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19 दिन 19 टिप्स: आंखों का भेंगापन, समय से कराएं इलाज

बोलचाल की भाषा में भेंगापन को आंखों का तिरछापन भी कहते हैं. अगर इस का समय पर पता न चले और इलाज न कराया जाए, तो बाद में इस का पूरी तरह ठीक होना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. लखनऊ के राजेंद्र अस्पताल के आंखों के जानेमाने डाक्टर सौरभ चंद्रा कहते हैं, ‘‘आंखों का भेंगापन या तिरछापन, जिस को अंगरेजी में सिक्विंट कहते हैं, ऐसी बीमारी है, जो किसी भी उम्र में आदमी और औरत को हो सकती है. अगर इस बीमारी का पता शुरू में ही चल जाए, तो इलाज आसान हो जाता है.’’

जब कभी आंख में चोट लगे या फिर एक समय पर एक चीज के 2 इमेज दिखाई दें, तो डाक्टर को एक बार आंख दिखा कर उस का चैकअप जरूर करा लेना चाहिए. छोटे बच्चों में इस बात का पता आसानी से नहीं लगता, इसलिए मातापिता को जागरूक रहने की जरूरत होती है.

जब भी बच्चा पढ़ने से जी चुराए या उस की आंखों में पानी आए और वह टैलीविजन देखते या पढ़ते समय आंख पर ज्यादा जोर देता हो, तो उसे डाक्टर के पास लाना चाहिए.

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भेंगापन के लक्षण

डाक्टर सौरभ चंद्रा कहते हैं, ‘‘इस बीमारी में एक आंख से दूसरी आंख का तालमेल नहीं रहता है. इस के चलते एक आंख की देखने की दिशा और दूसरी आंख की देखने की दिशा में फर्क आ जाता है. इस बीमारी में दोनों आंखों के परदे पर एक ही समय में एक चीज का अलगअलग चित्र बन जाता है. ‘‘यह बीमारी 2 तरह की होती है. एक में सामने से देखने पर ही पता चल जाता है कि आंखों में भेंगापन है, जबकि  दूसरी में  सामने से  देखने में पता नहीं चलता है.’’

आंखों में होने वाले भेंगापन का पहला प्रकार पैरालिटिक कहलाता है.  इस बीमारी में आंखों को घुमाने वाली मांसपेशी या उस की नसों में लकवा मार जाता है. इस तरह का भेंगापन आंख में चोट लगने, ब्लडशुगर, हाई ब्लडप्रैशर होने के चलते हो सकता है. कभीकभी यह बीमारी दिमाग में होने वाली बीमारियों के चलते भी हो जाती है. डाक्टर सौरभ चंद्रा कहते हैं, ‘‘दिमाग में ट्यूमर और दिमाग की झिल्ली में सूजन आ जाने के चलते भी ऐसा हो सकता है.

‘‘भेंगापन क्यों है? जब इस बात का पता चल जाता है, तो पहले उस वजह को दूर करना होता है. मिसाल के लिए, अगर भेंगापन की वजह ब्लडशुगर है, तो पहले उस का इलाज होगा, फिर भेंगापन का इलाज होगा. अगर समय पर इस का इलाज न हो, तो फिर भेंगापन लाइलाज हो जाता है. ‘‘दूसरी तरह का भेंगापन ऐसा होता है, जिस में चीज डबल नहीं दिखती है. इस बीमारी में नसों और आंखों की मांसपेशियों में कोई कमी नहीं होती है.  इस बीमारी में आंख से दिमाग और फिर दिमाग से मांसपेशियों को मिलने वाले सिगनल में कमी आ जाती है. इस के चलते भेंगापन हो जाता है.

‘‘इस तरह के भेंगापन में आमतौर पर आंखों का तिरछापन थोडे़ समय के लिए होता है. अगर इस का इलाज न कराया जाए, तो यह हमेशा के लिए भी हो सकता है. इस बीमारी की वजह आंखों की कमजोरी होती है. अगर चश्मा लगाने की जरूरत हो और चश्मा न लगाया जाए, तो यह बीमारी बढ़ सकती है. एक आंख के लैंस या एक आंख के परदे में कोई खराबी हो, तो भी यह बीमारी हो सकती है.  ‘‘यह बीमारी ज्यादातर बढ़ती उम्र के बच्चों में यानी 5 साल से 8 साल की उम्र के बीच हो सकती है. इस का पता नहीं चलता, यही परेशानी की बात है, इसलिए मातापिता को जागरूक रहने की जरूरत होती है. ‘‘अगर बच्चे का पढ़ाई में मन न लगे या फिर वह आंखों पर जोर डाल कर काम करे, तो उस को ले कर डाक्टर के पास आना चाहिए.’’

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डाक्टर सौरभ चंद्रा आगे कहते हैं, ‘‘इन 2 तरह के भेंगापन के अलावा एक तीसरी तरह का भेंगापन भी होता है और यह जन्मजात होता है. इस में आंखों की तंत्रिका में शुरू से ही खराबी होती है. इस का कुछ हद तक आपरेशन से इलाज हो सकता है, पर पूरी तरह से इस का ठीक होना आसान नहीं होता है. यह सामने से देखने में ही पता चल जाता है. ऐसे मरीज को जल्दी से जल्दी इलाज के लिए लाना चाहिए.’’

भेंगापन का इलाज

डाक्टर सौरभ चंद्रा कहते हैं कि भेंगापन का इलाज करते समय पहले आंख को अच्छी तरह चैक किया जाता है. अगर आंखों को चश्मे की जरूरत होती है, तो चश्मा लगा कर ही इलाज किया जाता है. अगर चश्मा लगाने से इलाज नहीं होने वाला होता है, तो घर में की जाने वाली कसरतें मरीज को बताई जाती हैं और उन से इलाज किया जाता है. इस के बाद भी अगर कुछ परेशानी महसूस होती है, तो मरीज को अस्पताल में बुला कर मशीन द्वारा आंखों की कसरत कराई जाती है. इस के बाद भी अगर जरूरत होती है, तो ही आपरेशन किया जाता है.  आपरेशन के बाद आंखों की मांसपेशियों को इस तरह बना दिया जाता है, जिस से उन के बीच तालमेल बन सके.

किस मरीज का कैसा इलाज करना है, यह उस की परेशानी को देखने के बाद ही पता चल सकता है. भेंगापन का इलाज समय रहते कराया जाए, तो नतीजा अच्छा रहता है. बच्चों में जिस तरह का भेंगापन होता है, उस में अगर कम उम्र में ही उस का इलाज न हो, तो मुश्किल हो जाती है, इसलिए 3 साल से 4 साल की उम्र के बीच बच्चों का चैकअप जरूर आंखों के माहिर डाक्टर से करा लेना चाहिए.

लॉकडाउन का शिकार हो किसान

किसानों की कमाई का बड़ा हिस्सा बिचौलिए और मंडी के ठेकेदारों के हाथ लगता था किसान को फसल की बोआई के बाद कुछ पैसा ही बचता था. किसान सीधे सप्ताहिक बाजारों, होटलों और घरेलू ग्राहकों को बेच कर कुछ मुनाफा कमा लेता था. लॉक डाउन में किसानों के पास केवल मंडी का ही सहारा रह गया है. जंहा बिचौलियों की मनमानी का शिकार होना पड़ता है.

लॉक डाउन की वजह से गांवों के आसपास लगने वाले साप्ताहिक बाज़ार बन्द करा दिए गए हैं. जो किसान अपनी फसल सब्जी मंडियों तक ले जाते थे या साइकिल से शहर के मोहल्लों में बेचने जाते थे अब पुलिस उनको जाने नहीं दे रही. ऐसे में सब्जी की खेती करने वाले किसान परेशान हैं. सब्जी सड़ कर खराब ना हो जाये इसलिए किसान ओनेपोने दामों पर सब्जी बिचौलियों को बेचने पर मजबूर हैं.

नहीं मिल रही खेती की कीमत
सब्जी की खेती करने वाले लखनऊ में मोहनलालगंज के किसान महराजदीन कहते हैं ” लॉक डाउन के पहले सब्जी बेचने पर सब्जी की लागत और कुछ मुनाफा निकल आता था. अब लागत और मुनाफे की बात जाने दीजिए सिंचाई का पैसा भी नही निकल रहा है. कई बार हम औऱ हम जैसे तमाम किसान अपनी सब्जी ले कर होटल और रेस्टोरेंट भी चले जाते थे. वँहा हमे अच्छा भाव मिल जाता था. हम बिचौलियों से बच जाते थे. लॉक डाउन में हम वँहा भी नही जा पा रहे है.

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शहरों के आसपास तमाम किसान अब मुनाफे में लिए सब्जी और सब्जी जैसी तमाम कैश क्रॉप की पैदावार करने लगे थे. इसमें इनका मुनाफा अधिक इस लिए भी हो जाता था क्योंकि किसान मंडी ले जाकर बिचौलियों को बेचने की जगह पर सीधे ग्राहकों को सब्जी दे देते थे. इससे किसानों को लाभ मिल जाता था। किसान लौकी , तरोई, टमाटर, भिंडी जैसी तमाम सब्जियों की खेती करने लगा था. लॉक डाउन में बिक्री बन्द के कारण अब किसान परेशान है. केवल सब्जी की खेती करने वाले किसान ही परेशान नहीं है.गन्ना और गेंहू के किसानों को भी पैसा नही मिल रहा है.

परेशान है गन्ना और गेंहू के किसान  
राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल दुबे ने कहते है कि उत्तर प्रदेश में 66 प्रतिशत लोग किसान है, वर्तमान सरकार किसान का जमकर शोषण  कर रही है सरकार किसानों को लेकर केवल जुमलेबाजी करने में व्यस्त है. सरकार पर गन्ना किसानों का 15000 करोड़ से ऊपर बकाया है, जिसकी कोई चिंता सरकार को नही है. किसान का आधे से ज्यादा गन्ना खेत में खड़ा है, गन्ना अधिकारी  पुनः सर्वे के नाम पर गन्ना पर्ची किसान को नही दे रहे है. किसान लॉक डाउन में बुरी तरह आहत है.

प्रदेश सरकार द्वारा गेंहू किसानों का जमकर शोषण किया जा रहा है. सरकार द्वारा 1925 रुपए प्रति क्विंटल गेंहू का मूल्य निर्धारित किया गया है, जिसमे 20 रुपए प्रति क्विंटल मजदूरी का सरकार मंडी परिषद के माध्यम अपने आप देती थी, परंतु इस बार सरकार ने वो 20 रुपए किसान से काटना शुरू कर दिया जो सरासर गलत है.

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इस बार किसान का गेंहू क्रय केंद्र पर रजिस्ट्रेशन कराया जा रहा है.किसान से गेंहू लेकर उसे भुगतान के बारे में नही बताया जा रहा है कि भुगतान कब होगा. क्रय केंद्र गांव स्तर पर नही बनाये गए है. जो बनाये गए है उनमें गेंहू लेने के लिए पर्याप्त बारदाना नही है, जिससे किसान बिचौलियों को गेंहू बेचने को मजबूर है.किसान को फसल का दुगना दाम देने का सपना दिखाने वाली सरकार किसान को लागत के आधे दाम में फसल को बेचने को मजबूर कर रही है.

सरकार को चाहिए कि प्रदेश के किसानो का अविलंब गन्ना भुगतान कराया जाए और प्रदेश के गेंहू क्रय केंद्रों का निरीक्षण कराया जाए, साथ ही उनकी संख्या बढ़ाई जाए. सरकार द्वारा घोषित 1925 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान किसान का हो और 20 रुपये प्रति वर्ष की भांति सरकार अपनी ओर से सफाई ढुलाई का दें.

कागजी साबित हो रही सरकारी घोषणाएं
उत्तर प्रदेश सरकार किसानों के समस्याओं के निराकरण के लिए एक के बाद एक तमाम घोषणाएं करती रहती है. इसमें किसानों की फसलों का सही मूल्य दिया जाना, किसानों को लॉकडाउन में आने जाने के लिए पास की व्यवस्था किया जाना, और गांव में रहने वाले किसानों और मजदूरों को मनरेगा के जरिए रोजगार दिए जाने जैसे तमाम काम शामिल है. सरकार यह भी दावा कर रही है कि हर किसान के खाते में वह नगद पैसे भी भेज रही है. इसके बाद भी किसानों की हालत जस की तस है किसानों को लॉक डाउन में अपनी फसल बेचने के लिए बाजार नहीं जाने दिया जाता है.सामान्य तौर पर लगने वाली साप्ताहिक बाजारे पूरी तरीके से बंद है. शहरों में जाने पर किसानों को पाबंदी लगी हुई है ऐसे में मेहनत करके खेत में पैदा की गई फसल भी बर्बाद हो रही है. किसान कहता है सरकार हमें सहायता दे या ना दे केवल हमारे उत्पादों का सही मूल्य दिला दे यही किसानों के लिए सबसे बड़ा काम होगा

मवेशियों के लिए नही है चारा
समस्या केवल किसानों की नहीं है किसानों के साथ साथ उनके मवेशियों की भी समस्या है। मवेशियों के लिए चारा खत्म हो गया है। चारा और भूसा ले जाने वाली गाड़ियों को सड़क पर चलने नहीं दिया जा रहा है.जिसकी वजह से जानवरों को चारा नहीं मिल रहा पशु आहार वाली दुकानें बंद है। जिससे मवेशियों को चारा नहीं मिल रहा ऐसे में खेती कैसे होगी यह सोचने की बात है कागजों में यह आदेश है को भूसा और चारा ले जाने वाली गाड़ियों को पुलिस के द्वारा रोका नहीं जाएगा। हकीकत में पुलिस खुद ही इन

मैं जानना चाहती हूं कि मेरे पति जब मेरे साथ पहली बार सैक्स करेंगे तो उन्हें पता तो नहीं लग जाएगा कि मैं पहले भी सैक्स कर चुकी हूं?

सवाल
मैं 22 वर्षीय युवती हूं. मेरा पिछले 2 साल से विवाहित पुरुष से संबंध है. 2 महीने बाद मेरी शादी होने वाली है. मैं जानना चाहती हूं कि मेरे पति जब मेरे साथ पहली बार सैक्स करेंगे तो उन्हें पता तो नहीं लग जाएगा कि मैं पहले भी सैक्स कर चुकी हूं.

जवाब
योनिछिद्र एक झिल्लीनुमा परत होती है जिस के बारे में ऐसा माना जाता है कि जब पहली बार सैक्स किया जाता है तो उस दौरान ही वह फट जाती है. लेकिन यह सही नहीं है.

कई बार अधिक भारी सामान उठाने, खेलने के दौरान भी यह झिल्ली फट जाती है. इसलिए इस से किसी भी लड़की की वर्जिनिटी के बारे में अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. तो आप परेशान न हों क्योंकि जब तक आप उन्हें इस बारे में नहीं बताएंगी, उन्हें कुछ पता नहीं चलेगा.

आप को यह भी ध्यान रखना होगा कि अब आप गृहस्थी बसाने जा रही हैं, इसलिए जो गलतियां अब तक की हैं उन्हें आगे रिपीट न करें वरना आप की एक भूल, आप की जिंदगी बरबाद कर सकती है. शादी से पहले के सैक्स संबंधों के बारे में पति को कभी न बताएं.

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सैक्स : मजा न बन जाए सजा

पहले प्यार होता है और फिर सैक्स का रूप ले लेता है. फिर धीरेधीरे प्यार सैक्स आधारित हो जाता है, जिस का मजा प्रेमीप्रेमिका दोनों उठाते हैं, लेकिन इस मजे में हुई जरा सी चूक जीवनभर की सजा में तबदील हो सकती है जिस का खमियाजा ज्यादातर प्रेमी के बजाय प्रेमिका को भुगतना पड़ता है भले ही वह सामाजिक स्तर पर हो या शारीरिक परेशानियों के रूप में. यह प्यार का मजा सजा न बन जाए इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखें.

सैक्स से पहले हिदायतें

बिना कंडोम न उठाएं सैक्स का मजा

एकदूसरे के प्यार में दीवाने हो कर उसे संपूर्ण रूप से पाने की इच्छा सिर्फ युवकों में ही नहीं बल्कि युवतियों में भी होती है. अपनी इसी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए वे सैक्स तक करने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन जोश में होश न खोएं. अगर आप अपने पार्टनर के साथ प्लान कर के सैक्स कर रहे हैं तो कंडोम का इस्तेमाल करना न भूलें. इस से आप सैक्स का बिना डर मजा उठा पाएंगे. यहां तक कि आप इस के इस्तेमाल से सैक्सुअल ट्रांसमिटिड डिसीजिज से भी बच पाएंगे.

अब नहीं चलेगा बहाना

अधिकांश युवकों की यह शिकायत होती है कि संबंध बनाने के दौरान कंडोम फट जाता है या फिर कई बार फिसलता भी है, जिस से वे चाह कर भी इस सेफ्टी टौय का इस्तेमाल नहीं कर पाते. वैसे तो यह निर्भर करता है कंडोम की क्वालिटी पर लेकिन इस के बावजूद कंडोम की ऐक्स्ट्रा सिक्योरिटी के लिए सैक्स टौय बनाने वाली स्वीडन की कंपनी लेलो ने हेक्स ब्रैंड नाम से एक कंडोम बनाया है जिस की खासीयत यह है कि सैक्स के दौरान पड़ने वाले दबाव का इस पर असर नहीं होता और अगर छेद हो भी तो उस की एक परत ही नष्ट होती है बाकी पर कोई असर नहीं पड़ता. जल्द ही कंपनी इसे मार्केट में उतारेगी.

ऐक्स्ट्रा केयर डबल मजा

आप के मन में विचार आ रहा होगा कि इस में डबल मजा कैसे उठाया जा सकता है तो आप को बता दें कि यहां डबल मजा का मतलब डबल प्रोटैक्शन से है, जिस में एक कदम आप का पार्टनर बढ़ाए वहीं दूसरा कदम आप यानी जहां आप का पार्टनर संभोग के दौरान कंडोम का इस्तेमाल करे वहीं आप गर्भनिरोधक गोलियों का. इस से अगर कंडोम फट भी जाएगा तब भी गर्भनिरोधक गोलियां आप को प्रैग्नैंट होने के खतरे से बचाएंगी, जिस से आप सैक्स का सुखद आनंद उठा पाएंगी.

कई बार ऐसी सिचुऐशन भी आती है कि दोनों एकदूसरे पर कंट्रोल नहीं कर पाते और बिना कोई सावधानी बरते एकदूसरे को भोगना शुरू कर देते हैं लेकिन जब होश आता है तब उन के होश उड़ जाते हैं. अगर आप के साथ भी कभी ऐसा हो जाए तो आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों का सहारा लें लेकिन साथ ही डाक्टरी परामर्श भी लें, ताकि इस का आप की सेहत पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े.

पुलआउट मैथड

पुलआउट मैथड को विदड्रौल मैथड के नाम से भी जाना जाता है. इस प्रक्रिया में योनि के बाहर लिंग निकाल कर वीर्यपात किया जाता है, जिस से प्रैग्नैंसी का खतरा नहीं रहता. लेकिन इसे ट्राई करने के लिए आप के अंदर सैल्फ कंट्रोल और खुद पर विश्वास होना जरूरी है.

सैक्स के बजाय करें फोरप्ले

फोरप्ले में एकदूसरे के कामुक अंगों से छेड़छाड़ कर के उन्हें उत्तेजित किया जाता है. इस में एकदूसरे के अंगों को सहलाना, उन्हें प्यार करना, किसिंग आदि आते हैं. लेकिन इस में लिंग का योनि में प्रवेश नहीं कराया जाता. सिर्फ होता है तन से तन का स्पर्श, मदहोश करने वाली बातें जिन में आप को मजा भी मिल जाता है, ऐंजौय भी काफी देर तक करते हैं.

अवौइड करें ओरल सैक्स

ओरल सैक्स नाम से जितना आसान सा लगता है वहीं इस के परिणाम काफी भयंकर होते हैं, क्योंकि इस में यौन क्रिया के दौरान गुप्तांगों से निकलने वाले फ्लूयड के संपर्क में व्यक्ति ज्यादा आता है, जिस से दांतों को नुकसान पहुंचने के साथसाथ एचआईवी का भी खतरा रहता है.

यदि इन खतरों को जानने के बावजूद आप इसे ट्राई करते हैं तो युवक कंडोम और युवतियां डेम का इस्तेमाल करें जो छोटा व पतला स्क्वेयर शेप में रबड़ या प्लास्टिक का बना होता है जो वैजाइना और मुंह के बीच दीवार की भूमिका अदा करता है जिस से सैक्सुअल ट्रांसमिटिड डिजीजिज का खतरा नहीं रहता.

पौर्न साइट्स को न करें कौपी

युवाओं में सैक्स को जानने की इच्छा प्रबल होती है, जिस के लिए वे पौर्न साइट्स को देख कर अपनी जिज्ञासा शांत करते हैं. ऐसे में पौर्न साइट्स देख कर उन के मन में उठ रहे सवाल तो शांत हो जाते हैं लेकिन मन में यह बात बैठ जाती है कि जब भी मौका मिला तब पार्टनर के साथ इन स्टैप्स को जरूर ट्राई करेंगे, जिस के चक्कर में कई बार भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. लेकिन ध्यान रहे कि पौर्न साइट्स पर बहुत से ऐसे स्टैप्स भी दिखाए जाते हैं जिन्हें असल जिंदगी में ट्राई करना संभव नहीं लेकिन इन्हें देख कर ट्राई करने की कोशिश में हर्ट हो जाते हैं. इसलिए जिस बारे में जानकारी हो उसे ही ट्राई करें वरना ऐंजौय करने के बजाय परेशानियों से दोचार होना पड़ेगा.

सस्ते के चक्कर में न करें जगह से समझौता

सैक्स करने की बेताबी में ऐसी जगह का चयन न करें कि बाद में आप को लेने के देने पड़ जाएं. ऐसे किसी होटल में शरण न लें जहां इस संबंध में पहले भी कई बार पुलिस के छापे पड़ चुके हों. भले ही ऐसे होटल्स आप को सस्ते में मिल जाएंगे लेकिन वहां आप की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होती.

हो सकता है कि रूम में पहले से ही कैमरे फिट हों और आप को ब्लैकमैल करने के उद्देश्य से आप के उन अंतरंग पलों को कैमरे में कैद कर लिया जाए. फिर उसी की आड़ में आप को ब्लैकमेल किया जा सकता है. इसलिए सावधानी बरतें.

अलकोहल, न बाबा न

कई बार पार्टनर के जबरदस्ती कहने पर कि यार बहुत मजा आएगा अगर दोनों वाइन पी कर रिलेशन बनाएंगे और आप पार्टनर के इतने प्यार से कहने पर झट से मान भी जाती हैं. लेकिन इस में मजा कम खतरा ज्यादा है, क्योंकि एक तो आप होश में नहीं होतीं और दूसरा पार्टनर इस की आड़ में आप के साथ चीटिंग भी कर सकता है. हो सकता है ऐसे में वह वीडियो क्लिपिंग बना ले और बाद में आप को दिखा कर ब्लैकमेल या आप का शोषण करे.

न दिखाएं अपना फोटोमेनिया

भले ही पार्टनर आप पर कितना ही जोर क्यों न डाले कि इन पलों को कैमरे में कैद कर लेते हैं ताकि बाद में इन पलों को देख कर और रोमांस जता सकें, लेकिन आप इस के लिए राजी न हों, क्योंकि आप की एक ‘हां’ आप की जिंदगी बरबाद कर सकती है.

सैक्स के बाद के खतरे

ब्लैकमेलिंग का डर

अधिकांश युवकों का इंट्रस्ट युवतियों से ज्यादा उन से संबंध बनाने में होता है और संबंध बनाने के बाद उन्हें पहचानने से भी इनकार कर देते हैं. कई बार तो ब्लैकमेलिंग तक करते हैं. ऐसे में आप उस की ऐसी नाजायज मांगें न मानें.

बीमारियों से घिरने का डर

ऐंजौयमैंट के लिए आप ने रिलेशन तो बना लिया, लेकिन आप उस के बाद के खतरों से अनजान रहते हैं. आप को जान कर हैरानी होगी कि 1981 से पहले यूनाइटेड स्टेट्स में जहां 6 लाख से ज्यादा लोग ऐड्स से प्रभावित थे वहीं 9 लाख अमेरिकन्स एचआईवी से. यह रिपोर्ट शादी से पहले सैक्स के खतरों को दर्शाती है.

मैरिज टूटने का रिस्क भी

हो सकता है कि आप ने जिस के साथ सैक्स रिलेशन बनाया हो, किसी मजबूरी के कारण अब आप उस से शादी न कर पा रही हों और जहां आप की अब मैरिज फिक्स हुई है, आप के मन में यही डर होगा कि कहीं उसे पता लग गया तो मेरी शादी टूट जाएगी. मन में पछतावा भी रहेगा और आप इसी बोझ के साथ अपनी जिंदगी गुजारने को विवश हो जाएंगी.

डिप्रैशन का शिकार

सैक्स के बाद पार्टनर से जो इमोशनल अटैचमैंट हो जाता है उसे आप चाह कर भी खत्म नहीं कर पातीं. ऐसी स्थिति में अगर आप का पार्टनर से बे्रकअप हो गया फिर तो आप खुद को अकेला महसूस करने के कारण डिप्रैशन का शिकार हो जाएंगी, जिस से बाहर निकलना इतना आसान नहीं होगा.

कहीं प्रैग्नैंट न हो जाएं

आप अगर प्रैग्नैंट हो गईं फिर तो आप कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगी. इसलिए जरूरी है कोई भी ऐसावैसा कदम उठाने से पहले एक बार सोचने की, क्योंकि एक गलत कदम आप का भविष्य खराब कर सकता है. ऐसे में आप बदनामी के डर से आत्महत्या जैसा कदम उठाने में भी देर नहीं करेंगी.

“ई-ग्राम स्वराज पोर्टल एवं मोबाइल एप” से होगा,डिजिटली पंचायत का सपना साकार

शुक्रवार को देश के प्रधानमंत्री ने ‘राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस 2020’ के अवसर पर देश भर की ग्राम पंचायतों के सरपंचों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संवाद किया. इस दौरान उन्होंने एक एकीकृत ‘ई-ग्राम स्वराज पोर्टल एवं मोबाइल एप’ और ‘स्वामित्‍व योजना’ का शुभारंभ किया . आईये  जानते है ‘ई-ग्राम स्वराज पोर्टल एवं मोबाइल एप’ .यह कैसे काम करता है  .

* क्या है ग्राम स्वराज :-

पंचायतों का लेखा जोखा रखने के लिए यह एक नया पहल है . इससे देश के भी राज्यों एवं केंद्रशासित राज्यों के पंचायतों को जोड़ा जायेगा . ई-ग्राम स्वराज’ दरअसल ग्राम पंचायत विकास योजनाओं को तैयार करने और उनके कार्यान्‍वयन में मदद करता है. यह पोर्टल वास्तविक समय पर निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित करेगा.इतना ही नहीं, यह पोर्टल ग्राम पंचायत स्तर तक डिजिटलीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है.

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* सिंगल डिजिटल प्लेटफॉर्म होगा :- ई-ग्राम स्वराज ऐप पंचायतों का लेखाजोखा रखने वाला सिंगल डिजिटल प्लेटफॉर्म होगा. इसी से पंचायत में होने वाले विकास कार्यों, खर्च होने वाले फंड और आने वाली योजनाओं की जानकारी मिलेगी. इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि गांव के हर व्यक्ति को पता होगा कि क्या योजना चल रही है, कितना पैसा खर्च हो रहा है. यानी कामों में पारदर्शिता आएगी.

 हर गावं , जिला और राज्य को बनाना होगा आत्म निर्भर :-  सरकार गांवों को आत्मनिर्भर बनाने तथा ग्राम पंचायतों को और भी अधिक मजबूत बनाने के लिए अपनी योजनाओं के माध्यम से कड़ी मेहनत कर रही है , जल्द ही उसका परिणाम दिखने लगेगा .इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हर गांव को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त रूप से आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा. इसी तरह हर जिले को अपने स्तर पर आत्मनिर्भर बनना है, हर राज्य को अपने स्तर पर आत्मनिर्भर बनना है और पूरे देश को अपने स्तर पर आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा. ’

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* दो गज देह की दूरी :- प्रधानमंत्री ने कहा कि ग्रामीण भारत द्वारा दिया गया ‘दो गज देह की दूरी’ का मंत्र लोगों की बुद्धिमत्ता को अभिव्‍यक्‍त करता है. उन्होंने इस मंत्र की सराहना करते हुए कहा कि यह लोगों को सामाजिक दूरी बनाए रखने का अभ्यास करने के लिए प्रेरित करता है.  सीमित संसाधनों के बावजूद भारत ने निरंतर बड़ी सक्रि‍यता के साथ इस चुनौती का सामना किया है और नई ऊर्जा एवं अभिनव तरीकों के साथ आगे बढ़ने का संकल्प दिखाया है.

 

कोरोना वायरस के बाद: रिश्तों में आएंगी दूरियां, चीजें छूने में लगेगा डर!

संभव है कि वायरस के खत्म होने के बाद भी मनुष्यों का स्वभाव और उसकी सामाजिक परिस्थिति भी बदल जाए.  इसके साथ ही कुछ आदतों में भी बड़े स्तर बदलाव होगा.  ब्रिटेन के नोटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी में समाज विज्ञान के प्रो. रॉबर्ट डिंगवॉल का कहना है कि सामाजिक और सामुदायिक दूरी का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव देखने को मिलेगा.

वे कहते हैं कि जिस तरह का समय अभी है इसको देखते हुए कम से कम अगले पाँच साल तक लोग अभिवादन के लिए एकदूसरे को गले नहीं लगाएंगे.  यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के प्रो. पामेला पैरेस्की का कहना है कि लगता है कि अब हाथ मिलाना बीते जमाने की बात हो गई है.

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लोगों के बीच सावधानी बरतने की आदत हो गई है जिसे अब खत्म करना मुश्किल होगा.  युवाओं के भावनात्मक लगाव पर खतरा अमेरिका सामाजिक विज्ञान विशेषज्ञ जोए फेगिन का कहना है कि स्पर्श से अभिवादन का तरीका खत्म होने से युवाओं में भावनात्मक लगाव को अधिक खतरा है.

अमेरिका और ब्रिटेन में हुए अध्ययन में 90 फीसदी लोग मुस्कुरा कर अभिवादन करना पसंद करने लगे हैं जबकि 50 फीसदी से अधिक युवा दोस्त को हाथ मिलाने के बजाय हैलो बोलने में दिलचस्पी दिखाने लगे हैं.

1 मानव स्पर्श से मजबूती मिलती है—

वैज्ञानिकों का मानना है कि स्पर्श से एकदूसरे को ताकत मिलती है.  इसी से व्यक्तिगत और सामाजिक संबंध मजबूत होते हैं, लेकिन वायरस के चलते इसका चलन कम होगा और इसके दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे.

2 गैजेट्स का बढ़ेगा दखल—

आदतों में इतना ज्यादा बदलाव संभव है कि वे दूर रहना ही पसंद करेंगे.  ज़िंदगी में फोन और दूसरे गैजेट्स, जो पहले ही जगह बना चुके हैं, अब इनका दायरा और बढ़ेगा और हर कोई मुलाकातों से बचकर फोन, वीडियो कॉल और टिम के तौर पर ऑनलाइन गेम खेलकर उस दूरी को पटाने की कोशिश करेंगे.

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लॉकडाउन और वायरस के डर से दुनियाभर के लोग जितने दिन घरों मे कैद रहेंगे उनके भीतर साफ-सफाई की आदत में सुधार होगा.  हालात सामान्य होने के बाद भी लोग बार-बार हाथ धोएंगे, क्योंकि वो उनकी आदत बन जाएगी. लोगों से दूर होकर ही बात कारण पसंद करेंगे, क्योंकि दिमाग एक चीज को जब लंबे समय से करता है तो उससे अलग करने की कोशिश करने वाले व्यक्ति को वैसा करने से रोकता है.

3 रिश्तों में आएँगी दूरियाँचीजें छूने में लगेगा डर—

जॉर्जटाउन में भाषाओं के प्रो. और लेखक डेबोर टैनन का कहना है कि इस समय लोग चीजों को छूने, समूहों में रहने को खतरनाक मान रहे हैं.  उन्हें डर है कि इस तरह से संक्रमन फैल सकता है.  सरकारें भी सोशल डिस्टेन्सिंग को प्रोसाहित कर रही है.  डर के कारण सामने आई बातें हमारे मन में हमेशा के लिए घर कर जाएगी.  चीजों को छूने से परहेज करना, लोगों से हाथ मिलाने से कतराना, बारबार हाथ धोना, सोसायटी से कटकर रहना आने वाले समय में लोगों को डिसऑर्डर की तरह सामने आ सकता है.  लोग किसी की मौजूदगी के बजाय अकेले रहने में ज्यादा सुकून महसूस करने लगेंगे.  हम ये पूछने के बजाय कि क्या इसे ऑनलाइन करना जरूरी है ? पूछने लगेंगे कि क्या मिलना जरूरी है ?

ऑनलाइन कम्यूकेशन बहुत ज्यादा बढ़ा जाएगा.  इससे आपसी रिश्तों में दूरियाँ बढ़ेती चली जाएगी. हालांकि, हम एकदूसरे का हालचाल जानने के लिए अब के मुक़ाबले ज्यादा बातचीत करने लगेंगे.

4 पढ़ाई और ख़रीदारी के तरीकों में होगा बदलाव—

कोरोना वायरस के कारण दुनियाभर में स्कूल और यूनिवर्सिटीज़ कोशिश कर रही है कि पढ़ाई के तरीके को बदला जाए.  ऑनलाइन क्लास के जरिये छात्रों को पढ़ाया जा रहा है.  प्रो. सिंधल के मुताबिक, दुनिया भर में कई यूनिवर्सिटी ने ऑनलाइन पढ़ाई शुरू कर दी है.  तमाम स्कूल, कॉलेज भी ऐसी संभावनाओं पर काम कर रहे हैं.  भविष्य में छात्रों कॉ क्लासरूम के बजाय ऑनलाइन क्लासेस से पढ़ाये जाने का कल्चर विकसित हो सकता है.  इससे बच्चों में ऑनलाइन पढ़ाई आदत में तब्दील हो सकती है.  इसके अलावा लोगों में इंटरटेंमेंट के तरीके भी बदल सकते हैं.  लोग थियेटर में जाने के बजाय ऑनलाइन इंटरटेंमेंट कोतव्वजो देने लगेंगे.  मॉल जाने के बजाय ऑनलाइन शॉपिंग को तरजीह दी जाएगी.  उनके मुताबिक,मॉल्स अगर अपने ग्राहकों को सुरक्षित माहौल देंगे तो लोग आते रहेंगे.  मॉल्स को संक्रमणयुक्त होने की गारंटी डिस्प्ले करनी होगी.

5 खाने में हाइजीन को दी जाएगी ज्यादा तव्वजो—

संक्रमन ने लोगों को साफ-सफाई और हाइजीन की अहमियत अच्छे से समझा दी है.  भारत में हाइजीन के स्टैंडर्ड विकसित देशों जैसे नहीं है. लेकिन अब इनमें काफी बदलाव आता दिख रहा है. ये बदलाव स्थायी रूप ले लेगा, जो हमेशा के लिए अच्छा है.  लोगों के खान-पान में भी बदलाव आयेगा.  अब लोग क्वालिटी के साथ हाइजीन खाने को ज्यादा तव्वजो देंगे.  इसके अलावा ऑनलाइन फूड ऑर्डर में वृद्धि होगी.

6 सार्वजनिक वाहनों से यात्रा में बना रहेगा बीमारी का डर—

सिंघल का कहना है कि भारत की आबादी बहुत ज्यादा है.  ऐसे में लोगों को संक्रमण से उबरने के बाद फिर सार्वजनिक वाहनों %

अनोखा रिश्ता: भाग 2

पराग एक रोबोट की तरह अपना काम निबटा कर दफ्तर जाया करता था और दफ्तर से लौट कर घर आने पर एक अंधेरे कोने में बैठ जाया करता था. शायद शीतल की याद के साथ रहना चाहता था. नवजात शिशु के रोने पर यंत्रचालित मशीन की तरह चल कर आता, उसे चुप करा कर फिर अंधेरे में बैठ जाता. यही उस की दिनचर्या थी. दोनों वृद्ध माताएं बच्ची की परवरिश में लगी रहती थीं. 2 दिन वहां रुक कर हम वापस मुंबई लौट आए. मैं ने और सुरेश ने सब को आश्वासन दिया कि जब भी हमारी जरूरत पड़े, हमें खबर कर दें. पराग ने शिशु की देखभाल के लिए एक दाई रख ली. मौसीजी कब तक पराग के घर में पड़ी रहतीं. आखिर उन का अपना कहलाने वाला इस दुनिया में कोई और था भी तो नहीं.

मैं ने आग्रह कर के मौसीजी को अपने पास बुला लिया. मौसीजी दिन भर शीतल की ही बातें किया करती थी. मैं भी उन्हें बातें करने को प्रोत्साहित किया करती थी. इस तरह खुल कर बातें करने से उन का दुख कुछ तो कम हो रहा था. 2 महीने मेरे पास रहने के बाद मौसीजी ने वापस लौटने की इच्छा जाहिर की. वे कुछ हद तक सामान्य भी हो गई थीं. मैं भी अब उन पर रुकने के लिए दबाव नहीं डालना चाहती थी. मैं ने उन से कहा, ‘‘जब भी मन हो, बेझिझक मेरे पास आ जाइएगा.’’शीतल को गुजरे करीब 3 महीने हुए थे कि मां ने मुझे खबर दी कि मौसीजी ने बताया है कि पराग शादी कर रहा है. मौसीजी जैसे सांसारिक बंधनों से, मोहमाया से अपनेआप को मुक्त कर चुकी थीं. उन्हें अब कोई खबर विचलित नहीं कर सकती थी. पर खबर सुन कर मैं अवाक रह गई. पराग तो शीतल के गुजरने के बाद इस कदर टूट गया था कि मुझे डर लग रहा था कि कहीं उस का नर्वस बे्रकडाउन न हो जाए. मेरा दिल इस बात पर विश्वास करने से इनकार कर रहा था. मैं सोच भी नहीं सकती थी कि कोई इतनी जल्दी कैसे बदल सकता है. मैं सुरेश के दफ्तर से लौटने का इंतजार करने लगी. सुरेश ने घर के अंदर कदम रखा ही था कि उन्हें देखते ही मैं फट पड़ी, ‘‘सुरेश, जानते हो, पराग शादी कर रहा है. अभी मुश्किल से 3 महीने बीते होंगे शीतल को गुजरे और वह शादी के लिए तैयार हो गया. ये सारे मर्द एक जैसे होते हैं. एक नहीं तो दूसरी मिल जाएगी.’’

सुरेश भी खबर सुन कर अचरज में पड़ गए. फिर तुरंत ही संभल कर उन्होंने कहा, ‘‘उमा, ऐसा नहीं कहते. शीतल अगर नहीं रही तो इस में पराग का क्या दोष? वह कितने दिन उस के शोक में बैठा रहेगा? बच्ची को संभालने वाला भी तो कोई चाहिए न? उस की बूढ़ी मां कब तक उसे संभालेगी?’’

सुरेश की बातों ने मुझे सांत्वना देने के बजाय आग में घी का काम किया. मैं चीखने लगी, ‘‘हांहां, आप भी तो मर्द हो, पराग का पक्ष तो लोगे ही. कल अगर मुझे कुछ हो जाए तो आप भी दूसरी शादी करने से बाज नहीं आओगे. बच्ची का बहाना मत बनाओ. बच्ची की आड़ में अपनी इच्छा पूरी की जा रही है. यही काम यदि कोई औरत करे तो समाज उस पर शब्दों के बाण चलाने से नहीं चूकेगा,’’ मैं आक्रोश में आ कर पराग और सुरेश ही नहीं, बल्कि पूरी पुरुष जाति को कोसने लगी. सुरेश ने मेरे भड़कने पर भी अपना आपा नहीं खोया. शांत स्वर में मुझे समझाने लगे, ‘‘उमा, तुम अभी गुस्से में हो. गुस्से में जब लोग अपना संयम खो बैठते हैं तो सहीगलत का निर्णय नहीं ले पाते. इस तरह दूसरों पर इलजाम लगाना तुम्हें शोभा नहीं देता.’’

2 दिन बाद पराग का ईमेल आया, ‘‘दीदी, मैं शादी कर रहा हूं. बहुत ही सादे ढंग से मंदिर में हो रही है शादी. बाकी मिलने पर बताऊंगा.’’ मैं ने इस संक्षिप्त से मेल पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की.

एक दिन दोपहर का वक्त था. बच्चे स्कूल गए थे. काम निबटा कर मैं थोड़ा आराम कर रही थी. शीतल के बारे में ही सोच रही थी कि मुझे उस टेप की याद आई जिस में बच्चों की आवाज के साथसाथ शीतल की आवाज भी टेप थी. टेप चला का सुनने लगी कि दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो देखा सामने पराग खड़ा था. अभी तक पराग से मेरी नाराजगी दूर नहीं हुई थी फिर भी औपचारिकतावश मैं ने पराग को अंदर बुलाया. टेप में शीतल की आवाज सुन कर चौंक गया पराग. वह कुछ कहना चाहता था, पर इतना भावुक हो गया कि उस की आवाज भर्रा गई. अचानक अपनी भावना पर काबू न पा सकने के कारण फूटफूट कर रोने लगा. मैं ने उसे पीने को पानी दिया. वह कुछ देर यों ही बैठा रहा. फिर उस ने मुझ से फिर शुरू से टेप चलाने को कहा.

थोड़ा संयत होने पर मैं ने उसे खाना खाने को कहा. उस ने जवाब में कहा, ‘‘दीदी, मुझे भूख नहीं है. आप बस थोड़ी देर मेरे पास बैठिए. मैं औफिस के काम से मुंबई आया हूं. आप से अकेले में बातें करना चाहता था, इसलिए आप के पास चला आया.’’

मैं ने उसे शादी की मुबारकबाद दी तो कुछ देर चुप रहने के बाद उस ने कहा, ‘‘दीदी, आप सोच रही होंगी कि मैं ने इतनी जल्दी शादी कैसे कर ली? क्या करता दीदी, मैं मजबूर हो गया था. मां दमे की मरीज हैं कब तक श्रेया की देखभाल करतीं. मां की सहायता के लिए मैं ने 2 दाइयां रखीं. पहली आई बच्ची के मुंह में दूध का बोतल दे कर ऊंघती रहती थी. दूध किनारे से बह जाता था. दूसरी रखी तो घर से चीजें गायब होने लगीं. मामाजी आए थे, उन के समझाने पर मैं ने शादी के लिए हां कह दिया. मामाजी ने अखबारों में इश्तहार दे दिया. कई परिवारों की ओर से जवाब आया. मैं ने किसी भी लड़की की तसवीर की ओर नजर तक नहीं डाली. बस आए हुए पत्रों को पढ़ता रहा. तभी एक पत्र ने मेरा ध्यान आकर्षित किया. यह पत्र गरिमा के पिता ने लिखा था. शादी के 1 साल बाद ही गरिमा के पति की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. पत्र पढ़ने के बाद मैं ने उन से संपर्क किया. मैं जब गरिमा से मिला तो मैं ने देखा कि गरिमा का बाह्यरूप अत्यंत साधारण था. पति की मृत्यु के बाद वह छोटीमोटी नौकरी करती हुई उद्देश्यहीन जीवन जी रही थी. गरिमा ने मुझे एक और बात बताई कि जब वह काफी छोटी थी, उस की मां नहीं रही थीं और विमाता ने ही उसे पाला था.

‘‘उस वक्त मुझे यही लगा कि जिस लड़की ने इस छोटी सी जिंदगी में इतने सारे उतारचढ़ाव देखे हों, वह मेरी श्रेया की देखभाल अवश्य अच्छी तरह करेगी. दूसरी बात जो उस वक्त मेरे जेहन में आई, वह यह थी कि गरिमा से शादी कर के मैं न सिर्फ श्रेया के लिए एक अच्छी मां ले कर आऊंगा, बल्कि एक अबला को भी नवजीवन दूंगा.’’ पराग के मुंह से उस के विचार जानने के बाद और यह जानने के बाद कि उस ने बाह्य रूप को ताक पर रख कर एक योग्य लड़की का चुनाव किया था, मुझे लज्जा आने लगी अपनेआप पर कि मैं ने पराग को कितना गलत समझा था. अकसर हम बिना पूरी जानकारी के लोगों के बारे में कितनी गलत राय बना लेते हैं.

श्रेया साल भर की हो गई थी. पराग ने उस के जन्मदिन की तसवीर भेजी थी. गुलाबी रंग की फ्रौक में परी लग रही थी श्रेया. श्रेया का जन्मदिन और शीतल की बरसी की तारीख एक ही थी. सुबह श्रेया को जन्म दे कर, उसी रात को नहीं रही थी शीतल. पराग ने लिखा था कि शीतल की खुशियों के लिए उस ने पूरे धूमधाम से श्रेया का जन्मदिन मनाया था, क्योंकि वह श्रेया की खुशियों के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहता था.

अनोखा रिश्ता: भाग 1

दिनचर्या के विपरीत आज कालेज से घर लौटने में मुझे काफी देर हो गई थी. भूख, शारीरिक थकान और मानसिक परेशानी से ग्रस्त मैं जब घर पहुंची, तो मैं ने बैग एक ओर फेंका और बिस्तर पर औंधी गिर पड़ी. खाने को घर में कुछ था नहीं और न कुछ बनाने की इच्छा थी. 2 दिन के लिए घर से जाते हुए मां ने मुझे सख्त हिदायत दी थी कि मैं बाहर का कुछ भी न खाऊं. सोना चाहती थी, पर भूखे पेट होने की वजह से नींद ने भी पास फटकने से इनकार कर दिया था. अचानक दरवाजे पर घंटी की आवाज सुन कर बेमन से भृकुटियों को ताने, शिथिल कदमों से चल कर जब मैं ने दरवाजा खोला, तो सामने शीतल खड़ी थी.

‘‘दीदी, आप के लिए खाना लाई हूं.’’

शीतल के मुंह से यह सुन कर ऐसा लगा जैसे मेरे निर्जीव शरीर में किसी ने प्राण फूंक दिए हों. मैं ने हंस कर उस का स्वागत किया. वैसे भी शीतल का आना हमेशा मुझे ग्रीष्म ऋतु में शीतल बयार के आने जैसा सुकून देता था.

शीतल मेरी मौसी की बेटी थी. उस की और मेरी मांएं चचेरी बहनें थीं. एक ही शहर तो क्या, एक ही महल्ले में रहने के कारण हमारे संबंध घनिष्ठ थे. हम दोनों बहनों का रिश्ता सहेलियों जैसा था. हालांकि शीतल मुझ से 6 साल छोटी थी लेकिन हम दोनों की आपस में बहुत बनती थी. किसी भी विषय में, किसी जानकारी की आवश्यकता हो तो शीतल मुझ से बेझिझक पूछती थी. मैं शीतल के हर प्रश्न का उत्तर देती और उसे ऊंचनीच भी समझाती थी. शीतल बुद्धि और सुंदरता का अच्छाखासा संगम थी. मेरी शादी के वक्त शीतल ने कालेज में प्रवेश ले लिया था. शादी के बाद मुझे दिल्ली छोड़ कर मुंबई जाना था, जहां मेरी ससुराल थी. यह जान कर शीतल बेहद उदास हो गई थी. मैं ने उसे समझाया कि जब कभी मेरी याद आए तो फोन कर लेना मुझे और छुट्टियों में मुंबई आ जाना.

आखिर वह दिन भी आ गया जब अपनों को छोड़ कर नए रिश्तों के बंधन में बंध कर मैं मुंबई आ गई. मेरी शादी के बाद भी शीतल और मेरा स्नेह पूर्ववत बना रहा. सुरेश, मेरे पति भी उस से बेटी जैसा स्नेह करते थे.

समय पंख लगा कर उड़ने लगा और देखते ही देखते मैं राहुल और रिया 2 बच्चों की मां बन गई. रिया की जचगी के लिए जब मैं दिल्ली मां के पास गई थी तो शीतल ने एम.बी.ए. का इम्तहान दे दिया था और नतीजे का इंतजार कर रही थी. नतीजा आने से पहले ही उसे मुंबई में नौकरी मिल गई. पर मौसीजी और मौसाजी शीतल को अपने से दूर नहीं करना चाहते थे. किसी तरह मैं ने और सुरेश ने उन्हें मना ही लिया. शीतल की खुशी का ठिकाना न रहा.

शीतल को मुंबई आए 4 महीने हो गए थे. साथ रहने से हमारी अंतरंगता और बढ़ गई थी. औफिस से घर लौटते ही वह बच्चों के साथ बच्ची बन कर खेलने लगती थी. बच्चे उस पर जान छिड़कते थे. एक दिन उस ने बच्चों की तोतली आवाज में कही कहानियों को टेप किया, तो मैं ने उस से गाना गाने को कहा क्योंकि गाती वह अच्छा थी. मैं ने उस के 4 गाने टेप किए.

उन दिनों मौसीजी शीतल के लिए जीजान से लड़का ढूंढ़ने में लगी हुई थीं. इत्तफाक से उन्हें एक अच्छा रिश्ता मिल गया. वर पक्ष के लोग मुंबई में ही रहते थे, पर उन का बेटा पराग कोलकाता में कार्यरत था. मौसीजी, मौसाजी के साथ मुंबई आईं. लड़का और उस के परिवार वालों से मिलने के बाद दोनों बेहद खुश थे. उन की अनुभवी आंखों ने परख लिया था कि लड़के के बाह्यरूप को यदि ताक पर रख कर देखा जाए तो लड़का हर लिहाज से शीतल के लायक था.

शीतल को देखते ही पराग और उस के घर वालों ने उसे पसंद कर लिया था, पर शीतल के मन में दुविधा थी. उस ने अपने जेहन में एक राजकुमार की तसवीर को बसा रखा था, जैसा कि इस उम्र की लड़कियों के साथ अकसर होता है. लेकिन वास्तविकता तो सपनों की दुनिया से कोसों दूर होती है. मौसीजी ने शीतल को समझाया, ‘‘बेटी, लड़के के रंगरूप पर मत जाओ. लड़का गुणों की खान है. इतनी सारी डिग्रियों से विभूषित, इस छोटी सी उम्र में इतने ऊंचे पद पर कार्यरत है. व्यवहार भी उस का अति शालीन है. मेरा मन कहता है, तुम वहां खुश रहोगी.’’
मौसीजी के समझाने पर शीतल पराग से मिलने के लिए तैयार हो गई. पराग से मिलने के बाद शीतल ने भी शादी के लिए अपनी रजामंदी दे दी. इस तरह शीतल की शादी हो गई और वह पराग के साथ कोलकाता चली गई.

शादी के बाद शीतल जब पराग के साथ पहली बार अपने ससुराल मुंबई आई, तो पहले ही दिन दोनों हम से मिलने चले आए. शीतल बेहद खुश नजर आ रही थी. उस का खिलाखिला रूप व बातबात पर चहकना, उस के सफल दांपत्य जीवन की दास्तान को बयां कर रहा था. फिर भी औपचारिकतावश मैं ने जब शीतल से उस का कुशलक्षेम पूछा, तो उस ने चहकते हुए कहा, ‘‘दीदी, आप, मांपापा सब सही थे. पराग सचमुच गुणों की खान हैं. वे मुझे पलकों पर बैठा कर रखते हैं. ससुराल में भी मुझ से सब बहुत स्नेह करते हैं.’’ सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा.

इस के बाद शीतल की जिंदगी में कुछ बुरा घटा, तो कुछ अच्छा. बुरी घटना यह थी कि हृदयगति रुक जाने के कारण मौसाजी गुजर गए. खुशखबरी यह थी कि शीतल मां बनने वाली थी. रीतिरिवाज यह कह रहे थे कि पहली जचगी के लिए शीतल को मायके जाना चाहिए. पर पराग को शीतल से इतने दिनों का अलगाव मंजूर नहीं था, इसलिए उस ने मौसीजी को ही कोलकाता बुला लिया.

पराग और शीतल दोनों को बेटी की चाह थी. उस की डिलिवरी का दिन करीब आ गया था. हम यहां बेसब्री से खुशखबरी का इंतजार कर रहे थे. खबर आई कि उन की इच्छानुसार उन्हें बेटी पैदा हुई थी. पर बच्चे को जन्म देने के तुरंत बाद शीतल की हालत बिगड़ने लगी थी. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद शीतल को बचाया नहीं जा सका. यह खबर सुन कर मेरे हाथपैर कांपने लगे. मेरी हालत इतनी खराब हो गई थी कि सुरेश मुझे समझासमझा कर थक गए.

‘‘उमा, ऐसी नाजुक घड़ी में तुम्हें संयम बरतना ही होगा. तुम इस कदर टूट जाओगी तो मौसीजी, पराग इन सब को कौन संभालेगा? मैं कोलकाता के टिकट ले कर आता हूं. तुम जाने की तैयारी करो. इस वक्त हमारा वहां रहना बेहद जरूरी है,’’ कह कर सुरेश चले गए.

शाम की फ्लाइट से हम कोलकाता पहुंचे. हम ने अपने आने की सूचना पराग को दे दी थी. एअरपोर्ट से बाहर आने पर हम ने देखा कि पराग बेहद उदास मुद्रा में चल कर हमारी ओर आ रहा था. घर पहुंचने पर हम ने देखा कि मौसीजी एक कोने में दुबकी बैठी थीं. मैं ने उन्हें जा कर गले से लगा लिया. पर इकलौती बेटी की मौत ने उन्हें पत्थर बना दिया था. न रो रही थीं, न ही बातें कर रही थीं. पराग की मां की हालत भी ठीक नहीं थी. उन्हें दमे का दौरा पड़ गया था. पालने में शीतल की बेटी सोई थी, दुनिया से बेखबर.

Lockdown: पूर्व मिस वर्ल्ड मानुषी छिल्लर ने की अपील, गरीब महिलाओं को मिले सैनेटरी पैड्स

कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए सरकार ने लॉकडाउन की तारीख को 15 अप्रैल से बढ़ाकर 3 मई तक का कर दिया है. ऐसे में हर तबके लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. वैसे गरीब लोग जो  सुबह कमाते थे और शाम को खाते थे. ऐसे वर्ग के लोगों को सबसे ज्यादा समस्या का सामना करना पड़ रहा है.

ऐसे में गरीबों की दिक्कतों को देखते हुए.मिस वर्ल्ड मानुषि छिल्लर ने सरकार से अपील की है कि गरीब लोगों को खाना के साथ-साथ उनके परिवार की महिलाओं को सैनेटरी पैड्स भी दिया जाए. जिससे उन्हें किसी भी तरह के खतरनाक बीमारी का सामना न करना पड़ा.

मानुषी छिल्लर ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया की हम कठिन दौर से गुजर रहे हैं. इस समय हमें एक-दूसरे का साथ देना चाहिए. हमें लोगों के मदद के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाना चाहिए.

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आगे मानुषी ने अपने बातों का बढ़ाते हुए कहा कि मैं इस बात बहुत खुश हूं कि हाल ही में जो सरकार की तरफ से गरीबों के सामान का लिस्ट आया है उसमें खाने के साथ सैनेटरी पैड्स का नाम भी शामिल है. इससे गरीब लोगों की महिलाओं को बहुत मदद मिल सकेगा.

 

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My cutii.. ?❤❤?

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इसके लिए मैं सरकार की शुक्रगुजार हूं. पूर्व मिस वर्ल्ड ने कहा कई गरीब परिवार में इस चीज को बहुत ज्यादा गलत माना जाता है. जिस वजह से महिलाओं को कई तरह के स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का सामना करना पड़ता है.

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बता दें मिस वर्ल्ड मानुषी छिल्लर शक्ति नाम के एनजीओ से जुड़ी हुई है. यह संस्था महिलाओं के लिए सैनेट्री पैड्स बनाती है. जिससे वह गरीब लोगों की मदद कर रही हैं.

इतना ही नहीं मानुषी छिल्लर जल्द ही अक्षय कुमार के साथ फिल्म पृथ्वीराज में नजर आने वाली हैं. इस फिल्म में वह महारानी संयोगिता के किरदार में नजर आएंगी.

#lockdown: किसानों का दर्द सुनेगा कौन

बिहार के हाजीपुर के रहने वाले बंशीधर बात करतेकरते रो पड़ते हैं. बंशीधर ने 2 हेक्टेयर खेत लीज पर ले कर चीनिया केले की खेती की थ. इस के लिए उन्होंने पहले ही खेत मालिक को 51,000 रुपए पेशगी दिए थे, बाकी का पैसा करार के मुताबिक केले की पहली फसल के बाद देना था. मगर देश में लागू लौकडाउन के बीच केला खरीदार गायब हैं. लिहाजा लागत भी बमुश्किल ही निकली.

मशहूर है चीनिया केला

मालूम हो कि बिहार के हाजीपुर जनपद में चीनिया केले की खेती खूब की जाती है. यहां देश की विभिन्न जगहों से व्यापारी केला खरीदने आते हैं. इतना ही नहीं, हाजीपुर की पहचान अंतर्राष्ट्रीय फलक पर भी इसी केले के कारण है और यहां से मलयेशिया, नेपाल, भूटान आदि देशों में भी केले का निर्यात किया जाता है. मगर देश में लागू लौकडाउन ने इस बार चीनिया केले की खेती करने वाले किसानों की कमर तोड़ दी है.

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छोटा आकार मगर स्वाद में मजेदार

छोटे आकार और अपने अनूठे स्वाद के कारण पूरी दुनिया में एक विशिष्ट पहचान बनाने वाला हाजीपुर का चिनिया केला उचित संरक्षण के अभाव में भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. कभी हजारों एकड़ में हाजीपुर में इस की खेती होती थी जो अब सिमट कर रह गई है. हाजीपुर के साथसाथ समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर आदि जिलों में भी इस की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है.

यों पिछले कुछ सालों से इस की खेती कम की जाने लगी थी. वजह, राज्य सरकार का इस खेती की ओर ध्यान नहीं देना भी है. दूसरा बाजारवाद और तीसरा उचित संरक्षण के अभाव में भी खेती सिमटने लगी.

वीरान होने लगे हैं खेत

एक जमाना था जब पटना के महात्मा गांधी सेतु पुल से होते हुए हाजीपुर आते वक्त दूरदूर तक हजारों एकड़ में चीनिया केले की खेती नजर आती थी, लेकिन अब पूरा इलाका ही वीरान नजर आता है.

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हाजीपुर का नाम सुनते ही सहसा एक नाम उभर कर जबान पर आता है और वह है केला. इस क्षेत्र का मालभोग हो या अलपान या फिर चीनिया, इन सभी केलों का अपना स्वाद और अपनी विशेषता है. इस क्षेत्र के किसानों की आर्थिक स्थिति केले के बागानों की स्थिति पर ही निर्भर करती है. केले की खेती किसानों की आर्थिक व सामाजिक दशा सुधारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. पर एक तो प्राकृतिक आपदाओं ने केले के फसल उत्पादकों की कमर तोड़ दी, दूसरा सरकार द्वारा केला फसल को फसल बीमा में शामिल नहीं किए जाने के कारण क्षेत्र के किसानों को प्रतिवर्ष भारी आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है.

परिणाम यह हुआ कि कभी हजारों हेक्टेयर भूमि पर की जाने वाली केले की खेती सिमट कर लगभग 3,500 हेक्टेयर रह गई है।

नई मुसीबत से मुश्किल में किसान

अब नई मुसीबत कोरोना वायरस के कहर के बीच लागू लौकडाउन है. बाजारों में चहलपहल नहीं के बराबर है और खरीदार भी आ नहीं रहे. इस केले की खेती की वजह से इलाके में ट्रांसपोर्टरों की भी पौबारह हुआ करती थी जो इस बार बंद है. इन के सामने भी भुखमरी की समस्या आ खड़ी हुई है. उधर किसानों की आंखों में भी आंसू हैं मगर उन आंसुओं को पोंछने वाला कोई मिलेगा, इस की संभावना दूरदूर तक नजर नहीं आती.

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