Download App

कोविड-19 का कुहराम

कोरोना वायरस की माहमारी से बचने के लिए भारत सरकार के पास सिवा लौकडाउन करने के दूसरा उपाय नहीं है. लौकडाउन का फायदा कितना होगा, इस का अंदाजा भी

अभी नहीं लगाया जा सकता. यह बीमारी किसेकिसे हो चुकी है, इस का पता टैस्ंिटग से चलेगा जबकि हमारे देश में टैस्ंिटग बहुत कम की जा रही है.

लौकडाउन की वजह और पर्याप्त टैस्ंिटग न होने के चलते इस वायरस से प्रभावित लोगों के बारे में पता नहीं चल पाएगा. गरीबों के इलाकों में इस वायरस से ग्रसित लोग छिपे ही रह जाएंगे. ऐसे इलाकों में ग्रसित व उस के संबंधियों को मालूम ही नहीं होगा कि यह आम खांसीबुखार है या कोविड-19 बीमारी. पीडि़त मर जाएगा, यह पता न चलेगा कि वह वायरस के चलते मरा. वैसे भी, जब डाक्टर घर में आ न पाए और पीडि़त को घर से निकल कर अस्पताल जाने की छूट हो, तो टैस्ंिटग सैंटर तक कोई कैसे जाएगा?

अखबारों का प्रसार व उन की पहुंच कम हो गई है जबकि टीवी चैनलों को मरकज के मामले को उछालने व रामायण दिखाने से फुरसत ही नहीं है. कोरोना के असली बीमार होंगे, तो भी पता न चलेगा और अगर वे मर गए तो उन की मौतों को आम मौत मान लिया जाएगा.

दुनिया के अमीर देशों में यह बीमारी बहुत तेजी से फैल रही है. चीन के बाद पहले इटली, ईरान, जरमनी, स्पेन, इंग्लैंड और अब अमेरिका में फैल रही है.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले इसे बहुत हलके में लिया. आज पूरा अमेरिका इस की कीमत चुका रहा है. अमेरिका कोविड-19 के पीडि़तों की तादाद में सब से ऊपर है, चीन से भी ऊपर.

ये भी पढ़ें-#lockdown: कोरोना का कहर

दूसरे देशों की सरकारों ने जहां सही आर्थिक फैसले ले कर इस महामारी से लड़ने के लिए लोगों को पर्याप्त सहायता दी, वहीं भारत सरकार अपने खजाने को बचा कर रख रही है. जिस एक लाख करोड़ के पैकेज की बात की जा रही है, वह छलावा है क्योंकि यह कहां व किस की जेब में जा रहा है, पता नहीं. बैंकों के जिन खातों में यह पहुंचेगा, वहां पैसा निकालने कोई नहीं आएगा क्योंकि लोगों के पास न पासबुक बची होगी, न चैकबुक.

शहरों या शहरों के नजदीक ज्यादातर छोटेबड़े उद्योग बंद हो गए हैं. न कच्चा माल वहां आ रहा है, न तैयार माल मार्केट में जा पा रहा है. मजदूर भी झुग्गियों से चल कर फैक्ट्री तक पहुंच नहीं पा रहे. इन उद्योगों में कर्मियों के साथ बहुत से मजदूर काम पर लगे होते थे. इन गैर नियमित कर्मियों और मजदूरों को  24 मार्च को एहसास हो गया था कि अब उन की नौकरी महीनों वापस नहीं आएगी. ऐसे में वे कई बड़े शहरों से अपनेअपने गांवों की ओर चल पड़े थे.

इन मजदूरों व कर्मियों की भीड़ से भयभीत हो कर केंद्र सरकार ने डंडों की सहायता ली. मीडिया का मुंह बंद करा दिया. भीड़ में अगर कोविड-19 के बीमार भी थे तो वे भूख से ही पहले मरने की कगार पर थे, कोविड-19 से बाद में, ऐसा साफ दिख रहा था.

ये भी पढ़ें-#coronavirus: कोरोना ने मचाई दुनिया में हाहाकार

चीन की खबरें क्या, कितनी आती हैं, यह जान लें कि वहां की तानाशाही सरकार वही व उतना दिखाती है जितना वह चाहती है. उस ने सूचनाओं पर लोहे का मोटा परदा डाल रखा है. ऐसा ही परदा हमारी भारत सरकार और ऊंची जातियों के लोगों से भरे देश व इलैक्ट्रौनिक मीडिया, खासकर टीवी चैनलों, ने डाल रखा है.

टीवी चैनल तो कोरोना महामारी के आपातकाल में भी हिंदू-मुसलिम विवाद पर उतर आए और खोजखोज कर पुराने, नकली, इधरउधर के वीडियो के जरिए पढ़ीलिखी जनता को भी यह बताने में लग गए हैं कि देश में सब कुशलमंगल है.

तालियों और दीयों के आवरण में देश सुलग रहा है. लेकिन, इस देश की इस तरह की रूढि़यों की आदत पुरानी है. यहां आग सुलगती रहती है. यहां के शासक, अमीर, ऊंची जातियों वाले, धर्म को बेचने वाले, आग पर अपनी रोटियां सेंकते हैं. सदियों की परंपरा को चार किताबें पढ़ लेने से भला तोड़ा थोड़ी जा सकता है.

कोरोना के आगे सब बेकार

कोरोना वायरस ने सारी दुनिया को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा कर दिया है, जिस की कुछ महीनों पहले तक उम्मीद न थी. दुनिया के सारे देश इस से डरे हुए हैं. देशों के आणविक हथियारों के खजाने, बड़ी तादाद वाली फौजें इस वायरस के आगे बेकार हैं.

आमतौर पर सोचा जाता था कि दुनिया एक दिन मानव के बनाए आणविक हथियारों से नष्ट होगी. इस पर सैकड़ों उपन्यास लिखे गए हैं, कई फिल्में बनी हैं. फिर, यह सोचा जाने लगा कि इस धरती को तो ग्लोबल वार्मिंग नष्ट करेगी. दुनिया जब फ्यूल और कोयले पर रोक लगाने का हल्ला मचा रही थी तो सोचा जा रहा था कि उस में अड़ंगा लगाने वाले मानवता के दुश्मन हैं.

क्या पता था कि दुनिया पर आक्रमण तो कहीं और से होगा. शायद चमगादड़ों में पनपा कोरोना वायरस, जिस के कई स्वरूप पिछले 2 दशकों के दौरान  वैज्ञानिकों को दिख रहे थे, धीरेधीरे इतना जटिल हो गया है कि अब यह इंसानों में घुस गया. एक इंसान से दूसरे इंसान में आसानी से घुस जाता है और पहले खांसी, फिर फेफड़ों को संक्रमित कर उसे सांस लेना भी दूभर कर देता है.

वायरसरूपी इस अदृश्य शत्रु ने साबित कर दिया है कि प्रकृति के लिए मानव द्वारा  बनाई सीमाएं बेमतलब हैं, फौजें बेकार हैं, आर्थिक प्रगति बेकार है, नेताओं की अकड़ बेकार है.

कोविड-19 लाखों की या करोड़ों की जानें लेगा, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. यह 1918 के इंफ्लुएंजा के बराबर का है, उस से मजबूत है या उस से कमजोर, इस का आज सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है.

चीन, जहां शायद यह पैदा हुआ, ने काफी जल्दी इस पर काबू पा लिया. चीन ने वुहान शहर को बंद कर के और साथ ही, अपने देश के बहुत से शहरों से आनाजाना बंद कर के फिलहाल इस पर काबू पाने में सफलता पाई है. दूसरे देश चूक गए, वे समय पर ऐसा  नहीं कर पाए.

इटली, स्पेन, ईरान और अमेरिका जैसे देशों को अपने धर्मों और अपने सिस्टम्स पर कुछ ज्यादा ही भरोसा था. लेकिन यह विषाणु सब को लपेट गया. यह ताकतवर देशों का दंभ चूर कर गया है.

इस का यह मतलब नहीं है कि प्रकृति के कहर के आगे मानव अपनी हार मान लेगा. यह अभी नया विषाणु है, मानव को भरोसा है कि दुनियाभर के वैज्ञानिक मिल कर इस का मुकाबला कर ही लेंगे, आज नहीं तो दोचार माह में. लेकिन, तब तक यह हर मन पर जो छाप छोड़ेगा, शायद वह काले बादलों पर रुपहली चमक सिद्ध होगी.

इस वायरस ने सिद्ध कर दिया है कि देशों की सीमाएं, एकदूसरे पर आधिपत्य की भावना, गरीबीअमीरी की होड़, आर्थिक विकास की दरें वगैरह स्वास्थ्य और जीवन के आगे बेमतलब हैं.  यह वायरस दुनिया को शायद इस पर सोचने को मजबूर करे.

भारत में हम जो हिंदूहिंदू करते फिर रहे हैं, उस पागलपन में शायद कमी आए. सरकार यज्ञ, हवन, गौमूत्र में लिपटी है. वह रामायण, महाभारत में सुरक्षाकवच ढूंढ़ रही है. वह मंदिरों को बनवा रही है. अब, शायद, वह सुध ले कि अस्पताल, वैज्ञानिक दृष्टि और खोज आखिरकार देश व मानव की प्राथमिकता होनी चाहिए, घिसापिटा धर्म नहीं.

गरीबों की बेचारगी

भारत के गरीबों का क्या हाल है, यह मुंबई, दिल्ली, कोलकाता जैसे शहरों से कोविड-19 के कहर के डर के बावजूद उन के अपने गांवों की ओर भागने से साफ हो गया है. दिल्ली के रास्तों पर लाखों गरीब अपने घरों तक पहुंचने के लिए बिना खाना, बिना रुपयों के झुंडों में चल रहे हैं. बेगाने अमीरों के शहरों में वे मरना नहीं चाहते, अपनेअपने गांवों में मरना चाहते हैं.

ये वे हैं जो बड़ी उम्मीदों के साथ दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु या अन्य शहरों में आए थे. गांवों में घटते रोजगार के चलते वे शहरों की ओर पलायन करते हैं. गांवों की अपेक्षा शहरों में जाति का भेदभाव कम होने व पेट भरने के लायक कमाई हो जाने की तलाश में वे यहां पहुंचे थे. अब इन्हें लौटते देख कर 1947 के लौटते रिफ्यूजियों का दर्द भी फीका लग रहा है.

2-3 पोटलियों या एक बैकपैक में सारी कमाई लाद कर जाते युवा, उन की पत्नियां, बच्चियां, बच्चे खाली सड़कों पर पुलिस के डंडों के बावजूद चलते जा रहे थे. इस तरह के दृश्य तो क्रूर इसलामिक स्टेट सीरिया व कई अफ्रीकी देशों से भागते परिवारों के यूरोप में शरण मांगने के भी नहीं दिखे.

टीवी न्यूज चैनलों और मोबाइलों की वीडियो क्लिपों पर इन कमजोर बदन, काले पड़े चेहरों पर हताशा के भाव दिखाया जाना रामायण और महाभारत का मजा ले रहे भाजपाई सरकार के मंत्रियों पर भारी पड़ा है, लेकिन इतना नहीं कि केंद्र सरकार अपने तुगलकी फैसले पर पुनर्विचार कर सके.

ये गरीब लोग जिन मकानों के निर्माण के काम कर रहे थे, जिन कारखानों में काम कर रहे थे, जिन मंडियों या थोक बाजारों में उठाईधराई का काम कर रहे थे, उन की हालत पिछले कई महीनों से पतली हो रही थी. केंद्र के नोटबंदी और जीएसटी के फैसलों से प्रभावित सभी प्रतिष्ठानों ने इन गरीबों को दिए जाने वाले मेहनताने में कटौती कर दी थी. ऐसे में इन की बचत लगभग खत्म हो चुकी थी. वे बेसहारा थे. कंपनियां भी पहले से ही मुसीबत में थीं. बिक्री घट गई थी. गाडि़यां व मकान बिक नहीं रहे थे. हां, सरकार जरूर मौज में थी, अब भी है.

ऐसी हालत में इन गरीबों का शहरों को छोड़ कर जाना गलत नहीं है. उन्हें, शायद, मालूम है कि वे अपने गांवों में भी मरेंगे ही, शायद गांव वाले घुसने भी न दें. लेकिन शायद वे यह सोचते हैं कि बेरहम सरकार के साए तले जीने से अच्छा है अपनों के बीच मरना.

जो लाखों लोग अपने घरों की ओर चल रहे हैं, उन में से सैकड़ों मर जाएंगे, यह तय है. कोविड-19 इतनी जानें नहीं लेगा जितनी गरीबी, जातिभेद व अंधविश्वासों में लिपटी सरकार के फैसले, भूख, साधनों की कमी ले लेगी.

धार्मिक कट्टरों का मानना है कि इन की सेवा करना कोई पुण्य का काम नहीं है. ‘चलो चारधाम यात्रा पर चलो’, ‘अमरनाथ यात्रा पर चलो’, ‘चलो भंडारा लगाते हैं’ जैसे नारे लगाने वालों को इन गरीब मजदूरों को खानापानी देने से कुछ नहीं मिलेगा. ऐसे में इन बेचारों के लिए चलना ही बेहतर नहीं, तो और क्या है.

सोशल मीडिया के भगवा वीर

2014 और 2019 के आम चुनाव आमतौर पर भारतीय जनता पार्टी ने अपने सोशल मीडिया वीरों के मारफत जीते थे जिन्होंने घरघर विधर्मियों की ईंट से ईंट बजा देने का वादा किया था. यह बता देना आवश्यक है कि जो ट्रेनिंग इन सोशल मीडिया वीरों को दी गई है उस के हिसाब से जो तिलक न लगाए, 12 तरह के कलेवे न पहने, जनेऊ न धारण करे, भगवा दुपट्टा न ओढ़े, मंदिरों में चढ़ावा न चढ़ाए,  सुबहसुबह मोबाइल पर जय कृष्ण, जय राम का संदेश फौरवर्ड न करे वह विदेशी है, नितांत खालिस आतंकवादी है, भारत में घुसपैठिया है.

जब नागरिकता संशोधन कानून को ले कर पूरे देश में, इन सोशल मीडिया वीरों के अलावा, लोग सड़कों पर उतरने लगे तो ये लोग पुलिस और सेना की आड़ में छिप रहे थे. इन में वह दमखम गायब हो गया जो सड़कों पर निहत्थे, निर्दोष को पीटने पर तब दिखता था या किसी सभा को भंग करने में दिखता था. सारे देश में हो रहे नागरिकता संशोधन कानून व राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के खिलाफ जुलूसों में शामिल युवाओं में से ये गायब रहे क्योंकि ये वीर पीछे से उकसाने वाले हैं और उकसा कर होने वाली लड़ाई के दौरान लूटपाट के भागीदार हैं.

मीडिया वीरों की इस देश में कभी कमी नहीं रही है. हर आफत पर हमारे यहां बकवास करने वालों, भजन और आरतियां करने वालों की भीड़ उमड़ती रही है. बारिश नहीं होगी, तो कुआं खोदने वाले या नहर बनाने वाले

नहीं मिलेंगे, बल्कि लड़कियों को

नंगा कर के हल चलवाने वाले मिल जाएंगे. बाढ़ आएगी, तो तमाशा देखने वाले मिल जाएंगे, डूबते को बचाने वाले नहीं मिलेंगे.

सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का जो भी इतिहास मिलता है वह मुसलिम इतिहासकारों ने घटना के कई दशकों बाद लिखा था. पर उस में भी जिक्र उसी बात का है कि बजाय आक्रांताओं से लड़ने के, पंडे मंदिर में पूजापाठ में लग गए थे. हिंदू पंडितों ने इस घटना का आंखोंदेखा हाल तक लिखने की चेष्टा नहीं की.

नोटबंदी, जीएसटी, कश्मीर से जुड़ी संविधान की धारा 370, तीन तलाक, नागरिकता संशोधन कानून जैसे निरर्थक कदमों पर सोशल मीडिया वीरों ने बिना तर्क के खूब हल्ला मचाया था और अब फिर कोविड-19 के साथ जुड़ी घटनाओं को ले कर मचा रहे हैं. पर औरतों की आज भी बुरी स्थिति, बलात्कार के बाद पीडि़ता की मुसीबतों, कुंडली की मारी लड़कियों, व्रतउपवासों में फंसी पत्नियों, विधवाओं, तलाकशुदाओं, दहेज की मारियों की उन्हें या किसी को कोई चिंता नहीं.

इन सोशल मीडिया वीरों को बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ते भ्रष्टाचार पर कोई परेशानी नहीं. महंगी होती शिक्षा पर ये भगवा सोशल मीडिया वाले कुछ नहीं कहेंगे. लेकिन, ‘वर्ष 2050 में मुसलिम आबादी भारत में 14.5 प्रतिशत से बढ़ 54.5 प्रतिशत हो जाएगी’ जैसे झूठ के आंकड़े बड़े अधिकार से परोसेंगे. दरअसल, वे जानते हैं कि  झूठ फैलाने से पुलिस उन्हें नहीं पकड़ेगी क्योंकि झूठ भगवा सरकार के पक्ष में है.

एक खरी बात कोई भी सोशल मीडिया पर कह दे, उस पर दसियों जगहों से देशद्रोह का मुकदमा चलवा दिया जाएगा और पुलिस, जो सड़क पर पड़े पत्थरों को नहीं हटवा सकती, तुरंत बुलडोजर सी जीप ला कर पोस्ट करने वाले को गिरफ्तार कर लेगी. ये कमजोर भगवा सोशल मीडिया वीर असल में डरपोक, बकबकिए और अंधविश्वासी ही नहीं, उन्हें तो अपने कथन पर विश्वास भी नहीं क्योंकि उन के पास तर्क नहीं हैं. वे, दरअसल, अंधआस्था पर निर्भर रहते हैं.

धर्म की शिक्षा

धर्म की शिक्षा एक बात जरूर सिखाती है कि किसी को अपने खिलाफ बोलने न दो और जो भी आलोचना करे उस का मुंह बंद कर दो. इसलाम में आज भी यह हो रहा है. ईसाइयों में मध्ययुगों में यह बर्बरता से हुआ. भारत में यह अब फिर से जड़ पकड़ रहा है. इस का ताजा शिकार बने हैं अमेजन कंपनी के मालिक जेफ बेजौस जो भारत आए थे सरकार को पटाने के लिए कि वह किराना दुकानदारों के दबाव में आ कर ईकौमर्स कंपनियों पर नियंत्रण न करे. लेकिन, भारतीय मंत्रियों ने उन्हें घास नहीं डाली.

वजह यह नहीं थी कि भारतीय मंत्री सेठों के खिलाफ हैं. ये उन सेठों के खिलाफ हैं जो कुछ कड़वा सच बोल

दें. अमेजन आजकल अमेरिका की ‘वाश्ंिगटन पोस्ट’ न्यूज पेपर प्रकाशित करने वाली कंपनी की मालिक है.

अपनी परंपरा के अनुसार, वाश्ंिगटन पोस्ट भारत सरकार की गलत नीतियों पर खरीखोटी सुना रहा था. यह देश की भाजपा सरकार को मंजूर नहीं था. यहां जब वह रतन टाटा जैसों को दुरुस्त कर सकती है तो अमेजन उस के लिए क्या चीज है. संबंधित मंत्री ने साफसाफ कह दिया है कि अगर अमेजन भारत में एक अरब डौलर का निवेश कर रही है तो एहसान नहीं कर रही है क्योंकि यह उस नुकसान की भरपाई ही है जो उस की भारतीय कंपनी कर रही है. भारत को इस से लाभ नहीं.

वाश्ंिगटन पोस्ट अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भी ऐसीतैसी करता रहता है. एक जमाने में इसी अखबार ने पैंटागन पेपर प्रकाशित किए थे जिस से निक्सन सरकार की बहुत छीछालेदर हुई थी.

भारत सरकार ने जेफ बेजौस को कोई छूट न देने का मन बना लिया है चाहे अमेजन कंपनी यहां रहे या न रहे. यह ऐसा ही है जैसा हमारे यहां सदियों से होता रहा है कि धर्म, राजा, पंडित या रीतिरिवाजों की पोल खोलने वालों की सुनी नहीं जाती थी. आलोचकों का मुंह बंद करा दिया जाता था. धर्म, दरअसल, बहुत कमजोर नींव पर टिके हैं, लेकिन उन के महल विशाल हैं. नींव पर हर प्रहार को धर्म अपने अस्तित्व का खतरा मानते हैं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन के लिए सब से बड़ा खतरा है. इस में शक नहीं कि अमेरिकी कंपनी अमेजन औनलाइन मार्केटिंग की दुनिया में सब से ज्यादा प्रतिष्ठित हैं. वहीं, यह कंपनी साहसी भी है. इस की मीडिया इकाई सरकारों के गलत कदमों की तीखी आलोचना करने को चूकती नहीं.

हां, अमेजन और फ्लिपकार्ट कंपनियां ईकौमर्स के जरिए देश का कोई भला नहीं कर रहीं क्योंकि वे कुछ देश निर्माण नहीं कर रहीं. वे सिर्फ दूसरे निर्माताओं का सामान इंटरनैट टैक्नोलौजी की मारफत घरघर पहुंचा रही हैं, जो काम हमारी किराने की दुकानें पहले ही कर रही थीं. उन्हें आने ही न देना या जब घर आ गई हैं तो उन के द्वारा अपनी आलोचना किए जाने के कारण उन्हें दुत्कारने में कोई आश्चर्य तो नहीं, पर यह कृत्य सरकारी व्यवहार का सत्य दर्शन कराता है.

Hyundai #WhyWeLoveTheVenue: Headlights

हुंडई वेन्यू के सबसे आकर्षक डिजाइन एलीमेंट्स में से एक है इस का ट्विन हेडलाइट डिजाइन, जहां मेन हेडलैम्प्स को टर्न इंडिकेटर्स के नीचे बखूबी जगह दी गई है. क्यूब के आकार की इस हेडलाइट के बाहरी रिम में लगे अनोखे डे टाइम रनिंग लाइट्स (डीआरएल) न सिर्फ हुंडई वेन्यू की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं, बल्कि दूर से ही पहचान में भी आ जाते हैं.

ये  भी पढ़ें- Hyundai #WhyWeLoveTheVenue: Climate Control

आमूमन अंधेरी और कम रोशनी वाली सड़कों पर गाड़ी चलाना एक अच्छा अनुभव नहीं होता. आपको यह पता ही नहीं चलता कि कब कहीं एक गड्ढा आ कर आपके ड्राइव का मज़ा किरकिरा कर दे. मगर हुंडई वेन्यू के साथ आपको इन चीजों की फिक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है. हुंडई वेन्यू के हेडलैम्प यूनिट में मौजूद प्रोजेक्टर लो-बीम और हैलोजन हाई-बीम की जुगलबंदी आपको बेहतरीन थ्रो (रोशनी को दूर तक भेजना) और लाइट स्प्रेड (रोशनी को अच्छी तरह फैलाना) देते हैं, जिस से अंधेरी और कम रोशनी वाली सड़कों पर भी इसे ड्राइव करना एक मज़ेदार एक्सपिरियन्स बन जाता है.

हुंडई वेन्यू हमें ड्राइविंग का जो कॉन्फ़िडेंस देता है, इसलिए #WhyWeLoveTheVenue

सकते में 16 करोड़ अनुयायी: क्या वाकई बलात्कारी हैं डॉ प्रणव पंडया?

शुक्रवार 8 मई को सोशल मीडिया खासतौर से व्हाट्स एप पर एक पोस्ट तेजी से वायरल हुई थी जिसका शीर्षक था मीडिया सावधान , छद्मवेशी कर सकते हैं गुमराह . इस पोस्ट की शुरुआत में कहा गया था कि पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति का पताका फहराने बाला भारत का एकमात्र संगठन अखिल विश्व गायत्री परिवार के खिलाफ लंबे समय से तमाम साजिशें रची जाती रहीं हैं मगर दैवी शक्तियों के संरक्षण के चलते उनका भंडाफोड़ होता रहा है .

गायत्री परिवार के खिलाफ किसी अज्ञात साजिश की तरफ इशारा करती यह पोस्ट दिल्ली के एक पत्रकार ज्ञानेन्द्र सिंह के नाम से जारी हुई थी जिसमें इस पत्रकार ने राष्ट्रीय मीडिया को इस बात के लिए धन्यवाद भी दिया था कि उसने गायत्री परिवार के खिलाफ रची गई साजिश पर तबज्जुह नहीं दी . साथ ही मशवरा भी दिया था कि गायत्री परिवार के बारे में कुछ भी लिखने पढ़ने से पहले उसके वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से बातचीत कर लें . पोस्ट के बीच में गायत्री परिवार के मुखिया डाक्टर प्रणव पंडया का भी जिक्र था कि उन्होने कहा है कि वे किसी भी जांच के लिए तैयार हैं .

ये भी पढ़ें- राजनीति की शिकार, सफूरा जरगार

इस पोस्ट ने लोगों को हल्का सा चौंकाया था क्योंकि इसमें एक सस्पेंस भी मामले को लेकर था कि आखिर किस साजिश की बात की जा रही है जिससे भारतीय संस्कृति एकाएक ही एक ऐसे  खतरे में पड़ गई है जिससे हर बार की तरह कोई दैवी शक्ति गायत्री परिवार और उसके पवित्र अभियानों की रक्षा नहीं कर पा रही इसलिए सोशल मीडिया को हथियार या जरिया बनाया जा रहा है . आम लोगों ने अंदाजा यही लगाया कि संस्कृति और धर्म के दुश्मनों ने जरूर कोई अफवाह गायत्री परिवार को निशाने पर लेते फैलाई होगी मुमकिन है वह यह हो कि हरिद्वार स्थित मुख्यालय शांति कुंज में कोरोना का संक्रमण फैल गया है  .

गायत्री परिवार से जुड़े लोगों को इस बात पर शक था क्योंकि संस्थान के मुखिया डाक्टर प्रणव पंडया के निर्देश पर शांति कुंज हरिद्वार में कोरोना से लड़ने प्रतिदिन एक ऐसा स्पेशल हवन हो रहा है जिससे कोरोना वहाँ पर भी नहीं मार सकता . देश भर में फैले गायत्री परिवार के सदस्य भी कोरोना से बचाव के लिए अपने अपने  घरों में कैद रहते यज्ञ कर रहे हैं और दूसरों से भी अपील कर रहे थे कि कोरोना से बचना है तो यज्ञ करो . माजरा जानने समझने इन लोगों ने न्यूज़ चेनल्स रिमोट के बटन दबाते बदल बदल कर देखे लेकिन उनके पर्दों पर गायत्री परिवार से ताल्लुक रखती कोई खबर नहीं थी . यानि कोई गंभीर बात नहीं थी .

लेकिन बात बलात्कार की थी – लेकिन अंदाजे के उलट बात जरूरत से ज्यादा विस्फोटक और गंभीर थी जिसका अंदरूनी तौर पर खुलासा होना शुरू हुआ तो गायत्री परिवार से जुड़े 16 करोड़ लोग सन्न रह गए कि उनके आदर्श और मौजूदा गुरु 70 वर्षीय डाक्टर प्रणव पंडया पर बलात्कार का घटिया और घिनोना आरोप लगा है और दिल्ली के विवेक विहार थाने में इसकी बाकायदा एफआईआर भी दर्ज हो चुकी है . राष्ट्रीय मीडिया इस सनसनीखेज वारदात पर खामोश था और है तो  इसकी कई वजहें हैं लेकिन ज्यादा देर तक चुप रह पाएगा ऐसा कहने की कोई वजह नहीं .

ये भी पढ़ें- वर्णव्यवस्था का शिकार हुआ मजदूर

यह रिपोर्ट छतीसगढ़ की एक नाबालिग लड़की ने लिखबाई थी जिसे उसकी जुबानी समझें तो कहानी कुछ इस तरह आकार लेती है –

यह लड़की यानि पीड़िता छतीसगढ़ की राजधानी रायपुर के नजदीक एक गाँव की रहने बाली है . वह साल 2010 में मनीराम साहू नाम के एक परिचित के साथ उसके कहने पर शांति कुंज हरिद्वार उसके ही साथ आई थी . मनीराम गायत्री परिवार मिशन का सक्रिय कार्यकर्ता है . पीड़िता के मुताबिक 19 मार्च 2010 को वह शांतिकुंज हरिद्वार पहुंची थी तब उसकी उम्र महज 14 साल थी . मनीराम ने उसे भरोसा दिलाया था कि वहाँ रहते उसकी पढ़ाई लिखाई भी होती रहेगी और शादी भी हो जाएगी .

शांतिकुंज आकर पीड़िता को जप साधना बगैरह सिखाये जाने लगे और रसोई की काम में लगा दिया गया जिसे 50 लड़कियों का ग्रुप संभालता या संचालित करता था . यहाँ उसकी मुलाक़ात शैल जीजी से हुई जो प्रणव पंडया की पत्नी हैं इनका नाम शैलबाला शर्मा है और ये गायत्री परिवार के संस्थापक श्रीराम शर्मा आचार्य के इकलौती बेटी हैं . कुछ दिन बाद शैल जीजी ने उसे 10 लड़कियों के स्पेशल ग्रुप में शामिल कर लिया जिसका काम पंडया या शर्मा परिवार कुछ भी कह लें के परिवार की सेवा खुशामद करना था . ये दसों लड़कियां शैल जीजी और डाक्टर प्रणव पंडया के चाय नाश्ते , दोनों वक्त के खाने और दवाइयाँ बगैरह देने के काम करती थीं लेकिन इनका एक एक अहम काम शैल जीजी की मालिश करना भी होता था .

सहज समझा जा सकता है कि आश्रमों में धर्म गुरुओं और उनके परिवार के ठाट किसी राजा महाराजा से कम नहीं होते और देश के दूरदराज़ से आई गरीब परिवारों की  लड़कियां गुलामों की तरह इनकी चाकरी मुफ्त के भाव करते खुद को धन्य और खुशकिस्मत समझती हैं कि उन्हें गुरु सेवा का पुण्य अवसर मिल रहा है . बदले में इन्हें रहना और खाना पीना मिलता है वह भी  मजबूरी में इसलिए दिया जाता है जिससे कि ये यहाँ टिकी रहें . जैसे बड़े बंगलों में सरवेंट्स क्वाटर्स रहते हैं वैसे ही आश्रमों में छोटे छोटे दड़बो में पीड़िता जैसे नौकरों को सोने जगह दे दी जाती है और इन्हें साधक के खिताब से नवाज दिया जाता है .

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन टिट बिट्स- 7

पीड़िता के मुताबिक हर दिन 10 लड़कियों के इस ग्रुप में से किसी एक की ड्यूटी दोपहर डेढ़ बजे  डाक्टर साहब यानि प्रणव पंडया को उनके कमरे में काफी पहुंचाने की रहती है जो शैल जीजी के कमरे के ऊपर है. पीड़िता की माने तो उसका पहली बार बलात्कार साल 2010 के बारिश के दिनों में ही हुआ था जिसकी ठीक ठाक तारीख उसे याद नहीं . एक दिन शैल जीजी के आदेश पर वह काफी लेकर डेढ़ बजे काफी लेकर डाक्टर साहब के कमरे में पहुंची तो उन्होने उसे काफी टेबल पर रखने को कहा . पीड़िता अभी काफी टेबल पर रख ही रही थी कि प्रणव पंडया ने कमरे का दरबाजा बंद कर दिया और उसका हाथ खींचकर उसे बिस्तर पर बैठाल दिया .

प्रणव पंडया ने जबरन उसकी साड़ी उठाकर उसका बलात्कार किया . पीड़िता ने विरोध करते उन्हें लात मारी लेकिन वह जबरजसती करते गए . पीड़िता के यह कहने पर कि आप ठीक नहीं कर रहे हो प्रणव पंडया ने उससे कहा कि बस 5 मिनिट में छोड़ दूंगा . सात आठ दिन बाद फिर बलात्कार का दौहराब हुआ .  पीड़िता जब काफी लेकर उनके कमरे में पहुंची तो प्रणव ने फिर उसका बलात्कार किया . इस बार पीड़िता ने हिम्मत जुटाते जीजी यानि शैलबाला को बात बताई  तो उन्होने जबाब दिया कि मुंह बंद रखो किसी को बोलोगी तो तुम ही बदनाम हो जाओगी .

एक नियमित अंतराल से बलात्कार होने पर पीड़िता की तबीयत खराब रहने लगी और ब्लीडिंग भी ज्यादा होने लगी जो 10 दिन लगातार चलती थी , कुछ दिन रुकती थी और फिर शुरू हो जाती थी . यह परेशानी हर कभी होने लगी इसके बाद भी जीजी उसे डाक्टर साहब के कमरे में जाने को मजबूर करती थीं और मना करने पर भद्दी भद्दी गलियाँ देती थीं जिनसे पीड़िता डर और और भी सहम जाती थी क्योंकि जीजी उसे बदनाम करने की घरबालों को फंसा देने की और जान से मरबा देने की भी धमकी देती थीं . इस तरह यह आए दिन की बात हो गई .

ये भी पढ़ें- सरकारों का गरीब विरोधी चरित्र और प्रवासी मजदूर

शांतिकुंज के अस्पताल में पीड़िता की कुछ दिन दवाइयाँ चलीं लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ ब्लीडिंग बार बार होती रही उसकी यह हालत 2014 तक रही . जब उसकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई तो उसके घर बालों को बुला लिया गया और उसे चुप रहने की धमकी देते शैलबाला ने कहा जाओ घर जाकर आराम करो और किसी से कुछ कहा तो बदनाम कर देंगे तुम्हारी बात कोई नहीं सुनेगा , मेरी बात सब मानेंगे इसलिए अपना मुंह बंद रखना . नबम्बर 2014 में पीड़िता को घर भेज दिया गया . इसके बाद भी शांतिकुंज से उसके पास फोन आते रहे उसे फिर शांतिकुंज आने कहा जाने लगा और न जाने पर उसे बदनाम किया जाने लगा.

साल 2018 तक पीड़िता कुछ स्वस्थ हुई तो उसने अपने साथ हुई ज्यादती की रिपोर्ट दर्ज कराने की कोशिश की इसकी भनक प्रणव पंडया को लगी तो उन्होने फोन कर धमकी दी कि तुम कुछ नहीं कर पाओगी . बक़ौल पीड़िता आज जब वह निर्भया के दोषियों को सजा होते देखती है तो उसे फिर से हौसला मिला है और कानून पर उसका भरोसा बढ़ा है .

लाक डाउन के चलते पीड़िता अभी दिल्ली के विवेक विहार के एक मकान में अपने एक साथी के साथ 22 मार्च से फसी है . ऊपर बताई गई बातें उसने अपने साथी से लिखबाकर सीजेआई एनएमएल पीएमओ , एनसीडबलू को ऑन लाइन ईमेल करबाइं जिसके जबाब की प्रतियाँ और लाक डाउन के तहत काररवाई हेतु वहाँ से आदेश पत्र की प्रति भी उसके पास है . पीड़िता की शिकायत पर दिल्ली के विवेक विहार थाने में डाक्टर प्रणव पंडया और उनकी पत्नी शैलबाला पर धारा 376 , 506 और आईपीसी की धारा 34 के तहत मामला दर्ज कर उसे हरिद्वार कोतबाली भेज दिया गया है जिस पर आजकल में ही काररवाई शुरू होने की उम्मीद है . क्योंकि आरोप गंभीर हैं और दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक संगठन और उसके संचालकों से ताल्लुक रखते हुये हैं .

ये भी पढ़ें- कोरोना :सोनिया वर्सेस नरेंद्र मोदी  

रसूख और सच

इस लड़की की बातों में कितनी सच्चाई और कितना झूठ , फरेब है इसकी चीरफाड़ करने से पहले एक नजर प्रणव पंडयाके रसूख पर डाली जानी जरूरी है जो उन्हें गैरमामूली करार देती है. अव्वल तो इतना कहा जाना ही काफी है कि वे गायत्री परिवार के संस्थापक श्रीराम शर्मा आचार्य के दामाद हैं और उनके पिता सत्यनारायन पंडया  भी जज थे . श्रीराम शर्मा ने अपने दम पर अरबों का साम्राज्य खड़ा किया था और करोड़ों भक्त भी बनाए . पंडावाद से त्रस्त लोगों के लिए वे एक नया फ्लेवर थे जो धर्म को आध्यात्म दर्शन और विज्ञान से जोड़ते उसकी अलग नई व्याख्या करते थे लेकिन हकीकत में वे भी दूसरे धर्मगुरुओं की तरह सनातन धर्म के प्रचारक ही थे फर्क इतना भर था कि उन्होने गैरब्राह्मणो को भी पूजा पाठ और कर्मकांडों का अधिकार दे दिया था .

साल 1972 में इंदोर के एमजीएम मेडिकल कालेज से एमबीबीएस और 1975 में गोल्ड मेडल के साथ एमडी करने बाले प्रणव पंडया बिलाशक एक प्रतिभाशाली युवा और होनहार डाक्टर थे जिनहोने कुछ साल हरिद्वार के भेल में नौकरी की और इसी दौरान वे गायत्री परिवार से जुड़ गए . जल्द ही इस महत्वाकांक्षी युवा ने अपने साम्राज्य को विस्तार दे रहे और भगवान की तरह पुजने बाले श्रीराम शर्मा के दिल और संस्थान के साथ परिवार में भी अपनी जगह बना ली . शैलबाला श्रीराम शर्मा की इकलौती संतान थीं जिनकी शादी प्रणव से हो गई .  इस तरह वे घर जमाई बनकर अपने परिवार सहित हरिद्वार में स्थायी रूप से बस गए और चर्चाओं के मुताबिक 1990 में ससुर की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी भी बने .

प्रणव ने सफलतापूर्वक गायत्री परिवार का कामकाज संभाल लिया और श्रीराम शर्मा की जगह ले ली . साल 2016 में उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से नज़दीकियाँ उजागर हुईं जब उन्हें राज्यसभा में लेने पेशकश हुई जिसे समझदारी दिखाते प्रणव ने न कह दिया लेकिन अब तक उनके 16 करोड़ अनुयायी भाजपा की तरफ झुक गए थे . 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रणव ने एक बार चतुराई दिखाते भाजपा का खुलेआम प्रचार तो नहीं किया लेकिन अपने भक्तों को एक वक्तव्य के जरिये यह मेसेज जरूर दे दिया कि उन्हें भाजपा को वोट करना है तब उन्होने कहा था कि नरेंद्र मोदी को पीएम बनने एक और मौका मिलना चाहिए.

मोदी को मौका मिला और प्रणव की गिनती मोदी शाह के नज़दीकियों में होने लगी . एक बार अमित शाह शांतिकुंज पहुंचे तो उनका लाल कालीन बिछाकर स्वागत किया गया . इसी दौरान मीडिया के पूछे जाने पर उन्होने एक विवादस्पद वक्तव्य यह दे डाला था कि अगर राहुल गांधी कभी शांति कुंज आए तो इतने जोरदार तरीके से उनका स्वागत करना तो दूर की बात है बल्कि उन्हें आम भक्तों की तरह लाइन में लगना पड़ेगा . ऐसा क्यों यह सवाल किए जाने पर प्रणव ने बेहद तल्ख लहजे में कहा था , क्योंकि मैं उनकी शक्ल से भी नफरत करता हूँ .

ऐसे कई छोटे बड़े विवाद उनके साथ जुडते रहे लेकिन तूल नहीं पकड़ पाये क्योंकि अब प्रणव पंडया भी मीडिया के एक बड़े वर्ग की तरह सरकार के भोंपू बन चुके थे और लगातार एक नियमित अंतराल से पूजा पाठ बड़े पैमाने पर कराने लगे थे . मोदी को दिये जलाने का आइडिया गायत्री परिवार से ही मिला था . प्रणव ने कोरोना से बचने बचाने यज्ञ का देशव्यापी अभियान भी छेड़ रखा है जिसका मकसद पूजा पाठ के कारोबार को बनाए रखना ही है . देश भर में गायत्री परिवार से जुड़े लोग रोज घरों में यज्ञ हवन कर रहे हैं लेकिन कोरोना है कि भाग नहीं रहा .

ये भी पढ़ें- एयर सैल्यूट- डेपुटेशन वाले भगवानों को

पीड़िता का सच

7 अप्रैल को दिल्ली में रह रही पीड़िता ने हिम्मत जुटाते अपने साथ हुये बलात्कार की शिकायत मेल के जरिये सभी प्रमुख एजेंसियों से की तो उम्मीद के मुताबिक प्रणव पंडया और शांति कुंज ने इसका खंडन करते इसे गायत्री परिवार और उसके अभियानों के खिलाफ साजिश बताया लेकिन तब तक एफआईआर दर्ज हो चुकी थी .

मीडिया ने इस पर खास ध्यान नहीं दिया तो इसकी वजह प्रणव पंडया का रसूख और सरकार से नज़दीकियाँ ही है लेकिन अब और ज्यादा इस कुकृत्य पर पर्दा डाला जा सकेगा ऐसा लग नहीं रहा . बक़ौल प्रणव यह साजिश है जिसे शांति कुंज में बैठा एक शख्स ही अंजाम दे रहा है जिसे वे 17 मई को लाक डाउन खत्म होने के बाद शांति कुंज से बाहर का रास्ता दिखा देंगे .

यह शख्स कौन है उसका नाम वे नहीं बता रहे और न ही यह कि अगर यह साजिश है तो इसकी वजह क्या है . एक बयान में प्रणव ने यह आरोप भी लगाया है कि यह शख्स उन्हें अपनी पत्नी के जरिये भी ब्लेकमेल करता रहा है . अगर ऐसा था तो उन्होने वक्त रहते काररवाई क्यों नहीं की और क्यों ब्लेकमेल होते रहे यह भी वे नहीं बता पा रहे .

यानि दाल में कुछ काला है और उनके 16 करोड़ अनुयायी सकते में हैं . बात पीड़िता की करें तो उसकी शिकायत में दम है और वह बेवजह सीबीआई जांच की मांग नहीं कर रही है . गायत्री परिवार के लोग भी इसे साजिश मानकर ही अपना मन बहला रहे हैं जबकि साफ दिख रहा है कि 70 वर्षीय प्रणव पंडया जल्द ही कानून की गिरफ्त में होंगे और यह साबित करना उन्हें मुश्किल हो जाएगा कि वे बलात्कारी नहीं हैं .

शांतिकुंज से पीड़िता से कब कितनी बार फोन पर बात हुई और मनीराम साहू का रोल इसमें क्या है जैसी कई बातें अहम हैं . आशाराम बापू और राम रहीम जैसे आधा दर्जन धर्म गुरुओं पर जब बलात्कार के आरोप लगे थे तब भी उन्हें साजिश करार देते हुये ब्लेकमेलिंग ही माना गया था लेकिन सच सामने आने में देर नहीं लगी थी . यह और बात है कि इन धर्म गुरुओ के कुछ कट्टर भक्त आज भी यह मानने तैयार नहीं होते कि उनके गुरु जी ने बलात्कार जैसा घिनोना कृत्य किया होगा इसे भी वे कोई दैवीय लीला मानते हैं तो उनकी मानसिकता पर तरस ही खाया जा सकता है .

अब लाख टके का सवाल यह कि प्रणव पंडया बलात्कारी क्यों नहीं हो सकते जबकि नामी आश्रमों से आए दिन लड़कियों के यौन शोषण की करतूतें उजागर होती रहती हैं . 16 करोड़ लोगों की भावनाएं और आस्था बचाव की कानूनी वजह नहीं हो सकतीं जो अपने गुरु जी को लेकर संशय में फंस गए हैं . प्रणव पंडया निर्दोष साबित हों और उन्हें जेल व हवालात न जाना पड़े इस बाबत भी गायत्री परिवार के लोग घरों में प्रार्थनाए और यज्ञ हवन कर रहे हैं जबकि मामला अब ऊपर बाले की अदालत में नहीं बल्कि नीचे की अदालत में चलना है . हरिद्वार पुलिस एक्शन में आ गई है और जल्द ही और नई नई बातें भी सामने आएंगी.

संक्रमण के चपेट मे विश्व के 38 लाख से अधिक लोग

कोरोना संक्रमण से अभी तक विश्व के 212 देश प्रभावित हो चुके है . इन 212 देशों में कई ऐसे देश हैं, जहां संक्रमण तेजी से फैल रहा है और कई ऐसे देश हैं जहां संक्रमण का तांडव मौत के रूप में बरस रहा है.  आइये 12 बिंदु में समझते है कोरोना वायरस ने कितनी तबाही कहा मचाई है और विश्व के किन-किन  प्रमुख्य देशों में कोरोना संक्रमण ने कितना कोहराम मचाया हैं .

  1. 38 लाख से अधिक लोग संक्रमित : – गुरुवार के सुबह तक पूरे दुनिया में 38 लाख 20 हजार से अधिक संक्रमित हो चुके हैं . जिसमें 265000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. राहत की बात यह है कि इसमें से 13 लाख से अधिक लोग संक्रमण से मुक्त हो चुके हैं.
  2. अमेरिका सबसे अधिक संक्रमित :- 12 लाख 63 हजार से अधिक लोग केवल अमेरिका में संक्रमित हैं. यहां 74000 से अधिक लोगों की मौत इस संक्रमण से हो चुका है.
  3. तीन देश में 6 लाख से अधिक संक्रमित व्यक्ति :- यूरोप के तीन देश स्पेन इटली और ब्रिटेन (युके) में संक्रमित मरीजों की संख्या दो लाख से अधिक पहुंच चुकी है . स्पेन में 2 लाख 53 हजार से अधिक संक्रमित हैं। इनमें 25 हजार 8 सौ से अधिक लोग का मौत हो चुका है. इटली में संक्रमित मरीजों की संख्या 2 लाख 14 हजार से अधिक  पहुंच चुकी है,  जबकि यहां मरने वालों की संख्या यूरोप में दूसरे नंबर पर है. यहां अभी तक 29 हजार 600 लोग इसके चपेट में आकर मारे जा चुके हैं . ब्रिटेन में संक्रमण तेजी से फैल रहा है इसके चपेट में 2 लाख 1 हजार से अधिक लोग आ चुके हैं . यहां मरने वालों की संख्या यूरोप में सबसे अधिक है.  30000 से अधिक लोग  मौत हो चुका है .
  4. जर्मनी और रूस :- अलग अलग विचारधारा के दो देश संक्रमित मरीजों की संख्या के दृष्टि के कारण आस पास नजर आ रहे है. दोनों देशों में 1 लाख 65 हजार से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं. जर्मनी में मौत का आंकड़ा 7200 से अधिक है, जबकि रूस में मौत का आंकड़ा अभी 15 सौ से अधिक पहुंच चुका है.
  5. तुर्की और ब्राजील:- यह दो अलग-अलग महाद्वीपों के देश है । जो संक्रमण के नजरिए से एक साथ नजर आ रहे है. टर्की में 1 लाख 31 हजार से अधिक संक्रमित मरीजों की संख्या है.  वहीं ब्राजील में 1 लाख 26 हजार 6 सौ से अधिक संक्रमित मरीजों की संख्या है.  मौत के नजरिए से देखें तो तुर्की से आगे ब्राजील है.  यहां मरने वालों की संख्या 85 सौ से अधिक है , जबकि तुर्की में 35 सौ से अधिक लोगों का मौत हुआ है .
  6. चीन में 4600 से अधिक मौत :- चीन जो इस महामारी का जन्मस्थान है. वहां आजकल यह महामारी सीमित रूप में है. बहुत दिनों से यहां संक्रमित मरीजों की संख्या 82 हजार के आस पास ही है. अभी तक यहां 46 सौ से अधिक मौत की पुष्टि हुई है.
  7. कनाडा में तेजी से बढ़ रहा है मौत का आंकड़ा :- कनाडा 63 हजार से अधिक संक्रमित मरीजों है . यहां पर 42 सौ से अधिक लोगों का मौत संक्रमण के कारण हो चुका है .
  8. पेरू और भारत :- संक्रमण के नजरिए से यह दोनों देश बिल्कुल आस पास है. पेरू में कोरोना वायरस मरीजों की संख्या 54 हजार 8 सौ  से अधिक दर्ज किया गया है.  वहीं भारत में अब तक 53 हजार 1 सौ से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं.  मौत के नजरिए से देखा जाए तो अपना देश भारत पेरू से कहीं आगे है. भारत में 17 सौ से अधिक मौत हो चुका है. वही पैरों में मौत की संख्या 1500 से अधिक है.
  9. बेल्जियम और नीदरलैंड :-   दो अलग-अलग प्रतीकों के देश हैं लेकिन संक्रमण के फैलाव के दृष्टि से यह दोनों देश आसपास आ गए हैं बेल्जियम में 50 हजार 7 सौ से अधिक संक्रमित मरीजों की संख्या पहुंच गई है यहां मरने वालों की संख्या और अधिक बढ़ते जा रही है 83 सौ से अधिक लोगों का मौत अभी तक हो चुका है वहीं नीदरलैंड में 41300 से अधिक संक्रमित मरीजों की संख्या पहुंच गई है 52 सौ से अधिक लोगों का मौत संक्रमण से हो चुका है .
  10. सऊदी अरब और स्विट्जरलैंड :- दोनों अलग-अलग महाद्वीप के अलग अलग देश है. यह देश कोरोना  संक्रमण के कारण आस पास आ चुके हैं. सऊदी अरब में 31 हजार  से अधिक लोग कोरोना से संक्रमित है, लेकिन यहां मौत का आंकड़ा अभी तक बहुत ही कम है।  2 सौ से अधिक लोगों की मौत की पुष्टि हुई है. वही स्विटजरलैंड की बात करें तो वहां संक्रमित मरीजों की संख्या 30 हजार  से अधिक पहुंच चुकी है और मौत की संख्या 18 सौ से अधिक पहुंच चुका है.
  11. इक्वाडोर और मैंक्सिको :- इक्वाडोर और मैंक्सिको में संक्रमित मरीजों की संख्या क्रमशः 29 हजार से अधिक और 27 हजार से अधिक पहुंच चुका है। यहां मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है . इक्वाडोर में 16 सौ से अधिक लोगों की मौत हो गई है , वही मैंक्सिको में 27 सौ से अधिक लोग संक्रमण से मारे गए है .
  12. पाकिस्तान और पुर्तगाल :- 26 हजार संक्रमित मरीजों की संख्या पुर्तगाल मैं है. वहीं पाकिस्तान में संक्रमितों की संख्या 24 हजार से अधिक पहुंच चुका है. पुर्तगाल में मरने वालों की संख्या 1 हजार से अधिक है, तो पाकिस्तान में मरने वालों की संख्या 5 सौ से अधिक पहुंच चुका है.

लॉकडाउन के बीच शाहरुख खान ने शेयर किया ‘बेताल’ का धमाकेदार ट्रेलर, देखें VIDEO

कोरोना महामारी के बीच लगाये गए Lockdown के चलते बॉलीवुड को कई फिल्मों की रिलीजिंग फंस जाने से करोड़ों रूपये का नुकसान हो चुका है. ऐसे में इस नुकसान से उबरनें के लिए फिल्म इंडस्ट्री सिनेमाहालों में रिलीज को तैयार फिल्मों को अब ऑनलाइन OTT प्लेटफार्म पर पर रिलीज करने में लगीं हैं. सलमानखान की बहुप्रतीक्षित फिल्म राधे को OTT प्लेटफार्म पर रिलीज किया जा चुका है. जिसके लिए ढाई सौ करोड़ में सौदा तय किया गया है. अक्षय कुमार की हॉरर-कॉमिडी ‘लक्ष्मी बम’ भी जून में ओटीटी पर रिलीज किये जाने के लिए  तैयार है.

इसी कड़ी में शाहरुख खान  के कंपनी रेड चिलीज के बैनर तले बनी फिल्म हॉरर-थ्रिलर सीरीज ‘बेताल’ को भी नेटफ्लिक्स इंडिया पर रिलीज किये जाने की तैयारी पूरी कर ली गई है. शाहरुख खान ने इस फिल्म के ऑफिशल ट्रेलर को शेयर कर इसकी जानकारी दी है. उन्होंने अपने कंपनी Red Chillies Entertainment ट्विटर एकाउंट के जरिये यह जानकारी दी है की इस फिल्म को 24 मई को रिलीज किया जायेगा. शाहरुख खान  नें अपने कम्पनी के ट्विट को शेयर करते हुए लिखा है आप राक्षसों से युद्ध करने के लिए कितनी दूर जाएंगे? हमारी दूसरी वेब सीरीज़, बेताल , एक हॉरर-थ्रिलर, 24 मई को रिलीज़ होगी,

फिल्म में मुक्काबाज़ और बार्ड ऑफ़ ब्लड के एक्टर विनीत कुमार सिंह, सेक्रेड गेम्स  के एक्टर जितेंद्र जोशी, लिपस्टिक अंडर माय बुरका के अहाना कुमरा (Aahana Kumr) और दिल चाहता है. में काम कर चुकी  सुचित्रा पिल्लई  नें मुख्य भूमिका निभाई है. पैट्रिक ग्राहम  और निखिल महाजन   नें इस फिल्म को लिखा और निर्देशित किया है.

ये भी पढ़ें-5 years of Piku: दीपिका ने इरफान खान को यूं किया याद, लिखा इमोशनल पोस्ट

इस वेब सीरीज में ‘मुक्केबाज’  फिल्म के एक्टर विनीत कुमार सिंह नें लीड रोल किया है. वह इस इस सीरीज में एक आर्मी जवान के तौर अजीबो-गरीब चीजों से सामना करते हुए दिखाई पड़ेंगे.
‘बेताल’ (Betaal )  का ट्रेलर बहुत रोमांच पैदा करनें वाला है. इस सीरीज में विनीत कुमार सिंह एक इंडियन आर्मी के जवान के रूप में एक गांव में तबाही मचाने वाले ब्रिटिश इंडियन आर्मी ऑफिसर बेताल और उसकी रेडकोट जॉम्बीज की बटालियन से पंगा लेते हुए दिखाई पड़ रहें हैं. जहां उनका सामना बेहद डरा देने वाले चीजों से होता है.

राजनीति की शिकार, सफूरा जरगार

आजकल कोई भी युवती अगर अपनी राय रखे , और वह सरकार को पसंद न आये तो उसके साथ वही होता है जो सफूरा जरगार  के साथ  हो रहा है .

जामिआ इस्लामिया की स्टूडेंट सफूरा जरगार  को गैरकानूनी गतिविधि रोकने के कानून के अनुसार १० अप्रैल को गिरफ्तार किया गया और गैर जमानती धाराओं में उन पर केस दर्ज कर दिया गया .जरगार को १३ अप्रैल को अरेस्ट किया गया था , पुलिस का कहना है कि वह उन लोगों में से थी जो सी ए ए का विरोध कर रहे थे और जिन्होंने २२ -२३ फरवरी को दिल्ली में जफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे रोड ब्लॉक की थी .

वे सत्ताईस साल की एम फिल स्टूडेंट हैं .सफूरा जामिआ कोऑर्डिनेशन कमिटी की मीडिया कोऑर्डिनेटर हैं .उन पर  १८ क्रिमनल एक्टिविटीज के आरोप लगाया  गए हैं . गिरफ्तारी के समय सफूरा प्रेग्नेंट थी , प्रेगनेंसी की खबर आने के बाद पोंगापथी सोशल मीडिया पर बिना सच्चाई जाने उनके विवाहित होने पर सवाल उठाये जाने लगे और भद्दी टिप्पणियां की जाने लगी . पोंगापंथी सोशल मीडिया पर हमेशा ही महिलाओं को बुरी तरह से निशाना बनाया जाता है , उन पर सेक्सिस्ट और अश्लील कमैंट्स किये जाते हैं. यह उत्पीड़न और बढ़ जाता है अगर महिला अल्पसंख्यक समुदाय की हो .

सफूरा की पर्सनल लाइफ का उनके केस से कोई सम्बन्ध नहीं है , फिर भी उन्हें खूब  निशाना बनाया जा रहा है और उनका अपमान किया जा रहा है .

पहले भी  ऐसा होता रहा है , सोशल मीडिया पर महिलाओं को जिनमे सामाजिक कार्यकर्त्ता , लेखिका , पत्रकार , स्टूडेंट लीडर शामिल होती हैं , आवाज उठाने पर हमेशा शर्मनाक कमैंट्स का सामना करना ही पड़ा है . किसी पर भी पर्सनल अटैक करना आजकल सबसे आसान है .

जे एन यू की पूर्व छात्र संघ उपाध्यक्ष शेहला राशिद ने कहा है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि महिला मैरिड है या नहीं, वह कैसे प्रेग्नेंट हुई , यह उसकी इच्छा है , माँ सिर्फ माँ है , यह शर्म की  बात है कि ट्रॉल्स एक माँ बनने वाली महिला का भी सम्मान नहीं कर सकते , इस तरह के मामले बताते हैं कि सरकार के पास उसके खिलाफ कोई मामला नहीं है , किस तरह से बहुसंख्य्वाद फैलाया जा रहा है .” शेहला राशिद मीडिया में  अपनी एक ख़ास पहचान रखती हैं जो अक्सर इस तरह की ट्रॉल्लिंग की शिकार होती रही हैं , सफूरा की तरह ही उन्हें भी खूब ट्रोल किया जाता है .

ये भी पढ़ें-वर्णव्यवस्था का शिकार हुआ मजदूर

सोशल मीडिया पर सफूरा  के अविवाहित होने के जो दावे किये जा रहे हैं  , वे झूठ हैं , उनकी शादी २०१८ में हो चुकी है , सफूरा की साथी स्टूडेंट मोनिका ने बताया  है कि सफूरा का विवाह दस अक्टूबर , २०१८ को हुआ . मोनिका भी सफूरा के साथ  उसी हॉस्टल में थीं. यह खबर कि उनकी प्रेगनेंसी का पता उनके जेल जाने के बाद चला, यह भी झूठ है , यह अप्रैल की शुरुआत से ही पता था जब उन्हें अरेस्ट किया  गया था , दस अप्रैल को अरेस्ट होने के बाद सफूरा ने बताया था कि वे तीन महीने की प्रेग्नेंट हैं और इसी आधार पर जमानत अर्जी दी थी .

एक रिपोर्ट में साफ़ साफ़ लिखा गया है कि दस फ़रवरी को पुलिस और स्टूडेंट्स के बीच विवाद में सफूरा  घायल हो गयीं थीं जिसके बाद उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट  किया गया था , उनके पति का बयान रिपोर्ट में लिखा था जिसमे उन्होंने कहा कि उनकी प्रेगनेंसी के बढ़ते दिनों की वजह से उन्हें ज्यादा शारीरिक मेहनत करने से रोका  गया था , देश में covid 19 फैलने के बाद उन्होंने घर से  बाहर जाना बंद कर दिया था , जरुरी काम से  ही निकलती थीं  ज्यादातर घर से ही काम कर रही थीं . २१ अप्रैल को कोर्ट में एक और जमानत अर्जी दाखिल की गयी जिसमे मेडिकल कंडीशन के बारे में बताया गया है .

भाजपा का आई  टी सेल सफूरा जरगार को ट्रेंड कराकर करैक्टर असैसिनेशन में लगा है , ट्वीट किया जा रहा है कि बिना  शादीशुदा सफूरा आखिर प्रेग्नेंट कैसे हो गयी ? क्या इसी बात  की आज़ादी चाहिए थी ? शाहीन बाग़ को रंगीन बाग़ कहकर यह दुष्प्रचार किया जा रहा है कि वहां यही कारोबार चल रहा था . कहीं कन्हैया कुमार को मामा  बनने की हार्दिक बधाई दी जा रही है , कहीं अजन्मे बच्चे के डी एन ए पर जोक्स बनाये जा रहे हैं .

ये भी पढ़ें-सरकारों का गरीब विरोधी चरित्र और प्रवासी मजदूर

जिस गोपाल शर्मा ने गैर कानूनी हथियार से प्रोटेस्टर्स पर खुले आम फायरिंग की थी , उसके खिलाफ कोई UAPA नहीं . देश के प्रधान मंत्री मोदी के समर्थन में बने फेसबुक पेज # WeSupportNarendraModiसे # SafooraZargar को बदनाम करने के लिए अब #PornClips शेयर की जा रही हैं . क्या प्रधानमन्त्री और बी जे पी ऐसे ग्रुप को समर्थन  देती हैं ? अगर नहीं तो इन सभी को गिरफ्तार करवाना चाहिए , बात किसी हिन्दू या मुस्लिम महिला की नहीं , बात एक महिला के सम्मान की है . जिसके बारे में यह पुष्टि हो चुकी है कि इस वीडियो को पोर्नहब वेबसाइट से उठाया गया है , और इस क्लिप में महिला सेलेना बैंक्स हैं . नफरत और झूठी ख़बरें फैलाने की कोई सीमा ही नहीं रही .

वुमन राइट एक्टिविस्ट और वकील वृंदा ग्रोवर का कहना है ,” जब यह जानकारी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है कि वह मैरिड है , जानबूझकर  घटिया पोस्ट्स के जरिये उसके खिलाफ दुष्प्रचार किया जा रहा है , यह इस बात का सबूत है कि यह मामला उसे और सी ए ए विरोधी शाहीन बाग़ प्रदर्शन  को बदनाम करने के उद्देश्य और उम्मीद से उठाया जा रहा है , यह बहुत ही चिंता  का विषय है  कि उसकी हेल्थ और रहन सहन जेल  में बुरी तरह से  प्रभावित  होगा , महिला की  पर्सनल लाइफ को निशाना बनाकर उसके खिलाफ झूठे आरोप लगाना और दुष्प्रचार करना , उसे मजबूर करना कि वह अपनी सेक्सुअलिटी को लेकर शर्मिंदा हो , यह बहुत पुराना पुरुषवादी और मिसोजिनिस्ट हथियार है जिससे लोग अपनी  राजनीति चमकाते हैं , यह महिला पर बहुत बुरा असर डालता है और उन्हें  सार्वजनिक जीवन से दूर  करता है , यह दिखाता है कि महिलाओं के लिए , खासतौर से युवा और हाशिये पर खड़ी बोल्ड महिलाओं के लिए सामाजिक नागरिक ढाँचे में हिस्सा लेना कितना मुश्किल है , यह उसकी आवाज़ को , उस राजनीति को जिसकी वह सहायक  है , वह जिस आंदोलन से जुडी  रही है , उसे दबाने  का नीच और  घटिया प्रयास है , सफूरा के सविधान विरोधी सी ए ए से जुड़े तर्कसंगत सवालों  का सामना करने के बजाय उनके चरित्र पर ऊँगली उठाकर उन्हें खामोश किया जा रहा है .”

डी सी डब्लू  चीफ स्वाति मालीवाल ने भी कहा है कि यह अदालत तय करेगी कि सफूरा दोषी है या नहीं पर किसी को भी उसके चरित्र, गरिमा  पर ऊँगली उठाने का हक़ नहीं है .

सफूरा के पति का कहना है ,”मैंने उसे १३ अप्रैल के बाद नहीं देखा है , covid  के कारण मनी ऑर्डर्स  और लेटर्स भी  अब नहीं जा सकते .दो बार ही बात हो पायी है . मैं  इन ट्रोल्स को रिप्लाई भी नहीं करना चाहता , वे वही करेंगें जो  उन्हें करना है .” सफूरा की बहन ने भी यही कहा है ,” हम इस सबसे बहुत दुखी  हुए हैं , उसकी इमेज खराब करने के लिए लोग कहाँ तक चले गए , देखकर बहुत ही हैरानी हुई है .” सिर्फ सफूरा को ही नहीं , कश्मीर की फोटो जर्नलिस्ट मसरत जहा को भी यू ए पी ए के अंतर्गत  बुक किया गया है , एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा ,”मैं जर्नलिस्ट हूँ , सोशल एक्टिविस्ट नहीं हूँ , मेरा कोई पोलिटिकल एजेंडा भी नहीं है , हमारा काम है , निष्पक्ष होकर सही ख़बरें सामने लाना .”

एमनेस्टी ने एक स्टेटमेंट में कहा है ”वह इस समय  तिहार जेल में है जहाँ देश  में  सबसे  बड़ी संख्या  में कैदी हैं   और १४ अप्रैल के बाद उसे अपने वकील और पति से मिलने नहीं दिया गया है , इस महामारी के समय उसे यू ए पी ए के अंतर्गत रखना , जबकि वह प्रेग्नेंट है , चिंता की बात है .”उसकी बहन  समीया ने एक ओपन लेटर लिखा है जिसमे सफूरा के अरेस्ट को स्लो डेथ  कहा है , समीया ने कहा है ”वह यू टी आई की पेशेंट है , और प्रेग्नेंट भी है , इन परेशानियों में  हमें उम्मीद थी कि उसे  बेल मिल जाएगी पर अभी तक नहीं मिली है ” सफूरा के हस्बैंड ने भी कहा ”हमें उम्मीद थी कि उसे बेल मिलेगी , पर लॉक डाउन में  सब काम बहुत धीरे हो रहा है , हमें न्याय व्यवस्था में भरोसा है .”कानूनी कार्रवाई जो हो , सो हो , वह अलग विषय है , पर जिस तरह से इस तरह की घटिया राजनीति  में  एक महिला के सम्मान को दांव पर लगा दिया जाता है , वह कितना दुखद है  , उन लोगों को भी शर्म आनी चाहिए जो सच्चाई को पूरी तरह जाने बिना किसी महिला के बारे में झूठी बातों पर आँख बंद कर यकीन करते चले  जाते हैं , वे भी बराबर के अपराधी हैं .

 

5 years of Piku: दीपिका ने इरफान खान को यूं किया याद, लिखा इमोशनल पोस्ट

साल 2015 में रिलीज हुई फिल्म पीकू पर्दे पर खूब कमाल दिखाई थी. दर्शकों को भी इस फिल्म की कहानी और किरदार निभाने वाले कलाकार खूब पसंद आएं थें. इस फिल्म को पांच साल पूरे हो चुके हैं. ऐसे में दीपिका पादुकोण ने अपने को स्टार इरफान खान को याद करते हुए अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखा है.

दीपिका पादुकोण ने इफान की फोटो शेयर करते हुए उन्हें श्रद्धाजली दी है. इस तस्वीर में इरफान खान मुस्कुराते हुए नजर आ रहे हैं. इरफान की इस मुस्कान को देखकर लग रहा है. मानो वो आज भी हमारे आस-पास ही है.

 

View this post on Instagram

 

लम्हे गुज़र गये चेहरे बदल गये हम थे अंजानी राहो में पल में रुला दिया पल में हसा के फिर रह गये हम जी राहो में थोड़ा सा पानी है रंग है थोड़ी सी छावो है चुभती है आँखो में धूप ये खुली दिशाओ में और दर्द भी मीठा लगे सब फ़ासले ये कम हुए ख्वाबो से रस्ते सजाने तो दो यादो को दिल में बसाने तो दो लम्हे गुज़र गये चेहरे बदल गये हम थे अंजानी राहो में थोड़ी सी बेरूख़ी जाने दो थोड़ी सी ज़िंदगी लाखो स्वालो में ढूंधू क्या थक गयी ये ज़मीन है जो मिल गया ये आस्मा तो आस्मा से मांगू क्या ख्वाबो से रस्ते सजाने तो दो यादो को दिल में बसाने तो दो -Piku Rest in Peace my Dear Friend…? #rana #piku #bhaskor @shoojitsircar @juhic3 #5yearsofpiku

A post shared by Deepika Padukone (@deepikapadukone) on

दीपिका ने लिखा है. रेस्ट इन माई डियर फ्रेंड आगे दीपिका ने गाने के लिरिक्स लिखे हैं…

लम्हें गुजर गए

चेहरे बदल गए

हम थे अनजानी राहों में पल में रीला दिया. पल में हंसा के फिर रह गए.

ये भी पढ़ें-Lockdown में सलमान खान के साथ हैं जैकलीन फर्नांडीज, शेयर किया

दीपिका के इस पोस्ट से मालूम पड़ रहा है कि वह अपने दोस्त इरफान को बहुत मिस कर रही हैं. बता दें जब दीपिका को इरफान के जाने की खबर मिली तो वह सदमें आ गई. उनके लिए भरोसा करना मुश्किल था कि इरफान इस दुनिया को अलविदा कह दिए है.

साल 2015 में आई फिल्म पिकू पर्दे पर बहुत कमाल दिखाई थी. इस फिल्म में अमिताभ बच्चन के किरदार को भी खूब पसंद किया गया था.

ये भी पढ़ें-अमिताभ बच्चन की नातिन नव्या नवेली हुई ग्रेजुएट, लोगों ने ट्विटर पर दी बधाई

दीपिका से पहले अमिताभ बच्चन ने भी अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पिकू के पांच साल पूरे होने के पोस्ट शेयर किए थें.

इस फिल्म को याद करते हुए अमिताभ को इरफान खान की याद आई थी. उन्हें भी इरफान के जाने का बहुत ज्यादा गम है. लेकिन क्या कर सकते हैं. जाने वाले को रोकना मुश्किल है.

सब्जियों की संकर किस्में

राष्ट्रीय बागबानी अनुसंधान संस्थान एवं विकास प्रतिष्ठान 35 सालों से किसानों के लिए सब्जी की खेती पर खासा सहयोग कर रहा है, खासकर के प्याज, लहसुन, टमाटर, लोबिया, मटर, धनिया, मेथी, सहजन जैसी सब्जियां का बेहतर बीज भी मुहैया करा रहा है. टमाटर और मिर्च के संकर बीज भी संस्थान द्वारा मुहैया कराए जाते हैं. इन संकर बीजों की क्वालिटी बाजार में मौजूद दूसरे बीजों से कहीं बेहतर है.
टमाटर बीज अर्का रक्षक : बीज की यह प्रजाति भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलुरु द्वारा विकसित की गईर् है. इस प्रजाति का पौधा लगभग 100 सैंटीमीटर ऊंचा, ज्यादा शाखाओं वाला होता है. इस में मिलने वाली उपज का रंग गहरा लाल होता है.

फसल में फूल लगभग 60 दिन में ही 50 फीसदी तक आ जाते हैं. बोआई के तकरीबन 90 दिन बाद तुड़ाई के लिए टमाटर तैयार हो जाते हैं. 140 से 145 दिन में इस प्रजाति के फल 80 से 90 ग्राम तक के वजन
में तैयार हो जाते हैं. तकरीबन 750 से 800 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उपज मिलती है. इस प्रजाति में झुलसा जैसे रोग का हमला भी नहीं होता.

कैसे करें टमाटर की खेती

अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए.नर्सरी लगाने का समय : पौध तैयार करने के लिए बीज को उत्तरी भारत के लिए सितंबर से अक्तूबर माह, दक्षिण भारत के लिए मई, जून माह और मध्य पश्चिमी इलाकों के लिए फरवरी, मार्च माह में नर्सरी डालते हैं.

ये भी पढ़ें-बागानों में निराई-गुड़ाई के लिए इस्तेमाल करें कल्टीवेटर

सिंचाई : पहली सिंचाई पौध लगाने के तुरंत बाद करनी चाहिए और बाद में सिंचाई मिट्टी में 50 फीसदी नमी होने पर जरूरत के अनुसार करें.

लाइनों में लगाई गई पौध में ड्रिप सिंचाई व मल्चिंग तकनीक में कम पानी की जरूरत होती है.नर्सरी तैयार करने का तरीका : खेत की सतह से तकरीबन आधा फुट ऊंची, एक मीटर चौड़ी और 3 मीटर लंबी क्यारियां बनाते हैं. प्रति हेक्टेयर नर्सरी के लिए 5 किलोग्राम एनएचआरडीएफ ट्राकोवीर  (ट्राइकोडर्मा) से मिट्टी को उपचारित कर लेते हैं और बीज को लाइनों में डाल देते हैं. बीज रोपने के बाद 25-30 दिनों में पौध तैयार हो जाती है. पौध को रोपने से पहले ट्राइकोडर्मा के 5 फीसदी वाले घोल में उपचारित कर लें. इस के बाद 60330 सैंटीमीटर की दूरी पर पौध लगा दें.

खाद व उर्वरक : खेत तैयार करते समय गोबर की सड़ी खाद या कर्मी कंपोस्ट खाद को खेत में मिला देना चाहिए. पौध रोपाई के समय प्रति हेक्टेयर 300 किलोग्राम नाइट्रोजन, 150 किलोग्राम फास्फोरस, 150 किलोग्राम पोटाश व 25 किलोग्राम सूक्ष्म तत्त्व मिश्रण की
जरूरत होगी.

नाइट्रोजन की आधी मात्रा और बाकी उर्वरकों की पूरी मात्रा रोपाई के समय डालें. बाकी बची नाइट्रोजन की आधी मात्रा 30 दिन में और बाकी बची आधी मात्रा को 40 दिन पर खड़ी फसल में डालें.
खरपतवार की रोकथाम : खरपतवार की रोकथाम के लिए पौधा रोपने से पहले
1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से फ्लूकोरीन या पैंडीमिथेलिन डालें. निराईगुड़ाई समय
पर करें.

 ये भी पढ़ें-सरकारी मंडी में मनमानी बनी तरबूज किसानों की परेशानी

फसल का बचाव : अगेती झुलसा रोग की रोकथाम करने के लिए डाईथेन एम-45
या इंडोलिक जेड-78 को 0.25 फीसदी का 15-20 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.
लीफकर्ल रोग : इस रोग की रोकथाम के लिए सफेद मक्खी को रोकना बहुत जरूरी है. सब से पहले रोगग्रस्त पौधे को उखाड़ कर जमीन में दबा दें. रोकथाम करने के लिए इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल का 0.3 मिलीलिटर एसिटामिप्रिड 10 मिलीलिटर या थायोडान 3 मिलीलिटर प्रति लिटर की दर से 10-12 दिन
के अंतराल पर फसल पर छिड़कें या नीमयुक्त कीटनाशक  (1500 पीपीएम) का 2 फीसदी प्रति लिटर घोल का 7-10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.

इस में दी गई जानकारी संस्थान द्वारा सुझाई गई हैं. मौसम में बदलाव, खेत की जमीन या अन्य किसी वजह से उत्पादन में कुछ बदलाव हो सकते हैं, इसलिए किसी सलाह के लिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से जानकारी ले सकते हैं. इस के अलावा करेले की कुछ खास किस्मों के बारे में भी जानकारी दी जा रही है.

करेला अर्काहरित : भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलुरु द्वारा विकसित इस किस्म के फल चमकदार हरे, मुलायम, मोटे गूदे वाले होते हैं. 120 दिनों में तैयार होने वाली इस किस्म से 130 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है.

करेला पूसा विशेष : इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है. इस की बेल कम लंबाई में बढ़ती है, इसलिए पौधों से पौधों की दूरी कम रखनी चाहिए. मतलब, तय क्षेत्रफल में दूसरी किस्म की अपेक्षा ज्यादा पौधे लगाए जा सकते हैं.

इस के फल मुलायम हरे, मध्यम लंबाई के होते हैं, जो अचार या अन्य प्रसंस्करण के लिए मुफीद हैं.
फुले ग्रीन गोल्ड : यह किस्म ग्रीन लोंग नाइट और दिल्ली लोकल के संकर किस्मों से विकसित की गई है. इस किस्म के फल गहरे हरे, अधिक लंबे फल और
फलों पर नुकीले मध्यम आकार के रोहे (रोपे) होते हैं.

इन किस्मों को भारत में उत्तरी इलाकों में फरवरीमार्च व जूनजुलाई माह में और दक्षिण भारत के इलाकों में पूरे साल कभी भी लगाया जा सकता है.

थैलेसीमिया: बच्चों के लिए है खतरनाक

दुनिया भर में 8 मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे मनाया जाता है. इस का मकसद लोगों को रक्त संबंधी इस गंभीर बीमारी के प्रति जागरुक करना है.

थैलेसीमिया एक जेनेटिक यानी अनुवांशिक बीमारी है, जो पेरेंट्स से उन के बच्चों में आती है. इस बीमारी से बच्चों में खून की कमी होने लगती है, जो सेहत के लिए काफी नुकसानदेह है.  विश्व थैलेसीमिया दिवस पर विभिन्न स्वास्थ्य संस्थाएं जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करती हैं.

हालांकि कोरोना महामारी के चलते दुनिया भर के अधिकतर देशों में लॉकडाउन चल रहा है और इस वजह से बहुत सारी जगहों पर कार्यक्रम संभव नहीं हैं. लेकिन इस बीमारी के प्रति जागरूक करने के लिए आज हम आप को जागरूक कर रहे हैं कि थैलेसीमिया क्या है, इस के लक्षण क्या हैं और इस से कैसे बचाव किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें-गरमी में फल खाने से बॉडी रहेगी फिट, जानें किस फल से क्या है फायदा

‌क्या है थैलेसीमिया

‌थैलेसीमिया ब्लड से जुड़ी जेनेटिक बीमारी है. सामान्य तौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में आरबीसी यानी लाल रक्त कणों की संख्या 45 से 50 लाख प्रति घन मिलीमीटर होती है. थैलेसीमिया बीमारी में ये आरबीसी तेजी से नष्ट होने लगते हैं और नई कोशिकाएं नहीं बन पाती हैं और सामान्य तौर पर लाल रक्त कणों की औसतन आयु 120 दिन होती है, जो इस बीमारी में घट कर करीब 10 से 25 दिन ही रह जाती है.

‌इस के कारण शरीर में खून की कमी होने लगती है और यह बीमारी व्यक्ति को अपना शिकार बना लेती है.

‌थैलेसीमिया के लक्षण
यह एक जेनेटिक बीमारी है और जन्म के 6 महीने बाद ही बच्चों में  इस के लक्षण तेजी से दिखने लगते हैं. मुख्य लक्षण निम्न हैं-

ये भी पढ़ें-सिगरेट पीने वालो को कोरोना वायरस से ज्यादा खतरा

‌* बच्चों के नाखून और जीभ में पीलेपन की शिकायत रहती है.

‌*बच्चों का ग्रोथ यानी विकास रुक जाता है.

‌*उन का वजन नहीं   बढ़ता और , कमजोरी जैसी शिकायतें महसूस होने लगती हैं.

‌* बच्चों को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है.

‌* पेट इससे  की सूजन, गाढ़ा मूत्र की शिकायत होती है.

क्या करें, क्या न करें

‌*इस बीमारी से बचने के लिए व्यक्ति को कम वसा वाली चीजें खानी चाहिए.

‌*हरी पत्तेदारी सब्जियां और आयरन युक्त फूड्स का सेवन करना चाहिए.

‌*नियमित योग और व्यायाम करने से भी इस बीमारी से बचाव होता है।

ब्लड टेस्ट करवाना जरूरी
थैलेसीमिया से बचाव के लिए समयसमय पर पेरैंट्स को ब्लड टेस्ट करवाते रहना चाहिए. बच्चा होने के बाद उस का भी ब्लड टेस्ट करवाना चाहिए. साथ ही प्रेग्नेंसी के 4 महीने  बाद भ्रूण की स्थिति की जांच करवानी चाहिए. डॉक्टर्स का मानना है कि युवाओं को शादी से पहले ब्लड टेस्ट करवा लेना चाहिए.

थैलेसीमिया का उपचार
इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को सामान्य तौर पर विटामिन, आयरन, फूड सप्लीमेंट्स और संतुलित आहार लेने की सलाह दी जाती है.

*गंभीर हालात में खून बदलने की जरूरत पड़ने लगती है.

*बोन मैरो ट्रांसप्लांट की भी जरूरत पड़ सकती है.

*वहीं पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए सर्जरी का सहारा लिया जाता है.

मदर्स डे स्पेशल: दूसरी बार-भाग 3

अम्मां ठंडी सांस भर कर पलंग पर लेट जातीं. अपनेआप उन के कमरे में कोई नहीं आता. यदि वह उठ कर सब के बीच पहुंचतीं तो एकएक कर के सब खिसकने लगते. यों आपस में बहूबच्चे हंसते, कहकहे लगाते, पर अम्मां के आते ही सब को कोई न कोई काम जरूर याद आ जाता. सब के चले जाने पर वह अचकचाई हुई कुछ देर खड़ी रहतीं, फिर खिसिया कर अपने कमरे की तरफ चल पड़तीं.

पांव में जहर फैल जाने पर आदमी उसे काट कर फेंक देना पसंद करता है, लेकिन अम्मां तो बहूबच्चों के उल्लासभरे जीवन का जहर न थीं फिर क्यों घर वालों ने उन्हें विषाक्त अंग की भांति अलग कर दिया है, इसे वह समझ नहीं पाती थीं. वह इतनी सीधी और सौम्य थीं कि उन से किसी को शिकायत हो ही नहीं सकती थी.

बहू आधीआधी रात को पार्टियों से लौटती. तनु और सोनू अजीबोगरीब पोशाकें पहने हुए बाजीगर के बंदर की तरह भटकते. अम्मां कभी किसी को नहीं टोकतीं. फिर भी सब उन की निगाहों से बचना चाहते थे. हर एक की दिली ख्वाहिश यही रहती थी कि वह अपने कमरे से बाहर न निकलें. खानेपीने, नहानेधोने और सोने की सारी व्यवस्थाएं जब कमरे में कर दी गई हैं तो अम्मां को बाहर निकलने की क्या आवश्यकता है?

एक दिन अकेले बैठेबैठे जी बहुत ऊबा तो वह कमरे में झाड़ ू लगाने के लिए आए नौकर से इधरउधर की बातें पूछने लगीं, क्या नाम है? कहां घर है? कितने भाईबहन हैं? बाप क्या करता है?

उन का यह काम कितना निंदनीय था, इस का आभास कुछ देर बाद ही हो गया. बहू पास वाले कमरे में आ कर, ऊंची आवाज में उन्हें सुनाते हुए बोलीं, ‘‘जैसा स्तर है वैसे ही लोगों के साथ बातें करेंगी. नौकर के अलावा और कोई नहीं मिला उन्हें बोलने के लिए.’’

उत्तर में तनु की जहरीली हंसी गूंज गई. वह अपनी कुरसी पर पत्थर की तरह जड़ बैठी रह गई थीं.

गांव में भी अम्मां अकेली थीं, पर वहां यह सांत्वना थी कि सब के बीच पहुंचने पर एकाकीपन की यंत्रणा से मुक्ति मिल जाएगी. यहां आ कर वह निराशा के अथाह समुद्र में डूब गई थीं. रेगिस्तान में प्यासे मर जाना उतनी पीड़ा नहीं देता, जितना कि नदी किनारे प्यास से दम तोड़ देना.

गली का घर होता, सड़क के किनारे बना मकान होता तो कम से कम खिड़की से झांकने पर राह चलते आदमियों के चेहरे नजर आते. यहां अम्मां किसी सजायाफ्ता कैदी की तरह खिड़की की सलाखों के नजदीक खड़ी होतीं तो उन्हें या तो ऊंचे दरख्त नजर आते या फूलों से लदी क्यारियां. फिर भी वह खिड़की के पास कुरसी डाले बैठी रहती थीं. कम से कम ठंडी हवा के झोंके तो मिलते थे.

बैठेबैठे कुछ देर को आंखें झपक जातीं तो लगता जैसे बाबूजी पास खड़े कह रहे हैं, ‘सावित्री, उठोगी नहीं? देखो, कितनी धूप चढ़ आई है? चायपानी का वक्त निकला जा रहा है.’ चौंक कर आंखें खोलते ही सपने की निस्सारता जाहिर हो जाती. बाबूजी अब कहां, याद आते ही मन गहरी पीड़ा से भर उठता.

झपकी लेते हुए अम्मां खीझ जातीं, ‘ओह, यह बाबूजी इतना शोर क्यों कर रहे हैं? चीखचीख कर आसमान सिर पर उठाए ले रहे हैं. क्या कहा? राकेश ने दवात की स्याही फैला दी. अरे, बच्चा है. फैल गई होगी स्याही. उस के लिए क्या बच्चे को डांटते ही जाओगे? बस भी करो न.’

चौंक कर जाग उठीं अम्मां. बाबूजी की नहीं, यह तो खिड़की के नीचे भूंकते कुत्तों की आवाज है. वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुईं और ‘हटहट’ कर के कुत्तों को भगाने लगीं. बुढ़ापे के कारण नजर कमजोर थी. फिर भी इतना मालूम पड़ गया कि किसी कमजोर और मरियल कुत्ते को 3-4 ताकतवर कुत्ते सता रहे हैं. शायद धोखे से फाटक खुला ही रह गया होगा, तभी लड़ते हुए भीतर घुस आए थे.

इधरउधर देख कर अम्मां ने मच्छरदानी का डंडा निकाला और उसे खिड़की की सलाखों से बाहर निकाल कर भूंकते हुए कुत्तों को धमकाने लगीं. काफी कोशिश के बाद वह सूखे मरियल कुत्ते को आतताइयों के शिकंजे से बचा सकीं.

हमलावरों के चले जाने पर चोट खाया हुआ कमजोर कुत्ता वहीं हांफता हुआ बैठ गया और कातर निगाहों से अम्मां की ओर देखने लगा. सब ओर से दुरदुराया हुआ वह कुत्ता उन से शरण की भीख मांग रहा था. इस गंदे, घिनौने, जख्मी और मरियल कुत्ते पर अनायास ही अम्मां सदय हो उठीं. वह खुद क्या उस जैसी नहीं थीं? बूढ़ी, कमजोर, उपेक्षिता और सर्वथा एकाकी. तन चाहे रोगी न था, पर मन क्या कम जख्मी और लहूलुहान था?

दोपहर को जब नौकर खाना लाया तो अम्मां ने बड़े प्यार से उस घायल कुत्ते को 2 रोटियां खिला दीं. भावावेश के न जाने किन क्षणों में नामकरण भी कर दिया ‘झबरा.’ झड़े हुए रोएं वाले कुत्ते के लिए यह नाम उतना ही बेमेल था, जितना किसी भिखारी का करोड़ीमल. पर अम्मां को इस असमानता की चिंता न थी. उन की निगाह एक बार भी कुत्ते की बदसूरती पर नहीं गई.

अम्मां अब काफी संतुष्ट थीं, प्रसन्न थीं. उन्हें लगता, जैसे अब वह अकेली नहीं हैं. झबरा उन के साथ है. झबरा को उन की जरूरत थी. दोएक दिन उन्हें उस के भाग जाने की चिंता बनी रही. पर धीरेधीरे यह आशंका भी मिट गई. झबरा के स्नेह दान ने अम्मां के बुझते हुए जीवन दीप की लौ में नई जान डाल दी थी. पर घर वालों को उन का यह छोटा सा सुख भी गवारा नहीं हुआ.

एक दिन बहू तेज चाल से चलती हुई कमरे में आई और खिड़की के पास जा कर नाक सिकोड़ते हुए बोली, ‘‘छि:, कितना गंदा कुत्ता है. न जाने कहां से आ गया है. चौकीदार को डांटना पड़ेगा. उस ने इसे भगाया क्यों नहीं?’’

‘‘अम्मांजी का पालतू कुत्ता है जी. अब तो चुपड़ी रोटी खाखा कर मोटा हो गया है,’’ पीछे खड़े हुए नौकर ने पीले गंदे दांतों की नुमाइश दिखा दी.

‘‘बेशर्म, सड़क के लावारिस कुत्ते को हमारा पालतू कुत्ता बताता है. हमें पालना ही होगा तो कोई बढि़या विदेशी नस्ल का कुत्ता पालेंगे. ऐसे सड़कछाप कुत्ते पर तो हम थूकते भी नहीं हैं,’’ बहू रुष्ट स्वर में बोली.

अगले ही पल उस ने नौकर को नादिरशाही हुक्म दिया, ‘‘देखो, अंधेरा होने पर इस कुत्ते को कहीं दूर फेंक आना. इसे बोरी में बंद कर के ऐसी जगह फेंकना, जहां से दोबारा न आ सके.’’

बहू जिस अफसराना अंदाज से आई थी वैसे ही वापस चली गई.

अम्मां ने बड़े असहाय भाव से खिड़की की ओर देखा. न जाने क्यों उन का जी डूबने लगा.

पिछले साल बाबूजी के मरते समय भी उन्हें ऐसी ही अनुभूति हुई थी. लगा था, जैसे इतनी बड़ी दुनिया में अनगिनत आदमियों की भीड़ होने पर भी वह अकेली रह गई हैं.

अकेलेपन का वही एहसास इस समय अम्मां को हुआ. उन्होंने खुद को धिक्कारा, ‘छि:, कितनी ओछी हूं मैं? बेटे, बहू और चांदसूरज जैसे 2 पोतीपोते के रहते हुए मैं अकेली कैसे हो गई? यह मामूली कुत्ता क्या मुझे अपने बच्चों से भी ज्यादा अजीज है?’

पर खुद को धोखा देना आसान न था. अकेलेपन की भयावहता से आशंकित मन दूसरी बार दहशत से भर गया. पिछले साल बाबूजी के चिर बिछोह पर वह रोई थीं. हालांकि तब से मन बराबर रोता रहा था, पर आज भी आंखें दूसरी बार छलछला उठीं.

 

 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें