श्रेया जब 2 साल की हुई तो पराग को अमेरिका में अच्छी नौकरी मिल गई. अमेरिका जाने से पहले तीनों आए थे मुझ से मिलने. श्रेया को देख कर, शीतल को याद कर के मेरी आंखें गीली हो गई थीं. मेरा ध्यान गरिमा की ओर गया तो मैं ने मुसकरा कर उस का स्वागत किया. गरिमा को मैं तसवीर में तो देख चुकी थी, पर पहली बार उस से रूबरू होने का मौका मिला था. उस की शक्लसूरत तो अति साधारण थी ही, वह कुछ भीरू और संकोची भी लगी. मैं ने उस से बातचीत करने की कोशिश की तो धीरेधीरे मेरे स्नेहिल व्यवहार के कारण वह मुझ से खुल कर बातें करने लगी. जब वे जाने लगे तो मैं ने गरिमा से संपर्क बनाए रखने को कहा.
गरिमा ने अपना वादा निभाया और मुझ से संपर्क बनाए रखा. कभी फोन पर, तो कभी ई मेल भेज कर. श्रेया 3 साल की थी तो खबर आई कि गरिमा ने बेटे को जन्म दिया है. मैं ने उन्हें बधाई दी. पुत्र के जन्म के 1 साल बाद पूरा परिवार भारत आया तो वे जल्द ही मुझ से मिलने भी आए. श्रेया अब पटरपटर बोलने लगी थी. उस का भाई सांवला, दुबलापतला था. वह अपनी मां पर गया था. पराग और गरिमा बेहद आत्मीयता से हम से मिले.
लेकिन पहले की तरह उन्होंने हमारे साथ संपर्क बनाए रखा. पराग के मुकाबले गरिमा ही ज्यादा बातें किया करती थी. गरिमा ने मुझे बताया कि अब उन्होंने निश्चय किया है कि वे श्रेया को उस की मां का सच बताना चाहते हैं. पराग का मानना था कि अब श्रेया समझने लगी है, इसलिए इस बात का उसे किसी और से पता लगने पर उसे दुख होगा कि हम ने उस से क्यों छिपा कर रखा. यह सुन कर मैं घबरा गई. मैं सोचने लगी कि कहीं वास्तविकता जानने के बाद श्रेया का व्यवहार गरिमा के प्रति बदल गया तो? 2 दिन बाद पराग का ईमेल आया, ‘दीदी, हम ने श्रेया को शीतल के बारे में बता दिया है. सब कुछ जानने के बाद भी उस का व्यवहार सामान्य है. उस में कोई बदलाव नहीं है.’
पढ़ कर मैं ने राहत की सांस ली. इस बार पराग ने श्रेया को अकेले भारत भेजा. उस का कहना था कि अगर श्रेया अपनी दिवंगत मां के बारे में कुछ जानना चाहे तो अपनी नानी से या मुझ से बेझिझक पूछ सकती है. श्रेया को लेने हम एअरपोर्ट गए. श्रेया जब बाहर निकली तो मैं दंग रह गई उस 13 वर्षीय किशोरी को देख कर वह हूबहू शीतल की तरह दिख रही थी.
श्रेया घर आ कर रिया और राहुल के साथ खेलने में व्यस्त हो गई. मुझे तो जैसे लाइसैंस मिल गया था शीतल के बारे में बातें करने का. मैं जब उसे शीतल के बारे में चंद बातें बताने लगी, तो उस ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. फिर भी मैं चुप नहीं रही और श्रेया को कुछ और बताने लगी शीतल के बारे में, तो श्रेया ने कहा, ‘‘छोडि़ए न बड़ी मां. मुझे उन के बारे में जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है. मेरी मां तो गरिमा हैं.’’
श्रेया जब तक भारत में रही गरिमा के ही गुणगान करती रही. शीतल के बारे में उस ने कुछ नहीं पूछा. राहुल और रिया के साथ चहकती फिरती रही. नियत दिन पर हम से आज्ञा ले कर वह अमेरिका लौट गई.न्यूयार्क के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में राहुल को एम.एस. की पढ़ाई के लिए दाखिला मिल गया. रिया के लिए भी एक अच्छा सा वर मिल जाने के कारण मैं ने उस की शादी कर दी. सुरेश ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी. हम सब ने एकसाथ अमेरिका जाने का फैसला किया.
राहुल को भी क्रिसमस की 1 सप्ताह की छुट्टी मिली. हम सब पराग के घर पहुंचे. पराग और गरिमा ने हमारा दिल खोल कर स्वागत किया. श्रेया अब कालेज में दूसरे शहर में पढ़ती थी. पर उस की भी छुट्टियां शुरू हो गई थीं, इसलिए वह भी वहीं थी. श्रेया 21 साल की सुंदर युवती थी. दोनों बच्चों ने आगे बढ़ कर हमारा अभिवादन किया.
हमारे आने की खबर मिलते ही गरिमा ने ढेर सारी खाने की चीजें बना डाली थीं. नाश्ता करने के बाद सुरेश और पराग किसी चर्चा में मशगूल हो गए. गरिमा रसोईघर की ओर जाने लगी, तो उस के पीछेपीछे मैं ने भी रसोई में प्रवेश किया. मैं ने गरिमा की मदद करनी चाही तो उस ने एक कुरसी खींच कर उस में मुझे बैठा दिया, ‘‘आप यहां आराम से बैठ कर बातें कीजिए. मैं सब कर लूंगी.’’ फिर गरिमा वहां से जाने लगी तो मैं ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘गरिमा, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं. तुम ने बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं. शीतल के गुजरने के बाद, श्रेया के बारे में सोच कर मैं बहुत परेशान हो गई थी कि बिन मां की बच्ची का क्या होगा? पर तुम ने तो उसे मां से भी बढ़ कर प्यार दिया.’’
‘‘दीदी, मुझे भी तो श्रेया के बदौलत ही समाज में इतनी इज्जत मिली. उसी की बदौलत तो मैं इस घर में आई.’’
मैं ने उसे गले से लगा लिया, ‘‘यह तुम्हारा बड़प्पन है गरिमा कि तुम ऐसा सोचती हो.’’
मेरा स्नेहसिक्त स्पर्श पा कर जैसे गरिमा के अंदर दबी हुई ज्वालामुखी फूट पड़ी. मैं ने महसूस किया, गरिमा कितनी आहत थी. आज उस ने मेरे सामने अपना दिल खोल कर रख दिया, ‘‘दीदी, पराग ने आज भी अपने मन में शीतल को बसा रखा है. वहां मेरे लिए अभी भी कोई जगह नहीं है. शादी के बाद कई सालों तक हम दोनों के बीच एक अभेद्य दीवार बनी रही. सिर्फ श्रेया की वजह से हम एकदूसरे से जुड़े थे. मुझे लगता है कि सिर्फ श्रेया के लिए ही पराग ने मुझ से शादी की थी. पराग ने मुझ से शादी के कई साल बाद शारीरिक संबंध बनाए, जिस का नतीजा अमित है. दीदी, आप ही बताइए, जैसा प्यार उन्होंने शीतल के साथ किया था, क्या मैं भी वैसे ही प्यार की हकदार नहीं हूं?’’
अचानक मुझे गरिमा बेहद खूबसूरत लगने लगी. उस की आंतरिक सुंदरता छलक कर बाहर आती हुई दिखाई दी मुझे. मैं ने सोच लिया कि मैं पराग से इस विषय पर अवश्य बात करूंगी. खाना खाने के बाद हम घूमने जाने के लिए निकले. गरिमा और पराग ने अपनीअपनी गाड़ी निकाली. गरिमा का एक और रूप देख कर मैं आश्चर्यचकित रह गई. पूरे आत्मविश्वास के साथ अमेरिका की सड़कों पर गाड़ी दौड़ा रही थी गरिमा. मेरे आश्चर्य प्रकट करने पर उस ने कहा, ‘‘शुरूशुरू में मैं बहुत डरती थी पर
कार चलाना मेरी मजबूरी थी. यहां सार्वजनिक वाहन नहीं मिलते न. कब तक छोटेछोटे कामों के लिए भी पराग पर निर्भर रहती?’’
मैं ने कहा, ‘‘वाह, गरिमा, तुम ने बहुत मेहनत की है अपनेआप को ऊपर उठाने में. मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह वही संकोची गरिमा है.’’
सुबह उठने पर जब मैं ने देखा कि सूरज की उजली किरणें बगीचे को स्पर्श करने लगी हैं, तो अपने शरीर पर भी उन किरणों की छुअन महसूस करने के लिए अपने को रोक न पाई और बगीचे में चहलकदमी करने लगी. तभी पीछे से पराग ने पुकारा. मैं ने सोचा यही सही मौका है पराग से बातें करने का. कुछ औपचारिक बातों के बाद में सीधे मुद्दे पर आ गई, ‘‘पराग, गरिमा ने कितनी खूबसूरती से घर और बच्चों को संभाला और उन्हें बड़ा किया है न?’’
‘‘हां दीदी, रिश्तेदारों में अपनेआप को साबित करने के लिए गरिमा को न जाने कितनी बार अग्निपरीक्षा से हो कर गुजरना पड़ा. उसी की बदौलत तो निश्चिंत हो कर मैं नौकरी में अपना ध्यान लगा सका.’’
‘‘गरिमा के योगदान को मानते हो न पराग, फिर क्या तुम ने भी उसे वह सब कुछ दिया, जिस की वह हकदार है?’’
चौंक कर देखा पराग ने मेरी तरफ, ‘‘क्यों दीदी, मैं ने उसे क्या कुछ नहीं दिया? एक आरामदायक घर, पैसा, अपनी इच्छानुसार जीने की छूट और क्या चाहिए जिंदगी जीने के लिए?’’
‘‘पराग, एक स्त्री भौतिक सुखसुविधाओं से बढ़ कर अपने पति के सान्निध्य की भूखी होती है. अपना संकोच छोड़ कर तुम से पूछना चाहती हूं कि क्या तुम ने कभी गरिमा को अपने अंक में भर कर उस से टूट कर प्यार किया? क्या उसे वैसा प्यार देते हो जैसा तुम शीतल को दिया करते थे?’’
‘‘दीदी, क्या गरिमा ने आप से कुछ कहा?’’
‘‘यही तो विडंबना है पराग कि एक नारी अपने मुंह से कुछ नहीं कहेगी. उस की व्यथा को तुम्हें खुद समझना होगा. उस की भी तो शारीरिक जरूरतें हैं, जिन्हें सिर्फ तुम पूरा कर सकते हो. मुझे लगता है, तुम अभी भी शीतल को भुला नहीं पाए हो. शीतल तुम्हारा अतीत थी और गरिमा तुम्हारा वर्तमान. अतीत को वर्तमान पर हावी मत होने दो. इस से पहले कि गरिमा को अपना अस्तित्व बिखरता हुआ महसूस होने लगे, उस के साथ अकेले में वक्त बिताओ, उसे प्यार दो.’’
काफी देर तक सोच में डूबा रहा पराग, मैं ने उसे झकझोरा तो वह बोला, ‘‘दीदी, मुझ से बड़ी भूल हो गई है. आप चिंता न करें, मैं गरिमा को उस का हक दूंगा.’’
बातों ही बातों में पराग ने बताया कि श्रेया किसी विदेशी लड़के को चाहती है. शुरूशुरू में तो वह इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं था पर गरिमा ने समझाया था उसे कि लड़का पढ़ालिखा और होनहार है. और फिर श्रेया इस रिश्ते को ले कर गंभीर है, इसलिए हमें श्रेया का दिल नहीं दुखाना चाहिए.
गरिमा के इस सोच ने फिर मुझे उस का कायल बना दिया. मैं ने कहा, ‘‘गरिमा बिलकुल सही कहती है, पराग. हमें समय के साथ बदलना चाहिए.’’
धूप तेज हो गई थी. हम घर के अंदर आ गए.
गरिमा और पराग भारत आ कर सभी रिश्तेदारों के सामने श्रेया की शादी करना चाहते थे. विदेश में बैठेबैठे ही पराग ने कंप्यूटर द्वारा मुंबई में शादी के लिए जगह, खानपान आदि का प्रबंध कर लिया. नियत दिन से 2 दिन पहले सब भारत आए. दिल्ली से मेरे मांपापा मौसीजी को ले कर मुंबई आए. एकांत मिलने पर गरिमा ने मुझे बताया कि पराग बहुत बदल गया है और उस का बहुत खयाल रखता है. सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा. मैं ने गरिमा की आंखों में चमक पहले ही देख ली थी.
नियत दिन पर श्रेया का विवाह हो गया. विवाह में उपस्थित सभी रिश्तेदारों को धन्यवाद देते हुए पराग ने सार्वजनिक रूप से गरिमा की दिल खोल कर प्रशंसा की. गरिमा ने संकोच से सिर झुका लिया, पर वह बहुत प्रसन्न थी. मैं सोचने लगी कि देर से ही सही, उसे न्याय तो मिला.
आज श्रेया की शादी कर के उस ने श्रेया के प्रति अपना यह कर्तव्य भी पूरा कर लिया था. उस ने यह साबित कर दिखाया था कि जन्म देने वाले से पालने वाला बड़ा होता है. गरिमा आज सब की नजरों में ऊपर उठ गई थी. मेरे मुख से बरबस निकल पड़ा, ‘‘गरिमा, तू धन्य है.’’