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Short story: जो न समझो सो वायरस

अब क्या कहें श्रीमतीजी को. देशभर में महामारी फैली है, लोगों को खाना नहीं मिल रहा और इन्हें अपने स्वाद की पड़ी है…

‘‘अरे साधना, अब गुस्सा थूक भी दो, बहूबेटी में भेद क्या, दोनों ही हमारे भले के लिए कहती हैं. देख नहीं रही हो क्या, इस कोरोनामरोना के चक्कर में हमारी खानदानी जमींदारी तोंद मरियल होती जा रही है, तुम भी थोड़ा सब्र कर लो.’’

‘‘कैसे सब्र कर लूंगी, जिंदगीभर हम ने घीदूध में अपने बच्चों को पाला, अब कल की आई बहू हमें सिखाती है कि हमें क्या और कैसे खाना है. चलो जी, हम अपने घर चलते हैं, यहां बेकार आए थे. अब देखो, कैसे इस वायरस

के चक्कर में फंस गए. कहती है, सामान खर्च करने में काफी सोचविचार करना होगा.

पहले दोपहर के खाने में 2 सब्जियां, दाल, चावल, रोटी, दही, रायता या दहीबडे़ के साथ पापड़, सलाद सबकुछ होता था. दोनों बेटों और तुम्हें हमेशा नौनवेज भी बना कर दिया. रात को फिर अलग सब्जी बनाई, घी में चुपड़ी रोटी के साथ कोई एक हलवा भी होता था या फिर मखाने की खीर. यहां आने के बाद कुछ दिन ठीक बीते, लेकिन अब हम इन पर भारी पड़ गए. कोरोना वायरस के नाम पर खानापीना सब बंद करने पर तुली है यह.’’

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‘‘अरे क्या कहा, यही न, कि अब दाल, चावल, सब्जी, दही में ही दोपहर का खाना खत्म करना होगा, तो चलो, यही सही. महीनाभर ही तो हैं यहां.’’

‘‘नहींनहीं, महीनाभर कहां. बेटा तो कह रहा था कि इस चौपट दुनिया में अब मांबाबूजी अकेले क्या रहेंगे. अब हमें इन के साथ ही रहना होगा और इस कलमुंही का और्डर मानना पड़ेगा. देखना, रात को घी वाली रोटी की जगह सूखी रोटी ही मिलेगी. फरमान सुना दिया है महारानी ने.’’

बहू अंजना से रहा नहीं जा रहा था. अभी यह उस की मां होती तो हाथ में बेलनकलछी पकड़े ही वह रसोई से दौड़ी आती और मां पर बरस पड़ती. लेकिन ठहरी सास, सांस ऊपरनीचे हो कर रह गई लेकिन जबान को काबू करते हुए इतना ही कहा, ‘‘मांजी, घर का राशन हमें ज्यादा दिनों तक चलाने लायक खर्चना है, तभी हम ज्यादा से ज्यादा घर में रह पाएंगे

और कम लोगों के संपर्क में आएंगे. घी बनाने लायक मलाईदार दूध नहीं है, तो संकटकाल में इतना सब्र तो कर सकते हैं.’’

‘‘आई बड़ी सब्र सिखाने वाली.’’

‘‘अरे मांजी, सारा देश लौकडाउन है, कर्फ्यू लगा है, कोई निकले तो संक्रमित हो सकता है, समझो न.’’

‘‘फिर झूठ, कोरोना का नाम लेले कर हमारा खानापीना बंद करने पर तुले हैं. क्यों हमारा बेटा नहीं जा रहा है औफिस?’’

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‘‘वे रेलवे में हैं न, यहां मेल ट्रेन बंद हैं, सिर्फ गुड्स ट्रेनें चल रही हैं. जरूरत के सामानों की आवाजाही चलाने के लिए यह काम घर से नहीं हो सकता, मां.

‘‘लेकिन आगे आने वाले दिनों में सामानों और खानेपीने की वस्तुओं की भारी किल्लतों का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए बचत और कम में गुजारा हमें अभी से सीखना होगा.’’

‘‘हां, अब हमारा खानापीना बंद कर सब का पेट भरेगा. सुबह कहा था, ससुरजी के पसंद की मछली बना लो. बहाना निकल आया, अब रात को कहूंगी कस्टर्ड, तो वह भी नहीं बनेगा.’’

‘‘अरे मांजी, आप को कैसे समझाएं, अब पसंदनापसंद का समय गया. लाखों दिहाड़ी मजदूर अपने घर जाने को तरस गए, सड़कों पर लोगों का रोना लगा है, एक वक्त के लिए दो सूखी रोटी भी नसीब नहीं उन्हें.

‘‘अब घर में रखे सामानों को कटौती से ही खर्चना है. बाहर निकलने की मनाही है, सब को थोड़ाथोड़ा सुधरना ही होगा.’’

‘‘अच्छा हम बिगड़े हैं, जो सुधरेंगे?’’

अंजना को लगा हाथ का बेलन वह अपने ही सिर पर दे मारे, लेकिन तुरंत ‘‘मरजी है आप की,’’ जुमला याद आने से उस ने खुद को जज्ब कर लिया.

अंजना के वहां से जाते ही साधनाजी ने अपनी पुरानी सहेली और कालेज के रिटायर्ड लैक्चचर नन्दाजी को फोन लगाया.

‘‘नन्दा, यहां बेटे के घर कैद हो गई हूं, तुम्हारे घर आ कर कुछ दिन रहना चाहती हूं. यहां न अपनी मरजी से खापी सकती हूं, न आसपास किसी से मिल सकती हूं.

‘‘अरे कोरोना है तो है, हमारे आसपास थोड़े ही है. घर में न पैसे की कमी है, न बाजार दूर है, फिर भी बहू ने बचत के नाम पर हमारी नकेल कसी हुई है. पता नहीं क्यों रातदिन कोरोना का रोना ले कर बैठी है. एक तो घर में कैद, ऊपर से पसंद का खाना भी नहीं. जो भी कहती हूं बनाने को, कहती है कोरोना है.’’

‘‘ठीक ही तो कहती है तुम्हारी बहू्. पढ़ीलिखी सास हो कर भी तुम बहू का नजरिया नहीं समझ रही हो. देश जब भयंकर महामारी की चपेट में है, रोज हजारों मजदूर भूखे बिलख रहे हैं, छोटेछोटे बच्चे भूख से बेहाल सड़क पर आ गए हैं, न ठौर न ठिकाना. ऐसे में कुछ कम में चलेंगे, बचत करेंगे तो आगे यह काम आएंगे. बचत ही तो कमाई है. इस आड़े वक्त में खबरों पर नजर रखो और बहू पर भरोसा.’’

डांवांडोल मन से साधनाजी ने अभी फोन रखा ही था कि बेंगलुरु से उन के बड़े बेटे के लड़के यानी उन के बड़े पोते का फोन आ गया.

पोते से पता चला कि हफ्तेभर से वह अपने किराए के फ्लैट में कैद है.

घर से औफिस का काम तो कर रहा है, लेकिन खानेपीने के सामानों की और घर के सारे काम खुद करने की दिक्कतें बहुत हैं. औनलाइन सारे सामान नहीं पहुंच रहे हैं. काफी कटौती में गुजारा हो रहा है.

पोते पर गहरी आस्था की वजह से दादी के दिमाग का एंटिना अब कुछ सीधा हो चुका था.

फोन रख कर वह चुपचाप मुंह फुला कर बैठ गईं.

दादा ने कहा, ‘‘तसल्ली हुई? अब मुंह फुला कर बैठे अपना गाल न बजाओ. कमरे से बाहर जा कर बहू

की काम में मदद करो, घर

के बाहर कर्फ्यू है, घर के अंदर नहीं.’’

साधनाजी जराजरा सी रोष वाली नजर पति पर डाल बहू के पास चली आईं.

कमरे में ससुरजी को सुनाई पड़ा, ‘‘लाओ दो, जो भी बना रही हो उस में हाथ बंटा दूं, तुम्हारे ससुरजी की यही इच्छा है.’’

ससुरजी को इस साधना वायरस पर हंसी आ गई, सुधरेगी नहीं.

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हमने अभी तक हुंडई वेन्यू के बारे में आपको जो भी बताया है, उसे जान कर आप ये तो समझ चुके होंगे कि यह एक ऑल-राउंडर गाड़ी है. पर इसकी एक और खास बात है, जो इसे पूरी अपने आप में सपनों का कार बनाता है.

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इसी विश्वास के साथ हुंडई खड़ा है, इसलिए हम करते हैं हुंडई वेन्यू से प्यार.

लॉकडाउन में बढ़े महिलाओं पर अत्याचार

देश में जहां कोरोना वायरस का कहर जारी है, वहीं इस महामारी के वायरस को फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में लौकडाउन लागू है. करोड़ों लोग अपने घरों कैद हैं. आदमी हो या औरत, बच्चे हों बूढ़े सभी इस अनजान वायरस के चलते पलपल डर के साए में हैं. कोई घर से नहीं निकलना चाहता.

मगर सुलक्षणा हर दिन मना रही है कि लौकडाउन खत्म हो और वह फिर से अपने कामधंधे पर जाना शुरू करे. कम से कम दिनभर के लिए तो वह अपने जालिम पति के जुल्मों से बची रहेगी. लौकडाउन ने तो घर में उस का जीना हराम कर रखा है. सुबह से शाम तक अपने निकम्मे पति को खाना बनाबना कर खिलाओ, उस के गंदे कपडे धुलो और फिर इन सब के बावजूद उस के लातघूंसे और गंदीगंदी गालियां सहो. रहीसही कसर रात को पूरी कर देता है जब पति जानवरों की तरह उस पर टूट पङता है.

शराबी पति और जेब खाली

सुलक्षणा आसपास की कोठियों में मेड का काम करती है और उस का पति औटो चलाता है. वह सही आदमी नहीं है, गालियों से मुंह भरा रहता है. अपनी कमाई शराब में उड़ाता रहा तो लौकडाउन लगने के बाद चंद दिनों में ही जेब खाली हो गए. मकानमालिक का किराया सुलक्षणा ने भरा. सब्जी, दूध, आटा, तेल सब सुलक्षणा ही अपने बचाए पैसे से ला रही है. उस पर यह हर वक्त उस पर सवार रहता है. शराब न मिलने से दिमाग बौराया हुआ है. जबतब मुंह से गालियां फूटती हैं, जब चाहे सुलक्षणा पर हाथ उठा देता है. दोएक बार पडोसियों ने बीचबचाव किया, मगर अब रोजरोज कौन आए? लौक डाउन में न तो सुलक्षणा कहीं बाहर निकल सकती है और न अपने मायके जा सकती है ताकि उस के जुल्मों से थोड़ी तो राहत मिल जाए.

कहानी घरघर की

यह कहानी अकेली सुलक्षणा की ही नहीं है, बल्कि इस देश की बहुतेरी औरतों की है जो लौकडाउन के इस कठिन वक्त में घर में कैद हो कर अमानवीय पीङा झेल रही हैं. कोरोनाकाल में सुलक्षणा जैसी लाखों औरतें कोरोना नामक बीमारी से अपनी जान बचाने से ज्यादा अपने घर वालों से अपने अस्तित्व, अपनी इज्जत और जीवन के लिए संघर्ष कर रही हैं.

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कोरोना नई बीमारी है, लेकिन पितृसत्ता बहुत पुरानी बीमारी है, जिस की जड़ों में जकड़ा समाज औरत के अस्तित्व का रोज इम्तिहान ले रहा है. लौकडाउन ने उन महिलाओं की जिंदगी नरक बना दी है जो पति या ससुराल वालों की प्रताड़ना से उकता कर कुछ समय के लिए मायके चली जाती थीं या जो कार्यालयों में अपना दिन का वक्त अच्छी तरह बिता लेती थीं. लौकडाउन में तो न मायके जाना संभव है और न कार्यालय. नतीजा दिनभर उसी चिड़चिड़े और डरावने माहौल में रहने और गालियां व लातघूंसे खाने की मजबूरी औरतों के सामने है.

औरत और मर्द में फर्क है मुख्य वजह

घरेलू हिंसा अभियान से जुड़े लोगों का कहना है कि लौकडाउन के चलते महिलाएं इस तरह की हिंसा झेलने को मजबूर हैं.

 

आशा नाम की गैर सरकारी संस्था में काम करने वाली शिफाली अस्थाना कहती हैं, “औरत और मर्द का फर्क हमारे समाज की सोच में हमेशा से रहा है. पहले पुरुष काम के लिए बाहर चले जाते थे तो शायद थोड़ी देर के लिए महिलाओं को पितृसत्ता के बंधन से मुक्ति मिल जाती थी. लेकिन अब जब पुरुष दिनभर घर में उस के साथ है, तो जाहिर है उस की सोच और बर्बरता औरत पर और ज़्यादा हावी हो जाती है. हालांकि बीते 2 दशकों में स्त्रीहित के कानूनों में इजाफा होने से मामले थानों और महिला आयोग तक पहुंचने लगे हैं. मगर लौकडाउन के दौरान शिकायतें केवल उन महिलाओं द्वारा की जा रही हैं, जो शिक्षित हैं, जागरूक हैं. वे किसी ना किसी तरह औनलाइन शिकायत कर पा रही हैं. वास्तव में लौकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामले कहीं ज्यादा बढ़े हैं, आदमी अपनी भङास घर की औरतों पर निकाल रहे हैं. मगर ये सब घर की चारदीवारी से बाहर नहीं आ पा रही हैं.”

गरीब तबके से आने वाली महिलाओं के लिए अपने जीवनसाथी के हाथों उत्पीड़न की शिकायत कर पाना करीबकरीब नामुमकिन सा है. इस लौकडाउन में वह उस आदमी के साथ रहने को मजबूर है, जो उस का लंबे समय से उत्पीड़न करता आया है और वह उस से जान बचा कर थोड़ी देर की राहत पाने के लिए कहीं जा भी नहीं सकती है.

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महिलाओं के लिए आफत

स्वयंसेवी संस्था मैत्री की ऐडवोकेट मनीषा जोशी कहती हैं,” जब लौकडाउन के चलते दुनियाभर में महिलाओं के उत्पीड़न की खबरें आईं तभी ये बात साफ थी कि भारत में भी ऐसे मामले बहुत बड़ी संख्या में देखने को मिलेंगे. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब दुनियाभर में संकट का दौर चल रहा है तब महिलाएं एक और संकट का सामना कर रही हैं. इस वक्त लोग घरों में बंद हैं, रोज कमानेखाने वालों के सामने रोजीरोटी का संकट है, शराबियों को शराब नहीं मिल रही है, जुआ खेलने वालों को पैसा नहीं मिल रहा है, छोटे व्यापारी और दुकानदार काम बंद होने से तिलमिलाए हुए हैं और मानसिक तनाव और चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है. जाहिर है ये सारा चिड़चिड़ापन और तनाव घर की औरतों पर ही निकल रहा है. दूसरी तरफ इस वक्त ‘वर्क फ्रौम होम’ होने के कारण महिलाएं दोहरी जिम्मेदारी से गुजर रही हैं. पुरुष किचन और घर के काम में तो हाथ बंटाना नहीं चाहते ऊपर से हर दिन कुछ नया खाने की फरमाइश होती है.

“अब घर पर ही हो तो घर के तमाम लोगों की फरमाईशें पूरी करो. उधर लौकडाउन में कामवाली का आना भी बंद है लिहाजा घर का झाड़ूपोंछा, बरतन, कपड़े सब घर की औरतें ही कर रही हैं. ये सब निबटाते हुए उसे औफिस का काम भी करना होता है. बच्चे भी मां की थकान, परेशानी, तनाव और समस्याओं को नहीं समझते हैं. पति घर में है तो सास, ननद भी बहू के काम में कमियां निकालने और उस के पति को दिखानेजताने से बाज नहीं आतीं.

“ये तमाम चीजें लौकडाउन में घरेलू हिंसा और तनाव को बढ़ा रही हैं.

“यों घरेलू हिंसा की जड़ पितृसत्तात्मक सोच में है, जिस में महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझा जाता है, फिर चाहे वह कामकाजी महिला हो या घरेलू महिला, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार को हमारे समाज में हमेशा माफ कर दिया जाता है और महिलाओं के साथ मारपीट को सही ठहराया जाता है. यह अलग बात है कि महिलाएं स्वीकार नहीं करना चाहतीं कि वे घरेलू हिंसा का शिकार हैं. उन के घर में क्या चल रहा है और वे यह सब बताना भी नहीं चाहतीं.”

गौरतलब है कि हमेशा से ही आपदाएं और महामारी महिलाओं के सामने दोहरी चुनौतियां खड़ी कर देती हैं. एक ओर उन्हें कठिन परिस्थितियों का सामना करना होता है, तो वहीं दूसरी ओर खुद को शोषण से बचाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है. मौजूदा समय में घर में कैद होने के कारण महिलाओं के शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के मामले भी बढ़ गए हैं. देशव्यापी लौकडाउन के कारण घरों में पारिवारिक माहौल बिगड़ने लगा है. लगातार घर में रहने के कारण पतिपत्नी के बीच झगड़े बढ़ने लगे हैं. समस्या सिर्फ निचले तबके की औरतों की ही नहीं है बल्कि हर तबके की औरतें किसी न किसी रूप में, कम या ज्यादा हिंसा को झेल रही हैं. लौकडाउन के बीते 2 महीने में ऐसी अनगिनत हिंसा और हत्या की कहानियां सामने आई हैं. अखबारों में कोरोना से मौतों के आंकड़े के साथसाथ महिलाओं के प्रति बर्बरता के आंकड़े भी बढ़ते जा रहे हैं.

ये निम्न घटनाएं बहुत कुछ सोचने को  विवश कर रही हैं :

लौकडाउन के बीच महिलाओं के लिए दोतरफा मुसीबत ने उन का इस कदर जीना मुहाल किया है जिसे जान कर हैरान रह जाएंगे आप…

दिल्ली में दक्षिणी जिले के लोधी रोड इलाके में 34 साल की रेनू मलिक नामक पुलिसकर्मी की सिर में गोली मार कर हत्या कर दी गई. रेनू दिल्ली पुलिस में कौंस्टेबल थी और इन दिनों बाहरी दिल्ली पुलिस के कोरोना सेल में ड्यूटी कर रही थी. हत्या रेनू के पति मनोज ने ही की जो दिल्ली पुलिस की ही स्पेशल सेल में तैनात है. दोनों अपनी कार में थे. महिला कार में ड्राइविंग सीट के बगल वाली सीट पर बैठी थी, जब बिलकुल पास से सटा कर उस को गोली मारी गई.कार में पुलिस को एक धारदार हथियार भी बरामद हुआ है. जांच में पता चला कि स्पैशल सेल में तैनात हैड कौंस्टेबल मनोज ने अपनी पहली पत्नी को तलाक देने के बाद रेनू से 2010 में शादी की थी, लेकिन उस की रेनू से आपसी कलह चलती रहती थी. आरोप है कि इसी वजह से मनोज ने अपने दोस्त की रिट्ज गाड़ी में रेनू को बैठाया और फिर सर्विस रिवौल्वर से उस की गोली मार कर हत्या कर दी और मौके से फरार हो गया. हालांकि बाद में पकडे जाने के भय से उस ने भी खुद को भी गोली मार कर समाप्त कर लिया.

बीवी को जला कर मार डाला

उत्तर प्रदेश के भदोही जिले में एक सरकारी अस्पताल के कर्मचारी ने अपने अवैध संबंधों में बाधा डालने पर अपनी पत्नी को एक कुरसी से बांध कर जिंदा जला दिया. जिले के सुरयावा थाना इलाके के इंद्रानगर निवासी शमशेर ने अपनी पत्नी आमिना (56) को सुबह जबरन एक कुरसी पर बैठा कर बांध दिया और उस के ऊपर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी. स्वयं को बचाने के प्रयास में आमिना ने शमशेर को पकड़ लिया, जिस से वह भी काफी झुलस गया है. घटना के वक्त दंपति का विक्षिप्त बेटा और बेटी मौके पर मौजूद थे. बच्चों ने शोर मचाया मगर तब तक आमिना की मौके पर ही मौत हो गई. अमीना का पति शमशेर एक सरकारी आयुर्वेदिक अस्पताल में वरिष्ठ वार्ड बौय के पद पर तैनात है, जिस का किसी अन्य महिला से नाजायज रिश्ता था और इसी को ले कर उस का आमिना से अकसर झगड़ा होता था. झगडे के बाद अमीना अकसर अपनी बहन के घर चली जाती थी मगर लौकडाउन में वह बाहर नहीं निकल पाई और शमशेर ने मौका पा कर उस की बर्बरतापूर्ण तरीके से जान ले ली.

पत्नी को कुल्हाड़ी से काट दिया

सारंडा जंगल में स्थित करमपदा गांव में 45 वर्षीय सेवियन भेंगरा ने घर के आंगन में ही अपनी 32 वर्षीय पत्नी रोशनी भेंगरा की कुल्हाड़ी से काट कर हत्या कर दी. हत्या के बाद आरोपी ने सीआरपीएफ कैंप जा कर सरैंडर कर दिया. सीआरपीएफ के जवानों ने किरीबुरू पुलिस को सूचना दी. पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है.

सेवियन खलासी का काम करता था और रोशनी गांव के स्कूल में रसोइया थी. लेकिन लौकडाउन के कारण दोनों बेरोजगार हो गए. आर्थिक तंगी के कारण घर में पड़ेपड़े दोनों में अकसर तकरार होने लगी. घटना के दिन भी दोनों में किसी बात को ले कर विवाद हुआ. इस के बाद सेवियन घर से बाहर निकल गया और कुछ देर में हड़िया (एक तरह की देशी शराब) पी कर वापस लौटा. वह फिर अपनी पत्नी से झगड़ा करने लगा. इसी दौरान घर में रखी कुल्हाड़ी से उस ने पत्नी पर वार कर दिया. रोशनी ने मौके पर ही दम तोड़ दिया.

हथौड़े से पीटपीट कर प्रेमिका की हत्या

दिल्ली के नरेला इंडस्ट्रियल एरिया में प्रेमी ने अपनी प्रेमिका की हथौड़े से पीटपीट कर हत्या कर दी और शव फैक्टरी में बंद कर भाग गया. घटना की जानकारी तब हुई, जब सुबह पुलिस ने फैक्टरी का ताला तोड़ा. शव की हालत देख कर दुष्कर्म की आशंका भी जताई गई.

22 साल की युवती नरेला के सैक्टर ए 6 में रहती थी. युवती के पिता मानसिक तौर पर अस्वस्थ हैं इसलिए उस की मां पास की फैक्टरी में काम करती है. इसी दौरान उस की मुलाकात अनिल नाम के आदमी से हुई. फिर वह अकसर युवती के घर आने लगा था और उस की युवती से दोस्ती हो गई. बाद में वह संतोष गुप्ता नाम के व्यक्ति की फैक्टरी में काम करने लगा, लेकिन तब भी उस का आनाजाना लगा रहता था. घटना वाले दिन अनिल युवती के घर आया और बताया कि हौलंबी में राशन मिल रहा है. इस पर युवती और उस का पिता राशन लेने अनिल के संग चले गए.

राशन लेने के बाद वह किसी बहाने से दोनों को अपनी फैक्टरी में ले गया. लौकडाउन की वजह से फैक्टरी में कोई नहीं था. अनिल ने युवती के पिता को छत पर बने कमरे में बंद कर दिया. फिर नीचे आ कर युवती से झगड़ा करने लगा. इस दौरान उस ने युवती की हत्या कर दी और बाहर से ताला लगा कर भाग गया.

दरअसल अनिल की पत्नी की मौत हो चुकी है और वह उस युवती से शादी करना चाहता था. पहले युवती शादी के लिए तैयार थी. मगर फोन पर लंबी बातें करने को ले कर अनिल उस के साथ झगड़ा करता था. इस के कारण युवती ने शादी से मना कर दिया. पुलिस को लगता है कि जबरन शादी या शक हत्या के पीछे की वजह हो सकती है.

ये लौकडाउन के दौरान औरतों के प्रति हो रहे अपराधों की कुछ बानगी है.

24 मार्च को लौकडाउन की घोषणा होने के महज 11 दिन के अंदर राष्ट्रीय महिला आयोग की देशभर में विभिन्न हेल्पलाइन पर घरेलू हिंसा से संबंंधित 92 हजार शिकायतें आई हैं. चौंकाने वाले आंकड़ों पर चिंता जताते हुए एक स्वयंसेवी संस्था इंडिया काउंसिल औफ ह्यूमन राइट्स, लिबर्टीज ऐंड सोशल जस्टिस ने दिल्ली हाईकोर्ट में इस संबध में एक याचिका भी दायर की है. याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में लौकडाउन में घरेलू हिंसा और अन्य प्रकार के अपराधों की शिकार महिलाओं को सुरक्षा, उन के लिए अलग से रहने की व्यवस्था और अन्य मदद मुहैया कराने की मांग की है.

भारतीय राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयरपर्सन रेखा शर्मा का कहना है कि असली आंकड़े और भी ज्यादा होंगे, लेकिन दोषियों का 24 घंटे घर पर मौजूद रहने के कारण महिलाएं शिकायत करने से डरती हैं. कई महिलाएं शिकायत करने से इसलिए भी डरती हैं कि कहीं पुलिस उन के पति को उठा ना ले जाए. पहले महिलाओं के पास घर छोड़ मायके जाने का विकल्प होता था पर लौकडाउन के बाद यह भी संभव नहीं है.

अभी बेहतर नहीं है माहौल

लौकडाउन लोगों के लिए मानसिक रूप से काफी चुनौतीपूर्ण है. ये दौर सुरक्षा, स्वास्थ्य और धन की चिंता से उत्पन्न तनाव को बढ़ावा दे रहा है. लोगों की हर भावना अपनी चरम पर है. यही कारण है कि घर बैठा पुरुष गुस्से से या परेशान हो कर हिंसा पर आमादा है. इसलिए जिन महिलाओं के घरों में पुरुष हिंसक प्रवृत्ति के हैं, उन पर खतरा सब से ज्यादा है.

राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक, घरेलू हिंसा की शिकायतें लगभग दोगुनी हो गईं हैं जबकि अभी सिर्फ औनलाइन शिकायतें ही आ रही हैं. घर बैठे पुरुष तनाव में अपनी भड़ास महिलाओं पर निकाल रहे हैं इसलिए ऐसी शिकायतें अधिक आ रही हैं. लौकडाउन की वजह से इस वक्त घरेलू हिंसा की बहुत सी शिकायतें आ रही हैं. महिलाएं पुलिस तक नहीं पहुंच पा रहीं हैं या फिर वे पुलिस के पास नहीं जाना चाहतीं क्योंकि उन्हें डर है कि जब उन का पति पुलिस स्टेशन से 1-2 दिन बाद बाहर आ जाएगा तब और अत्याचार करेगा. इस समय वह अपने पेरैंट्स के घर भी नहीं जा सकती हैं.

रेखा शर्मा कहती हैं, “24 मार्च से 1 अप्रैल के बीच लौकडाउन के पहले हफ्ते में ही महिलाओं से दुर्व्यवहार की 1,257 शिकायतें मिलीं. ऐसे मामले बहुत ज्यादा हुए होंगे, लेकिन प्रताड़ित करने वाले भी चौबीसों घंटे साथ होने के कारण महिलाएं डर से शिकायत दर्ज नहीं करवा पा रही होंगी. महिला उत्पीड़न के मामले में उत्तर प्रदेश सब से आगे है. कई लोगों के लिए उन का घर ही सुरक्षित नहीं है. उत्तर प्रदेश से सब से अधिक 90 शिकायतें मिली हैं तो दिल्ली से 37 और बिहार, महाराष्ट्र से 18, मध्य प्रदेश से 11, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और राजस्थान से 9 मामले दर्ज हुए हैं.

कई शिकायतें आयोग की अध्यक्ष और स्टाफ को निजी ईमेल पर भी की गई हैं. इसी प्रकार, रेप या रेप की कोशिश की 13, सम्मान के साथ जीने के अधिकार के संबंध में 77 शिकायतें महिलाओं की ओर से मिली हैं. वहीं महिलाओं से साइबर अपराध के 15 मामले सामने आए हैं.”

रेखा शर्मा कहती हैं कि निचले तबके की ज्यादातर महिलाएं डाक के जरीए अपनी शिकायतें आयोग को भेजती थीं लेकिन लौकडाउन की वजह से वे शिकायतें अभी तक आयोग के पास नहीं पहुंची हैं. इस लिहाज से यह आंकड़ा और बढ़ सकता है. कई महिलाएं शिकायत ही नहीं करती होंगी क्योंकि उस दौरान मारपीट करने वाला उन के सामने ही रहता होगा. कई महिलाएं इसलिए भी शिकायत नहीं करती हैं कि अगर उन के पति को पुलिस ले गई तो सासससुर उन्हें ताने देंगे. समाज में उन की छवि खराब होगी. रिश्तेदार उलटासीधा बोलेंगे. मुझे आज नैनीताल से एक शिकायत मिली है. जिस में महिला ने कहा कि वह बाहर नहीं निकल पा रही है और घर में उस का पति उस के साथ मारपीट करता है लेकिन वह लौकडाउन की वजह से दिल्ली अपने घर नहीं आ पा रही है.

जरमन फैडरल ऐसोसिएशन औफ वीमंनस काउंसलिंग सैंटर्स ऐंड हैल्प लाईंस (बीएफई) ने भी दुनिया के देशों को आगाह किया है कि सोशल आइसोलेशन के चलते लोगों में तनाव पैदा हो रहा है और इस से महिलाओं और बच्चों के खिलाफ घरेलू और यौन हिंसा में बढ़ोतरी हो रही है. पहले आस्ट्रेलिया, विक्टोरिया, श्रीलंका और कई देशों में बड़े पैमाने पर ऐसी घटनाएं देखने को मिलीं लेकिन अब भारत में भी इस का व्यापक असर देखने को मिल रहा है.

यह विडंबना ही है कि जिस वक्त हमआप घरों में बैठ कर कोरोना के बढ़ते खतरे के बारे में देखपढ़ रहे हैं, उसी समय भारत की महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा किसी तरह खुद को हिंसा से बचा रहा है. भारतीय समाज का पुरुष वर्ग एक इंसान के रूप में हमेशा विफल है.

जरा सोचिए कि पुरुष के हाथों प्रताड़ित उस महिला की स्थिति कितनी भयावह होगी कि वह महामारी से बचने के लिए घर पर भी बैठे तो कैसे. हर पल उस के मन में महिला होने की वजह से हिंसा का भय बना रहेगा.

कोरोना महामारी के अस्तित्व के पहले से महिलाओं के प्रति हिंसा हमारे समाज की सब से बड़ी विफलताओं में से एक है. लेकिन जब लौकडाउन के अलावा हमारे पास और कोई चारा नहीं बचा है तब भी भुगतने वाली महिलाएं ही हैं. एक समाज के रूप में हम किसान, मजदूर, गरीब, पिछड़ों के लिए तो फिर भी आगे आ कर सहायता कर रहे हैं, लेकिन महिलाओं की सहायता ऐसी परिस्थितियों में सब से मुश्किल काम है. इस की शुरुआत कहीं से होती नजर नहीं आ रही.

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टीवी जगत में कई ऐसी मां है जो बेहतरीन कलाकार होने के साथ-साथ सिंगल मदर भी हैं. वह मां होने के किरदार को बेहतरीन तरीके से निभआ रही हैं. आइए जानते हैं इन सुपर मॉम के बारे में कैसे कड़ी मेहनत करके अपने जीवन को खूबसूरती से संवारती है.

दीपशिखा नागपाल के साथ केशव अरोड़ा ने शादी की थी जो ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाई थी. हालांकि दीपशिखा ने इस बात का असर उनके बच्चों पर पड़ने नहीं दिया था.

कई साल तक टीवी जगत में राज करने वाली उर्वशी ढ़ोलकिया भी सिंगल मदर है. उर्वशी के दो बेटे हैं. जो अपनी मां के साथ रहते हैं. उन्होंने कभी बच्चों के जीवन में बाप की कमी महसूस नहीं होने दिया.

 

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Apno ke saath wali Diwali??✨ #Diwali #Family #nanhayatri #etherealgirl

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चाहत खन्ना बिजनेसमैन इरफान खन्ना से शादी की थी, लेकिन यह शादी लंबे समय तक चल नहीं पाई थी. उनहोंने पति से तलाक ले लिया है. उनकी दो बेटियां हैं. जिनके साथ बेहद प्यारा वक्त बीताती हैं.

नीना गुप्ता भी सिंगल मां है. उनकी एक बेटी भी है. जिसके साथ वह काफी अच्छा समय व्यतीत करती रहती हैं. जिनका नाम मसाबा है. वह जानी मानी फैशन डिजाइनर हैं.

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श्वेता तिवारी टीवी जगत की मशहूर कलाकार है. वह बेटी पलक और अपने छोटे बेटे के साथ रहती हैं. वह सिंगल मदर होने के साथ अपने परिवार और बच्चों की खुशियों का ख्याल रखती हैं.

जूही परमार भी एक सिंगल मदर हैं. जिन्होंने कुछ दिनों पहले ही अपने पति सचिन से तलाक लिया है. वह सिंगल मदर होनी की जिम्मेदारी को बखूबी निभाती हैं.

मदर्स डे स्पेशल : दीपिका कक्कड़ से लेकर सिद्धार्थ शुक्ला तक, TV सेलेब ने ऐसे बनाया मदर्स डे

मदर्स डे का दिन सभी के लिए खास होता है. इस दिन सभी लोग पनी मां के साथ खास समय व्यतीत करते हैं तो वहीं कुछ लोग अपनी मां को खास अंदाज में वीश करते हैं. आइए जानते हैं टीवी सितारों ने अपनी मां के साथ लॉकडाउन में कैसे मनाया अपना मदर्स डे.

कुछ स्टार्स जो इस लॉकडाउन में अपनी मां से दूर है उन्होंने अपनी मं के साथ कुछ खूबसूरत पल को सोशल मीडिया पर साझा किया है. दीपिका कक्कड़ जो इन दिनों अपनी मां से दूर अपनी ससुराल में पति और सास के साथ समय बीता रही है. उन्होंने अपनी दोनों मां की फोटो को शेयर करते हुए पोस्ट डाला है. दोनों को बेस्टफ्रेंड बताया है.

बिग बॉस विनर सिद्धार्थ शुक्ला ने अपनी मां के साथ कॉफी पीते हुए फोटो शेयर किया है. पोस्ट करते हुए उन्होंने लिखा है कि हर बार की तरह इस बार भी मां के साथ कॉफी पीते हुए सेलिब्रेट किया मदर्स डे.

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निया शर्मा अपनी मां के साथ बीच की फोटो शेयर करते हुए फोटो पोस्ट किया है. जिसमें वह अपनी मां के हाथ पकड़े खड़ी हुई है. निया अपनी मां के साथ बेहद खूबसूरत लग रही हैं.

शहनाज गिल ने अपनी मां के साथ एक फोटो शेयर किया है. जिसमें वह अपनी मां के साथ मदर्स डे सेलिब्रेट कर रही है. फिलहाल शहनाज मुंबई में अपनी मां के साथ है.

 

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Grounded Literally!!! Anyways Happy Mother’s Day ? . . #HappyMothersDay #MothersDay

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टीवी एक्ट्रेस करिश्मा तन्ना ने अपनी मां की तस्वीर सोशल मीडीया पर साझा की हैं जिसमें मां का प्यार साफ नजर आ रहा है.

देबोलीना भट्टाचार्या ने अपनी माम की प्यारी सी तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा की है. जिसमें वह बहुत प्यारी लग रही है.

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एक्ट्रेस आरती सिंह ने अपनी मां के लिए लंबा सा पोस्ट शेयर किया है. जिसमें अपनी मां की खूब सारी तारीफ लिखी हैं.

माहिरा शर्मा ने बेहद ही अनोखे अंदाज में अपनी मां को मदर्स डे विश किया है. उन्होंने अपनी मां के जीवन के बारे में कुछ  खास खुलासा भी किया है.

करण ने मां की तस्वीर पोस्ट किया है. जिसमें वह अपनी मां को किस कर रहे है. करण की यह तस्वीर उनके बचपन की है. इसमें मां बेटे का बॉन्ड देखने को मिल रहा है.

दूसरी मां- भाग 3: क्या मीना आंटी अपने लिए सम्मान पैदा कर सकीं?

मैं पापा या सुमित से बातें करती हूं और मीना आंटी अगर बीच में बोल पड़तीं, तो मैं या तो खामोश हो जाती या उठ कर दूसरी जगह चली जाती.

मेरे ऐसे रूखे व्यवहार से सुमित अकसर परेशान हो उठता. पापा की आंखें भी उदासी से भरी नजर आने लगतीं, लेकिन मीना आंटी पर मेरी नाराजगी और चिढ़ का कोई प्रभाव नहीं होता और वे पहले की तरह बातचीत करती जातीं. उन का इस तरह सामान्य बने रहना मुझे कई बार मन ही मन खिझा जाता था.

मेरा बस चलता तो मैं किसी होस्टल में रह कर पढ़ने लगती, लेकिन ऐसा होना संभव नहीं था. और अगर 2 व्यक्ति घर में साथ रह रहे हों तो आपस में बात किए बगैर काम भी नहीं चल सकता. पापा की दूसरी शादी के 6 महीने बाद मैं मीना आंटी से आमनेसामने बैठ कर थोड़ीबहुत बातें करने लगी थी. कभी खुल कर अपने मन की बात नहीं कही मैं ने उन से, पर उन की घर में उपस्थिति मात्र से मुझे शिकायत होनी बंद हो गई थी.

बारिश के मौसम में मुझे बुखार हो गया. तेज बुखार में बदन बुरी तरह से टूट रहा था. भूख लगनी बंद हो गई और कमजोरी के कारण बैठते ही चक्कर आते थे.

तब मीना आंटी ने दफ्तर से सप्ताहभर की छुट्टी ले कर मेरी देखभाल की थी. मुझे प्यार से या डांटफटकार कर जबरदस्ती कुछ न कुछ खिलाती रहीं. बुखार उतारने के लिए डाक्टर की हिदायत के अनुसार घंटाघंटाभर लगातार माथे पर गीली पट्टी रखती थीं. मेरे पास बैठ कर अखबार की खबरें मुझे सुनातीं, मेरे मनपसंद टीवी धारावाहिकों में जो घटा, वह मुझे बतातीं और मैं चाह कर भी उन्हें मना नहीं कर पाती.

बुखार की गरमी ने मेरे मन में कुछ पिघला दिया था. ठीक होने के बाद मैं ने पाया कि मैं उन से ज्यादा खुल कर बातें करने लगी हूं. पापा और सुमित मुझ में आए बदलाव के कारण बहुत खुश रहने लगे थे. मीना आंटी (अब ‘आंटी’ शब्द मुझे बेचैन करने लगा था) पहले की तरह सामान्य व्यवहार करती रहीं, मानो मैं हमेशा से ही उन से ठीक तरह से बातें करती थी.

उन दिनों मैं उलझन, बेचैनी और तनाव का जबरदस्त शिकार बनी रहती थी. शायद इसीलिए चिड़चिड़ी भी बहुत हो गई थी. ऐसे में मेरी पढ़ाई पर बुरा असर पड़ना ही था.

10वीं की बोर्ड की परीक्षाओं में मैं मात्र 68 प्रतिशत नंबर ही ला पाई. सभी रिश्तेदार और परिचित मेरी डाक्टर बनने की इच्छा से वाकिफ थे. मेरा परिणाम सुन कर हर व्यक्ति यही राय जाहिर करता कि अब मेरा डाक्टर बनना असंभव था.

उन लोगों की ऐसी बातें सुन कर मेरा आत्मविश्वास पूरी तरह से डगमगा गया. मैं मां की इच्छा पूरी नहीं कर सकूंगी, इस बात का मुझे गहरा सदमा लगा. हीनभावना और उदासी की शिकार हो कर मैं अपने कमरे में बंद रहने लगी. कुछ दिन मीना आंटी मुझे यों उदास और गुमसुम पड़ा खामोशी से देखती रहीं, फिर एक दिन सुबह 5 बजे उन्होंने मुझे जगा दिया.

‘आज से, इसी क्षण से सुस्ती और उदासी को तुम सदा के लिए छोड़ रही हो, कविता. अब कमर कस के तैयार हो जाओ,’ उन की आवाज में भरपूर जोश समाया था.

‘किसलिए तैयार हो जाऊं?’ मैं ने उलझनभरे स्वर में पूछा.

‘अपनी मां का सपना पूरा करने के लिए, डाक्टर बनने के लिए.’

‘अब वह सपना अधूरा…’

‘बिलकुल नहीं रहेगा,’ उन्होंने मेरे मुंह पर हाथ रख कर आत्मविश्वासभरे स्वर में कहा, ‘मेहनत और लगन हो तो इंसान के लिए कुछ भी करना असंभव नहीं है. हर कदम पर मैं तुम्हारे साथ हूं. तुम डाक्टर जरूर बनोगी.’

मीना आंटी को उस क्षण से पहले मैं ने कभी भावुक अवस्था में नहीं देखा था. गंभीर रह कर अपना काम करते रहना उन के व्यक्तित्व की पहचान बन गया था. इस क्षण भावावेश से कांप रही उन की आवाज सुन कर मैं मन ही मन कुछ ऐसी हैरान हुई कि उन्होंने जो कहा, वह मैं करती चली गई.

आगामी कुछ दिनों में मेरी पूरी दिनचर्या ही बदलवा दी थी उन्होंने. सुबह 5 बजे उठ कर मैं 20 मिनट व्यायाम करती, तो मीना आंटी मेरा साथ देतीं. फिर एक घंटा कोई मुश्किल सबक याद करती, क्योंकि उन के अनुसार सुबह याददाश्त अच्छी तरह कार्य करती है.

स्कूल जाने से पहले वे रोज मेरे साथ मेरी मां की तसवीर के सामने आ खड़ी होतीं. मैं हाथ जोड़ कर खड़ी होती और वे कहतीं, ‘दीदी, अपनी बेटी को इतनी शक्ति दो कि यह मेहनत और लगन से पढ़ते हुए आप का सपना

पूरा कर दिखाए. इस का हौसला

कभी न टूटे. इस का आत्मविश्वास कभी न डगमगाए.’

स्कूल से लौट कर आने के बाद मेरे पढ़ने का समय उन्होंने तय कर दिया था. हमारे यहां टीवी का चलना एकदम कम हो गया. वे खुद बीएससी तक पढ़ी थीं और मुझ से याद किया गया पाठ अकसर सुन लेती थीं.

मैं जब तक जागती, उन्हें अपने इर्दगिर्द घूमते पाती. मेरी हर जरूरत को वे समझती थीं और मेरे कुछ कहने से पहले ही उसे पूरा कर देती थीं. उन के हावभाव से यह जाहिर होता कि उन्हें मेरे कैरियर की बहुत परवा थी.

11वीं की परीक्षाओं में मैं ने 84 प्रतिशत अंक प्राप्त किए और इस कारण मेरा आत्मविश्वास काफी बढ़ा.

12वीं के पूरे साल मैं ने विज्ञान और गणित की ट्यूशन लगाई. इस के लिए पापा को मीना आंटी ने ही तैयार किया था. 7 हजार रुपए हर महीने का ट्यूशनों का खर्चा उठाना कोई आसान काम नहीं था, पर मीना आंटी के कारण मैं ट्यूशनों का लाभ उठा सकी.

मीना आंटी ने मेरा मनोबल ऊंचा बनाए रखने में जबरदस्त योगदान दिया था. मुझे अपना डाक्टर बनने का लक्ष्य एक दिन भी भूलने नहीं दिया. आलस्य व उदासीनता का शिकार न कभी खुद बनीं, न मुझे बनने दिया.

मेरी जिंदगी में उन का स्थान महत्त्वपूर्ण होता चला गया था. दिनोंदिन वे जो सब मेरे हित के लिए कर रही थीं, उस के कारण मैं उन का बहुत आदरसम्मान करने लगी थी. जब उन से मेरा व्यवहार बहुत खराब हुआ करता था उस वक्त को अपनी याददाश्त से बाहर निकाल फेंकना चाहती थी मैं.

हम दोनों की मेहनत आखिरकार रंग लाई और 12वीं की परीक्षा में मैंने 88 प्रतिशत अंक प्राप्त किए तथा सीबीएससी की परीक्षा में मैरिट लिस्ट में आई और मैं ने कानपुर मैडिकल कालेज में प्रवेश प्राप्त करने में सफलता भी पा ली थी.

जिस दिन मैडिकल कालेज में प्रवेश मिलने वाली खबर मुझे मिली, वह दिन मेरी जिंदगी का सब से खुशी वाला दिन था. मुझे यह खबर सुनाने मेरी स्कूल की सहेली वंदना अपने मातापिता के साथ आई थी. उस को भी कानपुर मैडिकल कालेज में दाखिला मिला था.

वंदना और मैं खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थीं. हमारी ऊंची, उत्तेजित आवाजें सुन कर पापा, सुमित और मीना आंटी लगभग भागते से बैठक में आए.

‘पापा, मुझे कानपुर मैडिकल कालेज में प्रवेश मिल गया है,’ कह कर मैं उन की छाती से जा लगी.

पहले मैं ने पापा का परिचय वंदना के मम्मीपापा से कराया और फिर आरती आंटी का हाथ अपने हाथों में ले कर भावुक स्वर में बोली, ‘अंकलआंटी, मेरी सफलता का श्रेय सब से पहले और सब से ज्यादा इन्हें जाता है. आप मिलिए मेरी मम्मी से.’

पापा मेरी बात सुन कर पहले चौंके, और फिर उन की आंखों में उसी पल खुशी के आंसू झलक उठे.

सुमित पहले मुंहबाए मेरा मुंह देखता रहा और फिर अजीब सी उत्तेजना का शिकार हो तालियां बजाता नाचने लगा.

मेरी अपनी पलकें भीग गई थीं. मैं कुछ और भी कहती पर मेरा गला रुंध गया, अपनी मीना आंटी…नहीं, अपनी मम्मी के सीने से लग कर एकाएक सुबकने लगी थी.

‘बहुत भावुक है मेरी बेटी,’ मेरे सिर पर स्नेहभरा हाथ फिरातीं मेरी मम्मी ने कहा, ‘यह इस की कमजोरी भी है. और इस की ताकत भी. आप बैठिए. इस खुशी के मौके पर मैं सब का मुंह मीठा कराती हूं.’

वे मेरा हाथ थाम कर मुझे बैठक से बाहर ले आईं और हम दोनों मेरी मां की तसवीर के सामने जा खड़ी हुईं.

इस बार अपनी मम्मी के कुछ बोलने से पहले ही मैं मां की तसवीर से बोल पड़ी, ‘मां, देखो मम्मी के सहयोग से मुझे मैडिकल कालेज में दाखिला मिल गया है. मम्मी के मार्गदर्शन, इन के मन की दया व ममता और निस्वार्थ प्रेम करने की क्षमता मेरी जिंदगी में यह खुशी का दिन लाई है. आप दोनों के लिए मेरे दिल में प्यार और सम्मान एकसाथ मौजूद रह सकता है. इस तथ्य को जब से मैं ने समझा है, मेरे दिल की सारी उलझनें दूर हो गई हैं. आप के दुनिया से असमय चले जाने के कारण हमारे दिलों में हुए जख्मों ने मम्मी के प्यार के मलहम के कारण टीसना बंद कर दिया है, मां.’

उस दिन पापा की दूसरी पत्नी को मैं ने अपनी पहली मां के समकक्ष ला कर मम्मी मान लिया था.

मम्मी ने भावविभोर हो मुझे अपने गले से लगा लिया. हम दोनों की आंखों से आंसू बह रहे थे. निसंदेह ये आंसू हमारे मन के सुख, संतोष और खुशियों को दिखा रहे थे.

 

दूसरी मां- भाग 2: क्या मीना आंटी अपने लिए सम्मान पैदा कर सकीं?

उस रात मैं ने पापा से बात ही नहीं की और मुंह फुलाए रखा. आधाअधूरा खाना अनमने से अंदाज में खा कर मैं अपने कमरे में जा घुसी थी.

कुछ देर बाद पापा मेरे पास पलंग पर आ कर बैठ गए. पर मैं खामोश लेटी छत पर नजरें जमाए रही.

‘मेरी गुडि़या किसी बात से परेशान है क्या? किसी बात से नाराज है क्या?’

उन के बारबार ऐसा सवाल करने पर मैं एकाएक फट पड़ी थी, ‘पापा, क्या यह सच है कि आप मीना आंटी से शादी कर रहे हैं? उन्हें मां की जगह घर में ला रहे हैं?’

कुछ पल खामोशी से मेरा चेहरा निहारने के बाद उन्होंने गंभीर स्वर में जवाब दिया, ‘तुम्हारी मीना आंटी एक अच्छी और समझदार औरत है, कविता. वह सुमित और तुम्हें बहुत पसंद करती है. तुम दोनों को बहुत प्यार करती है. वह खुद भी अकेली है. एकदूसरे के सुखदुख के भागीदार बनने को हम सब मिल कर साथ रहें, इसीलिए मैं उस से शादी कर रहा हूं, बेटी.’

‘ऐसा मत करो, पापा,’ मैं एकाएक रोने लगी थी, ‘मां की जगह किसी को घर में मत लाओ. कह दो कि आप मीना आंटी से शादी नहीं करोगे, मेरी खुशियों की खातिर…’

मेरे सिर पर स्नेहभरा हाथ रख कर उन्होंने कहा, ‘अभी तू आराम से सो जा, कविता. इस बारे में कल शांत मन से बात करेंगे हम दोनों.’

‘मुझे कुछ बात नहीं करनी है, पापा. अपनी प्यारी बेटी की बात मान कर शादी न करने का वादा आप को इसी वक्त करना होगा मुझ से,’ उन का हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़ कर मैं ने जिदभरे अंदाज में कहा.

अपना हाथ धीरे से छुड़ा कर वे

उठ खड़े हुए तो मेरे दिल को गहरा सदमा लगा.

‘मीना आंटी ने तो अभी से…शादी होने से पहले ही आप को मुझ से दूर कर दिया है, पापा,’ मैं ने रोतेरोते कहा, ‘मुझे नफरत है उन से. चाहे कुछ भी हो जाए, मैं उन्हें मां की जगह कभी नहीं लेने दूंगी इस घर में, कभी नहीं लेने दूंगी.’

मैं करवट बदल कर तकिए में मुंह छिपा कर सुबकने लगी थी. मन के किसी कोने में यह उम्मीद बनी हुई थी कि पापा मेरी बात मान कर मुझे सीने से लगा लेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ.

वे कई मिनट खामोश खड़े रहे और फिर एक बार मेरे सिर पर हाथ फेरने के बाद कमरे की बत्ती बुझा कर चले गए थे.

मेरा रोनासुबकना देररात तक जारी रहा था. उस रात सुमित को पापा ने अपने पास सुला लिया था. वह होता तो मैं उस से बात कर के अपना मन हलका कर लेती. अकेली पलंग पर लेटी मैं मां को याद कर रही थी.

अगले दिन मेरी पापा से नहीं, बल्कि मीना आंटी से बात हुई. मैं स्कूल से बाहर आई तो उन्हें गेट के पास अपना इंतजार करते पाया.

‘चलो, कुछ देर सामने वाले पार्क में बैठेंगे, कविता,’ उन्होंने बिना हिचकिचाए बड़े अधिकार से मेरा हाथ थामा और पार्क की दिशा में चल पड़ीं.

मुझे उन का स्पर्श अच्छा नहीं लगा था, पर किसी तरह का विरोध प्रकट कर के मैं अपनी सहेलियों के मनोरंजन के लिए वहां तमाशा खड़ा नहीं करना चाहती थी. उन से कैसी भी बातचीत करने की इच्छा न होते हुए भी मैं चुपचाप उन के साथ चलती गई.

पार्क में हम दोनों एकांत में पड़ी बैंच पर बैठ गए. कुछ पल खामोश रह कर उन्होंने मुझ से सीधा सवाल किया, ‘तुम अपने पापा की और मेरी शादी के क्यों खिलाफ हो, कविता? क्या मैं बहुत बुरी हूं?’

मैं ने उत्तेजित स्वर में जवाब दिया, ‘आंटी, बात आप के अच्छे या बुरे होने की नहीं है. अपने घर में मैं मां

की जगह किसी दूसरी औरत को

देखना सहन नहीं कर सकती हूं. मेरी और सुमित की खुशियों की खातिर आप को पापा से शादी करने का इरादा त्यागना पड़ेगा.’

‘और मेरी खुशियों का क्या होगा कविता?’

‘क्या मतलब?’ उन की बात मेरी समझ में नहीं आई.

‘मैं तुम्हारे पापा से प्रेम करती हूं, कविता. उन का साथ व सहारा चाहती हूं अपनी बाकी बची जिंदगी के लिए. और ऐसी ही भावनाएं तुम्हारे पापा भी मेरे प्रति अपने दिल में रखते हैं. क्या हमारी इन भावनाओं का तुम्हारी नजरों में कोई महत्त्व नहीं है?’

‘मैं आप से कैसी भी बहस में नहीं उलझना चाहती, आंटी. कैसी भी दलीलों के आधार पर आप मेरी सोच बदलवाने में कामयाब नहीं हो पाएंगी. आप को मेरी मां का स्थान कभी नहीं मिलेगा मेरी नजरों में.’

‘वह स्थान तो बहुत पवित्र, बहुत महत्त्वपूर्ण है, कविता, और उसे पाने की इच्छा भी नहीं रखती हूं मैं.’

‘तब क्यों शादी कर रही हैं आप पापा से?’ मैं ने उलझनभरे स्वर में पूछा.

‘मैं तुम्हारे पापा की दूसरी पत्नी तो बनना चाहती हूं पर तुम्हारी मां की जगह नहीं लेना चाहती, कविता. मैं वह स्थान ले ही नहीं सकती. अपने पिता की दूसरी पत्नी, जो तुम्हारी भलाई चाहती है, तुम्हें प्यार करती है, के रूप में तुम्हें मुझे स्वीकार करना ही होगा, कविता, क्योंकि तुम्हारे पिता की जीवनसंगिनी बनने का इरादा मैं नहीं छोड़ सकती हूं,’ उन्होंने ऐसे गंभीर व दृढ़ स्वर में अपनी बात कही कि मैं तर्कवितर्क करने का इरादा त्याग चिढ़ी सी उठ कर खड़ी हो गई.

‘अगर मेरी चली तो पापा आप से कभी शादी करेंगे ही नहीं,’ मैं ने रूखे स्वर में कहा, ‘और अगर यह शादी हुई तो आप को मैं पापा की दूसरी पत्नी मान कर ही सहन कर सकूंगी. लाड़प्यार जता कर कभी मेरी मां बनने की कोशिश मत करना आप. और अब मैं घर जा रही हूं. अकेली,’ अपनी बात समाप्त कर मैं झटके से उठी और बस्ता उठा पार्क के गेट की तरफ बढ़ गई थी.

पापा ने मीना आंटी से शादी करने का अपना फैसला नहीं बदला. मुझे घर के बड़ों ने भी समझाया कि मैं अपने पापा की इच्छा को ध्यान में रखते हुए शादी की राह में रुकावटें न खड़ी करूं.

मैं तब अपने में सिमटती चली गई थी. पापा से अपने दुखसुख की बात कहनी बंद कर दी मैं ने. अकेले में आंसू बहाती. सुमित छोटा था और मीना आंटी का फैन भी था, सो उस से इस शादी के खिलाफ बात कर के मन हलका नहीं कर सकती थी. मैं अंदर ही अंदर घुटती और दुखी होती रही और उन की शादी का दिन आ पहुंचा.

पापा ने मीना आंटी से अदालत में जा कर शादी की थी. शाम को हमारे घर में गिनेचुने मेहमानों व दोनों तरफ के रिश्तेदारों की छोटी सी पार्टी हुई.

पापा की दूसरी पत्नी का स्वागत करने के लिए कोई एक क्षण को भी मुझे पार्टी में शामिल होने को मजबूर नहीं कर सका था.

पापा रात को मुझ से मिलने आए तो मैं नींद में होने का बहाना कर के पलंग पर खामोश पड़ी रही थी.

पापा और मीना आंटी सप्ताहभर के लिए शिमला घूमने गए थे. वहां से लौट कर मीना आंटी ने सब घरेलू कामों का बोझ संभाल लिया था.

पापा के कहने पर सुमित उन्हें मम्मी कह कर पुकारने लगा था लेकिन मेरे लिए ऐसा कहने की कल्पना तक करना अरुचिकर था. पापा की दूसरी पत्नी के अलावा अपने दिल में मैं उन की कोई और पहचान नहीं बनने दे सकती थी. उन से बात करते हुए मैं उन्हें संबोधित करने को कुछ नहीं बुलाती थी.

उन से बहुत कम और केवल काम की बात करती थी मैं. इस के ठीक विपरीत वे सामान्य नजर आतीं. हर वक्त कविता, कविता करती रहतीं. मैं उन के कहे किसी कार्य को अनसुना कर देती तो भी वे खामोशी से स्वयं उसे कर लेतीं.

सुमित और पापा का मन वे जरूर जीत गईं पर मुझे उन की कार्यकुशलता व आत्मीयताभरे व्यवहार से चिढ़ थी.

‘मेरे पीछे न पड़ी रहा करो आप, मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है आप को,’ एक दिन मैं ने कठोर स्वर में अपनी नाराजगी जताते हुए उन से कहा.

‘कविता, मैं अपने कर्तव्यों को भली प्रकार समझती हूं. जब तुम अपने भलेबुरे का ज्ञान करने में पूरी तरह सक्षम हो जाओगी, तब मैं तुम्हें कैसा भी निर्देश देना बंद कर दूंगी,’ उन का ऐसा जवाब सुन कर मैं आगे कुछ नहीं बोल पाती थी.

मेरी बहन को करीबी रिश्तेदार का लड़का पसंद आ गया है. जिससे रिश्ते आगे बढ़ते है तो समस्या आएगी क्या करें?

सवाल

मेरी छोटी बहन कुछ दिनों पहले एक रिश्तेदार के यहां शादी में गई थी. वहां उसे एक लड़का पसंद आ गया. उन दोनों ने आपस में बातें करनी शुरू कीं, तो दोनों को एकदूसरे से प्यार हो गया. हमें इस बारे में अभी पता चला है. असल बात यह है कि वह लड़का हमारी रिश्तेदारी में है. अगर वे दोनों इस रिश्ते में आगे बढ़ते हैं तो पारिवारिक समस्या खड़ी हो सकती है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

आप की बहन और उस लड़के के बीच खून का रिश्ता नहीं है, तो शादी करने में कोई बुराई नहीं है. रही बात रिश्तेदारी में तनाव पैदा होने की, तो आप यह देखिए कि आजकल तो छोटी से छोटी बात पर भी रिश्ते बिगड़ जाते हैं. फिर यहां सवाल 2 दिलों का है, 2 जिंदगियों का है.

अगर आप अपनी बहन और उस लड़के की शादी नहीं कराएंगे तो शायद रिश्तेदारी ज्यादा बिगड़ेगी क्योंकि फिर जब भी वे दोनों टकराएंगे तो हर तरफ एक अजीब और तनावपूर्ण माहौल गहरा जाएगा.

इस से तो बेहतर है कि आप उन के प्यार को समझें और आपसी समझदारी दिखाते हुए उन दोनों को आगे बढ़ने दें. आखिर वे वयस्क हैं, अपना भलाबुरा समझते हैं. यदि वे एकदूसरे के काबिल हैं तो आप को रिश्तेदारी के चक्कर में उन के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए.

 

सोशल मीडिया-यूट्यूब पर है आने वाला कल

लेखक- हेमंत कुमार

जी हां वर्ष 2005 में आई इस अमेरिकन कंपनी यूट्यूब ने कुछ सालों से अपने इतने उपभोक्ता बना लिए हैं कि आप सोच भी नहीं सकते. इस अमेरिकन कंपनी ने पूरी दुनिया में अपने 1.8 बिलियन यूजर्स कर लिए हैं अर्थात 1,80,00,00,000.

यह शायद इसलिए भी हुआ है क्योंकि हम से भी बहुत से लोगों को जानकारी पढ़ने से ज्यादा देख कर समझ में आती होगी और जैसेजैसे लोगों का डिजिटल इंडिया की तरफ रुझान बढ़ रहा है वैसेवैसे लोग नौकरीचाकरी की तलाश से हट कर अपने मालिक खुद बनना पसंद कर रहे हैं.

आज अगर किसी के पास कोई प्रतिभा, हुनर और जनून है तो फिर उसे किसी से काम मांगने की आवश्यकता नहीं. वह घर बैठेबैठे एक कैमरे और एक स्मार्टफोन की सहायता से अपना कैरियर यूट्यूब पर बना सकता है. यूट्यूब एक ऐसी ऐप है जिस में व्यक्ति को किसी के पास जा कर कोई काम नहीं करना पड़ता, किसी के अधीन नहीं होना पड़ता.

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यूट्यूब अपनेआप में ऐसा प्लेटफौर्म है जिस में हम अपनी इच्छानुसार गाड़ी पकड़ सकते हैं. गाड़ी का अर्थ अपनी इच्छानुसार कार्य करने से है. आज विश्वभर से लोग चाहे वे अध्यापक हों, गायक, नर्तक हों, व्यापारी हों, छात्र हों, नेता हों या फिर अभिनेता हों, सभी यूट्यूब से जुड़े हुए हैं.

जिस के पास प्रतिभा है वह भी और उन की प्रतिभा का उपभोग करने वाले व्यक्ति भी, आज किसी को किसी चीज के बारे में जानना हो, तो सब की पहली पसंद यूट्यूब से सीखना ही होती है. यूट्यूब पर देशविदेश से प्रतिभासंपन्न व्यक्ति मौजूद हैं, इसलिए आज बच्चों की पढ़ाईलिखाई का जिम्मा देशविदेश के अध्यापकों ने यूट्बर्स बन कर उठाया हुआ है. यह सच में एक वरदान की तरह है.

हम चाहें तो दुनिया के किसी भी अध्यापक से घर बैठेबैठे शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं वह भी बिना एक रुपया खर्च किए. पर ऐसा नहीं है कि यूट्यूबर्स को इस के बदले कुछ नहीं मिलता. उन्हें यूट्यूब पर विज्ञापन के जरिए अच्छी धनराशि मिलती है. यदि आप के अंदर कोई प्रतिभा है तो यह कोई एक या दो दिन का नहीं, बल्कि जिंदगीभर के लिए अच्छा विकल्प साबित हो सकता है और इस में जौइनिंग व रिटायरमैंट की भी कोई सीमा नहीं होती.

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जी, अब आप सोच रहे होंगे कि इस में यूट्यूब का क्या फायदा. यूट्यूब की कंपनी का कहना है कि वह आप के चैनल से यूट्यूब पर होने वाली कमाई का कुछ हिस्सा तो अपने पास रखती है, बाकी बचा हिस्सा चैनल के मालिक को दे देती है. जिस गति से भारत डिजिटल बनता जा रहा है अगर उस गति से हम ने भी खुद को डिजिटल नहीं किया, अगर हम भी उस रफ्तार के साथसाथ नहीं चले तो कहीं हम डिजिटल के इस दौर में पीछे न रह जाएं. आज कंपीटिशन के इस दौर में जहां सरकारी नौकरी की इतनी मारामारी हो रही है. वहां खाली बैठने से तो अच्छा है कि हम यूट्यूब ?पर चैनल बना कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करें. अगर हमारे पास कौशल होगा तो लोग खुदबखुद ही हमारे चैनल से जुड़ते चले जाएंगे, जिस से हमारा और बाकी लोगों का भी भला हो सकेगा.

आज कई व्यक्ति यूट्यूब से प्रसिद्धि पा कर सफलता की ऊंचाइयों को छू रहे हैं. वे देशविदेश में लोगों के बीच अपनी पहचान बना चुके हैं. इसलिए आज जिस व्यक्ति के पास हुनर है वह सिर पर हाथ धरे न बैठे, बल्कि यूट्यूब पर थोड़ा सा समय दे कर अपने भविष्य को साकार करे क्योंकि आने वाले दिनों में यूट्यूब का भविष्य उज्ज्वल है.

नींद न आना बीमारी का खजाना

आधुनिक युग की अर्थव्यवस्था ने ज्यादातर लोगों के कामकाज के टाइमटेबल को बदल दिया है. लौकडाउन की वजह से अब वर्क फ्रौम होम और नाइट ड्यूटी करना आवश्यक सा हो गया है. ऐसे लोगों की तादाद बढ़ती जा रही?है जिन को पर्याप्त नींद नहीं मिल पा रही है और जिस का असर उन के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.

कहते हैं कुंभकरण साल में 6 माह तक गहरी नींद में सोता था. अगर वह आज के युग में होता तो उसे शायद रोजाना की आवश्यक 8 घंटे की नींद भी न मिलती, वह भी हम लोगों की तरह इलैक्ट्रौनिक स्क्रीन से चिपका हुआ नींद के लिए तरसता रहता. इस में कोई दोराय नहीं है कि 21वीं शताब्दी में ‘जो सोवत?है सो खोवत है’ कहावत एकदम सही हो गई?है. रात में सोने का अर्थ यह है कि आप बहुत नुकसान में?हैं.

आधुनिक युग की अर्थव्यवस्था ने ज्यादातर लोगों के कामकाज के टाइम टेबल को बदल दिया है. नाइट ड्यूटी और वर्क फ्रौम होम करना लगभग आवश्यक सा हो गया है. जाहिर है इस के कारण ऐसे लोगों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही?है जिन को पर्याप्त नींद नहीं मिल पा रही है. हाल ही में किए गए एक सर्वे के अनुसार, लगभग एकतिहाई भारतीय पर्याप्त नींद से वंचित हैं. लेकिन इस का एक दूसरा पहलू यह भी है कि जो लोग नींद समस्या के समाधान संबंधी व्यापार से जुड़े हुए हैं उन की चांदी हो रही?है.

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नींद न आना कोई नई बात नहीं?है. लेकिन आज के युग में अनेक चिंताजनक नए तत्त्वों ने इसे एक ऐसी महामारी बना दिया है कि जो किशोरों व युवाओं के साथसाथ बच्चों को भी प्रभावित कर रही?है. इन तत्त्वों में बहुत अधिक तनाव से ले कर अतिसक्रिय दिमाग सहित हाइपर टैक्नोलौजी शामिल है.

दरअसल, अपर्याप्त नींद से जो स्वास्थ्य खतरे उत्पन्न हो रहे हैं उन के बारे में जानकारी को आम करना इतना आवश्यक हो गया है कि वर्ल्ड एसोसिएशन औफ स्लीप मैडिसिन को 15 मार्च को विश्व नींद दिवस मनाना पड़ा.

जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है कि एकतिहाई कामकाजी भारतीय पर्याप्त नींद नहीं प्राप्त कर पा रहे?हैं, जिस से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो ही रही हैं, साथ ही, नींद के लिए बहुत ज्यादा पैसा भी खर्च करना पड़ रहा है.

कुछ वर्ष पहले यह सर्वे रीगस ने किया था जबकि टाइम पत्रिका की एक रिपोर्ट में कहा गया?था कि 2008 से प्रतिवर्ष नींद संबंधी खर्च में 8.8 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही?है.

एक अन्य सर्वे में मालूम हुआ कि 93 फीसदी भारतीय रात में 8 घंटे से भी कम की नींद ले पाते?हैं, जबकि 58 फीसदी का मानना है कि अपर्याप्त नींद के कारण उन का काम प्रभावित होता?है और 38 फीसदी का कहना है कि उन्होंने कार्यस्थल पर अपने सहकर्मियों को सोते हुए देखा है. यह सर्वे नील्सन कंपनी ने फिलिप्स रेस्पीरौनिक्स के लिए किया?है, जो कि स्लीप एड व डायग्नौस्टिक उपकरणों के कारोबार से जुड़ी है.

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स्वास्थ्य समस्याएं

इस में कोई दोराय नहीं है कि पर्याप्त नींद न मिल पाने से कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. स्लीप डिस्और्डर के 80 से अधिक प्रकार हैं. साथ ही, इस के कारण हार्ट अटैक, डिप्रैशन, हाई ब्लडप्रैशर, याददाश्त में कमी आदि समस्याएं भी हो सकती?हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि मोटापे को रोग समझने में हमें 25 वर्ष का समय लगा था, यही भूल नींद के सिलसिले में नहीं करनी चाहिए.

वहीं, अपर्याप्त नींद की समस्या ने नींद लाने का जबरदस्त बाजार खोल दिया है. पहले जो व्यक्ति रात में सही से सो पाता था तो अगले दिन कार्यस्थल पर जागते रहने के लिए एनर्जी ड्रिंक्स आदि लेने का प्रयास करता था, लेकिन अब नींद न आने से परेशान लोग मैडिकल हस्तक्षेप को महत्त्व देने लगे?हैं. यही वजह है कि देश में स्लीप क्लीनिक्स की बाढ़ सी आ गई है. मुंबई के लीलावती अस्पताल में पिछले कई वर्षों से स्लीप लैब मौजूद है. पहले इस लैब में सप्ताह में मुश्किल से एकदो रोगी आता था, लेकिन अब रोजाना ऐसे रोगियों की संख्या बढ़ती ही

जा रही?है जिन को पोलीसोमोनिग्राम कराने की जरूरत पड़ती है. यह टैस्ट महंगा होता?है, इस से मालूम होता?है कि नींद क्यों नहीं आ रही. इस एक अस्पताल के आंकड़े से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाकी देश में क्या हाल होगा?  नींद न आने की समस्या ने गद्दों की मार्केट का भी विस्तार किया है.

बीमारी से फायदा

ऐसा नहीं है कि नींद न आने की समस्या से केवल मैडिकल प्रोफैशन से जुड़े लोगों व कंपनियों को ही लाभ हो रहा है. कुछ रोगियों ने तो अपनी इस बीमारी को भी फायदे में ही बदलने का प्रयास किया है. मसलन, ध्रुव मल्होत्रा को ही लें. इस 27 वर्षीय फोटोग्राफर को दिन में 3-4 घंटे से ज्यादा नींद नहीं आती?है. कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि वे कई दिन लगातार नहीं सोए. लेकिन मल्होत्रा ने अपनी इस बीमारी का लाभ यह उठाया कि वे मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरु, उड्डुपी व जयपुर में रातों को घूमे और फुटपाथों, रेलवे स्टेशनों, टैक्सियों, फ्लाइओवर के नीचे, पार्कों की बैंचों पर सोते हुए लोगों की तसवीर खींचने लगे. इस तरह ‘स्लीपर्स’ नामक उन की प्रदर्शनी के लिए उन्हें एक नया विषय मिला.

इसी तरह से देर राततक इंटरनैट के जरिए भी बहुत से रोगी अपनी परेशानी को फायदे में बदलने का प्रयास कर रहे?हैं. ये लोग इंटरनैट के जरिए ब्लौगिंग व लेखन के अन्य कार्य करते हैं, इस से इन को आर्थिक लाभ होता?है. रातों को जागने वाले पहले भी रहे?हैं और आज भी मौजूद हैं. इतिहास ऐसी महान शख्सीयतों से भरा हुआ है जो रात को सो नहीं पाते थे. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन व्हाइट हाउस में आधी रात के बाद देर तक चहलकदमी करने के लिए बदनाम रहे हैं. इसी तरह नेपोलियन बोनापार्ट, मर्लिन मुनरो, शेक्सपियर, चार्ल्स डिकिन्स आदि भी रतजगे किया करते थे. आज के दौर में देखें तो फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन व शाहरुख खान बमुश्किल ही रात को सो पाते?हैं.

इन शख्सीयतों के कारण ही साहित्य में ऐसे चरित्र भरे हुए हैं जो रात को आरामदायक नींद नहीं ले पाते थे, जैसे शरलौक होम्स आदि. वहीं, शायरों ने प्रेम के कारण नींद उड़ जाने को अपनी कविताओं का विषय बनाया है, मसलन, वीजेंद्र सिंह परवाज का एक शेर है:

जैसे तेरी याद ने मुझ को सारी रात जगाया?है तेरे दिल पे क्या बीते जो तेरी नींद चुरा लूं मैं.

लेकिन आज नींद का न आना महान शख्सीयतों या उन से प्रेरित साहित्य के चरित्रों या रोमांटिक शायरी के विषयों तक सीमित नहीं रह गया है. आज नींद का न आना एक चिंताजनक महामारी बनती जा रही?है. इसलिए यह समझना आवश्यक?है कि इस समस्या के कारण?क्या हैं, यह किस तरह आधुनिक जीवन को प्रभावित कर रही है और इस का समाधान क्या है. लेकिन इस से पहले यह बताना आवश्यक है कि व्यक्ति को कितनी नींद रोजाना मिलनी चाहिए. विशेषज्ञों के अनुसार, नवजात शिशुओं को दिन में 12-18 घंटे की नींद मिलनी चाहिए, बच्चों को 11-14 घंटे की और वयस्कों को 6-9 घंटे की नींद कम से कम मिलनी चाहिए.

एक मत यह भी आधुनिक विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि व्यक्ति को दिन में कितनी नींद चाहिए, यह एक भ्रमित करने वाला प्रश्न है. शायद इसीलिए यह समस्या का हिस्सा भी है. उन के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति आप से मालूम करे कि आप को कितनी कैलोरी की जरूरत है तो यह बात बहुत चीजों पर निर्भर करती?है कि जैसे प्रेगनैंसी, आयु, ऐक्सरसाइज का स्तर, व्यवसाय आदि. कुछ लोग रात में 3-4 घंटे की नींद से काम चला लेते?हैं और कुछ को कम से कम 10-11 घंटे की नींद चाहिए होती?है. लेकिन नींद की अवधि व गुणवत्ता

 

2 अलगअलग बातें?हैं.अगर आप दिनभर ऊर्जा से भरे रहते?हैं और अच्छे मूड में रहते?हैं, बिना कैफीन या शुगर का सेवन किए हुए तो समझ जाइए आप पर्याप्त नींद ले रहे?हैं. दोपहर में नींद का आना सामान्य बात है, यह कोई बीमारी नहीं?है.

वक्त भी ठहर गया वह बांध जो बांधा था मैं ने प्यार की नदी में बरसों पहले न जाने कैसे वह वक्त के सैलाब में टूट कर बह गया. कुछ झिझक थी शायद मेरे दिल मे या वह वक्त ही था कुछ ऐसा कहना चाहता था जो उस से न कह सका, कुछ और कह गया.

 

इस डर से कहीं बुरा न मान जाएं मेरी किसी बात का उन की नादानियां, अपनी रुसवाइयां चुपचाप सह गया वह ताजमहल था कांच का उसे टूटना ही था एक दिन टूट कर बिखरा वह भी इस तरह एक टुकड़ा इधर गया एक उधर गया.

मैं ही नहीं ये चांदतारे, जमीं, सब उस के मुरीद हैं

 

फकत उस के इशारे भर से

 

यह वक्त भी ठहर गया.

 

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