ट्रांसफर , प्रमोशन और डीए जैसे सरकारी भाषा के रोज इस्तेमाल किए जाने बाले आम शब्दों की तरह ही एक और शब्द है डेपुटेशन यानि प्रतिनियुक्ति जिसमें मनचाहे मुलाज़िम को मनचाही पोस्ट पर विराजमान कर मनचाहे काम कराए जाते हैं . यह पोस्ट आमतौर पर रिक्त होती है या फिर रिक्त करबा ली जाती है यानि असल मुलाज़िम गायब हो जाता है और उसकी जगह छद्म  मुलाज़िम को पदासीन कर दिया जाता है .

इस डेपुटेशन का असर कोरोना के कहर और लाक डाउन के बाद बड़े पैमाने पाए देखने में आया . 22 मार्च को जनता कर्फ़्यू बाले दिन ही साफ हो गया था कि भगवान नहीं है .  भगवान का न होना ज्ञात इतिहास में पहली (दुर) घटना थी जिससे सरकार थर्रा उठी थी क्योंकि इससे जनता के थोक में नास्तिक हो जाने का खतरा मंडराने लगा था जो कोरोना से भी बड़ा खतरा साबित होता . ताली थाली बजबाने का एक बड़ा मकसद भगवान की रिक्त हो चली पोस्ट को भरना था इसलिए सरकार ने कहा ,हलफिलहाल  डाक्टर , स्वास्थकर्मी और पुलिस बाले ही भगवान हैं इसलिए इनके सम्मान में एक मेगा इवैंट आयोजित किया जा रहा है .

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डेपुटेशन टेम्परेरी पोस्ट होती है , जिसे उक्त दीन हीन मुलाजिमों से भर कर मेसेज दे दिया गया कि आजकल ये नर ही वैकल्पिक नारायण हैं लिहाजा इनका सरकार द्वारा बताए गए तरीके से पूजा पाठ करो . भक्तों में इन टेम्परेरी भगवानों को लेकर इतना जोश आया कि कइयों ने घर की थालियाँ ही फोड़ लीं . सरकार कुछ दिनों के लिए बेफिक्र हो गई कि इस अफीम का असर कुछ दिनों तक रहेगा . भक्तों को भगवान की कमी नहीं अखरेगी इसके बाद मुनासिब वक्त पर अफीम की दूसरी खुराक पोलियो ड्राप्स की तरह पिला दी जाएगी जिससे लोग फिर टुन्न हो जाएँ . तब तक किसी का ध्यान इस तरफ नहीं जाएगा कि हम कोरोना की कसोटी पर खरे नहीं उतर पा रहे .

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