चंद्रमोहन नाम का कथित मृतक भी उन के हाथ लग गया था.

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29 अगस्त को पुलिस ने प्रीति नागर और चंद्रमोहन को अदालत में पेश कर के 3 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड की अवधि में चंद्रमोहन व प्रीति से अलगअलग पूछताछ की गई, तो उन की प्रेम कहानी तथा चंद्रमोहन द्वारा रची गई गहरी साजिश का भी परदाफाश हो गया.

चंद्रमोहन शर्मा आरटीआई कार्यकर्ता और आम आदमी पार्टी का सक्रिय सदस्य था. वह ग्रेटर नोएडा के अल्फा-2 में आई ब्लौक के मकान नंबर 480 में रहता था. चंद्रमोहन के परिवार में पत्नी सविता तथा 2 बच्चे थे, 12 वर्ष का बेटा तथा 7 वर्ष की बेटी.

हुआ यूं था कि 17 मई, 2014 को चंद्रमोहन की पत्नी सविता ने थाना कासना में आ कर एक लिखित तहरीर दी थी. तहरीर में सविता ने लिखा था कि उस का पति चंद्रमोहन 30 अप्रैल, 2014 से लापता था. 2 मई को उस की जली हुई लाश उसी की कार में मिली थी. तहरीर में सविता ने आरोप लगाया था कि उस के पति की मौत दुर्घटना में नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई है.

सविता की तहरीर के मुताबिक कासना क्षेत्र के बृजेश, शानी, राजकुमार उर्फ राजू, बबलू उर्फ आनंद और प्रवीण ने गांव कासना के मंदिर की जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा था. उस का पति गांव की तरफ से मंदिर की जमीन के मुकदमे में पैरवी कर रहा था, इसलिए उपरोक्त सभी लोग चंद्रमोहन से दुश्मनी रखते थे.

इन सभी लोगों से चंद्रमोहन ने अपनी जान का खतरा भी बताया था, जिस के संबंध में 30 अप्रैल, 2014 को ही थाना कासना में तत्कालीन थानाप्रभारी वीरपाल सिंह को शिकायत दे कर प्राथमिकी भी दर्ज कराई थी, जिस में चंद्रमोहन ने आरोप लगाया था कि 28 अप्रैल को ड्यूटी पर जाते समय उस से रंजिश मानने वाले बृजेश ने अपने साथियों के साथ परी चौक के पास उसे जान से मारने की धमकी दी थी.

सविता ने अपनी तहरीर में आरोप लगाया था कि उक्त सभी व्यक्तियों ने साजिश कर के उस के पति चंद्रमोहन की हत्या कर लाश को कार समेत जला दिया है, ताकि घटना को दुर्घटना का रूप दिया जा सके.

सविता की तहरीर के आधार पर कासना पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 302 के तहत वाद पंजीकृत कर के नामजद आरोपियों से पूछताछ करने का प्रयास किया तो पता चला कि वे फरार हैं.

चंद्रमोहन शर्मा की मौत का प्रकरण कुछ इस तरह सामने आया था. 1/ 2 मई, 2014 की रात करीब 12 बजे ग्रेटर नोएडा के अंसल प्लाजा के निकट होंडा कंपनी के सामने जेपी ग्रीन के पास एक जली हुई कार मिली थी. कार की ड्राइविंग सीट पर जो शख्स बैठा था, वह भी बुरी तरह जल कर कोयला हो चुका था.

जली कार में लाश की सूचना पा कर कासना थाना पुलिस मौके पर पहुंची. प्रथमदृष्टया पुलिस ने अनुमान लगाया कि यह हादसा रहा होगा. गैस रिसने से कार आग का गोला बन गई होगी. कार ड्राइव करने वाले को इतनी भी मोहलत नहीं मिली कि दरवाजा खोल कर वह बाहर निकल पाता.

वह सीट पर बैठेबैठे ही जल कर मर गया.

कार का रजिस्ट्रेशन नंबर और चेसिस नंबर सहीसलामत था. उसी के माध्यम से पुलिस ने अगले दिन आरटीओ से मालूमात की तो पता चला वह कार चंद्रमोहन की थी. पुलिस उस पते पर पहुंची, जिस पते पर कार पंजीकृत थी.

वहां पता चला कि वह घर चंद्रमोहन का है. चंद्रमोहन तो नहीं मिला, लेकिन उस की पत्नी जरूर पुलिस को मिल गई. पुलिस ने चंद्रमोहन की पत्नी सविता को बुला कर कार में लाश की शिनाख्त कराई. सविता ने लाश के साथ कार की भी शिनाख्त कर दी.

चंद्रमोहन के परिजनों ने उस की लाश की शिनाख्त 2 मई को ही कर दी थी. पहली नजर में पुलिस को ये मामला दुर्घटनावश आग लगने से हुई मौत का लग रहा था. लेकिन कुछ रोज बाद सविता ने इस मामले में हत्या की आशंका जताते हुए 5 लोगों को नामजद करा दिया.

जिस के बाद कासना पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 302 के तहत वाद पंजीकृत कर नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी की प्रक्रिया शुरू कर दी. लेकिन सभी आरोपी फरार हो गए. इस केस के जांच अधिकारी कासना थाने के एसएचओ समरजीत सिंह थे.

होंडा टू व्हीलर कंपनी में मैकेनिक की हैसियत से काम करने वाला चंद्रमोहन सामाजिक कार्यों तथा राजनीति में गहरी रुचि रखता था. इसी कारण वह आरटीआई कार्यकर्ता होने के साथ अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का सक्रिय सदस्य बन गया था.

चंद्रमोहन का जीवन सुख में बीत रहा था. 15 वर्ष पहले उस ने सविता से प्रेम विवाह किया था. उन के 2 बच्चे भी थे. निजी उपयोग के लिए चंद्रमोहन ने एक शेवरले कार भी खरीद ली थी.

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चंद्रमोहन के सुखी जीवन में उथलपुथल तब हुई, जब प्रीति से उस की आंखें लड़ीं. आसपास रहने के कारण प्रीति और सविता की दोस्ती हो गई थी. सविता से मिलने के लिए प्रीति अकसर उस के घर पर आती थी. इसी दौरान चंद्रमोहन पत्नी की सहेली के आकर्षण में बंध गया. चंद्रमोहन उम्र में प्रीति से कई साल बड़ा था, वह विवाहित तथा 2 बच्चों का पिता भी, इस के बावजूद 22 साल की प्रीति उसे अपना बनाने का सपना देखने लगी.

पहले आंखोंआंखों में उन की रसीली बातें हुई, फिर कभी रूबरू तो कभी फोन पर बातें होने लगीं. चंद्रमोहन ने प्रेम निवेदन किया, तो प्रीति ने उसे सशर्त स्वीकार कर लिया. शर्त यह थी कि चंद्रमोहन उसे मौजमजे की चीज नहीं समझेगा. उस से विवाह कर के जीवन भर साथ निभाएगा.

15 साल पहले जब चंद्रमोहन ने सविता से प्रेम विवाह किया था, तब वह बेहद हसीन थी. लेकिन वक्त की धूप ने सविता के रंगरूप को झुलसाया, तो घरपरिवार की जिम्मेदारियां निभातेनिभाते वह निचुड़ सी गई. बनावसिंगार से भी वह दूर रहने लगी थी. इसी वजह से चंद्रमोहन को वह बासी और रूखीफीकी महसूस होने लगी थी.  वह खुद भी सविता से ऊबा हुआ था. यही कारण था कि उस ने प्रीति की विवाह वाली शर्त मंजूर कर ली.

बस इस के बाद दोनों की बेमेल प्रेम कहानी शुरू हो गई. प्रेम की पगडंडियां तय करतेकरते कुछ महीने बीत गए, तो प्रीति ने चंद्रमोहन पर विवाह के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया.

 

एक बीवी के होते चंद्रमोहन दूसरा विवाह नहीं कर सकता था. उसे मालूम था कि यह कानूनन जुर्म है. सविता को तलाक वह दे नहीं सकता था, क्योंकि करीबी रिश्तेदारों पर सविता की अच्छीखासी पकड़ थी. तलाक देता, तो सभी एकजुट हो कर चंद्रमोहन का गला दबाने आ जाते.

चंद्रमोहन समझ नहीं पा रहा था, किस तरह सविता से पीछा छुड़ाए. एक तो चंद्रमोहन को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, दूसरी ओर प्रीति विवाह के लिए दबाव बनाए हुए थी. विवाह में अनावश्यक विलंब होता देख प्रीति उसे जेल भिजवाने और पत्नी से दोनों का रिश्ता बताने की धमकी भी देने लगी.

चंद्रमोहन ऐसा कुछ नहीं चाहता था, जिस से उस का जीना हराम हो जाए. जब उसे कोई राह नहीं सूझी, तब उस ने प्रीति से गुप्तरूप से विवाह करने का निश्चय कर लिया.

28 नवंबर, 2013 को चंद्रमोहन प्रीति को दादरी स्थित आर्यसमाज मंदिर में ले गया और वहां उस से प्रेम विवाह कर लिया.

प्रीति खुश थी. उस ने मान लिया कि आज चंद्रमोहन ने मांग में सिंदूर भरा है, तो कल घर भी ले जाएगा. चंद्रमोहन इसलिए खुश था कि वक्ती तौर पर ही सही, कुछ समय के लिए मुसीबत से निजात तो मिल गई.

 

चंद्रमोहन व प्रीति अलगअलग रहते रहे. प्रीति ने अपने परिवार में रहते हुए किसी को अपनी शादी की भनक नहीं लगने दी. दूसरी तरफ चंद्रमोहन भी अपने परिवार से प्रीति के साथ की गई दूसरी शादी का राज छिपाता रहा.

जब शादी को कुछ सप्ताह बीत गए और कोई सकारात्मक रास्ता निकलता नहीं दिखा तो प्रीति ने चंद्रमोहन पर फिर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह जल्द से जल्द अपने घर से सविता की छुट्टी करे और उसे घर ले जाए.

पहले प्रीति से प्रेम और फिर विवाह कर के चंद्रमोहन बुरी तरह फंस गया था. न वह सविता को घर से निकाल सकता था, न ही प्रीति के बगैर रह सकता था. प्रीति भी अब अपने मायके में रहने को राजी नहीं थी. प्रीति ने जब चंद्रमोहन पर लगातार दबाव बनाना शुरू किया तो बहुत सोचनेसमझने के बाद चंद्रमोहन ने एक खौफनाक योजना बना डाली.

चंद्रमोहन ने जो योजना बनाई थी, उसे अकेले अंजाम दे पाना संभव नहीं था. अत: योजना को अमली जामा पहनाने के लिए उस ने अपने साले विदेश शर्मा को नकद रुपए देने का लालच दिया. साथ ही उस ने सविता को उस के बदले होंडा कंपनी में नौकरी मिलने का लालच दे कर साजिश में शामिल कर लिया.

दरअसल, अंसल प्लाजा के आसपास एक विक्षिप्त युवक घूमा करता था. उस की और चंद्रमोहन की कदकाठी में काफी समानता थी. उस विक्षिप्त युवक को देख कर चंद्रमोहन के दिमाग में एक आइडिया आया था कि क्यों न वह उस पागल को मार कर स्वयं को मुर्दा साबित कर दें.

शेष जीवन: भाग 3

लौट कर आए तो तबीयत ठीक नहीं लग रही थी. दूसरे दिन कचहरी नहीं जाना चाहते थे, मगर गए. न जाने का मतलब अपना नुकसान. एक दिन सुमन से कहने लगे, ‘मेरा मन कचहरी जाने का नहीं करता. लोग कहते हैं कि वकील कभी रिटायर नहीं होता, क्यों नहीं होता. वह क्या हाड़मांस का नहीं बना होता? शरीर उस का भी कमजोर होता है. यह क्यों नहीं कहते कि वकील रोज कचहरी नहीं जाएगा तो खाएगा क्या?’ सुमन को विनोद व खुद पर तरस आया. सरकारी नौकरी में लोग बड़े आराम से अच्छी तनख्वाह लेते हैं. उस के बाद आजन्म पैंशन का लुत्फ उठा कर जिंदगी का सुख भोगते हैं. यहां तो न जवानी का सुख लिया, न ही बुढ़ापे का. मरते दम तक कोल्हू के बैल की तरह जुतो. काले कोट की लाज ढांपने में ही जीवन अभाव में गुजर जाता है. एक रात विनोद के सीने में दर्द उभरा. सुमन घबरा गई. पासपड़ोस के लोगों को बुलाया, मगर कोई नहीं आया. भाई को फोन लगाया. वह भागाभागा आया. उन्हें पास के निजी अस्पताल में ले जाया गया. वहां डाक्टरों ने कुछ दवाएं दीं. विनोद की हालत सुधर गई. अगले दिन डाक्टर ने सुमन से कहा कि वे इन्हें तत्काल दिल्ली ले जाएं. सुमन के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं. डाक्टर बोले, ‘‘इन के तीनों वौल्व जाम हो चुके हैं. अतिशीघ्र बाईपास सर्जरी न की गई तो जान जा सकती है.’’

सुमन की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा. बाईपास सर्जरी का मतलब 3-4 लाख रुपए का खर्चा. एकाएक इतना रुपया आएगा कहां से. लेदे कर एकडेढ़ लाख रुपया होगा. इतने गहने भी नहीं बचे थे कि उन्हें बेच कर विनोद की जान बचाई जा सके. मकान बेचने का खयाल आया जो तत्काल संभव नहीं था. ऐसे समय सुमन अपनेआप को नितांत अकेला महसूस करने लगी. उस के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे. अगर विनोद को कुछ हो गया तब? वह भय से सिहर गई. अकेली जिंदगी किस के भरोसे काटेगी? क्या बेटी के पास जा कर रहेगी? लोग क्या कहेंगे? सुमन जितना सोचती, दिल उतना ही बैठता. उस की आंखों में आंसू आ गए. भाई राकेश की नजर पड़ी तो वह उस के करीब आया, ‘‘घबराओ मत, सब ठीक हो जाएगा. 1 लाख रुपए की मदद मैं कर दूंगा.’’ सुमन को थोड़ी राहत मिली. तभी रेखा का फोन आया, ‘‘मम्मी, रुपयों की चिंता मत करना. मैं तुरंत बनारस पहुंच रही हूं.’’

सुमन की जान में जान आई. अपने आंसू पोंछे. वह सोचने लगी कि अभी किसी तरह विनोद की जान बचनी चाहिए, बाद में जब वे ठीक हो जाएंगे तब मकान बेच कर सब का कर्ज चुका देंगे. विनोद को प्लेन से दिल्ली ले जाया गया. मगर इलाज से पूर्व ही विनोद की सांसें थम गईं. सुमन दहाड़ मारमार कर रोने लगी. वह बारबार यही रट लगाए हुए थी कि अब मैं किस के सहारे जिऊंगी. रेखा ने किसी तरह उन्हें संभाला. तेरहवीं खत्म होने के एक महीने तक रेखा सुमन के पास ही रही. राकेश उसे अपने पास ले जाना चाहता था जबकि रेखा चाहती थी कि मां उस के पास शेष जीवन गुजारे. सब से बड़ी समस्या थी जीविकोपार्जन की. विनोद के जाने के बाद आमदनी का स्रोत खत्म हो गया था. कचहरी से 50 हजार रुपए मिले थे. 50 हजार के आसपास बीमा के. कुछ वकीलों ने सहयोग किया. सुमन ने काफी सोचविचार कर दोनों से कहा, ‘‘मैं यहीं रह कर कोई छोटीमोटी दुकान कर लूंगी. अकेली जान, दालरोटी चल जाएगी. मैं तुम लोगों पर बोझ नहीं बनना चाहती.’’ ‘‘कैसी बात कर रही हो मम्मी,’’ रेखा नाराज हो गई, ‘‘तुम्हारे बेटा नहीं है तो क्या, बेटी तो है. मैं तुम्हारा खयाल रखूंगी. यहां रातबिरात आप की तबीयत बिगड़ेगी तो कौन संभालेगा?’’ ‘‘मैं मर भी गई तो क्या फर्क पड़ेगा. मेरी जिम्मेदारी तुम थीं जिसे मैं ने निभा दिया. जब तक अकेले रह पाना संभव होगा, रहूंगी. उस के बाद तुम लोग तो हो ही,’’ सुमन के इनकार से दोनों को निराशा हुई.

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी. मैं तुम्हारी रोजाना खबर लेता रहूंगा. तुम भी निसंकोच फोन करती रहना. मोबाइल के रिचार्ज की चिंता मत करना, मैं समयसमय पर पैसे डलवाता रहूंगा,’’ राकेश बोला. सब चले गए. घर अकेला हो गया. विनोद थे तो इंतजार था. अब तो जैसी सुबह वैसी रात. 3 कमरों में सुमन टहलती रहती. एक रोज अलमारी की सफाई करते हुए उसे एक खत मिला. खत को गौर से देखा तो लिखावट विनोद की थी. वह पढ़ने लगी :

‘‘प्रिय सुमन,

अब मुझ से काम नहीं होता. 70 साल की अवस्था हो गई है. रोजाना 10-12 किलोमीटर साइकिल चला कर कचहरी जाना संभव नहीं. सोचता हूं कि घर बैठ जाऊं पर घरखर्च कैसे चलेगा. इस सवाल से मेरी रूह कांप जाती. ब्लडप्रैशर और शुगर ने जीना मुहाल कर दिया है, सो अलग. कभीकभी सोचता हूं खुदकुशी कर लूं. फिर तुम्हारा खयाल आता है कि तुम अकेली कैसे रहोगी? क्यों न हम दोनों एकसाथ खुदकुशी कर लें. हो सकता है कि यह सब तुम्हें बचकाना लगे. जरा सोचो, कौन है जो हमारी देखभाल करेगा? एक बेटा भी तो नहीं है. क्या बेटीदामाद से सेवा करवाना उचित होगा? बेटी का तो चल जाएगा मगर दामादजी, वे भला हमें क्यों रखना चाहेंगे? मैं तुम्हें कोई राय नहीं देना चाहूंगा क्योंकि हर आदमी को अपनी जिंदगी पर अधिकार है. हां, अगर मेरे करीब मौत आएगी तो मैं बचाव का प्रयास नहीं करूंगा. इस के लिए मुझे क्षमा करना. मैं ने मकान तुम्हारे नाम कर दिया है. मकान बेच कर तुम इतनी रकम पा सकती हो कि शेष जिंदगी तुम बेटीदामाद के यहां आसानी से काट सको.

तुम्हारा विनोद.’’

खत पढ़ कर सुमन की आंखें भीग गईं. तो क्या उन्हें अपनी मौत का भान था? यह सवाल सुमन के मस्तिष्क में कौंधा. सुमन ने अलमारी ठीक से खंगाली. उस में उसे एक जांच रिपोर्ट मिली. निश्चय ही रिपोर्ट में उन के हार्ट के संबंध में जानकारी होगी? रिपोर्ट 6 माह पुरानी थी. इस का मतलब विनोद को अपनी बीमारी की गंभीरता का पहले से ही पता था? उन्होंने जानबूझ कर इलाज नहीं करवाया. इलाज का मतलब लंबा खर्चा. कहां से इतना रुपया आएगा? यही सब सोच कर विनोद ने रिपोर्ट को छिपा दिया था. सुमन गहरी वेदना में डूब गई.

शेष जीवन: भाग 2

थोड़े से रपए बचा कर बिलावजह रिश्तेदारों को नाराज करना कहां की समझदारी थी. सुमन के पास अपनी सास के चढ़ाए कुछ गहने थे, जो उस ने सहेज कर रखे थे. शादीब्याह में भी पहन कर नहीं जाती थी कि कहीं गिर गए तो? विनोद की इतनी कमाई नहीं थी कि वे उसे एक तगड़ी भी खरीद कर दे सकें. ताउम्र उस की साध ही रह गई कि पति की कमाई से एक तगड़ी और चूड़ी अपनी पसंद की खरीदें, यह कसक आज भी ज्यों की त्यों थी. सुमन संदूक खोल कर उन गहनों को देख रही थी. विनोद भी पास थे. ‘‘काफी वजनी गहने हैं मेरी मां के,’’ विनोद की आंखें चमक उठीं. ‘‘मां के ही न,’’ सुमन के चेहरे पर व्यंग्य की रेखा तिर गई.

‘‘तुम्हें तो बहाना चाहिए मुझे ताना मारने का.’’

‘‘क्यों न मारूं ताना? एक बाली तक खरीद कर ला न सके. जो हैं वही बेटी के काम आ रहे हैं. मुझे पहनने का मौका कब मिला?’’ ‘‘बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम,’’ विनोद ने हंसी की, ‘‘अब कौन सा सजसंवर कर बरात की शोभा बढ़ानी है तुम्हें.’’

‘‘जब थी तब ही कौन सा गहनों से लाद दिया था.’’

‘‘स्त्री का सब से बड़ा गहना उस का पति होता है.’’

‘‘रहने दीजिए, रहने दीजिए. खाली बातों से हम औरतों का दिल नहीं भरता. मैं मर्दों के चोंचले अच्छी तरह से जानती हूं. हजारों सालों से यही जुमले कह कर आप लोगों ने हम औरतों को बहलाया है.’’

‘‘तुम्हें कौन बहला सकता है.’’

‘‘बहकी हूं तभी तो 30 साल तुम्हारे साथ गुजार दिए.’’

‘‘नहीं तो क्या किसी के साथ भाग जातीं?’’

‘‘भाग ही जाती अगर कोई मालदार मिलता,’’ सुमन ने भी हंसी की. ‘‘भागना क्या आसान है? मुझ जैसा वफादार पति चिराग ले कर भी ढूंढ़तीं तो भी नहीं मिलता.’’ ‘‘वफादारी की चाशनी से पेट नहीं भरता. अंटी में रुपया भी चाहिए. वह तो आप से ताउम्र नहीं हुआ. थोड़े से गहने बचे हैं, उन्हें बेटी को दे कर खाली हो जाऊंगी,’’ सुमन जज्बाती हो गई, ‘‘औरतों की सब से बड़ी पूंजी यही होती है. बुरे वक्त में उन्हें इसी का सहारा होता है.’’ ‘‘कल कुछ बुरा हो गया तो दवादारू के लिए कुछ भी नहीं बचेगा.’’ सुमन के साथ विनोद भी गहरी चिंता में डूब गए, जब उबरे तो उसांस ले कर बोले, ‘‘यह मकान बेच देंगे.’’

‘‘बेच देंगे तो रहेंगे कहां?’’

‘‘किराए पर रह लेंगे.’’ ‘‘कितने दिन? वह भी पूंजी खत्म हो जाएगी तब क्या भीख मांगेंगे?’’ ‘‘तब की तब देखी जाएगी. अभी रेखा की शादी निबटाओ,’’ विनोद यथार्थ की तरफ लौटा. गहने लगभग 3 लाख रुपए के थे. एकाध सुमन अपने पास रखना चाहती थी. एकदम से खाली गले व कान से रहेगी तो समाज क्या कहेगा? खुद को भी अच्छा नहीं लगेगा. यही सोच कर सुमन ने तगड़ी और कान के टौप्स अपने पास रख लिए. वैसे भी 2 लाख रुपए के गहने ही देने का तय था. जैसेजैसे शादी के दिन नजदीक आ रहे थे वैसेवैसे चिंता के कारण सुमन का ब्लडप्रैशर बढ़ता जा रहा था. एकाध बार वह चक्कर खा कर गिर भी चुकी थी. विनोद ने जबरदस्ती ला कर दवा दी. खाने से आराम मिला मगर बीमारी तो बीमारी थी. अगर जरा सी लापरवाही करेगी तो कुछ भी हो सकता है. विनोद को शुगर और ब्लडप्रैशर दोनों था. तमाम परेशानियों के बाद भी वे आराम महसूस नहीं कर पाते. वकालत का पेशा ऐसा था कि कोई मुवक्किल बाजार का बना समोसा या मिठाई ला कर देता तो ना नहीं कर पाते. सुमन का हाल था कि वह अपने को देखे कि विनोद को. आखिर शादी का दिन आ ही गया, जिस को ले कर दोनों परेशान थे. रेखा सजने के लिए ब्यूटीपार्लर गई. विनोद की त्योरियां चढ़ गईं, ‘‘अब यह खर्चा कहां से दें? 5 हजार रुपए कम होते हैं. एकएक पैसा बचा रहा हूं जबकि मांबेटी बरबाद करने पर तुली हुई हैं.’’ ‘‘बेटी पैदा की है तो सहन करना भी सीखिए. इस का पेमैंट रेखा खुद करेगी. अब खुश.’’

यह सुन कर विनोद ने राहत की सास ली और चैन से बैठ गया. फुटकर सौ तरह के खर्च थे. शादी के चंद दिनों पहले वर के पिता बोले कि सिर्फ डीजे लाएंगे. अगर बैंड पार्टी करनी हो तो अपने खर्च पर करें. विनोद को तो कोई फर्क नहीं पड़ा, सुमन ने मुंह बना लिया, ‘‘कैसा लगेगा बिना बैंड पार्टी के?’’ ‘‘जैसा भी लगे, हमें क्या. हमें शादी से मतलब है. रेखा सात फेरे ले ले तो मैं गंगा नहाऊं.’’ विनोद के कथन पर सुमन चिढ़ गई, ‘‘चाहे तो अभी नहा लीजिए. लोकलाज भी कुछ चीज है. सादीसादी बरात आएगी तो कैसा लगेगा?’’ ‘‘जैसा भी लगे. मैं फूटी कौड़ी भी खर्च करने वाला नहीं,’’ थोड़ा रुक कर, ‘‘जब उन्हें कोई एतराज नहीं तो हम क्यों बिलावजह टांग अड़ाएं?’’

‘‘मुझे एतराज है,’’ सुमन बोली.

‘‘तो लगाओ अपनी जेब से रुपए,’’ विनोद खीझे.

‘‘मेरे पास रुपए होते तो मैं क्या आप का मुंह जोहती,’’ सुमन रोंआसी हो गई. तभी राकेश आया. दोनों का वार्त्तालाप उस के कानों में पड़ा. ‘‘दीदी, तुम बिलावजह परेशान होती हो. बाजे का मैं इंतजाम कर देता हूं.’’ सुमन ने जहां आंसू पोंछे वहीं विनोद के रुख पर वह लज्जित हुई. विनोद को अब भी आशंका थी कि लड़के वाले ऐन मौके पर कुछ और डिमांड न कर बैठें. सजधज कर रेखा बहुत ही सुंदर दिख रही थी. विनोद और सुमन की आंखें भर आईं. भला किस पिता को अपनी बेटी से लगाव नहीं रहेगा. विनोद को आज इस बात की कसक थी कि काश, उस की अच्छी कमाई होती तो निश्चय ही रेखा की बेहतर परवरिश करता. रातभर शादी का कार्यक्रम चलता रहा. भोर होते ही रेखा की विदाई होने लगी तो सभी की आंखें नम थीं. रेखा का रोरो कर बुरा हाल था. सिसकियों के बीच बोली, ‘‘मम्मी, पापा, मैं चली जाऊंगी तो आप लोगों का खयाल कौन करेगा?’’

‘‘उस की चिंता मत करो, बेटी,’’ सुमन नाक पोंछते हुए बोली. अपनी बड़ी मौसी की तरफ मुखातिब हो कर रेखा भर्राए कंठ से  बोली, ‘‘मौसी, इन का खयाल रखना. इन का मेरे सिवा है ही कौन?’’

‘‘ऐसा नहीं कहते, हम लोग भरसक इन की देखभाल करेंगे,’’ मौसी रेखा के सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं. ‘‘मम्मी को अकसर गरमी में डिहाइड्रेशन हो जाता है. आप खयाल कर के दवा का इंतजाम कर दीजिएगा ताकि रातबिरात मां की हालत बिगड़े तो संभाला जा सके.’’

‘‘तू उस की फिक्र मत कर. मैं अकसर आतीजाती रहूंगी.’’ सुमन इस कदर रोई कि उस की हालत बिगड़ गई. एक हफ्ता बिस्तर पर थी. विनोद का भी मन नहीं लग रहा था. ऐसा लग रहा था मानो उन के शरीर का कोई हिस्सा उन से अलग हो गया हो. हालांकि रेखा 2 साल से बाहर नौकरी कर रही थी लेकिन तब तक एहसास था कि वह विनोद के परिवार का हिस्सा थी. अब तो हमेशा के लिए दूसरे परिवार का हिस्सा बन गई. उन्हीं के तौरतरीके से जीना होगा उसे. सुमन की तबीयत संभली तो रेखा को फोन किया.

‘‘हैलो, बेटा…’’

‘‘कैसी हो, मम्मी,’’ रेखा का गला भर आया.

‘‘ठीक हूं.’’

‘‘अपना खयाल रखना.’’

‘‘अब रखने का क्या औचित्य? बेटाबहू होते तो जीने का बहाना होता,’’ सुमन का कंठ भीग गया.

‘‘मम्मी,’’ रेखा ने डांटा, ‘‘आइंदा इस तरह की बातें कीं तो मैं आप से बात नहीं करूंगी,’’ उस ने बातचीत का विषय बदला, ‘‘जयपुर जा रही हूं,’’ रेखा के स्वर से खुशी स्पष्ट थी. ‘‘यह तुम लोगों ने अच्छा सोचा. यही उम्र है घूमनेफिरने की. बाद में कहां मौका मिलता है, घरगृहस्थी में रम जाओगी.’’ रेखा ने फोन रख दिया. विनोद ने सुना तो खुश हो गए. यहां भी सुमन ताना मारने से बाज न आई, ‘‘एक हमारी शादी हुई. बहुत हुआ तो आप ने रिकशे पर बिठा कर किसी हाटबाजार के दर्शन करा दिए. हो गया हनीमून…’’

‘‘बुढ़ापे में तुम्हें हनीमून सूझ रहा है.’’

‘‘मैं जवानी की बात कर रही हूं. शादी के पहले दिन आप रुपयों का रोना ले कर बैठ गए. आज 30 साल बाद भी रोना गया नहीं. कम से कम रेखा का पति इतना तो समझदार है कि अपनी बीवी को जयपुर घुमाने ले जा रहा है.’’ ‘‘सारी दुनिया बनारस घूमने आती है और तुम्हें जयपुर की पड़ी है,’’ विनोद ने अपनी खीझ मिटाई. ‘‘आप से तो बहस करना ही बेकार है. नईनई शादी की कुछ ख्वाहिशें होती हैं. उन्हें क्या बुढ़ापे में पूरी करेंगे?’’ ‘‘अब ऊपर जा कर पूरी करना,’’ कह कर विनोद अपने काम में लग गए. 3 साल गुजर गए. इस बीच रेखा 1 बेटे की मां बनी. ससुराल वाले ननिहाल का मुख देखने लगे. सुमन ने अपने हाथों की एक जोड़ी चूड़ी बेच कर अपने नाती के लिए सोने की पतली सी चेन, कपड़े और फल व मिठाइयों का प्रबंध किया. विनोद की हालत ऐसी नहीं थी कि वे इस सामान को ले जा सकें. वजह, उन्हें माइनर हार्ट का दौरा पड़ा था. चूंकि घर में और कोई नहीं था सो वे ही किसी तरह इलाहाबाद गए.

#coronavirus: स्वाइन फ्लू से दस गुना ज़्यादा खतरनाक है कोरोना: WHO

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि 2009 के स्वाइन फ्लू के मुकाबले कोरोना वायरस 10 गुना अधिक जानलेवा महामारी है. स्वाइन फ्लू महामारी से करीब 2 लाख लोगों की मौत हो गई थी.वहीं, कोरोना वायरस से चार महीने में ही डेढ़ लाख से अधिक लोगों की जानें जा चुकी हैं और यह आंकड़ा पूरी दुनिया में लगातार बढ़ता जा रहा है. कोरोना बहुत तेज़ी से फैलने वाली महामारी है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर जनरल टेड्रोस एडहैनम घेब्रियेसुस का कहना है कि संगठन लगातार कोरोना वायरस के बारे में विश्लेषण कर रहा है और नई जानकारी हासिल कर रहा है. इस वक़्त सबसे ज़रूरी है इसकी वैक्सीन की खोज, जिसके लिए दुनिया भर में रिसर्च और प्रयोग जारी हैं.

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जानकारी के मुताबिक़ वैश्विक स्तर पर स्वाइन फ्लू से संक्रमित होने वाले लोगों में सिर्फ 1.1 फीसदी की जान गई थीं. वहीं, अमेरिका में स्वाइन फ्लू से 0.2 फीसदी और ब्रिटेन में 0.03 फीसदी मौतें हुई थीं.

हालांकि दुनिया में स्वाइन फ्लू से हुई मौतों का सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. लेकिन माना जाता है कि वर्ष 2009 में दो लाख से अधिक लोगों की जान स्वाइन फ्लू से गई थी. विश्व स्वास्थ संगठन ने लैब में कंफर्म केस के आधार पर कहा था कि स्वाइन फ्लू से 18,500 लोगों की जान गयी है.

प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल The Lancet ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि स्वाइन फ्लू से हुई मौतों का आंकड़ा 151,700 से 575,400 के बीच है. The Lancet ने अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में हुई मौतों का अनुमानित आंकड़ा भी जोड़ा था जिसे विश्व स्वास्थ संगठन की रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया था. स्वाइन फ्लू को जून 2009 में महामारी घोषित किया गया था.ऐसा समझा गया था कि अगस्त 2010 में स्वाई फ्लू समाप्त हो गया है.

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वहीं, कोरोना से बहुत कम समय में ही कुल डेढ़ लाख से अधिक लोगों की मौतें हुई हैं. इनमें सबसे अधिक अमेरिका के लोग शामिल हैं. वहीं, इटली, स्पेन, फ्रांस और ब्रिटेन में भी बड़ी संख्या में लोग मारे जा चुके हैं. टेड्रोस का कहना है कि हम जानते हैं कि कोरोना तेजी से फैलता है और हम यह भी जानते हैं कि यह 2009 के स्वाइन फ्लू महामारी से 10 गुना अधिक जानलेवा है. उन्होंने कहा कि कुछ देशों में हर 3 से 4 दिन में संक्रमित मामलों की संख्या दोगुनी हो रही है. कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले मरीजों में मौत की दर फिलहाल अलग-अलग देशों में अलग-अलग है. ब्रिटेन में संक्रमित होने वाले लोगों में 12 फीसदी की मौत हो चुकी है. ऑस्ट्रेलिया में ये आंकड़ा फिलहाल 0.1 फीसदी है और अमेरिका में 4 फीसदी. दुनियाभर में कोरोना संक्रमित लोगों की औसत मृत्यु दर फिलहाल 6.4 फीसदी है.

टेड्रोस कहते हैं कि अगर प्रत्येक देश संक्रमण के मामलों को पहले ही पहचान कर, जांच कर प्रत्येक मामले को आइसोलेट करें और प्रत्येक संक्रमित व्यक्ति से मिले लोगों को भी पहचाना जाए तो इस वाइरस को काबू किया जा सकता है.  टेड्रोस को डर है कि वैश्विक जुड़ाव से यह बीमारी फिर से सिर उठा लेगी. यानी दो देशों के बीच आवागमन खुलने से मानवजाति विनाश के रास्ते पर चल पड़ेगी और इस बीमारी को रोक पाना मुश्किल हो जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘कोविड-19 का फैलाव बड़ी तेजी से होता है लेकिन उसका खात्मा बहुत ही धीमी गति से होता है.  इसका मतलब ऊपर की ओर जाने की गति नीचे की ओर जाने की गति से काफी ज्यादा है.’

टेड्रोस ने तमाम देशों से आग्रह किया है कि नियंत्रण उपायों को ‘धीमे और नियंत्रण के साथ’ उठाया जाना चाहिए. यह सब एक बार में नहीं करना होगा. नियंत्रण उपायों को केवल तभी अपनाया जा सकता है जब कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के लिए महत्वपूर्ण क्षमता सहित सही सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय किए जाएं.

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ने जोर देकर कहा है कि देशों को उन उपायों के बीच संतुलन बनाना होगा जो कोविड-19 की मृत्यु दर की ओर ध्यान दिला रहे हैं और अत्यधिक स्वास्थ्य प्रणालियों की वजह से अन्य बीमारियों के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को भी प्रभावित करते हैं. महामारी हर जगह फैल गई है, इसके सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक आर्थिक प्रभाव गहरे हो रहे हैं. जो असुरक्षित रूप से कमजोर लोगों को प्रभावित कर रहे हैं. बहुत बड़ी आबादी पहले से ही नियमित, आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी का अनुभव कर चुकी है. बावजूद इसके प्रतिबन्ध धीमी गति से उठाये जाने चाहिए. इसको यदि एकदम से उठा लिया गया तो हम मनुष्य के लिए सर्वनाश का द्वार खोल देंगे.

शेष जीवन: भाग 1

‘‘ननदोईजी ठीक कहते हैं कि आप नाम के वकील हैं,’’ सुमन चिढ़ कर बोली.

‘‘खोज लेतीं कोई नाम वाला वकील. 6 बेटियों को पैदा करते हुए तुम्हारे बाप ने यह नहीं सोचा कि मेरे जैसे वकील से ही शादी होगी,’’ सुमन के पति विनोद ने उसी लहजे में जवाब दिया.

‘‘सोचा होता तो 6 बेटियां पैदा ही क्यों करते?’’

‘‘तो चुप रहो. मेरी ओर देखने से पहले अपने बारे में सोचो. तुम्हारे ननदोई को मैं अच्छी तरह से जानता हूं. वह एक नंबर का लंपट है. सारी जिंदगी नौकरी छोड़ कर भागता रहा. एकमात्र बेटी की शादी ढंग से न कर सका. चला है हम पर उंगली उठाने. मैं तो कम से कम अपनी जातिबिरादरी में बेटी की शादी कर रहा हूं. उस से तो वह भी नहीं करते बना.’’ जब से दोनों की इकलौती बेटी रेखा की शादी सुमन के भाई राकेश ने तय कराई तब से आएदिन दोनों में तूतू मैंमैं होती. इस की वजह दहेज में दी जाने वाली रकम थी. विनोद सारी जिंदगी वकालत कर के उम्र के 65वें बरस में सिर्फ 10-12 लाख रुपए ही जुटा पाए. इस में से 10 लाख रुपए खर्च हो गए तो भविष्य के लिए क्या बचेगा? यही सोचसोच कर दोनों दुबले हुए जा रहे थे. विनोद को यह आशंका सता रही थी कि अब वे कितने दिन वकालत कर पाएंगे? 2-4 साल तक और खींचतान कर कचहरी जा सकेंगे. उस के बाद? पुत्र कोई है नहीं जो बुढ़ापे में दोनों का सहारा बने. रहीसही इकलौती संतान बेटी थी जो एक प्राइवेट संस्थान में नौकरी करती थी. कल वह भी विदा हो कर चली जाएगी तब क्या होगा? उन की देखभाल कौन करेगा? घरखर्च कैसे चलेगा?

दहेज में दिया जाने वाला एकएक पैसा विनोद पर भारी पड़ रहा था. जबजब बैंक से रुपया निकालने जाते तबतब उन्हें लगता अपने खून का एक अंश बेच कर आ रहे हैं. मन झल्लाता तो कहते, रेखा भी प्रेमविवाह कर लेती तो ठीक होता. कम से कम दहेज से तो बच जाते. जातिबिरादरी का यह हाल है कि कमाऊ लड़की भी चाहिए, दहेज भी. इन को इतनी भी तमीज नहीं कि जब लड़की कमा रही है तो दहेज कहां से बीच में आ गया? विनोद की रातों की नींद गायब थी. वे अचानक उठ कर टहलने लगते. जितना सोचते, दिल उतना ही बैठने लगता. भविष्य में क्या होगा अगर मैं बीमार पड़ गया तो? अभी तक तो वकालत कर ली. घर से रोजाना 10 किलोमीटर कचहरी जाना क्या आसान है? 65 का हो चला हूं. रेखा 28वीं में चल रही थी. जहां भी शादी की बात चलाते 10 लाख से नीचे कोई बात ही नहीं करता. 23 साल की उम्र में रेखा ने सरकारी पौलिटैक्निक संस्थान से डिप्लोमा किया था. नौकरी लगी तो सब ने सोचा कि चलो, लड़की अपने पैरों पर खड़ी है तो लड़के वाले दहेज नहीं मांगेंगे. इस के बावजूद दहेजलोभियों का लोभ कम नहीं हुआ. विनोद झुंझलाते, कोई पुत्र होता तो वे भी दहेज ले कर हिसाब पूरा कर लेते.

सुमन रोजाना कुछ न कुछ खरीदने के लिए बाजार जाती. अभी से थोड़ीथोड़ी चीजें जुटाएगी तभी तो शादी कर पाएगी. आसपास कोई इतना करीबी भी नहीं था जिसे साथ ले कर बाजार निकल जाए. ले दे कर भाभी थीं जो उस के घर से 5 किलोमीटर दूर रहती थीं. अंगूठी एक से एक थीं, मगर सब महंगी. बड़ी मुश्किल से एक अंगूठी पसंद आई. विनोद को लगा सुमन ने कुछ ज्यादा महंगी अंगूठी खरीद ली. इसी बात पर वह उलझ गया, ‘‘क्या जरूरत थी महंगी अंगूठी खरीदने की?’’ ‘‘सोने का भाव कहां जा रहा है, आप को कुछ पता है. सब से सस्ती ली है.’’ ‘‘सब ढकोसला है. क्या हमारे समय में इतना भव्य इंगेजमैंट होता था? अधिक से अधिक दोचार लोग लड़की की तरफ से, चार लोग लड़के वालों की तरफ से 5 किलो लड्डू दिए, कुछ मेवे और फलफूल. हो गई रस्म. मगर नहीं, आज सौ लोगों को खिलाओपिलाओ, उस के बाद नेग भी दो. वह भी लड़की वालों के बलबूते पर,’’ विनोद की त्यौरियां चढ़ गईं.

‘‘करना ही होगा वरना चार लोग थूकेंगे. अपनी बेटी को भी अच्छा नहीं लगेगा. वह भी दस जगह गई है. उस के भी कुछ अरमान होंगे. उस का सादासादा इंगेजमैंट होगा तो उस के दिल पर क्या गुजरेगी.’’ ‘‘क्या वह हमारे हालात से वाकिफ नहीं है?’’ ‘‘बच्चों को इस से क्या मतलब? उन की भी कुछ ख्वाहिशें होती हैं. उन्हें चाहे जैसे भी हों, पूरी करनी ही पड़ेंगी,’’ सुमन ने दोटूक कहा. वह आगे बोली, ‘‘हम ने रेखा को दिया ही क्या है. अब तक वह बेचारी अभावों में ही पलीबढ़ी. लोगों के बच्चे महंगे अंगरेजी स्कूलों में पढ़े जबकि हम ने उसे सरकारी स्कूल में पढ़ाया. न ढंग से कपड़ा दिया, न ही खाना. सिर्फ बचाते ही रहे ताकि उस की शादी अच्छे से कर सकें,’’ वह भावुक हो गई. विनोद का भी जी भर आया. एकाएक उन के सोचने की दिशा बदल गई. रेखा ही उन के घर रौनक थी. जब वह विदा हो कर चली जाएगी तब वे दोनों अकेले घर में क्या करेंगे? कैसे समय कटेगा? सोच कर उन की आंखें पनीली हो गईं. सुमन की नजरों से उन के जज्बात छिप न सके. वह बोली, ‘‘क्या आप भी वही सोच रहे हैं जो मैं?’’

अपने मन में उमड़ते भावों के ज्वार को छिपाते हुए वे बोले, ‘‘मैं समझा नहीं?’’ ‘‘बनते क्यों हैं? आप की यही आदत मुझे पसंद नहीं.’’

‘‘तुम्हें तो मैं हमेशा नापसंद रहा.’’

‘‘गलत क्या है? आप से शादी कर के मुझे कौन सा सुख मिला? आधाअधूरा आप के पिता का बनवाया यह मकान उस पर आप के पेशे की थोड़ी सी कमाई.’’

‘‘भूखों तो नहीं मरने दिया.’’

‘‘मन का भोजन न मिले तो समझो भूखे ही रहे. राशन की दुकान सभी ने छोड़ दी. कौन जाए पूरा दिन खराब करने? एक मैं ही थी जो आज तक 10 किलो गेहूं खरीदने के लिए दिनभर राशन की दुकान की लाइन में लगती रही. शर्म आती है मुझे एक वकील की बीवी कहते हुए.’’ ‘‘देखो, मेरा दिमाग मत खराब करो. बेटी की शादी कर लेने दो.’’

‘‘उस के बाद क्या कुबेर का खजाना मिलेगा?’’

‘‘मौत तो मिलेगी. कम से कम तुम्हारे उलाहने से मुक्ति तो मिलेगी,’’ विनोद का स्वर तल्ख था. तभी किसी के आने की आहट हुई. सुमन का भाई राकेश था. दोनों ने चुप्पी साध ली. सुमन को एक तरफ ले जा कर उस ने कुछ रुपए दिए. ‘‘ये 10 हजार रुपए हैं, रख लो. आगे भी जो बन पड़ेगा, देता रहूंगा. इस बार गांव में गेहूं की फसल अच्छी हुई है. आटे की चिंता मत करना.’’ सुमन की आंखें भर आईं. जैसे ही वह गया, सुमन फिर विनोद से उलझ पड़ी, ‘‘एक आप के परिवार के लोग हैं. मदद तो दूर झांकने भी नहीं आते.’’

‘‘झांकने लायक तुम ने किसी को छोड़ा है?’’

‘‘तुम्हीं लायक बन जाते उन के लिए.’’ ‘‘लायक होता तो तुम्हारी लताड़ सुनता. आजकल सब रुपयों के भूखे हैं. न मेरे पास रुपए थे, न ही परिवार वालों ने हमें तवज्जुह दी.’’

‘‘अब समझ में आया.’’

‘‘समझ तो मैं पहले ही गया था. तभी तो अपने बेटे की बीमारी में बड़ी बहन रुपए मांगती रही, मगर मैं ने फूटी कौड़ी भी नहीं दी. जबकि खेत बेचने के बाद उस समय मेरे पास रकम थी.’’ ‘‘अच्छा किया, दे देते तो आज भीख मांगते नजर आते.’’ इंगेजमैंट में सुमन ने सिर्फ अपने भाईबहनों को न बुला कर यही संदेश दिया कि उस की कूवत नहीं है बहुत ज्यादा लोगों को खिलानेपिलाने की. इस में दोराय नहीं, ऐसा ही था. मगर

19 दिन 19 टिप्स: Testicle Pain-अंडकोष के दर्द को न करें अनदेखा

केशव कुछ दिनों से अपने दाएं अंडकोष की थैली के आसपास दर्द व बेचैनी महसूस कर रहे थे. दर्द तेज होने पर डाक्टर को दिखाया. डाक्टर ने जांच कर के कुछ दवाएं दीं. दवाओं से दर्द कुछ समय के लिए गायब हो गया पर कुछ दिनों बाद दर्द फिर शुरू हुआ तो डाक्टर के पास जाने के बजाय पहले वाली दवा लेते रहे. उन्होंने महसूस किया कि उन का अंडकोष धीरेधीरे बढ़ रहा है. एक दिन काफी दर्द होने पर 40 वर्षीय केशव डाक्टर के पास गए. अल्ट्रासाउंड द्वारा जांच करने पर पता चला कि उन्हें अंडकोष का कैंसर है. डाक्टर ने बताया कि उन की लापरवाही की वजह से स्थिति नाजुक हो चुकी है. यदि समय रहते उन्होंने इस का सही इलाज करवा लिया होता तो ऐसी समस्या न आती. मैडिकल साइंस की एक पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ सालों से पुरुषों में अंडकोष के कैंसर की समस्या तेजी से बढ़ रही है. अंडकोष में कैंसर 6 माह के अंदर खतरनाक हालत में पहुंच जाता है. इस का फैलाव पेड़ से दिमाग तक हो सकता है.

अंडकोष के कैंसर पर नई खोज करने वाले अमेरिका के आर्मी मैडिकल सैंटर के यूरोलौजी औंकोलौजिस्ट विभाग के प्रमुख डा. जूड डब्लू मोले का कहना है कि पुरुष अंडकोष के दर्द को सामान्य रूप में लेते हैं जिस की वजह से वे डाक्टर के पास देर से जाते हैं. कुछ डाक्टर के पास जाते भी हैं तो डाक्टर पहचानने में गलती कर जाते हैं. साधारण बीमारी समझ कर उस का इलाज कर देते हैं. कैंसर विशेषज्ञ डा. एम के राणा का कहना है कि अधिकतर भारतीय पुरुष  अंडकोष के कैंसर से अनजान हैं जिस की वजह से वे अपने अंडकोष में आए परिवर्तन की ओर ध्यान नहीं देते हैं. जब समस्या बढ़ जाती है तब डाक्टर के पास पहुंचते हैं. हर पुरुष को चाहिए कि वह अपने अंडकोष  में आए परिवर्तन पर ध्यान रखे. अंडकोश में दर्द, सूजन, आसपास भारीपन, अजीब सा महसूस होना, लगातार हलका दर्द बना रहना, अचानक अंडकोष के साइज में काफी अंतर महसूस करना, अंडकोष पर गांठ, अंडकोश का धंसना आदि लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. पुरुषों में यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है.

अंडकोष  कैंसर के कारण

किसी भी व्यक्ति के अंडकोष में कैंसर उत्पन्न हो सकता है. इस के होने की कुछ वजहें ये हैं :

क्रिस्टोरचाइडिज्म : यदि किसी युवक के बचपन से ही अंडकोश शरीर के अंदर धंसे रहें तो उसे अंडकोष कैंसर की समस्या हो सकती है. क्रिप्टोरचाइडिज्म का इलाज बचपन में ही करवा लेना चाहिए ताकि बड़े होने पर उसे खतरनाक समस्या से न जूझना पड़े. सर्जन छोटा सा औपरेशन कर के अंडकोष को बाहर कर देते हैं.

आनुवंशिकता : यदि पिता, चाचा, नाना, भाई आदि किसी को अंडकोष के कैंसर की समस्या हुई हो तो सावधान हो जाना चाहिए. टीएसई यानी टैस्टीक्युलर सैल्फ एक्जामिनेशन द्वारा अंडकोष की जांच करते रहना चाहिए.

बचपन की चोट : बचपन में खेलते वक्त कभी किसी बच्चे को यदि अंडकोष में चोट लगी है तो बड़े होने पर उसे अंडकोष के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. बचपन में चोट लगने वाले पुरुषों के अंडकोष में किसी तरह का दर्द, सूजन आदि महसूस होने पर तुरंत डाक्टर को दिखाना चाहिए.

हर्निया : हर्निया की समस्या की वजह से भी किसीकिसी के अंडकोश में दर्द व सूजन उत्पन्न हो जाती है. ऐसे में डाक्टर से शीघ्र मिलना चाहिए.

हाइड्रोसील : हाइड्रोसील की समस्या होने पर अंडकोष की थैली में पानी जैसा द्रव्य जमा हो जाता है. इस में अंडकोष में दर्द भले ही न हो लेकिन थैली के भारीपन से अंडकोश प्रभावित हो जाते हैं जिस की वजह से अंडकोष का कैंसर हो सकता है.

इंपोटैंसी : नई खोज के अनुसार, इंपोटैंसी की वजह से भी अंडकोष के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. डा. जूड मोले बताते हैं कि जिन लोगों को अंडकोष कैंसर की समस्या पाई गई है उन में से अधिकतर पुरुष इंपोटैंसी यानी नपुंसकता के शिकार थे.

अंडकोष का इलाज : अंडकोष में असामान्यता दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. डा. राना का कहना है कि ब्लड, यूरिन टैस्ट व अल्ट्रासाउंड द्वारा बीमारी का पता लगा लिया जाता है. बीमारी की स्थिति के मद्देनजर मरीज को दवा, कीमोथेरैपी या सर्जरी की सलाह दी जाती है. जिस तरह से महिला अपने स्तन का सैल्फ टैस्ट करती है उसी प्रकार पुरुष अपने अंडकोश का सैल्फ टैस्ट कर के जोखिम से बच सकते हैं.

सावधानी

विपरीत पोजिशन में संबंध बनाते वक्त ध्यान रखें कि अंडकोष में चोट न लगे.

तेज गति से हस्तमैथुन न करें, इस से अंडकोष को चोट लग सकती है.

किसी भी हालत में शुक्राणुओं को न रोकें. उन्हें बाहर निकल जाने दें नहीं तो यह शुक्रवाहिनियों में मर कर गांठ बना देते हैं. आगे चल कर कैंसर जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है.

क्रिकेट, हौकी, फुटबाल, कुश्ती आदि खेल खेलते समय अपने अंडकोश का ध्यान रखें. उस में चोट न लग जाए. चोट लगने पर तुरंत डाक्टर को दिखाएं.

टाइट अंडरवियर न पहनें, लंगोट बहुत अधिक कस कर न बांधें. इस से अंडकोष पर अधिक दबाव पड़ता है.

सूती और हलके रंग के अंडरवियर पहनें. नायलोन के अंडरवियर पहनने से अंडकोष को हवा नहीं मिल पाती है. गहरे रंग का अंडरवियर अंडकोष को गरमी पहुंचाता है.

हमेशा अंडरवियर पहन कर न रहें. रात के वक्त उसे उतार दें जिस से अंडकोष को हवा लग सके.

अधिक गरम जगह जैसे भट्ठी, कोयला इंजन के ड्राइवर, लंबी दूरी के ट्रक ड्राइवर आदि अपने अंडकोष को तेज गरमी से बचाएं.

अंडकोष पर किसी प्रकार के तेल की तेजी से मालिश न करें. यह नुकसान पहुंचा सकता है.

बहरहाल, अंडकोष में किसी भी प्रकार की तकलीफ या फर्क महसूस करने पर खामोश न रहें. डाक्टर से सलाह लें. अंडकोष की हर तकलीफ कैंसर नहीं होती लेकिन आगे चल कर वह कैंसर को जन्म दे सकती है इसलिए इस से पहले कि कोई तकलीफ गंभीर रूप ले, उस का निदान कर लें.

Lockdown Beauty Tips: नई दुल्हन ऐसे रखें अपनी खूबसूरती का ख्याल

श्रुति की अभी शादी को 10 दिन भी नही हुए थे कि लॉकडाउन हो गया. कहां तो श्रुति सोच रही थी कि वो और रोहन हनीमून के लिये सिंगापुर जायेगे परन्तु कोरोना के कारण हनीमून तो दूर उन्हें घर में कैद होना पड़ गया. नई शादी, नए रिश्ते और ढेर सारे सपने.

श्रुति भी हर नई दुल्हन की तरह सुंदर दिखना चाहती थी परन्तु सारे पार्लर बन्द थे. श्रुति बेहद परेशान थी कि कैसे वो इस समय अपनी देखभाल करें? श्रुति तो हर चीज़ के लिये पार्लर ही जाती थी.

श्रुति अब रोहन के नज़दीक नहीं आना चाहती थी. उसे बेसब्री से लॉकडाउन के खुलने का इंतजार था. परन्तु लॉकडाउन फिर से 19 दिन के लिये बढ़ा दिया गया और ये भी नहीं पता था कि 3 मई को भी ये खुलेगा या नहीं.

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परन्तु इस समय श्रुति की मौसी ने उसे रसोई में छिपे सौंदर्य के खजाने से परिचित करवाया और श्रुति को अब लग रहा हैं कि अगर पार्लर नहीं भी खुले तो भी वो अपना नूर बरक़रार रख पाएगी. आइए जानतें हैं क्या थे वो टिप्स…

1.बेसन और हल्दी हर किसी की त्वचा के लिये ठीक होता हैं परन्तु अगर त्वचा रुखी हैं तो मलाई और यदि तैलीय हैं तो नींबू का रस मिलाकर आप लेप बना सकती हैं. नहाने से 10 मिनट पहले चेहरे पर या अगर चाहे तो पूरे शरीर पर भी लगाकर छोड़ सकती हैं. इससे आपके चेहरे की मृत त्वचा बड़े आराम से निकल जाती हैं. और चेहरा दमकने लगता हैं. वहीं शरीर के बाकी हिस्सों के लिये ये बॉडी पॉलिशिंग का काम करेगा.

2.रात को सोने से पहले एलोवेरा जेल लगाकर छोड़ दें, अगर कोई दाग-धब्बे हैं तो वो रात भर उन पर कार्य करेगा साथ ही साथ नए एक्ने होने से रोकेगा भी.

3.यदि एक्ने की समस्या हैं तो जायफ़ल या लौंग को घिसकर उस स्थान पर लगा लें. तीन दिन के अंदर ही एक्ने सूख जायेगे और दाग भी नही छोड़ेंगे.

4.चेहरे पर बालो की समस्या से घबराएं नहीं, लाल मसूर की दाल रातभर भिगो दें और सुबह उसे मिक्सी में पीसकर चेहरे पर लगा दें. जब सूख जाए तो धीरे धीरे हटालें, इस लेप से चेहरे के बालों से काफी हद तक छुटकारा मिल जाएगा.

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5.हर नई दुल्हन के मेकअप किट में ब्लीच अवश्य होता हैं तो आप घर पर भी निर्देशानुसार ब्लीच कर सकती हैं. इससे आपके चेहरे के मुलायम रोये छुप जायेगे और जो थोड़े बहुत रोये रह जाएंगे उसके लिये आप प्लकर का इस्तेमाल कर सकती हैं.

6.ऑयब्रो को भी काफी हद तक प्लकर की मदद से सवार सकती हैं. परन्तु रोज प्लक करने की भूल मत करे. हर तीसरे या चौथे दिन आप एक्स्ट्रा ग्रोथ को प्लक कर सकती हैं.

7.अगर बाल रूखे हैं तो धोने से पहले नारियल का तेल और दही का मिश्रण जरूर लगाएं. बाल मुलायम और चमकदार हो जायेगे.

8.मेथी दाने को भी रातभर भिगोकर रखे, सुबह उसका पेस्ट बनाकर बालें में लगा लें, बाल मजबूत और रेशमी हो जायेगें.

9. चेहरे का ग्लो बरकरार रखने के लिये दही से पांच से सात मिनट चेहरे पर मसाज करिए और फिर चेहरा धो लीजिये.

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10.कुहनी और घुटनों पर नींबू के छिलके रगड़ने से उनकी मृत त्वचा हट जाएगी और कालापन भी दूर होगा.

याद रखिये ये  लॉकडाउन केवल संक्रमण रोकने के लिये हैं परन्तु आप छोटे छोटे उपायों से अपने सौंदर्य को बरकरार रख सकती हैं.

हैप्पी न्यू ईयर

दिसंबर का महीना था. किट्टी पार्टी इस बार रिया के घर थी. अपना हाऊजी का नंबर कटने पर भी किट्टी पार्टी की सब से उम्रदराज 55 वर्षीय मालिनी हमेशा की तरह नहीं चहकीं, तो बाकी 9 मैंबरों ने आंखों ही आंखों में एकदूसरे से पूछा कि आंटी को क्या हुआ है? फिर सब ने पता नहीं में अपनाअपना सिर हिला दिया.

सब में सब से कम उम्र की सदस्या थी रिया. अत: उसी ने पूछा, ‘‘आंटी, आज क्या बात है? इतने नंबर कट रहे हैं आप के फिर भी आप चुप क्यों हैं?’’

फीकी हंसी हंसते हुए मालिनी ने कहा, ‘‘नहींनहीं, कोई बात नहीं है.’’

अंजलि ने आग्रह किया, ‘‘नहीं आंटी, कुछ तो है. बताओ न?’’

‘‘पवन ठीक है न?’’ मालिनी की खास सहेली अनीता ने पूछा.

‘‘हां, वह ठीक है. चलो पहले यह राउंड खत्म कर लेते हैं.’’

हाऊजी का पहला राउंड खत्म हुआ तो रिया ने पूछा, ‘‘अरे, आप लोगों का न्यू ईयर का क्या प्लान है?’’

सुमन ने कहा, ‘‘अभी तो कुछ नहीं, देखते हैं सोसायटी में कुछ होता है या नहीं.’’

नीता के पति विनोद सोसायटी की कमेटी के मैंबर थे. अत: उस ने कहा, ‘‘विनोद बता रहे थे कि इस बार कोई प्रोग्राम नहीं होगा, सब मैंबर्स की कुछ इशूज पर तनातनी चल रही है.’’

सारिका झुंझलाई, ‘‘उफ, कितना अच्छा प्रोग्राम होता था सोसायटी में… बाहर जाने का मन नहीं करता… उस दिन होटलों में बहुत वेटिंग होती है और ऊपर से बहुत महंगा भी पड़ता है. फिर जाओ भी तो बस खा कर लौट आओ. हो गया न्यू ईयर सैलिब्रेशन. बिलकुल मजा नहीं आता. सोसायटी में कोई प्रोग्राम होता है तो कितना अच्छा लगता है.’’

रिया ने फिर पूछा, ‘‘आंटी, आप का क्या प्लान है? पवन के पास जाएंगी?’’

‘‘मुश्किल है, अभी कुछ सोचा नहीं है.’’

हाऊजी के बाद सब ने 1-2 गेम्स और खेले, फिर सब खापी कर अपनेअपने घर आ गईं. मालिनी भी अपने घर आईं. कपड़े बदल कर चुपचाप बैड पर लेट गईं. सामने टंगी पति शेखर की तसवीर पर नजर पड़ी तो आंसुओं की नमी से आंखें धुंधलाती चली गईं…

शेखर को गए 7 साल हो गए हैं. हार्टअटैक में देखते ही देखते चल बसे थे. इकलौता बेटा पवन मुलुंड के इस टू बैडरूम के फ्लैट में साथ ही रहता था. उस के विवाह को तब 2 महीने ही हुए थे. जीवन तब सामान्य ढंग से चलने ही लगा था पर बहू नीतू अलग रहना चाहती थी. नीतू ने उन से कभी इस बारे में बात नहीं की थी पर पवन की बातों से मालिनी समझ गई थीं कि दोनों ही अलग रहना चाहते हैं. जबकि उन्होंने हमेशा नीतू को बेटी जैसा स्नेह दिया था. उस की गलतियों पर भी कभी टोका नहीं था. बेटी के सारे शौक नीतू को स्नेह दे कर ही पूरे करने चाहे थे.

पवन का औफिस अंधेरी में था. पवन ने कहा था, ‘‘मां, आनेजाने में थकान हो जाती है, इसलिए अंधेरी में ही एक फ्लैट खरीद कर वहां रहने की सोच रहा हूं.’’

मालिनी ने बस यही कहा था, ‘‘जैसा तुम ठीक समझो. पर यह फ्लैट किराए पर देंगे तो सारा सामान ले कर जाना पड़ेगा.’’

‘‘क्यों मां, किराए पर क्यों देंगे? आप रहेंगी न यहां.’’

यह सुन मालिनी को तेज झटका लगा, ‘‘मैं यहां? अकेली?’’

‘‘मां, वहां तो वन बैडरूम घर ही खरीदूंगा. वहां घर बहुत महंगे हैं. आप यहां खुले घर में आराम से रहना… आप की कितनी जानपहचान है यहां… वहां तो आप इस उम्र में नए माहौल में बोर हो जाएंगी और फिर हम हर हफ्ते तो मिलने आते ही रहेंगे… आप भी बीचबीच में आती रहना.’’

मालिनी ने फिर कुछ नहीं कहा था. सारे आंसू मन के अंदर समेट लिए थे. प्रत्यक्षत: सामान्य बनी रही थीं. पवन फिर 2 महीने के अंदर ही चला गया था. जाने के नाम से नीतू का उत्साह देखते ही बनता था. मालिनी आर्थिक रूप से काफी संपन्न थीं. उच्चपदस्थ अधिकारी थे शेखर. उन्होंने एक दुकान खरीद कर किराए पर दी हुई थी, जिस के किराए से और बाकी मिली धनराशि से मालिनी का काम आराम से चल जाता था. मालिनी को छोड़ बेटाबहू अंधेरी शिफ्ट हो गए थे. मालिनी ने अपने दिल को अच्छी तरह समझा लिया था. यों भी वे काफी हिम्मती, शांत स्वभाव वाली महिला थीं. इस सोसायटी में 20 सालों से रह रही थीं. अच्छीखासी जानपहचान थी, सुशिक्षित थीं, हर उम्र के लोग उन्हें पसंद करते थे. अब खाली समय में वे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी थीं. उन का अच्छा टाइम पास हो जाता था.

नीतू ने बेटे को जन्म दिया. पवन मालिनी को कुछ समय पहले ही आ कर ले गया था. नीतू के मातापिता तो विदेश में अपने बेटे के पास ही ज्यादा रहते थे. नन्हे यश की उन्होंने खूब अच्छी देखरेख की. यश 1 महीने का हुआ तो पवन उन्हें वापस छोड़ गया. यश को छोड़ कर जाते हुए उन का दिल भारी हो गया था. पर अब कुछ सालों से जो हो रहा था, उस से वे थकने लगी थीं. त्योहारों पर या किसी और मौके पर पवन उन्हें आ कर ले जाता था. वे भी खुशीखुशी चली जाती थीं. पर पवन के घर जाते ही किचन का सारा काम उन के कंधों पर डाल दोनों शौपिंग करने, अपने दोस्तों से मिलने निकल जाते. जातेजाते दोनों उन से कह चीजें बनाने की फरमाइश कर जाते. सारा सामान दिखा कर यश को भी उन के ही पास छोड़ जाते. यश को संभालते हुए सारे काम करते उन की हालत खराब हो जाती थी. काम खत्म होते ही पवन उन्हें उन के घर छोड़ जाता था. यहां भी वे अकेले ही सब करतीं. उन की वर्षों पुरानी मेड रजनी उन के दुखदर्द को समझती थी. उन की दिल से सेवा करती थी.

इस दीवाली भी यही हुआ था. सारे दिन पकवान बना कर किचन में खड़ेखड़े मालिनी की हिम्मत जवाब दे गई तो नीतू ने रूखे धीमे स्वर में कहा पर उन्हें सुनाई दे गया था, ‘‘पवन, मां को आज ही छोड़ आओ. काम तो हो ही गया है. अब वहां अपने घर जा कर आराम कर लेंगी.’’

जब उन की कोख से जन्मा उन का इकलौता बेटा दीवाली की शाम उन्हें अकेले घर में छोड़ गया तो उन का मन पत्थर सा हो गया. सारे रिश्ते मोहमाया से लगने लगे… वे कब तक अपने ही बेटेबहू के हाथों मूर्ख बनती रहेंगी. अगर उन्हें मां की जरूरत नहीं है तो वे क्यों नहीं स्वीकार कर लेतीं कि उन का कोई नहीं है अब. वह तो सामने वाले फ्लैट में रहने वाली सारिका ने उन का ताला खुला देखा तो हैरान रह गई, ‘‘आंटी, आज आप यहां? पवन कहां है?’’ मालिनी बस इतना ही कह पाई, ‘‘अपने घर.’’ यह कह कर उन्होंने जैसे सारिका को देखा था, उस से सारिका को कुछ पूछने की जरूरत नहीं थी. फिर वही उन की दीवाली की तैयारी कर घर को थोड़ा संवार गई थी. बाद में थाली में खाना लगा कर ले आई थी और उन्हें जबरदस्ती खिलाया था.

उस दिन का दर्द याद कर मालिनी की आंखें आज भी भर आई हैं और आज जब वे किट्टी के लिए तैयार हो रही थीं, तो पवन का फोन आया था, ‘‘मां, इस न्यू ईयर पर मेरे बौस और कुछ कुलीग्स डिनर पर घर आएंगे, आप को लेने आऊंगा.’’ दीवाली के बाद पवन ने आज फोन किया था. वे बीच में जब भी फोन कर बात करना चाहती थीं, पर पवन बहुत बिजी हूं मां, बाद में करूंगा, कह कर फोन काट देता था. नीतू तो जौब भी नहीं करती थी. तब भी महीने 2 महीने में 1 बार बहुत औपचारिकसा फोन करती थी.

अचानक फोन की आवाज से ही वे वर्तमान में लौट आईं. वे हैरान हुईं, नीतू का फोन था, ‘‘मां, नमस्ते. आप कैसी हैं?’’

‘‘ठीक हूं, तुम तीनों कैसे हो?’’

‘‘सब ठीक हैं, मां. आप को पवन ने बताया होगा 31 दिसंबर को कुछ मेहमान आ रहे हैं. 15-20 लोगों की पार्टी है, मां. आप 1 दिन पहले आ जाना. बहुत सारी चीजें बनानी हैं और आप को तो पता ही है मुझे कुकिंग की उतनी जानकारी नहीं है. आप का बनाया खाना सब को पसंद आता है, आप तैयार रहना, बाद में करती हूं फोन,’’ कह कर जब नीतू ने फोन काट दिया तो मालिनी जैसे होश में आईं कि बच्चे इतने चालाक, निर्मोही क्यों हो जाते हैं और वे भी अपनी ही मां के साथ? इतनी होशियारी? कोई यह नहीं पूछता कि वे कैसी हैं? अकेले कैसी रहती हैं? बस, अपने ही प्रोग्राम, अपनी ही बातें. बहू का क्या दोष जब बेटा ही इतना आत्मकेंद्रित हो गया. मालिनी ने एक ठंडी सांस भरी कि नहीं, अब वे स्वार्थी बेटे के हाथों की कठपुतली बन नहीं जीएंगी. पिछली बार बेटे के घरगृहस्थी के कामों में उन की कमर जवाब दे गई थी. 10 दिन लग गए थे कमरदर्द ठीक होने में. अब उतना काम नहीं होता उन से.

अगली किट्टी रेखा के घर थी. न्यू ईयर के सैलिब्रेशन की बात छिड़ी, तो अंजलि ने कहा, ‘‘कुछ प्रोग्राम रखने का मन तो है पर घर तो वैसे ही दोनों बच्चों के सामान से भरा है मेरा. घर में तो पार्टी की जगह है नहीं. क्या करें, कुछ तो होना चाहिए न.’’

रेखा ने पूछा, ‘‘आंटी, आप का क्या प्रोग्राम है? पवन के साथ रहेंगी उस दिन?’’

‘‘अभी सोचा नहीं,’’ कह मालिनी सोच में डूब गईं.

उन्हें सोच में डूबा देख रेखा ने पूछा, ‘‘आंटी, आप क्या सोचने लगीं?’’

‘‘यही कि तुम सब अगर चाहो तो न्यू ईयर की पार्टी मेरे घर रख सकती हो. पूरा घर खाली ही तो रहता है… इसी बहाने मेरे घर भी रौनक हो जाएगी.’’

‘‘क्या?’’ सब चौंकी, ‘‘आप के घर?’’

‘‘हां, इस में हैरानी की क्या बात है?’’ मालिनी इस बार दिल खोल कर हंसीं.

रिया ने कहा, ‘‘वाह आंटी, क्या आइडिया दिया है पर आप तो पवन के घर…’’

मालिनी ने बीच में ही कहा, ‘‘इस बार कुछ अलग सोच रही हूं. इस बार नए साल की नई शुरुआत अपने घर से करूंगी और वह भी अच्छे सैलिब्रेशन के साथ. डिनर बाहर से और्डर कर मंगा लेंगे, तुम लोगों में से जो बाहर न जा रहा हो वह सपरिवार मेरे घर आ जाए… कुछ गेम्स खेलेंगे, डिनर करेंगे… बहुत मजा आएगा. और वैसे भी हमारा यह ग्रुप जहां भी बैठता है, मजा आ ही जाता है.’’ यह सुन कर रिया ने तो मालिनी के गले में बांहें ही डाल दीं, ‘‘वाह आंटी, क्या प्रोग्राम बनाया है. जगह की तो प्रौब्लम ही सौल्व हो गई.’’

सारिका ने कहा, ‘‘आंटी, आप किसी काम का प्रैशर मत लेना. हम सब मिल कर संभाल लेंगे और खर्चा सब शेयर करेंगे.’’

मालिनी ने कहा, ‘‘न्यू ईयर ही क्यों, तुम लोग जब कोई पार्टी रखना चाहो, मेरे घर ही रख लिया करो, तुम लोगों के साथ मुझे भी तो अच्छा लगता है.’’

‘‘मगर आंटी, पवन लेने आ गया तो?’’

‘‘नहीं, इस बार मैं यहीं रहूंगी.’’

फिर तो सब जोश में आ गईं और फिर पूरे उत्साह के साथ प्लान बनने लगा.

कुछ दिनों बाद फिर सब मालिनी के घर इकट्ठा हुईं. सुमन, अनीता, मंजू और नेहा तो उस दिन बाहर जा रही थीं. नीता, सारिका, रिया, रेखा और अंजलि सपरिवार इस पार्टी में आने वाली थीं. सब के पति भी आपस में अच्छे दोस्त थे. मालिनी का सब से परिचय तो था ही… जोरशोर से प्रोग्राम बन रहा था.

30 दिसंबर को सुबह पवन का फोन आया, ‘‘मां, आज आप को लेने आऊंगा, तैयार रहना.’’

‘‘नहीं बेटा, इस बार नहीं आ पाऊंगी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कुछ प्रोग्राम है मेरा.’’

पवन झुंझलाया, ‘‘आप का क्या प्रोग्राम हो सकता है? अकेली तो हो?’’

‘‘नहीं, अकेली कहां हूं. कई लोगों के साथ न्यू ईयर पार्टी रखी है घर पर.’’

‘‘मां आप का दिमाग तो ठीक है? इस उम्र में पार्टी रख रही हैं? यहां कौन करेगा सब?’’

‘‘उम्र के बारे में तो मैं ने सोचा नहीं. हां, इस बार आ नहीं पाऊंगी.’’

पवन ने इस बार दूसरे सुर में बात की, ‘‘मां, आप इस मौके पर क्यों अकेली रहें? अपने बेटे के घर ज्यादा अच्छा लगेगा न?’’

‘‘अकेली तो मैं सालों से रह रही हूं बेटा, उस की तो मुझे आदत है.’’

पवन चिढ़ कर बोला, ‘‘जैसी आप की मरजी,’’ और गुस्से से फोन पटक दिया.

पवन का तमतमाया चेहरा देख कर नीतू ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मां नहीं आएंगी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘उन्होंने अपने घर पार्टी रखी है.’’

‘‘क्या? क्यों? अब क्या होगा, मैं तो इतने लोगों का खाना नहीं बना पाऊंगी?’’

‘‘अब तो तुम्हें ही बनाना है.’’

‘‘नहीं पवन, बिलकुल नहीं बनाऊंगी.’’

‘‘मैं सब को इन्वाइट कर चुका हूं.’’

‘‘तो बाहर से मंगवा लेना.’’

‘‘नहीं, बहुत महंगा पड़ेगा.’’

‘‘नहीं, मुझ से तो नहीं होगा.’’

दोनों लड़ पड़े. जम कर बहस हुई. अंत में पवन ने सब से मां की बीमारी का बहाना कर पार्टी कैंसिल कर दी. दोनों बुरी तरह चिढ़े हुए थे. पवन ने कहा, ‘‘अगर तुम मां के साथ अच्छा संबंध रखतीं तो मुझे आज सब से झूठ न बोलना पड़ता. अगर मां को यहां अच्छा लगता तो वे आज अलग वहां अकेली क्यों खुश रहतीं?’’

नीतू ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘मुझे क्या समझा रहे हो… तुम्हारी मां हैं, बिना मतलब के जब तुम ही उन्हें फोन नहीं करते तो मैं तो बहू हूं.’’ दोनों एकदूसरे को तानेउलाहने देते रहे. दूसरे दिन भी दोनों एकदूसरे से मुंह फुलाए रहे. हाऊजी, गेम्स, म्यूजिक और बढि़या डिनर के साथ न्यू ईयर का जश्न तो मना, पर कहीं और.

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