जैसा कि हम जानते हैं कि गेंदा को भारत में खास फूल के रूप में जानते हैं. यह विभिन्न रंगों, सभी आबोहवा में आसानी से पैदा होता है. जहां तक इस की उपयोगिता की बात है तो इस के फूल व पत्तियां दवा के साथसाथ खुशबूदार तेल के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं.
इस के अलावा जिन खेतों में नेमेटोड का असर ज्यादा होता है, उस को गेंदा के पौधे आसानी से काबू करते हैं. जिन फसलों में फलमक्खी का हमला ज्यादा होता है और मोजेक बीमारी लगती है, उन में गेंदा की खेती ज्यादा उपयोगी साबित होती है. फलमक्खी पीले रंगों पर आकर्षित होती है, जिस से मुख्य फसल मक्खी के हमले से बच जाती है और उस की पैदावार अच्छी होती है.
गेंदा की खेती सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन सब से ज्यादा अच्छी गहरी बलुई दोमट मिट्टी है, जिस में पानी निकासी की अच्छी व्यवस्था हो.
गेंदे की खेती के लिए औसत तापमान अच्छा होता है, जिस में 15-20 डिगरी सैल्सियस तापमान सब से अच्छा है और सामान्य बारिश व नमी हो. जल्दी व अच्छी फूल देने वाली किस्में अफ्रीकन रैड, अमेरिकन ड्वार्फ, पूसा रैड, पूसा बसंती, पूसा नारंगी वगैरह हैं.
गेंदे की अच्छी खेती के लिए गरमियों में एक गहरी जुताई और 2 उथली जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बना लेते हैं, फिर पाटा लगा कर मेंड़ बनाते हैं. मेंड़ों पर पौधे लगाते हैं, जिस से सिंचाई में किसी तरह की परेशानी न हो.
गेंदे की खेती बीज से नहीं, बल्कि पौध से की जाती है. पौध के लिए जून महीने में नर्सरी तैयार करते हैं, जो जमीन से 6-9 इंच ऊपर बनाई जाती है. क्यारी में सड़ी हुई गोबर की खाद डाल कर उस में फफूंदनाशक कैप्टान, थीरम या ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल करते हैं.
बीज की बोआई साल में 3 बार की जा सकती है. मध्य जून से मध्य जुलाई तक, मध्य सितंबर से मध्य अक्तूबर  तक और मध्य जनवरी से 31 जनवरी तक. जब पौधे 3-4 इंच के हो जाएं, तब उन्हें तैयार खेतों में लगाते हैं. पौधे लगाते समय दूरी का जरूर ध्यान रखना चाहिए.
आमतौर पर देखा जा रहा है कि किसान गेंदे की खेती में खाद व कैमिकल का इस्तेमाल नहीं करते हैं, जिस से उन्हें फसल का सही फायदा नहीं मिल पाता है और 70-75 दिन बाद पौधों
की बढ़वार रुक जाती है.
अच्छी मात्रा में फूल हासिल करने के लिए फसल को नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश की तय मात्रा देनी चाहिए. एक हेक्टेयर खेत में नाइट्रोजन 200 किलोग्राम, फास्फोरस 100 किलोग्राम और पोटाश 50 किलोग्राम दें.
जब पौधे बढ़वार कर रहे हों तो नाइट्रोजन व मैग्नीशियम का इस्तेमाल करना चाहिए. नाइट्रोजन का आधा हिस्सा पौध रोपाई से पहले, बाकी पौधों की बढ़वार करने व फूल के समय देना चाहिए. पोटाश व फास्फोरस की पूरी मात्रा आखिरी जुताई के बाद व पौध रोपाई से पहले आधी मात्रा नाइट्रोजन के साथ देनी चाहिए.
सिंचाई की जरूरत मिट्टी की किस्म व मौसम के ऊपर निर्भर करती है. सूखे इलाके में हर हफ्ते सिंचाई की जरूरत पड़ती है, जबकि बरसात के मौसम में खेत से फालतू पानी के निकलने की व्यवस्था की जानी चाहिए.
लंबी किस्म वाले पौधों के लगाने के 40 दिन बाद तनों को ऊपर से 2-3 सैंटीमीटर काट देते हैं, जिस से पौधों में ज्यादा शाखाएं निकलती हैं और ज्यादा फूल मिलते हैं.
गेंदे की अच्छी खेती के लिए 2-4 बार खरपतवार निकालना, 1-2 बार खेत की गुड़ाई करनी पड़ती है. पूरी तरह से बढ़े हुए फूलों को ही तोड़ना चाहिए व फूल तुड़ाई का सही समय सुबह का है. तुड़ाई के बाद फूलों को हवादार व छायादार जगहों में रखना चाहिए.

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