षोडमासिक श्राद्ध जिस का नहीं होता, उस का प्रेतत्व सैकड़ों श्राद्ध के बाद भी नहीं जाता. गरुड़पुराण कहता है कि प्रेतत्व नाश के लिए विष्णु की पूजा करें तथा ब्राह्मणों को 13 पददान व घट का दान करें.
तपाए हुए सोने का घट बना कर ब्रह्मा, ईश, केशव व लोकपालों (इंद्र, यम, वरुण, कुबेर) का आह्वान कर इस घड़े में शामिल करें. फिर उस में घी और दूध भर कर भक्ति व नम्रता के साथ, ब्राह्मण को दान करें. प्रेतत्व दूर करने के लिए घट का दान अवश्य करना चाहिए.
– जो ब्राह्मण को गौदान नहीं करता, वह मांस, रक्त व हड्डी से पूरित वैतरणी पार नहीं कर पाता.
– प्रेतमुक्ति के लिए सोने का घट दान करने से यमलोक न जा कर प्राणी स्वर्गलोक जाता है.
– जो पुरुष, कंठ में आए प्राणों के समय गंगा कहता भर है, वह विष्णुपुर जाता है, पृथ्वी पर फिर उत्पन्न नहीं होता. भले ही सारी जिंदगी गंगा में जहरीले रसायन बहाया हो, तो भी?
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– सर्प के काटने से मरने पर सोने का सांप बना कर दान करें.
– सिंह द्वारा मारे जाने पर मृत की शांति के लिए एक ब्राह्मण की कन्या का विवाह अपने खर्चे पर करें.
– बैल द्वारा मरने पर यथाशक्ति सुवर्ण दान दें.
– घोड़ाघोड़ी से मरने पर 3 निष्क सोना दान दें.
– शीतला रोग से मरने पर ब्राह्मणों को स्वादिष्ठ भोजन कराएं.
– बिजली से मरने पर विद्यादान करें.
– वृक्ष द्वारा मरने पर वस्त्रसहित सोने का वृक्ष दान दें.
इस के अलावा राजा को भूदान व शेष को गौदान देने को कहा गया है. कहा जाता है कि पृथ्वी पर मनुष्य जो चीजें ब्राह्मणों को दान देता है, वह यमलोक मार्ग पर मृतक के काम आती हैं.
गर्भवती स्त्री की मृत्यु पर गरुड़पुराण कहता है कि ऐसी स्त्री का पेट चीर, बच्चा निकाल लें. स्त्री को जला दें और बच्चे को गाड़ दें. यह तो क्रूरता की सारी हदें पार करता है.
मृतक के जलने के बाद सारी हड्डियां बटोर कर चंदन से धो कर उन्हें गंगा में बहा दें. हड्डियां गंगा में डूब जाएं, तो समझिए मृतक ब्रह्मलोक चला गया. जितने वर्ष तक हड्डियां गंगा में पड़ी रहेंगी, उतने हजार वर्ष तक वह स्वर्गलोक का आनंद लेगा. मिसाल के तौर पर, भस्म हुए सागर में 60 हजार पुत्रों को गंगा ने स्वर्ग पहुंचाया क्योंकि उन की हड्डियां गंगा में पड़ी थीं. गंगा के प्रदूषित होने का एक बहुत बड़ा कारण यह भी है. लोग हड्डियों को गंगा में देवलोक की आशा में बहा देते हैं.
पुनर्जन्म के बारे में पुस्तक कहती है कि धर्मात्मा स्वर्ग का आनंद लेते हुए निर्मल कुल में जन्म लेते हैं. जाहिर है धर्मात्मा वही होगा जिस ने ब्राह्मणों को खूब दानदक्षिणा दी होगी?
स्थानीय पुस्तक के एक लेखक का कहना है कि 20 हजार वर्ष तक नर्क भोगने के बाद आदमी चीलकौए के रूप में जन्म लेता है. ऐसे आदमी ने निश्चय ही दानदक्षिणा नहीं दी होगी. कुल की अवधारणा भी पंडेपुजारियों द्वारा बनाई भ्रामक अवधारणा है. गरीब, अनपढ़ व मूढ़ जनता को उच्च कुल में पुनर्जन्म का सपना दिखा कर, पंडेपुरोहितों ने उन से खूब सेवा कराई.
तमाम अंतिम संस्कारों व खटकर्मों तथा स्वर्गनर्क भोगने के बाद पुनर्जन्म होता है, यह कैसे सिद्ध होगा? 60 साल आतेआते आदमी की याददाश्त कमजोर पड़ने लगती है. हजारों वर्षों की यात्रा कर के पुनर्जन्मा कैसे बता सकता है कि फलाने जन्म में वह क्या था? क्या किसी ने बताया?
गौतम बुद्ध ने कहा है कि इच्छापूर्ति न होने की स्थिति में पुनर्जन्म होता है. मनुष्य बगैर इच्छा के जन्म ले कर क्या करेगा? फिर तो वह शिखंडी हुआ? इच्छा, कर्म करने के लिए प्रेरित करती है. कर्म ही जीवन है. इच्छा कभी नहीं मरती. इस हिसाब से तो आदमी मर कर आदमी ही बनता है. गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘मरे हुए को क्या मारना.’ फिर तो पुनर्जन्म का सवाल ही नहीं उठता.
दरअसल, स्वर्गनर्क पंडेपुजारियों द्वारा रचा गया गोरखधंधा है. गरुड़पुराण में नर्क का जैसा दृश्य खींचा गया है वह सिर्फ ब्राह्मणों को दान देने के लिए ही है. पुलिसिया मार से बचने के लिए लोग रिश्वत देते हैं, ब्राह्मणदान भी वैसा ही है.
अंतिम संस्कारों के विधिविधान पर नजर डाली जाए, तो एक ही निष्कर्ष निकलता है कि यह प्रेतयोनि से मुक्ति के नाम पर पंडेपुजारियों द्वारा खानेपीने व दानदक्षिणा ऐंठने का जरिया है. इस से सिवा धन व समय के अपव्यय के कुछ नहीं मिलता. पंडेपुरोहित तो अपने समय का उपयोग कर के दानदक्षिणा पा जाते हैं पर हमें क्या मिला? महज अंधविश्वास का झुनझुना, जिसे सदियों से पीढ़ीदरपीढ़ी बजा रहे हैं.
धर्मग्रंथों ने इंसान के मरने के बाद कर्मकांडों के करने के नियम भी तय कर रखे हैं. मृतक का कर्मकांड विधिविधान से न करने पर अर्थात पंडेपुजारियों को उठावनी और पितरों को विदा करने के नाम पर मोटी दक्षिणा न देने पर मृतक की आत्मा भटकती रहती है और वह आला भूत बन कर परिवार वालों को सताती है. यह भी प्रचारित किया गया है कि ऐक्सिडैंट में मारे जाने वाले व्यक्तियों की आत्माएं भी भटकती रहती हैं, जबकि असलियत यही है कि जिस आत्मा को आज तक किसी ने देखा नहीं और उस का कोई अस्तित्व ही नहीं है तो वह किसी को नुकसान क्या पहुंचाएगी?
दरअसल, आत्मा व भूतप्रेत हमारे मन का डर है जो पंडेपुजारियों ने हमारे अंदर भरा हुआ है. लोगों को भूतप्रेतों, आत्माओं से डरा कर ही तो ये पंडेपुजारी अपनी तोंदों को और भी मोटा करते रहे हैं.