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औलाद की चाह बनी मुसीबत की राह

रमन की शादी हुए 6 साल हो गए, मगर अभी तक कोई औलाद नहीं हुई. चूंकि दोनों पतिपत्नी धार्मिक स्वभाव के थे, इसलिए वे देवीदेवता से मन्नतें मांगते रहते थे, लेकिन तब भी बच्चा न हुआ. तभी उन्हें पता चला कि एक चमत्कारी बाबा आए हैं. अगर उन का आशीर्वाद मिल जाए, तो बच्चा हो सकता है. यह जान कर रमन और उस की बीवी सीमा उस बाबा के पास पहुंचे. सीमा बाबा के पैरों पर गिर पड़ी और कहने लगी, ‘‘बाबा, मेरा दुख दूर करें. मैं 6 साल से बच्चे का मुंह देखने के लिए तड़प रही हूं.’’

‘‘उठो, निराश मत हो. तुम्हें औलाद का सुख जरूर मिलेगा…’’ बाबा ने कहा, ‘‘अच्छा, कल आना.’’

अगले दिन सीमा ठीक समय पर बाबा के पास पहुंच गई. बाबा ने कहा, ‘‘बेटी, औलाद के सुख के लिए तुम्हें यज्ञ कराना पड़ेगा.’’

‘‘जी बाबा, मैं सबकुछ करने को तैयार हूं. बस, मुझे औलाद हो जानी चाहिए,’’ सीमा ने कहा, तो बाबा ने जवाब दिया, ‘‘यह ध्यान रहे कि इस यज्ञ में कोई भी देवीदेवता किसी भी रूप में आ कर तुझे औलाद दे सकते हैं, इसलिए किसी भी हालत में यज्ञ भंग नहीं होना चाहिए, नहीं तो तेरे पति की मौत हो जाएगी.’’

‘‘जी बाबा,’’ सीमा ने कहा और बाबा के साथ एकांत में बने कमरे में चली गई. वहां बाबा खुद को भगवान बता कर उस के अंगों के साथ खेलने लगा. सीमा कुछ नहीं बोली. वह समझी कि बाबाजी उसे औलाद का सुख देना चाहते हैं, इसलिए वह चुपचाप सबकुछ सहती रही. लेकिन शरद ऐसे बाबाओं के चोंचलों को अच्छी तरह जानता था, इसलिए जब उस की बीवी टीना ने कहा, ‘‘हमें भी बच्चे के लिए किसी साधुसंत से औलाद का आशीर्वाद ले लेना चाहिए,’’ तब शरद बोला, ‘‘औलाद केवल साधुसंत के आशीर्वाद से नहीं होती है. इस के लिए जब तक पतिपत्नी दोनों कोशिश न करें, तब तक कोई बच्चा नहीं दे सकता.’’

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‘‘मगर हम यह कोशिश पिछले 5 साल से कर रहे हैं. हमें बच्चा क्यों नहीं हो रहा है?’’ टीना ने पूछा.

‘‘इस की जांच तो डाक्टर से कराने पर ही पता चल सकती है कि हमें बच्चा क्यों नहीं हो रहा है. समय मिलते ही मैं डाक्टर से हम दोनों की जांच कराऊंगा.’’

टीना ने कहा, ‘‘ठीक है.’’

दोपहर को टीना की सहेली उस से मिलने आई, जो उसे एक नीमहकीम के पास ले गई. नीमहकीम ने टीना से कुछ सवाल पूछे, जिस का उस ने जवाब दे दिया. इस दौरान ही उस नीमहकीम ने यह पता लगा लिया था कि टीना को माहवारी हुए आज 14वां दिन है, इसलिए वह बोला, ‘‘तुम्हारे अंग की जांच करनी पड़ेगी.’’

‘‘ठीक है, डाक्टर साहब. मैं कब आऊं?’’ टीना ने पूछा.

‘‘जांच आज ही करा लो, तो अच्छा रहेगा,’’ नीमहकीम ने कहा, तो टीना राजी हो गई.

तब वह नीमहकीम टीना को अंदर के कमरे में ले गया, फिर बोला, ‘‘आप थोड़ी देर यहीं बैठिए और इस थर्मामीटर को 5 मिनट तक अपने अंग में लगाइए.’’

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टीना ने ऐसा ही किया.

5 मिनट बाद डाक्टर आया. उस के एक हाथ में अंग फैलाने का औजार और दूसरे हाथ में एक इंजैक्शन था, जिस में कोई दवा भरी थी, जिसे देख कर टीना ने पूछा, ‘‘यह क्या है डाक्टर साहब?’’ ‘‘इस से तुम्हारे अंग की दूसरी जांच की जाएगी,’’ कह कर नीमहकीम ने टीना से थर्मामीटर ले लिया और टीना को मेज पर लिटा दिया. इस के बाद वह उस के अंग में औजार लगा कर जांच करने लगा.

जांच के बहाने नीमहकीम ने टीना के अंग में इंजैक्शन की दवा डाल दी और कहा, ‘‘कल फिर अपनी जांच कराने आना.’’ टीना अभी तक घबरा रही थी, मगर आसान जांच देख कर खुश हुई. फिर दूसरे दिन भी यही हुआ. मगर उस दिन इंजैक्शन को अंग में आगेपीछे चलाया गया था. इस के बाद उसे 14 दिन बाद आने को कहा गया.

टीना जब 14 दिन बाद नीमहकीम के पास गई, तब वह सचमुच मां बनने वाली थी.

यह जान कर टीना बहुत खुश हुई. मगर जब यही खुशी उस ने अपने पति शरद को सुनाई, तो वह नाराज हो गया.

‘‘बता किस के पास गई थी?’’ शरद चीख पड़ा.

‘‘यह मेरा बच्चा नहीं है. मैं ने कल ही अपनी जांच कराई थी. डाक्टर का कहना है कि मेरे शरीर में बच्चा पैदा करने की ताकत ही नहीं है. तब मैं बाप कैसे बन गया?’’ शरद ने कहा.

शरद के मुंह से यह सुनते ही टीना सब माजरा समझ गई. वह जान गई कि नीमहकीम ने जांच के बहाने उस के अंग में अपना वीर्य डाल दिया था. मगर अब क्या हो सकता था. टीना औलाद के नाम पर ठगी जा चुकी थी. आज के जमाने में औलाद पैदा करने की कई विधियों का विकास हो चुका है. परखनली से भी कई बच्चे पैदा हो चुके हैं. यह सब विज्ञान के चलते मुमकिन हुआ है. फिर भी लोग पुराने जमाने में जीते हुए ऐसे धोखेबाजों के पास बच्चा मांगने जाते हैं. इस से बढ़ कर दुख की बात और क्या हो सकती है.

नाजायज संबंधों से बढ़ रहे अपराध

आम तौर पर समाज में घटित होने वाले अपराधों के तीन कारण होते हैं जर (रूपया-पैसा), जोरू(औरत),और जमीन.मौजूदा दौर में सबसे ज्यादा अपराधिक घटनाएं नाजायज संबंधों की वजह से हो रही हैं.

समाज में सेक्स को लेकर खुलकर चर्चा न होने से नौजवानों के मन में सेक्स संबंधों को लेकर जिज्ञासा बनी रहती है. सेक्स का मजा लेने के लिए महिला, पुरुषों द्वारा बनाए गए नाजायज संबंध समाज की नजरों में देर तक छुपे नहीं रहते. नाजायज संबंधों के खुलासा होने पर परिवार में कलह और समाज में बदनामी होने लगती है. दोस्ती में विश्वासघात करके बनाये गये नाजायज संबंधों में लोग एक दूसरे के जान के प्यासे तक हो जाते हैं.

दोस्ती के नाम पर विश्वासघात करने का ऐसा ही मामला नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से करीब ५० किमी दूर गोटेगांव थाना क्षेत्र अंतर्गत जामुनपानी गांव  में सामने आया है.

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लॉक डाउन की सख्ती के बीच जामुनपानी गांव के पास खेत में 21-22 अप्रैल की दरम्यानी रात दो युवकों की धारदार हथियार से गला काट कर नृशंस हत्या कर दी गई.पिपरिया लाठ गांव निवासी मोहन उम्र 30 साल  और कुंजी यादव  उम्र 18 साल दोनों ही जमीन सिकमी पर लेकर खेती करते थे . 21 अप्रैल को  रात 9 बजे दोनों अपने घरों से खाना खाकर खेत पर गए थे. दूसरे दिन दोपहर तक जब दोनों घर नहीं आए और मोबाइल पर संपर्क नहीं हुआ तो मोहन के पिता हीरालाल ने खेत सोचा कि खेत पर जाकर देखते हैं. खेत पर जाकर हीरालाल ने दोनों के शव रक्त रंजित अवस्था में पड़े देखे तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं .

हीरालाल द्वारा पुलिस चौकी झोतेश्वर में इसकी सूचना देने के पर गोटेगांव से पुलिस टीम  मामले की जांच के लिए पहुंची.  मौका मुआयना के बाद लाश का पंचनामा बनाकर गोटेगांव के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम के बाद शवों को उनके परिजनों के सुपुर्द किया गया. पुलिस की उपस्थिति में पिपरिया(लाठगांव) में दोनों की अर्थी एक साथ उठीं. लेकिन गांव के लोगों में मोहन और कुंजी के नाजायज संबंधों की खुसर-पुसर होती रही.

दोनों नौजवानों के नाजायज संबंधों की जानकारी गांव के लोगों के साथ घर परिवार के लोगों को भी थी.मृतक कुंजी यादव की दादी ने तो पुलिस के सामने ही गांव के एक युवक गुड्डा ठाकुर पर दोनों की हत्या का आरोप लगा दिया. पुलिस टीम भी  तफशीश में जुट गई.पुलिस ने 22 अप्रैल की रात खेत में बनी गुड्डन गौड़ की झोपड़ी में दबिश दी तो वह झोपड़ी में नहीं मिला।
23 अप्रैल को तड़के पुलिस ने एक बार फिर झोपड़ी में दबिश दी मगर उसकी झोपड़ी में मौजूद कुत्ता दूर से ही पुलिस को देख कर भौंकने लगा , जिस पर गुड्न गौड बिस्तर से उठा और चड्डी बनियान में ही जंगल की ओर भाग गया .जब पुलिस झोपड़ी में पहुंची तो चूल्हा की आग गरम थी, बिस्तर बिछा हुआ था उसने कपड़े और जूते वहीं पर उतार कर रखे थे. झोपड़ी में पुलिस को गुड्डन की बैंक पास बुक और फोटो मिली थी.

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जंगली रास्तों में पुलिस से छिपता फिर रहा गुड्डन

आखिरकर 23 अप्रैल की शाम को झोतेश्वर के हनुमान टेकरी मंदिर के पास पकड़ में आ ही गया.पुलिस पूछताछ में मोहन और कुंजी की हत्या करने का जुर्म कबूल करने के साथ जो कहानी सामने आई , उसमें हत्या का कारण दोस्ती में विश्वासघात कर बनाये गये नाजायज संबंध ही थे.

मोहन और कुंजी , गुड्डा ठाकुर के अच्छे दोस्त थे और इसी वजह से वे गुड्डा के घर आते जाते रहते थे. लेकिन मोहन की नजर गुड्डा की खूबसूरत बीबी रति (परिवर्तित नाम) पर टिकी रहती थी. तीखे नैन-नक्श और गठीले बदन की रति से मोहन हंसी मजाक कर लिया करता था. जब भी गुड्डा ठाकुर घर से बाहर रहता तो मोहन गुड्डा के घर पहुंच जाता. हंसी मज़ाक का सिलसिला धीरे धीरे आगे बढते देख एक दिन मोहन ने रति से कहा – ,” रति भाभी तुम तो मुझे इतनी सुन्दर लगती हो कि जी चाहता है तुम पर सब कुछ लुटा दूं”. रति को भी मोहन की ये अदायें भाने लगी थी तो उसने भी कह दिया-” तुम्हें रोका किसने है”.

फिर क्या था मोहन ने रति को अपनी बाहों में भर लिया और उसके ओंठ चूमने लगा. देखते ही देखते दोनों तरफ से लगी जिस्मानी प्यास तभी बुझी थी, जब तक वे एक उन्हें तृप्ति का एहसास न हो गया.

आखिरकार इन नाजायज संबंधों की जानकारी एक दिन गुड्डा को भी लग गई तो उसने दोनों दोस्तों को समझाने का प्रयास किया,मगर मोहन और कुंजी ने अपनी गल्ती मानने की बजाय उल्टे गुड्डा की मर्दानगी का मजाक बनाना शुरू कर दिया.नाजायज संबंधो की बजह से पति-पत्नी में झगड़े होने लगे और उसकी बीवी अपने मायके जबलपुर के पास चरगवा चली गई.

गुड्डा अपनी घर गृहस्थी उजड़ने से परेशान रहने लगा था .समाज में भी उसकी बदनामी हो गई थी. ऐसे में गुड्डा के दिलों दिमाग में मोहन को  अपने रास्ते से हटाने की योजना बनती रहती थी.

प्रतिशोध की आग में जल रहे गुड्डा ने  निश्चय कर लिया था कि वह मोहन को मौत के घाट उतारकर ही दम लेगा. गुड्डा को पता तो था ही कि मोहन और कुंजी रोज ही खेत पर आते हैं . 21 अप्रैल की रात वह खेत की टपरिया से ही मोहन और कुंजी पर नजर रख रहा था. फसल की गहाई पूरी होने के बाद जब मोहन और कुंजी खेत पर सो गये तो रात 2 बजे के लगभग वह कुल्हाड़ी लेकर खेत पर पहुंच गया और गहरी नींद सो रहे मोहन और कुंजी के सिर पर धड़ाधड़ क‌ई वार करके उन्हें हमेशा के लिए गहरी नींद सुला दिया.उसने कुंजी की हत्या इसलिए की कि कुंजी मोहन और  रति के मिलने में सहायता करता था.

अक्सर ही नाजायज संबंधों का  इसी तरह से दुखद अंत होता है.इस घटना में भी जहां मोहन और कुंजी को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा तो पत्नी की वजह से हुई बदनामी के कारण गुड्डा ठाकुर को दोहरी हत्या करने के लिए मजबूर कर दिया.

लॉकडाउन फूड: कॉफी टार्ट मिनी एप्पल पाई

लेखिका-रश्मि देवर्षि

टार्ट की सामग्री-

मैदा 1 कप,

ओट्स पाउडर 2 छोटे चम्मच,

1/2 कप ठंडा बटर छोटे टुकड़े में कटा हुआ,

कॉफी पाउडर 2 छोटी चम्मच,

ब्राउन शुगर 2 छोटी चम्मच,

पानी आवश्यकता के अनुसार और दूध 2 छोटी चम्मच

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स्टफिंग की सामग्री-

2 सेब छिले और छोटे टुकड़ों में कटे हुए

पिसी चीनी 4 छोटी चम्मच

दालचीनी पाउडर 1 छोटी चम्मच

चॉकलेट चिप्स 2 छोटी. चम्मच

एक बाउल में सारी सामग्री अच्छे से मिला कर रख लें

टार्ट बनाने की विधि-
मैदा में ओट्स पाउडर और बटर डालकर इन्हें अच्छे से मिलाकर इसमें कॉफी पाउडर, ब्राउन शुगर और दो से तीन चम्मच पानी डालकर सख्त आटा लगा लें. इस आटे की पूरी के आकार की लोई बेलें और इसे छोटे आकार के टार्ट मोल्ड में रखकर टार्ट का आकार दें. तैयार किये हुए टार्ट के मोल्ड को फ्रिज में बीस मिनट के लिये रखें. बीस मिनट बाद 180℃ प्री-हीटेड अवन में 10 मिनट के लिए बेक करें.

10 मिनट बाद अवन से टार्ट निकाल कर इसमें सेब की स्टफिंग भर दें. पहले तैयार किये हुए टार्ट के आटे की पतली-पतली पट्टियां बनाएं और स्टफिंग के ऊपर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर पहले आड़ी और फिर तिरछी पट्टियां लगाकर इसे जाली की तरह कवर करें. पट्टियों के सिरों को बेक हो चुके  निचले हिस्से से ठीक से चिपका दें. पट्टियों पर दूध से ब्रशिंग करें तथा फिर 180℃ पर 10 मिनट के लिए बेक करें.

अब भगवान को क्यों चाहिए सरकारी सम्मान?

रामायण सीरियल में राम का किरदार निभाने बाले अरुण गोविल को कोई 33 साल बाद याद आया कि उन्हें अभी तक किसी सरकार ने सम्मान नहीं दिया है  . 62 साल के हो चले अरुण मेरठ से मुंबई गए तो अपने भाई के कारोबार में हाथ बंटाने थे लेकिन जल्द ही उन्हें गलतफहमी हो आई थी कि वे तो बने ही फिल्मों के लिए हैं लिहाजा कोशिश करने पर कुछ फिल्में मिलीं जो उन्हीं की तरह सी ग्रेड की थीं लेकिन थोड़ी बहुत चली सिर्फ एक जिसका नाम था सावन को आने दो . यह फिल्म बड़जात्या केंप की थी इसलिए इसका चलना लाजिमी था पर अरुण गोविल को फिल्म इंडस्ट्री में हाथों हाथ नहीं लिया गया था .

उनके हिस्से छोटे मोटे रोल आते रहे तो उन्होने भगवान बन जाने की ठान ली और देखते ही देखते बन भी गए . रामानन्द सागर से वे मिले और खुद राम की भूमिका निभाने की पेशकश की तो थोड़ी सी ना-नुकुर के बाद बात बन गई . देवी देवताओं के रोल निभाना अपेक्षाकृत आसान काम होता है क्योंकि इसमें कलाकार को कुछ खास नहीं करना रहता आधे से ज्यादा काम तो मेकअप से ही हो जाता है .

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रामायण छोटे पर्दे पर चल निकला तो अरुण पर दौलत और शोहरत की बरसात होने लगी . वे जहां भी जाते थे उनके पैर पड़ने बालों और आरती उतारने बालों की भीड़ उमड़ने लगती थी . हालांकि उनके पहले धार्मिक फिल्मों में देवताओं के रोल निभाने बाले साहू मोड़क और भारत भूषण भी कम लोकप्रिय नहीं हुये थे लेकिन इस सीरियल की बात और थी . तब टीवी नया नया आया था और लोग भी फुरसतिए होते थे सो रामायण सुपर हिट हुआ . उस दौर में लोग इतने अंधविश्वासी और बौराये हुये थे कि सीरियल शुरू होने के साथ ही अगरबत्ती जलाकर टीवी के सामने रखते थे और टीवी पर ही राम सीता लक्ष्मण और हनुमान के चरण छूते थे .

लॉक डाउन के दौरान सरकार ने लोगों का ध्यान धरम करम में उलझाए रखने की गरज से रामायण दौबारा शुरू किया तो इसे 1988 जैसा रेस्पोंस नहीं मिला . नई पीढ़ी ने इस में दिलचस्पी नहीं ली क्योंकि उसकी अपनी प्राथमिकताएं है जिन पर ये पौराणिक पात्र खरे नहीं उतरते बल्कि फूहड़ ही लगते हैं . इसी दौरान फिर रामायण के पात्रों की चर्चा हुई और अरुण गोविल भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुये .

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अब तक गंगा जी का बहुत पानी बह चुका था खुद अरुण को भी समझ आ गया था कि वह दौर और था और यह दौर और है , लेकिन जाने क्यों उनके दिल की दबी कसक या ख़्वाहिश जुबां तक आ ही गई कि राम की भूमिका निभाने पर उन्हें किसी सरकार ने सम्मान नहीं दिया उत्तरप्रदेश में वे पैदा हुये थे और मुंबई में सालों से रह रहे हैं इसके बाद भी …..

अगर राम का रोल नहीं मिलता तो तय है अरुण गोविल भी 80 -90 के दशक के कई कलाकारों की तरह गुमनामी का शिकार होकर रह जाते जिन्हें 2 -4 फिल्में मिलीं लेकिन अभिनय प्रतिभा न होने के चलते दर्शकों ने उन्हें नकार दिया . अब जब रामायण दोबारा दिखाई गई तो उन्हें क्यों याद आ रहा है कि सरकार उन्हें सम्मान देने की अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा पाई   . शायद ही अरुण गोविल बता पाएँ कि उन्हें कोई सरकार सम्मान क्यों देती या दे . उन्होने ऐसा किया क्या है . राम का रोल निभाना कोई सरकारी काम था क्या और इससे किसका क्या भला हुआ . उन्होने एक्टिंग की थी जिसका मेहनताना उन्हें मिला था लोकप्रियता भी अपार मिली थी ठीक वैसे ही जैसे शोले के गब्बर सिंह यानि अमजद खान को मिली थी .

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पर अरुण  33 साल बाद सरकारी सम्मान के लिए किलप रहे हैं तो इसे लालच और हवस के अलावा इस नजरिए से भी देखा जाना चाहिए कि केंद्र में भगवा सरकार है, अयोध्या में महंगा और भव्य राम मंदिर बन रहा है और बेगारी में बुढ़ापा काट रहे ये भूतपूर्व रामचंद्र जी भी बहती गंगा में हाथ धोना चाह रहे हैं  . कल के इस राम भगवान का दिल अगर किसी सरकारी सम्मान के लिए मचल रहा है तो इसके दूरगामी माने भी भगवा गेंग के हो सकते हैं.

Coronavirus को हराने के बाद परिवार के साथ ऐसे वक्त बिता रही हैं कनिका कपूर

बॉलीवुड सिंगर कनिका कपूर पिछले महीने से लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं. इसकी वजह है कनिका का कोरोना का शिकार होना. अब कनिका कपूर इस जंग से लड़कर अपने घर वापस आ चुकी हैं. कनिका को एक लंबे वक्त तक कोरोनटाइन रखा गया था.

इस दौरान इन्हें जमकर सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया. लोगों ने कनिका पर आरोप लगाए थे कि वह जान बुझकर खुद को कोरोना को छुपाने की कोशिश कर रही थीं.

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वह लंदन से आने के बाद घर पर कोरोनटाइन होने की जगह वह घूम-घूम कर पार्टीयां करती नजर आई. जिस वजह से पार्टी में मौजूद लोगों को भी इस खतरनाक बीमारी का सामना करना पड़ा.

 

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हालांकि अब कनिका सुरक्षित अपने घर पर आ गई हैं. घर आने के बाद कनिका ने पहली तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा किया है जिसमें वह अपने मम्मी-पापा के साथ चाय पीते नजर आ रही हैं.

फोटो शेयर करते हुए कनिका ने लिखा है कि ‘हमें सिर्फ एक मुस्कान, जोश भरा दिल के साथ एक कप चाय चाहिए’.

इस तस्वीर में कनिका कपूर बिल्कुल स्वस्थ्य नजर आ रही हैं. कनिका इन दिनों अपने परिवार के साथ लखनऊ स्थित घर में रह रही हैं.

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इस बीच कनिका ने अपने सफाई में जवाब देते हुए कहा था कि मैं गलत नहीं थी जब मैं यूको से घर से आ रही थी तब मेरा चेकअप हुआ था और मेरा रिपोर्ट निगेटिव आया था. बेवजह लोग मुझे परेशान कर रहे हैं. बिना गलती की लोग मुझ पर आरोप लगा रहे हैं.

बता दें कनिका कपूर इससे पहले लंदन में अपने परिवार के साथ रहती थीं. वह होली पार्टी के लिए अपने होमटाउन वापस आई थी. जिसके बाद यह सारी घटना हुई है. इस दौरान कनिका के बच्चे भई उन्हें बहुत ज्यादा मिस कर रहे थे. अब कनिका परिवार के साथ खुशी का समय बीता रही हैं.

मन ‘मानी’ की बात: आयुर्वेद और तीज त्यौहारों के इर्दगिर्द सिमटी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई मन की बात के 64वे एपिसोड पर गौर करें तो उसके प्रमुख की बर्ड्स यूं बनते हैं – पवित्र रमजान , अक्षय तृतीया , इबादत , अग्नि शेषम , बिहू , वैशाखी , विशू ,पुथन्डु ,ईस्टर, आयुर्वेद,  योग , समृद्ध परम्परा , पांडव ,अक्षय पात्र , ईद , भगवान श्रीकृष्ण , जैन परंपरा , ऋषभदेव , भगवान बसवेश्वर

थोड़ी बहुत उम्मीद थी कि इस मासिक कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी इस बार राहत की , मजदूरों की , रोजगार की , भुखमरी की और दम तोड़ते उदद्योगों की बात करेंगे लेकिन उन्होने कई गंभीर सामयिक मुद्दों से मुंह मोड़े रखा तो समझने बाले सहज समझ गए कि अब देश की अर्थव्यवस्था और जीडीपी जैसे विषयों पर सोचना ही बंद कर दिया जाए .  ये सब मिथ्या बातें हैं इनका कोई महत्व नहीं . महत्व है तो धर्म और धार्मिक बातों का , मोदी लगभग 30 मिनिट लोगों को यही समझाने की कोशिश करते नजर आए .

लाक डाउन और कोरोना के कहर से हैरान परेशान और अनिशिचतता में जैसे तैसे जी रहे लोगों को मोदी मेसेज यही लगता महसूस हुआ कि वे सब चिंताएँ छोड़ प्रभु का ध्यान करें .  खासतौर से मुसलमानों से उन्होने गुजारिश की कि रमजान के पवित्र महीने में वे ज्यादा से ज्यादा इबादत करें ( वैसे भी लोगों के पास अब करने को बचा क्या है ) . क्या ज्यादा इबादत करने से कोरोना भाग जाएगा , यह बात वे साफ कर देते तो पूरे 130 करोड़ लोग इसमें जुट जाते फिर डाक्टरों की , इलाज की और अस्पतालों की जरूरत ही नहीं रह जाती .

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हकीकत तो यह है कि अब नरेंद्र मोदी के पास बोलने कुछ खास बचा नहीं है . उन्हें मालूम है कि इस घड़ी में ज्यादा लंबी फेंकाफाँकी लोग झेल नहीं पाएंगे लिहाजा उनकी बात भगवान और धर्म के इर्द गिर्द घूमती रही , यह धर्माब्लंबियों के लिए बड़ी कारगर दवा और आजमाया हुआ नुस्खा है . यह भी एकतरफा न लगे इसलिए मौके का फायदा उठाते हुये इसमें रमजान और ऋषभदेव भी घुसेड़ दिये गए .  इससे यह भी साबित हो गया कि ऊपर बाले के मामले पर सरकार की राय नेक और एक है कि किसी धर्म का भगवान तो सुनेगा .

दूसरे यह न तो मौका था और न ही कोई वजह थी कि आयुर्वेद का प्रचार किया जाए बाबजूद यह जानने समझने के कि दूसरी तमाम बीमारियों की तरह कोरोना का इलाज भी एलोपेथिक पद्धति से हो रहा है . इस वायरस के देश में आने के बाद जरूर कुछ लोगों ने कोशिश की थी कि गोबर , कपूर , गिलोय  और गौ मूत्र से ही कोरोना को भगा दिया जाए .  ये ही वे लोग हैं जिनहोने इस जानलेवा वायरस की भयावहता को तात्कालिक समझा और इसे भी भुनाने की कोशिश की जो अब मूर्खता ही साबित हो रही है . प्रसंगवश यह बताना जरूरी है कि चूंकि कोरोना के बारे में उल्लेखनीय और उपयोगी जानकारिया वैज्ञानिकों के पास भी नहीं हैं इसलिए भाई लोगों और भक्तों ने तो हमेशा की तरह अज्ञानता पर अपनी दुकान चमकाने यह तक प्रचार शुरू कर दिया था कि नीबू का सेनेटाइजर बनाकर हाथ धोओ कोरोना दम तोड़ देगा .

अभी भी देश भर में कोरोना भगाने गायत्री मंत्र का जाप किया जा रहा है यज्ञ हवन किए जा रहे हैं पर कोरोना है कि भाग नहीं रहा है . हाँ इतना जरूर हो रहा है कि समाज में पसरा अंधविश्वास कायम है और , और भी पुख्ता हो रहा है . मोदी जी नहीं चाहते कि मुसलमान भी इस कुचक्र और जाल से बाहर आयें सो उन्होने कहा ज्यादा से ज्यादा इबादत करें शायद भगवान और अल्लाह मिलकर कोरोना को नष्ट कर दें . बात सही है कि कोरोना से मिलजुल कर लड़ना है इसलिए ऊपर बालों को भी एक हो जाना चाहिए लेकिन बशर्ते वे कहीं हों तो ….

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मन की बात के ताजे एपिसोड में तुक की बात तो कहीं थी नहीं पर गैरज़रूरी और बेतुकी बातों की भरमार थी .  लगा ऐसा भी कि मुद्दों से दूर नरेंद्र मोदी केवल अक्षयतृतीया की शुभकामनायें रेडियो के जरिये देना चाह रहे थे .  बाकी लड़ना है , स्वास्थकर्मी मोर्चे पर डटे हैं , दो गज की दूरी रखें , थूके नहीं , मुंह पर गमछा बांधे जैसी चलताऊ बातों जो प्रवचन ज्यादा लगती हैं का मूल समस्या से कोई लेना देना है नहीं .

लोगों को इस वक्त चिंता यह है कि जो हो रहा है वह अपनी जगह है लेकिन सरकार उनके लिए क्या कर रही है . लाक डाउन के बाद उनके हाथों को रोजगार मिले इसके लिए सरकार क्या योजना ला रही है . 40 करोड़ रोज कमाने खाने बालों के हाथ पाँव फूले हुये हैं जिन्हें अंदाजा है कि मुफ्त का सरकारी राशन और नाम मात्र की राहत राशि  उनकी परेशानियों का हल नहीं है और वह भी सभी को नहीं मिल रहे हैं . समस्या है सरकार का फोकस 10 – 12 करोड़ लोगों पर होना जिनमे से 4 -5 करोड़ अंन्धभक्त हैं . मन की बात इन्हीं लोगों के लिए थी कि तुम लोग डटे रहो बाकी सब हम मेनेज कर लेंगे .

मेनेज करने का सीधा सा मतलब यह है कि कोई क्रांति या विद्रोह सरकार के खिलाफ नहीं होने दिया जाएगा लेकिन इसके लिए मध्यमववर्गीयों को थोड़ा त्याग करने प्रस्तुत रहना चाहिए .  यह बात लोग बिना समझाये समझ भी रहे हैं इसीलिए डेढ़ साल तक केंद्रीय कर्मचारियों के मंहगाई भत्ते में कटोती पर कोई खास हलचल नहीं हुई .  यह वर्ग भाजपा का बड़ा वोट बेंक है .

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मन की बात में एक बार विकास शब्द का उल्लेख होना यह स्वीकारोक्ति तो है कि हम अभी भी विकासशील हैं , कल भी थे और कल भी रहेंगे .  5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था की बात अब नरेंद्र मोदी नहीं करते और अगली किसी मन की बात में कहेंगे भी कि हमारी तो पूरी तैयारी थी लेकिन कोरोना ने सब गुड गोबर कर दिया और इससे असहमत भी नहीं हुआ जा सकता हाँ इतना जरूर याद रखा जा सकता है कि देश की अर्थव्यव्स्था कोरोना के कहर के काफी पहले से  ही ध्वस्त थी .

बहरहाल संकट और परेशानियों के इस दौर में मन की बात के जरिये नरेंद्र मोदी आम लोगों मजदूरों ,युवाओं , किसानों और छोटे मँझोले व्यापारियों को आश्वस्त नहीं कर पाये हैं इससे ज्यादा हर्ज की बात यह है कि वे 30 में से लगभग 18 मिनिट भगवान , आयुर्वेद , रमजान और इबादत बगैरह करते और कहते रहे जिससे समस्याएँ हल नहीं होतीं उल्टे अनदेखी का शिकार होते और बढ़ती ही हैं . आने बाले वक्त में सरकार इस पर कटघरे में भी खड़ी होगी लेकिन तब तक जो और जितना बिगड़ चुका होगा उसकी भरपाई करने में सदियों लग जाएंगी .

जो बिगड़ा है वह उन बेकबर्ड लोगों का बिगड़ा है जो गाँव देहातों की जकड़नों से जूझते शहरों तक पहुँच पाये थे .  इनका संघर्ष और मकसद सिर्फ रोजगार नहीं था बल्कि अपनी अगली पीढ़ी के लिए शिक्षा और रोजगार के सम्मानजनक मौके मुहैया कराना भी था लेकिन कोरोना और लाक डाउन ने इन्हें वहीं धकेल दिया है जहां से कभी हिम्मत जुटाकर ये लोग चले थे . अफसोस इस बात का है  कि मन की किसी बात में इनके लिए कुछ नहीं होता क्योंकि ये बेकबर्ड हैं.

#coronavirus: लॉकडाउन में बढ़ी ईएमआई के दिक्कते

लॉकडाउन के दौरान ऑटो रिक्शा चालकों और कैब ड्राइवर दोनो का कारोबार ठप्प हो गया है. गाड़िया स्टैंड पर खड़ी हो गई है और उसको चलाने वाले घरो में बैठ गए है. परेशानी की बात यह है कि जो गाड़िया बैंक के लोन पर है उनकी ईएमआई कैसे चुकाई जाय ?

एक माह से ऊपर का समय बीत गया लखनऊ के ऑटो रिक्शा चालक अपने घरों पर बिना काम काज के बैठे है. उनकी ऑटो टैक्सी स्टैंड पर या घरो में खड़ी है. इनमे से कुछ ऑटो चालक ऐसे है जिन्होंने खुद बैंक से लोन लेकर अपना काम शुरू किया और कुछ ऑटो चालक ऐसे है जो केवल रोज की दिहाड़ी के आधार पर अपना काम करते है.

ऐशबाग एरिया में रहने वाले सुनील मिश्रा बताते है “साल भर पहले हमने 4 ऑटो रिक्शा बैंक से लोन पर लिए था. बैंक से लोन लेकर 10 लाख की पूंजी लगाई थी.अब शहर में तमाम ऑटो रिक्शा होने से पहले जैसी कमाई नही रह गई थी फिर भी हर दिन एक ऑटो से 1 हजार रुपये प्रतिदिन की बचत हो जाती थी. इससे हमारा अपना और 4 ऑटो चालको के परिवारों का भरण पोषण हो रहा था. पिछले एक माह से लोक डाउन के कारण सभी 4 ऑटो रिक्शा बिना किसी काम के खड़े है. कमाई तो हो ही नही रही उल्टे बैंकों को दी जाने वाली लोन की ईएमआई का पैसा कैसे दिया जाए समझ मे नही आ रहा.”

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सुनील मिश्रा की ऑटो किराए पर चलाने वाला मोहम्मद शाहिद कहता है “हम ऑटो रिक्शा चला कर अपने परिवार का भी पालन पोषण कर रहे थे और अपने ऑटो रिक्शा मालिक को भी पैसा दे रहे थें. अब सब भुखमरी के शिकार हो रहे है. हमारी परेशानी है कि हम किस तरह से अपना पेट पाले और किस तरह से बैंक का लोन चुकाए”.

ईएमआई बनी मुसीबत :

ऑटो रिक्शा चालकों और मालिको को दोहरी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है. एक तो उनका कारोबार खत्म हो गया है दूसरे उनको लोन ली गई बैंक की किश्त चुकानी है. सुनील मिश्रा बताते है “बैंक समय पर ईएमआई खाते से काट रहे है. एक भी माह की ईएमआई नही देने से अगले माह ब्याज सहित यह पैसा देना पड़ेगा. अभी यह साफ नहीं है कि कब तक लॉक डाउन खुलेगा. और कब हमारा काम शुरू होगा”.

परिवहन विभाग ऑटो और टैक्सी के लिए कोरोना संकट से निपटने के लिए कुछ उपाय करने की सोच रहा. इनमे एक उपाय यह है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जाए. इसका मतलब यह होगा कि ऑटो में पहले की तरह 3 सवारियों को नही बैठाया जा सकेगा. यह हालत कम से कम 6 माह रहने की उम्मीद है. ऐसे में ऑटो रिक्शा चालकों के सामने परिवहन विभाग की नई गाइड लाइन किसी मुसीबत से कम नही होगी. हालांकि अभी परिवहन विभाग के अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नही है. उनका कहना है कि कोरोना को रोकने के लिए लॉक डाउन खत्म होने के बाद ऑटो रिक्शा चालकों के लिए भी नई गाइड लाइन विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशो के अनुरूप बनाई जा सकेगी.

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लखनऊ में ही केवल 40 हजार ऑटो रिक्शा चालक है. सभी के साथ ऐसी परेशानी आ रही है. केवल ऑटो रिक्शा चालकों के सामने ही यह हालत नही है. पिछले एक साल में ओला और उबर कैब चालको ने भी बैंक से लोन लेकर अपना बिजनेस शुरू किया था. इन सभी ने अपने अपने नाम से बैंक से लोन लिया था. अब यह लोग भी ईएमआई नही दे पा रहे है.

मुसीबत में कैब ड्राइवर :

लखनऊ में करीब 10 हजार ऐसे लोग है जो ओला उबर के लिए गाड़ियों के लिए बैंक से लोन ले चके है. अब यह भी एक माह से बन्द है. ऐसे में कमाई तो खत्म हुई ही है परेशनी यह है कि यह अपनी बैंक की ईएमआई कैसे चुकाए.

कैब ड्राइवर नरेश यादव बताते है “हम मुम्बई में पहले टैक्सी चलाते थे. घर वालो की परेशानी को देख कर हम लखनऊ वापस आ गए. यँहा बैंक से लोन लेकर कार ली और उसका प्रयोग कैब के रूप में करने लगे.हर माह की गाड़ी की किश्त काट कर इतना बच जाता था कि परिवार का भरण पोषण हो जाये. लॉक डाउन के बाद अब सब कुछ ठप्प हो गया है.आगे क्या होगा कैसे बैंक की किश्त जाएगी और कैसे घर परिवार चलेगा समझ नही आ रहा है.

 

# lockdown : टमाटर हुआ खराब हो गई फसल तबाह

टमाटर को बोने वाले किसानों की तो मानो कमर ही टूट गई है. एक ओर कोरोना का डर सता रहा है, वहीं दूसरी ओर फसल बचाने की चिंता. ऊपर से मौसम भी अठखेलियां कर रहा है. कभी जम कर बारिश  हो रही है, तो कहीं ओले गिर रहे हैं. इस वजह से फसल में रोग व कीट लग रहे हैं.

लौकडाउन लगने के बाद जब इन किसानों को खेतों में जा कर काम करने की छूट दी गई तो ये किसान खेतों की ओर दौड़ पड़े, तब तक काफी देर हो चुकी थी. वजह, वहां के खेतों में टमाटर ही टमाटर हैं, लेकिन ज्यादातर खराब हैं क्योंकि समय पर कीटनाशक दवा का छिड़काव नहीं हो पाया.

वहीं दूसरी वजह, लौकडाउन में कीटनाशक दुकानों पर ताले लटके हुए थे, इस वजह से ये किसान कीटनाशक खरीद नहीं पाए और समय पर दवा नहीं छिड़क सके.

इसी तरह की दोचार समस्याओं से जूझ रहे किसानों के सामने माली संकट गहरा गया है, वहीं बचा कर रखे पैसे भी खत्म होने के कगार पर हैं. इतना ही नहीं, किसानों ने कर्ज ले कर टमाटर की फसल उगाई थी, पर अब टमाटर के खरीदार ही नहीं मिल रहे. इस वजह से वे साहूकारों का पैसा नहीं लौटा पा रहे हैं.

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इन किसानों के सपने अब बुरी तरह टूट चुके हैं. समस्याएं विकराल रूप लिए खड़ी हैं. एक ओर मंडी में टमाटर की आवक कम हुई है, वहीं टमाटर के पौधों में तमाम तरह की बीमारी लग गई है. खेतों में समय पर कीटनाशक छिड़काव नहीं हो पाया. इस वजह से टमाटर की पूरी फसल ही तबाह हो गई.

वैसे, टमाटर में मोजैक बीमारी लगने से फलन में जहां कमी आई है, वहीं पत्तियां  भी पीली पड गई हैं और तना सड़ गया है. वहीं, मौसम में अचानक आए बदलाव से टमाटर में ब्लाइट रोग लग गया है.

इस रोग में टमाटर के पौधों के पत्तों पर काले धब्बे पड जाते हैं. इस से नजात पाने के लिए किसानों को समय रहते दवा का छिडकाव करना चाहिए, पर ऐसा हो न सका.

वैसे, इस बीमारी से नजात पाने के लिए ब्लाईटौक्स 30 ग्राम प्रति 10 लिटर पानी में घोल बना कर पौधों पर छिडकाव करें. फिर भी पौधों पर असर न दिखे तो 10-12 दिन के अंतराल पर फिर से दोबारा छिडकाव करें.

मुरादनगर, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में कई ऐसे गांव हैं, जहां किसानों की टमाटर की फसल खराब हो गई. किसानों की समस्या यह है कि वे पहले खुद को तो कोरोना से बचा लें. वहीं मजदूरों की समस्या से भी जूझना पड़ रहा है.

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लौकडाउन में सब्जी की मंदी है. यही कारण है कि कोई बड़ा कारोबारी उसे नहीं खरीद रहा. इस प्रतिबंध की वजह से किसान खुद भी मंडी तक टमाटर नहीं पहुंचा सकते. अगर वे किसी तरह टमाटर मंडी तक पहुंचा भी देते हैं तो उन्हें इस की पूरी लागत नहीं मिल पाती है. उलटा लागत से अधिक ट्रांसपोर्ट का खर्चा आ जाता है.

टमाटर की खेती करने वाले एक किसान का कहना है कि इस बार हमें बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है क्योंकि टमाटर की खेती खराब हो चुकी है. और जो टमाटर बचे हैं, उस के लिए खरीदार नहीं हैं. ऐसे में हम बहुत परेशान हैं.

कुछ ऐसे ही हालात दूसरे किसानों के भी हैं. ठेके पर खेत ले कर टमाटर की खेती करने वाला एक किसान बताता है कि हमारी कमाई का यही जरिया है, लेकिन बीमारी लगने से खेती ही बरबाद हो गई. मुसीबत यह है कि एक तो टमाटर की खेती में लागत नहीं निकल पा रही है, वहीं जमीन मालिकों को भी पैसा देना होता है. एक बीघा टमाटर की खेती करने पर 12,000 से ले कर 14,000 रुपए की लागत आती है, वहीं इसे बेचने पर किसानों को 40,000-50000 रुपए तक की आमदनी होती थी, लेकिन इस बार आमदनी कुछ है ही नहीं.

वहीं एक और किसान के मुताबिक, इस बार टमाटर की 5 से 6 बीघा फसल में तकरीबन 4 लाख रुपए से ज्यादा का नुकसान हो रहा है. अगर वे सब्जियों को मंडी ले जाने की कोशिश करते भी हैं तो रास्ते में पुलिस तंग करती है यानी एक तरफ कीटनाशक दवा की कमी से टमाटर खराब हो गए हैं, जो बचे भी हैं उसे मौसम ने बरबाद करने में कसर नहीं छोड़ी है.

यही वजह है कि सब्जी की बड़ी मंडियों में टमाटर पहुंच ही नहीं पा रहा है. अगर किसी वजह से पहुंच भी जाए तो वहां उचित कीमत नहीं मिल पा रही. वहीं बाहर के देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान वगैरह में पाबंदी लगने के कारण टमाटर नहीं पहुंच पा रहा है. इस वजह से टमाटर पडे़पडे़ सड़ रहे हैं या खराब हो रहे हैं.

टीकमगढ़ कसबे का एक किसान अपनी परेशानी कहता है कि उस ने कर्ज ले कर 2 एकड़ में टमाटर की फसल तैयार की थी, पर रोग लगने के कारण टमाटर की फसल काली पड़ने के साथ ही सूख गई. अब वह परेशान है कि उस की रोजीरोटी कैसे चलेगी.

एक ओर उत्तर भारत में बीमारी का गहराता संकट है, वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र  व दक्षिण भारत के कई इलाकों में किसानों के खेतों में जहां टमाटर की बंपर पैदावार हुई है, पर वहां खरीदार नहीं मिल रहे. औनेपौने दामों में टमाटर के बिकने से किसान परेशान हैं.

उत्तर गुजरात के गांवों में रोज हजारों किलो टमाटर सडकों पर फेंके जा रहे हैं. वजह, मुनासिब दाम न मिलना है. वहां की मंडियों में टमाटर की कीमत महज 2-3 रुपए या इस से कम है. वहीं गुजरात के साणंद जिले के आसपास के गांवों में किसान बाजार में बेचने के बजाय जानवरों को खिलना बेहतर समझ रहे हैं. वजह टमाटर के दाम में आई भारी गिरावट है.

गुजरात में तकरीबन 50,000 टन टमाटर का उत्पादन होता है, वहीं इस साल 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. लेकिन उत्पादन बढ़ने के बावजूद पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों को होने वाला एक्सपोर्ट भी बंद है. घरेलू मांग कम होने से किसानों के पास ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं. ऐसे किसानों को सरकार से उम्मीद है कि सरकार कम से कम ट्रांसपोर्ट में सब्सिडी दे ,ताकि इन का यह सीजन फेल न हो. पर, किसानों के सामने संकट है कि टमाटर के दाम खेतों से मंडियों तक की ढुलाई लागत से भी नीचे जा चुके हैं.

राष्ट्रीय बागबानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा इकटठा किए गए आंकडों के मुताबिक, महाराष्ट्र में नासिक जिले की बेंचमार्क पिंपलगांव मंडी में पिछले दिनों अच्छी क्वालिटी वाला टमाटर डेढ़ से 2 रुपए प्रति किलों की दर पर बिका. दामों के इस स्तर ने किसानों को चिंता में डाल दिया, क्योंकि खेतों से मंडी तक की ढुलाई लागत इस से कहीं ज्यादा है.

इन किसानों की मुसीबतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं. छोटे व मंझोले किसानों  पर दोहरीतिहरी मार पड़ी है. इन किसानों को सरकार से उम्मीद तो है, पर कितनी, कहना मुश्किल है. अब सरकार व प्रशासन को समझना है कि इन किसानों की समस्याएं कैसे हल की जाएं.

#coronavirus: लौकडाउन, शराब और फिर हत्या

वे घर की छत पर पी रहे थे शराब. पङोसी ने रोका तो फिर क्या हुआ उस के साथ, जान कर रौंगटे खङे हो जाएंगे…

देश में लागू लौकडाउन के बीच दिल्ली के पटेल नगर के प्रेम नगर इलाके में 6 दोस्तों को शराब की लत ले डूबी.

कई दिनों से शराब न मिलने पर इन दोस्तों ने योजना बनाई और शराब पीने एक घर की छत पर बैठ गए. शराब के साथ ये सिगरेट का कश भी ले रहे थे। नशा परवान चढ़ा तो जबान भी फिसलने लगी. शोर होते देख पास में रहने वाले एक पङोसी ने पहले तो उन्हें समझाया पर जब ये नहीं माने तो इस की शिकायत मकानमालिक से कर दी.

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वारदात वाले दिन…

वारदात शाम के वक्त की है. पुलिस तफ्तीश के मुताबिक 6 लङके पटेल नगर के प्रेम नगर इलाके में एक शख्स की घर के छत पर बैठ कर शराब पी रहे थे. बगल में लगभग 40 साल के एक पङोसी को लगा कि लौकडाउन के बावजूद भी इस तरह बैठ कर ये शराब क्यों पी रहे हैं? इसी बात को ले कर दोनों पक्षों में झगङा शुरू हो गया.

रोकना पङ गया भारी

खबर के मुताबिक 6 लङके पहले तो मकान से उतर गए फिर थोङी ही देर बाद लोहे की रौड, चाकू व डंडे के साथ आए और शिकायत करने वाले पङोसी के साथ मारपीट करनी शुरू कर दी. पहले तो पङोसी भी भिङ गया पर तभी उन में से एक लङके ने उस शख्स को चाकू मार दिया. चाकू तेज मारा गया था लिहाजा शख्स की मौत हो गई.

आरोपियों ने उस शख्स को बचाने आए बेटे और उस के साले पर भी चाकू से हमला किया है, जिस से वे घायल हो गए.

पटेल नगर थाना के एसएचओ रमेश चंदर ने फोन पर बताया,”मामले की सूचना मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंची और संबंधित आरोपियों पर काररवाई शुरू कर दी है.”

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थाना पटेल नगर एसएचओ के मुताबिक, गिरफ्तार लड़कों में 4 नाबालिग हैं जबकि 2 बालिग. पुलिस आगे की काररवाई कर रही है. आरोपियों ने शराब कहां से खरीदी यह जानकारी भी जुटाई जा रही है.

लत है यह गलत

कहते हैं जब लत बुरी लग जाए तो न सिर्फ शरीर, बल्कि पूरी जिंदगी ही तबाह हो जाती है. शराब की गंदी लत ने कम उम्र में ही इन को अपराधी बना दिया.

एक अध्ययन के मुताबिक 12 से 18 साल के लड़कों के बीच शराब या अन्य तरह की नशा करने की आदत बढ़ी है. इस के अलावा वे गांजा व अफीम का सेवन भी कर रहे हैं. ये गंदी लत किशोरों को शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं.नशे की लत के चलते किशोर आक्रामक हो रहे हैं और इस घटना में भी जाहिर है कि आरोपियों में 4 नाबालिग भी नशे की बुरी गिरफ्त में होंगे.

अभिभावकों की जिम्मेदारी

बचपन बचाओ आंदोलन से जुङे व कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन के सीनियर पदाधिकारी मनीष शर्मा बताते हैं,”अभिभावकों को भी बढ़ते बच्चों पर विशेष ध्यान रखने की जरूरत है. ऐसा देखा गया है कि पारिवारिक कलह, भागदौड़ भरी जिंदगी के बीच अभिभावक बच्चों की परवरिश के प्रति लापरवाह हो जाते हैं. इस से बच्चे खुद को उपेक्षित महसूस करने लगते हैं. उन की सोचनेसमझने की शक्ति बदल जाती है और वे हिंसक हो जाते हैं.”

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उन्होंने बताया,”बढ़ते बच्चों के हाथों में स्मार्टफोन देना भी आज के समय में खतरनाक बनता जा रहा है. एक सर्वे में यह खुलासा किया गया है कि लौकडाउन के बीच खासकर बच्चों में चाइल्ड पोर्नोग्राफी काफी बढ़ गया है. अभिभावक बच्चों के हाथों में मोबाइल तो दे देते हैं पर उन पर नजर नहीं रखते. दूसरा, भारतीय कानून के अनुसार 18 साल से कम उम्र के बच्चों को तंबाकू व नशे से जुङी कोई भी चीज बेचने पर प्रतिबंध है. इसलिए पुलिस को चाहिए कि वे अपने तफ्तीश में यह भी पता लगाएं कि अगर नाबालिगों ने शराब व सिगरेट खरीदे तो कहां से? उन पर भी काररवाई हो.”

कुसूर किस का

आरोपियों पर अब भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत काररवाई होगी. जो आरोपी बालिग हैं वे सालों जेलों में रहेंगे. थोङी सी लापरवाही और गलत परवरिश एकसाथ कई परिवारों को कितना गहरा सदमा दे जाता है.

अनोखा रिश्ता: भाग3

श्रेया जब 2 साल की हुई तो पराग को अमेरिका में अच्छी नौकरी मिल गई. अमेरिका जाने से पहले तीनों आए थे मुझ से मिलने. श्रेया को देख कर, शीतल को याद कर के मेरी आंखें गीली हो गई थीं. मेरा ध्यान गरिमा की ओर गया तो मैं ने मुसकरा कर उस का स्वागत किया. गरिमा को मैं तसवीर में तो देख चुकी थी, पर पहली बार उस से रूबरू होने का मौका मिला था. उस की शक्लसूरत तो अति साधारण थी ही, वह कुछ भीरू और संकोची भी लगी. मैं ने उस से बातचीत करने की कोशिश की तो धीरेधीरे मेरे स्नेहिल व्यवहार के कारण वह मुझ से खुल कर बातें करने लगी. जब वे जाने लगे तो मैं ने गरिमा से संपर्क बनाए रखने को कहा.

गरिमा ने अपना वादा निभाया और मुझ से संपर्क बनाए रखा. कभी फोन पर, तो कभी ई मेल भेज कर. श्रेया 3 साल की थी तो खबर आई कि गरिमा ने बेटे को जन्म दिया है. मैं ने उन्हें बधाई दी. पुत्र के जन्म के 1 साल बाद पूरा परिवार भारत आया तो वे जल्द ही मुझ से मिलने भी आए. श्रेया अब पटरपटर बोलने लगी थी. उस का भाई सांवला, दुबलापतला था. वह अपनी मां पर गया था. पराग और गरिमा बेहद आत्मीयता से हम से मिले.

लेकिन पहले की तरह उन्होंने हमारे साथ संपर्क बनाए रखा. पराग के मुकाबले गरिमा ही ज्यादा बातें किया करती थी. गरिमा ने मुझे बताया कि अब उन्होंने निश्चय किया है कि वे श्रेया को उस की मां का सच बताना चाहते हैं. पराग का मानना था कि अब श्रेया समझने लगी है, इसलिए इस बात का उसे किसी और से पता लगने पर उसे दुख होगा कि हम ने उस से क्यों छिपा कर रखा. यह सुन कर मैं घबरा गई. मैं सोचने लगी कि कहीं वास्तविकता जानने के बाद श्रेया का व्यवहार गरिमा के प्रति बदल गया तो? 2 दिन बाद पराग का ईमेल आया, ‘दीदी, हम ने श्रेया को शीतल के बारे में बता दिया है. सब कुछ जानने के बाद भी उस का व्यवहार सामान्य है. उस में कोई बदलाव नहीं है.’

पढ़ कर मैं ने राहत की सांस ली. इस बार पराग ने श्रेया को अकेले भारत भेजा. उस का कहना था कि अगर श्रेया अपनी दिवंगत मां के बारे में कुछ जानना चाहे तो अपनी नानी से या मुझ से बेझिझक पूछ सकती है. श्रेया को लेने हम एअरपोर्ट गए. श्रेया जब बाहर निकली तो मैं दंग रह गई उस 13 वर्षीय किशोरी को देख कर वह हूबहू शीतल की तरह दिख रही थी.

श्रेया घर आ कर रिया और राहुल के साथ खेलने में व्यस्त हो गई. मुझे तो जैसे लाइसैंस मिल गया था शीतल के बारे में बातें करने का. मैं जब उसे शीतल के बारे में चंद बातें बताने लगी, तो उस ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. फिर भी मैं चुप नहीं रही और श्रेया को कुछ और बताने लगी शीतल के बारे में, तो श्रेया ने कहा, ‘‘छोडि़ए न बड़ी मां. मुझे उन के बारे में जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है. मेरी मां तो गरिमा हैं.’’

श्रेया जब तक भारत में रही गरिमा के ही गुणगान करती रही. शीतल के बारे में उस ने कुछ नहीं पूछा. राहुल और रिया के साथ चहकती फिरती रही. नियत दिन पर हम से आज्ञा ले कर वह अमेरिका लौट गई.न्यूयार्क के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में राहुल को एम.एस. की पढ़ाई के लिए दाखिला मिल गया. रिया के लिए भी एक अच्छा सा वर मिल जाने के कारण मैं ने उस की शादी कर दी. सुरेश ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी. हम सब ने एकसाथ अमेरिका  जाने का फैसला किया.

राहुल को भी क्रिसमस की 1 सप्ताह की छुट्टी मिली. हम सब पराग के घर पहुंचे. पराग और गरिमा ने हमारा दिल खोल कर स्वागत किया. श्रेया अब कालेज में दूसरे शहर में पढ़ती थी. पर उस की भी छुट्टियां शुरू हो गई थीं, इसलिए वह भी वहीं थी. श्रेया 21 साल की सुंदर युवती थी. दोनों बच्चों ने आगे बढ़ कर हमारा अभिवादन किया.

हमारे आने की खबर मिलते ही गरिमा ने ढेर सारी खाने की चीजें बना डाली थीं. नाश्ता करने के बाद सुरेश और पराग किसी चर्चा में मशगूल हो गए. गरिमा रसोईघर की ओर जाने लगी, तो उस के पीछेपीछे मैं ने भी रसोई में प्रवेश किया. मैं ने गरिमा की मदद करनी चाही तो उस ने एक कुरसी खींच कर उस में मुझे बैठा दिया, ‘‘आप यहां आराम से बैठ कर बातें कीजिए. मैं सब कर लूंगी.’’ फिर गरिमा वहां से जाने लगी तो मैं ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘गरिमा, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं. तुम ने बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं. शीतल के गुजरने के बाद, श्रेया के बारे में सोच कर मैं बहुत परेशान हो गई थी कि बिन मां की बच्ची का क्या होगा? पर तुम ने तो उसे मां से भी बढ़ कर प्यार दिया.’’

‘‘दीदी, मुझे भी तो श्रेया के बदौलत ही समाज में इतनी इज्जत मिली. उसी की बदौलत तो मैं इस घर में आई.’’

मैं ने उसे गले से लगा लिया, ‘‘यह तुम्हारा बड़प्पन है गरिमा कि तुम ऐसा सोचती हो.’’

मेरा स्नेहसिक्त स्पर्श पा कर जैसे गरिमा के अंदर दबी हुई ज्वालामुखी फूट पड़ी. मैं ने महसूस किया, गरिमा कितनी आहत थी. आज उस ने मेरे सामने अपना दिल खोल कर रख दिया, ‘‘दीदी, पराग ने आज भी अपने मन में शीतल को बसा रखा है. वहां मेरे लिए अभी भी कोई जगह नहीं है. शादी के बाद कई सालों तक हम दोनों के बीच एक अभेद्य दीवार बनी रही. सिर्फ श्रेया की वजह से हम एकदूसरे से जुड़े थे. मुझे लगता है कि सिर्फ श्रेया के लिए ही पराग ने मुझ से शादी की थी. पराग ने मुझ से शादी के कई साल बाद शारीरिक संबंध बनाए, जिस का नतीजा अमित है. दीदी, आप ही बताइए, जैसा प्यार उन्होंने शीतल के साथ किया था, क्या मैं भी वैसे ही प्यार की हकदार नहीं हूं?’’

अचानक मुझे गरिमा बेहद खूबसूरत लगने लगी. उस की आंतरिक सुंदरता छलक कर बाहर आती हुई दिखाई दी मुझे. मैं ने सोच लिया कि मैं पराग से इस विषय पर अवश्य बात करूंगी. खाना खाने के बाद हम घूमने जाने के लिए निकले. गरिमा और पराग ने अपनीअपनी गाड़ी निकाली. गरिमा का एक और रूप देख कर मैं आश्चर्यचकित रह गई. पूरे आत्मविश्वास के साथ अमेरिका की सड़कों पर गाड़ी दौड़ा रही थी गरिमा. मेरे आश्चर्य प्रकट करने पर उस ने कहा, ‘‘शुरूशुरू में मैं बहुत डरती थी पर

कार चलाना मेरी मजबूरी थी. यहां सार्वजनिक वाहन नहीं मिलते न. कब तक छोटेछोटे कामों के लिए भी पराग पर निर्भर रहती?’’

मैं ने कहा, ‘‘वाह, गरिमा, तुम ने बहुत मेहनत की है अपनेआप को ऊपर उठाने में. मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह वही संकोची गरिमा है.’’

सुबह उठने पर जब मैं ने देखा कि सूरज की उजली किरणें बगीचे को स्पर्श करने लगी हैं, तो अपने शरीर पर भी उन किरणों की छुअन महसूस करने के लिए अपने को रोक न पाई और बगीचे में चहलकदमी करने लगी. तभी पीछे से पराग ने पुकारा. मैं ने सोचा यही सही मौका है पराग से बातें करने का. कुछ औपचारिक बातों के बाद में सीधे मुद्दे पर आ गई, ‘‘पराग, गरिमा ने कितनी खूबसूरती से घर और बच्चों को संभाला और उन्हें बड़ा किया है न?’’

‘‘हां दीदी, रिश्तेदारों में अपनेआप को साबित करने के लिए गरिमा को न जाने कितनी बार अग्निपरीक्षा से हो कर गुजरना पड़ा. उसी की बदौलत तो निश्चिंत हो कर मैं नौकरी में अपना ध्यान लगा सका.’’

‘‘गरिमा के योगदान को मानते हो न पराग, फिर क्या तुम ने भी उसे वह सब कुछ दिया, जिस की वह हकदार है?’’

चौंक कर देखा पराग ने मेरी तरफ, ‘‘क्यों दीदी, मैं ने उसे क्या कुछ नहीं दिया? एक आरामदायक घर, पैसा, अपनी इच्छानुसार जीने की छूट और क्या चाहिए जिंदगी जीने के लिए?’’

‘‘पराग, एक स्त्री भौतिक सुखसुविधाओं से बढ़ कर अपने पति के सान्निध्य की भूखी होती है. अपना संकोच छोड़ कर तुम से पूछना चाहती हूं कि क्या तुम ने कभी गरिमा को अपने अंक में भर कर उस से टूट कर प्यार किया? क्या उसे वैसा प्यार देते हो जैसा तुम शीतल को दिया करते थे?’’

‘‘दीदी, क्या गरिमा ने आप से कुछ कहा?’’

‘‘यही तो विडंबना है पराग कि एक नारी अपने मुंह से कुछ नहीं कहेगी. उस की व्यथा को तुम्हें खुद समझना होगा. उस की भी तो शारीरिक जरूरतें हैं, जिन्हें सिर्फ तुम पूरा कर सकते हो. मुझे लगता है, तुम अभी भी शीतल को भुला नहीं पाए हो. शीतल तुम्हारा अतीत थी और गरिमा तुम्हारा वर्तमान. अतीत को वर्तमान पर हावी मत होने दो. इस से पहले कि गरिमा को अपना अस्तित्व बिखरता हुआ महसूस होने लगे, उस के साथ अकेले में वक्त बिताओ, उसे प्यार दो.’’

काफी देर तक सोच में डूबा रहा पराग, मैं ने उसे झकझोरा तो वह बोला, ‘‘दीदी, मुझ से बड़ी भूल हो गई है. आप चिंता न करें, मैं गरिमा को उस का हक दूंगा.’’

बातों ही बातों में पराग ने बताया कि श्रेया किसी विदेशी लड़के को चाहती है. शुरूशुरू में तो वह इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं था पर गरिमा ने समझाया था उसे कि लड़का पढ़ालिखा और होनहार है. और फिर श्रेया इस रिश्ते को ले कर गंभीर है, इसलिए हमें श्रेया का दिल नहीं दुखाना चाहिए.

गरिमा के इस सोच ने फिर मुझे उस का कायल बना दिया. मैं ने कहा, ‘‘गरिमा बिलकुल सही कहती है, पराग. हमें समय के साथ बदलना चाहिए.’’

धूप तेज हो गई थी. हम घर के अंदर आ गए.

गरिमा और पराग भारत आ कर सभी रिश्तेदारों के सामने श्रेया की शादी करना चाहते थे. विदेश में बैठेबैठे ही पराग ने कंप्यूटर द्वारा मुंबई में शादी के लिए जगह, खानपान आदि का प्रबंध कर लिया. नियत दिन से 2 दिन पहले सब भारत आए. दिल्ली से मेरे मांपापा मौसीजी को ले कर मुंबई आए. एकांत मिलने पर गरिमा ने मुझे बताया कि पराग बहुत बदल गया है और उस का बहुत खयाल रखता है. सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा. मैं ने गरिमा की आंखों में चमक पहले ही देख ली थी.

नियत दिन पर श्रेया का विवाह हो गया. विवाह में उपस्थित सभी रिश्तेदारों को धन्यवाद देते हुए पराग ने सार्वजनिक रूप से गरिमा की दिल खोल कर प्रशंसा की. गरिमा ने संकोच से सिर झुका लिया, पर वह बहुत प्रसन्न थी. मैं सोचने लगी कि देर से ही सही, उसे न्याय तो मिला.

आज श्रेया की शादी कर के उस ने श्रेया के प्रति अपना यह कर्तव्य भी पूरा कर लिया था. उस ने यह साबित कर दिखाया था कि जन्म देने वाले से पालने वाला बड़ा होता है. गरिमा आज सब की नजरों में ऊपर उठ गई थी. मेरे मुख से बरबस निकल पड़ा, ‘‘गरिमा, तू धन्य है.’’

 

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