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मेरे पड़ोस के घर में एक आदमी आता है जिसके स्टाइल को देखकर मेरा बेटा भी टैटू बनवाने को कह रहा है, मैं परेशान हूं कैसे समझाऊं उसे?

सवाल

मेरे सामने वाले घर में एक कपल रहता है जिन से हम खासा परेशान हैं. उन के घर में मेहमान भी आतेजाते हैं. जो लोग उन के घर आते हैं वे बड़े अटपटे किस्म के हैं. किसी के बाल हिप्पी जैसे दिखते हैं तो कोई नाभि पर रिंग पहने रहता है. इस तरह के लोगों को देख हमारी सोसाइटी का माहौल खराब होता है और हमारे बच्चों पर भी गलत असर पड़ता है. अभी कुछ दिनों पहले ही मेरे 14 साल के बेटे ने टैटू बनवाने के लिए कहा. मैं जानती हूं कि उस के दिमाग में यह बात कहां से आई. मुझे इस मुश्किल से निकलने का कोई उपाय बताइए.

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सभी लोग आप की तरह तो पहन-ओढ़ नहीं सकते और न ही दिख सकते हैं. सब की अपनीअपनी जिंदगी है, अपनाअपना जीवन जीने का तरीका है. आप किसी की आजादी पर तो अंकुश नहीं लगा सकतीं और न ही आप को लगाना चाहिए.

आप का यह कहना कि आप के बच्चों पर असर पड़ेगा, तो यह जान लें कि वे भी इस सोसाइटी से बाहर निकलेंगे तो अपने मन की करना चाहेंगे. क्या तब भी आप उन की इच्छाओं को मारेंगी? यह व्यक्ति की अपनी निजी पसंद होनी चाहिए कि वह कैसा दिखना चाहता है और कैसे रहना चाहता है. आप को उन से छुटकारा पाने की जरूरत नहीं है, आप अपनी जिंदगी जिएं और उन्हें उन की जीने दें. सब आप की तरह भेड़चाल से चलें, यह धार्मिक सोच है. विभिन्नता ही जीवन का सही हल है.

 

मदर्स डे स्पेशल: दूसरी बार-भाग 1

आसमान से गिर कर खजूर में अटकना इसी को कहते हैं. गांव के एकाकी जीवन से ऊब कर अम्मां शहर आई थीं, किंतु यहां भी बोझिल एकांत उन्हें नागपाश की तरह जकड़े हुए था. लगता था, जहां भी जाएंगी वहां चुप्पी, वीरानी और मनहूसियत उन के साथ साए की तरह चिपकी रहेगी. गांव में कष्ट ही क्या था उन्हें? सुबह चाय के साथ चार रोटियां सेंक लेती थीं, उन के सहारे दिन मजे में कट जाता था. कोई कामधाम नहीं, कोई सिरदर्द नहीं. उलझन थी तो यही कि पहाड़ सा लंबा दिन काटे नहीं कटता था.

भूलेभटके कोई पड़ोसिन आ जाती तो कमर पर हाथ रख कर ठिठोली करती, ‘‘अम्मांजी को अपनी गृहस्थी से बड़ा मोह है. रातदिन चारपाई पर पड़ेपड़े गड़े धन की चौकसी किया करती हैं.’’

‘‘कैसा गड़ा धन, बहू?’’ वह उदासीन भाव से जवाब देतीं, ‘‘लेटना तो वक्त काटने का एक जरिया है. बैठेबैठे थक जाती हूं तो लेटी रहती हूं. लेटेलेटे थक जाती हूं तो उठ बैठती हूं.’’

पड़ोसिन सहानुभूति जताते हुए वहीं देहरी पर बैठ जाती, ‘‘जिंदगी का यही रोना है. जवानी में आदमी के पास काम ज्यादा, वक्त कम होता है. बुढ़ापे में काम कुछ नहीं, वक्त ही वक्त रह जाता है. बालबच्चे अपनी दुनिया में रम जाते हैं. बूढ़े मांबाप बैठ कर मौत का इंतजार करते हैं. उन में से अगर एक चल बसे तो दूसरे की जिंदगी दूभर हो जाती है. जब से बाबूजी गुजरे हैं, तुम्हारे चेहरे पर हंसी नहीं दिखाई दी. न हो तो कुछ दिन के लिए राकेश भैया के यहां घूम आओ. मन बदल जाएगा.’’

‘‘यही मैं भी सोचती हूं,’’ वह गंभीर भाव से सिर हिलातीं, ‘‘राकेश की चिट्ठी आई है कि वह अगले महीने आएगा. तभी उस से कहूंगी कि मुझे अपने साथ ले चले.’’

पर अम्मां को कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ी. राकेश खुद ही उन्हें साथ ले चलने के लिए आतुर हो उठा. वजह यह थी कि बेटे के सत्कार में मां ने बड़े चाव से भोजन बनाया था…दाल, चावल, रोटी, तरकारी और चटनी.

किंतु जब थाली सामने आई तो राकेश समझ नहीं सका कि इन में से कौन सी वस्तु खाने लायक है? दाल, चावल में कंकड़ भरे हुए थे. कांपते हाथों की वजह से कोई रोटी अफगानिस्तान का नक्शा बन गई थी तो कोई रोटी कम, डबलरोटी ज्यादा लग रही थी. तरकारी के नाम पर नमकीन पानी में तैरते आलू के टुकड़े थे. कुचले हुए आम में कहने भर के लिए पुदीना था.

अम्मां ने खुद ही अपराधी भाव से सफाई दी, ‘‘यह खाना कैसे खा सकोगे, बेटा? बुढ़ापे में न हाथपांव चलते हैं, न आंखों से सूझता है. अपने लिए जैसेतैसे चार टिक्कड़ सेंक लेती हूं. तुम्हारे लायक खाना नहीं बना सकी. आज तुम भूखे ही रह जाओगे.’’

‘‘खाना बहुत अच्छा बना है, अम्मां. सालों बाद तुम्हारे हाथ की बनी रोटी खाई तो पेट से ऊपर खा गया हूं,’’ राकेश ने आधा पेट खा कर उठते हुए कहा. उस ने मन ही मन फैसला भी कर लिया कि अम्मां को इस हालत में एक दिन भी अकेला नहीं छोड़ेगा.

भावनाओं के जोश में उस ने दूसरा फैसला यह किया कि गांव का मकान बेच देगा. वह जानता था कि अगर मकान रहा तो अम्मां कुछ ही दिनों में गांव लौटने की जिद करेंगी. कांटा जड़ से उखड़ जाए तभी अच्छा है. सदा की संकोची अम्मां बेटे के सामने अपनी अनिच्छा जाहिर न कर सकीं. नतीजा यह हुआ कि 2 दिन में मकान बिक गया. तीसरे दिन गांव के जीवन को अलविदा कह कर अम्मां बेटे के साथ शहर चली आईं.

शहर आते ही पहला एहसास उन्हें यही हुआ कि गांव का मकान बेचने में जल्दबाजी हो गई है. बहू ने उन्हें देख कर जिस अंदाज में पांव छुए और जिस तरह मुंह लटका लिया, वह उन्हें बहुत खला. आखिर वह बच्ची तो थी नहीं. अनमने ढंग से किए जाने वाले स्वागत को पहचानने की बुद्धि रखती थीं. बच्चों ने भी एक बार सामने आ कर नमस्ते की औपचारिकतावश और फिर न जाने घर के किस कोने में समा गए.

बहू ने नौकर को हुक्म दिया, ‘‘अम्मांजी के लिए पीछे वाला कमरा ठीक कर दो. गुसलखाना जुड़ा होने के कारण वहां इन को आराम रहेगा. एक पलंग बिछा दो और इन का सामान वहीं पहुंचा दो. उस के बाद चाय दे आना. मैं लता मेम साहब के यहां किटी पार्टी में जा रही हूं.’’

बहू सैंडल खटखटाती हुई चली गई और वह भौचक्की सी सोफे पर बैठी रह गईं. कुछ देर बाद नौकर ने उन्हें उन के कमरे में पहुंचा दिया. एक ट्रे में चायनाश्ता भी ला दिया. अकेले बैठ कर चाय का घूंट भरते हुए उन्होंने सोचा, ‘क्या सिर्फ इसी चाय की खातिर भागी हुई यहां आई हूं?’

पर यह चाय भी अगली सुबह कहां मिल सकी थी? रात का खाना वह नहीं खातीं, यह बात बहू जानती थी. इसलिए उस ने शाम को खाने के लिए नहीं पुछवाया. कुछ और लेंगी, यह भी पूछने की जरूरत नहीं समझी.

वह इंतजार करती रहीं कि बहूबच्चों में से कोई न कोई उन के पास अवश्य आएगा, हालचाल पूछेगा पर निराशा ही हाथ लगी.

जब बहूबच्चों की आवाजें आनी बंद हो गईं और घर में सन्नाटा छा गया तो एक ठंडी सांस ले कर वह भी लेट गई. टूटे मन को उन्होंने खुद ही दिलासा दिया, ‘मुझे सफर से थका जान कर ही कोई नहीं आया. फुजूल ही मैं बात को इतना तूल दे रही हूं.’

Crime Story: एक मजनूं की प्रेम गली

25वर्षीय अंकिता पिसुदे महाराष्ट्र के वर्धा जिले के गांव दरोदा की रहने वाली थी. वह हिंगनघाट तालुका नांदोरी चौक स्थित मातोश्री आशाताई कुमारन डिग्री कालेज में बतौर प्रोफेसर कार्यरत थी. यह कालेज उस के गांव से लगभग 75 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह रोजाना कालेज बस से आतीजाती थी. उस के पढ़ाने का तरीका इतना सरल था कि सभी छात्रछात्राएं उस से खुश रहते थे.

3 फरवरी, 2020 सोमवार का दिन था. उस दिन अंकिता हिंगनघाट के बस स्टाप पर उतर कर नांदोरी चौक स्थित अपने कालेज जा रही थी. अभी वह कालेज से 100 कदम की दूरी पर ही थी कि तभी अचानक विकेश नागराले ने मोटरसाइकिल से उस का रास्ता रोक लिया.

विकेश अंकिता के मोहल्ले में ही रहता था. अचानक उसे सामने देख अंकिता बुरी तरह डर गई. जिस तरह से उस ने रास्ता रोका था, वह शुभ संकेत नहीं था.‘‘यह क्या बदतमीजी है विकेश?’’ अंकिता उस पर भड़कते हुए बोली, ‘‘तुम ने मेरा रास्ता क्यों रोका और तुम यहां क्या कर रहे हो?’’
‘‘मैं यहां क्या कर रहा हूं, तुम जान जाओगी और रास्ता क्यों रोका, यह तुम से अच्छा और कौन जान सकता है.’’ विकेश ने सख्त शब्दों में कहा.

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‘‘देखो विकेश, बहुत तमाशा हो चुका है. मेरा पीछा बंद करो और मेरा रास्ता छोड़ दो.’’ अंकिता ने गुस्से में कहा. ‘‘तमाशा मैं नहीं, तुम कर रही हो अंकिता. आखिर तुम मेरे प्यार को मान क्यों नहीं लेतीं. देखो, हम दोनों एकदूसरे के लिए बने हैं. दोनों मिल कर एक ऐसी दुनिया बसाएंगे, जहां हम दोनों के सिवा और कोई नहीं होगा.’’ विकेश बोला.

‘‘विकेश, यह तुम्हारी गलतफहमी है. मुझे न तुम से पहले प्यार था और न आज है. यह बात मैं तुम से न जाने कितनी बार कह चुकी हूं, लेकिन तुम्हारी समझ में बात आती ही नहीं. हम सिर्फ एक दोस्त थे, लेकिन तुम्हारी हरकतों ने दोस्ती को भी इस लायक नहीं छोड़ा कि मैं तुम्हें दोस्त मान सकूं.’’ अंकिता ने कहा.
‘‘मुझ से भूल हुई थी अंकिता, मुझे माफ कर दो.’’ विकेश ने अंकिता के सामने हाथ जोड़े फिर कान पकड़ते हुए माफी मांगी.

‘‘देखो विकेश, तुम अच्छे और समझदार युवक हो, जो तुम चाहते हो वह कभी नहीं होगा. तुम्हारी शादी हो गई है. घर में सुंदर पत्नी और बच्ची है. मेरे पीछे अपना समय खराब मत करो. अपने परिवार पर ध्यान दो और मुझे भूल जाओ.’’ अंकिता ने समझाते हुए कहा.  ‘‘तो क्या यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ विकेश ने निराशाभरे शब्दों में पूछा. ‘‘हां,’’ अंकिता ने सख्त शब्दों में जवाब दिया.

‘‘अंकिता यही तो मुश्किल है, न तो मैं तुम्हें भूल सकता हूं और न तुम्हारे बिना रह सकता हूं. इस के लिए तो सिर्फ अब एक ही रास्ता बचा है,’’ कहते हुए विकेश नागराले का चेहरा लाल हो गया.
‘‘एक ही रास्ता…क्या मतलब है तुम्हारा, क्या कहना चाहते हो तुम?’’ अंकिता ने प्रश्न किया, ‘‘देखो विकेश, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे कि बाद में पछताना पड़े. अब मेरा रास्ता छोड़ो. मुझे कालेज के लिए देर हो रही है.’’

जब विकेश को लगा कि अंकिता मानने वाली नहीं है और न ही वह उस की बातों को तवज्जो दे रही है तो वह गुस्से से भर उठा. उस ने अपनी मोटरसाइकिल की डिक्की से पैट्रोल भरी बोतल निकाली और अंकिता के ऊपर उड़ेल कर आग लगाते हुए बोला, ‘‘तुम अगर मेरी नहीं हो सकी तो मैं तुम्हें किसी और की भी नहीं होने दूंगा.’’  इस के बाद वह फरार हो गया.
आग के गोले में लिपटी अंकिता को जब उधर से गुजर रही कुछ छात्राओं ने देखा तो वे अंकिता की मदद के लिए चीखनेचिल्लाने लगीं. छात्राओं की चीखपुकार सुन कर कई लोग दौड़े आए. उन के हाथों में जो कुछ था, उसे ले कर उन्होंने अंकिता की मदद करने की कोशिश की.जलती अंकिता पर पानी डाल कर आग बुझाई गई. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. उस का सिर, चेहरा, हाथ, पीठ, गरदन झुलस गई थी, उस की दोनों आंखें भी चली गई थीं. उसे इलाज के लिए तुरंत हिंगनघाट के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया गया. इस मामले की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम के साथसाथ हिंगनघाट पुलिस थाने को भी दे दी गई थी.

थाना हिंगनघाट के थानाप्रभारी सत्यवीर बांदीवार ने यह खबर सुनी तो बिना देर किए उन्होंने इस बारे में वरिष्ठ अधिकारियों को बताया और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की ओर निकल गए. कुछ पुलिसकर्मियों को घटनास्थल पर छोड़ कर थानाप्रभारी हिंगनघाट प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे.
फिल्मी अंदाज में घटी इस इस मार्मिक घटना को पूरे जिले में फैलते देर नहीं लगी. जिस ने भी सुना और देखा, उस का कलेजा मुंह तक आ गया. घटना की जानकारी मिलते ही अंकिता के कालेज प्रशासन ने छुट्टी घोषित कर दी.

कालेज का सारा स्टाफ और छात्रछात्राएं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के परिसर में एकत्र हो कर अंकिता के स्वस्थ होने की दुआ मांग रहे थे. इस के बाद उन्होंने थानाप्रभारी से मांग की कि वह हमलावर को शीघ्र गिरफ्तार कर उस के खिलाफ सख्त काररवाई करें.

थानाप्रभारी ने आश्वासन दिया कि वह जल्दी ही हमलावर को गिरफ्तार कर सींखचों के पीछे भेज देंगे. घटना की खबर पाते ही नागपुर के पुलिस कमिश्नर डा. भूषण कुमार उपाध्याय, डीएसपी तृप्ति जाधव तत्काल हिंगनघाट प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंच गए. डाक्टरों से बातचीत के बाद उन्होंने बुरी तरह जली अंकिता का निरीक्षण किया और थानाप्रभारी सत्यवीर बांदीवार को आवश्यक दिशानिर्देश दिए.
अंकिता 50 प्रतिशत जल चुकी थी. उस की स्थिति काफी नाजुक थी. डाक्टरों ने उस की गंभीरता को देखते हुए उसे औरेंज सिटी हौस्पिटल ऐंड रिसर्च सेंटर भेजने की सलाह दी.

थानाप्रभारी इस घटना की खबर अंकिता के परिवार वालों को दे चुके थे. बेटी के साथ घटी घटना की खबर पाते ही अंकिता के परिवार वाले सन्न रह गए. घर में रोनापीटना मच गया. उन्हें जिस बात का डर था, वही हुआ. वे जिस हालत में थे, वैसे ही हिंगनघाट प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की ओर दौड़ पड़े. करीब डेढ़ घंटे में वे स्वास्थ्य केंद्र पहुंच गए.

स्वास्थ्य केंद्र पहुंचने पर थानाप्रभारी सत्यवीर बांदीवार ने उन्हें सांत्वना दे कर फौरी तौर पर पूछताछ की. अंकिता के परिवार वालों ने इस मामले में सीधेसीधे विकेश नागराले का हाथ बताया और कहा कि विकेश नागराले ही वह युवक है जो उन की बेटी अंकिता से एकतरफा प्यार करता था.
वह आए दिन उसे परेशान किया करता था. अंकिता के परिवार वालों के बयान के बाद अंकिता को नागपुर औरेंज सिटी हौस्पिटल ऐंड रिसर्च सेंटर भेज दिया गया.

अंकिता के परिवार वालों के बयान पर थानाप्रभारी सत्यवीर बांदीवार ने अपनी एक विशेष टीम के साथ विकेश नागराले की तलाश शुरू कर दी. फिर 4 फरवरी यानी घटना के दूसरे दिन ही उसे गिरफ्तार कर लिया. मगर इस के बाद भी मामला शांत नहीं हुआ. चूंकि मामला एक प्रतिष्ठित परिवार की प्रोफेसर से जुड़ा था, इसलिए महाराष्ट्र के दैनिक समाचारपत्रों ने खबरों को हवा दे दी, जिस की आंच से महाराष्ट्र शासन भी नहीं बचा. भारी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए. प्रदेश में अशांति पैदा न हो, इसलिए महाराष्ट्र सरकार ने भी इसे गंभीरता से लिया. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अंकिता के इलाज के लिए अपने मुख्यमंत्री राहत कोष का मुंह खोल दिया.

महाराष्ट्र महिला विकास और स्वास्थ्य मंत्री यशोमती ठाकुर ने अंकिता के इलाज के लिए मुंबई के डाक्टरों का एक दल तुरंत नागपुर के औरेंज सिटी अस्पताल के लिए रवाना कर दिया. डाक्टरों की टीम अंकिता के इलाज में जुट गई लेकिन अथक प्रयासों के बावजूद अंकिता जिंदगी की लड़ाई हार गई. घटना के 8 दिन बाद 10 फरवरी को सुबह लगभग 7 बजे अंकिता ने दुनिया को अलविदा कह दिया.अंकिता की मौत की खबर वर्धा जिले के अलावा नागपुर में भी फैल गई. इस के बाद तो मानो भूचाल सा आ गया था. नाराज लोग एक बार फिर सड़कों पर उतर आए और उन्होंने जगहजगह प्रदर्शन करने शुरू कर दिए. आक्रोशित भीड़ ने कलेक्टर हाउस और पुलिस मुख्यालय को घेर लिया. प्रदर्शनकारी अभियुक्त को फांसी के साथसाथ अंकिता के परिवार वालों को सरकारी नौकरी देने की मांग करने लगे. गुस्साई भीड़ ने नागपुर-हैदराबाद हाइवे को जाम कर दिया.

आखिर नागपुर वर्धा डीएम के लिखित आदेश पर आंदोलन शांत हुआ. महाराष्ट्र शासन ने मामले को फास्टट्रैक कोर्ट में चलाने का आदेश दिया. साथ ही इस क्रिमिनल केस को लड़ने के लिए मुंबई के जानेमाने सरकारी वकील उज्ज्वल निकम को नियुक्त किया.27 वर्षीय विकेश नागराले उसी गांव दरोदा का रहने वाला था, जिस गांव में अंकिता पिसुदे रहती थी. अंकिता पिसुदे की पारिवारिक आर्थिक स्थिति काफी मजबूत थी. उस के पिता गांव के जानेमाने काश्तकार थे.

अंकिता और विकेश नागराले के स्तर का कोई मेल नहीं था. विकेश के पिता मध्यम श्रेणी के किसान थे. उनके पास नाममात्र की खेती थी. विकेश पढ़ाईलिखाई में तेज और महत्त्वाकांक्षी युवक था.
स्कूल एक ऐसी पाठशाला है, जहां अमीरगरीब का कोई भेदभाव नहीं होता. साथ ही दोस्ती और प्यार के बीच कोई दीवार भी नहीं होती. यही विकेश नागराले और अंकिता के साथ हुआ. एक ही गांव और एक स्कूल में होने के नाते दोनों के बीच दोस्ती हो गई थी.

दोनों एक साथ स्कूल आतेजाते थे. एक ही कक्षा में पढ़ते थे. पढ़ाई में दोनों एकदूसरे की मदद करते थे. दोनों साथ मिल कर स्कूल का होमवर्क करते थे. कभी अंकिता विकेश के घर तो कभी विकेश अंकिता के घर पर आ जाता था.

इंटरमीडिएट तक की शिक्षा दोनों ने साथसाथ ली थी. इंटरमीडिएट पास करने के बाद अंकिता के परिवार ने उस के अच्छे भविष्य के लिए आगे की पढ़ाई का बंदोबस्त नागपुर शहर में कर दिया.
नागपुर कालेज से पढ़ाई करने के बाद अंकिता प्रोफेसर बन गई थी, जबकि विकेश नागराले ने आर्थिक स्थिति के कारण आगे की पढ़ाई छोड़ रेलवे में कैटरिंग का काम शुरू कर दिया था.रास्ते अलगअलग थे. लेकिन उन की दोस्ती में कोई फर्क नहीं आया था. अंकिता जब भी कालेज से छुट्टी पाती, विकेश के साथ घूमतीफिरती, जिस का विकेश ने अलग मतलब निकाल लिया था. वह अंकिता की दोस्ती को उस का प्यार समझ बैठा था. जबकि वह दोस्ती सिर्फ औपचारिकता भर थी.

अंकिता जब भी सामने आती थी, विकेश के दिल की धड़कनें बढ़ जाती थीं. अंकिता का रंगरूप उस की आंखों में समा जाता था. उसे ले कर वह रंगीन सपनों में खो जाता था. इसी गलतफहमी में विकेश ने जब अपनी सीमाओं को लांघना चाहा तो उन की दोस्ती में दरार आ गई. विकेश के इस अनुचित व्यवहार से अंकिता के मन को गहरी ठेस लगी और उस ने उस से दूरी बना ली. जब विकेश को महसूस हुआ कि उस से गलती हो गई है तो गलती का अहसास होने के बाद वह माफी के लिए कई बार अंकिता के सामने आया.
एक दिन उस ने अंकिता का रास्ता रोका तो अंकिता ने उसे भाव नहीं दिया. उलटे उस ने विकेश की शिकायत अपने परिवार वालों से कर दी. अंकिता के परिवार वालों ने विकेश नागराले के परिवार वालों को आड़े हाथ लिया और उन्हें चेतावनी दे कर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की धमकी दी.

विकेश की हरकतों से दुखी उस के घर वालों ने उस की शादी कर देने में भलाई समझी. आखिर 2018 के जनवरी महीने में उस की शादी कर दी गई. शादी के डेढ़ साल बाद वह एक बच्ची का पिता भी बन गया था. फिर भी वह अंकिता को भूल नहीं पाया.  जब भी वह अंकिता को सामने पाता तो उस से बात करने की कोशिश करता, तब अंकिता उसे दुत्कार देती थी. अंकिता की इस बेरुखी से उस के दिल को आघात पहुंचता.

घटना से करीब 4 महीने पहले उस ने अंकिता की बेरुखी के चलते फिनायल पी कर आत्महत्या करने की कोशिश की थी, लेकिन डाक्टरों ने किसी तरह उसे बचा लिया था. मामला दोनों परिवारों की प्रतिष्ठा का था, इसलिए बात पुलिस तक नहीं पहुंची थी. इस हादसे से निकलने के बाद भी जब अंकिता को उस के प्रति कोई हमदर्दी नहीं हुई तो उस के मन में भी अंकिता के लिए नफरत जाग उठी, जो एक क्रूर भावना में बदल गई. उस की इस भावना की आग तब और भड़क गई, जब उसे यह बात मालूम पड़ी कि अंकिता की शादी तय हो गई है. तभी उस ने फैसला लिया कि अंकिता अगर उस की नहीं हुई तो वह अंकिता को किसी और की भी नहीं होने देगा.

घटना के दिन विकेश नागराले ने अपनी मोटरसाइकिल से एक बोतल पैट्रोल निकाल कर डिक्की में रख लिया और घटनास्थल पर अंकिता से पहले पहुंच कर उस का इंतजार करने लगा. अपने तय समय पर जब अंकिता बस स्टाप पर उतर कर कालेज की तरफ बढ़ी, तभी विकेश नागराले उस के सामने आ कर खड़ा हो गया. फिर उस ने वारदात को अंजाम दे दिया. घटना के बाद वह भाग कर अपनी ससुराल में जा कर छिप गया था, जहां से पुलिस टीम ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया.

विकेश नागराले से विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे भादंवि की धारा 307, 326, 302 के तहत गिरफ्तार कर कड़ी सुरक्षा में महानगर मजिस्ट्रैट के सामने पेश, जहां से उसे जेल भेज दिया गया

मदर्स डे स्पेशल: अपनी मां को जरूर दें खूबसूरती बढ़ाने वाले ये 8 गिफ्ट

अपने चेहरे को निखारना और अपनी खूबसूरती की तारीफ बटोरना भला कौन महिला नहीं चाहती. चाहे कामकाजी महिला हो या गृहिणी, अपने लुक को ले कर हर कोई सजग है. इसलिए इस मदर्स डे पर आप अपनी मां की खूबसूरती को फिर से लौटाने वाले ये ब्यूटी गिफ्ट दे कर उन्हें खुश कर सकती हैं:

क्ले मास्क/कोलोजन मास्क:

आजकल क्ले मास्क काफी फेमस है. यह आप की मां के चेहरे से सीबम को औब्जर्व कर गंदगी और डैड सैल्स को बाहर निकाल देगा, साथ ही यह ब्लडसर्कुलेशन को बढ़ा कर स्किन को भी मुलायम बनाएगा. कोलोजन मास्क त्वचा में कसाव लाता है. यह त्वचा को बढ़ती उम्र के निशानों से बचाए रखता है. आप की मां यह मास्क किसी भी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक में लगवा सकती हैं. इस मास्क का लेजर के साथ प्रयोग करने से और बेहतर परिणाम निकलता है. लेजर से त्वचा के मृत सैल्स में नई जान आ जाती है, साथ ही मास्क में 95% कोलोजन होने के कारण त्वचा को आवश्यक खुराक भी मिलती है. आंखों के काले घेरों और रिंकल्स को दूर करने के लिए इस से बेहतर और कोई उपचार नहीं है.

सीरम प्रोटैक्शन:

रोज सुबह फेस क्लीन करने और लाइट स्क्रब करने के बाद इस्तेमाल करने के लिए मां को दें कोलोजन सीरम. यह कौन्संट्रेटिव फौर्म में होता है. इसलिए बहुत कम मात्रा में लगाया जाता है. इस का डेली इस्तेमाल स्किन की रिपेयर कर उसे प्रोटैक्ट व हाईड्रेट करेगा, साथ ही एजिंग साइंस को भी दूर करेगा.

वौल्यूमाइजिंग मसकारा/लैंथनिंग मस्कारा:

झुकी व थकी आंखों की लैशेज पर मसकारा के कोट्स लगा सकती हैं. इस से आंखें तुरंत खुली हुई नजर आएंगी. बढ़ती उम्र के साथ मसकारा का पैटर्न भी बदल लेना चाहिए. जरूरत पड़ने पर वौल्यूमाइजिंग मसकारा के बजाय लैंथनिंग मसकारा लगाना चाहिए.

एएचए यानी अल्फा हाईड्रौक्सी ऐसिड क्रीम:

रोज रात को सोने से पहले स्किन की क्लीनिंग जरूरी है ताकि मेकअप या धूलमिट्टी अच्छी तरह रिमूव हो जाए. फेस क्लीन करने के बाद एएचए क्रीम से चेहरे की मसाज करने से झुर्रियां नहीं पड़ेंगी. यह क्रीम आंखों के नीचे का कालापन दूर करने में भी मदद करती है. इस के इस्तेमाल से ऐक्सफौलिएशन और नए सैल्स बनने की प्रक्रिया तेज होती है, जिस से त्वचा में निखार दिखाई देता है.

फेशियल किट: उम्र बढ़ने के साथ त्वचा की कसावट व दमक खोने लगती है. ऐसे में नियमित अंतराल पर फेशियल करने से चेहरे की मसल टोन को सुधारने और झुर्रियों से छुटकारा पाने में मदद मिलती है.

कलर करैक्शन क्रीम:

देर रात तक जागना, घंटों कंप्यूटर पर काम करना और धूप में भागदौड़ करने से डार्क सर्कल्स, ऐक्ने जैसी स्किन प्रौब्लम्स हो जाना स्वाभाविक है. ऐसे में इन प्रौब्लम्स को फाउंडेशन के बजाय कलर करैक्शन क्रीम यानी सीसी क्रीम की मदद से छिपाएं, क्योंकि फाउंडेशन से चेहरे के ये मार्क्स पूरी तरह छिप नहीं पाते हैं. सीसी क्रीम इन्हें पूरी तरह छिपा कर फेस को क्लीयर लुक देती है.

मिरैकल औयल:

डेली स्टाइलिंग व कैमिकल्स के इस्तेमाल से उम्र के साथ सभी के बाल रूखे हो जाते हैं. रूखे बाल खूबसूरती को कम करते हैं. ऐसे में आप की मां को अपने बालों की चमक को वापस लाने के लिए मिरैकल औयल जैसे आर्गन औयल या मैकाडामिया औयल का इस्तेमाल करना अच्छा रहेगा. यह तेल बालों को गहराई तक नरिश करता है, साथ ही उन्हें मजबूती और शाइन भी देता है.

यह आसानी से फैलता है, इसलिए इस की कुछ ही बूंदें काफी होती हैं. इस की बूंदों को फिंगर्स पर रब कर के फिर पूरे बालों में कौंबिंग स्टाइल घुमाते हुए लगाने से बैनिफिट मिलता है.

ट्रिपल आर या फोटो फेशियल:

यदि आप की मां ट्रिपल आर या फोटो फेशियल करवाएंगी तो ज्यादा बेहतर होगा. ट्रिपल आर का मकसद स्किन को रिप्लेनिश, रिजुविनेट करना होता है. अधिक उम्र के कारण उन की स्किन लटक गई है या स्किन में इलास्टिसिटी की कमी हो गई है, तो यह ट्रीटमैंट काफी फायदेमंद रहेगा. फोटो फेशियल से बढ़ती उम्र के निशान जैसे फाइन लाइंस व झुर्रियां कम होती हैं. त्वचा का ढीलापन दूर हो कर उस में कसाव आता है. इस फेशियल में शामिल प्रोडक्ट्स से त्वचा में कोलोजन बनने का प्रोसैस बढ़ जाता है, जो त्वचा को साइंस औफ एजिंग से प्रोटैक्ट करता है. इस के अलावा इस से ऐक्सफौलिएशन और नए सैल्स बनने की प्रक्रिया तेज होती है, जिस से त्वचा में निखार दिखाई देता है.

इस ट्रीटमैंट में माइक्रो मसाजर या फिर अपलिफ्टिंग मशीन द्वारा फेस को लिफ्ट किया जाता है, जिस से सैगी स्किन अपलिफ्ट हो जाती है और उस में कसाव आ जाता है.

अंत में इस ट्रीटमैंट के अंतर्गत एक खास प्रकार का मास्क लगाया जाता है, जिसे यंग स्किन मास्क कहते हैं. इस मास्क के अंदर 95% कोलोजन होता है. इस मास्क को लगाने से त्वचा को आवश्यक खुराक मिलती है.

ग्लाईकोलिक पील और डर्माब्रेशन टैक्नीक: अगर आप की मां के चेहरे पर पिगमैंटेशन दिखाई दे रहे हैं, तो उन्हें किसी अच्छे सैलून से ग्लाइकोलिक पील और डर्माब्रेशन टैक्नीक की मदद से भी इस का इलाज करवाने का उपहार दे सकती हैं. यह उपचार कई सिटिंग्स के बाद पूर्ण होता है.

#WhyWeLoveTheVenue: Climate Control

अब गरमियों के दिन शुरू हो गए हैं, जिसके लिए जरूरी है की हर कार में कूलिंग के लिए के लिए एक पावरफुल एयर कंडीशनिंग सिस्टम हो. वहीं Hyundai Venue में कुछ ऐसे नए फीचर्स हैं, जो साल के सबसे गरम दिनों में भी आपको कूलिंग का एहसास  कराएगा.

औटोमैटिक temperature फीचर्स के साथ ये कार को गरमी में ठंडा और सर्दी में गरम रखेगा. रियर-सीट यात्रियों के लिए समर्पित वेंट हैं, जिसमें वायु प्रवाह की मात्रा को समायोजित करने की क्षमता मिलती है. एयर कंडीशनिंग सिस्टम  इको कोटिंग के जरिए किसी भी माइक्रोबियल ग्रोथ को बढ़ने से रोकता है, जिससे कार के अदर ताजगी बनी रहती है.

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औरंगाबाद में मालगाड़ी से कटे 16 मजदूर: निकले थे रोटी की तलाश में, मिली मौत

महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में 16 मजदूरों की मौत देश की सरकारी व्यवस्था की पोल खोलती नजर आती है. एक साथ 16 लोगों की मौत ने न जाने कितने परिवारों और कितने ही लोगों के सपने को चूरचूर कर दिया है.

मामला महाराष्ट्र के करमाड रेलवे स्टेशन की है. लौकडाउन की वजह से कुछ मजदूर पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पङे थे. पहले तो इन्होंने सरकारी आश्वासन पर भरोसा किया जिस में इन्हें घर तक छोङने की बात कही गई थी पर जब कोई रास्ता नजर नहीं आया तो पैदल ही निकल पङे.

पहले तो ये प्रवासी मजदूर सङक मार्ग से चले पर कुछ दूर चलने के बाद ये रेलवे ट्रैक से चलने लगे और लगभग 45 किलोमीटर चलने के बाद भूखप्यास से बेहाल हो कर रेल की पटरियों पर ही सो गए. इन्हें यह भी आभास नहीं रहा कि जिस रेल की पटरियों पर ये सो रहे हैं वहां कुछ ही देर बाद ही मौत गुजरने वाली है. सुबह करीब 5 बज कर 45 मिनट पर एक मालगाड़ी से कट कर 16 मजदूरों की तत्काल मौत हो गई जबकि 3 मजदूर घायल हैं.

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यह पहला मामला नहीं

लौकडाउन के दौरान जान गंवाने वाले लोगों का यह कोई पहला मामला नहीं है. एक अध्ययन में यह सामने आया है कि देशव्यापी बंद के बीच 300 से अधिक ऐसे मामले सामने आए हैं जो प्रत्यक्ष तौर पर तो कोरोना संक्रमण से जुड़े नहीं हैं, लेकिन इस से जुड़ीं अन्य समस्याएं इन का कारण हैं.

शोधकर्ताओं ने 19 मार्च से लेकर 2 मई के बीच 338 मौतें होने का दावा किया है, जो लौकडाउन से जुड़ी हुई हैं.

एक अध्ययन के अनुसार आंकडें बताते हैं कि 80 लोगों ने अकेलेपन से घबरा कर और संक्रमण के भय से आत्महत्या कर ली तो दूसरी तरह मरने वालों का सब से बड़ा आंकड़ा प्रवासी मजदूरों का है.

भूख और आर्थिक तंगी मुख्य वजह

कोरोना संक्रमण के चलते देशव्यापी बंद होने की वजह से प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौटने लगे. जहां कई सड़क दुर्घटनाओं में 51 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई, तो वहीं शराब नहीं मिलने से 45 लोगों की मौत हो गई और भूख एवं आर्थिक तंगी के चलते 36 लोगों की जानें गईं.

शोधकर्ताओं ने तो 2 मई तक के ही आंकड़े जारी किए हैं लेकिन 8 मई को 16 और प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई.

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घर पहुंचने की लालसा

कोरोना के चलते हुए लौकडाउन की सब से बड़ी मार मजदूरों पर पड़ी हैं. जो जहां था वहीं रुक गया, लेकिन तंग हालात में मजदूर कितने दिनों तक अपने धैर्य को बांध कर रखता? लिहाजा वे पैदल ही निकल पड़े हजारों किमी का सफर तय करने के लिए. उन के मन में सिर्फ घर पहुंचने की लालसा थी.

मीडिया में आई खबरों के अनुसार कुछ मजदूरों का कहना था कि पैसा पूरी तरह से खत्म हो चुका है, कैसे जीवनयापन करते तो पैदल ही चल दिए, तो वहीं कुछ का कहना है कि यहां पर रुकने की और न ही भोजन की कोई व्यवस्था मिली ऐसे में क्या करते?

सरकार जरूर इन मजदूरों को उन के गृह राज्य भेजने का काम कर रही है. लेकिन, फिर मजदूरों से रेल किराया वसूलने का मामला सामने आया जिस की काफी आलोचनाएं हुईं. हालांकि इस के बाद यात्राएं जरूर निशुल्क हो गईं.

करमाड स्टेशन के पास हुआ हादसा

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में करमाड रेलवे स्टेशन के पास यह दर्दनाक घटना घटी है. महाराष्ट्र के जालना से भुसावल की ओर पैदल जा रहे मजदूर अपने गृह राज्य मध्य प्रदेश लौट रहे थे. वे रेल की पटरियों के किनारे चल रहे थे और थकान के कारण पटरियों पर ही सो गए थे. जालना से आ रही मालगाड़ी पटरियों पर सो रहे इन मजदूरों पर चढ़ गई.

मारे गए ये मजदूर जालना के एक इस्पात फैक्टरी में काम करते थे लेकिन लौकडाउन के चलते काम नहीं होने की वजह से 5 मई को इन लोगों ने अपने गृह राज्य मध्य प्रदेश जाने का सफर शुरू किया. शुरू में तो मजदूर सड़क के रास्ते ही घर जा रहे थे लेकिन औरंगाबाद के पास आते हुए इन्हें रेलवे ट्रैक दिखाई दिया. जिस पर ये चलने लगे. इस समूह के साथ चल रहे 3 मजदूर जीवित बच गए क्योंकि वे रेल की पटरियों से कुछ दूरी पर सो रहे थे, हालांकि वे भी घायल हैं.

रेल मंत्रालय ने ट्वीट कर घटना की जानकारी दी और कहा कि मालगाड़ी के लोको पायलट ने इन्हें देख लिया था और बचाने का प्रयास भी किया मगर हादसा हो गया. रेलवे ने इस पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं.

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मुआवजे का ऐलान

रेल दुर्घटना में मारे गए 16 प्रवासी मजदूरों के परिजनों को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 5-5 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने का ऐलान किया है मगर इन मौतों से लोगों की सरकारी व्यवस्था पर से भरोसा उठने लगा है.

उधर उत्तर प्रदेश के लखनऊ से भी खबर है कि जानकीपुरम में रहने वाला एक मजदूर परिवार साइकिल से अपने घर छत्तीसगढ़ जाने के लिए निकला था मगर रास्ते में ही किसी वाहन ने जोरदार टक्कर मार दी. इस टक्कर से मातापिता की तत्काल मौत हो गई जबकि 2 बच्चे बच गए. अब उन का कोई नहीं है.

वर्णव्यवस्था का शिकार हुआ मजदूर

‘सूटबूट’ वाली केन्द्र सरकार‘ शुरू से ही मजदूर और गरीब विरोधी रही है. नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक जितने भी फैसले हुये वह सब मजदूर विरोधी थे. नोटबंदी और जीएसटी से प्रभावित हुये कारोबार का सबसे अधिक प्रभाव मजदूरों पर ही पड़ा. कारोबार के धीमे होने से मजदूरों को ही सबसे पहले अपनी रोजीरोटी से हाथ धोना पड़ा.

नोटबंदी और जीएसटी के बाद लॉकडाउन ताबूत की इस कड़ी की अखिरी कील साबित हुई. जिसने मजदूरो की रोजीरोटी लेने के के साथ ही साथ जानमाल का नुकसान भी किया है. असल में केन्द्र वाली मोदी सरकार शुरू से ही मजदूर विरोधी और उद्योगपतियों की समर्थक रही है.

केन्द्र सरकार ने अपनी नीतियों से मजदूरो के रोजीरोजगार छीनकर कमजोर किया. जिससे सरकार के उद्योगपति मित्र मजदूरों का मनचाहा शोषण कर सके.

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मोदी सरकार के कार्यकाल में देश में बेरोजगारी की दर सबसे अधिक थी. सरकार की गलत नीतियों की वजह से बेरोजगारी की दर बढी थी. 2004 के यूपीए की सरकार ने गांव से मजदूरों का पलायन रोकने के लिये नरेगा यानि राष्ट्रीय रोजगार गांरटी कानून बनाकर हर गरीब को काम का अधिकार दिया. मोदी सरकार ने इस योजना को भ्रष्टाचार से जोडा और इसके बजट में कटौती शुरू कर दी. धीरे धीरे इस योजना को कागज पर डाल दिया गया. 2014 से 2020 के बीच यह योजना बंद कर दी गई.

नरेगा जिसका नाम बदल कर 2009 में मनरेगा कर दिया गया था उसके बंद होने के बाद मजदूरों और गरीबो का गांव से शहर की तरफ पलायन बढ गया.

कोविड 19 कोरोना वायरस संकट के समय पूरे देश में मजदूरों की जो हालत हुई उसे देखने के बाद पता चलता है कि मजदूर आज फिर वर्णव्यवस्था का शिकार होकर पूरी तरह से मजबूर हो रहे है.

अमीरों के लिये हवाई जहाज गरीबो के लिये लाठियां:

‘हम तो भोजन का इंतजाम करने के लिये निकले थे. 6 माह की बेटी को कई दिनो से दूध नहीं मिला था. एक जगह पुलिस वालों ने कई लोगों को पीटना शुरू कर दिया और हमें अपनी गाडी में लाद कर ले गये. पुलिस ने हमें छोडने का पैसा भी लिया. इसके बाद हमें लखनऊ आने वाली रेलगाडी का पता चला तब हम बड़ोदरा रेलवे स्टेशन पहुचे तो लखनऊ तक आने का 580 रूपया किराया लिया गया. तब हम रेलगाडी पर चढ पाये.‘ रायबरेली के रहने वाले मजदूर रामभवन ने जब यह बताया तो लगा जैसे हमारे ही देश में हमारे ही लोगों के साथ गुलामों जैसा व्यवहार किया जा रहा है.

आंखो के आंसू भरे मजदूरों को अपने घर पंहुचने की खुशी जरूर थी पर उनके चेहरों पर कोई खुशी नहीं थी. राम भवन जैसे कई मजदूर और भी थे जो कह रहे थे कि अब अपने गांव घर में खेती किसानी कर लेगे पर वापस गुजरात नहीं जायेगे. मजदूरों को जो टिकट दिये गये थे उन पर 615 रूपये लिखे थे पर उनसे ज्यादा पैसे वसूल किये गये. इन मजदूरों को टिकट रेलवे की टिकट खिडकी से नहीं बल्कि प्लेटफार्म पर रेलवे के कर्मचारियों के द्वारा दिये गये थे.

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कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने जब यह मुददा उठाया और कहा कि जब विदेश से लोगो को सरकार अपने खर्च पर हवाई जहाज से ला सकती है तो देश के अंदर रेलवे से मुफ्रत क्यों नहीं ला सकती है? इसका कारण यह है कि केन्द्र सरकार दलित और पिछडे वर्ग और उच्च वर्ग के बीच भेदभाव करती है. यह एक तरह का वर्ण व्यवस्था पर आधारित भेदभाव है. जिसे केवल केन्द्र सरकार ने ही नहीं किया भाजपा शासित हर सरकार ने किया. भाजपा यह भूल गई है कि मजदूर अब यह दर्द भूलने वाला नहीं है. संकट के इस दौर में मजदूर भले ही सरकार से कोई सवाल जवाब ना कर सके पर चुनाव के समय पर यह बात मन में रखकर वोट देगा. मजदूर के लिये यह दर्द कभी भी ना भूलने वाला दर्द है.

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव कहते है ‘रेलवे के पास दान देने के लिये पैसा है पर गरीबों को घर पहुचाने के लिये पैसा नहीं है. विष्वगुरू बनने के लिये अमीरों को हवाई जहाज से विदेश से लाने का काम करना ठीक है पर देश के अंदर मजदूरों से भेदभाव करना ठीक बात नहीं है.

शहरी व्यवस्था के लिये जरूरी है मजदूर:

‘कोविड 19’ कोरोना वायरस के दौर में गरीब वर्ग के दलित और पिछडो के मुकाबले उच्च वर्ग के अमीर लोगों कोे अधिक महत्व दिया गया. सोशल मीडिया पर इसकी जबरदस्त आलोचना भी होती देखी गई. सोशल मीडिया के जमाने में अभिव्यक्ति के भी अपने अलग तरीके है. सोशल मीडिया पर गरीब और उच्च वर्ग के भेदभाव को दिखाने के लिये ‘गुनाह तो पासपोर्ट का था दरबदर राशनकार्ड हो गये’ सबसे ज्यादा वायरल हुआ. अगर देखा जाये तो देश में लॉकडाउन के दौर में सबसे अधिक मजदूर वर्ग की परेषानी से गुजरा. यह इस लिये हुआ क्योकि देश भर में फैली भाजपा की सरकारों में इनको बंधुआ मजदूरों की तरह रखने के लिये काम किया. यह धर्म के रामराज की धारणा के अनुरूप किया गया काम था.

भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली केन्द्र सरकार ने मजदूरों के साथ भेदभाव वाला व्यवहार किया. मजदूरों को घर जाने की सुविधायें देने की जगह पर मजदूरों को अपने घर जाने से रोकना का काम किया गया. सरकार की यह नीति वर्ण व्यवस्था वाली मानसिकता की देन है जिसमें पिछडे और दलितो को गुलाम समझा जाता है. मजदूरों में दलित और पिछडे वर्ग के लोग बहुतायत में है. अगर मजदूरों को बंधुआ और गुलाम नहीं समझा जाता तो पूरे देश में लॉकडाउन करने से पहले उनको अपने घरो तक पहंुचाने का प्रयास जरूर किया जाता. केन्द्र सरकार ने मजदूरों को केवल बंधुआ ही नहीं समझा बल्कि उनके साथ छुआछूत का व्यवहार भी किया. मजदूरों के साथ सरकार इस व्यवहार से पूरी दुनिया में भारत की सोंच दिखाई दी. प्रवासी मजदूरो की दशा केवल इसलिये नहीं हुई कि वह गरीब है. मजूदरों की यह दशा इसलिये हुई क्योकि वह दलित और पिछडे है. मनुस्मृति में दलितो को पैर का हिस्सा बताया गया है. उसके साथ ऐसे ही व्यवहार की बात की गई.

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सरकार को लग रहा था कि कोरोना के संकट भरे दौर में मजदूर अपने घरों को वापस चला गया तो वापस वह कभी षहरों की तरफ नहीं आयेगा. मजदूर के रूप में दलित और पिछडें षहरो में रहने वाले लोगों की गंदगी साफ करने और उनकी सेवा सुविधा का काम करता है. अगर षहरों से यह मजदूर वर्ग चला गया तो शहरों में गंदगी के मारे रहना मुष्किल हो जायेगा. ऐसे में सरकार हर कीमत पर मजदूरों को षहर में रोकना चाहती थी.

अंग्रेजों की नीति पर चल रही सरकार:

आजादी के पहले अंग्रेजो ने भारत के रहने वालो को गिरमिटिया मजदूर बनाकर 5 साल के अनुबंध पर दूसरे देशों मे ले गई. बाद में फिर वह वहां पर उनको बधुआ मजदूर बनाकर रखा गया. उनकी अपनी कोई मर्जी और अधिकार नहीं थे. गिरमिटिया प्रथा अंग्रेजी हुकूमत द्वारा 1834 में प्रारंभ की गई. जिसमें मजदूरों को 5 साल तक गुलाम की बना कर काम करने के लिए जबरन अफ्रीका, फिजी, गुयाना, त्रिनिदाद जैसे देशों मे ले जाया जाता था.

अंग्रेजी हुकूमत पहले भारतीय लोगों को एक एक रोटी के लिए मोहताज कर दिया करती थी. फिर गुलामी की शर्त पर अंग्रेज इन मजदूरों को विदेश भेजा करती थी. गुलाम बनाए गए मजदूर 5 साल बाद छूट जाया करते थे लेकिन भारत आने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते थे तो वे मजदूर वहीँ मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन गुजर बसर करने के लिये मजबूर होते थे.

केन्द्र सरकार भी इसह तरह से काम कर रही है. पहले अपने नीतियों से मजदूरों कर कमर तोड़ दी फिर उनको उद्योगपतियो की शर्तो पर काम करने के लिये मजबूर किया जा रहा है. अब जब करोना संकट के समय यह मजदूर अपने घरों को आना चाहते है तो इनको अपने गांव घर को वापस भी नहीं आने दिया जा रहा है.

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भाजपा की कर्नाटक सरकार के कामों ने इसकी पोल खोल कर रख दी. कर्नाटक सरकार ने मजदूरों के पलायन का रोकने के लिये अपने प्रदेश से मजदूर स्पेशल गाडियां चलाने से मना कर दिया है. जिससे अपने घरों को जाने वाले मजदूर कर्नाटक छोडकर अपने घरों को वापस ना लौट सके. कर्नाटक की भारतीय जनता पार्टी सरकार के इस कदम का पूरे देश में विरोध किया गया.

कर्नाटक का नाटक:

विपक्षी दलो ने कहा है कि कर्नाटक सरकार प्रवासी मजदूरों के साथ ‘बंधुआ मजदूर’ जैसे बर्ताव कर रही है. कर्नाटक सरकार को इस आलोचना से बचाने के लिये मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने प्रवासी मजदूरों से कहा है कि वे कर्नाटक सरकार प्रदेश में निर्माण और औद्योगिक काम शुरू करने जा रही है. जिससे मजदूरों को काम मिलेगा ऐसे में वह अपने घरो को वापस ना जाये.

कर्नाटक में करीब 2 लाख 50 हजार प्रवासी मजदूरों अपने घर जाने के लिये तैयार थे. अब सरकार उनको अपने घर वापस जाने नहीं दे रही है. येदुरप्पा सरकार ने यह फैसला ‘कन्फेडरेशन आफ रियल स्टेट डेवेलोपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ के की बातचीत के बाद किया था.

कर्नाटक सरकार मजदूरों को लुभाने के लिये किसानों, फूल उत्पादकों, धोबी, नाई, ऑटो-रिक्शा और टैक्सी चालकों को तुरंत राहत पहुंचाने के लिए 1,610 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की. इन क्षेत्रों में काम करने वाले लोग कोविड-19 के चलते हुये लॉकडाउन में प्रभावित हुए थे. मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा ने कहा कि राज्य सरकार 1,610 करोड़ रुपये का मुआवजा लाभ उन लोगों को देगी, जो 25 मार्च से लौकडाउन होने की वजह से संकट में हैं.

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विशेष राहत पैकेज के लाभार्थियों में किसान, फूल, सब्जियां और फल उत्पादक, धोबी, नाई, ऑटो-रिक्शा और टैक्सी ड्राइवर शामिल हैं. इन सभी को लंबे समय तक बंद रहने के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा है.

येदियुरप्पा का यह राहत पैकेज उस विवाद को शांत नहीं कर पाया जिसमें एक तरह से प्रवासी मजदूरों के घर जाने का रास्ता रोका गया है. राजस्व विभाग के मुख्य सचिव एन. मंजूनाथ प्रसाद ने 10 ‘श्रमिक ट्रेनो’ं की मांग को रद्द कर दिया था. कर्नाटक सरकार ने यह कदम बिल्डर्स की मांग के बाद उठाया गया जिसमें कहा गया है कि प्रवासी अगर अपने घर चले गए तो निर्माण कार्यों में भारी दिक्कत आ सकती है.

इस मसले पर सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा ‘यह मजदूरों के साथ ‘बंधुआ मजदूरों’ की तरह काम किया जा रहा है. कर्नाटक सरकार का यह काम भारतीय संविधान के विपरीत है. कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में यूपी, बिहार, ओडिशा और बंगाल के हजारों मजदूरों ने को उनके घर जाने से रोक दिया गया था. जिसकी वजह से इन मजदूरों ने वहां पर काफी हंगामा किया था.

मजदूरों का कहना था कि उनका रहना दूभर हो गया है, इसलिए वे अपने घर जाना चाहते हैं. कर्नाटक सरकार के इस फैसले पर पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी निशाना साधा और कहा कि प्रवासियों के लिए ट्रेन रद्द करना न सिर्फ अनैतिक है बल्कि मूलभूत अधिकारों का हनन भी है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री यह तर्क कि प्रवासी अगर अपने घर चले गए तो निर्माण कार्य नहीं हो सकेंगे, दरअसल बीजेपी की मानसिकता को दर्शाता है.

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सिद्धारमैया ने कहा कि घर जाना है या उसे रुकना है, यह फैसला मजदूरों को ही करना चाहिए, सरकार इसका निर्णय नहीं लेगी. मजदूर काम या अपनी सेहत में किसी एक का चयन करने के लिए स्वतंत्र हैं. उनके साथ कुछ गड़बड़ हो जाए तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा.  मजदूर गरीब भले हैं लेकिन वे भी इंसान हैं. वे बंधुआ मजदूर नहीं हैं. जिस तरह विदेश में फंसे लोग भारत आना चाहते हैं, वैसे ही ये मजदूर भी अपने घर जाना चाहते हैं.

फेल हो गया गुजरात मौडल:

देश में गुजरात मौडल की सबसे अधिक चर्चा थी. गुजरात चमक रहा था क्योकि वहां पर उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग मेहनत से काम कर रहे थे. चमकते हुये गुजरात में मजदूरों का हालत का पता कोरोना संकट के दौरान हुआ. गुजरात से भी मजदूरों के घर वापसी का पूरा प्रबंध नहीं किया गया. जिन मजदूरों के पास खाने के लिये पैसा नहीं था सरकार ने उनसे भी रेलवे का किराया वसूल किया. जबकि केन्द्र सरकार दावा कर रही थी कि रेल किराये के खर्च का 85 फीसदी हिस्सा केंद्र और 15 फीसदी हिस्सा राज्य सरकारें उठा रही हैं. हकीकत में मजदूरों से किराये का पैसा लिया गया.

श्रमिक ट्रेन से गुजरात के बड़ोदरा से लखनऊ पहुंचे मजदूरो ने कहा कि उन लोगों ने टिकट का पूरा पैसा चुकाया है. अमेठी के रहने वाले मजदूर रामप्रकाश ने कहा ‘मैं बड़ोदरा से आ रहा हूं. दिसंबर में काम करने के लिए गया था. जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तो उसके दो-तीन दिन बाद हम लोग वहां से चल दिए थे. वहां खाने-पीने की दिक्कत थी. इसके बाद पुलिसवालों ने पकड़ लिया और क्वारटाइन के लिए भेज दिया. वहां पर हम लोगों की जांच भी हुई. हम लोगों को 35 दिन रखा गया था. हम लोगों ने लखनऊ आने टिकट 555 रुपए में लिया. अब हम यहां अमेठी जा रहे हैं.

बड़ोदरा में काम करने गये महेष कुमार ने कहा ‘मैं वहां पर फेब्रिकेशन का काम करता था. जब लॉकडाउन हुआ तो हम लोग वहां से चल दिए. लेकिन पुलिस ने पकड़ लिया और एक स्कूल में रख दिया. बाद में हमे वापस आने का मौका मिला. वापस आने के लिये हमने 500 सौ रूपये का टिकट भी लिया. रेल गाडी से आये कई और मजदूरों ने कहा कि उनसे टिकट का पैसा लिया गया. मजदूरों से रेल का किराया लेने के मामले में केन्द्र सरकार बैकफुट पर पहुंच गई. कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने सवाल उठाया कि अगर विदेश से लोगों को अगर मुफ्त में लाया जा सकता है तो देश के लोगों को मुफ्त में क्यों नहीं भेजा जा सकता ? गुजरात की ही तरह से  महाराष्ट्र के नागपुर से लखनऊ लौटे मजदूरों ने टिकट दिखाया और बताया कि उनसे भी टिकट का पैसा लिया गया.

योगी का दिखावा:

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार मजदूरों को सुविधायें देने में नाकाम रही. दिल्ली से लखनऊ बस के जरीये जब मजदूरों को लाया गया तो उनसे बस का किराया लिया गया. एक तरफ मजदूरों को बस का किराया देना पडा. दूसरी तरफ योगी सरकार कोटा में पढाई करने गये छात्रों को मुफ्रत में लेकर आती है. योगी सरकार ने दिखावे के लिये पूरे देश से अपने यहां के मजदूरों की घर वापसी की बात कही. वह केवल कागजो पर ही खरी उतरती है.

सरकार ने प्रवासी मजदूरों का उत्तर प्रदेश में लाने के लिये एक साफ्टवेयर बनाया है. मजदूरों को पहले इस पर अपना नाम दर्ज करना है. इसके बाद ही वह अपने प्रदेश वापस आ सकते है. परेशानी की बात यह है कि स्मार्टफोन रखने के बाद भी मजदूर अपना रजिस्ट्रेशन नहीं कर पाते है ऐसे में वह घर वापसी के लिये धक्के खाने को मजबूर है. दूसरी तरफ योगी सरकार अपनी तारीफ के पुल बांधने में व्यस्त है. इसके साथ ही साथ वह यह भी जता रहे है कि जैसे मजदूरों पर बहुत बडा उपकार कर रहे है. यह उपकार वैसा ही है जैसे ऊची जाति के लोग थोडी सी मदद करके एहसान जताते थे.

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अलवर राजस्थान में रहकर काम कर रहे उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के रहने वाले प्रेम कुमार और उनके 5 साथी अलवर से पैदल अपने गांव जाने के लिये निकलते है. वह बताते है कि राजस्थान और हरियाणा की पुलिस ने उनके साथ बहुत सहयोग किया और उनको ट्रक में बैठाकर कर घर पहुचने में मदद की ज बवह आगरा पहुंचे तो उत्तर प्रदेश में उनके साथ बुरा सलूक किा जाने लगा. आगरा से लखनऊ पहुंच कर यह लोग पानी पीने के लिये एक पुलिस चैकी पर गये तो वहां उनको पानी पीने नही दिया गया. लखनऊ से पैदल कुशीनगर जाने वाली सडक पर चलते हुये इन लोगों ने बताया कि उन्होने योगी जी को वोट दिया था. आज योगी जी उनके लिये कोई सुविधा नहीं कर पाये है. वह कोटा से लोगों को बस से ला सकते है तो हम लोगों के लिये बस की व्यवस्था क्यों नहीं कर सकते ?

बेबस नीतीश कुमार:

प्रवासी मजदूरों को लेकर यह किसी एक प्रदेश का हाल नहीं है. भाजपा षासित हर प्रदेश की हालत एक जैसी ही है उत्तर प्रदेश के बाद बिहार के सबसे अधिक मजदूर पूरे देश में फैले है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश  कुमार नहीं चाहते कि उनके प्रदेश के रहने वाले प्रवासी मजदूर वापस अपने प्रदेश आये. यही वजह है कि नीतीश  कुमार ने अपने प्रदेश में किसी प्रवासी मजदूरों को लाने का काम नहीं किया. नीतीश   कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ मीटिंग में भी कहा कि अगर प्रवासी मजदूर अपने अपने प्रदेशों को वापस आयेगे तो लौक डाउन फेल हो जायेगा. मजदूर बाहर से कोरोना के शिकार होकर आयेगे और दूसरे लोगों में इसको फैलायेगे. नीतीश   कुमार की यह सोंच ठीक वैसी ही है जैसे किसी दलित जाति के आदमी से छुआछूत का व्यवहार किया जाता है. बिहार के लोगों को कोरोना नामक छूत की बीमारी ना लग जाये इसलिये नीतीश   कुमार बिहार के मजदूरों को वापस नहीं लाना चाहते है.

यह सभी को पता है कि कोरोना से किस तरह से बचाव करना है. अगर उस बचाव के तहत मजदूरों को वापस लाया जाये और उनको सारी सुविधाये दी जाये तो कोरोना से डरने की कोई बडी वजह नहीं है. मजदूर खुद का बेसहारा अनुभव ना करे इसके लिये केन्द्र और प्रदेश की हर सरकार को प्रयास करना चाहिये. वापसी के बाद जांच के जरीये यह देखा जाये कि उनमें कितना संक्रमण है. ऐसे में उनको उचित इलाज दिया जाये. मजदूरों को एक दो हजार माह की मदद कोई मदद नहीं है. इससे उनका जीवन यापन नहीं होगा. जरूरत इस बात की है कि गांव स्तर पर ही रोजगार के साधन बनाये जाये. इसके लिये दीर्घकालीन योजना की जरूरत है.

केन्द्र सरकार की वर्तमान नीतियां इसके अनुकूल नहीं है. केन्द्र सरकार को अपनी नीतियां बदलने ककी जरूरत है. गांव गांव में बेरोजगारी और खाने का संकट सरकारों के प्रति मजदूरों के भावों को बदलने का काम करेगा. यह चुनाव पर भी प्रभाव डालेगा. बिहार में सबसे पहले विधानसभा के चुनाव सबसे पहले है. मजदूरों से भेदभाव का प्रभाव इस चुनाव पर पडेगा. इसका परिणाम बिहार चुनाव में दिख जायेगा.

Lockdown में सलमान खान के साथ हैं जैकलीन फर्नांडीज, शेयर किया फार्महाउस का Video

कोरोना वायरस नें फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को पूरी तरह से घरों में रहनें तक सीमित कर दिया है. लेकिन बॉलीवुड ऐक्ट्रेस जैकलीन फर्नांडीज (Jacqueline Fernandez) खुद के घर पर न रह कर अभिनेता सलमान खान (Salman Khan) के पनवेल फार्महाउस (Farm House) पर समय बिता रहीं हैं. यहाँ जैकलीन के साथ सलमान खान (Salman Khan) भी अपने परिवार के साथ समय बिता रहें हैं.

इस बीच सलमान खान (Salman Khan) के फ़ार्म हाउस पर रहते हुए जैकलीन फर्नांडीज (Jacqueline Fernandez) के कई वीडियोज और फोटोज सामने आ रहें हैं. इसी कड़ी में सलमान खान और जैकलिन नें अपने –अपने इन्स्टाग्राम एकाउंट पर एक वीडियो साझा किया है जिसमें वह खूब मस्तियाँ करती हुई दिखाई पड़ रहीं हैं.

सोशल मीडिया पर शेयर किये गए इस वीडियों में जैकलीन फर्नांडीज (Jacqueline Fernandez) के सुबह से लेकर पूरी दिनचर्या को दिखाने की कोशिश की गई है. 3 मिनट 48 सेकेण्ड के इस वीडियो में जैकलिन को बिस्तर से उठते हुए दिखाया गया है. इसके बाद वह खिड़की के परदे को हटाती हैं जहाँ से पड़ने वाली सूरज की किरणें खुबसूरत नजारा पेश कर रहीं हैं .इसके बाद लान में फैले हुए कपडे, साड़, कुत्ते और मुर्गे को भी कैप्चर किया गया है. वीडियो में वह अमृता प्रीतम के किताब के साथ कॉफी की चुस्कियां भी ले रहीं हैं. इस वीडियो में उन्होंने वर्क आउट भी किया है. उन्होंने तितलियों के बीच सलमान खान (Salman Khan) के बागीचे से सहतूत तोड़ कर भी खाया.

 

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पेड़ पर चढ़नें से लेकर घुड़सवारी का लिया मजा
शेयर किये वीडियो में जैकलीन नें नारियल के पेड़ पर भी चढ़नें की कोशिश की. इसके अलावा उन्होंने सलमान खान के घोड़े के बाड़े में जाकर घोड़े को न केवल घास खिलाई बल्कि घोड़े को नहलाया भी.

 

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सलमान खान के फार्म हॉउस से शूट किये गए इस शार्ट वीडियो में जैकलिन नें घुड़सवारी का भी खूब मजा लिया. इस फिल्म में उन्होंने यह भी दिखाने की कोशिश की है सलमान के फार्म हॉउस पर लोग कैसे रह रहें हैं. उन्होंने फार्महाउस के जानवरों के साथ ही क्लीनिंग और कुकिंग स्टाफ को भी दिखाया है.

 

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जैकलीन फर्नांडीज (Jacqueline Fernandez) द्वारा खुद के इन्स्टाग्राम एकाउंट पर इस वीडियो को अभी तक 23 लाख 63 हजार से ज्यादा बार देखा जा चुका है वहीँ सलमान खान के इन्स्टाग्राम एकाउंट पर इसे 27 लाख 75 हजार बार से ज्यादा बार देखा जा चुका है.

सलमान खान ने जैकलीन फर्नांडीज के इस शॉर्ट फिल्म को शेयर करते हुए उसके कैप्शन में लिखा है “जैकलीन द्वारा बनाई गई फिल्म.” Lockdown के चलते सलमान खान (Salman Khan) के साथ जैकलीन फर्नांडीज के अलावा उनकी खास दोस्त यूलिया वंतुर भी रुकी हुई हैं.

मां हूं न: भाग 3

विश्वंभर प्रसाद ने जो वचन दिया था, उसे निभाया. उजड़ चुके घर को फिर से संभाल कर सजाया. आराधना को फूल की तरह खिलने दिया. पौधे को खाद, पानी और हवा मिलती रहे, उस का सही पालनपोषण होता है. आराधना बड़ी होती गई. समझदार हो गई तो एक दिन विश्वंभर प्रसाद ने उसे सामने बैठा कर कहा, ‘‘बेटा, मैं तुम्हारा दादा हूं, पर उस के पहले मित्र हूं. इसलिए मैं तुम से कुछ भी नहीं छिपाऊंगा. हम सभी के जीवन में क्याक्या घटा है, यह जानने का तुम्हें पूरा हक है.’’

आराधना दादाजी के सीने से लग कर बोली, ‘‘दादाजी, यू आर ग्रेट. आप न होते तो हमारा न जाने क्या होता.’’

‘‘अरे पगली, तुम मांबेटी न होती तो शायद मैं इस जिंदगी को इस तरह न जी पाता. इस जिंदगी पर सीनियर सिटिजन का ठप्पा लगाए निराशावादी जीवन जी रहा होता. तुम लोगों को मैं ने नहीं गढ़ा है, बल्कि तुम लोगों ने मुझे गढ़ा है. तुम्हारे कौशल का नटखट मेरी आंखों में बस गया है बेटा.’’

आरती ने तृप्ति की लंबी सांस ली. वह पिता जैसा प्यार देने वाले ससुर थे, उन्हीं के सहारे वह जी रही थी. अगर उन का सहारा न होता तो मांबेटी मांबाप के यहां आश्रित बन कर बेचारी की तरह जी रही होतीं. इन्हीं की वजह से आज वे सिर ऊंचा कर के जी रही थीं वरना नदी के टापू की तरह कणकण बिखर गई होतीं.

उगते सूरज की किरणों के बीच आराधना बालकनी में खड़ी हो कर कौफी पीती. विश्वंभर प्रसाद मौर्निंग वाक से वापस आते तो आराधना दरवाजा खोल कर उन के सीने से लग जाती, ‘‘गुड मौर्निंग दादू.’’

विश्वंभर प्रसाद दोनों हाथों से आराधना को गोद में उठा लेते. 80 साल के होने के बावजूद उन में अभी जवानों वाली ताकत थी. आराधना झटपट गोद से उतर कर सख्त लहजे में कहती, ‘‘दादादी, बिहैव योर एज.’’

‘‘अभी तो मैं जवान हूं. कालेज के दिनों में क्रिकेट खेलता था, मेरा हाइयेस्ट सिक्सर्स का रेकार्ड है.’’

ऐसा ही लगभग रोज होता था. सुबह जल्दी उठ कर विश्वंभर प्रसाद मौर्निंग वाक के लिए निकल जाते थे. पौने 7 बजे के फोन की घंटी बजती, जिस का मतलब था वह 10 मिनट के अंदर आने वाले हैं. आरती कहती, ‘‘अरू, जल्दी कर दादाजी के आने का समय हो गया है. जूस तैयार कर के टेबल पर प्लेट लगा.’’

आराधना जल्दी से कौफी खत्म कर के फ्रिज से संतरा, मौसमी या अनार निकाल कर जूस निकालने की तैयारी करने लगती. दूसरी ओर आरती किचन में नाश्ते की तैयारी करती. इस के बाद डोरबेल बजती तो आराधना दरवाजा खोल कर दादाजी के गले लग जाती. उस दिन किचन में नाश्ते की तैयारी कर रही आरती चिल्लाई, ‘‘आराधना जल्दी जूस निकाल कर मेज पर प्लेट लगा, 8 बज गए दादाजी आते ही होंगे. लेकिन आज उन का फोन तो आया ही नहीं.’’

आराधना जूस के गिलास मेज पर रख कर प्लेट लगाने लगी. अंदर से आरती ने कहा, ‘‘आज उठने में मुझे थोड़ी देर हो गई. लेकिन पापाजी की टाइमिंग परफेक्ट है, वह आते ही होंगे.’’

8 से सवा 8 बज गए. न फोन आया न डोरबेल बजी. आराधना चिढ़ कर बोली, ‘‘मम्मी, दादाजी तो दिनप्रतिदिन बच्चे होते जा रहे हैं. खेलने लगते हैं तो समय का ध्यान ही नहीं रहता. आज आते हैं तो बताती हूं.’’

साढ़े 8 बज गए. दरवाजा खोले मांबेटी एकदूसरे का मुंह ताक रही थीं. मौर्निंग वाक करने वालों की तरह घड़ी का कांटा भाग रहा था. कांटा पौने 9 पर पहुंचा तो आराधना ने दादाजी के मोबाइल पर फोन किया. घंटी बजती रही, पर फोन नहीं उठा. आराधना के लिए यह हैरानी की बात थी. आरती ने उस के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘कोई पुराना दोस्त मिल गया होगा फारेनवारेन का. बहुत दिनों बाद मिला होगा इसलिए बातों में लग गए होंगे.’’

‘‘आप भी क्या बात करती हैं मम्मी. एक घंटा होने को आ रहा है. नो वे…दादाजी इतने लापरवाह नहीं हैं. कम से कम फोन तो उठाते या खुद फोन करते.’’

आराधना बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि उस का फोन बजा. नंबर देख कर बोली, ‘‘ये लो आ गया दादाजी का फोन.’’

फोन रिसीव कर के आराधना धमकाते हुए बोली, ‘‘यह क्या…इतनी देर…मेरे का क्या…’’

‘‘एक मिनट मैडम, यह फोन आप के फैमिली मेंबर का है?’’

‘‘जी, यह फोन मेरे ग्रांडफादर का है. आप के पास कैसे आया?’’

‘‘मैडम, मुझे तो यह सड़क पर पड़ा मिला है.’’

हैरानपरेशान आरती बगल में खड़ी थी. उस ने पूछा, ‘‘अरू, कौन बात कर रहा है? पापा का फोन उसे कहां मिला, वह कहां हैं?’’

‘‘फोन ढूंढ रहे होंगे. एक तो गंवा दिया.’’

दूसरी ओर से अधीरता से कहा गया, ‘‘हैलो…हैलो मैडम.’’

‘‘जी सौरी भाईसाहब, वह क्या है कि मेरे ग्रांडफादर वाक पर गए थे. उन का फोन गिर गया होगा. आप कहां हैं? मैं लेने…’’

‘‘आप मेरी बात सुनेंगी या खुद ही बकबक करती रहेंगी.’’ फोन करने वाले ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘यह फोन आप के ग्रांडफादर का है न, उन का एक्सीडेंट हो चुका है. मैं यह फोन पुलिस वाले को दे रहा हूं.’’

पुलिस वाले ने बताया कि यह फोन जिस का भी है, उन का एक्सीडेंट हो चुका है. आप जल्दी आ जाइए.

फोन कटते ही आराधना ने मां का हाथ पकड़ा और गेट की ओर भागी, ‘‘मम्मी, जल्दी चलो, दादाजी का एक्सीडेंट हो गया है.’’

एक जगह भीड़ देख कर आराधना रुक गई. आंसू पोंछते हुए भर्राई आवाज में बोली, ‘‘प्लीज मम्मी, मैं वहां नहीं जा सकती. दादाजी को उस हालत में नहीं देख सकती.’’

‘‘कलेजा कड़ा कर अरू, रोने के लिए अभी समय पड़ा है. अब जो कुछ भी करना है, हम दोनों को ही करना है.’’

आराधना का हाथ थामे आरती भीड़ के बीच पहुंची तो सड़क पर खून से लथपथ पड़ी देह आराधना के प्यारे दादाजी विश्वंभर प्रसाद की थी. आराधना के मुंह से निकली चीख वहां खड़े लोगों के कलेजे को बेध गई. वह लाश पर गिरती, उस के पहले ही क्लब के विश्वंभर प्रसाद के साथियों ने उसे संभाल लिया.

आरती बारबार बेहोश हुए जा रही थी. अगलबगल की इमारतें जैसे उस के ऊपर टूट पड़ी हों और वह उस के मलबे से निकलने की कोशिश कर रही हो, इस तरह हांफ रही थी. उस में यह पूछने की भी हिम्मत नहीं थी कि यह सब कैसे हुआ. वहीं थोड़ी दूरी पर 2 कारें आपस में टकराई खड़ी थीं. कांप रहे 2 लड़कों को इंसपेक्टर डांट रहा था.

बाद के दिन इस तरह धुंध भरे रहे, जैसे पहाड़ी इलाके में कोहरा छाया हो. आरती की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. सूरज उगता, कब रक्तबिंदु बन कर डूब जाता, पता ही न चलता. विश्वंभर प्रसाद का अंतिम संस्कार, शांतिपाठ सब हो गया था. चाहे बेटा समझो या पोती, जो कुछ भी थी, अरू ही थी.

यह सब जो हुआ था, बाद में पता चला कि 17 साल के निनाद को कार चलाने का चस्का लग चुका था. मांबाप घर में नहीं थे, इसलिए मौका पा कर दोस्त के साथ कार ले कर निकल पड़ा था. तेज ड्राइविंग का मजा लेने के लिए वह तेज गति से कार चला रहा था.

सुबह का समय था, सड़क खाली थी इसलिए वह लापरवाह भी था. अचानक सामने से कुत्ता आ गया. उस ने एकदम से ब्रेक लगाई, सड़क के किनारेकिनारे विश्वंभर प्रसाद आ रहे थे, निनाद स्टीयरिंग पर काबू नहीं रख पाया और…

यह जान कर आराधना का खून खौल उठा था. अपने मजे के लिए निनाद ने उस के दादाजी की जान ले ली थी. उस की आंखों के आगे से दादाजी की खून से लथपथ देह हट ही नहीं रही थी. उस की दुनिया जिस दादाजी के नाम के मजबूत स्तंभ पर टिकी थी, वह स्तंभ एकदम से टूट गया था, जिस से उस की हंसतीखेलती दुनिया उजड़ गई थी.

आरती जानती थी कि अगर वह टूट गई तो आराधना को संभालना मुश्किल हो जाएगा. सुबोध जब उसे छोड़ कर गया था, उस की गृहस्थी के रथ का दूसरा पहिया ससुर विश्वंभर प्रसाद बन गए थे, जिस से जीवन की गाड़ी अच्छे से चल पड़ी थी. लेकिन उन के अचानक इस तरह चले जाने से अब आराधना के जीवन की डोर उस के हाथों में थी.

‘‘मम्मी, मैं प्रैस जा रही हूं. आप भी चलेंगी?’’

‘‘क्यों?’’ आरती ने पूछा.

‘‘मैं मीडिया के जरिए सब को यह बताना चाहती हूं कि एक गैरजिम्मेदार जिस लड़के की वजह से मेरा घर बरबाद हो गया, मेरे सिर का साया उठ गया, उसे थाने से ही जमानत मिल गई. इस का मतलब मेरे दादाजी के जीवन की कीमत कुछ नहीं थी. मैं उस के घर जाना चाहती हूं, उस के मांबाप से लड़ना चाहती हूं कि कैसा है उन का पुत्ररत्न? मैं उसे छोड़ूंगी नहीं, हाईकोर्ट जाऊंगी. आखिर मांबाप ने उसे कार दी ही क्यों?’’

‘‘कल मैं उस के घर गई थी अरू, उस की मां मिली थी.’’ आरती ने धीरे से कहा.

‘‘व्हाट?’’

‘‘तुम्हारी तरह मैं भी उस की मां से लड़ना चाहती थी, पर…’’

‘‘पर क्या?’’

‘‘मैं ने उस की मां को देखा. एक ही बेटा है, जो जवानी की दहलीज पर खड़ा है. नादान और गैरजिम्मेदार है, लेकिन वही उन का सहारा है. उसी पर उन की सारी उम्मीदें टिकी हैं. सर्वस्व लुट जाने का दुख मैं जानती हूं बेटा.

इस समय उस के मांबाप कितना दुखी, परेशान और डरे हुए हैं, यह मैं देख आई हूं. ऐसे में आग में घी डालने वाले शब्दों से उन के मन को और दुखी करना या उन्हें परेशान करने से क्या होगा अरू. मैं ने उन्हें माफ कर दिया बेटा. निनाद को भी माफ कर दिया.’’

‘‘मेरे दादाजी के हत्यारे को आप ने माफ कर दिया मम्मी?’’

‘‘क्या करूं बेटा, मां हूं न.’’ कह कर आरती अंदर चली गई.

आराधना को एक बार फिर महाभारत की द्रौपदी की याद आ गई.

 

मां हूं न: भाग 2

इस के बाद वह बड़बड़ाती हुई भागी, ‘‘बाप रे बाप, कालेज के लिए देर हो रही है.’’

आराधना और विश्वंभर चले गए. दोपहर को ड्राइवर आ कर लंच ले गया. आरती ने थोड़ा देर से खाना खाया और जा कर बैडरूम में टीवी चला कर लेट गई. थोड़ी देर टीवी देख कर उस ने जैसे ही आंखें बंद कीं, जिंदगी के एक के बाद एक दृश्य उभरने लगे. सांसें लंबीलंबी चलने लगीं.

हांफते हुए वह उठ कर बैठ गई. घड़ी पर नजर गई. सवा 3 बज रहे थे. 16 साल पहले आज ही के दिन इसी पलंग पर वह फफकफफक कर रो रही थी. डाक्टर सिन्हा सामने बैठे थे. दूसरी ओर सिरहाने ससुर विश्वंभर प्रसाद खड़े थे. वह सिर पर हाथ फेरते हुए कह रहे थे, ‘‘आरती, तुम्हें आज जितना रोना हो रो लो. आज के बाद फिर कभी उस कुल कलंक का नाम ले कर तुम्हें रोने नहीं दूंगा. डाक्टर साहब, मुझे पता नहीं चला कि यह सब कब से चल रहा था. पता नहीं वह कौन थी, जिस ने मेरा घर बरबाद कर दिया. उस ने तो लड़ने का भी संबंध नहीं रखा.’’

आरती टुकुरटुकुर ससुर का मुंह ताक रही थी. आखिर सुबोध के बिना वह कैसे जिएगी. अभी तक वह उस से लिपटी बेल की तरह जी रही थी. अब वह आधार के बिना जमीन पर बिखर गई थी. अब कौन सहारा देगा. बिना किसी वजह के पति उसे बेसहारा छोड़ कर चला गया था.

पता नहीं कौन उन के बीच आ गई थी. वह कैसी औरत थी, जो उस के पति को अपने मोहपाश में बांध कर चली गई थी. छोटी सी बिटिया, पिता जैसे ससुर, फैला कारोबार, जीवन अब एक तपती दोपहर की तरह हो गया था. नंगे पैर चलना होगा, न आराम न छाया.

लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

ससुर विश्वंभर प्रसाद ने सहजता से घरसंसार का बोझ अपने कंधों पर उठा लिया था. उस के जीवनरथ का जो पहिया टूटा था, उस की जगह वह खुद पहिया बन गए थे, जिस से आरती के जीवन का रथ फिर से चलने ही नहीं लगा था, बल्कि दौड़ पड़ा था.

 

विश्वंभर प्रसाद सुबह जल्दी उठ कर नजदीक के क्रिकेट क्लब के मैदान में चले जाते, नियमित टेनिस खेलते. छोटीमोटी बीमारी को तो वह कुछ समझते ही नहीं थे. उन्होंने समय के घूमते चक्र को जैसे मजबूत हाथों से थाम लिया था. वह जवानी के जोश में आ गए थे. सुबोध था तो वह रिटायर हो कर सेवानिवृत्ति का जीवन जी रहे थे. औफिस जाते भी थे तो थोड़े समय के लिए. लेकिन अब पूरा कारोबार वही संभालने लगे थे.

उन की भागदौड़ को देखते हुए एक दिन आरती ने कहा, ‘‘पापा, आप इतनी मेहनत करते हैं, यह मुझे अच्छा नहीं लगता. हम 3 लोग ही तो हैं. इतना बड़ा घर और कारोबार बेच कर छोटा सा घर ले लेते हैं. बाकी रकम ब्याज पर उठा देते हैं. आप इस उम्र में…’’

‘‘इस उम्र में क्या आरती… देखो ब्याज खाना मुझे पसंद नहीं है. आराधना बड़ी हो रही है. हमें उस का जीवन उल्लास से भर देना है. वह बूढ़े दादा और अकेली मां की छाया में दिन काटे, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’’

विश्वंभर ने बाल रंगवा लिए, पहनने के लिए लेटेस्ट कपड़े ले लिए. वह फिल्म्स, पिकनिक सभी जगह आराधना के साथ जाते, जिस से उसे बाप की कमी न खले.

सब कुछ ठीकठाक चलने लगा था कि अचानक एक दिन आरती के मांबाप आ पहुंचे. वे आरती और आराधना को ले जाने आए थे. उन का कहना था कि विधुर ससुर के साथ बिना पति के बहू के रहने पर लोग तरहतरह की बातें करते हैं.

लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि ससुर और बहू का पहले से ही संबंध था, इसीलिए सुबोध घर छोड़ कर चला गया. दोनों ही परिवारों की बदनामी हो रही है, इसलिए आरती को उन के साथ जाना ही होगा. उन के खर्च के लिए रुपए उस के ससुर भेजते रहेंगे.

मांबाप की बातें सुन कर आरती स्तब्ध रह गई. उस पर जैसे आसमान टूट पड़ा हो. फिर ऐसा कुछ घटा, जिस के आघात से वह मूढ़ बन गई. आरती के मांबाप की बातें सुन कर विश्वंभर प्रसाद ने तुरंत कहा था, ‘‘मैं इस बारे में कुछ भी नहीं कह सकता, जो भी निर्णय करना है, आरती को करना है. अगर वह जाना चाहती है तो खुशी से अरू को ले कर जा सकती है.’’

बस, इतना कह कर अपराधी की तरह उन्होंने सिर झुका लिया था. आराधना उस समय उन्हीं की गोद में थी. नानानानी ने उसे लेने की बहुत कोशिश की थी. पर वह उन के पास नहीं गई थी. उस ने दोनों हाथों से कस कर दादाजी की गरदन पकड़ ली थी.

आराधना के पास न आने से आरती की मां ने नाराज हो कर कहा था, ‘‘आंख खोल कर देख आरती, तेरा यह ससुर कितना चालाक है. आराधना को इस ने इस तरह वश में कर रखा है कि हमारे लाख जतन करने पर भी वह हमारे पास नहीं आ रही है. देखो न ऐसा व्यवहार कर रही है, जैसे हम इस के कुछ हैं ही नहीं.’’

इतना कह कर आरती की मां उठीं और विश्वंभर प्रसाद की गोद में बैठी आराधना को खींचने लगीं. आराधना चीखी. बेटे के घर छोड़ कर जाने पर भी न रोने वाले विश्वंभर प्रसाद की आंखें छलक आईं. ससुर की हालत देख कर आरती झटके से उठी और अपनी मां के दोनों हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मम्मी, मैं और आराधना यहीं पापा के पास ही रहेंगे.’’

‘‘कुछ पता है, तू ये क्या कह रही है. तू जो पाप कर रही है, ऊपर वाला तुझे कभी माफ नहीं करेगा और इस विश्वंभर के तो रोएंरोएं में कीड़े पड़ेंगे.’’

‘‘तुम भले मेरी मां हो, पर मैं अपने पिता जैसे ससुर का अपमान नहीं सह सकती, इसलिए अब आप लोग यहां से जाइए, यही हम सब के लिए अच्छा होगा.’’

‘‘अपने ही मांबाप का अपमान…’’ आरती के पिता गुस्से में बोले, ‘‘तुझे इस नरक में सड़ना है तो सड़, पर आराधना पर मैं कुसंस्कार नहीं पड़ने दूंगा. इसलिए इसे मैं अपने साथ ले जाऊंगा.’’

आराधना जोरजोर से रो रही थी. आरती के मांबाप उसे और विश्वंभर प्रसाद को कोस रहे थे. आरती दोनों कानों को हथेलियों से दबाए आंखें बंद किए बैठी थी. अंत में वे गुस्से में पैर पटकते हुए यह कह कर चले गए कि आज से उन का उस से कोई नातारिश्ता नहीं रहा.

मांबाप के जाने के बाद आरती उठी. ससुर के आंसू भरे चेहरे को देखते हुए उन के सिर पर हाथ रखा और आराधना को गले लगाया. इस के बाद अंदर जा कर बालकनी में खड़ी हो गई. उतरती दोपहर की तेज किरणें धरती पर अपना कमाल दिखा रही थीं. गरमी से त्रस्त लोग सड़क पर तेजी से चल रहे थे.

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