प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महज 4 घंटे के नोटिस में पूरे देश में लाकडाउन की घोषणा की थी. इस कारण जो जहां थे वहीँ थम गए. लाकडाउन के कारण जिस तबके को सब से बड़ी समस्या झेलनी पड़ी वह प्रवासी मजदूर तबका था जो अपने गृहराज्य से दूसरे राज्य में काम की तलाश में गया था. 1 मई 2020, मई दिवस को केंद्र सरकार ने विभिन्न राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों के लिए स्पेशल ट्रेन चलाने का फैसला किया. यह फैसला लॉकडाउन के लगभग 37 दिन बाद लिया गया.
‘भूख के आन्दोलन’ के आगे मोदी सरकार का लाकडाउन फुस्स
जिस समय कोरोना बीमारी से पूरी दुनिया सहम गई थी, हमारा देश पूरा ठप हो गया था, और लोग अपने घरों में कैद हो गए थे. उस समय गरीब तबका बिमारी की परवाह किये बगैर सड़कों पर निकल पड़ा. जाहिर सी बात है कोरोना के डर से ज्यादा देश के गरीबों को भूख से मरने का डर था. यही कारण है कि प्रवासी मजदूरों ने लाकडाउन को तोड़ते हुए तीसरे दिन से ही चहलकदमी शुरू कर दी थी. पहले चरण में हजारों की संख्या में मजदूरों ने पैदल ही अपने घरों के लिए सैकड़ों किलोमीटर की लम्बी यात्रा की. इस दौरान कई मजदूरों और उनके छोटे छोटे बच्चों ने भूख और थकान के कारण अपनी जान गंवाई. कईयों की रोड एक्सीडेंट में जान चली गई. दुधमुहे बच्चों से ले कर गर्भवती महिलाओं तक, जवान मजूरों से लेकर बुजुर्गों तक ने भूख और सरकार पर अति अविश्वास के कारण यह यात्रा शुरू की. इस का असर दिल्ली के आनंद विहार में इक्कठा हुए हजारों मजदूरों की संख्या से लगाया जा सकता है.
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